सही तरीका

सही तरीका

रहींम  दास जी का एक दोहे की एक पंक्ति है “जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।  इसका भावार्थ तो ये है की हर वस्तु के अपने -अपने गुण होते है | तलवार सुई से बड़ी है परजहाँ सिलने की जरूरत हो वहाँ तलवार कपड़े को और अधिक फाड़ देती है | क्या यही बातें स्त्री विमर्श पर लागू नहीं होतीं .. कुछ बातें जो संभाल सकती थीं वो गलत तरीका अपनाने से बिगड़ भी जाती  है | कविता सिंह की लघुकथा “सही तरीका” बहुत सावधानी से ऐसे ही बिन्दु की ओर ध्यान आकृष्ट कर रही है | आइए पढ़ें ..  सही तरीका  लघु कथा का वीडियो रूपांतरण देखें –सही तरीका   “हमारी संस्था महिला अधिकारों के प्रति महिलाओं को जागरूक करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम जगह-जगह कैम्पेन चलाते हैं।” उन्होंने कुछ पल बोलना बंद करके चारों तरफ नजर दौड़ाया। जब उन्हें तसल्ली हो गयी कि सभी लोग उनकी बात ध्यान से सुन रहे हैं तो उन्होंने दुबारा बोलना शुरू किया। “हाँ तो हम सभी जानते हैं कि पिता की सम्पत्ति में बेटियों को बराबर का हिस्सेदार होने का कानून बन चुका है….” “पर इससे क्या होता है सिर्फ कानून बन जाने से ही उन्हें उनका हक कहाँ मिल पाता है?” एक महिला ने उन्हें बीच में रोकते हुए कहा। “जी! इसीलिए तो हम यहाँ इकट्ठे हुए हैं। हमें अपना हक लेना सीखना होगा।” वो मुस्कुराईं और कुछ पल चुप रहकर फिर बोलीं– “बहनों! हम मायके से रिश्ते खराब होने के डर से अपना हक छोड़ देती हैं पर ऐसा नहीं होना चाहिए, हमें अपने हक़ के लिए आवाज उठाना ही होगा, चाहे रिश्ते बने या बिगड़े। मुझे ही देखिए, मैंने अपने मायके वालों पर केस कर रखा है……” “मैं कुछ कहना चाहती हूँ मैम!” तभी रिया ने उन्हें रोकते हुए कहा और माइक के पास आ गयी। “आप सही कह रही हैं, मैं मानती हूँ। किसी भी समाज की चली आ रही परिपाटी में बदलाव होने में वक़्त लगता है ये सभी जानते हैं। जिन्हें बेटियों को हक़ देना होता है वे बिना कानून के भी देते रहे हैं। हमें उन्हें जागरूक करना है जो इस कानून के बनने के बाद भी आँखे बंद किये हुए हैं पर मेरी समझ से जागरूक करने का ये तरीका सही नहीं  है। हमें अपनी पीढ़ी से शुरुआत करनी है बल्कि अपने घर से करनी है। हमें सबसे पहले अपने सास ससुर और पति को जागरूक करना है कि वो घर की बेटियों को उनका हक बिना मांगें ही उन्हें दें। सच मानिए जिस दिन हम महिलाओं को उकसाने के बजाय उन्हें ये बताएं कि अपनों बच्चों को वो बराबरी का हक देना शुरू कर दें। बचपन से ही उनके मन में ये बीज बोएं कि भाई-बहन दोनों का ही माता-पिता और उनकी संपत्ति पर बराबर का अधिकार है और साथ ही माता-पिता की देखभाल का बराबर का कर्त्तव्य भी । फिर देखिए इसके बाद ना किसी कानून की जरूरत होगी ना रिश्ते खराब होने का डर।” इतना कहकर रिया वापस अपनी जगह पर बैठ गयी साथ ही चारों तरफ तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी और संस्था की स्पीकर अवाक सी सबका चेहरा देखने लगीं। —–कविता सिंह—- यह भी पढ़ें … पद्मश्री उषा किरण खान की कहानी – वो एक नदी इत्ती-सी खुशी  अर्नेस्ट हेमिंग्वे की कहानी- दिन भर का इंतजार दूसरी पारी – समीक्षा आपको लघुकथा “सही तरीका” कैसी लगी ? हमें अपने विचारों से अवश्य अवगत कराए | अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती है तो कृपया साइट को सबस्क्राइब करें व अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें |

बोलती का नाम गाड़ी

गाड़ी

इस कोरोनाकाल में लॉकडाउन से हम इंसान तो परेशान हैं   ही  हमारी गाड़ियां  भी खड़े खड़े उकता गईं हैं | उन्ही गाड़ियों  की व्यथा कथा को व्यक्त करती एक रोचक कहानी .. बोलती का नाम गाड़ी लाक आऊट के लंबे दिन और रातें सन्नाटे में घिरी। दिल्ली का शानदार मोहल्ला,आदमी कम, कारें ज्यादा। ससुरजी की गाड़ी,सासु जी की, बेटेकी और बहू की अलग अलग। सुबह पिता आफिस चले जाते। बेटा साथ नहीं जा सकता,देर तक सोने की आदत। पिता बड़बड़ाते हुए ड्राइवर के साथ चले जाते। मां बेटे का पक्ष लेती। जवान बेटा है,देर तक सोने दो। बेटा जी देर से उठते, जब तक नाश्ता करते, फैक्ट्री का लंच टाइम हो जाता। माता जी सत्संग में जाती। बहू के पास सैकड़ों काम-पार्लर, जिम जाना और शाम को किटी पार्टी। लाक डाऊन के कारण बाहर निकलना बंद हो गया। दिन भर बरतन, झाड़ू पोंछा। बर्तनों के खड़कने के साथ साथ सास बहू कड़ कड़ करतीं। सारी कारें आड़ी तिरछी खड़ी हैं। पार्किंग को लेकर अक्सर महाभारत होता रहता है। आजकल सारी गतिविधियों पर विराम लगा है,सो सारी कारें मीटिंग कर रही हैं। टेरेनो कांख कर बोली-‘हम तो सुस्ता सुस्ता कर थक गए।‘ स्कार्पियो बोली-‘खडे खड़े कितनी धूल जम गयी है।‘ बोलेनो ने कहा-‘हाय,मुझसे तो बदबू आ रही है‘ सबने मुंह सिकोड़ा और स्वीकार किया कि कई दिनों से न नहाने की वजह से ऐसा हुआ। इगनिस ने अपना दुखड़ा रोया-‘कितना अच्छा लगता था,जब मैं नहा धो चमकती हुई मैडम का इंतजार करती थी। मैडम नीचे उतरकर मुझे स्टार्ट करती। मैं भी बिना आवाज किए चल पड़ती। कितने मुलायम हाथों से स्टीरिंग घुमाती।आह। अब तो कालेज बंद है। वे तो आनलाइन पढ़ा रही है,पर मैं तो खड़ी हूँ।        ‘तभी तुझे परदे के पीछे छिपा दिया गया।सारी गाडियां खी खी करने लगी। टोयोटा, इनोवा ने अपना ज्ञान बघारा-‘सब मोदिया ने किया है, पेट्रोल बचाने के लिए।‘ ‘नही, स्विफ्ट ने बात काटी-‘केजरीवाल ने किया है। प्रदूषण के कारण उसकी खांसी रुक नहीं रही थी। अपनी खांसी के कारण हम पर ज़ुल्म किया।‘ वार्ता दिल्ली में चल रही थी, इसलिए सबके पास राजनीतिक ज्ञान का भंडार था। लाल रंग की पजेरो अपने को दादा समझती थी,को गुस्सा आ गया। वैसे भी लाल रंग गुस्से का प्रतीक है। दहाड़ कर बोली -‘चुप करो तुम सब,जो मन में आया,बक देती हो। अच्छा,तुम्हीं बताओ, सर्वज्ञान वाली। मेरे मालिक गाड़ी में न्युज सुनते हैं,तभी समझ में आया। पड़ोस का मुल्क चीन है। वहीं बीमारी का वायरस भेजा है। फोर्ड फियस्टा बोली-‘कोई बीमारी भेजता है। फूल या मिठाई भेजते हैं। इसके कारण हम सबको खड़ी कर दिया गया।‘ सबने हाँ में हाँ मिलाई। हुंडई बोली-‘खडे खड़े बदन पिरा गया।‘ वैगन आर ने कहा-‘मेरे तो टायर ही बैठ गए।‘ बैटरी डाऊन होने की बात सबने स्वीकारी। लाक आऊट खुलने पर सब हस्पताल जाओगी। मतलब मैकेनिक के पास। यह महामारी छूत से फैलती है। इसीलिए सबको बाहर निकलने से मनाही है। पजेरो ने समझाया। मारुति अर्टिगा ने कहा-हां,एक लड़का फरारी में जा रहा था, पुलिस ने पकड़ कर उठक बैठक करवाई।‘ ‘हाय,बिचारी फरारी,उसकी तो नाक ही कट गई’ मारुति ८०० बोली। ‘अब सरकार की बात नहीं मानोगे तो यही होगा। कहावत है कि ‘सटेला तो मरेला‘ अरे यह तो हम गाड़ियों के लिए है। तनिक दूरी बनाये रखें नहीं तो भिड़न्त हो जायेगी। सबने एक स्वर में कहा। ‘अब यही बात मनुष्यों के लिए है’ पजेरो ने बात खत्म की। सुबह जब चौकीदार आया, उसे घोर आश्चर्य हुआ, सारी गाड़ियां कतार में एक मीटर के फासले से खड़ी थीं।   आशा सिंह Attachments area ReplyForward

जीवनदाता

गर्मी का मौसम शुरू हो गया है | इन्सान तो क्या , जीव -जंतु , पेंड -पौधे सब का हाल बुरा है | तपती हुई धुप में कितनी बार हम लोगों को लगता है कि कहीं से बस दो बूँद पानी मिल जाए तो जीवन चल जाये | शायद ऐसा ही तो जीव -जंतु , पेंड पौधे भी कहा करते होंगे , पर क्या उनकी आवाज़ हम सुन पाते हैं ? ये आवाज़ महसूस की एक नन्हे बच्चे ने …  लघुकथा -जीवनदाता  गर्मी के दिन थे। सुबह होते ही सिर पर तेज-कड़ी धूप निकल आती थी। सिंटू ने सुबह-सुबह अपनी किताब से पेड़-पौधों के बारे में बहुत कुछ पढ़ा। तभी उसे प्यास लगी तो वह कमरे से निकल कर मां के पास आया। मां ने एक ग्लास पानी देते हुए कहा, ‘‘बेटा, पानी बर्बाद मत करना। आजकल इसकी बड़ी किल्लत हो गई है।’’ घर के अंदर उमस हो रही थी। सिंटू ग्लास लेकर छत पर निकल आया। वहां उसने देखा, गमले के पौधे सूख रहे हैं। वह अपनी प्यास भूल गया। उसने ग्लास का सारा पानी गमले में उड़ेल दिया। तभी मां बाहर आ गई और यह दृश्य देखकर चैेक पड़ीं। उन्होंने पूछा, ‘‘यह तुमने क्या किया ?’’ सिंटू ने कहा, ‘‘मां, हम पानी के बिना कुछ दिन रह सकते हैं। मगर आक्सीजन के बगैर बिल्कुल नहीं। मत भूलो, ये पौधे हमें आॅक्सीजन देकर जीवन देते हैं। इनका खयाल पहले रखना जरूरी है।’’                                                            -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                                               पटना- (बिहार)                                                         e-mail address –             gyandevam@rediffmail.com                                                                                                                                                                यह भी पढ़ें – गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ आपको लघु   कथा  “जीवन दाता “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, Environment, trees, Environmental conservation

पालने में पूत के पैर

यूँ तो ये एक कहावत ही है कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं , अर्थात नन्हा नाजुक सा बच्चा बड़ा हो कर कैसे स्वाभाव वाला बनेगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है | हम सब अपने जीवन में कभी न कभी ऐसे बच्चों से जरूर रूबरू हुए होंगे जिनकी सफलता के बारे में हमें उनके छुटपन से ही अंदाजा हो गया था | एक ऐसा ही अंदाजा लघुकथा के रूप में पिरोया है रीतू गुलाटी जी ने … लघुकथा –पालने में पूत के पैर  आज अचानक फेसबुक पर अपने प्यारे छात्र अनु की तस्वीर देख मेरा मन खुशी से उछल पडा।आज कितने सालो के लम्बे अंतराल बाद जो दिखा था।जल्दी से मैने उसका प्रोफाईल चेक किया,जिसे देख आश्चर्य से मेरा मुंह खुल्ला का खुल्ला रह गया। वो दिल्ली मे सरकारी जॉब पा गया था वो भी Sectional Officer at Ministry of Housing and Urban Affair department मे। M.Sc. करके Ph.D. भी कर गया था,Indian Agriculture Research Institute से।वाह वाह,मै तो खिल गयी थी!कंहाँ से कंहा पहुंच गया मेरा वो छात्र,,,,।मै कुछ सोचने लगी,और अतीत के पन्ने बदलने लगी,!मुझे याद आया जब अनु ने मेरे ग्रामीण परिवेश मे बने एक छोटे से स्कूल मे प्रवेश लिया था,! पतला सा,लम्बा सा,सांवले रंग का वो बच्चा विलक्षण सा लगा।उसकी आँखों की चमक कुछ कहती थी।सीधा-सादा सरल बच्चा नर्सरी से आठवी क्लास तक मेरे संपर्क मे रहा!और आठवीं क्लास के हरियाणा बोर्ड मे 99%नम्बर लेकर वो मेरे स्कूल से लेकर अपने गांव मे चर्चित हो गया था। उसके माता-पिता भी बडे शरीफ व सीधे -सादे थे।पिता खेती करता व दूध भी बेचता।समय समय पर अनु भी पिता की साथ फसल कटवाता।कच्चे मिट्टी के घर मे वो रहते।और हर छह माह बाद फसल कटने के उपरान्त ही उसका पिता फीस भरता।उसका एक छोटा भाई जो रंगत मे अनु से उलट था फिर भी शैतानी करता पर अनु चुपचाप व गंभीर दिखता,,व पढाई मे जुटा रहता। एक दिन मै आठवीं क्लास का पढा रही थी,तभी मैनै पढाई से इतर कुछ बाते करनी शुरू कर दी,तभी अनु मुझे बोला–मैम पहले मेरा वो चैप्टर जल्दी से कम्पलीट करा दीजिये।मै मुस्कुरा दी।उसकी पढाई की लगन ने इस बात को पूरी तरह सिद्ध कर दिया था ,कि पूत के पैर पालने मे दिख जाते है।। रीतू गुलाटी ‘ऋतू ‘ यह भी पढ़ें … सीख डोंट डिस्टर्ब मी लेखिका एक दिन की इंटरव्यू आपको  लघु कथा  ” पालने में पूत के पैर “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, short story