लप्रेक-कॉफ़ी
प्रेम दुनिया की सबसे खूबसूरत भावना है| जिसे प्रेमियों द्वारा कई तरह से व्यक्त किया जाता है| सच्चे प्रेम की पहचान तो दूसरे को अपने में आत्मसात करना ही होती है, चाहे वो रंग हो , ढंग हो या मात्र एक कप कॉफ़ी… लघु प्रेम कथा – कॉफ़ी अरे! तुम लखनऊ में रहती हो? एक अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर सब्जी खरीदते हुए नीला के हाथ थम गए| मुड कर देखा , चश्मा ठीक करते हुए अजनबी को पहचानने की कोशिश करते हुए नीता की आँखों में चमक आ गयी| मुस्कुराते हुए बोली, सुरेश तुम, इतने वर्षों बाद अचानक यहाँ? हाँ, बेटी के लिए लड़का देखने आया था| यहीं लखनऊ में, २१ की हो गयी है, बेटा आर्मी में हैं| इस समय गोवा में पोस्टिंग हैं| उसकी माँ कहती है बेटी की शादी हो जाए फिर हम भी गोवा में रहेंगे| बेटे के साथ| अकेले उसे अच्छा नहीं लगता| पर मेरी तो नौकरी है, उसे कैसे छोड़ दूँ| ये औरतें भी न पुत्र मोह में| और तुम ,क्या करती हो, कितने बच्चे हैं, घर कहाँ हैं, तुम्हारे पति? एक साँस में सुरेश इतना सब कुछ बोल गया| नीता मुस्कुराते हुए बोली, उफ़! पहले की तरह नॉन स्टॉप … फिर थोडा रुक कर धीरे से बोली, मैं टीचर हूँ और मैंने शादी नहीं करी सुरेश | शादी नहीं करी क्यों? सुरेश ने आश्चर्य से पूंछा? फिर खुद ही हँसते हुए बोला, “ ये तुम्हारा ही फैसला होगा| अब भी उतनी ही शर्मीली हो क्या? तब तो रिकॉर्ड शर्मीली हुआ करती थी तुम| मैं दीवानों की तरह तुम्हारे पीछे–पीछे घूमता, नीता –नीता रटते –रटते, पर तुम आँख बचा कर निकल जाती न कभी हाँ कहती न ना| दो ही चीजे दिमाग पर भूत की तरह सवार रहती उन दिनों, एक तुम, एक कॉफ़ी| तुम्हे याद करते–करते बीसियों कप गटक जाता एक दिन में| कभी तुम्हारे साथ कॉफ़ी पीने की इच्छा करती तो तुम कहती की तुम्हे काफी से चिढ है, तुम इसे जिंदगी में कभी हाथ नहीं लगाओगी| पर जाने क्यों जब भी मैं कॉलेज में कहीं घूम रहा होता तो तुम्हारी नज़रे मेरे ओझल हो जाने तक मेरा पीछा करती| क्या राज था, अब तो बताओ?एक झटके में फिर बहुत कुछ कह गया सुरेश| कुछ भी तो नहीं, नीता ने सब्जी थैले में रखते हुए लापरवाही से कहा| दोनों साथ –साथ नुक्कड़ की तरफ चल पड़े| सुरेश कुछ उदास सा बोला, “ जानती हो नीता, उन दिनों बहुत फ्रस्टेट रहा करता था तुम्हारी हाँ, या ना जानने को| एक दिन अपनी कॉमन फ्रेंड राधा से अपनी परेशानी बतायी तो वो बोली, “ हो सकता है वो तुम्हे प्यार करती हो पर संस्कारी लडकियाँ इतनी आसानी से इसे स्वीकार नहीं कर पाती हैं, न ही वो अपने प्यार का आसानी से इज़हार कर पाती हैं| तुम्हे सिमटम्स देखने चाहिए| और मैं बहुत दिनों तक किसी सिमटम को खोजता रहा| एक दिन कैंटीन में कॉफ़ी पीते हुए, राधा पर बिफर उठा, कैसे पता चले उसके मन की बात, बहुत सिमटम्स-सिमटम्स करती हो, कोई तो सिमटम्स बताओ? राधा बोली, जैसे जब नीता कॉफ़ी पीने लगे तब समझ लेना| ये कभी नहीं होगा, वो कभी भी कॉफ़ी नहीं पीयेगी, और अब मैं भी कभी कॉफ़ी नहीं पियूँगा| फिर गुस्से में मैंने भी कॉफ़ी का कप कैंटीन की फर्श पर पटक दिया| कप टुकड़े–टुकड़े हो गया| उसमें बची हुई कॉफ़ी दूर तक छिटक गयी… थोड़ा रुक कर सुरेश बोला, “ मैं एक हारा हुआ व्यक्ति था, माता–पिता के कहने पर नेहा से शादी की, उसने मुझे संभाला, जिंदगी में बहुत सारी खुशियाँ आई, नहीं आई तो सिर्फ कॉफ़ी | लो, नुक्कड़ आ गया चलो यहाँ चाय पीते हैं | सुरेश ने नीता की तरफ देख कर कहा | नहीं सुरेश, चाय नहीं मैं अब सिर्फ कॉफ़ी पीती हूँ नीता ने सुरेश की और देख कर कहा| आँखों के टकराने के साथ ही कुछ पल के लिए गहरे मौन में जैसे सृष्टि थम गयी| तुम्हे शायद उधर जाना है और मुझे इधर, कहते हुए नीता दूसरी दिशा में चल दी… और अनबहे आँसुओं से दोनों देर तक भीगते रहे | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … चॉकलेट केक आखिरी मुलाकात इंतजार तोहफा आपको कहानी “ लप्रेक-कॉफ़ी “ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |