देवशयनी एकादशी -जब श्रीहरी विष्णु होंगे योगनिद्रा में लीन
नीलम गुप्ता दोस्तों , आज देवशयनी एकादशी है | हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार आज ही के दिन श्री हरी विष्णु योग निद्रा में लीन हो जायेंगे व् चार मॉस बाद पुन : उठ कर अपना कार्यभार समभालेंगें | क्योंकि विष्णु भगवान् धरती को सुचारू रूप से चलाने का काम करते हैं | इसके लिए उनके पास देवताओं की एक पूरी टीम होती है | पर उनके सोते ही देवता भी सो जाते हैं | सही भी है जब प्रधान सो जाएगा तो सेवक भी सो ही जायेंगे | जैसे क्लास टीचर अगर एक झपकी मार ले तो बच्चे शरारत पर उतर ही आते हैं | ठीक वैसे ही इस शयन काल में पाप बढ़ जाने का भी रहता है | क्योंकि मानव के अंदर छुपा शरारती बच्चा शरारतों अथार्त पापों की और आसक्त होने लगता है | इसी कारण भक्तों के लिए ये जरूरी हो जाता है की वो चार मॉस तक सचेत रहे | पूजा पाठ में ध्यान लगायें | जिससे पाप का प्रतिशत बढ़ने न पाए | यानी की ये देवशयनी एकादशी भक्तों के लिए ” वार्निंग “है … की भाई हम तो अब सो रहे हैं धरती को पापों से बचाना तुम्हारा काम है | यानी देवताओं के सोने का समय भक्तों के जागने का समय है | जानिये कब सोते – कब उठते हैं देवता हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार आसाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं | इस दिन देवता शयन करते हैं | इसे पद्मनाभा भी कहते हैं | यह दिन सूर्य के मिथुन राशि में आने के बाद आता है | फिर चार महीने सोने के बाद सूर्य के तुला राशि में आने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को उन्हें उठाया जाता है | उस दिन को देवउठानी एकादशी कहते हैं | इस चार महीने के समय को चातुर्मास कहा गया है | क्यों सोते हैं देवता जब प्रथ्वी पर जीवन उत्पन्न करने का ख्याल ईश्वर के मन में आया | तो उन्होंने इसके तीन भाग बना दिए | जन्म , जीवन काल और मरण | तीनों का समुचित सञ्चालन करने के लिए तीनों देवों ने अपना – अपना कार्यभार बाँट लिया | अब तीनों देवता एक साथ तो सो नहीं सकते | इसलिए उन्होंने न शयन काल भी बाँट लिया | यानी तीनों देव बारी – बारी से चार महीने के लिए सोते हैं | देवशयनी एकादशी से देव उत्थानी तक विष्णु , देवुत्थानी से महाशिवरात्रि तक शिव व् महाशिवरात्रि से देवशयनी तक ब्रह्मा | ये सब चार – चार महीने की नींद लेते हैं | 24 घंटे का दिन प्रथ्वी पर होता है | हो सकता है देव लोक का दिन एक वर्ष का होता हो | उस आधार पर भी ये गड़ना सही प्रतीत होती है | क्या है धर्मिक कारण हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जब श्री हरी प्रभु ने वामन रूप रख कर राजा बलि से दक्षिणा में तीन पाँव धरती मांगी तो उन्होंने एक पाँव से धरती आकाश ढक लिया , दूसरे में स्वर्ग लोक और तीसरे के लिए राजा बलि ने खुद को प्रभु चरणों में समर्पित कर दिया |प्रभु उसकी भक्ति से प्रसन्न हुए | बलि ने श्री हरी से उनके लोक में ही रहने का वरदान मांग लिया | अब लक्ष्मी जी चिंतित हुई | उन्होंने बलि को भाई बना लिया व् उनसे वादा ले लिया की श्री हरी केवल चार महीने उसके लोक में रहेंगे | यही समय चातुर्मास कहलाया | देवशयनी एकादशी विज्ञान के अनुसार हमारी धर्मिक मान्यताओं का कोई न कोई वैज्ञानिक कारण तो होता ही है | अब देवशयनि एकादशी को ही लें | हरी शब्द के कई अर्थ होते हैं | यह देवताओं , विष्णु के अतिरिक्त सूर्य चंद्रमा के लिए भी प्रयुक्त होता है | जैसा की आप जानते हैं की ये चातुर्मास बारिश का मौसम भी है |बारिश यानी बादल , सूर्य और चंद्रमा का तेज कम हो जाना , वर्षा और कीचड | यानी ये मौसम है बीमारियों का मौसम | वैज्ञानिकों के अनुसार भी बारिश के मौसम में आद्रता व् गर्मी का खतरनाक संयोंग होता है | जो कीटाणुओं के बढ़ने के लिए बहुत मुफीद समय है | अब इस मौसम में कीटाणु बहुतायत से पनपते हैं इस लिए सावधान रहने की जरूरत है | नहीं तो बीमार पड़ने की पूरी सम्भावना है | इसी कारण यज्ञ मांगलिक कार्य आदि सब प्रतिबंधित कर दिए | जिससे उसमें व्यवधान न आये | वहीं शादी ब्याह , कामकाज इन अन्न जल दूषित हो कर एक बड़े समूह के रोग या मृत्यु का कारण न बने | व्रत विधि एक रात्रि पहले से ही बरह्मचर्य व्रत का पालन करें , स्न्नंदी करे व् गीता पाठ करें , ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का पाठ करें | भगवान् के सामने प्रण करें की सभी नेम – नियमों का पालन करूँगा | व्रत में फलाहार लें | अगले दिन सुबह व्रत का पारण करें | जानिये व्रत कथा एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से इस एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की, तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया- सतयुग में मांधाता नामक एक चक्रवर्ती सम्राट राज्य करते थे। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। किंतु भविष्य में क्या हो जाए, यह कोई नहीं जानता। अतः वे भी इस बात से अनभिज्ञ थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला है। उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा। इस दुर्भिक्ष (अकाल) से चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। धर्म … Read more