अपना -अपना स्वार्थ

  एक  बार एक आदमी अपने छोटे से बालक के साथ एक घने जंगल से जा रहा था!   तभी रास्ते मे उस बालक को प्यास लगी ,  और उसे पानी पिलाने उसका पिता उसे एक  नदी पर ले गया , नदी पर पानी पीते पीते अचानक वो बालक पानी मे गिर गया ,  और डूबने से उसके प्राण निकल गए!   वो आदमी बड़ा दुखी हुआ,  और उसने सोचा की इस घने जंगल मे इस बालक की अंतिम क्रिया किस प्रकार करूँ !   तभी उसका रोना सुनकर एक गिद्ध ,  सियार और नदी से एक कछुआ वहा आ गए ,  और उस आदमी से सहानुभूति व्यक्त करने लगे ,  आदमी की परेशानी जान कर सब अपनी अपनी सलाह  देने लगे! सियार ने लार टपकाते हुए कहा ,  ऐसा करो   इस बालक के शरीर को इस जंगल मे ही किसी चट्टान के ऊपर छोड़ जाओ, धरती  माता इसका उद्धार कर देगी!   तभी गिद्ध अपनी ख़ुशी छुपाते हुए बोला,    नहीं धरती पर तो इसको जानवर खा जाएँगे,     ऐसा करो इसे किसी वृक्ष के ऊपर डाल दो ,ताकि सूरज की गर्मी से इसकी अंतिम गति अच्छी होजाएगी!    उन दोनों की बाते सुनकर कछुआ भी अपनी भूख को छुपाते हुआ बोला ,नहीं आप इन दोनों की बातो मे मत आओ, इस  बालक की जान पानी मे गई है,  इसलिए आप इसे नदी मे ही बहा दो ! और इसके बाद तीनो अपने अपने कहे अनुसार उस आदमी पर जोर डालने लगे !   तब उस आदमी ने अपने विवेक का सहारा लिया और उन तीनो से कहा ,  तुम तीनो की सहानुभूति भरी सलाह मे   मुझे तुम्हारे स्वार्थ की गंध आ रही है,  सियार चाहता  है  की मैं इस बालक  के शरीर को ऐसे ही जमीन पर छोड़ दूँ  ताकि ये उसे आराम से खा सके,  और गिद्ध   तुम  किसी पेड़ पर इस बालक के शरीर  को इसलिए रखने की सलाह दे रहे हो ताकि इस सियार और कछुआ से बच कर आराम से तुम दावत उड़ा सको ,  और कछुआ   तुम नदी के अन्दर रहते हो   इसलिए नदी मे अपनी दावत का इंतजाम कर रहे हो  !  तुम्हे सलाह देने के लिए  धन्यवाद , लेकिन मै इस बालक के शरीर  को अग्नि को समर्पित करूँगा ,  ना की तुम्हारा भोजन बनने दूंगा!    यह सुन कर वो तीनो  अपना सा मुह लेकर वहा से चले गए!

चार साधुओं का प्रवचन

एक बार की बात है चार साधू जो आपस में मित्र थे तीर्थ यात्रा कर के लौटे | वो लोगों के साथ अपने ज्ञान बांटना चाहते थे ,लेकिन जानते थे की लोग सहजता से बात नहीं सुनते | इसलिए उन्होंने एक उपाय  निकाला कि शहर में खबर फैला दी की शहर में चार साधू आये हैं वो ७ दिन बाद शाम को जनता को संबोधित करेंगे |  लोगों में जिज्ञासा जगी | उसके बाद वो चरों साधू चार अलग अलग स्थानों पर बैठ गए| एक साधू घंटाघर पर बैठ गया| लोगों ने उनसे वहाँ  बैठने का कारण पूंछा , तो साधू ने कहा ,” घंटाघर की सुइयां लगतार  चलती है| ये जीवन के गतिमान होने का संकेत हैं| पर 12 बजे वो अपने दोनों हाथ जोड़ लेती हैं कि अब बस , मेरी इतनी ही शक्ति थी| इससे ज्यादा मैं एक घंटे में नहीं दे सकता| तभी घंटे की आवाज़ आती है, जैसे कह रहा हो, तुम्हारी जिंदगी का एक घंटा कम हो गया अगर एक घंटा और मिला है तो चलो , लगातार चलो , पूरे करो वो काम जो करने आये हो|” मुझे यही जगह सबसे अच्छी लगी इसलिए मैं यहाँ आकर बैठ गया |  एक साधू चौराहे पर बैठ गया| लोगों ने पुछा , ” साधू महाराज आप यहाँ क्यों बैठे हैं? साधू ने कहा, ” यहाँ बैठ कर मैं देख रहा हूँ की हर कोई दौड़ रहा है| सबको जाने की जल्दी है| कौन किस रास्ते जायेगा पता ही नहीं चलता ,जब तक वो किसी एक मोड़ पर मुड़  न जाए | यही तो जिंदगी है हम सब भाग रहे हैं अनजान , अपरिचित दिशा में , अचानक से किसी चौराहे पर मुड़ जाते हैं | हर चौराहे से एक नया मोड़ मुड़ने का अवसर होता है और जिन्दगी को एक नया आकर देने का भी| जिन्दगी को समझने के लिए मुझे यही जगह सबसे अच्छी लगी| इसलिए मैं यहाँ आकार बैठ गया |  एक साधू कचहरी के आगे जा कर बैठ गया| लोगों के पूंछने पर उसने बताया , ” यहाँ वो आते हैं जिन्होंने कोई गुनाह किया होता है| गुनाह करते समय भले ही आनंद आता हो पर सजा भोगते समय दुःख होता है, तभी तो उससे बचने की कोशिश करते हैं , जिरह करते हैं और कुछ नहीं तो क्षमा की याचना करते हैं| फिर भी दंड मिलता  है| गुनाह हम अपने मन से करते हैं, उस समय मन को रोक सकते हैं , परन्तु सजा दूसरे के मन से मिलती है , उसे रोक नहीं सकते , भोगनी ही पड़ती है|  जिंदगी को समझने के लिए यही जगह सबसे सही लगी , इसलिए मैं यहाँ आकर बैठ गया|  चौथा साधु शमशान में जाकर बैठ गया| लोगों के पूंछने पर बोला,  ” सारे रास्ते यहीं आते हैं , सारा समय यहीं खत्म होता है , कर्मों के दंड यहीं से शुरू होते हैं | यहाँ आने से कोई नहीं बच सकता| जब सबको यहीं आना है तो किस बात की मारा मारी, मुझे यही जगह सबसे मुफीद लगी इसलिए मैं यहाँ आकर बैठ गया|                              सात दिन बाद जब लोग उनका प्रवचन सुनने के लिए इकट्ठे हुए तो साडू मुस्कुरा कर बोले , ” प्रवचन तो आप को मिल गया … हमारे पास समय कम है, उसकी कद्र करो | हर चौराहा आपको सही राह चुनने का अवसर देता है , भागते हुए नहीं थोडा ठहरों , सोंचों , फिर चुनो … अगर गलत भी चुन लिया तो कोई दुःख न करों , क्यों अगला चौराहा फिर एक अवसर है|  जब भी आप कोई गलत काम करते हैं तो आप को सजा दूसरे के मुताबिक़ मिलती हैं| कर्म -दंड से बचने के लिए अपने कर्मों पर ध्यान दो|  सबको एक दिन शमशान में आना है इसलिए हर दिन ये सोंच कर जियो कि आज का दिन ही आखिरी है …इसलिए समय की कीमत करनी है , सही राह चुननी  है और बेवजह दौड़ने  के स्थान पर कर्म दंड को ध्यान रखते हुए कर्म करना है| साधुओं का प्रवचन सुन कर , लोग उनके ज्ञान के आगे नतमस्तक हो गए | टीम ABC विश्वास ओटिसटिक बच्चे की कहानी लाटा एक टीस सफलता का हीरा आपको आपको  लेख “चार साधुओं का प्रवचन    “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

बाहें

  माता और पिता दोनों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है | जहाँ माँ धरती है जो जीवन की डोर थाम लेती है वही पिता आकाश जो बाहर आने वाली हर मुसीबत पर एक साया बन के छा जाते हैं | तभी तो नन्हीं बाहें हमेशा सहारे के लिए पिता की बाहें खोजती हैं | पर अगर …   पढ़िए मार्मिक कहानी – बाहें  चालीसवां सावन चल रहा था तृप्ति का, पर ज़िन्दगी चार दिन के सुकून के लिए तरस गयी थी आजकल. एक के बाद एक कहर बरपा हो रहा था तृप्ति की ज़िन्दगी में. दो बच्चों को अकेले पालने की ज़िम्मेवारी छोटी बात होती, फिर भी तृप्ति ने कभी उन्हें पिता की कमी महसूस नहीं होने दी. उनकी हर ज़रुरत को अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस तरह पूरा किया कि अच्छे-भले सब साधनों से संपन्न व् सुखी कहे जाने वाले दम्पत्तियों के बच्चे भी उसके बच्चों – मन्नत और मनस्वी से जलते थे. हर क़दम पर नित-नई परेशानियां आई पर हर परेशानी उसे और भी मज़बूत करती चली गयी. दुनिया की तो रीत है कि सामाजिक दृष्टि से ‘बेचारा’ कहा जाने वाला यदि सर उठा कर स्वाभिमान से यानि बिना दुनिया कि मदद के आगे बढ़ने की जुर्रत करे तो उसे सुहाता नहीं है, और यदि वो कामयाब भी होता नज़र आये तो इस क़दर सबकी नज़रों में खटकता  है कि वही दुनिया जो कुछ समय पहले उसके पहाड़ से दुःख को देखकर सहानुभूति प्रकट करते हुए उस ‘बेचारे’ को हर संभव सहायता का वचन देते नहीं थकती थी, वही दुनिया उसकी राहों में हरदम- हरक़दम पर रोड़ा अटकाने से बाज़ नहीं आती. दुनिया ने अपनी रीत बखूबी निभायी. अभी दो महीने पहले ही मन्नत ने ग्यारहवीं में प्रवेश लिया. तृप्ति को आजकल के प्रतियोगितावादी युग के रिवाज़ के मुताबिक़ उसकी विज्ञान और गणित कि ट्यूशन्स लगानी पड़ी. और क्योंकि मन्नत पढ़ाई में बहुत होशियार थी उसे ऊंचे स्तर कि ट्यूशन्स दिलवाई तृप्ति ने – उस सेंटर में जो शहर से थोड़ा बाहर पड़ता था. नज़दीक ऐसे स्तर का कोई भी सेंटर न था. बेटी को आने जाने में किसी पर आश्रित न रहना पड़े, इसलिए उसे स्कूटी भी लेकर दी. सर्दियों में तो पांच बजे ही सूरज छिप जाता है, अतः जब ६ बजे कि ट्यूशन ख़त्म कर के साढ़े छह बजे घर पहुँचती थी मन्नत तो अन्धेरा हो चुका होता था. छोटे शहर की निवासी बेचारी तृप्ति बेटी के घर पहुंचने तक किसी तरह दिल की धड़कनों को समेटती घडी-घडी दरवाज़े को निहारती रहती और उसके घर आने पर ही चैन की सांस लेती. पर तृप्ति का चैन, मोहल्ले वालों की बेचैनी का कारण था. आखिर बच्ची जवान जो होने लगी थी. सो  देर-सवेर उसके देर से घर आने पर लगी बातें बनने – ‘आज तो पीछे कोई बैठा था…’, ‘आज पूरे दस मिनट देरी से आई…’, ‘हद्द है इसकी माँ की… अरे हम तो सब होते हुए भी कभी न इजाज़त दें बेटी को इत्ती देर से अँधेरे में घर आने की’, ‘बाप नहीं रहता न साथ में तभी…’, ‘अपनी ज़िन्दगी का किया सो किया, इस अच्छी खासी छोरी को बिगड़ैल बनाकर ही छोड़ेगी ये औरत’. ओह… ! चीखें मार मार कर रोने को जी चाहता था तृप्ति का. अभी तक तो उस पर ही अकेले रहने की बाबत ताने दिए जाते थे – ‘जाने क्या क्या करना पड़ता होगा बिचारी को इतनी सुख सुविधाएं जुटाने के लिए, अब एक नौकरी में तो इत्ती ऐश से कोई न रह सके…’, ‘ अरे भाई, इन तलाकशुदा औरतों को ऐश के बगैर नहीं सरता जभी तो अलग होती हैं…’, ‘ कल तो वो … हाँ-हाँ वही ऑफिस वाला, लम्बा सा, पूरा एक घंटे के क़रीब अंदर ही था…’ ‘खैर… हमें क्या, उसकी ज़िन्दगी है – वो जाने…’ आदि. अब उसकी बच्ची को भी निशाना बना लिया इन्होने… हे भगवान! रूह काँप जाती थी तृप्ति की अपनी चार साल की शादीशुदा ज़िन्दगी के बारे में सोच कर. अपने बच्चों के बाप के बारे में तो सोच कर भी ग्लानि हो आती थी उसे. अगर आज वो साथ होता तो शायद अपनी मन्नत पर ही बुरी नज़र… ??? और मंन ही मंन अपने तलाक़शुदा होने पर गर्व होने लगा उसे और अपने मंन को पत्थर सा ठोस व इरादों को पहले से भी कहीं अधिक मज़बूत कर अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य के बारे में सोचने लगी. जागती आँखों से कुछ अच्छा होने का सोचा भर था कि मनस्वी की दुर्घटना की खबर ले कर उसके दोस्त आ गए. उसका दोस्त आर्यन अपने पापा की नई मोटर बाइक उनसे बिना इजाज़त चला रहा था और मनस्वी को उसने अपने साथ ले लिया था. कच्ची उम्र में ही पक्की स्पीड का मज़ा ले रहे थे दोनों कि रिक्शा से टक्कर हो गयी. अब दोनों बच्चे अस्पताल में थे. राम राम करते अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि मनस्वी कि दायीं टांग में फ्रैक्चर है. तीन महीने लगेंगे मनस्वी के प्लास्टर को उतरने में. हिम्मत – बहुत हिम्मत से काम ले रही है तृप्ति. नौकरी की जिम्मेवारियां निबाहती है, घर की ज़रूरतों को पूरा करती है, अपनी जवान होती मन्नत को (जो करियर बनाने के लिए सजग है)  प्रेरणा ही नहीं देती, डगमगाने पर संभालती भी है. किशोरावस्था की दहलीज पर खड़े घायल मनस्वी की सेवा सुश्रुषा से ले कर उसके मनोबल को बढ़ाने तक का सारा ज़िम्मा संभालती है. और सबसे बढ़कर दोनों बच्चों को जब-तब अपनी बाहों में भरकर जो सुरक्षा का भाव वह उनके अंतरमन तक उनमे भर देती है वह अतुलनीय है. किन्तु स्वयं को उस सुरक्षित कर देने वाले भाव से सदा अछूता  ही पाया उसने. उस भाव के लिए स्वयं क्या उसके जीवन में तरसना ही लिखा है? हर तन-मन की टूटन-थकन पर उसका भी मन होता है कि वो स्वयं को किसी आगोश में छिपा कर कुछ देर सिसक ले, कुछ अपना दर्द स्थानांतरित कर दे और कुछ सुकून आत्मसात कर नई शक्ति अर्जित कर फिर कूद पड़े दुनिया के रणक्षेत्र में. बचपन में तो हर छोटी-बड़ी मुसीबत पर पापा अपनी बाहें पसारे सदैव यूं खड़े नज़र आते थे जैसे अल्लादीन का जिन्न अपने आका के याद करते ही ‘हुकुम मेरे आका’ … Read more

परी का गिफ्ट

दोस्तों हम सब अधिकतर या तो अतीत में रहते हैं या भविष्य में | वर्तमान में कोई रहना ही नहीं चाहता |पर दरसल सच्ची ख़ुशी वर्तमान में छुपी है | इसलिए तो इसे प्रेजेंट या तोहफा कहते हैं | अगर आप भी भुत या भविष्य के चक्कर में वर्तमान से दूर भागते हैं तो संभल जाइए | वर्ना दीपक की तरह पछताना पड़ेगा | दीपक एक स्टूडेंट था | पर उसमें एक कमी थी | वो या तो भविष्य के सपने देखता या पास्ट की यादों में डूबा रहता | इस तरह वह कभी भी प्रेजेंट में तो कभी रहता ही नहीं | उसके घर वाले और दोस्त भी उसकी इस आदत से परेशान थे।वो उसे समझाते पर बात दीपक की समझ में आये तो ना | एक बार दीपक  अकेले ही पास के जंगलों में घूमने निकल गया। थोड़ी देर चलने के बाद उसे थकान हो गयी और वह वहीं नरम घासों पर लेट गया। जल्द ही उसे नींद आ गयी और वह सो गया। सोने के कुछ देर बाद एक मीठी सी आवाज़ आई-“ दीपक . दीपक …” दीपक  ने आँखें खोलीं तो सफ़ेद वस्त्रों में एक परी खड़ी थी। वह बहुत सुन्दर थी और उसने अपने एक हाथ में जादुई छड़ी ले रखी थी, और दुसरे हाथ में एक मैजिकल बॉल थी जिसमे से एक सुनहरा धागा लटक रहा था। दीपक की परी से दोस्ती हो गयी |  कुछ देर परी से बातें करने के बाद बोला, “आपके हाथ में जो छड़ी है उसे तो मैं जानता हूँ पर आपने जो ये बॉल ली हुई है उससे ये सुनहरा धागा कैसा लटक रहा है?” परी मुस्कुराई, “रमेश, यह कोई मामूली धागा नहीं; दरअसल यह तुम्हारे जीवन की डोर है! अगर तुम इसे हल्का सा खींचोगे तो तुम्हारे जीवन के कुछ घंटे कुछ सेकंड्स में बीत जायेंगे, यदि इसे थोड़ा तेजी से खींचोगे तो पूरा दिन कुछ मिनटों में बीत जाएगा और अगर तुम उसे पूरी ताकत से खींचोगे तो कई साल भी कुछ दिनों में बीत जायेंगे। अब दीपक कहाँ मानने वाला था | शरारती बच्चा जो ठहरा |उसने  परी से पूंछा क्या आप इसे मुझे दे सकती हैं ?  “हाँ-हाँ, क्यों नहीं , ये लो…पकड़ो इसे…पर ध्यान रहे एक बार अगर समय में तुम आगे चले गए तो पीछे नहीं आ सकते।”,कह कर परी चली गगी | दीपक ख़ुशी ख़ुशी अपना गिफ्ट ले आया | वह  क्लास में बैठा खेलने के बारे में सोच रहा था, पर टीचर के रहते वो बाहर जाता भी तो कैसे? तभी उसे परी द्वारा दी गयी सुनहरे धागों वाली बॉल का ख्याल आया। उसने धीरे से बॉल निकाली और डोर को जरा सा खींच दिया…कुछ ही सेकंड्स में वह मैदान में खेल रहा था। “वाह मजा आ गया!”, दीपक  ने मन ही मन सोचा! फिर वह कुछ देर खेलता रहा, पर मौजूदा वक्त में ना जीने की अपनी आदत के अनुसार वह फिर से कुछ ही देर में ऊब गया और सोचने लगा ये बच्चों की तरह जीने में कोई मजा नहीं है क्यों न मैं अपने जीवन की डोर को खींच कर जवानी में चला जाऊं। और झटपट उसने डोर कुछ तेजी से खींच दी। रमेश अब एक शादी-शुदा आदमी बन चुका था और अपने दो प्यारे-प्यारे बच्चों के साथ रह रहा था। उसकी प्यारी माँ जो उसे जान से भी ज्यादा चाहती थीं, अब बूढी हो चुकी थीं, और पिता जो उसे अपने कन्धों पर बैठा कर घूमा करते थे वृद्ध और बीमार हो चले थे।दीपक  अपने माता-पिता के लिए थोड़ा दुखी ज़रूर था पर अपना परिवार और बच्चे हो जाने के कारण उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था। एक-दो महीनो सब ठीक-ठाक चला पर दीपक  ने कभी अपने वर्तमान को आनंद के साथ जीना सीखा ही नहीं था; कुछ दिन बाद वह सोचने लगा- “ मेरे ऊपर परिवार की कितनी जिम्मेदारी आ गयी है, बच्चों को संभालना इतना आसान भी नहीं ऊपर से ऑफिस की टेंशन अलग है! माता-पिता का स्वाथ्य भी ठीक नहीं रहता… इससे अच्छा तो मैं रिटायर हो जाता और आराम की ज़िन्दगी जीता।” और यही सोचते-सोचते उसने जीवन की डोर को पूरी ताकत से खींच दिया। कुछ ही दिनों में वह एक 80 साल का वृद्ध हो गया। अब सब कुछ बदला चुका था, उसके सारे बाल सफ़ेद हो चुके थे, झुर्रियां लटक रही थीं, उसके माता-पिता कब के उसे छोड़ कर जा चुके थे, यहाँ तक की उसकी प्यारी पत्नी भी किसी बीमारी के कारण मर चुकी थी। वह घर में बिलकुल अकेला था बस कभी-कभी दूसरे शहरों में बसे उसके बच्चे उससे बात कर लेते। ओह ! यह क्या अब दीपक को  को एहसास हो रहा था कि उसने कभी अपनी ज़िन्दगी का मजा ही नहीं लिया | हर समय आगे या पीछे भागता रहा | अब जब मौत सर पर आ कर खड़ी है तो उसे एक – एक पल की कीमत समझ आ रही है |  आज उसे वो दिन याद आ रहा था जब परी ने उसे वो मैजिकल बॉल दी थी…एक बार फिर वह उठा और उसी जंगल में जाने लगा और बचपन में वह जिस जगह परी से मिला था वहीँ मायूस बैठ  अपने आंसू बहाने लगा | तभी वहां फिर आवाज़ आई दीपक , दीपक  दीपक  ने पलट कर देखा तो एक बार फिर वही परी उसके सामने खड़ी थी। परी ने पूछा, “क्या तुमने मेरा स्पेशल गिफ्ट एन्जॉय किया?” “पहले तो वो मुझे अच्छा लगा, पर अब मुझे उस गिफ्ट से नफरत है।”, दीपक  क्रोध में बोला, “ मेरी आँखों के सामने मेरा पूरा जीवन बीत गया और मुझे इसका आनंद लेने का मौका तक नहीं मिला। हाँ, अगर मैं अपनी ज़िन्दगी नार्मल तरीके से जीता तो उसमे सुख के साथ दुःख भी होते  पर मैजिकल बॉल के कारण मैं उनमे से किसी का भी अनुभव नहीं कर पाया। मैं आज अन्दर से बिलकुल खाली महसूस कर रहा हूँ…मैंने ईश्वर का दिया ये अनमोल जीवन बर्वाद कर दिया।”, “ओह्हो…तुम तो मेरे तोहफे के शुक्रगुजार होने की बजाय उसकी बुराई कर रहे हो….खैर मैं तुम्हे एक और गिफ्ट दे सकती हूँ…बताओ क्या चाहिए तुम्हे?”, परी ने पूछा। दीपक   ख़ुशी से भावुक होते हुए … Read more

कूड़ा गाड़ी

एक बार की बात है एक यात्री ने एयरपोर्ट जाने के लिए टैक्सी की | रात का समय था टैक्सी वाला बड़े इत्मीनान से गाडी चला रहा था | वो धीरे – धीरे गुनगुना रहा था | यात्री आदमी भी निश्चित हो सड़क पर इधर – ऊधर  देख रहा था | तभी एक मोड़ पर अचानक से तेजी से गाड़ी आई | टैक्सी वाले ने जल्दी से ब्रेक लगाया | दोनों गाड़ियाँ बस टकराते – टकराते बची | यात्री को तेज झटका लगा | उसे बहुत गुस्सा आया | नियम के अनुसार मोड़ पर गाड़ियां धीमी ही चलानी चाहिए | वर्ना एक्सीडेंट का खतरा रहता है | इन दो गाड़ियों का एक्सीडेंट होते-होते ही बचा था |                   तभी यात्री ने देखा की उस गाडी वाले ने भी गाडी रोक ली है | और उतर कर इस तरफ आ रहा है | क्योंकि सरासर उसकी गलती थी | इसलिए यात्री ने सोंचा कि लगता है वो माफ़ी मांगने आ रहा है | अब टैक्सी ड्राइवर जरूर उसे खूब सुनाएगा | यह भी कोई तरीका है गाडी चलाने का | यात्री को बहुत आश्चर्य हुआ जब वो आदमी सॉरी बोलने के स्थान पर टैक्सी ड्राइवर को भला बुरा कहने लगा | अपनी गलती होते हुए भी वो दोष उस भले ड्राइवर पर लगा रहा था | इससे पहले की यात्री उसके पक्ष में कुछ कहता टैक्सी ड्राइवर ने मुस्कुरा कर हाथ हिलाते बाय – बाय की मुद्रा में आते  हुए टैक्सी आगे बढ़ा दी | अब तो यात्री को बहुत गुस्सा आया | उसने ड्राइवर से पूंछा ,” ये भी कोई बात है की गलती उसकी थी , फिर भी वो आदमी  तुमको सुना कर चला गया | और तुमने एक शब्द भी कहने के स्थान पर मुस्कुरा कर उसे बाय कर दिया | टैक्सी ड्राइवर  ने मुस्कुरा कर कहा ,” सर वो देखिये वो कूड़ा गाडी है | वो अगर किसी से टकरा जाए तो अपना कूड़ा ही दूसरों पर डालेगी |अब ये आप की जिम्मेदारी है की आप उससे बच कर चलें | नहीं तो कूड़ा आप  पर ही गिरेगा | ऐसे ही अगर कोई व्यक्ति कूड़ा यानी ज़माने भर की नकारात्मकता अपने ऊपर ले कर चलेगा तो वो उसे दूसरों पर डालेगा |अगर आप उसे डालने देंगे तो आप भी कूड़ा  गाडी बन जायेंगे और दूसरों  पर वही फेंकते हुए घूमेंगे | इसलिए बेहतर है उन्हें बाय – बाय कर दें और कूड़े को आगे फैलने से रोकें | टैक्सी ड्राइवर का उत्तर सुन कर यात्री उसकी समझदारी का कायल हो गया और मंद – मंद मुस्कुराने लगा | दोस्तों , उसी टैक्सी ड्राइवर की तरह हम सब को भी समझदार बनना है की अगर कोई अपनी नकारात्मकता हमारे ऊपर फेंकने की कोशिश करे तो हम वहां न रुके रहे बल्कि वहां से उठी के चल दे | इससे नकारात्मकता का चक्र रुक जाएगा | या यूँ कहे की कम से कम हम तो अपने को नकारात्मकता से बचाए रखेंगे और सकारात्मक रहेंगे |  टीम ABC यह भी पढ़ें ……… विश्वास ओटिसटिक बच्चे की कहानी लाटा एक टीस सफलता का हीरा आपको आपको  लेख “   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords: Negativity, positivity, garbage 

जीवन की प्राथमिकताएं

हम सब के जीवन में प्राथमिकताएं निर्धारित करना बहुत जरूरी है | प्राथमिकताएं चाहे वो कैरियर  में हों | रिश्तों में हों या जीवन के अन्य आयामों में | अगर हम प्राथमिकताएं निर्धारित नहीं करेंगे तो जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता नहीं हासिल कर पायेंगे और हम बस पछताते रहेंगे | Motivational story in hindi priorities in life                   एक बार की बात है एक अध्यापक अपने क्लास में एक खाली गिलास और कुछ सामान ले कर गए | उन्होंने स्टूडेंट्स को खली गिलास दिखया और कहा आज मैं आपको एक प्रयोग कर के दिखाऊंगा | स्टूडेंट्स ध्यान से उनका प्रयोग देखने लगे | अध्यापक ने गिलास में बड़े – बड़े कंकण भरना शुरू कर दिया | थोड़ी ही देर में वो गिलास भर गया | अब उन्होंने बच्चों को दिखा कर पूंछा  क्या अब इस गिलास में कुछ और आ सकता है ? नहीं सर ये पूरा भर गया है | अब इसमें कुछ नहीं आ सकता ,बच्चे एक स्वर में बोले | अध्यापक ने फिर उस गिलास में छोटे – छोटे कंकण  भरना शुरू किया | छोटे कंकण  ने बड़े कंकण के बीच जगह बना ली | फिर उन्होंने और छोटे कंकण भरना शुरू किया उन्होंने पहले और दूसरे कंकण के बीच में जगह बना ली | अब अध्यापक ने फिर गिलास दिखा कर सबसे पूंछा ,” क्या अब इसमें कुछ आ सकता है ?” बच्चे बोले सर पहले ह्म् गलत  थे | पर अब ये गिलास इतना भर गया है की इसमें कुछ नहीं आ सकता | अध्यापक ने अब गिलास में रेत भरना शुरू किया | रेत ने कंकण के बीच में जगह बना ली | फिर गिलास पूरा भर गया | अध्यापक ने फिर वही प्रश्न  दोहराया | बच्चों ने पूरे विश्वास के साथ कहा ,” सर अब तो ये जरूरत से ज्यादा भर गया है | अब इसमें कुछ नहीं आ सकता | अध्यापक ने पास में एक जग से पानी गिलास में डालना शुरू किया | पानी ने सब के बीच में जगह बना ली | अध्यापक बच्चों की और देखते हुए बोले ,” देखो जो गिलास बड़े कंकण से ही भरा दिखाई दे रहा था | अब उस  गिलास में बड़े कंकण , छोटे कंकण , बहुत छोटे कंकण , रेत और पानी है | इतना सब कुछ इसमें इसलिए आ सका क्योंकि मैंने चीजों को सही क्रम में भरा | अगर रेत पहले भर लेते तो क्या बड़े कंकण गिलास में आ सकते थे | या पानी पहले बी हर लेते तो बड़े कंकन डालते ही वो छलकने लगता | दरसल ये गिलास हमारा जीवन है और इसमें डाली  जाने वाली चीजें हमारी प्राथमिकताएं |  अगर आप  अपनी जिन्दगी में सही प्राथमिकताएं तय करते हैं तो इसमें बहुत कुछ भरा जा सकता है | | लेकिन गलत प्राथमिकताएं तय करने से आपके पास मौका होते हुए भी आप का गिलास पूरी तरीके से नहीं भर सकता | कुछ न कुछ खाली ही रह जाएगा | उदाहरण के लिए .. अगर आप विद्यार्थी हैं तो सबसे पहली प्राथमिकता पढाई है | पढाई में एग्जाम टाइम और रेगुलर टाइम में आपकी प्राथमिकता  अलग – अलग होती है | अगर आप नौकरी करते हैं तो सबसे पहली प्राथमिकता अपना काम अच्छे से करते हैं | अगर आप माता – पिता हैं तो पहली प्राथमिकता बच्चे हैं | माता -पिता वृद्ध होने पर वो पहली प्राथमिकता हैं |  अगर आप सही तरीके से आपनी प्राथमिकताएं तय करते हैं तो न केवल आप का जीवन सफल होगा बल्कि खुशहाल भी होगा | टीम ABC यह भी पढ़ें …………. नाउम्मीद करती उम्मीदें जब मोटिवेशन , डीमोटिवेट करे जब लगे सब खत्म हो गया है   क्या आप भी दूसरों की पर्सनालिटी पर टैग लगाते हैं आपको आपको  लेख “  जीवन की प्राथमिकताएं  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

मन का बोझ

दुनिया से कोई अपने गुनाहों को छुपा सकता है | पर अपने मन से बच कर कहा जाएगा | सारे गुनाह चाहे वो अनजाने ही क्यों न किये हों मन पर एक बोझ होते हैं | भूल सुधार ही इस बोझ को उतारने  का एकमात्र उपाय है  Motivational hindi story man par bojh एक किसान अपने अनाज को बैलगाड़ी में लेकर मंडी में बेचने जा रहा था | रास्ते में एक बहुत बड़ा पत्थर पड़ा हुआ था | गाडी आगे नहीं जा सकती थी | किसान ने गाडी से उतर कर पत्थर हटाने की कोशिश की पर वह पत्थर हिला भी नहीं पाया | उसने इधर उधर मदद के लिए नज़र दौड़ाई | वहीँ पास में एक व्यक्ति पेड़ के नीचे सो रहा था | किसान उसके पास गया और उसे जगा कर अपनी समस्या बताई तथा मदद मांगी | वो व्यक्ति तुरंत मदद के लिए तैयार हो गया |  किसान के साथ वो व्यक्ति वहां पर आया और दोनों मिलकर पत्थर हटाने का प्रयास करने लगे | थोड़ी देर की मेहनत मशक्कत के बाद पत्थर हट गया | किसान ने उस व्यक्ति को बहुत धन्यवाद दिया | और कहा की मुझे ख़ुशी है की आप जैसे सज्जन लोग भी संसार में हैं जो दूसरों की मदद करते हैं | जिस कारण संसार में दया धर्म टिका हुआ है | वहीँ किसान उस व्यक्ति को गालियाँ देने लगा जिसने वहां पत्थर डाला था | उसने कहा की ऐसे लोगों की वजह से ही मानवता खतरे में है |  थोड़ी देर सुनने के बाद वो व्यक्ति किसान से बोला ,” महाशय , जिस व्यक्ति की आप् प्रशंसा  कर रहे हैं व् जिसे गालियाँ दे रहे हैं वो दोनों व्यक्ति मैं ही हूँ | दरसल मैं चलते – चलते बहुत थक गया था और थोड़ी देर विश्राम करना चाहता था | मुझे पेड़ के नीचे जगह सही लगी | पर वहां एक बड़ा सा पत्थर पड़ा हुआ था | मैं उसे खिसकाने की कोशिश की तो वो लुढकने लगा | क्योंकि इस तरफ ढाल थी | लुढ़कते – लुढ़कते वो यहाँ आ गया | मुझे बहुत दुःख हुआ की किसी भी आने – जाने वाले मुसाफिर को परेशानी हो सकती है | इसलिए मैंने इसे हटाने का प्रयास भी किया | परन्तु यह हटा नहीं | तो मैं जा कर पेड़ के नीचे लेट गया और मेरी आँख लग गयी |  आप ने जब मुझे पत्थर हटाने में मदद करने को कहा तो जैसे मुझे मुंह मांगी मुराद मिल गयी | इस पत्थर के यहाँ रहने से मेरे मन पर एक बोझ था जो उसको हटा  देने से हट गया |  दोस्तों , वो व्यक्ति जिसकी भूल की वजह से पत्थर बीच सड़क पर आ गया था | उसके मन पर बोझ था | अक्सर हम सब जब कोई गलत काम जाने या अनजाने करते हैं तो हमारे मन पर बोझ होता है | ये बोझ होना मानव होने की पहचान है | किसी भी तरीके से ये बोझ कम नहीं होता | केवल प्रायश्चित करने से ही यह बोझ हल्का होता है | अत : प्रयास करना चाहिए कि हम कोई ऐसा काम न करें जिससे हमारे मन पर बोझ हो | और अगर कभी अनजाने कोई गलत काम हो जाए तो भूल सुधार कर प्रायश्चित अवश्य कर लेना चाहिए |  टीम -ABC यह भी पढ़ें … अधूरापन अभिशाप नहीं प्रेरणा है  13 फरवरी 2006 इमोशनल ट्रिगर्स – क्यों चुभ जाती है इत्ती सी बात असफलता से सीखें मित्रों प्रेरक कहानी  मन का बोझ आपको कैसी लगी | हमें जरूर बताये | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज  लाइक करें | अगर आप को “अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब करें | जिससे हम सीधे  लेटेस्ट  पोस्ट  आपके ई मेल पर भेज सकें |

प्रेरक कथा : स्वर्ग का दरवाजा

एक बार की बात है जापान में संत हाइकुन प्रवचन दे रहे थे | प्रवचन के बाद लोग उनसे प्रश्न पूँछ कर शंका समाधान कर सकते थे | एक दिन एक सैनिक भी उनके सामने एक प्रश्न ले कर आया | और प्रश्न काल में उनके सामने बैठ कर अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा | जब उसकी बारी आई तो उसने संत से प्रणाम कर के कहा ,” महात्मन , कृपया मुझे बताएं की मरने के बाद व्यक्ति स्वर्ग या नरक जाता है | पर जैसा मैंने सुना हैं वहां बड़े – बड़े दरवाजे हैं तो ये दरवाजे कैसे खुलते हैं | मतलब स्वर्ग और नरक के दरवाजे कैसे खुलते हैं | संत ने उसकी तरफ देख कर कहा ,” तुम सैनिक हो कर स्वर्ग और नरक का मार्ग पूँछ रहे हो | सैनिक का काम तो रक्षा है जिसके लिए वो अपनी ही जान दे देता हैं और तुम यहाँ प्रश्न – उत्तर खेल रहे हो | कोई मुर्ख ही होगा जिसने तुम्हें नौकरी पर रखा होगा | सैनिक को महतमा पर बहुत क्रोध आया फिर भी क्रोध दबा कर धीरे से बोले ,” मुझे सरकार ने नौकरी पर रखा है | अब संत बोले ,” अच्छा आश्चर्य हैं | तुम्हारा डील – डौल तो बिलकुल भी सैनिकों जैसा नहीं है | कद भी उतना ऊँचा नहीं हैं की दूर से दुश्मन को देख सकों | सैनिक को अपना अपमान महसूस हुआ अपना हाथ म्यान तक ले जाते हुए बोला , ” आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? संत बोले ,” दरसल तुम्हारी आँखे भी छोटी हैं | तुमतो दुश्मन पर नज़र भी नहीं रख सकते | तुम तो मुफ्त की तनख्वाह पा रहे हो | अब तो सैनिक से न रहा गया | उसने म्यान से तलवार निकाल कर संत की  मारने की सोंची | तभी संत मुस्कुरा कर बोले ,” लो खुलगया नरक का दरवाजा सैनिक संत को मारने ही वाला था की उसकी नज़र संत के चेहरे पर पड़ी | उनका चेहरा बिलकुल शांत था | उसमें कोई मृत्यु भय नहीं था | संत का शांत मुख देख एक सेकंड में  सैनिक का ह्रदय परिवर्तन हो गया | तलवार वापस म्यान में रख कर वो संत के मुख की तरफ देखने लगा | संत मुस्कुरा कर बोले ,” लो खुल गया स्वर्ग का दरवाजा | सैनिक ने प्रश्न वाचक दृष्टिकोण से संत को देखा | संत ने कहा ,” बेटा हम हर मिनट स्वर्ग और नरक का दरवाजा खोलते रहते हैं | जब हम अच्छा काम करते हैं तो स्वर्ग व् बुरा काम करते हैं तो नरक के दरवाजे खुलते बंद होते रहते हैं | कर्म ही उन द्वारों की चाभी है | उसी के आधार पर स्वर्ग या नरक प्राप्त होता है | सैनिक को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था | वो शांत मन से अपने घर लौट गया | तेम ABC

प्रेरक कथा : जैसी करनी वैसी भरनी

दोस्तों  कहावत है न की कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है | इस जन्म में नहीं तो अगले जन्ममें | इसलिए हमें अपने कर्मों यानी अपने द्वारा कोए गए छोटे – छोटे कामों का वोशेष ध्यान रखना चाहिए | ये बात परलौकिक जगत में तो सच है ही लैकिक जगत में भी अपनी गलतियों की सजा हमें स्वयं भुगतनी पड़ती है | कैसे ? इसके लिए एक छोटी सी प्रेरक कथा सुनाता हूँ .. motivational hindi story – jaisee karni vaisee bharnee  बहुत समय पहले की बात है एक राज्य में एक मक्खन बेंचने वाला रहता था | उसकी खूब बिक्री होती थी उसी की दूकान के पास एक बेकरी शॉप भी थी | उस शॉप का मालिक् रोज  मक्खन वाले से आधा किलो मक्खन ले जाता | उसे शक था की उसे  वह तौल् में  कम मक्खन देता है | बात आई – गयी हो जाती | एक दिन उसने मक्खन तोलने का निश्चय किया | तौल में मक्खन कम निकला | अब तो बेकरी वाले कोबहुत गुस्सा आया कि ये मक्खन वाला रोज उसे कम तौल का मक्खन दे कर धोखा दे रहा था | उसने मक्खन वाले को सजा दिलवाने के लिए राजा से शिकायत कर दी | मक्खन वाले को राजा के दरबार में बुलाया गया | मक्खन वाला डरता- डरता वहां जा कर एक तरफ खड़ा हो गया | वहां बेकरी वाला व् अन्य दूकान दार भी खड़े थे | उनको देखकर मक्खन वाला आश्वस्त हुआ कि वो अकेला नहीं है | उसकी बिरादरी के लोग भी खड़े हैं | तभी राजा के सलाहकार के आरोप पर पढ़ा ” मक्खन वाले पर आरोप है  की वो तौल्में कम मक्खन देता है |इस तरह से धोखा दे कर वह ग्राहकों का लूटता है |अगर उसे पर आरोप सही सिद्ध हुआ तो उए कड़ी से कड़ी सजा दी जायेगी | लेकिन इससे पहले उसे सफाई का एक मौका दिया जायेगा |फिर उसने मक्खन वाले की ओर मुखातिब होकर कहा ,’ कृपया अपना बाँट दिखाए ,जिससे आप मक्खन तौलते हैं | मक्खन वाला बोला ,” माई बाप मैं पढ़ा लिखा नहीं हूँ | मेरे पास कोई बाँट नहीं है | राजा – फिर तुम मक्खन की तौलते हो ? मक्खन वाला – हुजूर मैं इस बेकरी शौप वाले किदुकान से रोज एक किलो ब्रेड लेता हूँ | उसे आधा – आधा कर के दो बाँट बना लेता हूँ | सारा दिन उसी से मक्खन तौलता हूँ | इसमें मेरा कोई दोष नहीं है | सरे दुकानदार जानते थे की मक्खन वाला सही बोल रहा है | उन्होंने उसकी बात का समर्थन किया | अब बेकरी वाले को कातोतो खून नहीं की स्थिति हो गयी | एक तरफ उसे अपने ही बेईमानी के कारन रोज कम मक्खन मिल रहा था दूसरे अब राजा के दरबार में भी वो ही दोषी सिद्ध होरहा था | पर उसके पास सर झुकाने के आलावा कोई चारा भी नहीं था | आखिर ये उसी के कर्मों का फल था | राजा ने अपना फैसला सुनाया | उसने मक्खन वाले को बाइज्ज़त  बरी कर दिया व् बेकरी वाले को कारावास में डाल दिया | उसे अपनी करनी का फल मिल गया | सही ही कहा गया है …. जैसी करनी वैसी भरनी तो देखा आपने दोस्तों बेकरी वाले को उसकी करनी का फल मिल गया | हम सब को भी अपने कर्मों पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि अच्छे फल प्राप्त हों |  टीम  ABC आपको आपको  कहानी  “आपको आपको  कहानी  “प्रेरक कथा : जैसी करनी वैसी भरनी “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

प्रेरक कथा :जीवन अनमोल है

                                              हम सब अपने पास उपलब्द्ध सामानों की बहुत कदर करते है | घर – मकान , दूकान , जेवर , कपडा , बर्तन आदि की बहुत कीमत समझते हैं | इसलिए इनकी देखभाल भी बहुत करते हैं | जरूर करनी चाहिए क्योंकि इन सब की कोई कीमत हो सकती है पर सबसे कीमती चीज जो हमारे पास है जो अनमोल है | फिर भी हम कीमत वाली चीजों के न मिलने पर कभी इतनी निराशा में घिर जाते हैं की अवसाद हम कोघेर लेता है | जबकि उस समय भी हमारे पास अनमोल जीवन की दौलत होती है | Hindi motivational story –life is precious एक बार की बात है एक विचार एक अवसाद गस्त लोगों के अस्पताल में स्पीच देने गया | उसने लोगों को एक लम्बा चौड़ा भाषण दिया की अवसाद मात्र एक विचार है | अगर आप अपने मन से उस विचार को हिम्मत करके निकाल दें जो आपको दुःख या निराशा की तरफ खींच रहा है | तो आप के मन से व् जीवन से अवसाद हमेशा के लिए निकल जाएगा |  उसके ओजस्वी भाषण से भी मरीजों को कुछ लाभ होता नहीं दिखा | किसी का कहना था की विचारक जी सच नहीं बोल रहे हैं | कोइ कह  रहा था की जो झेले वही जाने | किसी का तर्क था की दूसरों को समझाना आसान होता है | खुद भुगतना कठिन |  अब विचारक ने लोगों को समझाने के लिए दूसरा तरीका खोजा | उसने लोगों को संबोधित करतेहुए कहा  ,” चलो , अब अवसाद की बात नहीं करते हैं | आप लोगों ने मुझे सुना | इतना धैर्य दिखाया | इसके लिए मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ | उसने अपनी जेब से २००० रुपये का नोट निकाला और सब को दिखाते हुए पूंछा,” आप लोगों में से कौन – कौन इस नोट को लेना चाहेगा ?  हॉल में लगभग सभी ने हाथ खड़े कर दिए |  विचारक ने कहा , अच्छा एक मिनट रुकिए | फिर उसने  उस नोट को बुरी तरह मोड़ – तोड़ दिया | उसने फिर पूंछा ,”आप लोगों में से कौन – कौन अब इस नोट को लेना चाहेगा ? “ फिर से सारे हाथ खड़े हो गए |  विचारक ने फिर  कहा अच्छा एक मिनट रुकिए | फिर उसने  उस नोट को धूल में रगड़ दिया | अब नोट काफी गन्दा हो चुका था | उसने फिर पूंछा ,”आप लोगों में से कौन – कौन अब इस नोट को लेना चाहेगा ? “ फिर से सारे हाथ खड़े हो गए |  विचारक ने फिर  कहा अच्छा एक मिनट रुकिए | फिर उसने  उस नोट को जमीन पर फेंक कर अपने जूते से रगड़ दिया | अब नोट मैला कुचैला व् मुड़ा – तुड़ा और गन्दा दिख रहा था |  उसने फिर पूंछा ,”आप लोगों में से कौन – कौन अब इस नोट को लेना चाहेगा ? “ फिर से बहुत सारे हाथ खड़े हो गए |  अब विचारक ने लोगों की ओर देख कर कहा ,” आप सब अभी भी इस नोट को लेना चाहते हैं | क्योंकि आप जानते हैं की मुड़ने – तुड़ने , गंदे होने या पैरों के नीचे कुचले जाने से इसकी कीमत में कोई फर्क नहीं पड़ा है | यही बात आप को अपने लिए भी समझनी होगी की हमारा जीवन अनमोल है | किसी भी प्रकार के दुःख से , हार से निराशा से , समय की धूल से या पैरों के नीचे कुचले जाने यानी की अपमान से इसकी कीमत कम नहीं हुई है | अभी भी आप वापस आशा के साथ फिर से मैदान में उतर सकते हैं | और देखिएगा कैसे आपका ये बेशकीमती नोट चलेगा |  पूरा हौल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा | उन्हें समझ में आ गया था की  ife is precious दोस्तों ,आपके जीवन में भी कोई भी तकलीफ , दर्द , निराशा आ जाए | वहीँ अटक कर मत रह जाओ, आगे बढ़ो क्योंकि इस हादसे से तुम्हारे जीवन की कीमत में कोई कमी नहीं आई है | तुम्हारा जीवन अभी भी अनमोल है |  जरा कल्पना करिए की ८.७ मिलियन स्पीसीज में केवल एक ही है जो सोंच सकती है की जीवन का उद्देश्य क्या है ?ये एक छोटा सा सत्य ही बता देता है की मानव जीवन कितना अनमोल है |-अभिजीत नास्कर  यह भी पढ़ें …….. बाल मनोविज्ञान पर आधारित पाँच लघु कथाएँ सफलता का बाग़ तुम्हारे बिना काकी का करवाचौथ आपको आपको  कहानी  “ प्रेरक कथा :जीवन अनमोल है “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  editor.atootbandhan@gmail.com