निर्भया को न्याय है

रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। ये महज़ फाँसी नहीं————— उस निर्भया को न्याय है। जो चीखी,तड़पी,छटपटाई तेरी विकृत कुंठा के डाले गये वे सरिये, कितने घृणित थे! काश तुम्हारी माँ ने कहा होता, या तुमने———– अपनी सगी बहन के वे गुप्तांग याद किये होते, तो तुम्हारा ज़मीर कहता कचोटता, कि ये पाप है,अन्याय है और तुम कांप जाते! हां तुम्हारी पशुता व अमानवियता से, वे कुछ ही दिनो मे मर गई, लेकिन तुम तभी से मर रहे हो तील-तील, सच गलिजो़————– आज निर्भया की रुह खुश होगी, उसका गला रुंध आया होगा, ये तुम्हें महज़ फाँसी नही बेगैरतो बल्कि—— उस मासुम और बेगुनाह लड़की, निर्भया को न्याय है।

व्यंग्य लेख -चुनावी घोषणापत्र

मै आज कई वर्षो से हर पार्टी के चुनावी घोषणापत्र को—काफी भावुक तरीके से पढ़ता व सुनता हु लेकिन हर मर्तबा मेरे हिस्से “एक ना खत्म होने वाला विस्फोटक दुख हाथ आता है,और वे दुख मेरे लिये विश्व के प्रथम दुख की तरह है” अर्थात–घोषणापत्र के किसी भी क्रम मे वे लाइन आज तक नही दिखी कि इस देश अर्थात प्रदेश के कुँवारो के लिये,खासकर जो विषम आर्थिक तंगी की वजह से”स्त्री-पुरुष के अश्वमेध मिलन से वंचित है -उन पिड़ित कुँवारो को हमारी सरकार बनते ही,सर्वप्रथम उन्हे एक योग्य व सुशील कन्या की व्यवस्था कर वैवाहिक जीवन से आहलादित किया जायेगा”। अगर एैसा संभव न हुआ तो जनपद स्तर पर किन्ही अन्य देशो से या यहां न मिलने की सुरत मे बाहरी गरीब देशो की कुँवारी लड़कियो का आयात कर उनकी गरीबी दुर करने के साथ ही समुचित सरकारी अनुदान की व्यवस्था के साथ ही एक हफ्ते का निःशुल्क हनिमून पैकेज दे उन्हे पती-पत्नी की मुख्यधारा मे लाने का अलौकिक प्रयास करेगी। अब इस बार तो किसी तरह बस दुखी मन से मतदान कर फिर किसी अगले चुनाव में “ये राष्ट्रीय दुख लिये इंतजार करुंगा-—शायद किसी पार्टी या नेता को हमारे इस बड़े विकराल और असह्य कुँवारेपन के दुख का आभास हो और वे इस क्रांतिकारी पिड़ा को अपने चुनावी घोषणापत्र में जगह दे हमारे इस विशाल बंजर हृदय में दुल्हन रुपी सुरत की हरितक्रांति ला इस पिड़ा का नैसर्गिक निदान करे”। रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर।

सपेरे की बिटिया

कभी पढ़ने आती थी हमारे स्कूल में, सपेरो की बस्ती से————— एक सपेरे की बिटिया। वे तमाम किस्से सुनाती थी साँपो के अक्सर,वे खुद भी साँपो से खेलना जानती थी,पर वे मासुम नही जानती थी,इंसानी साँपो का जहर, एक दिन———– उसी मासूम की नग्न लाश, उसकी बस्ती से पहले——– पड़ने वाले एक झुरमुट में पाई गई, मै सिहर गया! उस नग्न मासूम की लाश देख, मै अब भी इतने सालो बाद भी—– अपनी उस मासूम छात्रा को भूल नही पाता, हर नाग पंचमी को वे मेरी जेहन मे उभर आती है, और पुछती है मुझसे कि बताईये न सर, कि कैसे चुक गई, अपने पुरे बदन पे रेंगे हुये नाखूनी  साँपो से, एक सपेरे की बिटिया। —-रंगनाथ द्विवेदी। एडवोकेट कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। हमारा वेब पोर्टल