अहसास

अहसास

बेटा  हो या बेटी आज के जमाने में दोनों बराबर हैं | जहां जहां बेटियों को अधिकार मिले हैं , वहाँ उन्हे अपने कर्तव्य के प्रति भी सजग रहना चाहिए | इस बात का अहसास रहना चाहिए कि रिश्ते एक तरफ न हों | एहसास सुनिये,उठिये— ,बार बार शालू के आवाज दिये जाने पर भी देवेश नहीं उठ रहा था, आखिर में उसके नाराज़ होने के डर से शालू रसोई में जाकर नाश्ते और चाय की तैयारी में लग गयी ।बच्चों का दूध मम्मी पापा के लिए दलिया, सभी का खयाल रखना है उसका सिरदर्द हो रहा था मन था एक कप चाय बना कर पी ले, लेकिन यह सोचकर कि देवेश के साथ ही पी लूंगी वह अपने कार्य में लगी रही। 9 बजने वाले थे अब — आखिर फिर आवाज देने गई,देवेश ने उसे अपने आलिंगन में भर लिया और एक हल्का सा चुम्बन सिर पर देकर बोला, शादी के 10 साल की सुखद यादें मुबारक,तुम हमेशा खुश रहो सलामत रहो। शालू के गालों पर लालिमा छा गई वह नयी दुल्हन की तरह शर्माकर देवेश की छाती पर सिर रखकर बोली मेरा तो संसार तुमसे है तुम खुश तो मैं खुश। देवेश नहाकर तैयार हो गया नाश्ते की टेबल पर आज गर्म जलेबी और पोहे देखकर दोनों बच्चों मोनू शोनू को आवाज दी बच्चे भी आकर लड़ाई करने लगे- मैं यहां बैठूंगा बड़ा भाई बोला, छोटे को रोते देख दादा जी ने बड़े को समझाया बेटा मोनू आप बड़े हो आपको छोटे भाई के लिए प्यार होना चाहिए लड़ाई नहीं करना।यह बात हमेशा सुनते हुए वह बड़ा हो रहा था। मोनू अपने भाई को भी लेकर जा खेलने शालू ने आवाज दी। नहीं मैं नहीं ले जाउंगा मोनू ने हट की शोनू रो रहा था साथ में जाने के लिए। शालू के बार बार डांटने पर मोनू नहीं गया खेलने और रोता रहा, रोते रोते नींद आ गई। इस तरह बच्चे स्कूल की पढ़ाई पूरी करने वाले थे। उनकी मनोदशा भी बदलने लगी थी। प्यार और झगड़ा दोनों होते थे। सुनिए- देवेश को देख कर शालू ने याद दिलाया कि आज मम्मी पापा को हेल्थ चेकअप कराने जाना है आप ले जाएंगे तो अच्छा है मुझे भी अपनी मां की बरसी पर मायके जाना है शाम तक आ जाऊंगी।खाना बना दिया है। देवेश ने कहा ठीक है लेकिन आते वक्त तुम बच्चों स्कूल से लेकर कहीं अच्छा सा पीज़ा खिला देना बहुत दिनों से बाहर नहीं गये है। लेकिन मुझे देर भी हो सकती है शालू ने कहा-___ क्यों? देवेश बोला इतनी देर क्यों? शालू बोली मेरे पापा के पास बैठे हुए उनकी बातों को सुने हुए बहुत समय हो गया है मुझे लगता है पापा मम्मी के नहीं होने से अकेले हो गये है और अपने मन की बात किसी से करना चाहते हैं और एक बेटी होने की वजह से मैं उन्हें नजदीक से जानती हूं इसलिए मैं थोड़ा देरी से आउंगी।ठीक है देवेश ने कहा। पापा और शालू बाहर बने गार्डन में बेंच पर बैठ गए, हल्की हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। शालू __बेटा एक बात कहना चाहता हूं, क्या पापा ??शालू बोली ।देखो बेटा मेरे पास तुम्हारे लिए सिर्फ एक सोने की चेन है बाकी जेवर तो तुम्हारे भाई को पढ़ाने में और यह घर बनाने में बिक गये,अब कुछ रुपये बैंक में जमा है जो मेरे बुढ़ापे में या अन्तिम संस्कार में काम आ जाएंगे। शालू की आंखों से आंसू बहते रहे कुछ नहीं बोली लेकिन पापा ने जब सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा कि तुम ही बेटी और बेटा हो तो फफक पड़ी और बोली कुछ नहीं चाहिए, बस आप स्वस्थ और सुखी रहें प्रभु से यही चाहती हूं। घर आकर काम खत्म करके जब बिस्तर पर आई तो देवेश ने उसकी आंखें सूजी हुई देखकर कहा क्यों क्या हुआ आज मायका छोड़ कर आने पर बहुत रोई हो क्या? नहीं अब तो आदत हो गई शालू बोली बस पापा की फ़िक्र है।भाई बाहर रहते हैं साल भर में एक बार आते हैं,खाना बनाने वाली बना कर रख जाती है। दिन भर अकेले काटना मुश्किल हो जाता है मन की बातें किसी से करना चाहते हैं एक मैं हूं तो मुझसे कह देते हैं। देवेश थोड़ी देर बोला,एक बात कहूं? हां कहिए, पापा को यहां ले आओ साथ में रहने पर मन लग जाएगा बच्चों के साथ। मेरे मम्मी पापा को भी कम्पनी मिल जाएगी| दूसरे दिन फ़ोन पर बातों बातों में शालू ने कहा, पापा आप क्यों ना हमारे साथ रहें। पापा ने छूटते ही कहा अरे कैसी बात करती हो? मैं वहां आ जाउंगा तो तेरे भैया भाभी आएंगे तो कैसे होगा सबकुछ। नहीं मैं यहां ठीक हूं। देवेश ने भी समझाया लेकिन नहीं मानें। आखिर फिर वैसे ही चलने लगा। मोनू को अच्छे मार्क्स आने पर अच्छे कालेज में एडमिशन मिल गया।शोनू को अभी दो साल बाकी थे कालेज में।अब वह घर में अकेला रह गया भाई के साथ लड़ाई याद आती, ज़िद करने में मजा नहीं आता। (क्योंकि ज़िद भी मजा तब देती है जब मुश्किल से पूरी हो) अब हर बात में भाई की कमी खलती। दिन बित रहे थे। सभी अपने अपने कार्य में व्यस्त थे। अचानक भाई के एक्सीडेंट और मौत की खबर आई भाभी को आईसीयू में रखा है ऐसा बताया। शालू असमंजस में पड़ गई कि क्या करे पापा को बताने में डर लग रहा था कि वो सहन कर पाएंगे कि नहीं। लेकिन बताना पड़ा। घबराहट में पापा का ब्लडप्रेशर कंट्रोल नहीं हुआ और पेरेलेसिस हो गया। मुश्किलें बढ़ गई क्या करे क्या ना करें।दो दिन बाद भाभी ने भी दम तोड दिया,यह तो अच्छा था कि रोमी भाई का बेटा बड़ा हो गया था उसने सब सम्हाल लिया। रात हुई तो हिम्मत करके शालू ने फ़ोन पर रोमी से बात की उसको समझाया कि वह अब क्या चाहता है जो भी निर्णय लें सोच कर लें।रोमी विदेश में पला बढ़ा तो सोच भी विदेशी होना स्वाभाविक है लेकिन आश्चर्य हुआ जब उसने अपने देश में आकर कुछ अपना बिजनेस करने की इच्छा जताई। उसने बिजनेस मेनेजमेंट किया था तो कोई तकलीफ़ नहीं हुई पैसा भी था। धीरे … Read more

मजबूरी

जैसे एक झूठ  की वजह से सौ झूठ बोलने पड़ते हैं वैसे ही एक गलत कदम  कारण एक के बाद एक कई गलत कदम उठ  जाते हैं | जिन्दगी की पूरी धरा ही बदल जाती है | मजबूरी चंदा की भी थी और शिवम् की भी | आखिर शिवम् ने ऐसा क्या गलत कदम उठाया कि उसकी मजबूरी का सिलसिला बढ़ता ही चला गया | आइये जानते हैं कहानी मजबूरी में  मजबूरी  चंदा ओ चंदा सरला की आवाज में गुस्सा था, चंदा दौड़कर आई जी बोलिए,बस शुरू हो गई सरला, आज तूने अभी तक क्या किया है घर कितना बिखरा पड़ा है डस्टिंग नहीं हुई, सब्जी साफ नहीं की, बाथरूम गंदे पड़े हैं आखिर तू कर क्या रही है अभी तक। चंदा रोने लगी।रोता देखकर एक मिनट को सरला भी सहम गई क्या हुआ? अपने गुस्से को शांत करके चंदा को पानी पिलाया। फिर प्यार से पूछा क्यों रो रही हो। बात सुनकर सरला भी तनाव में आ गई। पड़ोस में रहने वाले बड़ी उम्र के शर्मा जी ने चंदा को लिफ्ट में गलत तरीके से छूने की कोशिश की थी यह सुनकर सरला ने अपने पति को फ़ोन किया और बात बताई। घर आकर देखते हैं कहते हुए दिनेश ने फोन रख दिया।शाम को जब दिनेश घर आया तो शर्मा जी नीचे  ही मिल गये बोले यार तुम अपनी नौकरानी को समझाते नहीं हो कि बड़ों से कैसे बात करनी चाहिए।दिनेश सकते में आ गया अरे ये क्या यहां तो माजरा ही अलग है।उपर आकर सरला को बताया कि शर्मा जी ऐसा बोल रहे थे।सरला ने चंदा को पूछा कि तुमने क्या बोल दिया??, लेकिन चंदा की बात सुनकर सरला भी परेशान होकर शर्मा जी के यहां जाने की जरूरत महसूस कर रही थी। उसने जाकर पूछा आपने हाथ क्यों लगाया चंदा को???  शर्मा ने मना कर दिया मैंने कुछ नहीं किया। एक थप्पड़ जड़ दिया सरला ने बगैर सोचे। और घर आ गई। थोड़ी देर बाद प्यार से पूछने पर चंदा ने बताया कि शर्मा जी ने मेरी छाती पर हाथ रख दिया था इसलिए मैंने हाथ उठाया।शाबाश सरला ख़ुश होकर बोली। आगे से भी ये ही करना। एक दिन सरला ने चंदा की शादी की बात चंदा के जीजाजी से करने का फैसला लिया। क्योंकि चंदा की बहन डिलेवरी में बच्चे को जन्म देकर भगवान को प्यारी हो गई थी।सो बच्चे को सम्हालने और बहन का घर बसाने का फैसला लिया ।अब सरला ने थोड़ी हेल्प लेकर और थोड़ा अपना पैसा लगाकर शादी की तैयारी की। वक्त आने पर शादी करके चंदा ससुराल आ गई ।अपनी बहन की जगह लेने में थोड़ा वक्त लगेगा यही सोचते हुए एक हफ्ता बीत गया। जीजाजी में पति को देखना,सहज नहीं था।रात को सोने के लिए अपना बिस्तर लगा रहे जीजाजी को देखते हुए चंदा सोचने लगी कि यह क्या हो रहा है। धीरे से बोली आप उपर सो जाइए मैं नीचे  सो जाउंगी। मनाने पर मान गया मधुर। रात को थोड़ी देर बाद मधुर उपर आ गया चंदा के साथ सोने के लिए आखिर पुरुष था अपने पुरुषत्व को नीचा  नहीं दिखा सकता था।सुबह अलसाई हुई चंदा उठी और नहाने चली गई बदन टूट रहा था।नल के नीचे खड़ी हो गई,सारे अरमान जो शिवम् के साथ रहने के लिए सजाए थे,सब बिखर गए थे।शिवम् किराने की दुकान चलाता था,जब चंदा सामान लाने जाती थी,तब बातों में अपना प्रेम प्रगट कर चुका था। लेकिन सरला का कहना मानकर जीजाजी से शादी का फैसला मन मारकर लिया था चंदा ने। थोड़े दिन बाद चंदा सरला के घर आईं। सरला ने गरम पकोड़े,और चाय लाने के लिए चंदा को आवाज दी।बुझी हुई चंदा और भी चुप हो गई थी। अब तो सामान लाने के लिए भी आनाकानी करने लगी। लेकिन कब तक नहीं जाती।एक दिन दुकान पर जाकर सामान की लिस्ट शिवम् को देकर‌ नजरें हटा लीं उसने, लेकिन आंखों में आसूं आ ही गये। शिवम् ने भी देखकर कुछ कहना चाहा मगर और भी लोग खड़े थे,सो चुप ही रहा। १५ दिन में बहुत बार जाना हुआ दुकान पर। लेकिन कोई बात नहीं हुई शादी के बारे में।आज तो बात करूंगी यह सोचकर दुकान से थोड़ी दूर जाकर खड़ी हो गई और इशारे से शिवम् को बुलाया और अपने मन की बात कही कि तुम्हारे साथ शादी करना चाहती थी बचपन से आ रही हूं तुम्हारी दुकान पर लेकिन ना तुमने कुछ कहा ना मैंने कुछ बोला। सुनकर शिवम् बहुत उदास हो गया अब तो कुछ नहीं होगा। तुम खुश रहो बोलकर चला गया।दो साल बीत गए।अब बच्चा चलने लगा था।एक दिन घर के बाहर खेल रहा था एक लड़का आकर बच्चे को उठा कर ले गया। चंदा को जब काम खत्म होने पर ख्याल आया कि मुन्ना कहां है सो बाहर भागी लेकिन मुन्ना नहीं मिला थोड़ी देर बाद जब ढूंढते हुए थक‌ गई तो पति को फ़ोन किया और बताया कि मुन्ना नहीं मिला कोई उठा ले गया है। दोनों पुलिस को रिपोर्ट लिखवाने थाने जाने लगे। रास्ते में भीड़ थी देखा कि कोई दुर्घटना हुई है।अरे यह तो मुन्ना है और साथ में शिवम् ।चंदा को कुछ नहीं सूझा उसने मुन्ना को गोद में उठा लिया और हिलाने लगी आवाज दी लेकिन वह भगवान को प्यारा हो गया था। शिवम् को किसी ने अस्पताल पहुंचाया। थोड़े दिन बाद शिवम् ठीक हो गया।  उसने चंदा के दूर चले जाने के बाद अपनी दुकान बन्द कर दी थी। कोई काम नहीं कर सकता था।सो खर्च बढ़ने से गलत लोगों के संगत में पड़ गया। बच्चों को अपहरण करके उनकी किडनी निकालने बेचने का काम किया करता ।उसको मलाल था कि चंदा को उसकी वजह से कितना दुःख हुआ है लेकिन पैसे की कमी और खर्च ज्यादा होने से बच्चों को उठाकर किडनी निकालने बेचने वाले गिरोह से सम्बन्ध होने की वजह से आज शिवम् को कितना कुछ देखना पड़ा। रात को नींद नहीं आ रही थी बहुत सोचने के बाद अस्पताल में उपर छत पर जाकर नीचे छलांग लगा दी और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। ग़रीबी के कारण क्या,क्या नहीं सहना पड़ता है लोगों को। अपने से प्यार करने वाले से ना शादी की,। जैसा मालकिन ने कहा किया … Read more

ख़ुशी

ख़ुशी क्या है ? मुट्ठी में पकड़ी रेत सी जो उँगलियों के बीच से रिसती चली जाती है | फिर भी इसी ख़ुशी की तलाश में हम सारा जीवन लगा देते हैं | ऐसी तो थी मुनिया | कभी उसकी ख़ुशी खिलौनों में थी कभी चूड़ियों में कभी पति , बेटे , बहु में | हर रिश्ते में देती चली गयी | पर क्या उसके हिस्से में ख़ुशी आ पाई … कहानी -ख़ुशी  शाम होने आई, पिताजी के आने का इन्तजार करती मुनिया को भूख  लगी थी फिर भी वह खेलने में मस्त थी। मां ने आवाज लगाई मुन्नी आजा खाना खा ले, लेकिन मुन्नी के कान तांगे की आवाज सुनने को बेताब थे। इतने में घोड़े की ठकठक की आवाज आई तांगे से पिताजी को उतरते हुए देख रही मुन्नी भागकर पिताजी से लिपट गई। क्या लाये, जानने के लिए भूखी  मुनिया टुकटुकी लगाए पिताजी के इधर उधर घूमती रही। कलाकंद का डिब्बा और मोती की चूड़िया मुन्नी को देकर‌ पिताजी नहाने चले गए। मुन्नी अपने ख्यालों में खो गई कि मां ने कहा था बस तेरा ब्याह करके हम बेफिक्र होकर शहर में रहेंगे। चू ड़ियों को हाथों में लेकर मुन्नी खुश होकर सपने में खो गई।   मुन्नी के पिता (मगन) ने अच्छा लड़का देखकर शादी करने का दिन निश्चित किया। तैयारी होते देख मुन्नी भी सपने संजो रही थी। आखिर शादी के बाद ससुराल आई मुन्नी १६साल की अल्हड़ उम्र के बदलाव के कारण मन में पति के साथ रहने के सपनों में खोती चली गई लेकिन किस्मत का फैसला कुछ और ही था। बड़ी बहू होने के कारण सारे फर्ज उसी के हिस्से में आए। कर्तव्य पूरे किए गए ,लेकिन खुशीयों से दूर रहने के कारण मन विद्रोही हो गया।अब पति के साथ अनबन रहती लेकिन अपने बेटे के लिए सहन कर लेती।एक ही संतान के रूप में बेटे अजय में अपना सुख ढूंढ रही थी।बेटा बड़ा हो गया, पढ़ाई के साथ कहीं नौकरी करने के लिए चक्कर लगा रहा था।एक दिन साइकल टिकाकर अजय घर में आते हुए मां पिताजी की बात सुनकर चिंतित हो गया। पिताजी को टीबी के इलाज के लिए पैसे चाहिए थे।वह मां से गहने ना बेचने की बात कर रहे थे,पर मां बेचकर इलाज के लिए रुपए इकट्ठे करने की जिद कर रही थी।यह वही मुन्नी थी जो बचपन में मोती की चूड़िया देखकर अपनी खुशी सहेली से बांटती थी,और आज अपना दुःख अपने बेटे को भी नहीं बता पाई थी। बहुत दिनों तक इलाज किया पर मुनिया का भाग्य साथी छूटा,साथ ही पैसे के अभाव में रिश्ते कम होते गए या करने पड़े।बेटा नौकरी करके मां के साथ अपने सपने पूरे करने की जी तोड़ कोशिश में लगा था। मुनिया ने भी अपने अन्दर के कलाकार को दुनिया के सामने लाने की तैयारी कर ली। किराए से सिलाई मशीन ली।घर घर जाकर काम मांगने लगी। कपड़े सिलकर थोड़ी सहायता करना चाहतीं थीं।काम अच्छा होने के कारण पैसा भी मिलने लगा और सभी आसपास के मोहल्ले में नाम होने लगा। धीरे धीरे बेटे ने किराए पर बुटिक ले लिया मशीन खरीदी। धीरे धीरे गरीब औरतों को काम करने का मौका दिया,अब तो मुनिया पैसे वाली हो गई। बेटे की शादी के लिए रिश्ते आने लगे। अच्छी लड़की देखकर बेटे की शादी की।अब घर की जवाबदारी बहू को देकर मुनिया चिंता से मुक्त हो गई। लेकिन बहू को भी अपनी पढ़ाई पर गर्व था वह भी कुछ करना चाहती थी। मुनिया के समझाने पर साथ में काम करने को राजी हो गई बहू।अब बड़े बड़े घरों से काम मांगने नहीं जाना पड़ता बल्कि लोग  कपड़े सिलवाने खुद आते।बहू नया डिज़ाइन बना कर देती।एक दिन बहू को चक्कर आने लगे डॉक्टर ने खुश खबरी दी। टाइम पर एक बेटी को जन्म दिया बहू ने।  मुनिया ने अब अकेले काम संभाला पर उम्र बढ़ने के कारण दिखाई कम देने लगा। कमर दर्द, रक्त चाप के साथ शक्कर बढ़ने से मुनिया और भी बीमार हो गई।वह बेटे बहू को अपने कारण परेशान नहीं करना चाहती थी ।एक दिन चुपचाप घर से निकल कर आश्रम में आ गई। हुलिया और नाम बदल लिया।बेटे बहू ने ढूंढा भी लेकिन हुलिया बदलकर रहने से वह कुछ नहीं कर पाए। धीरे धीरे मुनिया गंभीर रोग से पीड़ित हो गई।  अन्तिम समय आने पर आश्रम के माध्यम से बेटे को ख़बर की। मुनिया बड़बड़ाते हुए बचपन में चली गई पिताजी क्या लाए चुड़ियों को देख कर बोली देखो कितनी सुन्दर है। मैं सहेली को दिखाकर आती हूं,और बिस्तर से उठ कर जाने लगी। कौनसी इच्छा शक्ति से वह चार क़दम चली लेकिन अंत में प्रभू के पास चली गई। बेटे बहू को भरा-पूरा घर सौंप कर नवीन  शरीर नई ख़ुशी की तलाश में चली गई, मुनिया। प्रेमलता तोंगिया  यह भी पढ़ें … वो प्यार था या कुछ और था कुंजी नीम का पेड़ डॉ.सिताबो बाई -समीक्षा (उपन्यास ) आपको कहानी  “ ख़ुशी  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under –story, hindi story, emotional hindi , happy