सोलमेट – असलियत या भ्रम
अभी कुछ दिन पहले एक विवाह समारोह में जाना हुआ | दूल्हा दुल्हन स्टेज पर बैठे थे , और जैसा की होता है सब उन्ही को देख रहे थे | रंग रूप कद में दोनों एक दूसरे के बराबर थे , न कोई उन्नीस ना कोई बीस | हर कोई तारीफ़ कर रहा था, ” भगवान् ने मिलाया है , कितनी परफेक्ट जोड़ी है |” तभी किसी ने कहा अरे शिक्षा और नौकरी में भी दोनों बराबर हैं , इसलिए ये परफेक्ट नहीं सुपर परफेक्ट जोड़ी है यानी की सोलमेट | सबने समर्थन में सर हिलाया | और मैं मन ही मन सोलमेट की व्याख्या करने लगी | सोलमेट – असलियत या भ्रम सोल मेट , जैसा की शाब्दिक अर्थ से कयास लगाया जा सकता है … एक ऐसा व्यक्ति जो आपकी आत्मा का साथी हो | रिश्तों की नींव ही साथ रहने की लालसा पर आधारित हैं | हम कई तरह के रिश्ते बनाते हैं | जब कोई नया रिश्ता बनता है ऐसा लगता है कि हम उसी को खोज रहे थे | साथ रहते -रहते उसमें भी कुछ दूरियाँ आने लगती हैं | मन -मुटाव होते हैं , झगडे होते हैं , रिश्ते टूटते हैं या सिर्फ चलने के लिए खींचे जाते हैं | क्योंकि ये सारे रिश्ते सांसारिक हैं , परन्तु आत्मा जो हमारा शुद्ध रूप है अगर हमें ऐसा कोई साथी मिल जाता है जिसके प्रेम का अहसास हम आत्मा के स्तर पर महसूस करें , तो वही होगा हमारा सोल मेट | ” सोलमेट “एक ऐसी हकीकत या कल्पना जो हमें रोमांच से भर देती है | क्या पति -पत्नी होते हैं सोलमेट बहुधा पति पत्नी को सोलमेट कहा जाता है | पर क्या ये सच हैं ? अगर देखा जाए तो मनुष्य तीन स्तरों पर जीवन जीता है … शारीरिक , मानसिक , आत्मिक या आध्यात्मिक | वही संबध श्रेष्ठ संबंध होते हैं जो तीनों स्तरों पर स्थापित हों | पति -पत्नी का रिश्ता शारीरिक साथी के रूप में होता ही है | विवाह इसी कारण किया जाता है | परन्तु यह रिश्ता मानसिक स्तर पर भी जुड़े ये जरूरी नहीं है | कई बार देखा गया है कि पति पत्नी एक बहुत अच्छे साथी होते हुए भी आपस में ज्यादा देर तक बात नहीं कर पाते , कारण उनका मानसिक स्तर नहीं मेल खाता , रुचियाँ अलग हैं , सोच अलग है , विचार अलग है | जो आपस में टकराव का कारण बनते हैं | कलह -कुलह के बीच बीतते जीवन में मन ही नहीं मिलता फिर आध्यात्मिक या आत्मा के स्तर पर तो और भी बड़ी बात है | क्या है सोलमेट की परिभाषा अमरीकी लेखक ” रिचर्ड बैच” ने सोलमेट की परिभाषा दी है , उनके अनुसार …. A soulmate is someone who has locks to fit our keys and keys to fit our locks. when we feel safe enough to open the locks , our truest self steps out and we can be completely and honestly who we are . “सोलमेट कोई ऐसा होता है जिसके पास हमारी सारी चाभियों में फिट होने वाले ताले होते हैं और हमारे तालों में फिट होने वाली चाभियाँ होती हैं | जब हम तालों को खोलना सुरक्षित समझते हैं तब हमारा असल मैं बाहर आता है | तब हम इमानदारी से पूरी तरह वो हो सकते हैं जो हम हैं |” जैसा कि परिभाषा से स्पष्ट है कि हम कितने भी रिश्ते बना लेते हैं परन्तु अपने शुद्ध रूप में किसी के सामने नहीं रह पाते | इसका कारण ये है कि हर रिश्ते में समन्वय स्थापित करने के लिए कुछ न कुछ परिवर्तन करना पड़ता है | कई बार ये बदलाव इतना ज्यादा होता है कि हमारा असली रूप उसके पीछे कहीं खो सा जाता है | यहीं से शुरू होता है घुटन का एक अंत हीन सिलसिला | महिलाएं तो इसकी अधिकतर शिकार रहती हैं | परन्तु सोलमेट के साथ यह विडम्बना नहीं है | वहां किसी समन्वय की कोई जरूरत नहीं है | हम जैसे हैं वैसे रह सकते हैं | टकराव की कोई गुंजाइश ही नहीं है | कौन हो सकता है हमारा सोलमेट जैसा की ऊपर ही स्पष्ट कर दिया है कि सोलमेट कोई भी हो सकता है | जरूरी नहीं कि पति -पत्नी हीं हों , माता -पिता , भाई- बहन , कोई मित्र , पड़ोसी , आपका गुरु , यहाँ तक की कोई दो साल का बच्चा भी | सोलमेट वही है जिसे देखते ही लगे अरे आप इसे ही ढूंढ रहे थे … यही तो है आपकी आत्मा का साथी | सोलमेट के साथ उम्र का बंधन नहीं होता , क्योंकि आत्मा की कोई उम्र नहीं होती | क्यों मुश्किल होता है सोलमेट को खोजना जैसा की पहले ही बताया है कि सोलमेट यानि आत्मा का साथी | जरा सोचिये जब जीवन साथी खोजने में इतनी मुश्किल होती है तो आत्मा का साथी खोजने में कितनी मुश्किल होगी | वैसे भी ज्यादातर मनुष्य शरीर के तल पर ही जीते हैं , मानसिक तल पर भी नहीं , इसलिए उन्हें जरूरत ही नहीं होती की आत्मा के साथी को खोजा जाए | ऐसा साथी जिसके साथ आप खुद को पूर्ण महसूस कर पाए | इसीलिए अधिकतर लोग ये अधूरापन महसूस करते हुए ही दुनिया से चले जाते हैं | अब सवाल ये उठता है कि आत्मा के साथी को खोजा कैसे जाए | दरअसल उसे खोजने की जरूरत नहीं पड़ती |जब आप उसके साथ होते हैं तो आप को खुद ब खुद पता चल जाता है कि यही तो है वो जिसे आप खोज रहे थे | … Read more