तुम याद आती हो माँ

                                     तुम याद आती हो माँ बात एक माह पहले की है जब मेरी माँ मुझे एवं पिताजी को छोड़ एवं मेरी छोटी बहिन को लेकर गर्मी की छुट्टियों में अपने मायके चली गयी । मैं माँ को बहुत सताया करता था इसलिए मुझे साथ न ले गयी । जब माँ मुझे सुबह नींद से जगाती तो मैं करवट बदल एवं आँखें मूंद कर सोने का अभिनय करता और अंत में माँ परेशान हो वहाँ से चली जाती । और मैं देर तक बिस्तर पर पड़ा रहता । सुबह ना तो मैं सारी चीज़ें जगह पर रखता ना ही मैं सफाई से नहाता। जब मैं नहाकार बाहर निकलता, मैं अपना टॉवेल बिस्तर पर ही पटक देता। मेरी माँ अंदर आती, मुझे टोकती एवं मेरा टॉवेल को सूखने के लिए रख देती। जब माँ मुझे खाना  देती मैं हमेशा उसमें कमियाँ निकालता और कहता “मुझे यह पसंद नहीं।”, “मैं खाना नहीं खाऊंगा।”, “खाना अच्छा नहीं बनाया”। मैं अपनी छोटी बहन से भी बहुत झगड़ा करता। माँ मुझे पुच्कार कर बोलती “छोटी बहन से लड़ते-झगड़े नहीं”।मैं अपने खिलोने उसे हाथ भी न लगाने देता । माँ के जाने के दो – तीन दिन तो मैं अपने आप में बहुत खुश हुआ अर्रे वाह अब मुझे कोई नहीं टोकता , मैं स्वयं अपनी मर्ज़ी का मालिक हूँ , रोज की तरह मैं स्नान कर के अपने मैले कपड़े एवं गीला  टॉवेल बिस्तर पर ही छोड़ देता , सारे दिन टी. वी. देखता, वीडियो गेम खेलता और अपने आप में मस्त रहता । ज़्यादातर मित्र छुट्टियों  में ननिहाल या ददिहाल गये थे , सो सारे दिन अकेले ही अपने खिलोनों से खेलता पर उन्हें वापिस डब्बे में न रखता। इस तरह १५ दिनों में सारा घर अस्त व्यस्त हो गया । अब मुझे मेरे पज़्ज़ील उन बिखरे खिलोनों में ढूँढने पड़ते तो मैं परेशान हो जाता और रोज–रोज अकेले खेल कर बोर हो जाता।मुझे मेरी छोटी बहिन की याद आने लगी थी ,सोचता वह तो मेरे साथ खेलना चाहती थी , मैं ही उसे झिड़क कर भगा देता था ।अब मेरा टॉवेल जो कि रोज गीला ही रहता था से बाँस आने लगी थी। माँ जाते–जाते एक खाना बनाने वाली रख गयी थी , वह एक ही समय में दो समय का खाना बना जाती थी । कभी नमक ज़्यादा तो कभी मिर्च । कभी तो नमक डालना भूल ही जाती । सब्जी बिल्कुल बेस्वाद ! रोटी कभी कच्ची तो कभी जली-भुनी। अब मुझे माँ के बनाए खाने की याद आने लगी थी । करते -करते एक माह बीत गया । माँ भी नाराज़ होकर गयी थी सो उसने भी मेरी सुध न ली ।  पूरा दिन माँ को याद करते ही बिताया । पिताजी शाम को दफ़्तर से आए तो मैं उनसे लिपट कर रो पड़ा । पिताजी ने मुझे गले से लगाकर चुप कराया और समझायाकि माँ मुझे कितना प्यार करती है और बोले चलो माँ से बात करते हैं । माँ को फोन लगाते ही मैने रिसीवर अपने हाथ में ले लिया और कहा ” तुम बहुत याद आती हो माँ ” जल्दी आ जाओ माँ  । उधर से माँ का कुछ जवाब न आया सिर्फ़ सुबक कर रोने की आवाज़ सुनाई दी। अगले ही छुट्टी के दिन मैं और पिताजी माँ को लेनेमेरे ननिहाल पहुँच गये । माँ  को देखते ही मेरी आँखों से आँसू झर-झर बहने लगे । माँ ने अपनी छाती से मुझे चिपकालिया। पार्थ शर्मा , वेल्स बिल्लबोंग हाय चेन्नई उम्र -१३ वर्ष  (चित्र गूगल से साभार ) atoot bandhan …………. कृपया क्लिक करे 

फैसला

                                                               “माँ सीरियस है जल्दी आ जाओ।” भैया के ये शब्द बार बार कानों में गूंज रहे थे मगर आँखों और दिमाग में कुछ और ही मंजर थे।25 साल पहले ऐसा ही एक फोन मां के पास भी आया था – तब दादी सीरियस थीं।अंतिम सांस लेती मेरी दादी बस जैसे मेरी माँ की ही बाट देख रही थी।माँ के हाथों में उन्होंने दम तोड़ दिया। मेरे final exams चल रहे थे।पर माँ चाहने पर भी 15 दिन से पहले नहीं आ सकीं।दादी जीवित थीं तब माँ वहाँ थी तो उनका वहाँ 12 दिन तक रूकना और तमाम रीति रिवाज निभाना जरूरी था।सामाजिक रीति रिवाजों ने मेरे भविष्य की,सपनों की बलि ले ली।माँ की अनुपस्थिति में पढ़ना और घर भी देखना मैं ठीक से न कर सकी। पड़ोसियों और दोस्तों ने हर सम्भव मदद की पर माँ तो माँ ही होती है। हर समय खाने पीने का पढ़ने का इतना ध्यान रखती थीं।उनके बिना मेरे exams ठीक नहीं हो सकते थे और न हुए।result खराब हुआ और मुझे अपने सपनों से समझौता करना पड़ा। मैं जीवन भर माँ को इस बात के लिए माफ न कर सकी। हमेशा एक तल्खी सी रहती थी मुझमें,पर माँ ने कभी सफाई देने की कोशिश भी नहीं की।  आज इतिहास फिर अपने आप को दोहराने पर अड़ा है।पर मैं कुछ और ही सोच रही थी।मैंने भैया को फोन किया।माँ से बात करना चाही।माँ ने फोन पर अस्पष्ट शब्दों में बस इतना ही कहा “मेरे मरने पर ही आना अनु….. जिन्दा पर मत आना।तू भी मेरी तरह फस गई तो अपने आप को माफ नहीं कर पाएगी जिन्दगी भर।” फोन मेरे हाथ से छूट गया और आँसुओं का एक सैलाब मेरे मन की सारी तल्खी लेकर बह निकला। मैं तड़प उठी माँ से मिलने को। बेहूदा सामाजिक रीति रिवाजों को तोड़ कर,अपनी माँ और बेटी,दोनों के प्रति अपनी भावनाओं और जिम्मेदारी को पूरी तरह से निभाने का निर्णय लेकर मैं अपना bag तैयार करते समय काफी हल्का महसूस कर रही थी।मैं बस जल्दी से माँ के पास जाना चाहती थी। शिवानी जैन शर्मा  अटूट बंधन …………कृपया क्लिक करे 

चार बेटों की माँ

चार बेटों की माँ                                                                राधिका जी से सब पडोसने ईर्ष्या  करती थीं । उनके चार बेटे जो थे । और राधिका जी … उनके तो पांव जमीन पर नहीं पड़ते थे । हर बेटा माँ को खुश करने की कोशिश करता … ताकि माँ का ज्यादा से ज्यादा प्यार उसे मिल सके । जब राधिका जी सोने चलतीं …. हर लड़का उनसे कहता … माँ मेरी तरफ मुंह करो … मेरी तरफ ..। राधिका जी अक्सर पड़ोसन कांता पर दया करतीं, जिसके एक ही बेटा था । उन्हें लगता बेचारी बुढ़ापे में घर की रौनक को कितना  तरसेगी ।  कहीं और जाना चाहे तो कहाँ जाएगी, एक ही खूंटी में बंधी रहेगी ।और उनके चारों बेटे इसी तरह उन्हें सर -आँखों पर बिठा कर रखेंगे । देखते – देखते चारों बेटे बड़े हो गए । सब अपने परिवारो के साथ अलग रहने लगे । एक दिन कांता और राधिका जी मंदिर में मिल गयीं । राधिका जी का गला भर आया ‘ क्या बताऊँ … चार बेटे थे, बड़ा घमंड था, चारों के पास आया जाया  करुँगी बुढ़ापा आराम से कट जायेगा । पर बेटे तो मुझसे चतुर निकले । तीन – तीन महीने का समय बाँट दिया है सबके पास रहने के लिए । फुटबॉल की तरह यहाँ से वहां नाचती रहती हूँ । हर बेटे – बहू  का प्रयास रहता है की मुझे उनके घर में ज्यादा अच्छा ना लगे क्योंकि अगर अच्छा लग गया तो कहीं वहीँ  ना टिक जाऊं । ऊपर से जब बीमार पड़ती हूँ … तो दवाई के पैसों के लिए चारों झगड़ते हैं कि मैं अकेला क्यों भरूँ । बहुएँ तो सब जगह यही गाती रहती हैं हमारी अम्मा तो घुमंतू हैं , उन्हें एक जगह बंध कर रहना पसंद नहीं । अब किस किस को समझाती फिरूं  पुराने  लोग व्यर्थ में ही औरत की तुलना गाय से नहीं करते थे । उसे तो खूंटे में बंध कर रहना ही पसंद होता है ‘। और तुम कैसी हो ? राधिका जी ने अपने पल्लू से अपने आंसू पोंछते हुए कांता जी से पूंछा । मेरा क्या है … एक ही बेटा है,उसी के पास रहना है । …जाना कहाँ है ? पर बेटा  बहू बहुत ध्यान रखते हैं । ईश्वर की कृपा है ।   सब ठीक चल रहा है  । राधिका जी सोंचने लगीं …. की वो कितना गलत सोचती थी की  वो कितनी भाग्यशाली हैं उनके चार बेटे हैं तो उनका बुढापा आराम से कटेगा।   काश ! उन्होंने घमंड करने से पहले समझा होता एक हो या चार इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ,बेटा लायक होना चाहिए ।   सरिता जैन  गृहणी ,दिल्ली  atoot bandhan ……….कृपया यहाँ क्लिक करे 

पोलिश

                                     ********* विवेक ने मुस्कुराते हुए निधि कीआँखों पट्टी खोलते हुए कहा “देखिये मैडम अपना फ्लैट …. अपना ताजमहल , अपना घर … जो कुछ भी कहिये निधि फ्लैट देख कर ख़ुशी से चिहुकने लगी “वाह विवेक ,कितना सुन्दर है पर ये क्या इतने आईने लगा दिए ,जगह -जगह पर क्यों ?विवेक :ये तुम्हारे लिए हैं निधिनिधि :मेरे लिए (ओह ! माय गॉड ) चाहे जितने आईने लगवा लो अब इस उम्र में मैं ऐश्वर्या राय तो दिखने से रही (निधि हँसते हुए बोली ) विवेक: ये चेहरा देखने के लिए नहीं है ,ये तुम्हे समझाने के लिए हैंनिधि :(हँसते हुए )क्या समझाने के लिए ,रिफ्लेक्सन ऑफ़ लाइट ,इमेज फार्मेशन ,जितनी आगे ,उतनी पीछे , वर्चुअल ,लेटरली इनवर्टेड ,क्या विवेक ?विवेक :इतना सब कुछ बता गयी पर वो पोलिश भूल गयी ,जिसके बाद ही शुरू होता है देखने ,दिखने का सिलसिला ……………. यही भूल जाती हो तुम हमेशा इसीलिए कभी देख नहीं पाती असली अक्स न अपना न किसी का …………..निधि की आँखों में आंसूं आ गए …………… गुजरा वक्त सामने आकर खड़ा हो गया ……..एक पोलिश की ही तो कमी थी तभी तो हर किरण गुजरती रही आर पार ,एक सामान ,एक ही तरीके से ,जान ही नहीं पायी किसी का असली रूप ,असली प्रतिबिम्ब । आह ! आइना बनने के लिए पोलिश जरूरी है ,अन्यथा वो बस कांच का टुकड़ा रह जाता है  वंदना बाजपेई  (चित्र गूगल से ) atoot bandhan ……… हमारा फेस बुक पेज 

“यूरेका ” की मौत

                               बूढ़ा आर्किमिडिज़ …जो अब 80 साल का हो गया है। …. सफ़ेद लम्बी दाढ़ी , झुर्रीदार चेहरा , ठीक से चला नहीं जाता ,पर मन में अभी भी विज्ञानं के लिए , मानव समाज के लिए बहुत कुछ करने की अभिलाषा शेष है अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोंचता जा रहा है । (फर्श पर ज्यामिति की तमाम रचनाएँ चाक से बना रहा है ) उसे अभी भी वो दिन अच्छी तरह से याद है कि किस तरह सैराक्वूज के राजा हायरोन ने उसे एक स्वर्ण मुकुट हकीकत पता लगाने को दिया था …….नकली और असली में भेद कर पाना कितना कठिन था.…। और कैसे उसने नहाते समय इस नियम को खोज लिया था कि कोई वस्तु पानी में डुबोने पर अपने भार के बराबर पानी हटा देती है ।ख़ुशी में वो उसी अवस्था में यूरेका -यूरेका (मैंने पा लिया ,मैंने पा लिया) कहते हुए राजमहल की और दौड़ा था। इसी आधार पर उसने स्वर्ण मुकुट की सच्चाई पता लगाई थी . फिर ……………… फिर उसे कितना सम्मान मिला था ।कितना हौसला बढ़ा था। … फिर कैसे उसकी यात्रा चल पड़ी विज्ञानं के अन्य अन्वेषणों की ओर । क्या – क्या नहीं सोंचा था उसने आगे करने को । वो चाहता था कि एक ऐसी राड मिल जाये जिसे लीवर की तरह इस्तेमाल कर पृथ्वी को उठाया जा सके । और उधर लोग कहते हैं कि सैराक्वूज पर रोमन राज्य का शासन हो गया है …. देश छोड़ो ।यह सही है की उसने कई लीवर पर आधारित “युद्ध मशीनों “का निर्माण किया है। … पर उससे क्या ? कैसी बेकार बात है ….. भला मुझ बूढ़े वैज्ञानिक से किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है ।अब उम्र के आखिरी पड़ाव में तो अपने ही देश में रहना है। … क्यों जाये भला विज्ञानं की सेवा करने वाला। अभी कल ही की तो बात है ….. पडोसी सल्युसर आया था … सेल्युसर ……. महान वैज्ञानिक आर्किमिडिज़ जी आप की जान को खतरा है ।रोमन , सैनिक आप को नहीं छोड़ेंगे ,आस -पास कही भी सर छुपा लो। आर्किमिडिज़ …….. क्यों भला , मैंने क्या बिगाड़ा है किसी का … मैं तो अपने काम में लगा हूँ, सम्पूर्ण मानव जाती की भलाई के लिए काम कर रहा हूँ ।मेरी किसी से कोई व्यक्तिगत दुश्मनी तो नहीं है। सेल्युसर …… ठीक है …….. बताना मेरा फ़र्ज़ था ।आप सावधान रहिएगा,. आर्किमिडिज़ पुरानी बातें याद करना छोड़ कर फिर काम में लग जाता है । ये गोल ………. इसकी त्रिज्या ……… ये पाई का मान २२ /७ ……. इस गोले में क्षेत्रफल ………………..वो त्रिभुज उसका आयतन। … घोड़ों के टापों की आवाज़ आ रही है ….. टप- टप- टप । तेज़ धूल उड़ रही है । रोमन सैनिक आर्किमिडिज़ का घर घेर लेते हैं । कुछ सैनिक घोड़े से उतरकर उसके घर की तलाशी लेते हैं । एक सैनिक आर्किमिडिज़ के पास जाता है । बूढ़ा आर्किमिडिज़ सर झुकाए अपने काम में तल्लीन है । उसे ना घोड़ों के टापों की आवाज़ सुनाई दे रही है ना उसे ये पता चल पाया कि वो चारों ओर से घिर गया है ।वो काम कर रहा है मानवता के लिए। …. सारी सृष्टि के लिए। …. हाँ आँख के कोर से उसे ये अहसास होता है की कोई उसके ज्यामिति के गोलों के पास आ रहा है ।भय है तो इस बात का कही काम में विघ्न न पड जाये। आर्किमिडिज़ ….. ( सर झुकाए – झुकाए) … अरे भाई … आहिस्ता से अपना काम करो, देखो मेरी ये रचनाएँ ना ख़राब कर देना । बड़ी मेहनत से बनाई हैं । हत्यारा रोमन सैनिक एक क्षण के लिए उसकी मासूमियत पर सकपकाता है …. अगले ही क्षण अपनी तलवार से आर्किमिडिज़ की गर्दन धड से अलग कर देता है ।.…… और एक महान वैज्ञानिक , उसकी वृताकार रचनायें ,क्षेत्रफल ,त्रिज्या सब दो राजाओं की दुश्मनी की भेंट चढ़ जाता है। …… साथ ही दो राजाओं की दुश्मनी की भेंट चढ़ जाती है …. विज्ञानं की अनुपम भेंट जो। …. जो शायद महान वैज्ञानिक के दिमाग में पक रही थी। ……. विश्व वंचित रह गया फिर से यूरेका -यूरेका सुनने को वंदना बाजपेई यह कहानी इतिहास और कल्पना के मिश्रण से लिखी है सूत्र :विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक चित्र गूगल से 

दोगलापन (लघुकहानी)

सविता मिश्रा =============“कुछ पुन्य कर्म भी कर लिया करो भाग्यवान, सोसायटी की सारी औरतें कन्या जिमाती है, और तू है कि कोई धर्म कर्म है ही नहीं|”“देखिये जी लोग क्या कहते है, करते है इससे हमसे कोई मतलब ……”बात को बीच में काटते हुए रमेश बोले- “हाँ हाँ मालुम है तू तो दूसरे ही लोक से आई है, पर मेरे कहने पर ही सही कर लिया कर|” नवमी पर दरवाजे की घंटी बजी- -सामने छोटे बच्चों की भीड़ देख सोचा रख ही लूँपतिदेव का मन| जैसे ही बिठा प्यार से भोजन परोसने लगी तो चेहरे और शरीर परनजर गयी किसी की नाक बह रही थी, तो किसी के कपड़ो से गन्दी सी बदबू आ रही थी, मन खट्टा सा हो गया| किसी तरह शिखा ने दक्षिणा दे पा विदा कर अपने हाथ पैर धुले|“देखो जी कहें देती हूँ इस बार तो आपका मन रख लिया, पर अगली बार भूले से मत कहना……..| इतने गंदे बच्चे जानते हो एक तो नाक में ऊँगली डालने के बाद खाना खायी| मुझसे ना होगा यह….ऐसा लग रहा था कन्या नहीं खिला रही बल्कि…..भाव कुछ और हो जाये तो क्या फायदा ऐसी कन्या भोज का| अतः मुझसे उम्मीद मत ही रखना|”“अच्छा बाबा जो मर्जी आये करो, बस सोचा नास्तिक से तुझे थोड़ा आस्तिक बना दूँ|”“मैं नास्तिक नहीं हूँ जी. बस यह ढोंग मुझसे नहीं होता समझे आप|”“अच्छा-अच्छा दूरग्रही प्राणी|”…पूरे घर में खिलखिलाहट गूंज पड़ीपड़ोसियों ने दूजे दिन कहा -यार तेरी मुराद पूरी हो गयी क्या ? बड़ी हंसी सुनाई दे रही थी बाहर तक| हम इन नीची बस्ती के गंदे बच्चो को कितने सालो से झेल रहे है, पर नवरात्रे में ऐसे ठहाके नहीं गूंजे ..बता क्या बात हुई|”शिखा मुस्करा पड़ी ….. सविता मिश्रा का परिचय पति का नाम ..श्री देवेन्द्र नाथ मिश्र  पिता का नाम …श्री शेषमणि तिवारी  माता का नाम ….श्रीमती हीरा देवी  जन्म तिथि …१/६/७३  शिक्षा …बैचलर आफ आर्ट …(हिंदी ,रजिनिती शास्त्र, इतिहास) अभिरुचि ….शब्दों का जाल बुनना, नयी चीजे सीखना, सपने देखना यह भी पढ़ें ………. सेंध  गुडिया माटी और देवी  दुर्गा शप्तशती के प्रमुख मन्त्र  आपकी अपनी माँ भी देवी माँ का प्रतिबिम्ब हैं