मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं

अमीर लोगों का दिल कई बार बहुत छोटा होता है और गरीबों का बहुत बड़ा | ऐसे नज़ारे देखने को अक्सर मिल ही जाते हैं | परन्तु  कभी  -कभी कोई बहुत छोटी सी बात हमें बहुत देर तक खुश कर देती है और जीवन का एक सूत्र भी दे देती है | मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं किस्सा आज का ही है | यूँ तो दिल्ली में बंदर बहुत है | पर किस दिन किस मुहल्ले पर धावा बोलेंगे यह कहा नहीं जा सकता | जब ये आते हैं तो ये झुंड के झुंड आते हैं | ऐसे में सामान लाना मुश्किल होता है | क्योंकि ये हाथ के पैकेट छीन लेते हैं | पैकेट बचाने की जुगत में काट भी लेते हैं |  आज शाम को जब मैं पास की बाज़ार से सामान लेने गयी तब बन्दर नहीं थे | अपनी कालोनी में घुसते ही बहुत से बंदर दिखाई दिए | मेरे दोनों हाथों में बहुत सारे पैकेट थे , उसमें कई सारे खाने -पीने के सामान से भरे हुए थे | मैं घर के बिलकुल पास थी पर मेरे लिए आगे बढ़ना मुश्किल था | उपाय यही था कि मैं वापस लौट जाऊं और आधा एक घंटा इंतज़ार करूँ जब बन्दर इधर -उधर हो जाए तब घर जाऊं |  तभी एक रिक्शेवाला जो मेरी उलझन देख रहा था बोला , ” लाइए आपको छोड़ दूँ | उसने मेरा सामान रिक्शे में रख दिया , मैं बैठ गयी | मुश्किल से पाँच -सात मिनट का रास्ता था पर मेरी बहुत मदद हो गयी थी इसलिए मैं घर पहुँच कर रिक्शेवाले को धन्यवाद देते हुए २० रुपये का नोट देने लगी |  रिक्शेवाले ने नोट लेने से इनकार करते हुए कहा ,  ” ये मत दीजिये , मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं “|  रिक्शेवाला तो चला गया पर उसका वाक्य मेरे दिमाग में अभी भी बज रहा है … शायद मैं उस वाक्य को जिंदगी भर ना भूल पाऊं | आदमी छोटा बड़ा नहीं होता … दिल छोटे बड़े होते हैं | कुछ खुशियों को पैसे में नहीं तोला जा सकता | वो सबके लिए सुलभ हैं फिर भी मैं , मेरा मुझसे में हम क्या -क्या खोते जा रहे हैं |आज बरबस ही राजकपूर जी पर फिल्माया गीत गुनगुनाने का जी कर रहा है …. किसी को हो न हो हमें है ऐतबार , जीना इसी का नाम है ….. वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये चोंगे को निमंत्रण चार साधुओं का प्रवचन किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ मैं मेहनत के पैसे लेता हूँ , मदद के नहीं  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, motivational stories,Help

ज्ञान , भक्ति , कर्म और क्रिया योग में श्रेष्ठ कौन

                           ज्ञान , भक्ति , कर्म योग और क्रिया योग ये सभी ईश को पाने का साधन हैं | साधक के मन में अक्सर ये प्रश्न उठता है कि इसमें श्रेष्ठ कौन है | ज्ञान , भक्ति , कर्म और क्रिया योग में श्रेष्ठ कौन                                          एक बार की बात है चार युवक एक जंगल में जा रहे थे | उनमें से एक ज्ञान मार्ग का उपासक था , एक भक्ति मार्ग का , एक कर्म मार्ग का और एक क्रिया मार्ग का | वैसे तो ये चारों  अलग -अलग ही रहते थे  क्योंकि हर कोई अपने मार्ग को बेहतर समझता था | ज्ञान मार्ग का उपासक जो बुद्धि पर ज्यादा जोर देता है , उसके अनुसार हर बात तर्क से सिद्ध होनी चाहिए | वो दूसरे मार्ग का अनुसरण करने वालों को हेय  दृष्टि से देखता है , उसे लगता है कि दूसरे सब मूर्ख हैं क्योंकि असली रहस्यों से तो वो उलझता है | भक्ति मार्ग का उपासक अन्य मार्ग वालों पर तरस करता है उसे लगता है कि जब ईश्वर को आसानी से प्रेम करके पाया जा सकता है तो ये सारे नादान लोग अलग -अलग दिशाओं में क्यों भटकते हैं कर्म योगी को ये सभी आलसी लगते हैं उसके अनुसार बिना अन्न उपजाए , घर साफ़ किये , भोजन बनाये ये दुनिया चल ही नहीं सकती , ये सब तो आलसी हैं , कुछ करना चाहते नहीं हैं इसलिए ज्ञान , भक्ति और  क्रिया में उलझे रहते हैं | क्रिया योगी ये मानता है कि ईश्वर को पाने का उपाय यही है कि उर्जा को ऊँचे  तल में ले जाया जाए | अब उर्जा उच्च तल में कैसे जायेगी इसके लिए ध्यान , नियम आदि करने पड़ेंगे | यही क्रिया है | इसके बिना मुक्ति संभव नहीं , अब बैठे बिठाये भजन करने से या ज्ञान बांटने से तो ये होने से रहा |                                                      तो इस प्रकार ये सब अपने मार्ग पर चलते हैं कभी साथ नहीं रहते | परन्तु संयोग ऐसा बना कि जंगल में चारों  साथ थे | तभी तेज आंधी के साथ तूफानी बारिश आई | वो सब आश्रय की तलाश में चल पड़े | पर जंगल में आशय मिलना मुश्किल था | तभी एक प्राचीन मंदिर दिखाई दिया  | मंदिर टूटा फूटा था …. पर बारिश से बचने के लिए वो वहीँ चले गए | पर यहाँ भी बारिश आ रही थी | वो मूर्ति के पास बैठ गए , कुछ छींटे अभी भी पड़  रही थीं | वो मूर्ति से और चिपक कर बैठ गए |  उनका उद्देश्य केवल बारिश से बचना था | तभी ईश्वर प्रकट हो गए |  चारों आश्चर्य में  पड़ गए | सबको लगा कि अभी तो हम कुछ कर भी नहीं रहे थे , फिर ईश्वर आज प्रकट कैसे हुए वो पहले प्रकट क्यों नहीं हुए जब हम अपने -अपने तरीके से उन्हें पाने का प्रयास कर रहे थे | ईश्वर  बोले , ” आश्चर्य में मत पड़ों  | आज मेरे प्रकट होने का कारण ये है कि  तुम चारों  इकट्ठे हो | तुममें  कोई विरोध नहीं है …. मुझे पाने के लिए इसी संयोग की जरूरत है | मित्रों ये कहानी हमने ईशा फाउंडेशन के प्रवचन से ली है | जब सबमें समदर्शना  आ जाये | जब अपने मार्ग स विपरीत मार्ग छोटा न लगे तभी ईश्वर की प्राप्ति संभव है | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये चोंगे को निमंत्रण चार साधुओं का प्रवचन किसान और शिवजी का वरदान आपको    “  ज्ञान , भक्ति , कर्म और क्रिया योग में श्रेष्ठ कौन “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, motivational stories, exam, yoga, gyan, karm, bhakti, kriya yoga

मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ

क्या किसी इम्तिहान में  हार , जिन्दगी की हार है , क्या फिर से कोशिश नहीं की जा सकती ,जबकि हमें पता है कि हर सफल व्यक्ति न जाने कितनी बार सफल हुआ है | एग्जाम के रिजल्ट से निराश हुए बच्चों के लिए … प्रेरक कथा -मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ बेटा फोन उठाओ ना , तीसरी बार जब पूरी  रिंग के बाद भी बेटे वैभव  ने फोन नहीं उठाया तो  मधु की आँखों से गंगा -जमुना बहने लगी , दिल तेजी से धड़कने लगा …. कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी | आज ही IIT का रिजल्ट आया है  और वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | रिजल्ट  वैभव ने घर पर ही देखा था पर उसे बताया नहीं , दोस्तों से मिल कर आता हूँ माँ कह कर तीर की तरह निकल गया |  उसने सोचा था अभी रिजल्ट नहीं निकला होगा … थोड़ी देर में आकर देखेगा | वो तो जब बड़ी बेटी घर आई और वैभव के रिजल्ट के बारे में पूंछने लगी तो  उसका ध्यान गया | बड़ी बेटी ने ही लैपटॉप खोल कर रिजल्ट देखा …. वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | उसी ने बताया रिजल्ट तो दो घंटे पहले निकल गया था | ओह … उसे माजरा समझते देर ना लगी …. वैभव ने रिजल्ट देख लिया , इसीलिये दुखी हो कर वो घर से बाहर चला गया | मधु का दिल चीख पड़ा … कितनी मेहनत की थी उसने , पिछली बार तो जब IIT में रैंक पीछे की आई थी तो उसने ही ड्राप कर रैंक सुधारने का फैसला लिया था | उसने बेटे की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी समझ कर हाँ कर दी थी , पति विपुल की मृत्यु के बाद और था ही कौन जिससे वो राय मशविरा करती |विपुल जब उसके ऊपर तीनों बच्चों को छोड़ दूसरी दुनिया चले गए थे  , तब आगे के कमरे में केक बना कर अपना व् बच्चों का गुज़ारा चलाते हुए उसने कभी बच्चों को किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी | बस यही प्रयास था बच्चे पढ़ लिख कर काबिल बन जाएँ | वैभव सबसे बड़ा था , उसके बाद दो बेटियाँ … वो अकेली कमाने वाली | उसने वैभव पर कभी दवाब भी नहीं डाला था पर  वैभव खुद ही  चाहता था कि वो  बहुत आगे बढे , जीते और अपनी माँ का नाम ऊँचा करे | इसी लिए तो दिन -रात पढाई में लगा रहता … न खाने की सुध न सोने की | जब भी वो  कुछ कहती तो उसके पास एक ही उत्तर होता ,  ” मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ ”  तो क्या वैभव इस हार को बर्दाश्त न कर के …. नहीं नहीं , ऐसा नहीं हो सकता सोचकर उसने फिर से फोन मिलाना शुरू किया | उसकी आँखों के सामने वो सारी  खबरे घूमने लगीं जो उन बच्चों की थीं जिन्होंने परीक्षाफल से निराश होकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी | उनमें से कई अच्छे लेखक बन सकते थे , कई इंटीरियर डेकोरेटर कई अच्छे शेफ …. पर …वो सब एक हार से पूरी तरह हार गए |  उसकी आँखों के आगे उन  रोती -बिलखती माओं के चेहरे घूमने लगे | आज क्या दूसरों की खबर उसकी हकीकत बन जायेगी … नहीं … उसने और तेज़ी से फोन मिलाना शुरू किया | तभी दरवाजे की घंटी बजी | वो बड़ी आशा से दरवाजा खोलने भागी | छोटी बेटी थी | माँ को बदहवास देखकर वो सहम गयी | बड़ी ने छोटी को संभाला | मधु ने निश्चय किया कि वो पुलिस को खबर  कर दे | बहुत हिम्मत करके उसने दरवाजा खोला …. सामने वैभव खड़ा था | उसने रोते हुए वैभव को गले लगा लिया |  दोनों बहने भी वैभव के गले लग गयी |  सब को देख कर हड्बड़ाये हुए वैभव ने पुछा ,  ” क्या हुआ है माँ … सब ठीक तो है , आप लोग इतने परेशान  क्यों हैं |  मधु ने रोते हुए सब बता दिया | ओह !कह कर वैभव बोला , ” माफ़ करना माँ मैंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया | मैंने सोचा मैंने तो तुम्हें रिजल्ट बताया नहीं है , ये सच है कि  जब मैंने देखा कि मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ है तो मुझे धक्का लगा  फिर मैंने देखा  मेरा दोस्त निशान जिसने मेरे साथ  ही ड्राप किया था उसका भी सिलेक्शन नहीं हुआ है | मुझे याद आया उसने दो दिन पहले ही कहा था कि  अगर मेरा सेलेक्शन  नहीं हुआ तो मैं गंगा बैराज से कूद कर जान दे दूँगा | उसी घबराहट में मैं उससे बात करने के लिए घर से निकल गया | वो अपने घर से जा चुका था , बाहर बारिश हो रही  थी | फोन भीग न जाए इसलिए मैंने  फोन उसके घर साइलेंट पर करके रख दिया और   निशान को खोजने निकल पड़ा | मैं  उसके कहे के अनुसार गंगा बैराज पर पहुंचा …. निशान वही था … वो कुछ लिख रहा था | मैंने जल्दी से जा कर उसे गले लगाया , हम दोनों देर तक रोते रहे |  जब चुप हुए तो मैंने उसे समझाया , ” मूर्ख क्या करने चला था , कभी सोचा  अपनी माँ के बारे में , तुझसे ये हार सहन नहीं हो रही और वो तेरा दुःख भी झेलेंगी और  सारी  जिन्दगी ये हार झेलेंगी की वो एक अच्छी माँ नहीं हैं | लोग तो यही कहेंगे ना कि माता -पिता बहुत दवाब डालते थे … जान ले ली अपने ही बच्चे की | तुझे केवल अपनी हार दिखी उनकी हार नहीं दिखी | निशान फिर रोने लगा , ” हां , सच कहा , मैं स्वार्थी हो गया था … उस समय मुझे अपने आलावा कुछ नहीं दिख रहा था | जीवन है तो फिर जीत सकते हैं … लेकिन मेरे माता -पिता जो हारते वो कभी ना जीत पाते | मधु अपने बेटे की मुँह से ऐसे बात सुन कर रोने लगी |  वैभव उसके पास आ कर बोला , ” माँ , तुम्हारे  लिए भी तो आसान  था जब पिताजी छोड़ कर चले … Read more

सब कुछ हरा

                                 हम इस दुनिया को अपने हिसाब से ही देखना चाहते हैं | इसलिए सबको बदलना चाहते हैं ,क्या ये उचित हैं ? ये कहानी है ऐसे अमीर की जो सब कुछ हरा देखना  चाहता था | क्या ये संभव है ? प्रेरक कहानी -सब कुछ हरा /Motivational story (in Hindi)-Sab kuch hra                             बहुत समय पहले की बात है एक  बहुत अमीर आदमी था | यूँ तो वो बहुत खुश रहता था पर उसकी आँखों में एक अजीब सी बिमारी हुई , जिसके कारण उसकी आँखों में बहुत दर्द रहने लगा | अमीर आदमी ने देश विदेश जा कर अपना इलाज़ करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ |  लोगों ने बताया तो उसने नामी गिरामी वैद्ध को भी दिखाया व् होमोपैथी का इलाज़ भी कराया   पर समस्या जस की तस रही | अब वो आदमी बहुत परेशान  रहने लगा | उसे लगता अब सारा जीवन उसे ऐसे ही इस दर्द के साथ रहना पड़ेगा |  वो निराश रहने लगा , मन अवसाद में घिरने लगा | एक दिन किसी ने बताया कि  बिठूर के पास एक साधू  रहते हैं वो शायद तुम्हें कोई उपाय बताये , अब तक तो जो भी उनके दरबार गया है उसका काम पूरा ही हुआ है | ये सुन कर अमीर आदमी के चेहरे पर आशा की मुस्कान फ़ैल गयी | उसने तुरंत वहां जाने का निश्चय किया | वो अपने कुछ मित्रों के साथ उसी दिन बिठूर के लिए निकल गया | वहां पहुँच कर उसने देखा कि साधू महाराज कोई पूजा कर रहे हैं | वो वहीँ इंतज़ार करने लगे | थोड देर में साधू की पूजा समाप्त हुई | उन्होंने अमीर आदमी को देखकर उन्हें अपने पास बुलाया | वो अमीर आदमी  साधू  के पैर पकड़ कर बोला , ” महाराज , मेरी आँखों में बहुत दर्द होता है | देश -विदेश में इलाज करवाया , कोई फायदा नहीं हुआ | अब बड़ी आशा से आपके पास आया हूँ , कृपया मुझे इस तकलीफ से मुक्ति दे दें ‘| साधू ने उस अमीर की आँखे देख कर कहा , ” तुम्हारी आँखों का दर्द दूर हो जाएगा , बस तुम ज्यादा से ज्यादा हरा देखा करो “| वो आदमी घर लौट आया | उसने अपने घर कइ बगीचे में कई पेड़ लगवा दिए | रोज सुबह उठ कर उन्हें देखता | उसकी आँखों के दर्द में कमी आने लगी | अब तो उसने घर के आस -पास कारखाने तक बहुत पेड़ लगवाये  |कुछ और आराम आया | खुश हो कर उसने  घर की दीवारे , परदे , बिस्तर , फर्नीचर , सामान सब हरा कर दिया गया | उसने हरे रंग के कपडे पहनना भी शुरू कर दिया व् घर के सभी लोगों को यहाँ तक की नौकरों को भी , हरे रंग के कपडे पहनने का आदेश दिया | अब उसकी आँखों का दर्द  बिलकुल ठीक हो गया था | एक दिन वही साधू उसके शहर आये व् उससे मिलने भी आ गए | वो अन्दर जा ही रहे थे कि अमीर आदमी के नौकर का ध्यान साधू के कपड़ों पर गया | उन्होंने लाल रंग के कपड़े  पहन रखे थे | नौकर ने तुरंत एक बाल्टी पानी में हरा रंग घोल कर उनके ऊपर फेंक दिया | तभी अमीर आदमी आ गया | उसने नौकर की उस हरकत के लिए माफ़ी मांगी | उसने साधू  से कहा , ” महात्मन मैं अपने नौकर की गलती के लिए शर्मिंदा हूँ | दरअसल आप ने मुझसे  हरा रंग ज्यादा देखने को कहा था | तो  देखिये यहाँ सब कुछ हरा ही हरा है | इससे मुझे बहुत आराम मिला | मेरा दर्द पूरी तरह चला गया | क्योंकि नौकर ने देखा कि आप ने लाल रंग के कपडे पहन रखे हैं , मेरी तकलीफ बढ़ न जाए , इसलिए उसने आपके कपड़ों पर हरा रंग डाल दिया | उत्तर सुन कर साधु  हंसने लगा | उसने कहा , ” ये तुमने क्या किया , सब कुछ हरा देखने के लिए तुमने अपने चारों  और हर वस्तु और लोगों को हरे रंग में रंग दिया , अरे तुम हरे कांच वाला चश्मा भी तो ले सकते थे | दुनिया जैसे थी वैसी ही रहती और तुम्हें भी सब कुछ हरा दिखाई देता |                            मित्रों , हर प्रेरक कहानी में कुछ सन्देश छिपा रहता है | इस कहानी में भी एक बहुत सुंदर सन्देश छिपा है कि हमें दूसरों को बदलने के स्थान पर अपना नजरिया बदलना चाहिए | हममे से ज्यादातर लोग इस बात से दुखी रहते हैं कि वो … ऐसा नहीं करता , वैसा नहीं करता , उसे ऐसा कहना चाहिए , वैसा कहना चाहिए हम दुनिया को अपने हिसाब से बदलना चाहते हैं इसी कारण  दुखी रहते हैं , इसी कारण  रिश्तों में विवाद होते हैं | दूसरों को बदलने के स्थान पर अगर अपना नजरिया बदल लें … क्या हुआ ये अगर ऐसे रहना , उठना बोलना पसंद करता है , वो उसकी ख़ुशी है , मै जैसे रहना , उठाना बैठना पसंद करता हूँ वो मेरी ख़ुशी है | उसे अपनी जिन्दगी जीने देते हैं , मैं अपनी जिन्दगी अपनी तरह से जिऊँगा | उसके बावजूद हम अच्छे दोस्त रह सकते हैं | करके देखिये जीवन कितना आसन हो जाएगा | ऐसे में सब कुछ हरा भले ही न हो पर आपका मन जरूर हरा भरा रहेगा | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … काश हमें पहले पता होता समय पर निर्णय का महत्त्व मेरी कीमत क्या है जो मिला नहीं उसे भूल जा आपको  कहानी  “   सब कुछ हरा  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- Moral Stories, Green, motivational stories,

काश मुझे पहले पता होता

                      यूँ तो गलती करना इंसान का स्वाभाव है पर कई बार हम ऐसी गलतियाँ  करते हैं , जिनका बहुत बड़ा असर हमारे जीवन पर पड़ता है | तब हम कहते हैं काश हमें पहले पता होता तो हम ये गलती  न करते , परन्तु तब तक तो समय निकल गया होता है | काश मुझे पहले से पता होता -Moral story of Regret  in Hindi                        बहुत समय पहले की बात है कि एक राज्य में एक राजमिस्त्री रहता था |  वो बहुत  सुन्दर -सुंदर  घर और महल बनाता | उसको काम करने में समय तो ज्यादा लगता पर जब  घर या महल बन कर तैयार होते तो वो इतने सुन्दर होते कि  लोग तारीफ़ करते नहीं थकते | उसे अपने काम से बहुत प्यार था और गर्व भी | कई बार राजा भी कुछ जल्दी बनाने को कहता तो वो मना कर देता | उसका एक ही कहना होता  , ” या तो अच्छे काम के लिए धैर्य रखो या काम ही न लो ” | काम के प्रति उसके समर्पण को देख कर राजा भी कुछ न कह पाता और मन ही मन उसकी प्रशंसा करता |                           समय बीता राजमिस्त्री 50 वर्ष  हो चला था | राजा की मृत्यु हो चुकी थी | अब उनका बेटा राजा बन चुका था | वो भी राजमिस्त्री का उतना ही सम्मान करता था |  राजमिस्त्री अभी भी उतनी ही शिद्दत से अपना काम करता था , अभी भी कोई उसके काम में कमी नहीं निकाल; सकता था | पर धीरे -धीरे अब उसे महसूस होने लगा था कि अब उसे काम छोड़ कर अपना समय अपने परिवार के साथ बिताना चाहिए | एक दिन उसने  यही बात राजा से कही ,” राजन , अब  काम करते हुए मुझे लम्बा अरसा हो गया है , अब मैं आराम करना चाहता हूँ | कृपया आप मेरा निवेदन स्वीअर कर के मुझे सेवानिवृत्ति  दे दें |” आप ये पढना भी पसंद करेंगे … भेंड चाल  स्वाद का ज्ञान  खीर में कंकण  वो भी नहीं था  राजा ने  कहा , ” आप ने मेरे  पिता के समय से बहुत अच्छा काम किया है | मेरे मन में आपका बहुत सम्मान है |  मैं आपके निर्णय का स्वागत करता हूँ , पर मेरी एक इच्छा है कि आप एक महल और बना दें | उसके बाद आप सेवा निवृत्त हो जाएँ |” राजमिस्त्री राजा को इनकार न कर सका | उसने महल बनाना शुरू किया | पर इस बार उसे काम खत्म करने की जल्दी थी | उसने देखा नहीं कैसा सामान आ रहा है | अन्य कारीगर उसके बताये अनुसार काम कर रहे हैं या नहीं | खुद के काम भी उसने बेमन से किया | और जैसे -तैसे करके जल्दी से महल बना दिया | उस दिन वो बहुत खुश था | वह राजा के पास गया और राजा से बोला  , ” महाराज आपका महल बन गया है , ये चाभियाँ संभालिये और मुझे सेवा निवृत्त करिए | राजा ने उसे धन्यवाद देते हुए कहा , ” आपने सारी  उम्र बहुत मेहनत से काम किया | मेरे मन में आपके व् आपके काम के प्रति बहुत श्रद्धा है | मैं आपको ये महल मैं आपको सेवानिवृत्ति पर उपहार के रूप में देता हूँ | जाइए और अपने परिवार के साथ इस महल में आराम से रहिये | कहते हुए  उन्होंने राजमिस्त्री को वो चाभियाँ पकड़ा दी | ओह , राजमिस्त्री के दुःख का ठिकाना नहीं रहा | उसने अपनी पूरी जिंदगी में जो सबसे खराब महल बनाया था , अब उसे जिंदगी भर उसी में रहना था | चाभियाँ लेते हुए उसके हाथ काँप रहे थे और होंठ बुदबुदा रहे थे , ” काश मुझे पहले पता होता “|                           मित्रों ये तो एक कहानी है , पर हम भी एक  महल रोज बना रहे हैं वो महल है हमारे रिश्तों का , हमारे सपनों का ,      हमारे कैरियर का , हमारे स्वास्थ्य का … और हमें जीवन      पर्यंत इसी महल  में रहना  है | अगर हर रोज  इसका ध्यान नहीं रखेगे | इसे नहीं तराशेंगे |  तो हम भी उस राजमिस्त्री की तरह बाद में पछतायेंगे और कहेंगे “काश मुझे पहले पता होता “| वैसे तो ये कहानी सबके लिए उपयोगी है पर विशेष रूप से स्टूडेंट्स के लिए उपयोगी है | क्योंकि उनके ये साल बहुत कीमती है | कितने बे लोग हैं जो आज पछताते हैं और ये सोचते हैं की काश तब पढाई कर ली होती |इसलिए आप भी रोज  पढ़िए , मेहनत करिए और अपना खूबसूरत सा महल बनाइये |  नीलम गुप्ता  प्रेरक कथाओं से  यह भी पढ़ें … अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढाये  सिर्फ 15 मिनट -power of delayed gratification क्या आप अपनी मेंटल हेल्थ का ध्यान रखते हैं आपको  कहानी  “काश मुझे पहले पता होता    “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- Moral Stories, Regret, motivational stories, king, work

भेंड -चाल

                        अरब में एक राज्य था | जहाँ का राजा व् मंत्री दोनों बहुत अच्छे थे व् प्रजा का बहुत ध्यान रखते थे | उनके राज्य में कोई कष्ट नहीं था | सब सुखी थे व् सब राजा व् वजीर की प्रशंसा किया करते थे | कहते हैं न , कि कोई दुखी व्यक्ति किसी को खुश नहीं देखना चाहता है | उसे लगता है या तो वो खुश हो जाए या सब दुखी हो जाएँ | ऐसे ही एक जादूगरनी थी | जो दूसरे राज्य में रहती थी |  वो अपने जीवन से बहुत दुखी थी | एक बार उसने अपना राज्य छोड़ने का फैसला किया वो टहलते -टहलते  उस राज्य में पहुंची | वहां जा कर उसे बहुत दुःख हुआ क्योंकि वहां हर कोई खुश था | किसी को कोई तकलीफ ही नहीं थी | सब अपने राजा और वजीर के शुक्रगुजार थे और आनंद से जी रहे थे | जादूगरनी ने सोचा कि अगर वो सुखी नहीं तो कोई और कैसे सुखी रह सकता है |  वो सोचने लगी की इस गाँव के लोगों को कैसे दुखी किया जाए | उसने बहुत तलाशा तो उसे एक कुआ मिला जहाँ से सारे गाँव के लोग पानी लेते थे | क्योंकि गाँव में बस वो ही एकलौता कुआ था | जादूगरनी ने अपने जादू उस के पानी पर कर दिया | जादू के अनुसार जो भी उस  कुए का पानी पीएगा वो पागल हो जाएगा | सुबह जब लोग उठे और उन्होंने पानी पीना शुरू किया , तो वो पागल हो गए | उन्हें राज्य में सब कुछ गलत लगने लगा | वो राजा और वजीर की बुराई करने लगे | राजा और वजीर तब तक सो कर नहीं उठे थे | जब वो सो कर उठे तो उन्हें पता चला कि सब लोग असंतुष्ट है | राजा को पता चला कि लोग सुबह से कुए की जगत पर गए उन्होंने पानी पिया और उसके बाद से ही राजा को और उसकी नीतियों को कोसने लगे | राजा ने तुरंत उस कुए से पानी मंगवाया | उन्होंने एक गिलास पानी खुद पिया और एक गिलास पानी वजीर को दिया | राजा और वजीर भी पागल हो गए | शाम तक गाँव में सब कुछ सामान्य हो गया | अब लोग राजा और वजीर को नहीं कोस रहे थे | वो उनकी प्रशंसा कर रहे थे | क्या राजा और वजीर ने सब को ठीक कर दिया था ? नहीं , राजा और वजीर भी पागल हो गए थे |                      मित्रों ये कहानी हमने खलील जिब्रान की कहानियों से ली है | ये कहानी भेड़ -चाल ये बताती है कि हम सब भेड़ों की तरह एक ही दिशा में हांके जाने पर विश्वास करते हैं | भीड़ के साथ अगर गलत भी है तो वो हमें सही लगता है | और ये जानते हुए भी कि सच क्या है हम भीड़ को ही फ़ॉलो करते हैं | क्योंकि हम समूह से अलग सोचना ही नहीं चाहते |  अपना दिमाग लगाना ही नहीं चाहते |  राधा का एक्सीडेंट हुआ | तुरंत ढेर सारी  भीड़ लग गयी | पर किसी ने राधा को नहीं उठाया |  तभी भीड़ में से एक आदमी ने हिम्मत कर के राधा को हॉस्पिटल पहुचाया | आप सोच सकते हैं कि उन लोगों ने क्यों नहीं उठाया , वो भी तो उठा सकते थे | उठा सकते थे , पर उनमें से हर कोई ये सोच रहा था की दूसरे ने नहीं उठाया तो मैं क्यों उठाऊं | कामलो सो लाडलो सड़क पर पड़े पत्थर से ठोकर खा कर भी हम उसे इस लिए नहीं उठाते क्योंकि किसी और ने नहीं उठाया | और सड़क पर पड़ा वो पत्थर वैसे ही पड़ा हुआ और लोगों को ठोकर मारता रहता है | इस दुनिया में बहुत से तानाशाह हुए हैं | जब वो खत्म हुए तो उस देश की जनता से पूंछा गया कि आपने उनके विरुद्ध आवाज़ क्यों नहीं उठाई | तो उन सब का उत्तर होता है ,  ” हमें पता था कि वो गलत कर रहे हैं | फिर भी हम इस लिए नहीं बोले क्योंकि कोई भी नहीं बोल रहा था | ये भेंड चाल  बहुत ही खतरनाक है | आज जमाना सोशल मीडिया का है | फेसबुक व्हाट्स आइप के जरिये झूठी खबर को मिनटों में फैलाया जा सकता है | फेक वीडियो देख कर दंगे भी हो सकते हैं | ऐसे में जरूरी है कि पागल लोगों के साथ   खुद पागल न बने , अपने दिमाग का इस्तेमाल करें व् भेंड चाल में न फंसे | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें ……….. डॉक्टर साहब दूसरी गलती राधा की समझदारी फर्क  आपको  कहानी  ”  भेंड -चाल “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, sheep

डॉक्टर साहब

                                 रमेश जी का बेटा नितिन बहुत तेज बाइक  चलाता था | रमेश जी अक्सर मना करते , ” बेटा इतनी तेज मत चलाया करो कहीं एक्सीडेंट न हो जाए | मेरी  तो जान ही तुममें बसी रहती है | बेटा हँस  कर उनकी बात टाल देता , ” अरे पिताजी , आप खामखाँ में डरते हैं, अब कोई साइकिल की तरह तो बाइक चलाएगा नहीं | फिर मैं तो सावधानी से  चलाता हूँ | तेजी तो हमारी उम्र में होगी ही | अभी १९ का ही तो हूँ आप की तरह कैसे सोच सकता हूँ | रमेश जी उसकी इस बात पर निरुत्तर हो जाते | एक दिन वही  हुआ जिसका डर था | रमेश जी ऑफिस में काम कर रहे थे कि उनके पास वो दुखद फोन आया | फोन हॉस्पिटल से था | बेटे का एक्सीडेंट हो गया था , और वो हॉस्पिटल में  भर्ती था | तुरंत ही ऑपरेशन  होना जरूरी था | रमेश जी आनन् फानन में हॉस्पिटल भागे | बेटा ऑपरेशन थियेटर  में था | अभी ऑपरेशन शुरू नहीं हुआ था क्योंकि हेड डॉक्टर अभी नहीं आये थे | ये सुन कर रमेश जी का दिमाग घूम गया | वो डॉक्टर को गालियाँ बकने लगे | सब डॉक्टर एक जैसे हैं , हराम की कमाई खाते हैं | मरीज का धयान नहीं , जिए या मरे , आप साहब बैठे होंगे क्लब में |   अगर अपना बेटा मर रहा होता तो क्या इतनी लापरवाही दिखाते | इंसानियत तो है ही नहीं | यह भी गुज़र जाएगा वो बडबडा ही रहा था की हेड डॉक्टर आ गए और तेजी से ऑपरेशन थियेटर में घुस गए | ऑपरेशन चार घंटे चला | नर्स ने आकर खबर दी की ऑपरेशन सफल हुआ आपका बेटा खतरे से बाहर है | रमेश जी जो इतनी देर से भगवान् का नाम जप रहे थे , ने चैन की सांस ली | फिर मन ही मन सोचा कि उस डॉक्टर का धन्यवाद करना चाहिए जिसने उसके बेटे की जान बचायी है | वो बेकार ही उन्हें कोस रहा था | तभी हेड डॉक्टर  ऑपरेशन थियेटर से बाहर निकले | इससे पहले की रमेश उन्हें धन्यवाद दे पाता , तीर की तरह बाहर चले गए | रमेश को उनका ये व्यवहार बहुत अहंकारी लगा | वो  नर्स के पास जा कर कहने लगे , ” बड़े घमंडी हैं ये डॉक्टर साहब | माना की अपना काम सही कर दिया पर क्या दो मिनट  मरीज के परिवार वालों को सांत्वना नहीं दे सकते थे? अगर अपना बेटा होता तो क्या ऐसे ही करते ? कामलो सो लाडलो नर्स रमेश जी की तरफ आश्चर्य से देखते हुए बोली , ” आपको नहीं पता ? आपके बेटे का जिस के साथ एक्सीडेंट हुआ है वो डॉक्टर साहब का ही लड़का है | आप का बेटा तो तेज गाडी चलाने के बाद भी बच गया पर डॉक्टर साहब का लड़का जो उसकी गाडीकी चपेट में आ गया , नहीं बच सका | वो अब उसी का क्रिया कर्म करने जा रहे हैं | रमेश जी की आँखे छलक गयी और मुंह से बस इतना निकला , ” ओह , डॉक्टर साहब “| ———————————— मित्रों हम अक्सर दूसरों के खिलाफ धरणा  बना लेते हैं | पर  ये जरूरी नहीं कि वोलोग वैसे ही हों | कभी -कभी मन अपने ही शब्दों के कारण आत्मग्लानी से भर उठता है | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … पीली frock तूफान से पहले राधा की समझदारी फर्क  आपको  कहानी  “डॉक्टर साहब  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, doctor, 

राधा की समझदारी

क्या आप जो काम शुरू करते हैं उसे बीच में ही छोड़ देते हैं या पूरा खत्म करते हैं ? अगर बीच मेविन ही छोड़ देते हैं तो राधा की तरह आप को भी ये आदत छोड़ कर समझदारी अपनानी होगी | प्रेरक कथा -राधा की समझदारी  राधा अपने कमरे में बैठी पल्लू से आँसू पोंछ रही थी | बाहर से आने वाले स्वर उसे साफ़ -साफ़ सुनाई दे रहे थे | उसकी सास और ननद मुहल्ले की औरतों से कह  रहीं थी की क्या बहु आई है कोई काम करने का सहूर नहीं है | इसकी माँ तो कह रही थी कि इसे सब काम आते हैं , पर देखो सुबह से कोई काम पूरा नहीं किया है | मुहल्ले की औरतें उफ़ कहते हुए उसकी सास के साथ सहानभूति जता रही थीं | उस पर वही  पूराना वाक्य , ” क्या जमाना आ गया है , आजकल की बहुए तो … |                                      राधा के दिल में हुक सी उठ रही थी | उसकी इच्छा थी कि उसका नाम अच्छी बहुओं में शामिल हो | वो उच्च शिक्षित थी  तब भी सब कुछ तो सिखाया था माँ ने खाना पकाना , कपडे धोना , सीना -पिरोना | उसे भी लगता था कि शिक्षा का अर्थ ये नहीं है कि घर के कामों से परहेज किया जाए , बल्कि उन्हें और अच्छे तरीके से किया जाए | उसने तय कर रखा था वो सब काम करके ससुराल में सबको खुश रखेगी | पर आज पहले ही दिन सब गड़बड़ हो गयी | पापा ये वाला लो सुबह इसी उद्देश्य   से वो नहा -धो कर रसोई में पहुंची | सब्जी काट कट कर आटा  माढने के लिए परात में निकाला ही था कि सासू माँ की आवाज़ आ गयी | बहु पूजाघर साफ़ किया कि नहीं | उसने झट से हाथ धोये और परात को थाली से ढक कर रख दिया फिर पहुँच गयी पूजाघर सफाई करने |  सभी मूर्तियों को  उसने हटा कर मंदिर की सफाई की कागज़ बिछाया | मूर्तियाँ साफ़ करने जा ही रही थीं की पति का फरमान आ गया ,” राधा पहले कपडे धो लेना , मेरी ये शर्ट सूख जाए तो प्रेस कर देना , शाम को यही पहन कर क्लायंट से मिलने जाना है | राधा मंदिर से भागती -भागती कपडे धोने बैठ गयी | तभी देवर ने कहा ,” भाभी ये तो धुलते ही रहेंगे , पहले मेरी मैथ्स का सवाल सुलझा दो , मुझे स्कूल जाना है | राधा कपडे छोड़ गणित के सवाल सुलझा ही रही थी की बाहर ससुर जी की जोर -जोर से चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी , ” ये क्या घर को अजायबघर बना कर रखा है , न अभी तक घर साफ़ हुआ है न कपडे , न खाना बना है नही कुछ और काम , माँ ने कुछ सिखा के नहीं भेजा | राधा को ये बात बहुत चुभी पर सच्चाई ये थी कि उसने सुबह से कोई काम पूरा नहीं किया था | भले ही उसका उद्देश्य  सबको खुश करने का था पर काम तो कोई भी नहीं हुआ | जब उसके पति मीत को अपने पिता के गुस्से के बारे में पता चला तो वो राधा के पास आया और उसे प्यार से समझाने लगा , ” राधा तुमने हर काम शुरू किया पर उसे बीच में ही छोड़ दिया  , कोई भी काम पूरा न होने से एक दिन में ही पूरा घर बेतरतीब हो गया | भले ही तुम्हारा उद्देश्य सबको खुश करने का हो पर तुमने सबको नाराज़ ही किया | बेहतर होता कि तुम सुबह से जो काम हाथ में लेतीं उसे पूरा करके दूसरा काम शुरू करतीं | जैसे पहले मदिर साफ़ कर रसोई में जाती , वहां खाना बना कर छोटे भाई का गणित का सवाल हल करती फिर सफाई खत्म करके कपडे करती तो न सिर्फ सारे काम पूरे होते बल्कि घर की व्यव्ष्ठ भी सही तरीके से चलती | स्वाद का ज्ञान बात राधा को समझ में आ गयी कि हर काम को अधूरा छोड़ने के कारण ही सारी  अव्यवस्था फैली है | दूसरे दिन से राधा ने मीत के हिसाब से काम शुरू किया | अगर किसी ने बीच में किसी और काम के लिए पुकारा भी तो उसने आदर पूर्वक कहा कि पहले मैं ये काम कर लूँ फिर करती हूँ | पूरा काम बहुत व्यवस्थित तरीके से चला | शाम तक सभी लोग राधा की तारीफ़ करने लगे | ———————————————- दोस्तों राधा द्वारा बस एक दिन किसी काम को पूरा न करने के कारण घर में कितनी अव्यवस्था फ़ैल गयी | पर हम में से कई लोग जीवन में कई काम शुरू करते हैं पर उसे पूरा न कर के दूसरा काम शुरू कर देते हैं तो जिंदगी में कितनी अव्यवस्था  फ़ैल जाती होगी | ज्यादातर जो लोग सफल हुए हैं उन्होंने किसी काम को बीच में न छोड़ कर उसके काम करने के तरीकों में बदलाव किया है , तब तक किया है जब तक उन्हें सफलता नहीं मिल गयी | अगर आप भी अपने जीवन को व्यवस्थित करना चाहते हैं तो किसी काम को बीच में छोड़े | जीवन में सफलता के लिए राधा की तरह समझदारी अपनाने की जरूरत है | नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … पीली frock तूफान से पहले यकीन खीर में कंकण आपको आपको  कहानी  “राधा की समझदारी  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, Hindi stories, short stories in Hindi, work smart, work

फर्क

                                सुधाकर बाबू का किस्सा पूरे  ऑफिस में छाया हुआ था | सुधाकर बाबू की अखबार के एक अन्य कर्मचारी से ठन  गयी थी | सुधाकर बाबू प्रिंटिंग का काम देखते थे और दीवाकर जी अखबार का पहला पेज डिजाइन करता थे  | सुधाकर बाबू की दिवाकर जी से कैंटीन में चाय समोसों के साथ गर्मागर्म बहस हो गयी |  यूँ तो दोनों की अपने -अपने पक्ष में दलील दे रहे थे | इसी बीच  सुधाकर बाबू ने दिवाकर जी पर कुछ  ऐसी फब्तियां कस दी कि दिवाकर जी आगबबबूला हो गए | तुरंत सम्पादक के कक्ष में जा कर लिखित शिकायत कर दी कि जब तक  सुधाकर बाबू उनसे माफ़ी नहीं मांगेंगे तब तक वो अखबार का काम नहीं संभालेंगे, छुट्टी ले कर घर पर रहेंगे | संपादक जी घबराए | दिवाकर जी पूरे दफ्तर में वो अकेले आदमी थे जो अख़बार का  पहला पेज डिजाइन करते थे | पिछले चार सालों  में उन्होंने एक भी छुट्टी नहीं ली थी | कभी छुट्टी लेने को कहते भी तो अखबार के मालिक सत्यकार जी उन्हें मना लाते | सम्पादक जी ने हाथ -पैर जोड़ कर उन्हें हर प्रकार से मनाने की कोशिश की पर इस बार वह नहीं माने | अगर कल का अखबार समय पर नहीं निकल पाया तो लाखों का नुक्सान होगा | कोई और व्यवस्था भी नहीं थी |  उन्होंने सुधाकर जी को बुलाया | पर वो भी  माफ़ी मांगने को राजी न हुए | मजबूरन उन्हें बात मालिक तक पहुंचानी पड़ी | बात सुनते ही अखबार के मालिक ने आनन् -फानन में सुधाकर जी को बुलाया | प्रायश्चित इस बार सुधाकर जी भी गुस्से में थे | उन्होंने मालिक से कह दिया की बहस में कही गयी बात के लिए माफ़ी वो नहीं मांगेंगे | क्योंकि बहस तो दोनों तरफ से हो रही थी | दिवाकर जी को बात ज्यादा बुरी लग गयी तो वो क्या कर सकते हैं | आखिर उनकी भी कोई इज्ज़त है वो यूँही हर किसी के आगे झुक नहीं सकते | सत्यकार जी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की |उन्होंने कहा कि आपसी विवाद में अगर किसी को बात ज्यादा बुरी लग गयी है तो आप माफ़ी मांग लें | दिवाकर जी यूँ तो कभी -किसी से माफ़ी माँगने को नहीं कहते |  उन्होंने सुधाकर  जी को लाखों के नुक्सान का वास्ता भी दिया |  पर सुधाकर जी टस से मस न हुए | उन्होंने इसे प्रेस्टीज इश्यु बना रखा था | उनके अनुसार वो माफ़ी मांग कर समझौता नहीं कर सकते | दूसरा फैसला अंत में सत्यकार जी ने सुधाकर जी से  पूंछा ,  ” आपकी तन्ख्य्वाह कितनी है ? सुधाकर जी ने जवाब दिया – १५००० रुपये सर सत्यकार जी बोले , मेरे ऑफिस का १५ ०००० करोंण का टर्नओवर हैं | पर मैं विवादों को बड़ा बनाने के स्थान पर जगह -जगह झुक जाता हूँ | शायद यही वजह है कि हमारे बीच  १५००० रुपये से १५००० करोंण का फर्क है | देर शाम को दिवाकर जी अपनी टेबल पर बैठ कर अखबार का फीचर डिजाइन कर रहे थे और सुधाकर जी  टर्मीनेशन लैटर के साथ ऑफिस के बाहर निकल रहे थे | विवाद को न खत्म करने की आदत से उनके व्  सत्यकार जी के बीच सफलता का फर्क कुछ और बड़ा हो गया था | बाबूलाल मित्रों एक कहावत है जो झुकता है वही उंचाई  पर खड़ा रह सकता है | छोटी -छोटी बात को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने वाले जीवन में बहुत ऊंचाई पर नहीं पहुँच पाते | यह भी पढ़ें …….. घूरो , चाहें जितना घूरना हैं गैंग रेप   अनावृत  ब्लू व्हेल का अंतिम टास्क आपको आपको  कहानी  “राग पुराना”  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- short stories, hindi stories, difference, short stories in hindi

किसान और शिवजी का वरदान /kisan aur shivji ka vardan

                                             एक किसान था | वो बड़ी मेहनत से खेती करता पर फसल उसकी इच्छा के अनुरूप  नहीं होती थी | कभी बारिश कम होती , कभी ज्यादा , कभी गर्मी ज्यादा कभी कम | किसान परेशांन रहता | एक दिन उसने सोचा कि अपनी शिकायत भगवान् शिव से की जाए | आखिर ये दुनिया वही  तो चला रहे हैं , फिर उन्हें इतनी समझ नहीं आई कि प्रकृति किसान के अनुसार होनी चाहिए आखिर किसान खेती करते हैं उन्हें फसल उगानी होती है तो धूप  , पानी , बादल किसान की मर्जी पर चलने चाहिए | ऐसा सोच कर वो भगवान् शिव के पास गया | उसने भगवान् से कहा ,” प्रभु आप तो साधू सन्यासी आदमी , आप को क्या पता की  खेती कैसे करते हैं , ये तो किसानों को पता है | फिर भी आप ने प्रकृति का सारा उत्तरदायित्व अपने हाथ में ले लिया है | उससे ही सब गड़बड़ हो गयी | जब हमें धूप  चाहिए होती है तो बादल बरसते हैं और जब बादल चाहिए होते हैं तो धूप  खिल जाती है | ऐसे तो हमारा खेती करना मुश्किल हो रहा है | ऐसा करिए आप  प्रकृति का नियंत्रण हमारे हाथ में दे दीजिये | भगवान् बुद्ध से तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोककथा भगवान् शिव उस समय खुश थे | उन्होंने कहा ,  ” तथास्तु | किसान ख़ुशी ख़ुशी घर आया |  अगले दिन वो खेत पर गया | उसने बादलों को बुला कर कहा ,  ” बरसो “ बादल बरसने लगे | किसान ने जब देखा की जमीन में पर्याप्त पानी भर गया है तो उसने बादलों को कहा , ” रुको , बादलों ने बरसना बंद कर दिया | अब किसान ने खेत की जुताई की | बीज बोये | किसान ने कहा धूप  और सूरज चमक उठा | अगले दिन किसान खेत देखने गया | बहुत तेज धूप खिली हुई थी | किसान को कुछ असुविधा हुई , उसने कहा बादल और बादल छा गए उसने आराम से खेत में काम किया | कहने का मतलब ये था कि वो आराम से अपनी मर्जी के अनुसार धूप और पानी को लाता | जब जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी   उस साल उसकी मक्के की फसल बहुत अच्छी हुई | खूब ऊँचे – ऊँचे पेड़ पर मक्के भी बहुत लगे थे | किसान बहुत खुश था | वो मन ही मन सोचता देखा , भगवान् ही सब गड़बड़ कर रहे थे | मेरे हिसाब से प्रकृति चली तो सब ठीक हो गया | फसल भी अच्छी हुई | जिस दिन फसल काटने का समय था | किसान नहा धो कर केट पर पहुँचा | उसने भुट्टे को देखा , उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा | उसमें सारे दाने छोटे व् अविकसित थे | किसान का सर चकरा गया  | ये कैसे हो सकता है | बादल , वर्षा धूप सब तो उसके नियंत्रण में थी , फिर दाने अविकसित कैसे रह गए | किसान ने निश्चय किया कि वो अपने प्रश्न का उत्तर ईश्वर से अवश्य लेगा | वो भगवान् शिव के पास पहुंचा | शिव जी उस समय समाधी लगाये हुए थे | किसान ने वहीँ रुक कर इंतज़ार करने का निश्चय किया |आखिर उसे अपने प्रश्न  का उत्तर तो चाहिए ही था |  वर्षों बीत गए | किसान के खेत भी सूख गए पर वो वही अपने प्रश्न के उत्तर का इंतज़ार करता रहा | आखिरकार भगवान् शिव ने आँखें खोली | उसके वहां आने का प्रयोजन पूंछा | किसान ने साड़ी बात कह दी | भगवान् शिव मुस्कुरा कर बोले ,” तुम्हारे हाथ में प्रकृति थी | तुमने उतनी ही धूप , वर्षा , छाया की जितनी पौधों को जरूरत थी | पौधे निश्चिन्त हो गए | उन्हें लगा उन्हें तो पानी आसानी से मिल रहा है तो जड़ों को नीचे और नीचे ले जाने की मेहनत क्यों की जाए | उसी वजह से पौधों को पोषक तत्व कम मिल पाए और उनके दाने अविकसित ही रह गए | मित्रों , जीवन की कठनाइयां जीवन को बेहतर बनाने के लिए होती है | कठनाई रहित जीवन हमें कहीं सुविधायें तो देता है पर हमारा विकास रोक देता है अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … एक चुटकी जहर रोजाना दूसरी गलती प्रश्नपत्र शब्दों के घाव आपको    “किसान और शिवजी का वरदान “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- free read,  stories,stories in Hindi, motivational stories in hindi, blessings, farmer, God, shiva