तन्हाँ

जिस तरह से सबके अपनि खुशियाँ मनाने के तरीके अलग -अलग हैं उसी तरह सबके अपने दुःख से निकलने के तरीके अलग हो सकते हैं | पर समाज ये मानना नहीं चाहता | समाज चाहता है कि दुखी व्यक्ति २४ x ७ दुखी दिखे | कई बार वो दुःख से लड़कर निकलने की कोशिश करते व्यक्ति को और तन्हाँ कर देता है |  लघु कथा -तन्हाँ  “देखो आस -पड़ोस , छोटे -मोटे अंक्शन- फंक्शन में तो तुम्हे जाना ही होगा, वर्ना गौरव और नन्हे नीरज का ध्यान कैसे रख पाओगी , अपने दुःख से तुम्हें निकलना ही होगा ” सास दमयंती जी ने फोन पर अधिकारपूर्वक मधु से कहा |  इस बार मधु उनके आग्रह से इनकार ना कर सकी |  वि जानती थी की दुःख की कोई एक्सपायरी डेट नहीं होती …फिर  भी जीना तो था ही |  महिलाओं का एक छोटा सा मिलन समारोह था | उसने वहाँ  जाने का मन बनाया | ठीक से तैयार हुई , और पड़पड़ाये होंठों पर गहरी मैरून लिपस्टिक लगा ली |  समारोह में तमाम बातों के बीच लिपस्टिक की चर्चा छिड गयी | ‘वो” बड़े उत्साह से लिपस्टिक के शेड्स के बारे में बताने लगी  | तभी एक महिला ने दूसरी को कोहनी मार कर धीरे से कहा, “ साल भर ही हुआ है इनके बेटे की मृत्यु हुए पर देखो कैसे शौक कर रहीं हैं , भाई, हमें तो इन्हें देखकर ही वो दृश्य याद आ जाता है …पानी हलक में रुक जाता है, पता नहीं लोग कैसे मेनेज कर लेते हैं |” कही तो ये बात कई लोगों ने थी पर इस बार उन्होंने सुन ली | मुस्कुराते होंठ दर्द में कस गए, आँखें गंगा –जमुना हो चली , सिसकते हुए बोलीं , “ जब मैं रात को बेतहाशा चीख-चीख कर रोती हूँ और मुझे लगता है कि ये यादें मेरे प्राण ले जायेंगी, तब आप आती हैं मुझे चुप कराने , जब मैं किसी तरह से वो दर्द भूल कर अपने दूसरे  बेटे के लिए जीना सीख रही हूँ तो आप… थोड़ी देर के लिए शांति छा गयी | फिर सब उनको सहानुभूति देने लगे | वही जो सब देना चाहते थे | उनका काम पूरा हुआ …और वो जो थोड़ी देर को सब भूलने आयीं थीं अपने दर्द के साथ अकेले तन्हाँ रह गयीं | वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … सेंध   सुकून   बुढ़ापा मीना पाण्डेय की लघुकथाएं आपको आपको    “तन्हाँ “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under – hindi story, emotional story in hindi, sad woman, lonliness, sadness

घर की देवी

हर साल मंदिरों में नवरात्रों के दौरान भीड़ बहुत बढ़ जाती है | हर कोई माँ की उपासना करने में लगा होता है | कहते हैं माँ और भगवानों से ज्यादा दयालु होती हैं क्योंकि वो बच्चे की पुकार पर पहले ही दौड़ आती है | लोग इसे सच मानते हैं क्योंकि हर किसी को अपनी माँ के स्नेह का अनुभव होता है …पर क्या देवी माँ के ये उपासक अपनी घर में उपस्थित अपनी माँ के प्रति भी कुछ श्रद्धा रखते हैं ? घर की देवी      भैया, तुम और भाभी दशहरे में घर नहीं आए। मां बहुत बेसब्री से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही थीं। मैंने देखा, तुम लोगों के आने की बात सुनकर वे बेहद प्रसन्न थीं। वे खुशी के अतिरेक में फूली नहीं समा रही थीं। मैंने मां के चेहरे पर खुशी का ऐसा उछाह पहले कभी नहीं देखा। यदि तुमलोग सचमुच आ जाते तो वे खुशी से पागल हो जातीं और तुमलोगों पर आशीर्वाद और दुआओं की घनघोर वर्षा कर देंती।  मगर तुमलोगों ने ऐन वक्त पर आने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और तुमलोग नहीं आए। इससे मां निराशा और दुख के गहरे सागर में चली गईं। तुमलोगों ने दशहरा अपने शहर में ही बनाया। सुना कि तुमलोगों ने खूब सारी तैयारियां कीं। घर में ही मां दुर्गा का भव्य और विशाल दरबार सजाया। दिनभर मां की पूजा-अर्चना की और मंगल आरती उतारी। तरह-तरह के फूल-फल और नैवेद्य चढाए और देवी मां को प्रसन्न किया।  निस्संदेह ऐसी समर्पित पूजा-अर्चना से तुमलोगों को देवी मां का आशीर्वाद मिला होगा। मगर तुम लोगों के आने की सूचना पर मां के चेहरे पर तो अप्रतिम प्रसन्नता खिली थी, उसे याद कर मैं दावे एवं पूर्ण विश्वास से कह सकती हूं कि आपको देवी मां से वह आशीर्वाद नहीं मिला होगा, जो तुम्हारे घर आने पर अपनी बूढ़ी मां के थरथराते हाथों से मिलता। घर आते तो वह एक बड़ी पूजा-अर्चना होती। मैं कुछ ज्यादा या गलत कह गई तो क्षमा करना।                                                                              तुम्हारी,                                                                            छोटी बहन।                                                               -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                           न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी,                                                  पटना-800013 (बिहार)                                                                                           काफी इंसानियत कलयुगी संतान बदचलन आपको आपको    “घर की देवी“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  filed under – hindi story, emotional story in hindi, mother, devi

लघु कहानी — कब तक ?

     कल एक बहुत ही खूबसूरत विचार पढ़ा … “यह हमारे ऊपर है कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही अनुचित परम्पराओं को तोड़े ….जब वो कहते हैं कि हमारे परिवार में ऐसा ही होता आया है …तो आप उनसे कहिये कि यही वो बिंदु (स्थान) है जहाँ इसे परिवार से बाहर हो जाना चाहिए” समाज बदल गया पर आज भी हम परंपरा के नाम पर बहुत सीगलत चीजे ढो रहे हैं …खासकर लड़कियों के जीवन में बहुत सारे अवरोध इन परम्पराओं ने खड़े कर रखे हैं … 1)      हमारे परिवार की लडकियां पढ़ाई नहीं जाती | 2)      हमारे परिवार की लड़कियों की शादी तो २० से पहले ही जाती है | 3)      हमारे परिवार की लडकियां नौकरी नहीं करती | 4)      हमारे परिवार की लडकियाँ ….बहुत कुछ आप खुद भी भर सकते हैं |  ऐसी ही एक परंपरा को तोड़ती एक सशक्त लघु कथा  लघु कहानी —  कब तक ? बचपन से ही उसे डांस का बहुत शौक था । अक्सर छुप छुप कर टीवी के सामने माधुरी के गाने पर थिरका करती थी । जब वह नाचती थी तो उसके चेहरे की खुशी देखने लायक होती थी ।       मां भी बेटी के शौक के बारे में अच्छे से जानती थी .. कई बार मां ने बाबा को मनाने की कोशिश की थी पर उसका रूढ़िवादी परिवार नृत्य को अच्छा नहीं समझता था ।      ” क्या ?? नचनिया बनेगी ? ”  इस तरह के कमेंट से उसका मन भर आता था ।    एक दिन से ऐसे ही बाबा के काम पर जाने के बाद वह टीवी के सामने थिरक रही थी कि उसके कानों में आवाज आई  ” रश्मि, तैयार हो जा.. डांस एकेडमी चलना है !”   रश्मि मां का मुंह देखने लगी ।  “चल , तैयार हो .. देर हो जायेगी । ” मां उसके कंधे पर हाथ रख कर बोली ।     अब मां ने फैसला कर लिया था कि बच्ची की इच्छा को यूं नहीं मरने देगी । परिवार के सामने बेटी की ढाल वह बनेगी । आखिर कब तक बेटियां इच्छाओं का गला घोंट घोंट कर जीवित रहेगी ?  कब तक ??  ___ साधना सिंह   गोरखपुर यूपी यह भी पढ़ें … ‘यूरेका’ की मौत  एक राजकुमारी की कहानी शैतान का सौदा बेटियों की माँ आपको कहानी    “कब तक ?”  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, 

दुकानदारी

ए भैया कितने का दिया ? 100 रुपये का | 100 का , ये तो बहुत ज्यादा है लूट मचा रखी है | 50 का लगाओ तो लें | अरे बहनजी ८० की तो खरीद है , क्या २० रुपये भी ना कमायें , सुबह से धूप में खड़े हैं | ठीक है 70 का देना हो तो दो , वर्ना हम चले | ठीक है , ठीक है , सिर्फ आपके लिए | मोल -मोलाई की ये बातें हम अक्सर करते और सुनते हैं | ये सब दुकानदारी का एक हिस्सा है , जो थोड़ा सा झूठ बोल कर चलाई जाती है | पर क्या सब ये कर पाते हैं ? लघुकथा-दुकानदारी ‌ये उन दिनो की बात है जब नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद हमने नया-नया कोल्ड डिंक का काम शुरू किया!चूकि सरकारी नौकरी से रिटायर्ड थे।दुकानदारी के दाव-पेच मे हम कोरे पन्ने थे।पहले सीजन मे जोश-जोश मे खूब माल भर लिया था!अनुभव व चालाकी के अभाव मे ज्यादा सेल नही कर पाये,नतीजन माल बचा रहा,! आफ सीजन नजदीक आता देख व बचे माल को देख हमे अपनी अक्ल पर पत्थर पढते दिखाई दिये।हमने आव देखा ना ताव,अपने सारे माल को लेकर उसी होलसेलर के पास जा पहुंचे पर ये क्या,वो तो माल लेने से बिल्कुल मुकुर गया! मेरे यहाँ से ये माल गया ही नही?ये माल तो एक्सपायर हो गया है!इसकी डेट भी निकल चुकी है!कस्टमर तो लेगा ही नही। हम भी आपे से बाहर हो गये,कभी दुकानदारी की नही थी ,सिर मुडाते ही ओले पढे,वाली हालत हो गयी थी हमारी।उसे कुछ भी कहना,कागज काले करने वाली बात थी। एक्सपायरी माल हम तो बेच नही सकते थे। क्योंकि हमारा जमीर ही हमारा साथ नही दे रहा था।हारकर हमने उसे ही कोई हल बताने को कहा!उसने हंसकर कहा-एक बात हो सकती है….अगर तुम अपना सारा माल मुझे आधे दाम पर दे दो तो मै इसपर लिखी तारीख को तेजाब से साफ करके नये रेट से ही शराबखाने मे डाल मुनाफा कमा लूगा।क्योकि वहां आने वाले नशेडिय़ों, शराबियो ने कौन सी छपी तारीख पढनी है।हमे उसकी सलाह माननी पड़ी पर ये खरीद-बेच का गणित हमे समझ नही आया,और फिर हमे ये दुकानदारी बंद करनी पडी।। सोचने लगे थे मुनाफे के चक्कर मे,अपनी दुकानदारी चमकाने के चक्कर मे इंसान कितना नीचे तक गिर सकता है,ये वाक्या हमे मुंह चिढा रहा था।। ऋतु गुलाटी यह भी पढ़ें … गिरगिट तीसरा कोण गलती बोझ आपको लघु   कथा  “दुकानदारी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, shop, shopkeeper, shopping

परहितकारी

परहित सरिस धरम नहीं भाई … तुलसीदास जी की यह चौपाई परोपकार को सबसे श्रेष्ठ धर्म बताती है | अच्छे मुश्यों का प्रयास रहता है कि वो परोपकार कर दूसरों का हित करें परन्तु जीव -जंतु भी परोपकार की भावना से प्रेरित रहते हैं | ऐसे ही मूक प्राणियों की परहित भावना को अभिव्यक्त करती लघुकथा … लघुकथा -परहितकारी  सुबह-सुबह आसमान में सूर्य की लालिमा उभरने लगी थी। इस लालिमा के स्वागत में पक्षियों का कलरव शुरू हो चुका था। राहुल नींद से उठकर आंखें मल रहा था। तभी उसके बालकनी में चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई दी। राहुल समझ गया कि चिड़ियां पानी पीने के लिए व्याकुल हो रही हैं। राहुल रोज रात में सोने से पहले बाॅलकनी के मुंडेर पर पानी की कुछ प्यालियां रख देता था। मगर कल रात वह प्यालियां रखना भूल गया था। वह फौरन किचेन में गया और दो प्यालियों में पानी भरकर बालकनी में आया। उसने मुंडेर पर प्यालियां रख दीं और वह पीछे हट गया। मगर प्यासी चिड़ियां पानी के प्याली तक नहीं आईं। राहुल आश्चर्यचकित था। पढ़ें –जीवन दाता     वही मंुडेर पर कुछ गमले रखे थे। सभी चिड़ियां उन गमलों के पौधे के ईर्द-गिर्द मंडरा रही थीं और चीं-चीं कर रही थीं। राहुल कुछ समझ नहीं पाया। वह चिड़ियों की इस हरकत से परेशान होने लगा। तभी दादी मां बालकनी में आई। उन्होंने राहुल को परेशान देखा तो इसका कारण पूछा। राहुल ने कहा, ‘‘देखो न दादी, चिड़ियां मेरा पानी न पीकर गमलों पर क्यों मडरा रही हैं ?’’   दादी ने गमलों को गौर से देखा। सभी गमले सूख चुके थे। उनमें पड़ी मिट्टी में दरारें पड़ने लगी थीं। दादी मां सब समझ गईं। उन्होंने राहुल एक बाल्टी पानी और मग लाने को कहा। राहुल पानी और मग ले आया। दादी मां ने जल्दी-जल्दी सभी गमलों में पानी डाला। देखते-ही-देखते गमलों में पड़ी मिट्टी की दरारें खत्म हो गईं।    तभी राहुल ने देखा, सभी चिड़ियां गमलों पर से मंडराना छोड़कर पानी की प्यालियों की तरफ बढ़ गईं और चोंच डुबाकर पानी पीने लगीं। राहुल के आश्चर्य की सीमा न रही। दादी मां ने राहुल को हैरान देखा तो कहा, ‘‘ये पंछी हैं, मनुष्य नहीं। यह अपनी प्यास से ज्यादा दूसरों की प्यास की फिक्र करते हैं।’ ’   राहुल ने हैरानी से पूछा, ‘‘दूसरों की प्यास ? मतलब ?’’   दादी मां ने राहुल के गाल थपथपाते हुए कहा, ‘‘इन सूखे पौधों की प्यास। यही पौधे तो हमें जीवन देते हैं। इन्हें भी तो पानी देना होगा।’’                                                                                                                                                                                                                                           – ज्ञानदेव मुकेश                                                 न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी                                                 पटना-800013 (बिहार)                                                         यह भी पढ़ें … गिरगिट तीसरा कोण गलती बोझ आपको लघु   कथा  “परहितकारी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – hindi story, emotional story in hindi, Environment, trees, Environmental conservation

प्रेम का बंधन

                                                                          सफलता , सुख सम्पत्ति अकेलापन भी लाती है और दुःख में सम भाव का अहसास टूटे  रिश्तों के धागों को जोड़ कर परम का अटूट बंधन बना देता है | मानवीय स्वाभाव की इस विशेषता पर एक लघुकथा … लघु कथा -प्रेम का बंधन  दोनों की आयु बारह-तेरह वर्ष होगी। उनके हाथ में रद्दी का सामान जमा करने वाला एक ठेला था। वे उसे घसीटते हुए गली में आगे बढ़ रहे थे और लोगों से अपने घर के कबाड़ बेचने का ऊंचे स्वरों में आह्वान कर रहे थे। मैंने उनकी पुकार सुनी तो उन्हें अपने घर में बुलाया। वे बड़ी उम्मीद से घर में आए। मगर मैंने उनके घर में घुसते ही सवाल किया, ‘‘तुम लोग पढ़ते क्यों नहीं ? यह उम्र क्या यही सब करने की है ?’’ उन्हें प्रश्न बेहद अवांछित लगा। उनमें जो बड़ा था, उसने उलाहना देते हुए पूछा, ‘‘गरीब पहले खाएगा या पढ़ेगा ?’’ जवाब सुनकर मैं अपराध-बोध से ग्रसित हो गया। आवाज को मुलायम करते हुए मैंने पूछा, ‘‘क्या तुम बहुत गरीब हो ?’’ उसमें से छोटे ने कहा, ‘‘हां, आज हम बहुत गरीब हैं। मगर कभी हम अच्छे खाते-पीते घर के थे। हम बड़े शौक से स्कूल जाते थे। मगर एक दिन हमारे बड़े ताऊ ने धोखे से हमारी पूरी जमीन हथिया ली। मेरे पिता जी कोर्ट-कचहरी करते रहे। मगर हमें हमारी जमीन वापस नहीं मिली। उल्टे जो घर में बचा-खुचा था, मुकदमेबाजी के भेंट चढ़ गया। हम कंगाल हो गए। ऊपर से दोनों परिवारों में भीषण दुश्मनी पैदा हो गई। ’’ पढ़िए -लघुकथा :मिलाप  मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे उस दुष्ट ताऊ का क्या हुआ ? क्या वह सुख-चैन से जी रहा है ?’’ छोटे लड़के ने जवाब जारी रखते हुए कहा, ‘‘उस अन्यायी ताऊ का भी भला नहीं हुआ। वह बीमार हो गया। उसकी छाती में पानी भर गया। वह इलाज कराता रहा। मगर ठीक नहीं हुआ। हथियाई हुई जमीन इलाज की बलि चढ़ गई। एक दिन वह भी कंगला हो गया और आखिर एक दिन भगवान को भी प्यारा हो गया।’’ यह सब सुनकर मुझे बड़ा अफसोस हुआ। मेरे मुंह से ‘आह!’ निकल गई। मैंने कहा, ‘‘धन-दौलत तो स्वाहा हो गए मगर दोनों परिवारों की दुश्मनी का क्या हुआ ?’’ इसपर दोनों खिलखिलाकर हंसने लगे। इस बार बड़े लड़के ने कहा, ‘‘बस यही तो फायदा हुआ। मेरे बाऊजी के मरते ही हमारी दुश्मनी हवा हो गई।’’ मैं चैंक पड़ा। बड़े लड़के की तरफ मुंह घुमाकर मैंने पूछा, ‘‘तुम्हारे बाऊ जी ? मतलब ?’’ उसने बड़ी सहजता से कहा, ‘‘मेरे बाऊजी ही इसके दुष्ट ताऊ थे, जिन्होंने मेरे छोटे ताऊ की जमीन हड़प ली थी। ये छोटा मेरा चचेरा भाई है। हम दोनांे की जमीन गई तो हमारे परिवारों की दुश्मनी भी गई। अब हम मिलकर रोजी-रोटी कमाते हैं। हम जमीन पर आ गए तो क्या हुआ, अब हम एक हैं।’’ एकता की ऐसी अद्भुत कहानी सुनकर मैं भौंचक रह गया।                                                                   -ज्ञानदेव मुकेष                                                                                                        न्यू पाटलिपुत्र काॅलोनी                                          पटना-800013 (बिहार) यह भी पढ़ें …     परिवार इंसानियत अपनी अपनी आस बदचलन आपको कहानी    “प्रेम  का बंधन  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, love, bond, atoot bandhan

मिलाप

ताला चाभी … एक ऐसा रिश्ता जो एक दूसरे की जरूरत हैं | हम इंसानों के रिश्ते भी कई बार जरूरत के कारण  बन जाते हैं …. ये रिश्ते खून के नहीं होते , जान-पहचान या दोस्ती के भी नहीं होते , पर दोनों एक दूसरे के जीं में किसी कमी को पूरा कर रहे होते हैं | अचानक से हुआ इनका मिलाप इन्हें एक नए रिश्ते मैं बांध देता है ……. लघुकथा -मिलाप     शाम हो चुकी थी। एक बेहद विक्षिप्त लड़का नदी किनारे आकर उसमें कूद जाने की तैयारी में था। तभी उसने एक बूढ़े व्यक्ति को नदी में छलांग लगाते देखा। वह अपना कूदना भूलकर बूढ़े को बचाने के लिए पानी में फौरन उतर गया। उसे तैरना भलीभांति आता नहीं था। उसे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। वह किसी तरह बूढ़े को खींचकर पानी के बाहर तट पर ले आया। बूढ़ा व्यक्ति नीम बेहोशी में था। उसने लड़के से पूछा, ‘‘मुझे…मुझे क्यों बचाया….? मैं जीना नहीं चाहता।’’    लड़के ने पूछा, ‘‘क्यों ?’’    बूढ़े ने कहा, ‘‘मैं बिल्कुल अकेला हो गया हूं। मेरा एक ही बेटा था। वह मुझे छोड़कर चला गया। लेकिन मुझे लगता है, तुम भी कूदनेवाले थे। तुम्हारी क्या मजबूरी है ?’’ पढ़ें –आई एम सॉरी विशिका    लड़का डबडबा गया। उसने कहा, ‘‘मैं भी अकेला हो गया हूं। कुछ समय पहले मां चली गई। अब पिता भी छोड़ गए।’’    दोनों गहरी उदासी में डूब गए और शून्य में ताकते रहे। रात उतरने लगी तो दोनों सड़क की तरफ बढ़ चले। सड़क पर आते-आते दोनों एक-दूसरे के नजदीक आने लगे। सड़क पर आते ही बूढ़े ने लड़के का हाथ पकड़ लिया और निराशा से निकलने की कोशिश में पूछा, ‘‘क्या तुम मेरे साथ रहोगे ?’’    लड़के ने आसमान की ओर देखा। हल्के अंधेरे में एक तारा झिलमिलाता दिखा। तारे की रोशनी उसकी आंखों में भर गई। उसने हल्की मुस्कान के साथ कहा, ‘‘हां, मैं आपके साथ चलूंगा।’’                                                       –ज्ञानदेव मुकेश   यह भी पढ़ें … ‘यूरेका’ की मौत  एक राजकुमारी की कहानी शैतान का सौदा बेटियों की माँ आपको कहानी    “मिलाप  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-HINDI STORY,Short Story, mutual relation, need

सुरक्षित

मृत्यु भय ग्रसित व्यक्ति को पाराधीनता स्वीकार करने में भी सुरक्षित महसूस  होता है | हालांकि ये पराधीनता अपनाने के कई कारण हो सकते हैं पर सुरक्षा सबसे प्रमुख है | जानवर भी इसके अपवाद नहीं | पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की कहानी ………. लघुकथा -सुरक्षित  रात अंधेरे एक तेंदुआ गांव में घुस आया और रहर के खेत में जा बैठा। दीनू काका अहले सुबह शौच पर जा रहे थे। उनकी नजर तेंदुए पर पड़ी। वे सिहर गए। वे लोटा फेंककर उल्टे पांव भागे। बस्ती में आते ही उन्होंने शोर मचा दिया। घर-घर में तेंदुए का दहशत व्याप गया। माओं ने बच्चों को गोद में छुपा लिया। कई मर्दों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। लेकिन कुछ मर्दों ने हिम्मत जुटाई।  हाथों में लाठियां लीं और शोर मचाते हुए रहर की खेत की तरफ बढ़े। उनके हाथों में लाठियों की ताकत थी, मगर दिलों में भय का राज था। उन्होंने रहर के खेत को दो तरफ से घेर लिया। मगर उनमें आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की लघुकथा –छुटकारा      क्षितिज से निकलकर सूरज चढ़ने लगा। प्रकाश चारो तरफ फैल गया। लेकिन तेंदुआ कहीं नजर नहीं आ रहा था। इस बीच किसी ने वन विभाग को सूचना दे दी। विभाग के कर्मचारी एक पिंजड़ा लेकर गांव की तरफ बढ़ चले। तभी खेत के एक छोर से तेंदुए के दौड़ने की आवाज मिली। ऐसा लगा जैसे वह हमला करने बढ़ा हो। कुछ मर्द बिदक गए। मगर शेष लाठियां पटकते हुए आगे बढ़ने लगे।  रहर की झाड़ियों  में घुसते ही तेंदुआ दिख गया। मर्द डर रहे थे। मगर उसी डर में आगे बढ़ रहे थे। तेंदुआ कुछ कदम आगे आता तो कुछ कदम पीछे चला जाता है। लोग डरते-डरते ही सही उसे मारने के लिए अंतिम हमला करने आगे बढ़ गए।    तभी वन विभाग अपना पिंजड़ा लेकर हाजिर हो गया। कर्मचारियों ने पिंजड़ा का दरवाजा खुला रख छोड़ा था। वन विभाग के लोग बंदूकें लिए हुए थे। एक छोर से उन्होंने भी तेंदुए को घेर लिया। डर उनमें भी समाया हुआ था। लाठियों और बंदूको के बीच तेंदुआ भी अब डर रहा था। वह भागा। तभी उसके सामने पिंजड़ा आ गया। गेट खुला था। बदहवासी में वह खुले गेट से पिंजरे में घुस गया। वन विभाग के लोगों ने दौड़कर गेट बंद कर दिया।   गांव और वन विभाग के लोगों ने राहत की सांस ली। उनका डर खत्म हुआ। मगर सच यह था कि िंपंजरे में आने के बाद तेंदुआ खुद को कहीं ज़्यादा महफूज़ महसूस करने लगा था।                                             -ज्ञानदेव मुकेश                                  न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी,                                     पटना-800013 (बिहार)                                                                                                                                  यह भी पढ़ें ………    चुप    लेखिका एक दिन की     वो व्हाट्स एप मेसेज   बिगुल            आपको आपको    “माँ के जेवर “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-short story, short story in hindi, safe, attack

छुटकारा

   हम सब को लगता है कि हम हर समय दूसरों की मदद को तैयार रहते हैं | परन्तु जब मदद की स्थिति आती है तो क्या हम वास्तव में करना चाहते हैं ? कहीं हम इन सब से छुटकारा तो नहीं पाना चाहते | पढ़िए ज्ञानदेव मुकेश जी की एक सशक्त लघुकथा … छुटकारा   सुबह उठते ही मैंने आदतन स्मार्ट फोन उठाया और वाट्सअप खोलकर देखना शुरू किया। सबसे पहले क्रमांक पर हमारे सरकारी ग्रुप पर एक मेसेज आया हुआ था। मेसेज में लिखा था, ‘अपने वरीय अधिकारी, राहुल सर अचानक काफी बीमार पड़ गए हैं। उनके हार्ट का वल्व खराब हो गया है। वे दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में जीवन-मृत्यु की लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका एक बड़ा ऑपरेशन होना है। सभी अधिकारियों से निवेदन है कि उनकी यथासंभव आर्थिक सहायता करें। सहायता की राशि संघ के अध्यक्ष के खाते में जमा की जा सकती है।’    सुबह-सुबह यह समाचार पढ़ मैं स्तब्ध रह गया। मैंने उनकी कुशलता के लिए ईश्वर से तत्क्षण प्रार्थना की। मेरा अगला ध्यान मेसेज में किए गए निवेदन पर गया। मैं बड़ा आश्चर्यचकित हुआ। राहुल सर एक बड़े अधिकारी हैं। उन्हें भला पैसे की क्या कमी ? फिर भी ऐसा निवेदन ? मैं सोच में पड़ गया। मैं उनकी सहायता करूं कि न करूं ? यदि करूं भी तो कौन-सी रकम ठीक होगी ? मैं अजीब उधेड़बुन में फंस गया।     उस रात मैं बड़ा परेशान रहा। मैं कोई निर्णय नहीं कर पा रहा था। ग्रुप पर मेसेज आया था तो कुछ नहीं करना भी शिकायतों को निमंत्रण देना था। यही उधेड़बुन लिए मैंने किसी तरह रात गुजारी।  पढ़िए -कहानी :हकदारी    सुबह होते ही मैंने फिर सबसे पहले अपना फोन उठाया। वाट्सअप खोला। प्रथम क्रमांक पर फिर सरकारी ग्रुप पर मेसेज आया हुआ था। मेसेज पढ़कर मैं धक् सा रह गया। लिखा था, ‘बेहद दुख के साथ सूचित किया जाता है कि अपने प्रिय राहुल सर कल रात में ही हमें छोड़कर चले गए।’    मेरे दुख का ठिकाना न रहा। राहुल सर का चेहरा मेरे सामने घूमने लगा। कुछ देर बाद मैं थोड़ा संयत हुआ। तभी अचानक मुझे एक राहत सी महसूस हुई। आश्चर्य, यह कैसी राहत थी ? मैंने अपने मन को टटोला। मैंने पाया, इस समाचार ने मेरे मन को कल के उधेड़बुन से मुक्त कर दिया था।                                                        -ज्ञानदेव मुकेश                                                                                                                                       न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी,                                                    पटना- (बिहार)                                                                 यह भी पढ़ें … माँ के जेवर अहसास चॉकलेट केक दोष शांति आपको    “छुटकारा “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-Hindi story, Kahani, , Emotional Hindi story,  ,                            

माँ के जेवर

बचपन में जो बेटे माँ मेरी माँ मेरी कह कर झगड़ते थे वही बड़े होने पर माँ तेरी , माँ तेरी ख कर झगड़ते हैं | ऐसी ही एक माँ थी फुलेश्वरी देवी जिसकी सेवा सिर्फ छोटा बेटा ही करता था | फिर भी बड़े बेटे  का फरमान था कि सेवा भले ही छोटा बेटा  कर रहा हो पर माँ के जेवर आधे उसे भी मिलने चाहिए | माँ उसकी इस बात से हताश होती पर उसने भी अपने जेवरों के अनोखे बंटवारे का फैसला कर लिया | लघुकथा -माँ के जेवर  माँ , फुलेश्वरी देवी ,  कम्बल से अपना मुँह ढककर लेटी थी | नींद तो उसकी बहुत पहले खुल गयी थी, पर दोनों बेटों  की बहस सुन रही थी | बहस उसी को लेकर हो रही थी | बड़े भाई छोटे भाई से क्रोध में कह रहा था  ,” देखो , ये सेवा -एव का नाटक ना करो | मुझे पता है तुम माँ की जेवर  के लिए ये सब कर रहे हो | लेकिन कान खोल कर सुन लो , माँ जेवर हम दोनों में आधे -आधे  बंटेंगे | एक नाक की कील भी ज्यादा मैं तुमको नहीं लेने दूंगा |” छोटा भी बोला ,” अगर आप को लगता है कि मं इस लिए सेवा कर रहा हूँ कि माँ के जेवर हड़प लूँ , तो आप ले जाइए माँ को अपने साथ , करिए सेवा और रखिये साथ , फिर सारे जेवर आप ही रख लीजियेगा , मुझे एक भी नहीं चाहिए |” बड़े भाई ने बात काटते हुए कहा ,” वाह बेटा ! वाह इसमें सेवा की बात कहाँ आ गयी | जेवर के बहाने  तुम माँ का भार  मेरे ऊपर डालना चाहते हो | माँ इतने समय से तुमहारे  साथ रह रही है , उसको अगर मैं ले जाउंगा तो उसे वहाँ अच्छा नहीं लगेगा | मेरे बच्चे भी बड़े हो गए हैं , वो भी अपनी पढाई में व्यस्त रहते हैं , माँ दो बातों को तरस जायेंगी | तुम्हारे बच्चे तो अभी छोटे हैं , माँ से दुबक सोते हैं , तुम्हारी पत्नी को भी आराम मिल जाता है , घडी दो घडी का | इसलिए माँ को तुम अपने ही पास रखो , पर जेवर में मुझे भी हिस्सा चाहिए | छोटा भाई बोला ,” मैं तो बस आपके मन की टोह लेने के लिए ऐसा कह रहा था | माँ कहीं नहीं जायेंगी वो हमारे साथ ही रहेंगी | आपको हो ना हो मुझको तो अहसास है कि बचपन में माँ ने इससे ज्यादा सेवा की थी | आप जाइए जेवर के पीछे , और अभी जोर -जोर से मत चिल्लाइये , माँ जाग जायेंगी तो उन्हें बुरा लगेगा | बड़ा भाई – हाँ , हाँ जा रहा हूँ , जा रहा हूँ , पर जेवर की बात ना भुलाना  | बड़ा भाई चला गया |छोटा भाई माँ के कमरे में जाकर देखता है , कि माँ ने सुन न लिया हो उन्हें दुःख होगा |माँ को सोते देख वो चैन की सांस लेता है, फिर अपनी पत्नी को बुलातेहुए कहता है की ध्यन रखना माँ को भैया की बात न पता चले | पत्नी हाँ में सर हिला देती है | माँ की आँखों में आसूँ है | उसे पता कि छोटा बेटा बहु उसकी सेवा करते हैं , दिल से करते हैं , उन्हें पैसे का लालच नहीं है | बड़ा बेटा उसे कभी दो रोटी  को भी नहीं पूछता | जब देखो तब लड़ने चला आता है | उसे माँ से प्यार नहीं , जेवरों से प्यार है | बड़ा बेटा उसकी भी कहाँ सुनता है | हर बार जब भी तू -तू, मैं मैं होती है वो बड़े से तो कुछ नहीं कह पाती , छोटे को ही समझा बुझा कर शांत कर देती है ताकी घर में शांति बनी रहे | ………………… तीन वर्ष ऐसे ही बीत गए | बार – बार हॉस्पिटल  जाना , आना लगा रहता | कभी -कभी कई  दिनों के लिए भी बीमार पड़ती | छोटा बेटा और बहु दौड़ -दौड़ कर सेवा करते | एक बार माँ को मैसिव हार्ट अटैक पड़ा | बचने की उम्मीद कम थी , बस साँसों की डोर थमी थी | सब रिश्तेदार आ कर देख के जा रहे थे | एक दिन अस्पताल में उन्हें देखने उनकी छोटी बहन राधा मौसी भी आई तो माँ ने एक डायरी उसे पकड़ा कर कहा कि मेरा एक काम का देना मेरे मरने के बाद  तेरहवीं  के दिन इसे सबके सामने पढना | बहन डायरी ले कर अपने घर चली गयी | उसी रात माँ के प्राण पखेरू उड़ गए | शायद बहन को डायरी सौंपने के लिए ही प्राण अटके थे | तेरहवीं के दिन जब सब लोग खाने बैठे तो मौसी ने डायरी खोल कर पढना शुरू किया | मेरे बेटों ,                ये डायरी ही मेरी वसीयत है | अक्सर मैं तुम दोनों को  झगड़ते हुए सुनती | मेरी आत्मा बहुत तडपती पर मैं  ये दिखाती कि मैंने सुना ही नहीं है | ज्यादातर जेवरों की बात होती | मैं बताना चाहती हूँ कि मेरे जेवर भण्डार घर की  अलमारी के तीसरे खाने में छोटू के पुराने कपड़ों के नीचे एक डब्बे में रखे हैं | क्योंकि तुम दोनों मेरे ह बच्चे हो इसलिए मैं उन जेवरों को तौल के अनसुर बाँट कर आधा -आधा तुम दोनों को दे रही हूँ |  परन्तु मेरे पास कुछ और जेवर हैं वो मैं छोटे बेटे को दे रही हूँ …. वो है मेरा आशीर्वाद | मैं ढेरों आशीर्वाद अपने छोटे  बेटे के लिए छोड़े  जा रही हूँ क्योंकि सिर्फ उसी ने मेरी निस्वार्थ सेवा करी है |                                                                        तुम्हारी माँ  पत्र सुनते ही लोग छोटे बेटे की जयजयकार करने लगे | छोटे बेटे की आँखों में आँसू थे और बड़ा बेटा सर झुकाए लज्जित खड़ा था | माँ के जेवरों के ऐसे अद्भुत बंटवारे की … Read more