हे! राम

आज एक बड़ा तबका बहुत मौन है——- नही बताना चाहता वे किसी को कि गाँधी कौन है? हिंसा गोड़से की सर्वत्र परिलक्षित है, गाँधी चौराहे-चौराहे मर रहे, हिंसा सुरक्षित और——- अहिंसा बहुत गौण है। आरोप-प्रत्यारोप के झंझावत से लड़ रहे, वे मर के भी——— अपनो से अहिंसा की बात कर रहे, अजीब हालात मे है गाँधी, वे किस-किस गोड़से से कहे, कि हिंसा छोड़ दो! हे! राम———– बड़ा मुश्किल वक़्त और दौर है, शायद साबरमती का संत अब इस देश में, असहाय और निरुपाय हो गया है, वे लाठी टेके थक गया है, गोली मार दो नाथु, हिंसा विजयी हो————– और मौन हो जाये गाँधी कह के हे!राम। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर (उत्तर-प्रदेश)।

जुलाहा हूँ

रंगनाथ द्विवेदी। जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। मै पंडित नही———— तेरी मस्जिद का अजा़न, और तेरी बस्ती का जुलाहा हूँ। देख लेता हूँ सारे कौमो का खुदा मै, फिर बुनता हूं एक धागे से मुहब्बत की चादर, मै कबीर सा हिन्दू —————- और उसकी मस्ती सा जुलाहा हूँ। मुझे नापसंद है धुआँ अलग-अलग, मुझे नापसंद है कुआँ अलग-अलग, मुफ़लिस और रईस सब छके पानी, आचमन और वज़ू सब एक से ही है, ये सर जहां झुके——— मै उस मिट्टी का जुलाहा हूँ। हर मासूम हँसे खेले एक हो आँगन, ना समझ सके वे राम और जुम्मन, जिस गोद खुश हो जाये वे मासूम सी बच्ची, एै “रंग” मै———- एैसी हर उस बच्ची का जुलाहा हूँ।

रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन यानी तुष्टिकरण का मानसिक कैंसरवाद

रंगनाथ द्विवेदी। जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) आज म्याँमार से भगाये गये लाखो लाख रोहिंग्या मुसलमान इतने शरीफ़ और साधारण नागरिक वहाँ के नही रहे,अगर रहे होते तो उन्हें आज इस तरह के हालात से दो-चार न होना पड़ता और उन्हें सेना लगाकर जबरदस्ती वहाँ से न निकाला गया होता।वहाँ के अमन चैन के जीवन मे ये आतंकियो की तरह अंदर ही अंदर एक दूषित इस्लाम( इस्लामी आतंकवाद ) का बारुद बिछाना शुरु कर दिये थे जिसकी परिणति या प्रतिफल उन्हें इस तरह भुगतना पड़ रहा हैं । चार लाख के करीब रोहिंग्या आज बांग्लादेश के शिविरो मे भयावह शरणार्थियो की तरह पड़े हुये है,जबकि बांग्लादेश की खुद की जनसंख्या की एक चौथाई के करीब संख्या तथाकथित रुप से भारत के अधिसंख्य राज्यो मे चोरी-छिपे रह रहे है।या किसी राज्य विशेष मे तथाकथित राजनैतिक पार्टी ने इन्हें इस देश की संम्मानित नागरिकता भी दिलवा दी है “एैसे महान राज्य की लिस्ट मे एक सर्वोपरि राज्य बंगाल यानि कि कोलकाता है जहाँ की मुख्यमंत्री को महज ममता बनर्जी कहना न्यायोचित न होगा—उन्होनें बंगाल को राज्य नही अपितु एक बारुद बना रंखा है जो दंगे के रुप मे अक्सर फटता रहता है”। इन्हीं महान मुख्यमंत्री के कारण——“आज बंगाल आई.यस.आई.यस(I S I S) जैसी आतंकी संस्था का खूनी इराक लगने लगा है”। आज चालीस हजार रोहिंग्या मुसलमान बिना किसी आधिकारिक बीजा के हमारे देश मे चोरी-छिपे घुस आये है,जबकि हमारे देश की खुफिया एजेन्सी लगातार ये कह रही है कि इन्हें किसी भी तरह देश मे शरण न दिया जाये—-ये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरनाक है,क्योंकि एैसे तमाम सबूत व प्रमाण मिले है कि ये आतंकी ट्रैनिंग के साथ आतंकी गतविधियो में भी संलिप्त रहे है।इनका संबंध पाकिस्तान व इराक के आतंकी संगठनो से भी है,हमारे देश की वर्तमान सरकार भी इन्हें शरण देने को तैयार नही यहाँ तलक कि हमारे गृहमंत्री आदरणीय राजनाथ सिंह ने दो टूक व स्पष्ट कहाँ है कि हम इन्हें कतई अपने यहाँ शरण नही देंगे और आशा करते है कि हमारा सुप्रीम न्यायालय भी इस बात को समझेगा। इस सबके बावजूद हमारे देश के तथाकथित मुसलमान मुस्लिम तुष्टिकरण की उनकी जो कैंसरवादी सोच है उसी के तहत वे रोहिंग्या मुसलमानो को सह व संरक्षण देने की पुरजोर वकालत कर रहे है।इतना ही नही कल तो कोलकाता के एक मुसलमान मौलवी ने तो हद ही कर दी और इस हद को अगर पुरी दुनिया मे कोई देश इस बहादुरी और निर्लज्जता से बर्दाश्त कर सकता है तो वे एकलौता देश हमारा भारत है,यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी की पराकाष्ठा ये है कि—–“भारत माँ को गाली देकर भी सगर्व रहा जा सकता है”। कल कोलकाता के मौलवी ने बड़ी बहादुरी के साथ कहाँ कि—“रोहिंग्या महज़ मुसलमान नही हमारे भाई है इस दुनिया मे कही भी रह रहा मुसलमान पहले मुसलमान है क्योंकि उसका हमारा कुरान एक है,उसका रसुल हमारा रसुल एक है इंशा अल्लाह हम इनकी खातिर लाखो गरदने काट देंगे”।अघोषित रुप से उसने गुजरात के पूर्व-मुख्यमंत्री और भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सीधे तौर पे कहाँ कि—“ये तुम्हारा गुजरात नही बंगाल है जहाँ हजारो मुसलमान लाखो हिन्दुओ का कत्लोगारद कर सकते है”। इस अभिव्यक्ति से स्पष्ट लगा कि जैसे बंगाल भारत का राज्य नही अपितु एक शत्रु राष्ट्र हो इनके समर्थन मे बोल रहे कुछ आस्तीन के जहरिले साँपो ने राष्ट्रवादी मुसलमानो की जमात को शर्मिंदा किया है—“काश हमारा देश एैसे जहरिले मुसलमान साँपो का उन्मूलन कर पाता”।इन मुसलमानो को रोहिंग्या का मुसलमान दिख रहा है जो बाहर देश से जबरदस्ती हमारे देश मे घुस आये है,इनके लिये ये अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार की बात कर रहे कोर्ट मे इनके लिये पैरवी व इनके पक्ष मे वकील करके तमाम गैर-जिम्मेदाराना दलीले दी जा रही। जबकि हमारे अपने ही देश मे तमाम कश्मीरी पंडित आज कई सालो-साल से अत्यंत कष्टदायी और भयावह जीवन शरणार्थी शिविरो में जीने को बाध्य है जिन्हें आज भी ये आस और उम्मीद है कि वे एकदिन फिर अपने पुरुखो के उस कश्मीर मे पहले की तरह रह पायेंगे।इनके लिये मानवाधिकार गौण है,इनके लिये किसी मुस्लिम संगठन के होंठ नही खुलते। मुझे ये नही समझ आता कि आखिर हम क्यू एैसे बेवफ़ा और गद्दार रोहिग्या मुसलमानो को झेले जिन्हें अपने इस मादरे वतन की मिट्टी से मोहब्बत नही,ये सच है कि—“एैसे भी हमारे मुल्क मे मुसलमान है जो हमारे हिन्दुतान के माथे पे कोहिनूर की तरह चमकते है जिन्हें हमारी हर साँस सलाम करती है”।मुझे बखूबी एक मुसलमान शायर कि लिखि वे एक लाइन अब तलक याद है जिसमें वे कहता है कि मेरी आखिर ख्वाहिश है कि—“मुझे कुछ मत देना,चादर,चराग,उर्स,कौवाली हाँ अगर मुझसे जरा भी मोहब्बत करना तो—-मेरी कब्र के सिरहाने मुट्ठी भर मेरे वतन की मिट्टी रख देना”।लेकिन आज हालत ये है कि हम रफ्ता-रफ्ता कहाँ से कहाँ पहुँच गये सच तो ये है कि—–“ रोहिंग्या मुसलमानो का समर्थन तथाकथित मुसलमानो   गलिज़ सोच का एक भयावह मानसिक कैंसरवाद है”। यह भी पढ़ें ………. अलविदा प्रद्युम्न – शिक्षा के फैंसी रेस्टोरेंट के तिलिस्म में फंसे अनगिनत अभिवावक जिनपिंग हम ढाई मोर्चे पर तैयार हैं आइये हम लंठों को पास करते हैं शिवराज सिंह चौहान यानी मंदसौर का जनरल डायर पोस्ट में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं | अटूट बंधन संपादक मंडल का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है |

जापानी तेल लगाओ—-राधे माँ

रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) तुम भी अब स्वर्ण-भस्म और शीलाजीत सी——- कोई दवाई खाओ—राधे माँ। बर्दाश्त नही हो रहा आशाराम और राम-रहिम से, स्याह कोठरी का खालीपन, किसी बगल की बैरक मे कैसे भी हो——- तुम आ जाओ–राधे माँ। स्त्री-गामी संसर्गो का स्वर्ग छिना, नरक हो गया जीवन, इस जीवन की रति-सुंदरी कि काया का—— कुछ तो दरस कराओ–राधे माँ। हम बाबाओ के अच्छे दिन चले गये, मालिश,काजू ,पिस्ता सब ख्वाब हुआ, आश्रम मे पोर्न बहुत देखा, कही नपुंसक न हो जाये हम बाबा, अपने प्रेम का कुछ दिन ही सही, तुम आके यहाँ गुजारो–राधे माँ। सारे आसन कामुकता के फिर से जीवित हो, तुम भरके हथेली मे अपने थोड़ा सा, ये जापानी तेल लगाओ–राधे माँ।

गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये

रंगनाथ द्विवेदी। शर्मिंदा हूं—————- सुनूंगा घंटो कल किसी गोष्ठी में, उनसे मै हिन्दी की पीड़ा, जो खुद अपने गाँव मे, शहर की अय्याशी के लिये——– अपने पनघट की हिन्दी छोड़ आये। गंभीर साँसे भर, नकली किरदार से अपने, भर भराई आवाज से अपने, गाँव की एक-एक रेखा खिचेंगे, जो खुद अपने बुढ़े बाप के दो जोड़ी बैल, और चलती हुई पुरवट की हिन्दी छोड़ आये। फिर गोष्ठी खत्म होगी, किसी एक बड़े वक्ता की पीठ थपथपा, एक-एक कर इस सभागार से निकल जायेंगे, हिन्दी के ये मूर्धन्य चिंतक, फिर अगले वर्ष हिन्दी दिवस मनायेंगे, ये हिन्दी के मुज़ाहिर है एै,रंग——— जो शौक से गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये। @@@आप सभी को हिन्दी दिवस की ढ़ेर सारी बधाई। रंगनाथ द्विवेदी का रचना संसार अलविदा प्रद्युम्न – शिक्षा के फैंसी रेस्टोरेंट के तिलिस्म में फंसे अनगिनत अभिवावक जिनपिंग – हम ढाई मोर्चे पर तैयार हैं आइये हम लंठों को पास करते हैं

अलविदा प्रद्युम्न- शिक्षा के फैंसी रेस्टोरेन्ट के तिलिस्म मे फंसे अनगिनत अभिभावक

रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। आज की तारीख़ का सबसे मुफिद और त्वरित फायदेमंद अगर कोई धंधा है तो वे एकमात्र कारआमद लाभकारी धंधा कोई शिक्षालय खड़ा कर चलाना है।ये एक एैसा शैक्षणिक हसीन रेस्टोरेन्ट है जिसके तिलिस्म मे फंसा अभिभावक अपने बच्चे की अच्छी शिक्षा के चक्कर मे खिचा चला आता है,एैसी तमाम इमारते हर शहर मे नाजो अदा से सजी सँवरी खड़ी है। और सबसे बड़ा इन इमारतो का लब्बो-लुआब ये है कि इनके ज्यादातर जो मालिक है या तो सत्ताधारी पार्टी के मंत्री,विधायक या फिर बड़े-बड़े वे रसुखदार लोग है।जो अपनी सक्षम पहुँच की बदौलत तमाम स्थापित शैक्षणिक मानको को ताक पर रखे रहते है,इनकी सक्षम पहुँच की सलामी शहर के तमाम आलाहजरात के साथ वे अमला भी इनके तलवे को तक भर पाता है जिनके कांधे किसी भी शहर के आखिरी शख्स की आखिरी उम्मीद जुड़ी होती है,आपने भी शायद एकाध किस्से गाहे-बगाहे सुना हो “कि यादव सिंह जैसा अदना शख्स सरेआम पूरी व्यवस्था रुपी अमले को निर्वस्त्र कर धड़ल्ले से पूरी व्यवस्था का रेप करता है और सरकारे मौन साधे रहती है”। अर्थात इस उदाहरण का अभिप्राय एक हालात और हैसियत किस तरह घुटने टेकती है वे बानगी भर है।सच तो ये है कि इस तरह के विद्यालय संचालको के विरुद्ध नकेल कस पाना दूर की कौड़ी है इनपे न तो पिछली सरकार कुछ कर पाई और न ही लग रहा कि वर्तमान सरकार भी कुछ कर पायेगी। हाँ कभी-कभी इन शैक्षणिक रेस्टोरेन्ट मे घटित कोई बड़ी घटना इन्हें क्षणिक विचलित जरुर करती है,इन परिस्थितियो मे जनाक्रोश को शांत होने तलक के लिये कार्यवाही का एैसा ढ़िढोरा पिटते है कि जैसे अब इस संस्था को ये मटियामेट कर देगे,लेकिन फिर रफ्ता-रफ्ता इनके इस फैंसी रेस्टोरेन्ट की रौनक पुनः लौटने लगती है और लौट भी आती है। सच तो ये है कि “ये एक एैसी राजनैतिक विरयानी है जो इंतकाल के चालिसवे के बाद किसी नये निकाह मे बड़े मुहब्बत और मन से खाया जाता है”। अभी हरियाणा के मासुम प्रद्युम्न की वे गले कटी लाश हरियाणा क्या पुरे हिन्दुतान के उन तमाम लाखो करोड़ो प्रद्युम्न के अभिभावको को हिलाकर रख दिया है एक प्रद्युम्न से मासूम ने सारे मुल्क की आँख मे भावना का सैलाब ला दिया है और शायद आक्रोश भी”आक्रोश का ही प्रतिफल था जो रेयान स्कूल से कुछ दूरी पे खुले शराब के ठेके को आग के हवाले कर दिया और पुरस्कार स्वरुप अपने पीठ पे लाठिया खाई जहाँ इन लाठियो को चलाकर हत्यारे को पीट-पीटकर अधमरा करना था वहाँ ये रंड़ियो के दलाल की तरह बस खड़े रहे”। सच तो ये है कि ये सारे स्कूल संचालक साफ्ट माफ़िया है जिनके चेहरे पे मुस्कान भर है “बाकी ये अंदर से पैशाचिक प्रवृत्ति के अनमोल धरोहर है,इनके अपराध करने की शैली किसी ओपेन अपराधी से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ये सभी बहुत कुल और कोल्ड मर्डर करते है”।किसी शहर मे इनके खिलाफ कोई कार्यवाही अगर किसी भी स्तर पर हो रही हो तो बताये किसी भी बड़े शिक्षा माफ़िया का कोई भी एक रोया मात्र अगर किसी ने टेढ़ा किया हो तो मै मानू। प्राईवेट स्कूलो मे शोषण की बानगी यत्र,तत्र,सर्वत्र है,क्या भाजपा?,क्या काग्रेंस,क्या सपा?,क्या बसपा? या कोई अन्य राष्ट्रीय पार्टी सच तो ये है कि ये सब “एक से रंगे सियार है और दिखावे की खातिर बस कुछ दिन एक दुसरे की तरफ मुँह कर हुंआ-हुंआ करते है”।कार्यवाही के नाम पर एक खानापुर्ति भर होके रह जाती है। हर शहर मे बड़ी स्कूलो के बस धड़ल्ले से हमारे आपके बच्चे को ठसा-ठस लादे एक परेशान गंतव्य को लादे अर्थात स्कूल को निकल जाती है।क्या इसकी जाँच होते आप कही देख रहे है जबकि बस के किराये के नाम पर हम हर महिने फिस के साथ बस के भी पैसे जमा कर रहे है। आरटीओ इन्हें टच नही करते इन्हें भी इनकी पहुँच और रसुख का डर सताता है। हालाँकि मै राजनैतिक लेखो और संदर्भो से अपने कलम की एक निश्चित दूर बनाये रखता हूँ।लेकिन कुछ हालात एैसे बन पड़ते है कि कलम न चाह के भी चित्कार कर उठती है और ये लेख उसी चित्कार की पीड़ा बन लेख मे उतर आये है,”ये चित्कार है उस सात वर्ष के हरियाणा के मासूम प्रद्युम्न की ये महज़ एक राज्य भर नही शायद एैसे तमाम स्कूल है जहाँ मासूम प्रद्युम्न तड़प व छटपटा रहा है”। मै आदरणीय प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी से कर बंध निवेदन करता हूँ कि वे हमारे देश को आज की तारीख़ मे डिजिटल और न्यू इंडिया बनाये,डोकलाम पे चीन से कुटनीतिक विजय पाये,कश्मीर से आतंक को नेस्तनाबूत करे लेकिन “आज देश के अंदर उनकी सरकार है और सरकार की मानवीय संवेदना का मै आवाहन करता हूँ कि—-प्लीज अस्पतालो और स्कूलो मे तड़प रहे उन अनगिनत प्रद्युम्न कि माँ के आँसूओ को पोछने की संवेदनात्मक कोशिश करे,क्योंकि आज ये हालात डोकलाम और कश्मीर घाटी से ज्यादा दुरुह और घातक हो चुका है। यह भी पढ़ें … अतिथि देवो भव – तब और अब चमत्कार की तलाश में बाबाओं का विकास फेसबुक  – क्या आप दूसरों की निजता का सम्मान करते हैं ? अपने लिए जिए तो क्या जिए

मै लिखता हूँ कोई गीत

रंगनाथ द्विवेदी। जौनपुर (उत्तर-प्रदेश)। जब बेचैन कर देता है———— मेरे अंदर का मरुस्थल मुझको, तब मै लिखने बैठता हूँ कोई गीत। जब———— शब्द के होंठ पे चुभती है कोई नागफनी, तब मै लिखने बैठता हूँ कोई गीत। जब पथ की रेत पे———– चलता जाता हूँ दूर पथिक सा और फूट जाते है पाँव के छाले, तब मै लिखने बैठता हूँ कोई गीत। जब———— बहुत सन्नाटा मेरे भीतर का, उधेड़ता है मुझको——— तब मै लिखने बैठता हूँ कोई गीत। बोता हूँ रेत पे कुछ शब्द, पर कटिले वृक्ष के विरवे ही पनपते है, उन्ही वृक्षो की———— खरोंच जब आ जाती है बन के पीर, तब मै लिखता हूँ कोई गीत।

बकरा

रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर,जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) पालने वाले मालिक से खरीदकर, जब कसाई—————– जबरदस्ती पकड़े ले चलेगा बकरे को उस गाँव,उस गली से जहां वे इतने दिन पला बढ़ा है, तो में में में कर रोता जायेगा वे रास्ते भर। गर रास्ते में कही देखेगा वे बकरी का मेंमना, तो सोचेगा————— कि देखो कितना उछल कुद रहा, गले में घंटी और घुँघरू पहने, अपने अंजाम से बेखबर, कितना खुश है ये मेंमना! यही जब बड़ा हो जायेगा तो इसको भी खरीदने, फिर इसी गाँव और गली में आयेगा एक कसाई! ले जायेगा फिर में में में करते हुये बकरे को, फिर कसाई उसे तमाम बकरो में खड़ा कर, खू से तरबतर ———– जब इसको भी काटने की तरफ बढ़ेगा, तो एक मर्तबा फिर बकरे को———- वे गाँव,वे गली,वे मालिक याद आयेगा। फिर कसाई———— गले को बेरहमी से काटेगा रेतेगा, और में में में में कर तड़पड़ा के, अपने ही खून में कुछ देर के बाद, हमेशा के लिये शांत हो जायेगा बकरा।

राम-रहीम से बलात्कारी बाबा बढ़ रहे

रंगनाथ द्विवेदी बाबाओ को गदराई दैहिकता ललचा रही———– औरत इन्हें भी हमारी तरह भा रही। सारे प्रवचन भुल रहे, बिस्तर पर हर रात एक यौवन का सेवन, तन्दुरुस्ती एैसी कि एक जवान से ज्यादा——- औरत की जिस्म पे बाबा जी झूल रहे। कामोत्तेजना के तमाम आसन कोई इनसे पुछे, दाँतो तले पहरे पे खड़े सेवक अपनी अँगूली दबा रहे, साठ के बाबा जी के क्या कहने कि बीना शिलाजीत खाये, इनके कमरे की हर ईट से जैसे कामसूत्र चीखे। सभी बाबा एक-एक कर फँस रहे, जेल मे आशाराम बापू आह भर रहे, सीडी किंग नित्यानंद, जेल मे चोरी-चोरी अश्लील किताब मंगा, अपना अंग विशेष पकड़े———– बड़ी समाधिस्त अवस्था मे मस्तराम को पढ़ रहे, फिर भी इन चरित्रहीनो के भक्त है, कि मानते नही, पुलिस,पैरामिलट्री,कर्फ्यू तक लगाना पड़ रहा, लेकिन वाह रे इन गलिजो के भक्त, इतनी निकृष्ट गुरुता का अंधापन, कि पंजाब और हरियाणा के बलात्कारी को बचाने के लिये, अपने ही राज्य के बेटे लड़ रहे, शायद इसी से एै “रंग”, अब हमारे देश मे राम-रहीम से———- बलात्कारी बाबा बढ़ रहे। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर–प्रदेश)। तुम धन्य हो इस देश के तथाकथित बलात्कारी बाबाओ जो इतना इस देश की आस्था का श्री वर्द्धनकर आप चार चाँद लगा रहे।

तलाक था..

-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर–प्रदेश)। औरतो की खूशनुमा जिंदगी मे जह़र की तरह है तलाक——- औरत आखिर बगावत न करती तो क्या करती, जिसने अपना सबकुछ दे दिया तुम्हें, उसके हिस्से केवल सादे कागज़ पे लिखा—— तीन मर्तबा तुम्हारा तलाक था। इस्लाम और सरिया की इज़्ज़त कब इसने नही की, फिर क्यू आखिर—————- केवल मर्दो के चाहे तलाक था। मै हलाला से गुजरु और सोऊ किसी गैर के पहलु, फिर वे मुझे छोड़े, उफ! मेरे हिस्से एै खुदा———- कितना घिनौना तलाक था। महज़ मेहर की रकम से कैसे गुजरती जिंदगी, दो बच्चे मेरे हिस्से देना, आखिर मेरे शौहर का ये कैसा इंसाफ था, मै पुछती बताओ मस्जिदो और खुदा के आलिम-फा़जिल, कि आखिर मुझ बेगुनाह को छोड़ देना——— कुरआन की लिखी किस आयत का तलाक था। पढ़िए ………..रंगनाथ द्विवेदी का रचना संसार