डॉन्ट डिस्टर्व मी

         घर और बाहर दोहरी जिन्दगी जीने वालों के चेहरे , चल , चरित्र और सोच भी दोहरी हो जाती है | उत्तर जानने के लिए पढ़िए  लघु कहानी  डॉन्ट डिस्टर्व मी क्या रोज की खीच -खींच मचा रखी है “तुमने यह नहीं किया तुमने वो किया ” यह कहते हुए सोनाली ने शुभम को अनदेखा कर अपना पर्स उठाया और चल दी । आटो स्टैण्ड पर आ आटो  में बैठ ऑफिस की ओर चल दी , उतर कर कुछ दूरी ऑफिस के लिए पैरों भी जाना होता था । आफीस में पहुँचते ही उसे साथी ने टोक दिया “कि आप लेट हो गयी ,”मुँह बना अपने केविन की ओर जा ही रही थी कि पिओन आ बोला “साहब , बुलाते है , पर्स रख साहब के केविन में पहुँची ,जी सर  । साहब जो एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति था , बोला “व्हाट प्रोब्लम , वाय आर यू सो लेट ? सर आइ नोट लेट , आइ हेव सम प्रोव्लम ,  आइ ट्राई नाट कम टू लेट । अपनी बात को कहते हुए आगे वॉस के आदेश का इन्तजार करने लगी ।             दो मिनट के मौन के बाद वॉस ने आदेश देते हुए कहा कि ” सी मी फाइल्स आॅफ इमेल्स , सेन्ट  टुमारो” मिसेज सोनाली । “यस सर , इन फ्यू मिनट्स ” कहते हुए अपने केविन की ओर चल दी । और फाइल्स को निकालने लगी  । लगभग पन्द्रह मिनट्स बाद फाइल्स हाथ में लेकर वाॅस के आकर बोली ,  देट्स फाइल्स ।          फाइल्स देखते  हुए वाँस,  जो एक अधेड़ उम्र का था , गुड सोनाली,  कहते हुए प्रोमोशन का आश्वासन दिया । प्रफुल्लित होते हुए घर चली आई दरवाजे पर पैर रखते ही  सुबह  शुभम के साथ घटित वाक्या पुनः याद आ गया । डा मधु त्रिवेदी संक्षिप्त परिचय  ————————— .  पूरा नाम : डॉ मधु त्रिवेदी  पदस्थ : शान्ति निकेतन कालेज आॅफ  बिजनेस मैनेजमेंट एण्ड कम्प्यूटर  साइंस आगरा  प्राचार्या, पोस्ट ग्रेडुएट कालेज आगरा  यह भी पढ़ें … परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “ डॉन्ट डिस्टर्व मी “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, ,personality, 

लेखिका

किसी भी काम को तुरंत सफलता नहीं मिलती ,  खासकर अगर वो कोई रचनात्मक काम है | लेखन ऐसा ही काम है पर उसमें निरंतर प्रयास जारी रखने से देर -सवेर सफलता मिलती ही है | लघुकथा -लेखिका  “निशू, तुम सोशल साइट्स पर हर वक्त क्या करती रहती हो?” “तुम दफ्तर चले जाते हो और बच्‍चे स्‍कूल। उसके बाद खाली समय में बोर होती रहती थी। मैंने सोचा क्यों ना कुछ लिखूं, अपने रोजमर्रा के अनुभवों के बारे में, अपने मन के भावों के बारे में।  बस मेरा समय कट जाता है इसीबहाने से।” “समय काटने के और भी तो तरीके हैं बच्चों को ट्यूशन देने लगजाओ और नहीं तो कम से कम कपड़े ही सिलने लग जाओ। चार पैसे तुम्हारे ही काम आएंगे।” अभिषेक ने ताना मारते हुए कहा। बात तो कुछ सही थी। बच्‍चों को टयूशन देने का तो समय नहीं था। आखिर उसे अपने बच्‍चों को भी पढ़ाना ही होता था। घर में सिलाई मशीन भी थी। उसने कपड़े सिलना शुरू कर दिया। लेकिन उसने अपने अनुभवों और भावनाओं को सोशल साइट्स पर लिखना नहीं छोड़ा। उन्‍हें वह रचनाओं का रूप देती रही। एक दिन एकपाक्षिक पत्रिका की तरफ से निमंत्रण मिला। “निशा जी, हम आपको अपनी पत्रिका के लिए अनुबंधित करना चाहते हैं। आपकीरचनाएं सचमुच महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी हैं। हम चाहते हैं कि आप महिलाओं के लिए एक पाक्षिक कालम लिखें। बाद में हम इन रचनाओं पुस्तक रूप में प्रकाशित करना चाहेंगे। अनुबंध कीशर्तें साथ हैं। कालम लिखने के लिए आपको मानदेय मिलेगा और पुस्‍तकों की बिक्री पर नियमानुसार आपको रायल्‍टी दी जाएगी।“ अब अभिषेक खुद इस बात को लोगों को बताते नहीं थकता था। निशा अब अपने शहर में सफल लेखिका का पर्याय बन चुकी थी। –विनोद खनगवाल जिला सोनीपत (हरियाणा) यह भी पढ़ें … गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ टिफिन  आपको    “लेखिका  “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, tempo, short story in hindi, writer

मेकअप

हमारा व्यक्तित्व बाह्य और आंतरिक रूप दोनों से मिलकर बना होता है | परंतु लोगों की दृष्टि पहले बाह्य रूप पर ही पड़ती है | आंतरिक गुण दिखने के लिए भी कई बार बाह्य मेक अप की जरूरत होती है | लघु कथा -मेकअप  विद्यापति जी की  शुरू से धर्म आध्यात्म में गहरी रूचि थी |  अक्सर मंदिर चले जाते और पंडितों के बीच बैठ कर धर्मिक चर्चा शुरू कर देते | धर्म धीरे -धीरे अध्यात्म की ओर बढ़ गया | मानुष मरने के बाद जाता कहाँ हैं , कर्म का सिद्धांत क्या है ? क्या ईश्वर में सबको संहित होना है आदि प्रश्न सर उठाने लगे | अब ये प्रश्न तो मंदिर  की चौखट के अन्दर सुलझने वाले नहीं थे | सो देशी -विदेशी सैंकड़ों किताबें पढ़ डाली | घूम -घूम कर प्रवचनों का आनंद लेते | कई लोगों की शागिर्दगी करी |ज्ञान बढ़ने लगा |                            और जैसा की होता आया है जब कुछ बढ़ जाता है तो बांटने का मन होता है | विद्यापति जी का भी मन हुआ कि चलो अब ये ज्ञान बांटा जाए | लोगों को समझाया जाये की जीवन क्या है | आखिर उन्होंने जो इतनी मेहनत से हासिल किया है उसे आस -पास के लोगों को यूँ हीं दे दें , जिससे उनका भी उद्धार हो | वैसे भी वो चेला ही क्या जिसकी गुरु बनने की इच्छा ही न हो |  उन्होंने ये शुभ काम मुहल्ले के पार्क से शुरू किया | जब भी वो कुछ बोलते चार लोग उनकी बात काट देते | कोई पूरी बात सुनने को तैयार ही नहीं था | यहाँ तक की अम्माँ भी घर में उनकी बात सुनती नहीं थीं | विद्यापति जी बड़े परेशान  हो गए | बरसों के ज्ञान को घर में अम्माँ चुनौती देती तो बाहर  पड़ोस के घनश्याम जी | बस तर्क में उलझ कर रह जाते | अहंकार नाजुक शीशे की तरह टूट जाता और वो टुकड़े मन में चुभते रहते | मन में ‘मैं ‘ जागृत हुआ | मैंने इतना पढ़ा फिर भी मुझे कोई नहीं सुनता |किसी को कद्र ही नहीं है | वही बात टी वी पर कोई कहे तो घंटों समाधी लगाए सुनते रहेंगें | वो तो मन से भी आध्यात्मिक हैं फिर कोईक्यों नहीं सुनता |  पत्नी समझदार थी | पति की परेशानी भाँप गयी , बोली ,  ” सारा दोष आपके मेकअप का है , ये जो आप ब्रांडेड कपडे पहन कर टाई लगा कर और पोलिश किये जूते चटकाकर ज्ञान बांटते हो तो कौन सुनेगा आपको | लोगों को लगता है हमारे जैसे ही तो हैं फिर क्या बात है ख़ास जो हम इन्हें सुने | थोडा मेकअप करना पड़ेगा … हुलिया बदलना पड़ेगा | बात विद्यापति जी को जाँच गयी | अगले दिन सफ़ेद धोती -कुरता ले आये | एक झक सफ़ेद दुशाला और चार -पांच रुद्राक्ष की माला भी खरीद  ली |दाढ़ी -बाल बढाने  शुरू हो गये  | कुछ दिन बाद पूरा मेकअप करके माथे पर बड़ा तिलक लगा कर निकले तो पहले तो माँ ही सहम गयीं , ” अरे ई तो सच्ची में साधू सन्यासी हो गया | उस दिन माँ ने बड़ी श्रद्धा से उनके मुंह से रामायण सुनी | विद्यापति जी का आत्मविश्वास बढ़ गया |  घर के बाहर निकलते ही चर्चा आम हो गयी | विद्यापति जी बड़े ज्ञानी हो गए हैं | साधारण वस्त्र त्याग दिए | हुलिया ही बदल लिया , अब ज्ञान बांटते हैं | आज पार्क में भी सबने उन्हें ध्यान  सुना | धीरे -धीरे पार्क में उन्हें सुनने वालों की भीड़ बढ़ने लगी | आज विद्यापति जी के हाथों में भी रुद्राक्ष  की मालाएं  लिपटी होती हैं , पैरों में खडाऊं  आ गए हैं …. अब उन्हें सुनने दूसरे शहरों  से भी लोग आते हैं | नीलम गुप्ता * मित्रों हम जो भी काम करें उसके अनुरूप परिधान होने चाहिए | उसके बिना बिना हमारी बात का उतना प्रभाव नहीं पड़ता | फिल्मों में भी किसी चरित्र को निभाने से पहले उसके गेट अप में आना पड़ता है |असली जिंदगी में भी यही होता है | आप जो भी करे आप के वेशभूषा उसी के अनुरूप हो | यह भी पढ़ें …….. परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “ मेकअप “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, makeup,personality, spiritual guru

टैम्पोवाली

             ये सही है कि जमाना बदल रहा है पर स्त्रियों के प्रति सोच बदलने में समय लगेगा | ये बात जहाँ निराशा उत्पन्न करती है वहीँ कई लोग ऐसे भी हैं जो आशा की किरण बन कर उभरते हैं | एक ऐसे ही किरण चमकी टैम्पो वाली की जिंदगी में  लघुकथा -टैम्पोवाली सुबह का अलार्म जो बजता है उसके साथ ही दिन भर का एक टाइम टेबल उसकी आँखों के सामने से गुजर जाता । जल्द ही काम सिमटा कर  बूढ़ी माँ की अाज्ञा ले सिटी के मुख्य चौराहे परअपना टैम्पो को खड़ा कर लेंती थी यहाँ पर और भी टैम्पो खड़े होते थे लेकिन महिला टैम्पो वाली नाक के बराबर थी इन रिक्शे वालों के बीच से घूरती कुछ आँखे उसके चेहरे पर आ टिक जाती थी एक सिहरन फैल जाती उसके बाॅडी में । वो सिकुड़ रह जाती है। सोचने को मजबूर हो जाती कि भगवान ने पुरूष महिला के बीच भेद को मिटा क्यों नहीं दिया जो उसे लोगों की घूरती निगाहें आर-पार हो जाती है ।                  सिर से पैर तक अपने को ढके वो अपने काम में लीन रहती हर रेड लाइट पर रूक उसको ट्रेफिक पुलिस से भी दो चार होना पड़ता , यह पुलिस भी गरीब को सताती है और अमीर के सामने बोलती बंद हो जाती है ।      शादीशुदा होने के बावजूद उसको पति का हाथ बँटाने के लिए यह निर्णय लेना पड़ा पति जो टैम्पो चालक था सिटी के मुख्य रेलवे स्टेशन पर टैम्पो खड़ा कर देता था चूँकि वह एक पुरूष था इसलिए सब कुछ ठीक चलता लेकिन टैम्पो वाली दो चार ऐसी खड़ूस सवारी मिल जाती थी जो पाँच के स्थान पर तीन रूपये ही देती और आगे बढ जाती ।         दिन प्रतिदिन यही चलता शाम को घर लौटने पर बेटी बेटे की देख रेख करना और सासु के साथ हाथ बँटाना रात थक बच्चों के साथ सो जाना । वाकई रोटी का संकट भी विचित्र होता है सब कुछ करा देता है । सुबह से शाम तक सिटी के चौराहों की धूल फाँकना सवारी को बैठाना और उतारना और कहीँ कहीँ पुरुष की सूरत में  बैठने वाले कुत्तों से दो चार होना यहीँ जीवन चर्या थी ।  और …पासा पलट गया            एक बार उसका टैम्पो कई दिन तक नहीं निकला तो उसकी रोजमर्रा की सवारी थी उसमें से एक जो उसके टैम्पों से आफिस जाया करता था बरबस ही उसके विषय में सोचने लगा कि “ऐसा क्या हुआ जो वो दिखाई नहीं देती ” पर पता न होने के कारण ढूढ़ भी नही सका ।                   टैम्पोवाली का  बीमारी से शरीर बहुत दुर्बल हो गया था एक रोज जब वह किसी दोस्त से मिलने जा रहा था तो वही टैम्पो खड़ा देखा जिस पर अक्सर बैठ आफिस जाता था पूछताछ करने पर पता लगा कि वो पास ही रहती है ।                 पता कर घर पहुँचा तो माँ बाहर आई “बोली , बाबू किते से आये हो और किस्से मिलना है ” संकुचाते हुए उसने टैम्पो वाली के विषय में पूछा तो पता लगा , बीमार है और पैसे न होने के कारण इलाज नहीं हो सकता  , बताते हुए माँ सिसकने लगती है ” वो व्यक्ति कुछ पैसे निकाल देता है इलाज के लिए ।           बच इसी बीच उसका पति अपना टैम्पो ले आ जाता है वस्तुस्थिति को समझते हुए पति हाथ जोड़ पैर में गिर पड़ता है और सोचने लगता है कि दुनियाँ में नेक लोगों की कमी नहीं । डॉ . मधु त्रिवेदी  यह भी पढ़ें … गलती किसकी स्वाभाव जीवन बोझ टिफिन  आपको    “टैम्पोवाली “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, tempo, short story in hindi

और …पासा पलट गया

एक कहावत है , ” बड़ा कौर खा ले पर बड़ी बात बोले ” | कहावत बनाने वाले बना गए पर लोग जब -तब जो मन में आया बोलते ही रहते हैं …. इस बात से बेखबर की जब पासे पलटते हैं तो उन्हीं की बात उन के विपरीत आ कर खड़ी हो जाती है | और …पासा पलट गया  श्रीमती देसाई मुहल्ले में  गुप्ता जी की बड़ी बेटी श्यामा के बारे में सब से  अक्सर कहा करतीं , ” अरे देखना उसकी शादी नहीं होगी | रंग देखा है तवे सा काला है | कोई अच्छे घर का लड़का तो मिलेगा ही नहीं |हाँ पैसे के जोर पर कहीं कर दें तो कर दें, पर मोटी  रकम देनी पड़ेगी “|मैं तो करोंड़ों रुपये ले कर भी अपने मोहित के लिए ऐसे बहु न लाऊं कहते हुए वो अपने खूबसूरत बेटे मोहित को गर्व से देखा करतीं , जो वहीँ माँ के पास खेल रहा होता | मोहित माँ को देखता फिर खेलने में जुट जाता | मुहल्ले वाले हाँ में हाँ मिलाते , हाँ रंग तो बहुत दबा हुआ है | पर क्या पता पैसे जोड़ रही हों | तभी तो देखो किसी से मिलती -जुलती नहीं | अपने में ही सीमित रहती हैं | अब आने जाने में खर्चा तो होता ही है | मुहल्ले की इन बातों से बेखबर श्रीमती गुप्ता अपनी बेटी श्यामा को अच्छी शिक्षा व् संस्कार देने में लगी हुई थीं |क्योंकि वो कहीं जाती नहीं थीं , इसलिए उन्हें पता ही नहीं था कि श्रीमती देसाईं उनके बारे में क्या कहती हैं | कुछ साल बाद उनका तबादला दूसरे शहर में हो गया | अब श्रीमती देसाई का शिकार मुहल्ले की कोई दूसरी महिला हो गयी थी | समय पंख लगा कर उड़ गया |  युवा मोहित ने माँ के सामने  श्यामा के साथ शादी की इच्छा जाहिर की | श्यामा  , अब IIT से  इंजिनीयरिंग करने के बाद उसी MNC में काम करती थी जिसमें मोहित था | कब श्यामा के गुणों पर मोहित फ़िदा हो गया किसी को पता नहीं चला | मोहित ने सबसे पहले बताया भी तो माँ को , वो भी इस ताकीद के साथ कि अगर ये शादी नहीं हुई तो कभी शादी नहीं करेगा | माँ की मिन्नतों और आंसुओं का मोहित पर कोई असर नहीं हुआ | मजबूरन श्रीमती देसाई को  हाँ बोलनी पड़ी | शादी के रिसेप्शन में चर्चा आम थी …. ” लगता है श्रीमती देसाई को करोंड़ों रूपये मिल गए हैं तभी तो वो श्यामा से मोहित की शादी के लिए राजी हुई | “ नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … परिवार चॉकलेट केक अपनी अपनी आस बदचलन  आपको    “ और …पासा पलट गया “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, dice, life

बेबसी

बुढ़ापा हमेशा से बेबस होता है , उसकी ये बेबसी उसकी संतान के लिए अपनी बात मनवाने का जरिया बन जाती है | लघुकथा –बेबसी  पिताजी!! जब से बंटवारा हुआ है, तब से तो खेती करना मुश्किल हो गया है। अब जमीन इतनी बची नहीं कि खेती के सारे उपकरण खरीद कर खेती कर सकें। इन्हें खरीद कर तो हम बैंक ब्याज भरते भरते ही मर मिटेंगे। और पैसे देकर खेती कराने पर भी हाथ पल्लेे को कुछ बचता नहीं। ऊपर से ये बरसात, कभी बिन बुलायी मेहमान और कभी गूलर का फूल हो रही है “। ” ह्मम् ! बात तो तेरी ठीक है बेटा! ” पिताजी ने खाट पर पडे़ पडे़ ही बीडी़ में दम मारते हुए बेटे की बातों का हुंकारा भर दिया। पिताजी! सुना है गांव के पास से सड़क निकलने वाली है, कुछ दिन से गांव में बिल्डरों की आवाजाही बढ़ रही है। बडी़ ऊंची कीमत पर जमीन खरीद रहे हैं।गांव में कई लोगों ने तो बेच भी दी। मैं सोच रहा हूं क्यूं न हम भी….” “ना बेटा! ऐसा तो सोचना भी मत! जानता नहीं धरती हमारी मां होवे है। इसे कभी ना बेचेंगे” ” पर पिताजी हम उस पैसे से दूसरी जगह पर सस्ती और ज्यादा जमीन खरीद लेंगें “” ना बेटा ना, तू मुझे ना समझा!! जब तलक मैं जिन्दा हूं, एक इन्च धरती भी इधर से उधर न करने दूंगा। दोनों में बहस से माहौल गर्माता जा रहा था। न पिता झुकने के लिये तैयार थे, न पुत्र। “पिताजी! मैं तो यही चाहता था, कि तुम दस पांच सालऔर बैठे रहते और हमारा मार्गदर्शन करते रहते ” रमेश ने अपने क्रोध पर अंकुश लगातेे हुए कहा। ” तू कहना क्या चाहवै बेटा ” पिता ने शंका भरी नजरों से बेटे की तरफ देखा। ” कुछ नहीं पिताजी! बस मैं तो ये बता रहा था वो जो फिछले दिनों सतीश के पिताजी गुजरे थे ना, जिन्हें सब हार्ट अटैक बता रहे थे। वो अटैक ना था।वो तो सतीश ने ही….., और वो राजेश के चाचा का भी दो महिने से कुछ पता न चल रहा है, लोग तो कह रहे है कि राजेश ने ही उन्हें उरे परे कर दिया है। पिताजी रमेश के इशारे को समझ चुके थे। ” हां बेटा बात तो तेरी बिल्कुल सही है खेती में कुछ न बच रहा अब। तू कल ही बिल्डरों से बात कर ले और तू जहां कहेगा वहां दस्तखत कर दूंगा। सुनीता त्यागी मेरठ यह भी पढ़ें …. उल्टा दहेज़ दो जून की रोटी आप पढेंगें न पापा दूसरा विवाह आपको    “  बेबसी “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, 

चुप

यूँ तो चुप रह जाना आम बात है | ये चुप्पी हमेशा इसलिए नहीं होती कि कहने को कुछ नहीं है बल्कि इसलिए भी होती है कि कहने को इतना कुछ है है जिसे शब्दों में न बाँधा जा सके | लघुकथा -चुप  अपने शहर से दूर होने के कारण विवाहिता पुत्री जल्दी ..जल्दी अपने माता पिता से मिल पाने मे असमर्थ थी।माता पिता दोनो ही बीमार रहते।अत: उसने अपने मन की बात अपनी मम्मी से सांझा की। बेटी:मम्मी आप मेरे शहर आ जाओ!मै बहुत मिस करती हूं आप दोनो को। मम्मी: सही कहा ,बेटी बेटी: आप दोनो की फिकर लगी रहती है!जल्दी से आ भी नही पाती मिलने!इतना लम्बा सफर है कैसे आऊ? ये तो सही कहा..बेटी,,मां ने मुस्कुराकर हां मे गर्दन हिलाई। बेटी: मम्मी आप लोग मेरे पास शिफ्ट हो जाओ!कई बार मुझे बुरे बुरे ख्याल आ जाते है?मै परेशान हो जाती हूं। मम्मी:बेटी,,इतना आसान नही है शिफ्ट होना!इस बुढापे मे इतना सामान लेकर नये सिरे से जमाना। बेटी: क्या दिक्कत है?इस घर को बेचो!और वहां जाकर ले लो। मम्मी:बेटी,ये छोटा शहर है,,यहां सस्ता बिकेगा वहां मंहगा खरीदना पढेगा,,,वो शहर बडा है,बडे शहर की बडी बाते!सब कुछ मंहगा होगा!यहां थोडे मे गुजर हो जाती है,वहां जरुरते बढते देर ना लगेगी!इस बुढापे मे जितनी जरुरतो पर विराम लगे उतना अच्छा है!थोडा सफर बाकी रह गया हैजिन्दगी का,,,,.,,यही कट जायेगा!तू इतना ना सोच बेटी। बेटी: मम्मी एक बात कहू!बुरा तो नही मानोगे? मम्मी:बोल,,क्या है तेरे मन मे? बेटी:मम्मी अगर आप अपना मकान नही बेचना चाहते तो ये मकान किराये पे चढा दो!मै आपके लिये एक फ्लैट ले देती हूं!मेरी आंखो के सामने रहोगे तो मुझे सुकून रहेगा!मौका मिलते ही वीक एंड पर मै आपसे मिलने आ जाया कंरुगी!मन तो बहुत करता है पर आफिस जाने की मजबूरी व छुट्टी ना मिल पाने के कारण छह छह माह मिलने नही आ पाती!नजदीक होगे तो जल्दी आ जाया कंरुगी। मम्मी:नही,नही बेटी हमारी चिन्ता छोडो,,तुम अपनी गृहस्थी पर फोकस करो!हमारा यहां काम चल रहा है,तुम खुश रहो,सुखी रहो,!तुमने हमारे बारे मे इतना सोचा,यही कुछ कम है! बेटी:मम्मी मै आपका बेटा हूं,!आज कोई फर्क नही है,बेटी या बेटे मे! मै दोनो परिवारो की जिम्मेवारी उठा सकती हूं,आपने मुझे इतनी सशंक्त बनाया है!आप बेफिकर रहे,मेरे पास आकर शिफ्ट हो जाये! बेटी की बाते सुनकर मन प्रसन्नता से खिल उठा,पर ,,,,,,,,बेटी के पास,,,,,,,….कुछ सोच चुप रहना ही ठीक लगा। रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … फैसला  मैं तुम्हें हारने नहीं दूंगा, माँ तीन तल भगवान् ने दंड क्यों नहीं दिया दूसरा विवाह आपको    “  चुप “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, silence

मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ

क्या किसी इम्तिहान में  हार , जिन्दगी की हार है , क्या फिर से कोशिश नहीं की जा सकती ,जबकि हमें पता है कि हर सफल व्यक्ति न जाने कितनी बार सफल हुआ है | एग्जाम के रिजल्ट से निराश हुए बच्चों के लिए … प्रेरक कथा -मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ बेटा फोन उठाओ ना , तीसरी बार जब पूरी  रिंग के बाद भी बेटे वैभव  ने फोन नहीं उठाया तो  मधु की आँखों से गंगा -जमुना बहने लगी , दिल तेजी से धड़कने लगा …. कुछ अनहोनी तो नहीं हो गयी | आज ही IIT का रिजल्ट आया है  और वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | रिजल्ट  वैभव ने घर पर ही देखा था पर उसे बताया नहीं , दोस्तों से मिल कर आता हूँ माँ कह कर तीर की तरह निकल गया |  उसने सोचा था अभी रिजल्ट नहीं निकला होगा … थोड़ी देर में आकर देखेगा | वो तो जब बड़ी बेटी घर आई और वैभव के रिजल्ट के बारे में पूंछने लगी तो  उसका ध्यान गया | बड़ी बेटी ने ही लैपटॉप खोल कर रिजल्ट देखा …. वैभव का सिलेक्शन नहीं हुआ था | उसी ने बताया रिजल्ट तो दो घंटे पहले निकल गया था | ओह … उसे माजरा समझते देर ना लगी …. वैभव ने रिजल्ट देख लिया , इसीलिये दुखी हो कर वो घर से बाहर चला गया | मधु का दिल चीख पड़ा … कितनी मेहनत की थी उसने , पिछली बार तो जब IIT में रैंक पीछे की आई थी तो उसने ही ड्राप कर रैंक सुधारने का फैसला लिया था | उसने बेटे की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी समझ कर हाँ कर दी थी , पति विपुल की मृत्यु के बाद और था ही कौन जिससे वो राय मशविरा करती |विपुल जब उसके ऊपर तीनों बच्चों को छोड़ दूसरी दुनिया चले गए थे  , तब आगे के कमरे में केक बना कर अपना व् बच्चों का गुज़ारा चलाते हुए उसने कभी बच्चों को किसी तरह की कमी महसूस नहीं होने दी | बस यही प्रयास था बच्चे पढ़ लिख कर काबिल बन जाएँ | वैभव सबसे बड़ा था , उसके बाद दो बेटियाँ … वो अकेली कमाने वाली | उसने वैभव पर कभी दवाब भी नहीं डाला था पर  वैभव खुद ही  चाहता था कि वो  बहुत आगे बढे , जीते और अपनी माँ का नाम ऊँचा करे | इसी लिए तो दिन -रात पढाई में लगा रहता … न खाने की सुध न सोने की | जब भी वो  कुछ कहती तो उसके पास एक ही उत्तर होता ,  ” मैं तुम्हें हारने नहीं दूँगा , माँ ”  तो क्या वैभव इस हार को बर्दाश्त न कर के …. नहीं नहीं , ऐसा नहीं हो सकता सोचकर उसने फिर से फोन मिलाना शुरू किया | उसकी आँखों के सामने वो सारी  खबरे घूमने लगीं जो उन बच्चों की थीं जिन्होंने परीक्षाफल से निराश होकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली थी | उनमें से कई अच्छे लेखक बन सकते थे , कई इंटीरियर डेकोरेटर कई अच्छे शेफ …. पर …वो सब एक हार से पूरी तरह हार गए |  उसकी आँखों के आगे उन  रोती -बिलखती माओं के चेहरे घूमने लगे | आज क्या दूसरों की खबर उसकी हकीकत बन जायेगी … नहीं … उसने और तेज़ी से फोन मिलाना शुरू किया | तभी दरवाजे की घंटी बजी | वो बड़ी आशा से दरवाजा खोलने भागी | छोटी बेटी थी | माँ को बदहवास देखकर वो सहम गयी | बड़ी ने छोटी को संभाला | मधु ने निश्चय किया कि वो पुलिस को खबर  कर दे | बहुत हिम्मत करके उसने दरवाजा खोला …. सामने वैभव खड़ा था | उसने रोते हुए वैभव को गले लगा लिया |  दोनों बहने भी वैभव के गले लग गयी |  सब को देख कर हड्बड़ाये हुए वैभव ने पुछा ,  ” क्या हुआ है माँ … सब ठीक तो है , आप लोग इतने परेशान  क्यों हैं |  मधु ने रोते हुए सब बता दिया | ओह !कह कर वैभव बोला , ” माफ़ करना माँ मैंने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया | मैंने सोचा मैंने तो तुम्हें रिजल्ट बताया नहीं है , ये सच है कि  जब मैंने देखा कि मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ है तो मुझे धक्का लगा  फिर मैंने देखा  मेरा दोस्त निशान जिसने मेरे साथ  ही ड्राप किया था उसका भी सिलेक्शन नहीं हुआ है | मुझे याद आया उसने दो दिन पहले ही कहा था कि  अगर मेरा सेलेक्शन  नहीं हुआ तो मैं गंगा बैराज से कूद कर जान दे दूँगा | उसी घबराहट में मैं उससे बात करने के लिए घर से निकल गया | वो अपने घर से जा चुका था , बाहर बारिश हो रही  थी | फोन भीग न जाए इसलिए मैंने  फोन उसके घर साइलेंट पर करके रख दिया और   निशान को खोजने निकल पड़ा | मैं  उसके कहे के अनुसार गंगा बैराज पर पहुंचा …. निशान वही था … वो कुछ लिख रहा था | मैंने जल्दी से जा कर उसे गले लगाया , हम दोनों देर तक रोते रहे |  जब चुप हुए तो मैंने उसे समझाया , ” मूर्ख क्या करने चला था , कभी सोचा  अपनी माँ के बारे में , तुझसे ये हार सहन नहीं हो रही और वो तेरा दुःख भी झेलेंगी और  सारी  जिन्दगी ये हार झेलेंगी की वो एक अच्छी माँ नहीं हैं | लोग तो यही कहेंगे ना कि माता -पिता बहुत दवाब डालते थे … जान ले ली अपने ही बच्चे की | तुझे केवल अपनी हार दिखी उनकी हार नहीं दिखी | निशान फिर रोने लगा , ” हां , सच कहा , मैं स्वार्थी हो गया था … उस समय मुझे अपने आलावा कुछ नहीं दिख रहा था | जीवन है तो फिर जीत सकते हैं … लेकिन मेरे माता -पिता जो हारते वो कभी ना जीत पाते | मधु अपने बेटे की मुँह से ऐसे बात सुन कर रोने लगी |  वैभव उसके पास आ कर बोला , ” माँ , तुम्हारे  लिए भी तो आसान  था जब पिताजी छोड़ कर चले … Read more

उल्टा दहेज़

हमारे समाज में विवाह में वर पक्ष द्वारा दहेज़ लेना एक ऐसी परंपरा है जो  लड़कियों को लड़कों से कमतर सिद्ध करती है | अगर दहेज़ परंपरा इतनी ही जरूरी है तो आज जब लडकियाँ आत्मनिर्भर है और पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं  तो क्यों उल्टा दहेज़ लिया जाए |  लघुकथा -उल्टा दहेज़  अरे तुम  अभी तक तैयार नहीं हुई ,कहा था न तुम्हें आज लड़के वाले देखने आने वाले हैं |  नहीं माँ मुझे उस लड़के से शादी नहीं करनी |  शादी नहीं करनी … इसका क्या मतलब है | माँ मेरे हिसाब से ये लड़का ठीक नहीं है | मैंने आपकी और पापा की बात सुन ली थी | वो लोग दहेज़ में ४० लाख रुपये मांग रहे  हैं | ये तो समाज का चलन है | सदियों से यही होता आ रहा है | सदियों से यह होता आ रहा माँ उसके लिए मैं तो कुछ नहीं कर सकती | लेकिन जो लड़का पढ़ लिख कर गलत परम्पराओं में अपने माता -पिता का साथ दे रहा है , मैं उससे शादी नहीं कर सकती |  कभी सोचा है , तुम्हारी उम्र निकली जा रही है | आगे पढने और अपने पैरों खड़े होने की तुम्हारी जिद्द  का मान  रखते हुए हमने तुम्हें मनमानी करने दी | परिवार की सब लड़कियों की शादी हो गयी , एक तुम ही बैठी हो , कभी सोचा है , उम्र निकली जा रही है |  माँ  दहेज़ लेना गलत है , फिर आप जानती हैं कि उस लड़के की तनख्वाह मुझसे बहुत कम है , फिर भी उनकी इतनी मांग , और क्या मतलब है माँ कि उम्र निकली जा रही है , क्या वो लड़का मुझसे उम्र में छोटा है |  अरे , लड़कों का तो चलता है | उनकी उम्र बढ़ना मायने नहीं रखता | रही बात तनख्वाह की तो तेरी उम्र निकली जा रही है ऐसे में कहाँ से लाऊं तुझ सा लाखों कमाने वाला , उम्र दो चार साल और बढ़ गयी तो कोई पूंछेगा भी नहीं | कम से कम हमारे बुढापे के बारे में सोचो ,  लोग कितनी बातें बना रहे हैं | तुम्हारे हाथ पीले हो तो हम भी दुनिया से आँख मिला कर बात करें | ( आँसूं पोछते हुए ) तुम्हारी इस जिद ने हमें किसी के आगे आँख उठाने लायक नहीं छोड़ा है |  ओह , तो फिर ठीक है , मैं शादी को तैयार हूँ , पर मेरी एक शर्त है |  क्या ? मुझे ४० लाख दहेज़ चाहिए | जो तुम लोगों ने मेरी पढाई के लिए  में खर्च किया है  उसके एवज में |  दिमाग ख़राब हो गया है क्या ?ये उल्टा दहेज़ कैसा ? माँ आज तक दहेज़ देते ही इस लिए थे की लड़की को फाइनेंशियल प्रोटेक्शन मिले | अब  जब  मैं उस परिवार को और लड़के को फाइनेंसियल प्रोटेक्शन दूँगी | तो दहेज़ लेने का हक़ मेरा हुआ | भले ही आपके हिसाब से ये उल्टा दहेज़ हो |  नीलम गुप्ता  * दहेज़ जैसे कुप्रथा हमारे समाज से जाने का नाम नहीं ले रही है | ” उल्टा दहेज़ क्या उस प्रथा को खत्म करने में कारगर हो सकता है | कृपया अपने विचार रखे |  यह भी पढ़ें … फैसला अहसास तीसरा कोण तीन तल दूसरा विवाह आपको    “ उल्टा दहेज़ “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, dowry, against dowry

फैसला

आज भारतीय नारी बदल चुकी है | आज वो , वो फैसला लेने की हिम्मत रखती है जिसे वर्षों पहले लेने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी |  फैसला  वह कई दिनों से उसे बार बार खुद को अपनाने के लिए परेशान कर रहा था I कभी फोन पर तो कभी सरे राह !बड़ी मुश्किल से वह अपने जीवन को पटरी पर लेकर आई ही थी कि अचानक एक बार फिर शांत झील में फिर से एक कंकर फेंकने की कोशिश कर रहा था I उस दिन तो घर ही आ गया I वो तो अच्छा था बच्चे घर पर नहीं थे वर्ना ….I आखिरकार उसने मन ही मन निश्चय किया कि आज वह फैसला कर ही लेगी I  इससे पहले कि वह एक बार फिर घर के दरवाजे पर ही गिड़गिड़ाने लगे ,उसे भीतर बुला लिया उसने I उसकी हिम्मत बढ़ी I  कहने लगा – ‘ सोमु ,मुझे क्षमा कर दो I मैं भटक गया था I तुम्हारे जैसी पत्नी और फूल से बच्चों को छोड़ उस मायाविनी निशा के चंगुल में फंस गया था और तुमने भी तो मुझे नहीं रोका ! संभाल लेती मुझे ! वह मुझे बर्बाद कर सारे पैसे लेकर निकल भागी I वह आँखों में आंसू लिए उसके घुटने पर अपना सर रख सिसक पड़ा I मैं वादा करता हूँ सोमु !अब एक अच्छा पति ……I उसका वाक्य पूरा होने से पहले ही उसने उसके मुँह पर अपनी अंगुलिया रख दी ,उसका हाथ अपने हाथों में ले बोली – ‘ मैं सब कुछ भूलने को तैयार हूँ ,पर उससे पहले मैं भी तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ I  ‘ हाँ हाँ कहो न ! ‘वह उत्साहित हो बोला’ मैं जनता था तुम एक सच्ची भारतीय नारी हो !एक दिन मुझे जरूर माफ़ कर दोगी I ‘ वह भीतर ही भीतर कट कर रह गयी जैसे यह सुन कर I पर उसकी आँखों की दृढ़ता कुछ और ही कह रही थी I‘ म …म …मुझसे भी कुछ गलती हुई है ! ‘‘क …क …कैसी गलती ? ‘ वह आशंकित हो उठा I‘दरअसल तुम्हारे अनुपस्थिति में ……मेरे ऑफिस के एक सहकर्मी ….I ‘ बात को बीच में ही काट कर – ‘बात कितनी आगे बढ़ी थी ? ‘हाथ झटक लगभग चीख पड़ा वह I आँखों से अंगारे से बरस रहे थे जैसे I लेकिन वह उन आँखों की अनदेखी कर उसका हाथ फिर थाम बोली -‘ क्या हुआ आकाश ? क्या तुम मुझे माफ़ नहीं करोगे ?आखिर गलती तो दोनों की एक ही है न ?’‘म ..म …मैं …’ उसकी आवाज़ मानों हलक में फंस सी गयी थी I मुख पूरा सफ़ेद !!  सोमु एक टक निहारती हुई अचानक बोल पड़ी – ‘लो हो गया फैसला ! ‘उसने पीठ दरवाजे की ओर की और बड़बड़ाई – तुम पहले भी गलत थे,और अब भी …अब भारतीय नारी अपने अधिकार जानती और समझती है Iमीना पाण्डेयबिहार यह भी पढ़ें … सुकून अहसास तीसरा कोण रुपये की स्वर्ग यात्रा बस एक बार आपको    “ फैसला “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi