हे! राम
आज एक बड़ा तबका बहुत मौन है——- नही बताना चाहता वे किसी को कि गाँधी कौन है? हिंसा गोड़से की सर्वत्र परिलक्षित है, गाँधी चौराहे-चौराहे मर रहे, हिंसा सुरक्षित और——- अहिंसा बहुत गौण है। आरोप-प्रत्यारोप के झंझावत से लड़ रहे, वे मर के भी——— अपनो से अहिंसा की बात कर रहे, अजीब हालात मे है गाँधी, वे किस-किस गोड़से से कहे, कि हिंसा छोड़ दो! हे! राम———– बड़ा मुश्किल वक़्त और दौर है, शायद साबरमती का संत अब इस देश में, असहाय और निरुपाय हो गया है, वे लाठी टेके थक गया है, गोली मार दो नाथु, हिंसा विजयी हो————– और मौन हो जाये गाँधी कह के हे!राम। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर (उत्तर-प्रदेश)।