दो पत्ते

एक बार ओशो कहीं प्रवचन  दे रहे थे | एक व्यक्ति उनके सामने आया और बोला मैं ऐसी जिंदगी बिलकुल नहीं जी सकता | मैं तब तक लड़ता रहूँगा जब तक मैं जीत न जाऊं , या परिस्तिथियों को बदल न लूँ | अब ओशो ठहरे गुरु वो समझ गए की ये व्यक्ति जिन परिस्तिथियों को बदलने की बात कर रहा है वो बदली नहीं जा सकती हैं केवल उनको स्वीकार किया जा सकता है | वो कहते है न की … कई बार हमारी समस्या  जब किसी तरह से हल नहीं हो पा रही होती है , तब वहाँ कोई समस्या ही नहीं होती बल्कि एक सच होता है जिस हमें स्वीकार करना होता है |                                    ओशो शिष्य को  सच बता सकते थे पर सच स्वीकारना इतना आसान नहीं होता | इसलिए ओशो ने उसे एक कहानी सुनाई | ओशो बोले ,” एक बार की बात है एक नदी के किनारे एक पेड़ लगा था |  पेड़  के पत्ते उसमें टूट – टूट कर गिरते रहते थे | उसी पेड़ में दो पत्ते आपस में बहुत मित्र थे | खूब बातें होती थी | एक दिन हवा का एक झोका आया और दोनों टूट कर नदी में गिर पड़े | हवा चलते समय जब दोनों पत्तों को लगा की अंत निकट है | तो एक पत्ता आड़ा गिरा और दूसरा सीधा | loading …….. अब जो पत्ता आड़ा  गिरा वो अड़ गया की मैं नदी के साथ नहीं बहूँगा | मैं तो इसे रोक कर रहूँगा | और उसने अपना पूरा बल धारा के विपरीत लगा दिया | और एक भयानक संघर्ष शुरू हो गया | दूसरा पत्ता जो सीधा गिरा था | वो धारा के साथ – साथ बहने लगा | और मन ही मन सोंचने लगा | वाह ! मैं कितना ताकतवर हूँ | मैं तो नदी को ही बहाए लिए जा रहा हूँ | जिधर – जिधर मैं जाता हूँ , उधर ही उधर नदी जाती है |                                              फिर थोडा रुक कर ओशो ने शिष्य से पूंछा ,” बताओ दोनों का अंत क्या हुआ ? शिष्य ने सकुचाते हुए कहा ,” गुरु वर अंत तो दोनों का एक ही हुआ | ओशो बोले ,” यही इस कथा का मूल सार है | आड़े पत्ते का सारा जीवन संघर्ष में बिता | वो बहुत पीड़ा में रहा | वहीं सीधा पत्ता सारे जीवन खुश रहा |गलतफहमी की सही पर वो नदी को बहाए लिए जा रहा है ये सोंच उसकी यात्रा आनद से कटी | जीवन की कुछ समस्याएं जिनका कोई समाधान नहीं है | उन्हें या तो आप सीकर कर लें और ख़ुशी – खशी जीवन जिए या बेमतलब का युद्ध करें और सारा जीवन संघर्ष व् अवसाद में बीत जाए | सरिता जैन रिलेटेड पोस्ट … सुकरात और ज्योतिषी शब्दों के घाव गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं

सुकरात और ज्योतिषी

विश्व के महानतम दार्शनिकों में से एक सुकरात एक बार अपने शिष्यों के साथ बैठे कुछ चर्चा कर रहे थे। तभी वहां अजीबो-गरीब वस्त्र पहने एक ज्योतिषी आ पहुंचा। वह सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए बोला ,” मैं ज्ञानी हूँ ,मैं किसी का चेहरा देखकर उसका चरित्र बता सकता हूँ। बताओ तुममें से कौन मेरी इस विद्या को परखना चाहेगा?” शिष्य सुकरात की तरफ देखने लगे। सुकरात ने उस ज्योतिषी से अपने बारे में बताने के लिए कहा। अब वह ज्योतिषी उन्हें ध्यान से देखने लगा। सुकरात बहुत बड़े ज्ञानी तो थे लेकिन देखने में बड़े सामान्य थे , बल्कि उन्हें कुरूप कहना कोई अतिश्योक्ति न होगी। ज्योतिषी उन्हें कुछ देर निहारने के बाद बोला, ” तुम्हारे चेहरे की बनावट बताती है कि तुम सत्ता के विरोधी हो , तुम्हारे अंदर द्रोह करने की भावना प्रबल है। तुम्हारी आँखों के बीच पड़ी सिकुड़न तुम्हारे अत्यंत क्रोधी होने का प्रमाण देती है ….” ज्योतिषी ने अभी इतना ही कहा था कि वहां बैठे शिष्य अपने गुरु के बारे में ये बातें सुनकर गुस्से में आ गए और उस ज्योतिषी को तुरंत वहां से जाने के लिए कहा। पर सुकरात ने उन्हें शांत करते हुए ज्योतिषी को अपनी बात पूर्ण करने के लिए कहा। ज्योतिषी बोला , ” तुम्हारा बेडौल सिर और माथे से पता चलता है कि तुम एक लालची ज्योतिषी हो , और तुम्हारी ठुड्डी की बनावट तुम्हारे सनकी होने के तरफ इशारा करती है।” इतना सुनकर शिष्य और भी क्रोधित हो गए पर इसके उलट सुकरात प्रसन्न हो गए और ज्योतिषी को इनाम देकर विदा किया। शिष्य सुकरात के इस व्यवहार से आश्चर्य में पड़ गए और उनसे पूछा , ” गुरूजी , आपने उस ज्योतिषी को इनाम क्यों दिया, जबकि उसने जो कुछ भी कहाँ वो सब गलत है ?” ” नहीं पुत्रों, ज्योतिषी ने जो कुछ भी कहा वो सब सच है , उसके बताये सारे दोष मुझमें हैं, मुझे लालच है , क्रोध है , और उसने जो कुछ भी कहा वो सब है , पर वह एक बहुत ज़रूरी बात बताना भूल गया , उसने सिर्फ बाहरी चीजें देखीं पर मेरे अंदर के विवेक को नही आंक पाया, जिसके बल पर मैं इन सारी बुराइयों को अपने वष में किये रहता हूँ , बस वह यहीं चूक गया, वह मेरे बुद्धि के बल को नहीं समझ पाया !” , सुकरात ने अपनी बात पूर्ण की। अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … दो पत्ते black डॉट फोन का बिल तूफ़ान से पहले आपको कहानी “सुकरात और ज्योतिषी   ” कैसे लगी | अपनी राय अवश्य दे | अगर आप को ” अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा ईमेल लैटर सबस्क्राइब करें ये बिलकुल फ्री हैं , ताकि  आप  अटूट बंधन की रचनाओं को सीधे अपने ई मेल पर पढ़ सकें |

सोनू की मिठाई

                   जीवन में  अक्सर हमें दो चीजों में से एक का चयन करना होता है| पर कई बार हम सही चीज का चयन नहीं कर पाते हैं| इसके अतिरिक्त कई बार ऐसा भी होता है कि हम अपनी चयनित चीजों को सही priority में नहीं रख पाते हैं | जिसके कारण बाद में बहुत नुक्सान उठाना पड़ता है|ऐसा ही किस्सा दीपू और सोनू का था| motivational Hindi story-sonu ki mithai दीपू और सोनू  दो दोस्त थे | दोनों बेहद गरीब थे| खाने को मुश्किल से ही मिलता था| मिठाई तो बिलकुल ही नहीं मिल पाती थी| दोनों मिठाई खाने के लिए तरसते रहते|  ऐसे में जब किसी फंक्शन में दोनों जाते तो भरपेट खाना और मिठाई देख कर दोनों के मुंह में पानी आ जाता|   दीपू पहले  मिठाइयाँ खा लेता फिर भूंख बची रहने पर खाना खाता और सोनू सोचता पहले खाना खा लूँ फिर जी भर के  मिठाई खाऊंगा |  अब खाना खा कर उसका पेट इतना भर जाता की वो मिठाई खा ही नहीं पाता | और अगर जबरदस्ती खा भी ली तो उल्टियां शुरू हो जाती |  अब ऐसा फंक्शन तो साल , ६ महीने में कहीं देखने को मिलता था| फिर अगले ६ महीने तक सोनू तरसता ही रहता और सोंचता,  ” काश उसने पहले मिठाई खायी होती तो?”                               मित्रों हम में से अधिकतर लोग अपने जीवन की प्राथमिकताएं नहीं तय कर पाते इस कारण न सफल हो पाते हैं न खुश| जीवन में ख़ुशी व् सफलता के लिए यह देखना जरूरी है की हम पहले कौन सा काम करें और बाद में कौन सा | क्योंकि अगर किये जाने वाले कामों का कर्म बिगाड़ दिया तो सफलता संदिग्ध हो जाती है|  टीम ABC जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ संता क्लॉज आयेंगे  सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सोनू की मिठाई ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ?

                                  एक बार की बात है एक संत अपने शिष्यों के साथ बाग़ में पुष्प चुनने गए | बाग़ का वातावरण बहुत शांत था |ठंडी -ठंडी हवा चल रही थी | सुन्दर फूल खिले  हुए थे | हवा भी उन पुष्पों को छू कर सुवासित हो रही थी | कुछ लोग टहल रहे थे , कुछ व्यायाम कर रहे थे और कुछ घास पर बैठ कर ग्रुप बना कर बातें कर रहे थे | शिष्यों को बहुत अच्छा लगा , वे भी राम नाम लेते हुए पुष्प चुनने लगे |                       तभी एक ग्रुप में बैठे दो व्यक्ति  किसी बात पर भिड  गए | वो जोर – जोर से चिल्ला कर अपनी बात सही सिद्ध करने लगे | शिष्यों व् गुरूजी को उनका चिल्लाना अच्छा नहीं लगा | संत ने शिष्यों से पूंछा क्या तुम में से कोई बता सकता है कि गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ? सभी शिष्यों ने अपने हिसाब से उत्तर दिया, जैसे लोग आपा  खो बैठते हैं , यही तरीका उनके संस्कार में है , क्रोध में स्वर पर ध्यान नहीं जाता आदि – आदि | गुरूजी किसी उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए , तब शिष्यों ने कहा ,  ” गुरुदेव आप ही बता दीजिये | कि गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ? गुरूजी बोले , ” जब कोई व्यक्ति हमारे पास होता है तो हम सामान्य आवाज़ में ही बात करते हैं पर जब वह व्यक्ति दूर चला जाता है तो हमें जोर से बोलना पड़ता है , कोई व्यक्ति बहुत दूर हो और उसे बुलाना हो तो चिल्ला कर उसका नाम पुकारना पड़ता है |गुस्से में भी यही बात होती है | जब दो व्यक्ति आपस में गुस्सा कर रहे होते हैं तो उनके दिल बहुत दूर होते हैं | भले ही वो शारीरिक दृष्टि से नज़दीक हों पर दिलों की यह दूरी उन्हें चिल्ला कर बोलने पर विवश करती है क्योंकि सामान्य आवाज़ तो वो सुन ही नहीं सकते |       इसके विपरीत प्रेम जैसे – जैसे गहराता जाता है दो व्यक्ति आपस में धीमे – धीमे बात करने लगते हैं , फिर फुसफुसा कर बात करने लगते हैं और अंत में उन्हें शब्दों की आवश्यकता ही नहीं रहती वो मौन पढने लगते हैं |  संसार में हम सब को दिलों के बीच की ये दूरी मिटाने का प्रयास करना चाहिए ताकि चिल्लना न पड़े बल्कि सब एक दूसरे के मन की बात खुद ही समझ सके |  टीम ABC प्रेरक कथाओं से  प्रेरक कथा – दूसरी गलती सजा किसको प्रेरणा बाल मनोविज्ञानं पर  आधारित पांच लघु कथाएँ  आपको  कहानी  “ गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ?”  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

क्यों न जी कर मरें

एक बगीचे में एक घास का फूल था वह अपने अन्य  साथी घास के फूलों के साथ ईंटों की आड़ में दबा हुआ था | जब तेज हवा चलती उस पर कोई असर न होता क्योंकि वह इंटों की आड़ में था |  जब तेज सूरज चमकता तो उस पर कोई असर नहीं होता | जब बारिश आती तो भी वो इंटों की आड़ में दंबा होने के कारण बचा रहता | इतना सुरक्षित होते हुए भी जाने क्यों उसका मन बेचैन रहता | एक दिन उसने रात में भगवान् से प्रार्थना करी ,” हे प्रभू मुझे गुलाब का फूल बना दो | ये जीवन भी कोई जीवन है | भगवान् उसके सपने में आकर बोले ,” एक बार फिर सोंच लो | गुलाब के फूल की जिन्दगी आसान नहीं है | जरा सी हवा चलती है तो हिलने लगता है , तूफान आते ही पत्तियाँ झड जाती है | बड़ा भी नहीं हो पाता की कोई न कोई तोड़ लेता है | घास का फूल अपने निर्णय पर अडिग था | सुबह घास का फूल , गुलाब का फूल बन चुका था |अलसाए से घास के फूलों ने उसे देखा तो आपस में कहा , “निरा मूर्ख था | यहाँ आराम से सुरक्षित था | क्या जरूरत थी गुलाब का फूल बनने की | पर गुलाब का फूल ऊपर डाली  पर बैठ दुनिया देख बहुत खुश हो रहा था | इंटों में दबे होने के कारण तो उसे कुछ भी साफ़ दिखाई नहीं देता था | अब कभी हवा लग रही थी कभी धूप , तो कभी भौरे गुनगुना रहे थे | बड़ा मजा आ रहा था | तभी हवा का तेज झोंका आया | गुलाब का पौधा बुरी तरह से हिला | उसकी रूह काँप गयी | थोड़ी देर बाद सामने बच्चे खेल रहे थे जो उसे तोड़ने के लिए दौड़े | गुलाब मन ही मन राम – राम करने लगा | ये तो अच्छा हुआ बाग़ के माली ने उन्हें डांट कर भगा दिया | पर दोपहर की धूप … उफ़ लग रहा था जैसे सूरज सर पर ही बैठा है | फिर भी किसी तरह से धुप झेल ही ली, पर शाम को तो इतनी जोर का तूफ़ान आया की गुलाब का पौधा ही जमीन  पर आ गिरा | अंतिम साँसे लेता हुआ गुलाब का फूल अब  घास के फूलों के करीब आ गया था | घास के फूल हमदर्दी दिखाने लगे … च्च्च … कहा था ,मत बनो गुलाब के फूल , क्या फायदा हुआ ? हम जैसे भी हैं , भले हैं | हाँ , कुछ दुःख हैं पर सुविधायें कितनी हैं | अगर तुमने हमारी बात मान ली होती तो आज यूँ न मरते | गुलाब के फूल ने उखड्ती  हुई साँसों से कहा ,  “ मुझ पर अफ़सोस जताना बंद करो | एक दिन ही सही पर मैं आज जी भर के जिया | वहां से दुनिया देखी , भवरों का गीत सुना |तेज धूप की तपिश झेली , तेज हवा में जोर से हिला और तूफ़ान से भी बहुत देर संघर्ष किया | मैं अपने फैसले पर खुश हूँ | क्योंकि मैं जी कर मर रहा हूँ और तुम सब मरे हुए जी रहे हो | अंजू गुप्ता  प्रेरक कथाओं से  अन्य ………. ब्लैक डॉट फोन का बिल कहे शब्द वापस नहीं आते अनफ्रेंड आपको आपको  कहानी  “क्यों न जी कर मरें  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

ब्लैक डॉट पर ही फोकस क्यों ?

हमारी जिंदगी में हमारे विचारों का बहुत महत्व होता है | अक्सर आपने पढ़ा होगा कि हम जैसे विचार रखते हैं हम वैसे ही होते हैं | क्योंकि कुछ ख़ास विचार ही हमारी जिन्दगी का फोकस होते हैं | आइये पढ़ें … Motivational hindi story- black dot par hi focus kyon ? संदीप सर बड़े सख्त मिजाज़ थे | पर वो बच्चों  को अपने सब्जेक्ट की बहुत तैयारी करवाते थे | जिससे कोई भी बच्चा पीछे न रहे | अक्सर वो दो दिन पहले टेस्ट अनाउंस कर देते थे | ताकि बच्चे खूब अच्छे से प्रीपेयर  करें और आंसर सही लिखे | बच्चे भी उनकी इस इच्छा का ध्यान रखते थे | क्योंकि सख्त मिजाज़ होते हुए भी वो बच्चों को बहुत अच्छा पढ़ते थे | इसलिए उनके बीच बहुत लोकप्रिय भी थे |  पर आज संदीप सर ने क्लास में आते ही कह दिया की वो आज सरप्राइज़ टेस्ट  लेंगे | सारे बच्चे सकते में आ गए | पर सर की बात तो माननी ही थी | सर ने सारे बच्चों के बीच test paper distribute कर दिए | पर ये क्या वो तो सादा कागज़ था | उसमें कोई प्रश्न ही नहीं था |  बस एक प्लेन वाइट पेपर पर बीच में एक छोटा सा ब्लैक डॉट था | अब बच्चे तो परेशान  हो गए | जब टेस्ट पेपर में प्रश्न  हैं ही नहीं तो वो लिखे क्या ?  एक बच्चे ने सीट से उठकर पूंछा सर ये तो खाली है | प्रश्न हैं ही नहीं तो हम लिखें क्या ? संदीप सर बोले ,” क्या तुम्हें इसमें कुछ नहीं दिख रहा है |  बच्चा बोला ,” सर बस एक ब्लैक डॉट दिख रहा है |  संदीप सर बोले ब्लैक या वाइट तुम्हें जो भी , जैसा भी दिख रहा है उस पर पांच मिनट में कुछ लिखो और टेस्ट पेपर मुझे वापस करो | आज का टेस्ट यही है |  सारे बच्चे लिखने लगे | सारे बच्चों ने उस ब्लैक डॉट के ऊपर लिखा | पांच मिनट बाद कापियां संदीप सर के पास पहुँच गयीं |  कापियां देख कर संदीप सर बोले ,” तुम सब इसमें फेल  हो गए | बच्चों के चेहरे उतर गए | सर ने फिर कहा ,” लेकिन मैंने ये टेस्ट नबर  देने के लिए नहीं तुम्हारी पर्सनालिटी चेक करने के लिए दिया था | घबराओ नहीं इसके नंबर नहीं जुड़ेंगे |  बच्चों ने इत्मीनान की सांस ली | एक बच्चे ने  खड़े होकर पूंछा ,” सर आप इस टेस्ट से क्या सिखाना चाहते थे |  संदीप सर ने कहा ,” मैं इस टेस्ट से यह चेक कर रहा था कि तुम्हारा फोकस कहाँ है | तुम सब लोगों ने इतने बड़े वाइट पेपर में सिर्फ ब्लैक डॉट को देखा | जबकि वो उस पेपर का केवल 1 % है | 99 % तो वाइट पेपर  है | उस पर तुम लोगों का ध्यान नहीं गया | तुम्हारा सारा फोकस ब्लैक डॉट पर था | आखिर क्यों हम हमेशा कमी कोदेखते हैं | हमें पोजिटिव क्यों नहीं दिखता | क्यों हमारा फोकस वाइट पेपर पर न होकर ब्लैक डॉट पर होता है | शायद इसीलिए हम सब निराश रहते हैं |  बच्चों मैं आप सब को ये समझाना चाहता हूँ कि जिन्दी में दुःख हैं तकलीफें हैं परेशानियां हैं तो खुशियाँ भी हैं | आप उन पर फोकस करें | तब आप का दृष्टिकोण सकारात्मक होगा और आप सफल हो पायेंगे व जीवन  में खुश रह पायेंगे |  टीम ABC यह भी पढ़ें …. प्रेरणा सजा किसको अटूट बंधन प्रेरक कथा -जीवन अनमोल है आपको  कहानी  “ब्लैक डॉट  पर ही फोकस क्यों ?” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

चाह कर भी वापस नहीं ले सकते

एक बार एक व्यक्ति ने कुछ लोगों को बाला बुरा कह दिया | बाद में गुस्सा शांत होने पर उसे दुःख हुआ कि बेकार में ही उसने कह दिया , न कहता तो सही रहता| अक्सर हमारे साथ भी तो यही होता है हम  गुस्से में अनाप -शनाप बोल जाते हैं , बाद में लगता है अरे , ये हम क्या बोल गए , ऐसा तो हम कहना ही नहीं चाहते थे | इसका मतलब तो ये भी निकल सकता है , दूसरा हर्ट हो सकता है | पर फिर कुछ हो नहीं पाता , जो हो गया सो हो गया सोंच कर पछताने के अलावा हाथ में कुछ नहीं रहता | ऐसे ही वो व्यक्ति भी  पछता रहा था| उसने अपने दोस्तों से सॉरी भी बोली , पर वो बहुत हर्ट थे , उनका घाव हरा था , इसलिए उन्होंने मना कर दिया | अब तो उस व्यक्ति को और भी पछतावा हुआ , उसने मन में सोंचा की ये बात  उन साधू से कही जाए जो गाँव के बाहर रहते हैं | शायद वो कुछ चमत्कार कर सकें | वो साधू के पास जा कर बोला , ” हे महात्मा मैं अपने कहे हुए शब्द वापस लेना चाहता हूँ | महात्मा ने उसकी ओर देखा और कहा , ” ठीक है पर अभी मैं व्यस्त हूँ , अच्छा सुनो , मेरा एक काम करो , वो टोकरी चौराहे पर रख दो | उस व्यक्ति ने टोकरी उठा ली | उसमें कबूतर व् अन्य चिड़ियों के पंख भरे हुए थे | व्यक्ति ने वो टोकरी उठा कर चौराहे  पर रख दी | शाम को वो फिर साधू के पास गया | साधू ने कहा , ” वो टोकरी उठा लाओ , देखना एक भी पर कम न हों , उसके बाद मैं तुम से बात करूंगा | व्यक्ति टोकरी लेने गया … पर वो तो खाली हो चुकी थी | सारे पर उड़ गए थे , उन्हें वापस टोकरी में भरना असंभव था | उसने साधू के पास जा कर उन्हें खाली टोकरी देते हुए कहा ,  ” लीजिये , बस ये टोकरी बची है , पंख तो सब उड़ गए , अब उन्हें किसी भी प्रकार से इकट्ठा नहीं किया जा सकता | साधू उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा कर बोले,  ” बस यही बात मैं तुम्हें बताना चाहता था … निकले हुए शब्द कभी वापस नहीं हो सकते , उन्होंने कहाँ पर कितना बड़ा घाव बना दिया है तुम कभी नहीं जान सकते | अब तुम चाह  कर भी अपनने शब्द वापस नहीं ले सकते … पर आगे से सोंच कर जरूर बोल सकते हो | प्रेरक कथाओं से टीम ABC

फोन का बिल

शरद जैन उज्जैन एक माह जब घर का टेलीफोन का बिल बहुत आया तो परिवार के मुखिया ने घर के सब लोगों को बुलाया।मुखिया : यह तो हद हो गई। इतना ज़्यादा बिल!…मैं तो घर का फ़ोन यूज़ ही नहीं करता… सारी बातें ऑफ़िस के फ़ोन से करता हूँ।माँ: मैं भी ज़्यादातर ऑफ़िस का ही फ़ोन यूज़ करती हूँ। सहेलियों के साथ इतनी सारी बातें घर के फ़ोन से करूंगी तो कैसे चलेगा ।बेटा: माँ आपको तो पता ही है कि मैं सुबह सात बजे घर से ऑफ़िस के लिए निकल जाता हूँ। जो बात करनी होती है ऑफ़िस के फ़ोन से करता हूँ।बेटी: मेरी कम्पनी ने मेरी डेस्क पर भी फ़ोन दिया हुआ है..मैं तो सारी कॉल्स उसी से करती हूँ। फिर ये घर के फ़ोन का बिल इतना आयाकैसे?घर की नौकरानी चुपचाप खड़ी सुन रही थी। सबकी प्रश्न भरी निगाहें नौकरानी की ओर उठीं……नौकरानी बोली: “तो और क्या… आप सब भी तो अपने काम करने की जगह का फ़ोन इस्तेमाल करते हैं…मैंने भी वही किया तो क्या?”

तूफ़ान से पहले

बहुत  समय  पहले  की  बात  है , आइस्लैंड के उत्तरी छोर पर  एक  किसान  रहता  था . उसे  अपने  खेत  में  काम  करने  वालों  की  बड़ी  ज़रुरत  रहती  थी  लेकिन  ऐसी  खतरनाक  जगह , जहाँ  आये  दिन  आंधी  –तूफ़ान  आते  रहते हों , कोई  काम  करने  को  तैयार  नहीं  होता  था . किसान  ने  एक  दिन  शहर  के  अखबार  में  इश्तहार  दिया  कि  उसे   खेत  में   काम  करने  वाले एक मजदूर की  ज़रुरत  है . किसान से मिलने कई  लोग  आये  लेकिन  जो भी  उस  जगह  के  बारे  में  सुनता  , वो काम  करने  से  मन  कर  देता . अंततः  एक  सामान्य  कद  का  पतला -दुबला  अधेड़  व्यक्ति  किसान  के  पास  पहुंचा . किसान  ने  उससे  पूछा  , “ क्या  तुम  इन  परिस्थितयों  में   काम  कर  सकते  हो ?” “ ह्म्म्म , बस जब  हवा चलती  है  तब  मैं  सोता  हूँ .” व्यक्ति  ने  उत्तर  दिया . किसान  को  उसका  उत्तर  थोडा अजीब  लगा  लेकिन  चूँकि  उसे  कोई  और  काम  करने  वाला  नहीं  मिल  रहा  था इसलिए  उसने  व्यक्ति  को  काम  पर  रख  लिया.  मजदूर मेहनती  निकला  ,  वह  सुबह  से  शाम  तक  खेतों  में  मेहनत   करता , किसान  भी  उससे   काफी  संतुष्ट  था .कुछ ही दिन बीते थे कि  एक   रात  अचानक  ही जोर-जोर से हवा बहने  लगी  , किसान  अपने  अनुभव  से  समझ  गया  कि  अब  तूफ़ान  आने  वाला  है . वह   तेजी  से  उठा  , हाथ  में  लालटेन  ली   और  मजदूर  के  झोपड़े  की  तरफ  दौड़ा . “ जल्दी  उठो , देखते  नहीं  तूफ़ान  आने वाला  है , इससे  पहले  की  सबकुछ  तबाह  हो जाए कटी फसलों  को  बाँध  कर  ढक दो और बाड़े के गेट को भी रस्सियों से कास दो .” किसान  चीखा . मजदूर बड़े आराम से पलटा  और  बोला , “ नहीं  जनाब , मैंने  आपसे  पहले  ही कहा था  कि  जब  हवा  चलती  है  तो  मैं  सोता  हूँ !!!.” यह  सुन  किसान  का  गुस्सा  सातवें  आसमान  पर  पहुँच  गया ,  जी  में आया  कि  उस  मजदूर  को   गोली  मार  दे , पर  अभी  वो आने  वाले  तूफ़ान  से चीजों को बचाने  के  लिए  भागा  . किसान खेत में पहुंचा और उसकी आँखें आश्चर्य से खुली रह गयी , फसल  की गांठें  अच्छे  से  बंधी  हुई   थीं  और  तिरपाल  से  ढकी  भी  थी , उसके  गाय -बैल  सुरक्षित बंधे  हुए  थे  और  मुर्गियां  भी  अपने  दडबों  में  थीं … बाड़े  का  दरवाज़ा  भी  मजबूती  से  बंधा  हुआ  था . साड़ी  चीजें  बिलकुल  व्यवस्थित  थी …नुक्सान होने की कोई संभावना नहीं बची थी.किसान  अब   मजदूर की ये  बात  कि  “ जब  हवा चलती है  तब  मैं  सोता  हूँ ”…समझ  चुका  था , और  अब  वो  भी  चैन  से   सो  सकता  था .

अटूट बंधन

अटूट बंधन ब्लॉग की नींव “सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय” की भावना से प्रेरित हो कर रखी गयी है | इसके मुख्य उद्देश्य निम्न हैं … हमारे जीवन में रोटी कपडा और मकान के बाद जो चीज सबसे महत्वपूर्ण होती है ,वो है हमारे रिश्ते | जहाँ रोटी कपडा और मकान भैतिक आवश्कताओं के लिए जरूरी हैं ,वहीं रिश्ते भावनात्मक आवश्यकताओं के लिए जरूरी हैं | आज के समय में जब रिश्ते टूट और बिखर रहे हैं तब बहुत जरूरी है उन्हें संभालना , सहेजना ताकि हम भावनात्मक रूप से संतुष्ट रह सके | भावनात्मक संतुष्टि के बिना सारी खुशिया बेकार लगती है | हम अटूट बंधन ब्लॉग पर ऐसे जानकारीयुक्त लेख ले कर आयेगे जो आपके रिश्तों को सँभालने में आपकी सहायता करेंगे व्  आपको गलत रिश्तों से निकलने की समझ भी देंगें | जीवन है तो समस्याएं हैं | जब समस्याएं आती हैं तो हमारा दिमाग काम नहीं करता | उस समय लगता है कोई रास्ता दिखा दे | हमारे ब्लॉग में “अगला कदम” वही हाथ है जो उस समय आपको सहारा देगा , रास्ता दिखाएगा जब आप समस्या से जूझ रहे हो और उसका हल खोज रहे हों | इसमें रिश्तों , कैरियर , स्वाथ्य , प्रियजन की मृत्यु , अतीत में जीने आदि बहुत सारी समस्याओं को उठाया है | ये योजना मेरे दिल के बहुत करीब है | आशा है सब को इससे लाभ होगा | कौन है जो सफल नहीं होना चाहता | सफलता के लिए सभी प्रयास भी करते हैं | सफलता आशा और उत्साह देती है वहीँ असफलता मन को तोड़ देती है | हालांकि कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती | पर निराशा के आलम में जरूरी होता है कोई ऐसा व्यक्ति जो उस निराशा से निकल दे और जीवन में फिर से जिजीविषा भर दे | “अटूट बंधन “ ब्लॉग का प्रयास है की वो सकारात्मक विचरों का प्रचार प्रसार  करेगा जिससे लोग निराशा से बाहर निकल कर लौकिक व् परलौकिक सफलता प्राप्त कर सकें | साथ ही स्वस्थ , संतुष्ट व् उर्जा से भरे आपके व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होगा | अटूट बंधन ब्लॉग प्रतिभाशाली लोगों को मंच देने की कोशिश है |हमारा प्रयास रहेगा की आप की रचनाओं को ज्यादा से ज्यादा पाठक पढ़ सके | जो लोग भी अटूट बंधन में अपनी रचनाएँ भेजना चाहते हैं वो editor.atootbandhan@gmail.com पर भेजें | रचना पसंद आने पर प्रकाशित की जायेगी |         उम्मीद है अच्छी भावना से शुरू की गई ये कोशिश कामयाब होगी और पाठकों के साथ मेरा “अटूट बंधन”                                                        बना रहेगा |   वंदना.  बाजपेयी  फाउंडर ऑफ़ अटूट बंधन .कॉम