मनायें इको फ्रेंडली दीपावली
दीपावली का त्यौहार यानी खुशियों का त्यौहार | पांच दिन चलने वाले इस दीपोत्सव का बच्चे तो बच्चे बड़ों को भी इंतज़ार रहता है | क्यों न हो | घर का रंग – रोगन , साफ़ – सफाई नए कपडे , गहने , घर का सामान , मित्रों पड़ोसियों को दिए जाने वाले गिफ्ट्स के साथ माँ लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी | दीप बिजली की झालरों से रात के अंधकार को पछाड़ती दीपावली |खुशियों को मनाने के कितने रंग हैं |कितना ढंग हैं | क्या जरूरत है इसमें पटाखों के शोर और धुएं की |क्यों न हम इको फ्रेंडली दीपावली मनाएं | इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में एक नया कदम इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में पटाखों की बिक्री व् उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगायी गयी रोक एक अच्छा फैसला है |पिछले साल दीपावली और उसके बाद पंजाब में जलाई गयी फसलों से दिल्ली किस तरह गैस चैंबर में तब्दील हुई थी | इसको भुक्त भोगी ही बता सकता है | हालंकि ये फैसला पूरे देश में और हर त्यौहार पर होना चाहिए | पटाखों का कोई धर्म नहीं होता पर पर्यावरण की रक्षा करना हमारा धर्म है | दीपावली या अन्य त्योहारों पर पटाखों को जलाने के अलावा अब बात- बात पर पटाखों को जलाने का फैशन चल पड़ा है | क्रिकेट मैच में जीत तो जीत 4 या 6 रन बनने पर भी लोग पटाखे छोड़ने लगते हैं | हमेशा से नहीं जलाए जाते थे पटाखे दीपावली पर हमेशा से पटाखे नहीं जलाए जाते थे | शगुन के नाम पर ये कब शुरू हुए कहा नहीं जा सकता | अपने बचपन की दीपावली याद करती हूँ तो बहुत कम पटाखे जलाए जाते थे | जब इसके प्रदूषण के रूप में दुष्परिणाम सामने आने लगे तो खिलाफ जन – जागरूकता के अभियान चलाये जाने लगे | “ से नो टू क्रैकर्स” अभियान लगभग हर साल हर स्कूल में चलाया जाता है | बच्चे स्लोगन चार्ट बना कर अपना होम वर्क पूरा कर लेते हैं |हकीकत में हर साल जलाए जाने वाले पटाखों की संख्या पिछले साल से बढ़ रही है | कुछ % लोगों को बात समझ में आई है | फिर भी ये सच है की इसे हम सामाजिक रूप से समझा – बुझा कर कम करने में असफल रहे हैं | कानूनन बैन होने के बाद शायद कुछ कमी आये | पटाखों से होती हैं दुर्घटनायें पर्यावरण के अतिरिक्त पटाखे धन का अपव्यय भी हैं | हालांकि ये किसी का निजी फैसला मान कर अनदेखा किया जा सकता है | परन्तु पटाखों के कारण बहुत सी दुर्घटनायें भी घटती है |कितने लोग दीपावली के दिन बच्चों को लेकर डॉक्टर के यहाँ दौड़ते हैं | इसके अतिरिक्त सांस लेने में परेशानी , दमा , अस्थमा , ब्लड प्रेशर , आदि के मरीजों को भी पटाखों से दिक्कत होती है | कितने बच्चे पटाखे की फैक्ट्री में काम करते हैं व् उन्हें बनाते समय और पटाखे जलाते समय घायल हो जाते हैं | जरा सी थ्रिल के नाम पर हम अपने बच्चों के हाथों में ऐसी चीज दे हीं क्यों जो उन्हें घायल कर सकती है | पर्यावरण के नुक्सान के आगे कम है व्यापारियों का नुक्सान जिन लोगों की पटाखों की फैक्ट्री है , जो लोग वहां काम करते हैं या जिन व्यापारियों ने दीपावली के मद्देनज़र पहले से ही पटाखे खरीद लिए हैं | उनकों जो नुक्सान हुआ है | उसमें सरकार कुछ राहत दे तो बेहतर है | हालांकि पटाखों से जो पर्यावरण को नुक्सान पहुँचता है उससे ये नुक्सान बहुत कम है |क्योंकि व्यापारियों का नुक्सान तो अल्पकालिक है | पर पर्यावरण को जो नुक्सान झेलना पड़ेगा वो बहुत लम्बे समय तक असरकारी होगा | क्या हम अपने बच्चों के लिए ऐसी पृथ्वी छोड़ना चाहते हैं जहाँ उनका दम घुटे | दीपावली ही नहीं हर त्यौहार व् अवसर पर लगे पटाखों पर बैन ये सच है की अगर दीपावली पर ही पटाखों पर बैन लगता है तो बहुत से लोगों को ये लग सकता है की हमारे त्यौहार पर ही सरकार विरोध करती है | जबकि पटाखे अनेक अवसरों पर छुडाये जाते हैं | और पटाखों का धुंआ दीपावली , क्रिसमस ईद और न्यू इयर में पर्यावरण को नुक्सान पहुँचाने में भेद नहीं करता है | अतः जरूरी है की साल भर पटाखों पर बैन लगे | और पर्यावरण की रक्षा हो | मित्रों , दीपावली खुशियों का त्यौहार है | परिवार और अपनों के साथ बिताये गए खुशनुमा पलों वक्त का धमाका पटाखों के धमाके से कहीं ज्यादा कहीं ज्यादा जोरदार है और इको फ्रेंडली भी | नीलम गुप्ता