प्रेरक कथा – भविष्य की योजना

जो लोग किसी काम को बिना योजना बनाए शुरू कर देते हैं | उनकी असफलता  निश्चित है | हालांकि अक्सर वो इसके लिए भाग्य को दोष देते हैं | उन्होंने मेहनत भी खूब की होती  है | पर मेहनत  गलत दिशामें लग रही होती है | जिस कारण सफलता नहीं मिलती | वहीँ जो लोग योजना बना कर काम करते हैं वह उससे कम मेहनत में भी सफलता पा लेते हैं | कैसे ? inspirational hindi story on goal setting बहुत समय पहले की बात है | एक गाँव में नया व्यापारी आया | वो फूटपाथ पर शक्कर बेंचता था | शक्कर वो व्होल सेल मार्किट से ८०० रुपये का बोरा लाता व् ८ रूपये किलो बेंच देता | | जबकि दूसरे दुकानदार १० रूपये किलो शक्कर बेंचते | जब लोगों को पता चला की उन्हें कुद्र बाज़ार में व्होल सेल मार्किट के दाममें शक्कर मिल रही है | तो वहां भीड़ टूट पड़ती | उसकी सारी  शक्कर शम्म तक बिक जाती | लोग बहुत खुश थे |  एक दिन एक व्यक्ति ने दुकानदार से पूंछा तुम इतनी मेहनत करते हो फिर दाम के दाम शक्कर बेंच देते हो | आखिर तुम्हारा बचता क्या है |  व्यापारी ने कहा ” बोरा ”  दरसल व्यापारी के पास शाम तक १० बोर इकट्ठे हो जाते | जिन्हें वो रविवार के दिन दूसरे गाँव में जाकर १० रुपये प्रति बोरा बेच कर शुद्ध मुनाफा कमाता |  धीरे – धीरे अपनी साख जमाने के बाद उसी  गाँव में दूकान खोल ली | तब तक लोगों को उसकी ईमानदारी पर विश्वास हो गया | अब वो सारी  दुकाने छोड़ कर उसी के पास जाते | उस्की दुकान   खूब चलने लगी | पर इसका श्रेय  उस योजना को जाता है जो जो उसने अपने व्यापार को सफल बनाने में लगाईं  दोस्तों ये कहानी हमें सिखाती है की कुछ भी करों पहले योजना बना लो ताकि उस पर अमल कर सफलता मिल सके | ये न हो की योजना के आभाव में असफलता तो मिले ही मनोबल् भी टूट जाए | जिससे आगे प्रयास करने का मन ही न करें |  दीप्ति दुबे  यह भी पढ़ें  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क यकीन ढिंगली मोक्ष आपको आपको  कहानी  “ प्रेरक कथा – भविष्य की योजना “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

प्रेरक कथा -सच्ची ख़ुशी

                                                  दोस्तों हम अक्सर सच्ची ख़ुशी की तालाश में रहते हैं | पर यह तलाश कभी पूरी नहीं हो पाती | क्योनी सच्ची ख़ुशी पाने नहीं देने में है |  जिसने इस राज को जान लिया वो कभी दुखी नहीं रह सकता |  inspirational story on real happiness बहुत पहले की बात है | अंजन मुनि के आश्रम में बहुत सारे शिष्य शिक्षा प्राप्त करते थे | वो आध्यात्मिक शिक्षा का जमाना था | शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शांति व् ख़ुशी थी | लिहाज़ा सभी शिष्य गुरु से जाना चाहते थे की सच्ची ख़ुशी किस में है | क्योंकि उन्होंने देखा था की जब भी वो कुछ पाने के लिए बहुत प्रयास करते हैं तो उस वस्तु को पाने तक मेहनत तो करनी होती है | पर वस्तु पाते ही ख़ुशी खत्म हो जाती है |उसे पाते ही उसका आकर्षण क्षीण हो जाता है और ख़ुशी भी | आखिर ऐसा क्यों होता है |  अपनी समस्या से परेशान हो कर वो अंजन मुनि के पास गए व् इसका कारण पूंछा | अंजन मुनि बोले ,” मुनिवर कृपया कर के हमारी सहायता करे हम सच्ची ख़ुशी  का पता लगाने में असमर्थ हैं |  मुनि अंजन ने बाताया सच्ची ख़ुशी का मार्ग  शिष्यों का प्रश्न सुन कर अंजन मुनि मुस्कुराए और बोले ,” बस इतनी सी बात ये तो बहुत आसान है | पर इसके लिए तुम्हें छोटा सा एक काम करना पड़ेगा |  क्या , मुनिवर – शिष्यों ने सम्मलित स्वर में पूंछा | गुरु ने आश्रम में एक तरफ रखी पतंगों के बारे में  बताते हुए कहा | वहां जो पतंगें रखी हैं उन पर अपना – अपना नाम लिख कर यहाँ मेरे पास जमा कर दो |  शिष्य पतंग लेने चले गए व् वहां जा कर एक एक पतंग पर अपना अपना नाम रख कर गुरु के पास  रख दी |  अब गुरु ने सबसे कहा की अपने – अपने नाम की पतंगे  उठा लो | और मुझे दो | यह सुनते ही भगदड़ मच गयी | सब अपने नाम की पतंगे खोज रहे थे | इस छीना झपटी में सारी  पतंगें फट गयीं | अब गुरु ने कहा की फिर से एक एक पतंग पर अपना नाम लिख कर यहाँ रखो | शिष्यों ने वैसा ही किया |  अब गुरु ने कहा तुम लोग कोई भी एक पतंग उठा लो | व् जिसका नाम लिखा है उसे दे दो | फिर अपने – अपने नाम की पतंगें  मेरे पास रख दो |  अब कोई भगदड़ नहीं मची सबने आराम से पतंगें उठायी व् जिसके नाम की थीं उसे सौंप दी | थोड़ी देर में गुरु के पास सबने अपने अपने – नाम की पतंगें जमा कर दी  और गुरु के उत्तर की प्रतीक्षा करने लगे |  गुरु ने कहा ,” ये पतंगें ख़ुशी हैं | जब तुम खुद लेना चाहते थे | तब तुम्हें कुछ नहीं मिला | जब तुम देने लगे तो मिल गयीं | यही सच्ची ख़ुशी का रहस्य है |  दोस्तों जब हम ख़ुशी पाना चाहते हैं तो नहीं मिलती जब देते हैं तब मिलती है | अगर आप भी सच्ची ख़ुशी चाहते हैं तो बांटिये | जिससे आप को  भी ख़ुशी मिले |  दीप्ति दुबे  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क यकीन ढिंगली मोक्ष आपको आपको  कहानी  “प्रेरक कथा -सच्ची ख़ुशी  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

प्रेरक कथा -हम किसी से कम नहीं

कुछ लोग अपने को बहुत बड़ा समझते हैं वो किसी की इज्ज़त नहीं कर पाते | ऐसे लोगों की बेईज्ज़ती करके ही उन्हें सही राह दिखानी पड़ती है | पर आज हम बात किसी व्यक्ति की नहीं देश की कर रहे हैं | जहाँ एक देश के लोग दूसरे देशों को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते | जी हां , आप बिलकुल सही समझे ये वाकया तब का है जब हमारा देश अंग्रेजों का गुलाम था | उस समय अंग्रेज भारतीयों को ब्लडी इन्डियन , या कंगाल आदि जाने क्या –क्या कह कर संबोधित करते थे | आम भारतीय इस अपमान का गरल चुपचाप पीते रहते थे | करते भी क्या बेचारे | पर एक बार उनका पाला एक ख़ास आदमी से पड़ा | वो अपमान पर चुप नहीं बैठा | उसने नहले पर दहला मारा | जानते हैं वो ख़ास आदमी कौन था | वो थे महाराजा जय सिंह | Moral story on self esteem बात तब की है जब महाराजा जय सिंह इंग्लैण्ड गए हुए थे | वो सादे कपड़ों में शाम को लंदन  में घूम रहे थे | वहां उन्होंने रोल्स रायस का शो रूम देखा |और कार का भाव जानने  अन्दर चले गए | शो के मालिक ने उन्हें कंगाल भारत का कंगाल आदमी कह कर अपमानित किया और कार दिखाए  बिना “GET OUT ” कह  कर बाहर निकाल दिया | अपमानित हो कर माहाराज होटल लौट आये और उसी शो रूम में फोन लगवाया कि अलवर के महाराज रोल्स रायस देखना चाहते हैं | कुछ समय बाद महाराज अपनी राजसी पोशाक में पूरे दल बल के साथ उसी शो रूम में पहुंचे | तब तक उनके स्वागत के लिए वहां रेड कारपेट बिछाया जा चुका था | महाराज ने 6 रोल्स रायस खरीदी | वापस देश  आने पर उन्होंने वो गाड़ियां नगर महापालिका को  कूडा उठवाने के लिए दे दी | अब उन पर दिन भर अलवर राज्य का कूडा उठवाया जाता | विश्व की नंबर वन मानी जाने वाली रोल्स रायस कार का इस तरह कूडा उठवाने में उपयोग होने का समाचार विश्व भर में फ़ैल गया | अब  कोई रोल्स रायस खरीदने की सोंचता तो लोग हंस कर कहते की अच्छा , अच्छा वही रोल्स रायस जिससे इंडिया में कूड़ा  उठवाया जाता है | रोल्स रायस की बहुत बदनामी होने से उसकी बरसों की बनायीं इज्ज़त तार – तार होने लगी |कारों की बिक्री घट गयी |मालिकों को बहुत ज्यादा आर्थिक नुक्सान होने लगा |     चारो तरफ हुई किरकिरी से  घबरा कर रोल्स रायस के मालिक के महाराजा को तार भेज कर माफ़ी मांगी व् उनसे अनुरोध  किया की वो इसका उपयोग कूड़ा उठाने में न करें | इसके एवज उसने उन्हें ६ नयी रोल्स रोयस कारे भेजीं |  महाराजा को जब विश्वास हो गया की उन्हें सबक मिल गया है तो उन्होंने कारों से कूडा उठवाना बंद कर दिया | इस तरह उन्होंने अपमान का जवाब नहेले पर दहला मार कर दिया | और दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं |  कोई किसी से कम नहीं  दोस्तों , महाराजा को छोटा समझ कर उनका अपमान करने की जो भूल रोल्स रायस के शो रूम के मैनेजर ने की थी | उसका दंड उसे भारी आर्थिक नुक्सान व् अपनी साख खो कर चुकाना पड़ा | माहाराज ने उसको जाता दिया की हम किसी से कम नहीं |  लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं हैं | ये  कहानी प्रेरणा देती है की  जरूरी है की हम सबका सम्मान करे किसी की आर्थिक , शारीरिक या मानसिक कमी के कारण उसका मजाक न उडाये |  अब यहाँ आप कह सकते हैं की वो तो महाराजा थे | वास्तव में अमीर थे | वो तो केवल सादे कपड़ों में जाने के कारण अपमानित हुए थे | उनके पास तो बहुत पैसा था इसलिए उन्होंने अपने अपमान का बदला ले लिया | आम आदमी के अपमान का बदला कौन लेगा |  तो मैं यहाँ ये कहना चाहूंगी कि आम आदमी के अपमान का बदला समय लेगा | समय किसी का एक समान नहीं रहता | हो सकता है आज जिसे आप कमजोर समझ कर अपमानित कर रहे हैं कल को वो या उसके बच्चे बहुत ताकतवर बन कर आपके सामने आये | और आप को दिखा दें की हम किसी से कम नहीं | फिर आपके पास मुँह छिपाने का भी मौका नहीं होगा | बेहतर है समय रहते समझ लें की “कोई किसी से कम नहीं ” | इसलिए किसी का भी शारीरिक , मानसिक या आर्थिक कमी के कारण अपमान न करें |  दीप्ति दुबे  यह भी पढ़ें ……. जैसा खाए अन्न सफलता का बाग़ विश्वास महात्मा गांधी के पांच प्रेरक प्रसंग                  आपको आपको  कहानी  “ प्रेरक कथा -हम किसी से कम नहीं“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |                                

अम्माँ की दूरदर्शिता

              दोस्तों जब भी हम कोई काम करने जा रहे होते हैं तो हमारे अन्दर से आवाज़ आती है की ये काम करना ठीक है या नहीं |  इसे गट फीलिंग या सिक्स्थ सेन्स भी कहते हैं | ये एक तरह की पूर्व चेतावनी भी होती है |आज हम एक ऐसी ही कहानी लाये हैं एक बुढिया की जिसे उसकी दूरदर्शिता ने बचाया A moral story on sixth sens  एक गाँव में एक बुढ़िया रहती थी | उसे गाँव के सब  लोग अम्माँ भी कहते थे  | अम्माँ के कोई संतान थी नहीं वो भी सब को अपने बच्चों सा प्यार करती थी | एक बार की बात है की अम्माँ को किसी दुसरे गाँव कुछ सामन ले कर जाना था | उसने सामान की गठरी बाँध ली | यूँ तो कई बार वह सामान ले कर गयी थी | पर जो बच्चे उसके साथ जाते थे | वो इस बार ननिहाल गए  हुए थे | वैसे तो वो गाँव के किसी भी बच्चे से कह सकती थी पर अम्माँ  ने अकेले ही सामान ले जाने की सोंची | उसने गठरी सर पर रख ली और चल पड़ी दूसरे गाँव की ओर | एक तो जेठ का महीना लम्बा रास्ता , भरी गठरी  ऊपर से अम्माँ  का जर्जर शरीर | उसके पसीने छुटने लगे | तभी एक घुड़सवार वहां से गुजरा | अम्माँ ने घुड़सवार से कहा ,” बेटा मुझे दूसरे गाँव जाना है | मेरी गठरी भारी है | क्या तुम मेरी गठरी अपने घोड़े पर रख लोगे | घुड़सवार बोला ,” देखिये माताजी , धूप  कितनी तेज है | फिर आप धीरे – धीरे भी चल् पा  रही हैं | ऐसे में मैं तो वहां पहुँच जाऊँगा पर मुझे आपका इंतज़ार करना पड़ेगा | आप मुझे क्षमा करें | कह कर घुड़सवार चला गया | थोड़ी दूर जाने पर उसके मन में विचार आया ,” अरे बुढिया  तो इतनी बूढी है | मुझे उसकी गठरी ले लेनी चाहिए थी | मैं तो सरपट दौड़ लगा कर आगे बढ़ जाता | वो मेरा पीछा कहाँ कर पाती | फिर गठरी मेरी होती | काफी भारी लग रही थी बहुत माल – ताल होगा | चालों वापस चल कर मदद देने को कहूँ | इधर अम्मा सोंचने लगी | बेकार ही में मैंने अजबनबी से मदद मांगी | कहीं वो गठरी ले कर भाग जाता तो मैं तो उसके पीछे भाग भी न पाती | जो हुआ अच्छा हुआ | अम्माँ मन ही मन सोंच ही रही थीं | तभी वो घुड़सवार आ गया और घोडा रोक बोला ,” माताजी मैं आगे चला तो गया | पर मेरा मन मुझे धिक्कारने लगा की मुझे मदद करनी चाहिए थी | इसलिए मैं वापस लौट आया | लाइए मैं आप की गठरी घोड़े पर ले चलता हूँ |  अब अम्माँ घुड़सवार पर किये अपने शक पर यकीन हो गया | हो नहो इसके मन में लालच आ गया है | नहीं तो ये क्यों लौटता | अम्मा बोली ,” बेटा जैसे तुम्हारा मन बदल गया , मेरा भी मन बदल गया | तुम जाओ अब मैं अपनि गठरी खुद ही ले जाऊँगी | घुड़सवार अचकचा गया | बोला माताजी अभी तो आप चलने को तैयार थीं | अब जब मैं आ गया तो मना  कर रहीं हैं | आखिर इतनी देर में आपको उलटी पट्टी कौन पढ़ा गया | अम्मा हंस कर बोलीं ,” बेटा उलटी या सीधी  ये पट्टी उसी ने पढाई जिसे कहते हैं  छठी इन्द्रिय | तो देखा दोस्तों आपने किस तरह सिक्स्थ सेन्स से अम्मा ने अपनी गठरी की हिफाजत की |इसे कहते हैं दूरदर्शिता |            दीपा निगम आगरा