मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग …3 )

 व्यायाम / कसरत / शारीरिक श्रम का विज्ञान ——- आधुनिक जीवन मशीनीकृत जीवन है जो न केवल वर्तमान समय की आवश्यकता है बल्किजिंदगी की  बढ़ती भाग दौड़ से सामंजस्य बैठाने के लिए जरुरी भी है . विस्तृत होते कंक्रीट के जंगलों ने चारों दिशाओं में दूरियों को जन्म दे दिया है और इन बढ़ती दूरियों को पाटने के लिए न चाहते हुए भी मशीनो पे हमारी निर्भरता बढ़ गई है . वर्तमान उपभोक्तावादी नूतन भौतिकता से भरपूर जीवन शैली ने हमारे जीवन परिचर्या को सरल तो बनाया है पर हमे स्वयं से दूर भी कर दिया है . अब हम सुबह से शाम तक दौड़ रहे है जीवन को साधन सुविधा संपन्न बनाने के लिए और ऐसे में सबसे ज्यादा अनदेखी होती है  स्वयं के शरीर की.  ये लिंक क्लिक करें –                   मोटापा खोने लगा है आपा (1)              मोटापा — खोने लगा है आपा   ( भाग -2) मोटापा — खोने लगा है आपा   ( कड़ी …3 )  न खाने का पता , न सोने का पता और न ही आराम का पता. और ऐसे में बढ़ता थकान का स्तर शरीर को शिथिल बना देता है व शरीर के ऊर्जा स्तर में निरंतर कमी लाता है इस से व्यक्ति शारीरिक श्रम से बचने लगता है क्योकि मानसिक थकान शरीर पर हावी हो जाती है और शिथिल पड़े शरीर में धीरे धीरे जंग लगने लगती है व यही जंग मोटापे की परतों के रूप में शरीर के चारों और लिपटने लगती है क्योकि भोजन के रूप में ऊर्जा की आपूर्ति तो भरपूर होती है पर शरीर में उसकी खपत नही होती | एक बात और आजकल मेनुअल कार्यों को हम हेय दृष्टि से देखने लगे हैं यथा घर का झाड़ू पूछा करना , बर्तन मांजना , कपडे धोना , घर के सामन को व्यवस्थित करना , पास के बाजार तक पैदल चल कर जाना और थैले में सामान लेकर लौटना  , बगीचे की साफ सफाई करना ,  पैदल चलने से बचना और इसी प्रकार के सैकड़ों छोटे छोटे कार्य जिन्हे हमारे पूर्वज मजे से किया करते थे उन सब से बचना और ऐसे कार्यों को खुद के काबिल नही समझना . अब आप ही बताये गर सारा दिन बैठे बैठे दिमागी घोड़े ही दौड़ाएंगे और हाथ पांव जरा भी इधर का उधर नही करेंगे तो वो शरीर में भोजन के रूप में ली हुई ऊर्जा  कैसे और किस तरह से काम में आये और जब काम में नही आये तो इकट्ठी होए फिर शरीर के स्टोर में मोटापा बनकर. इसलिए ये आवश्यक है कि व्यक्ति के शरीर की प्रणालियां ठीक से कार्य करे और वह मोटापे का शिकार न हो तो उसे भोजन व नींद की तरह  शारीरिक श्रम को भी अपने जीवन का हिस्सा बनाना ही होगा अन्यथा वह कभी भी मोटापे से लड़ ही नही पायेगा . व्यायाम का महत्व  व्यायाम को किसी न किसी रूप में जीवन में शामिल करना अनिवार्य है क्योकि ग्रहण की गई ऊर्जा ( भोजन के रूप में ) की जब शरीर में खपत नही होगी तो वह अतिरिक्त ऊर्जा वसा ऊतकों में परिवर्तित हो जाएगी . व्यायाम या कसरत के लिए जिम जाना जरुरी नही है बल्कि शरीर को कार्य करने केलिए उद्दत करना  है जिस से शरीर में ऊर्जा की खपत बढे और कार्य करने का आत्मिक संतोष भी प्राप्त हो इसके लिए आज से ही कुछ कार्य स्वयं करना शुरू करे यथा बगीचे की सफाई , कार की धुलाई, घर के साधारण किन्तु  महत्वपूर्ण काम , आसपास जाने केलिए दोनों पैरों का भरपूर उपयोग इत्यादि साथ ही एक आदत को नियमित रूप से जीवन का हिस्सा बनाये और वो है मॉर्निंग वॉक या फिर शाम को खाना खाने से पहले की इवनिंग वॉक और भी बहुत ज्यादा नही लगभग आधा घंटा रोज या 3 किलोमीटर  रोज़ . और हाँ इसे टालने के लिए कोई भी बहाना नही  . जैसे हम साँस  लेना नही टाल सकते ठीक वैसे ही इसे जीवन में शामिल कीजिये. बहुत बार कामकाजी महिलाएं या पुरुष जिन्हे सुबह जल्दी निकलना होता है वे गर सुबह नही जा सकते वॉक पे तो शाम को इसे नियमित बनाएं पर इसे न करने का कोई बहाना न तलाशे . समझें शारीरिक श्रम या व्यायाम के विज्ञान को  इसलिए  शारीरिक श्रम या व्यायाम के विज्ञान को अपनाने के लिए इन तीन बातों को अपनाइये —- **  घर के हर काम को खुश होकर करने की आदत बनाइये इससे दोहरा लाभ होगा . आत्मिक आनंद के साथ साथ मोटापे से मुक्ति ** श्रम से बचने के लिए बहाने बनाना छोड़ दे ….कोई भी बहाना नही (कन्फ्यूशियस ने कहा है कि जिस दिन से हम असफलता के लिए बहाने तलाशने छोड़ देतेहैं सफलता उसी दिन से हमारा दामन थाम लेती है. )             ** स्वयं की अनदेखी ना करें ( क्योकि आप महत्वपूर्ण हैं और आप के साथ बहुत सारे लोगों का जीवन और खुशियां जुडी हुई हैं ) .तनाव का विज्ञान—— आज के जीवन में अगर कुछ है जो सबके साथ जुड़ गया है चाहे बिना चाहे वो है तनाव …तनाव का अपना एक विज्ञान है . हम में से ज्यादातर लोग जीवन में जबरदस्ती तनाव को पाले होते हैं . वास्तव में लोग जिन वजहों से तनावग्रस्त होते हैं , वे महत्वपूर्ण नही होती हैं लेकिन इतनी अधिक प्रभावशाली होती हैं कि उनका हमारे दिमाग, मन एवं शरीर  पर जबरदस्त असर होता है  वास्तव में देखा जाये तो तनाव  हमारे शरीर , दिमाग , संवेदनाओं और उर्जा को व्यवस्थित न कर  पाने की अयोग्यता है. अतीत , वर्तमान और भविष्य का चक्र, अधूरे सपनों को पूरा करने की ख्वाहिश व  जिन्दगी में संतुलन बनाये रखने की चाहना के वाजिब और सही  जवाब को आने से रोकने वाली मानसिक स्थिति ही तनाव है जीवन की भौतिक उपलब्धियों की प्राप्ति, व्यक्तिगत उपलब्धियों की प्राप्ति और इसके लिए  परस्पर होड़ा होड़ी से उपजता है अंतर्द्वद जो जन्म देता है तनाव को . तनाव  एक ऐसी स्थिति है जिससे बचा नही जा सकता है इसलिए जरुरी है इसका अपेक्षित प्रबंधन क्योकि तनाव मोटापे के मूल में रहता है . तनाव शरीर की ऐसी अवस्था जब व्यक्ति सोचते हुए थकने लग कर दिशाहीन हो जाता है और उसका भोजन … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग -2)

                         मोटापे से मुक्ति के लिए आवश्यकता है जीवन पद्धति में आमूलचूल परिवर्तन व सुधार की तथा  स्वयं से कुछ निश्चित प्रण करने की . ये उपाय बेहद सरल हैं किन्तु इनका पालन करना उतना ही कठिन है . इसके लिए उच्च  स्तर की इच्छा शक्ति , संकल्प व सौंदर्य बोध की आवश्यकता होती है जो शरीर को मोटापे के साथ साथ इससे जनित अनेको बीमारियों से भी मुक्त करवाती है. तो आइये एक शुरुआत करें हम आज से और अभी से और जाने कि किस प्रकार से हम आसानी से इसके खिलाफ लड़ सकते हैं प्रथम भाग  के लिए ये लिंक क्लिक करें –                   मोटापा खोने लगा है आपा (1) मोटापा — खोने लगा है आपा   ( भाग -2)    I..भोजन का विज्ञान—  मोटापा नियंत्रण का यह पहला कदम है जिसमें हमें भोजन की मात्रा , क्वालिटी /गुणवत्ता व उससे प्राप्त ऊर्जा पर ध्यान देना है . यथा——: 1. व्यक्ति को दोनों समय का भोजन नियमित करना चाहिए अर्थात मोटापा कम करने के लिए व्यक्ति सबसे पहले ये करता है कि  वो एक समय या दोनों समय का भोजन छोड़ देता है जिसे आम भाषा में डाइटिंग कहा जाता है जो बिलकुल गलत है क्योकि भोजन की मात्रा एकदम से कम कर देने से रक्त में भोजन  की कमी आती है व शरीर की कोशिकाओं में ऊर्जा की अतः शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली इस ऊर्जा असंतुलन से निपटने के लिए शरीर में ऊर्जा  की खपत एकदम से घटा देती है और भूख को बढ़ा देती है ताकि शरीर का ऊर्जा स्तर सामान्य हो जाये किन्तु जब व्यक्ति बहुत देर तक भूखा रह कर खाने बैठता है तो ऊर्जा प्रणाली की क्रियाशीलता के कारन आवश्यकता से अधिक भोजन कर लेता है और ये अतिरिक्त भोजन की मात्रा शरीर में वजन बढ़ने को प्रेरित करती है  वहीँ दूसरी ओर व्यक्ति में भोजन न करने से एक मानसिक बैचैनी उत्पन्न  होती है जो उसे अवसाद की तरफ ले जाने लगती है जिस से वो न चाहते हुए भी ऐसे पदार्थों का सेवन करने लगता है जिसके बारे में वो सोचता है की इससे मोटापा थोड़े ही बढ़ेगा जैसे चाय या कॉफी की मात्रा बढ़ा देना या सलाद की मात्रा बढ़ा देना या फिर  या फिर फलों के रस की और ऐसे में अनजाने में वो एक बार फिर मोटापे को आमंत्रित कर बैठता है 2. दूसरी बात कि व्यक्ति एकदम से मीठा और घी तेल खाना छोड़ देता है क्योकि उसका यही देखा सुना होता है  कि मोटापा इन दोनों चीजों से ही बढ़ता है इन्हे छोड़ कर सब कुछ खाओ जल्दी ही स्लिमट्रिम हो जायेंगे जबकि ऐसा करना गलत ही नही बल्कि शरीर के लिए घातक है क्योकि भोजन का मूल मंत्र है संतुलन न कि त्याग . वस्तुतः भोजन रासायनिक रूप से  शर्करा ( मीठा ), प्रोटीन, वसा ( घी /तेल ), खनिज , विटामिन्स , पानी व रेशा का संतुलित सम मिश्रण है जो  शरीर के निर्माण व  इसकी समय समय पर मरम्मत हेतु आवश्यक होता है और साथ ही शरीर को सुचारू रूप से कार्य करने के लिए ऊर्जा देता है . ऐसे में किसी भी एक पदार्थ की कमी या अधिकता ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली के कार्यों में अवरोध पैदा करने लगती है व शरीर में ऊर्जा का संतुलन बिगड़ने लगता है और ऊर्जा की खपत , संग्रहण व उत्पादन तीनो ही कार्यों में परस्पर टकराहट होने लगती है , ऐसे में शरीर के हार्मोन्स व एंजाइम्स के कार्य करने का सारा गणित गड़बड़ा जाता है और मोटापा तो कम होगा या नही पर शरीर अन्य दूसरी परेशानियों से जूझने लगता है जैसे ….वसा खाना एक दम छोड़ देने से वसा में घुलनशील विटामिन्स की शरीर में कमी हो जाती है और शरीर अनेक अभाव रोगों से ग्रस्त हो जाता है , शरीर में कई हार्मोन्स निर्माण बाधित होने लगता है क्योकि वे वसा से ही बनते हैं …इत्यादि इसी प्रकार से एकदम मीठा छोड़ देने से भोजन में प्रोटीन की मात्रा बढ़ जाती है इससे हमारे लीवर और किडनी का कार्य बढ़ जाता है और इस से शरीर के ऊर्जा स्तर में एकदम से कमी आती है ,शरीर शिथिल पड़ने लगता है , व्यक्ति को सामान्य  कार्यों को करने में भी अत्यधिक कमजोरी महसूस होने लगती है , मांसपेशियों में दर्द रहने लगता है , और वो चिंताग्रस्त रहने लगता है. इसी प्रकार से व्यक्ति एकदम से आवश्यकता से बहुत अधिक पानी पीने लगता है और इससे शरीर की मूत्र उत्सर्जन प्रणाली बिगड़ जाती है और किडनी का कार्य बढ़  जाता है अतः भोजन की किसी भी मात्रा में कमी या अधिकता से ज्यादा जरुरी है भोजन के सारे अवयव यथा शर्करा , प्रोटीन , वसा,रेशा , मिनरल्स व पानी के अनुपात में संतुलित परिवर्तन लाकर किया जाना चाहिए ताकि शरीर को सभी वांछित पदार्थी की प्राप्ति हो सके .  3. तीसरी जरुरी  बात है भोजन  की मात्रा अर्थात एक बार में एक साथ बहुत ज़रा न ही खाना चाहिए बल्कि थोड़ी थोड़ी मात्रा में दिन में चार बार खाना चाहिए जिसमे सुबह का नाश्ता , दोपहर का लंच . शाम का नाश्ता और रात का डिनर. और इन सब खानो में लगभग तीन से चार घंटो का अंतर होना चाहिए और कोशिश होनी चाहिए की सुबह का नाश्ता ऊर्जा से भरपूर हो , दोपहर का लंच वसा प्रोटीन व शर्करा का संतुलन हो शाम का नाश्ता रेशे से भरा हो और रात का डिनर तरल हो ताकि शरीर का मेटाबॉलिज्म सुचारू रूप से कार्य कर सके और इसकी किसी भी कार्य प्रणाली पे अतिरिक्त कार्य भार न आये पढ़िए -टेंशन को न दें अटेंशन  4. चौथी सबसे महत्वपूर्ण बात है भोजन करने का समय ….वर्तमान समय की जीवन शैली ने इस सारे ताने बाने को ही छिन्न भिन्न कर दिया है जबकि होता ये है कि हमारे मस्तिष्क ( दिमाग ) में एक घडी (पिनियल काय )होती है जो  दिन और रात के सापेक्ष शरीर में समय का हिसाब किताब रखती है और अपने समय के संदर्भ में ये सूर्य के प्रकाश पर निर्भर रहती है . इसी … Read more

मोटापा — खोने लगा है आपा ( भाग -1)

                       उसे देखा . बहुत बदली सी लगी .पूछा क्या बात है भई .कुछ ज्यादा ही भरी हुई सी लग रही हो.उसकेबोलने से पहले ही कई ओर से जवाब आया ..अरे भई खाते पीते घर की हैं…अब कुछ तो अंग लगना ही चाहिए न.  और वो बढ़ते शरीर पे साड़ी कसते हुए बस मुस्करा दी पर आँखे उसका साथ न दे सकी. जी हाँ मोटापा ..एक ऐसा बोझ जो दबे पाँव आता है और  न जाने कब ग्रहण की तरह शरीर के लग जाता है पता ही नहीं चल पाता  और जब पता चलता है तब तक तो ये लगता है खोने अपना आपा और फिर सुरसा के मुंह की तरह बढ़ता चला जाता है.                         आज भारत में हर तीसरा व्यक्ति या तो अधिक भारी है या फिर मोटापे से ग्रसित है और इस प्रकार भारत में 3 करोड़ लोग मोटापे का शिकार हैं और अगले 20 वर्षो में इसकी संख्या दुगुनी होने की संभावना है . ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज ( GBD) की रिपोर्ट के अनुसार वज़न जनित बीमारियों का भार भुखमरी से अधिक हो गया है . आज कुपोषण 8 वें  स्थान पे है और मोटापा 6 ठे पे ,जो अपनेआप में बेहद चौंका देने वाले तथ्य हैं पढ़िए -टेंशन को न दें अटेंशन            ये तो हुई आंकड़ों  की बात पर सबसे महत्व पूर्ण तथ्य है ये जानना की आखिर ये मोटापा है क्या ?? कब, कैसे और क्यों ये बढ़ने लगता है अपने आकार में  ??आखिर कैसे जाने की शरीर मोटापे की ओर अग्रसर है . तो आइये समझे मोटापे का गणित जो बेहद सरल है —– मोटापा — कैसे खोने लगा है आपा   ( भाग -1)                     मोटापा एक शारीरिक माप है जिसमे वज़न को लम्बाई के अनुपात में मापा जाता है और इस माप को बॉडी मास इंडेक्स (BMI )कहते हैं . इसे मापने का बेहद सरल फार्मूला है जिसके अनुसार —–                         शरीर का वजन ( किलोग्राम में )      BMI === ———————————–                         ( शरीर की लम्बाई मीटर में ) 2             इस सूत्र में वजन व लम्बाई का मान रखकर कोई भी व्यक्ति अपना  BMI जाँच सकता है और नीचे दिए गए चार्ट के आधार पे ये यह परख सकता है कि कहीं  वो अधिक भार या मोटापे की और अग्रसर तो नही हो रहा है और साथ ही वो अपनी श्रेणी का निर्धारण कर सकता है.  BMI का मोटापा सम्बन्धी चार्ट निम्नानुरूप सारणीकृत है क्रम संख्या                             BMI                           श्रेणी 1.                                 18—-25                        स्वस्थ 2.                                  25—-30                      अधिक भारी 3.                             30—-35                  मोटापा I श्रेणी ( खतरा आरम्भ ) 4.                                35—-40                   मोटापा II श्रेणी (खतरे की ओर अग्रसर ) 5.                               40 से अधिक                 मोटापा III श्रेणी ( खतरे के निशान से ऊपर )             BMI  मोटापे से सम्बंधित सूचना देने का सर्वाधिक उपयुक्त इंडेक्स है और इसे किसी भी सामान्य व्यक्ति द्वारा उपयोग में लिया जा सकता है इस माप  की एक मात्र कमी ये है कि यह शरीर कि मांस पेशियों के भार एवं वसा जनित भार में अंतर नही कर पाता है . अतः BMI  एक सूचना मपक है जो व्यक्ति को आने वाले खतरों से आगाह कर देता है. मोटापा दो प्रकार का होता है —- 1..कमर व पेट पर जमी वसा से उपजा मोटापा ( सेब आकृति का शरीर ) 2..कूल्हों, जांघो व हाथों पे जमी वसा से उपजा मोटापा ( नाशपाती आकर का शरीर ) इन दोनों प्रकार के मोटापे में कमर व पेट पर  वसा के जमाव से उत्पन्न मोटापा अधिक खतरनाक व हानिकारक है|     कब, कैसे और क्यों ये बढ़ने लगता है अपने आकार में शरीर ??             अब सवाल आता है कि मोटापा किस कारण से उत्पन्न होता है और फिर लगातार बढ़ता चला जाता है . मोटापे का मूल स्त्रोत  है अधिक भोजन और कम शारीरिक श्रम जो वर्तमान  जीवन पद्धति का एक अहम हिस्सा हो गया है. इससे शरीर में बची हुई अतिरिक्त ऊर्जा धीरे धीरे वसा कोशिकाओ में जमा हो जाती है और मोटापे का रूप ले लेती है          आरम्भ में यह प्रक्रिया धीमी गति से होती है जिस पर समय रहते ध्यान न दिए जाने पर यह विकराल रूप धारण कर लेती है अर्थात शरीर में ऊर्जा की आवश्यकता, खपत एवं संग्रहण में असंतुलन से उत्पन्न होता है मोटापा और इसकी परवाह न करने पे ये विस्तार पाता चला जाता है इन दो कारणों के अलावा मोटापा बढ़ने के अन्य कारण ये हो सकते हैं —– 1.भोजन की मात्र के साथ भोजन  की क्वालिटी अर्थात भोजन में संगृहीत ऊर्जा व भोजन में शामिल अवयव 2.भोजन करने का समय 3.नींद की अवधि व गुणवत्ता 4.शरीरिक श्रम व व्यायाम का कु प्रबंधन 5.बढ़ता तनाव 6.आनुवंशिक कारण पढ़िए – क्या आप अपनी मेंटल हेल्थ का ख्याल रखते हैं            मोटापा इन सारे कारणों का मिला जुला परिणाम  है जो शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली को प्रभावित करते हैं जससे ये प्रणाली अनियंत्रित व अनियमित हो जाती है व मोटापा बढ़ने लगता है हमारा शरीर एक कारखाने की तरह से है जिसमे अनेको कार्य प्रणालियां क्रियाशील रहती हैं . इनमे से ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली एक ऐसी प्रणाली है जिसका स्वप्रबंधन बेहद शानदार होता है जिसमें वाञ्छित कार्यों के लिए ऊर्जा की खपत के साथ साथ बुरे दिनों ( जब किसी भी कारण से भोजन प्राप्त न हो ) के लिए ये कुछ ऊर्जा को बचा के रख लेता है ताकि शरीर में ऊर्जा की आपूर्ति सुचारू बनी रहे और शरीर  कार्य करते रहें             शरीर की ऊर्जा नियंत्रण प्रणाली एक मेटाबोलिक प्रक्रिया है जो पूरे शरीर में आवश्यकता व कार्य के अनुरूप ऊर्जा का बंटवारा करती है जिसमें शरीर के अनेक एन्जाइम्स , प्रोटीन्स के साथ अनेक हार्मोन भी भाग लेते हैं . यह एक जटिल प्रक्रिया है जो शरीर में बिना रुके लगातार चलती है जिससे शरीर में ऊर्जा की निरंतरता को बनाये रखा जाता  है              किन्तु आवश्यकता से अधिक ऊर्जा की प्राप्ति  (भोजन के रूप में  ) होने पर इस कार्य प्रणाली के एन्जाइम्स व हार्मोन्स पर अतिरिक्त कार्य भार बढ़ जाता है और ऐसे में ये अपना कार्य संतुलन खो देते हैं व प्रणाली फेल  हो जाती है … Read more

प्रेम के रंग हज़ार -डूबे सो हो पार

प्रेम जीवन के विविध रंगों और ढंगों में समाई सघन अनुभूति है…माँ का वात्सल्य से परिपूर्ण प्रेम ,पिता का अव्यक्त कर्म में परिलक्षित प्रेम , बहिन का अनुराग से ओत प्रोत प्रेम , भाई का अनुरक्ति में भीगा प्रेम ,मित्र का अपनत्व भाव में रचा बसा प्रेम और एक स्त्री व पुरुष के बीच प्रस्फुटित होता , पल्लवित होता ,मन को मुक्त करता , हर स्पंदन में खुद को भरता नैसर्गिक प्रेम जो रचता है जीवन को और देता है उसे नये तर्जुमान. प्रेम महज कन्टेंट्स ( विषय वस्तु ) नही है बल्कि यह एक सतत प्रवाहमयी प्रक्रिया है जो निरंतर एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिवर्तित होती रहती है और जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूता हुआ निरंतर गतिमान रहता है.प्रेम समय की धुरी पे घूमता हुआ नए नए कलेवर धारण करता है . सृष्टि के सृजन में समाता रहा है खुद को प्रेम प्रेम एक अछूता सा विषय पर हर जीवन को छूता हुआ.जीवन्त करता हुआ सदियों से अनेकानेक प्रतिमानों को,आदर्शों को , काव्यों को श्रृंगारित करता हुआ जीवों के हर रूप को ,ध्वनित करता हुआ हर पुकार को ..निश्छल वात्सल्य से लेकर झुर्रियों के अनुभवों के अनुराग में पलता है प्रेम. प्रेम निर्मल कामना सा , पावन प्रार्थना सा ,उत्कठ भावना सा अंकुरित होता है अंतर्घट की चेतना की जमी से और पल्लवित पुष्पित होता वटवृक्ष सरीखा समाधिस्थ महायोगी सा बन जाने कितने ही पथिकों को अपनी ठंडी छांव देता है. प्रेम ने शिव से गौरी का ,राम से सिया का , कृष्ण से राधा का , गिरधर से मीरा का से लेकर वर्तमान तक ना जाने कितने ही रूपों में खुद को गढ़ा और हर बार एक नया स्वरूप दिया, नया साकार दिया, नये प्रतिमान दिए, नये नाम दिए पर खुद प्रेम बना रहा ज्यूँ का त्यूँ बिना परिवर्तित हुए . प्रेम जब अंतर्मन में जागता है तो सीमान्तो तक अपने बीज रोंप देता है .सघन शाश्वत अनुभूति सा उमड़ता है अंतस के गर्भ से और सतत हिलोरे लेता अनवरत बहता है दरिया सा . सौंदर्य और माधुर्य का अनुपम संगम प्रेम निरंतरता को पुष्ट करता अनादि काल से सृष्टि के सृजन में समाता रहा है खुद को. प्रेम जो जीवन के हर पल में साँस की तरह पलता हुआ हिय की धडकनों को राग रागिनियों से भर देता है ..मानस पटल की चेतना पे जीवन नित नूतन परिभाषाओं को गढ़ देता है , आँखों में पलता है नाज़ुक कमलदल सा, पलकों के तट पे समन्दर खड़े कर देता है. सीपी सा चुनता है स्वाति की बूंद और बन मोती अपनी आभा से हर और उजियारा कर देता है. मन के कोरे केनवास पे इन्द्रधनुषी छटा बन नीर की बूंद और रवि रश्मियों के प्रणय को साक्षात् रच देता है प्रेम. प्रेम जीवन की उर्जा है प्रेम जीवन की उर्जा है जो रोज़मर्रा की यांत्रिकता से हमे बाहर लाकर पुनर्जीवन देता है और पल प्रति पल नव नूतन आयामों के द्वार खोलता चला जाता है जो जीवन को नैसर्गिक आनंद के आह्लाद से भर देता है और रस भीनी अभिव्यक्ति की तरह जीवन में मुखरित होता है. अनाम रहस्मयी दिव्यता से भरा प्रेम जब जागृत और क्रियाशील होता मानव में तो देह से निर्लिप्त पर देह को साकार करता हुआ प्रकृति और सृष्टि के नज़दीक ले जाता हुआ सारे छदम आवरणों को विलोपित कर देता है क्योकि प्रेम देह से देहातीत हो जाता है और शरीर सूक्ष्म से सूक्ष्मतम होता हुआ अदृश्य हो जाता है तब रह जाती है आलौकिक प्रेम भावना और उसकी अभिव्यक्ति का संसार– प्रेम, प्रेम जो आत्मा को थपथपाता है और यही स्थाई होता है ,शाश्वत होता है, चेतन होता है, सत्य होता है क्योकि प्रेम लौकिक स्थूलता को भेदता हुआ आत्मा की ज़द तक पहुँचता है और दो सम्पूर्णताओं के मिलन को पुष्ट करता है. शरीर सेआत्मा तक आते आतेस्थूलता से सूक्ष्मता काबोध हो गयाअंतर्मन का मौनमुखरित होअनकहा सासब कह गया तन कीलकीरों कोउकेरतेबनाते ,सवांरते,पढ़तेमन व भावों कीमूकभाषा कोएक दूजे मेंएकाकार कर गया भरपूर तृप्ति काअहसाससैलाब कीप्रलयता कोस्व में समोनूतन आयामों के साथअबोधआपगा मेंरच बस गया तृप्ति और प्यास कासंतुलननव सृजन काप्रणेता बनकल कल निर्झर साबहताजीवन की जीवन्तता कोपुष्ट कर गयाप्रेम गूंगे का गुड है प्रेम पाने या प्रेम में होने की पहली शर्त है अहम का मिट जाना अर्थात अविभज्यता के भाव का उदय होना ही प्रेम है क्योकि प्रेम ही प्रेम को बाँधता है . अकथ कहानी प्रेम की कुछ कही न जायेगूंगे केरी सरकरा खाय और मुस्काए प्रेम गूंगे का गुड है जिसके स्वाद को फ़क़त महसूस किया जा सकता है बयान नही किया जा सकता है . इसे गूंगे की आँखों और चेहरे पे उमगते भावों से जाना व समझा जा सकता है. प्रेम गुणातीत है अर्थात गुणों के दायरे से परे है .इसे रूप, रंग, रस, गंध के प्रतिमानों में नही पिरोया जा सकता . इसे इन सब रूपों में महसूस किया जा सकता है पर उसका मात्रात्मक आकलन नही किया जा सकता. खलील ज़िब्रान प्रेम के बारे में कहते हैं– प्रेम बंधन मुक्त होता है इसलिए वो सृष्टि के कण कण में धड़कता है और अपने आप को प्रकट करता है. फिर चाहे चट्टान के सीने पे उगता दूब का नवांकुर हो या तपते रेगिस्तान में रोहिड़े की डाली पे तपती हवाओं के बीच खिलता फूल हो. ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए ये ढाई आखर की ‘प्रेम गठरी’ समेटे हुए है अपने में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जिसमें ग्रह, नक्षत्र, तारे सभी अपनी अपनी धुरी पे एक दूसरे के चारों और नर्तन कर रहे हैं . इस गठरी में रखी हुई है सम्भाल कर खुशबुएँ जो हवाओ पे सवार हुई एक दिशा को दूसरी दिशा का पैगाम देती हैं , इस में रखे हैं संजो के बिरवे जो उगते हुए हरी हरी चादर से कर जाते है उर्वर धरा के अंतस को, इसमें धरी है कुछ निश्छल मुस्काने जो जब जब अधरों पे सजती हैं ईश्वर उतर आता है उन मुस्कानों में , इसमें रखी है चकमक में छुपा के दबी सी आंच जो अपनी गरमी से पकाती है मन की रोटियां धीमे धीमे .और भी न जाने कितने ही अनंत रूप, रस, रंग को समाये हुए है स्व में . … Read more