शादी – ब्याह :बढ़ता दिखावा घटता अपनापन

                                                                  आज कल शादी ब्याह ,दिखावेबाजी के अड्डे बन गए हैं | मुख्य चर्चा का विषय दूल्हा – दुल्हन व् उनके लिए शुभकामना के स्थान पर कितने की सजावट , खाने में कितने आइटम व् कितने के कपडे कितनी की ज्वेलरी हो गए हैं | ये दिखावेबाजी क्या घटते अपनेपन के कारण है | इसी विषय की पड़ताल करता रचना व्यास जी का उम्दा लेख  शादी – ब्याह :क्यों बढ़ रहा है दिखावा  हम समाज में रहते हैं साहचर्य के लिए ,अपनत्व के लिए और भावनात्मक संतुलन के लिए पर मुझे तो आजकल बयार उल्टी दिशा में बहती नजर आ रही है। अब बयार है प्रतियोगिता की, प्रदर्शन की ,एक दूसरे को नीचा दिखाने की। आजकल व्यक्तित्व, शिक्षा का स्तर व समझदारी से नहीं पहचाना जाता बल्कि कपड़े गहने ,जूते और गाड़ी से श्रेष्ठ बनता है।                                                                 एक स्त्री होने के नाते मैं गौरवान्वित हूँ  और इस प्रगतिशील युग में जन्मी होने के कारण विशेष रूप से धन्य हूँ।  हमने सभी मोर्चो पर खुद को उत्कृष्ट साबित कर दिया है। पर भीतर ये गहरी पीड़ा है कि हममेंसे ज्यादातर ऊपर बताई गई उस प्रतियोगिता की अग्रणी सदस्या है।  हम अपने बजट का ज्यादातर हिस्सा कॉस्मेटिक्स ,कपड़ों और मैचिंग ज्वैलरी पर खर्च करते हैं। संस्कृत साहित्य के महान नाटककार कालिदास का कथन है  “किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।”  अर्थात मधुर आकृतियों के विषय में प्रत्येक वस्तु अलंकार बन जाती है। यदि व्यक्तित्व में ओज हैं ,सात्विकता है तो साधारण श्रृंगार भी विशिष्ट प्रतीत होगा।  आज जब हम किसी पारिवारिक या सामाजिक  आयोजन में जाते है तो स्पष्ट महसूस कर सकते है कि मेजबान का पूरा ध्यान कार्यक्रम को भव्य बनाने पर रहता है। शादी ब्याह : गायब हो रहा है अपनापन  चाहे बजट बढ़ जाये पर सजावट में ,व्यंजनों की संख्या में ,मेहमानों की सुविधा में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। वहीं मेहमान का पूरा ध्यान स्वयं को ज्यादा प्रतिष्ठित व सुंदर दिखाने पर होता है। इस बीच में बड़ो के लिए सम्मान ,छोटों के लिए आशीर्वाद और हमउम्र के लिए आत्मीयता बिलकुल गायब रहती है। मुझे आत्मिक पीड़ा ये है कि इस सबके लिए हम स्त्रियाँ ज्यादा उत्तरदायी है।  आज से पंद्रह वर्ष पूर्व तक अपने करीबी की शादी में हम हफ्ते भर रुकते थे। सारा शुभ काम उनके निवासस्थान पर ही होता। सारी स्त्रियाँ हँसते -हँसते हाथों से काम करती। गिने चुने सहायक काम के लिए होते जिन्हें गलती से भी नौकर नहीं समझा जाता था। असुविधा होने पर भी शिकायत नहीं होती थी। ख़ुशी -ख़ुशी जब वापस अपने घर लौटते तो थकान का कोई नामो -निशान भी नहीं होता। आज होटल में मेहमानों के सेपरेट रूम होते हैं। सर्वेन्ट्स की फौज होती है। पानी तक उठकर नहीं पीना पड़ता पर दो दिन बाद जब घर आते हैं तो बहुत थके होते है। क्या हमारा स्टेमिना इतना कम हो गया। दरअसल हमारे बीच का अपनत्व कम हो गया ,एक दूसरे के लिए शुभ भावना विलीन हो गई इसलिए हमें भावनात्मक ऊर्जा पूरी नहीं मिलती ,हृदय के आशीर्वाद नहीं मिलते।      अब हमें मात्र औपचारिकता निभानी होती है। दो दिन तक गुड़िया की तरह सज लो ,दिखावे को हँस लो और एक भार -सा सिर पर लादकर आ जाओ कि इनने इतना खर्च किया अब दो -तीन साल बाद मेरी बारी  है। रिसेप्शन शानदार होना चाहिए भले ही हमने अपने बेटे व बेटी को ऐसी सहिष्णुता नहीं सिखाई कि उसकी शादी सफल हो।  पहले कुछ रूपये शादी में लगते थे और हमारे दादा -दादी गोल्डन व प्लेटिनम जुबली मनाते थे। उससे आगे हजारों लगने लगे पर तलाक की नौबत कभी नही आती थी। आज लाखों -करोड़ों शादी में लगाते है और उससे भी ज्यादा तलाक के समय देना होता है।  इस सर्द दुनिया में रिश्तों की गर्माहट जरूरी है।तभी रिश्ते सजीव और चिरयुवा रहेंगे। एक अंधी दौड़ हम स्त्रियों ने ही शुरू की है क्यों न हम ही इसे खत्म कर दे। अबकी बार किसी आयोजन में जाए तो अपनी गरिमामय पोशाक में जाये। किसी के कपड़ो की समीक्षा मन में भी न करें। खाना कैसा भी बना हो उसे तारीफ करके ,बगैर झूठा छोड़े खाएं।  सब पर खुले मन से स्नेह और आशीष लुटाए ;बदले में प्रेम की ऊष्मा व ऊर्जा लेकर घर आयें। संतोष व सादगी की प्रतिमूर्ति बनकर ही हम स्त्रीत्व को सार्थक कर सकती है और समाज को एक खुला व खुशनुमा माहौल दे सकती हैं।यही नवविवाहित दम्पत्ति  को दिया गया हमारा ससे खुबसूरत तोहफा होगा | तो अगली बार कहीं शादी में जायें तो आप भी विचार करें की दिखावा कम और अपनापन ज्यादा हो |  द्वारा रचना  व्यास  एम  ए (अंग्रेजी साहित्य  एवं  दर्शनशास्त्र),   एल एल बी ,  एम बी ए यह भी पढ़ें …  फेसबुक और महिला लेखन दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ सपने जीने की कोई उम्र नहीं होती करवाचौथ के बहाने एक विमर्श आपको आपको  लेख “शादी – ब्याह :बढ़ता दिखावा घटता अपनापन  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    

खतरनाक है जरूरत से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल

        ये  हमारी कंपनी का नया  सिम कार्ड “ गीत “ उनके लिए जो जरूरत से ज्यादा बातें करते हैं | जब वी मेट का शाहिद कपूर भले ही  गीत सिम कार्ड लांच करके आपको जरूरत से ज्यादा बातें करने के रंगीन सपने दिखाए | पर अगर आप भी गीत की तरह बक बक ,बक बक करते रहतें है ,वो भी मोबाइल पर …. जो जरा सावधान , ये खतरनाक हो सकता है |                बड़ा हो छोटा हो ,अमीर हो गरीब आज हर हाथ में एक नन्हा जादुई पिटारा है …. यानी आपका  मोबाइल | जगह –जगह  लगे होर्डिंग्स विज्ञापन आदि जो दिन रात नए लांच हुए मोबाइल की गुणवत्ता बताते रहते हैं ,झूठ भी तो नहीं हैं | ये जादुई पिटारा ही तो है जिससे आप घर ,बाहर , ट्रेन में , कार में बाथरूम में अपनों से कनेक्ट हो सकते हैं | वीडियो गेम खेल सकते हैं ,जहाँ चाहे जिसे चाहे msg भेज सकते हैं | आधुनिक मोबाइल के आने से आप यह तो कह ही सकते हैं की आप अपना पी सी अपनी जेब में लिए घूमते  हैं |  कोई भी सखी ,साथी ,सह्पाठी नया मोबाइल ले कर आता है तो उसके फायदे गिनाना शुरू कर देता है| देखो टच स्क्रीन ,इतने पिक्सेल का कैमरा , इतनी जी.बी की मेमोरी आदि- आदि | फायदे ,फायदे न जाने कितने फायदे पर जरा ठहरिये … मोबाइल से जितने फायदे हैं उसके गलत प्रयोग से उतने नुक्सान भी हैं | मोबाइल बढ़ा रहा है अपनों से दूरियाँ              अब जरा किसी आम घर का दृश्य देखिये | ट्रिन ….ट्रिन …… नमस्कार  से शुरू हुआ वार्तालाप एक –डेढ़ घंटे खिंच ही जाता है | फिर शुरू हो गया वीडियों गेम | मेज पर खाना ठंडा हो रहा है तो हो रहा है ,किसे होश है ….. जब होश आया तो मजबूरन ईयर फोन कान में ठूंस कर ठंडा खाना मुंह में ठूसना शुरू कर दिया |  अब जरा दूसरा दृश्य देखिये | एक कमरे में माता –पिता बच्चे बैठे हैं  दो चार सद्स्यों  के नाम और जोड़ लीजिये ….. सब अपने –अपने मोबाइल में मस्त | कोई फेस बुक कर रहा है ,कोई व्हात्ट्स एप्प , कोई sms तो कोई बात कर रहा है | एक दूसरे के साथ ,एक दूसरे के पास बैठे हुए भी सब अपनी अपनी दुनिया में मस्त | एक कमरे में न जाने कितनी दुनिया बसी है| ऐसे दृश्य देखकर मुझे रसखान की पंक्तियाँ बरबस ही याद आ जाती हैं ………… “ कोहू न कहू कि कानी करे सिगरो ब्रिज वीर बिकाय गयो रे “              हालाँकि ये पंक्तियाँ भगवान  श्री कृष्ण पर कही गयी हैं पर मोबाइल पर पूर्णतया सूट करती हैं | एक ही छत के नीचे रहने वाले अपने –अपने मोबाइल में इस कदर डूबे रहते हैं कि   स्टे कनेक्टेड “ का नारा देने वाले मोबाइल ने घरों में संवाद हीनता की स्तिथियाँ उत्त्पन्न कर दी हैं | गौर तलब है कि रिश्ते बन रहे हैं या टूट रहे हैं | या यूँ कहे हमारी दुनियाँ बड़ी हो रही है और दायरे सीमित | कई बार दूर से बात करने पर चेहरे के भाव न दिख पाने के कारण बातों के गलत अर्थ लग जाते हैं | ग़लतफ़हमियाँ पैदा हो जाती हैं | जिसको समझाना या सुलझाना मुश्किल हो जाता है | मोबाइल कर रहा है विद्यार्थियों का फोकस कम                      रिश्ते नातों  को छोड़ भी दिया जाए तो मनुष्य की सबसे अहम् जरूरत स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ को तो मॉफ  नहीं किया जा सकता | पहला सुख ही निरोगी काया है | अभिषेक बच्चन टी वी ऐड में भले ही “ वाक वेन यू टॉक “ को जितना जोर शोर से कहे पर यह सच्चाई से कोसों दूर है | फोन मोबाइल में बात करते समय कोई अन्य काम करने से हमारी ध्यान या कंसेंट्रेशन क्षमता बुरी तरह प्रभावित होती है | विद्यार्थियों के लिए तो यह पक्ष खासा चेतावनी दायक है | जानलेवा भी साबित हो रहा है मोबाइल   मोबाइल के साथ फ्री में आया उसका छोटा भैया ईयर फोन परले दर्जे का जानलेवा साबित होता है | अच्छी क्वालिटी के ईयर फोन बाहर की सारी ध्वनियाँ कट कर देते हैं | इस तरह सगीत सुनने की आदत इतनी बुरी पड़  जाती हैं कि घर में चाहे आग लगे चाहे चोर आये ….होता है तो होने दो | संगीत के आनंद में सुनाई किसे देगा | पर सबसे दर्दनाक है जब न जाने कितने किशोर ,युवा कान में ईयर फोन लगा कर संगीत सुनते हुए  सड़क पार करते हैं तो वाहन के हॉर्न की आवाज़ न सुन पाने की वजह  से  अल्पायु में ही  अपनी ईहलीला समाप्त करके सुरों से पार चले जाते हैं |  मोबाइल के अतिशय प्रयोग से होने वाली बीमारियाँ  १ )  मोबाइल से निकलने वाली रेडियो एक्टिव वेव्स सीधे दिमाग में प्रवेश करती हैं |जो कालांतर में ब्रेन संकुचन , ,तनाव ,चिडचिडापन ,कैंसर व् ट्यूमर का कारण बनता है | अगर आप ज्यादा बात करते हैं और आधुनिक फोन से बात करते हैं तो आप को खतरा ज्यादा है | जहाँ तक हो सके मोबाइल को कान से दूर रखे | रिसर्च कहती है बात करते समय मोबाइल कान से कम से कम २० cm दूर रखना चाहिए | कहना  अतिश्योक्ति न होगी कि यह एक धीमा जहर है जो धीरे –धीरे मौत की तरफ ले जाता है | २ ) टेक्स्ट क्लॉ वो मेडिकल टर्म है जो ज्यादा टेक्स्ट टाईप करने , स्क्रोल करने मसेजिंग करने वालों की अँगुलियों में हो जाता है | टेंडन सूज जाते हैं | अंगुलियाँ मोती व् भद्दी हो जाती हैं व् उनमें दर्द होता है | ३ )  मोबाइल ज्यादा कान पर लगाने से कानों में सुजन व् ट्यूमर की सम्भावना रहती है व् सुनने की क्षमता का हास होता है | ४ ) आजकल टच स्क्रीन वाले मोबाइल को आप खाना खाते समय , बाज़ार में कहीं भी इस्तेमाल करते है तो आप की अँगुलियों से कीटाणु निकल कर वहां ग्रो करने लगते हैं | अगर आप रोज स्क्रीन साफ़ नहीं करते तो दोबारा छूने से ये हमारी बिल्ली हामी को म्याऊ करते हुए  आप को ही बीमार कर … Read more

व्यक्तित्व विकास के 5 बेसिक नियम -बदले खुद को

Five rules of personality development हम सब जीवन में सफल होना चाहते हैं | उसके लिए प्रयास भी करतें हैं | पर फिर भी कुछ लोगों को सफलता नहीं मिल पाती | कई बार हमारा प्रयास दूसरों से कम होता है | पर कई बार हम प्रयास तो करतें हैं परन्तु फिर भी सफलता नहीं मिल पाती | यहाँ मैं आप लोगों से साझा करना चाहूँगी  , प्रसिद्ध  लेखक शिव खेडा की एक किताब का लोकप्रिय वाक्य जो सफल होने की चाह रखने वालों के लिए मूल मंत्र है …   सफल लोग कोई अलग काम नहीं करते बस वो काम को अलग तरीके से करते हैं |  दरसल असफल होने में केवल हमारे प्रयासों की कमी ही नहीं होती बल्कि कई बार इसका  कारण हमारे व्यक्तित्व के कुछ कमियाँ होती हैं |क्योंकि व्यक्तित्व विकास और सफलता एक दूसरे के पूरक हैं | इसलिए आज कल सफल होने के लिए अपने व्यक्तित्व में आवश्यक सुधार  करने पर बहुत जोर दिया जाता है |व्यक्तित्व के कई कमियाँ  वैसे तो सफलता की राह में बाधक हो सकती हैं | पर यहाँ मैं प्रमुख 5 कमियों की बात कर रही हूँ ,जो ज्यादातर लोगों में होती हैं | बस आप को यह जानने की जरूरत है | तो आइये जानते हैं सफलता के लिए सबसे जरूरी व्यक्तित्व विकास के 5 बेसिक नियम | जिन्हें आप आज से ही अपनाइए और बदल दीजिये खुद को | फिर देखिये सफलता कैसे नहीं आती है |  १ ) न करें बेफजूल बातों से समय की बर्बादी                      मुझे याद आता है मेरे नाना जी कहा करते थे ,” चटोरी खोये एक घर , बतोड़ी   खोये चार घर “ कहने का तात्पर्य यह है की जिस स्त्री ( यहाँ पुरुष भी हो सकता है ) स्वादिष्ट भोजन की आदत पड़ गयी हो | वो रोज बाहर का खाना खरीद कर अपना धन बर्बाद करेगी  | परन्तु जिसे फ़ालतू में बात करने की आदत  लग गयी | उसे बात करने के लिए कम से कम चार लोग चाहिए | अत : वो चार लोगों का समय बर्बाद करेगी  | उस समय का उपयोग किसी काम  में या धन अर्जित किये जाने में किया जा सकता था | अगर इसी को दूसरी तरह से कहें तो ये  तो  आप भी  बचपन  से  सुनते  आ  रहे  होंगे   की  दूसरे   के  सामने  तीसरे  की  बुराई  नहीं  करनी  चाहिए |   एक और  बात  जो  मुझे  ज़रूरी  लगती  है  वो  ये  कि  यदि  कोई  किसी  और  की  बुराई  कर  रहा  है  तो  हमें  उसमे  रूचि  नहीं  लेनी   चाहिए  और  उससे आनंदित  नहीं  होना   चाहिए | अगर  आप  उसमे  रूचि  दिखाते  हैं  तो  आप  भी  कहीं  ना  कहीं  नकारात्मकता  को  बढ़ावा दे रहे हैं |   बेहतर  तो  यही  होगा  की  आप  ऐसे  लोगों  से  दूर  रहे  पर  यदि  साथ  रहना  मजबूरी  हो  तो  आप  ऐसे  विषयों पर मौन हो जाए   , सामने  वाला  खुद  बखुद  शांत  हो  जायेगा | कई बार बुराई करने वालों को रोकने के लिए हमें उनकी बातें काटनी भी चाहिए | जैसे कोई लगातार किसी की बुराई कर रहा हो तो आप ऐसे कह सकते हैं की हाँ ये तो है पर देखो उनकी वो बात कितनी अच्छी है | इससे बुराई करने वाले का ध्यान भी नकारात्मकता  से सकारात्मकता की ओर जाएगा | क्योंकि कई बार बुराई करने वाले को भी उस व्यक्ति से नफ़रत नहीं होती बस किसी बात से नाराजगी होती है |  २ ) आत्मविश्वास कम करती है तुलना                  अभी कुछ दिन पहले मुझे मेरे एक परिचित मिले  | थोड़े उदास से दिख रहे थे | पूँछने  पर बताया फेस बुक पर उसकी पत्नी की दो सहेलियों ने गाड़ी  खरीद ली है | गाडी के साथ फोटो शेयर की है | तब से  गाडी लेने की जिद कर रही है | कहती है उसे सहेलियों के सामने इन्फीरियर फील होता है |  इसे  इंसानी  फितरत  कह  लीजिये  या  कुछ  और  पर  सच  ये  है  की  बहुत  सारे  दुखों  का  कारण  हमारा  अपना  दुःख  ना  हो  के  दूसरे   की  ख़ुशी  होती  है |  आप  इससे  ऊपर  उठने  की  कोशिश  करिए , इतना  याद  रखिये  की  किसी  व्यक्ति  की  असलियत  सिर्फ  उसे  ही  पता  होती  है , हम  लोगों  के  बाहरी यानि नकली रूप  को  देखते  हैं  और  उसे  अपने  अन्दर के यानि की असली  रूप  से  तुलना  करते  हैं |  इसलिए  हमें लगता  है  की  सामने  वाला  हमसे  ज्यादा  खुश  है , पर  हकीकत  ये  है  की  ऐसी तुलना  का  कोई  मतलब  ही  नहीं  होता  है | ऊपर वाले उदाहरण में मेरे परिचित  की पत्नी को कार तो दिखी पर कार के साथ  ई एम आई नहीं दिखी , दस जगह जरूरी खर्चों में कटौती नहीं दिखी | इसलिए किसी से तुलना मत करिए |  आपको  सिर्फ  अपने  आप  को बेहतर करते  जाना  है और व्यर्थ की  तुलना करके हीन भावना  या नकारात्मकता नहीं बढानी  चाहिए | . 3) अपना हाथ जगन्नाथ                                     एक बहुत छोटी सी कहानी है | एक पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसला था | एक दिन शाम को चिड़िया घर लौटी तो देखा घोसले में उसके बच्चे रो रहे हैं | चिड़िया के पूछने पर अच्छों ने बताया ,” मम्मी आप घोसला कहीं और शिफ्ट कर लीजिये | आज किसान यहाँ आया था और उसने अपने कर्मचारियों  से कल इस पेड़ को काटने को कहा है | चिड़िया ने बच्चों को चुप कराया और कहा,” बच्चों निश्चिन्त रहो और , फ़िक्र न करो , कुछ नहीं होगा | ३ ,४ दिन बीत गए | फिर एक दिन चिड़िया को बच्चे रोते हुए मिले | बच्चों ने बताया ,” मम्मी आज किसान अपने बेटों से कह रहा था की कल इस पेड़ को काट दो | आप प्लीज घोसला कहीं और शिफ्ट कर लीजिये | चिड़िया बच्चों को चुप कराते हुए बोली , “,” बच्चों निश्चिन्त रहो और , फ़िक्र न करो , कुछ नहीं होगा |” कुछ दिन और बीत गए | एक दिन फिर चिड़िया को बच्चे रोते हुए मिले | पूंछने पर बोले ,” मम्मी आज किसान कह रहा था ,” कल मैं इस पेड़ को काटूँगा | “ सुन कर चिड़िया ने बच्चों से कहा ,” बच्चों अब घोसला शिफ्ट करने का समय आ गया है |मैं अभी तैयारी करती हूँ … Read more

रिश्तों को सहेजती है संस्कारों की सौंधी खुशबू

हमारी  भारतीय संस्कृति की जड़े उस वटवृक्ष की तरह है जिसकी छाँव में हमारे आचार  -विचार और व्यवहार पोषित और पल्लवित होते है। साथ ही संरक्षण पाते  है। हर देश ,धर्म,हर भाषा ,और हर व्यक्ति का अपना एक स्वतंत्र प्रभाव होता है।एक अलग पहचान होती है।  इन सब का मिला-जुला  प्रभाव ही हमारे संस्कार और संस्कृति बनकर हमारा ‘परिचय ‘बन जाते है। और  हमारे रग -रग में रच बस जाते है। ये हमारे अदृश्य बंधन  है जो हम सबको एक -दूसरे से बांधे रखते है। साथ ही हमें अपने पाँव जमीं पर रखने कि प्रेरणा देते है।हमसब इसे अपनी अनमोल विरासत मानकर सहेजते है ,सम्हालते है और आने वाली पीढ़ी  को सौपते है।  आज ,समय की आंधी बहुत तेजी से अपना प्रभाव छोड़ते जा रही है। पाश्चात्य और आयातित संस्कृति ने हमारे संस्कारो की जड़ो को हिलाना शुरू कर दिया है। और हम बहुत कुछ खोते जा रहे है। अच्छी बातो का अनुकरण सराहनीय है ,पर अमर्यादित विचारोऔर कुसंस्कारों का अंधानुकरण सर्वथा गलत है। अंतत; हम दिग्भ्रमित हुए जा रहे है।  यूँ  तो हमारे जीवन में हिन्दू परंपरा के अनुसार सोलह संस्कारो का वर्णन है। पर जन्म ,विवाह और मृत्यु के सिवाय हममे से ज्यादातर लोगो को इनकी जानकारी है ही नहीं है। जबकि हर संस्कार हमें बांधने का काम करता है। परिवार का समाज से सम्बन्ध और समाज का परिवार का सम्बन्ध लोगो के मिलने जुलने से ही बढ़ता है | आज जब हम सुबह सोकर उठते है तो हमारा हाथ सबसे पहले मोबाईल पर जाता है और व्हाट्स अप पर ऊँगली दौड़ने लगती है। हमारी दिनचर्या गुड मॉर्निग और गुड नाईट  के आधीन हो गयी है। सुबह उठकर हथेली के दर्शन करना ,धरती माँ को स्पर्श करना ,ईष्ट देवता को याद करना अब दकियानूसी बाते हो गयी है।कई वर्ष पूर्व बच्चो के स्कूल जाने के प्रथम दिन उनसे स्लेट पर श्री गणेशाय; नमः;लिखवाकर  अक्षराभ्यास कराया जाता था। आज जॉनी जॉनी  यस पापा सीखा  कर  संस्कारों को आईना  दिखा दिया जाता है।   शर्मनाक स्थिति तब आ जाती है जब बच्चो के गलत हिंदी बोलने पर अभिभावक उसे सुधारने के बदले स्वयं ही खिल्ली उड़ाने लगते है। और कच्ची पक्की पोयम पर ताली बजाने लगते है। और इस तरह अप्रत्यक्ष ही गलत सीख दे देते है। जो बच्चो के कोमल मन पर गलत प्रभाव डालते है। इसी तरह पिछली पीढ़ियों को उनके जन्मदिन पर आयुष्मान भव;,चिरजीव भव; जैसे वचनों का  आशीर्वाद दिया जाता था दादी के पोपले मुँह  से ,और दादाजी के कांपते हाथो से मिलने वाली दुआओं  की पूँजी अब ख़त्म हो चली है  क्योकि  पर अब कई घरो में बड़े बुजुर्गो का स्थान बदल गया है या तो वे वृद्धाश्रम में रहते है या फिर अकेले ही रहते है और संस्कारो का सागर  सूखने लगा है.अब तो बड़े बड़े होटलों में केक पिज़ा  कोल्ड्रिंक पार्टी ही जन्मदिन का तोहफा माने  जाने लगा है।  यह अजीब विडंबना है कि इस प्रकार संस्कारोंके अधोपतन के लिए हम स्वयं को दोषी कतई नहीं ठहरना चाहते बल्कि समाज ,शिक्षा ,माहौल ,वैश्वीकरण ,अंधी नक़ल पर अपनी कमियों का ठींकरा फोड़ते है। जबकि हर व्यक्ति की संस्कृति उसका स्वाभिमान होता है हम सब भाषणो में  रोज कहते है।मगर हम सिर्फ भौतिक सुखसुविधाओ और पैसे को अपने संस्कारो से ऊँचा मानने की भूल कर रहे है मानवीय मूल्यों कोऔर नैतिकता को तज कर शॉर्टकट अपनाकर आगे बढ़ने को ही अपना बड़प्पन समझ रहे है |         आज कही न कही हमारी मानसिकता कुंठित हो रही है। दोराहे पर खड़ा इंसान सिर्फ व्यवहारिक और व्यवसायिक मूल्यों को अपनाने के लिए क्यों विवश है ?दृढ़ शक्ति की कमी या नैतिक मूल्यों का पतन इसका जिम्मेदार तो नहीं ? या भौतिकवाद का आकर्षण इसके गिरने का कारण बन रहा है। क्यो …. मिटटी के दिये की रोशनी  आज चीनी झालर से कम हो गयी ,? क्यों खीर -पूरी ,मालपूए की सोंधी मिठास से ज्यादा महत्त्व हम चाऊमीन और कोल्ड ड्रिंक को दे रहे है।  यह सब हमें ही  सोचना है। हम व्यर्थ ही नई पीढ़ी को कुसंस्कारी और असभ्य कह देते है ,दर हक़ीक़त हम खुद को नहीं जान पाते। हम भूल जाते है कि हम फूलों  की क्यारी में नागफनी को बो रहे है जब उसके कांटे हमें चुभने  लगते है तब हम इन नासूरो को केवल सहला ही पाते है उन्हें उखाड़  कर फैकने का साहस नहीं कर पाते। हम भूल जाते है कि जमी से जुड़े इंसान ही सफलता की राहो में चल पाते है ,मजबूत और गहरी नींव पर ही सुन्दर और भव्य ईमारत बन सकती है। मगर पिज़्ज़ा पास्ता की नई पीढ़ी तैयार करते करते  हम अपना अभिमान ,अपनी संस्कृति ,अपने संस्कार सभी भूलते जा रहे है। कल जब हमारा अपना खून हमसे इन सवालो के जवाब मांगेगा तब हम उन्हें जवाब नहीं दे पायेंगे। … और हमारी आत्मग्लानि का कोई विकल्प ही नहीं होगा। अर्चना नायडू ,जबलपुर आपको अर्चना नायडू जी का लेख  रिश्तों को सहेजती है  संस्कारों की सौंधी खुशबू   कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

उपवास का वैज्ञानिक महत्व

   उपवास का केवल धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है | कैसे ? आइये जानते हैं चंद्रेश कुमार छतलानी जी के लेख  से … —————————————                        जानिये क्या है उपवास का वैज्ञानिक महत्व  सर्वप्रथम मैं पाठकों को एक सच्ची राय देना चाहूंगा, इस लेख को पढिए, एक बार, दो बार, फिर इसे भूल जाइए। अगर आप इसे कागज़ पर पढ रहे हैं और मन चाहे तो इसकी चिन्दी – चिन्दी करके ज़ोर से फूंकें, और फिर मौज से इसे धरती पर बिखरता हुआ देखिए। सच पूछें तो उपवास पढ़ने की नहीं वरन् करने की चीज है। लेख, पुस्तकें आदि सिर्फ इसका सामान्य ज्ञान देकर आपको प्रेरित तो कर सकते हैं, लेकिन, अगर उपवास को वास्तव में जानना चाहते हैं तो उपवास कीजिए। यह अनुभव का ज्ञान है। चलिए, अब हम चर्चा करते हैं कि रोग कैसे होते हैं ? थोड्रा सा घ्यान स्थिर कीजिए, और फिर पढि़ए, प्रत्येक रोग के फलस्वरूप किसी न किसी रीति से शरीर से श्लेष्मा बाहर आता है। खांसी में, जुकाम में, क्षय में, मिरगी में, इत्यादि और भी कई रोग, कान के, आखों के, त्वचा के, पेट के एवं हृदय के, जिनमें श्लेष्मा का का प्रत्यक्ष दर्शन नहीं होता है, उनमें भी रोग का कारण श्लेष्मा ही होता है। श्लेष्मा, तब शरीर से बाहर न आने की वजह से रक्त में मिल जाता है, और ठंड की वजह से जहां रक्त नलिकाएं सिकुड़ गई हैं, वहां पहुंचकर दर्द पैदा करता है, और जब रोग बढ़ जाता है तो मवाद (सड़ा हुआ रक्त) उत्पन्न होता है। यूं तो थोड़़ा श्लेष्मा प्रत्येक स्वस्थ – अस्वस्थ शरीर में होता ही है और यह मल के साथ थोड़ी – थोड़ी मात्रा में निकलता रहता है। रोग की दशा में रोगी को श्लेष्मा विहिन खाद्य देना चाहिए। जैसे कि कोई फल या सिर्फ नींबू पानी। चिकनाई, मांस, रोटी, आलू एवं अन्य कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ जैसे चावल आदि के रूप में श्लेष्मा शरीर में पंहुचना बंद हो जाता है तो शरीर की जीवनी–शक्ति इकट्ठी होकर रक्त में मौजूद श्लेष्मा एवं मवाद को बाहर फैंकने को प्रवृत्त होती है। यह साधारणतः पेषाब के साथ निकलने लगता है। रोग के अनुसार शरीर के अन्य भागों से भी श्लेष्मा उत्सर्जित हो सकता है। तो फिर भोजन की क्या आवष्यकता हैं ? इसलिए क्योंकि साधारण कार्यों एवं श्रम करने से शरीर की जो छीजन होती है, मस्तिष्क भूख लगने की सूचना भेजता है और खाने के पष्चात, यदि मस्तिष्क को किसी अन्य कार्य में न लगाया जाए तो वह अपनी सारी शक्ति लगाकर किए हुए भोजन को पचाने का कार्य करता है, ताकि शरीर के सेल (कोषों) की मरम्मत हो सके, जीवन–दायिनी शक्ति उत्पन्न हो सके और शरीर गर्म रह सके। प्रश्न यह भी उठता है कि मस्तिष्क को भोजन कहां से मिलता है? तो मित्रों एक सत्य और उजागर कर रहा हूँ कि,  मस्तिष्क अपनी खोई हुई ऊर्जा को आराम और निद्रा से पुनः प्राप्त कर लेता है। हमारा मस्तिष्क हमारा सबसे अच्छा गाइड है, यदि मस्तिष्क कहता है कि रोग में भूख नहीं लगनी चाहिए, तो  भूख बन्द हो जाती है, ताकि शरीर की सारी ऊर्जा विजातिय द्रव्यों को शरीर से बाहर निकालने में ही खर्च हो, भोजन को पचाने में नहीं। यह हमारे मस्तिष्क की ही शक्ति है वो हमारे शरीर का विश्लेषण कर जिस तरह की आवश्यकता है वैसा व्यवहार शरीर से करवाता है| एक सत्य यह भी है कि हमारे भोजन का जो भाग पचकर शरीर में लग जाता है, वही पुष्टिवर्धक होता है। बाकि या तो उत्सर्जित हो जाता है अथवा शरीर में जमा होता रहता है। जब शरीर में इकट्ठे मल, विष, विजातिय द्रव्य अपने स्वाभाविक मार्ग से (श्वास, पसीना, मल उत्सर्जन आदि) से बाहर नहीं निकल पाते हैं तो अस्वाभाविक तरीकों से शरीर उन्हें उत्सर्जित करने की चेष्टा करता है, सामान्य तौर पर इसे रोग कहा जाता है। दूसरे तरह के रोग वे होते है, जो विकार की अधिकता से जीवन शक्ति के हृास के कारण अंगो की कार्यप्रणाली को सुचारू रूप से चलने में बाधक होते है। धीरे–धीरे जीवन शक्ति का हृास इतना अधिक हो सकता है कि इसका पुननिर्माण अत्यन्त ही कठिन हो जाता है। प्रारम्भिक स्थितियों में अनावश्यक द्रव्य का शरीर में भोजन द्वारा जाना बन्द होने पर रोगमुक्त होने की पूर्ण संभावना होती है। अर्थात् उपवास के द्वारा हम रोगमुक्त हो सकते है। उपवास प्रकृति की स्वास्थ्य संरक्षक विधि है, पूर्ण एवं स्थायी स्वास्थ्य का दाता है। तो फिर उपवास कैसे किया जाए?  उपवास करने के हेतु कुछ बिंदु निम्नानुसार है: 1.    उपवास करने के लिए शरीर में कुछ बल भी होना चाहिए और एक दृढ़ निश्चय भी। 2.    सर्वप्रथम छोटे–छोटे उपवासों का अनुभव होना चाहिए, उपवास का अनुभव न होने पर सदैव किसी अनुभवी के निर्देशन में ही उपवास करे। पहले 2-3 दिन, फिर एक सप्ताह का और फिर और आगे। 3.    उपवास मे प्रकृति के निकट शुद्ध वायु मे रहें। 4.    कोशिश करें कि अकेले रहें। 5.    आराम अवश्य करें। उपवास के प्रारम्भ में सिरदर्द, कमजोरी, मूर्छा, अनिद्रा, आदि की शिकायत हो सकती है, जीभ गन्दी रह सकती है। धैर्य रखें व चिकित्सक की सलाह लें। 6.    थोड़ी–थोड़ी कसरत रोज करें। 7.    बिना चिकित्सक की सलाह के, उपवास के साथ अन्य चीज़े, जैसे कि वाष्प स्नान आदि न मिलाएं। 8.    उपवास आरंभ करने के एक सप्ताह पूर्व हल्का भोजन करें और इसे निरन्तर कम करते रहें। 9.    उपवास के आरंभिक दिनों को शरीर की सफाई में लगाओं। एनिमा लो, पानी पीओ, गहरी सांसे लो, नींबू पानी पीयो, रगड़–रगड़ कर स्नान करो। अच्छा है कि एक सप्ताह तक एनिमा लेना चाहिए। सारे बदन को रगड़ कर नहाना चाएि। रोज टहलना चाहिए। पाव–पाव भर करके दिनभर में 2-2) सेर पानी पीना चाहिए। नींबू मिलाकर पीये तो और भी ठीक है। पर आधा पाव से अधिक नहीं । अंगूर, संतरे का रस भी लिया जा सकता है। अनुभव के आधार पर धूप स्नान भी किया जा सकता है। 10.    उपवास के समय वायु विकार होने पर चोकर या इसबगोल का उपयोग किया जा सकता है साधरण ज्वर, दुर्गंधपूर्ण पसीने एवं बेस्वाद मुँह की चिंता नहीं करनी चाहिए। 11.    मानसिक स्थिति को संतुलित … Read more

चलो चाय पीते हैं

चलो चाय पीते हैं … दो लोग कभी भी इत्मीनान से बैठ कर बात करना कहते हैं तो सबसे पहली बात याद आती है चाय |पर हम में से अक्सर लोग ये नहीं जानते की सुबह – सुबह जिस चाय की तलब हमें लगती है वो न सिर्फ चुस्ती फुर्ती देने वाली बल्कि फायदेमंद भी है       हुआ यूँ की एक सज्जन से मिलने जाना हुआ। पहले पानी और उसके बाद चाय आई। चाय सिर्फ़ एक कप ही थी। मैंने मेज़बान से पूछा, ‘‘आप चाय नहीं लेंगे?’’ ‘‘मैं चाय-काॅफी, बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटका, शराब, तम्बाकू आदि कोई ग़लत चीज़ नहीं लेता,’’ मेज़बान ने फ़र्माया। ‘‘अच्छी बात है आप कई बेकार की चीज़ों से परहेज़ रखते हैं लेकिन चाय-काॅफी की तुलना बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटके, शराब, तम्बाकू आदि चीज़ों से करना मेरे विचार से उचित नहीं, ’’मैंने किंचित प्रतिवाद किया।      सभ्यता के विकास के साथ-साथ न जाने कितनी चीज़ें हमारी दिनचर्या में सम्मिलित हो गईं। माना कुछ चीज़ें बाज़ारवाद के कारण जबरदस्ती हमारी दिनचर्या में सम्मिलित हो गई हैं लेकिन इसके बावजूद हर एक चीज़ को हानिकारक, अनुपयोगी अथवा निरर्थक नहीं कहा जा सकता। कुछ वस्तुएँ हमारी दिनचर्या में इसलिए शामिल हैं क्योंकि वे हमारे लिए वास्तव में उपयोगी हैं। आप कितने लोगों को जानते हैं जिन्हें चाय (tea )अथवा काॅफी से कैंसर, टीबी या अन्य घातक बीमारी हो गई हो जबकि बीड़ी-सिगरेट, पान, गुटके, शराब अथवा तम्बाकू से हज़ारों नहीं लाखों मौतें हर साल होती हैं। चाय  यूँ ही बदनाम है       कुछ लोग चाय-काॅफी के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं जो ठीक नहीं। चाय पारंपरिक भारतीय पेय नहीं है फिर भी इस समय भारत में ये एक अत्यंत लोकप्रिय पेय है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी न केवल चाय की चुस्कियाँ लेना पसंद करते हैं अपितु प्रायः सभी चाय बनाना भी जानते हैं। चाय बनाने के अनेक तरीक़े हैं और कई प्रकार से इसे तैयार किया जाता है। हमारे देश में विशेष रूप से उत्तरी भारत में चाय प्रायः दूध डाल कर तैयार की जाती है। यूरोपीय देशों, रूस और अमेरीका के लोग प्रायः बिना दूध की चाय पसंद करते हैं। तिब्बत की नमकीन चाय का तो स्वाद ही नहीं बनाने की विधि भी रोचक है।      चाय आप जिस विधि से भी तैयार करें, चाहे वह दूध के बिना हो या दूध के साथ, मीठी हो या फीकी, काली हो या सफेद, नींबू वाली चाय (लेमन टी) हो अथवा तुलसी की पत्तियों वाली चाय, हर प्रकार की चाय में एक चीज़ अवश्य डाली जाती है और वो है चाय की पत्तियाँ अथवा टी लीव्ज़। चाय की पत्ती विशुद्ध रूप से एक वनस्पति है। इसे हर्बल पेय की श्रेणी में रखा जा सकता है। चाय की तरह काढ़ा पीने का रहा है प्रचलन       कुछ लोग चाय को बहुत पसंद करते हैं लेकिन कुछ लोग इसे न केवल घातक पेय मानते हैं अपितु चाय को भारतीय संस्कृति के खि़लाफ़ भी मानते हैं। क्या चाय वास्तव में भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल और घातक है? हमारे यहाँ वैदिक काल से ही विभिन्न रोगों के उपचार के लिए क्वाथ या काढ़ा बनाकर पीने का वर्णन मिलता है। आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों अथवा वनस्पतिजन्य पदार्थों से क्वाथ बनाने का वर्णन मिलता है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में जोशांदा भी विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों को उबालकर ही बनाया जाता है।      काली मिर्च, लौंग, बड़ी और छोटी इलायची, सौंठ या अदरक, पीपल, मुलेहटी, उन्नाब, बनफ़्शा आदि विभिन्न जड़ी-बूटियों और मसालों को उबालकर काढ़ा बनाने का प्रचलन आज भी हमारे यहाँ ख़ूब प्रचलित है। सर्दी-ज़ुकाम में के उपचार के लिए तो इससे उपयोगी ओषधि हो ही नहीं सकती। इसी प्रकार चाय में भी अनेक औषधीय गुण विद्यमान हैं जो शरीर को चुस्ती-स्फूर्ति देने के साथ-साथ अनेक प्रकार के रोगों को रोकने अथवा उनका उपचार करने में सक्षम हैं। लाभदायक है चाय में पाया जाने वाला थियानिन       जब भी चाय के गुणों अथवा अवगुणों की बात होती है तो चाय में उपस्थित तत्त्व कैफीन की चर्चा भी अवश्य होती है। चाय में कैफीन के अतिरिक्त और भी एक ऐसा तत्त्व उपस्थित होता है जो केवल लाभदायक है और वह है थियानिन। मस्तिष्क और शरीर को शांत रखने और तनाव को कम करने में इस अमीनो एसिड की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चलता है कि थियानिन न केवल तनाव को कम कर शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार होता है अपितु मानसिक सतर्कता और एकाग्रता के विकास में भी सहायक होता है।      जब हम ध्यान अथवा मेडिटेशन की अवस्था में होते हैं तो उस समय हमारे मस्तिष्क से जो तरंगें निकलती हैं उन्हें अल्फा तरंगें कहते हैं और उस अवस्था को ‘अल्फा स्टेट आॅफ माइंड’। इस अवस्था में शरीर में स्थित विभिन्न अंतःस्रावी ग्रंथियों से लाभदायक हार्मोंस का उत्सर्जन प्रारंभ हो जाता है जो व्यक्ति को तनावमुक्त कर उसे रोगों से बचाता है तथा रोग होने पर शीघ्र रोगमुक्ति प्रदान करने में सहायक होता है। चाय में उपस्थित थियानिन मस्तिष्क को उसी अवस्था में ले जाने में सक्षम है अतः चाय की प्याली ध्यानावस्था का ही पर्याय है।      चाय का सेवन हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में भी सहायक होता है। अगर शरीर में पाॅलीफिनाॅल्स की पर्याप्त मात्रा हो तो इससे याददाश्त की कमी का ख़तरा कम हो जाता है। ताज़ा अनुसंधानों से ये बात स्पष्ट होती है कि फल, चाय, काॅफी आदि पेय पदार्थ शरीर में पाॅलीफिनाॅल्स के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। इस प्रकार चाय हमारी याददाश्त को चुस्त-दुरुस्त रखने में भी सहायक होती है। चाय के कुछ खास फायदे  दिनभर में तीन-चार कप चाय पीजिए और हृदय रोगों, स्ट्रोक, त्वचा रोगों तथा कैंसर जैसे रोगों को दूर भगाइए। प्रतिदिन तीन-चार कप चाय पीने से हृदय विकारों की संभावना दस प्रतिशत से भी ज़्यादा कम हो जाती है।  चाय में उपस्थित एंटीआॅक्सीडेंट हमारी रोगों से लड़ने की क्षमता में वृद्धि कर हमें नीरोग बनाए रखने में सक्षम होते हैं तथा रोग की दशा में शीघ्र रागमुक्ति में सहायक होते हैं। चाय में उपस्थित तैलीय तत्त्व हमारे पाचन में भी सहायक होते हैं। चाय डिहाइड्रेशन दूर करने, दाँतों को मजबूत बनाने तथा कोलेस्ट्राॅल को राकने में भी सक्षम है। … Read more

Anxiety Disorder :कारण , लक्षण व् उपचार

Anxiety एक बहुत ही सामान्य सा शब्द है जिसे हम सब महसूस करते हैं | पर जब हम Anxiety Disorder की बात करते हैं तो ये एक गंभीर मानसिक बीमारी हैं | जिसे समय रहते इलाज़ की जरूरत है |Anxiety Disorder के बारे में आज हम जानेगे नीता मेहरोत्रा जी के इस विशेष लेख से Anxiety Disorder :कारण , लक्षण व् उपचार  आपने अपने आसपास , अपने प्रिय लोगों के व्यवहार में परिवर्तन देखा होगा |  कुछ ऐसे लक्षण जिन्हें भले ही आप न समझ पा रहे हों पर आपको लग रहा हो कि कहीं कुछ तो गलत है |  अगर ऐसा है तो सावधान हो जाइए | ये मानसिक रोगों की शुरुआत हो सकती है |अचानक हुआ व्यवहार में ये परिवर्तन सामान्य नहीं हैं | मेरा उद्देश्य इस लेख के माध्यम से इस विषय में ध्यान आकर्षित करना है |  ताकि समय रहते मानसिक रोगों को पहचाना जा सके व् उनका इलाज हो सके |  व्यवहार में निम्नलिखित परिवर्तन ….मानसिक रोगों की शुरुआत के लक्षण  • सामान्य नियमों का पालन नहीं करना  • बिना वजह बहस करना  • नखरे करना  • अत्यधिक जिद्द करना , अपनी बात किसी भी कीमत पर मनवाने के लिए अड़ जाना  • हर समय उत्तेजना से भरे रहना  • खुद को एकदम सही साबित करना और साम-दाम -दंड -भेद से उसे मनवाना  • चिड़चिड़ा होना  • अपने फ्रस्ट्रेशन को संभाल नहीं पाना  • शंकालू होना  • अपने आप कल्पना करके विपरीत परिस्थितियों को वास्तविक बताना  • दूसरों पर बिना उचित बात के दोषारोपण करना  • अनजानी आशंकाओं से भयभीत रहना  . . इन लक्षणों से युक्त आपके प्रिय बहुधा इनसे भी ग्रस्त होते होंगें  • सिरदर्द , माइग्रेन  • बुखार  • अचानक बदन में कँपकपाहट  • आँखों में ब्लड क्लॉट बनना  • याददाश्त में कमी  • ब्लड प्रेशर की समस्या  . . मैं  बात कर रही हूँ मैं Behavioral Disorder /Disruptive Disorder की यह व्यस्कों में आम सी पाई जाने वाली बीमारी है। सामान्यत: यह बचपन में ही प्रारम्भ होता है किन्तु पर्याप्त जानकारी और इलाज़ के आभाव में बड़े होने पर गंभीर समस्या बन जाता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति सामंजस्य के अभाव में बहुत तकलीफ़ से गुज़रता है। वह बहुधा ऐसे सामान्य क्षेत्रों में असफलता का मुँह देखता है जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। उसके रिश्ते , दोस्ती सब तनावपूर्ण हो जाते हैं। . आइये आज जानते हैं Behavioral Disorder कितने प्रकार के होते है …… 1. Anxiety Disorder  2. Emotional Disorder 3. Dissociative Disorder 4. Pervasive Development Disorder 5. Disruptive Behavior Disorder .  Anxiety Disorder . यह एक बहुत ही सामान्य भावना है जिसे हर व्यक्ति अपने जीवन में अनुभव करता है। किन्तु , कुछ लोगों में इसके आवेग इतना तीव्र होता है कि उनका पूरा जीवन इससे प्रभावित हो जाता है। इससे गंभीर रूप से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित की प्रचुरता पाई जाती है …. • अनिद्रा  • चिड़चिड़ापन  • अत्यधिक जिद्द  • गुस्सा / रोष  • घबराहट  • अपने आप कल्पना में घटनाओं का जन्म और उनको वास्तविक मान कर दुःख में गहरे डूब जाना या अवसादग्रस्त रहना  . यह एक गंभीर समस्या है , Anxiety को पहचान कर , उसका सही इलाज किसी चिकित्सक के परामर्श से बहुत ही जरूरी है।Anxiety व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति हमेशा insecurity से घिरा रहता है परन्तु स्वयं ही यह नहीं समझ पाता कि उसे किस बात का भय या insecurity है। यह व्यक्ति में स्ट्रेस के कारण होती है। व्यक्ति हमेशा नकारात्मक भाव से भरा रहता है। वह खुद से ही नकारात्मक संवाद करता है। .  anxiety से ग्रस्त व्यक्ति में निम्नलिखित लक्षण पाये जाते हैं  …. 1. हाथ , पैर , बदन में कंपकपाहट  2. पेट में कुछ अजीब तरह की उमड़-घुमड़  4. तनावग्रस्त मांसपेशियाँ 5. Nausea 6. Diarrhoea 7. सिरदर्द , माइग्रेन  8. पीठ का दर्द  9. अचानक सुन्न पड़ जाना  10. हाथ-पैर में सूई जैसा चुभना  11. अचानक अत्यधिक पसीना आना  12. अचानक साँस उखाड़ना और बेहोश तक हो जाना  13. अनिद्रा  14. हार्ट बीट का अचानक अत्यधिक बढ़ना -घटना  15. अपनी काल्पनिक सोच से खुद को तकलीफ पहुँचाने वाले दृश्य / घटनाओं की रचना कर लेना और उसे सच मान कर भयंकर अवसाद में डूब जाना  16. अत्यधिक जिद्द करना और येन केन प्रकारेण अपनी बात मनवा लेना  17. अपने सिवा अन्य सभी को निम्न सोच का समझना  18. समाज में सामंजस्य का पूर्ण अभाव . बहुधा anxiety के लक्षणों को शारीरिक बीमारी हार्ट अटैक या स्ट्रोक समझ कर लोग इलाज प्रारम्भ कर देते हैं जो anxiety को और अधिक बढ़ा देता है। Anxiety की गंभीरता सही उपचार के अभाव में बहुत गंभीर हो जाती है। उन सभी बातों / घटनाओं को जिससे anxiousness बढ़ती है हर संभव टालना चाहिए। साथ ही किसी कुशल चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए क्योंकि एक बार स्थिति को टाल देने पर पर्याप्त इलाज के अभाव में anxiety पलट कर दुगने वेग से अटैक करती है जो गंभीर परिणाम भी दे सकती है। . इलाज _  चिकित्सक से परामर्श अत्यन्त आवश्यक है तथा कुशल चिकित्सक की गहन देखरेख में इलाज का होना भी उतना ही आवश्यक है। . सही इलाज के साथ व्यक्ति को मेडिटेशन , खुद को रिलैक्स करने के तरीकों को भी सीखना और करना चाहिए। बीच-बीच में गहरी साँस अंदर लेकर छोड़ना भी सहायक होता है। . खुद को नकारात्मक बातें करने से यथा संभव रोकना चाहिए। एकांतवास से हर हाल में दूर रहना चाहिए। . कुछ नए रोचक कार्यों में खुद को व्यस्त करना चाहिए। नयी हॉबी डेवलप करनी चाहिए। अपने आसपास हरियाली को जगह देनी चाहिए। पौधों की सेवा स्ट्रेस को दूर भगाती है। . किसी भी तरह के – सही या गलत – गुस्से / रोष के आने पर तुरन्त उस जगह से यह सोच कर हट जाना चाहिए कि उस घटना पर रोष / क्रोध बाद में विस्तार से प्रकट करेंगें। खुद को किसी विपरीत प्रकृति के कार्य में उलझा लेना चाहिए। इससे क्रोध का आवेग निश्चित रूप से कम होते हुए कई बार समाप्त भी हो जाता है। . Anxiety Disorder निम्नलिखित प्रकार का होता है …. 1. Social Anxiety Disorder 2. Specific Phobias 3. Panic Disorder I) SOCIAL ANXIETY DISORDER ========================== Social Anxiety … Read more

दीपावली के बाद अनावश्यक गिफ्ट्स का क्या करें ?

दीपों के त्यौहार दीपावली में गिफ्ट्स लेने – देने की परंपरा है | पर अक्सर त्यौहार के बाद लोग उन गिफ्ट्स को इधर – उधर बाँट कर जैसे एक बहुत बड़े बोझ से हल्का होने का प्रयास करते हैं | क्या आप भी उनमें से एक हैं ? तो ये लेख आपके लिए हैं आइये जाने …  महत्वपूर्ण  सवाल  दीपावली के बाद आप गिफ्ट्स का क्या करते हैं ? हमारे सभी त्योहार घर-आँगन में ख़ुशहाली बिखेरते हुए मनों में जैसे अक्षय ऊर्जा का संचार कर जाते है, जिनकी गूँज कई-कई दिनों तो कानों में मधुर संगीत की तरह बजती हुई सुनाई देती रहती है। कुछ इसी तरह चल रहा था था पिछले वर्ष दीवाली बीतने के बाद। दो-चार दिन बाद मेरी एक अभिन्न मित्र ने मुझे अपनी किटी पार्टी में आने का निमंत्रण दिया….फ़ोन पर बोली कि कितने दिन हो गए हमें मिले हुए….तो तुम्हें आना ही है। इस बहाने तुम हमारी किटी पार्टी भी देख लेना कैसी होती है।तो मैं गयी। वहाँ काफ़ी कुछ देखा और सुना… जिसने मेरे मन में उथल-पुथल सी मचा दी थी। क्या दीपावली के बाद आप का भी मुख्य अजेंडा  गिफ्ट्स निपटाने का होता है ?   क्या बताऊँ भाभी जी! इतनी मिठाई, इतने गिफ़्ट्स इकट्ठे हो गए कि क्या बताऊँ? मिठाई हम इतनी खाते नहीं, गिफ़्ट्स भी ऐसे…जो रखने लायक नहीं…कल सब निबटाये तो आज आराम मिला।       कहाँ निबटा डाले मिसेज़ शर्मा! बताइए ज़रा।हम भी इसी समस्या से जूझ रहे हैं।          निबटाने कहाँ….अपनी कामवाली, माली,डाकिया, धोबी…..इन्हीं को दे-दिवा कर छुट्टी पायी मैंने तो। और हाँ….कुछ भिखारियों को भी दे दिए।       ये अच्छा रास्ता बता दिया आपने तो। हम भी अपने भार से हल्के हो लेंगे जी।        तभी एक कोई मिसेज़ शील बोली….अरे मिसेज़ शर्मा…जिन भिखारियों को आप दे रही थी वे तो आगे जाकर रास्ते में ही वे सब समान छोड़ गए थे… मैंने अपनी आँखों से दहख था।  ये सब वर्णन सुनते हुए मेरे मन में उथल-पुथल सी होने लग गयी थी। कई दिनों तक में इसी विषय पर सोचती रही। क्या जो बातें वे सब किटी पार्टी में बोलने में लगी हुई थीं… वे पूर्णतया सच थी?  सब एक-दूसरे के सामने अपने को ऊँचा दिखाने  के चक्कर में दिखावा करते हुए बढ़-चढ़ कर बोलने में लगी हुई थी। दीपावली के बाद क्या करे  बेजरूरत गिफ्ट्स का ?         अगर सचमुच में हमारे पास देने के लिए चीज़ें इकट्ठी हो गयी हैं और वे हमारे उपयोग की भी नहीं हैं तो उन्हें निबटाने की सोच क्यों? उन्हें देने की और सही जगह देने की सोच क्यों न हो? कामवालियाँ,माली, धोबी कई घरों में काम करते हैं, वहाँ से उन्हें इतना मिलता है कि वे उस मिले हुए को बहुत महत्व भी नहीं देते…. हाँ तुलना ज़रूर कर लेते हैं कि किसने महँगा दिया, किसने सस्ता दिया,किसने कम दिया,किसने ज़्यादा दिया। जब हमें कुछ देना ही है तो क्यों न … उसे दिया दिया जाए जिसे सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो, जिसे पाकर सच में उसके चेहरे पर मुस्कराहट आए। इसमें श्रम तो अवश्य होगा पर खोज करके जिसे दिया जाएँ उसकी मुस्कराहट देख कर संतोष अवश्य होगा सही व्यक्ति तक हमारा दिया पहुँच रहा है।            जो दें मन से दें, यह सोच कर दें कि जिसे दे रहे हैं उसे देकर और लेने वाले को लेकर अच्छा लगे। ऐसा न हो कि हम देकर यह सोचें कि चलो निबटा यह काम भी और जिसे दिया वो ले कर यह सोचें कि हे! राम इससे तो यह ना ही देता।          हो ये रहा है कि आज दिखावे के वशीभूत होकर लोग देने का दिखावा तो कर रहे है,पर दिया जाने वाला समान दिए जाने वाले व्यक्ति की रुचि का, मन का नहीं होता….तो वह यूँ ही पड़ा रहता है और निबटाया ही जाता है।           सम्बन्धियों के दिए उपहार तो इधर से उधर घूमते ही रहते हैं। हम जिसे कुछ उपहार दे रहे हैं वह काम में आने वाला हो और अपने बजट के अनुकूल हो …यह ध्यान तो होना ही चाहिए। भावनाएँ जुड़ी न हों तो दिए उपहार का कोई लाभ नहीं है।  दीपावली के अनमोल उपहार जो आप दे सकते हैं ?    त्योहार है….और वो भी अवसर दीवाली का है तो आइए अपनी ज़रूरतों में से थोड़ा सा कम करके उन लोगों के घरों में ख़ुशियों के दीप जलाएँ जिनके घरों के लोग अपने घरों के दरवाज़े पर ख़ुशियों के आने का रास्ता देख रहें हैं। बितायें उनके साथ अपना थोड़ा सा समय, उन वृद्धजनों के बनें अपने…. जिनके अपनों ने छोड़ दिया उन्हें ….. कुछ सुनें उनकी कुछ अपनी सुनायें….जलायें अपनेपन का एक दिया उनके सूने जीवन में… .जलायें ज्ञान का एक दीप उन बच्चों के लिए, जो किसी विवशता के मारे पढ़ाई से दूर हैं… जलाएँ संकल्प का एक दीप कि मृत्यु के बाद आपके नेत्र किसी के जीवन का अंधियारा दूर कर उजाले से प्रकाशित करेंगे संसार।   त्योहार कहते हैं हमें कि जिन संकीर्णताओं की श्रृंखलाओं में अपने को जकड़ लिया है हमने…..उन्हें तोड़ कर अपने मैं से बाहर निकलें, अपनाएँ प्रेम-स्नेह और अपनेपन से सबको। अपने में सबको देखें और सबमें अपने को….. तभी एक- दूसरे के दुःख -सुख को मानवता के धरातल पर हम अनुभव कर सकेंगे और सच्चे बन कर वास्तविक दीप जला सकेंगे।              तो चलें……सर्वप्रथम हम अपने अज्ञान के अंधेरे को दूर करने के लिए एक दीप जलाएँ और उससे फिर दीप से दीप जला कर उजाले से सज़ा दे सारा संसार। तभी होगी वास्तविक दीवाली। डा०भारती वर्मा बौड़ाई मित्रों आपको डॉ . भारती वर्मा बौड़ाई जी का लेख ” दीपावली के बाद आप गिफ्ट्स का क्या करते हैं ?”कैसा लगा ? अपनी राय से हमें अवगत करायें | पसंद आने पर शेयर करे | हमारा  फ्री ई  मेल सबस्क्राइब करायें जिससे  ‘अटूट बंधन “की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपको अपने ई मेल पर मिल   सकें | यह भी पढ़ें …….. उपहार जो मन को छू जाए बनाए रखे भाषा की तहजीब क्या आत्मा पिछले जन्म के घनिष्ठ रिश्तों … Read more

दीपोत्सव :स्वास्थ्य ,सामाजिकता ,और पर्यावरण की दृष्टी से महत्वपूर्ण

त्यौहार और उत्सव हमारे जीवन में हर्षोल्लास और सुख लेकर आते हैं ।भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का विशेष स्थान है। सभी पर्व या तो पौराणिक पृष्ठभूमि से जुड़े हैं या प्रकृति से! इनका वैज्ञानिक पहलू भी नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता! पांच त्यौहारों की एक श्रृंखला है दीपोत्सव  दीवाली न सिर्फ एक त्यौहार है बल्कि ये पांच त्यौहारों की एक श्रृंखला है जो कि न सिर्फ पौराणिक कथाओं से जुड़े हैं बल्कि सामाजिक एवं पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।वास्तव में त्यौहारों का अंतिम अभिप्राय आनन्द और किसी आस्था का संरक्षण ही होता है। पांच दिवसीय इस त्यौहार के लिए हफ़्तों पहले से तैयारियाँ शुरु हो जाती हैं ।साफ-सफाई करते हैं, घर सजाते हैं ।इसका वैज्ञानिक महत्व है।बारिश के बाद सब जगह सीलन होती है फंगस और कीटाणु होते हैं जो कि बीमारियों का कारण बनते हैं ।इसलिए साफ-सफाई करके स्वास्थ्य सुरक्षा की जाती है। इसके बाद घर को सजाते हैं जिससे सुन्दरता के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा का भी संचरण होता है।फिर आती है ने कपड़ों और ज़ेवर,बरतन की खरीद! सजे संवरे घर में सब कुछ नया-नया हो तो नई उमंग और उत्साह से भर जाते हैं ।सर्दियां भी बस शुरू होने को ही होती हैं तो इस दृष्टि से खान-पान का विशेष ध्यान रखते हुए पकवान बनाए जाते हैं। इतना सब करें और मेहमानों का आना-जाना न हो !!!इसलिये अब एक-दूसरे को बधाई देते हैं, बहन बेटियों को बुलाते हैं और मिलजुल कर त्यौहार मनाते हैं । तो इस तरह दीवाली का ये त्यौहार न केवल पौराणिक मह्त्व का है बल्कि सामाजिक,स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। इसके अलावा समाज के लगभग हर वर्ग के लिए महत्व का है। मिट्टी के दीपक, मिठाइयां, ज़ेवर-कपड़े, फल-सब्जी, मोमबत्तियों की और बिजली की रोशनी आतिशबाज़ी आदि बहुत सी चीज़े समाज के विभिन्न वर्गो को रोज़गार के अतिरिक्त अवसर प्रदान करती हैं। अब क्रमवार दीपोत्सव  त्यौहारों की बात करें — 1—धन-तेरस— कार्तिक मास की त्रयोदशी के दिन मनाया जाने वाले इस त्यौहार में आरोग्य के देवता धन्तवरी की आराधना की जाती है।साथ ही नहर बरतन,आभूषण आदि की खरीद भी की जाती है। 2—रूप-चौदस/यम-चतुर्दशी––महिलाएँ अब तक साफ-सफाई और खरीददारी,रसोई में ही व्यस्त रही होती हैं ।तो आज का त्यौहार उनके सजने संवरने का है। साथ ही परिवार की सुरक्षा एवं  खुशहाली के लिए यम के लिए बाहर देहरी पर एक दीपक जलाती हैं ।इस भावना के साथ कि वो बाहर से ही लौट जाएं । 3—दिवाली—तीसरा दिन मुख्य दिवाली का त्यौहार है जिसे न केवल भारत बल्कि दुनियां भर में बसे भारतीय भी मनाते हैं। इस दिन देवी लक्ष्मी एवं गणपति की पूजा की जाती है।दीपकों से घर-आंगन के साथ-साथ मंदिर और चौराहों जैसी सार्वजनिक जगहों को भी रोशन करते हैं। विभिन्न धर्मों में विविध कारणों से दिवाली मनाते हैं जैसे— १-श्रीराम के चौदह वर्ष के वनवास की समाप्ति पर अयोध्या आगमन की खुशी में२-धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूर्य यज्ञ की समाप्ति की खुशी में३-आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती का निर्वाण दिवस४-जैनियों के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस ये कुछ उदाहरण मात्र हैं । 4—अन्नकूट—चौथे दिन शीत ऋतु से जुड़े विभिन्‍न फल-सब्जियों के खाद्यान्नों से इष्ट देव को भोग लगाकर सामूहिक भोजों का आयोजन किया जाता है और गोवर्धन पूजा भी की जाती है। ५—भाई-दूज—शुक्ला द्वितिया के दिन इस घर में भाई-बहन के प्रेम को सुदृढ़ करता भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है। इस तरह दीवाली का ये पांच-दिवसीय त्यौहार सम्पूर्ण होता है। इस प्रकार से अपने आप में सिद्ध हैं कि  दीपोत्सव स्वास्थ्य सामाजिकता व् पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है |  शिवानी, जयपुर फोटो क्रेडिट –विकिमीडिया ऑर्ग से साभार यह भी पढ़ें …. आओ मिलकर दिए जलायें धनतेरस -दीपोत्सव का प्रथम दिन दीपावली पर 11 नए शुभकामना सन्देश लम्बी चटाई के पटाखे की तरह हूँ मित्रों , शिवानी , जयपुर  जी का आलेख दीपोत्सव – स्वास्थ्य सामाजिकता व् पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण  आपको कैसा लगा  | पसंद आने पर शेयर करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको ” अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री ईमेल सबस्क्रिप्शन लें ताकि सभी नयी प्रकाशित रचनाएँ आपके ईमेल पर सीधे पहुँच सके | 

उपहार -जो मन को छू जाए

किसी को उपहार में क्या दें पर विशेष लेख  घरेलू उत्सव ( शादी विवाह, जन्मदिन, गृह प्रवेश आदि) तथा तीज – त्योहारों का उपहारों से एक खूबसूरत रिश्ता है जो समय – समय पर आदान – प्रदान करने से हमारे खूबसूरत रिश्तों को और भी खूबसूरती तथा मजबूती प्रदान करते रहते हैं! उपहार सिर्फ एक वस्तु ही न होकर उपहार देने वालों के भावनाओं का द्योतक होता है इसलिए अवसर के हिसाब से उपहारों का चयन सोच समझकर करना चाहिए जिससे उपहार प्राप्त करने वालों के हृदय में आपके लिए विशेष स्थान बन सके! जरूरी नहीं कि उपहार कीमती ही दिया जाये! अपने सामर्थ्य के अनुसार ही उपहार का चयन करना चाहिए ताकि उपहार देकर तो खुशी मिले ही और लेने वाले भी उपहार लेकर प्रसन्न हों, न कि उपहार के बोझ से खुद को दबा हुआ महसूस करें!  मौके के अनुरूप हो उपहार  @ जैसे यदि त्योहार दीपावली का है तो इस अवसर पर मिठाइयों के साथ-साथ बर्तन, भी दिया जा सकता है.. यदि उपहार महंगा देना हो तो ज्वैलरी भी अपने सामर्थ्य के अनुसार दिया जा सकता है! उसी प्रकार होली में रंग गुलाल के साथ-साथ मेवा मिठाइयाँ, आदि दिया जा सकता है! @ जन्मदिन पर  बच्चों के उम्र का ध्यान रखते हुए ही खिलौने तथा कपड़ो का चयन करना चाहिए  ! वैसे भी बच्चों को अपने जन्मदिन का बेसब्री से प्रतीक्षा रहता है और साथ ही अपने विशेष रिलेटिव से विशेष गिफ्ट की अपेक्षा भी ! जन्मदिन के अवसर पर गिफ्ट की बात पर मुझे अपने बेटे आर्षी की बात याद करके अभी भी हँसी आ जाती है जब वह करीब पाँच वर्ष का था तो अपने जन्मदिन पर मिले हरेक गिफ्ट को अपने बिस्तर पर फैलाकर बोल रहा था आज हम सबसे अमीर हो गये हैं..! @  शादी विवाह में तो बहुत कुछ देने का आप्शन होता है फिर भी आवश्यकता और पसंद को ध्यान में रखते हुए ही उपहार देना चाहिए ! उसी प्रकार विवाह की वर्ष गांठ पर भी बहुत से आप्शन होते हैं उपहार देने के लिए!! फिर भी कुछ विशेष उपहार विशेष खुशी देते हैं! एकबार मैं अपनी सहेली के विवाह के पच्चीवीं वर्षगांठ पर साड़ी कपड़ो के साथ-साथ चूड़ी केश में भर कर रंग बिरंगी चूड़ियाँ तथा कंगन उपहार में दे दी… उसके बाद तो वह हर त्योहार पर मुझे फोन करके कहती थी कि आज तुम्हारी वाली ही चूड़ियाँ पहनी हूँ यह सुनकर सच में मन बहुत खुश हो जाता था ! @ अपने यहाँ गृह प्रवेश के अवसर पर भी उपहार देने की परम्परा है ! इसमें ज्यादातर नये घर में जरूरी सामान ( बर्तन, चादर. ब्लैंकेट्स, सजावटी सामान आदि ) देना उचित होता है !                                            गृह प्रवेश से याद आयी करीब ढाई वर्ष पूर्व की अपने गृह प्रवेश की बात…. फरवरी का महीना था और गुलाबी ठंड! मुझे तो वैसे भी ठंड बहुत कम लगती है उसमें भी व्यस्तता और खुशी की गर्मी की वजह से ठंड मेरे आसपास भी नहीं फटकती थी! रात में मेहमानों के सोने की व्यवस्था देखते हुए कुछ बातचीत करके करीब बारह एक बजे मध्य रात्रि में अपने कमरे में आकर कुछ देर बिस्तर पर लेटी तो ठंड महसूस होने लगी! बिस्तर आदि दूसरे फ्लैट में रखा गया था जिसमें मेहमान सोये थे! अब इतनी रात गये किसी मेहमान को भी दरवाजा खटखटाकर परेशान नहीं करना चाहती थी ! फिर मेरे दिमाग में आया और मैं अपना वार्डरोब खोलकर गिफ्ट देखने लगी  तो एक सबसे बड़े मोटे गिफ्ट को ऊपर से ही छूकर देखी तो मेरे मन में कुछ उम्मीद की किरण जगी .. खोलकर देखी तो बिल्कुल मेरे अनुमान के अनुरूप ही गिफ्ट में खूबसूरत दोहर निकला जिसे ओढ़ कर हम रात बिताये! यह उपहार मेरी ननद की सास ने दी थी जो मेरे लिए सबसे उपयोगी और खूबसूरत स्मृतिचिन्ह के रूप में मेरे बिस्तर के साथ-साथ मेरे जेहन में अब तक बसा हुआ है!  चलन में है रिटर्न गिफ्ट  गिफ्ट में रिटर्न गिफ्ट की परम्परा भी काफी खूबसूरत होती हैं जो मेहमानों के लौटते समय मेजबानों के द्वारा दिया जाता है! अभी पिछले वर्ष की ही बात है जब हम अपने फुफेरे भाई के बेटे की शादी अटेंड कर हल्द्वानी से पटना काठगोदाम एक्सप्रेस ट्रेन से लौट रहे थे ! उस ट्रेन में कैंटीन नहीं था! सुबह ब्रश करने के बाद मैंने भाभी का दिया हुआ रिटर्न गिफ्ट का डब्बा खोली तो उसमें साड़ी कपड़े के साथ ही तरह – तरह की सूखी मिठाइयाँ तथा तरह – तरह के नमकीन भी मिले जिसे देखकर मन खुश हो गया! और हम समय से स्वादिष्ट नाश्ता का आनन्द उठा सके!  सिर्फ दिखावा न हो उपहार  याद रखें उपहार कभी भी दिखाने और फोकस के लिए कभी नहीं देना चाहिए जो सिर्फ देखने में ही सुन्दर हो और जब बाद में पता चले तो उपहार लेने वाले मन ही मन आपके प्रति दुर्भावना पाल लें !  जैसे बहुत से लोग डुप्लीकेट सिल्क की साड़ी या फिर डुप्लीकेट कपड़े दे देते हैं जो देखने दिखाने में तो बहुत अच्छे लगते हैं लेकिन लेने वाले इधर उधर दान ही कर दिया करते हैं! कम कीमत में ही देना हो तो काॅटन के कपड़े भी दिये जा सकते हैं जिसे लेने वाला खुद पहन  सके ! वैसे आजकल आॅनलाइन गिफ्ट की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं जो की आज की जेनरेशन के लिए काफी सुविधाजनक है!  जो भी दें जब भी उपहार दें तो ऐसा दें जो मन को छू जाए  ©किरण सिंह यह भी पढ़ें ……… बेगम अख्तर मल्लिकाएं ग़ज़ल को सलाम अतिथि देवो भव – तब और अब आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ? आज गंगा स्नान नहीं गंगा को स्नान करने की आवश्यकता है क्या आप जानते है की आप के घर का कबाड़ बढ़ा सकता है आप का अवसाद मित्रों , किरण सिंह जी का आलेख उपहार जो मन को छू जाए आपको कैसा लगा  | पसंद आने पर शेयर करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको ” अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री … Read more