क्या है स्वतंत्रता सही अर्थ :जरूरी है स्वतंत्रता, स्वछंदता, उच्श्रृंखलता की पुनर्व्याख्या

डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई, देहरादून, उत्तराखंड ——————————————-             स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?  स्वतंत्रता का अर्थ वही है जो हम समझना चाहते हैं, जो अर्थ हम लेना चाहते हैं। यह केवल हम पर निर्भर है कि हम स्वतंत्रता,स्वाधीनता,स्वच्छंदता और उच्छ्रंखलता में अंतर करना सीखें।           वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्रता पाई, पर लंबे समय तक पराधीन रहने के कारण मिली स्वतंत्रता का सही अर्थ लोगों ने समझा ही नहीं और हम मानसिक परतंत्रता से मुक्त नहीं हो पाए। अपनी भाषा पर गर्व, गौरव करना नहीं सीख पाए।           आज देखा जाए तो स्वतंत्रता और परतंत्रता दोनों के ही अर्थ बदल गए है।  हर व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार इन्हें परिभाषित कर आचरण करता हैं और इसके कारण सबसे ज्यादा रिश्ते प्रभावित हुए हैं। रिश्तों ने अपनी मर्यादा खोई है, अपनापन प्रभावित हुआ है, संस्कारों को रूढ़िवादिता समझा जाने लगा और ऐसी बातें करने और सोच रखने वालों को रूढ़िवादी। रिश्तों में स्वतंत्रता का अर्थ…स्पेस चाहिए। मतलब आप क्या कर रहे हैं इससे किसी को कोई मतलब नहीं होना चाहिए, कुछ पूछना नहीं चाहिए…यदि पूछ लिया तो आप स्पेस छीन रहे हैं। इसे क्या समझा जाए। क्या परिवार में एक-दूसरे के  बारे में जानना गलत है कि वह क्या कर रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं, कब आएँगे, कब जाएँगे… और इसी अति का परिणाम…रिश्ते हाय-हैलो और दिवसों तक सीमित होकर रह गए हैं।  विवाह जैसे पवित्र बंधनो में आस्था कम होने लगी हैं क्योंकि वहाँ जिम्मेदारियाँ हैं और जिम्मेदारियों को निभाने में कुछ बंधन, नियम मानने पड़ते हैं और मानते हैं तो स्वतंत्रता या यूँ कहें मनमानी का हनन होता है। तब लिव इन का कांसेप्ट आकर्षित करने लगा…जहाँ स्वतंत्रता ही स्वतंत्रता। हर काम बँटा हुआ…जब तक अच्छा लगे साथ, नहीं लगे तो कोई और साथी। इसमें नुकसान अधिक लड़की का ही होता है, पर वह स्वतंत्रता का सही अर्थ ही समझने को तैयार नहीं, अपने संस्कार, अपनी मर्यादाओं में विश्वास करने को तैयार नहीं          स्त्री-पुरुष दोनों बराबर हैं… इसने भी स्वतंत्रता के अर्थ बदल दिए हैं। इसने मनमानी और उच्छ्रंखलता को ही बढ़ावा दिया है। प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे का पूरक बनाया है तो उसे स्वीकार कर रिश्ते, परिवार, समाज, देश संभाला जाए, पर नहीं… बराबरी करके संकटों को न्योता देना ही है।             एकल परिवारों की बढ़ती संख्या भी इसी का परिणाम है। सबको अपने परिवार में यानी पति-पत्नी,बच्चों को अपने मनमाने ढंग से रहने के लिए देश-विदेश में इतनी स्वतंत्रता चाहिए कि उसमें वृद्ध माता-पिता के साथ रहने के लिए कोई जगह ही नहीं बचती। तभी ऐसी घटनाएं घटती हैं कि कभी जब बेटा घर आता है मेहमान की तरह तो उसे कंकाल मिलता है।            आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपना विवेक जगाएँ, सही और गलत को समझें…तब स्वतंत्रता, स्वछंदता, उच्श्रृंखलता, मनमानी के सही अर्थ समझें, इनकी पुनर्व्याख्या करें, अपनी संस्कृति, अपनी मर्यादाएँ, अपनी सभ्यता, अपने आचरण पर विचार करें | तभी रिश्ते कलंकित होने से बच पाएंगे, परिवार सुरक्षित होंगे, समाज और देश भी सुरक्षित हाथों में रह कर, ईमानदारी के रास्ते पर चल कर अपना विकास करने में समर्थ होंगे। ——————————————- रिलेटेड पोस्ट … आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प ले नए भारत के निर्माण का स्वतंत्रता दिवस पर आधी आबादी जाने अपने अधिकार भावनात्मक गुलामी भी गुलामी ही है स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के मेरा भारत महान ~जय हिन्द  Attachments area

आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ?

वंदना बाजपेयी शहरीकरण संयुक्त परिवारों का टूटना और बच्चों का विदेश में सेटल हो जाना , आज अकेलापन महानगरीय जीन में एक बहुत बड़ी समस्या बन कर उभरा है | जिसका ताज़ा उदाहरण है मुबई की आशा जी जो टूटते बिखरते रिश्तों में निराशा की दास्तान हैं | मुबई के एक घर में एक महिला का कंकाल मिलता है | घर में अकेली रहने वाली ये महिला जो एक विदेश में रहने वाले पुत्र की माँ भी है कब इहलोक छोड़ कर चली गयी न इसकी सुध उसके बेटे को है न पड़ोसियों को न रिश्तेदारों को | यहाँ तक की किसी को शव के कंकाल में बदलने पर दुर्गन्ध भी नहीं आई | सच में मुंबई की आशा जी की घटना बेहद दर्दनाक है | कौन होगा जिसका मन इन हृदयविदारक तस्वीरों को देख कर विचलित न हो गया हो | ये घटनाएं गिरते मानव मूल्यों की तरफ इशारा करती हैं | एक दो पीढ़ी पहले तक जब सारा गाँव अपना होता था | फिर ऐसा क्या हुआ की इतने भीड़ भरे माहौल में कोई एक भी अपना नज़र नहीं आता | हम अपने – अपने दायरों में इतना सिमिट गए हैं की की वहां सिर्फ हमारे अलावा किसी और का वजूद हमें स्वीकार नहीं | अमीरों के घरों में तो स्तिथि और दुष्कर है | जहाँ बड़े – बड़े टिंटेड विंडो ग्लास से सूरज की रोशिनी ही बमुश्किल छन कर आती है , वहां रिश्तों की गुंजाइश कहाँ ? अभी इसी घटना को देखिये ये घटना आशा जी के बेटे पर तो अँगुली उठाती ही है साथ ही उनके पड़ोसियों व् अन्य रिश्तेदारों पर भी अँगुली उठाती है | आखिर क्या कारण है की उनका कोई भी रिश्तेदार पड़ोसी उनकी खैर – खबर नहीं लेता था | ये दर्द नाक घटना हमें सोंचने पर विवश करती है की आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? आखिर क्यों हम इतने अकेले होते जा रहे हैं ? एक अकेली महिला की कहानी आशा जी की घटना को देख कर मुझे अपने मुहल्ले की एक अकेली रहने वाली स्त्री की याद आ रही है | जिसे मैं आप सब के साथ शेयर करना चाहती हूँ | दिल्ली के पोर्श समझे जाने वाले मुहल्ले में ये लगभग ७० वर्षीय महिला अपने १० – १5 करोण के तीन मंजिला घर में अकेली रहती है | बेटा विदेश में है | महिला की अपनी कामवाली पर चिल्लाने की आवाज़े अक्सर आती रहती हैं |उसके अतिरिक्त बंद दरवाजों के भीतर का किसी को कुछ नहीं पता | पर हमेशा से ऐसा नहीं था | पहले ये तीन मंजिला घर खाली नहीं था | ग्राउंड फ्लोर पर महिला के पेरेंट्स रहते थे | फर्स्ट फ्लोर पर उनके भाई- भाभी अपने परिवार के साथ रहते थे | भाभी डॉक्टर हैं , व् थर्ड फ्लोर जो दूसरे भाई का था ( जो दिल्ली के बाहर कहीं रहते हैं ) किराए पर उठा था | जहाँ १० साल से एक ही किरायेदार रह रहे थे | जिनकी सभ्यता व् शालीनता के मुहल्ले में सब कायल थे | ये महिला अपने पति से विवाद के बाद तलाक ले कर अपने पिता के घर उनके साथ रहने लगी | बेटी पर तरस खा कर पिता ने यूँहीं कह दिया की ये मकान मेरे बाद तुम्हारा होगा | पिता की मृत्यु के बाद महिला ने कच्चे पक्के दस्तावेज से अपने भाइयों से झगड़ना शुरू कर दिया | सबसे पहले तो किरायेदार से यह कहते हुए घर खाली करवाया की ये घर की मालकिन अब वह हैं और अब उन्हीं के अनुसार ही किरायेदार रहेंगे |उनकी इच्छा है की घर खाली ही रहे | किरायेदारों ने एक महीने में घर खाली कर दिया | फिर उन्होंने अपने भाई – भाभी से झगड़ना शुरू कर दिया | भाभी जो एक डॉक्टर हैं व् जिनकी मुहल्ले में सामजिक तौर पर बहुत प्रतिष्ठा है ने रोज – रोज की चिक – चिक से आजिज़ आ कर अपने परिवार समेत घर खाली कर दिया |छोटा भाई जो दिल्ली के बाहर रहता है उसके दिल्ली आने पर घर में प्रवेश ही नहीं करने दिया | शांत रहने वाले मुहल्ले में इस तरह का शोर न हो ये सोंच कर वो भाई यहाँ आने ही नहीं लगा |इतना ही नहीं मुहल्ले के लोगों को वो घर के अंदर आने नहीं देतीं | उन्हें सब पर शक रहता है , की उनके भेद न जान लें |उनके घर में फिलहाल किसी को जाने की इजाजत है तो वो हैं कामवालियां | वो भी सिर्फ बर्तन के लिए | कामवालियों के मुताबिक़ गंदे – बेतरतीब पड़े घर में वो सारा दिन कंप्यूटर पर बैठी रहती हैं | साल में एक बार बेटे के पास जाती हैं | बेटे की अपनी जद्दोजहद है पहली पत्नी के साथ तलाक हो चुका है , दूसरी के साथ अलगाव चाहता नहीं है | शायद इसी पशोपेश में वो स्वयं चार साल से भारत नहीं आया | और फिलहाल उसकी माँ अपने तीन मंजिला घर में , जिसके दो फ्लोर पूरी तरह अँधेरे में रहते हैं , अकेली रहती है |सबसे अलग , सबसे विलग | कहाँ से हो रही है अकेलेपन की शुरुआत मुहल्ले में अक्सर ये चर्चा रहती है की जिस मकान के लिए वो इतना अकेलापन भोग रही हैं वो तो उनके साथ जाएगा ही नहीं | निश्चित तौर पर ये पुत्र मोह नहीं है ये लिप्सा है | अधिक से अधिक पा लेने की लिप्सा | जब ” पैसा ही सब कुछ और रिश्ते कुछ नहीं की नीव पर बच्चे पाले जाते हैं वो बच्चे बड़े हो कर कभी अपने माता पिता को नहीं पूँछेंगे | वो भी पैसे को ही पूँछेंगे | कितना भी पैसा हो किसी का स्नेह खरीदा नहीं जा सकता | पुराने ज़माने में बुजुर्ग कहा करते थे की इंसान अपने साथ पुन्य ले कर जाता है | इसीलिए मानव सेवा रिश्ते बनाने , निभाने पर बहुत जोर दिया जाता था |पर क्या आज इस तरह रिश्ते निभाये जा रहे हैं ? क्या एक् पीढ़ी पहले रोटी के लिए शहरों आ बसे लोगों ने खुद को समेटना नहीं शुरू कर दिया था ? हमें कारण खोजने होंगे … Read more

बुजुर्गों को दें पर्याप्त स्नेह व् सम्मान

सीताराम गुप्ता, दिल्ली      आज दुनिया के कई देशों में विशेष रूप से हमारे देश भारत में बुज़ुर्गों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। ऐसे में उनकी समस्याओं पर विशेष रूप से ध्यान देना और उनकी देखभाल के लिए हर स्तर पर योजना बनाना अनिवार्य है। न केवल सरकार व समाजसेवी संस्थाओं को इस ओर पर्याप्त धन देने की आवश्यकता है अपितु हमें व्यक्तिगत स्तर भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है। कई घरों में बुज़्ाुर्गों के लिए पैसों अथवा सुविधाओं की कमी नहीं होती लेकिन वृद्ध व्यक्तियों की सबसे बड़ी समस्या होती है शारीरिक अक्षमता अथवा उपेक्षा और अकेलेपन की पीड़ा। कई बार घर के लोगों के पास समय का अभाव रहता है अतः वे बुज़्ाुर्गों के लिए समय बिल्कुल नहीं निकाल पाते। एक वृद्ध व्यक्ति सबसे बात करना चाहता है। वह अपनी बात कहना चाहता है, अपने अनुभव बताना चाहता है। वह आसपास की घटनाओं के बारे में जानना भी चाहता है। बुज़्ाुर्गों की ठीक से देख-भाल हो, उनका आदर-मान बना रहे व घर में उनकी वजह से किसी भी प्रकार की अवांछित स्थितियाँ उत्पन्न न हों इसके लिए बुजुर्गों  के मनोविज्ञान को समझना व उनकी समस्याओं को जानना ज़रूरी है।      बड़ी उम्र में आकर अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी शारीरिक अथवा मानसिक व्याधि से ग्रस्त हो जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ श्रवण-शक्ति व दृष्टि प्रभावित होने लगती है। कुछ लोगों में असुरक्षा की भावना बढ़ने लगती है व उनकी स्मरण शक्ति भी कमज़ोर हो जाती है जो वास्तव में बीमारी नहीं एक स्वाभाविक अवस्था है। बढ़ती उम्र में बुज़ुर्गों की आँखों की दृष्टि कमज़ोर हो जाना अत्यंत स्वाभाविक है। इस उम्र में यदि घर में अथवा उनके कमरे में पर्याप्त रोशनी नहीं होगी तो भी वे दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं। बुज़ुर्गों को किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना से बचाने के लिए उनके कमरे, बाथरूम व शौचालय तथा घर में अन्य स्थानों पर पर्याप्त रोशनी होनी चाहिये और यदि उनकी दृष्टि कमज़ोर हो गई है या पहले से ही कमज़ोर है तो समय-समय पर उनकी आँखों की जाँच करवा कर सही चश्मा बनवाना ज़रूरी है। कई लोग कहते हैं कि अब इन्हें कौन से बही-खाते करने हैं जो इनकी आँखों पर इतना ख़र्च किया जाए। यह अत्यंत विकृत सोच है। आँखें इंसान के लिए बहुत बड़ी नेमत होती हैं।      श्रवण शक्ति का भी कम महत्त्व नहीं है। यदि किसी बुज़्ाुग की श्रवण शक्ति कमज़ोर है तो उसका भी उचित उपचार करवाना चाहिए। इनके अभाव में बुज़्ाुर्गों के साथ बहुत सी दुर्घटनाएँ होने की संभावना बनी रहती है। वृद्धावस्था में प्रायः शरीर में लोच कम हो जाती है और हड्डियाँ भी अपेक्षाकृत कमज़ोर और भंगुर हो जाती हैं अतः थोड़ा-सा भी पैर फिसल जाने पर गिर पड़ना और हड्डियों का टूट जाना स्वाभाविक है। गिरने पर बुज़ुर्गाें में कूल्हे की हड्डी टूूटना अथवा हिप बोन फ्रेक्चर सामान्य-सी बात है जो अत्यंत पीड़ादायक होता है। यदि हम कुछ सावधानियाँ रखें तो इस प्रकार की दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है। यदि हम अपने आस-पास का अवलोकन करें तो पाएँगे कि ज़्यादातर बुज़्ाुर्ग बाथरूम में या चलते समय ही दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। प्रायः बाथरूमों में जो टाइलें लगी होती हैं उनकी सतह चिकनी होती हैं। पैर फिसलने का कारण प्रायः चिकनी सतह या उस पर लगी चिकनाई होती है। बाथरूम अथवा किचन का फ़र्श  प्रायः गीला हो जाता है और यदि उस पर चिकनाई की कुछ बूँदें भी होंगी तो वहाँ बहुत फिसलन हो जाएगी। जहाँ तक संभव हो सके बाथरूम व किचन में फिसलन विरोधी टाइलें ही लगवाएँ।      तेल की बूँदों की चिकनाई के अतिरिक्त साबुन के छोटे-छोटे टुकड़े भी कई बार फिसलने का कारण बनते हैं। साबुन का एक अत्यंत छोटा-सा टुकड़ा भी बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है अतः साबुन के छोटे-छोटे टुकड़ों को भी फ़र्श से बिल्कुल साफ़ कर देना चाहिए। शारीरिक कमज़ोरी के कारण बुज़ुर्गों को बाथरूम अथवा शौचालय में भी उठने-बैठने में दिक्कत होती है। पाश्चात्य शैली के शौचालय बुज़ुर्गों के लिए अपेक्षाकृत अधिक सुविधाजनक होते हैं। पाश्चात्य शैली के शौचालय के निर्माण के साथ-साथ यदि इन स्थानों पर कुछ हैंडल भी लगवा दिये जाएँ तो बुज़ुर्गों को बाथरूम अथवा शौचालय में उठने-बैठने में सुविधा होगी और वे गिरने के कारण फ्रेक्चर जैसी दुर्घटनाओं से बचे रह सकेंगे। इसके अतिरिक्त घर में अन्य स्थानों पर भी ज़रूरत के अनुसार हैंडल तथा सीढ़ियाँ और ज़ीनों के दोनों ओर रेलिंग लगवाना अनिवार्य प्रतीत होता है। जहाँ आवागमन ज़्यादा होता है वहाँ बिल्डिंगों की सीढ़ियाँ और ज़ीनों की सीढ़ियाँ भी घिस-घिस कर चिकनी हो जाती हैं। ऐसे ज़ीनों में साइडों में दोनों ओर पकड़ने के लिए रेलिंग लगानी चाहिएँ तथा अत्यंत सावधानीपूर्वक चलना चाहिए। घरों या बिल्डिंगों के मुख्य दरवाज़ों पर बने रैम्प्स की सतह भी अधिक चिकनी नहीं होनी चाहिए।      उन्हें हर तरह से शारीरिक व मानसिक रूप से चुस्त-दुरुस्त बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। वे पूर्णतः सक्रिय व सचेत बने रहें इसके लिए उनकी अवस्था व शारीरिक सामथ्र्य के अनुसार उनके लिए कुछ उपयोगी कार्य अथवा गतिविधियों को खोजने में भी उनकी मदद करनी चाहिए। बुज़ुर्गों का एक सबसे बड़ा सहारा होता है उनकी छड़ी। छड़ी के इस्तेमाल में शर्म नहीं करनी चाहिये। साथ ही छड़ी ऐसी होनी चाहिये जो हलकी और मजबूत होने के साथ-साथ चलते समय फर्श पर सही तरह से रखी जा सके। छड़ी का फ़र्श पर टिकाया जाने वाला निचला हिस्सा हमवार होना ज़रूरी है अन्यथा गिरने का डर बना रहता है। सही छड़ी का सही प्रयोग करने वाले बुज़ुर्गों में दुर्घटना की संभावना अत्यंत कम हो जाती है। वैसे अच्छी लकड़ी की बनी एक कलात्मक छड़ी सुरक्षा के साथ-साथ इस्तेमाल करने वाले के बाहरी व्यक्तित्व को सँवारने का काम भी करती है।      अत्यधिक व्यस्तता के कारण कई बार हमारे पास समय नहीं होता या कम होता है तो भी कोई बात नहीं। हम अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करके उन्हें प्रसन्न रख सकते हैं व अपने कार्य करने के तरीके में थोड़ा-सा बदलाव करके उनके लिए कुछ समय भी निकाल सकते हैं। घर के बड़े-बुज़्ाुर्ग जब भी कोई बात कहें उनकी बात की उपेक्षा करने की बजाय उसे ध्यानपूवक सुनकर … Read more

मित्रता एक खूबसूरत बंधन

special article on friendship day किरण सिंह  मित्रता वह भावना है जो दो व्यक्तियों के  हृदयों को आपस में जोड़ती है! जिसका सानिध्य हमें सुखद लगता है तथा हम मित्र के साथ  स्वयं को सहज महसूस करते हैं, इसलिए अपने मित्र से अपना दुख सुख बांटने में ज़रा भी झिझक नहीं होती ! बल्कि अपने मित्र से अपना दुख बांटकर हल्का महसूस करते हैं और सुख बांटकर सुख में और भी अधिक सुख की अनुभूति करते हैं!  समान उम्र , समान स्तर , तथा समान रूचि के लोगों में होती है  अधिक गहरी मित्रता  वैसे तो कहा जता है कि मित्रता में जाति, धर्म, उम्र तथा स्तर नहीं देखा जाता ! किन्तु मेरा व्यक्तिगत अनुभव कि मित्रता यदि समान उम्र , समान स्तर , तथा समान रूचि के लोगों में अधिक गहरी होती है क्योंकि स्थितियाँ करीब करीब समान होती है  ऐसे में एक दूसरे के भावनाओं को समझने में अधिक आसानी होती है इसलिए मित्रता अच्छी तरह से निभती है!  कौन होता है सच्चा मित्र  वैदिक काल से ही मित्रता के विशिष्ट मानक दृष्टिगत होते आये है| जहाँ रामायण काल में राम और निषादराज, सुग्रीव और हनुमान की मित्रता प्रसिद्ध है वहीँ महाभारत काल में कृष्ण- अर्जुन, कृष्ण- द्रौपदी और दुर्योधन-कर्ण की मित्रता नवीन प्रतिमान गढती है| कृष्ण और सुदामा की मित्रता की तो मिसाल दी जाती है जहाँ अमीर और गरीब के बीच की दीवारों को तोड़कर मित्रता निभाई गई थी | वैसे तो जीवन में मित्रता बहुतों से होती है लेकिन कुछ के साथ अच्छी बनती है जिन्हें सच्चे मित्र की संज्ञा दी जा सकती है ! तुलसीदासजी ने भी लिखा है  “धीरज,धर्म, मित्र अरु नारी ; आपद काल परखिये चारी|  अर्थात जो विपत्ति में सहायता करे वही सच्चा मित्र है|  भावनात्मक संबल है आभासी मित्रता  अब मित्रता की बात हो और आभासी मित्रों की बात न हो यह तो बेमानी हो जायेगी! बल्कि यहीं पर ऐसी मित्रता होती है जहाँ हम सिर्फ और सिर्फ भावनाओं से जुड़े होते हैं! यहाँ किसी भी प्रकार का स्वार्थ नहीं जुड़ा होता! बहुत से लोगों का मत है कि आभासी दुनिया की मित्रता सिर्फ लाइक कमेंट पर टिकी होती है यह सत्य भी है,किन्तु यदि हम सकारात्मक दृष्टि से देखेंगे तो यह लाइक और कमेंट ही हमें आपस में जोड़तें हैं ! क्यों कि पोस्ट तथा लाइक्स और कमेंट्स ही व्यक्ति के व्यक्तित्व को उजागर करता है जिनमें हम वैचारिक समानता तथा शब्दों में अपनत्व को महसूस करते हैं और मित्रता हो जाती है! यह भी सही है कि आभासी दुनिया की मित्रता में बहुत से लोग ठगी के शिकार हो रहे हैं! इस लिए मित्रों के चयन में सावधानी बरतना आवश्यक है चाहे वह आभासी मित्रता हो या फिर धरातल की!  मित्रता एक खूबसूरत बंधन है जो हमें एकदूसरे से जोड़ कर हमें मजबूती का एहसास कराता है ! इसलिए इस बंधन को टूटने नहीं देना चाहिए !  आप सभी मित्रों को मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं   यह भी पढ़ें … फ्रेंडशिप डे पर विशेष – की तू जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में है एक पाती भाई के नाम सिर्फ ख़ूबसूरती ही नहीं भाग्य भी बढाता है 16 श्रृंगार क्यों लिभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते Attachments area

क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते

सरिता जैन ये लीजिये आप ने स्टेटस डाला और वो मिलनी शुरू हुई लोगों की प्रतिक्रियाएं | लाइक , कमेंट , और स्माइली … आपके चेहरे पर |बिलकुल फ़िल्मी दुनिया की तरह , लाइट , कैमरा , एक्शन की तर्ज पर | उसी तर्ज पर खुद को सेलिब्रेटी समझने का भ्रम | एक अलग सा अहसास , ” की हम भी हैं कुछ खास | फेस बुक की दुनिया | इस दुनिया के अन्दर बिलकुल अलग एक और दुनिया |पर अफ़सोस ! आभासी दुनिया | आप हम या कोई और जब कोई नया इस आभासी दुनिया में कदम रखता है तो उसका मकसद सिर्फ थोडा सा समय कुछ मित्रों परिचितों के साथ व्यतीत करने का होता है | परन्तु कब इसका नशा सर चढ़ कर बोलने लगता है | यह वह भी नहीं जानता |जिस तरह से शराब या कोई और नशा कोई एक व्यक्ति करता है परन्तु उसकी सजा सारे परिवार को मिलती है | उसी तरह से ये नशा भी बहुत कुछ आपके जीवन से चुराता है | ये चुराता है आप का समय … जी हां वो समय जिस पर आपके बच्चों , परिवार के सदस्यों और सबसे प्रमुख जीवन साथी का अधिकार है | इससे निजी रिश्ते बेहद प्रभावित होते हैं | ये सिर्फ हम नहीं कह रहे | ये आंकड़े कह रहे हैं ………. फेसबुक का पति -पत्नी के रिश्ते पर क्या प्रभाव पड़ता है | इसे जान्ने के लिए एक सर्वे कराया गया | इसमें फेसबुक के 5000 यूजर्स को चुना गया उनकी उम्र 33 साल के आस-पास थी. 12 अप्रैल से 15 के बीच कराए गए इस सर्वे में ये बातें प्रमुख रूप से कही गई हैं. 1. सर्वे के दौरान करीब 26 फीसदी लोगों का कहना था कि वे अपने पार्टनर द्वारा उपेक्षित महसूस करते हैं. इस बात पर उन दोनों के बीच लड़ाई भी होती है. वहीं फेसबुक पर उन्हें ज्यादा तवज्जो और अपनापन मिलता है. 2. सर्वे में करीब 44 फीसदी लोगों ने कहा है कि फेस बुक ने उनके आपसी रिश्ते को बर्बाद कर दिया . कई बार उनका पार्टनर उनके साथ क्वालिटी टाइम बिताने के बजाय फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करना पसंद करता है. 3. 47 फीसदी का मानना है कि वे फेसबुक चीटिंग का शिकार हुए हैं 4. 67 फीसदी लोगों ने ये माना कि एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर और ज्यादातर तलाक के लिए फेसबुक ही सबसे अहम कारण है. 5. सर्वे के दौरान करीब 46 फीसदी लोगों ने कहा कि वे ईर्ष्या के चलते घड़ी-घड़ी अपने पार्टनर का फेसबुक चेक करते रहते हैं. 6. करीब 22 फीसदी लोगों का मानना है कि फेसबुक उन्हें ऐसी परिस्थितियां देता है जिससे अफेयर होने के चांसेज बढ़ जाते हैं. 7. करीब 32 फीसदी लोगों ने ये स्वीकार किया कि उनकी रोमांटिक लाइफ अब पहले की तरह नहीं रह गई है और पार्टनर के बार-बार फेसबुक चेक करने की वजह से उनके बीच का प्यार कम हो गया है. 8. करीब 17 फीसदी लोगों ने माना कि वे फेसबुक के माध्यम से अभी भी अपने x के कांटेक्ट में हैं रिसर्च के डायरेक्टर टिम रॉलिन्स का कहना है कि फेसबुक दोस्तों को खोजने और उनसे टच में बने रहने का मंच है लेकिन यहां अफेयर में पड़ने की आशंका भी बहुत अधिक होती है. फेसबुक आपके प्यार भरे रिश्तों में खटास भी ला सकता है. सवाल यह उठता है की आखिर फेसबुक पर बने रिश्ते लुभाते क्यों हैं | कुछ मुख्य कारण जो उभर कर आये ……… दिखाई देता है दूसरे का सबसे अच्छा रूप  अक्सर देखा गया है दो लोग जो आपस में प्यार करते हैं | जब शादी करते हैं तो निभा नहीं पाते | कारण स्पष्ट है , डेटिंग के दिनों में उन्होंने एक दूसरे का बेस्ट रूप ही देखा होता है | यही बात फेस बुक के साथ है |यहाँ व्यक्ति को अगले का बेस्ट रूप ही दिखाई देता है | जब अपने जीवन साथी का समग्र ( अच्छा + बुरा ) रूप | जाहिर सी बात है वो कम रुचिकर लगेगा ही | उन्मुक्तता  गाँव देहात के जो लोग आपस में या घर -परिवार के बीच बड़े झीझकते हुए बात करते हैं | वो फेस बुक पर हर तरह की बात पर अपनी बेबाक राय देते नज़र आते हैं | क्रॉस जेंडर में इस तरह की बातें कुछ हद तक एक दूसरे के प्रति आकर्षित होने का कारण भी बनती हैं | इस उन्मुक्तता का निजी जीवन में जितना आभाव होता है उतनी ही तेजी से यहाँ रिश्ते बनते हैं | कोई जवाब देही नहीं  फेस बुक के रिश्तों के प्रति कोई जवाबदेही नहीं होती | चले तो चले वरना ब्लाक बटन तो है ही | ऐसे में निजी रिश्ते बहुत उबाऊ लगते हैं जहाँ हर किसी के सवाल का जवाब देना पड़ता है | नाराजगी झेलनी पड़ती है | और गुस्सा -गुस्सी के बीच शक्ल तो देखनी ही पड़ती है | केवल लाइक कमेंट से खास होने का अहसासनिजी रिश्तों में खास का दर्जा पाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं | यहाँ बस व्यक्ति किसी की पोस्ट पर लाइक कमेंट ही लगातार करे तो वह अपना सा लगने लगता है |खास लगने लगता है | सब कुछ सार्वजानिक नहीं जीवन में कुछ पल नितांत निजी और सिर्फ महसूस करने के लिए होते हैं। facebookउन्हें सार्वजनिक करने से वे अपनी खूबसूरती खो देते हैं। आजकल कई लोग जितनी तेजी से अपनी फोटो अपडेट करने और चेक-इन के साथ स्टेटस डालने में दिखाते हैं, उतनी तेजी उनका दिल अपने पार्टनर के लिए धड़कने में नहीं दिखाता। दिल का चोर  जो लोग खुद गलत होते हैं उन्हें अपने पाट्नर पर जरूरत से ज्यादा शक होता है | खुद तो चैटिंग करेंगे अगर पर्नर ने की तो उसका पास वर्ड ले कर समय मिलनी पर जेम्स बांड बन्ने से भी गुरेज नहीं करते | वही जब पार्टनर को पता छठा है की हमारा अकाउंट चेक किया जा रहा है शक की बिनाह पर रिश्ता दरकने लगता है यूँ ही समय निकल जाता है  कई बार जीवन साथी से बेवफाई करने का मन नहीं होता पर सेलेब्रेटी होने के अहसास के लिए जो ५००० फ्रेंड्स व् … Read more

इम्पोस्टर सिंड्रोम – जब अपनी प्रतिभा पर खुद ही संदेह हो

इम्पोस्टर सिंड्रोम  एक साइकोलोजिकल  बीमारी है | जिसमें व्यक्ति अपनी प्रतिभा पर संदेह करता है |  इम्पोस्टर सिंड्रोम शब्द का  पहली बार क्लिनिकल साईं कोलोजिस्ट डॉ . पौलिने न क्लेन ने १९७८ में इस्तेमाल किया था | अगर इम्पोस्टर के शाब्दिक अर्थ पर जाए तो सीधा सदा मतलब है धोखेबाज | सिंड्रोम का शाब्दिक अर्थ है लक्षणों का एक सेट | कोई हमें धोखा दे उसे धोखेबाज़ कहना स्वाभाविक है | पर यहाँ व्यक्ति खुद को धोखेबाज समझता है | इस तरह यहाँ धोखा किसी दूसरे को नहीं खुद को दिया जा रहा है | दरसल इम्पोस्टर सिंड्रोम एक विचित्र मानसिक बीमारी है | जिसमें प्रतिभाशाली व्यक्ति को अपनी प्रतिभा पर ही भरोसा नहीं होता है | ऐसे व्यक्ति बहुत सफल होने के बाद भी इस भावना के शिकार रहते हैं की उन्हें सफलता भाग्य की वजह से मिली है | बहुत अधिक सफलता के प्रमाणों के बावजूद उन्हें लगता है की वो इस लायक बिलकुल नहीं हैं | वो दुनिया को धोखा दे रहे हैं | एक न एक दिन वो पकडे जायेंगे | इस कारण वो लागातार भय में जीते हैं | यह ज्यादातर सार्वजानिक क्षेत्रों में काम करने वालों को होता है | महिलाएं इसकी शिकार ज्यादा होती हैं | इम्पोस्टर सिंड्रोम से ग्रस्त प्रसिद्द महिलाएं आपको जान कर आश्चर्य होगा की अनेकों प्रसिद्द महिलाएं  जिन्होंने अपने अपने क्षेत्रों  में विशेष सफलता हासिल की वह इम्पोस्टर सिंड्रोम से ग्रस्त रहीं | उदाहरण के तौर पर माया एंजिलो , एमा वाटसन , मर्लिन मुनरों बेस्ट सेलिंग राइटर नील गेमैन ,जॉन  ग्रीन आदि इम्पोस्टर सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाओं के खास लक्षण जैसा की पहले बताया जा चुका है इम्पोस्टर सिंड्रोम ज्यादातर प्रतिभाशाली महिलाओ को होता है | इसके कुछ ख़ास लक्षण निम्न हैं | कठोरतम परिश्रम गिफ्टेड महिलाएं ज्यादातर कठोर परिश्रमी होती हैं | क्योंकि उन्हें लगता है की अगर वो कम परिश्रम करेंगी तो पकड़ी जायेंगी | इस कठोर परिश्रम के कारण उन्हें और ज्यादा सफलता व् तारीफे मिलती हैं जिससे वो पकडे जाने के भय से और डर जाती हैं फिर उस्ससे भी ज्यादा कठोर परिश्रम करने लगती हैं | वो सामान्य महिलाओं से दो –तीन गुना ज्यादा काम करती हैं | व् जरूरत से ज्यादा प्रिप्रेशन , जरूरत से ज्यादा सोचना , जरूरत से ज्यादा सतर्क रहती हैं | जिससे वो अक्सर एंग्जायटी  व् नीद की कमी से ग्रस्त रहती हैं | फेक व्यक्तित्व इन महिलाओं को क्योंकि अपनी प्रतिभा पर भरोसा नहीं होता इसलिए जब उनके सुपिरियर्स या बॉस कुछ कहते हैं तो अपनी स्पष्ट राय न रख कर हाँ में हां मिला देती हैं | ऐसा नहीं है की उनमें निरनय लेने कीक्षमता नहीं होती पर उन्हें लगता हैं वो कभी सही नहीं हो सकती | इसलिए वो दूसरों की राय  पर मोहर लगा देती हैं |पर यह बात उन्हें अन्दर ही अन्दर और फेक होने का अहसास कराती है | सुन्दरता की प्रशंसा  से एक भय ज्यादातर यह गिफ्टेड महिलाएं खूबसूरत होती हैं | इनका चरम दूसरे पर असर डालता है |अक्सर उन्हें उनकी प्रतिभा के साथ – साथ उनकी सुन्दरता के कारण भी तारीफे मिलती हैं | शुरू में तो इस बात का वह प्रतिरोध नहीं करती | परन्तु जब बाद में उनको ज्यादा प्रशंसा मिलने लगती है तो उन्हें लगने लगता है की अगला व्यक्ति उनकी सुन्दरता से प्रभावित है न की उनकी प्रतिभा से |लिहाजा  उनका झूठी प्रतिभा की  पोल खुल जाने का और  भय और बढ़ जाता है | अपने आत्मविश्वास का प्रदर्शन करने से बचती हैं इम्पोस्टर सिंड्रोम से ग्रस्त महिलाएं अपने आत्मविश्वास का प्रदर्शन करने से बचती हंन | उन्हें लगता है अगर वो आत्म विश्वास का प्रदर्शन करेंगी तो लोग उनकी खामियां ढूँढने में जुट जायेंगे | व् उनका फेक होना पकड लेंगे व् उन्हें अस्वीकार कर देंगे | इसलिए वह अपने मन में यह धरनणा  गहरे बैठा लेती हैं की वो इंटेलिजेंट नहीं हैं यह सफलता केवल उन्हें भाग्य के दम पर मिली है | इम्पोस्टर सिंड्रोम का मेनेजमेंट इम्पोस्टर सिंड्रोम का कोई ज्ञात बीमारी नहीं है यह केवल साइकोलोजिकल सिम्टम होते हैं जिन्हें मेनेज किया जा सकता है | स्वीकार करिए                            किसी भी बीमारी से निकलने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है की आप उसे स्वीकार करें | जब हम स्वीकार करते हैं तब उसका इलाज़ ढूंढते हैं | अत : स्वीकार करिए की अपनी प्रतिभा पर संदेह आप एक मानसिक रोग के कारण कर रहे हैं जिसे उचित काउंसिलिंग द्वारा ठीक किया जा सकता है |  ध्यान – इम्पोस्टर सिंड्रोम से बचने का सबसे सरल उपाय है ध्यान या मेडिटेशन | इसके द्वारा आप अपने विचारों पर कंट्रोल करना सीखते हैं | दरसल हमारी परेशानी का कारण हमारे विचार होते हैं | अपने विचारों पर नियंत्रण करके भय की फीलिंग से निकला जा सकता है | अपने भय को जीतना सीखिए ११ किताबें लिखने के बाद भी मुझे लगता था की अब की बार पाठक मुझे पकड़ लेंगे | वह जान जायेंगे की मैं योग्य नहीं हूँ मैं उनके साथ गेम खेल रही हूँ |माया एंजिलो ( अवार्ड विनिग राइटर ) इम्पोस्टर सिंड्रोम से ग्रस्त व्यक्ति  अगर इस बात से भयभीत रहतें हैं की एक दिन उनका झूठ पकड़ा जाएगा | तो इससे निकलने का एक ही सर्वमान्य उपाय है | अपना आकलन खुद करें | जब भी स्टेज पर जाए यह सोचे यह भीड़ आपको सुनने के लिए आई है | अपने अन्दर गर्व महसूस करिए और अकेले में भी विजेता की तरह दिखिए ( बॉडी लेंगुएज  से ) व् बोलिए जैसे भीड़ के सामने हो | एक्सपर्ट बनिए एक कॉपी निकाल कर लिखिए आप के लिए एक्सपर्ट का क्या मतलब है | क्या वो बेस्ट गायक हो , लेखक हो , नेता हो , या उसे अवार्ड मिले हों | फिर अपना मूल्याङ्कन करिए क्या आप के पास वो चीजे हैं ……….अवश्य होंगी | अगर आप निश्चय करतें है तो किताब लिखिए , गायन , अभिनय या जिस क्षेत्र में हों करिए | अवार्ड पाने के लिए नाम भेजिए | निश्चित ही आप को मिलेगा | सफलता विफलता को लिखिए                … Read more

16 श्रृंगार -सिर्फ खूबसूरती ही नहीं, भाग्य भी बढ़ाता है सोलह श्रृंगार

 किरण सिंह औरत और श्रृंगार एकदूसरे के पूरक हैं अब तक तो यही माना जाता आ रहा है और सत्य भी है क्यों कि सामान्यतः औरतों को श्रृंगार के प्रति कुछ ज्यादा ही झुकाव होता है ! हम महिलाएँ चाहे जितना भी पढ़ लिख जाये, कलम से कितनी भी प्रसिद्धि पा लें लेकिन सौन्दर्य प्रसाधन तथा वस्त्राभूषण अपनी तरफ़ ध्यान आकृष्ट कर ही लेते हैं !भारतीय संस्कृति में सुहागनों के लिए 16 श्रृंगार बहुत अहम माने जाते थे बिंदी  सिंदूर चूड़ियाँ बिछुए पाजेब नेलपेंट बाजूबंद लिपस्टिक  आँखों में अंजन कमर में तगड़ी नाक में नथनी  कानों में झुमके बालों में चूड़ा मणि गले में नौलखा हार हाथों की अंगुलियों में अंगुठियाँ मस्तक की शोभा बढ़ाता माँग टीका बालों के गुच्छों में चंपा के फूलों की माला सिर्फ खूबसूरती ही नहीं, भाग्य भी बढ़ाता है सोलह श्रृंगार – ऋग्वेद में सौभाग्य के लिए किए जा रहे सोलह श्रृंगारों के बारे में विस्तार से बताया गया है।जहाँ बिंदी भगवान शिव के तीसरे नेत्र की प्रतीक मानी जाती है तो सिंदूर सुहाग का प्रतीक !काजल बुरी नज़र से बचाता है तो मेंहदी का रंग पति के प्रेम का मापदंड माना जाता है!मांग के बीचों-बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर वधू की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। ऐसी मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले सके। कर्ण फूल ( इयर रिंग्स) के पीछे ऐसी मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को दूसरों की, खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनवद्धता का प्रतीक माना जाता है!  पहले सुहागिन स्त्रियों को हमेशा बाजूबंद पहने रहना अनिवार्य माना जाता था और यह सांप की आकृति में होता था। ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों को बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती और बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।नवविवाहिता के हाथों में सजी लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है।    सोने या चाँदी से बने कमर बंद में बारीक घुंघरुओं वाली आकर्षक की रिंग लगी होती है, जिसमें नववधू चाबियों का गुच्छा अपनी कमर में लटकाकर रखती हैं! कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने घर की स्वामिनी है।और पायल की सुमधुर ध्वनि से घर आँगन तो गूंजता ही था साथ ही बहुओं पर कड़ी नज़र की रखी जाती थी कि वह कहाँ आ जा रही है !  इस प्रकार पुरानी परिस्थितियों, वातावरण तथा स्त्रियों के सौन्दर्य को ध्यान में रखते हुए सोलह श्रृंगार चिन्हित हुआ था!  किन्तु आजकल सोलह श्रृंगार के मायने बदल से गये हैं क्योंकि आज के परिवेश में कामकाजी महिलाओं के लिए सोलह श्रृंगार करना सम्भव भी नहीं है फिर भी तीज त्योहार तथा विवाह आदि में पारम्परिक परिधानों के साथ महिलाएँ सोलह श्रृंगार करने से नहीं चूकतीं !  सोलह श्रृंगार भी हमारी संस्कृति और सभ्यता को बचाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है !                         यह भी पढ़ें …….. समाज के हित की भावना ही हो लेखन  का उदेश्य दोषी कौन अपरिभाषित है प्रेम एक पाती भाई – बहन के नाम

सुधरने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए – मार्लन पीटरसन, सामाजिक कार्यकर्ता

        संकलन: प्रदीप कुमार सिंह       कैरेबियाई सागर का एक छोटा सा देश है त्रिनिदाद और टोबैगो। द्वीपों पर बसे इस मुल्क को 1962 में आजादी मिली। मार्लन के माता-पिता इसी मुल्क के मूल निवासी थे। उन दिनों देश की माली हालत अच्छी नहीं थी। परिवार गरीब था। लिहाजा काम की तलाश में वे अमेरिका चले गए।             मार्लन का जन्म बर्कले में हुआ। तीन भाई-बहनों में वह सबसे छोटे थे। अश्वेत होने की वजह से परिवार को अमेरिकी समाज में ढलने में काफी मुश्किलें झेलनी पड़ीं। सांस्कृतिक और सामाजिक दुश्वारियों के बीच जिंदगी की जद्दोजहद जारी रही। शुरूआत में मार्लन का पढ़ाई में खूब मन लगता था, पर बाद में मन उचटने लगा। उनकी दोस्ती कुछ शरारती लड़कों से हो गई। माता-पिता को भनक भी नहीं लग पाई कि कब बेटा गलत रास्ते चल पड़ा?             अब उनका ज्यादातर वक्त दोस्तों के संग मौज-मस्ती में गुजरने लगा। पापा की डांट-फटकार भी उन पर कोई असर नहीं होता था। किसी तरह स्नातक की डिग्री हासिल की। मां बेसब्री से उस दिन का इतंजार कर रही थीं, जब बेटा पढ़ाई पूरी करके नौकरी करेगा और परिवार की जिम्मेदारी संभालेगा। मगर एक दिन अचानक उनका सपना टूट गया, जब खबर आई कि पुलिस ने मार्लन को पकड़ लिया है। उनके ऊपर टैªफिक नियम तोड़ने का आरोप था। गिरफ्तारी के दौरान पुलिस ने अच्छा सुलूक नहीं किया उनके साथ। अश्वेत होने के नाते अपमानजनक टिप्पणियां सुननी पड़ी। जुर्माना भरने के बाद वह छूट गए। पापा ने खूब समझाया, मगर उन्हें अपनी गलती का जरा भी एहसास नहीं था।             इसके बाद तो उनका व्यवहार और उग्र भी हो गया। इस घटना के करीब एक वर्ष बाद पुलिस ने उन्हें दोबारा पकड़ लिया। इस बार उन पर एक संगीन जुर्म का आरोप था। दरअसल, बर्कले सिटी के एक मशहूर काॅफी हाउस में लूट की कोशिश हुई थी और फायरिंग भी। इस वारदात में दो लोग मारे गए थे। पुलिस ने दो दोस्तों के साथ मार्लन को गिरफ्तार किया। कोर्ट में साबित हो गया कि मार्लन और उनके दोस्तों ने ही फायरिंग की थी। जज ने उन्हें 12 साल की सजा सुनाई।             जेल की सलाखों के पीछे पहुंचकर मार्लन को एहसास हुआ कि उन्होंने कितना गलत किया? यह सोचकर उनका दिल बेचैन हो उठा कि उनकी वजह से परिवार वालों को कितना कुछ सहना पड़ेगा। 12 साल तक जेल में कैसे रहंूगा, यह सोचकर उनका दिल बैठने लगा। एक-एक दिन मुश्किल से बीता। उन्हीं दिनों जेल में कैदी-सुधार कार्यक्रम के तहत उन्हें स्कूली बच्चों से मिलने का मौका मिला। इस मुलाकात ने उन्हें नई दिशा दी। मार्लन कहते हैं- बच्चों से मिलकर एहसास हुआ कि जिंदगी अभी बाकी है। कार्यक्रम के दौरान एक स्कूल टीचर ने उनसे कहा कि आप मेरे क्लास के बच्चों के लिए प्रेरक खत लिखिए। पहले तो उन्हें समझ में नहीं आया कि वह बच्चों को क्या संदेश दें? मगर जब कलम और कागज हाथ में आया, तो ढेरों ख्याल उमड़ने लगे। खत में उन्होंने बच्चों को जिंदगी की अहमियत समझाते हुए नेक रास्ते पर चलने की सलाह दी। मार्लन बताते हैं- 13 साल की एक बच्ची ने मुझे जवाबी खत भेजा। उसमें लिखा था, आप मेरे हीरो हैं। यह पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मैंने तय किया कि मैं ऐसा कुछ करूंगा, ताकि हकीकत में मैं लोगों का हीरो बन जाऊं।             वैसे तो जेल में बिजली मैकेनिक, कपड़ों की सिलाई आदि के काम भी सिखाए जाते थे, मगर उन्हें लिखने-पढ़ने का काम ज्यादा दिलचस्प लगा। नई उम्मीद के साथ वह सजा पूरी होने का इंतजार करने लगे। जेल में अच्छे व्यवहार के कारण उनकी सजा दो साल कम हो गई। दिसंबर 2009 में वह जेल से रिहा हुए। तब उनकी उम्र करीब 30 साल थी। मार्लन कहते हैं- जेल से बाहर आया, तो मम्मी-डैडी सामने खड़े थे। अच्छा लगा यह जानकर कि वे बीते दस साल से मेरे इंतजार में जी रहे थे। लंबे अरसे के बाद घर का खाना खाया। तब समझ में आया कि इंसान के लिए घर-परिवार का प्यार कितना जरूरी है।             रिहाई के बाद उन्होंने बंदूक विक्रेता लाॅबी के खिलाफ अभियान शुरू किया। दरअसल, अमेरिका में खुले बाजार में बिना लाइसेंस के बंदूक का मिलना एक बडी समस्या है। आए दिन सार्वजनिक जगहों पर गोलीबारी की घटनाएं होती हैं। मार्लन कहते हैं- वहां नौजवान मामूली बातों पर गोली चला देते हैं। एंटी-गन मुहिम में मुझे लोगों का भरपूर साथ मिला। कुछ दिनों के बाद उन्होंने प्रीसीडेंशियल ग्रुप नाम से कंसल्टिंग फर्म की स्थापना की, जिसका मकसद पीड़ितों को सामाजिक न्याय दिलाना था। 2015 में एक स्काॅलरशिप प्रोग्राम के तहत सामुदायिक हिंसा पर काम करने का उन्हें मौका मिला। न्यूयाॅर्क यूनिवर्सिटी में आॅर्गेनाइजेशनल बिहेवियर में स्नातक कोर्स के लिए आवदेन किया। मार्लन बताते हैं- दोबारा पढ़ाई शुरू करना आसान न था। लोग शक की निगाहों से देखते थे। यूनिवर्सिटी बोर्ड ने एडमिशन से पहले कई सवाल किए। मैंने कहा, मैं अपनी गलती की सजा भुगत चुका हूं। आप मुझे दोबारा पढ़ने का मौका दीजिए। इन दिनों मार्लन युवाओं के बीच बतौर सामाजिक कार्यकर्ता और प्रेरक वक्ता काफी लोकप्रिय हैं। प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी रिलेटेड पोस्ट … सफल व्यक्ति – आखिर क्या है इनमें खास नौकरी छोड़ कर खेती करने का जोखिम काम आया        मेरा एक महीने का वेतन पिता के कर्ज के बराबर  जनसेवा के क्षेत्र में रोलमॉडल बनी पुष्प पाल   “ग्रीन मैंन ” विजय पाल बघेल – मुझे बस चलते जाना है 

भाग्य बड़ा की कर्म

 “ भाग्य बड़ा है या कर्म “ ये एक ऐसा प्रश्न  है जिसका सामना हम रोजाना की जिन्दगी में करते रहते है | इसका सीधा – सादा   उत्तर देना उतना ही कठिन है जितना की “पहले मुर्गी आई थी  या अंडा “का | वास्तव में देखा जाए तो भाग्य और कर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं | कर्म से भाग्य बनता है और ये  भाग्य हमें ऐसी परिस्तिथियों में डालता रहता है जहाँ हम कर्म कर के विजयी सिद्ध हों  या परिस्तिथियों के आगे हार मान कर हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे और बिना लड़े  ही पराजय स्वीकार कर लें | भाग्य जड़ है और कर्म चेतन | चेतन कर्म से ही भाग्य का निर्माण होता है | जैसा की जयशंकर प्रसाद जी “ कामायनी में कहते हैं की कर्म का भोग, भोग का कर्म, यही जड़ का चेतन-आनन्द। अब मैं अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कुछ तर्क देना चाहती हूँ | जरा गौर करियेगा की हम कहाँ – कहाँ भाग्य को दोष देते हैं पर हमारा वो भाग्य किसी कर्म  का परिणाम होता है | 1)कर्म जब फल की चिंता रहित हो तो सफलता दिलाता है  हमारी भारतीय संस्कृति  जीवन को जन्म जन्मांतर का खेल मानते हुए कर्म से भाग्य और भाग्य से कर्म के सिद्धांत पर टिकी हुई है |गीता का तीसरा अध्याय कर्मयोग के नाम से ही जाना जाता हैं | ये सच है की जन्म – जन्मांतर को तार्किक दृष्टि से सिद्द नहीं किया जा सकता | फिर भी कर्म योग के ये सिद्धांत आज विश्व के अनेक विकसित देशों में MBA के students को पढाया जा रहा है | और और इसे पुनर्जन्म पर नहीं तर्क की दृष्टि से सिद्ध किया जा रहा है | जैसा की प्रभु श्री कृष्ण गीता में कहते हैं की .. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। उसकी तार्किक व्याख्या इस प्रकार दी जाती है की ….फल की चिंता अर्थात स्ट्रेस या तनाव जब हम कोई काम करते समय जरूरत से ज्यादा ध्यान फल या रिजल्ट पर देते हैं तो तनाव का शिकार हो जाते हैं | तनाव हमारी परफोर्मेंस पर असर डालता है | हम लोग दैनिक जीवन की मामूली से मामूली बातों में देख सकते हैं की स्ट्रेस करने से थकान महसूस होती है , एनर्जी लेवल डाउन होता है और काम बिगड़ जाता है |पॉजिटिव थिंकिंग की अवधारणा इसी स्ट्रेस को कम करने के लिए आई | मन में अच्छा सोंच कर काम शुरू करो , जिससे काम में जोश रहे , दिमाग फ़ालतू सोंचने के बजाय काम पर फोकस हो सके | कई बार पॉजिटिव थिंकिंग के पॉजिटिव रिजल्ट देखने के बाद भी हम अपनी निगेटिव थिंकिंग को दोष न देकर कहते हैं …. अरे पॉजिटिव , निगेटिव थिंकिंग नहीं ये तो भाग्य है |J २ ) भाग्य नहीं गलत डिसीजन है असफलता का कारण  कई बार जिसे हम भाग्य समझ कर दोष देते हैं वो हमारा गलत डिसीजन होता है | उदाहरण के लिए किसी बच्चे की रूचि लेखक बनने की है | पर माता – पिता के दवाब में , या दोस्तों के कहने पर बच्चा गणित ले लेता है | निश्चित तौर पर वो उतने अच्छे नंबर  नहीं लाएगा | हो सकता है फेल भी हो जाए | अब परिवार के लोग सब से कहते फिरेंगे की मेरा बच्चा तो दिन रात –पढता है पर क्या करे भाग्य साथ नहीं देता |मैंने ऐसे कई बच्चे देखे जिन्होंने तीन , चार साल मेडिकल या इंजिनीयरिंग की रोते हुए पढाई करने के बाद लाइन चेंज की | और खुशहाल जिन्दगी जी | बाकी उसी को बेमन से पढ़ते रहे , असफल होते रहे और भाग्य को दोष देते रहे | क्या आप को नहीं लगता हमीं हैं जो भाग्य की ब्रांडिंग करते हैं | J J ३)प्रतिभा और परिश्रम बनाते हैं भाग्य   इसी प्रतियोगिता में ही शायद मैंने पढ़ा था की हर चाय वाला मोदी नहीं हो जाता | यानी हम ये मान कर चलते हैं की हर अँगुली बराबर होती है |J प्रतिभा को हमने सिरे से ख़ारिज कर दिया , और उन  स्ट्रगल्स को भी जो मोदी ने मोदी बनने के दौरान की | पूरे देश घूम – घूम कर जनसभाएं की | लोगों से जुड़ने का प्रयास किया | उनकी समस्याएं समझी , सुलझाई | क्या हर चाय वाला इतना करता है | या इतना महत्वाकांक्षी भी होता है | हम सब ने बचपन में संस्कृत का एक श्लोक पढ़ा है | उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः । न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥                   हम ये श्लोक पढ़कर एग्जाम पास कर लेते हैं | पर तर्क ये देते हैं की हम भी चाय बेंचते हैं | फिर हम मोदी क्यों नहीं बने | चाय वाला =चायवाला , सबको मोदी बनना चाहिए | अरे ,ये तो भाग्य है | J 4)सफलता बरकरार रखने के लिए भाग्य पर नहीं स्ट्रेटजी पर ध्यन दें   अब जरा गौर करते हैं , उन किस्सों  पर जिनमें शुरू में प्रतिभा बराबर होती है | कई बार शुरूआती प्रतिभा बराबर होने के बाद भी हम लगातार उतने सफल नहीं हो पाते | क्योंकि एक बार सफलता पाना और उसे बनाए रखना दो अलग – अलग चीजे हैं | उसके लिए अनुशासन , फोकस , अपने अंदर जूनून को जिन्दा रखना , असफल होने के बाद भी प्रयास न छोड़ना आदि कर्म आते हैं | जो लगातार करने पड़ते है | चोटी  पर बैठा व्यक्ति जिस स्ट्रेस को झेलता है , उस के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करना पड़ता है | Our greatest weakness lies in giving up.  The most certain way to succeed is always to try just one more time.  — Thomas Edison काम्बली और तेंदुलकर का उदहारण अक्सर दिया जाता है |क्या सचिन तेंदुलकर की निष्ठा जूनून , लगन  , अनुशासित जीवन और हार्ड वर्क को हम नकार सकते हैं | पर हम किसी लगातार सफल व्यक्ति के  ये गुण खुद में उतारने के स्थान पर लगेंगे भाग्य को दोष देने | J 5 )कर्म तय कराता है महा गरीबी से महा अमीरी का सफ़र   एक और स्थान जिसे हम भाग्य के पक्ष में रखते हैं | … Read more

जिनपिंग! हम ढ़ाई मोर्चे पे तैयार है

रंगनाथ द्विवेदी अब पता नहीं 1962 के भारत और चीन के क्या हालात थे?,परिस्थितियाँ क्या थी?।उस समय के हमारे प्रधानमंत्री नेहरु जी से भूल हुई या फिर चीन ने हमारे इस देश और हमारी मित्रता के साथ विश्वासघात किया? एैसे मे तमाम तर्क है कुछ लोग उस समय के तत्कालीक प्रधानमंत्री नेहरु जी पे भी अपने-अपने तरीके से दोषारोपण करते है। ये तो निश्चित है कि उस समय के कुछ तथ्य भी तोड़े-मरोड़े गये उस लड़ाई मे चीन ने हमसे ढ़ेर सारी हमारी जमीने भी हथिया ली, सारी सच्चाईयो का बाद की सरकारो के द्वारा गला भी घोटा गया उसका एक प्रमुख कारण भी रहा काग्रेंस का काफी लम्बे समय तक किया गया शासन! वैसे भी अब आज की तारीख़ में”उस कैंसर ग्रस्त पन्ने को पढ़ने से कुछ भी हासिल होने वाला नही एैसे में उसपे बेजा लेखनी लिखने से अच्छा है कि हम उदीयमान होते हुये सुदृढ़ और मजबूत भारत की उस छप्पन इंच की छाती पे लिखे जो आज की तारीख़ मे मदांध चीन से पीछे न खिसक बल्कि अपनी डिप्लोमेसी से चीन और पाकिस्तान को हर मोरचे पे थोड़ा-थोड़ा कर पीछे ढ़केल रहा है। आज हम पलायित होने की बजाय चीन की आँख के उस सुअर की बाल का जवाब कुटनीतिक तरिके से दे रहे है अर्थात आज उसी के से अंदाज मे हमारी भी आँख बखूबी पुरी चाईनीज़ शैली मे पेच लडाये हुये है। यही चीज चीन की तिलमिलाहट का कारण भी बन रहा है जिसकी एक बानगी हमने उसके द्वारा अभी हाल ही मे डोकलाॅम मे देखी है। उसे हर मोर्चे पे भारत से मिल रहे करारे जवाब का ही ये प्रतिफल है जो वे ये कह रहा कि सिक्किम का डोकलाॅम उसके भू-भाग मे है एैसा उसने अपने एक नक्शे मे भी दर्शाया है,लेकिन हमारी भारतीय फौज लगातार वहाँ अपना सफल दबाव बनाये हुये है,इसी के तहत वहाँ के प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मिडिया के माध्यम से ये कहाँ जाना कि—“भारत को 1962 के युद्ध से सबक लेना चाहिये और उसे अपनी सेना पंचशील संधि के तहत हटा लेनी चाहिये क्योंकि वे चीन का अपना भू-भाग है ये निरा बकवास और चीन का बिस्तारवादी नीति का बेहुदापन है नही तो सच ये है कि वे भू-भाग भुटान और भारत का अपना भू-भाग है ये भू-भाग सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है”। चीन को शायद अब ये आभास कराने का समय भी आ गया है कि “अब भारत 1962 के नेहरु का भारत नही बल्कि आज का काफी सुदृढ़ और मजबूत भारत है जो उस युग से काफी आगे निकल आया है,इसलिये अब हमे चीन 1962 की तरह डिल न करे”।अब हम उसकी विस्तारवादी नीति को सहे ये संम्भव नही, अभी हमारे सेनाध्यक्ष का भी एक करारा बयान आया था कि “हम और हमारी सेना ढ़ाई मोरचे पे लड़ने को तैयार है”। और शायद हमारे सेनाध्यक्ष के कथन कि झुंझलाहट ही थी की चाईना के डोकलाॅम के आस-पास आये चीनी सैनिको को हमारी भारतीय सेना ने ढ़केल बाहर किया वे चोट चीन के लिये असह्य और काफी पीड़ादायक हो गई,ये हम भारतियो के लिये गर्व का पल था।हमारे रक्षामंत्री अरुण जेटली ने भी चीन के 1962 वाले युद्ध के गीदड़ भभकी के जवाब मे कहाँ कि “अब चीन को भी थोड़ा सा ये समझ जाना चाहिये कि अब हम भी वे 1962 के भारत नही रहे”। सिक्किम के डोकलाॅम मे लगातार हमारी सेना का डटा रहना चीन को नागवार लग रहा,जब वहाँ उसे मुँह की खानी पड़ी तो उसने एक और चाल चली,उसने कुछ लड़ाकू बेड़े,पनडुब्बी जहाज़ आदि को भारतीय समुद्री सीमा के आस-पास भेज भारत को भयाक्रांत या डराने की कोशिश की और उसके इस ताजा-तरीन कोशिश का नीम की तरह का कड़वा फल उसे कल ही खाने या चखने को मिल गया,अर्थात विश्व की दो महान शक्तियो अमेरिका,जापान और भारत ने एक साथ दस दिनो का सामरिक युद्धाभ्यास किया जो कि अब तलक का सबसे तगड़ा तीन देशो का युद्धाभ्यास है,हालाँकि आज की तारीख़ में चीन की विस्तारवादी नीतियो के चलते विश्व के अधिसंख्य देश उससे मन ही मन चिढ़े हुये है। इस युद्धाभ्यास के नाते चीन एक टुच्चे और टभैये देश की तरह ये कह रहा है कि—भुटान का साथ जीस तरह भारत दे रहा है ठीक वैसे ही हम भारत मे कश्मीर घाटी के अलगाववादीयो,आतंकियो की मदत करने के लिये अपनी सेना को भेज सकते है। आजादी के इतने साल बाद चीन को भी ये कल्पना न थी कि भारत एकदिन उस स्थिति तलक अपनी सफल डिप्लोमेसी के द्वारा पहुँच जायेगा कि उसके समकक्ष अपनी आँख दिखा उसकी गीदड़ भभकियो का शेर की गर्जना के साथ या शैली मे जवाब भी दे लेगा। इस सारे बदलाव की जड़ का एकमात्र नायक आज हमारे देश के इतने बड़े लोकतन्त्र के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को जाता है,जो अरबो की जनसंख्या के इस देश को जब भी किसी देश मे प्रस्तुत करते है तो लगता है कि पहली बार हमारे इतने बड़े मुल्क कि वे छप्पन इंच की छाती बोल रही है जिसपे आज की तारीख़ मे हम सभी भारतवासियो को गर्व है।नरेन्द्र मोदी की सफल कूटनीतियो ने हमे मात्र तीन साल मे ही वहाँ पहुँचा दिया है जहाँ से पुरी दुनिया भारत को गौर से सुन और तक रही है। तीन साल मे ही मोदी जी ने वे करिश्मा कर दिखाया,जो इतने वर्षो या सालो की राजनीति में भारत के बड़े-बडे नेता या प्रधानमंत्री नही कर पाये,उनके उसी अदा और शैली की आज दुनिया दिवानी है”अमेरिका जैसी विश्व शक्ति वाले देश के राष्ट्रपति को भी अपने यहाँ के चुनाव मे मोदी-मोदी कहना पड़ा और उस नाम कि महिमा का सिक्का भी वहाँ चला और ट्रम्प वहाँ के राष्ट्रपति चुनकर आये”। हमने तमाम किस्से और कहानिया बचपन मे सुनी व पढ़ी कि महाराजा विक्रमादित्य के दरबार मे नौ-रत्न थे या फिर अकबर की हुकूमत मे भी नौ-रत्न थे उसके बाद मै तिसरी बार एैज ऐ गवाह अपने समय की एक जिंदा कहानी को जीवित देखने का सुअवसर पा रहा हूं अर्थात मोदी जी की भी सत्ता मे हर विधा के एक से बढ़कर एक रत्न दिख रहे है।उनकी सबसे बड़ी और बेशकिमती अदा है किसी भी हद तलक जा देश हित मे लिये … Read more