यह भी गुज़र जाएगा ( motivational story in Hindi )

 everything is temporary – motivational story in Hindi  जीवन सुख दुःख से मिलकर बना है | हम सब ये जानते हैं | फिर भी दुखी कौन रहना चाहता है | पर ऐसा होता नहीं | लगता है ऐसा कोई एक मंत्र  मिल जाए जिससे हमेशा खुश रहे | आज मैं एक ऐसा ही एक मंत्र आप सब के साथ शेयर करने जा रही हूँ | ये मंत्र मेरा बनाया हुआ नहीं है | दरसल इस मंत्र के पीछे एक कहानी है | बहुत पहले की बात है | एक राजा था भी हमारी तरह लगता था की वो हमेशा  रहे | अब होता ये की जब वो वास्तव में खुश होता तो उसे डर लगा रहता की कहीं बड़ा सा दुःख न आ जाए और सारी  खुशियाँ खत्म कर दे | जब वो दुखी होता  तो उसे लगता ये समय  तो कभी खत्म ही नहीं होगा | ये तो चलता जा रहा है | चलता जा रहा है | उसने सोंचा की खुशियों के साथ थोडा सा दुःख हो और दुखों के साथ थोड़ी सी ख़ुशी हो तो शायद सामंजस्य बन जाए | उसने कोशिश करी पर यह संभव नहीं हुआ | अब तो राजा बहुत बेचैन रहने लगा | उसने पूरे राज्य में घोषणा करवा दी की जो कोई उसकी इस समस्या का समाधान कर देगा उसे बहुत बड़ा इनाम मिलेगा | पर कोई उसकी समस्या का समाधान नहीं कर पाया | तभी राज्य में दूसरे राज्य का एक विद्वान व्यक्ति आया उसने राजा के पास संदेश भिजवाया की वो उसकी समस्या का समाधान कर देगा  | राजा ने उसे पूरे आदर के साथ राजमहल में बुलवाया | पढ़िए – वो भी नहीं था युवक बोला , “ महाराज कोई भी परिस्तिथि हो आप जब भ्रमित हो तो यह मंत्र बोलिये ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | राजा ने ऐसा ही करने का निश्चय किया | अब जब ख़ुशी आई तो राजा ने यही मंत्र कहा ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | अब राजा ने सोंचा यह समय तो गुज़र जाएगा | कल को ख़ुशी रहे न रहे तो  क्यों न इसमें खुल के जी लें | और खुल के खुश हो लें | राजा ने ऐसा ही किया | वो बहुत खुश हुआ | कुछ समय बाद दुःख आया | राजा का मन घबरा गया | फिर उसने जोर – जोर से व्ही मंत्र कहना शुरू किया ,” यह भी गुज़र जाएगा “ | राजा का मन बड़ा हल्का हो गया | अरे ये दुःख स्थायी तो है नहीं | फिर क्यों इसको इतना महत्व दें | अपना काम अच्छे से करते रहे | क्योंकि ये तो एक न एक दिन जाना ही है | मित्रों यही सदा सुखी रहने का मूल मंत्र है | जब सब कुछ अस्थायी है तो सुख या दुःख से चिपकना कैसा | जब ख़ुशी का समय हो तो उन्मुक्त आनंद लो  क्योंकि वो हमेशा रहने वाला नहीं है | और जब दुःख का समय हो तो घबराओं नहीं क्योंकि “यह भी गुज़र जाएगा “ |  सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें …  कामलो सो लाडलो मनोबल न खोएं यकीन टाइम है मम्मी

वो भी नहीं था

motivational story in Hindi  संदीप माहेश्वरी की स्पीच में उनके द्वारा सुनाई गयी प्रेरक कथा  मित्रों , संदीप माहेश्वरी एक लोकप्रिय मोटिवेशनल  स्पीकर हैं | उन्होंने बहुत छोटे स्तर से शुरू कर के न केवल स्वयं सफलता पायी बल्कि अब वो दूसरों को भी सफल होने के लिए प्रेरित करते हैं | स्पीच के दौरान वो छोटी – छोटी प्रेरक कथाएँ सुनाते हैं | ऐसी ही एक प्रेरक कथा उन्होंने एक स्पीच के दौरान सुनाई थी | वही  आज मैं आप के साथ शेयर कर रहा  हूँ | एक गाँव में  दो बच्चे आपस में बहुत गहरे मित्र थे | उनकी दोस्ती इतनी पक्किथि की वो हर काम साथ – साथ करते | साथ – साथ खाते , साथ साथ खेलते व् साथ – साथ पढ़ते भी थे |लोगों को उनकी इतनी गहरी दोस्ती देख कर आश्चर्य होता | क्योंकि उनमें से एक बच्चा १० साल का था और एक ५   साल का | पर जैसा की आप जानते हैं की दोस्ती तो दोस्ती होती है उसमें उम्र बाधा कहाँ होती है |  यह भी पढ़ें – एक राजकुमारी की कहानी तो किस्सा है एक शाम का जब दोनों दोस्त खेलते – खेलते गाँव के पास के जंगल में पहुँच गए | थोड़ी शाम और गहराई तो उन्हें दर लगने लगा | उन्होंने सोंचा अब खेल यहीं रोक कर जल्दी घर चलते हैं | | वो तेजी तेजी से घर की ओर लौटने लगे | तभी बड़ा बच्चा जो १० साल का था एक सूखे कुए में गिर गया | उसके बचाओ , बचाओ चिल्लाने पर ५ साल के बच्चे ने पीछे मुद कर देखा | उसे कुए में गिरा देख कर वह रोने लगा | फिर खुद ही  आँसूं पोंछ कर मदद के लिए आवाज़ दी |पहले एक तरफ दौड़ा फिर दूसरी तरफ दौड़ा | पर जैसा की मैंने पहले बताया की वहां कोई था ही नहीं | अब कोई होता तब आता | ५ साल साल के बच्चे ने सोंचा की अगर वो गाँव की तरफ अकेले मदद मांगने जाएगा तो हो सकता है की वो रास्ता भूल जाए | वो बहुत ही पशोपेश में पद गया की वो अपने दोस्त की जान कैसे बचाये | हैरान परेशां होकर इधर – उधर ढूँढने पर उसे एक रस्सी दिखाई दी | उसकी जान में जान आई |उसने रस्सी कुए में फेंक दी व् दूसरा सिरा अपने हाथ में पकडे रखा |अब उसने अपने १० साल वाले दोस्त को खींचना शुरू किया | खींचना मुश्किल था | पर उसने हिम्मत नहीं हारी खींचता रहा , खींचता रहा | आखिर कार उसने अपने दोस्त को कुए के बाहर खींच लिया | बाहर आने पर दोनों मित्र गले लग कर खूब रोये | फिर हँसते बतियाते घर की तरफ चल दिए |  गाँव पहुँच कर उन्होंने सारा किस्सा अपने घरवालों व् गाँव वालों को सुनाया की कैसे छोटे दोस्त ने बड़े दोस्त की जान बचाई | गाँव वाले उन किस्सा सुन कर हंसने लगे | कोई उन पर विश्वास ही नहीं कर रहा था | ऐसा कैसे हो सकता है की ५ साल का छोटा सा बच्चा १० साल के बच्चे को खींच कर निकाल ले |पर बच्चे बार – बार कह रहे थे की उन पर विश्वास करो वो सच बोल रहे हैं | यह भी पढ़ें …खीर में कंकण बात फैलते – फैलते गाँव के सबसे समझदार रहीम चाचा के पास गयी | रहीम चाचा ने गाँव वालों से कहा , बच्चों पर मत हंसों वो सच बोल रहे हैं | अब आश्चर्य चकित होने की बारी गाँव वालों की थी | अरे , रहीम चाचा ऐसे कैसे कह सकते हैं | भला ५ सालका बच्चा १० साल के बच्चे को कैसे खींच सकता है | सब उत्तर के लिए रहीम चाचा का मुँह देखने लगे | रहीम चाचा मुस्कुरा कर बोले इसमें न विश्वास करने वाली बात क्या है | छोटे बच्चे को तो बड़े बच्चे को बाहर निकालना ही था | क्योंकि जैसा की उसने कहा की वहां कोई नहीं था जो इससे कहता की तुम ये काम नहीं कर सकते हो | | लेकिन वो यह असंभव काम इसलिए कर पाया क्योंकि वहां … ” वो भी नहीं था ”                      दोस्तों , ये खूबसूरत कहानी ” वो भी नहीं था | हमें सन्देश देती है की जब भी कोई कठिन काम करन चाहते हैं तो लोग हमें यह कहने लगते हैं ,” अरे तुम ये नहीं कर पाओगे | धीरे – धीरे ये सुनते सुनते हमारा मन भी यह कहने लगता है ,” क्या हम ये काम कर पायेंगे “? दरसल किसी काम को शुरू करने से पहले ही उसके बारे में इतनी NEGATIVE बातें सोंच कर हम अपनी SELF CONFIDENCE को कमजोर कर लेते है | और सफलता मिलना मुश्किल हो जाता है | इसलिए जब भी कोई काम शुरू करें तो “वो भी नहीं था”  के सिद्धांत पर चलते हुए NEGATIVE THOUGHTS को अपने मन में न आने दें  आपको ये कहानी कैसे लगी अपने विचार हमें जरूर बताये | पसंद आने पर शेयर करें | अगर आप के पास भी कोई स्टोरी है तो उसे editor .atootbandhan@gmail.com पर भेजें | पसंद आने पर हम उसे यहाँ प्रकाशित करेंगे |  सुबोध मिश्रा  रिलेटेड पोस्ट ….. कामलो सो लाडलो मनोबल न खोएं यकीन टाइम है मम्मी

कामलो सो लाडलो

motivational story on ” work is worship”  वंदना बाजपेयी  मित्रों , कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता | किसी भी व्यक्ति की महानता इस बात में है की वो जो भी काम करें उसे पूरी समग्रता के साथ करे | क्योंकि व्यक्ति की पहचान उसके काम से है | आज आपके साथ काम के महत्व को दर्शाती एक छोटी सी कहानी प्रस्तुत कर रही हूँ |                          आज मुझे को ननकू भैया की याद आ ही गयी | हुआ यूँ की सुबह जैसे ही बेटे ने स्कूल बैग कंधे पर लटकाया | उसकी बद्धि   टूट गयी | जैसे तैसे पुराने  बैग में उसकी कॉपी किताबे भर कर उसे भेजा | अब मेरे पास दो ही ऑप्शन थे या तो मैं आज के आज  ही नया बैग लूँ या पुराने बैग को ही सिलवा  लूँ | दूसरा ऑप्शन ज्यादा सस्ता था | तो मैं बैग लेकर चल दी ननकू के पास | दरसल ननकू हमारे मुहल्ले में बैठने वाले मोची हैं | कॉर्नर वाले मकान से सटा  कर उन्होंने कुछ बांस की खपच्चियों पर पोलिथीन डाल  कर छोटी सी दुकान खोल रखी है | दुकान छोटी जरूर है पर पर ननकू भैया की सब को जरूरत है | तभी तो उनकी दुकान पर भीड़ लगी रहती है | ब्रांडेड सामान की असलियत कई बार ननकू भैया की दुकान पर देखी  जा सकती है | लोग महंगे ब्रांडेड आइटम के टूट जाने पर बैठे हुए दिल से ननकू की दुकान पर आते हैं | ननकू उन्हें २० – २५ रुपये ले कर ठीक कर देता है | ननकू की सधी हुई अंगुलियाँ टूटे हुए बैग्स , लेडीज पर्स व् जूते – चप्पलों पर ऐसे चलती हैं जैसे चित्रकार कोई चित्र बना रहा हो | इसके अलावा ननकू का एक काम और है …वो है लोगों को पता बताना | अजनबी कहीं से भटकते हुए आएगा और ननकू  से मकान  पूंछेगा | तो उसे आगे भटकना नहीं पड़ेगा | ननकू को पता है की मुहल्ले में किस नंबर का घर कहाँ पड़ता है | और अपना यह ज्ञान वो लोगों के साथ खुश हो होकर बाँटता भी |            तो हुआ यूँ की मैं अपना बैग सिलवाने के इंतज़ार में खड़ी  ही थी की एक महिला कार से उतर कर ननकू के पास आई  और बोली ननकू भैया , “ ये चप्पल ठीक हो जायेगी क्या ? अभी कुछ दिन पहले ही मॉल से २५०० की ली है | ननकू ने चप्पल देख कर कहा ,” हाँ ! बिलकुल आप छोड़ दीजिये | “ महिला ने मुस्कुराते हुए कहा ,” ननकू भैया आप कल दिखे नहीं , मेरा तो जी ही बैठा जा रहा था | उसकी बात सुनकर मुझ से रहा नहीं गया | मैंने हँसते हुए  कहा ,” क्या बात है ननकू भैया , इस मेट्रो कल्चर में जब इंसान मर जाता है तब भी महीनों आस पड़ोस वालों को भी खबर नहीं होती और आप का एक दिन काम पर न आने पर भी लोगों का ध्यान जाता है | ननकू भैया अपने पीले दांत दिखाते हुए बोले ,” वो क्या है ना , आप ही लोग कहते हैं की इंसान की वैल्यू नहीं होती उसकी पोस्ट की वैल्यू होती है | कितना सही कहा ननकू ने | इंसान की वैल्यू नहीं उसकी पोस्ट की वैल्यू होती है | इसे थोडा और परिमार्जित करें तो इंसान के काम की वैल्यू होती है | जिन्दगी न जाने इतने कितने उदाहरणों से भरी पड़ी है जहाँ  काम करने वाले व्यक्ति के सारे अवगुण इस एक गुण के आगे ढक  जाते हैं |काश ननकू की तरह हम सब अपने –अपने काम के महत्व को समझ पाते | और उसी तल्लीनता  से कर पाते |   घर लौटते – लौटते मुझे बार – बार दादी की पंक्तियाँ याद आ रही थी “ कामलो सो लाडलो “ जो अपना काम अच्छे से करता है वही  सबका प्यारा होता है |  यह भी पढ़ें ……… दर्द से कहीं ज्यादा दर्द की सोंच दर्दनाक होती है प्रेम की ओवर डोज अरे चलेंगे नहीं तो जिंदगी कैसे चलेगी ? बदलाव किस हद तक ?

काश जाति परिवर्तन का मंत्र होता

क्या मन्त्र से जाति बदल सकती है  किरण सिंह ********************************* बिना किसी पूर्व सूचना दिए ही मैं नीलम से मिलने उसके घर गई…! सोंचा आज सरप्राइज दूं | घंटी बजाते हुए मन ही मन सोंच रही थी कि इतने दिनों बाद नीलम मुझे देखकर उछल पड़ेगी..! पर क्या दरवाजा आया खोलती है और घर में घुसते ही चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ | मेरा तो जी घबराने लगा और आया से पूछ बैठी कि घर में सब ठीक तो है न….! तभी अपने बेडरूम से नीलम आई और अपने चेहरे की उदासी पर पर्दा डालने के लिए मुस्कुराने का प्रयास करती हुई…! पर मैं अपने बचपन की सहेली के मनोभावों को कैसे न पढ़ लेती|फिर भी प्रतिउत्तर में मैं भी मुस्कुराते हुए उसके समीप ही सोफे पर बैठ गई….! मैंने हालचाल पूछने के क्रम में नीलम से उसकी बेटी स्नेहा का हाल भी पूछ लिया, और स्नेहा के रिश्ते के लिए एक बहुत ही योग्य स्वजातीय  अच्छा लड़का बताया | क्योंकि नीलम अक्सर ही मुझसे कहा करती थी कि तुम्हारे नज़र में कोई अच्छा लड़का हो तो बताना…… बल्कि कई बार फोन पर भी बोली थी स्नेहा तुम्हारी भी बेटी है … लड़का ढूढने की जिम्मेदारी तुम्हारी……! पर क्या मैंने लड़के के बारे में बताना शुरू किया तो वो मेरी बात बीच में ही रोकते हुए चाय लाती हूँ, कहकर किचेन में चली गई….! मुझे अकेले बैठे देख नीलम की सास मेरे समीप आकर बैठ गई जैसे वे नीलम के अन्दर जाने की प्रतीक्षा ही कर रही थी……….! और कहने लगीं…बहुते मन बढ़ गया है आजकल के बचवन का….. एक से बढ़कर एक रिश्ता देखे रहे नंदकिशोर  ( उनका बेटा नीलम के पति ) बाकीर स्नेहा बियाह करे खातिर तैयारे नाहीं है…! मैंने कहा पूछ लीजिए नेहा से कहीं किसी और को तो नहीं पसंद कर ली है…? मेरे इतना कहने पर आंटी झल्ला उठीं कहने लगीं तुम भी कइसन बात करने लगी किरण……. अरे हमन लोग ऊँची जाति के हैं कइसे अपने से नीच जाति में अपन घर की इज्जत ( बेटी ) दे दें.. अउर नीच जाति का स्वागत सत्कार हम ऊँची जाति वाले अपन दरवाजे पर नाहीं करे सकत हैं…! अरे एतना इज्जत कमाया है हमर लड़का नन्दकिशोर… सब मिट्टी मा मिल जाई…! एही खातिर पहिले लोग बेटी का जनम लेते ही मार देत रहा सब….अब ओकरे पसंद के नीच जाति मैं बियाह करब तो खानदान पर कलंके न लगी…इ कइसन बेटी जनम ले ली हमर नन्द किशोर का…..! मैं आंटी की बातें बिना किसी तर्क किए चुपचाप सत्यनारायण भगवान् की कथा की तरह सुन रही थी.|और याद आने लगी आंटी की पिछली वो बातें जब मैं पिछली बार यहां आई थी…! आंटी नेहा की प्रशंसा करते नहीं थक रही थी |  कह रहीं थीं एकरा कहते हैं परवरिश….. आज तक नेहा पढाई में टॉप करत रह गई…पहिले बार में नौकरियो बढिया कम्पनी में हो गवा…..अउर एतना मोटा रकम पावे वाली बेटी को देखो तो तनियो घमंड ना है | उका……………..घर का भी सब काम कर लेत है…. अउर खाना के तो पूछ मत…. किसिम किसीम के  (तरह तरह का) खाना बनावे जानत है…… आदि आदि…………….. भगवान् केकरो ( किसी को भी ) *बेटी दें तो नेहा जइसन…. और तब मैं आंटी के हां में हां मिलाते जाती थी| तभी नीलम नास्ते का ट्रे लेकर आ गई और मैं स्मृतियों से वापस वर्तमान में लौट आई…! आंटी की बातों से नेहा की उदासी का पूरा माजरा समझ चुकी थी मैं, फिर भी मैं नीलम के मुह से सुनना चाहती थी इसलिए नीलम से पूछा आखिर बात क्या है नीलम……………… और स्नेहा किसे पसंद की है….. लड़का क्या करता है आदि आदि………. नीलम की आँखें छलछला आईं… और आँसू पोंछते हुए मुझसे कहने लगी लड़का आईआईएम से मैनेजमेंट करके जाॅब कर रहा है पचास लाख का पैकेज है……. देखने में भी हैंडसम है……बाप की बहुत बड़ी फैक्ट्री है….! मैंने कहा तो अब क्या चाहिए… इतना अच्छा लड़का तो दिया लेकर ढूढने से भी नहीं मिलेगा…. फिर ये आंसू क्यों……? मैं सबकुछ समझते हुए भी नीलम से पूछ रही थी…!  नीलम कहने लगी लड़का बहुत छोटी जाति का है…. किसी और शहर में रहता तो कुछ सोंचा भी जा सकता था…अपने ही शहर का है….. लोग तरह-तरह की बातें करेंगे…. हम लोगों का शहर में रहना मुश्किल हो जाएगा…! मैंने कहा लोगों की छोड़ो पहले तुम क्या सोंचती हो ये बताओ…? नीलम कहने लगी मेरे चाहने न चाहने से क्या होगा…. मेरे पति इस रिश्ते के लिए कतई तैयार नहीं हैं… और मैं अपने पति के खिलाफ नहीं जाऊँगी….! और फिर उसके आँखों से आँसू छलक पड़े………….  नेहा कहने लगी…. सुबह चार बजे से उठकर…… दिन रात एक करके मेरे पति कितना मेहनत करके बच्चों को पढ़ाए…. कितना दिल में अरमान था स्नेहा के विवाह का……….मेरे बच्चे इतने स्वार्थी हो जाएंगे मैंने सपने में भी नहीं सोंचा था…. काश कि उसे इतना नहीं पढ़ाए होते…! मैंने बीच में रोकते हुए नीलम से पूछा…. इस विषय में तुम स्नेहा से खुद बात की..? नीलम ने कहा हां एक दिन मेरे पति ने बहुत परेशान होकर कहा कि पूछो स्नेहा से कि वो सोसाइट करेगी या मैं कर लूँ….! मेरी तो जान ही निकल गई थी मैंने स्नेहा को समझाने की भरपूर कोशिश की… पर उसका एक ही उत्तर था कि मैं यदि अंकित से शादी नहीं करूंगी तो किसी और से भी नहीं कर सकती.. अंकित को मैं बचपन से जानती हूँ उसके अलावा मैं किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती…… फिर मैंने धमकाया भी कि तब तुम्हें हमलोगों से रिश्ता तोड़ना पड़ेगा…… फिर वो खूब रोने लगी… बोली प्लीज माँ मैं किसी को भी छोड़ना नहीं चाहती….. अंकित यदि छोटी जाति में पैदा हुआ है तो इसमें उसकी क्या गलती है….. उससे कम औकात वाले करोड़ों रुपये दहेज में मांगते हैं और उसको भी उसके स्वजातिय देंगे ही…… आखिर उसमें कमी क्या है……. और झल्ला कर कहने लगी रोज धर्म परिवर्तन हो रहा है क्या छोटी जाति को ऊँची जाति में परिवर्तन करने का कोई उपाय नहीं है…… प्लीज मम्मी कुछ करो….! मैं  सोंचने लगी सही ही तो कह रही है स्नेहा…! बालिग है… आत्मनिर्भर … Read more

मनोबल न खोएँ

Rashmi Shridha          हम अपने जीवन में अनेक सपने सजाते हैं | निरंतर अनेक इच्छाएँ पैदा करते हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बड़े-बड़े लक्ष्य बनाते हैं | अपने इन्हीं लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेकानेक योजनाएँ बनाते हैं और जी जान से जुट जाते हैं किन्तु विडंबना ये है कि अक्सर हम किसी भी काम के पूरा होने में अधिक समय लगता देखकर निराश हो उठते हैं और अपनी उन योजनाओं को बीच में ही छोड़ देते हैं | कहीं न कहीं हम नकारात्मकता से भर उठते हैं और अपने समस्त प्रयास बंद कर देते हैं | यह निराशा और नकारात्मक सोच ही हमारी सफलता की राह की सबसे बड़ी बाधा है | काफी साल पहले मैंने एक किस्सा सुना था जो कुछ यूँ था –  एक व्यक्ति था जो कि बहुत ही परिश्रमी था | उसने अपने पूरे जीवन के लिए अनेक योजनाएँ बना रखीं थीं और उन्हें पाने के लिए भरसक प्रयास भी करता था लेकिन उसकी एक बड़ी कमजोरी थी कि वह बहुत जल्द ही निराश हो जाता था | इसी निराशा के चलते वह अनेकों कार्यों को आजमाता रहा | किन्तु धैर्य और सकारात्मकता का आभाव होने के कारण वह जल्द ही पुराने काम को बीच में ही छोड़ नए कामों पर हाथ आजमाने लगता और इसी प्रकार दिन गुज़रते गए |  एक रोज़ उसकी मृत्यु हो गई और वह अपनी अनेक अधूरी इच्छाओं के साथ दुनिया से विदा हो गया | जब वह स्वर्ग पहुँचा तो देवदूत उसे एक कमरे में ले गए जहाँ वे सभी चीज़ें बड़े ही करीने से सजी रखीं थीं, जिन्हें पाने की इच्छा वह धरती पर किया करता था | उसने देवदूत से पूछा – “क्या ये सब मेरे लिए हैं !” देवदूत ने उत्तर दिया – “जी हाँ ! ये सारी चीज़ें आपकी ही हैं | ये वे ही चीज़ें हैं जिन्हें आप पाना चाहते हैं |” “…..तो ये सब आपने मुझे जीते-जी ही धरती पर ही क्यों नहीं दीं !” “हम तो देना ही चाहते थे | आप जैसे ही इच्छा करते थे, हम तुरंत बनाना शुरू कर देते थे और फिर हम जैसे ही आपको देने वाले होते थे कि आप उसे पाने का ख्याल छोड़ कुछ और चाहने लगते थे ….फिर हम आपके लिए उस दूसरी चीज़ को बनाने में जुट जाते थे | इस प्रकार कुछ चीज़ें तो हम आपको दे पाए और कुछ नहीं दे पाए, लेकिन समय के साथ-साथ सब यहीं इकट्ठी होतीं गईं | ये सब आपकी ही हैं, आप इनका इस्तेमाल कीजिए |”         मित्रों ! ये एक काल्पनिक कथा है | दूसरी दुनिया का सच हम नहीं जानते | लेकिन इस दुनिया के सच से हम सब बखूबी परिचित हैं | और यह सच है कि जब हम अपने भीतर किसी भी तरह की इच्छा पैदा करते हैं तो हमारी सारी शक्ति, सोच, प्रकृति, गतिविधियाँ उसे प्राप्त करने के लिए उद्यत हो उठतीं हैं | आवश्यकता है तो बस ‘मनोबल’ की | यदि हम पूरे जोश और लगन के साथ किसी काम को करने में जुट जाएँ तो वह काम अवश्य ही पूरा होता है जबकि थककर या निराश होकर उस काम को बीच में ही छोड़ दें तो असफलता ही हाथ लगती है | यदि हम कोई खवाहिश पैदा करें तो उसे पाने के लिए अपनी पूरी निष्ठा और शक्ति लगा दें | हम कभी भी न तो निराश हों और न ही हताश | हमारी लगन और आत्मबल ही हमारे भीतर वो उत्साह और शक्ति पैदा करता है जो कठिन से कठिन काम को भी आसन और सहज प्राप्य बनाते हैं | ————————————————————————————-—————————  यह भी पढ़ें … टाइम है मम्मी जमीन में गड़े हैं शैतान का सौदा अच्छी मम्मी , गन्दी मम्मी

टाईम है मम्मी

किरण सिंह जॉब के बाद ऋषि पहली बार घर आ रहा था..!कुछ छःमहीने ही हुए होंगे किन्तु लग रहा था कि छः वर्षों के बाद आ रहा है ! बैंगलोर  से आने वाली फ्लाइट पटना में ग्यारह बजे लैंड करने वाली थी.पर मेरे पति को रात भर नींद नहीं आई.उनका वश चलता तो रात भर एयरपोर्ट पर ही जाकर बैठे रहते..! ! कई बार ऋषि से बात करते रहे कब चलोगे.. थोड़ा जल्दी ही घर से निकलना..सड़क जाम भी हो सकता है…… आदि आदि..! उनकी इस बेचैनी को देखते हुए मैंने थोड़ा चुटकी लेते हुए कहा चले जाइए ना रात में ही एयरपोर्ट..! मैं तो ऋषि के लिए तरह-तरह के व्यंजन बनाई ही थी किन्तु पिता के मन को माता से ही प्रतिस्पर्धा…. कहां मानने वाला था पिता का दिल सो उन्होंने बाजार से खरीद कर घर में ऋषि के मनपसंद फलों और मिठाइयों का ढेर लगा दिया..! शायद उनका वश चलता तो पूरा बाजार ही घर में उठा लाते..! एयरपोर्ट घर से तीन चार किलोमीटर ही दूर होगा और जाने में टाइम भी पांच से दस मिनट ही लगता… पर मेरे पति नौ बजे ही एयरपोर्ट चले गए… एक पिता के हृदय का कौतूहल देखकर मैंने भी बिना टोके जाने दिया….! पहली बार मुझे पिता का प्रेम माता से भारी प्रतीत हो रहा था….! मैंने घर का मेन गेट खुला छोड़ रखा था इसलिए डोरवेल भी नहीं बजा और घर में प्रवेश कर गए बाप बेटे.. पहली बार मैंने उन्हें इतना खुश होकर मित्रवत वार्तालाप करते हुए देखकर मुझे भी काफी खुशी हुई साथ में डर भी लग रहा था कि कहीं मेरी नज़र ही न लग जाए…! मैं अभी खुशियों के अनुभूतियों में डूबी हुई थी कि ऋषि अपने स्वभावानुसार सबसे पहले फ्रिज खोला ये ऋषि की बचपन की ही आदत थी देखने की कि फ्रिज में क्या क्या है…! और फिर कोल्ड्रिंक्स का बॉटल निकाल कर लाया..और हांथ में लेकर अपने रूम में चला गया ! और फिर बैग खोलकर ढेर सारे गिफ्ट्स निकाल कर लाया……. मेरे लिए टैब्लेट, अपने पापा के और चाचा के लिए कीमती घड़ी………… आदि……! पहले तो पतिदेव ने कहा क्या जरूरत थी बेटा इतना खर्च करने की लेकिन जब ऋषि ने पहनाया तो उनके चेहरे की खुशी देखते ही बनती थी ठीक जैसे कभी ऋषि अपना गिफ्ट देखकर खुश हुआ करता था….! मैंने जो टेबल पर कई तरह के व्यंजन परोसे थे दोनों बाप बेटे व्यंजनों का आनंद ले रहे थे.. फिर मेरे पति ने याद दिलाया मैंने काजू की बरफी लाई है उसे भी लाओ और देखना कच्चा गुल्ला भी………………. मैं परोस रही थी और बाप बेटे बातों में इतने व्यस्त..कि उस दिन मेरे पति आफिस भी नहीं गए..! पिता पुत्र को इतनी देर तक बातें करते देख बहुत खुशी हो रही थी और सबसे खुशी इस बात की कि सिर्फ उपदेश देने वाले पिता आज पुत्र की सुन रहे… और मेरे आँखों के सामने पिछला स्मरण चलचित्र की तरह घूमने लगा…! जब ऋषि सेमेस्टर एग्जाम के बाद छुट्टियों में घर आता था…. प्रतीक्षा और स्नेह तो तब भी इतना ही करते थे.. तब भी फल और मिठाइयों से घर भर देते थे ऋषि के पिता….! सिर्फ अब और तब में अन्तर इतना ही था कि बेटे के घर में प्रवेश करते ही शुरू हो जाता था पिता का प्रश्न और उपदेश….. एग्जाम कैसा गया…. मेहनत से ही सफलता मिलती है…………  सक्सेस का एक ही मूलमंत्र है…. मेहनत  मेहनत और मेहनत और ऋषि का हर बार एक ही जवाब होता था……. मेहनत करने वाले जिन्दगी भर मेहनत करते रह जाते हैं और दिमाग वाले हमेशा ही आगे निकल जाते हैं……. मेहनत तो मजदूर भी करते हैं कहां सफलता मिलती है उन्हें……! और फिर होने लगती थी पिता पुत्र में गर्मागर्म बहस और मैं बड़ी मुश्किल से बहस को शांत कराती…….! मैं ऋषि को समझाने लगती बेटा क्यों नहीं सुन लेते पापा की आखिर वे तुम्हारे लिए ही तो कहते हैं…. खामखा नाराज कर दिया तुमने……..! और ऋषि कहता गलत क्यों सुनें वे कहता था कि आदमी को जिस विषय में अभिरुचि है यदि उस कार्य को करे तो विशेष मेहनत करने की जरूरत नहीं होती है…! और लोग परेशान इसलिए रहते हैं कि वे अपने कैरियर बनाने के लिए विषय का चुनाव अपनी अभिरुचि के अनुसार नहीं करते…और इसीलिए उन्हें अपना काम उबाऊ लगता है और विशेष मेहनत की आवश्यकता पड़ती है..! उसने फिर मुझे उदाहरण सहित समझाया कि मम्मी जैसे आपको लेखन कार्य में अभिरुचि है तो आपको कविता या कहानी लिखने के लिए अलग से मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती होगी बल्कि आपके लिए मनोरंजक होगा….! और यही कार्य किसी और को करने के लिए दिया जाए तो यह उसके लिए बहुत बड़ी चुनौती होगी..! और मैं ऋषि से पूर्णतः सहमत हो जाती थी…..! सबसे मुश्किल तब होता था  ऋषि के रात में जगने वाली आदत से……! मैं तो रात में खाने के लिए ऋषि के मनपसंद व्यंजन बनाकर रख देती थी और सो जाती थी…! पर कभी-कभी रात में पतिदेव के चिल्लाने की आवाज सुनकर उठ जाती थी….. रात रात भर कम्प्यूटर पर क्या करते हो …….. ये कौन सा रुटीन है…………… जब तक रुटीन सही नहीं रहेगा तब तक लाइफ में कुछ नहीं कर सकते……………. कौन सी कम्पनी तुम्हारे लिए रात भर खुली रहेगी…….. आदि आदि…..! और शान्ति स्थापना  हेतु मेरी नाइट ड्यूटी लग जाती थी…! पर आज तो सूरज पश्चिम में उग आया था…! ऋषि बोल रहा था और उसके पिता सुन रहे थे कभी कभी कुछ पूछने के लिए बोलते थे बाकी समय सिर्फ सुन रहे थे सत्यनारायण भगवान् की कथा की तरह….! एक वक्ता इतना अच्छा श्रोता कैसे बन गया मुझे खुशी के साथ साथ आश्चर्य हो रहा था….! मैं तो विजयी मुद्रा में बैठी देख और सुन रही थी……..!  अंत में मुझसे रहा नहीं गया और मैंने चुटकी लेते हुए ऋषि से कहा ऋषि तुम्हारा घड़ी तो कमाल कर दिया……… फिर ऋषि ने भी मुस्कुराते हुए कहा.. टाइम है मम्मी….! ************** ©कॉपीराइट किरण सिंह  यह भी पढ़ें ………. एक पाती भाई के नाम सिर्फ ख़ूबसूरती ही नहीं भाग्य भी बढाता है 16 श्रृंगार मित्रता – एक खूबसूरत बंधन स्त्री विमर्श का … Read more

यकीन

एक बार एक आदमी रेगिस्तान में जा रहा था |  तभी रेत भरी आँधी चली और वो रास्ता भटक गया | उसके पास खाने-पीने की जो थोड़ी-बहुत चीजें थीं वो भी  जल्द ही ख़त्म हो गयीं और  हालत ये हो गयी की वो बूँद – बूँद पानी को तरसने लगा | पिछले दो दिन से उसने पानी पीना तो दूर , पानी पिया भी नहीं था | वह मन ही मन जान चुका था कि अगले कुछ घंटों में अगर उसे कहीं से पानी नहीं मिला तो उसकी मौत पक्की है। पर कहते हैं न जब तक सांस है तब तक आस है | उसे भी कहीं न कहें उसे ईश्वर पर यकीन था कि कुछ चमत्कार होगा और उसे पानी मिल जाएगा… तभी उसे एक झोपड़ी दिखाई दी! उसे अपनी आँखों यकीन नहीं हुआ..पहले भी भ्रम के कारण धोखा खा चुका था…( जैसा की आप जानते हैं रेगिस्तान में पानी की इमेज बनी दिखती है जिसे मृगतृष्णा भी कहते हैं |) पर बेचारे के पास यकीन करने के आलावा को चारा भी तो न था! आखिर ये उसकी आखिरी उम्मीद जो थी! वह अपनी बची-खुची ताकत से झोपडी की तरफ रेंगने लगा…जैसे-जैसे करीब पहुँचता उसकी उम्मीद बढती जाती… और इस बार भाग्य भी उसके साथ था, सचमुच वहां एक झोपड़ी थी! पर ये क्या? झोपडी तो वीरान पड़ी थी! मानो सालों से कोई वहां आया न हो। फिर भी पानी की उम्मीद में आदमी झोपड़ी के अन्दर घुसा | वहां एक हैण्ड पंप लगा था, आदमी एक नयी उर्जा व् उत्साह से भर गया…पानी की एक-एक बूंद के लिए तरसता वह तेजी से हैण्ड पंप चलाने लगा। लेकिंग हैण्ड पंप तो कब का सूख चुका था…आदमी निराश हो गया…उसे लगा कि अब उसे मरने से कोई नहीं बचा सकता…वह निढाल हो कर गिर पड़ा! तभी उसे झोपड़ी के छत से बंधी पानी से भरी एक बोतल दिखी! वह किसी तरह उसकी तरफ लपका!वह उसे खोल कर पीने ही वाला था कि तभी उसे बोतल से चिपका एक कागज़ दिखा….उस पर लिखा था- इस पानी का प्रयोग हैण्ड पंप चलाने के लिए करो…और वापस बोतल भर कर रखना नहीं भूलना। ये एक अजीब सी स्थिति थी, आदमी को समझ नहीं आ रहा था कि वो पानी पिए या उसे हैण्ड पंप में डालकर उसे चालू करे!उसके मन में तमाम सवाल उठने लगे| अगर पानी डालने पे भी पंप नहीं चला|.अगर यहाँ लिखी बात झूठी हुईतो ?  क्या पता जमीन के नीचे का पानी भी सूख चुका हो…लेकिन क्या पता पंप चल ही पड़े |क्या पता यहाँ लिखी बात सच हो | वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे! अजीब उहापोह से गुजरने के बाद उसने उस बात पर यकीन करने का मन बनाया | वो बोतल भर पानी जो उसकी जिंदगी बचा सकता था उसे उसने पंप चलाने में खर्च कर दिया | ख़ुशी की बात थी की पम्प चालू हो गया | वो पानी किसी अमृत से कम नहीं था… आदमी ने जी भर के पानी पिया, उसकी जान में जान आ गयी, दिमाग काम करने लगा। उसने बोतल में फिर से पानी भर दिया और उसे छत से बांध दिया। जब वो ऐसा कर रहा था तभी उसे अपने सामने एक और शीशे की बोतल दिखी। खोला तो उसमे एक पेंसिल और एक नक्शा पड़ा हुआ था जिसमे रेगिस्तान से निकलने का रास्ता था। उस आदमी का काम तो बन गया | अब वो उस रास्ते को याद करके रेगिस्तान से बाहर निकल सकता था | उसने कागज़ को वापस बोतल में डाला और ईश्वर का नाम ले कर आगे बढ़ चला | तभी उसके दिमाग में एक विचार कौंधा | वो वापस लौटा | उसने पानी वाली बोतल पर कुछ लिखा फिर यात्रा पर चल दिया | क्या आप जानना चाहेंगे की उसने क्या लिखा | उसने लिखा …… मेरा यकीन करिए…ये काम करता है ! दोस्तों जिन्दगी में यकीन का बड़ा अहम् रोल है | हम जिस बात पर यकीन करते हैं उसे कर जाते हैं | कई बार अनिर्णय की स्तिथि यकीन न करने की वजह से होती है | अगर आप जिंदगी में सफल होना चाहते हैं तो अपने काम अपनी प्रतिभा पर यकीन करिए | सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें …….. एक राजकुमारी की कहानी खीर में कंकण जमीन में गड़े हैं शैतान का सौदा

एक राजकुमारी की कहानी

मित्रों , मैं बचपन में कहानी में सुना करती थी | एक राजकुमारी की  , जैसा की राजकुमारियों की कहानी में होता है | वो बहुत सुन्दर थी | बिलकुल परी  की तरह और जब हंसती तो उसके सुन्दर मुख की शोभा सौ गुनी बढ़ जाती | हां वो  बहुत संवेदनशील भी बहुत थी  | किसी की जरा सी बात से उसका मन द्रवित हो जाता |घंटों रोती उसका दुःख दूर करने का प्रयास करती |  जाहिर है किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए ये तो सामान्य बात है | अब असामान्य बात ये थी की जब वो रोती थी तो मोती झरते थे , हंसती थी तो फूल | यहाँ से उसकी मुसीबत शुरू हुई | ये  बात पूरे राज्य में जंगल की आग की तरह फ़ैल गयी |  अब तो लोग उससे मिलने आते और बात बिना बात उसे रुला दिया करते |फिर मोती  बटोर कर ले जाते |  हंसाने वाले दो एक ही होते | आप सोंच रहे होंगे ऐसा क्यों ? कारण स्पष्ट था | . फूल तो हर जगह मिल जाते हैं  पर मोती तो बहुत प्रयास से बनते हैं और उससे ज्यादा प्रयास से मिलते हैं |रोज – रोज रोने से राजकुमारी परेशान रहने लगी | वो भी हँसना चाहती थी खिलखिलाना चाहती थी | पर कैसे |  एक दिन एक साधू उस राज्य में आया | राजकुमारी ने उससे मिलने का निश्चय किया | राजकुमारी ने साधू के पास पहुँच कर अपनी समस्या बतायी | साधू उसकी समस्या सुन कर बोला ,” तुम रोया मत करो , सिर्फ हंसा करो | हाँ लोगों की मदद अवश्य करो पर आँसूं एक न निकले | स्वाभाव में परिवर्तन पर ये मोती सूखने लगेंगे और निकलना भी बंद हो जाएगे |  राजकुमारी ने साधू की सलाह पर अमल किया | अब वो हँसती , खूब हँसती , लोगों की मदद भी करती पर रोती बिलकुल भी नहीं | सारा राज्य खुशबु वाले रंग बिरंगे फूलों से भर गया | पूरा वातावरण खुशनुमा हो गया | लोग खुश थे | अब कोई उसे रुलाने नहीं आता | क्योंकि सबकों पता था की अब राजकुमारी को रुलाने से क्या फायदा | न वो रोएगी न ही मोती निकलेंगे |  friends ,  ये कहानी प्रतीकात्मक है | ये कहानी अति संवेदनशील लोगों के ऊपर है |  जिन्दगी के अनुभव सिखाते हैं की  अगर हमारे रोने से किसी को फायदा हो रहा है तो वो रुला – रुला कर ही मार डालेगा | आस – पास नज़र डालिए तो पायेंगे की की  लोग अति संवेदनशील  लोगों का अक्सर लोग फायदा उठाते हैं | सिम्पैथी ले कर अपना काम निकलवाते हैं | किसी की मदद करना अच्छी बात है पर इस बात का ध्यान रखे की कोई हमारा फायदा न उठा पाए |  बेहतर है हँसने और रोने दोनों में फूल ही झरे मोती बिलकुल नहीं | वंदना बाजपेयी  रिलेटेड पोस्ट… खीर में कंकण जमीन में गड़े हैं शैतान का सौदा अच्छी मम्मी , गन्दी मम्मी

खीर में कंकड़

motivational story on bhagya  and  karma in hindi  संजीत शुक्ला  दोस्तों अक्सर हमारे मन में ये प्रश्न रहता है की भाग्य बड़ा है या कर्म | आज इसी विषय पर एक motivational story आपसे  share कर रहा हूँ | कहानी है दो दोस्तों की | जिनके नाम थे गौरव और सौरभ                                                                          अब सौरभ था भाग्यवादी और गौरव कर्म को मानने वाला |यूँ तो दोनों गहरे मित्र थे पर  अक्सर इस विषय पर दोनों की बहस हो जाती | दोनों अपने point of view को सही बताते |                        एक बार की बात है दोनों बतियाते बतियाते शहर से दूर निकल आये | थोडा सा रास्ता भी भटक गए | रात होने वाली थी | वहीँ पास में एक झोपडी थी | दोनों ने वहीँ रात बिताने की सोंची | जैसे ही उन्होंने झोपडी में प्रवेश किया तो देखा वहां एक बड़े पात्र में खीर रखी हुई थी | अब सौरभ बहुत खुश हो गया और चहक कर गौरव से बोला की ,” देखो मेरा भाग्य , मुझे इस झोपडी में खीर मिल गयी | कौन जानता था किसने किसके लिए बनायीं थी पर मेरे नसीब में खाना लिखा था तो मुझे मिली |गौरव चुप रहा |  अँधेरा हो चला था | सौरभ  ने खीर खाना शुरू किया | उसने खीर गौरव को भी offer की | पर गौरव ने यह कहते हुए इनकार कर दिया की तुझे भाग्य से मिली है तू  ही खा | सौरभ ने खीर खाना शुरू किया | पर अगले ही क्षण वो थू थू कर खीर थूकने लगा | अरे इस खीर में तो कंकण ही कंकण हैं | इसे तो कोई नहीं कहा सकता |  अब गौरव ने खीर का पात्र उठा लिया | फिर सौरभ की तरफ देख कर बोला ,” यूँ तो रात कटेगी नहीं , तू सोजा मैं खीर के कंकण बीनता रहूँगा | कर्म करते – करते रात कट ही जायेगी | सौरभ ने बुरा सा मुँह बनाया और सो गया |                             गौरव कंकण अपने रुमाल पर इकठ्ठा करता रहा | सुबह सूरज की रोशिनी में जब गौरव ने कंकण दिखाने के लिए रुमाल खोला तो दोनों की आँखें फटी की फटी रह गयीं | दरसल वो कंकण नहीं हीरे थे | अब खुश होने की बारी गौरव की थी | ये उसके रात भर जाग कर किये गए कर्म का फल जो था |  दोस्तों , i am sure आप भी कर्म और भाग्य की बहस में उलझते होंगे | ये छोटी सी motivational story हमें बताती है की हमें भाग्य के सहारे न बैठ कर कर्म करना चाहिए | भाग्यवादी को भले ही खीर मिल जाए पर diamond तो कर्म वादी के हाथ ही आते हैं  सुबोध मिश्रा  यह भी पढ़ें ………. जब कालिदास नन्ही बच्ची से शास्तार्थ में पराजित हुए  इको जिंदगी की क्या आप अपना कूड़ा दूसरों पर डालते हैं

जब कालिदास नन्ही बच्ची से शास्त्रार्थ में पराजित हुए

 नीलम गुप्ता महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था. शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था. अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया.उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा. उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं. एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए. . गर्मी का मौसम था. धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग आई. थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी. पानी की आशा में वह उस ओर बढ चले. झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था.कालिदास ने सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाए. उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली. बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी. . कालिदास उसके पास जाकर बोले- बालिके ! बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे. बच्ची ने पूछा- आप कौन हैं ? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए. कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता भला, मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता ?फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले- बालिके अभी तुम छोटी हो. इसलिए मुझे नहीं जानती. घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो. वह मुझे देखते ही पहचान लेगा. मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर-दूर तक. मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं. . कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली-आप असत्य कह रहे हैं. संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं. अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं ? . थोङा सोचकर कालिदास बोले- मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो. मेरा गला सूख रहा है. बालिका बोली- दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’. भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें. देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है.कलिदास चकित रह गए. लड़की का तर्क अकाट्य था. बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे. बालिका ने पुनः पूछा- सत्य बताएं, कौन हैं आप ? वह चलने की तैयारी में थी. . कालिदास थोड़ा नम्र होकर बोले-बालिके ! मैं बटोही हूं. मुस्कुराते हुए बच्ची बोली- आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं. संसार में दो ही बटोही हैं. उन दोनों को मैं जानती हूं, बताइए वे दोनों कौन हैं ? तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास की बुद्धि क्षीण कर दी थी पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी. . बच्ची बोली- आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते ? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है. बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं. आप तो थक गए हैं. भूख प्यास से बेदम हैं. आप कैसे बटोही हो सकते हैं ?. इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई. अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए. इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए. प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी. दिमाग़ चकरा रहा था. उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा. तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली. उसके हाथ में खाली मटका था. वह कुएं से पानी भरने लगी. अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले- माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा. . स्त्री बोली- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो. मैं अवश्य पानी पिला दूंगी. कालिदास ने कहा- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें. स्त्री बोली- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं. पहला धन और दूसरा यौवन. इन्हें जाने में समय नहीं लगता. सत्य बताओ कौन हो तुम ? . अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश कालिदास बोले- मैं सहनशील हूं. अब आप पानी पिला दें. स्त्री ने कहा- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं. पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है. उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है.दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं. तुम सहनशील नहीं. सच बताओ तुम कौन हो ? कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले- मैं हठी हूं. . स्त्री बोली- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं. सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा- फिर तो मैं मूर्ख ही हूं.नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो. मूर्ख दो ही हैं. पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है. . कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे. वृद्धा ने कहा- उठो वत्स ! आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी. कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए.माता ने कहा- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार. तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा. . कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े. मित्रों घमंड किसी को भी गलत ही होता है | अगर आप दूसरों से ज्यादा जानते हैं और ज्यादा योग्य हैं तो दूसरों को नीचा समझने के स्थान पर ईश्वर को धन्यवाद दें की आपमें जानने की इच्छा है क्योंकि ज्ञान का कोई आर – पार नहीं है | हम सब अभी भी एक बूँद ही हैं | रिलेटेड पोस्ट जमीन में गड़े हैं शैतान का सौदा … Read more