चुप

यूँ तो चुप रह जाना आम बात है | ये चुप्पी हमेशा इसलिए नहीं होती कि कहने को कुछ नहीं है बल्कि इसलिए भी होती है कि कहने को इतना कुछ है है जिसे शब्दों में न बाँधा जा सके | लघुकथा -चुप  अपने शहर से दूर होने के कारण विवाहिता पुत्री जल्दी ..जल्दी अपने माता पिता से मिल पाने मे असमर्थ थी।माता पिता दोनो ही बीमार रहते।अत: उसने अपने मन की बात अपनी मम्मी से सांझा की। बेटी:मम्मी आप मेरे शहर आ जाओ!मै बहुत मिस करती हूं आप दोनो को। मम्मी: सही कहा ,बेटी बेटी: आप दोनो की फिकर लगी रहती है!जल्दी से आ भी नही पाती मिलने!इतना लम्बा सफर है कैसे आऊ? ये तो सही कहा..बेटी,,मां ने मुस्कुराकर हां मे गर्दन हिलाई। बेटी: मम्मी आप लोग मेरे पास शिफ्ट हो जाओ!कई बार मुझे बुरे बुरे ख्याल आ जाते है?मै परेशान हो जाती हूं। मम्मी:बेटी,,इतना आसान नही है शिफ्ट होना!इस बुढापे मे इतना सामान लेकर नये सिरे से जमाना। बेटी: क्या दिक्कत है?इस घर को बेचो!और वहां जाकर ले लो। मम्मी:बेटी,ये छोटा शहर है,,यहां सस्ता बिकेगा वहां मंहगा खरीदना पढेगा,,,वो शहर बडा है,बडे शहर की बडी बाते!सब कुछ मंहगा होगा!यहां थोडे मे गुजर हो जाती है,वहां जरुरते बढते देर ना लगेगी!इस बुढापे मे जितनी जरुरतो पर विराम लगे उतना अच्छा है!थोडा सफर बाकी रह गया हैजिन्दगी का,,,,.,,यही कट जायेगा!तू इतना ना सोच बेटी। बेटी: मम्मी एक बात कहू!बुरा तो नही मानोगे? मम्मी:बोल,,क्या है तेरे मन मे? बेटी:मम्मी अगर आप अपना मकान नही बेचना चाहते तो ये मकान किराये पे चढा दो!मै आपके लिये एक फ्लैट ले देती हूं!मेरी आंखो के सामने रहोगे तो मुझे सुकून रहेगा!मौका मिलते ही वीक एंड पर मै आपसे मिलने आ जाया कंरुगी!मन तो बहुत करता है पर आफिस जाने की मजबूरी व छुट्टी ना मिल पाने के कारण छह छह माह मिलने नही आ पाती!नजदीक होगे तो जल्दी आ जाया कंरुगी। मम्मी:नही,नही बेटी हमारी चिन्ता छोडो,,तुम अपनी गृहस्थी पर फोकस करो!हमारा यहां काम चल रहा है,तुम खुश रहो,सुखी रहो,!तुमने हमारे बारे मे इतना सोचा,यही कुछ कम है! बेटी:मम्मी मै आपका बेटा हूं,!आज कोई फर्क नही है,बेटी या बेटे मे! मै दोनो परिवारो की जिम्मेवारी उठा सकती हूं,आपने मुझे इतनी सशंक्त बनाया है!आप बेफिकर रहे,मेरे पास आकर शिफ्ट हो जाये! बेटी की बाते सुनकर मन प्रसन्नता से खिल उठा,पर ,,,,,,,,बेटी के पास,,,,,,,….कुछ सोच चुप रहना ही ठीक लगा। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … फैसला  मैं तुम्हें हारने नहीं दूंगा, माँ तीन तल भगवान् ने दंड क्यों नहीं दिया दूसरा विवाह आपको    “  चुप “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, silence

जमीर

कहते हैं इंसान जब कोई गलत काम कर रहा होता है तो उसका जमीर उसे रोक देता है | फिर भी गलत काम करने वाले अपने जमीर की सुनते कहाँ हैं | भावप्रवण लघुकथा – जमीर  अपनी बिटिया को पोलियों की दवा पिलाने हेतु मुझे शहर जाकर वापिस आना था।उस समय इस तरह घर घर पोलियों दवा पिलाई नहीं जाती‌ थी।जागरूक लोग ही दवा पिलाते थे।पतिदेव अपने काम पर गये थे।मैं खुद ही अपनी छह माह की बेटी को गोद में लेकर चल दी । जैसे तैसे मैंने लिफ्ट लेकर जल्दी जल्दी बिटिया को अस्पताल में पोलियों दवा पिलाई और घर पहुंचने की जल्दी में तुरन्त बस स्टेंड आ गयी‌।पर कोई बस नहीं थी‌।चूंकि मेरे पति लंच करने आने वाले थे।काफी देर तक बस ना पाकर कुछ सोच मैंने सामने से आते हुए एक जुगाड जो रेहडीनुमा था,उसे हाथ दे दिया।पहले से ही उसमें कुछ लोग बैढे थे।मैंने उन्हें आराम से बैठा देखकर कहा—भाई जी मुझे भी बामनीखेडा तक जाना है बैठ जाऊ क्या? उसने मुस्कुराते हुए कहा:_हां हां,बहन जी मुन्नी को लेकर आराम से बैठ जाओ।मैं बैठ गयी। नियत स्थान पर उतरते समय मैं किराया देने लगी,,,मगर उसने ये कहकर किराया लेने से मना कर दिया कि वो इधर तो जा ही रहे थे,आप बैठ गयी तो क्या बात,,,किराये की बात मत करो ये कहकर मुस्कुराते हुए आंखों से ओझल हो गया। तभी घर की ओर चलते चलते मैं कुछ सोचने लगी,,,अतीत की घटना मेरे सामने आ गयी,,,सहसा मेरा ध्यानपास ही में सरकारी नौकरी  करने वाले मिस्टर खन्ना की ओर चला गया।कुछ दिन पहले ही ड्राइवर खन्ना आफिस के काम से शहर जा रहे थे,,कस्बे के बस स्टैंड पर खड़े होकर अपनी सरकारी गाड़ी में सवारियां भर रहे थे,,,। पूछने पर खिसिया कर बोले_मैडम जी जाना तो मुझे उधर ही है,सवारियां ये सोच बैठा दी किराये के रूप में कुछ खर्चा पानी निकल आयेगा। उसकी इस हरकत से मैं निरूतर हो गरी और*जमीर*की परिभाषा ढूंढने लगी।मेरी नज़र में ड्राइवर की बजाय एक रेहडी वाले का जमीर श्रेष्ठता पा गया था।। रीतू गुलाटी  यह भी पढ़ें … सुकून गुनाहों का हिसाब डर प्रायश्चित बस एक बार आपको    “ जमीर “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi

टूटती गृहस्थी की गूँज

दो लोग विवाह के बंधन में बंध एक प्यार भरी गृहस्थी की शुरुआत करते हैं | उनकी बगिया में उगा एक नन्हा फूल उन्हें और करीब ले आता है | फिर ऐसा क्या हो जाता है कि दूरियाँ बढ़ने लगती है | बसी -बसायी गृहस्थी टूटने लगती है … जिसकी गूँज दूर -दूर तक सुनाई पड़ने लगती है | टूटती गृहस्थी की गूँज गुलाब एक मल्टीनेशनल कंम्पनी मे इंजीनियर के पद पर था। अच्छा पैकेज था। सब ओर खुशहाली थी। एकाएक कम्पनी ने छंटनी करनी शुरू कर दी। गुलाब भी इससे अछूता ना रह सका। तजुर्बेकार इंजीनियरो को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। गुलाब की गृहस्थी मे तूफान आ गया था। सब गडबडा गया था। नयी नौकरी मिलनी आसान नही थी वो भी मनपसन्द।। इन्टव्यू देता गुलाब पर कोई ना कोई कमी निकल आती। यूं ही हर दम खाली आते आते वह नकारात्मकता से घिरने लगा था। एक डर सा बैठने लगा था। प्रतिभाशाली होते हुऐ भी उसके भीतर एक डर घर कर गया था। दोस्तो की राय भी निराधार साबित हो रही थी। भगवान का ध्यान करता। पर चैन नही मिल रहा था। हर दम परेशान रहने लगा। खाने मे भी कुछ ना भाता,,, हां गुस्सा बढ चला था।। हरदम चिडचिडा सा रहता। अवसाद मे पडा पडा बुरा ही सोचता। जब से कम्पनी ने रिलीव करदिया तब तो बस घर जाने की सोचता कम्पनी मे काम के वास्ते वो अपने घर से 200 किलोमीटर की दूरी पर किराये के मकान मे रह रहा था। अब कया करे? अब तो उसने अपना बैग उठाया और घर आ गया। जिन माता पिता को वो मिस कर रहा था उनसे मिलकर अपनी व्यथा बताकुछ सुकून पा गया था। इधर पत्नी अपनी नौकरी हेतु अपने मायके जाकर जम गयी थी। छह माह की छोटी बेटी इन दोनो सेअलग थलग पड़ गयी थी। वो दोनो की आंख की तारा थी पर इन हालातो मे वो नानी की गोद मे थी। चूकि पत्नी का मायका बीच शहर मे था। इसीलिये पत्नी को ज्यादा परेशानी नही थी। पर बिना नोकरी गुलाब क्या करता उस शहर मे? उसने पत्नी को भी अपने संग ले जाना चाहा पर ये क्या।,,,, उसने एक दम मना कर दिया। गुलाब; -तुम चलो मेरे साथ पत्नी :- मै कैसे चलूगी,, मेरी नौकरी है यहां। गुलाब :- कौन सी पक्की नौकरी है? ऐसी तो वंहा भी मिल जायेगी। पत्नी :- नही नहीमै बिल्कुल पंसन्द नही करती आपके परिवार को। ना मै वंहा गुजारा कर पाऊगी। गुलाब:- मै यहां अकेला क्या करूंगा? खाली घर खाने को दोडता है मुझे? पत्नी :- मुझे नही पता पर मै नही जाऊगी आपके साथ ये बात पक्की है। छोटी सी फूल सी बेटी जिसे गुलाब खिलाना चाहता था संग रख प्यार देना चाहता था मजबूरी उसे छोड अपने घर लौट आया था। पर तनाव मे रहने लगा। पर पत्नी को कोई सरोकार ना था,,, उसे केवल अपनी इच्छाओ,, व आकांक्षो की फिक्र थी। ससुराल परिवार केलिये जो उसकी जिम्मेवारी थी,,, पति के लिये सहयोग भावना इन सब से दूर दू र तक कुछ लेना देना ना था। जिस पति ने उसका इतना साथ दिया था अब जब उसे पत्नी की जरूरत थी एक अच्छी राय चाहिये थी मनोबल बढाने की। उस समय वो नही थी। वो चाहती थी मेरा पति भी अपने घर ना जाये यही रहे मुझे सहयोग दे। पर पुरूष, की ईगो नारी की ईगो पर भारी थी। अपनी बच्ची के बिना यहां भी मन नही लग रहा था पर वहां भी नही रूक सकता था क्योकि ससुराल वालो का हस्तक्षेप जारी था। माता पिता की शह मे पत्नी ने पति को छोड मायके के प्रति ज्यादा जवाबदेही थी। अपने लिये पत्नी की इस भावना ने गुलाब के दिल मे नफरत भर दी थी। उसे कोई फर्क नहीपढता था गुलाब की नौकरी लगी या नही। पत्नी के इस व्यवहार से गुलाब परेशान रहने लगा। कई बार वो चिल्ला कर कहता_ _मेरा तो औरत जात से ही विश्वास उठ चला है__ऐसी होती है पत्नी। पति मरे या जीये उसे फर्क ही नही पढता। मै अब ऐसी औरत के संग नही रह सकता। जिसे सिर्फ मेरे पैसे से प्यार था मुझसे नही। इधर पत्नी मस्त थी अपने घर। उसने एक मास से एक फोन तक करके नही पूछा कि जॉब का क्या रहा?, इधर गुलाब पल पल टुट रहा था उसे अपनी टूटती गृहस्थी की गूंज साफ सुनाई दे रही थी जिसे वो टूटने नही देना चाहता था। वो चाहता था बस एक बार मेरी अच्छी सी नौकरी लग जाये वह सबकुछ ठीक हो जाये और मै फिर से उंचे मुकाम पर पहुंच जाऊ। इसी कशमकश मे घिरा, गुलाब फिर एक नये इन्टरव्यू की तैयारी मे जुट गया।। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … आत्मविश्वाससुकून वो पहला खत आकांक्षा आपको  कहानी    ” टूटती गृहस्थी की गूँज “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Story, Hindi story, Free read, short stories, Divorce

आत्मविश्वास

जीवन में खोना व् पाना तो लगा रहता है | जिसके अन्दर आत्मविश्वास होता है  उसे खोने का डर नहीं होता | और शायद इसी कारण कोई आत्मविश्वास के धनी व्यक्ति को कुछ खो जाएगा का डर दिखा कर शोषित नहीं कर पाता | एक ऐसी ही महिला की कहानी …                                                           आत्मविश्वास  बाईस वर्ष की माया सुन्दर तेज तर्रार तीखे नैन नक्श गोरा रंग। पोस्ट गैजुऐट आत्मविशवास से लबरेज युवती ने सीनियर सैं स्कूल मे सीनियर टीचर हेतु आवेदन किया। उसकी कार्य क्षमता से प्र्भावित होकर मुख्याध्यापक ने उसे मनपसंद विषय पढाने को दे दिये। माया भी खुश थी व बडी लगन से अपने काम को कर रही थी। सब कुछ ठीक चल रहा था। पर…. भीतर ही भीतर मुख्याध्यापक की बुरी नजर माया पर पड़ चुकी थी। वो उसे अकसर छुट्टी के बाद बहाने से रोकने लगा था। कभी किसी मीटिगं के बहाने अथवा कोई ओर काम,,,। शुरू शुरू मे तो माया उनके कहने से रूक गयी थी। पर एकदिन तो हद हो गयी जब एकान्त का फायदा उठाकर मुख्याध्यापक ने माया को अपनी आगोश मे ले लिया और उसका मुँह चूमने लगा। उसकी इस हरकत से माया आगबबूला हो गयी। तभी उसने माया से माफी मांग ली। अब माया चौकंनी हो गयी थी। भीतर ही भीतर वो कुछ फैसला ले चुकी थी। तीसरे दिन फिर मुख्याध्यापक ने जैसे ही माया को अकेला पाया वो फिर सारी हदे पारकर गया। माया ने आव देखा ना ताव खीचकर एक तमाचा सारे स्टाफ के सामने मुख्याध्यापक के मुंह पर दे मारा। पहले से ही पर्स मे रखे त्यागपत्र को मुख्याध्यापक के मुंह पर दे मारा। जोर से चिल्लाकर माया बोली….. मै यहां ज्ञान बांटने आयी थी,,,, अपना शरीर नही… कहकर तेजी से बाहर निकल गयी। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … शैतान का सौदा सुकून वो पहला खत वर्षों बाद आपको  कहानी    “वर्षों बाद “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Story, Hindi story, Free read, short stories, Confidence

सुकून

                               बेटी की शादी का माता -पिता को कितना हौसला होता है | बेटी के पैदा होते ही एक जिम्मेदारी सी होती है उनके कन्धों पर , बेटी को उसके घर , जहाँ की वो अमानत है यानि की ससुराल भेजने की | लेकिन ससुराल भेजने के बाद भी सुकून तब मिलता है जब … पढ़िए रीतू गुलाटी की कहानी  सुकून फरवरी माह की हल्की हल्की ठंड थी। ऐसे मे धूप का मजा सबको भाता है एक सुकून सा देता है। सीलन व अंधेरे कमरे मे बैढना जहां बुरा लगता है वही सरदी मे उजाले भरी धूप जैसै आकाश मे सोना सा चमक रहा हो ऐसा महसुस होता है। मीठी मीठी धूप बडी अच्छी लगती है। ऐसी गरमाहट मे बिस्तर पर नीदं सोने पे सुहागे जैसी लगती है। आज रविवार था छुट्टी का दिन! साथ मे कपडो की धुलाई का दिन। कामकाजी महिला के लिये यही एक स्पेशल दिन होता है जब वह फुर्सत मे होकर धूप का आनंद ले पाती है। दोपहर का खाना खाकर मै भी ज्यो लेटी गहरी नींद मे सो गयी। तभी डांइगरूम मे बैठे पतिदेव ने जो फिल्म का आनंद ले रहे थे,, अकेले पन से उकता कर मुझे फोन पर मिस काल दी और नीचे आने को कहा। हडबडा कर मै उठी और सूख चुके कपडो को समेटने लगी। आज का दिन मेरा बडा बदला बदला सा था,,, कारण मेरी बेटी की अच्छे से शादी का हो जाना। उसका कल घर पग फैरा था मै फिर फिर उसे याद कर अतीत मे लौट गयी थी। शादी के 15 दिन हो गये थे। और वो अपने हनीमून से भी लौट आयी थी। और अब ससुराल वालो के संग अपने मायके पहला फैरा डालने आयी थी। अपने पति के संग हंसती खिलखिलाती बडी सुंदर लग रही थी। उसके चेहरे की चमक से पता चल रहा था कि वह बडी खुश थी। बडी चहक रही थी। दूर का सफर करके लौटे थे खाना खाकर सब लेट चुके थे पर बेटी काम मे लगी थी। मेने कहा :_”बेटीतू भी आराम कर ले थोडी देर”। बेटी :- “नही मम्मी ,, मै कुछ सामान समेट लूं। कुछ रह ना जाये”आपने जो इतने गिफ्ट दिये है इन्हे सम्भाल कर गाडी मे रख लूं, कुछ छूट ना जाएं। मंमी:- “बेटी शाम का खाना भी पैक करना है क्या? “बेटी:- हां हां मम्मी जरुर! अब इतनी दूर थके हुऐ घर पहुंचेगे तो खाना कैसे बना पायेगे? यही से पैक करके रख लेती हूं। बडी लगन व फुरती से वो सब सामान समेट रही थी,,, इन सब को देख मुझे हंसी भी आ रही थी और प्यार भी आ रहा था। मुझे याद है शादी से पहले वो कितनी लापरवाह थी,,, सामान फैला रहता दूध पडा रह जाता वो ना पीती । मै चिल्लाती—अपना सामान तो समेट लोपर वो हंस देती और सोफे पर लेट टी वी देखने लग जाती। पर आज सबकुछ बदला हुआ था,,,,, दोपहर के खाने के बाद वो सारे जूठे बरतन बडे करीने से एक मे एक डाल कर समेटते हुऐ किचन मे रख आयी थी। मै हंस पडी सोच रही थी ये वही लडकी है जो खाकर अपने बरतन वही बैठक मे छोड देती थी। आज इतना बदलाव? 15 दिन मे ही बेटी ससुराल के तौर तरीके सीख गयी। पढाई लिखाई मे तो मेधावी थी ही, गृहस्थिन भी पक्की बन गयी थी। उसके जाते ही मेरी चिन्ता मिट गयी थी। मुझे डर लगता था की नये घर मे एडजेस्ट होने मे पता नही कितना समय लगे,,, पर मेरी संस्कारी बेटी ने मेरा मान बढा दिया। सीडियो से नीचे उतरते उतरते मै वर्तमान मे लौट आयी पर मुझे मुस्कुराते देख पतिदेव पूछ ही बैठे :-“अपनी बेटी के बारे मे सोच रही हो? मैनै हंसकर कहा :- “हां चलो बेटी अपने घर खुश है हमे और क्या चाहिये। “तभी पतिदेव हंसकर बोले :- सही कहा। “जहां का पौधा जहां लगना है वही लग जाएं और वही फूले फले” हमे और क्या चाहिये? शायद वो भी अपनी बेटीपर गर्व महसूस कर रहे थे। बेटी अपने घर खुश रहे इससे बडा “सुकून” और कया हो सकता है। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें …. बदलाव अंकल आंटी की पार्टी वो पहला खत सीख आपको  कहानी    “सुकून “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Story, Hindi story, Free read, short stories, comfort

गुनाहो का हिसाब

कुछ लोग कहते हैं कि मृत्यु लोक में इंसान अपने गुनाहों को भोगने आता है | कुछ के अनुसार हम हम पिछले जन्म के कर्मों को भोगते हैं व् कुछ के अनुसार इसी जन्म में हो जाता है गुनाहों का हिसाब | सवाल ये है कि क्या मृत्यु से पहले व्यक्ति खुद लगाता है अपने ….गुनाहों का हिसाब कहानी – गुनाहों का हिसाब गोरी गोरी देह थी उसकी,, हरदम मुस्कुराता चेहरा,, आफिस जाते समय भी वो बडा बनसंवर कर निकलता। कई बार आदमकद शीशे के आगे अपनी जुल्फे संवारता। गीत संगीत मे भी रूचि लेता। लेकिन पेट का रोगी बना रहा। आफिस पार्टी मे चाहकर भी कुछ ना खा पाता इस बात का उसे बेहद अफसोस रहता। भरा पूरा परिवार था। एक बेटा एक बेटी। यूं तो परिवार संयुक्त था। पर जल्दी ही सबकुछ बदल गया था। सरकारी नौकरी मे तबादला भी दोबार हुआ पर वो गया नही। तरक्की चाहकर भी ना ले पाया था। पर फिर भी सेलरी तो बढती ही जा रही थी। तरक्की ना होने का दुख भी वो भीतर पाले था। पर अपने बीबी बच्चो को एक दिन भी अपने से जुदा नही किया था। मीटिग हो या अन्य काम वो देर रात अवश्य लौट आता। समय अपनी गति से बढ रहा था। शरीर मे कही सुकून का आभाव था। नींद ना आने के चक्कर मे वो अब एलैपैक्स नीद की गोली लेने लगा था। लगातार दवा ने अब असर कम कर दिया था। जीवन की साध्यवेला मे अब और बिमारियो ने भी घर कर लिया था एक दिन छत से नीचे उतरते समय पैर फिसलने से चार माह तक बिस्तर पर पडा रहा। ढीक होने के बाद भी वो डरा डरा सा रहने लगा था। कही भी अकेले ना निकलता। समाज से कट गया था बिल्कुल। उधर पत्नी भी बीमार रहने लगी थी। आखिर बुढापा का असर दोनो पर हो रहा था। बेटी अपने ससुराल वाली हो गयी थी। उसकी अपनी दुनिया थी। दूर भी रहती थी। बेटा अपने काम मे मग्न था। घर मे अकेले रहते रहते वो परेशान हो गये थे। समाज से कटने के कारण वो दोनो कैदी से बन कर घर के भीतर चुपचाप पड़े रहते। सब सुविधाएं होते हुऐ भी वो अकेले थे। धीर धीरे बूढे का मानसिक संतुलन बिगडने लगा था। अच्छे डाक्टरो को भी दिखाया। दवाएं खा खाकर वो परेशान हो गया। सारा दिन कुछ स्वादिष्ट खाने को मन करता पर पचा ना पाता। लिवर भी जवाब दे गया था। कुछ दिन बीते बीमार व कमजोर पत्नी भी चलबसी। ऊसकी मुत्यु ने उसे तोडकर रख दिया। पत्नी को यादकर वो अकसर रोता। अकेला घर से निकल भागता। बडी अजीब दशा हो गयी थी। नंदिनी  बुढापे मे बच्चो का साथ जहां सुकून देता है उनकी बेरूखी तोड देती है। शायद जीने की चाहत भी कही दम तोडने लगती है। अब वो स्थायी रूप से बिस्तर पर ही पढा रहता। चार सालो से तो वह बिस्तर भी खराब करने लगा था। नौकरौ ने भी हाथ खडे कर दिये थे। वो भी ऐसे आदमी को नहलाने धुलाने मे असमर्थ थे। चुपचाप पडा वो छत निहारता। व अपनी मृत्यु की भीख मांगता जो मिल नही रही थी। अकसर लेटा लेटा अतीत के चक्कर काटने लगता। हाथ जोड माफी मांगता। पर सब बेकार,,,,,,,.। वो अपने पोते को खिलाने की आस लिये था। पर वो भी नही पूरी हुई। अब वो बिस्तर पर पडे पडे अपने गुनाह याद कर रहा था। उंची आंकाक्षो को पूरा करने के लिये उसने क्या क्या छल नही किये। किस तरह उसने अपने पिता की रजिस्टरी धोखे से अपने नाम करवा ली थी। अपने भाईयो का हक भी हड़प[ लिया था औ्र उन्हे घर से बाहर कर दिया था। पिता के मरने पर भी सबकुछ गहने पैसे खुद ही रख लिये थे। एक गरीब भाई की बेटी की शादी मे मदद के तौर पर जो धनराशि देनी थी उससे भी मुकुर गया था। और भाई की बेटी की शादी मे ही नही गया कही भाई पैसो का तकाजा ना कर दे। किसी की समझाईश भी ना मानी। बस अपना सोचता रहा। वो जन्मदेने वाली मां जिसकी आंखो का वो तारा था स्वार्थ के वशीभूत होने पर उसी की आंखो से उतर गया। वो समझाती बेटा…. भाईयो के हक ना खा। वो अपनी मां की बात ना मानता। वो बेचारी अपने कमरे मे पड़ी रहती। ये अपनी पत्नी के लिये कामवाली रखता पर मां के लिये नही। बूढा पिता ही मां को सम्भालता। समय बीता बूढे माता पिता मन की मन मे लेकर स्वर्ग को चले गये। मरते समय पिता ने बेटे से फिर कहा””बेटा,,,,, भाईयो को उनका हक दे देना, आज से तू ही उनका पिता है।। पर लोभ कि ऐसी पट्टी बंधी कि वह कुछ देख ही नही पाया। धन सम्पति के लोभ नेउसे भाईयो से भी छुडवा दिया। पर आज की रात जब वो अपने कमरे मे अकेला सो रहा था। उसकी देह ने मुकित पा ली थी। इसे बहू बेटा भी नही जान पाये थे कि कब हंसा उडान भर गया था। सुबह बहू चाय देने आयी तो ससुर जी शान्त पडे थे। हां यह बात सही थी जिस औलाद के लिये उसने ये धनजोडा था वो अन्तिम समय मे उसके मुख मे गंगा जल भी ना डाल पाये थे ना ही दिया बाती कर पाये थे। और तीसरे दिन ही “उठाला” करदिया था। शायद कुदरत ने ही उसके गुनाहो का हिसाब कर दिया था।। रीतू गुलाटी। यह भी पढ़ें ……. पुरस्कार ब्याह – कहानी वंदना गुप्ता भलमनसाहत तबादले का सच  कहानी “गुनाहो का हिसाब “ आपको कैसी लगी | अपनी राय से हमें अवश्य अवगत करायें | पसंद आने पर शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक  करें | अगर आप को ” अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री इ मेल सबस्क्रिप्शन लें जिससे हम लेटेस्ट पोस्ट को सीधे आपके ई मेल पर भेज सकें |  filed under- Hindi Stories, Emotional Hindi Stories, free read, punishment, gunahon ka hisab

सावधानी की सीख

होली की छुट्टी मे अतुल को घर आना था। बीमार मां को होली के त्योहार मे गुझिया बनानी पडेगी! इससे बेहतर मै खरीदकर ही ले जाता हूं ये सोच आफिस से लौटते हुऐ अतुल ने ATM से 2000रूपये निकाले और अपने पर्स मे रख अपने कन्धे पर टंगे पिठ्ठू बैग की अगली जेब मे रख मस्ती से चलते हुऐ मिठाई की दुकान पर पहुंच गुझिया के दो डिब्बे देने को कहा। मिठाई बढिया है ना इस बात की तसल्ली वास्ते ज्योहि झुका तभी भीडभाड मे कब चोर ने बैग से पर्स चोरी कर लिया अतुल को पता ही नही चला! मिठाई लेकर ज्योहि पैमेन्ट देने हेतु पर्स निकाला तो कलेजा धक्क से रह गया! दिल्ली जैसे NCR शहर मे इतना ऐतियात रखते रखते हुऐ भी अतुल के संग ये हादसा हो गया था। पर्स मे पैसो के संग संग दैनिक जरूरत का सामान भी चला गया था। ATM कार्ड क्रेडिट कार्ड, आधार कार्ड, पेन कार्ड, डाईविंग लाइसेस कार्ड वोटर कार्ड, मेटरो कार्ड सब एक ही झटके मे गायब हो चुका था। भाग कर बैक पहुंचा ATM बंद करवाया। पढ़ें -केवल स्त्री ही चरित्रहीन क्यों ? FIR दर्ज करवायी! पर सब बेकार। दुखी मन से कुछ सोचने बैठा तभी अतुल के कानो मे मां की आबाज आयी…. कुछ दिन पहले ही मां ने हिदायत दी थी बेटा इतना सामान एक साथ पर्स मे मत रखो! पर मैने ही मां को ये कहकर चुप करा दिया था… अंजाने शहर मे रहता हूं इसकी जरूरत पडती रहती है! पर आज के नुकसान ने जीवन भर सावधान रहने की सीख दे दी थी। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … अच्छा नहीं लगता बोझ  आखिरी मुलाकात जिंदगी ढोवत हैं भगवान् बुद्ध के तीन प्रश्न -चाइना की प्रेरणादायक लोक -कथा आपको    “ सावधानी की सीख “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- free read, short stories, precaution, lesson, thief

बुजुर्गों की की अधीरता का जिम्मेवार कौन?

ये सच है कि समाज बदल रहा है, इस बदलते समाज का दंड यूँ तो हर वे को भोगना पड़ रहा है पर हमारे बुजुर्ग जिन्हें जीवन की संध्यावेला में ज्यादा प्यार व् अपनेपन की जरूरत होती है तब उनका सहारा बनने के स्थान पर वो हाथ उनसे हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हैं, जिन्हें कभी उन्होंने चलना सिखाया था | शारीरिक अस्वस्थता झेलते बुजुर्गों के लिए ये  मानसिक पीड़ा असहनीय होती है | प्रस्तुत है बुजुर्गों की इसी दशा का चिंतन  करता हुआ हुआ  रीतू गुलाटी की का यथार्थ परक आलेख – आज के बदलते परिवेश मे बूढ़े लोगों की अधीरता का जिम्मेवार कौन?  आज के आपाधापी युग मे जब सभी लोग भाग रहे है। ऐसे मे जीवन की सांध्यवेला को भोगते बूढे लोगो को कौन सम्भाले? अपनी आथिर्क स्थिति को बढिया करने के चक्कर मे जो दोनो पति-पत्नी कामकाजी हो तो उस घर के बूढो को कोन सम्भाले?  बहू चाहती है मै थकी हुई आऊ तो बुढिया मेरी सेवा करे! बुढिया इन्तजार करे कि बहू मेरे सेवा करे,, ऐसै मे भी परिवार मे क्लेश लाजिमी होगा। मुशकिल वहाँ ज्यादा होगी जहाँ  एक ही वारिस हो। बहू सास-ससुर की सारी जमा पूंजी तो चाहती है पर सेवा करना नही चाहती। ऐसै मे बूढे लोगो की तो आफत आ जाती है। कई बार दर्द से तडफते बूढो की आवाजे बडो-बडो को विचलित कर देती है। ऐसे मे बेटे की चुप्पी उन्हे और दुखी कर देती है। कई बार बहू बेटा नौकरी के सिलसिले मे घर से दूर निकल कर निश्चिंत हो जाते है पीछे बूढे मरे या जिये वो बेफिक्र हो जाते है। मेरी आंखो के सामने मैनै कई बूढे लोगो को तडफते देखा है इसका जिम्मेदार कौन?  माता-पिता दें बेटियों को बुजुर्गों के सम्मान का संस्कार  आज हर माता पिता चाहता है मेरी बेटी अपने ससुराल मे सुखी हो,, खुश रहे पर वो माता-पिता बेटियो को ये संस्कार भी तो दे कि वो अपने बुजुर्गो का सम्मान भी करे तभी घर मे सुखशान्ति होगी। कई बार बेटा माता पिता को संग रखना चाहता है तो बहू नही चाहती। क्योकि आजादी मे खलल पडेगा। कई बार दुखी होकर माता पिता इस लिये भी अकेला रहना चाहते ताकि बच्चो का प्यार बना रहे। उनके कारण क्लेश ना हो! मैनै ऐसै भी घर देखे है जंहा बहू इस लिये मायके जम जाती कि सासु माँ उन्हे अलग रसोई नही करने देती। बुढापा एक दिन सभी को आना है,, बहू ये नही समझती। बुजुर्गों की हालत दिया तले अंधेरा जैसी   कई बार बेटा बहू की नजर बूढे लोगो की पैशन तक पर देखी गयी। सरकार बूढो को बुढापा पैशन देती है पर उसका भी वो उपभोग नही कर पाते। समाज मे हमारे बूढे इतने असुरक्षित कयो है? उनके पास ढेरो तजुर्बे है पर लेने वाला कयो नही? स्थानीय जगहो पर बूढो को सम्मान की नजर से देखा जाता है पर अपने ही घर मे वो सम्मान क्यो नही मिलता,,,  बुजुर्गों की हालत दिया तले अंधेरा जैसी क्यो है? क्या कुसूर है उनका कि वो शारीरिक तौर पर कमजोर हो गये।  उनकी स्मरण शकित कमजोर हो गयी तो वे बेकार हो गये। कई बार वृद्धाआश्रम मे भी वो उन दम्पतियो को नही रखते जिनके बच्चे अच्छे मुकाम पर हो। उन बूढो की हालत और खराब हो जाती हो जो बिस्तर खराब करते है ऐसै मे नौकर भी उन्हे संभाल नही पाते। वो सबकुछ होते हुऐ भी साक्षात नर्क झेलते है। सारे घर की विरासत समभालने वाली बहू तब कहां होती है? जब बहू बच्चे जनती है तो सास से पूरी सेवा की उम्मीद करती हैऔर चाहती कि सास ही किचन मे रहे;पर जब सास बीमार हो जाते तो वह पूछती तक नही। ऐसे मे वो बूढे क्या करे?  बुजुर्गों पर लघुकथाओं की ई मैगजीन – चौथा पड़ाव ये सवाल समाज के सामने मुंह खोले खडा है। क्या आज हर माता-पिता का ये फर्ज नही कि वो अपनी बेटियो को ये संस्कार दे कि वो बूढे सास ससुर का मान सम्मान करे क्योकि जो हम बोतै है वही काटते है। हमारे समाज मे एक मुठ्ठी भर ऐसे संस्कारी बच्चे बचे है जो बूढे माता पिता को वो मान सम्मान देते है जिसके वो अधिकारी है। हमे समय रहते जागना होगा व उन बूढे लोगो को वही मान सम्मान देना होगा जिसके वो अधिकारी है। रीतू गुलाटी  यह भी पढ़ें … चलो चलें जड़ों की ओर बड़ा होता आँगन बुजुर्गों को व्यस्त रखना है समाधान बुजुर्ग बोझ या धरोहर आपको आपको  व्यंग लेख “आज के बदलते परिवेश मे बूढ़े लोगों की अधीरता का जिम्मेवार कौन?“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-Senior citizen, problems of senior citizen’s, old age

लघुकथा -कलियुगी संतान

गली मे गठिया पीडित बुढिया घूमते घूमते थक गयी और धीरे धीरे चलते हुऐ मेरे पास आकर सुस्ताने लगी। मैने पूछ ही लिया_क्या हुआ? आंखो मे आंसू भर कहने लगी,,, बहन जी मै छह छह बेटो की मां हूं फिर भीबूढे पति संग अलग रह रही हूं। सारे बेटे अपने वीवी बच्चो संग मस्त है! हमने कया खाया क्या नही। कपडे धुले या नही। उन्हे कोई मतलब नही। मै गठिया के मारे कपडे धो नही पाती। काम होता नही। करना पडता है। फिर भी मेरे बेटे मुझसे कुछ ना कुछ धन मांगते रहते है। कहते है मां के पास बहुत पैसा है। मैने कहा हां बेटा, हमने साथ तो ले जाना नही, उसी को देगे सारा कुछ जो हमारी सेवा करेगा। बहन जी, बुढापा इतना बुरा नही,, ये तो सब को आना है,! बेटे बहू का साथ मिले तो बहुत सा काम हम बैठै बैठै भी निपटा देगे। पर बहू बेटे को आजादी चाहिये इसीलिये संग रहकर खुश नही। उसकी बाते सुनकर मन भर आया मै सोच रही थी एक मां छह बच्चो को पाल लेती है और छह बच्चे मिलकर भी एक मां को नही पाल सकते। कैसी समय की गति है? कैसी है ये आजकल की कलियुगी औलाद? रीतू गुलाटी*ऋतु* यह भी पढ़ें ………. परिवार इंसानियत अपनी अपनी आस बदचलन आपको आपको    “लघुकथा -कलियुगी संतान“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords: short stories , very short stories, child

वैवाहिक जीवन कैसे सुखी हो ?

वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने मे कुछ तथ्यो का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। आपसी सूझबूझ व प्रेम से दामपत्य जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है।  सुखी वैवाहिक जीवन  कैसे प्राप्त करें ? कहते है शादी दो जिस्मो का नही दो आत्माओ का मिलन होता है जो परमात्मा के द्धारा भाग्य से विवाह पूर्व ही तय हो जाता है, और यूं कहे धरती पर आकर मिलन हो जाता है।परन्तु आज के प्रगतिशील युग मे जब स्त्री व पुरूष दोनो ही पढे लिखे, समझदार व जागरूक होते है कामकाजी होने के साथ साथ अपने अधिकारो के प्रति भी सजग व पूर्णतः युवा होते है। फिर भी कभी कभी विचारो मे तालमेल बैढाने मे थोडा टकराव होना स्वाभाविक है।  वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने मे कुछ गलतियो से सबक लेकर व सहनशीलता का परिचय देकर सुखी बनाया जा सकता है। कुछ तथ्य है जो वेवाहिक जीवन को किसी ना किसी रूप मे प्रभावी बनते है।  उमर का प्रभाव— कहते हैफूल की कली नाजुक होती है, गुलदस्ते मे सजाते समय जैसे चाहो मोड लो, उसी प्रकार कच्ची  उमर की लडकी को अपने परिवार मे अपने संस्कारो मे ढाला जा सकता है किन्तु आजकल पढाई पूरी करते करते व नौकरी की सैटलमैन्ट करते करते कच्ची उमर पीछे छूट जाती है। पति की उमर यदि पत्नी से ज्यादा है तो वह अनुभवी होने के कारण पत्नी के बचपने को सम्भाल लेता है व अपनी राय देकर उसे संतुष्ट कर लेता है। इसके विपरित यदि पत्नी की उमर ज्यादा हो तो वो अपने पति को कम आंकती है, स्वयं को ज्यादा समझदार मान  पति की भावनाओ को ढेस पहुंचा देती है।  पित्रसत्तात्मक  परिवार होने के कारण,सरनेम पति का होता है किन्तु आजकल पेनकार्ड बन जाने से सरनेम पीछे लगाने की मजबूरी हो जाती है स्त्री की।  पहली नजर का प्यार_____ किसी भी स्त्री या पुरूष को पसन्द आने वाला जीवनसाथी की पहली नजर के प्यार की बात ही कुछ और है, इसीलिये आजकल सगाई होते ही दोनो आपस मे मिलना शुरू कर देते है।आपसी विचारो का लेनदेन रिशते को मजबूत बनानेमे सकारात्मक भूमिका अदा करते है। आपसी प्यार व समझ हावी हो जाती हैएक दूसरे पर। कभी कभी वो दोनो अपनी आभासी दुनिया मे इस कदर खो जाते हे कि परिवार मे अन्य सदस्यो की भावनाएं गौण होकर रह जाती है।  उचित कद काठी_____ एक दूसरे से मिलकर अपनी जोडी सबसे सुन्दर हो, इस तरफ ज्यादा ध्यान हो जाता है। विवाह मे भी सब कहने लगते है :क्या जोडी है? इस उपमा से भी दोनो खुशी से अभिभूत होने लगते है।  पढ़िए – रीतू गुलाटी की लघुकथाएं सलीकेदार व्यकितत्व______ स्त्री के सलीकेदार होने से पुरूष का भी सम्मान बढता है। स्त्री का स्वयं को ढंग से सजाकर रखना भी एक कला है,, बिखरे बाल, फटे वस्त्र पहन कर रहना आकारण हंसना व बै सिर पैरकी बाते करना फूहढता की निशानी है। स्त्री का व्यकितत्व मंहगे कपडो मे नही है, उसकी बातचीत का लहजा इतना सरल व स्पष्ट हो कि देखने वाला दांतो तले अंगूली दबाये। पुरूष का स्वभाव भी मीठा व नम्र हो। ससुराल वालो को आदर दे।  संस्कारो पूर्ण व्यकित सभी के मन को भाता ह वो चाहे स्त्री हो या पुरूष। धर्म से जुडना ही संकारो से जुडना है। अच्छे संस्कार वाली लडकी ईशवर भय से पति का सम्मान करेगी। सीता सावित्री मे श्रद्धा रखने वाली पति का मंगल ही सोचेगी। स्वयं तो पूजा पाठ करेगी अन्य सदस्यो  को भी पूजा पाठ से जोडेगी। किन्तु आजकल नौकरी परजाने की जल्दी मे ये सब छूट रहा है।  मितव्यता_____ आजकल मंहगाई चरम सीमा पर है। स्त्री पुरूष को  मितव्यता की आदत होगी तो वे बचत ज्यादा कर पायेगे। व खुश भी रह पायेगे। कयोकि आज के समयमे सुख सुविधाओ के चलते बाजार ऐसी क ई चीजो से भरा पडा है जिनके बिना भी घर चल सकता है। औरत कम खर्च करने वाली होगी तभी बचत कर घर चला पायेगी।  सहनशीलता______ सबसे महत्वपूर्णहै सहनशीलता का गुण।  वैवाहिक सम्बन्धो की मधुरता की पहली नींव सहनशीलता पर टिकी है। पुरूष को कितना भी गुस्सा आ रहा हो स्त्री चुप रहे तो पुरूष सामान्य हो जाता है। चुप रह करस्त्री मुस्कुराते हुऐ सहनशीलता का परिचय दे तो पुरूष भी उसकी ओर खिंचा चला आता है और उसकी नजरो मेआदर भीबढ जाता है। समझदार व सहनशील बहू परिवार की आंखो का तारा बन जाती है। पति का प्यार व ससुराल वालो का आदर पाकर औरत खुद तो खुशहाल बनती है परिवार मे खुशहाली का वातावरण बनाकर घर को स्वर्ग बना देती है।  आज की आपाधापी जीवन मे ये चिन्तन का विषय है कि हम अपने दामपत्य जीवन को कैसी सुखी बनाएं।  आओ विचार करे?? रीतू गुलाटी                                          यह भी पढ़ें … खराब होते रिश्ते -बेटी को बनना होगा जिम्मेदार बहु बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं कहीं हम ही तो अपने बच्चों के लिए समस्या नहीं          आपको  कहानी  “ वैवाहिक जीवन कैसे सुखी हो ?“ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |