मृत्यु का समय अटल है

मृत्यु एक अटल सत्य है | वो जब आनी है , जहाँ आनी है व्यक्ति को वहीँ खींच कर ले जाती है | कभी किसी ट्रेन एक्सीडेंट से थोडा ही पहले कोई व्यक्ति तिक्त कैंसिल करा कर बच जाता है और कोई उसी तिक्त को प्राप्त कर मारा जाता है… मृत्यु का समय  अटल है  बहुत समय पहले की बात है | एक बार गरुड़ क्षीर सागर के द्वार पर एक कबूतर से बात करने में व्यस्त थे | तभी वहां यमराज श्री हरिविष्णु सेमिलने आये और द्वार पर कबूतर को देखकर बोले ,” अरे तुम यहाँ ? जैसे हरि इच्छा ” और अंदर चले गए | उनकी बात से कबूतर भय से कांपने लगा | उसने गरुण से कहा , लगता है मेरी मृत्यु निश्चित है | यमराज तो स्वयं किसी को देख भी लें तो वो प्राणी तो गया | औउर यहाँ तो वो साक्षात आये हैं | उन्होंने मुझे देखकर अरे तुम यहाँ कहा भी , मतलब वो प्रभु से मिलने के बाद मेरे प्राण ले कर ही जायेंगे | कृपया कर के मुझे बचाइए | कहते हुए वो कबूतर गरुण के पैर पड़ने लगा | ग्रौं को दया आ गयी | उसने कबूतर से कहा , ” तुम चिंता ना करो , मुझसे ज्यादा तेज गति से उड़ने वाला कोई दूसरा पक्षी नहीं है | दो मिनट में मैं तुम्हें सुदूर हिमालय की एक गुफा में छोड़ कर वापस भी जाऊँगा | फिर तुम्हें यमराज कैसे ले जा पाएंगे | कबूतर को बड़ी तसल्ली हुई | उसने कहा , ” ठीक है , ठीक है जल्दी चलिए | गरुड़ कबूतर को हिमालय की एक गुफा में छोड़ कर वापस आ गया और यमराज के लौटने का इन्तजार करने लगा | करीब १० मिनट बाद यमराज वापस निकले | गरुड़ ने उनको प्रणाम कर के पूछा , ” प्रभु आप उस कबूतर को यहाँ देखकर क्यों बोले थे कि अरे तुम यहाँ , वो बेचारा बहुत डर गया था | यमराज बोले ,” हां मैं उसको यहाँ देखकर आश्चर्य में पड़ गया था क्योंकि उसकी मृत्यु ठीक दो मिनट बाद सुदूर हिमालय की एक गुफा में होनी  थी | वो कितनी भी ताकत लगा कर उड़े महीना भर से पहले वहां नहीं पहुँच सकता | “ तभी तो मैंने कहा था , “जैसी हरि की इच्छा “ यमराज तो चले गए पर गरुण वही सर पकड कर बैठ गए , कि कबूतर के वो प्राण बचना चाहते थे , उसे स्वयं मृत्यु के द्वार पर छोड़ कर आये थे | होनी बहुत प्रबल होती है , मृत्यु व्यक्ति को खींच कर वहीं ले जाती है | अटूट बंधन —————- यह भी पढ़ें … प्रधानमंत्री मोदी -अक्षय कुमार इंटरव्यू से सीखने लायक बातें भविष्य का पुरुष  मक्कर उल्टा दहेज़ जब झूठ महंगा पड़ा मैं तुम्हें हारने नहीं दूंगा माँ  आपको  लघु कथा  “ मृत्यु का समय  अटल है “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – motivational story, death , time of death

प्रधानमंत्री मोदी -अक्षय कुमार इंटरव्यू से सीखने लायक बातें

फोटो –दैनिक भास्कर से साभार  व्यक्ति कोई भी हो क्षेत्र कोई भी हो जब कोई व्यक्ति सफल होता है तो उसके पीछे उसकी कुछ ख़ास आदतें या गुण होते हैं | atootbandhann.com का प्रयास रहा है कि अपने पर्सनालिटी डीवैलपमेंट सेक्शन में उन शख्सियतों के गुणों की भी चर्चा की जाए , जिससे हम सब सब उन गुणों को अपने व्यक्तित्व में शामिल कर सकें | यहाँ पर ये बाध्यता नहीं है कि हम व्यक्ति को पसंद करते  हैं कि नहीं पर आत्म विकास की राह में गुण ग्राही होना पहली शर्त है | प्रधानमंत्री मोदी जी के आलोचक भी उनकी लोकप्रियता और एक चायवाले से प्रधान मंत्री बनने की सफल यात्रा से इनकार नहीं कर सकते | अक्षय कुमार द्वारा लिए गए इंटरव्यू से कुछ ऐसेही आत्मविकास और  सफलता के सूत्र ले कर आई हैं नीलम गुप्ता जी …. प्रधानमंत्री मोदी -अक्षय कुमार  इंटरव्यू से सीखने लायक बातें    फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार द्वारा लिया गया प्रधानमंत्री मोदी का इंटरव्यू आजकल चर्चा में हैं | वैसे तो ये गैर राजनैतिक इंटरव्यू है पर इसका प्रभाव राजनैतिक दृष्टि से भी पड़ेगा इस संभावना  से इनकार नहीं किया जा सकता | ये  वीडियो वायरल हो गया है | जाहिर है पक्ष –विपक्ष वाले दोनों इसे देख रहे हैं और अपने –अपने हिसाब से आकलन कर रहे हैं | लेकिन मैं ये कहना चाहूँगी कि आप मोदी जी के पक्ष में हो या विपक्ष में लेकिन अगर इस इंटरव्यू से कुछ बातें सीखने को मिल रही हैं है तो उनसे सीखने में क्या हर्ज है | हम और आप में से बहुत से लोग फेंकू कह कर मोदी जी पर हंस सकते हैं पर उन शिक्षाओं पर अगर धयन दें तो अपने निजी जीवन में कुछ गुण जोड़ सकते हैं | तो आइये सीखते हैं … जिन्न पर नहीं कर्म पर भरोसा रखो प्रधानमंत्री मोदी के इंटरव्यू में अक्षय कुमार का एक प्रश्न और उसका जवाब मुझे बहुत अच्छा लगा |  प्रश्न था कि अगर आपके हाथ में अलादीन का चिराग आ जाए तो आप क्या माँगेंगे | आम तौर पर इसी उत्तर की उम्मीद की जा सकती है कि ये मांगेंगे वो माँगेगे और क्योंकि बात मोदी जी कई है चुनाव का माहौल है तो मुझे उम्मीद थी कि वो कहेंगे कि अपने देश की खुशहाली मांगेंगे , बच्चों की शिक्षा या जवानों और किसानों के लिए कुछ मांगेंगे | परन्तु मोदी जी का उत्तर इन सबसे जुदा था | उन्होंने कहा कि , “ वो जिन्न से मांगेंगे कि जहाँ कहीं भी लिखी हैं उन सब को मिटा दो , कि कोई ऐसे शक्ति होगी जो हमें बैठे –बैठे सब कुछ दिला देगी , ऐसी कहानियाँ बच्चों को नकारा बनाती हैं | उन्हें सिर्फ ऐसी कहानियाँ सुनानी चाहिए कि जितनी मेहनत करोगे उतना ही फल मिलेगा | मुझे याद है कि कुछ समय पहले ऐसी ही एक फिल्म बनी थी सीक्रेट … उसके ऊपर सीरिज़ में किताबें भी आयीं , बेस्टसेलर बनी खूब बिकीं | “Law of attraction” का नशा यूथ के सर चढ़ कर बोलने लगा | ऐसी ही मेरी एक रिश्तेदार की बेटी है जो उन दिनों कहा करती थी कि उसने सीक्रेट से लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन सीख लिया है जिसे वो प्रयोग में लाती है , उसका IIT में अवश्य चयन हो जाएगा | वो ज्यादा पद्थी नहीं थी पर उसे उस किताब की विज्युलाइजेशन टेक्नीक पर भरोसा था | वो रात को सोते समय रोज सोचती की वो IIT दिल्ली में पढ़ रही है , उस थ्रिल को , उस ख़ुशी को महसूस करती और सो जाती |  मैंने उसे समझाया भी कि जितने लोग सेलेक्ट हुए हैं उन्हें उस परिणाम से तो प्यार् था ही , वो सपनों में तो अपने को वहाँ देखना चाहते ही थे पर उसके लिए कड़ी मेहनत  भी करते थे | क्या तुमने कभी किसी चयनित उमीदवार  का इंटरव्यू नहीं सुना ? उनमें से किसी ने नहीं कहा कि वो सब उन्हें सपने देखने से मिल गया | सबने एक ही सूत्र बताया , मेहनत , मेहनत  और मेहनत | “वो मूर्ख थे “कहते हुए उसने मेरी बात काट दी | अगर यह सब कुछ बिना मेहनत के ही मिल जाए तो वो मूर्ख ही तो कहलायेगा जिसने उसके लिए जान झोंक दी | कुछ समय बाद जब रिजल्ट निकला तो उसका कहीं चयन नहीं हुआ था , साथ ही बारहवीं के बोर्ड एग्जाम में भी उसके बहुत कम नंबर  आये थे | उसने मुझसे कहा कि मैंने विज्युलाइजेशन टेक्नीक तो अपनाई थी पर मेरे मन में कहीं न कहीं यह विश्वास भी था कि मैं पढ़ तो रही नहीं हूँ , क्या ये टेक्नीक वर्क करेगी | मैंने कहाँ यहीं पर किताब में झोल है , वो विश्वास पढने से या मेहनत करने से ही आता है | हमारे दिमाग की कार्यविधि ही ऐसे है | कहते हैं कि हमारे दिमाग का एक हिस्सा रेपटीलियन ब्रेन होता है | जिसे सुस्त  और आलसी रहना पसंद हैं | कभी देखा है घड़ियाल या मगरमच्छ को घंटों एक जैसा पड़े हुए … वैसे ही हमारा दिमाग हर चीज यूँ ही पड़े –पड़े प्राप्त कर लेना चाहता है, या थोडा सा परिश्रम करने के बाद फिर अपने आलसी मोड में आ जाता है | जो लोग बहुत मेहनत करते हैं वो सब अपनी विल पॉवर का इस्तेमाल करते हैं | ऐसी कहानियाँ , किताबें फिल्में हमारी विल पॉवर को कमजोर करती हैं और दिमाग को फिर सुस्त हो जाने  को विवश करती हैं | बेहतर हो हमारे बच्चे , युवा , बुजुर्ग भी ऐसी कल्पनाओं से बचें ताकि जीवन के यथार्थ को समझ सकें … और मेहनत  में विश्वास कर सकें |  सामूहिक खेलों से बढती है टीम भावना                           आजकल बच्चे टी वी या फिर फोन में उलझे रहते हैं | पार्क में खेलने के स्थान पर बच्चे वीडियो गेम्स की ओर झुक रहे हैं | लेकिन ये एकांत प्रियता उनके सर्वंगीड विकास में बाधा है |  बच्चे जब वो खेल खेलते हैं जिसमें टीम हो तो वो बहुत सी चीजें सीखते हैं | जैसे … उनमें परस्पर सहयोग … Read more

भविष्य का पुरुष

एक शब्द है संस्कार … ये कहने को तो महज एक शब्द है पर इस पर किसी व्यक्ति का सारा जीवन टिका होता है | एक माँ के रूप में हर स्त्री के लिए जरूरी है कि अपने बेटों को संस्कारित करें , तभी भविष्य का पुरुष एक संतुलित व्यक्तित्व के रूप में उभरेगा | भविष्य का पुरुष  नलनी के हाथ तेजी से बर्तनों को रगड़   रहे थे | उसे सिंक भर बर्तन धोने में पन्द्रह मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता | करीब दस  घरों में काम करती हैं | सुबह सात बजे की निकली रात सात बजे घर पहुँचती हैं | दम मारने की फुर्सत नहीं हैं , करे भी तो क्या , अकेली कमाने वाली है | तीनों बच्चे पढने वाले हैं और पति ….उसे तो वो खुद ही छोड़ आई हैं | अक्सर अपना किस्सा सुनाती है , मेरा आदमी बहुत पीटता था भाभी , गांजे के नशे का आदी हो गया था ,अपनी कमाई और मेरी सभी उड़ा देता था | फिर भी इस आशा में पिटती रही किएक दिन सब ठीक हो जाएगा | बच्चे बड़े हो रहे थे और मेरी प्रतीक्षा धैर्य छोड़ रही थी | एक दिन फैसला कर लिया कि अब नहीं पिटना है |बस तीनों बच्चों को लेकर चली आई | अब तो अकेले ही काम करके बच्चों को पाल रही हूँ | ऐसा कहते हुए उसकी आँखों में स्वाभिमान की चमक दिखाई देती |  कितनी भी तेजी से उसके हाथ काम करें पर नलिनी हर घर की भाभियों , दीदीयों , आंटियों से बात करने का समय निकाल ही लेती है | बात भी कैसी ? … ज्यादातर उसे अपने घर के किस्से सुनाने होते | उसके घर के किस्सों में किसी की रूचि हो न हो पर उन्हें कह -कह कर कभी उसका दुःख निकल जाता तो कभी ख़ुशी दोगुनी हो जाती |  अधिकतर घरेलु औरतें से उसका एक दोस्ती का रिश्ता हो जाता , ठाक वैसे ही जैसे ऑफिस में काम करते समय हम अपने साथ काम करने वालों से घुल -मिल जाते हैं चाहें वो बॉस ही क्यों ना हो |  उस दिन नलिनी अपने छोटे बेटे और बेटी के झगड़ने का किस्सा सुना रही थी | उसकी आवाज़ में उत्साह था , ” भाभी कल मेरे बेटे ने बिटिया को इतना मारा कि पूछो मत , दोनों भाई बहन में बहुत ही कुत्तम -कुत्ता हुई |  “क्यों मारा ?” शालिनी ने दाल का कुकर खाली  करते हुए पूछा  ” क्या बताये भाभी , चार घर छोड़ के अम्मां रहती हैं , आजकल वहां छोटी बहन आई हुई है | बिटिया ने जिद पकड़ ली कि जब तक मौसी हैं मैं वहीँ रहूंगी | अब छोटा बेटा जो उससे पांच साल छोटा है उसी का पाला हुआ है उसे उसके बिना घर में अच्छा नहीं लग रहा था , तो लगा रोकने | अब रोकने का सही तरीकतो आता नहीं … चोटी पकड के खींच दी , यहीं रह , नहीं जायेगी तू  नानी के घर | बिटिया भी कहाँ कम है , जिद पकड ली कि वो तो जायेगी ही | अब तो बेटे का गुस्सा सर चढ़ कर बोलने लगा | मारते -मारते बिटिया को जमीन पर गिरा दिया …पीटता जाये और बोलता जाए , तुझे नानी के घर नहीं जाने दूंगा | मुझे यहाँ तुम्हारे बिना अच्छा नहीं लगता , देखें कैसे जायेगी |  बिटिया किसी तरह से निकल कर भाग कर नानी के यहाँ पहुँच गयी | तो पीछे -पीछे पहुँच गया … नहीं रहेगी तू यहाँ , मुझे अकेल घर में अच्छा नहीं लगता … फिर खींच के  ले ही आया |  भाभी हमारे हाते में सब कह रहे थे , ” देखो कितना प्यार करता है अपनी बड़ी बहन से , अकेले अच्छा नहीं लगता है बहन के बिना , बेटे के प्रति गर्व माँ की आँखों में उतर आया |  प्यार या … शालिनी के लब थरथरा उठे| क्या भाभी जी ? ” ये प्यार नहीं है , अधिकार की भावना है , और अधिकार भी कैसा कि मार के पीट के चाहें जैसे रह मेरी इच्छा के अनुरूप ही रहे  | इसे अभी से रोको नलिनी , जो हाथ बहन पर उठ रहा है कल बीबी पर उठेगा … क्योंकि उसने प्यार की यही परिभाषा समझ रखी है | ११ साल का हो गया है इतना बच्चा भी तो नहीं है अब | समझाओ उसे , नहीं तो अपने पिता जैसा ही निकलेगा |” नलिनी ने शालिनी की तरफ घूर कर देखा , फिर चुपचाप बर्तन साफ़ कर चली गयी |  दो दिन तक नलिनी काम पर नहीं आई | शालिनी ने फोन करके उसकी माँ से पूछा |  ” उसने आपके यहाँ काम छोड़ दिया है , कह रही थी कि मेरे मासूम बेटे में ऐब ढूँढतीं हैं | भाई बहन के प्यार में पति -पत्नी की तकरार खोजतीं हैं | कहिये तो मैं आपके यहाँ काम करूँ | “ “बताउंगी” कहकर शालिनी ने फोन रख दिया |एक सवाल उसके सामने आ कर खड़ा हो गया | भविष्य का पुरुष कैसा होगा इसकी जिम्मेदारी एक माँ की होती है और अक्सर माएं अपना कर्तव्य ठीक से नहीं निभाती हैं |  …………………….                    ………………….                      …………….. पितृसत्ता को कोसने से ही काम नहीं चलेगा , पितृसत्ता के इस विकृत स्वरुप में स्त्रियों का भी योगदान है | एक पुरुष को स्त्री जन्म ही नहीं देती , उसे आकर भी देती है , बहनों से उसकी मारपीट पर स्वीकृति , घर में काम ना करने की स्वीकृति और बहने से ज्यादा अच्छा भोजन में स्वीकृति देकर वो भावी पुरुष अहंकार को पोषित करती है | अगर हम चाहते हैं कि भविष्य में हमारी बेटियों को अच्छे सुलझे विचारों वाले पति मिलें तो उसका निर्माण हर माँ को आज ही करना होगा |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … कोई तो सुनले मक्कर पेंशन का हक़ जब झूठ महंगा पड़ा ब्रेकअप के बाद जिन्दगी आपको  लघु कथा  “भविष्य का पुरुष  “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | … Read more

जब राहुल पर लेबल लगा

“यार अपने रंग का कुछ तो करो, थोड़ी फेयर एंड लवली ही लगा लिया करो , ये रंग तो तेरा उलटे तवे जैसा हो रहा है … रात को बच्चों को डराने के काम आएगा “कोई एक किसी महफ़िल में ऐसा कहता है और सब हंस पड़ते हैं, इस बात की चिंता किये बिना कि सुनने वाले को कैसा लगा रहा है | क्या वो अपने ऊपर लगे काले रंग या कम सुंदर होने के लेबल को आसानी से धो पायेगा या सारी जिन्दगी उसका आत्मविश्वास इस लेबल के नीचे दबा हुआ रह जाएगा …रंग का तो नहीं पर एक लेबल राहुल पर भी लगा था …आइये जाने उसने क्या किया … प्रेरक कथा –जब राहुल पर लेबल लगा “बेटा राहुल ,राहुल, चलो जल्दी तैयार हो जाओ आज हम सब को तुम्हारे स्कूल जाना है |क्लास फोर में पढने वाले राहुल ने उनींदी आँखें खोली, कहना तो चाहता था कि आज नहीं मम्मी पर कह ना सका ,जानता था जाना तो पड़ेगा ही, इसलिए चुपचाप उठ कर ब्रश करने लगा | राहुल की स्कूल टीचर ने आज उसके माता -पिता को स्कूल में बुलाया है | वो समझ रहा था कि उसकी कोई कोई शिकायत करने के लिए उसकी टीचर ने उसके माता -पिता को बुलाया है | पर क्या ? वो तरह -तरह के ख्याल करता रहा कि उसमें कुछ तो कमी है | पता नहीं टीचर माता -पिता को क्या बतायेंगी ? पता नहीं माता -पिता को कैसा लगेगा ? क्या पता आज मेरे -माता -पिता का सर मेरे कारण झुक जाए | सोचते ही वो उदास हो गया | नियत दिन पर राहुल अपने पेरेंट्स के साथ स्कूल गया | टीचर ने राहुल के मार्क्स दिखाते हुए कहा , “देखिये हर सब्जेक्ट में कम नंबर आये हैं , यहाँ तक की अंग्रेजी में भी , जबकि आज कल इंग्लिश मीडियम स्कूल में बच्चों के इंलिश में बहुत कम पढ़ कर भी इससे ज्यादा मार्क्स आ जाते हैं क्योंकि पूरा एनवायरमेंट इंग्लिश का ही होता है … फिर भी “ टीचर ने उसके पेरेंट्स की आँखों में आँखे डालकर सहानुभूति से कहा , ” माफ़ कीजियेगा, मुझे कहना पढ़ रहा है कि आप का बेटा धीमे सीखता है |” उफ़ , slow learner, यानि उसका माइंड और बच्चों से कम है , राहुल का सर शर्म से झुक गया | पता नहीं ये सुन कर उसके पेरेंट्स को कैसा लगा होगा ये जानने के लिए उसने पहले ने माँ की तरफ देखा , फिर पिता की तरफ …. उसने सोचा था कि दोनों के सर झुके हुए होंगे पर उसकी आशा के विपरीत दोनों मुस्कुरा रहे थे , | पढ़ें –मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ मदद के नहीं रास्ते भर उसके दिमाग में वो शब्द घूमता रहा …. धीमे सीखने का सीधा -सीधा मतलब वो मूर्ख है , वो सीख ही नहीं सकता, वो पढ़ ही नहीं सकता, घर आ कर वो अपने बिस्तर पर लेट कर खुद को कोसने लगा |मम्मी पापा के बुलाने के बाद भी उसने खाना नहीं खाया | पर उन्होंने उस समय उससे कुछ कहा नहीं , ना ही खाना खाने की जबरदस्ती की | शाम को मम्मी -पापा उसके कमरे में गए | उनके हाथ में एक कागज़ था | उन्होंने कहा , ” राहुल आज हम जानते हैं कि तुम परेशान हो, हमें भी तुम्हारी टीचर के कहे के बारे में तुसे बात करनी है | वही कि मैं धीमे सीखता हूँ , मैं मूर्ख हूँ , मैं अपनी जिन्दगी में कुछ नहीं कर पाऊंगा , राहुल ने तपाक से कहा | हाँ , कहकर उन्होंने उस कागज़ पर ‘धीमा सीखना’ लिखा , फिर उसके दो … चार , कई टुकड़े तब तक किये जब तक कागज़ चिंदी -चिंदी नहीं हो गया | राहुल को आश्चर्य में देखते हुए देखकर वे बोले , ” राहुल हम तुम्हारी टीचर की इस बात से सहमत नहीं हैं कि तुम धीमा सीखते हो | हम इस बात को गलत सिद्ध करना चाहते हैं , क्या तुम हमारा साथ दोगे ? राहुल ने ‘हाँ’कहा | अब उन्हने राहुल को रोज पढाना शुरू किया राहुल ने भी मेहनत बढ़ा दी | अगले रिजल्ट में राहुल पूरी क्लास में सेकंड आया | राहुल ने टीचर को गलत सिद्ध कर दिया | ऐसा उसके माता -पिता की समझदारी की वजह से हुआ की वो अपने ऊपर लगे लेबल से बाहर निकल पाया | ——————————————————————- मित्रों , इस कहानी का दूसरा अंत भी हो सकता था … राहुल फेल हो जाता … उसका मन पढने से हट जाता, वो पढाई ही छोड़ देता … या निराश होते होते एक दिन … जरा सोचिये , हममे से कितने लोग हैं जो दूसरों द्वारा खुद पर लगाए लेबल को सही मान लेते हैं और प्रयास ही छोड़ देते हैं ? और उनकी बात को सही सिद्ध कर देते हैं | लोग कहते हैं रंग दबा है … हम असुन्दर मान लेते हैं लोग कहते हैं ये काम तुमसे नहीं होगा …हम प्रयास छोड़ देते हैं | लोग कहते हैं तुम तो बोल ही नहीं पाते … हमें दूसरों के सामने बोलने से डर लगने लगता है | क्या येसही है ? यकीनन नहीं फिर भी हम सब लोग दूसरों द्वारा अपने ऊपर लगाए गए लेबल को स्वीकार कर लेते हैं , कोई प्रतिकार नहीं करते … एक युद्ध बिना लड़े हार जाते हैं | याद रखिये हर समय राहुल के माता -पिता जैसे लोग साथ नहीं होंगे | हमें खुद ही ये लेबल हटाने हैं | कोई भी हमारे बारे में कुछ भी कहे , उससे ज्यादा जरूरी है कि हम अपने बारे में क्या कहते या सोचते हैं | नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें …… डॉक्टर साहब वो भी नहीं था  यकीन  दूसरी गलती   आपको  कहानी  ”  जब राहुल पर लेबल लगा “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, motivational stories, label, personalty tags

रीता की सफलता

सफलता और असफलता केवल एक सिक्के के दो पहलू हैं | आपके माता -पिता के लिए आपकी सफलता से कहीं ज्यादा आप अनमोल हो | आखिर रीता को ऐसी क्या बात समझ में आ गयी जिससे  उसके जीवन की सफलता के मायने ही बदल गए | प्रेरक कथा -रीता की सफलता  ये उस ज़माने की बात है जब हाईस्कूल  रिजल्ट ऑनलाइन नहीं निकलते थे | छात्रों  को मात्र एक संभावित तिथि पता होती थी | उस दिन से एक दो दिन पहले से बच्चों के दिल की धड़कने बढ़ जाया करती थीं | बच्चों और उनके घरों में रिजल्ट की प्रतीक्षा  बढ़ जाती |रिजल्ट के F, S और Th बस तीन अक्षर बच्चों की ख़ुशी मात्र को निर्धारित करते | फेल  होने वाले छात्रों का रोल नंबर नहीं चाप होता था | वो बच्चे निराशा में डूब जाते , तब घर वाले तरह -तरह के प्रयास कर उन्हें , ” अरे तो क्या हुआ अगले साल पास हो जाओगे कहकर सँभालने का प्रयास करते | ये वो समय था जब रिजल्ट माता -पिता की प्रेस्टीज का इशु नहीं हुआ करता था | पर बच्चे तो उत्साहित या निराश हुआ ही करते थे |   “निकल गया भाई निकल गया , हाई स्कूल  का रिजल्ट निकल गया ” कहते हुए  जब सड़क  से होकर गुजरता था तो ना जाने  कितनी घरों की साँसे थम जाया करती थीं | बच्चे जिन्होंने हाईस्कूल  का एग्जाम दिया है वो ना रात देखते ना दिन उसी समय सड़क पर दौड़ लगा पड़ते | लडकियाँ जो रात -बिरात घर से नहीं निकल पातीं | भाइयों की चिरौरी में लग जातीं | भाई पहले तो भाव खाते फिर  मान मनव्वल करके निकल पड़ते साइकिल वाले लड़के की खोज में जिसके पास होता उसी समय  प्रकाशित हुए परीक्षाफल वाला अखबार | उसी दौर में एक लड़की थी रीता  | जिसने पूरे साल फर्स्ट डिवीजन  लाने के लिए बहुत मेहनत की थी | सारे इम्तिहान सही जारहे थे  , बस विज्ञान का पर्चा बचा था |  उस दिन हिंदी का पर्चा था |  पर्चा बहुत ही अच्छा हुआ था | घर लौटते हुए वो इम्तिहान खत्म होने के बाद मौसी के घर जा कर , अपने मौसेरे भाई -बहनों के साथ खूब मस्ती की योजनायें बना रही थी |  तभी तवे की  टनटनाहट ने उसका ध्यान खींचा | गोलगप्पे उसकी जुबान में खट्टा चटपटा स्वाद उतर आया | गोलगप्पे की तो वो दीवानी थी |  एक रुपये के पांच गोलगप्पे मिला करते थे उन दिनों और वो  दो तीन रुपये से कम के तो खाती ही नहीं थी | भैया दो रुपये के गोलगप्पे दो कहते हुए उसे ख्याल तक नहीं आया कि माँ ने मना किया है कि इम्तिहान वाले दिन बाहर की चीज मत खाना , तबियत खराब हो गयी तो पछताना पड़ेगा | धडाधड गोलगप्पे खाए और निकल पड़ी घर की ओर | शाम से ही पेट में दर्द होने लगा | उलटी और दस्त का जो सिलसिला शुरू हुआ वो एग्जाम रुका नहीं | जैसे -तैसे एग्जाम देने गयी | पर ठीक से पर्चा लिखा नहीं जा रहा था | जितना कुछ लिख पायी , लिख दिया |फेल होने की पूरी सम्भावना थी | रोते हुए घर लौटी | माँ से  लिपट करतो घिग्घी  ही बंध गयी | रोते हुए बोली , ” माँ मुझे माँ कर देना , मैं पास नहीं हो पाउंगी |” रीता को सबसे ज्यादा दुःख था अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे ना उतर पाने का | माँ बचपन से ही उसे अच्छे नंबर लाने को कहती थीं , और पिताजी ने ट्यूशन , किताबों आदि पर अपनी सीमा से ज्यादा खर्च किया था | और वो … वो उनको क्या दे रही है | माँ ने उसे सीने लगा लिया | अकेली बेटी थी बड़ी मन्नतों बाद हुई थी | उसको यूँ निराश देखकर शब्द ही साथ छोड़ रहे थे | दो महीने बहुत ही निराशा से कटे | माँ कोे बेटी के दुःख का अंदाजा था | वो खुद ही हर रोज उसकी सफलता की दुआएं मांगती , पर रिजल्ट से कुछ दिन पहले माँ ने ये सोच कर उसे मौसी के यहाँ भेज दिया कि अचानक से फेल की खबर पर वहां भाई -बहन उसे संभल लेंगे | उसने तय कर लिया था कि वो रिजल्ट निकलने के अगले दिन ही घर आ जायेगी | तय तिथि पर रिजल्ट निकला | शाम को अपने मौसेरे  भाई के साथ घर आते ही वो माँ से चिपक गयी | माँ … ओ माँ मेरी फर्स्ट डिविजन आई है | लगता है और पेपर में नंबर इतने अच्छे आये कि  विज्ञान का पेपर ख़राब होने के बाद भी फर्स्ट डिविजन बन  गयी | माँ ने भी हुलस कर उसे गले से लगा लिया | रीता ने  अंदर आ कर देखा | खाने की मेज पर तरह -तरह के व्यंजन लगे हुए हैं | जैसे घर में कोई पार्टी हो | उसने डोंगों की प्लेट हटा कर देखा , सारे उसी के पसंद के व्यंजन थे | वो समझ गयी कि पार्टी उसी के लिए हैं | तभी उसने एक डोंगा खोला , उसमें एक परचा रखा हुआ था | जिसमें कुछ लिखा हुआ था | मेरी प्यारी बेटी रीता ,                       मुझे पता था कि तुम जरूर सफल होगी | आखिर तुमने मेहनत जो इतनी की थी | एक पेपर बिगड़ क्या तो भी तुम्हारी सफलता तय थी  | ये तुम्हारे जीवन की पहली सफलता है | इस पहले कदम को अपनी सफलता के भवन की नींव समझो और कदम दर कदम आगे बढ़ो |                                                                                 ढेर सारे प्यार के साथ                                                                                    तुम्हारी … Read more

ब्रेकअप के बाद जिन्दगी

ब्रेकअप यानि किसी रिश्ते का खत्म होना , ये प्रेम का खत्म होना बिलकुल भी नहीं है |  अक्सर लोग निराश हो जाते हैं और जिंदगी ही खत्म करने की सोचने लगते हैं | एकता के साथ भी ऐसा ही हो रहा था फिर ऐसी क्या समझदारी दिखाई एकता ने ब्रेकअप के बाद…. ब्रेकअप के बाद  जिन्दगी  इलाहाबाद में पली बढ़ी  एकता की साँसों में इलाहाबादी अमरूदों की खुशबु मिली हुई थी और    और जुबान में अमरुद् सी मिठास  | माँ -बाबूजी के प्यार का  संगम  , घर में रोज ढेर सारे रिश्तेदारों का आना -जाना , दीदी . भैया से रूठना , मनाना , खट्टे -मीठे झगडे और उनके पीछे छिपा ढेर  सारा प्यार और अपनापन  जीवन की यही परिभाषा जानती थी एकता | दुःख तो दूर से भी नहीं छू गया था उसे | नटखट चंचल एकता पढाई में भी शुरू से बहुत होशियार थी | एक दिन उसकी मेहनत रंग लायी और उसका चयन मुंबई के मेडिकल कॉलेज में हो गया | घर में ख़ुशी की लहर दौड़ उठी | दूर -दूर से रिश्तेदारों के फोन आने लगे | खुशियाँ जैसे खुद ही उसके दामन में भर जाना चाहती थीं | पर यही वो समय था जब उसे अपने परिवार से दूर जाना था | स्नेह के आंचल में पली -बढ़ी एकता घबरा तो बहुत रही थी परिवार से दूर रहने के नाम पर | लेकिन अपने कैरियर के लिए जाना तो था ही | उसका  का सामान बांधा जाने लगा | माँ ने ढेर सारे लड्डू , आचार , पंजीरी आदि भी बाँध दिए | क्या पता उनकी लाडली को वहां का खाना पसंद आये या ना आये | बाबूजी ढूँढ -ढूंढ के सामान ला कर ले जाने वाले सामानों के साथ रखने लगे | कई सामानों को ढूँढने में तो उन्होंने सारा इलाहाबाद छान मारा था | कितना हँसी  थी वो , ” अरे  आप लोग तो ऐसे तैयारी कर रहे हैं जैसे ससुराल जा रही हूँ , हॉस्टल ही तो जा रही हूँ |” जवाब में माता -पिता के साथ खुद उसकी आँखें भी गीली हो गयी थीं | मुंबई नया शहर ,नयी पढाई , नया जीवन | कभी माँ के खाने की याद आती , कभी भाई -बहनों के साथ की शरारतों की , तो कभी पिता का विश्वास , ” परेशांन  क्यों होती हो , मैं हूँ ना ” मन को भिगो देता था | धीरे -धीरे उसने खुद को संभाल  ही लिया | कुछ लड़कियों से दोस्ती भी हुई | सबकी आँखों में एक ही सपना था पढने का , आगे बढ़ने का | हॉस्टल में तो नहीं , हाँ कॉलेज में उसे थोड़ी दिक्कत आती थी | को. एड. जो था | अभी तक तो गर्ल्स स्कूल में ही पढ़ी थी वो | फिर इलाहाबाद शहर भी तो ऐसा था , जहाँ खुलापन इतना नहीं था , भाई लोग भी थे जिनके साथ आना -जाना हो ही जाता था | लड़कों को भैया के अतिरिक्त दोस्त भी समझा जा सकता है ये उसकी परिभाषा में नहीं था | लड़कों से बात करने में एक स्वाभाविक हिचक से गुज़रती थी वो | उसी के क्लास में एक लड़का था सौरभ | अपने नाम की तरह अपनी हँसी की खुशबु  लुटाता हुआ |  सौरभ ने ही उसके आगे दोस्ती का हाथ बढाया था , पर उत्तर में अपने में ही सिमिट गयी थी वो | समय के साथ वो लड़कों से थोडा -थोडा बात करने लगी पर सौरभ के सामने आते ही हकला जाती | इसी तरह पूरे दो साल बीत गए | सौरभ रोज उससे मिलना और बात करना नहीं भूलता | क्लास में उनके दबे -छुपे चर्चे होने लगे | खुद उसका मन भी प्रेम के रेशमी अहसास से खुद को कहाँ मुक्त कर पा रहा था | अब तो अकेले कमरे में भी सौरभ हमेशा साथ रहता , भले ही यादों के रूप में | थर्ड इयर के फाइनल सेमिस्टर के बाद  जब सौरभ ने उससे  साथ में कॉफ़ी पीने को कहा तो वो इनकार ना कर सकी | बातों  ही बातों में सौरभ बोला , ” अरे मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा तुम ने मुझ से I Love You कहा |” एकता ने हतप्रभ होते हुए कहा , ” अरे , ऐसा कैसे , मैंने ऐसा तो  नहीं कहा |” सौरभ मुस्कुराया , “तो अब कह दो ना !!!” एक दिलकश हँसी के साथ प्रेम की पहली बयार की खुशबु वातावरण में फ़ैल गयी | अगले दो साल …. प्रेम के दिन थे और प्रेम की रातें | वो एक दूसरे से घंटों बातें करते | साथ -साथ घूमने जाते | एक दूसरे  की तस्वीरे खींचते , प्रेम पत्र लिखते | कॉलेज में उनके प्रेम की किस्से सब को को पता थे | कॉलेज के फेयर वेल  के बाद जब उन्हें अपने -अपने घर जाना था तो उन्होंने एक दूसरे से वादा किया कि जल्द ही अपने माता -पिता को मना लेंगे और हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जायेंगे | इलाहाबाद लौट तो आई थी वो पर मन सौरभ के ही पास रह गया था | उसने सौरभ से कह रखा था , पहले तुम अपने माता -पिता से बात कर लेना , फिर मैं कर लूंगी | सौरभ ने भी तो हामी भरी  थी पर मुंबई से कलकत्ता जाने के बाद ना जाने क्यों वो इस सवाल को टालने लगा था | धीरे -धीरे उसके फोन ही आने कम हो गए | एकता के हिस्से में केवल इंतज़ार था | नटखट चंचल एकता मौन हो गयी | गुलाब के फूल सा चेहरा मुरझाने लगा | माँ -पिताजी पूंछते तो काम का प्रेशर बता कर बात टालती थी | हालांकि कि वो जानती थी कि हॉस्पिटल के लम्बे घंटों की ड्यटी भी उसे उतना नहीं थकाती , जितना एक पल का ये ख्याल कि कहीं सौरभ उसे भूल तो नहीं गया |उसका फोन सौरभ उठाता नहीं था , खुद उसका फोन आता नहीं था | मन अनजानी आशंकाओं से घिरने लगा था | सौरभ ठीक तो है ना ? लम्बे इंतज़ार के बाद वो दिन भी आया जब एकता को मेडिकल कांफ्रेस … Read more

छिपा हुआ आम

सुगंध का नियम था कि वो रोज शाम को पार्क में  टहलने जाती | आज मन अशांत था फिर भी नियम ना टूटे इस लिए चली गयी , पर मन टहलने में नहीं लगा | घर भी नहीं जाना चाहती थी इसलिए वक्त काटने को वहीँ बेंच पर बैठ गयी | ठंडी हवा के झोंकों ने उसके गालों को सहलाया | अंदर का ताप कुछ कम हुआ | इधर -उधर नज़र दौड़ाई | बच्चे खेल रहे थे | बच्चों के खेल में मन कुछ रमा ही था की पार्क के एक कोने की बेंच पर निगाह चली गयी | एक जोड़ा बैठा हुआ था | दुनिया से बेखबर , एक दूसरे में तल्लीन | महिला की मांग का सिंदूर उसके विवाहित होने की गवाही दे रहा था | पकड़ी ना जाये इस भय से सुगंध ने नज़रें हटा लीं | पर नज़र रह -रह कर उधर ही चली जाती | दिल में एक हूक  सी उठती | काश उसका पति मनोज भी उसके साथ आया होता | पर मनोज के पास उसके लिए समय कहाँ था ? इसी बात पर सुगंध और उसके पति मनोज में अक्सर झगड़ा होता रहता था | सुगंध को लगता कि उसका पति उससे प्यार उससे प्यार नहीं करता , उसके साथ घूमने नहीं जाता , उसका ध्यान नहीं रखता , यहाँ तक की ऑफिस ६ बजे बंद हो जाता है पर वो हर रोज ८ -९ बजे आता है |  वहीँ  मनोज कहता कि उससे जान से भी ज्यादा प्यार करता है | दोनों के पक्ष अलग -अलग होते |  अपना दर्द याद आते ही सुगंध की आँखें भर आयीं | पक्षियों का कलरव , बच्चों का शोर , और उस प्रेमी युगल का प्रणय दृश्य सब उसे बेमानी लगने लगे | भारी क़दमों से सुगंध घर की ओर लौट पड़ीं | घर के दरवाजे पर ही पड़ोस की भाभी जी मिल गयीं | कुछ अनमनी सी देख उन्होंने पूँछ लिया ,” क्या हुआ सुगंध , मूड इतना खराब क्यों हैं ? पहले तो सुगंध ने कुछ नहीं कहा  कर बात टालने की कोशिश की , लेकिन उनके स्नेह भरे शब्दों से वो टूट गयी और फूट -फूट कर रोते हुए बोली , ” सब अपने जोड़े के साथ पार्क में जाते हैं और मैं अकेली | ये अकेलापन अब सहा नहीं जाता | थोड़ी ही देर में बात पूरे मुहल्ले में फ़ैल गयी |  जब मनोज घर लौटा तो आस -पास के लोग समझाने लगे कि भाई अपनी पत्नी का भी थोड़ा  ध्यान रखा करो | मनोज उनसे हाँ -हूँ कह कर गुस्से में अपने घर गया | वहाँ वह  आँसूं से तर -बतर थी | उसे उम्मीद थी कि उसका आँसुओं  से भरा चेहरा देखकर मनोज उसे प्यार करेंगे | पर उसका चेहरा देख कर मनोज का तो गुस्सा बढ़ गया | वो चिल्ला कर बोला ,” तो यही नाटक दिखा रहीं थी सब को …. आखिर  साबित क्या करना चाहती हो ? विपरीत अपेक्षाओं के कारण दोनों में जोर -दार झगड़ा हुआ | किसी ने खाना नहीं खाया ना ही कोई  रात भर सोया |  दूसरे दिन मनोज जब ऑफिस से लौटा तो उसने २०,००० रुपये सुगंध के आगे रखकर कहा ,” लो ये रुपये , मजे नहीं कर रहा था , ओवर टाइम कर रहा था तुम्हारे लिए हीरे का हार  लाने के लिए | ताकि जब तुम अपनी बहन की शादी में जाओ तो तुम्हे किसी तरह का मलाल ना रहे |  सुगंध की आँखों में आंसू  थे | वो प्यार के इस रूप से अनभिज्ञ थी |  ——— मित्रों , बात सुगंध और मनोज की नहीं है | झगडे होते ही इस लिए हैं कि दोनों एक दूसरे को समझ नहीं पाते | दोनों में से एक टेक्निकली सही होता है दूसरा प्रक्टिकली |  टेक्निकली सुगंध सही थी | उसका पति उसे समय नहीं देता तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि उसका पति उसे प्यार नहीं करता |  प्रैक्टिकली मनोज सही है | वो उसे वो उसे वो गिफ्ट देना चाहता है जो उसकी बहुत प्रिय है | उस गिफ्ट को देते समय वो उसकी आँखों में वो चमक देखना चाहता है जो हीरे की चमक को भी फीका कर दे |  …………………………. इसी सम्बन्ध में मेरी दादी एक कहानी सुनाया करती थीं |  एक अध्यापक एक बच्चे को गणित सिखा रहा था |  उसने कहा , ”  रोहन मैं पहले तुम्हे दो आम दूँ , फिर दो आम और दे दूँ | अब बताओ तुम्हारे पास कितने आम होंगे ? रोहन – पाँच  बच्चा ठीक से समझ नहीं पाया ये सोच कर अध्यापक चित्र बनाते हैं | फिर रोहन से पूंछते हैं रोहन  बेटा बताओ तुम्हारे पास कितने आम हैं ? रोहन -पाँच  अध्यापक उसे समझाने के लिए अब आम की जगह स्ट्राबेरी का उदहारण लेते हैं | रोहन , मैं पहले तुम्हे दो स्ट्राबेरी देता हूँ फिर दो और देता हूँ | अब तुम्हारे पास कितनी स्ट्राबेरी हैं | रोहन -चार  अध्यापक खुश हो गए | उन्होंने फिर आम का उदाहरण  दे कर प्रश्न पूछा , ” रोहन अब तुम्हारे पास कितने आम हैं |  रोहन – पाँच  अब तो अध्यापक को गुस्सा आ गया | उन्होंने कड़क आवाज़ में पूछा , रोहन जब दो और दो स्ट्राबेरी चार होती है तो दो और दो आम पाँच कैसे हो गए |  रोहन ने कहा , ”  सर मेरे पास एक आम पहले से ही बैग में है | इसलिए जब आप मुझे दो और दो चार आम देते हैं तो मेरे पास पाँच आम हो जाते हैं | पर मेरे पास स्ट्राबेरी नहीं हैं इसलिए दो और दो स्ट्राबेरी मिलकर चार ही रहती हैं |  अब बारी अध्यापक के मुस्कुराने की थी |  टेक्निकली अध्यापक सही थे | प्रैक्टिकली रोहन सही था |  ……………… कई बार यही होता है कि दोनों सही होते हैं पर विवाद थमता नहीं है | क्योंकि दोनों अलग तरीके से रिश्ते को देख रहे होते हैं | एक टेक्निकली सही होता है एक  प्रैक्टिकली| जरूरी है कि रिश्तों में गलतफहमियाँ पालने की जगह हम एक एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करें | क्या पता छिपा हुआ आम … Read more

99 क्लब का सदस्य

बहुत समय पहले की बात है एक राजा अपने मंत्रियों के साथ देश का भ्रमण कर रहा था | ज्यादातर लोग अपनी किसी ना किसी समस्या से परेशान  थे और उसी में उलझे हुए थे | वही उसे एक ऐसा व्यक्ति मिला जो बहुत खुश था | वो दिन भर खेत में कड़ी मेहनत  कर घर लौटता था | उसके कमाई तो ज्यादा नहीं थीं पर आवश्यकताएं सब पूरी हो रहीं थी | घर में प्रेम और विश्वास था | उसके घर के बाहर तक उनके हंसने की आवाजें आती थीं | राजा के मंत्रियों ने राजा से कहा ,” राजन समझ में नहीं आ रहा कि ये व्यक्ति इतना खुश क्यों है ? प्रजा में ज्यादातर लोग धनाभाव का रोना रो रहे हैं पर यह अल्प आय में ही संतुष्ट है | परिवार में भी खुशहाली व् सामंजस्य है | हमारे पास इतना धन है फिर भी हम इसकी तरह से खुश नहीं है | आखिर इसका कारण क्या है ? राजा ने उत्तर देते हुए कहा , “ ये व्यक्ति इसलिए खुश है क्योंकि ये 99 क्लब का सदस्य नहीं है | “ “क्या मतलब ?” मंत्रियों ने समवेत स्वर में पूछा | राजा ने कहा कि ऐसा करो एक थैले में 99 सोने के सिक्के लाकर इसके दरवाजे के बाहर एक थैले में रख दो …. फिर देखना खेल | मंत्रियों  ने वैसा ही किया | सुबह जब उस व्यक्ति ने उठ कसर दरवाजा खोला तो एक थैला रखा हुआ दिखाई दिया | व्यक्ति ने थैला खोल कर देखा तो चौंक गया … उसमें ढेर सारी स्वर्ण मुद्राएं थीं | उसने मुद्राओं को गिनना शुरू किया | 50 तक पहुंचा था कि बीच में पत्नी आ गयी | संख्या भूल गया | पत्नी को मौन रहने का इशारा कर फिर से गिनना शुरू किया | तभी बच्चे आ कर इतनी मुद्राएं देखकर चहकने लगे | गिनने में फिर व्यवधान आया | व्यक्ति ने सबको डांट कर चुप कराया | फिर से गिनना शुरू किया | बड़ी मुश्किल से एक घंटे में वो गिन पाया कि 99 स्वर्ण मुद्राएं हैं | उसे लगा उससे गिनने में कुछ भूल हुई है कोई 99 क्यों देगा सौ क्यों नहीं | फिर से गिना … फिर गिना … 99 ही  थीं | उसे लगा आस –पास ही कहीं गिर गयीं होंगी | उसने ढूँढने की कोशिश की | सहायता के लिए पत्नी व् बच्चों को भी बुलाया | पर मुद्रा नहीं मिलनी थी तो नहीं मिलनी थी | दोपहर हो गयी | खेत में भी पानी देने नहीं जा सका था | बहुत ही निराश मन से उसने वो 99 स्वर्ण मुद्राएं अपनी अलमारी में रख लीं और मन ही मन सोचने लगा कि अब और मेहनत करूंगा और इन्हें पूरी 100 कर लूंगा | अगले दिन से वो बहुत अधिक मेहनत करने लगा | दोपहर का खाना भी नहीं खाता , काम में ही लगा रहता | अलबत्ता शाम को आकर अपनी मुद्राएं गिनना नहीं भूलता | एक दिन उसे दो मुद्राएं कम मिलीं | वो आगबबूला हो गया | फ़ौरन पत्नी को बुलाया | पत्नी ने कहा कि घर  में कुछ जरूरी खर्च आ गया था | मैंने सोचा इतनी मुद्राय्वें तो रखी हैं इन्हीं में से दो ले लेते हैं | मैंने दो मुद्राओं में से ये परदे , खाने का सामान व् एक अंगूठी खरीदी है | व्यक्ति का क्रोध बढ़ गया वो पत्नी पर पहली बार हाथ उठा कर बोला , “ नालायक औरत तेरे पास तो खर्च करने के आलावा कोई काम नहीं है | मैं कितनी मेहनत से इन्हें जमा कर रहा था और तूने बिना सोचे समझे दो उड़ा दी | पत्नी रोने लगी | व्यक्ति को अब तीन स्वर्ण मुद्राएं जमा करनी थीं | उसने मेहनत दुगनी कर दी | इसी बीच उसने देखा कि दो मुद्राएं और कम हो गयीं हैं | इस बार वो मुद्राएं लेने वाले बच्चे थे | बच्चों ने मासूमियत से कहा , “ पिताजी स्कूल की तरफ से आयोजन था | हमने अच्छे कपड़े लिए व् चंदे के लिए भी रूपये दिए | उसी में वो दो मुद्राएंमुद्राएं  खर्च हो गयीं | अब तो उस व्यक्ति के गुस्से का परवार ही न रहा | अब उसे पूरी पांच मुद्राएं जमा करनी थी | सोच कर उसके दिमाग की नसे फटने लगीं |  गुस्से में चिल्लाते हुए उसने अपने बच्चों की पिटाई शुरू कर दी | बच्चे मम्मी बचाओ , मम्मी बचाओ , चिल्लाने लगे | बच्चों को बचाने के चक्कर में दो हाथ माँ को भी लग गए , वो गिर गयी , उसका सर फट गया | माँ का खून देखकर बच्चे पिता पर चिलाने लगे | पूरे घर में कोहराम मच गया | ठीक उसी समय राजा अपने मंत्रियों के साथ उस घर में पहुंचा | मंत्री हैरान थे | जो आदमी अपने परिवार के साथ इतना खुश रहता था | आज उसके घर में इतनी अशांति बिखरी हुई है | आखिर उन स्वर्ण मुद्राओं ने ऐसा क्या कर दिया ? राजा मुस्कुरा कर बोला , “ कुछ नहीं , बस अब ये 99 क्लब का सदस्य बन गया | मित्रों ये एक प्रेरक कथा है , जो हम सब को जीवन का आइना दिखाती है | हम सब भी कुछ जोड़ने के चक्कर में आज की खुशियाँ छोड़ते रहते हैं … मसलन कार आ जाए … ख़ुशी तो उसमें है … इसलिए उसके बाद खुश होऊंगा | बच्चे का अच्छे स्कूल में सिलेक्शन हो जाए  उसके बाद खुश होऊँगा  | IIT में सिलेक्शन के बाद खुश होऊंगा | दादी बन जाऊं असली ख़ुशी तो तब आएगी | खुशियाँ तो रिटायर मेंट के बाद की चीज है |  ये सब यानि  कि हम सब 99 क्लब के सदस्य हैं जो अपनी खुशियाँ कल पर टालते रहते हैं …. इसलिए हमेशा ख़ुशी की कमी पड़ी रहती है | परिवार में झगडे होते हैं , मानसिक अशांति होती है , कई बार काम की अधिकता में शरीर के प्रति लापरवाही इतनी हो जाती है कि अनेक रोग घेर लेते हैं | जब तक वो बहु प्रतीक्षित ख़ुशी मिलती है तब तक हम उसे भोगने लायक … Read more

विश्वास करें ये काम करता है

                                      कल बच्चों का खेल देख रही थी | कुछ ईंटों जैसे ब्लॉक्स थे जो इस प्रकार रखे थे कि एक ईंट हटाते ही उसके आगे की सारी ईंटे एक -एक करके गिरने लगती थीं | जैसे लाल ईंट हटाई तो आगे कि सारी लाल ईंटे एक -एक कर गिरने लगती थीं यही हाल पीली नीली और सफ़ेद ईंटों का भी था | बच्चा बहुत सावधानी से खेल रहा था  क्योंकि एक भी गलत रंग की ईंट गिर गयी तो आगे ढेर सारी गलत ईंटों का गिरना रोका नहीं जा सकता था | थोड़ी देर तक देखने के बाद मुझे लगा ये खेल नहीं जिन्दगी है | कई बार -एक सही या गलत कदम थोड़े समय तक के लिए आगे के रास्ते बिलकुल तय कर देता है …. सारी ईंटे एक ही दिशा में गिरती जाती हैं हम चाह  कर भी रोक नहीं पाते | वो एक सही या गलत ईंट हमारी जिन्दगी की कुछ समय तक के लिए दिशा तय कर देती है | क्या ये सही ईंट गिराना हमारे हाथ में होता है ?कई लोग इसी डर से कि कहीं गलत ईंट ना गिर जाए खेल में प्रवेश ही नहीं करते | बहुत प्रतिभा और क्षमता होते हुए भी किनारे ही खड़े रह जाते हैं | ऐसे समय में बहुत जरूरत होती है किसी ऐसे व्यक्ति कि जो ईंट गिराने को तैयार खिलाड़ी से यह कह दे , ” विश्वास करें , ये काम करता है |” समाज में जितना महत्व सफल व्यक्तियों का है उससे कम महत्व उन व्यक्तियों का नहीं है जो सही ईंट गिराने की प्रेरणा  देते हैं| बहुत छोटे स्तर पर ही सही पर एक दूसरे को प्रोत्साहन देने की, उनमें विश्वास जगाने की ये कड़ी रुकनी नहीं चाहिए | आज एक ऐसी ही प्रेरक कथा ले कर आयीं हैं नीलम गुप्ता जी … विश्वास करें ये काम करता है बहुत समय पहले ही बात है , इक व्यक्ति रेगिस्तान में रास्ता भटक गया |  उसके पास जितना पानी था था खत्म हो गया | प्यास के मारे उसका गला सूख रहा था पर दूर -दूर तक सिर्फ रेत ही रेत दिखाई दे रही थी | तभी दूर उसे एक झोपड़ी नज़र आई | पहले तो उसे लगा कि इस रेतीले इलाके में भला झोपड़ी कैसे होगी , हो न हो ये उसका मति भ्रम है | फिर भी उसके पास उस दिशा में आगे बढ़ने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था | जैसे -तैसे वो अपनी पूरी शक्ति लगा कर आगे बढ़ने लगा | हर कदम पर अगला कदम उठाना मुश्किल हो रहा था | फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी और झोपडी की दिशा में आगे बढ़ गया | जैसे -जैसे वो पास जा रहा था , झोपडी और साफ़ दिखाई देने लगी थी | अब उसे विश्वास हो गया किवहां झोपडी अवश्य है | उम्मीद जगी कि शायद  वहां कोई रहता हो , जो उसे पीने को पानी दे सके व्उसकी प्यास बुझा सके| अब वो बची खुची शक्त का इस्तेमाल कर झोपडी की और बढ़ने लगा | झोपड़ी के पास पहुँचने  पर उसने देखा कि झोपडी के बाहर एक हैंड पंप लगा है | ख़ुशी के कारण उसकी चीख निकल गयी | वो जल्दी से जाकर हैंड पंप चलाने लगा …..पर पानी की एक बूँद भी ना निकली | वो और जोर लगाता …. और जोर ,पर पानी था कि निकलने  का नाम ही नहीं ले रहा था | वो पसीने -पसीने हो गया , उसकी रही सही हिम्मत भी जाती रही | थक हार कर उसने पंप चलाना बंद कर दिया |  उसके शरीर का बहुत सारा पानी पसीने के रूप में निकल चुका था | वो समझ गया कि अब उसका बिना पानी के इस रेगिस्तान से निकलना नामुमकिन है | उसकी आँखें भर आयीं | निराशा में उसने झोपडी केव अंदर कुछ देर विश्राम करने का मन बनाया | वो दुखी मन से जब झोपडी के अंदर गया तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं  रहा , क्योंकि  वहां किसी ने एक हुक से एक बोतल लटका रखी थी जिसमें पानी भरा हुआ था | बोतल में कॉर्क लगी हुई थी | व्यक्ति की जान में जान आई | इतना पानी पी कर कम से कम वो कुछ दूर जा सकता था | आगे शायद और पानी मिल जाए , ये उम्मीद तो थी ही | उसने झटके से बोतल हुक से निकाल ली | वो पानी पीने ही वाला था कि उसे बोतल पर एक स्लिप दिखाई दी | जिसमें लिखा था ,” इस पानी को हैण्ड पम्प के ऊपरी छेद में डाल दें और जाते समय ये बोतल भर कर यहाँ ऐसे ही लटका दें | नोट पढ़कर व्यक्ति घबरा गया | अगर उसने ये पानी भी छोड़ दिया तो उसकी मृत्यु निश्चित है | अगर उसने ये पानी पम्प में डाला और पम्प चल गया तो ना सिर्फ वो पेट भर पानी पी पायेगा बल्कि आगे के रास्ते के लिए भर भी पायेगा | व्यक्ति असमंजस में पड़ गया | क्या करें क्या ना करे | एक तरफ निश्चित मृत्यु दिखाई दे रही थी …. एक तरफ जीवन की सम्भावना थी | बहुत देर तक अपने विचारों में जूझने के बाद उसने पानी पम्प में डालने का फैसला किया | पानी डालने के बाद उसने पम्प चलाया | पम्प से मोटी धार पानी की गिरने लगी | उसने ढेर सारा पानी पिया ,  आगे के सफ़र के लिए पानी अपने पास रखा , उस बोतल में पानी भरा और जब अन्दर बोतल को उसे हुक पर लटकाने आया तो उसे हुक के पास एक नोट दिखाई दिया | उसने गौर से देखा उस नोट में रेगिस्तान से बाहर निकलने का रास्ता दिया हुआ था |  व्यक्ति ने बोतल की कॉर्क बंद करके उसेवैसे ही लटका दिया | वो झोपडी से बाहर निकलने जाने लगा , तभी ठिठका और बोतल उतार कर उस पर चिपके कागज़ के ऊपर उसने उस नोट के आगे लिखने शुरू किया , ” मेरा विश्वास करें ये काम करता है |” उसके … Read more

समस्या या समाधान

समस्याओं को अपने जीवन में आने से नहीं रोका जा सकता …. ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं पर आप समस्या आने पर किस चीज पर फोकस करते हैं समस्या पर या समाधान पर … यही आपकी क्वालिटी ऑफ़ लाइफ तय करता है | समस्या या  समाधान  ये कहानी है एक आदमी की जो किसी काम से दूसरे शहर गया | जाते समय उसे शंका थी कि शायद काम पूरा नहीं होयेगा | जब वो वहां पहुँचा तो ठीक वैसा ही हुआ जैसा उसने सोचा था | काम पूरा ना होने के कारण उसका मन खिन्न था | दुखी मन से वो अपनी गाडी स्टार्ट कर के अपने घर लौटने लगा | रास्तेमें एक पुल पड़ता था , जिसके नीचे नदी बह रही थी | आदमी अपने निराशा जनक ख्यालों में डूबा हुआ था | तभी उसने महसूस किया की गाड़ी थोडा धीमे चल रही है | उसने उतर कर देखा तो गाडी क पीछे वाला एक टायर पंचर था | आदमी को और निराशा हुई | उसे चिंता हुई कि ऐसे तो घर पहुँचने में और देर होगी , यहाँ कोई मेकेनिक भी नहीं है | अंत में उसने खुद ही टायर बदलने की सोंची | उसने पंचर हुए टायर के नटबोल्ट खोले , उन्हें एक तरफ रखा और पहिया निकलने की कोशिश करने लगा | तभी टायर का धक्का लगने से वो चारों बोल्ट नदी में जा गिरे | अब तो उस व्यक्ति की निराशा और बढ़ गयी | वो वहीं सर पकड़ कर बैठ गया और सोचने लगा , अब तो कुछ नहीं किया जा सकता , अब तो उसके पास किसी दूसरी गाडी के इंतज़ार करने के आलावा कोई चारा नहीं था | अपने को कोसते हुए व् तनाव करते हुए वो उस पुल से पास होने वाली किसी गाड़ी का इंतज़ार करने लगा | तभी वहां से एक किसान निकला और उसने पूछा ,” क्या हुआ भैया , कुछ परेशान  दिख रहे हैं ? वह व्यक्ति किसान की तरफ देख कर गुस्से से बोला , ” हाँ परेशान  हूँ , पर आप मेरी मदद नहीं कर सकते , इसलिए अपना काम करें | किसान फिर बोला , ” मैं आप की मदद नहीं कर सकता पर हो सकता है समस्या सुनने के बाद कोई सुझाव तो दे सकूँ | वह व्यक्ति किसान का मन रखने के लिए अपनी बात बताने लगा , कि कैसे उसे टायर के सारे बोल्ट नदी में गिर गए | हालांकि उस व्यक्ति को विश्वास था कि ये किसान उसकी कुछ भी मदद नहीं कर पायेगा | तभी किसान ने कहा , ” अच्छा ये बात है , तो आप का टायर तो वो मेकेनिक लगा देगा जो अगले गाँव के बाहर रहता है | व्यक्ति ने किसान से पूछा , ” अच्छा , पर वहां तक जाऊँगा कैसे ? देखते नहीं मेरी गाड़ी का पहिया पंचर है | किसान बोला , ” जी ये बात मुझे पता है , पर आप ऐसा भी तो कर सकते हैं कि अपनी गाडी के अन्य पहियों से एक -एक नट -बोल्ट खोल कर इस पहिये में लगा दें | ऐसा करने से आपकी गाडी के हर पहिये के पास तीन नट -बोल्ट होंगे | ऐसे आप धीरे -धीरे गाडी चला कर उस मेकेनिक तक पहुँच जायेंगे | व्यक्ति किसान की बात सुन कर आश्चर्य में पड़ गया | उसने किसान को धन्यवाद देते हुए कहा , ” कमल का सुझाव दिया है आपने , मैं वर्षों से गाड़ी चला रहा हूँ पर ये विचार मेरे दिमाग में नहीं आया | आपने शायद ही कभी कोई गाडी चलाई हो फिर भी ये विचार आप के मन मं आ गया | ये तो कमाल है | किसान बोला, ” नहीं , नहीं कमाल की बात नहीं है , दरअसल समस्या से जूझते समय आप का दिमाग केवल समस्या पर था व् मेरा दिमाग समाधान पर था | व्यक्ति किसान की बात से सहमत होकर उसी के अनुसार काम करते हुए धीरे -धीरे अपनी गाडी लेकर दूसरे गाँव की ओर चल पड़ा | मित्रों ये छोटी सी कहानी , बहुत बड़ी बात कहती है | अक्सर हम लोग जब भी किसी समस्या का समाधान ढूंढना चाहते हैं तो हम अपना ध्यान समस्या पर टिकाये रहते हैं | जैसे मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ , मेरा तो भाग्य ही खराब है , अगर ये काम नहीं हुआ तो मेरा क्या होगा …. और उसी को बार -बार सोचते रहते हैं , जबकि समाधान समस्या के ही आस -पास होता है पर हम उस बारे में सोचते नहीं हैं | समस्या के बारे में लगातार सोचने से हमारी उर्जा भी कम हो जाती है और हम समाधान से और भी दूर हो जाते हैं | जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं उन्होंने समस्या के स्थान पर समाधान को सोचने में समय लगाने को चुना है | अटूट बंधन  यह भी पढ़ें …. भाग्य में रुपये मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं वो व्हाट्स एप मेसेज सब कुछ हरा आपको    “ समस्या या समाधान  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, motivational stories,solution