एक पाती भाई /बहन के नाम (संजीत कुमार शुक्ला )

रक्षा बंधन का त्यौहार हो और बहनों के बारे में कुछ लिखना हो , तो  मन भावुक न हो ,ऐसा तो हो ही नहीं सकता | आज ऐसी ही कुछ मन : स्तिथि है | भाई -बहन का रिश्ता अनेकों रिश्तों को समेटे हुए है …. माँ ,बहन ,गुरु और दोस्त … इस रिश्ते में जहाँ गुड की मिठास है , ईमली की खटास है और मिर्ची का तीखापन है | कुल मिला कर कम्पलीट फ़ूड पैकेज | बहन का रिश्ता एक ऐसा सेफ  रिश्ता है जहाँ आप जितना मर्जी रूठ जाइए … सॉरी बोल कर मनाने बहने ही आएँगी | अगर खुदा न खास्ता बड़ी हों तो … तो अपनी पाँचों अंगुलियाँ घी में | सौभाग्य से मेरी दोनों बहने मुझसे बड़ी हैं | पर ये पक्का है कि वो मुझे कभी बड़ा नहीं होने देंगीं | मुझे पूरा यकीं  है कि जब मेरे बाल सफ़ेद हो जायेंगे , कमर झुक जायेगी और हाथों में लाठी आ जायेंगी ( कुल मिलाकर हम एक रेस्पेक्ट्फुल कंडिशन में होंगे ) तब भी मेरी दोनों दीदीयाँ ये कहने से नहीं चुकेंगी | चुप हो जाओ अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है ,अक्ल कितनी है तुम्हे | और हम अपना हाई स्कूल सर्टिफिकेट लिए बैठे रह जायेंगे | खैर उस सजा में एक अपना मजा भी है | बचपन की कितनी बातें हैं | वो साथ साथ खेलना ,  लड़ाई – झगडे ,वो रूठना मनाना , और सबसे ज्यादा जब माँ कह देती कि तुम लोग बात -बात पर झगड़ पड़ते हो , अब आपस में बात मत करना , जो पहले बोलेगा उसी की पिटाई हो जायेगी | उफ़ ! माँ की ये सजा सबसे खतरनाक होती थी | कितनी बेचैनी होती थी बिना बोले | अपनी गलती नज़र आने लगती थी बेकार ही झगडा किया , ये चुप्पी बर्दाश्त नहीं होती | सीज फायर की घोषणा के बाद शुरू होता बोलने का सिलसिला | तब इतना बोलते कि ऐसा लगता जैसे जन्मों से नहीं बोले हों | जाने कितनी यादें चलचित्र की तरह चली आ रही हैं , विराम तो लगाना ही होगा |मेरी दोनों बहने दूर दूसरे शहरों में  हैं, आ नहीं पाएंगी | पर उनका भेजी हुई स्नेह से भीगी  राखी  मुझ तक पहुँच गयी है | ये अहसास ही तो हैं जो दूर रह कर भी हमें वायर लेस कनेक्शन से  गहरे जोड़े रखते हैं | फिर भी कभी -कभी मन वापस उस बचपन वाले रक्षा बंधन में लौट जाना चाहता है जब मैं राखी बंधवा कर  नेग के पैसे ले कर चिढाते हुए भागता था … और पीछे -पीछे  बहने भागती थी ,” मम्मी देखो मेरे पैसे दे नहीं रहा है ” | लीजिये हम तो फिर भावुक हो गए | इसी भावुकता में हमें एक कविता याद आ गयी | पता नहीं किसने लिखी है ,पर है मेरे दिल के करीब ……………….. कैसी भी हो एकबहन होनी चाहिये……….।.बड़ी हो तो माँ- बाप से बचाने वाली.छोटी हो तो हमारे पीठ पिछे छुपने वाली……….॥.बड़ी हो तो चुपचाप हमारे पाँकेट मे पैसे रखने वाली,छोटी हो तो चुपचाप पैसे निकाल लेने वाली………॥.छोटी हो या बड़ी,छोटी- छोटी बातों पे लड़ने वाली,एक बहन होनी चाहिये…….॥                                                                        बड़ी हो तो ,गलती पे हमारे कान खींचने वाली,छोटी हो तो अपनी गलती पर,साँरी भईया कहनेवाली…खुद से ज्यादा हमे प्यार करने वाली एक बहन होनी चाहिये…. ….॥ “                                                           आप सभी को रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएं|        संजीत कुमार शुक्ला  अटूट बंधन

एक पाती भाई /बहन के नाम ( संजय वर्मा )

रक्षा बंधन के दिन आते ही बड़ी बहन की बाते याद आती है |बचपन मे गर्मियों की छुट्टियों मे नाना -नानी के यहाँ जाते ही थे जो आजादी हमें नाना -नानी के यहाँ पर मिलती उसकी बात ही कुछ और रहती थी | दीदी बड़ी होने से उनका हमारे पर रोब रहता था वो हर बात समझाइश की देती , बड़ी दीदी होने के नाते हमें मानना पड़ती थी | सुबह -सुबह जब हम सोये रहते तब नानाजी बाजार से इमरती लाते और फूलों के गमलों की टहनियों पर इमरतियो को टांग देते थे , हमें उठाते और कहते की देखों गमले मे इमरती लगी है हमे उस समय इतनी भी समझ नहीं थी की भला इमरती भी लगती है क्या ? दीदी ,नानाजी की बात को समझ जाती और चुप रहती |हम बन जाते एक नंबर के बेवकूफ | दीदी मुझे “बेटी- बेटा” फिल्म का गीत गाकर सुनाती – “आज कल मे ढल गया दिन हुआ तमाम तू भी सोजा ……” और मै दीदी का गाना सुनकर जाने क्यों रोने लग जाता था | जब की उस गाने की मुझमे समझ भी नहीं थी | दीदी मेरी कमजोरी को समझ गई जब भी मै मस्ती करता दीदी मुझे डाटने के बजाए गाना सूना देती और मै रोने लग जाता | नाना -नानी अब नहीं रहे | समय बीतता गया और हम भी बड़े हो गये मगर यादे बड़ी नहीं हो पाई | दीदी की शादी हो जाने से वो अब हमारे साथ नहीं है किन्तु बचपन की यादें तो याद आती ही है | रक्षा बंधन पर जब दीदी राखी मेरे लिए भेजती या खुद आती तो मुझे रुलाने वाला गाने की पंक्तिया गा कर सुनाती या लिख कर अवश्य भेजती और मै बचपन की दुनिया मे वापस चले जाता | और जब कभी रेडियो या टी.वी. पर गाना बजता/दिखता है तो आज भी मेरी आँखों मे बचपन की यादों के आंसू डबडबाने लग जाते है | ख़ुशी के त्यौहार पर रंग बिरंगी राखी अपने हाथो मे बंधवाकर , माथे पर तिलक लगवाकर ,मिठाई एक दुसरे को खिलाकर बहन की सहायता करने का संकल्प लेते है तो लगने लगता है कि पावन त्यौहार रक्षा बंधन और भी निखर गया है और मन बचपन की यादों को भी फिर से संजोने लग गया है| संजय वर्मा “दृष्टि ” १२५ ,शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर (धार )454446 atoot bandhan

एक पाती भाई /बहन के नाम (किरण सिंह )

चिट्ठी भाई के नाम***************भैया पिछले रक्षाबंधन पर जैसे ही मैंने नैहर की चौकठ पर रखा पांव बड़े नेह से भौजाई लिए खड़ी थी हांथो में थाल सजाकर जुड़ा हमारा हॄदय खुशी से आया नयन भर हमने दिया आशीष मन भर सजा रहे भाई का आंगनभरा रहे भाभी काआँचलरहे अखंड सौभाग्य हमारा नैहर रहे आबाद भैया तुम रखना भाभी का खयाल कभी मत होने देना उदास भाभी तेरे घर की लक्ष्मी है और तुम हो घर के सम्राट माँ भी हैं तेरे साथ उन्हें भी देना मान सम्मान सिर्फ़ तुमसे है इतना आस पापा का बढ़ाना नाम *********************©कॉपीराइट किरण सिंह atoot bandhan

एक पाती भाई /बहन के नाम ( अर्चना नायडू )

”रक्षा -बंधन ; एक भावान्जलि  ” एक थी , छोटी सी अल्हड़  मासूम बहना। …  छोड़ आई अपना बचपन ,तेरे अँगना , बारिश की बूंदो सी  पावन स्मृतियाँ ,  नादाँ आँखे उसकी  उन्मुक्त  भोली हँसी, …. क्या भैया !   तुमने उसे देखा है कही ,………… ! छोटी सी फ्राक की छोटी सी जेब में , पांच पैसे की टाफी की छीना -छपटी  में , मुँह फूलती उसकी ,शैतानी हरकते  स्लेट के  अ आ  के  बीच ,मीठी शरारते  क्या ?… तुम उसे याद करते हो कभी ,…. ! दिनभर, अपनी कानी गुड़िया संग खेलती , माँ की गोद  में पालथी मारे बैठती , ,जहा दो चोटियों संग माँ गूंथती , हिदायतों भरी दुनियादारी की बातें , बोलो भैया ,!वो मंजर भूल तो नहीं जाओगे कभी.… ,! आज तेरे उसी घर – आँगन में, ठहर जाये ,वैसी ही मुस्कानों की कतारे , हंसी -ठहाकों की लम्बी महफिले , हम भाई-बहनो के यादो से भींगी बातें , और ख़त्म ना हो खुशियो की ये सौगाते कभी भी,…  ! राखी के सतरंगे धागो में गूँथे हुए अरमान , तुमने दिए ,मेरे सपनो को अनोखे रंग , और ख्वाईशों को दिए सुनहरे पंख , और अब सफेद होते बालो के संग , स्नेह की रंगत कम न होने देना कभी.… ! माथे पर तिलक सजाकर ,नेह डोर बांधकर, भैया मेरे ,राखी के बंधन को निभाना , छोटी बहन को ना भुलाना , इस बिसरे गीत के संग , अपनी आँखे नम न करना कभी   …. !  आँखों में , मीठी यादो में बसाये रखना, इस पगली बहना का पगला सा प्यार  , यही याद दिलाने आता है एक दिन , बूंदो से भींगा यह प्यारा  त्यौहार, बस ,भैया तुम मुझे भूला ना देना, कभी। ….  ”’ ई. अर्चना नायडू  जबलपुर  अटूट बंधन

एक पाती भाई /बहन के नाम (वंदना बाजपेयी )

भैया ,कितना समय हो गया है तुमको देखे हुए | पर बचपन की सारी बातें सारी शरारतें अभी भी जेहन में ताज़ा है | वो तुम्हारा माँ की डांट से बचने के लिए मेरे पीछे छुप जाना| वो मेज के नीचे घर बना कर खेलना | और वो लड़ाई भी जिसमें तुमने मेरी सबसे प्यारी गुड़ियाँ तोड़ दी थी | कितना रोई थी मैं | पूरा दिन बात नहीं की थी तुमसे | तुम भी बस टुकुर -टुकुर ताकते रहे थे “सॉरी भी नहीं बोला था | बहुत नाराज़ थी मैं तुमसे | पर सारी नाराजगी दूर हो गयी जब सोने के समय बिस्तर पर गयी तो तकिय्रे के नीचे ढेर सारी टोफियाँ व् रजाई खोली तो उसकी परतों में सॉरी की ढेर सारी पर्चियाँ | और बीच में एक रोती हुई लड़की का कार्टून | कितना हँसी थी मैं | तभी बीच में तुम आ गए अपराधी की तरह हाथ जोड़े हुए | कैसे न मॉफ करती | बहन में माँ जो छिपी होती है | फिर अगले पल झगडा ………. कार्टून में मेरी ही शक्ल क्यों बनायी, अपनी क्यों नहीं तुम कौन सा बड़े अच्छे दिखते हो|| वो तुम्हारा एग्जाम जब तुम हाथ झाड कर खड़े हो गए ” दीदी कुछ नहीं आता और मैं रात भर तुम्हे पढ़ाती रही| कितनी बार मूर्ख आलसी कहा था तुम्हे | तुम चुप-चाप डांट खाते रहे | ऐंठना नहीं गलती भी तुम्हारी ही थी | पर जब रिजल्ट में पूरे नंबर आये तो आँखे छलक गयी थी मेरी | ” राजा भैया , कितना होशियार है , एक दिन पढ़ कर ही पूरे नंबर ले आया | गदगद हो गयी थी मैं जब तुमने झट से पैर छू कर कहा था ” दीदी ये तुम्हारी ही मेहनत का परिणाम है | केवल राखी के धागे ही नहीं | यादों के कितने धागे समेटने हैं | अबकी बरस ………. राखी बंधवाने आयोगे न भैया वंदना बाजपेयी  अटूट बंधन

एक पाती भाई /बहन के नाम (डॉली अग्रवाल )

जाने कितने जज्बात को  समेटे है , स्नेह की ये डोर  वो संग हँसना – खिलखिलाना  नोक -झोंक , रूठना मनाना  वो शरारत भरी अठखेलियां  भईया बहुत कुछ याद आता है एक तुम्हारी याद के साथ || डॉली अग्रवाल  अटूट बंधन

एक पाती भाई /बहन के नाम ( विभा रानी श्रीवास्तव )

पूजनीय भैया                    सादर प्रणाम यहाँ सब कुशल है । आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है आप लोग भी सकुशल होंगे ।                                  दोनों भाभी व बाबू से बात हुई तो मैं अति उत्साह में बोली कि इस बार मैं किसी को राखी नहीं भेजूंगी ।। शनिवार दिन है ; बैंक आधे दिन का होता है तो राखी के कारण वो आधा दिन भी छुट्टी में , छोटे भैया की छुट्टी । आप इसी साल रिटायर्ड किये हैं तो छुट्टी ही छुट्टी । बाबू टूर ले लेगा ; दूसरे दिन रविवार तो किसी को कोई समस्या नहीं , आसानी से आना हो सकता है ।                                 जब से होश सम्भाली हूँ ; राखी और जन्मदिन हर्षोल्लास से मनाती आई हूँ लेकिन दोनों एक दिन कभी नहीं मनाई , पड़ा ही नहीं न किसी साल एक दिन ही । इस साल एक दिन पड़ने से अति उत्साहित हूँ ; एकदम छोटी सी बेबी फिर जीने लगी है , उम्र का क्या वो तो भूलने में लगी है ।                                                     जैसे जैसे दिन नजदीक आने लगे सोच बचपने पर हावी होने लगे ; अगले पल का ठिकाना नहीं ; सावन का मौसम तबीयत किसी की खराब हो सकती है । ये तो जबरदस्ती हो गई न विवश करना ; वो भी इमोशनल ब्लैकमेलिंग । ब्याही बहना का एक हद होता है , भाभी का कुछ प्रोग्राम हो सकता है । किसी कारणवश कोई भाई ना आ पाये और मैं राखी भी न भेजूं तो तब अफसोस का क्या फायदा होगा ।                                        राखी भेज रही हूँ लेकिन नाउम्मीद नहीं हूँ । प्रतीक्षा तो नैनों को रहती है , आस में दिल होता है । कमबख्त दिमाग बहुत सोचता है ।                                 व्यग्र बहना                 ले अक्षत व डोरी                    ताके ड्योढ़ी सबको यथायोग्य प्रणामाशीष बोल देंगे मेरी ओर से                                 आशीष की आकांक्षी                         आपकी छोटी बहना                                बेबी अटूट बंधन

क्या आप के बड़ी बहन है ?

                                               छोटे भाइयों को समर्पित एक चित्र कथा                                              कहते हैं बड़ी किस्मत से बड़ी बहन या दीदी मिलती है | शायद आपने भी सोलह सोमवार ,१८ रविवार ,या सत्रह वीरवार किये हो |क्योंकि जब इनसब का पुन्य जोड़ा जाता है तब आप को एक बड़ी बहन मिलती है|  क्योंकि दीदी होने के बहुत फायदे हैं ……… दीदी बहन तो है ही माँ भी है और दोस्त भी  | अगर है तो अपने भाग्य सराहिये की आपके एक दीदी है |बड़ी बहन और आपके बीच खूब प्यार होता है और उससे ज़्यादा तकरार होती है. लेकिन बड़ी बहन बिना किसी स्वार्थ के आपका हमेशा साथ देगी. इसीलिए तो हर किसी की दीदी ज़रूर होनी चाहिए| आप की जानकारी के लिए दीदी के फायदे भी बता दे | बचपन की बात चली तो हम तेरा नाम लेंगे                                              अमरुद के पेड़ से अमरुद तोडना ,खट्टी इमली खाना , डायनिंग टेबल के नीचे घर बनाना | और हां जब बचपन में दीदी ने आप को अपनी फ्रॉक पहना दी थी ,और हलकी सी लिपस्टिक लगा कर स्कूल ले गयी थी ….तब | अरे जब भी बचपन की बात हो और दीदी का जिक्र ना हो ये तो हो ही नहीं सकता | याद करिए …….. नहीं ना | दिल तो बच्चा है जी                            कितना मजा आया था जब बचपन में पूरे शरीर को रंग से पोत  लिया था ,फनी फेसेस बनाये थे । अब बड़े हो गए हैं तो वो सब कर ही नहीं सकते न ,न ज़रा भी नहीं। ………. कहीं जाओ तो शिष्टाचार के मारे हम बेचारे। … ब अदब ब मुलायजा होशियार  रहना ही पड़ता है । पर दीदी  तो सब की साक्षी है ,उसका तो देखा हुआ है। ………… अगर कभी बचकाना हरकत करने का मन करे तो दीदी के सामने कर सकते हैं  तुझको खुश देख कर मैं बहुत खुश हुई                                      बचपन से यही तो होता चला आ रहा है क्रिकेट मैच हो ,स्कूल का रिजल्ट हो या  मुहल्ले की फाइटिंग में जीते हो । आप खुश तो दीदी डबल खुश ।  दुनियाँ जले तो जले                             अरे तुम कैसे  आदमी हो ,तुमने ये क्यों किया ,ऐसा करना सही नहीं था । सारा ज़माना आपके पीछे पड़ सकता है पर दीदी आपको कभी  भी जज नहीं करेगी । उसके लिए तो उसका भैया या बहन लाडला ही है   मुझे मार खाने से बचाओ                                    बचपन तो बचपन है शरारते तो हो ही जाती हैं । पापा और मम्मी गुस्से में घूम रहे हैं । पिटाई का पूरा सामान तैयार है ऐसे में एक ही शख्स आपको बचा सकता है। … वो है दीदी। ……………दीदीईइ  फ्लावर पॉट टूट गया कहाँ हो तुम ?????                                                  ये जो दीदी है ये सब जानती है                                                                                                 एको ब्रह्म दृतियों नास्ति  । दीदी आप के सारे राज़ जानती है किससे  लड़ाई चल रही है ,किससे  दोस्ती ।  रोज़ शाम को  यहाँ -वहाँ …… कहाँ 🙂 जाते हैं  आपने चुपके से माँ के छिपाए लड्डू खा लिए  ।दीदी को सब पता है  । पर डोंट वरी दीदी किसी को बताएगी नहीं       दिल  की बात कहेगी दीदी                                        अरे ये कैसा चश्मा लगा रखा है ,बिलकुल बुद्धु लग रहे हो , इस पैंट के साथ ये शर्ट ………मेरे आगरा  रिटर्न भैया ……… शर्ट बदलो । दीदी डरती नहीं  हैं आपसे, राय देगी फटाक से । माना की अब आप बड़े   अफसर  हो गए  हैं सब आप के रौब -दाब से डरते हैं पर अब कोई भी राय चाहिये    तो दीदी बेहिचक देगी ।  लाख छिपाओ छिप न सकेगा राज़ ये इतना गहरा                                                       पता नहीं ये दीदी अन्तर्यामी होती है या जासूसी संस्था xxx की सदस्य बांड  007 कितना भी छुपाओ ,वो मूड तुरंत भांप लेती है । और फिर लाड -प्यार से ठीक भी कर् देती  है  रूठा है तो मना लेंगे                          याद करिये  बचपन के वो  लड़ाई झगडे जब कुत्ते -बिल्ली की तरह झगड़ते थे । माँ थक कर लेटी होती और दीदी से अपना झगड़ा शुरू । माँ की डाँट खाकर बालकनी में आ जाते । फिर शुरू होता मनाने का दौर । इतना तो पक्का है आप अपना ईगो कितना भी हाई कर ले ।रूठ  कर घर के एक कोने में बैठ जाए। ………दीदी आप को जैसे कैसे ,तैसे मन ही लेगी ।  तेरे बदले मैं ज़माने की कोई चीज न लूँ  आप शायद अपनी बड़ी बहन से कई दिनों बात न करी हो , लेकिन उसे आप की याद सदा ही आती रहती है । दीदी  कभी भी अपने  छोटे भाई बहनों को नहीं भूलती . जब भी आप दीदी से बात करने के लिए फ़ोन लगायेंगे  तो  सौ काम छोड़ करके आप का फोन उठाएगी ,आप को पूरा  समय देगी । जो निस्वार्थ ख़ुशी उसकी आवाज़ में … Read more