लॉटरी का टिकट

                                              लॉटरी का टिकट भले ही दस- बीस रुपये का हो , वो इंसान को करोण  रुपये जिता  कर मालामाल कर सकता है |  यह एक भाग्य का खेल है और कभी शायद भाग्य साथ दे जाए इसी आशा में लोग लॉटरी खरीदते हैं | पर यहाँ आज इस कहानी के माध्यम  से एक सीख देने की कोशिश की गयी है – Motivational Hindi story- Lottery ka ticket बहुत समय पहले की बात है| एक आदमी था वो जो भी काम करता उसे असफलता ही मिलती |  थोडा -थोडा कर के उसका बहुत सारा पैसा डूब गया | अब उसके पास कोई नया काम करने का पैसा भी नहीं था| लोगों ने उसे समझाया तू किसी के यहाँ नौकरी कर ले , कम से कम पेट तो भरेगा | भाग्य की मार है , अब ईश्वर ने यही लिखा है तो यही सही|  इन सब बातों  से उस व्यक्ति का दुःख और बढ़ गया| उसको लगने लगा ईश्वर ने उसके नसीब में हार ही क्यों लिखी है |  यही सोंचते -सोंचते एक दिन वो मंदिर पहुँच गया| मंदिर बहुत सुनसान जगह पर था | कोई था नहीं इसलिए वो भगवान् की मूर्ति के पाँव पकड कर बहुत देर तक रोता रहा , और कहता रहा , भगवान् मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था , जो तुमने मेरे हिस्से में हार लिखी है | हर कदम पर असफलता लिखी है | अब मैं क्या करूँ ? सुना है तुम सब कुछ कर सकते हो | कम से कम एक लॉटरी का टिकट ही लगवा दो |  ये प्रार्थना  करके वो घर चला गया |  अब वो हर दूसरे तीसरे दिन मंदिर आता और भगवान् से कहता ,” हे प्रभु दया करो , कम से कम एक लॉटरी का टिकट ही लगवा दो | ऐसा करते -करते करीब एक साल बीत गया |  वो आदमी फिर मंदिर आया | उसने भगवान् के आगे बैठ कर फिर रोना शुरू किया ,” प्रभु  क्या बैर है मेरा आपसे , साल भर हो गया आप के पास आते -आते , अभी तक आपने मेरी प्रार्थना नहीं सुनी | आज मैं आखिरी बार आया हूँ , अब कभी आप के दरवाजे पर नहीं आऊंगा | अब तो दया करके एक लॉटरी का टिकट लगवा दो | कहते हुए वो व्यक्ति दुखी मन से मंदिर के बाहर जाने लगा , तभी मूर्ति से आवाज़ आई , ” अरे मूर्ख  पहले लॉटरी का टिकट खरीदों तो सही “|                                         मित्रों ये कहानी भले ही काल्पनिक हो पर इसकी शिक्षा सच्ची है | हम भगवान् से मांगते तो रहते हैं पर काम की  दिशा में पहला कदम ही नहीं बढ़ाते या फिर काम शुरू तो कर दिया जोश -खरोश के साथ पर वहीँ रुक जाते हैं | अगला कदम बढाते ही नहीं | ऐसे में सफलता कैसे मिलेगी | हर दिन एक लॉटरी का टिकट है जिसमें हमको बहुत सी खुशियाँ , सफलता और धन देने की क्षमता है पर उस लौटरी के टिकट  को अपनी मेहनत के द्वारा खरीदना पड़ता है | वरना सिर्फ मांगने से संसार का मालिक भी कुछ नहीं कर सकता |  टीम ABC यह भी पढ़ें … टूटे नहीं chain of happiness कोई तो हो जो मुझे समझ सके सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “लॉटरी का टिकट ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

कोई तो हो जो मुझे समझ सके

                                                          एक कार एक दुकान के आगे आकर रूकती है | उसमें से एक ६ या ७ सात साल का बच्चा  अपने पिता की अँगुली पकड़ कर दुकान में घुसता है | उसे एक प्यारा सा पिल्ला ( पपी) चाहिए जो उसके साथ खेल सके | दुकानदार एक से बढ़कर एक पल्ले दिखाता है , पर बच्चे की नज़र बार -बार उस पिल्ले  की तरफ जाती है जो दुकानदार के बगल में कुर्सी पर बैठा होता है | वो पिल्ला बहुत छोटा सा , सुन्दर सा क्यूट सा होता है | बच्चा उसी  पिल्ले  की ओर अँगुली करके कहता है कि उसे वो पल्ला पसंद है, वह उसी को लेना चाहता है | दुकानदार ने कहा कि वो उसका है वो बेचने के लिए नहीं है | दुकानदार फिर उस बच्चे से कहता है, ” आइये , मैं आपको और बहुत सारे प्यारे -प्यारे पिल्ले दिखाता हूँ | ” बच्चा देखता है उसे कोई पसंद नहीं आता| उसके मन में वही पल्ला बसा हुआ है जो दुकानदार के पास बैठा है |जिसे दुकानदार बेचने को तैयार नहीं है |                   अंत में बच्चा अपने पापा के साथ वापस जाने लगता है तो दुकानदार उसे रोक कर कहता है कि , ” मैं जानता हूँ तुम्हें ये पिल्ला पसंद हैं पर मैं उसे जानबूझकर नहीं दे रहा हूँ क्योंकि उसके एक टांग नहीं है , वो तुम्हारे से दौड़ कर खेल नहीं पायेगा | उसकी बात सुनकर बच्चा पलटता है और अपनी एक टांग से पेंट खिसका कर कहता है कि , ” देखिये मेरी भी एक टांग नहीं है , मैं वही पिल्ला लेना चाहता हूँ | क्योंकि मैं चाहता हूँ कीस दुनिया में कोई तो हो जो मुझे समझ सके |                               दोस्तों , कहीं न कहीं हम सब ढूंढते हैं एक ऐसे इंसान को जो हमें समझ सके | दर्द की भाषा नहीं होती , सिर्फ अहसास होता है |  इसीलिए खोज होती है ,पर क्या ये खोज पूरी हो पाती है ?मुश्किल है … पर असंभव नहीं |खोज जारी रहती है … ढूंढना जारी रहता है | कहीं न कहीं , किसी न किसी मोड़ पर ऐसा कोइमिल ही जाता है जो हमें पूरी तरह से समझता है | जीवन का आनन्द वहीँ से शुरू होता है | टीम ABC यह भी पढ़ें … केवल स्त्री ही चरित्र हीन क्यों टूटे नहीं chain of happiness सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “कोई तो हो जो मुझे समझ सके ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

केवल स्त्री ही चरित्रहीन क्यों?

                            पति -पत्नी का रिश्ता एक मर्यादित रिश्ता है| स्त्री और पुरुष में से जब कोई किसी तीसरे के प्रति आसक्त होता है तो चरित्रहीन की गाली  केवल स्त्री को ही क्यों मिलती है| क्यों नहीं पुरुष को भी चरित्रहीन कहा जाता है|  Why only women are labelled as “CharecterLess” एक बार की बात है महात्मा बुद्ध एक गाँव में प्रवचन देने गए, उन्होंने गाँव में घूम –घूम कर प्रवचन देना शुरू किया | तभी एक स्त्री उनके पास आई और बोली महात्मन मैं जानना चाहती हूँ कि आप ने इतनी युवावस्था में संन्यास क्यों लिया| गौतम बुद्ध ने उसे समझाया, “ ये शरीर अभी युवा है, स्वस्थ है, कल को रोग लगेंगे , वृद्धवस्था आएगी और एक दिन इस नाशवान शरीर का अंत भी होगा| जो चीज खत्म ही होनी है उससे मोह करके उसमें आसक्ति क्यों रखी जाए | क्यों न समय रहते इस शरीर का उपयोग ज्ञान को प्राप्त करने व् उसका प्रसार करने में किया जाए, जिसके लिए ईश्वर  ने हमें भेजा है| इसी कारण मैंने सन्यास लिया| स्त्री महात्मा की बात से बहुत प्रभावित हुई | उसने महात्मा बुद्ध को अपने घर पर भोजन के लिए बुलाया| महात्मा बुद्ध ने सहर्ष उसका आमंत्रण स्वीकार कर लिया| जैसे ही ये बात गाँव के लोगों को पता चली उन्होंने महात्मा बुद्ध को उसके घर जाने से मन किया| उन्हने बुद्ध से कहा, “ आप इस गाव में नए हैं, आप नहीं जानते वो स्त्री चरित्रहीन है | इसीलिये वो गाँव के बाहर की तरफ रहती है, गाँव वाले उससे संपर्क भी नहीं रखते|  उसकी बात सुन कर महात्मा बुद्ध ने उसका एक हाथ पकड लिया और कहा अब जरा ताली बजा कर दिखाओं? वह व्यक्ति थोड़ी देर हवा में हाथ चलाता रहा, फिर बोला महाराज , ये क्या अनर्थ है ? आपने मेरा एक हाथ पकड़ा हुआ है, अब एक हाथ से मैं ताली कैसे बजाऊं? महात्मा बुद्ध ने उसका हाथ छोड़ते हुए कहा,  “ अभी तुमने स्वीकार किया कि एक हाथ से ताली नहीं बज सकती, तो फिर वो स्त्री अकेली ही कैसे चरित्र हीन हो सकती है? अवश्य ही इस गाँव के पुरुष भी चरित्र हीन होंगे, पर मुझे तो कोई पुरुष अपने परिवार से दूर वहां गाँव की सरहद पर अकेले रहते नहीं दिखा|  ये दंड केवल उस स्त्री को ही क्यों? जब मैं उन घरों में भोजन कर चुका हूँ जहाँ चरित्र हीन पुरुष रहते हैं, तो मैं उस स्त्री के घर भी भोजन करने जाऊँगा| गाँव के लोगों को महात्मा बुद्ध की बात समझ आगयी और वो उनके पैरों में गिर कर माफ़ी मांगने लगे|                                       मित्रों, ये प्रेरक कथा बुद्ध के समय की है| तब से कितना समय बदला लेकिन समाज का नजरिया अभी भी स्त्रियों के लिए वैसा ही है| अभी भी दो व्यस्क लोगों द्वारा बनाये गए रिश्ते में सामाजिक अवहेलना की शिकार स्त्री ही होती है| स्त्री के ऊपर चरित्रहीन का धब्बा लग जाता है, जबकि पुरुष को ज्यादा से ज्यादा इतना कहा जाता है की वो उस स्त्री के जाल में फंस कर बहक गया था| क्यों नहीं पुरुष को भी कहा जाता है कि वो भी चरित्रहीन है| जब एक हाथ से ताली नहीं बज सकती तो फिर स्त्री अकेले ही चरित्र हीन कैसे हुई| सवाल अभी भी वहीँ है , जवाब हमें ही तलाशने होंगे? टीम ABC जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ टूटे नहीं chain of happiness सच -झूठ की परख गुलाब का बगीचा आपको  कहानी  “केवल स्त्री ही चरित्रहीन क्यों?” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

टूटे नहीं chain of happiness

                        एक बार की बात है , एक  महिला  कार ले कर किसी मीटिंग के लिए दूसरे शहर जा रही थी | रास्ते में एक सुनसान इलाका पड़ता था| उसी जगह उसकी कार  खराब हो गयी| शाम होने वाली थी , दूर -दूर तक कोई नहीं था जो उसकी मदद करता | इतनी सुनसान जगह में वो अकेले बहुत घबरा रही थी , दूसरे अगर समय पर नहीं पहुँची तो उसे लाखों का नुक्सान हो सकता था | पर उसके पास बैठ कर इंतज़ार करने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था| Motivational hindi story-tute nahin chain of happiness                      तभी वहाँ  से एक आदमी गुज़रा | उसने अपनी साइकिल रोक  कर पूंछा ,” मैडम आपको help चाहिए क्या? फिर उत्तर की  प्रतीक्षा किये बगैर साइकिल   से उतर गया | उसने उस महिला से कार की चाभी माँगी और बोनट खोल कर चार ठीक करने लगा, करीब डेढ़ घंटे की मेहनत के बाद वो महिला से बोला मैम आपकी कार ठीक हो गयी है , अब आप जा सकती हैं | महिला खुश हो गयी , उसने उस व्यक्ति को कुछ पैसे देने चाहे तो उस व्यक्ति ने मना कर ते हुए कहा , ” मैडम मेरा एक उसूल है , मैं मदद के पैसे नहीं लेता, आप से भी नहीं लूँगा| पर मैं एक वादा लेता हूँ ,अगर आप को कभी कोई ऐसा मिले जिसको मदद की जरूरत हो तो आप उसकी मदद कर देना | किसी की मदद करने में जो ख़ुशी मिलती है वो अनमोल है , ये chain of happiness टूटे नहीं , हर जरूरत मंद को मदद मिलती रहे यही मेरी इच्छा है| “कहकर वो ओनी साइकिल  ले कर चला गया | वो महिला भी अपनी कार ले कर आगे की ओर बढ़ गयी | रास्ते में एक कॉफ़ी शॉप थी, महिला ने सोंचा चलो , चलकर काफी पीलें, थोडा fresh feel करेंगे | वह कार से उतर कर कॉफ़ी शॉप में गयी , वहां एक लड़की जो काफी बीमार लग रही थी , सबको कॉफ़ी  सर्व कर रही थी | वो बड़े प्यार से हँस – हंस कर सबको कॉफ़ी दे रही थी , परन्तु उसकी चाल बारबार लडखडा जाती थी | उसको देख कर महिला ने कुछ पूँछना चाह पर यह सोंच कर रह गयी कि कहीं उसे बुरा न लगे | कॉफ़ी  पी कर जाते समय उस महिला ने एक लिफाफा वहाँ  उस लड़की के लिए इस नोट के साथ छोड़ दिया कि तुम्हारे पैर में जो बिमारी है उसे इलाज की जरूरत है | मुझे आज एक व्यक्ति मिला था जिसने मेरी हेल्प की | मेरा लाखों का नुक्सान होने से बचाया , उसी की chain of happiness को आगे बढाते हुए मैं ये 10, 000 रुपये तुम्हारे लिए छोड़े  जा रही हूँ , अपना इलाज करा लेना | जब उस लड़की को वो लिफाफा मिला तो उसकी आँखें भर आयीं | वो पैसे लेकर अपने घर गयी और अपने पिता से बोली , ” अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है , ईश्वर की कृपा से मेरे इलाज़ का इंतजाम हो गया है , अब आप निश्चिन्त हो कर विनोद भैया के यहाँ ये सिलाई मशीन लौटा दे , अपना काम ठप्प होने से उन्हें भी काफी आर्थिक दिक्कत हो रही होगी | क्योंकि मुझे जिन्होंने पैसे दिए हैं  उन्होंने कहा है कि chain of happiness रुकनी नहीं चाहिए | उस लड़की के पिता पैसे पा कर बाहुत खुश हुए | वो सिलाई मशीन उठाकर विनोद के घर गए | उस समय विनोद वहाँ  नहीं था , वह उसकी पत्नी को बहुत धन्यवाद देते हुए मशीन लौटा आये | विनोद घर आया तो उसकी पत्नी ने कहा , ” आज  फिरोज चचा मशीन लौटा गए , अब तुम बेकार नहीं बैठोगे , न घर में खाने की कमी होगी, सच में तुम्हारी chain of  happiness हमारे लिए भी काम करती है | जवाब सुन कर विनोद मुस्कुराया| विनोद वही साइकिल वाला लड़का था , जिसने सुनसान रास्ते पर उस कार वाली महिला की मदद की थी |                               मित्रों ये प्रेरक कथा सिर्फ प्रेरक कथा नहीं है , ये बताती है हम सब इस कदर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं कि अगर हम किसी की मदद करते हैं , तो हमारे पास भी जरूरत के समय कहीं न कहीं  से मदद आ जाती है और ये chain of happiness टूटती नहीं है |                                             अगर आप को ये कहानी पसंद आई हो तो आपभी किसी जरूरत मंद की मदद करके chain of happiness को आगे बढ़ा दीजियेगा | टीम ABC जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ संता क्लॉज आयेंगे  सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “टूटे नहीं chain of happiness” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

सच – झूठ की परख

                                                आजकल जरा – जरा सी बात  पर लोगों में वाद विवाद हो जाता है | हर कोई अपने ही पक्ष को सत्य मानकर दलील पर दलील देता हैं ,किसी दूसरे को सुनने को तैयार नहीं होता |  ऐसी बहस का कोई भी अंत नहीं होता | क्योंकि कई बार कोई भी तर्क पूरा सच नहीं होता | Motivational story in Hindi- sach- jhooth ki parakh                            एक बार एक गाँव में 6 अंधे रहते थे | तभी उस गाँव में  एक सर्कस आया, जिसमें हाथी थे| उन व्यक्तियों ने हाथी  को कभी देखा नहीं था , बस सुना था , वो उसे छू कर उसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते थे | वो  महावत के पास पहुंचे व् अपनी इच्छा जाहिर की | महावत ने सबसे बूढ़े और सबसे शांत हाथी  से मिलने की इजाज़त दे दी | वो सब ख़ुशी -ख़ुशी हाथी  से मिलने गए | और उसी छू  कर महसूस करने लगे | सब ने हाथी के अलग – अलग हिस्से को छुआ | पहले व्यक्ति ने हाथी के पैर को छुआ , उसे लगा हाथी खंबे जैसा होता है | दूसरे ने उसके पेट को छुआ , उसे लगा हाथी दीवार जैसा होता है | तीसरे व्यक्ति ने हाथी के कान को छुआ , से लगा हाथी  बड़े पंखे जैसा होता है | चौथे व्यक्ति ने हाथी के दांत को छुआ , उसे लगा हाथी एक बड़ी नली जैसा होता है | पांचवें व्यक्ति ने हाथी की सूंढ़ को छुआ , उसे लगा हाथी अजगर जैसा होता है | छठे व्यक्ति ने हाथी की पूँछ को छुआ , उसे लगा हाथी रस्सी जैसा होता है |  जब वो वापस लौट कर आये तो हाथी  के बारे में वो बताने लगे जो उन्होंने अनुभव किया है | पर सबके अनुभव अलग थे | थोड़ी ही देर में वो सब लड़ने लगे | सब को अपना अनुभव सही लग रहा था | कोई किसी की बात मानने को तैयार नहीं था | तभी गाँव का एक व्यक्ति वहां से गुज़रा उनको लड़ते देख कर कारण पूंछा ? पूरी बात जानने के बाद वो बोला , ” आप सब सही कह रहे हैं , आप सब ने सही अनुभव किया , पर आपका अनुभव हाथी  का एक हिस्सा है , पूउरा हाथी आप सब के अनुभवों को मिला कर बनता है |                          मित्रों , धर्म हो या कर्म हो या कोई अन्य विवाद ,हम सब अक्सर अपन तर्क को सही मान कर लड़ते हैं | पर पूरा सच या पूरा झूठ कुछ नहीं होता | बस वो सच का एक हिस्सा होता है | टीम ABC यह भी पढ़ें … जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ संता क्लॉज आयेंगे  सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सच – झूठ की परख ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

गुलाब का बगीचा

                                                 जो भी है बस यही एक पल है| आज  यानि PRESENT , जानते हैं इसे PRESENT क्यों कहा जाता है ? क्योंकि हर आज ईश्वर का दिया हुआ एक खूबसूरत तोहफा है | पर हम अक्सर PASTकी यादों या FUTURE की चिंता में इतना खोये रहते हैं की कि ईश्वर  के दिए इस PRESENT को सही तरीके से नहीं जी पाते | आइये पढ़े , इसी विषय पर एक खूबसूरत प्रेरक कथा |  Hindi Motivational story on Power of now एक बार की बात है एक आदमी एक संत के पास गया और बोला , ” संत जी , मैं बहुत मुश्किल में हूँ , मेरी जिंदगी में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है | जो सोंचता हूँ वो होता नहीं , वो मिलता है जो चाहता नहीं | मैं रोज प्लान बनाता हूँ पर हर दिन गलत ही बीतता है | मेरी मर्जी के विपरीत बीतता है | कुछ ऐसा उपाय कर दीजिये कि मेरा भविष्य अच्छा हो जाए | संत ने उसकी बात सुनी और कहा ,” देखो मैं समझ सकता हूँ की तुम्हारी जिन्दगी में कुछ भी अच्छा नहीं बीत रहा , हर बात विपरीत हो रही है इसलिए स्वाभाविक है कि तुम चाहते हो कि भविष्य में तुम खुश रह सको | तो चिंता करने की कोई बात नहीं है , मैं उसके लिए एक छोटी सी पूजा कर देता हूँ |  वो देखो सामने गुलाब का बगीचा है उसमें से जाकर सबसे खिला हुआ फूल ले आओ , पर याद रखना तुम्हें  जो फूल दिखे उसे ही लेना है , वापस पलट कर  फूल नहीं लेना है | वो आदमी बहुत खुश हुआ उसने सोंचा , बस इतनी सी बात , मैं सबसे खूबसूरत व् खिला हुआ फूल ले कर आऊंगा | वो बगीचे में  आगे की और चल पड़ा | बगीचे में बहुत सुन्दर फूल खिले हुए थे | उसने उन फूलों को देखा , पर उसे लगा शायद इससे भी अच्छा फूल आगे मिल जाए | इसलिए वो आगे बढ़ता गया … बढ़ता गया और अच्छे फूलों को छोड़ता गया ….पर ये क्या आगे जाने पर तो फूल मुरझाये से थे , वो तो पूरे खिले भी नहीं थे | उस आदमी को बहुत दुःख हुआ पर पीछे मुड़ के तो फूल तोड़ नहीं सकता था , इसलिए जैसा भी फूल मिला ले लिया | जब वो संत के पास  पहुँचा तो बड़े ही निराश मन से उसने वो मुरझाया हुआ फूल संत को देते हुए कहा ,” मैं सबसे ज्यादा खिले हुए फूल की तलाश में आगे बढ़ता रहा … बढ़ता रहा , पर आगे के फूल तो सब मुरझाये हुए थे | निराश हो कर मुझे यही मुरझाया फूल लाना पड़ा | आप इसी से पूजा कर दीजिये |” संत बोले ,  ” कैसी पूजा , ये तो मैंने तुम्हें समझाने के लियी किया था | सुबह तुम जिंदगी से शिकायत कर रहे थे , तुम्हारे  जीवन में ये अच्छा नहीं है , वो अच्छा नहीं है … आगे शायद ये बदल जाए , वो बदल जाए तो अच्छा लगे | ये जिंदगी गुलाब के फूलों का बगीचा ही तो है |  अपनी जिन्दगी में भी तुम किसी सबसे खिले फूल की तलाश में लगे हो , और अभी के उनसब फूलों को छोड़ रहे हो |  जानते हो जिन्दगी के बगीचे के ये फूल छोटी- छोटी खुशियाँ हैं , जिनका आनंद तुम अभी ले सकते हो | अभी तुम्हारे माता – पिता तुम्हारे साथ हैं , उनका स्नेह ले सकते हो , बच्चों को स्नेह दे सकते हो , उनकी शरारतों का आनंद ले सकते हो , शरीर स्वस्थ है तो अच्छा खा और पहन सकते हो … परन्तु ये सब करते हुए तुम आनंद नहीं ले रहे , किसी बड़ी ख़ुशी की तालाश में इन्हें छोड़ रहे हो | आगे जाने पर अपनी गलती का अहसास होगा फिर मुझाये फूलों के आलावा हाथ में कुछ नहीं रहेगा |                      मित्रों क्या हम सब उस व्यक्ति की तरह , आज की खुशियों को छोड़ भविष्य की किसी बड़ी ख़ुशी की छह में चिंतित नहीं रहते हैं | क्या ये जरूरी नहीं की जिंदगी गुलाब के फूलों का बगीचा है और हमें आज के फूलों को और आज की खुशियों को ही चुनना चाहिए | टीम ABC यह भी पढ़ें …….. जब स्वामी विवेकानंद जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “ संता क्लॉज आयेंगे  सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सेंटा क्लॉज आएंगे ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords : Power of now, rose garden, future, today, power of today

स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष : जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “

स्वामी विवेकानंद हमारे देश का गौरव हैं| बचपन से ही उनके आम बच्चों से अलग होने के किस्से  चर्चा में थे | पर कहते हैं न की कोई व्यक्ति कितना भी महान  क्यों न हो, कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है| स्वामी विवेकानंद जी के भी कुछ पूर्वाग्रह थे , जो उनको एक सच्चा संत बनने के मार्ग में बाधा बन रहे थे| परन्तु अन्तत: उन्होंने उस पर भी विजय पायी, परन्तु ये काम वो अकेले न कर सके इसके लिए उन्हें दूसरे की मदद मिली | क्या आप जानते हैं स्वामी विवेकानंद के पूर्वाग्रह तोड़ कर उन को पूर्ण रूप से महान संत का दर्जा दिलाने वाली कौन थी? उत्तर जान कर आपको बहुत आश्चर्य होगा… क्योंकि वो थी एक वेश्या |आइये पूरा प्रकरण जानते हैं – स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष प्रसंग                           ये किस्सा है जयपुर का, जयपुर के राजा स्वामी राम कृष्ण परमहंस व् स्वामी विवेकानंद के बहुत बड़े अनुयायी थे| एक बार उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपने महल में आमंत्रित किया| वो उनका दिल  खोल कर स्वागत करना चाह्ते थे | इसलिए उन्होंने अपने महल में उनके सत्कार में कोई कमी नहीं रखी| यहाँ तक की भावना के वशीभूत हो उन्होंने स्वामी जी के स्वागत के लिए नगरवधुएं (वेश्याएं ) भी बुला ली| राजा ने इस बात का ध्यान नहीं रखा कि स्वामी के स्वागत के लिए वेश्याएं बुलाना उचित नहीं है |  उस समय तक स्वामी जी पूरे सन्यासी नहीं बने थे| एक सन्यासी का अर्थ है उसका अपने तन –मन पर पूरा नियंत्रण हो| वो हर किसी को जाति , धर्म लिंग से परे केवल आत्मा रूप में देखे| स्वामी जी वेश्याओं को देखकर डर गए| उन्हें उनका इस तरह साथ में बैठना गंवारा नहीं हुआ| स्वामी जी ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया| जब राजा को यह बात पता चली तो वो बहुत पछताए| उन्होंने स्वामी जी से कहा कि आप बाहर आ जाए, मैं उन को जाने को कह दूँगा | उन्होंने सभी वेश्याओं को पैसे दे कर जाने को कह दिया| एक वेश्या जो जयपुर की सबसे श्रेष्ठ वेश्या थी| उसे लगा इस तरह अपमानित होने में उसका क्या दोष है| वह इस बर्ताव से बहुत आहत हुई| वेश्या ने भाव -विह्वल होकर गीत गाना शुरू किया  उस वेश्या ने आहात हो कर एक गीत गाना शुरू किया| गीत बहुत ही भावुक कर देने वाला था| उसके भाव कुछ इस प्रकार थे … मुझे मालूम  है मैं तुम्हारे योग्य नहीं, तो भी तुम तो करुणा  दिखा सकते थे मुझे मालूम है मैं राह की धूल  सही , पर तुम तो अपना प्रतिरोध मिटा सकते थे मुझे मालूम है , मैं कुछ नहीं हूँ, कुछ भी नहीं हूँ मुझे मालूम है, मैं पापी हूँ, अज्ञानी हूँ पर तुम तो हो पवित्र, तुम तो हो महान, फिर भी मुझसे क्यों भयभीत हो  जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ “                  वो वेश्या आत्मग्लानि से भरी हुई रोते हुए ,बेहद दर्द भरे शब्दों में गा रही थी | उसका दर्द स्वामी जी की आँखों से बरसने लगा| उनसे और कमरे में न बैठा गया वो दरवाजा खोलकर बाहर आ कर बैठ गए| बाद में उन्होंने डायरी में लिखा,मैं हार गया| एक विसुद्ध आत्मा से हार गया | डरा हुआ था मैं,लेकिन इसमें उसका कोई दोष नहीं था, मेरे ही अन्दर कुछ लालसा रही होगी, जिस कारण मैं अपने से डरा हुआ था| उसकी विशुद्ध आत्मा और सच्चे दर्द से मेरा भय दूर हो गया| विजय मुझे अपने पर पानी थी, किसी स्त्री का सामना करने पर नहीं| कितनी विशुद्ध आत्मा थी वह, मुझे मेरे पूर्वाग्रह से मुक्त करने वाली कितनी महान थी वो स्त्री |                      मित्रों अपनी आत्मा पर विजय ही हमें सच में महान बना ती है| जब कोई लालसा नहीं रहती , तब हमें कोई व्यक्ति नहीं दिखता, केवल आत्मा दिखती हैं .. निर्दोष पवित्र और शांत     प्रेरक प्रसंग से  टीम ABC  यह भी पढ़ें … विश्वास ओटिसटिक बच्चे की कहानी लाटा एक टीस सफलता का हीरा आपको आपको  लेख “ स्वामी विवेकानंद जयंती पर विशेष : जब स्वामी जी ने डायरी में लिखा , ” मैं हार गया हूँ ”   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  फोटो क्रेडिट –विकिमीडिया कॉमन्स KEYWORDS :Swami Vivekanand,Swami Vivekanand jaynti

सेंटा क्लॉज आएंगे

                                                                                            कहते हैं आस्था का कोई रूप नहीं होता आकार नहीं होता | पर वो हमारे मन में गहरे कहीं निवास करती है और समय समय पर चमत्कार भी दिखाती है | इसी आस्था और विश्वास पर आइये पढ़ें …. Santa claus aayenge-  Hindi story on faith  दिव्या क्रिसमस की तैयारी के लिए स्टार्स , क्रिसमस ट्री बैलून्स व् गिफ्ट्स खरीद रही थी | तभी स्वेता जी दिख गयीं |  देखते ही बोलीं ,” अरे , आप ये सब खरीद रही हैं | आप तो क्रिस्चियन नहीं हैं | दिव्या ने मुस्कुरा कर कहा हां , पर मेरे घर में भी सेंटा क्लॉज  आते हैं | इससे पहले की वो कुछ कहतीं दिव्या उन्हें उनके सवालों के साथ छोड़ कर आगे बढ़ गयी |                                        घर आ कर उसने सामान रख दिया और बालकनी में चाय का प्याला ले कर बैठ गयी |  चाय की चुस्कियों के साथ वो उस दिन को याद करने लगी जब उसने पहली बार क्रिसमस मनाई थी | तब गौरांग मात्र ३ साल का था | उसने जिद की थी कि हमारे घर में भी क्रिसमस ट्री , स्टार्स सजाये जायेंगे | सेंटा क्लाज आयेंगे | वो गिफ्ट देंगे | वो भी बच्चे का मन रखने के लिए सब सामान ले आई | २२ को नितिन को ऑफिस के टूर  पर जाना था | उनका मन भी जाने का नहीं कर रहा था | पर  जाना जरूरी था | इधर नितिन गए उधर गौरांग को तेज जापानी  बुखार ने घेर लिया | पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस इलाके में जापानी बुखार का प्रकोप रहता  रहा है | कई मासूम बच्चों को इसने  कभी सपने न देखने वाली गहरी नीद में सुला दिया था | दिव्या बेहद डर  गयी | पर गौरांग सेंटा क्लाज आयेंगे,  इसलिए क्रिसमस सेलिब्रेट करने  की जिद करता रहा | हलकी बेहोशी में भी उसकी फरमाइश जारी रही | मन न होते हुए भी दिव्या ने क्रिसमस ट्री पर गिफ्ट्स से सजा दिया | दवा ने थोडा असर किया | गौरांग थोडा सा चैतन्य हुआ | २४ दिसबर की शाम को गौरांग जिद कर रहा था ,” मम्मा , आप खिड़की मत बंद करना सेंटा क्लॉज आयेंगे | अगर खिड़की बाद होगी तो वो अन्दर कैसे आयेंगे | गिफ्ट कैसे देंगे | वो उसको समझाती रही की सर्दी है  , तुम्हे बुखार है , हवा लग जायेगी | इसे बंद कर लेने दो | पर गौरांग रोता रहा … जिद करता रहा | थोड़ी देर में गौरांग की हालत बिगड़ने लगी | डॉक्टर ने हालत क्रिटिकल बतायी | और उसे हॉस्पिटल में एडमिट कर के दिव्या को कुछ जरूरी सामन लाने को कहा | घबराई सी दिव्या घर गयी | सामान थैले में भरते हुए उसकी नज़र बेड रूम की खिड़की पर गयी | न जाने क्या सोंच कर उसके दोनों हाथ जुड़ गए ,” हे सेंटा मेरे बच्चे का जीवन मुझे गिफ्ट में दे दो | फिर आंसूं पोंछती हुई वो घर में ताला लगा कर हॉस्पिटल पहुंची | सारी रात मुश्किल से कटी | सुबह डॉक्टर ने गौरांग को आउट ऑफ़ डेंजर घोषित कर दिया | दिव्या ने चैन की सांस ली |                                  जब गौरांग को ले कर वो वापस घर आई तो  क्रिसमस गुज़र चुका था पर बेड रूम की खिड़की अभी भी खुली थी | खुली खिड़की देख गौरांग चहक कर बोला ,” मम्मा क्या सेंटा  क्लॉज आये थे ?उसने गौरांग का माथा चूमते हुए कहा ,” हां बेटा , सच में आये थे | तो उन्होंने गिफ्ट में क्या दिया ? गौरांग ने रोमांचित होते हुए पूंछा उन्होंने गिफ्ट में तुम्हे दिया .. दिव्या ने उत्तर दिया | मुझे … गौरांग को बहुत आश्चर्य हुआ |                                             पर दिव्या को  उसके बाद हर क्रिसमस को  सेंटा क्लॉज का इंतज़ार रहने लगा | वो हर क्रिसमस पर इस विश्वास के साथ स्टार्स व् ट्री सजाती कि … सेंटा क्लॉज़ आयेंगे |इसलिए तो हर क्रिसमस की ठीक एक रात पहले वो बेड रूम की खिड़की खोल कर तारों में कहीं सेंटा क्लॉज को ढूंढते हुए उन्हें धन्यवाद देना नहीं भूलती हैं | नीलम गुप्ता उसकी मौत झूठा सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सेंटा क्लॉज आएंगे ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords: santa claus’s, christmas, christmas tree, faith, christmas gifts

बाल कहानी -जब झूठ महंगा पड़ा

आज हम आपके लिए लेकर आये हैं एक बाल कहानी | ये बाल कहानी है उस नन्हे बच्चे के बारे में जिसका पढने में बिलकुल मन नहीं लगता था | इसलिए उसका होम वर्क कभी पूरा ही नहीं हो पाता था | होम् वर्क न पूरा होने की वजह से  उसको डर  लगता की स्कूल जाने पर टीचर की मार खानी पड  सकती है | इसलिए वो रोज कोई न कोई झूठी  कहानी बना कर स्कूल जाने से मना  कर देता | कई दिन तक तो मम्मी – पापा उसके बहानों  पर विश्वास करते रहे | पर धीरे – धीरे उन्हें भी विश्वास हो गया की ये झूठ बोल रहा है | फिर क्या था उन्होंने ऐसी चाल चली की बच्चे को सच बोलना ही पड़ा | आइये पढ़ते हैं बाल कहानी – जब झूठ महंगा पड़ा  ये कहानी है दो जुड़वां बच्चों की | एक का नाम था मोहन और दूसरे का नाम सोहन |वैसे तो दोनों जुड़वां थे पर दोनों के स्वाभाव में बहुत अंतर था | जहाँ मोहन गंभीर प्रकृति का व् अपना काम समय से पूरा करने वाला था | वहीँ सोहन खिलंदड़ा व् आलसी प्रकृति का | माँ – पापा सोहन को बहुत समझाते पर वो तो बदलने का नाम ही नहीं लेता | दोनों साथ – साथ स्कूल जाते … पर लौटते साथ नहीं | कारण सोहन को होम वर्क पूरा न करने के कारण सजा मिल जाती | और उसे वहीँ पिछले दिन का होम् वर्क  पूरा कर के लौटने को मिलता | अब उसके ऊपर घर में जा कर आज का होम वर्क  करने का प्रेशर होता | जहाँ एक और मोहन स्कूल से आ कर खाना खा कर होम वर्क करने बैठ जाता | वहीँ सोहन घर आ कर बिना खाना खाए खेलने में लग जाता | माँ दस बार बुलातीं तब आता | खाना खा कर झटपट फिर खेलने लग जाता | माँ कहती ही रह जाती सोहन बेटा  होम वर्क कर लो | पर सोहन को नहीं सुनना था तो नहीं सुनना था | अब क्योंकि होम वर्क किया नहीं होता | इसलिए सुबह जहाँ मोहन जल्दी से उठ कर नहा धो कर नाश्ता कर के स्कूल चला जाता | वहीँ सोहन धीमे – धीमे काम करता … इतना धीमे की  स्कूल बस आ कर मोहन को ले कर चली जाए और वो घर में ही रह जाए | जब माँ उसे जल्दी करने को कहती तो कोई न कोई बहाना बना देता | कभी सर में दर्द तो कभी पेट में तो कभी हाथ में | उसके इन बहांनों को सुन पहले तो माँ भी उन पर विश्वास कर लेती और स्कूल न जाने को मान जाती | पर माँ हमेशा देखती कि जैसे ही स्कूल बस मोहन को ले कर चली जाती | सोहन बिलकुल ठीक हो जाता | और सारा दिन घर में खेलता कूदता और ऊधम करता | माँ को शक होने लगा | उन्होंने ये बात पिताजी को बताई | पिताजी ने दो – तीन दिन सोहन पर नज़र रखी उन्हें भी विश्वास हो गया कि सोहन झूठ  बोल रहा है | अब प्रश्न ये था कि सोहन से सच कैसे उगलवाया जाए | आखिरकार पिताजी ने एक योजना बना ली | उन्होंने माँ को योजना बता कर कहा कि अब तुम्हे ध्यान रखना है | माँ ने हामी भर दी | अगले दिन जब माँ ने सोहन , मोहन से स्कूल जाने को कहा तो मोहन तो हमेशा की तरह उठ गया और तैयार होने लगा पर सोहन जोर – जोर से रोते हुए बोला .. आआआअ , मम्मी मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है | मैं स्कूल नहीं जा सकता | माँ ने कहा ,” ठीक है बेटा तुम घर पर आराम करो | हमेशा की तरह स्कूल बस जाते ही सोहन बिस्तर से उठ बैठा और उधम करने लगा | शाम को पिताजी   आये तो उनके हाथ में बड़े – बड़े थैले थे | उन्होंने दोनों बच्चों को बुलाया | और कहा आज स्कूल कौन – कौन गया था |  मोहन बोला ,” मैं गया था पिताजी | सोहन बोला ,” मैं नहीं गया क्योंकि मेरे पेट में दर्द था | आप क्या लाये हैं ? पिताजी बोले ,” हाँ हाँ तुम्हारे पेट में दर्द था | खैर  कोई बात नहीं | आज् मेरे  बॉस ने उन बच्चों  को इनाम दिया है जो रोज स्कूल जाते हैं | अब तुम तो बिमारी के कारण जा नहीं पाते तो ये इनाम मोहन को मिलेगा |  उन्होंने चमचमाती हुई कार जो रिमोट से चलती थी मोहन को दे दी | सोहन मन मसोस के रह गया | यही वो कार  थी जिसके लिए वो पिछले ६ महीने से जिद्द कर रहा था | अब पिताजी ने  एक घडी मोहन की कलाई पर बांधते हुए कहा ,” तुम्हारे स्कूल के प्रिंसिपल ने उन बच्चों को दी है जिनकी १०० % अटेंडेंस है | अब सोहन की आँखों में तो आंसू भर आये |  फिर भी उसे आशा थी की अगले थैले में कुछ उसके लिए भी होगा |उसने पूंछा ,” पिताजी उस थैले में क्या है ? बेटा  इसमें मैं केक लाया था | अब तुम्हारे पेट में दर्द है तो मोहन को ही दे देते हैं | और हाँ मम्मी  से कह कर तुम्हारे लिए खिचड़ी बनवा देते हैं | केक तो सोहन को बहुत पसंद था | वो रोने लगा और बोला ,” पापा मैं खिचड़ी नहीं खाऊंगा |” मैं भी केक खाऊंगा | नहीं बेटा  हम इतने तंगदिल नहीं हैं जो केक  खिला कर तुम्हारा पेट खराब करवाएं | न न , हम तुम्हें केक नहीं खाने देंगे | बल्कि केक खरीदने के बाद तुम्हारी माँ का फोन आया | वो बहुत परेशान थी कि मेरा बेटा  हमेशा बीमार रहता है अप कुछ करते क्यों नहीं | इसीलिए मैं डॉक्टर के पास चला गया | उन्होंने बहुत अच्छा उपाय बताया है | जिससे तुम हमेशा स्वस्थ  रहोगे | वो … बस तुम्हें एक हफ्ते तक रोज इंजेक्शन लगवाने पड़ेंगे | पहला इंजेक्शन लगाने वो अभी आते होंगे | इंजेक्शन नहीं हीहीही … सोहन जोर से चीखा | पर … Read more

जीवन साँप -सीढ़ी का खेल

कभी बचपन में साँप – सीढ़ी का खेल खेला है |बड़ा ही रोमांचक खेल है | हम पासा फेंकते हैं और आगे बढ़ते हैं  | आगे एक से सौ तक के रास्ते में सांप और सीढियां हैं | जब गोटी साँप  के मुँह पर आती है तो साँप काट लेता है | और गोटी साँप पूँछ की नोक तक पीछे हो जाती है | वहीँ कभी कोई सीढ़ी मिल जाती है तो खिलाड़ी  झटपट उसे चढ़ कर आगे बढ़ जाता है | आगे बढ़ना किसे ख़ुशी नहीं देता और पीछे आना किसे दुःख नहीं देता | फिर भी खेल  चलता रहता है | इस खेल में एक ख़ास बात है की जो पीछे चल रहा है पता नहीं कब उसे सीढ़ी मिल जाए और वो आगे बढ़ जाए | या फिर जो आगे है पता नहीं कब उसे साँप  काट ले और वो पीछे हो जाए | जो हारता लग रहा है अगले पल वो जीत भी सकता है | खेल का रोमांच  यही है |  कभी -कभी तो 99 पर बैठा साँप काट कर सीधा 2 पर पहुँचा देता है | हताशा तो बहुत होती है पर हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते हैं | कई बार अगली ही चाल पर अचानक से फिर सीढयाँ मिलती जाती हैं और जीत भी जाते हैं |   हार भी गए तो गम नहीं क्योंकि असली मजा तो खेलने में है … जीत हार में नहीं | क्या यही बात जीवन पर लागू नहीं होती |  यह जीवन साँप – सीढ़ी के खेल की तरह ही है  मीता और सुधा दो पक्की सहेलियां थी | दोनों का खाना पीना , पढना लिखना , खेलना कूदना साथ – साथ होता था | दोनों सिंगर बनना चाहती थी | इसके लिए बचपन से ही वो पास के स्कूल में संगीत सीखने जाया करती थीं | दोनों अच्छा गाती  भी थी | दोनों ने ही भविष्य की प्ले बैक सिंगर बनने  का ख्वाब भी पाल लिया |और इसके लिए जी तोड़ मेहनत करने लगीं |  उन दोनों को स्कूल के वार्षिक समारोह में पहला मौका मिला | मीता और सुधा दोनों की सोलो परफोर्मेंस थी | सुधा स्टेज पर जाते ही घबरा गयी | उसके सुर कहीं के कहीं लग रहे थे | सारा हॉल हँसी के ठहाकों से भर गया |सुधा स्टेज से नीचे आ कर रोने लगी |  वहीँ मीता का गायन ठीक-ठाक था | सामान्य आवाज़ में बिना उतार चढाव के उसने गाना गा दिया | उसी सिर्फ इक्का – दुक्का तालियाँ मिलीं |  मीता को भी बहुत हताशा थी |उसे बहुत अच्छे परफोर्मेंस की आशा थी |  वो सुधा  के पास  दुःख बांटने गयी | तब तक सुधा शांत हो चुकी थी | तभी प्रिंसिपल मैंम  आयीं | उन्होंने सुधा से कहा ,” गायन तुम्हारे बस की बात नहीं है | तुम इसे छोड़ दो | यही बेहतर होगा | उन्होंने मीता से भी कहा कि तुम्हें अभी बहुत रियाज़ की जरूरत है | अगर बहुत मेहनत करोगी तो शायद तुम्हें सफलता मिल जाए |  मीता  को प्रिंसिपल मैंम की बातों  से कुछ संबल तो मिला |फिर  उसके अन्दर सुधा से जीत का भाव भी था |उसने  अगली परफोर्मेंस के लिए उसने सुधा से बहुत मेहनत करने को कहा | स्वयं भी उसने बहुत मेहनत  करने का मन बनाया | पर अगली परफोर्मेंस भी वैसी ही रही | लगातार तीन परफोर्मेंस के बाद भी नतीजा वही रहा | इससे निराश हो कर मीता ने मन बना लिया कि वो गायन छोड़ देगी | पर सुधा ने गायन न छोड़ने व् निरंतर अभ्यास करने का मन बनाया |  जहाँ एक तरफ मीता सुधा से बेहतर तीन परफोर्मेंस करने के बाद भी  गायन छोड़ चुकी थी | वहीँ सुधा चौतरफा दवाब व् हतोत्साहन  झेलते हुए भी लगातार रियाज़ कर रही थी | वो अनेकों बार असफल हुई | पर एक दिन वो मौका आया जब  उसकी परफोर्मेंस बहुत उम्दा हुई | जिसे वहां मौजूद मुख्य अतिथि मशहूर फिल्म  संगीतकार के एस राव ने भी बहुत पसंद किया | उन्होंने उसे अपनी फिल्म में कुछ पंक्तियाँ गाने को दी | सुधा ने उन्हें ठीक से गा दिया उसका नाम और आवाज़ लोगों की निगाह में आने लगी | धीरे – धीरे उसे काम मिलने लगा |  आज सुधा एक मशहूर प्ले बैक सिंगर है | और मीता एक होम मेकर | मीता जो पहली परफोर्मेंस  में सुधा से बेहतर थी | पर वो असफलताओं का सामना नहीं कर पायी | उसने खेल का मैदान ही छोड़ दिया | जिससे वो बिना खेले ही हार गयी | हो सकता है वो मेहनत करती तब भी उसे सुधा जैसी सफलता न मिलती | पर कुछ सफलता तो मिलती या कम से कम अपने पहले प्यार गायन से दूर तो न होती | वो गायन जो उसकी रग -रग में भरा था | उससे दूर रह कर वो कभी खुश रह सकी होगी ?  खेल कर हारने से बिना खेले हारना ज्यादा दुखद है  असली मजा खेलने में है  सुधा और मीता की हो या हमारी – आपकी ,ये जिन्दगी साँप -सीधी के खेल जैसी है |  यहाँ असफलता के साँप  और सफलता की सीढियां हैं | कभी असफलताओं का साँप काटता है तो कभी अचानक से सीढ़ी मिल जाती है और शुरू हो जाता है सफलताओं का दौर | लेकिन जिंदगी के खेल में जब भी साँप काटता है हम निराश हो जाते हैं | कई बार अवसाद में जा कर खेल खेलना ही छोड़ देते हैं | खेल खेलना ही छोड़ दिया तो हार निश्चित है | जब साँप सीढ़ी के खेल में हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते तो जिंदगी में क्यों हम हताश होकर पासा फेंकना क्यों छोड़ देते हैं ?  पासे फेंकते रहे , क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए | और सफलताओं का सिलसिला शुरू हो जाए | वैसे भी असली मजा तो खेलने में है |                                                      दोस्तों अपनी जिंदगी को वैसे ही लें जैसे साँप सीढ़ी के खेल को लेते है |राजा हो या भिखारी जब अंत सबका एक … Read more