लप्रेक-कॉफ़ी

प्रेम दुनिया की सबसे खूबसूरत भावना है| जिसे प्रेमियों द्वारा कई तरह से व्यक्त किया जाता है| सच्चे प्रेम की पहचान तो दूसरे को अपने में आत्मसात करना ही होती है, चाहे वो रंग हो , ढंग हो या मात्र एक कप कॉफ़ी…  लघु प्रेम कथा – कॉफ़ी अरे! तुम लखनऊ में रहती हो? एक अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर सब्जी खरीदते हुए नीला के हाथ थम गए| मुड कर देखा , चश्मा ठीक करते हुए अजनबी को पहचानने की कोशिश करते हुए नीता की आँखों में चमक आ गयी| मुस्कुराते हुए बोली, सुरेश तुम, इतने वर्षों बाद अचानक यहाँ? हाँ, बेटी के लिए लड़का देखने आया था| यहीं लखनऊ में, २१ की हो गयी है, बेटा आर्मी में हैं| इस समय गोवा में पोस्टिंग हैं| उसकी माँ कहती है बेटी की शादी हो जाए फिर हम भी गोवा में रहेंगे| बेटे के साथ| अकेले उसे अच्छा नहीं लगता| पर मेरी तो नौकरी है, उसे कैसे छोड़ दूँ| ये औरतें भी न पुत्र मोह में| और तुम ,क्या करती हो, कितने बच्चे हैं, घर कहाँ हैं, तुम्हारे पति? एक साँस में सुरेश इतना सब कुछ बोल गया| नीता मुस्कुराते हुए बोली, उफ़! पहले की तरह नॉन स्टॉप … फिर थोडा रुक कर धीरे से बोली, मैं टीचर हूँ और मैंने शादी नहीं करी सुरेश |                     शादी नहीं करी क्यों? सुरेश ने आश्चर्य से पूंछा? फिर खुद ही हँसते हुए बोला, “ ये तुम्हारा ही फैसला होगा| अब भी उतनी ही शर्मीली हो क्या? तब तो रिकॉर्ड शर्मीली हुआ करती थी तुम| मैं दीवानों की तरह तुम्हारे पीछे–पीछे घूमता, नीता –नीता रटते –रटते, पर तुम आँख बचा कर निकल जाती न कभी हाँ कहती न ना|  दो ही चीजे दिमाग पर भूत की तरह सवार रहती उन दिनों, एक तुम, एक कॉफ़ी| तुम्हे याद करते–करते बीसियों कप गटक जाता एक दिन में| कभी तुम्हारे साथ कॉफ़ी पीने की इच्छा करती तो तुम कहती की तुम्हे काफी से चिढ है, तुम इसे जिंदगी में कभी हाथ नहीं लगाओगी| पर जाने क्यों जब भी मैं कॉलेज में कहीं घूम रहा होता तो तुम्हारी नज़रे मेरे ओझल हो जाने तक मेरा पीछा करती| क्या राज था, अब तो बताओ?एक झटके में फिर बहुत कुछ कह गया सुरेश| कुछ भी तो नहीं, नीता ने सब्जी थैले में रखते हुए लापरवाही से कहा| दोनों साथ –साथ नुक्कड़  की तरफ चल पड़े| सुरेश कुछ उदास सा बोला, “ जानती हो नीता, उन दिनों बहुत फ्रस्टेट रहा करता था तुम्हारी हाँ, या ना जानने को|  एक दिन अपनी कॉमन फ्रेंड राधा से अपनी परेशानी बतायी तो वो बोली, “ हो सकता है वो तुम्हे प्यार करती हो पर संस्कारी लडकियाँ  इतनी आसानी से इसे स्वीकार नहीं कर पाती हैं, न ही वो अपने प्यार का आसानी से इज़हार कर पाती हैं|  तुम्हे सिमटम्स देखने चाहिए| और मैं बहुत दिनों तक किसी सिमटम को खोजता रहा|  एक दिन कैंटीन में कॉफ़ी पीते हुए, राधा पर बिफर उठा, कैसे पता चले उसके मन की बात, बहुत सिमटम्स-सिमटम्स करती हो, कोई तो सिमटम्स बताओ?  राधा बोली, जैसे जब नीता कॉफ़ी पीने लगे तब समझ लेना| ये कभी नहीं होगा, वो कभी भी कॉफ़ी नहीं पीयेगी, और अब मैं भी कभी कॉफ़ी नहीं पियूँगा|  फिर गुस्से में मैंने भी कॉफ़ी का कप कैंटीन की फर्श पर पटक दिया| कप टुकड़े–टुकड़े हो गया| उसमें बची हुई कॉफ़ी दूर तक छिटक गयी… थोड़ा रुक कर सुरेश बोला, “ मैं एक हारा हुआ व्यक्ति था, माता–पिता के कहने पर नेहा से शादी की, उसने मुझे संभाला, जिंदगी में बहुत सारी खुशियाँ आई, नहीं आई तो सिर्फ कॉफ़ी | लो, नुक्कड़ आ गया चलो यहाँ चाय पीते हैं | सुरेश ने नीता की तरफ देख कर कहा | नहीं सुरेश, चाय नहीं मैं अब सिर्फ कॉफ़ी पीती हूँ नीता ने सुरेश की और देख कर कहा| आँखों के टकराने के साथ ही कुछ पल के लिए गहरे मौन में जैसे सृष्टि थम गयी| तुम्हे शायद उधर जाना है और मुझे इधर, कहते हुए नीता दूसरी दिशा में चल दी… और अनबहे आँसुओं से दोनों देर तक भीगते रहे | वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … चॉकलेट केक आखिरी मुलाकात इंतजार तोहफा  आपको  कहानी  “ लप्रेक-कॉफ़ी  “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

इंतज़ार

देखो, ” मैं टाइम पर आ गयी” कहते हुए दिपाली ने जोर से हाथ लहराया | “क्या हुआ?” “चुप क्यों हो?” “क्या अभी भी नाराज़ हो?” “आज तो टाइम से पूरे 15 मिनट पहले आ गयी|  देखो, देखो अभी सिर्फ पौने पांच बजे हैं|” दीपाली ने घड़ी दिखाते हुए कहा | “आज तो इंतज़ार नहीं कराया ना?” “जब टाइम से पहले आ गयी, तो फिर बोल क्यों नहीं रहे हो, मेजर शिवांश?” “बोले तो तुम कल भी नहीं थे, बस मैं भी अपने दिल की कह के चली गयी | कल की भी डेट बेकार ही गयी|” सच है, तुम आर्मी वाले भी ना, बड़े कड़क होते हो|    “पर याद रखना तुम्हारा ये गुस्सा मुझ पर… अरेरेरे, नाराज़ क्यों होते हो?” “सॉरी बाबा, देखो कान पकड़ रही हूँ|” “अब बिलकुल समय की पाबंद  रहूँगी, आर्मी वालों की तरह|” “इंतज़ार तो बिलकुल नहीं कराऊंगी|” “मानती हूँ की तुम नाराज़ हो|  होना भी चाहिए, पर मैंने कभी तुम्हें जान कर इंतज़ार नहीं कराया|” “तुम नहीं जानते लड़कियों को घर से निकलते समय कितने प्रश्नों  का सामना करना पड़ता हैं|” “प्यार गुनाह है सबकी नज़रों में, पर ये गुनाह कोई जान -बूझ कर तो नहीं करता| आसमानी हुकुम होते हैं, तभी तो मन खींचता है किसी डोर की तरह| खैर, अब तो खुश हो जाओं|” “नहीं होगे?” “देखो, मानती हूँ, दीपावली पर मैंने बहुत इंतज़ार करवाया था|  क्या करती?  जैसे ही घर से निकलने को हुई, बड़े भैया आ कर दरवाजे पर खड़े हो गए और लगे प्रश्न पर प्रश्न करने:  “कहाँ जा रही हो?  क्यों जा रही हो?  किसके साथ जा रही हो?”  मैं तो एकदम डर ही गयी|  लगता है आज पूरी पोल पट्टी खुल जायेगी|  किस तरह से भैया को बातों में उलझा कर निकली, तुम क्या जानों?” तुम तो बस बैठे-बैठे घड़ी के कांटे गिना करो, हाँ नहीं तो! “और उसके दो दिन बाद अम्मा ने घेर लिया|  अच्छे घर की लडकियाँ यूँ सज-धज के नहीं निकलती|  क्या समझाती उन्हें, कितना दिल करता है कि तुम्हारे सामने सबसे खूबसूरत दिखूँ|  तुम तो कहते हो कि मैं तुम्हें हर रूप में अच्छी लगती हूँ|  फिर क्यों होती है ऐसी ख्वाइश कि मुझे देखने के बाद तुम किसी को न देखो?  घंटे भर जब रसोई में अम्माँ के साथ नमक पारे बनवाये थे, तब आ पाई थी|” “चप्पल पहनने में भी देर न हो जाए ये सोंच कर चप्पल हाथ में ले कर दौड़ी थी|  पसीने से लथपथ|  तुम कितना हँसे थे मुझको देखकर, फिर तुमने अपने हाथ  मेरे सर पर फेरते हुए कहा था, ” तुम आज से ज्यादा सुन्दर मुझे कभी नहीं लगीं”|” “कितने अजीब हो तुम| जिसके लिए मैं दुनिया भर का श्रृंगार करना चाहती हूँ, उसे मैं पसीने में लथपथ अच्छी दिखती हूँ| तुम आर्मी वाले भी ना!” अब तो इतनी सफाई दे दी, अभी भी नाराज़ रहोगे? “याद करिए मेज़र  साहब, अभी कुछ एक रोज पहले ही आपने कहा था कि तुम देर से आती हो, मैं गुस्सा करता हूँ, फिर भी मुझे  तुम्हारा इंतज़ार करना अच्छा लगता है|  कितना भी लम्बा हो ये इन्जार पर उसके बाद तुम जो मिलती हो”| “दिल को छू गयी थी तुम्हारी बात, तभी से फैसला कर लिया था, जो मुझे इतना चाहता है उसे इंतज़ार नहीं करवाउँगी| कभी नहीं…” “तब से रोज़ समय पर आ रहीं हूँ|  बिलकुल भी इंतज़ार नहीं करवाती| पर तुम आर्मी वाले भी ना, नियम के बहुत पाबंद  होते हो|  प्यार हो या युद्ध , तुम्हारे कानून भी अलग होते हैं|” इसीलिए तो…  इसलिए तो, इंतज़ार करवाने की सजा में मुझे दे गए जिंदगी भर का इंतज़ार…   “पर मैं करुँगी ये इंतज़ार, जरूर करुँगी क्योंकि इंतज़ार के बाद मुझे तुम मिलोगे| मिलोगे ना, मेजर साहब?” कहते हुए दीपाली ने समाधी पर फूल चढ़ा दिए जिस पर लिखा था – लेट मेजर शिवांश 22 सितम्बर, 1992 – 25 दिसंबर, 2017                                     पर दीपाली भी डबडबाई आँखों को सिर्फ एक शब्द दिख रहा था… “इंतज़ार”  वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें- मतलब की समझ   चॉकलेट केक   अंतर -आठ अति लघु कथाएँ   लली  आपको  कहानी  “इंतज़ार ( लप्रेक)“  कैसी लगी?  अपनी राय अवश्य व्यक्त करें|  हमारा फेसबुक पेज लाइक करें|  अगर आपको “अटूट बंधन “  की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ-मेल लैटर सबस्क्राइब कराएं ताकि हम “अटूट बंधन” की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें|   

मतलब की समझ

    हम रोज बोलते हैं इससे , उससे, सबसे | न जाने कितने शब्दों वाक्यों का प्रयोग हम एक दिन में करते हैं | यही तो माध्यम हैं अपने मन की बात कहने का , और दूसरों के मन की बात जानने , समझने का | पर क्या हम हर बात का मतलब समझ पाते हैं, जो हमसे कही गयी | या हम वही सुनते हैं, जो सुनना चाहते हैं | और अपने हिसाब से उसका मतलब निकाल लेते हैं | क्या अपने हिसाब से मतलब निकाल लेने के हमारे इस हुनर पर कभी समय गुज़र जाने के बाद अफ़सोस नहीं होता कि हमें इस बात का मतलब तब समझ क्यों नहीं आया |     पढ़िए मार्मिक लप्रेक – मतलब की समझ  ?  अपना गुलाबी पर्स ले कर स्नेहा बड़बड़ाते हुए ऑफिस से निकल गयी | कितना गुस्सा भरा था स्नेहा  के मन में वरुण के लिए | आखिर वरुण ने नमिता को उसके बराबर क्यों बता दिया | नमिता , वरुण और स्नेहा ऑफिस के एक ही प्रोजेक्ट में काम कर रहे थे | ये लव ट्राई एंगल था की नहीं ये तो किसी को पता नहीं था | अलबत्ता वरुण और स्नेहा की करीबी किसी से छुपी नहीं थी | दोनों जल्द ही शादी करने वाले थे | दोनों बहुत खुश थे | इतना साथ तो नसीब वालों को ही मिलता है ऑफिस में भी घर में भी |  भविष्य के द्वार  पर सुन्दर सपनों की बंदनवार  सजने लगी थी |  तभी नमिता ने ऑफिस ज्वाइन किया | नमिता वरुण और स्नेहा तीनों अच्छे दोस्त बन गए | नमिता  जब तब वरुण को अपनी आर्थिक दिक्कते बताती रहती | कई बार कुछ पर्सनल बातें भी शेयर करती | स्नेहा ने शुरू में तो ध्यान नहीं दिया | पर उसे वरुण और नमिता का साथ अखरने लगा | वो वरुण से शिकायती लहजे में कहती तो वरुण “बस अच्छे दोस्त हैं” कहकर टाल देता | वो कहता, “स्नेहा मेरे जीवन में तुम्हारी जगह कोई नहीं ले सकता”| तुम कभी भी इस बात की चिंता मत करना |पर अक्सर दोनों के बीच इस बात को लेकर तनातनी हो जाती | जो बाद में प्यार के तेज  बहाव में बह भी जाती |साफ़ बहती नदी को देखने में कौन ध्यान देता है की किनारों पर रेत जमा हो रही है |उन दोनों ने भी ध्यान नहीं दिया |   मामला तब से बिगड़ने लगा जब बॉस ने ऑफिस में एक प्रतियोगिता रख दी | पूर ऑफिस के चार ग्रुप बनाए | हर ग्रुप में चार लोग थे |सबको एक–एक प्रोजेक्ट दिया गया | जिस ग्रुप का  प्रोजेक्ट सबसे अच्छा होता उसे ग्रुप को बेस्ट ग्रुप का अवार्ड और थाईलैंड की दो दिन तीन रात की ट्रिप इनाम में मिलनी थी | अब इसे नसीब कहे या कुछ और ?स्नेहा  के ग्रुप में वरुण , नमिता और सूर्यांश थे | तभी सूर्यांश को दूसरी कम्पनी से ऑफर मिल गया | वो कंपनी  छोड़ कर चला गया | रह गए ये तीन | स्नेहा चाहती थी की अवार्ड उसके ग्रुप  मिले तो उसे वरुण के साथ थाईलैंड जाने का मौका मिलेगा | स्नेहा पूरी मेहनत से जुट गयी | वरुण ने भी उसका साथ दिया |नमिता कभी साथ काम में आती कभी वरुण को कोई बहाना बता देती | काम चलता रहा | प्रोजेक्ट बहुत अच्छे तरीके से  पूरा हुआ |सभी ग्रुप्स में उन्हीं का प्रोजेक्ट सबसे बेहतर था |  आज  अवार्ड की घोषणा होनी थी |  वरुण बहुत खुश था | उसने स्नेहा से कहा, “देखना हमें ही अवार्ड मिलेगा” | मैंने तो स्टेज के लिए पहले ही स्पीच तैयार कर ली है | उसने स्नेहा को कागज़ का टुकड़ा दिखाया जिस पर स्पीच लिखी थी |  दिखाओं –दिखाओ कह कर स्नेहा ने कागज़ खींच लिया | उसने पढना शुरू किया ,शुरू के धन्यवाद ज्ञापन के बाद वरुण ने लिखा था “इस अवार्ड को पाकर मैं बहुत खुश हूँ | आखिर इसमें मेरी मेरी लाइफ  और मेरी बेस्ट फ्रेंड की मेहनत जो शामिल है”  जब आग अंदर  धधक रही होती है तो छोटी सी चिंगारी ही काफी होती है | इतना  पढ़ते ही स्नेहा का पारा गर्म हो गया | जोर से बोली तो ये स्पीच तुम दोगे | मैं तुम्हारे और नमिता के रिश्ते का मतलब समझ गयी | सबके सामने उसे और मुझे बराबर कहोगे |क्या हम दोनों का काम और स्थान बराबर है | अब  वो बेस्ट फ्रेंड हो गयी | अरे, वाइफ बेस्ट फ्रेंड होती है | मैं वुड बी वाइफ हूँ |मेरे सामने उसको बेस्ट फ्रेंड कहोगे |  बेस्ट फ्रेंड भी मैं ही हूँ | मेरे होते वो बेस्ट फ्रेंड हो गयी | अब मतलब समझ में आया | स्नेहा बिना रुके क्रोध के आवेश में बोले जा रही थी | मैं … मैं जा रही हूँ वरुण , इस ऑफिस से भी और तुम्हारी जिंदगी से भी | अब लौट कर कभी नहीं आउंगी | हाँ ये कागज़ का टुकड़ा लिए जा रही हूँ, इसमें तुम्हारी बेवफाई का सबूत जो है | स्नेहा चली गयी, उसने वरुण से सारे संपर्क काट दिए  समय अपनी गति से चल पड़ा | करीब डेढ़ साल बाद उसे सूर्यांश दिखाई पड़ा | उसे देखते ही उसने हाथ हिलाया | प्रत्युत्तर में उसने भी हाथ हिलाया | सूर्यांश उसके पास आ गया | दो कप कॉफ़ी के साथ बाते शुरू हो  गयीं |बातों ही बातों में उसने वरुण के लिए दुःख प्रकट किया | स्नेहा के आश्चर्य में देखने के कारण वो समझ गया की उसे पता नहीं है | एक गहरी सांस ले कर उसने बताया कि छ : महीने हो गए वरुण को गुज़रे हुए |बहुत शराब पीने लगा था | लिवर सिरोसिस हो गयी |नमिता अंत तक उसके साथ रही | उसने बहुत कोशिश की पर वो उसे बचा न सकी | स्नेहा के आँसू जैसे जम गए |वो वहाँ  ज्यादा देर बैठ न सकी | डेढ़ साल पुराना अतीत आँखों के सामने नाचने लगा |मन रेल हो गया और अतीत वो पटरी , जिस पर अनायास ही दौड़ने लगा, बिना इंजन के बेलगाम |  वो अतीत जिससे वो पीछा छुडाना चाहती थी | जिससे कभी आँख न मिलाने … Read more

लप्रेक – चॉकलेट केक

                                      कहते हैं प्यार करने वाले एक –दूसरे से कितनी शिद्दत से प्यार करते हैं ये उन्हें तब समझ नहीं आता  जब वो एक दूसरे के साथ होते हैं | दूरियाँ उनके प्यार के अहसास को और गहरा कर देती हैं |ये एक तरह का लिटमस टेस्ट भी है | प्रियंका और यश की प्रेम कहानी ब्रेक अप के बाद खत्म ही हो गयी थी |फिर नए साल पर ऐसा क्या हुआ कि … पढ़िए -लप्रेक:चॉकलेट केक     प्रियंका उदास बैठी थी |उसकी सारी  सहेलियाँ अपने दोस्तों के साथ होटल “रॉक इन “. में डांस पार्टी में जा रही थी |  वो किसके साथ जाए | पिछले 7 सालों से वो यश  के साथ जाती रही है |हर बार वहाँ  जाने से पहले यश पहले उसके घर आता और चॉकलेट केक की मांग करता | वो भी तो कितने जतन  से बनाती थी उसके लिए | वह हमेशा उससे कहता  कि न्यू इयर इव का बेस्ट गिफ्ट तुम्हारे हाथ का बना चॉकलेट केक है | दोनों साथ में केक काटते | हालांकि यश उसे केक का बस एक छोटा सा टुकड़ा  ही खाने देता | और खुद पूरा केक  अंगुलियाँ चाट -चाट कर खाता |फिर भी वो उसे यूँ खाता  देख कर तृप्त हो जाती | औरत किसी से किसी भी रूप में प्यार करें , उसके अन्दर माँ का रूप सबसे हावी रहता है | पर …  ये दिन ज्यादा समय तक नहीं चल सके | दो महीने पहले ही यश  का उससे ब्रेक अप हुआ था | उसने यश  से बस इतना कहा था कि अब ये दोस्ती के रैपर में अपने रिश्ते को कब तक छुपाती रहेगी |  बदले में यश  ने उसे अजीब सी निगाहों से घूर कर तपाक  से कहा था कि दोस्ती करते समय ही उसने कह दिया था की वो उससे किसी और रिश्ते की उम्मीद न रखे | फिर अब ये पेशकश क्यों ? अगर वो उससे शादी करना चाहती है तो ये रिश्ता यहीं खत्म |                            यश तो इतनी आसानी से रिश्ता खत्म कर के चला गया | वो वहीँ आँसूं  भरी आँखें लिए खड़ी रही | और अभी तक वहीं खड़ी  है | जीवन जैसे थम सा गया हो | आगे बढ़ ही नहीं रहा | कितने पल … कितने खूबसूरत पल उसने  यश के साथ बिताये थे | कितने सुख – दुःख साझा किये थे | भले ही वो सब कुछ एक अच्छी दोस्ती के नाम पर हुआ था | पर था तो एक घनिष्ठ रिश्ता … सबसे घनिष्ठ | क्या उस समय किया गया वो प्यार , वो चिंता – फिर्क , वो जरा सी देर में न मिल पाने पर बेचैन हो जाना सब उसे पाने का जरिया भर थे | क्या माँ सही कहती थी कि पुरुष  स्त्री देह से आगे बढ़ ही नहीं पाता |              6 साल तक यश को टालती रही थी वो | फिर अचानक क्यों उस दिन खुद पर काबू नहीं कर पायी | उसके बाद उसके लिए सब कुछ बदल गया | मन ही मन वो खुद को यश की पत्नी मान बैठी | उसे लगता था कि वो कहेगी और यश तुरंत हाँ कर देंगे | पर वो गलत थी | यश नहीं बदले …हां उसने तो पहले ही कह दिया था | वो ही अपने प्यार पर ज्यादा यकीन कर बैठी |  बगल के घर से चॉकलेट केक की खुश्बू आ रही है | सौम्या , सौरभ के लिए बना रही होगी |उसी से तो सीखा है उसने इसे  बनाना | पहला न्यू इयर है दोनों का साथ – साथ | वो मिठास में बाँधना चाहती है अपने और सौरभ के रिश्ते को | न जाने क्यों केक की खुशबू  प्रियंका को बर्दाश्त नहीं  हो रही है | उसकी आँखें बार – बार भर रही हैं | पांच   बज गया | यश इसी समय तो आता था |                        तभी दरवाजे की घंटी बजी | यश खड़ा था | उसके हाथों में बड़ा सा पैकेट  था और आँखों में नमी | प्रियंका को अचम्भे से अपनी ओर देखते हुए बोला | अन्दर आने को नहीं कहोगी ‘प्रियु ‘ | प्रियंका ने आँखों से अन्दर आने का इशारा कर दिया | शब्दों ने उसका साथ छोड़ दिया था | अन्दर आ कर डाइनिंग टेबल पर उसने पैकेट रख दिया | फिर प्रियंका  की ओर देख कर बोला ,” मैं हार गया प्रियंका, तुम्हारे प्यार के आगे और अपने प्यार के आगे भी | मैंने बहुत कोशिश की सख्त बनने की | मैं जानता था, मेरे – माता पिता अलग धर्म की होने के कारण तुम्हें बहू  के रूप में स्वीकार नहीं करेंगें | इसलिए मैंने अपने प्यार को सिर्फ दोस्ती के रैपर में ही रखना चाहा | मैं खुश था | तुम मेरे साथ थी | मैंने सोंचा था कि जिन्दगी यूँही कट जायेगी | तुम्हारी अचानक से शादी की मांग ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं वापस अपनी दुनिया में लौट जाऊ | पर मैं गलत था | मैं नहीं जानता था की दिल कितना भी पत्थर कर लो , प्यार वो दरिया है जो उसे तोड़ कर निकलेगा ही निकलेगा | अब मुझे किसी की परवाह नहीं | बस तुम मेरे साथ हो इतना ही काफी है |                    यश ने आँसू पोंछते हुए कहा ,” मुझे पता है प्रियंका तुमने आज चॉकलेट केक नहीं बनाया होगा | इसलिए आज मैं खुद अपने हाथों से बना कर लाया हूँ | आओ केक काटें , कहते हुए उसने केक का डिब्बा खोल दिया | प्रियंका जो अभी तक मूर्तिवत खड़ी थी, यंत्रवत केक काटने लगी | उसने छोटा  सा टुकड़ा यश के मुँह में डाल दिया और आँसूं पोंछते हुए दोनों हाथों से यूँ केक खाने लगी जैसे जन्मों की भूखी हो |                   … Read more