भगवान् ने दंड क्यों नहीं दिया
बहुत समय पहले की बात है भारत के दक्षिण में उस समय राजा चंद्रसेन का राज्य था | यूँ तो राजा चंद्रसेन शैव था पर उसके राज्य में शैव व् वैष्णव दोनों सम्प्रदाय के लोग रहते थे | राजा भी सभी का समान रूप से सम्मान करता था | फिर भी उसके राज्य में शैव और वैष्णव सम्प्रदाय में बहुत झगडे हुआ करते थे | दोनों एक दूसरे की सम्पत्ति व् पूजा स्थलों को नुकसान पहुँचाया करते थे | राजा इसे रोकने का हर संभव प्रयास करता | लोगों को समझाता पर अन्तत : कोई परिणाम न निकलता | ऐसे लोग बहुधा भीड़ में छुपे रहते जो दूसरों को बरगलाते थे | इस कारण उनको पकड़ना मुश्किल हो जाता | इससे राजा को बहुत दुःख लगता | ईश्वर का घर भक्त के ह्रदय में है अक्सर राजा इसी बारे में सोंचता रहता | उसे ये भी लगता की भगवान् उन लोगों को स्वयं दंड क्यों नहीं देता | भगवान् को तो सब पता है वो उन्हें आसानी से दंड दे सकता है | फिर मौन क्यों साध लेता है | इस तरह से मंदिरों को टूटते हुए कैसे देख सकता है | एक दिन राजा यही सोंचते – सोंचते सो गया | उसने स्वप्न में देखा की भगवान् आये हैं | उसने भगवान् को प्रणाम कर उनका स्वागत सत्कार किया व् उनसे यही प्रश्न पूंछा | राजा के प्रश्न पर भगवान् मुस्कुराते हुए बोले समय आने पर मैं इसका उत्तर दूंगा | यह कहा कर वो अंतर्ध्यान हो गए | राजा भी अपने राज्य के कामों में लग गया | एक दिन वो अपने दो बेटों के साथ समुद्र के किनारे घूमने गया | उसके बच्चे रेत का घरौदा बनाने में लग गए |दोनों अलग – अलग घरौदा बना रहे थे | दोनों ही घरौंदे बहुत सुन्दर थे | राजा , रानी के साथ अपने बेटों के घरौंदे देख कर बहुत खुश हो रहा था | तभी अचानक दोनों बच्चों में विवाद छिड गया की उनका घरौदा दूसरे से बेहतर है | बच्चे अपनी – अपनी बात सिद्ध करने की कोशिश करते रहे | थोड़ी देर में उनमें हाथ पाई हो गयी | गुस्से में उन दोनों ने एक दूसरे के घरौंदे तोड़ डाले | व् राजा – रानी के पास आकर बैठ गए | राजा – रानी ने दोनों को प्यार किया की अरे घरौदे तो रेत के थे | टूट गए तो क्या हुआ | बच्चे खुश हो कर फिर से खेलने लगे | उसी रात राजा के स्वप्न में भगवान् आये | उन्होंने राजा से कहा ,” राजन , तुमने अपने बच्चों को दंड क्यों नहीं दिया जब उन्होंने एक – दूसरे के घरौंदे तोड़े | राजा बोला ,” प्रभु आप तो सर्वग्य हैं आप को तो पता है वो बच्चे हैं उनमें समझ नहीं है | वो महल बना रहे थे | जबकि उनका असली महल तो यहाँ है | उनकी इस नादानी का आनद लिया जाता है | इस पर उन्हें दंड थोड़ी ही दिया जाता है | भगवान् ने मुस्कुरा कर कहा ,” बिलकुल सही, यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है | जो एक – दूसरे के मंदिर तोड़ रहे थे | भक्त और भगवान का तो अटूट बंधन होता है |वो नादान हैं उन्हें नहीं पता की मेरा घर मंदिर नहीं भक्तों का ह्रदय हैं | अब तुम ही बताओ मैं उनकी नादानी पर मुस्कुराऊं या उन्हें दंड दूं | राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया | दोस्तों , इस प्रेरक कथा में हमारी आज की समस्याओं का भी हल छुपा हुआ है |हम आज भी धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं | इसके पीछे इश्वर के प्रति प्रेम नहीं मेरा ईश्वर तेरे ईश्वर से महांन है का भाव छिपा हुआ है | क्योंकि अगर हमारा ईश्वर महान है तो उसे मानने वाले हम अपने आप दूसरे से श्रेष्ठ हो गए | यह केवल अहंकार का तुष्टिकरण है | ये जानते समझते हुए भी कभी – कभी ईश्वर के भक्त आहत होते रहते हैं कि ईश्वर ये सब विद्ध्वंश देखता है फिर भी उन्हें दंड क्यों नहीं देता | यह कहानी हमारे इसी प्रश्न को शांत करती है | ईश्वर जानते हैं वो नादान हैं | क्योंकि ईश्वर का घर तो भक्तों के ह्रदय में है | इसीलिए जो सही में ईश्वर के भक्त हैं वो इस सत्य को समझते हुए सभी धर्मों का आदर करते हैं | बाबू लाल यह भी पढ़ें ……. प्रेरक कथा – दूसरी गलती सजा किसको प्रेरणा बाल मनोविज्ञानं पर आधारित पांच लघु कथाएँ आपको आपको कहानी “भगवान् ने दंड क्यों नहीं दिया “ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें