पिजड़े से आजादी

यूँही नही मिली एै दोस्त————– गुलाम भारत के पिजड़े की चिड़ियाँ को आजादी। यूँही नही इसके पर फड़फड़ाये खुले आकाश—– बहुत तड़पी रोई पिजड़े मे इसके उड़ने की आजादी। इसने देखा है——– गोली सिने मे लगी घिसटता रहा खोलने पिजड़े को, लेकिन खोलने से पहले दम तोड़ गया, इस आस मे कि मै तो न खोल सका, पर कोई और खोलेगा एकदिन और दुनिया देखेगी—- इस बंद पिजड़े के चिड़ियाँ की आजादी। जश्ऩ मे डुबी सुबह होगी तिरंगे फहरेंगे, जलिया,काकोरी,आजाद,विस्मिल की गाथाये होंगी, हाँ ! आँख भिगोये देखेगी वही पिजड़े की चिड़ियाँ, क्योंकि बड़ी मुश्किलो से पाई है एै “रंग”———- इस चिड़ियाँ ने उस पिजड़े से आजादी। @@@रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर–प्रदेश)। मेरा भारत महान ~जय हिन्द

पन्द्रह अगस्त

15 अगस्त पर एक खूबसूरत कविता —रंगनाथ द्विवेदी अपनो के ही हाथो——— सरसैंया पे पीड़ाओ के तीर से विंधा, भीष्म सा पड़ा है——पन्द्रह अगस्त। सड़को पे द्रोपदी के रेप के दृश्यो ने, फिर भर दी है आजाद देश के उन तमाम शहीदो की आँखे, और उनकी रुह के सामने! शर्म से खड़ा है—-पन्द्रह अगस्त। बहुत बिरान है मजा़रे कही मेला नही लगता, ये सच है——————- कि हम शहिदो की शहादत के दगाबाज है, फिर भी एै,रंग————- ये लहराते तिरंगे कह रहे, कि हमारी तुम्हारी सोच से भी कही ज्यादा, विशाल और बड़ा है—–पन्द्रह अगस्त। यह भी पढ़ें ….. क्या है स्वतंत्रता का सही अर्थ भारत बनेगा फिर से विश्व गुरु आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प ले नए भारत के निर्माण का स्वतंत्रता दिवस पर आधी आबादी जाने अपने अधिकार भावनात्मक गुलामी भी गुलामी ही है स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के मेरा भारत महान ~जय हिन्द  Attachments area

अस्पताल गोरखपुर

गोरखपुर के उन बह रहे तमाम आँसुओ को समर्पित एक पीड़ा——- चालीस बच्चो की मौत पे भी शिकन नही——- बड़ी मोटी है तेरी सियासी खाल गोरखपुर। आॅक्सीजन की सप्लाई रुक गई, अभी तलक आजाद है सी.ऐम.ओ.(C.M.O.), मुझे तो शक है कि, इन बच्चो की मौत के है——— यही दलाल गोरखपुर। योगी यही के है इसी से मिट्टी डल रही है, लेकिन जल गई है धुनी—— अब आयेंगे काग्रेंस,सपा,बसपा के लोग, और बजायेंगे कुछ दिन नकली संवेदना लिये—– अपने-अपने सियासी गाल गोरखपुर। लेकिन वे आँखे भरी रहेंगी जिन आँखो में अभी तलक, अपने बच्चे के खेलने, और कानो को सुनने की किलकारियाँ थी, शायद कभी नही भरेंगे, उन बच्चो के खोने के ये घाव, रुह कांप जायेगी इनकी ता उम्र, और हमेशा इनकी जेहन मे रहेगा—— एक दर्द बनके तेरा अस्पताल गोरखपुर। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर–प्रदेश)।

चोटी काटने वाले से दुखी हूँ

रंगनाथ द्विवेदी औरतो की कट रही चोटी पे एक लेखकीय सहानुभूति कुछ औरतो के चोटी कटने की खबर सुन—— मेरी लुगाई भी सदमे मे है। वे सोये मे भी उठ जा रही बार-बार, फिर चोटी टटोल सो जा रही, अभी कल ही तो उसने——- एक तांत्रिक के बताये कुछ सामान मंगवा के, अपनी पुरी चोटी का तीन चक्कर लगा, घर मे सुलगाई अंगीठी मे, काला तील,लोबान,कपुर सब डाल कर, आँख मुद अपनी चोटी के रक्षार्थ, उस काले-कलुटे तांत्रिक के बताये, उट-पटांग सा श्लोक पढ़, फिर अपनी चोटी मे——- 15 से 20 मिनट तक नींबू और हरी मिर्च टांग, अनमने मन से एक कप चाय लाती है। उसके इस हाल पे हँसी और तरस दोनो आ रहा, क्या करु पति हूँ————– इसलिये मै उस चोटी काटने वाले से दुःखी हूँ। @@@रचयिता——रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

रेप के घाव

@@@रचयिता—-रंगनाथ दुबे। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। थाने पे——– एक गरीब की बिटिया, अपनी सलवार उतारे——— जगह-जगह हुये रेप के घाव दिखा रही है। दरोगा———- बार-बार थप थपाके देख रहा, दाँत और नाखून चुभे——— उरोजो को बार-बार। लड़की सिहर उठी—उसी रेप के छुअन कासा, ऐहसास हुआ उसे! वे समझ गई आँख भर-भरा आई उसकी, कि अब एक रात और चीखेगी थाने पे, फिर हरे हो जायेंगे————— ना भरने के लिये उसकी उरोजो पे ताजिंदगी, एै,रंग———–ये रेप के घाव।

महबूब के मेंहदी की रस्म है

रोऊँगा नही मै——————- आज मेरी महबूब के मेंहदी की रस्म है। भीच लुंगा होंठ को दाँतो से कुचलकर, एै खुदा चढ़े- —————— उसकी हथेली पे इतनी सुर्ख मेंहदी, कि सारा शहर कहे—————– किसी भी हथेली पे आज तलक इतनी मेंहदी नही चढ़ी। रोऊँगा नही मै—————- आज मेरी महबूब के मेंहदी की रस्म है। वे शरमा के हथेली से जब ढ़के चेहरा, एै आह!मेरी उसको न देना बददुआ, वे महबूब थी मेरी और महबूब रहेगी, मै मरके भी दुआ दुंगा——– महबूब को अपने। एै,रंग——-रोऊँगा नही मै आज मेरी महबूब के मेंहदी की रस्म है।

अगर सावन न आइ (भोजपुरी )

रंगनाथ द्विवेदी हे!सखी पियरा जाई हमरे उमरियाँ क धान——- अगर सावन न आई। रहि-रहि के हुक उठे छतियाँ मे दुनौव, लागत हऊ निकल जाई बिरहा में प्रान——- अगर सावन न आई। हे!सखी पियरा जाई हमरे उमरियाँ क धान—— अगर सावन न आई। ऊ निरमोही का जाने कि कईसे रहत थौ, बिस्तर क पीड़ा ई कईसे सहत थौ, टड़पत थौ सगरौ उमर क मछरियाँ, बाहर के घेरे न बरसे सखी! जबले पिया से हमरे मिलन के न घेरे बदरियाँ, तब ले न हरियर होये सखी! ई उमरियाँ क धान, अगर सावन न आई। हे!सखी पियरा जाई हमरे उमरियाँ क धान—– अगर सावन न आई। हे!सखी का होई रुपिया अऊ दौलात, का होई गहना, ई है सब रही कमायल-धयामल, बस बीत जाई हमन के उमरियाँ——- बाहर कई देईहै दुनऊ परानी के ले लेईही बेटवा, मरी-मरी बनावल ई सारा मकान, फिर बाहर खूब बरसे——— लेकिन न भीगे तब तोहरे चहले ई शरिरियाँ बुढ़ान, हे!सखी पियरा जाई हमरे उमरियाँ क धान——- अगर सावन न आई।

बरसने की जरुरत न पड़े

रंगनाथ द्विवेदी या खुदा————– उसके रोने से धुल जाये मेरी लाश इतनी, कि बदलियो को घिर-घिर के बरसने की जरुरत न पड़े। वे तड़पे इतना जितना ना तड़पी थी मेरे जीते, ताकि मेरी लाश पे किसी गैर के तड़पने की जरुरत न पड़े। या खुदा———- वे मेहंदी और चुड़ियो से इतनी रुठ जाये, कि शहर मे उसको बन-सँवर के निकलने की जरुरत न पड़े। एै हवा उड़ा ला उसके सीने से दुपट्टे को, और ढक दे मेरी लाश को———— ताकि मेरी लाश पे किसी गैर के कफ़न की जरुरत न पड़े। या खुदा———— वे जला के रखे एक चराग हर रात उस पत्थर पे, जहाँ बैठते थे हम संग उसके, ताकि एै”रंग”——– मेरी रुह को भटकने की जरुरत न पड़े। या खुदा——— उसके रोने से धुल जाये मेरी लाश इतनी, कि बदलियो को घिर-घिर के बरसने की जरुरत न पड़े। रचयिता——रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

अनार से महंगा टमाटर खा रहा हूं ( हास्य – व्यंग कविता )

रंगनाथ द्विवेदी अनार से महंगा टमाटर खा रहा हूं। आ गये अच्छे दिन——— मै इलू-इलू गा रहा हूं, अनार से महंगा टमाटर खा रहा हूं। मार्केट से सभी सब्ज़ियाँ तो ले ली, पर टमाटर को लेने मे लग गये घंटो, क्योंकि सभी एक से भाव मे बेच रहे थे, यहाँ तलक कि टमाटर को बिना मतलब छुने से रोक रहे थे, थक-हार एक ठेले वाले को पटा रहा हूं—— बड़ी मुश्किल से घर टमाटर ला रहा हूं, अनार से महंगा टमाटर खा रहा हूं। बीबी भी सबसे पहले सब्ज़ियो के झोले से, टमाटर टटोल कर निकालती है, और पुछती है क्या भाव पाये, कैसे कहु कि हे!भाग्यवान तुम अपने टमाटर खाने का शौक, काश सस्ते होने तलक टाल पाती, लेकिन नही,तुम नही टाल पाओगी, तुम्हारे इसी न टालने के नाते, अपनी एक महिने की सेलरी का तीस पर्सेंट खर्च कर, बस मै तुम्हारे लिये टमाटर ला रहा हूं। आ गये अच्छे दिन——- मै इलू-इलू गा रहा हूं, अनार से महंगा टमाटर खा रहा हूं। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।

शराब नही लेकिन

-रंगनाथ द्विवेदी। तेरी सरिया मे शराब नहीं लेकिन———– हम पीने वालो के लिये खराब नही लेकिन। हम बाँट लेते है अक्सर नशे मे जूठन भी—– यहाँ के पंडित और मियाँ का जवाब नही लेकिन, तेरी सरिया मे शराब नही लेकिन। ना वे गीता जानता है और न मै कुरान की आयत, जबकि उसका घर मंदिर की तरफ है, और मेरा घर मस्जिद की तरफ है, हमारे लिये जुम़ा और मंगलवार एक सा है, हम पीते है,किसी दिन का हमारे पास एै”रंग”—– कोई हिसाब नही लेकिन। तेरी सरिया मे शराब नही लेकिन, हम पीने वालो के लिये खराब नही लेकिन—- तेरी सरिया मे शराब नही लेकिन। @@@रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)।