संकल्प शक्ति – आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है?
प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक वाराणसी आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इन्फर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रूपये की लागत से तैयार इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में किया। अब यह छात्र चाहते हैं कि यह कार देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय सेना के काम भी आए। इससे पहले यह इन्फर्नो इंदौर में सोसायटी आॅफ आॅटोमोटिव इंजीनियरिंग में पहला पुरस्कार जीत चुकी है। इस कार में 305 सीसी ब्रिग्स और स्ट्रैटन इंजन लगा है जो उसे रफ्तार देने में मदद करता है। इसके साथ ही ड्राइवर की सुरक्षा और कन्फर्ट का भी ख्याल रखा गया है। 50 डिग्री के पहाड़ पर भी यह कार चल सके, इसके लिए आगे के पहियों को बड़ा रखा गया है। झुग्गी बस्ती में पल-बढ़कर कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मेडल जीत चुकी कोलकाता की 19 वर्षीय कराटे चैंपियन आयशा नूर की प्रतिभा का आखिरकार अमेरिका ने भी लोहा मान लिया। गरीबी व मिर्गी की बीमारी को मात देकर कराटे की दुनिया में पहचान बना चुकी आयशा की प्रतिभा से प्रभावित होकर कोलकाता स्थित अमेरिका सेंटर ने मेडल देकर उन्हें सम्मानित किया है। आयशा के साथ उनके कोच मोहम्मद अली को भी सम्मानित किया गया। इस दौरान सेंटर की ओर से आयशा पर बनाई गई करीब घंटे का वृत्त चित्र ‘वीमन एंड गल्र्स लीड ग्लोबल’ का भी प्रसारण किया गया। अमेरिका की यूनिवर्सिटी आॅफ टेक्सास की इस 24 वर्षीय छात्रा एम्बर वैनहेक के संघर्ष की दास्तान ने उनके अदम्य साहस और जीवटता से दुनिया को दिखा दिया कि मुश्किल हालातों में जिंदगी की जंग कैसे जीती जाती है। अपनी सांसों को उखड़ने से बचाने के लिए एक बियाबान पठार में 127 घंटे यानी पूरे पांच दिन इसने संघर्ष किया। एम्बर 10 मार्च 2017 को एरिजोना के आसपास कार से घूमने निकली। जीपीएस के बावजूद वे गलत रास्ते पर भटक गई। 12 मार्च को ग्रांड कैनयन पहुंचने पर फोन का जीपीएस बंद हो गया और नेटवर्क भी चला गया। साथ ही उसकी गाड़ी का ईंधन भी खत्म हो गया। अब वह निर्जन ग्रंांड कैनयन घाटी और पठार में बुरी तरह फंस चुकी थी। एम्बर को यह समझने में देर न लगी कि इस घाटी में उसे मदद के लिए कई दिनों या महीनों का इंतजार करना पड़ सकता है। इसलिए उसने जी-जान से मदद पाने के लिए कोशिश शुरू की। पत्थरों की मदद से उसने मैदान पर 10 फूट लंबा एसओएस और तीस फुट लंबा हेल्प का साइन बनाया। दिन में एक बार खाया खाना। उनके पास कुछ सूखे फल, बीज और मेवा था, जिसने उसे पांच दिन जीवित रखा। एक ही जगह पर बैठकर मदद का इंतजार करके थक चुकी एम्बर ने पांचवे दिन एक साहसिक निर्णय लिया और अपनी गाड़ी को वही छोड़ पूर्व दिशा की तरफ पैदल चलना शुरू किया। तकरीबन 11 मील चलने के बाद उनके फोन में नेटवर्क आया और 911 पर फोन किया। वह पूरी बात बता पाती इसके पहले फोन कट गया। फोन पर उनकी अधूरी बात सुनकर ही बचाव दल के लोग ग्रांड कैनयन की तरफ निकले। लगभग 40 मिनट बाद हवाई एंबुलंस के चालक को उनकी कार नजर आई। कार के पास मौजूद नोट्स की सहायता से उन्हें ढूंढ निकाला। अब वह अपने घर लौट चुकी हैं। महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गांव रोपरखेड़ा के गरीब दलित परिवार में जन्मी कल्पना का बचपन काफी गरीबी में बीता। पिता पुलिस में हवलदार थे, लेकिन उनकी कमाई से घर का खर्चा बहुत मुश्किल से चलता था। पिता ने पढ़ाई छुड़ाकर शादी करा दी। ससुराल में उन्हें शारीरिक तथा मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। पिता 6 महीने बाद घर ले आये। जिंदगी से निराश होकर उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। लेकिन उनकी जान बच गई। जिंदगी ने उन्हें एक मौका दिया। उन्हें अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस हुई। इसी बीच पिता की किन्हीं कारणों से नौकरी छूट गयी। कल्पना की एक बहन इलाज के पैसे न होने के कारण बीमारी से चल बसी। तभी कल्पना को एहसास हुआ कि दुनिया में सबसे बड़ी कोई बीमारी है, तो वह है-गरीबी। कल्पना ने गरीबी से जंग लड़ने के जज्बे के साथ दिहाड़ी पर कपड़े के कारखाने में धागे कातने का काम किया। फिर सिलाई सीखने के बाद सिलाई का काम करने लगी। 50,000 हजार रूपये का कर्ज लेकर फर्नीचर का व्यवसाय शुरू किया और सफल रही। ये कल्पना सरोज का जादू ही है कि आज ‘कमानी टयूब्स’ 500 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी की मालकिन बन गयी है। कोई बैकिंग बैकग्रांउड न होते हुए भी सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स में शामिल किया है। कल्पना का जीवन संदेश देता है कि घर में लड़ी, समाज से लड़ी, अपनी किस्मत से भी लड़ी। लडकर ही कल्पना ने चुना अपना आकाश। सरकार द्वारा कल्पना सरोज को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है। वैज्ञानिकांे ने खून को जवां रखने वाला ऐसा प्रोटीन खोजने का दावा किया है, जिसकी मदद से हृदय संबंधी बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी। इस शोध के नतीजों से विशेषज्ञों में एक बार फिर लंबा जीवन पाने उम्मीद जग गई है। जर्मनी की यूनिवर्सिटी आॅफ उल्म में हुए शोध में विशेषज्ञों ने आॅस्टिथोपोटिन नामक प्रोटीन खोजने का दावा किया है। इनका कहना है कि यह प्रोटीन हमारे शरीर में मौजूद रक्त को जवान बनाए रखता है। जर्मन विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रोटीन के अभाव में रक्त मूल कोशिकाओं की अवस्था में गिरावट आई मतलब वे वृद्ध हुई। इस प्रोटीन से लैस दवाओं के सेवन से कोशिकाओं की बढ़ती उम्र पर रोक लग गई। मेडिकल साइन्स के क्षेत्र में यह एक क्रान्तिकारी खोज है। श्री जितेन्द्र यादव का कहना है कि मैं उत्तर प्रदेश के जालौन के डकोर का रहने वाला हूं और झांसी में डीआईजी आॅफिस में काॅस्टेबल हूं। अपनी नौकरी के बाद का समय में जरूरतमंदों की सेवा करने और गरीब बच्चों को … Read more