फागुन है

फागुन का मौसम यानि होली का मौसम , रंगों का मौसम जो न केवल मन को आल्हादित करता है बल्कि  एक अनोखी उर्जा से भर देता है | ऐसे में  कविता “ फागुन है “ अपनी रंगों से भरी पिचकारी के रंगों से पाठकों को भिगोने को तैयार है… कविता -फागुन है   मदभरी गुनगुनी धूप मे फागुन है, आम की अमराई,कोयल की कूक मे फागुन है। ढ़लती उम्र में कोई पढ़ रहा दोहे, कोई कह रहा गोरी!तुम्हारे रुप मे फागुन है। प्रीत के,प्यार के हर कही बरस रहे रंग, फिर भी किसी विरहन के हूक मे फागुन है। कोई हथेली से मल रहा गुलाल, तो कही किसी प्रेमी के चूक मे फागुन है। ढ़ोल की थाप पर मेरा झुम रहा मन, हाय!रंग–कितने शुरुर मे फागुन है। रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर–222002 (up) यह भी पढ़ें … जल जीवन है पतंगे . बातूनी लड़की काव्य कथा -गहरे काले रंग के परदे आपको  कविता  “.फागुन है“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

जोधा-अकबर और पद्ममावत क्यू है?

बता एै सिनेमा—————— आखिर तुम्हें हमारी इतिहास से, इतनी अदावत क्यू है? तेरे दामन मे———- जोधा-अकबर और पद्ममावत क्यू है? । सवाल है मेरा तुझसे, कि सिनेमा के वे सेंटीमेंटल सीन और अंतरंगता, कोई मनोरंजन नही, ये इतिहास की पद्ममिनी का, सीने से खिचा आँचल है, हद तो ये है कि, इतने टुच्चे सिनेमाकारो के साथ आखिर—- हमारे यहाँ की अदालत क्यू है? । ठीक है माना कि, पद्ममावत जायसी की है, लेकिन एक तरफ “लव माई बुरका” पे रोक, लगाने वाली अदालत बता, कि पद्ममावती हर सिनेमाघर मे लगे, आखिर ये तेरी——– दोमुँही इजाज़त क्यू है? । तेरे दामन मे——— जोधा-अकबर और पद्ममावत क्यू है? । @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। अभी-अभी पद्ममावत फिल्म पे आये सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पे मेरी भावाभिव्यक्ति,सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का संम्मान करता हूं।मेरी इस रचना का ध्येय किसी जाति विशेष को आहत करना नही है,अगर एैसा भूलवस होता भी है तो आप हमे अपना छोटा अनुज समझ क्षमा करे।–रंगनाथ द्विवेदी। फोटो क्रेडिट विकिमीडिया कॉमन्स यह भी पढ़ें ……… काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें रंगनाथ द्विवेदी की कलम से नारी के भाव चित्र मुखरित संवेदनाएं आभा दुबे की कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “जोधा-अकबर और पद्ममावत क्यू है?..“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  डिस्क्लेमर -ये लेखक के निजी विचार हैं इनसे अटूटबंधन सम्पादकीय दल का सहमत होना जरूरी नहीं है |

मुझे पत्नी पतंजलि की मिल गई

सुबह होते ही———– कपाल भाति और अनुलोम-विलोम कर गई, हाय!राम——— मुझे पत्नी पतंजलि की मिल गई। एलोवेरा और आँवले के गुण बता रही, मुझे तो अपने जवानी की चिंता सता रही, हे! बाबा रामदेव———- आपने मेरी खटिया खड़ी कर दी, सारे रोमांस का नशा काफुर हो गया, ससुरी पति के प्यार का आसन छोड़—– आपके योगासन मे पिल गई। हाय!राम———– मुझे पत्नी पतंजलि की मिल गई। रोज च्यवनप्राश और दूध का सेवन, पचासो दंड बैठक, मै निरुपाय तक रहा उसका रुप लावण्य, तीन दिन हो गये हाथ न लगी, डर है कि ये दिन कही तीस न हो जाये, उफ!ये दूरी———– यही सोच के मेरी बुद्धि हिल गई। हाय!राम———— मुझे पत्नी पतंजलि की मिल गई। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। यह भी पढ़ें … काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें श्वेता मिश्र की पांच कवितायें नए साल पर पांच कवितायें – साल बदला है हम भी बदलें चुनमुन का पिटारा – बाल दिवस पर पांच कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “.मुझे पत्नी पतंजलि की मिल गई“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

पतंग और गफुर चचा

एक ज़माने में पतंगों का खेल बच्चों के बीच बहुत लोकप्रिय होता था , साथ ही लोकप्रिय होते थे गफुर चचा , जो बच्चों के लिए एक से बढ़कर एक पतंगे बनाते थे| जो ऊँचे आसमानों में हवा से बातें करती थीं | मोबाईल युग में पतंग उड़ाने का खेल अतीत होता जा रहा है , साथ ही अतीत होते जा रहे हैं गफूर चचा | पुरानी स्मृतियों को खंगालती बेहतरीन कविता ….पतंग और गफुर चचा आज शिद्दत से मुझे याद आ रहे है, वे बरगद के पेड़ के नीचे, छोटी सी गुमटी में रंखे पतंग—– गफुर चचा। एक जमाना था——— जब नदी के इस पार और उस पार, दिन भर पेंचे लड़ा करती थी, तब अपनी पतंगो के लिये कितने थे—— मशहूर चचा। पर हाय री!शहरी संस्कृति, तुमने निगल डाले वे पुराने खेल, और छीन लिये कितनो के मुँह के निवाले, मै भूल नही पाता, तब कितने टूटे-टूटे दिखे थे——— गफुर चचा। फिर वे ज्यादा न जी सके, जिंदगी के उनके ड़ोर कट गई, फिर भी उनकी खुली आँखे, एकटक आसमान तक रही थी, और एैसा लग रहा था मुझे जैसे, कि ढूंढ रहे हो कोई अच्छी पतंग—– गफुर चचा। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। यह भी पढ़ें ……….. काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें श्वेता मिश्र की पांच कवितायें नए साल पर पांच कवितायें – साल बदला है हम भी बदलें चुनमुन का पिटारा – बाल दिवस पर पांच कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “.पतंग और गफुर चचा“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

रेप से जैनब मरी है

उफ! मासूम जैनब ये जो रेप से जैनब मरी है, किसी वालिद की बिटिया, किसी की जीऩत,किसी की परी है——- ये जो रेप से जैनब मरी है। जिस्मानी भूख और हवस की हद है, वे मासूम कितनी चीख़ी होगी, या अल्लाह! वे कौन? नमाज़ी था, कि मरने के बाद भी लग रहा की, जैसे जैनब बहुत डरी है——— ये जो रेप से जैनब मरी है। इंसाफ़ मांगे किससे, खामोश है पाक मे तहरिक-ए-इंसाफ़, गोलियां मिली शायद यही किस्मत है, हर मुल्क के जैनब की, लेकिन जैनब सी किसी मासूम की लाश, शर्मिंदगी से सर झुका देती है, क्योंकि किसी भी मुल्क की जैनब, हमारे मज़हब और मज़हबी किताब से कही बड़ी है, ये जो रेप से जैनब मरी है। @@@पाकिस्तान मे एक मासूम जैनब को मेरी श्रद्धांजलि। रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) यह भी पढ़ें ………. काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें रूचि भल्ला की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायेँ आभा दुबे की कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “रेप से जैनब मरी है.“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये

शर्मिंदा हूं—————- सुनुंगा घंटो कल किसी गोष्ठी में, उनसे मै हिन्दी की पीड़ा, जो खुद अपने गाँव मे, शहर की अय्याशी के लिये——– अपने पनघट की हिन्दी छोड़ आये। गंभीर साँसे भर, नकली किरदार से अपने, भर भराई आवाज से अपने, गाँव की एक-एक रेखा खिचेंगे, जो खुद अपने बुढ़े बाप के दो जोड़ी बैल, और चलती हुई पुरवट की हिन्दी छोड़ आये। फिर गोष्ठी खत्म होगी, किसी एक बड़े वक्ता की पीठ थपथपा, एक-एक कर इस सभागार से निकल जायेंगे, हिन्दी के ये मूर्धन्य चिंतक, फिर अगले वर्ष हिन्दी दिवस मनायेंगे, ये हिन्दी के मुज़ाहिद है एै,रंग——— जो शौक से गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये। @@@आप सभी को अंतरराष्ट्रीय हिन्दी दिवस की बधाई। रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। यह भी पढ़ें ………. काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें रूचि भल्ला की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायेँ आभा दुबे की कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “.गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

सुहागरात (कविता )

यूँही पड़ी रहने दो कुछ दिन और कमरे मे— हमारे सुहागरात की बिस्तर और उसकी सिलवटे। मोगरे के अलसाये व गजरे से गिरे फुल, खोई बिंदिया,टूटी चुड़ियाँ! और सुबह के धुंधलके की अंगडाई मे, हमारे बाँहो की वे मिठी थकन! कुछ दिन और———- हमारे तन-मन,बिस्तर को जिने दो ये सुहागरात। फिर जिवन की आपाधापी मे ये छुवन की तपिस खो जायेगी, तब शायद तुम और हम बस बाते करेंगे, और ढ़ुढ़ेंगे पुरी जिंदगी——— इस कमरे मे अपनी सुहागरात। और याद करेंगे हम बिस्तर की सिलवटे, मोगरे के फुल,खोई बिंदिया,टूटी चुड़ियाँ और सुहागरात के धुंधलके की वे अंगडाई, जिसमे कभी हमारे तुम्हारे प्यार की मिठी थकन थी। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। यह भी पढ़ें …… डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ नए साल में पपुआ की मम्मी डिजिटल हो गयीं मेरे भगवान् काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें आपको  कविता  “ सुहागरात (कविता )“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई

टेक्नोलोजी पर  हालांकि पुरुषों का एकाधिकार नहीं है | पर एक सीधी  – साधी  घरेलू महिला जब नया मोबाइल लेती है तो  बेचारे पति को क्या – क्या समस्याएं आ सकती हैं | जानने के लिए पढ़ें रंगनाथ दुबे जी की व्यंग कविता और करें नए साल की शुरुआत थोड़े हंसी मजाक के साथ …….. नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई नये साल मे मोबाइल खरीद——— मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। पहले से ही क्या कम अक्ल थी उसमें, अभी उसी से निजात न मिली थी, कि हाय राम! हमारे पपुवा की मम्मी——- पहले से ज्यादा टेक्नीकल हो गई। नये साल मे मोबाइल खरीद—– मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। अब तो कुछ उसके शब्द भी सिनेमाई हो गये, दिन भर झगड़ती है, फिर सेल्फी लेते समय ये कहना—– कि क्या मुँह बनाये बैठे हो चलो हँसो, फिर अपने रंगे-पुते चेहरे को मेरे पास ला, कई सेल्फी लेती है, उफ! रे मोबाइल, चाहे जैसे थी, थोड़ा बहुत ही सही, प्यार तो करती थी पपुवा की मम्मी, लेकिन वाह रे! नया साल, कि मोबाइल खरीदते ही मेरे पपुवा की मम्मी— कितना क्रिटिकल हो गई। नये साल मे मोबाइल खरीद—— मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। उसे सजी-सँवरी होने पे भी, छुने की हिम्मत न पड़ रही, पता नही कब मुड़ आॅफ हो जाये, थोड़ी बहुत संभावना भी साफ हो जाये, इस डर से मै हिन्दी के स्टुडेंट की तरह, डर रहा क्या करु,हाय राम! इस नये साल——— मेरे पपुवा की मम्मी ना समझ आने वाली, कमेस्ट्री की केमिकल हो गई। नये साल मे मोबाइल खरीद——- मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। @@@रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर। जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें आपको  कविता  “..नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

नए साल पर प्रेम की काव्य गाथा -दिसंबर बनके हमारे प्यार की ऐनवर्सरी आई थी

यूँ तो प्यार का कोई मौसम नहीं होता | परन्तु आज हम एक ऐसे प्रेम की मोहक गाथा ले कर आये हैं | जहाँ नये साल की शुरुआत यानि जनवरी ही प्रेम की कोंपलों के फूटने की शुरुआत बनी |फरवरी , मार्च अप्रैल … बढ़ते हुए प्यार के साक्षी बने , धीरे धीरे महीने दर महीने प्यार परवान चढ़ा उसको उसका अंजाम नसीब हुआ | और प्यार के बंधन में बंधे एक जोड़े ने साल के आखिरी महीने दिसंबर में अपने प्यार की एनिवर्सरी कुछ यूँ मनाई … नए साल पर जनवरी से लेकर दिसंबर तक के रोमांटिक प्यार की काव्यगाथा कभी बन सँवर के दुल्हन सी——— मेरे कमरे मे जनवरी आई थी। सच वे गुलाब ही तो पकड़ा था तुमने, जो इतने सालो से बेनुर था, मेरी जिंदगी में———– वेलेनटाइन डे की रोमानियत लिये, वे पहली फरवरी आई थी। मार्च के महीने मे———– पहली बार खिले थे मेरी अरमान के गुलमुहर, हमारे प्यार की डालियो पे कोयल कूकी थी, वे मार्च ही था———– जब आम और महुवे पे मंजरी आई थी। अप्रैल याद है——— जब तुम मायके गई थी, मै कितना उदास था——- कई राते हमे नींद कहां आई थी। फिर मई महिने ने ही उबारा था, हमे तेरी विरह से! इसी महिने इंतज़ार करते हुये मेरे कमरे मे— कमरे की परी आई थी। फिर जून की तपिस में——– हम घंटो टहलने निकलते थे एक दुजे का हाथ पकड़े, नदी के तट की तरफ, वे शामे शरारत याद है और याद है वे कंपकपाते होंठ, जब हमने अपनी अँगुलियो से छुआ था, और तुम्हारी झील सी आँखो मे शर्म उतर आई थी। फिर जुलाई की——— वे घिरी बदलियां, वे बारिश मे पहली बार तुम्हे छत पे भीगा देखना एकटक, फिर बिजली की गरज सुन, तुम एक हिरनी सी दौड़ी मेरी बाँहो मे चली आई थी, मुझे भी तुम्हे छेड़ने की——— इस बरसात मे मसखरी आई थी। फिर पुरा अगस्त———– तुम्हारी बहन की चुहलबाजियो में गुजरा, मौके कम मिले, तब पहली बार तुम्हे चिढ़ाते आँखो से मुस्कुराते कनखियो से देखा, मै मन ही मन कुढ़ता रहा क्या करता? मेरे हारने और तेरी शरारतो के जितने की घड़ी आई थी। फिर सितम्बर ने दिये मौके, वे मौके जो मै भुलता नही,क्योंकि इसी महिने तेरी कलाई की तमाम चुड़ियाँ टूटी, और इसी महिने तेरे लिये, मैने दर्जनो की तादात मे खरिदे, तुम्हारी साड़ी से मैच करती तमाम चुड़ियाँ, उन चुड़ियो मे तुमने कहा था——— कि तुम्हे पसंद दिल से चुड़ी हरी आई थी। फिर अक्टुबर के महीने में हमने-तुमने अपनी जिंदगी के इस हनीमून को, फिर टटोला! लगा कि अभी भी तुम सुहागरात सी हो—- जैसे घूँघट किये आई थी। फिर नवंबर——— हमारी-तुम्हारी जिंदगी मे महिना नही था, हम माँ-बाप बन गये थे, हमारे आँगन में———– हँसने-खेलने एक गुड़िया चली आई थी। इस दिसम्बर———- जो हमारे कमरे मे कैलेंडर टंगा है, उसमे एक छोटी सी बिटिया को, छोटे-छोटे नन्हे पाँवो मे———- घूँघरुओ की पायल पहने चलते दिखाया है, हमारी बिटिया केवल बिटिया नही, इस दिसम्बर बनके————– हमारे प्यार की ऐनवर्सरी आई थी। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें आपको  कविता  “.. नए साल पर प्रेम की काव्य गाथा  -दिसंबर बनके हमारे प्यार की ऐनवर्सरी आई थी“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

एक खूबसूरत एहसास है

गुनगुनी धूप में—————— खुले बाल तेरा छत पे टहलना, एक खूबसूरत एहसास है। मै तकता हू एकटक तुम्हे चोर नज़र, पता ही नही चलता कि————- तेरे पाँव तले छत की ज़मी है, याकि मखमली घास है। गुनगुनी धूप में———— खुले बाल तेरा छत पे टहलना, एक खूबसूरत एहसास है। ये उजले से दाँत,गुलाबी से होठ,आँखो मे शर्म और हवा से बिखरे बालो का, अपनी नर्म-नाज़ुक सी अँगुलियो से हटाना, ये महज चेहरा नही———- एक खूबसूरत चाँद है। गुनगुनी धूप में——— खुले बाल तेरा छत पे टहलना, एक खूबसूरत एहसास है। हर्फ-दर-हर्फ मेरे अंदर समा रही, ये तेरी उजली ओढ़नी और सफेद सलवार, महज तेरे बदन से लिपटी, शरारत करती कोई सहेली नही, बलकि मेरी गज़ल और उसके बहर की—- एक खूबसूरत लिबास है। गुनगुनी धूप में————- खुले बाल तेरा छत पे टहलना, एक खूबसूरत एहसास है। @@@कलके रोमांटिक धूप की रोमांटिक याद जो शायद आप सबो को अच्छी लगे। रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। आपको आपको  कविता  “ एक खूबसूरत एहसास है “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |