टिफिन
टिफिन बात २० वर्ष पहले की है जब मेरी नई-नई नौकरी लगी थी, पेशे से इंजिनियर होने के कारण नौकरी लगी इंडस्ट्रियल एरिया में , जो कि उस समय शहर से १५ किलोमीटर दूर था वहाँ तक पहुँचने के लिए यातायात का कोई साधन नहीं था सो पिताजी ने एक लुना ले दी थी । सुबह ९ बजे काम पर पहुँचना होता इसलिए ८:३० ही घर से रवाना हो जाती । माँ रोज सवेरे गरमा-गरम नाश्ता खिला एवं टिफिन पॅक करके दे देती थी । कुछ दिन बीत गये, माँ कभी-कभी टिफिन पॅक करने में देर कर देती , मुझे बड़ा ही बुरा लगता । मैं थी समय की बड़ी पाबंद । एक दिन एसे ही गुस्से से मैंने टिफिन पॅक होने का इंतजार न किया एवं काम पर बिना टिफिन ही चली गयी । मैं तो घर से चली गयी किंतु माँ बड़ी दुखी हो गयी कि बेटी पूरा दिन भूखी रहेगी। इंडस्ट्रियल एरिया होने के कारण आस-पास में कोई रेस्तराँ या ढाबा भी नहीं था ।मध्यम वर्गीय परिवार से होने के कारण उस समय कोई निजी साधन भी नहीं था।सो माँ टिफिन पॅक कर पैदल-पैदल मेरे फेक्ट्री के लिए रवाना हो गयी । कड़ी धूप में चल कर जब वह मेरी फेक्ट्री पहुँची तो अन्य सहकर्मी सहेलियों ने पूछा आंटी जी क्या बात है आज आप यहाँ ? कहने लगी आज यह टिफिन भूल आई थी सो मैं देने चली आई । सभी सहेलियों ने मुझे बड़ा भला-बुरा कहा । माँ तो टिफिन दे कर रवाना हो गयी और फिर पैदल चल कर घर पहुँची । शाम को मैं जब घर पहुँची तो देखती हूँ माँ के पैरों में छाले पड़ चुके थे और वह बहुत थकी दिखाई देती थी फिर भी समय पर मेरे लिए चाय और रात का खाना बना तैयार रखा था । उस समय मेरे लिए यह साधारण सी बात थी , लेकिन आज विवाह को पूरे सोलह वर्ष बीत चुके हैं और मैं स्वयं दो बच्चों की माँ हूँ ,गत१६ वर्षों में ससुराल , मेयेका हर तरफ के रिश्ते निभा रही हूँ और अब मुझे समझ आता है कि माँ से बड़ा कोई रिश्ता नहीं वह माँ ही होती है जो बच्चों के हर दुख को समझ सकती है, उसकी एक वक़्त की भूख वह बर्दाश्त नहीं कर पाती चाहे बच्चा ५ माह का हो या २० वर्षों का , माँ तड़प उठती है उसकी भूख देख कर, कभी-कभी मुझे भी देरी हो जाती है स्कूल का टिफिन पॅक करने में , लेकिन आज हमारे पास सारी सुख -सुविधाएँ हैं फिर भी मैं चाहती हूँ बच्चे को टिफिन किसी तरह पहुँचाना।आज मैं पहचानती हूँ उस टिफिन की कीमत ! रोचिका शर्मा , चेन्नई (चित्र गूगल से साभार ) अटूट बंधन ……….. कृपया क्लिक करे