संन्यास नहीं, रिश्तों का साथ निभाते हुए बने अध्यात्मिक
अध्यात्म का अर्थ ये नहीं है की हमने सारे रिश्ते – नाते छोड़ कर कमंडल और चिंता उठा कर संन्यास ले लिया है | वस्तुत : अध्यात्म आत्मिक उन्नति की एक अवस्था है जो सब के साथ , सबके बीच रहते हुए भी पायी जा सकती है | पर हमने ही उन्हें दो अलग – अलग घेरों में रख रखा है | इस बात समझना सहज तो है पर इन घेरों को तोड़ने के लिए एक यात्रा अंतर्मन की करनी पड़ेगी | ताकि अध्यात्म के मूल भूत सिद्धांतों को समझा जा सके | अध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्य नहीं है संन्यास आज इस विषय पर लिखने का कारण मधु आंटी हैं | वो अचानक रास्ते में मिल गयीं | मधु आंटी को देखकर बरसों पहले की स्मृतियाँ आज ताज़ा हो गयी | बचपन में वो मुझे किसी रिश्तेदार के यहाँ फंक्शन में मिली थी | दुबला –पतला जर्जर शरीर , पीला पड़ा चेहरा , और अन्दर धंसी आँखे कहीं न कहीं ये चुगली कर रही थी की वह ठीक से खाती –पीती नहीं हैं | मैं तो बच्ची थी कुछ पूँछ नहीं सकती थी | पर न जाने क्यों उस दर्द को जानने की इच्छा हो रही थी | इसीलिए पास ही बैठी रही | आने –जाने वाले पूंछते ,’अब कैसी हो ? जवाब में वो मात्र मुस्कुरा देती | पर हर मुसकुराहट के साथ दर्द की एक लकीर जो चेहरे पर उभरती वो छुपाये न छुपती | तभी खाना खाने का समय हो गया | जब मेरी रिश्तेदार उन को खाना खाने के लिए बुलाने आई तो उन्होंने कहा उनका व्रत है | इस पर मेजबान रिश्तेदार बोली ,” कर लो चाहे जितने व्रत वो नहीं आने वाला | “ मैं चुपचाप मधु आंटी के चेहरे को देखती रही | विषाद के भावों में डूबती उतराती रही | लौटते समय माँ से पूंछा | तब माँ ने बताया मधु आंटी के पति अध्यात्मिकता के मार्ग पर चलना चाहते थे | दुनियावी बातों में उनकी रूचि नहीं थी | पहले झगडे –झंझट हुए | फिर वो एक दिन सन्यासी बनने के लिए घर छोड़ कर चले गए |माँ कुछ रुक कर बोली ,” अगर सन्यासी बनना ही था तो शादी की ही क्यों ?वो लौट कर घर – बार की जिम्मेदारी संभाल लें इसी लिए मधु इतने व्रत करती है | बचपन में मधु आंटी से सहानुभूति के कारण मेरे मन में एक धारणा बैठ गयी| की पूजा –पाठ तो ठीक है पर अध्यात्मिकता या किसी एक का अध्यात्मिक रुझान रिश्तों के मार्ग में बाधक है |और बड़े होते –होते ऐसे कई रिश्ते देखे जिसमें एक व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग पर चला वहां रिश्तों में खटपट शुरू हो गयी | हालांकि भगवान् कृष्ण ने अपने व्यक्तित्व व् कृतित्व के माध्यम से दोनों का सही संतुलन सिखाया है | वो योगी भी हैं और गृहस्थ भी | इन दोनों का समुचित समन्वय करने वाले राजा जनक भी विदेहराज़ कहलाते हैं | मैं तत्व को जानने और योगी होने के लिए संसार को त्याग कर सन्यासी होने की आवश्यकता नहीं है | फूल अगर खिलना है तो वो सदूर हिमालय के एकांत में भी खिलेगा और शहर के बीचों –बीच कीचड में भी | अध्यात्मिक प्रक्रिया फूल खिलने की भांति है | क्यों होता है अध्यात्मिक रुझान कोई व्यक्ति क्यों अध्यात्मिक हो जाता है | इसका उत्तर एक प्रश्न में निहित है की कोई व्यक्ति क्यों लेखक , कवि या चित्रकार ,कलाकार हो जाता है | दरसल हम इस रुझान को ले कर पैदा होते हैं | पूर्व जन्म के सिद्धांत के अनुसार हम इस मार्ग पर पिछले कई जन्मों से चल रहे थे | जिस कारण इस जन्म में भी हमें इस ओर खिंचाव महसूस हुआ | अगर रुझान वाला काम व्यक्ति नहीं करेगा तो उसे बेचैनी होगी | अध्यात्मिक रुझान भी ऐसा ही है | जिसे मैं तत्व को खोजने की तीव्र इच्छा होगी | वो उस और अवश्य खींचेगा |इस मैं तत्व को जानने में रिश्ते या सांसारिक कर्म बिलकुल भी बाधक नहीं हैं | व्यक्ति आराम से रिश्तों के बीच में रह कर इन्हें जानने का प्रयास कर सकता है | आध्यात्म नहीं रिश्तों की मांगे हैं संन्यास लेने का कारण यह सच है की संसार में कई लोग ऐसे हुए जिन्होंने अध्यात्मिक प्रक्रिया अपनाने के बाद अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर दिया। ऐसा इसलिए नहीं कि आध्यात्मिक प्रक्रिया इस तरह की मांग करती है। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वो रिश्तों की मांगों को पूरा नहीं कर सकते थे। आध्यात्मिक मार्ग इस बात की मांग नहीं करता कि आप अपने रिश्तों को छोड़ दीजिए लेकिन रिश्ते अक्सर ये मांग करते हैं कि आप आध्यात्मिक राह को छोड़ दीजिए। ऐसे में लोग या तो अध्यात्मिक मार्ग का चुनाव करते हैं, या अपने रिश्तों को बचाए रखते हैं।सच्चाई ये है की ज्यादातर लोग अपनी कम्फर्ट ज़ोन से बाहर नहीं निकल पाते और रिश्तों के दवाब में आकर अध्यात्मिक पथ को छोड़ देते हैं | आश्चर्य है की जब हम रिश्तों में रहते हुए मन में इसकी उसकी बुराई भलाई सोंचते रहते हैं | कई बार अपने मन में चलने वाली कमेंट्री के चलते परिवार वालों से बुरी तरह से झिड़क कर या गुस्से में कुछ अप्रिय बोल भी देते हैं | पर बात आई गयी हो जाती है | परन्तु जब कोई व्यक्ति अध्यात्म की ओर अग्रसर होता है तो वो मौन में अपने अन्दर झांक रहा होता है | उसकी ये शांति परिवार से बर्दाश्त नहीं होती | उन्हें लगता है वो एक सेट पैटर्न पर चले | वो हमसे अलग कैसे हो सकता है | वो हमारे जैसा ही हो | रिश्तों में असुरक्षा का भाव है अध्यात्म में बाधक अक्सर देखा गया है जब कोई ध्यान करना शुरू करता है तो शुरूआत में उसके परिवार के दूसरे सदस्य खुश होते हैं, क्योंकि उस की अपेक्षाएं कम हो जाती हैं, वह शांत रहने लगता है और चीजों को बेहतर तरीके से करने लगता है। लेकिन जैसे ही व्यक्ति ध्यान की गहराई में जाता है, जब वो आंखें बंद करके आनंद के साथ चुपचाप बैठा रहता है, तो लोगों को परेशानी होने लगती है।खास कर जीवन साथी … Read more