छिपा हुआ आम

सुगंध का नियम था कि वो रोज शाम को पार्क में  टहलने जाती | आज मन अशांत था फिर भी नियम ना टूटे इस लिए चली गयी , पर मन टहलने में नहीं लगा | घर भी नहीं जाना चाहती थी इसलिए वक्त काटने को वहीँ बेंच पर बैठ गयी | ठंडी हवा के झोंकों ने उसके गालों को सहलाया | अंदर का ताप कुछ कम हुआ | इधर -उधर नज़र दौड़ाई | बच्चे खेल रहे थे | बच्चों के खेल में मन कुछ रमा ही था की पार्क के एक कोने की बेंच पर निगाह चली गयी | एक जोड़ा बैठा हुआ था | दुनिया से बेखबर , एक दूसरे में तल्लीन | महिला की मांग का सिंदूर उसके विवाहित होने की गवाही दे रहा था | पकड़ी ना जाये इस भय से सुगंध ने नज़रें हटा लीं | पर नज़र रह -रह कर उधर ही चली जाती | दिल में एक हूक  सी उठती | काश उसका पति मनोज भी उसके साथ आया होता | पर मनोज के पास उसके लिए समय कहाँ था ? इसी बात पर सुगंध और उसके पति मनोज में अक्सर झगड़ा होता रहता था | सुगंध को लगता कि उसका पति उससे प्यार उससे प्यार नहीं करता , उसके साथ घूमने नहीं जाता , उसका ध्यान नहीं रखता , यहाँ तक की ऑफिस ६ बजे बंद हो जाता है पर वो हर रोज ८ -९ बजे आता है |  वहीँ  मनोज कहता कि उससे जान से भी ज्यादा प्यार करता है | दोनों के पक्ष अलग -अलग होते |  अपना दर्द याद आते ही सुगंध की आँखें भर आयीं | पक्षियों का कलरव , बच्चों का शोर , और उस प्रेमी युगल का प्रणय दृश्य सब उसे बेमानी लगने लगे | भारी क़दमों से सुगंध घर की ओर लौट पड़ीं | घर के दरवाजे पर ही पड़ोस की भाभी जी मिल गयीं | कुछ अनमनी सी देख उन्होंने पूँछ लिया ,” क्या हुआ सुगंध , मूड इतना खराब क्यों हैं ? पहले तो सुगंध ने कुछ नहीं कहा  कर बात टालने की कोशिश की , लेकिन उनके स्नेह भरे शब्दों से वो टूट गयी और फूट -फूट कर रोते हुए बोली , ” सब अपने जोड़े के साथ पार्क में जाते हैं और मैं अकेली | ये अकेलापन अब सहा नहीं जाता | थोड़ी ही देर में बात पूरे मुहल्ले में फ़ैल गयी |  जब मनोज घर लौटा तो आस -पास के लोग समझाने लगे कि भाई अपनी पत्नी का भी थोड़ा  ध्यान रखा करो | मनोज उनसे हाँ -हूँ कह कर गुस्से में अपने घर गया | वहाँ वह  आँसूं से तर -बतर थी | उसे उम्मीद थी कि उसका आँसुओं  से भरा चेहरा देखकर मनोज उसे प्यार करेंगे | पर उसका चेहरा देख कर मनोज का तो गुस्सा बढ़ गया | वो चिल्ला कर बोला ,” तो यही नाटक दिखा रहीं थी सब को …. आखिर  साबित क्या करना चाहती हो ? विपरीत अपेक्षाओं के कारण दोनों में जोर -दार झगड़ा हुआ | किसी ने खाना नहीं खाया ना ही कोई  रात भर सोया |  दूसरे दिन मनोज जब ऑफिस से लौटा तो उसने २०,००० रुपये सुगंध के आगे रखकर कहा ,” लो ये रुपये , मजे नहीं कर रहा था , ओवर टाइम कर रहा था तुम्हारे लिए हीरे का हार  लाने के लिए | ताकि जब तुम अपनी बहन की शादी में जाओ तो तुम्हे किसी तरह का मलाल ना रहे |  सुगंध की आँखों में आंसू  थे | वो प्यार के इस रूप से अनभिज्ञ थी |  ——— मित्रों , बात सुगंध और मनोज की नहीं है | झगडे होते ही इस लिए हैं कि दोनों एक दूसरे को समझ नहीं पाते | दोनों में से एक टेक्निकली सही होता है दूसरा प्रक्टिकली |  टेक्निकली सुगंध सही थी | उसका पति उसे समय नहीं देता तो प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि उसका पति उसे प्यार नहीं करता |  प्रैक्टिकली मनोज सही है | वो उसे वो उसे वो गिफ्ट देना चाहता है जो उसकी बहुत प्रिय है | उस गिफ्ट को देते समय वो उसकी आँखों में वो चमक देखना चाहता है जो हीरे की चमक को भी फीका कर दे |  …………………………. इसी सम्बन्ध में मेरी दादी एक कहानी सुनाया करती थीं |  एक अध्यापक एक बच्चे को गणित सिखा रहा था |  उसने कहा , ”  रोहन मैं पहले तुम्हे दो आम दूँ , फिर दो आम और दे दूँ | अब बताओ तुम्हारे पास कितने आम होंगे ? रोहन – पाँच  बच्चा ठीक से समझ नहीं पाया ये सोच कर अध्यापक चित्र बनाते हैं | फिर रोहन से पूंछते हैं रोहन  बेटा बताओ तुम्हारे पास कितने आम हैं ? रोहन -पाँच  अध्यापक उसे समझाने के लिए अब आम की जगह स्ट्राबेरी का उदहारण लेते हैं | रोहन , मैं पहले तुम्हे दो स्ट्राबेरी देता हूँ फिर दो और देता हूँ | अब तुम्हारे पास कितनी स्ट्राबेरी हैं | रोहन -चार  अध्यापक खुश हो गए | उन्होंने फिर आम का उदाहरण  दे कर प्रश्न पूछा , ” रोहन अब तुम्हारे पास कितने आम हैं |  रोहन – पाँच  अब तो अध्यापक को गुस्सा आ गया | उन्होंने कड़क आवाज़ में पूछा , रोहन जब दो और दो स्ट्राबेरी चार होती है तो दो और दो आम पाँच कैसे हो गए |  रोहन ने कहा , ”  सर मेरे पास एक आम पहले से ही बैग में है | इसलिए जब आप मुझे दो और दो चार आम देते हैं तो मेरे पास पाँच आम हो जाते हैं | पर मेरे पास स्ट्राबेरी नहीं हैं इसलिए दो और दो स्ट्राबेरी मिलकर चार ही रहती हैं |  अब बारी अध्यापक के मुस्कुराने की थी |  टेक्निकली अध्यापक सही थे | प्रैक्टिकली रोहन सही था |  ……………… कई बार यही होता है कि दोनों सही होते हैं पर विवाद थमता नहीं है | क्योंकि दोनों अलग तरीके से रिश्ते को देख रहे होते हैं | एक टेक्निकली सही होता है एक  प्रैक्टिकली| जरूरी है कि रिश्तों में गलतफहमियाँ पालने की जगह हम एक एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने की कोशिश करें | क्या पता छिपा हुआ आम … Read more

गलतियां जिसके कारण relationship counseling मदद नहीं कर पाती

                                एक समय था जब पति -पत्नी में झगडे होते थे तो परिवार के बड़े बुजुर्ग संभाल लेते थे | परन्तु आज परिस्थितियाँ अलग हैं | आज एकल परिवार है और उस पर भी ” my life my rules ” के चलते बड़े -बूढों की दखलंदाजी पूर्णतया निषिद्ध कर दी गयी है | ऐसे में छोटे झगड़ों के तलाक तक  पहुँचते देर नहीं लगती है | पर तलाक हमेशा समस्या का समाधान नहीं होता | ये हमेशा जरूरी भी नहीं होता |   हर किसी का अपने जीवन साथी में बहुत बड़ा ” emotional investment ” होता है | ये बहुत पीड़ा दायक प्रक्रिया है , खासकर तब जब बच्चे हो चुके हो , जिन्हें माँ या पिता के बीच में से एक को चुनना पड़ता है | इसलिए आजकल दम्पत्ति टूटते रिश्तों को सँभालने के लिए  relationship counselling की मदद लेते हैं | 3 गलतियाँ जिसके कारण relationship counseling आपकी मदद  नहीं कर पाती relationship counselling  नए ज़माने का शब्द है और शायद नए ज़माने के लोगों को ही इसकी ज्यादा जरूरत भी है | लोग इस आशा से  काउंसलर के पास जाते हैं कि उनके रिश्ते में फिर से पहली वाली बात आ जाए , या जो भी गलतफहमी आपस में  हो गयी है वो ठीक हो जाए | अक्सर ऐसा होता भी है | एक अच्छी सलाह के साथ दोनों वापस आते हैं और ख़ुशी -ख़ुशी अपनी जिन्दगी शुरू करते हैं |  relationship  therapist मधुरिमा बजाज कहती हैं कि  एक दूसरे को सुनना , समझना या बात करना एक स्किल है जिससे थेरेपी की जाती है | बहुत से लोग छोटे झगड़ों में ही आ जाते हैं और समस्या आसानी से सुलझ जाती है | पर बहुत से लोग बात तलाक तक पहुँचने पर आते हैं वो बहुत आहत होते हैं उनमें एक दूसरे के प्रति गुस्सा बहुत भरा  होता है | ऐसे में उनको संभालना मुश्किल होता है | परन्तु कई लोग इस मन: स्थिति के साथ आते हैं कि सब प्रयास कर लिए चलो इसे भी  आखिरी दांव की तरह कर के देख लेते हैं | उनको देख कर यह तय करना मुश्किल हो जाता है की क्या वो वास्तव में अपना रिश्ता बचाना चाहते हैं ? जाहिर है ऐसे रिश्तों को बचाना मुश्किल हो जाता है | अगर आप भी किसी relationship  counseling के लिए जाना चाहते हैं | तो अपना समय , पैसा और ताकत बर्बाद होने से बचने के लिए उन तीन गलतियों से दूर रहना होगा  जिन्हें करने वाले लोगों की counselling कोई मदद नहीं कर पाती | 1) वो  एक दूसरे की गलतियां देखने से बाज नहीं आते                                                        ऋतिक और सान्या  जब काउंसलर के पास गए तो वो दोनों वहीँ झगड़ पड़े | ऋतिक सान्या पर  आरोप लगाये जा रहा था और सान्या  ऋतिक पर | दोनों दूसरे का पक्ष सुनने को तैयार ही नहीं थे | यही तो वो घर में करते थे फिर काउन्सलिंग की फीस देने और यहाँ आने से क्या फायदा | दरअसल जब आप काउंसेलर के पास जाने का मन बनाये तो अपना ” rigid attitude ” लेकर न जाएँ | ये सोच कर न जाए कि ये केवल दूसरे की गलती है जिस कारण रिश्ते में समस्या आ रही है | यहाँ जरूरी है की आप खुले दिमाग से जाए , आप सुनाने नहीं सुनने जा रहे हैं | सुना तो आप घर में भी लेते थे | यहाँ ये सोच कर जाइए कि आपको खुले दिल से दूसरे की बात समझनी है | बीना को   नौकरी करने का मन था , उसे लगता था उसकी शिक्षा व्यर्थ हो गयी है | किशोर चाहता था वो घर  में ही रहे | अक्सर वो बीना से कहता कि तुम्हें तो तफरी करने कला शौक है , घर में पैर बंधते नहीं है | और बीना उस पर मिडल क्लास मेंटेलिटी का लेबिल लगा देती | जिससे झगडा बढ़ जाता | जब दोनों खुले दिमाग से कोउन्लर के पास  गए तब किशोर को पता चला कि बीना अपनी सहेलियों के सामने छोटा महसूस करती है जो आज बाहर जा कर काम कर रहीं हैं व् पैसे कमा रहीं हैं , जबकि पढाई में वो उससे बहुत पीछे थीं | बीना को भी पता चला कि किशोर को भय है कि कामवाली ठीक से बेटे का  ध्यान नहीं रखेगी | बचपन में उसका चचेरा भाई बाथ  तब में गिर जाने के कारण दुनिया से चला गया , उस समय उसकी चाची पड़ोसन के घर में बैठ शादी का वीडियो देख रही थीं | दोनों ने एक दूसरे के पक्ष को समझा | जिसे वो घर में बहस के बीच नहीं समझते थे | बीच का रास्ता निकला | बीना ने एक ऐसे स्कूल में नौकरी की जिसमें छोटे बच्चों की डे केयर की सुविधा थी | बीना को सम्मान मिला और किशोर  भय मुक्त हुआ |  ऐसा तभी संभव हुआ जब दोनों ने एक दूसरे को सुना | एक दूसरे के प्रति खुले दिल से व् अपने को कुछ हद तक बदलने के वादे  के साथ गए | लेकिन अगर कोई जोड़ा सिर्फ अपनी बात सिद्ध करने के उद्देश्य से आता है तो उसकी शादी को बचना मुश्किल है | 2) ये केवल दो लोगों के बीच का मामला नहीं है                                                             ऐसे लोगों की counseling भी मुश्किल होती है | जो ये सोचते हैं की ये हमारे बीच का झगडा है और हम सुलझा लेंगे | दरअसल दो लोग नहीं लड़ रहे होते हैं दो बिलीफ सिस्टम लड़ रहे होते हैं | वो बिलिफ सिस्टम जो बचपन में अपने परिवार की परवरिश द्वारा बनते हैं | इसीलिए पहले लोग परिवार पर बहुत ध्यान देते थे | आज के बच्चे खुद चयन करते हैं और सोचते हैं … Read more

बेमेल विवाह के विभिन्न आयाम

                                               विवाह न केवल दो आत्माओं का संयोग मात्र है वरन दो संस्कारों एवं परिवारों का भी संयोग है। विवाह में कुण्डलियाँ तो मिलाई जाती हैं , गुणों में अधिक अंतर न होने पाये इस बात का विशेष ध्यान भी रखा जाता है तथापि बहुत सारे आधारों पर बेमलता को समाप्त किया जा सकना संभव नहीं हो पाता। वैवाहिक बेमलता के कई ऐसे आयाम बताये जा सकते हैं जिनके प्रभाव से विवाह के सम्बन्धों  को टूटते , बिखरते एवं सिसकते देखा गया है। फलतः जिस सम्बन्ध की नींव भावी जीवन को सुखी व संपन्न बनाने के लिए रखी गयी थी वही सम्बन्ध जीवन भर के दुःख का कारण बन जाता है।  बेमेल विवाह के विभिन्न आयाम  अद्यतन परिस्थितियां हों या प्राचीन समाज ;विवाह को सदा ही परिभाषित किये जाने की प्रथा है। कुछ लोग इसे सामाजिक  संस्था मानते हैं , कुछ लोग सामाजिक समझौता , कुछ लोग दो आत्माओं का मिलन , कुछ लोग दो संस्कारों का संयोग , तो वहीँ कुछ लोग इसे जुआ मान कर भी चलते हैं। फ़िलहाल हिन्दू धर्म के सन्दर्भ में देखा जाये तो विवाह अनुबंध नहीं वरन जन्म – जन्मांतर का सम्बन्ध है। जो सोलह धार्मिक संस्कारो में से एक है। किन्तु स्थिति तब दुःखद हो जाती है  जबकि विभिन्न स्तरों पर समानता लुप्तप्राय होती है।  जिसके कारण वैवाहिक सम्बन्धो में दरार आ जाती है या तलाक़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। विवाह में बेमलता के विभिन्न आयामो को इंगित करते हुए कहा जा सकता है कि ये शैक्षिक , सामाजिक , आर्थिक , शारीरिक , धार्मिक , संवेगात्मक तथा आयु में व्यापक अंतर आदि विभिन्न आधारों  पर हो सकते हैं। शैक्षिक बेमेलता   निःसंदेह शिक्षा समायोजन करना सिखाती है जबकि शैक्षिक स्तर पर भारी विषमता वैवाहिक जीवन को कलुषित बना देती है। यदि पति – पत्नी शैक्षिक स्तर पर एक दूसरे के समकक्ष नहीं होते तो विचारो का आदान – प्रदान सहज नहीं होता। एक दूसरे के विचारो को उन्ही अर्थों में आत्मसात कर पाना जिन अर्थों में कहे गए है , निश्चय ही वैवाहिक जीवन को सुगम एवं सरल बनाता है। समझ का आभाव होने पर निरर्थक आरोपों – प्रत्यारोपों की  श्रंखला आरम्भ हो जाती है जो वैवाहिक जीवन को नारकीय बना देती  है।   सामाजिक रूप से वैवाहिक बेमलता सामाजिक रूप से वैवाहिक बेमलता को हम तब देख पाते है जबकि पति पत्नी के मध्य संस्कृति एवं सभ्यता के स्तर पर स्पष्ट अंतर होता है। दोनों में से कोई एक गाँव से सम्बंधित है तो दूसरा शहर से , जहाँ एक परम्पराओं और रूढ़ियों का पुजारी है , तो वहीँ दूसरा हर बात को तर्क की कसौटी पर कसने का अभ्यस्त होता है। अपनी – अपनी ढपली, अपना – अपना राग ; परिणामतः टकराव और अलगाव स्वाभाविक रूप से  जन्म ले लेता है।                                                                                        अत्यधिक आर्थिक विषमता  भी बेमेल विवाह के महत्वपूर्ण आयामो में से एक है। स्थिति तब उतनी दयनीय नहीं होती जब की पति पक्ष आर्थिक रूप से अधिक संपन्न होता है , इसके विपरीत यदि पत्नी पक्ष आर्थिक  रूप से अधिक सबल है तो दोनों के मध्य सामंजस्य बहुत कठिन हो जाता है।आर्थिक रूप से निम्न परिवार से आई लड़की जहाँ ससुराल में धीरे धीरे सामंजस्य बना लेती है वही आर्थिक रूप से उच्च परिवार से आई हुई लड़की प्रारम्भ से परिवार में संदेह और नकचढेपन का पर्याय बन जाती है। पति और उसके परिवार वाले अपनी कुंठा और हीनभावना के तहत नववधू  की हर छोटी बड़ी बात को तूल देकर पारिवारिक वातावरण को विषाक्त बना देते हैं। कभी – कभी यह भी देखा जाता है कि आर्थिक रूप से संपन्न लड़की के मायके वालों से ससुराल वालों की अपेक्षाएं सुरसा के मुख की भांति होती हैं तथा मांगें पूर्ण न होने पर लड़की को प्रताड़ित किया जाता है। हाल की एक घटना का उदाहरण देते हुए कहा जा सकता है कि लड़की को ससुराल वालो ने जलाकर मार डाला क्योंकि लड़की का भाई एक आला अफसर होते हुए भी अयोग्य बहनोई को एक अदद सरकारी भी नहीं दिला पा  रहा था। लोभ के कारन , जीवन की समाप्ति के रूप में प्रेम विवाह का यह अंत हुआ।  शारीरिक रूप से वैवाहिक बेमलता  को इंगित करते हुए कहा जा सकता है कि जब पति और पत्नी लम्बाई – चौड़ाई , सुंदरता , शारीरिक विकलांगता एवं स्किन कलर में एक दूसरे से इतने भिन्न हो  उन्हें साथ देखना आँखों को स्वाभाविक न लगे। ऐसी स्थिति में दोनों को ही एक दूसरे के  साथ  सामाजिक रूप से उपस्थित होने में असुविधा , ग्लानि , लज्जा एवं हीनभावना का अनुभव होता है।  अन्तर्जातीय विवाह यद्यपि भारत में अन्तर्जातीय विवाह अभी प्रचलन का हिस्सा नहीं है तथापि यदा – कदा  देखा जा सकता है। यह भी सच है की यदि ऐसे विवाह होते भी हैं तो उसके मूल में प्रेम विवाह ही हुआ करते हैं। प्रारम्भ में प्रेम विवाह के रूप में ऐसे सम्बन्ध बना तो लिए जाते हैं किन्तु यथार्थ के धरातल पर पाँव  पड़ने पर निष्ठुर सत्य का सामना कर पाना सबके लिए सहज नहीं होता। परिणामतः आरोपों – प्रत्यारोपों से विवाद  प्रारम्भ होता  है तथा तलाक़ पर समाप्त।  भावुकता में अंतर  कहा जाता है की ‘ अति सर्वत्र वर्जते ‘ ऐसे में पति पत्नी दोनों में से कोई एक अति संवेदनशील है या अत्यंत भावुक है, तो भी स्थिति गंभीर हो सकती है। एक अत्यंत सैद्धांतिक तो दूसरा व्यापक रूप से व्यवहारिक , तब भी सामंजस्य कठिन हो जाता है।                                        पति पत्नी की आयु में व्यापक अंतर  भी बेमेल विवाह के प्रमुख आयामों में से एक है। यह अंतर दो आधारो पर सम्भव है। प्रथम तो वह जबकि स्त्री से पुरुष आयु में आवश्यकता से अधिक … Read more

आप के रिश्तों पर होता है आपके सोचने का असर

                                     हम सब चाहते हैं कि हमारे सभी रिश्ते अच्छे चले , चाहते न चाहते कुछ रिश्तों में खटास आ ही जाती है | कई बार उन रिश्तों को सँभालने की कोशिश भी करते हैं पर खाई बढती ही जाती है और एक दिन वो अजीज रिश्ता इतनी दूर हो जाता है कि  लाख कोशिश करके भी उसे पहले जैसा नहीं बनाया जा सकता | आप को ये जान कर आश्चर्य होगा कि रिश्तों में यह दूरी हमारे  लगातार उस रिश्ते के बारे में नकारात्मक सोचने के कारण आती है |  आप के रिश्तों पर होता है आपके सोचने का असर                                       एक बार एक महिला ने सुबह उठ कर बड़े प्यार से अपने पति के लिए नाश्ते में कई चीजे बनायीं | पति जो बहुत व्यस्त  रहते थे | जल्दी -जल्दी से उठे  नहाना धोना कर के नाश्ते की टेबल पर पहुंचे वहां अखबार के साथ जल्दी -जल्दी नाश्ता मुंह में ठूंस कर  बैग उठा ऑफिस जाने लगे | पत्नी जिसने बड़े प्यार से नाश्ता बनाया था  और प्रतीक्षा कर रही थी कि पति तारीफ़ के दो शब्द कहेंगे | पर पति ने कुछ नहीं कहा तो उसने ही आगे बढ़ कर पूँछ लिया , जरा उनका संवाद पर गौर करिए … पत्नी – “क्यों , नाश्ता कैसा बना था ?” पति :  ऊऊ … क्या बनाया था आज नाश्ते में ? पत्नी : लो , मैंने सुबह चार बजे उठ कर इतनी मेहनत कर के नाश्ता बनाया , कुछ कहना तो दूर आप को ये तक याद नहीं है कि क्या बना था , जबकि आप ने खा भी लिया |  पति : दिमाग पर जोर देते हुए बोला …. अच्छा अच्छा वो … हां ठीक बना था , पर मेरी माँ का ज्यादा अच्छा बनता है | कह कर पति तो चला गया और ऑफिस के काम में भूल गया पर पत्नी दिन भर बैठ कर वही सोचती रही ,  “मैंने इतनी मेहनत से बनाया उन्होंने देखा तक नहीं क्या बना है , तारीफ के दो शब्द भी नहीं कहे ऊपर से कहते हैं , माँ ज्यादा अच्छा बनाती हैं , तो जाएँ न वहीं खाएं , माँ के हाथ का पसंद है तो मुझसे क्यों  मेहनत करवाते हैं | मेरी इस घर में तो कोई कदर ही नहीं है |मैंने इनके लिए क्या -क्या नहीं किया | नौकरी छोड़ी , घर में नौकरानी बनी पर इनको तो मेरी कद्र ही नहीं | “ तभी उसकी बहन का फोन आ गया | उसने सारी बातें अपनी बहन को बतायी | उसकी बहन ने भी हाँ में हां मिलाई | अब तो उस स्त्री को पूरा विश्वास हो गया कि वो सही सोच रही थी | उसके पति को उसकी कदर नहीं है वह बस उसे घर में नौकरानी बना कर लाया है | काफी देर तक वो रोई उसने खाना भी नहीं खाया | शाम को जब उसका पति घर आया तब तक वो सारी  बात भूल चुका था , पर पत्नी का मूड ऑफ था | पति ने डिनर के समय पत्नी से पूंछा ,  ” क्या बात है , इतना मूड क्यों ऑफ़ है ? पत्नी गुस्से से फट पड़ी , ” अच्छा तो अब आप को पता ही नहीं कि मेरा मूड क्यों ऑफ़ है | क्या ये भी मुझे बताना पड़ेगा | मैंने तो आपके लिए नौकरी छोड़ी पर आप को सिर्फ अपनी नौकरी की कद्र है | मेरी तो कोई कद्र ही नहीं है | मैं तो बेकार हूं | झगडा शुरू हो गया , और दोनों बिना खाए सो गए | कई दिन तक बातचीत बंद रही | फिर घर गृहस्थी के कामों के कारण बातचीत तो शुरू हुई पर एक गाँठ तो पड़ ही गयी थी | ऐसी न जाने हम कितनी गांठे अपने रिश्तों में डालते रहते हैं  और अकेले होते चले जाते हैं | मित्रों , ये कहानी हमने ब्रह्म कुमारी शिवानी जी के प्रवचन से ली है | उपरी तौर पर इस कहानी में पति की गलती लगती है , हम कह सकते हैं कि उसे ऐसा नहीं बोलना चाहिए था , पर ये भी हो सकता  है कि जल्दी की वजह से उसे ध्यान ही न रहा हो कि उसने क्या खाया | क्या ये स्वाभाविक नहीं है | या फिर ये भी हो सकता है कि उसे अपनी माँ के हाथ की बनायीं वो डिश ज्यादा पसंद हो | तब तो उसने सच ही बोला |                         उसे ऐसे कहना चाहिए था या नहीं इस पर तर्क हो सकते हैं , फिर भी पति ने सिर्फ एक बात कही और पत्नी ने अपने खिलाफ पूरे दिन हजारों बातें कही | 1) मेरी मेहनत की तो किसी को कद्र ही नहीं है | 2)मुझे नौकरानी समझ रखा है | 3) मैंने उनके लिए क्या -क्या किया और उन्होंने ऐसे कहा … ऐसे 4) अगर मैं भी नौकरी कर रही होती तो मैं भी इनकी किसी प्यार भरी बात पर ध्यान न दे कर बदला ले लेती , पर मैं तो घर में हूँ , बेकार हूँ | 5) हमेशा माँ से मेरी तुलना करते रहते हैं … उन्हीं के  पास रहे …                                                                                         ये सारी  बातें एक कैसिट  की तरह रिवाइंड हो -हो कर उसके दिमाग में चलती रहीं |हजारों  बार खुद को कोसने से उसका स्वमान  कम हुआ | मित्रों , क्या ये हम सब के घर की कहानी नहीं है | तस्वीर पलट कर देखिये  अब तस्वीर का दूसरा रुख देखिये | वो महिला ऐसे भी सोच सकती थी |  1)मैंने अच्छा नाश्ता तैयार करके अपना प्यार दिखा दिया है | जरूरी नहीं वो तारीफ … Read more

रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे

रीता १२ वी क्लास में पड़ती है | उसी की एक रिश्तेदार  मिताली जिसके पिता नहीं थे, के घर में  बड़ी चोरी हो गयी | मिताली ने रीता से आर्थिक व् भावनात्मक मदद माँगी| रीता तैयार हो गयी | वो उसके साथ यहाँ-वहाँ  उसके रिश्तेदारों के घर गयी | समय  होने या न होने पर भी उसकी फोन कॉल्स उठा कर उसका दुखड़ा सुनती | उसे सांत्वना देती | उसके लिए नोट्स लिखती| रीता धीरे–धीरे अपनी पढ़ाई में पिछड़ने लगी | नतीजा रीता का १२ वी का रिजल्ट खराब हो गया | दुखी रीता ने जब मदद माँगी तो मिताली ने समयाभाव का बहाना कर दिया |                  रितेश का दोस्त भयंकर संकटों से घिरा था | रितेश हर समय उसकी मदद को तैयार रहता | वो हर समय उसके आँसू पोछने के लिए खड़ा रहता | उसके पूरे समय पर उसके दोस्त का कब्ज़ा हो गया | अपनी दोस्त की परेशानियाँ सुलझाते –सुलझाते रितेश इतना इमोशनली ड्रेन्ड  हो चुका होता की अपने परिवार की छोटी –मोटी समस्याओ में भावनात्मक सहारा न दे पता | लिहाज़ा उसकी पत्नी के साथ झगडे होने लगे | जब परिवार बिखरने लगा तो उसने उस भावनात्मक टूटन के दौर में अपने दोस्त से मदद मांगी | पर वह दाल में नमक से ज्यादा साथ कभी नहीं दे पाया|               मधु की पड़ोसन ३–३ घंटे उसे अपने पति की बेवफाई के किस्से सुनाती | मधु अपना काम रोक कर , कभी बच्चों का होम वर्क कराते से उठ कर उसकी बात सुनती | उसके बुलाते ही मधु चल देती लिहाजा कभी सब्जी जलती, कभी दूध उफनता| ऊपर से कभी फोन उठाने में देरी हो जाती या अपना कोई काम बता कर बाद में आने को कहती तो उसकी सहेली तरह –तरह के इलज़ाम लगाती “ भाई मेरी क्यों सुनोगी मैं तो पहले से ही दुखी हूँ, सह लूंगी | एक तरह से वो उसे अपना स्ट्रेस दूर करने के लिए पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल कर रही थी |                            ये सिर्फ तीन उदाहरण हैं पर अगर आप भी  जरूरत से ज्यादा  ईमानदार , समानुभूति पूर्ण , विश्वास पात्र और भरोसेमंद हैं और साथ ही किसी की समस्या से  पूरी वफादारी के साथ जुड़ कर सुनना पसंद करते हैं|  तो ऐसा कोई न कोई किस्सा आप का भी होगा |  मेरा भी कुछ ऐसा ही उदहारण था | ये तब समझ में आया जब एक कडवा अनुभव हुआ और बहुत कुछ हाथ से निकल गया | वो हाथ से निकली हुई चीज थी ….. मेरा समय जिसका मैं सदुप्रयोग कर सकती थी | मेरे पति व् बच्चों की खुशियाँ जो वो मेरे साथ बाँटना चाहते थे| मेरी सेल्फ रेस्पेक्ट जो बुरी तरह से कुचली जा चुकी थी | और तब मैंने बहुत पहले पढ़े हुए टोनी गेकिंस के इस वाक्य का अर्थ महसूस किया …  आप लोगों को  अपने द्वारा स्वीकृति देकर , रोक कर व् समर्थन करके सिखाते हैं की वो आप के साथ कैसा व्यवहार करे |  मुझे लगता था की दूसरों के प्रति जरूरत से बहुत ज्यादा नरम , विश्वासपात्र व् दयालु होकर मैं संतुष्टि का अनुभव कर रही हूँ | मुझे लगता था की दुनिया में सब लोग उतने ही अच्छे हैं जितना मैं सोचती हूँ | मुझे लगता था यही मेरा बेसिक स्वाभाव हैं | पर अफ़सोस परिणाम दुखद आये | मैंने असीम दर्द का अनुभव किया | मैंने महसूस किया की मेरी अपनी सेहत ,खुशियाँ व् जरूरतें पिछड़ रहीं हैं | दूसरों की जरूरतों को पूरा करने में अतिशय व्यस्त रहने के कारण मेरे पास अपने लिए समय ही नहीं रहा | मैंने महसूस किया की हर रिश्ते में परफेक्ट रहने का असंभव प्रयास करने के कारण मेरे पास हमेशा अपने लिए समय कम रहा | मैंने महसूस किया की मेरे परफेक्ट स्वाभाव को जान कर लोगों ने मुझे १०० % समय  की उम्मीद की| वो मुझसे कभी ९९ % आर संतुष्ट नहीं हुए | जबकि वो खुद उन्ही परिस्तिथियों में मुझे २ % तक नहीं दे पाए| यह सबसे पीड़ा दायक था की हर रिश्ते को बचाने के लिए मैंने जान से ज्यादा प्रयास किया | पर जब मेरे प्रयासों में कमी हुई और उन्हें लगा की हमारा रिश्ता टूट रहा है तो उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं किया | उन्हें हमारे रिश्ते की कदर नहीं थी |   रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे ?                                                       अगर आप भी इस पीड़ा दायक अनुभव से गुज़रे हैं तो आप के सामने भी यह प्रश्न खड़ा हुआ होगा की  दूसरों की मदद करनी चाहिए पर किसकी और कितनी ? यही वो समय है जब आप महसूस करते हैं की आप को अपनी उर्जा हर समय ,हर किसी के लिए नहीं बल्कि सही जगह पर खर्च करनी चाहिए | आप को भी अपनी सीमाएं निर्धारित करनी चाहिए | सीमाएं निर्धारित करने के फायदें  जिस जीवन शैली को आप जी रहे होते हैं उसे अचानक से  बदलना  बहुत मुश्किल होता है | पर जब आप मन कड़ा  कर लेते हैं तो थोड़ी परेशानियों  के बाद आप पाते हैं की …………        अब आप की उर्जा उन पर खर्च नहीं हो रही है जो सिर्फ आपका फायदा उठाना चाहते हैं | वो  सुरक्षित हैं आप के लिए , जिससे आप ज्यादा वाइब्रेंट , खुश , सेहतमंद , उर्जावान महसूस कर सकते हैं | ·      आप के पास समय है  आप के परिवार के लिए , और उन सब के लिए जो आप को       वास्तव में प्यार करते हैं |  जो आपको खुश देखना चाहते हैं आपके प्रति केयरिंग , व्       मदद गार हैं | ·         आप पाते हैं की आप जैसे –जैसे सीमाएं निर्धारित करना सीखने लगते हैं आप  अपना       काम ज्यादा कौशल से कर पाते हैं | ·         आप दूसरों को आप से ज्यादा इज्ज़त से पेश आने को विवश करते हैं | ·         आप ना कहना सीखते हैं | ·         आप … Read more

वैवाहिक जीवन कैसे सुखी हो ?

वैवाहिक जीवन को सुखद बनाने मे कुछ तथ्यो का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। आपसी सूझबूझ व प्रेम से दामपत्य जीवन को खुशहाल बनाया जा सकता है।  सुखी वैवाहिक जीवन  कैसे प्राप्त करें ? कहते है शादी दो जिस्मो का नही दो आत्माओ का मिलन होता है जो परमात्मा के द्धारा भाग्य से विवाह पूर्व ही तय हो जाता है, और यूं कहे धरती पर आकर मिलन हो जाता है।परन्तु आज के प्रगतिशील युग मे जब स्त्री व पुरूष दोनो ही पढे लिखे, समझदार व जागरूक होते है कामकाजी होने के साथ साथ अपने अधिकारो के प्रति भी सजग व पूर्णतः युवा होते है। फिर भी कभी कभी विचारो मे तालमेल बैढाने मे थोडा टकराव होना स्वाभाविक है।  वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने मे कुछ गलतियो से सबक लेकर व सहनशीलता का परिचय देकर सुखी बनाया जा सकता है। कुछ तथ्य है जो वेवाहिक जीवन को किसी ना किसी रूप मे प्रभावी बनते है।  उमर का प्रभाव— कहते हैफूल की कली नाजुक होती है, गुलदस्ते मे सजाते समय जैसे चाहो मोड लो, उसी प्रकार कच्ची  उमर की लडकी को अपने परिवार मे अपने संस्कारो मे ढाला जा सकता है किन्तु आजकल पढाई पूरी करते करते व नौकरी की सैटलमैन्ट करते करते कच्ची उमर पीछे छूट जाती है। पति की उमर यदि पत्नी से ज्यादा है तो वह अनुभवी होने के कारण पत्नी के बचपने को सम्भाल लेता है व अपनी राय देकर उसे संतुष्ट कर लेता है। इसके विपरित यदि पत्नी की उमर ज्यादा हो तो वो अपने पति को कम आंकती है, स्वयं को ज्यादा समझदार मान  पति की भावनाओ को ढेस पहुंचा देती है।  पित्रसत्तात्मक  परिवार होने के कारण,सरनेम पति का होता है किन्तु आजकल पेनकार्ड बन जाने से सरनेम पीछे लगाने की मजबूरी हो जाती है स्त्री की।  पहली नजर का प्यार_____ किसी भी स्त्री या पुरूष को पसन्द आने वाला जीवनसाथी की पहली नजर के प्यार की बात ही कुछ और है, इसीलिये आजकल सगाई होते ही दोनो आपस मे मिलना शुरू कर देते है।आपसी विचारो का लेनदेन रिशते को मजबूत बनानेमे सकारात्मक भूमिका अदा करते है। आपसी प्यार व समझ हावी हो जाती हैएक दूसरे पर। कभी कभी वो दोनो अपनी आभासी दुनिया मे इस कदर खो जाते हे कि परिवार मे अन्य सदस्यो की भावनाएं गौण होकर रह जाती है।  उचित कद काठी_____ एक दूसरे से मिलकर अपनी जोडी सबसे सुन्दर हो, इस तरफ ज्यादा ध्यान हो जाता है। विवाह मे भी सब कहने लगते है :क्या जोडी है? इस उपमा से भी दोनो खुशी से अभिभूत होने लगते है।  पढ़िए – रीतू गुलाटी की लघुकथाएं सलीकेदार व्यकितत्व______ स्त्री के सलीकेदार होने से पुरूष का भी सम्मान बढता है। स्त्री का स्वयं को ढंग से सजाकर रखना भी एक कला है,, बिखरे बाल, फटे वस्त्र पहन कर रहना आकारण हंसना व बै सिर पैरकी बाते करना फूहढता की निशानी है। स्त्री का व्यकितत्व मंहगे कपडो मे नही है, उसकी बातचीत का लहजा इतना सरल व स्पष्ट हो कि देखने वाला दांतो तले अंगूली दबाये। पुरूष का स्वभाव भी मीठा व नम्र हो। ससुराल वालो को आदर दे।  संस्कारो पूर्ण व्यकित सभी के मन को भाता ह वो चाहे स्त्री हो या पुरूष। धर्म से जुडना ही संकारो से जुडना है। अच्छे संस्कार वाली लडकी ईशवर भय से पति का सम्मान करेगी। सीता सावित्री मे श्रद्धा रखने वाली पति का मंगल ही सोचेगी। स्वयं तो पूजा पाठ करेगी अन्य सदस्यो  को भी पूजा पाठ से जोडेगी। किन्तु आजकल नौकरी परजाने की जल्दी मे ये सब छूट रहा है।  मितव्यता_____ आजकल मंहगाई चरम सीमा पर है। स्त्री पुरूष को  मितव्यता की आदत होगी तो वे बचत ज्यादा कर पायेगे। व खुश भी रह पायेगे। कयोकि आज के समयमे सुख सुविधाओ के चलते बाजार ऐसी क ई चीजो से भरा पडा है जिनके बिना भी घर चल सकता है। औरत कम खर्च करने वाली होगी तभी बचत कर घर चला पायेगी।  सहनशीलता______ सबसे महत्वपूर्णहै सहनशीलता का गुण।  वैवाहिक सम्बन्धो की मधुरता की पहली नींव सहनशीलता पर टिकी है। पुरूष को कितना भी गुस्सा आ रहा हो स्त्री चुप रहे तो पुरूष सामान्य हो जाता है। चुप रह करस्त्री मुस्कुराते हुऐ सहनशीलता का परिचय दे तो पुरूष भी उसकी ओर खिंचा चला आता है और उसकी नजरो मेआदर भीबढ जाता है। समझदार व सहनशील बहू परिवार की आंखो का तारा बन जाती है। पति का प्यार व ससुराल वालो का आदर पाकर औरत खुद तो खुशहाल बनती है परिवार मे खुशहाली का वातावरण बनाकर घर को स्वर्ग बना देती है।  आज की आपाधापी जीवन मे ये चिन्तन का विषय है कि हम अपने दामपत्य जीवन को कैसी सुखी बनाएं।  आओ विचार करे?? रीतू गुलाटी                                          यह भी पढ़ें … खराब होते रिश्ते -बेटी को बनना होगा जिम्मेदार बहु बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं कहीं हम ही तो अपने बच्चों के लिए समस्या नहीं          आपको  कहानी  “ वैवाहिक जीवन कैसे सुखी हो ?“ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |                         

ख़राब होते रिश्ते -बेटी को बनना होगा जिम्मेदार बहु

कहते  कहते हैं बेटियां दो कुल की शान होती है। हर माता पिता की ये इच्छा होती है उनकी बेटी खुश रहे। इसी लिये हर माता अपनी हैसियत से बढकर बेटी की शादी करता है किन्तु फिर भी कई बार बेटी अपनए ससुराल मे खुश नही रह पाती ये एक चिन्तन का विषय है। कई कारण हो जाते है जिनकी ओर हमारा ध्यान भी नही जा पाता। ख़राब होते रिश्ते -बहुओं को हो जिम्मेदारी का अहसास  अलग परिवेश व अलग सोच की लडकी अपने ससुराल के देवर जेठ ननद व सास ससुर को दिल से नही अपना पाती। कही हुई सही बात भी उसे बुरी लग जाती है। धैर्य के अभाव मे अपनी अकड मरोड के चलते वो भूल जाती है कि उसे ससुराल मे एडजेस्ट होना है।  बाहर से आयी लडकी सबको अपने हिसाब से नही चला पाती। कितनी बार ससुराल की छोटी छोटी बातो मे मिल मेख निकाल कर ससुराल की चुगली मायके वालो से कर रसास्वादन तो कर लेती है,,, किन्तु वो भूल जाती है रहना तो उसे ससुराल मे ही है। इस तरह वो जल मे रह कर मगर से बैर वाली कहावत को चरितार्थ कर देती है।  मायके संग प्रेम मे वो भूल जाती है कि .परिणाम क्या होगा। उधर आये दिन समधियो की बुराई सुन सुन कर नफरत का ऐसा पुल बन जाता है जिसे पार कर पाना कढिन हो जाता है। दोनो परिवारो मे मूक जंग सी छिड जाती है। बरसो कि पूंजी ऐसी बहू के हाथ मे देने हेतू सास ससुर कतराने लगते है। असुरक्षा की भावना घर कर जाती है,,, ना चाहते हुऐ भी बेटे को अपमानित होना पढता है,, मां व पत्नी के बीच की खाई बढने लगती है। दोनो को न्याय मिले इस बात का बुरा असर बेटे को सहना पढता है।  ख़राब होते रिश्ते -मायका नहीं अब ससुराल है बेटी का घर  कई बार देखने मे आता है लडके वाले शरीफ हो,, कोई मांग ना भी करे तो भी शातिर वधू पक्ष उन्हे फंसाने कि कोशिश करते है। अकारण वर पक्ष को अपमानित करते है तो खामियाजा भी उन्ही की बेटी को ही भुगतना पढता है। समय समय पर घर पर उत्सव अथवा विवाह समारोह मे शामिल न होने पर आपस मे तनातनी का मौहोल हो जाता है। खर्चा होगा वधू पक्ष का ये मान बेटी अपने मायके वालो को रोक लेती है। सामाजिक उपेक्षा के भय से वर पक्ष नाराज हो जाता है इस बात का गहरा असर भी बहू पर पड़ता है। सास बहू के रिशतो मे खटास आना लाजिमी हो जाता है।                बहू चाहे तो अपने मायके मे ससुराल पक्ष का सम्मान बढाये,, अपनी मीठी मीठी बातो से ससुराल वालो का दिल जीत सकती है। कहते है अति हमेशा बुरी होती है। ज्यादा से ज्यादा मायके के चक्कर लगाना, मायके के हर काम मे अपनी उपस्थति दर्ज कराना कंहा उचित है। ससुरालपक्ष को हर काम मे मना करना व मायके पंहुच जाना ससुराल पक्ष से सहन नही हो पाता। अधिकारो के नाम पर सक्षक्त नारी ये भी भूल जाती है कि उसका पहला हक कहाँ बनता है? ख़राब होते रिश्ते- आखिर क्यों टूट रहे हैं परिवार   ये चिन्तन का विषय है कि आज परिवार क्यो टूट रहे है? पहले जहां संयुक्त परिवार मे पांच पांच बहूऐ एक ही चौके मे काम करती थी आज एक बहू भी नही टिक पाती। माना आजादी सबको प्यारी है किन्तु सीमा मे रहकर बडो के मान सम्मान को ध्यान मे रख करघर गृहस्थी को सुखद बनाया जा सकता है। एक बहू, एक नारी अपने अच्छे कायो से माता पिता व सास ससुर दोनो को संतुष्ट रखकर विवाह जैसे धामिक कर्म को संपूर्णता प्रदान कर समाज मे एक अच्छी मिसाल कायम की जा सकती है।।। रीतू गुलाटी  यह भी पढ़ें …  बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं कहीं हम ही तो अपने बच्चों के लिए समस्या नहीं आपको आपको  लेख “ख़राब होते रिश्ते -बेटी को बनना होगा जिम्मेदार बहु    “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords:women issues,indian women,  relationships, family joint family

असफल रिश्ते – लडकियाँ जीवन साथी चुनते समय ध्यान रखे ये 7 बातें

 नाजुक , नादान और बेंतहा खूबसूरत सी  रोली एक मेडिकल स्टूडेंट थीं  | कुछ ही समय में उसकी MBBS की डिग्री कम्प्लीट होने वाली थी  | जैसा की आम भारतीय समाज में होता है | माता – पिता उसके लिए सुयोग्य वर खोजने लगे |आम माता –पिता की तरह वो भी टूटती शादियों से अनजान नहीं थे |   माता –पिता जानते थे की रोली पढ़ी – लिखी शिक्षित लड़की है | इसलिए उन्होंने प्रयास किया की जिन लड़कों को उन्होंने पसंद किया है | रोली उनसे कई बार मिले , बातचीत करे व् तब किसी निर्णय पर पहुंचे | आधुनिक समय में इसे डेटिंग भी कहते हैं | रोली ने उनमें से एक लड़के निशांत  से मिलने का फैसला किया | निशांत IIM  पास आउट , देखने में सुन्दर , बातचीत में सभ्य लगा | रोली को वो पहली नज़र में  ही पसंद आ गया | उसने माता – पिता से निशांत के साथ रिश्ते के लिए हाँ कह दिया | उसके बाद वो लोग कई बार मिले पर एक दूसरे के आकर्षण में एक कदर बंधे रहे की आपस की कॉम्पेटिबिलिटी जांचने की कोई जरूरत ही नहीं समझी |                    शादी के बाद रोली को निशांत का एक अलग ही रूप नज़र आया | वो रूप जिससे वो बिलकुल अनभिग्य थी | रोज – रोज के झगडे कलह से जीवन दूभर हो रहा था | जैसा कि हमेशा से होता है समाज सारा दोष रोली के सर पर डाल रहा था | अरे , शादी से पहले इतनी बार मिलने का मौका दिया | तब क्यों नहीं देखा | अब सब दोष क्यों दिखाई दे रहे हैं | एक खूबसूरत रिश्ता जिसे “अटूट बंधन” बनना था कुछ समय रोते घिसटते चला और अंत में टूट गया |                               ये कहानी सिर्फ रोली की नहीं है | आज माता – पिता जहाँ बच्चों को शादी से पहले एक दूसरे को जानने समझने का मौका दे रहे हैं | फिर भी बच्चे उस समय केवल रूप , आकर्षण , पैसे , हास्य बोध के जाल में इस तरह उलझे रहते हैं की वो आपसी साझेदारी के बारे में नहीं सोंचते | बेहतर हो कि वो उस समय आपसी compatibility   जांच ले | फिर शादी का फैसला लें   लडकियाँ जीवन साथी चुनते समय ध्यान रखे ये 7 बातें                                                      आज से  १५ , २० साल पहले की बात थी की माता – पिता अपने बच्चों के लिए जीवन साथी खोजते थे | इसके लिए बाकायदा वो मामा , चाचा , मौसा को साथ ले जाते थे | लड़के वाले देखने आते थे | और लडकियां दिखाई जाती थीं | लडकियाँ  दिखाना एक बहुत बड़ा कार्यक्रम होता था | सजे धजे घर के बीच में ढेरों नाश्तों से लड़के वालों का स्वागत करते हुए  लड़की वाले अपनी लड़की को चाय की ट्रे के साथ बुलाते थे | लडकियां सकुचाती शर्माती सी आती | उन्हें अपने से पूंछे जाने वाले प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देना होता था | वो जमाना था जब शादियों में लड़केवालों की पसंद अहम् होती थी | लड़कियों को बोलने का अधिकार नहीं था | उनकी पसंद –नापसंद के स्थान पर उन्हें बस परिवार की पसंद पर मोहर लगानी होती थी | लड़के बोल सकते थे … पर कितना ?निर्णय वहां भी परिवार का होता था |                           जमाना बदला | आज विवाह का अर्थ केवल एक साथी नहीं जिसके साथ जीवन काटना है | आज विवाह का अर्थ है दो लोग मिलकर जीवन को बहुत खूबसूरत बनाये | उनमें मानसिक व् वैचारिक स्तर पर भी सामनता हो | लड़कियों की बढती शिक्षा व् आत्मनिर्भरता के साथ के साथ दोनों के बीच में ये समानता मिलाना बहुत जरूरी हो गया है | इसीलिए आज न सिर्फ लड़कों वरन लड़कियों की पसंद को भी तवज्जो दी जा रही हैं | माता – पिता की कोशिश रहती है की लड़का /लड़की आपस में बात चीत करें , एक दूसरे को समझें व् अगर उनमें compatibility हैं तभी marriage के लिए आगे बढें |                         इतना सब कुछ होने के बाद भी आज विवाह ज्यादा टूट रहे हैं | टूटने वाले विवाहों में arranged marriage ही नहीं कई love marriage भी हैं | इसका कारण ये हैं जब प्रेम सम्बन्ध चल रहा होता है या जब माता – पिता शादी से पहले मुलाक़ात करने को कहते हैं तो लड़का / लड़की केवल बाहरी सौन्दर्य में उलझे रहते हैं | ज्यादा से ज्यादा समय अच्छा दिखने में लगा देते हैं | और स्वयं भी दूसरे की personality, looks, height, colour या salary package के जाल में इतना उलझे रहते हैं की इसी को जीवन साथी बनाने का आधार बना लेते हैं | लेकिन जीवन की खुशियाँ केवल रूप , रंग , पैकेज से नहीं आती है | ये तो एक दूसरे को बेहतर तरीके से समझने से आती हैं | अगर आप भी जीवन साथी की तालाश में डेटिंग कर रहे हैं तो आप को कुछ ख़ास बातों को चेक करना पड़ेगा | जिससे आगे आप दोनों में compatibility issuses न आये |आप दोनों एक दूसरे का पूरी तरह से साथ दें | आप का आगे का जीवन प्यारके खुश नुमा अहसास से भरा हो | 1)       वो दूसरी महिलाओं के प्रति कैसा व्यवहार रखता है                                                     कई  भी पुरुष महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है ये जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि देर सवेर वो आपके साथ भी वैसा ही बर्ताव करेगा | भले ही आज वो आप पर अपना बेस्ट इम्प्रेशन डालने के लिए बहुत अच्छे से बात कर रहा हो पर कल को वो अवश्य बदलेगा | क्योंकि किसी भी इंसान का बेसिक नेचर कभी नहीं बदलता है | महिलाओं के प्रति उसके व्यवहार को आप तीन … Read more

ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की होती है भूल

कितना आसान होता है गलत को गलत कहना और सही को सही कहना | पर ऐसा हमेशा होता नहीं है | मानव मन न जाने कितनी गुत्थियों में उलझा है | ऐसा ही दृश्य कई बार ऐब्युसिव रिश्तों में लोंगों के न सिर्फ टिके रहने में बल्कि अपने ऐब्युजर को प्यार करने में दिखाई देता है | आश्चर्य होता है की हमें कोई जरा सी बुरी बात कह दे तो हम उससे पलट कर कई दिन तक बात नहीं करते | पर सालों-साल कोई किसी रिश्ते में अपमान , दुर्व्यवहार और अकेला कर दिए जाने का शोषण झेलता रहे और इसे प्यार समझता रहे | सवाल उठता है आखिर क्यों ?  ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की तान्या की कहानी  Why I Love my abuser  तान्या पार्टी के लिए तैयार हो रही थी | सौरभ से शादी के बाद उसकी पहली पार्टी थी | और जैसा कि हमेशा होता है, नयी शादी के बाद सजने संवारने का उत्साह जायदा होता है | तान्या ने अपना मेक अप बॉक्स उठाया | बड़ी बहन से बहुत प्यार से गिफ्ट किया था | मैचिंग लिपस्टिक, बिंदी, काजल, ऑय लाइनर और न जाने क्या-क्या | ओह थैंक्स दीदी, मेरी लाइफ को खूबसूरत बनाने की तुम्हारी इस कोशिश के लिए… मन ही मन बुदबुदाते हुए तान्या ने पर्पल लिपस्टिक उठा ली | और भरने लगी अपने होंठों पर रंग | उसके होठों पर बहुत फब रही थी  | तभी सौरभ ने कमरे में प्रवेश  किया | तान्या ने तारीफ़ की आशा से सौरभ की ओर देखा | उसे देखते ही सौरभ ने मुँह  बिचकाते हुए कहा ,“ये क्या चमकीली बन के जा रही हो | हतप्रभ सी रह गयी तान्या, फिर भी बात को सामान्य करने के उद्देश्य से उसने कहा ,“मेरी सभी सहेलियां लगाती हैं सौरभ, इसमें गलत क्या है? “गलत ये है की तुम्हारे पति को पसंद नहीं है | इसलिए तुम लिपस्टिक नहीं लगाओगी| तान्या एक क्षण सकते में आ गयी | फिर उसने मन ही मन सोंचा ,“ हिम्मत कर तान्या, हिम्मत कर, मायके में सभी कहते थे कि पति पत्नी की पसंद नापसंद में थोडा बहुत अन्तर होता है | पर अपनी पसंद बिलकुल त्याग मत देना | एक दूसरे की पसंद को स्वीकार करने की आदत यहीं से पड़ती है |  खुद को समझा कर तान्या  ने सौरभ को मुस्कुरा कर देखा और दूसरे कमरे में चली गयी और अपनी चोटी में क्लिप लगाने लगी | तभी सौरभ वहां आ गया | उसे बांहों में भर कर अपने होठ से उसके होंठ बुरी तरह रगड़ने लगा | इससे पहले की तान्या कुछ समझ पाती सौरभ उसकी सारी लिपस्टिक चट कर चुका था | फिर शातिर मुस्कान से बोला ,“ पति हूँ तुम्हारा| तुम्हारे इन रसीले होंठों पर सिर्फ मेरा हक़ है | घायल होंठ और घायल आत्मा के साथ उस पार्टी की रंगीन शाम के साथ ही तान्या की हर शाम बदरंग हो गयी | उस शाम के बाद से घबराई, डरी, सहमी सी तान्या को सौरभ रोज पति का हक़ और पति की इच्छा ही एक स्त्री जीवन को सार्थक करता है, का पाठ पढाता | तान्या हर संभव प्रयास करती उसे समझने का |  धीरे – धीरे तान्या बदलती जा रही थी | वो वही बनती जा रही थी जो सौरभ चाहते थे | पढ़ी-लिखी अपना कैरियर बनाने की इच्छा रखने वाली तान्या को नौकरी तो दूर, कितना हँसना है, कितना बोलना है, किससे बोलना है, कैसे कपड़े पहनने हैं, कैसे ब्लाउज, कैसी चप्पल, कैसी चोटी, सब कुछ सौरभ का निर्णय होता | औरतों के लिए पति ही सबकुछ है इसलिए उसे यह निर्णय मानने ही उचित लगते |  अम्मा ने भी तो यही पाठ पढ़ा कर भेजा था ,“बिटिया लोनी मिटटी बन कर रहना |” पर क्यों उसे लगता वह ताबूत में है? जहाँ उसे मुट्ठी भर दानों व् समाज की स्वीकार्यता के लिए सब कुछ सहना है | फिर उसे इतनी बेचैनी क्यों? कभी इन बेचानियों को वो बर्दाश्त कर लेती, तो कभी – कभी अन्दर का दवाब लावा बन कर बहने लगता | वो सौरभ से कहती, “सौरभ ये सही नहीं है| मैं बहुत घुटन महसूस कर रही हूँ, मैं ये नहीं कर पाउंगी | तब सौरभ उसे और कुसंस्कारी अशालीन औरत के अलंकारों से नवाज़ देते और घबरा कर वह स्वयं उसी ताबूत में में घुस जाती मुट्ठी भर दानों के साथ |  तान्या ये जानती थी कि वो उस व्यक्ति से प्यार कर रही है जो प्यार के नाम पर उसका शोषण करता है| प्यार कभी भी कंडिशनल नहीं होता | वो इस शोषण वाले रिश्ते से निकलने की कोशिश करती तो उसे लगता वो सौरभ के उस प्यार को हमेशा के लिए खो देगी जो उसके दुर्व्यवहार किताप्ती रेत में कभी – कभी बेमौसम बरसता | लेकिन कभी उसे लगता की प्यार का मूल रूप ही शोषण है | उसे प्यार नाम से ही नफरत होती | धीरे – धीरे वो अपने में सिमटती चली  जा रही थी | उसने हार कर अपनी समस्या अपनी सहेली को बतायी | उसने गंभीरता से सुना और बोली, “तान्या इसका हल ये है कि तुम खुद से प्यार करो”| तुमने  सौरभ को ये हक़ दे दिया है की वो तुम्हे उपयोगी या अनुपयोगी करार दे | तुम्हाती वर्थ सौरभ के द्वारा तुम्हें स्वीकारते जाने में नहीं है | वो प्यार करे न करे जब तक तुम खुद को प्यार नहीं करोगी , खुद को नहीं स्वीकारोगी तब तक सौरभ तुम्हारा ऐसे ही शोषण करता रहेगा |  वो दिन तान्या के लिए सबसे बड़ा निराशा का दिन था |वो तो इतना सब कुछ होने के बाद भी सौरभ से प्यार करती है | फिर खुद से प्यार |  तान्या समझ ही नहीं पायी कि उसका ये खुद क्या है जिसे उसको प्यार करना | वो अतीत की तान्या जिसे वो रगड़ – रगड़ कर मिटा चुकी है | जिसके जख्म उसके शरीर पर हैं पर जिसकी कोइ पहचान  बाकी नहीं है |  या वो तान्या जो सौरभ के ताबूत में बंद है | जिसे सौरभ ने रचा है | हर दिन छेनी हथौड़े से तराश – तराश कर | घायल –चोटिल … Read more

जाने -अनजाने मत बनिए टॉक्सिक पेरेंट

                        मुझे पता है आप इस लेख के शीर्षक को पढ़ते ही नकार देंगे | पेरेंट्स वो भी टॉक्सिक ? ये तो असंभव है | जो माता –पिता अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं | उनके लिए पैसे कमातें हैं , घर में  सारा समय देखभाल करते हुए बिताते हैं वो भला  टॉक्सिक कैसे हो सकते हैं | आप का सोचना भी गलत नहीं है | पर दुखद सत्य यह है की कई बार माता –पिता न चाहते हुए अपने बच्चों  के टॉक्सिक पेरेंट्स बन जाते हैं | जो न सिर्फ अपने ही हाथों से अपने बच्चों का बचपन छीन लेते हैं अपितु व्यस्क  के रूप में भी उन्हें एक अन्धकार से भरे मार्ग पर धकेल देते हैं | अगर आप भी जाने अनजाने टॉक्सिक पेरेंट्स बन गए हैं तो अभी भी समय है अपने आप को बदल लें ताकि आप की बगिया के फूल आप के बच्चे जीवन भर मुस्कुराते रहे | आप टॉक्सिक पेरेंट हो या न हों पर अपने व्यवहार पर गौर करिए | यहाँ कुछ लक्षण दिए जा रहे हैं | अगर उनमें से कुछ लक्षण आप से मिलते हैं तो निश्चित जानिये की आप  के बच्चे आपके साथ अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं | इतना ही नहीं वो बड़े होकर एक संतुलित व्यस्क भी नहीं बन पायेंगे |  बहुत द्रढ  या टफ पेरेंट                आज्ञाकारी बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते | पर उन्हें आज्ञाकारी बनाने की जगह रोबोट मत बनाइये | मेरी ना का मतलब ना है के जुमले को बार –बार इस्तेमाल मत करिए | जीवन एक नदी की तरह है | कई बार यहाँ रास्तों को काटना होता है , कई बार धारा  को मोड़ लेना होता है|  अपने ही नियम चलाने वाले माता –पिता को लगता है उन्हें बच्चों से ज्यादा पता है तो बच्चों को उनकी बात माननी ही चाहिए | पर कई बार इसका उल्टा असर पड़ता है | बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं होता | वो बात –बात पर दूसरों का मुँह देखते हैं | और जीवन के संग्राम में अनिर्णय की स्तिथि में रह कर असफल होते हैं | जरूरत से ज्यादा आलोचक पेरेंट्स                 ऐसे कोई माता –पिता नहीं होते जो कभी न कभी अपने बच्चे की आलोचना न करते हो | कबीर के दोहे “ भीतर हाथ संभार  दे बाहर  बाहे चोट “ की तर्ज़ पर बच्चों को दुनियादारी सिखाने के लिए यह जरूरी भी है | परन्तु यहाँ बात हो रही है जरूरत से ज्यादा आलोचक .. जैसे तुमसे तो ये काम हो ही नहीं सकता | ये बेड शीट बिछाई है , कवर ऐसे चढाते हैं आदि बात -बात पर कहने वाले माता –पिता यह सोचते हैं की वो बच्चों को ऐसा इसलिए कहते हैं ताकि बड़े होने पर वो कोई गलती न करें |पर उनका यह व्यवहार बच्चे के अन्दर अपने कामों के प्रति एक आंतरिक आलोचक उत्पन्न कर देता है जो बड़ा होने पर उन्हें अशक्त व्यस्क में  बदल देता है |  बच्चों का जरूरत से ज्यादा ध्यान चाहने वाले पेरेंट्स                  कौन माता –पिता नहीं चाहते की बच्चे उनका ध्यान रखे | पर बच्चा हर समय आप में ही लगा रहे ये उसके साथ ज्यादती है |ऐसे पेरेंट्स अक्सर ,”अरे कहाँ अकेले खेल रहे हो , हमारी याद नहीं आ रही , हमारी आँखों के सामने रहते हो तभी तसल्ली मिलती है आदि वाक्यों का प्रयोग करते हैं |  ऐसा अक्सर वो माता –पिता करते हैं जिनके अपने जीवन में कोई कमी होती है | अब वो अपने को बच्चे की नज़रों में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए उसे बिलकुल भी स्पेस नहीं देना चाहते | जिन्होंने फागुन फिल्म देखी  होगी उन्हें उसमें वहीदा रहमान द्वारा  अभिनीत पात्र अवश्य याद आ गया होगा | याद रखिये बच्चा एक स्वतंत्र जीव है उसे अपना पेरासाइट न बनाइये | अगर वो हर समय आप में उलझा रहेगा तो बाहर निकल कर सीखने के अनेकों अवसरों को खो देगा | बच्चों को ताने देने वाले पेरेंट्स                हर बच्चा एक अपने आप में अनमोल है | वो एक विशेष प्रतिभा ले कर आता है | हो सकता है आप ने उसके लिए जो सोचा  है उसमें उसका मन न लगता हो | जैसे नेहा का मन नृत्य में लगता था | टी वी में जैसे ही कोई डांस का प्रोग्राम आता नेहा दौड़ कर आ जाती | स्टेप्स देख-देख कर नाचने का अभ्यास करती | पर उसके माता –पिता की नज़र में यह एक गंदी चीज थी | वो उसे घर में और बाहर वालों के सामने ताना देते ,” पढ़ती लिखती तो है नहीं,  नचनिया बनेगी | नेहा अपमानित महसूस करती | राहुल अच्छी पेंटिंग करता पर माता –पिता ताने देते , ‘पेंटिंग से क्या होता है , रोटी  थोड़ी न मिलेगी , बड़े हो कर रिक्शा चलायोगे |या अपने ही बच्चों  के हाईट वेट को ले कर उपहास उड़ाते है … आओ मोटू आओ , मेरी कल्लो को कौन बयाहेगा , दुनिया के सब बच्चे बढ़ गए पर तुम्हारी तो गाडी आगे खिसक ही नहीं रही है | यह व्यवहार बच्चे  का अपने प्रति  दृष्टिकोण बहुत खराब कर देता है | उसका आत्म विश्वास खो जाता है | अगर कुछ कर सकते हैं तो करें अन्यथा जैसा उसे ईश्वर ने बनाया है उसे पूरे दिल से स्वीकारें |   बड़े हो चुके बच्चों को डराने – धमकाने वाले पेरेंट्स            पुरानी कहावत है जब पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे बेटा नहीं दोस्त समझना चाहिए | पर जो पेरेंट्स बच्चों को अपनी संपत्ति समझते हैं वो बड़े पर भी बच्चों को डराना धमकाना जारी रखते है | वो समझतें हैं की बच्चे चुपचाप उनका यह व्यवहार सह लें  तभी यह सिद्ध होगा की वो उनसे प्यार करते हैं | कई बार इस तरह की शारीरिक व् भावनात्मक शोषण के भय से बच्चे उनकी बात मानते भी हैं | पर यह व्यवहार बड़े होने के बाद भी बच्चों का मनोविज्ञान पूरी तरह से नकारात्मक कर देता है | बच्चों को काबू में रखने के लिए उनमें गिल्ट भरने वाले पेरेंट्स                         दुनिया का हर चौथा बच्चा कोई न कोई गिल्ट पाले … Read more