जब जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी

अमेरिका की जनरल मोटर्स कंपनी अपनी श्रेष्ठ कारों के लिये प्रसिद्ध हैं कस्टमर सेटिस्फेक्शन उनका मुख्य उद्देश्य रहा है  |किसी भी कस्टमर की शिकायत पर वो सबसे पहले  ध्यान देते हैं ,परंतु एक बार शिकायत ऐसी आयी की उन्हें वो शिकायत नहीं मज़ाक लगा |पर वो वास्तव में शिकायत थी |आइये जानते हैं उस रोचक शिकायत और उसके हल का पूरा किस्सा …  जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी     एक बार की बात है अमेरिका की प्रसिद्द जेनरल मोटर्स को इ मेल पर एक शिकायत मिली | शिकायत बहुत अजीब थी | शिकायत कर्ता ने लिखा था कि आप की गाडी को वैनिला आइस क्रीम से एलर्जी है क्या ?   कंपनी को ये मज़ाक लगा | उन्होंने शिकायत को नज़र अंदाज़ करने की सोची | कुछ दिन बाद फिर वही ईमेल आया ,”कृपया बताएं आपकी कंपनी की कारों को वैनिला आइस क्रीम से कुछ एलर्जी है क्या? कस्टमर पर बहुत ध्यान देने की अपनी नीति के चलते इस बार की शिकायत  की उन्होंने अनदेखी नहीं। की ,तुरंत उस व्यक्ति को ईमेल किया गया कि आपको ऐसा क्यों लगता है उस व्यक्ति ने कहा कि मैं रोज रात को डिनर के बाद अपनी फैमिली को कार से पास की आइस क्रीम शॉप में ले जाता हूँ ,हम हर रोज अलग़ अलग फ्लेवर की आइस क्रीम खाते हैं |   आश्चर्य की बात है कि जिस दिन हम वैनिला आइस क्रीम खाते हैं तो कार स्टार्ट होने का नाम ही नहीं लेती है | ऐसा एक बार नहीं कई बार आज़माया है |तभी मैंने आपसे पूंछा कि आपकी कंपनी की कार को वैनिला आइसक्रीम से कुछ एलर्जी है क्या ? जब वैनिला की एलर्जी पर विचार को जेनेरल मोटर्स ने भेजा इंजिनीयर  अब कंपनी को समस्या गंभीर लगी ,उन्होंने मीटिंग बुलाई ,विचार विमर्श किया व् एक सीनियर इंजिनीयर को उसके घर के पास भेजा गया ,ताकि सच्चाई जान सकें| उस रात खाना खाने के बाद वो लोग फिर आइसक्रीम खाने गए पर इस बार गाड़ी इंजिनीयर चला रहा था| वो लोग आइसक्रीम की दुकान तक गए ,उनहोंने चॉकलेट आइसक्रीम  ली ,गाडी स्टार्ट की और गाडी फुर्र से चल दी | दूसरे दिन फिर वो लोग आइसक्रीम शॉप पर गए , उन्होंने मैंगो फ्लेवर की आइसक्रीम ली और कार स्टार्ट की और फिर चार फुर्र से स्टार्ट हो गयी | अभी तक कोई समस्या दिख ही नहीं रही थी | भगवान् बुद्ध से तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोककथा अब तीसरे दिन उन लोगों ने वैनिला आइस क्रीम ली , गाडी में बैठे उसे स्टार्ट करने की कोशिश की और कार है कि स्टार्ट होने का नाम ही न लें | कितनी जद्दोजहद की पर कार काफी देर बाद ही स्टार्ट हो पायी | ऐसे में उस व्यक्ति का ये समझना कि कार को वैनिला आइस क्रीम से एलर्जी है , गलत नहीं कहा जा सकता | पर क्या कोई इंजिनीयर ऐसा सोच सकता है | जाहिर सी बात है उसे समस्या का हल ढूंढना था क्योंकि वो जानता था कि भला कार  को भी कहीं एलर्जी हो सकती है | इंजिनीयर ने ढूँढा एलर्जी का समाधान                                      उनलोगों को छोड़ कर इंजिनीयर वापस वहीं आ गया और समस्या पर सोचने लगा | अन्तत : उसे हल मिल गया | दरसल उस आइस क्रीम शॉप में बहुत भीड़ रहती थी | यूँ तो उसकी सब आइसक्रीम बिकती थी पर  वैनिला आइसक्रीम सबसे ज्यादा बिकती थी | इस कारण शॉप कीपर ने वैनिला आइसक्रीम का एक अलग काउंटर काफी  आगे खोल दिया जिससे ग्राहकों को आसानी से अपनी मंपसद आइसक्रीम मिल जाए और उन्हें हर प्रकार के फ्लेवर की चाहत रखने वालों से जूझना न पड़ें |                                 इस बात पर ध्यान जाते ही इंजिनीयर का ध्यान इस बात पर भी गया कि वैनिला का वो काउंटर कार पार्किंग के बहुत पास है | जल्दी से आइसक्रीम मिल जाने और उसे कार तक जल्दी से ले आने में बहुत कम समय लगता था , जबकि दूसरे फ्लेवर की आइसक्रीम लाने में ज्यादा समय लगता था | अब इंजिनीयर को पूरी बात समझते देर न लगी | दरअसल कार को बंद करने के बाद जल्दी स्टार्ट करने पर वो इसलिए स्टार्ट नहीं होती थी क्योंकि  उसका इंजन जल्दी ठंडा नहीं हो पाता था | उसमें हीट ऐब्जोर्ब करके उसे जल्दी ठंडा करने के लिए कोई टेक्नीक इस्तेमाल करना बहुत जरूरी था | इंजिनीयर ने ये समस्या कंपनी में जा कर बताई | इस पर काम शुरू हुआ और  कार का इंजन जल्दी ठंडा होने की तकनीक विकसित की गयी | फिर वैनिला आइसक्रीम से कार की एलर्जी भी खत्म हो गयी |  अंधविश्वास की जगह ढूँढें समाधान   दोस्तों इस कहानी में सबसे मजेदार शिक्षा ये मिलती है कि अकसर हम ऐसी बैटन में अन्धविश्वास के शिकार हो जाते हैं | ऐसे में या तो हम वैनिला आइसक्रीम खाना छोड़ देते या कार को बेंच कर कोई दूसरी कार खरीदते क्योंकि हमें लगता कि चार पर कोई भूतिया असर हैं जिस कारण वो अजीब व्यवहार कर रही है | इंजिनीयर ने जैसे उस समस्या को गहराई से सोचा और उसका सामाधान निकाला हमें भी अन्धविश्वास की जगह वजह खोजने पर काम करना चाहिए | अटूट बंधन परिवार तीन गेंदों में छिपा है आपकी ख़ुशी का राज समय पर निर्णय का महत्व प्रश्नपत्र शब्दों के घाव आपको    “जब जनरल मोटर्स की कार को हुई वैनिला आइसक्रीम से एलर्जी  “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- free read,  stories,stories in Hindi, motivational stories in hindi, Superstition

प्रश्नपत्र

                                        स्टूडेंट्स ने साल भर कितनी पढाई की है और उस पढाई से उन्होंने क्या ज्ञान हासिल किया है इसे परखने का तरीका है परीक्षा , जिसमे प्रश्नपत्र में पूछे  गए प्रश्नों को पढ कर उत्तर देना होता है उसी के आधार पर उत्तीर्ण या अनुत्तीर्ण किया जाता है | परन्तु क्या कोई ऐसा प्रश्न पत्र हो सकता है जिसमें आप कुछ भी लिखे आपका अनुतीर्ण होना निश्चित हो | आइये  जानते हैं … motivational story-question paper चार दोस्त थे, सुधीर , दीपक , मोहित और अजय | सारा साल वो लग कर पढाई करने के स्थान पर अपना समय खेल कूद और इधर -उधर बर्बाद करते रहे | अर्धवार्षिक परीक्षा में कई विषयों में उनके नंबर इतने कम थे कि अगर वार्षिक परीक्षा में नंबर कम आये तो उनका फेल होना निश्चित था | वार्षिक परीक्षाएं सर पर थी |  वो चारों  बहुत भयभीत थे , सवाल एक ही था कि कैसे पास हुआ जाए | अन्तत : उन्होंने एक योजना बना ली | जिस दिन उनका इम्तिहान था , उन्होंने खुद को मिटटी में लपेटा | सर में बालों में खूब मिटटी लगाईं और एग्जाम से आधा घंटा लेट कॉलेज पहुंचे | वे सीधे कॉलेज के डीन  के कमरे में गए और उनसे बोले ,” सर ,  हम सही समय पर एग्जाम देने आ रहे थे |  हमारे एरिया के पास एक दलदल वाला स्थान है वहां एक बुजुर्ग की कार  फंस गयी | हमने जा  कर देखा , वो कार की सीट पर बैठे तेजी से अपना दिल दबा रहे थे | हमें समझते देर नहीं लगी कि उनको हार्ट अटैक आया है |  उनको हॉस्पिटल तक पहुँचाने के लिए भी कोई और सवारी आस -पास नहीं थी | हमने पूरी ताकत लगा कर  कार को दलदल से निकाला , और  पास रहने वाले लोगों से उन्हें हॉस्पिटल पहुंचाने की गुहार लगायी | क्योंकि वो बस्ती गरीब लोगों की है ज्यादातर लोगों को कार चलाना नहीं आता हैं , इसलिए कोई ड्राइवर नहीं मिला |  तब तक हमने अंकल को फर्स्ट ऐड दिया , तभी एक व्यक्ति उन्हें कार चला कर ले जाने के लिए तैयार हो गया | हमारा एग्जाम था इसलिए हम उस व्यक्ति को कार  की चाभियाँ दे कर एग्जाम देने चले आये | फिर भी ऐसी मानसिक स्थिति में हम एग्जाम देने में असमर्थ हैं | डीन ने थोड़ी देर तक उन्हें देखा , फिर उन्हें एक हफ्ते बाद एग्जाम देने को कहा | डी न  ने ये भी कहा कि आपका प्रश्न पत्र फिर से सेट होगा | चारों ने हाँ कर दी | वो बहुत खुश थे , उनकी योजना सफल हुई थी | हफ्ते भर चारों ने दिन -रात एक कर खूब पढाई की | वो नियत समय पर कॉलेज पहुंचे | सब को पास  होने की पूरी उम्मीद थी | वो संडे का दिन था | वैसे भी पूरा कॉलेज खाली था | डीन  ने उनको अलग -अलग कमरों में भेज दिया | सबके सामने प्रश्न पात्र रखे गए | प्रश्नपत्र देख कर चारों के होश उड़ गए | प्रश्न पत्र इस प्रकार था … परीक्षार्थी का  नाम – पहला प्रश्न – कार किस रंग की थी ? दूसरा प्रश्न – कार के कौन से पहिये दलदल में फंसे थे ? तीसरा प्रश्न -कार  चलाने वाल्रे बुजुर्ग ने कौन से रंग की शर्ट पहनी थी ? चौथा प्रश्न -क्या कार में कोई फर्स्ट ऐड किट थी | पांचवाँ प्रश्न – जो व्यक्ति उस बुजुर्ग को ले कर गया था , क्या आपने उसका नाम पूंछा था | और चारों महज इसलिए फेल हो गए क्योंकि उन्होंने प्रश्नों के उत्तर अलग -अलग दिए थे |                        ये जिंदगी एक परीक्षा ही है , जो झूठ के सहारे नहीं पास की जा सकती | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness चोंगे को निमंत्रण गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “प्रश्नपत्र  ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें   filed under- examination, exam, question paper, motivational stories in hindi, truth

समय पर निर्णय का महत्व

                          क्या आप के साथ ऐसा होता है कि आप समझ रहे हैं की आप का वजन बढ़ रहा है पर आप ऑयली डाईट से हेल्दी डाईट पर शिफ्ट नहीं हो पा रहे हैं | आप का कोई रिश्ता इस लायक नहीं है कि उसे झेला जाए पर आप उसे झेल रहे हैं जबकि आप का मानसिक स्वास्थ्य रोज बिगड़ रहा है | आप को कोई जरूरी काम करना है पर आप आज कल पर टाल रहे हैं |  जब आप कहते हैं अब  बस … बहुत हुआ अब सही समय पर सब काम करेंगे तब तक बहुत देर हो चुकी होती है | समय पर निर्णय का महत्व  एक बार की बात है एक गैस के बर्नर पर एक बहुत बड़ा पानी से भरा भगौना रखा था |एक मेंढक जो किचन के पास लॉन में फुदक रहा था | फुदकते -फुदकते किचन में चला आया | किचन में वो उस पानी के भगौने में कूद गया जो गैस बर्नर पर रखा था | मेंढक को पानी में छप -छप करने में बहुत मज़ा आ रहा था | वो काफी देर तक खेलता रहा , फिर उसे हल्की सीझपकी आ गयी | तभी किचन में रसोइया आया उसने मेंढक को देखे बिना ही गैस का बर्नर धीमी आंच पर ऑन कर दिया और दूसरे कामों के लिए किचन से बाहर चला गया | मेंढक को बढ़ते तापमान का अंदाजा हुआ तो उसने अपने शरीर के तापमान को भी उसके अनुसार बढ़ा लिया | थोड़ी देर में तापमान और बढ़ा , मेंढक ने फिर अपना तापमान बढ़ा लिया और पानी के तापमान से अनकुलन कर लिया , उससे सोचा सब ठीक है अब वो इस पानी में आराम से रह सकता है | क्या आप घर से काम करते हैं जब तापमान और बढ़ा तो भी मेंढक ने बाहर निकलने के स्थान पर अपना शारीरिक तापमान उसी बर्तन के पानी के तापमान के  अनुकूल कर लिया और आराम से पानी में तैरता रहा | एक समय ऐसा आया कि तापमान इतना बढ़ गया कि वो अपने शरीर का तापमान उसके अनुकूल नहीं कर सकता था | लिहाज़ा उसने भगौने को छोड़ कर बाहर कूदने का प्रयास किया | परन्तु वो अपने प्रयास में असफल रहा क्योंकि उसने अपनी सारी ताकत  अपने शरीर का तापमान पानी के तापमान के अनुकूल बनाने में लगा दी थी | बाहर निकलने के लिए जिस ताकत की जरूरत थी अब वो उसमें नहीं थी | वो अपने प्रयास में विफल होता गया और पानी काताप्मान बढ़ता गया | एक समय ऐसा आया कि पानी का तापमान इतना बढ़ गया कि वो उसे सहन नहीं कर पाया और उसकी मृत्यु हो गयी | काश उसने समय कर पानी से बाहर निकलने का निर्णय ले लिया होता | मित्रों ये सिर्फ उस मेंढक के साथ ही नहीं हुआ | हम सब जहाँ जिस परिस्थिति में हैं , ये समझते हुए भी कि आगे खतरा आ सकता है उसी में फंसे रहते हैं | बाहर निकलने का निर्णय नहीं लेते | धीरे -धीरे परिस्थितियाँ इतनी खराब हो जाती हैं  पर अब हम उन्हीं में फंस कर रह जाते हैं , बाहर निकल ही नहीं सकते व् वहीँ घुटते रहने को विवश होते हैं | 1) नीलम को मेडिकल की पढाई करने का मन नहीं था , पर पापा की इच्छा को ध्यान में रखते हुए उसने मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी शुरू की | वो बहुत कोशिश करती रही कि उसका पढने में मन लगे , पर सेल्फ मोटिवेशन के आभाव में वो लगातार पिछडती ही रही | १२ के बोर्ड एग्जाम तक नौबत ये आई कि उसने एंट्रेंस देने से मना  किया , उसने कहा कि अब मैं एंट्रेंस नहीं दूँगी मैं सिर्फ १२ th तक की पढाई करुँगी ताकि मेरे १२ th बोर्ड में अच्छे नंबर आ जाएँ | तब तक उसके पिता के बहुत पैसे लग गए थे | उनको बहुत निराशा हुई , उनकी निराशा देख कर नीलम ने फिर फैसला बदला | लिहाज़ा उसके बोर्ड में बहुत कम नंबर आये और मेडिकल में भी सेलेक्शन नहीं हुआ , जिस कारण उसका कॉलेज में एडमिशन भी नहीं हो पाया | अगर वो पहले बता देते तो कम से कम वो किसी अच्छे कॉलेज से पढ़कर अपना ड्रीम जॉब टीचिंग पा सकती थी | टेंशन को न दें अटेंशन 2)मृदुल जी के चेहरे पर छोटी सी गांठ उभर आई थी | वो तम्बाकू भी खाते थे इसलिए परिवार वालों ने उन्हें डॉक्टर को दिखाने  को कहा | मृदुल जी ने मना  कर दिया | उन्होंने कहा ,” देखो मैं हट्टा -कट्टा हूँ | एक गाँठ मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती | धीरे -धीरे गांठ थोड़ी बड़ी होती गयी , और मृदुल जी उसके साथ  अपने दैनिक स्वास्थ्य की तुलना करके उसकी अवहेलना करते रहे | बाद में अचानक गांठ इतनी तेजी से बढ़ी की डॉक्टर के पास जाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचा | डॉक्टर ने टर्मिनल स्टेज कैंसर बताया | उसके ठीक दस दिन बाद उनकी मृत्यु हो गयी | अगर वो गाँठ के पड़ते ही डॉक्टर को दिखा लेते तो आज वह अपने परिवार के बीच होते | 3) कुछ लोग ख़राब शादी में केवल ये सोच कर टिके रहते हैं कि एक दिन सब अच्छा हो जाएगा | परन्तु परिस्थितियाँ बिगडती जाती हैं | जैसी रीना जी शुरू से ही समझ गयी थी कि शक्की पति के साथ निभाना मुश्किल है परन्तु वो इस  बात का इंतज़ार कर सहती रहीं की सब कुछ ठीक होगा | उन्होंने घर में खुद को कैद कर लिया पर पति का शक फिर भी नहीं गया | एक दिन पति ने शक के कारण उनकी हत्या कर दी | पति को जेल हो गयी व् दोनों बच्चे अनाथ हो कर सड़क पर आ गए |ये सच है की माता -पिता का तलाक होना बच्चों के लिए बुरा है पर उनका भयानक लड़ते झगड़ते रिश्ते में बने रहना और भी बुरा है | कई बार लोग खराब शादी से सिर्फ इसलिए नहीं निकलते कि बच्चों पर ख़राब असर पड़ेगा परन्तु स्थितियां इतनी ज्यादा बिगडती हैं … Read more

मेरी कीमत क्या है ?

                                         हर माँ अपने बच्चे से मेरा अनमोल रतन कहती है | हर व्यक्ति अपने परिवार के लिए बेशकीमती होता है, पर दुनिया उसे ऐसा नहीं मानती है | हर चीज को तोल -मोल कर खरीदने वाली दुनिया की नज़र में इंसान की भी कीमत है | ऐसे में अगर एक बच्चा अपने दादाजी के पास पूंछने चला जाता है कि मेरी कीमत क्या है? तो आश्चर्य की क्या बात है | एक प्रेरणादायक कहानी – प्रेरक कथा – मेरी कीमत क्या है ? एक बच्चा जो रोज अपने बड़ों को चीजों को कीमत के अनुसार खरीदते हुए देखता था , उसने एक दिन अपने दादाजी से पूंछा ,” दादाजी , दादाजी , मेरी कीमत क्या है ? दादाजी  उस समय बागवानी कर रहे थे , उनकी नज़र बाग़ में पड़े एक पत्थर पर थी | वो उसे  हाथो में उठा कर बहुत देर से देख रहे थे | बच्चे का प्रश्न सुन कर उन्होंने वो पत्थर अपने पोते को देते हुए कहा कि जाओ ये  पत्थर मार्किट में  ले जाओ और लोगों को दिखाओ , कोई इसे खरीदने को कहे तो कुछ बोलना नहीं बस दो अंगुली दिखा देना , वो जितनी कीमत बताये उसे आ कर मुझे बताना | बच्चा वहां जा कर खड़ा हो गया | एक औरत ने उसे देखा | उसने बच्चे से पूंछा तुम क्या ये पत्थर बेचने आये हो | बच्चे ने हाँ में सर हिलाया | वो बहुत देर तक उस पत्थर को देखती रही फिर बोली इस पत्थर को मैं  खरीदूंगी | मैं से अपनी सेंटर टेबल पर रखी प्लेट में और पत्थरों के साथ रखूंगी | इससे मेरी सेंटर टेबल की ख़ूबसूरती बढ़ जायेगी | तुम्हें इसके लिए कितने पैसे चाहिये? पढ़िए -गलतियों की सजा दें या माफ़ करें बच्चे ने दादाजी के कहे अनुसार दो अंगुलियाँ दिखा दी | महिला ने हंस कर कहा … ओह , ठीक है मैं तुम्हे इसके दो रूपये दूँगी | बच्चा पत्थर ले कर दादाजी के पास चला आया और उन्हें सारी बात बताई | दादाजी  ने कहा ,” अब मैं चाहता हूँ कि तुम इस पत्थर को म्यूजियम में ले जाओ |कोई इसकी कीमत पूंछे तो बस दो अंगुलियाँ दिखाना | बच्चा पत्थर ले कर भागता हुआ म्यूजियम चला गया | वहां  वह उस पत्थर को लेकर खड़ा हो गया | वहां कई आदमियों ने उस पत्थर को देखा | एक आदमी ने खरीदने की इच्छा जाहिर करी और उस बच्चे से उसकी कीमत पूँछी | बच्चे ने कुछ कहा नहीं बस दो अंगुलियाँ दिखा दी | आदमी ने कहा ठीक है , मैं इसके लिए तुम्हें २०० रुपये दूंगा | बच्चा फिर पत्थर ले कर दादाजी के पास आ गया | दादाजी ने कहा अब बस आखिरी बार मैं तुम्हे ये पत्थर ले कर शहर की सबसे प्रसिद्द ज्वेलरी शॉप में  भेज रहा हूँ , पर वहां भी तुम्हें बस अंगुलियाँ दिखानी हैं , कुछ बोलना नहीं है | बच्चा पत्थर ले कर चला गया | वहां उसने वो पत्थर दूकान के मालिक को दिखाया | दुकान का मालिक पत्थर देख कर बोला ,” अरे ये तो बहुत दुर्लभ पत्थर है , ये तुम्हें कहाँ से मिला ? मैं इसे लूँगा , तुम्हे इसकी कितनी कीमत चाहिए | पढ़िए -संता क्लॉज आयेंगे बच्चे ने फिर दो अंगुलियाँ दिखा दी | दुकान के मालिक ने कहा ,” मैं इसे २००००० रुपये में लूँगा | बच्चा आश्चर्य चकित हो गया | वो फिर पत्थर ले कर दौड़ता हुआ घर आया | उसने दादाजी को पत्थर देते हुए सारी घटना बतायी | दादाजी बोले ,” बेटा क्या अब तुम्हें समझ आ गया कि तुम्हारी कीमत क्या है ?  हम सबके अन्दर एक कीमती हीरा है , लेकिन अगर तुम अपने को ऐसे लोगों से घिरा रखोगे जो तुम्हे केवल दो रुपये का समझते हैं तो तुम जिंदगी भर अपने को दो रूपये का समझते रहोगे | इसलिए अपनी प्रतिभा का विकास करते हुए ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ लोगो की नज़र में तुम बेशकीमती हो , वहीँ तुम्हारी कद्र होगी और वहीँ पर तुम अपने जीवन की सही वैल्यू  पाओगे | इसलिए याद रखना कि हर कोई बेशकीमती है बस फर्क हमारे आस -पास के लोगों के नज़रिए का होता है | अब बच्चे को अपनी कीमत समझ आ गयी थी | –                     ———————————————————————– एक नज़र अपनी कीमत पर –  मित्रों अब जरा इसे अपने ऊपर रख कर समझिये | मान लीजिये आपको बागवानी बहुत अच्छे से आती है , लेकिन आप ऐसे मुहल्ले में रहते हैं जहाँ किस के पास लॉन तो छोडिये गमला रखने का भी स्थान नहीं है | अब आप लाख बताते रहे कि इस पौधे में ये खाद पड़ती है , वो बेल ऐसे लगती है , ये पौधा अब फल देता है , लोग आपकी बात सुनेगे ही नहीं , उन्हें लगेगा आप किताब से पढ़ कर ज्ञान झाड़ते हैं और उनका समय बर्बाद करते हैं | , उनका समय कीमती है और आप फ़ालतू हैं इसलिए बस गप्प हांकते हैं | अब राधा और सोनिया को ही लें | राधा  और सोनिया दोनों कोखाना बनाने का शौक था | दोनों अक्सर नयी -नयी डिश बना कर देखती | बड़े होने पर राधा ने एक होटल में और सोनिया ने एक हॉस्पिटल में कुक की नौकरी शुरू कर दी | राधा जब भी नयी डिश बनती , या पुरानी डिश को अच्छे से सजाती उसे खूब वाहवाही मिलती | उसका काम लोगों को और होटल के मालिक को नज़र आने लगा | उसकी तनख्वाह बढ़ने लगी | कुछ समय बाद उसने उससे बड़े होटल में नौकरी शुरू कर दी … फिर उससे बड़े .. | सोनिया मरीजों के लिए खाना बनाती | उसे ज्यादातर मूंग की दाल की खिचड़ी , दलिया , दाल का पानी बनाना पड़ता | क्योंकि मरीजों को भूंख नहीं लगती वो उसके खाने में कमी निकालते ( हमने भी अपने घरों में ऐसे  बुजुर्ग देखे हैं जो बीमार होने पर घर की औरतों को दोष … Read more

भगवान बुद्ध से तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोककथा

              लोक कथाएँ , जिन्हें दादी नानी की कहानियाँ भी कहते हैं , बहुत खूबसूरत तरीका होता है जिसमें बच्चों को कथा के माध्यम से शिक्षा  दी जाती हैं | आज हम ऐसी ही एक लोक कथा ले कर आये हैं जो  सफल होने के सूत्र बताती हैं | आइये पढ़ें … भगवान बुद्ध से तीन प्रश्न -सफलता का संदर्श देती चाइना की प्रेरणादायक लोककथा  बहुत समय पहले की बात है चाइना में एक लड़का जिंग झियांग रहा करता था | वो अनाथ  था व् बहुत गरीब था | जिंग यहाँ -वहाँ  सबसे भीख मांग -मांग कर खाना  इकट्ठा किया करता था | जब वो खाना लाकर घर में रख देता तब नहाने के लिए जाता | नहाने के बाद आ कर देखता तो उसे हमेशा खाना बहुत कम मिलता | उसे बहुत दुःख होता कि वो इतनी मेहनत से खाना इकठ्ठा कर के लाता है वो भी कम हो जाता है | एक दिन वो खाना रख कर वहीँ बैठ गया | थोड़ी देर में एक चूहा वहाँ  आया और उसका खाना खाने लगा | चूहे को देख कर जिंग ने उससे कहा ,”  एक तो मैं वैसे ही गरीब हूँ, ऊपर से तुम मेरा खाना खा जाते हो , जिसे मैं यहाँ -वहाँ  से मांग कर लाया होता हूँ | तुम अमीरों के घर का खाना क्यों नहीं खाते , उन्हें तो कोई फर्क भी नहीं पड़ेगा | सफलता का बाग़ चूहा जिंग की बात सुनकर बोला ,” ये तो तुम्हारे भाग्य में लिखा है तुम जिंदगी भर गरीब ही रहोगे , तुम्हें पूरा खाना नहीं मिलेगा , इसीलिये मैं अमीरों का खाना न खा कर तुम्हारा खाना खाता हूँ |  चूहे की बात सुन कर जिंग दुखी हो कर बोला ,” क्या मुझे सारे जिन्दगी ऐसे ही भीख मांग कर आधा खाना खा कर रहना होगा | क्या मुझे ऐसे नारकीय जीवन से कभी छुटकारा नहीं मिलेगा | चूहे ने कहा ,” ये तो मैं नहीं बता सकता , हाँ , भगवान् बुद्ध जरूर बता सकते हैं | पर उन तक जाना बहुत मुश्किल है , तुम शायद रास्ते  में ही मर जाओ | जिंग ने कहा , अब चाहे कुछ हो मैं भगवान् बुद्ध से पूंछने जरूर जाऊँगा |  जिंग भगवान् बुद्ध से पूंछने चल दिया कि क्या उसके भाग्य में हमेशा गरीब रहना ही लिखा  है या कुछ करके उसका भाग्य बदला भी जा सकता है | पहला प्रश्न  चलते -चलते रात हो गयी | जिंग ने सोचा कि किसी घर में शरण के लिए आग्रह किया जाए | पर वहाँ  तो सब बड़ी-बड़ी हवेलियाँ थीं | जिंग को आशा नहीं थी कि कोई उसे रात गुज़ारने की अनुमति देगा | फिर भी उसने हिम्मत करके एक हवेली का द्वार खटखटा दिया | आशा के विपरीत उन लोगों ने उसे शरण दे दी |ये जान कर की जिंग भगवान् बुद्ध से मिलने जा रहा है , उन लोगों ने उससे कहा ,” हम  भी बहुत दुखी हैं , हमारी एक ही बेटी है जो बोल नहीं पाती , पहले बोलती थी और गाना भी बहुत सुरीला गाती थी पर अचानक से उसने बोलना बंद कर दिया | बहुत इलाज करवाया पर कोई फायदा नहीं हुआ | तुम भगवान् बुद्ध से पूँछ कर बताना कि वो कब बोलेगी ? जिंग ने हामी भर दी | अगली सुबह जिंग ने वहाँ  से विदा ली |  दूसरा प्रश्न  आगे बढ़ने पर जिंग को एक बर्फ का पहाड़ मिला | जिंग हिम्मत करके आगे बढ़ता गया |  ठंडी हवाओं से उसकी रूह काँप रही थी , फिर भी वो मृत्यु की चिंता न करते हुए आगे बढ़ता  जा रहा था | तभी उसे एक झोपडी दिखाई दी | उसने थोड़ी देर आराम करने की सोच कर झोपडी के द्वार पर आवाज़ दी | उसमें से एक व्यक्ति निकला | उस व्यक्ति ने उसे खाने को दिया | उसने बताया कि वो एक जादूगर हैं वो पिछले एक हज़ार  सालों से स्वर्ग का रास्ता खोज रहा है , इसके लिए उसके पास जादू की छड़ी भी है पर फिर भी उसे रास्ता नहीं मिल रहा है | उसने लड़के से कहा कि वो  भगवान् बुद्ध के पास जाए तो पूंछे कि उसे स्वर्ग का रास्ता कब मिलेगा | जिंग ने हामी भर दी | जादूगर ने खुश हो कर जादू की छड़ी से उसे बर्फ का पहाड़ पार करवा दिया | तीसरा प्रश्न  अब लड़का और आगे बढा … अ तो और भी बड़ी मुसीबत थी | सामने एक विशाल नदी थी | जिसकी तूफानी लहरों के बीच उसे पार करना जान पर खेलने के बराबर था |  पर जिंग तो सर पर कफ़न बाँध कर ही निकला था | उसने नदी तैर कर पार करने का मन बनाया | तभी वहां एक बहुत बड़ा कछुआ आया | कछुआ जिंग से बोला ,” मैं तुम्हे नदी पार कराउंगा तुम मेरी पीठ पर बैठ जाओ | जिंग उसके विशाल कवच पर बैठ गया | रास्ते में उसने कहा ,” मैं पिछले 500 सालों  से ड्रैगन बनने का प्रयास कर रहा हूँ , अभी तक नहीं बन आया हूँ | अगर तुम भगवान् बुद्ध के पास जा रहे हो तो उनसे पूँछन मैं ड्रैगन कब बनूँगा | उसे भी हामी भर के जिंग आगे बढ़ा | जब जिंग ने भगवान् बुद्ध से पूंछे तीन प्रश्न  आगे कुछ और कठनाइयाँ  पार करते हुए जिंग भगवान् बुद्ध के पास पहुँचा | नतमस्तक हो के उसने भगवान् बुद्ध से अपने प्रश्न पूंछने कीअनुमति मांगी | भगवान् बुद्ध ने कहा ,” मैं तुम्हारे सिर्फ तीन प्रश्नों के उत्तर दूँगा | अब जिंग असमंजस में पड़ गया | वो भगवान् से कौन से तीन प्रश्न पूंछे | अंत में उसे लगा कि वो लड़की बेचारी बोल नहीं पा  रही है | जादूगर हज़ार साल से प्रयास कर रहा है , कछुआ ५०० सालों से प्रयास कर रहा है | इन सब की तकलीफ कितनी बड़ी है | मेरा क्या है मैं तो भीख मांग कर खाता था , भीख मांग कर ही खाता रहूँगा | जिंग ने अपने प्रश्न छोड़ कर बाकी तीन प्रश्न पूँछ लिए | भाग्य में रुपये … Read more

डर का अस्तित्व

                               हम सब लोग किसी न किसी चीज से डरते हैं | कई बार हम उस विषय में जानते ही नहीं पर फिर भी अनेकों डर अपने मन में पाले रहते हैं | यह डर हमारे अवचेतन मन में गहरे अपनी जडें जमा लेता है | जिससे निकल पाना सहज नहीं है | इससे निकलने के लिए बहुत इच्छाशक्ति की जरूरत होती है | आज इसी डर पर एक प्रेरक कथा प्रस्तुत की जा रही है | Dar ka astitv – motivational story in Hindi एक बार की बात है की एक बड़े पिंजरे में पाँच  बन्दर थे | उसी पिंजरे में एक सीढ़ी के ऊपर केले का गुच्छा लटका दिया गया | जैसे ही बंदरों ने केले का गुच्छा देखा वो सीढ़ी पर चढ़ने लगे | तभी उन् पर  पाइप से तेज धार से से ठंडा पानी डाला गया | सर्दी के दिन थे ठंडा पानी पड़ने से बन्दर डर गए व् सीढ़ी से नीचे उतर आये | थोड़ी देर बाद एक  बन्दर ने उस सीढ़ी पर फिर चढ़ने की कोशिश की | फिर उस पर ठंडा पानी डाला गया | बन्दर डर गया और उतर आया | अब उन पांच बंदरों में से जो भी सीढ़ी की तरफ बढ़ता उस पर पानी डाला जाता जिससे वो सीढ़ी पर न चढ़ कर वापस लौट आता | थोड़ी देर में सारे बन्दर समझ गए कि सीढ़ी पर चढ़ने पर उन पर ठंडा पानी पड़ता है , इसलिए उन्होंने सीढ़ी पर चढ़ने का प्रयास ही छोड़ दिया | जबकि केले अभी भी वहीँ थे | भाग्य में रुपये अब उस बाड़े के चार बन्दर तो वही रहने दिए , पांचवाँ  बन्दर नए बंदर  से बदल दिया | नए बंदर को बिलकुल भी पता नहीं था कि सीढ़ी पर चढ़ने से ठंडा पानी पड़ता है | वो सीढ़ी की तरफ जाने लगा तो बाकी  चारों बंदरों ने उसे पकड कर वापस बिठा दिया | दो तीन बार प्रयास के बाद वो समझ गया कि सीढ़ी पर चढ़ना सेफ नहीं है | उसने सीढ़ी पर चढ़ने का इरादा छोड़ दिया | अब एक और बन्दर को नए बन्दर से बदल दिया गया | अब बाड़े में तीन पुराने बन्दर व् दो नए बन्दर थे | जब सबसे नए बंदर ने सीढ़ी पर चढ़ना शुरू किया तो बाकी बंदरों ने उसे पहले की तरह नीचे की तरफ खींच लिया | आश्चय की बात ये  थी कि  इन बंदरों में वो पहली बार लाया गया बन्दर भी था जिस पर कभी ठंडा पानी नहीं पड़ा था | सफलता का बाग़ धीरे -धीरे सारे बन्दर  नए बंदरों से बदल दिए गए | अब किसी भी बन्दर पर पानी नहीं पड़ा था पर कोई भी ऊपर चढ़ कर केले लेने की कोशिश नहीं कर रहा था | भले ही उन्हें पता नहीं था कि ऐसा क्यों कर रहे हैं पर उन्हें ये  पता था कि ऐसा ही होता है |                               मित्रों हमारे तमाम अन्धविश्वास इसी डर पर आधारित हैं | जिसमें हमें कारण पता नहीं होता फिर भी हम डर कर कोई नया काम नहीं करते क्योंकि हमें लगता है कि   आज से पहले  अगर किसी ने नहीं किया है तो कोई तो कारण होगा पर न तो हम उस कारण का पता लगते हैं और न ही उस डर को हटा कर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं | आप भी देखें आप ने अपनी जिंदगी में क्या -क्या डर पाल रखे हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास करें | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें ……… भोजन की थाली स्वाद का ज्ञान विश्वास गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ डर का अस्तित्व “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under- short stories, hindi stories, motivational hindi stories, fear

भाग्य में रुपये

                         कहा जाता है है कि हमें जीवन में जो भी मिलता है वो हमारे भाग्य में लिखा होता है | कहा ये भी जाता है कि कर्म करना हमारे हाथ में है | इस तरह कर्म और भाग्य में हम अक्सर उलझे रहते हैं | यहाँ पर “अटूट बंधन ” एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी प्रस्तुत कर रहा है जो इस उलझन को अवश्य दूर करेगी | प्रेरक कथा -भाग्य में रुपये                   व्यापारी मोहन लाल  का धर्म -कर्म से वैसे तो कोई गहरा नाता नहीं था पर भाग्य से कर्म बनता है या कर्म से भाग्य इस प्रश्न में वो अक्सर उलझे रहते | अलबत्ता  शिवरात्री को वो अवश्य मंदिर जाया करते थे | इस बार जब उन्होंने मंदिर के बाहर पूजन सामग्री खरीदी और मंदिर की और बढ़ने लगे तो भारी भीड़ देख कर उन्हें अपनी चप्पल के खो जाने का भय उत्पन्न हुआ | चप्पलें नयी थी , ऐसे में उनकी चिंता स्वाभाविक थी | वहीँ मंदिर के बाहर कई भिखारी बैठे थे | मोहन लाल जी ने सब भिखारियों को गौर से देखा |  एक भिखारी जो कि उन्हें शक्ल से थोडा इमानदार लग रहा था , क्योंकि उसके पास और कुछ चप्पले भी रखी थी, मोहन लाल जी को लगा शायद कुछ और लोगों ने ये चप्पलें उसके पास रख छोड़ी हैं | तो क्यों न वो भी अपनी चप्पलें उस भिखारी के पास निगरानी के लिए रखवा दें | उन्होंने उस के पास जाकर  कहा , ” मैं थोड़ी देर में दर्शन कर के आता हूँ | चप्पल तुम्हारे  पास उतार रहा हूँ , जरा थोड़ी देर निगरानी रखना | भिखारी ने हामी भर दी | भोजन की थाली मोहन लाल जी दर्शन के लिए मंदिर के अन्दर चले गए | मंदिर में बार – बार उन्हें उस भिखारी का ख्याल आ रहा था , उन्हें लग रहा था , बेचारा भिखारी , उसके पैर में तो चप्पल भी नहीं है  | बिवाइयाँ फटी हैं | फिर भी दूसरों की चप्पल की रखवाली कर  रहा है | उन्हें भिखारी पर दया आने लगी | मोहन लाल के मन में दया भाव जागा , उन्होंने ने तय किया कि वो मंदिर से निकल कर उस भिखारी को १०० रुपये देंगें | उधर बाहर बैठे भिखारी के मन में  ख्याल आया कि बाकि जो लोग चप्पल उतार गए हैं वो तो खस्ताहाल हैं , ये तो नयी है | क्यों न मैं इसे ले लूँ |  मालदार आसामी है , उसका क्या जाएगा , झट से नयी खरीद लेगा | मोहनलाल जी जब मंदिर से बाहर निकले तो न वहाँ उनकी चप्पल थी , न वो भिखारी | थोड़ी बहुत देर तक परेशां हो वो नंगे  पैर ही घर की तरफ चल पड़े | स्वाद का ज्ञान रास्ते में फुटपाथ पर एक आदमी पुराने जूते -चप्पल बेंच रहा था | मोहनलाल जी रुक कर देखने लगे | वहीँ पर उनकी  चप्पले रखी हुई थी | मोहनलाल जी ने चप्पल का दाम पूंछा ? दुकान दार ने कहा , ” अभी -अभी एक आदमी १०० रूपये में बेंच कर गया है , आप को भी उतने में ही लगा दूंगा | सुनकर मोहनलाल जी मुस्कुराए | आज उन्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था |  वे नंगे पैर ही घर की और चल पड़े | भिखारी के भाग्य में आज १०० रूपये लिखे थे | वो उसे मिलने ही थे … चाहे वो चप्पल की रखवाली कर के ईमानदारी से कमाता , चाहे उसने चप्पले चोरी कर और बेंच कर कमाए | भाग्य का लिखा हमें मिलना ही है पर उस लिखे को प्राप्त करने में हम कर्म क्या कर रहे हैं ये हमारा अगला भाग्य बनेगा | प्रेरक कथा टीम ABC यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness चोंगे को निमंत्रण गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “भाग्य में रुपये ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

भोजन की थाली

            कहते है जब इंसान भूखा होता है तो उसको सिर्फ एक चीज ही दिखाई देती है , वो है रोटी | भूखा व्यक्ति तो चाँद को भी रोटी समझता है | फिर वो तो बच्चे थे | कडकडाती ठंड के दिन , जब बड़े घरों के लोग चार -चार स्वेटर , कोट मफलर व् मोजों में पैक हो कर भी काँप रहे थे | तो एक छोटी सी कम्बली में तीन प्राणी कहाँ समाते | पेट की भूख सोने भी नहीं देती | कभी  दो साल की गुडिया कहती अम्मा रोटी ,तो कभी तीन साल का पप्पू माँ से रोटी की गुहार लगाता | लाचार बुखार से तपती विधवा माँ उठकर खाली बर्तन में पानी भर कर चमचे  से चलाती | बच्चों को दिलासा देती , सो जाओं अभी दाल पक रही है | पर ये खेल ज्यादा देर तक नहीं चल सका बिलबिलाते बच्चों की भूख से दिल का ताप इतना बढ़ा कि देह ठंडी पड़ गयी | लोगों ने पैसा जमा कर  क्रियाकर्म की व्यवस्था की | उन्हीं जमा पैसों से  तेरहवीं के खाने की व्यवस्था की | विडम्बना है कि जो लोग जीते पर पैसे इकट्ठे कर के दो रोटी न दे सके , वो तेरहवीं का भोज खिलवा  रहे थे | जिन्दा से मरे का भय इंसान को ज्यादा होता है , फिर आखिर छोटे बच्चों को छोड़ कर गयी थी , आत्मा तो भटक ही रही होगी | गुडिया और , पप्पू की फिकर किसी को नहीं थी , वो तो तो यूँ ही अगल -बगल में खेलते -खाते बड़े हो ही जायेंगे | पढ़िए -लाटरी का टिकट तेरहवीं का भोज सज चुका  था | गुडिया और पप्पू अंगुलियाँ चाट -चाट कर खाए जा रहे थे | उन्हें माँ से ज्यादा इस समय रोटी की जरूरत थी | किसी ने पूड़ी हाथ में ले दौड़ती गुडिया को टोंका , माँ मरी है और बच्ची को देखो कैसे चटखारे ले ले कर खा रही है | एक पल को गुडिया सहम गयी , हाथ रुक गए , धीरे से बोलने वाले के पास जा कर कहने लगी , काकी त्या अब पूली पप्पू ते मरने पर मिलेगी | मैं पप्पू ते कहूँगी जल्दी मर जाओ , मुझे दोबारा पूली खानी है | पढ़िए -दो मेंढक                                      दोस्तों ये गुडिया नहीं उसकी भूख बोल रही थी | दरसल ये एक कहानी नहीं सन्देश है , जो खाना आप बर्बाद कर देते हैं उसकी किसी को कितनी आवश्यकता है | कहते हैं जितना खाना अमेरिका में फेंका जाता है उससे पूरे सोमालिया का पेट भर जाए | प्लेट में खाना छोड़ना भले ही पैसे वालों का शौक हो , पर   भूखे के लिए वो जीवन है | प्लेट में उतना ही खाना लें जितना जरूरी हो अपनी  क्षमता भर अन्न जरूरत मंदों को बाँटे दीप्ति दुबे यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness चोंगे को निमंत्रण गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ भोजन की थाली ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

चोंगे को निमंत्रण

चोंगा बाहरी चमक -दमक आकर्षित तो करती है, परन्तु इंसान की  असली पहचान  उसके गुण उसके संस्कार या उसका ज्ञान होता है | जो चमक -धमक् में उलझा रहता है , उसके लिए ज्ञान का मार्ग कठिन हैं Motivational Hindi story -chonge ko nimntran   बहुत समय पहले की बात है एक झेंन गुरु थे | वो भिक्षा मांग कर भोजन करते व् सादा जीवन जीते थे | शाम को अक्सर वो अपने आश्रम के पास प्रवचन दिया करते थे | कुछ लोग उन्हें सुनने आते , और उनसे प्रभावित होते | धीरे -धीरे उनके प्रवचनों की चर्चा शहर में होने लगी |  शहर में एक व्यापारी था , उसे लोगों से उस गुरु के बारे में जानकारी मिलती रहती थी | उसकी पत्नी को भी लोग उनके प्रवचन के बारे में बताते |  उसकी पत्नी की गुरु के पास जाने की इच्छा हुई | उसने अपनी इच्छा अपने पति को बताई | पति ने कहा , ” मैंने भी उनके बारे में सुना है मैं भी उनके विचार पसंद करता हूँ , ऐसा करते हैं मैं वहाँ  जा कर अगली एकादशी को उनको भोजन के लिए आमंत्रित कर लेता हूँ | वो यहाँ  आयेंगे , तब तुम इत्मिनान से उनके प्रवचन सुन लेना | पत्नी राजी हो गयी | व्यापारी गुरु के आश्रम में गया | उसने प्रवचन सुनने के बाद गुरु के पास जाकर १० दिन बाद एकादशी पर अपने घर भोजन का आमंत्रण दिया | गुरु जी ने उसका आमंत्रण स्वीकार कर लिया | घर आ कर उसने नगर के कई खास लोगों को आमंत्रित किया कि   एकादशी के दिन मेरे घर में झेन गुरु आ रहे हैं आप भी आइयेगा | उनका प्रवचन सुनेगे व् भोजन करेंगे | एकादशी के दिन उसने आने घर को अच्छे से सजाया | बाहर प्रवचन के लिए पंडाल लगवाया , तरह -तरह के सुस्वादु भोजन तैयार करवाए | झेंन  गुरु तो ठहरे योगी , वो अपने भिक्षा मांगने वाले कपड़ों में ही वहां पहुँच गए |  व्यापारी उन्हें पहचान नहीं पाया | उसने उनकी बेईज्ज़ती करके बाहर भगा दिया | झेन गुरु अपने आश्रम गए | उन्होंने राजा द्वारा भेंट किया हुआ कीमती चोंगा पहना | चोंगा बहुत ही आकर्षक था | उसमें सोने की जरी का काम व् बेशकीमती मोती लगे थे | जब वो चोंगा पहन कर गुरु व्यापारी के घर पहुंचे तो व्यापारी ने उन्हें बहुत आदर से अन्दर बुलाया व् भोजन करने का आग्रह किया | उसी समय झेंन गुरु ने अपना चोंगा उतार कर पाटे पर रख दिया और कहा , ” अब ये चोंगा भोजन करेगा | व्यापारी सकते में आ कर पूंछने लगा , ” क्यों महाराज “? झेंन गुरु ने उत्तर दिया , ” तुमने इसे ही आमंत्रित किया था | अब ये ही भोजन करेगा | “                          सारी  घटना जानने के बाद व्यापारी को बहुत पश्चाताप हुआ और उसने गुरु से माफ़ी मांगी | उस दिन झेन गुरु ने प्रवचन देते हुए कहा ,” जो सिर्फ वस्त्रों में अटका है वो मनुष्य को नहीं देख सकता , जो इरफ शरीर में अटका है वो आत्मा को नहीं देख सकता , वस्त्र और शरीर दोनों चोंगे उतार दो तब ज्ञान के पात्र बनोगे | अटूट बंधन परिवार यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness कोई तो हो जो मुझे समझ सके सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ चोंगे को निमंत्रण ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

प्रेरक कथा -दो मेंढक

                                दो मेंढक एक ऐसी प्रेरक कथा है  हमें बहुत कुछ सोंचने पर विवश कर देती हैं | यकीनन मेंढक को प्रतीक बना कर  कर कही गयी ये कथा हमारी  दुविधा को कम कर के सफलता का रास्ता दिखाती है |  Motivational story-Two frogs(in Hindi) दो मेंढक थे वो बहुत अच्छे दोस्त थे | हर जगह साथ- साथ जाते | साथ -साथ घुमते फिरते , खेलते कूदते , खाते -पीते| एक बार की बात है वो एक कुए के ऊपर से गुज़र रहे थे | कुआं ज्यादा गहरा नहीं था , पर उसमें काई बहुत थी | कुए के ऊपर भी काई थी | उनका पैर फिसला और वो कुंए में गिर पड़े | कुए में गिरते ही वो दोनों बचाओ -बचाओ चिल्लाने लगे , साथ ही बाहर निकलने की कोशिश करने लगे | | आसपास के मेंढक कुए की जगत पर इकट्ठे हो गए | ये दोनों मेंढक जितनी कोशिश करते उतनी बार ही वापस कुए में गिर जाते | जो मेंढक बाहर इकट्ठे थे , जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो जोर -जोर से चिल्लाने लगे , ” कोशिश बेकार है तुम लोग नहीं निकल पाओगे , हाथ पैर  मत चलाओ ,  होनी को स्वीकार कर लो | अब उनमें से एक मेंढक तो उनकी बात मान गया और निराश हो कर हाथ पैर चलने बंद कर दिए , वो ईश्वर को याद करने लगा | क्योंकि अगर मदद करेंगे तो वो ही करेंगे और नहीं करेंगे तो अंत समय भगवान् का नाम लेने से अच्छा ही रहेगा | परन्तु दूसरा मेंढक कोशिश करता रहा | लोग चिल्लाते रहे मत करो , कोशिश बेकार है पर उसने एक न मानी वो कोशिश करता रहा | यहाँ तक की वो लहु लुहान हो गया , फिर भी बाहर निकलने की कोशिश करता रहा | अंत में उसने एक ऐसी छलांग लगायी कि वो बाहर आ गया पर उसका दोस्त कुए में डूब कर मर चूका था | आप जानते हैं कि वो मेंढक कैसे निकला … क्योंकि वो मेंढक बहरा था |                          मित्रों ये केवल प्रतीक हैं | जब भी हम कुछ काम शुरू करते हैं दस लोग आ जाते हैं जो हमें डीमोटीवेट करते हैं , रहने दो तुमसे नहीं होगा , जाने दो , छोड़ दो … ये बातें हमारे आत्मबल को कम करती हैं | और हम में से ज्यादातर लोग काम को छोड़ देते हैं | परन्तु जो लोग इन बैटन को अनसुना करके अपना प्रयास नहीं रोकते हैं , सफलता न मिले तब भी करे जाते हैं | अन्तत: उन्हें ही सफलता मिलती हैं | सबसे बड़ा रोग -क्या कहेंगे लोग … संदीप माहेश्वरी  टीम ABC यह भी पढ़ें … लाटरी का टिकट टूटे नहीं chain of happiness कोई तो हो जो मुझे समझ सके सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “ प्रेरक कथा -दो  मेंढक” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें