मीठा अहसास

यूँ तो हमारे हर रिश्ते भावनाओं से जुड़े होते हैं परन्तु संतान के साथ रिश्ते के मीठे अहसास की तुलना किसी और रिश्ते से नहीं की जा सकती | इसी अहसास के कारण तो माता -पिता वो कर जाते हैं अपनी संतान के लिए जिसका अहसास उन्हें खुद नहीं होता | ऐसी ही एक लघु कथा …. लघुकथा -मीठा अहसास लोहडी व संक्रान्त जैसे त्यौहार भी विदा ले चुके थे। लेकिन अब कि बार ग्लोबलाइजेशन के चलते ठंड कम होने का नाम नही ले रही थी।ठंड के बारे बूढे लोगो का तो बुरा हाल था,जिसे देखो वही बीमार।हाड-कांप ठंड ने सब अस्त-व्यस्त कर दिया था।देर रात जागने वाले लोग भी अलाव छोड बिस्तरो मे घुसे रहते शाम होते ही। बर्फिली हवा से सब दुखी थे।कही बैठा ना जाता।सब सुनसान हो रहा था।रात छोड दिन मे भी कोहरा दोपहर तक ना खुलता।सूर्य देव आंख -मिचौली मे लगे रहते,कभी दिखते कभी गायब हो जाते। स्कूलो मे भी 15-15दिनो की छुट्टियाँ कर दी गयी थी!पर छोटे बच्चे कहां टिकते है? पर इस ठंड मे वो भी बिस्तर मे दुबक गये थे। बिस्तर पर पडे-पडे मै भी कब यादो के जंगल मे घूमने निकल गयी थी!पुरानी यादे,चलचित्र की रील की तरह मेरे सामने घूम रही थी।मुझे याद आया जब आज से 30 साल पहले मेरे पति की नाइट डयूटी थी। ये उस दिन की बात है जब मेरे पति रात की पारी मे दो बजे घर से चाय पीकर डयूटी पर जा चुके थे!मुझे आठवां महीना लगा हुआ था,और मेरा चार साल का बेटा बिस्तर पर सोया मीठी नींद ले रहा था।पतिदेव जब जाने लगे थे,तो मै उन्हे “बाय” कहने जब गेट पर आयी तो इतने कोहरे को देख मै भी ठंड से कांपने लगी। पतिदेव के जाने के बाद मे कुछ सोचने लगी,अभी दीवाली आने मे समय था,!हर दीवाली पर मै अपने बेटे को नयी डैस जरूर दिलवाती,इस बार सोचा,नयी स्कूल डैस दिलवाऊगी,मेरे बेटे को निकर पहन कर स्कूल जाने की आदत थी,अभी छोटा सा लगता था कद मे।फिर इसी साल स्कूल जाना शुरु किया था।मैनै स्कूल पैन्ट का कपडा लाकर रखा हुआ था,सोच रही थी,किसी दिन टेलर को देकर आऊगी,पर अपनी ऐसी हालत मे जा ही नही पायी,झेप के मारे! आज के कोहरे को देख,कुछ सोचने लगी।इतनी ठंड मे मेरा बेटा स्कूल कैसे जायेगा?कुछ सोचने के बाद मैने खुद उसकी पैन्ट सिलने का फैसला किया!रात के तीन बजे से छह बजे तक मैने पैन्ट सिलकर तैयार कर दी।सात बजे मेरा बेटा जागा,और मैनै उसे गरम पानी से नहला कर नयी पैन्ट पहना दी,वो बडा खुश हो गया,!उसके चेहरे की खुशी देकर मै भी भावविभोर हो गयी और अपनी सारी थकावट भूल गयी,भूल गयी ऐसी हालत मे मुझे मशीन चलानी चाहिये थी या नही। उसकी स्कूल वैन आने वाली थी,मैने उसे लंचबाक्स व बैग देकर विदा किया! पर,ये क्या?वो थोडी देर मे ही वापिस आ गया!मैने पूछा,बेटा,वापिस क्यो आ गये हो? बडी मासूमियत व भोलेपन से बोला,”मम्मी जी”बाहर तो कुछ दिख ही नही रहा!मै समझ गयी असल मे दूर तक फैले कोहरे के कारण उसे घर से दूर खडी स्कूल वैन दिखाई ही नही दे रही थी। तभी उसे मैने प्यार से समझाईश दी,-“बेटा” आप बेफिक्र होकर आगे-आगे चलते चलो,आपको आपकी स्कूल वैन दिख जायेगी।मेरे प्यार से समझाने के बाद वो चला गया था अपने स्कूल।।आज फिर इतने सालो बाद इस कोहरे ने उन दिनो की याद ताजा कर दी थी।एक मीठी याद के रूप मे मेरे मन मस्तिष्क मे गहरी छाप छोड गयी थी। और एक प्रश्न भी,कि अपनी औलाद के स्नेह मे बंधे हम कुछ भी,काम किसी भी समय करने बैठ जाते है ये मीठा अहसास ही तो है जो हमसे करवाता है। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … हकीकत बस एक बार एक टीस प्रश्न पत्र आपको  लघु कथा  “  मीठा अहसास “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – Mother, MOTHER and son, sweet memories

पेट की मज़बूरी

एक बूढ़े बाबा हाथ में झंडा लिए बढ़े ही जा रहे थे, कईयों ने टोका क्योंकि चीफ मिनिस्टर का मंच सजा था, ऐसे कोई ऐरा-गैरा कैसे उनके मंच पर जा सकता था| बब्बू आगे बढ़ के बोला “बाबा ! आप मंच पर मत जाइए, यहाँ बैठिये आप के लिए यही कुर्सी डाल देते हैं |”“बाबा सुनिए तो…” पर बाबा कहाँ रुकने वाले थे|जैसे ही ‘आयोजक’ की नज़र पड़ी, लगा दिए बाबा को दो डंडे, “बूढ़े तुझे समझाया जा रहा है, पर तेरे समझ में नहीं आ रहा”आँख में आँसू भर बाबा बोले, “हाँ बेटा, आजादी के लिए लड़ने से पहले समझना चाहिए था हमें कि हमारी ऐसी कद्र होगी | ‘बहू-बेटा चिल्लाते रहते हैं कि बुड्ढा कागजों में मर गया २५ साल से …पर हमारे लिए बोझ बना बैठा है’, तो आज निकल आया पोते के हाथ से यह झंडा लेकर…, कभी यही झंडा बड़े शान से ले चलता था, पर आज मायूस हूँ जिन्दा जो नहीं हूँ ….|” आँखों से झर-झर आँसू बहते देख आसपास के सारे लोगों की ऑंखें नम हो गईं| बब्बू ने सोचा जो आजादी के लिए लड़ा, कष्ट झेला वह …और जिसने कुछ नहीं किया देश के लिए वह मलाई ….,छी:!“पेट की मज़बूरी है बाबा वरना …|” रुँधे गले से बोल बब्बू चुप हो गया |————–००—————००———— यह भी पढ़ें … वो व्हाट्स एप मेसेज 99 क्लब का सदस्य प्रश्न पत्र भोजन की थाली आपको  लघु कथा  “  पेट की मजबूरी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under – independence, freedom, leader, fight for nation लेखिका का  संक्षिप्त परिचयसम्पूर्ण नाम – सविता मिश्रा ‘अक्षजा’शिक्षा -ग्रेजुएटव्यवसाय..गृहणी (स्वतन्त्र लेखन )लेखन की विधाएँ – लेखन विधा …लेख, लघुकथा, व्यंग्य, संस्मरण, कहानी तथामुक्तक, हायकु -चोका और छंद मुक्त रचनाएँ |प्रकाशित पुस्तकें – .पच्चीस के लगभग सांझा-संग्रहों में हायकु, लघुकथा और कविता तथा कहानी प्रकाशित |प्रकाशन विवरण .. 170 के लगभग रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा बेब पत्रिकाओं में छपी हुई हैं रचनाएँ |दैनिक जागरण- भाष्कर इत्यादि कई अखबारों में भी रचनाएँ प्रकाशित |पुरस्कार/सम्मान –  “महक साहित्यिक सभा” पानीपत में २०१४ को चीफगेस्ट के रूप में भागीदारी |“कलमकार मंच” की ओर से “कलमकार सांत्वना-पुरस्कार” जयपुर (३/२०१८)“हिन्दुस्तानी भाषा  साहित्य समीक्षा सम्मान” हिंदुस्तान भाषा अकादमी (१/२०१८) ‘शब्द निष्ठा लघुकथा सम्मान’ २०१७ अजमेर,  ‘शब्द निष्ठा व्यंग्य सम्मान’ २०१८ अजमेर में |जय-विजय  वेबसाइट द्वारा  लघुकथा विधा में ‘जय विजय रचनाकार सम्मान’  लखनऊ (२०१६)बोल हरयाणा पर प्रस्तुत ‘परिवेश’ नामक कथा, “आगमन समूह” की आगरा जनपद की उपाध्यक्ष,गहमर गाजीपुर में ‘पंडित कपिल देव द्विवेदी स्मृति’ २०१८ में सम्मान से सम्मानित |

गलती

आलीशान कोठी मे रहने वाले दम्पति की बडी खुशहाल फैमली थी।घर की साजो सामान से उनके रहन सहन का पता चलता था।घर के मालिक की उमर चालीस पैन्तालिस के आसपास थी।गठीले बदन घनी-घनी मूंछे उसके चेहरे का रौब बढा देती।रंग ज्यादा गोरा ना था पर फिर भी जंचता खूब था।अपना जमा जमाया बिजनेस था।घर मे विलासिता का सब सामान था।पत्नी भी सुन्दर मिली थी।होगी कोई चालीस बरस की।बडे नाजो मे रखी थी अपनी जीवन संगनी को।कुछ चंचल सी भी थी।पतिदेव को जो फरमाईश कर देती पूरी करवा कर दम लेती।कुल मिलाकर बडी परफैक्ट जोडी थी,यूं कहो मेड फार इच अदर थी। शादी के दस साल बीत जाने के बाद भी जब कोई औलाद नही हुई तब उन दोनो ने एक बिटिया को गोद ले लिया था। बडा प्यार करते दोनो बिटिया को।मधुरिमा नाम रखा उसका।दिन रात वो दोनो बिटिया के आगे पीछे रहते।उसके लिये अलग कमरा,अलग अलमारी यानि जरूरतो का सारा सामान सजा रहता।दिन पर दिन वो बिटिया सुन्दर होती जा रही थी।गोरा सुन्दर रंग उस पर काले लम्बे बाल।सुन्दर सुन्दर पोशाको मे वो बिल्कुल परी जैसी दिखती। मेरे पडोस मे ही उनकी कोठी थी। इस मिलनसार फैमली से मेरी खूब बनती।अक्सर छोटेपन मे मधुरिमा हमारे घर भी आती जाती। समय पंख लगाकर उड रहा था।मधुरिमा अब दसवी क्लास मे पहुंच गयी थी।बडी मासूम व भोली मधुरिमा मुझे भी बहुत भाती।अच्छे स्कूल की कठिन पढाई से निजात पाने हेतु उसने दो-दो टयूशने भी लगा ली थी।सब बढिया चल रहा था।आये दिन उनके घर कोई ना कोई फंक्शन होता,पूरा परिवार चहकता दिखता। हर साल मधुरिमा का जन्मदिन बडे होटल मे मनाया जाता। उस दिन मुझे अचानक किसी काम से उनके घर जाना हुआ,तकरीबन ग्यारह बज रहे थे सुबह के।आतिथ्य सत्कार के बाद मै बैठी हुई थी कि मधुरिमा को उसकी मम्मी ने आवाज लगाई…… मंमी–बेटी उठ जा,ग्यारह बज चुके है!नाश्ता कर लो आकर। मधुरिमा—(चुपचाप सोती रही) मंमी–बेटी उठ जा,कितनी देर से जगा रही हूं!!! मधुरिमा–आंखे खोल कर,,,,मंमी की ओर मुंहकर गुस्से से चिल्लाई–मुझे नही करना नाशता वाशता। मुझे सोने दो,आज मेरी छुट्टी है,मुझे केवल टयूशन जाना है। मंमी झेप सी गयी व चुप हो गयी,और मेरे पास आकर बातचीत करने लगी।थोडी देर मे वो काटने के लिये सब्जियाँ भी उठा लायी और काटने लगी।तभी मैने उठना चाहा पर उन्होने जबरदस्ती से फिर मुझे अपने पास बिठा लिया।हम दोनो बातो मे लग गये। ‌देखते ही देखते दो घंटे बीत गये । मधुरिमा की मम्मी ने किचन मे आकर दोपहर का लंच भी तैयार कर दिया था क्योकि उनके पति का डिफिन लेने नोकर आने वाला था।अब एक बजे फिर से मधुरिमा की मम्मी ने बिटिया को उठाने का उपक्रम किया,मगर फिर वही ढाक के तीन पात।हार कर मैनै भी कह ही दिया कि ये इतना सोयेगी,तो कल क्या करेगी?जब स्कूल जाना होगा। उसकी मम्मी बतलाने लगी,छुट्टी के दिन तो ये हमारी बिल्कुल नही सुनती,कहती है मै तो आज ज्यादा सोऊगी।देखना,अभी टयूशन का टाईम होगा तो अपने आप उठेगी।एक बार तो मैने भी मधुरिमा के कमरे का जायजा लिया,देखती क्या हुं,मधुरिमा आंख खोल कर अपने मोबाईल पर टाईम देख ले रही है और फिर सो जाती। ‌अपने पति का टिफिन नौकर को देकर अब मधुरिमा की मम्मी ने मधुरिमा को उठाने का फैसला किया!लगता था अब उन्हे गुस्सा आ रहा था।हार कर अब मधुरिमा उठी और राकेट की तरह बाथरूम मे घुस गयी।तुरन्त नहाकर टयूशन जाने के लिये तैयार होने लगी।जब वो तैयार हो रही थी तभी उसे घर के बाहर किसी चाट पकोडी बेचने वाले की आवाज सुनाई दी,वो मुस्कुरा दी। ‌मम्मी ने बार-बार लंच करने को कहा,तो हंसकर मधुरिमा ने कहा-मुझे तो चाट-पकोडी खानी है।मम्मी ने समझाईश देनी चाही। मम्मी -बेटी मैने तेरी पसन्द का लंच बनाया,सुबह का नाश्ता भी तेरी पसन्द का बनाया,और तूने चखा भी नही।अब चाट-पकोडी की फरमाईश कर रही है। बिटिया-मम्मी मुझे कुछ नही पता,मैनै जो मांगा है वही मंगाकर दो।सुना आपने। हार कर मम्मी ने नोकर को भेजकर चाट-पकोडी मंगवाई जिसे लेकर वो मेरे सामने दूसरे कमरे मे बैठकर खाकर खुश होकर बुक्स हाथ मे लेकर अपनी स्कूटी स्टार्ट कर टयूशन के लिये निकल गयी। मैं सोचने लगी,मधुरिमा जैसी लडकियां जो अपनी मां का कहना नही मानती,ससुराल मे जाकर किस तरह सेटल होगी,कुसूर किसका है?क्या मां बाप के ज्यादा लाड प्यार का?अथवा मां ने ज्यादा ही सिर पर बैठा लिया? जो मां अपनी बेटी की जमीन शादी से पहले तैयार नही करती,क्या वो शादी के बाद ससुराल मे समायोजन कर पायेगी।मायके मे सब इतना नाज नखरा सहन करेगे क्या ससुराल मे भी ऐसा हो पायेगा?युवा होती इस बिटिया ने मेरे सामने किचन मे झांका तक नही,कया वो हकीकत की दुनिया मे अपने ससुराल जाकर किचन मे पारंगत हो पायेगी।माता-पिता अपने जीवन की सारी पूंजी लगाकर भी क्या अपनी बेटी की खुशियां खरीद पायेगे,हकीकत मे वो एक सुखद गृहस्थी की तारनहार हो पायेगी,?ऐसे अनसुलझे सवालो को लेकर मै अपने घर लौट आयी थी। रीतू गुलाटी ‌ यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये वो व्हाट्स एप मेसेज  लेखिका एक दिन की किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ गलती ‘कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, mistake

वो व्हाट्स एप मेसेज

                     जिसने दो साल तक कोई खोज खबर न ली हो …. अचानक से उसका व्हाट्स एप मेसेज दिल में ना जाने कितने सवालों को भर देता है | क्या एक बार  रिश्तों को छोड़ कर भाग जाने वाला पुन : समर्पित हो सकता है | वो व्हाट्स एप मेसेज  ३१ दिसम्बर रात के ठीक बारह बजे सुमी के मोबाइल पर व्हाट्स एप मेसेजेस की टिंग -टिंग बजनी शुरू हो गयी | मित्रों और परिवार के लोगों को हैप्पी न्यू  इयर का आदान -प्रदान करते हुए अचानक सौरभ के मेसेज को देख वो चौंक गयी | पूरे दो साल में यह पहला मौका था जब  सौरभ ने उससे कांटेक्ट करने की कोशिश की थी | सुमी ने धडकते दिल से मेसेज खोला और मेसेज पढना शुरू किया , ” हैप्पी न्यू इयर सुमी , मैं वापस आ रहा हूँ , तुम्हारे पास , फिर कभी ना जाने के लिए ” उसके नीचे ढेर सारे दिल बने थे | ना चाहते हुए भी सुमी की आँखें भर आयीं | मन दो साल पीछे चला गया | वो दिसंबर की ही कोई सुबह थी , जब वो गुनगुनी धूप में पूजा के लिए फूल तोड़ रही थी , तभी सौरभ ने आकर उसके जीवन में कोहरा भर दिया | सौरभ उसके पास आकर बोला , ” सुमी , मैं कल अपनी सेक्रेटरी मीनल के साथ अमेरिका जा रहा हूँ | अब मैं वहां उसी के साथ रहूँगा ,तुम्हारे लिए बैंक में रुपये छोड़े जा रहा हूँ , अब मेरी जिन्दगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है | वहीँ की वहीँ खड़ी  रह गयी थी सुमी , सँभलने का मौका भी नहीं दिया उसने | सारे फोन कनेक्शन काट लिए , ना कोई प्रश्न पूछा और ना ही किसी बात का उत्तर देने का कोई मौका ही दिया | दो साल … हाँ पूरे दो साल इसी प्रश्न से जूझती रही कि तीन साल की सेजल और डेढ़ साल के गोलू  ,  -घर -परिवार और सौरभ की हर फरमाइश के लिए दिन भर चक्करघिन्नी की तरह नाचने के बावजूद आखिर क्या कमी रह गयी उसके प्रेम व् समर्पण में कि सौरभ उसके हाथ से फिसल कर अपनी सेक्रेटरी के हाथ में चला गया | महीनों बिस्तर पर औंधी पड़ी जल बिन मछली की तरह तडपती थी , उस वजह को जानने के लिए , ये सिर्फ प्रेम में धोखा ही नहीं था उसके आत्मसम्मान को धक्का भी लगा था  | सहेलियों ने ही संभाला था , उस समय  सेजल व् गोलू को | उसे भी समझातीं थीं ,” वो तेरे लायक नहीं था , कायर था , आवारा बादल …. क्या कोई वजह होती तब तो बताता, तू भी सोचना छोड़, भूल जा उस बेवफा को  |  धीरे -धीरे उसने खुद को संभाला , एक स्कूल में पढ़ाना  शुरू किया | जिन्दगी की गाडी पटरी पर आई ही थी कि ये मेसेज | थोड़ी देर मंथन के बाद अपने को संयत कर  उसने मेसेज टाइप  करना शुरू किया , ” सौरभ , वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है , कल तुम आगे बढ़ गए थे पर आज मैं भी वहीँ खड़ी हुई नहीं  हूँ कि तुम लौटो और मैं मिल जाऊं , अब  मैंने  आत्मसम्मान से जीना सीख लिया है अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है | मेसेज सेंड करने के बाद उसके मन में अजीब सी शांति मिली | खिड़की से हल्की -हलकी  रोशिनी कमरे में आने लगी नए साल का नया सवेरा हो चुका था | वंदना बाजपेयी सुरभि में प्रकाशित यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये चोंगे को निमंत्रण चार साधुओं का प्रवचन किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ वो व्हाट्स एप मेसेज “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, whatsapp , whatsapp message

लेखिका एक दिन की

लोगों को लगता है कि लिखना बहुत आसान है | बस अपने मन की बात कागज़ पर उतार देनी है , पर इसके लिए मन के अंदर कितना संघर्ष होता है वो लिखने वाला ही जान सकता है , खासकर लेखिकाएं | शायद इसी कारण आज जितनी लेखिकाएं दिखती हैं उससे कहीं ज्यादा लेखिकाएं अपने पहले प्रयास के बाद खुद ही एक गहरे अँधेरे में गुम हो गयीं | लघु कथा -लेखिका एक दिन की आज पाँच वर्ष हो गए थे | उस भयानक एक्सीडेंट के बाद निधि के आधे शरीर में लकवा मार गया था | वैसे भी तो वो घर के बाहर नहीं निकलती थी पर अब तो जिंदगी एक कमरे में ही सिमिट कर रह गयी थी | निराशा के दौरे पड़ते तो मृत्यु के सिवा कुछ ना सूझता | अवसाद का इलाज करने वाले डॉक्टर ने ही सलाह दी थी कि जो कुछ आप एक हाथ से कर सकती हैं करिए ताकि मन लगे | बचपन में लिखने का शौक था | कितने सपने थे लेखिका बनने के ….घर गृहस्थी के बाद सब छूट गया था |उसने लिखने की इच्छा जाहिर की | पति ने अगले ही दिन आई पैड लाकर दे दिया | मन में कुछ उमंग जागी , हाथों में हरकत हुई | फेसबुक अकाउंट भी बना दिया गया | मेरी डायरी शीर्षक डाल कर कुछ -कुछ लिख दिया | आँख लगने के बाद सबने पढ़ा | सब ने उसके लेखन की तारीफ भी की | एक सशक्त लेखिका उसके अंदर छुपी हुई दिखी | अगले दिन ऑफिस जाते समय टाई ठीक करते हुए पति ने कहा ,” देखो मेरे बारे में कुछ मत लिखना ….मेरे बारे में मतलब जो कुछ मैंने देखा सुना तुमसे कहा है उस बारे में …. और चाहे जो कुछ लिखो |” स्कूल जाते समय बच्चे भी कह गए ,” मम्मी हमारी बातों की फेसबुक पोस्ट मत बना देना …न ही हमारे स्कूल की कोई बात लिखना … और चाहें जो कुछ लिखो | सासू माँ की कमरे से आवाज़ आई , ” अरे तुम लोगों के बारे में नहीं लिखेगी | मेरे बारे में लिखेगी …सासें तो वैसे ही बुरी होती हैं , देखो कुछ भी लिखना मुझे पढ़ा जरूर देना | वो डर गयी | एक भी अक्षर लिखा नहीं गया | सब के पूछने पर कह दिया अब लिखने का मन नहीं करता | और उस पहली पोस्ट के बाद वो एक दिन किलेखिका हमेशा के लिए शब्दों से दूर हो गयी नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … हकीकत मक्कर इंटरव्यू मकान नंबर -१३ आपको  लघु कथा  “ लेखिका एक दिन की ” कैसी   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-short stories, writer, female writer, patient

मक्कर

बिमारी के नाटक को आम देसी भाषा में मक्कर कहा जाता है |  अक्सर औरतों को  थकन महसूस करने पर आराम करने पर मक्कर की उपाधि दी जाती है |  लघु कथा -मक्कर  सुमित के घर आते ही माँ ने बोलना शरू कर दिया ,” आज मुझे फिर से रोटियाँ बनानी पड़ी , तुम्हारी देवी जी तो मक्कर बना कर बैठी हैं कि थकान सी महसूस हो रही है | कब तक चलेगा ये सब ? अरे भाई हम ७५ की उम्र में रोटियाँ थापे और वो ४५ की उम्र में मक्कर बनाये बैठी रहे | एक हमारा जमाना था बुखार में भी पड़ें हो तो भी सास को रसोई में ना घुसने देते थे | लेट -बैठ कर जैसे भी किया बना कर खिलाया | वो जमाना ही और था तब अदब था बुजुर्गों के प्रति |  “देखता हूँ अम्माँ” कह कर सुमित अपनर कमरे में चला गया | मीरा बिस्तर पर लेटी आँसूं बहा रही थी | उसके कमरे और बैठक में दूरी ही कितनी थी | मन भर आया |  सोचा सुमित तो समझेगा | जब से ब्याह कर आई है अपना पूरा शरीर लगा दिया सास -ससुर की सेवा करने में | दोनों ननदों के ब्याह में भी ना काम में ना ली -देने में कोई कमी करी | फिर आखिर क्यों उसकी तकलीफ को कोई समझ नहीं पा रहा है | दिनों -दिन उसकी बढती थकान को क्यों सब मक्कर का नाम दे रहे हैं |  उसकी आशा के विपरीत सुमित भी उसे देखकर  बोला , ” देखो मीरा अब बहुत हो गया ये नाटक , आखिर कौन से जन्म का बदला ले रही हो तुम मेरे माँ -बाप से , महीना हो गया तुम्हें बिमारी का बहना करते -करते | दिखाया तो था डॉक्टर को , खून की कमी बताई है बस टॉनिक और दवाई समय पर लो और काम करो |  “तो क्या तुम्हें लगता है मैं खुद ठीक नहीं होना चाहती ?,”मीरा ने प्रश्न किया | ठीक होना , अरे तुम बीमार ही कब थीं , माँ सही कहतीं है मक्कर , काम करते -करते ऊब गयीं और आराम करने कए बहाना चुन लिया , अभी उस टेस्ट की रिपोर्ट भी आ जायेगी जो डॉक्टर ने बस यूँही मेरा खर्चा करने के लिए किया था , फिर किस तरह से सबको अपना मुँह दिखाओगी  ” कहते हुए सुमित कमरे के बाहर चला गया |  रात भर रोती रही मीरा , सुबह उठने की ताकत भी ना बची | घर की बहु देर तक सोती रहे | घर में कोहराम मचना तय था | अम्माँ ने पूरा घर सर पर उठा लिया | दोपहर तक ननदें भी आ गयी | छोटी ननद  खाना बना कर लायी और बोली , ” खा लो भाभी , अपनी अम्माँ की ये दुर्गति मुझसे तो देखी  ना जायेगी , अब जब तक तुम्हारे मक्कर ठीक नहीं हो जाते तब तक मैं यहीं रहूँगी |  मीरा अपना दर्द पीने  के आलावा कुछ ना कर सकी | दो दिन घर में उसी के मक्कर की चर्चा होती रही |  तीसरे दिन जब सुमित घर लौटे तो थोड़े उदास थे | हाथों में उसकी रिपोर्ट थी | अम्माँ ने डॉक्टर की फ़ाइल देखते ही कहा , ” का हुआ , पता चल गया सब नाटक है |” ननदों ने हाँ में हाँ मिलते हुए कहा , ” हाँ , मक्कर पर मुहर लगे तो हम भी अपने घर लौटें |” सुमित धीरे से बोले , ” अम्माँ , किडनी बहुत ख़राब है , एडमिट करना पड़ेगा | वो डॉक्टर पकड नहीं पाया |  घर में सन्नाटा छा गया |  अपने कमरे में लेती  हुई मीरा सब सुन रही थी | ना जाने क्यों उसे अपनी बीमारी की रिपोर्ट बिना डायगनोस कर के थमाई गयी मक्कर की रिपोर्ट से कम तकलीफदायक लग रही थी |  वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … हकीकत मतलब इंटरव्यू मेकअप आपको  लघु कथा  “  मक्कर लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-short stories, patient, fatigue, dizziness

हकीकत

गाँव की जिंदगी कितनी खुशहाल नज़र आती है , लम्बे चौड़े खेत , बेफिक्र बचपन ,न पढाई की चिंता न किसी प्रतियोगिता की ,  ताज़ा -ताज़ा फल व् सब्जियां….. पर क्या सिर्फ यही हकीकत है |  लघुकथा -हकीकत   बहु का बी .टी .सी . में चयन हो गया था | प्रारंभिक ट्रेनिंग के लिए नरवल जाना था | दीनदयाल जी आज बहुत खुश थे | बरसों बाद गाँव जाने का सपना पूरा हो रहा था | अम्माँ –बाबू के बाद गाँव ऐसा छूटा कि बस यादों में ही सिमिट कर रह गया | खेती-जमीन यूँ तो थी नहीं और जो थी उसके इतने साझीदार थे कि आम की फसल में एक आम चखने को मिल जाए तो भी बड़ी बात लगती थी , फिर भी मन कभी –कभी पुरानी यादों को टटोलने जाना चाहता , तो  पत्नी और बच्चे साफ इनकार कर देते | तर्क होता वहाँ क्या है देखने को ?लिहाजा मन मार कर रह जाते | नरवल उनका अपना गाँव नहीं था , पर गाँव तो था , इस बार सरकारी नौकरी के लालच में बेटा भी साथ जाने को तैयार था | रास्ते भर फूले नहीं समा रहे थे | खेत –खिलिहान देखकर जैसे दामन में भर लेना चाहते हों | गाँवों की निश्छल और खुशनुमा जिन्दगी के बारे में रास्ते भर बेटा –बहु को बताते हुए स्मृतियों का खजाना खाली कर रहे थे | शहर की जिंदगी से ऊबे हुए बेटे –बहु को भी सब सुनना अच्छा लग रहा था | बहु ने चहक कर कहा , “ सही है पापा , जिन्दगी तो गाँव की ही अच्छी है , ताज़ा –ताज़ा तोड़ कर खाने में जो स्वाद है वो शहर की सब्जियों में कहाँ ? बहु की बात पर ख़ुशी से मोहर लगाते हुए दीनदयाल जी ने सड़क के किनारे कद्दू (सीताफल )बेंचते हुए छोटे बच्चे को देखकर गाड़ी रोकी , उनका इरादा अपनी बात सिद्ध करने का था | बच्चे के पास दो कद्दू थे | दीनदयाल जी ने गर्व मिश्रित आवाज़ के साथ कद्दुओं का दाम पूछा ,  “ का भाव दे रहे हो बचुआ ?” बच्चा बोला , “ ई चार का और ऊ पाँच का | दीनदयाल : और दूनो लेबे तो ? बच्चा : तो सात का दीनदयाल : दूनो दियो पाँच का , तो लेबे बच्चा : नाही बाबू , अम्माँ मरिहे दीनदयाल : अम्माँ काहे  को मरिहे , पाँच का दो और छुट्टी करो , हमका दूर जइबे  का है | बच्चा : ना बाबू अम्माँ मरिहे दीनदयाल : अरे अम्माँ खुश हुइए कि बिक गा है , लाओ देओ , कहते हुए दीनदयाल जी ने पाँच का नोट बढ़ा दिया | बच्चे ने सकुचाते हुए कद्दू दीनदयाल जी को सौप दिए | बहु ने खुश होकर कहा , “ पापा , कितना सस्ता है यहाँ पर , आप सही कहते थे | दीनदयाल जी गर्व से भर उठे , आज उन्होंने गाँव की जिन्दगी शहर से अच्छी है को बहु बेटों के आगे सिद्ध कर दिया था | लौटने के रास्ते में भी शहर की सुविधाओं के बावजूद गाँव के  निर्मल जीवन व् सस्ताई की बात होती रही | बेटा –बहु भी हाँ में हाँ मिला रहे थे | सारे काम निपटा कर जब वो सोने चले तो आँखों के आगे उसी बच्चे की तस्वीर घूम गयी | अम्माँ मरिहे शब्द घंटे की तरह दिमाग में गूंजने लगा |  बहु-बेटे पर धाक ज़माने के लिए, सस्ते में  लिए गए कद्दू बहुत महंगे लगने लगे | पूरी रात बेचैनी में कटी | एक बार फिर से अपने बचपन की बदहाली आँखों के आगे तैर गयी | सुबह उठते ही वे गाड़ी स्टार्ट कर नरवल की ओर  उस बच्चे को ढूँढने के लिए निकल पड़े | पत्नी पीछे से  पूछती रही , पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया | कहते भी क्या ? बहु –बच्चों के सामने भले ही उन्होंने गाँव के सस्ते होने को सिद्ध कर  दिया था , पर उस सस्ताई के पीछे छिपे महंगे दर्द की हकीकत को वो जानते थे | वंदना बाजपेयी   यह भी पढ़ें ……. अम्माँ परदे के पीछे अपनी – अपनी आस बदचलन  आपको  लघु कथा  “ हकीकत  “ कैसे लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-short stories, farmer, Indian farmer, price

मतलब

सुनो , “ये करवाचौथ के क्या ढकोसले पाल रखे हैं तुमने ?” कहीं व्रत रखने से भी कभी किसी की उम्र बढ़ी है ? रहोगी तुम गंवार ही , आज जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है , और तुम वही पुराने ज़माने की औरतों की तरह ….इतनी हिम्मत तो होनी चाहिए ना कि परम्परा तोड़ सको |” हर साल तुम्हें समझाता हूँ पर तुम्हारे कानों पर जूं  भी नहीं रेंगती | हर साल करवाचौथ पर गुस्सा करवा -करवा कर तुम मेरी उम्र घटवाती हो , देखना एक दिन मैं  यूँही चीखते -चिल्लाते  चला जाऊँगा भगवान् के घर ….फिर रह जायेंगे तुम्हारे सारे ताम -झाम , नहीं मानेगा करवाचौथ इस घर में | हर बार की तरह दीनानाथ जी के कटु वचनों से मंजुला घायल हो गयी | आँसू पोछते हुए बोली , ” भगवान् के लिए आज के दिन शुभ -शुभ बोलो ,मेरी सारी  पूजा लग जाए,तुम्हारी उम्र  चाँद सितारों जितनी हो | माना की तुम्हें परम्परा में विश्वास नहीं है पर मेरी इसमें आस्था है …. तुम कुछ भी कहो इस घर में करवाचौथ हमेशा ऐसे ही पूरे विधि विधान से मनेगा |” ओह इस मूर्ख औरत को समझाना व्यर्थ है , जब मैं नहीं रहूँगा तो खुद ही अक्ल आ जायेगी | तब नहीं मनेगा इस घर में करवाचौथ | ——————- रात को चाँद अपने शबाब पर था | हर छत पर ब्याह्तायें सज धज कर अपने पति के साथ चलनी से चाँद का दीदार कर रहीं थीं | दीनानाथ जी ने पीछे मुड़ कर अपनी छत पर नज़र डाली | ना वहां चलनी थी , ना दीपक , ना चाँद के इंतज़ार को उत्सुक आँखे | चार साल हो गए मंजुला को तारों के पास गए हुए , तब से इस घर में करवाचौथ नहीं मना | हमेशा करवाचौथ को अपनी उम्र से जोड़कर देखने वाले दीनानाथ जी ने आंसूं पोछते हुए कहा ,”वापस आ जाओ मंजुला अब कभी  नहीं कहूँगा करवाचौथ ना मनाने को | नादान था मैं हर करवाचौथ को तुम्हारा दिल दुखाता रहा …नहीं पता था कि इस घर में करवाचौथ ना मनने का मतलब ये भी हो सकता है | __________________________________________________________________________________ नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें …                                                  वारिस गुटखे की लत  ममत्व की प्यास घूरो चाहें जितना घूरना है                                                    आपको  कहानी  “इंटरव्यू “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-  karvachauth   , story, short story, free read  ,                                     

वारिस

अपने बेटे के विवाह के समय से माता -पिता के मन में एक सपना पलने लगता है कि इस घर को एक वारिस मिले जो खानदान के नाम और परंपरा को जीवित रखे | स्वाभाविक है , पर कभी कभी ऐसा भी होता है कि अपनी इस इच्छा की भट्टी में मासूम बहु की सिसकियों की आहुति उन्हें जरा भी नहीं अखरती |  वारिस शादी की पहली रात यानि सुहागरात वाले दिन ही मेरे पति ने मेरे ऊपर पानी से भरी एक बाल्टी उढ़ेल दी थी ।वो सर्दी की रात और ठन्डा पानी..मुझे अन्दर तक झकझोर गया था । कमरे में आते हुए जब शिव को मैंने देखा था तो चाल ढाल से समझ चुकी थी । कि जिसके साथ मुझे बाँधा गया है वो शायद मन्दबुद्धि है । मेरा शायद आज उसकी इस हरक़त से यक़ीन में बदल चुका था । मैं बिस्तर से उठकर कमरे के बगल वाली कोठरी में कपड़े बदलने पहुँची तो शिव पीछे-पीछे आ पहुँच था । मैं गठरी बन जाना चाहती थी शर्म से । लेकिन वो मुझे नचाना चाहता था । “ ऐ ..नाचो न .., नाचो ..न ..पार्वती ! इसी पेटीकोट में नाचो “ शिव ने जैसे ही कहा मैं हैरत से बोल उठी थी..“ क्यों ? तुम अपनी पत्नि को क्यों नचाना चाहते हो “ “ वो ..न … तब्बू तो ऐसे ही नाचती है न ..जीनत भी नाचती है ..मुंशी जी मुझे ले जाते हैं अपने साथ “ शिव बच्चे की तरह खिलखिलाकर बोल उठा था..। और मुझे नौकरों के बूते पर पले बच्चे की परवरिश साफ नज़र आ रही थी …जिसके घर पर शादी में रंडी नचाना रहीसी था , तो उसके बच्चे का हश्र तो ये होना ही था । मैं समझ चुकी थी आज से मेरे भाग्य फूट गये हैं । पिता जी को कितना बड़ा धोखा दिया था उनके ही रिश्तेदार ने ये सम्बन्ध करवा कर । जमींदार सेठ ईश्वरचंद के घर में उनके इकलौते बेटे को ब्याही पार्वती सिसक उठी थी …“ हे ईश्वर ये तूने क्या किया ..मेरी किस्मत तूने किसके साथ बाँध दी …” अनायास ही उसके मुंह से निकल पड़ा था …।सुबह सेठानी के पैर छूने झुकी तो “ दुधो नहाओ.. पूतों फलो “ ये कहते हुये मुझे गले का हार देते हुये सेठानी बड़े मीठे स्वर में बोली …..धैर्य से काम लेना बहुरिया । पड़ोस में मुंह दिखाई का बुलावा देकर लौटी चंपा ने मुझे कनखियों से जैसे ही देखा मैं समझ गयी थी कि ये भी जानना चाहती है कुछ ..“ काहे भाभी बिटवा कछु कर सके या कोरी ही लौट जईहो “ चंपा का सवाल मुझे बिच्छू के डंक की तरह लगा था । मैं चुप रह गयी थी । दूसरी बिदा में जब ससुराल आई थी तो सेठ जी ने पहले दिन ही कहला दिया था सेठानी से ..,,“ हमारे घर की बहुएं मुंशी , कारिन्दों के आगे मुंह खोल कर नहीं रहती हैं कह देना बहू से । “ छह महीने बीत गये थे , शिव को कोई मतलब नहीं था मुझसे ..होता भी कैसे ? वो मर्द होता तो ही होता न …..अचानक एक दिन ….” बहू से कह दो सेठानी ..! हमारे दोस्त का लड़का आयेगा । उसकी तीमारदारी में कोई कमी न रखे “ सेठ जी ने कहा और अपने कमरे में चले गये.. मैं घूँघट की ओट में सब कुछ समझ चुकी थी । “ये दोगला समाज अपनी साख रखने के लिए अपनी बहू और बेटियों को दाव पर लगाने से भी नहीं चूकता । “ और , मैं उस रात एक अजनबी और उस व्यक्ति को सौंप दी गयी थी जो इस घर को वारिस दे सके….. ( कुसुम पालीवाल, नोयडा) यह भी पढ़ें … मेकअप लेखिका जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “वारिस“कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories,new born, varis

पेशंन का हक

सरकार की पेंशन योजना बुजुर्गों के स्वाभिमान की रक्षा करती है | लेकिन क्या केवल योजना बना देने से बुजुर्गों की समस्याएं दूर हो सकती हैं | क्या ये जरूरी नहीं कि सरकार ये भी सुनिश्चित करे कि अपनी पेंशन निकलने में में उन्हें कोई दिक्कत न हो | पेशंन का हक उस दिन पेशन दफ्तर मे एक बूढी मां को गोद मे उठाए पुत्र को देख मैं चौकं गयी। घोटालो को रोकने हेतू सरकारी आदेशो की पालना के कारण सभी वृद्ध वृद्धा सुबह से ही जमा थे अपने जीवित होने का प्रमाण  देने।एक वृद्धा तो ठंड सहन ना कर पाने के कारण हमेशा के लिये ठंडी हो गयी थी। अब फिर सरकार ने बैकं से पेशन देने का राग अलापा।अब पेशन बैंक से आयेगी इस बात से असहाय वृद्ध ज्यादा दुखी थे जिनके हाथ मे नगद पैसे आते थे। उस दिन बैंक मे एक बूढी स्त्री ने आते ही पूछा.,.मेरी पेशन आ गई?हां””पर 500 रूपये खाते मे छोडने होगे।खाता जो खुला है। उस पर वो दुखी होकर बोली “”””पर अब मुझे 1000 रूपये जरूर दे दो।क्योकि सावन मे मेरी विवाहिता पुत्री मायके आने वाली है।मैं200 रूपये कटवा दूगी हर महीने।तभी मेरी आंखो के सामने शहर के अमीर आडतिये की शक्ल घूम गयी,जो इतना धनी होते हुऐ भी पैशन हेतू चक्कर काट रहा था। असहाय लोगो की मदद रूप मे इस सरकारी पेंशन का वास्तविक हकदार कोन है? काश लोग पेशंन की परिभाषा समझ पाते।। लघुकथा रीतू गुलाटी ऋतु परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “पेशंन का हक “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories,pension