निर्भया को न्याय है
रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। ये महज़ फाँसी नहीं————— उस निर्भया को न्याय है। जो चीखी,तड़पी,छटपटाई तेरी विकृत कुंठा के डाले गये वे सरिये, कितने घृणित थे! काश तुम्हारी माँ ने कहा होता, या तुमने———– अपनी सगी बहन के वे गुप्तांग याद किये होते, तो तुम्हारा ज़मीर कहता कचोटता, कि ये पाप है,अन्याय है और तुम कांप जाते! हां तुम्हारी पशुता व अमानवियता से, वे कुछ ही दिनो मे मर गई, लेकिन तुम तभी से मर रहे हो तील-तील, सच गलिजो़————– आज निर्भया की रुह खुश होगी, उसका गला रुंध आया होगा, ये तुम्हें महज़ फाँसी नही बेगैरतो बल्कि—— उस मासुम और बेगुनाह लड़की, निर्भया को न्याय है।