संकल्प शक्ति – आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है?

 प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक             वाराणसी आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इन्फर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रूपये की लागत से तैयार इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में किया। अब यह छात्र चाहते हैं कि यह कार देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय सेना के काम भी आए। इससे पहले यह इन्फर्नो इंदौर में सोसायटी आॅफ आॅटोमोटिव इंजीनियरिंग में पहला पुरस्कार जीत चुकी है। इस कार में 305 सीसी ब्रिग्स और स्ट्रैटन इंजन लगा है जो उसे रफ्तार देने में मदद करता है। इसके साथ ही ड्राइवर की सुरक्षा और कन्फर्ट का भी ख्याल रखा गया है। 50 डिग्री के पहाड़ पर भी यह कार चल सके, इसके लिए आगे के पहियों को बड़ा रखा गया है।             झुग्गी बस्ती में पल-बढ़कर कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मेडल जीत चुकी कोलकाता की 19 वर्षीय कराटे चैंपियन आयशा नूर की प्रतिभा का आखिरकार अमेरिका ने भी लोहा मान लिया। गरीबी व मिर्गी की बीमारी को मात देकर कराटे की दुनिया में पहचान बना चुकी आयशा की प्रतिभा से प्रभावित होकर कोलकाता स्थित अमेरिका सेंटर ने मेडल देकर उन्हें सम्मानित किया है। आयशा के साथ उनके कोच मोहम्मद अली को भी सम्मानित किया गया। इस दौरान सेंटर की ओर से आयशा पर बनाई गई करीब घंटे का वृत्त चित्र ‘वीमन एंड गल्र्स लीड ग्लोबल’ का भी प्रसारण किया गया।             अमेरिका की यूनिवर्सिटी आॅफ टेक्सास की इस 24 वर्षीय छात्रा एम्बर वैनहेक के संघर्ष की दास्तान ने उनके अदम्य साहस और जीवटता से दुनिया को दिखा दिया कि मुश्किल हालातों में जिंदगी की जंग कैसे जीती जाती है। अपनी सांसों को उखड़ने से बचाने के लिए एक बियाबान पठार में 127 घंटे यानी पूरे पांच दिन इसने संघर्ष किया। एम्बर 10 मार्च 2017 को एरिजोना के आसपास कार से घूमने निकली। जीपीएस के बावजूद वे गलत रास्ते पर भटक गई। 12 मार्च को ग्रांड कैनयन पहुंचने पर फोन का जीपीएस बंद हो गया और नेटवर्क भी चला गया। साथ ही उसकी गाड़ी का ईंधन भी खत्म हो गया। अब वह निर्जन ग्रंांड कैनयन घाटी और पठार में बुरी तरह फंस चुकी थी।             एम्बर को यह समझने में देर न लगी कि इस घाटी में उसे मदद के लिए कई दिनों या महीनों का इंतजार करना पड़ सकता है। इसलिए उसने जी-जान से मदद पाने के लिए कोशिश शुरू की। पत्थरों की मदद से उसने मैदान पर 10 फूट लंबा एसओएस और तीस फुट लंबा हेल्प का साइन बनाया। दिन में एक बार खाया खाना। उनके पास कुछ सूखे फल, बीज और मेवा था, जिसने उसे पांच दिन जीवित रखा। एक ही जगह पर बैठकर मदद का इंतजार करके थक चुकी एम्बर ने पांचवे दिन एक साहसिक निर्णय लिया और अपनी गाड़ी को वही छोड़ पूर्व दिशा की तरफ पैदल चलना शुरू किया। तकरीबन 11 मील चलने के बाद उनके फोन में नेटवर्क आया और 911 पर फोन किया। वह पूरी बात बता पाती इसके पहले फोन कट गया। फोन पर उनकी अधूरी बात सुनकर ही बचाव दल के लोग ग्रांड कैनयन की तरफ निकले। लगभग 40 मिनट बाद हवाई एंबुलंस के चालक को उनकी कार नजर आई। कार के पास मौजूद नोट्स की सहायता से उन्हें ढूंढ निकाला। अब वह अपने घर लौट चुकी हैं।             महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गांव रोपरखेड़ा के गरीब दलित परिवार में जन्मी कल्पना का बचपन काफी गरीबी में बीता। पिता पुलिस में हवलदार थे, लेकिन उनकी कमाई से घर का खर्चा बहुत मुश्किल से चलता था। पिता ने पढ़ाई छुड़ाकर शादी करा दी। ससुराल में उन्हें शारीरिक तथा मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। पिता 6 महीने बाद घर ले आये। जिंदगी से निराश होकर उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। लेकिन उनकी जान बच गई। जिंदगी ने उन्हें एक मौका दिया। उन्हें अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस हुई। इसी बीच पिता की किन्हीं कारणों से नौकरी छूट गयी। कल्पना की एक बहन इलाज के पैसे न होने के कारण बीमारी से चल बसी। तभी कल्पना को एहसास हुआ कि दुनिया में सबसे बड़ी कोई बीमारी है, तो वह है-गरीबी।             कल्पना ने गरीबी से जंग लड़ने के जज्बे के साथ दिहाड़ी पर कपड़े के कारखाने में धागे कातने का काम किया। फिर सिलाई सीखने के बाद सिलाई का काम करने लगी। 50,000 हजार रूपये का कर्ज लेकर फर्नीचर का व्यवसाय शुरू किया और सफल रही। ये कल्पना सरोज का जादू ही है कि आज ‘कमानी टयूब्स’ 500 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी की मालकिन बन गयी है। कोई बैकिंग बैकग्रांउड न होते हुए भी सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स में शामिल किया है। कल्पना का जीवन संदेश देता है कि घर में लड़ी, समाज से लड़ी, अपनी किस्मत से भी लड़ी। लडकर ही कल्पना ने चुना अपना आकाश। सरकार द्वारा कल्पना सरोज को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।             वैज्ञानिकांे ने खून को जवां रखने वाला ऐसा प्रोटीन खोजने का दावा किया है, जिसकी मदद से हृदय संबंधी बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी। इस शोध के नतीजों से विशेषज्ञों में एक बार फिर लंबा जीवन पाने उम्मीद जग गई है। जर्मनी की यूनिवर्सिटी आॅफ उल्म में हुए शोध में विशेषज्ञों ने आॅस्टिथोपोटिन नामक प्रोटीन खोजने का दावा किया है। इनका कहना है कि यह प्रोटीन हमारे शरीर में मौजूद रक्त को जवान बनाए रखता है। जर्मन विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रोटीन के अभाव में रक्त मूल कोशिकाओं की अवस्था में गिरावट आई मतलब वे वृद्ध हुई। इस प्रोटीन से लैस दवाओं के सेवन से कोशिकाओं की बढ़ती उम्र पर रोक लग गई। मेडिकल साइन्स के क्षेत्र में यह एक क्रान्तिकारी खोज है।             श्री जितेन्द्र यादव का कहना है कि मैं उत्तर प्रदेश के जालौन के डकोर का रहने वाला हूं और झांसी में डीआईजी आॅफिस में काॅस्टेबल हूं। अपनी नौकरी के बाद का समय में जरूरतमंदों की सेवा करने और गरीब बच्चों को … Read more

साहसी महिलायें हर क्षेत्र में बदलाव की मिसाल कायम कर रही हैं- प्रदीप कुमार सिंह

             विश्व की साहसी महिलायें हर क्षेत्र में मिसाल कायम कर रही हैं। कुछ ऐसी बहादुर तथा विश्वास से भरी बेटियों से रूबरू होते हैं, जिन्होंने समाज में बदलाव और महिला सम्मान के लिए सराहनीय तथा अनुकरणीय मिसाल पेश की है। देश में डीजल इंजन ट्रेन चलाने वाली पहली महिला मुमताज काजी हो या पश्चिम बंगाल में बाल और महिला तस्करी के खिलाफ आवाज उठाने वाली अनोयारा खातून। ऐसी कई आम महिलाएं हैं जो भले ही बहुत लोकप्रिय न हो लेकिन उन्हें इस साल नारी शक्ति पुरस्कार के लिए चुना गया। राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को 30 महिलाओं को पुरस्कृत किया। पुरस्कार पाने वालों में नागालैण्ड की महिला पत्रकार बानो हारालू भी शामिल है जो नागालैण्ड में पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रही है। उत्तराखण्ड की दिव्या रावत ग्रामीणों के साथ मशरूम की खेती को विकसित करने की भूमिका निभा रही है। छत्तीसगढ़ पुलिस में कांस्टेबल स्मिता तांडी ने 2015 में जीवनदीप समूह बनाया जो गरीबों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आर्थिक मदद करता है।             सऊदी में कार चलाने तो फ्रांस में समान वेतन के अधिकार के लिए। पाकिस्तान में घरेलू हिंसा तो अमेरिका में राजनेताओं की भद्दी टिप्पणियों से बचने को। दुनिया के कई देशों में आधी आबादी बड़ी-बड़ी लड़ाइयां लड़ रही हंै। बीते साल मई में पाकिस्तान के काउंसिल आॅफ इस्लामिक आइडियोलाॅजी ने एक प्रस्ताव पेश कर पत्नियों की पिटाई को जायज ठहराया। इसके बाद ट्विटर पर ट्राईबीटिंगमीलाइटली अभियान शुरू हो गया। हजारों महिलाओं ने फोटो के साथ संदेश पोस्ट कर लिखे कि जैसे पति ने पीटा तो उसके हाथ तोड़ दूंगी। अमेरिका में इस साल 21 जनवरी की तारीख सबसे बड़े महिला आंदोलन की गवाह बनी। वाशिंगटन शहर में लाखों महिलाएं गुलाबी टोपी पहने सड़कों पर उतरीं। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्डो ट्रंप की महिला विरोधी टिप्पणियों का कड़ा विरोध किया। दुनियाभर में लाखों महिलाओं ने सोशल मीडिया पर उनका समर्थन किया।             तुर्की के इस्तांबुल में नवंबर 2016 में हजारों महिलाओं ने उस बिल का विरोध किया जिसमें यह प्रावधान था कि यदि किसी नाबालिग लड़की से दुष्कर्म का आरोपी उससे शादी कर ले तो उसे सजा नहीं दी जाएगी। इसके विरोध में महिलाओं ने नारे लगाऐ। फिलहाल बिल वापस ले लिया गया पर महिलाएं दुष्कर्मियों को कड़ी सजा देने की मांग पर डटी हैं। चीन में फरवरी 2017 में एक महिला संगठन का सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर दिया गया। इस अकाउंट में संगठन ने ए डे बिदाउट वूमेन शीर्षक से एक लेख पोस्ट किया था। साथ में अमेरिकी महिलाओं के प्रदर्शन की तस्वीर भी जारी की थी। चीनी महिलाएं सोशल मीडिया पर विचार व्यक्त करने की आजादी मांग रही हैं।             बिहार की सुधा वर्गीज विकास और महिला सशक्तीकरण की पर्याय बन चुकी हैं। वर्गीज ने जीवन मुसहर जाति के विकास में समर्पित कर दिया है। इसके लिए सरकार ने 2006 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। पटना से सटे मनेर में दो लड़कियों पर इसलिए तेजाब डाल दिया गया क्योंकि वे दबंगों की छेड़खानी का विरोध करती थी। महाराष्ट्र की वर्षा जवलगेकर ने इस हमले की शिकार चंचल का साथ दिया। एक बार वर्षा पर भी हमला हुआ। तब से वे परिवर्तन केन्द्र से जुड़कर तेजाब पीड़ितों को इंसाफ दिलाने का काम कर रही हैं। उन्होंने एक पीआईएल अप्रैल 2013 में दर्ज की।  दिसम्बर 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि तेजाब पीड़िता को विकलांग का दर्जा और मुआवजा 13 लाख रूपये दिए जाएं।             देहरादून में ढोल की थाप इस पहाड़ी इलाके में महिला सशक्तीकरण की गूंज पैदा कर रही है। गायिका माधुरी बड़थ्वाल ने पहली बार महिलाओं का ढोल बैंड बनाया है। आकाशवाणी में 32 साल काम करने बाद माधुरी जब रिटायर होकर दून आई तब उन्होंने बीस ऐसी महिला सहयोगियों का ग्रुप तैयार कर लिया है जो ढोल वादन में पारंगत हो रही हैं। उत्तर प्रदेश के सहारनपुर की अतिया साबरी तीन तलाक के खिलाफ आवाज बुलंद कर सुप्रीम कोर्ट पहुंची। अतिया का निकाह 5 मार्च 2012 को हरिद्वार के वाजिद अली से हुआ। दो बेटियां होने पर पति ने एक पत्र भेजकर तलाक दे दिया। अतिया ने आठ जनवरी 2017 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। अतिया के मुताबिक, निकाह और तलाक के वक्त पति-पत्नी की सहमति जरूरी है। मगर पति ने तलाक के वक्त सहमति नहीं ली। महिलाएं घर बैठे ईमेल से भी किसी भी मामले की शिकायत दर्ज करवा सकती हैं। इसके लिए उन्हें थाने आने की जरूरत नहीं है।             कहते है कि मारने वाले का हाथ पकड़ा जा सकता है, मगर कहने वाले की जुबान नहीं। जीवन में कुछ करना या बनना चाहते हैं, तो यह सोचो कि लोग क्या कहेंगे? हाॅलीवुड की एक सुप्रसिद्ध अभिनेत्री के शब्दों में – हर आवाज को यदि हम सुनंेगे, तो हम वे सब नहीं कर पायेंगे, जो हम करना चाहते हैं। मैंने इसी सूत्र को अपनाया है और मैं संतुष्ट हूं। हर समय लोगों की सोच की चिंता करते रहने से हमारी इच्छाएं दम तोड़ने लगती हैं। जब हम स्वयं से संतुष्ट हैं, तो फिर लोगों की बातों से बिल्कुल विचलित न हों। भारत की पहली महिला फायर फाइटर हर्षिणी कान्हेकर, जो नेशनल फायर सर्विसेज काॅलेज की पहली ग्रेजुएट हैं, कहती हैं कि ‘मुझ पर भी लोगों ने बहुत आरोप लगाए। लेकिन मैंने लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी पूरी ऊर्जा फाइटर बनाने में लगा दी। आग पर काबू पाने वाली हर्षिणी आज महिलाओं की प्रेरणास्रोत हैं। महिलाएं हैं तो दुनिया है। हर पल, हर समय खुद को महत्वपूर्ण समझें, औरत का जितना सम्मान होगा दुनिया उतनी ही खूबसूरत होगी। समय के साथ माहौल में भी काफी बदलाव आया है। पुरूषों की सोच भी बदली है।             काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री सदानंद साही के अनुसार लगभग एक दशक पहले में विश्वविद्यालय के महिला अध्ययन कंेद्र से जुड़ा था। उस दौर में हमने महिला अध्ययन में पाठ्यक्रम आदि बनाए। तब हमें कुछ पुरूष सहकर्मियों की टिप्पणियां हैरत में डाल देतीं। वे कहते रहते कि कहां फंसे हो, महिलाएं वैसे ही बेहाथ हो गई हैं, आप लोग महिला अध्ययन कराकर और दिमाग खराब कर रहे हैं। तब मुझे लगा कि महिला अध्ययन की जरूरत … Read more

बुजुर्गों के दिल मे घर कर गई भावना :भावना का 17 वां वार्षिक महाधिवेशन संपन्न

लखनऊ -(संजीव कुमार शुक्ल) उत्तर प्रदेश में माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 एवं उत्तर प्रदेश माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण तथा कल्याण नियमावली 2014 तथा उत्तर प्रदेश राज्य वरिष्ठ नागरिक नीति के प्राविधानों को एन केन प्रकारेण यथाशीघ्र पूर्णतः लागू कराने की भावना को लेकर ही भावना समिति ने अपना 17 वां वार्षिक महाधिवेशन राय उमा नाथ बली पे्रक्षागृह में संपन्न किया। इस अवसर पर भावना सदस्यों के साथ साथ वरिष्ठ नागरिकों की तथा उनका ही चिंतन करने वाली कई अन्य संस्थाओं के पदाधिकारी भी उपस्थित थे। महाधिवेशन में इन ज्वलंत मुद्दों  पर विचार किया गया कि वर्तमान समय में वरिष्ठ नागरिकों की संख्या देश में कुल आबादी की 10प्रतिशत  है जो वर्ष 2050 तक बढ़कर 22 प्रतिशत हो जाएगी अर्थात प्रत्येक 4 में एक व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक होगा 70 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिक अनपढ़ है  तथा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं 70 प्रतिशत वरिष्ठ नागरिक ग्रामों में रहते हैं 66प्रतिशत  इतने गरीब है की खाने की दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती अनपढ़ होने के कारण इनको जीवकोपर्जन  हेतु शारीरिक श्रम पर  निर्भर होना पड़ता है।        भावना समिति में 14 प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किए तथा यह निर्णय लिया गया कि वरिष्ठ नागरिकों की तथा उनका हित चिंतन करने वाली संस्थाओं के सहयोग से प्रदेश के हर नगर एवं ग्राम में बिना जाति धर्म लिंग आदि का भेद  किए वरिष्ठ नागरिकों को जागरूक करने का प्रयास किया जाएगा ताकि वे इन सुविधाओं से वंचित ना रहे जो शासन से उन्हें पहले से ही अनुमन्य हैं तथा उन सुविधाओं की वह साधिकार मांग कर सके जो उन्हें मिलनी चाहिए भावना द्वारा निर्धन एवं असहाय जनों के हित में चलाए जा रहे विभिन्न सेवा प्रकल्प यथावत जारी रखने का निर्णय भी इस बैठक में लिया गया तदानुसार समिति द्वारा प्रायोजित एवं वित्त पोषित शिक्षा सहायता योजना का लाभ आगामी शिक्षा सत्र में कक्षा आठ तथा नीचे की कक्षाओं में पढ़ रहे सब गरीब मेधावी बच्चों को 12 सौ रुपए की दर से उपलब्ध कराया जाएगा आगामी सत्र  में लखनऊ जनपद तथा निकटवर्ती अन्य जनपदों के नगरीय  तथा ग्रामीण इलाकों में भिन्न-भिन्न स्थानों पर निर्धन जन सेवा शिविर आयोजित करके कम से कम 800 निर्धन परिवारों को प्रति परिवार एक एक नया कम्बल  प्रदान किया जाएगा तथा कम से कम 2000 निर्धन  महिलाओं बच्चों को पहने  बिछाने के सूती कपड़े बर्तन आदि दिए जाएंगे कुछ ऐसे अनाथ बच्चों को जीवन यापन हेतु आवश्यकता वाली वस्तु दी जायेगी। अधिवेशन के उद्घाटन सत्र में भावना के वयोवृध्द सदस्यों माननीय डॉक्टर जगदीश गांधी  जिन्होने जीवन पर्यन्त समाज सेवा की और अपने संसथान से वह ज्ञान की गंगा प्रवाहित की जो समाज को  संस्कार मे बनाए इसके अलावा श्रीमती उमा शशि मिश्र ,श्री बैजनाथ कक्कड़,श्री कृष्णपाल निगम त्रिलोकीनाथ सिंह तथा श्री राम किशोर पांडे को पुरस्कृत कर उनका सार्वजनिक अभिनंदन किया गया इस अवसर पर भावना प्रकाशन के प्रधान  संपादक श्री अमरनाथ की नव रचित पुस्तक खरी-खोटी का लोकार्पण भी हुआ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के पूर्व चीफ महानिदेशक एवं वरिष्ठ साहित्यकार श्री महेश चंद्र द्विवेदी थे उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि उसने यह देख कर प्रसन्नता हो रही है की भावना अपने सदस्यों के माध्यम से समाज सेवा कर रही है सभा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्तमान न्यायधीश न्यायमूर्ति कमलेश्वर नाथ हेल्पेज इंडिया के निदेशक श्री अशोक कुमार सिंह ने भी संबोधित किया इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए भावना के अध्यक्ष श्री विनोद कुमार शुक्ल ने भारत में वर्तमान समय में हो रही वरिष्ठ नागरिकों की दुर्दशा पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए कहा की भावना आंदोलन उनकी दशा सुधारने की दिशा में प्रयास रत है  प्रमुख महासचिव श्री राम लाल गुप्ता ने भावना द्वारा प्रत्येक वर्ष में किए गए जब हितकारी कार्यों का संक्षिप्त ब्यौरा प्रस्तुत कर भविष्य की योजनाएं बताई कार्यक्रम के अंत में वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री सुशील कुमार सक्सेना ने सभी को धंयवाद दिया कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार श्री देवकीनंदन शांत द्वारा किया गया। इस अवसर पर तेज ज्ञान फाउन्डेशन, पुणे द्वारा साहित्य पुस्तकों का एक स्टाल भी लगाया गया था जो लोगो के आकर्षण का केंद्रबिंदु बना रहा |

धर्म तथा विज्ञान का समन्वय इस युग की आवश्यकता है!

– प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’,  शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक             हमारे मन में प्रश्न उठता है कि यदि ईश्वर है तो संसार में इतना अज्ञान, मारा-मारी, असमानता तथा दुःख क्यों है? क्या समाज को नियंत्रण में रखने के लिए कुछ विचारशील लोगों ने ईश्वर की अवधारणा को अपनी कल्पना द्वारा जन्म दिया है? जैसे बच्चों को प्रायः डराने के लिए मां कहती है कि जल्दी सो जाओ नहीं तो शैतान आकर तुम्हें उठा ले जायेगा। बालक भोला-भाला होता है वह मां की बात सच मानकर शैतान के डर से सो जाता है। इसी प्रकार अतीतकाल में गुफाओं से बाहर आकर कुछ बुद्धिमान लोगों ने कुछ कम बुद्धिमान लोगों को शिक्षा दी होगी कि बुरे काम करने से पाप होता है तथा अच्छे काम करने से पुण्य मिलता है। मानव की समझ के अनुसार प्रेरणादायी कथाओं तथा मूर्तियों-प्रतिमाओं के रूप में ईश्वर की पूजा के प्रचलन को बढ़ाया गया होगा। ऐसे बुद्धिमान लोगों की इसके पीछे लोक कल्याण की भावना रही होगी। इसी के बाद जाति के भेदभाव, रंग-भेद, अमीर-गरीब जैसी सामाजिक तथा धार्मिक कुरीतियों के युग की शुरूआत हुई होगी।             इस अन्याय को देखकर कृष्ण की प्रखर प्रज्ञा व्याकुल हो उठी होगी। संसार में फैले अन्याय को रोकने तथा न्याय की स्थापना के लिए उस युग में न्यायालय के अभाव में उन्हें अन्तिम विकल्प के रूप में महाभारत युद्ध की रचना करनी पड़ी होगी। किसी रोगी, वृद्ध, मृत्यु तथा धार्मिक पाखण्ड को देखकर सिद्धार्थ जैसे बालक की मानवीय संवेदना जागी होगी। सिद्धार्थ इस अज्ञान से मनुष्य को मुक्त कराने के लिए ज्ञान की खोज में निकल पड़े। वह वर्तमान तथा सत्य में ठहर गये और वह बुद्ध बन गये। बुद्ध ने सारे संसार को सन्देश दिया कि सभी मनुष्य एक समान है। इसी प्रकार ईशु ने अपना बलिदान देकर करूणा का सन्देश दिया। मोहम्मद ने आपस में एक दूसरे का खून बहाने वाले काबिलों को भाईचारे का सन्देश दिया। नानक ने स्वार्थ में लिप्त समाज को त्याग का सन्देश देकर उबारा। इसी प्रकार अनेक महापुरूषों ने संसार के अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों की भलाई के लिए अपना जीवन लगा दिया।             मनुष्य की विचारशील तथा प्रगतिशील आस्था यह मानती है कि इस सारी सृष्टि को बनाने वाला एक परमपिता परमात्मा है। सभी धर्मों का स्त्रोत एक परमपिता परमात्मा है। इस सृष्टि की रचना परमपिता परमात्मा ने प्राणी मात्र के लिए की है। इसके विपरीत विज्ञान ऐसा नहीं मानता है। कभी एक वैज्ञानिक ने अपनी खोज के आधार पर कहा कि सूर्य पृथ्वी के चक्कर लगाता है उसके कुछ वर्षों बाद दूसरे वैज्ञानिक ने और गहराई से खोज करके दुनिया के सामने इस सत्य को उजागर किया कि नहीं पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है। यह एक सत्य है कि पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है। वह निरन्तर ब्रह्माण्ड का किस प्रकार निर्माण हुआ इसकी खोज-अनुसन्धान में लगा हुआ है। विज्ञान में निरन्तर खोजों-अनुसन्धानों द्वारा विकास हुआ है। प्रगतिशील विचार होने के कारण विज्ञान सदैव पुरानी खोजों से निरन्तर आगे की ओर बढ़ता जा रहा है। इसी प्रकार धर्म को भी प्रगतिशील होना चाहिए उसे पुरानी परम्पराओं, मान्यताओं तथा अन्धविश्वासों में ही नहीं बंधे रहना चाहिए। धर्म तथा विज्ञान का समन्वय इस युग की आवश्यकता है। धर्म के मायने हैं धारण करना। अर्थात सामाजिक तथा धार्मिक गुणों को जीवन में धारण करना। जो जोड़े वह धर्म है तथा जो तोड़े वह अधर्म है। सत्य की निरन्तर स्वतंत्र खोज ही धर्म का परम उद्देश्य है। मेरा धर्म, तेरा धर्म तथा उसका धर्म की संकीर्ण सोच को अब त्यागने में ही मानव जाति का हित है। आज के युग में व्यापक सोच यह है कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है।             पूजा-पाठ, प्रेयर, सबद-कीर्तन, इबादत करते हुए ईमानदारी से अपना कार्य-व्यवसाय करने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ श्रेणी में आता है। साथ ही जो व्यक्ति ईश्वर के अस्तित्व को न मानते हुए अपने कार्य-व्यवसाय को यदि ईमानदारी के साथ करता है वह भी मनुष्यता की श्रेष्ठ श्रेणी में आता है। धर्म के नाम पर दूसरों की जान लेने वाले व्यक्ति का कोई धर्म नहीं होता। एक धर्म के व्यक्ति द्वारा दूसरे धर्म के व्यक्ति की जान लेना अमानवीय कृत्य है। ऐसे हिंसक व्यक्ति सामाजिकता, कानून-न्याय तथा व्यवस्था के विरोधी होते हैं। महात्मा गांधी से किसी व्यक्ति ने पूछा कि क्या ईश्वर का अस्तित्व है? इस प्रश्न के जवाब में महात्मा गांधी ने कहा कि ईश्वर है या नहीं है, इस बारे में मैं दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता। लेकिन मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि सत्य ही ईश्वर है। नास्तिक व्यक्ति कुदरत अर्थात प्रकृति के नियमों का सम्मान करते हुए अपना जीवन व्यतीत करता है। भारतीय संविधान में आस्तिक तथा नास्तिक दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं। संविधान दोनों का बराबर से सम्मान करता है। इसलिए संविधान दोनों को अपने-अपने विचार के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।             मानव इतिहास में विश्व में राजनैतिक विचारधारा के कारण कम वरन् धर्म के नाम पर ही सबसे ज्यादा लड़ाइयाँ तथा युद्ध हुए हैं। धर्म के नाम पर हम रोजाना जो भी घण्टों पूजा-पाठ करते हैं वे भगवान को याद करने के लिए कम भगवान को भुलाने के ज्यादा होते हैं। रामायण में लिखा है परहित सरिस धर्म नही भाई, परपीड़ा नहीं अधमाई। अर्थात दूसरों का भला करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है तथा दूसरों का बुरा करने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है। गीता, त्रिपटक, बाईबिल, कुरान, किताबे-अकदस में जो लिखा है उसकी गहराई में जाकर उसे जानना तथा उसके अनुसार अपना कार्य-व्यवसाय करना ही पूजा है। देश संविधान तथा कानून से चलता है इसके अनुसार जीवन यापन करना भी हमारा कर्तव्य है।         मानवीय गुण दया, करूणा, त्याग, प्रेम, एकता, मित्रता, समता, न्याय आदि सर्वभौमिक हंै। गुणात्मक शिक्षा के द्वारा हमें एक ऐसी जीवन शैली विकसित करनी है जो 21वीं सदी के वैश्विक युग में मानव जाति के लिए सर्वमान्य हो। भारत के सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश श्री टीएस ठाकुर के अनुसार देश-दुनिया में बढ़ती असहिष्णुता चिन्ता का विषय है। संविधान के अनुसार इंसान और भगवान के बीच रिश्ता बेहद निजी होता है, इससे किसी अन्य का कोई मतलब नहीं होना चाहिए। उनका कहना था, ‘मेरा … Read more

प्रत्येक क्षण में बहुत कुछ नया है!

– प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक             यदि हमारे अंदर पुराने का आग्रह है तो जीवन में सब पुराना हो जाएगा। जीवन मंे यदि हम पुराने का आग्रह छोड़ दें तो इस नये वर्ष 2017 का प्रत्येक दिन नया दिन तथा प्रत्येक क्षण नया क्षण होगा। कोई व्यक्ति जो निरंतर नए में जीने लगे, तो उसकी खुशी का हम कोई अंदाजा नहीं लगा सकते। हमारे अंदर यह जज्बा होना चाहिए कि इस क्षण में नया क्या है? यदि यह जज्बा हो तो ऐसा कोई भी क्षण नहीं है, जिसमें कुछ नया न आ रहा हो। हम नए को खोजें, थोड़ा देखें कि यह ऊर्जावान तथा जीवनदायी सूरज कभी उगा था? हम चकित खड़े रह जाएंगे कि हम अब तक इस भ्रम में ही जी रहे थे कि रोज वही ऊर्जावान तथा जीवनदायी सूरज उगता है। हम अपने जीवन में निरन्तर यह खोज जारी रखे कि नया क्या है? हमारा फोकस पुराने पर है या नये पर है यह इस बात पर सब कुछ निर्भर करता है। हम हर चीज में नया खोजने का स्वभाव विकसित करे। हमारा पूरा फोक्स नई वस्तुओं से जीवन को नया करने पर नहीं वरन् स्वयं के दृष्टिकोण को नया करने पर होना चाहिए। प्रत्येक क्षण को नया बनाने के इस विचार को हकीकत में बदलने की क्षमता ही नेतृत्व की असली विशेषता है।             अब सवाल यह है कि हमारा चित्त नया कैसे हो? नए चित्त के लिए सबसे पहले हमारे मन में, मस्तिष्क में जहां-जहां पुराना हावी है, उसे जागरूकता से छोड़ने का हम प्रयास करें। यह प्रयास साल में एक दिन नहीं करना है, प्रति दिन और प्रति पल करना होता है, क्योंकि मन लगातार सुबह से शाम तक धूल इकट्ठा करता रहता है। हर रोज जीया हुआ जीवन, अनुभव, स्मृतियाँ बनकर दिमाग में बुरी तरह छा जाती हैं। उन्हें निकाल बाहर करने का कोई तरीका हम नहीं जानते। जिस तरह हम हर रोज शरीर को स्नान करने के बाद तारोताजा हो जाते हैं वैसे ही हर पल मन को उजले-उजले विचारों द्वारा हम अपने चिन्तन को तारोताजा बनाये रखे। जीवन एक धारा है, एक बहाव है, एक संकल्प है, एक जज्बा है, एक जुनून है जो रोज नया होता है।              हर बार नए साल पर हम खुद को बदलने की ठानते हैं। इस बार अपनी खुशी को समझें और उसे ही ढूंढें। जीवन में तीन चीजें हैं – पहला विचार, दूसरा स्त्रोत तथा तीसरा खुशी। विचार और खुशी के बीच छुटी हुई कड़ी अर्थात मीसिंग लिंक है हमारा स्त्रोत। अपने मीसिंग लिंक स्त्रोत से जुड़ते ही हमारे जीवन का हर विचार हमें खुशी तथा प्रतिपल नयेपन में जीने का अहसास देने लगता है। खुश रहने से हमारे शरीर के प्रत्येक सेल नये जन्म लेते हैं। शरीर के अंदर की संरचना में निरन्तर नये-पुराने होने की प्रक्रिया चलती रहती हैं। खुश रहने का धन से कोई संबंध नही है खुश रहना एक मानसिकता है इसे दिशा देकर विकसित किया जा सकता है। संत सूरदास के अनुसार अच्छे काम को करने में धन की आवश्यकता कम पड़ती है, अच्छे हृदय और संकल्प की अधिक। मानसिक स्वस्थ हमारी शारीरिक स्वस्थ की आधारशिला है। महात्मा गांधी के अनुसार दृढ़ संकल्प एक गढ़ के समान है, जो कि भयंकर प्रलोभनों से हमें बचाता है, दुर्बल और डांवाडोल होने से हमारी रक्षा करता है।             नया साल के प्रत्येक दिन तथा प्रत्येक क्षण एक चित्र की तरह है, जिसे अभी बनाया नहीं गया है। एक रास्ता है, जिस पर अभी कदम नहीं पड़े हैं। एक पंख है, जिसने उड़ान नहीं भरी है। नए साल में हमको एक संकल्प जरूरत है। दुनियाभर में नववर्ष के आगमन पर जश्न में डूबे लोगों को देखकर मस्तिष्क में यह विचार आया था कि क्या वर्ष में 1 जनवरी का दिन ही नया नहीं होता है तथा तथा वर्ष के शेष 364 दिन पुराने होते हैं। वर्ष के 364 दिन पुराने में जीने के आदी हो चुके हम 1 दिन कैसे नया महसूस कर सकते हैं? हमें निरन्तर प्रयास करके अपने प्रत्येक दिन को नया बनाना चाहिए। आइये, स्वयं को अन्दर से नया करें।             जिंदगी में ‘कुछ’ हासिल करने के लिए हमें ‘लीक को तोड़’ नई जमीन की तलाश करनी होती है। मशहूर अमेरिकी कवि व लेखक राॅल्फ वाल्डो इमर्सन कहते हैं कि वहां मत जाओ, जहां रास्ता ले जाता है, बल्कि अपने निशानों को छोड़ते हुए वहां जाओ, जहां कोई रास्ता नहीं है। बाद में दुनिया उन्हीं निशानों पर चलती है। आगे बढ़ने के लिए हरेक कामयाबी के बाद हमारा यह जानना भी बेहद जरूरी होता है कि और कहां सुधार हो सकते हैं? हम अपने अंदर छिपी ताकत को पहचाने यहीं युग की आवाज है। तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशां, पुकारती तुम्हें ये जमीं पुकारता यह आंसमा।             हम यह न समझें कि दूसरे व्यक्ति का संघर्ष कम है और हमारा ज्यादा। जो जिस स्तर पर है, उसके संघर्ष का रूप भी वैसा ही होता है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका दरअसल हमारे मन की होती है। जिसका मन मजबूत होगा, उसे जीवन में कभी कोई पराजित नहीं कर सकता है। उसे किसी भी तरह की कठिनाई अपने लक्ष्य से विचलित नहीं कर सकती है। हमें प्रत्येक क्षण अपने स्वयं के ऊपर आध्यात्मिक विजय प्राप्त करनी है। इसके लिए छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करके आगे की ओर कदम निरन्तर बढ़ाते रहना है।  हमें अपनी ऊर्जा को चारों तरफ से समेटकर अपने लक्ष्य पर फोकस करना है।             समस्या को समस्या मानना भी अपने आप में एक समस्या से भरी सोच है। जीवन में असफलता का मिलना बुरा नहीं है। हर असफलता अपना कीमती अनुभव हमारे लिए छोड़कर जाती है। हमें अपने को यह बात याद दिलाने की जरूरत है कि हारना बुरा नहीं है।…और क्या हुआ अगर हम हार गए हैं? कम से कम हमने कोशिश तो की। ये कोशिश ही हमारी सफलता है। इसलिए पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि मुश्किल नहीं गिर कर उठना। किसी ने कहा है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नैया पार नहीं होती। संत रामतीर्थ ने कहा है कि सफलता का पहला सिद्धांत है- काम, अनवरत काम।             जिंदगी को … Read more

हम सबकी जिम्मेदारी, मिलकर बनाये दुनियाँ प्यारी

           प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक   मानव जाति के अन्नदाता किसान को जमीन को कागजी दांव-पेच से आगे एक महान उद्देश्य से भरे जीवन की तरह देखना चाहिए। कागजी दांव-पेच को हम एक किसान की सांसारिक माया कह सकते हैं, लेकिन अब जमीन पर पौधे लगाने की योजना है, ताकि हमारा सांसारिक मोह केवल जमीनी कागज का न रहे, बल्कि जीवन का एक मकसद बनकर अन्नदाता तथा प्रकृति-पर्यावरण से भी जुड़ा रहे। किसान को अपने उत्तम खेती के पेशे का उसे पूरा आनंद उठाना है। सब्सिडी का लोभ और कर्ज की लालसा किसान को कमजोर करती है। जमीन बेचने की लत से छुटकारा तभी मिलेगा, जब हम धरती की गोद में खेलेंगे, पौधे लगाएंगे। जमीन-धरती हमारी माता है। परमात्मा हमारी आत्मा का पिता है। केवल धरती मां के एक टूकड़े से नहीं वरन् पूरी धरती मां से प्रेम करना है। धरती मां की गोद में खेलकूद कर हम बड़े होते हैं। धरती मां को हमने बमों से घायल कर दिया है। शक्तिशाली देशों की परमाणु बमों के होड़ तथा प्रदुषण धरती की हवा, पानी तथा फसल जहरीली होती जा रही है।                      अक्सर हमारी पूरी उम्र गुजर जाती है और यह तय ही नहीं कर पाते कि हम यहां हैं क्यों? इससे हमारी जीवन की गुणवत्ता दोयम दर्जे की हो जाती है। गुणवत्ता सुधारनी है, तो हमें पहले-पहल बस इतना करना चाहिए कि इसका एक उद्देश्य तय करें। इतने भर से जीवन में आमूल-चूल बदलाव आ सकता है। पैसा, करियर आदि चीजों से हटकर बस हम इतना ठान लें कि कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि उसके पूरा होने के बाद शांति और तसल्ली के साथ मर पाएं, तो समझिए जीवन यात्रा ठीक होगी। जीवन का मकसद सदैव हमारे सामने होने से राह की बाधायें परेशान नहीं करती हैं वरन् वे जीवन के सफर में एक नया अनुभव छोड़ जाती है। प्रत्येक क्षण में मनुष्य के लिए बहुत कुछ अच्छा है। वर्ष में 1 जनवरी का केवल एक दिन ही नया नहीं है वरन् प्रत्येक सुबह एक नया दिन तथा रात्रि में मृत्यु की गोद में सोने का अहसास लेकर आती है।             ओलंपिक में नौका रेस के मुकाबले के दौरान नाविक प्रतियोगी लाॅरेन्स एकाएक अपने घायल प्रतियोगी की मदद के लिए रूक गए। नतीजा यह हुआ कि वह रेस में सबसे पीछे रहे। उन्होंने जीतने की इच्छा से अधिक दूसरे के जीवन को महत्व दिया, इसलिए उनके लिए सबसे अधिक तालियां बजी। उन्होंने वह हासिल कर लिया, जो जीतने वाले के लिए एक सपना होता है। बर्तोल्त ब्रेख्त अपनी कविता में कहते हैं- हमारा उद्देश्य यह न हो कि हम एक बेहतर इंसान बने, बल्कि यह हो कि हम एक बेहतर समाज से विदा ले। रवीन्द्र नाथ टैगोर कहते है कि मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन को समय के किनारे पड़ी हुई ओस की भांति हल्के-हल्के नाचने दे। यह नाच तभी हो सकता है, जब हमारा मन ओस की तरह हल्का हो। शुद्ध, दयालु तथा प्रकाशित हृदय हो। हृदय में परहित के लिए जगह हो। आध्यात्मिक गुरू तेजश्री कहते है कि दुनिया वैसी नहीं है जैसी हमें दिखाई देती है वरन् दुनिया वैसी है जिस दृष्टिकोण-विचार से हम उसे देखते हैं।             पंजाब केसरी के वरिष्ठ नागरिक केसरी क्ल्ब की चेयरपर्सन श्रीमती किरण चैपड़ा के अनुसार पिछले दिनों मैंने काॅफी टेबल बुक ‘बेटिया’ लांच की, जिसमें देश के हर फील्ड से प्रसिद्ध बेटियां, चाहे वह राजनीतिक, स्पोट्र्स, एक्टिंग, सामाजिक, पत्रकारिता क्षेत्र को शामिल किया, जिसका उद्देश्य था कि देश की हर आम-खास बेटी जाने कि वह किसी से कम नहीं, वह भी उनकी तरह हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती है। आज भ्रूण हत्या करने वाले भी सोच लें कि बेटी है तो परिवार, समाज, देश है। श्रीमती किरण चैपड़ा के नारियों तथा वरिष्ठ नागरिकों को आगे बढ़ाने के उत्कृष्ट जज्बे को लाखों सलाम।             बुढ़ापा जीवन का एक अटूट सत्य है। बुढ़ापा और गरीबी से जिंदगी अभिशाप बन जाती है। हम बुजुर्गों का ऐसा सहारा बनें, ताकि उन्हें बुढ़ापा अभिशाप नहीं अनुभवों का खजाना महसूस हो। आओ ऐसा संसार बसाएं जहां सुखी-दुखी लोग अपने आपको अकेला, असहाय न महसूस करें और आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करें। वृद्धजनों का सम्मान होना चाहिए। सरकारी तथा निजी संस्थाओं को ओल्ड ऐज होम अधिक से अधिक बनाना चाहिए। ताकि वरिष्ठ नागरिक अपने हम उम्र के लोगों के साथ मजे से हर पल जीवन जीते  हुए संसार से विदा हो।             23 साल की उम्र में रितेश बनें अरबपति। छोटी सी उम्र सिम कार्ड बेचकर गुजारा करने वाले रितेश अग्रवाल आज भारत के सफलतम उद्यमियों में से एक हो गए हैं। एक समय रितेश इंजीनियरिग की परीक्षा देना चाहते थे परंतु आज मात्र 22 वर्ष की उम्र में वे देश के नामी अरबपतियों में से एक हैं। वह ओयो रूम्स के संस्थापक है। कुदरत में भरपूर है। जैसा हम चाहते हैं तथा वैसा करते हैं तो सफलता हमारे कदम चूमती है। सकारात्मक दृष्टिकोण का भी सफलता में काफी श्रेय है। श्रेष्ठ भावना यह है कि कैसे करें ईश्वर की नौकरी? रितेश की कहानी एक जिम्मेदार इंसान की कहानी है समझ मिलने के बाद। बड़बोले बनने से अच्छा है कि सच्चे कर्मयोगी बनने की कला सीखे।             असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के पद पर चयनित हुए उपदेश कुमार वत्स का कहना है कि सिर्फ आगे देखेंगे, तभी आगे बढ़ पाएंगे। मैनेज करना आपके हाथ में होता है। यह बस इस पर निर्भर करता है कि आपकी मानसिकता तैयारी को लेकर कितनी सकारात्मक है। एक समय मेरे मन में जाॅब छोड़कर तैयारी करने का विचार आया, लेकिन फिर लगा कि मैं मैनेज कर सकता हूं और करके रहंूगा। आप किसी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो पूरे मन से करें। फोकस के अभाव में की गई तैयारी, आपको पुनः उसी जगह खड़ा कर देती है, जहां से आपने शुरूआत की थी। कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नैया पार नहीं होती।             बहादुर बच्चों से मुखातिब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उन्हें मन की शक्ति मजबूत बनाने की जरूरत है। इस दौरान पीएम ने 25 बच्चों को गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय वीरता सम्मान … Read more