मनायें इको फ्रेंडली दीपावली

दीपावली का त्यौहार यानी खुशियों का त्यौहार | पांच दिन चलने वाले इस दीपोत्सव का बच्चे तो बच्चे बड़ों को भी इंतज़ार रहता है | क्यों न हो | घर का रंग – रोगन , साफ़ – सफाई नए कपडे , गहने , घर का सामान , मित्रों पड़ोसियों को दिए जाने वाले गिफ्ट्स के साथ  माँ लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी | दीप बिजली की झालरों से रात के अंधकार को   पछाड़ती  दीपावली |खुशियों को मनाने के कितने रंग हैं |कितना ढंग हैं | क्या जरूरत है इसमें पटाखों के शोर और धुएं की |क्यों न हम इको फ्रेंडली दीपावली मनाएं |   इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में एक नया  कदम  इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में पटाखों की बिक्री व् उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगायी गयी रोक एक अच्छा फैसला है |पिछले साल दीपावली और उसके बाद पंजाब में जलाई गयी फसलों से दिल्ली किस तरह गैस चैंबर में तब्दील हुई थी | इसको भुक्त भोगी ही बता सकता है | हालंकि ये फैसला पूरे देश में और हर त्यौहार पर होना चाहिए | पटाखों का कोई धर्म नहीं होता पर पर्यावरण की रक्षा  करना हमारा धर्म है | दीपावली या अन्य त्योहारों पर पटाखों को जलाने के अलावा अब बात- बात पर पटाखों को जलाने का फैशन चल पड़ा है | क्रिकेट मैच में जीत तो जीत 4 या 6 रन बनने  पर भी लोग पटाखे छोड़ने लगते हैं | हमेशा से नहीं जलाए जाते थे पटाखे  दीपावली पर हमेशा से पटाखे नहीं जलाए जाते थे | शगुन के नाम पर ये कब शुरू हुए कहा नहीं जा सकता | अपने बचपन की दीपावली याद करती हूँ तो बहुत कम पटाखे जलाए जाते थे | जब इसके प्रदूषण के रूप में दुष्परिणाम सामने आने लगे तो खिलाफ जन – जागरूकता के अभियान चलाये जाने लगे | “ से नो टू क्रैकर्स” अभियान लगभग हर साल हर स्कूल में चलाया जाता है | बच्चे स्लोगन चार्ट बना कर अपना होम वर्क पूरा कर लेते हैं |हकीकत में  हर साल जलाए जाने वाले पटाखों की संख्या  पिछले साल से बढ़ रही है | कुछ % लोगों को बात समझ में आई है | फिर भी ये सच है की इसे हम सामाजिक रूप से समझा – बुझा कर कम करने में असफल रहे हैं | कानूनन बैन होने के बाद शायद कुछ कमी आये | पटाखों से होती हैं दुर्घटनायें  पर्यावरण के अतिरिक्त पटाखे धन का अपव्यय भी हैं | हालांकि ये किसी का निजी फैसला मान कर अनदेखा किया जा सकता है | परन्तु पटाखों के कारण बहुत सी दुर्घटनायें भी घटती है |कितने लोग दीपावली के दिन बच्चों को लेकर डॉक्टर के यहाँ दौड़ते हैं | इसके अतिरिक्त सांस लेने में परेशानी , दमा , अस्थमा , ब्लड  प्रेशर , आदि के मरीजों को भी पटाखों से दिक्कत होती है |  कितने बच्चे पटाखे की फैक्ट्री में काम करते हैं व् उन्हें बनाते समय और पटाखे जलाते समय घायल हो जाते हैं | जरा सी थ्रिल के नाम पर हम अपने बच्चों के हाथों में ऐसी चीज दे हीं क्यों जो उन्हें घायल कर सकती है | पर्यावरण के नुक्सान के आगे कम है व्यापारियों का नुक्सान  जिन लोगों की पटाखों की फैक्ट्री है , जो लोग वहां काम करते हैं या जिन व्यापारियों ने दीपावली के मद्देनज़र पहले से ही पटाखे खरीद लिए हैं | उनकों जो नुक्सान हुआ है | उसमें सरकार कुछ राहत दे तो बेहतर है | हालांकि पटाखों से जो पर्यावरण को नुक्सान पहुँचता है उससे ये नुक्सान बहुत कम है |क्योंकि व्यापारियों का नुक्सान तो अल्पकालिक है | पर पर्यावरण को जो नुक्सान झेलना पड़ेगा वो बहुत लम्बे समय तक असरकारी होगा | क्या हम अपने बच्चों के लिए ऐसी पृथ्वी छोड़ना  चाहते हैं जहाँ उनका दम घुटे |  दीपावली ही नहीं हर त्यौहार व् अवसर पर लगे पटाखों पर बैन                                          ये सच है की अगर दीपावली पर ही पटाखों पर बैन लगता है तो बहुत से लोगों को ये लग सकता है की हमारे त्यौहार पर ही सरकार विरोध करती है | जबकि पटाखे अनेक अवसरों पर छुडाये जाते हैं | और पटाखों का धुंआ दीपावली , क्रिसमस ईद और न्यू इयर में पर्यावरण को नुक्सान पहुँचाने में भेद नहीं करता है | अतः जरूरी है की साल भर पटाखों पर बैन लगे | और पर्यावरण  की रक्षा हो |                         मित्रों , दीपावली खुशियों का त्यौहार है | परिवार और अपनों के साथ बिताये गए खुशनुमा पलों वक्त का धमाका पटाखों के धमाके से कहीं ज्यादा कहीं ज्यादा जोरदार है और इको फ्रेंडली भी |  नीलम गुप्ता 

बनाए रखे भाषा की तहजीब

यूँ तो भाषा अभिव्यक्ति का एक माध्यम भर है |पर शब्द चयन , बोलने के तरीके व् बॉडी लेंग्वेज तीनो को मिला कर यह कुछ ऐसा असर छोडती है की या तो कानों में अमृत सा घुल जाता है या जहर | सारे रिश्ते बन्ने बिगड़ने की वजह भी ये भाषा ही है | कुछ बोलना ही नहीं सही तरीके से बोलना भी जरूरी है |           एक स्कूल टीचर होने के कारण सदा से बच्चो को ये पढ़ाती रही कि अच्छे शब्द और प्रेम भरी वाणी से आप न केवल खुद आनंदित होते हैं अपितु दूसरों को भी भावनाओं के सागर में डुबो देते हैं | सुबह के समय किसी के द्वारा चेहरे पर एक मीठी मुस्कान के साथ कहा गया “गुड मॉर्निंग “ एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह पूरे दिन को सुगंधित  कर देता है | अक्सर सोचती हूँ क्या जाता है किसी का इतना सा कहने में जो किसी का दिन बना दे | पर हकीकत कुछ अलग ही है | क्या आपने कभी लोगों की भाषा पर ध्यान दिया है ? अभद्र और अश्लील भाषा का प्रयोग रोजमर्रा की जिंदगी का अंग बन गया है | बात –बात पर एक दूसरे को गाली देना एक लकाब  जैसा बन गया  है | पुरुष अनौपचारिक बातचीत करते समय अभद्र भाषा का प्रयोग बहुतायत से करते हैं | पर क्या ये सही  समाज का आइना है ?          गुस्सा ,तनाव या रोज़मर्रा की परेशानियाँ  कब नहीं थी| इनकी ढाल बना कर अभद्र भाषा के प्रयोग को सही नहीं सिद्ध किया जा सकता | मेरे विचार से तो इसमें घरों में पीढ़ी दर  पीढ़ी चली आ रही अभद्र भाषा के प्रयोग का योगदान हैं | बच्चा पहले घर से सीखता है | माता –पिता पहले शिक्षक होते  हैं | अगर वो सही भाषा का प्रयोग करेंगे तो बच्चे भी सही भाषा ही सीखेंगे |  मुझे एक वाकया याद आ रहा है | हमारे पड़ोस में एक भरा –पूरा परिवार रहता था | उस परिवार के मुखिया बात –बात पर अभद्र भाषा का प्रयोग करते थे |घर की छोटीबड़ी महिलाओं को भद्दी गालियाँ देकर आवाज़ लगाते थे | लगातार सुनते –सुनते एक दिन परेशान होकर मैं उनकी धर्मपत्नी से  पूँछ ही बैठी कि ऐसी भाषा आप के यहाँ क्यों बोली जाती है | वह बड़ी सरलता से हँसते हुए बोली “अरे छोड़ न ! टू क्यों टेंशन लेती है | इनकी तो आदत है हमारे घर में गालियाँ देकर ही बात की जाती है और कोई बुरा भी नहीं मानता | मैं उनका उत्तर सुन कर अवाक् रह गयी क्योंकि किसी संभ्रात परिवार में ऐसी वीभत्स  भाषा का प्रयोग नहीं किया जाता| नतीजा यह हुआ कि उनके घर में छोटे बड़े बच्चे जब भी आपस में  लड़ते तो एक दूसरे को जी भर के गालियाँ देते | मुझे तो भय लगने लगा कि उनकी आने वाली नस्ल भी अपनी तोतली जुबान में ऐसी ही गन्दी भाषा का प्रयोग करेगी …… “अले मम्मी टुम टो  बिकुल …..”     मेरा परिवार तेरा परिवार कह कर हम इस प्रकार की भाषा को उचित नहीं ठहरा सकते | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है हमारी बात व्यवहार  का असर हमारे बच्चों पर ,और उनसे दूसरे बच्चों पर पड़ता है |  अभद्र भाषा किसी संक्रामक बिमारी की तरह बढती है | इसे अपने स्तर पर ही रोक लेना बहुत जरूरी है नहीं तो एक मछली पूरे तालाब को गन्दा करती  है की तर्ज़  पर  एक व्यक्ति की अभद्र भाषा पूरे समाज को प्रदूषित  कर सकती है |  समाज में   स्वस्थ और मिठास  से ओत –प्रोत  भाषा को संचालित करना हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए | इसकी शुरुआत तो घर से ही हो सकती है | बात करते समय सभी का सम्मान करना चाहिए चाहे वो परिचित हो या अपरिचित | हम जब भी बोले शालीनता से बोले |यदि हम अच्छी भाषा का प्रयोग आज और अभी से करेंगे तो पायेंगे कि इसका  सुनहरा जादू पूरे समाज में खुशबू की तरह फ़ैल गया है |     गुस्से और तनाव को परे धकेलकर ,ठन्डे दिमाग से सोच समझ कर बातचीत का प्रयोग सुन्दर सभी व् शालीन भाषा में करे तो हमारे जीवन के मायने ही बदल जायेंगे और मुंह का जायका भी बदल जाएगा | भाषा के जादुई असर इ रिश्ते –नाते भी मज़बूत हो जायेंगे | याद रखिये अगर आपकी भाषा रोशोगुल्ला ( रसगुल्ला ) की तरह मीठी –मीठी हो तो देखिएगा लोग कैसे मखियों की तरह आप के आस –पास मंडराएंगे | क्यों न हम प्राण लें कि हम सदा मीठी वाणी का ही प्रयोग करेंगे  ,साथ ही धयान दे कि हमारे आस –पास कोई गलत भाषा का प्रयोग तो नहीं कर रहा है | अगर ऐसा है तो उसे प्यार से समझाए |और समझाइये की भाषा की कोयल और कौवे में फर्क होता है |सही तरीके से बोलेन ताकि रिश्तों में काँव  – कांव की जगह कुहू कुहू के मीठे स्वर गूंजे |  श्रीमती स .सेनगुप्ता  यह भी पढ़ें … अतिथि देवो भव – तब और अब आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ? आज गंगा स्नान नहीं गंगा को स्नान करने की आवश्यकता है क्या आप जानते है की आप के घर का कबाड़ बढ़ा सकता है आप का अवसाद

‘अहिंसा’ के विचार से ही ‘जय जगत’ की अवधारणा साकार होगी!

गांधी जयंती व अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस (2 अक्टूबर) पर विषेष लेख  1) संयुक्त राष्ट्र संघ ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया है |   अहिंसा की नीति के जरिये विष्व भर में शांति के संदेष को बढ़ावा देने के महात्मा गांधी के योगदान को स्वीकारने के लिए ही ‘संयुक्त राष्ट्र संघ’ ने महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को विष्व भर में प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय वर्ष 2007 में लिया गया। मौजूदा विष्व-व्यवस्था में अहिंसा की सार्थकता को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा में भारत द्वारा रखे गये इस प्रस्ताव को बिना वोटिंग के ही सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया। इस प्रस्ताव को भारी संख्या में सदस्य देषों का समर्थन मिलना विष्व में आज भी गांधी जी के प्रति सम्मान और उनके विष्वव्यापी विचारों और सिद्धांतों की नीति की प्रासंगिकता को दर्षाता है। (2) आज मानव जाति को जय जगत के नारे को बुलन्द करने की आवश्यकता है:-  15 अगस्त, 1947 को महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश 300 वर्षों की अग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। भारतवासियों के हृदय में देशभक्ति की भावना गांधी जी ने भरी और फिर अंग्रेजों को भारत छोड़ने को उन्होंने ही विवश किया। इसके साथ ही सरदार पटेल ने भारत के 552 देशी राज्यों को अत्यन्त ही शान्तिपूर्वक समाप्त कर भारत को एक सुदृढ़ तथा संगठित राष्ट्र बनाया। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर विश्व के 54 देश अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद हो गये थे। गाँधी जी ने अपने शिष्य विनोबा भावे से भारत देश के आजाद होते ही कहा था कि अभी तक हमारा लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से देश को आजाद करने के लिए ‘जय हिन्द’ के नारे को बुलन्द करना था। देश के आजाद होने के साथ ‘जय हिन्द’ का हमारा लक्ष्य पूरा हो गया है और अब हमें सारे विश्व को गरीबी, अन्याय, भूख, बीमारी, अशिक्षा तथा युद्धों से बचाने के लिए ‘जय जगत’ अर्थात ‘सारे विश्व की जय हो के’ नारे को बुलन्द करने के लिए कार्य करना है। (3) दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों का भविष्य आज की समस्या:- 21वीं सदी के युग में व्याप्त विश्वव्यापी समस्याओं को समाप्त करने के लिए महात्मा गाँधी के विचारों को अमल में लाने की आवश्यकता है। महात्मा गाँधी भारत जैसे महान राष्ट्र को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए उठ खड़े हुए थे और वह देश को आजादी दिलाने में सफल भी हुए। यदि महात्मा गाँधी इस युग में जीते होते तो वह हमारे ग्लोबल विलेज को गरीबी, अशिक्षा, आतंक, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र को परमाणु शस्त्रों के प्रयोग की धमकियों तथा विश्व के दो अरब बच्चों के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए जुझ रहे होते। महात्मा गाँधी ने महापुरूषों से प्रेरणा ली किन्तु अपने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलते हुए देश की गुलामी की समस्या को हल किया। तथापि विश्व के 54 देशों को गुलामी से मुक्त होने की ऊर्जा तथा विश्वास दिया। (4) ‘जय जगत’ की भावना से ही पूरे विश्व में ‘एकता एवं शांति की स्थापना संभव:- संत विनोबा भावे से किसी ने पूछा कि दो राष्ट्रों के बीच झगड़ा होने से कोई एक राष्ट्र हारेगा तथा कोई एक राष्ट्र जीतेगा। सारे जगत की जीत कैसे होगी? बच्चों के सुरक्षित भविष्य की खातिर यदि विश्व के सभी देश यह बात हृदय से स्वीकार कर लें कि आपस में युद्ध करना ठीक नहीं है तो सारे विश्व में ‘जय जगत’ हो जायेगा। अर्थात यदि दो राष्ट्र मिलकर ‘जय जगत’ की भावना से आपसी परामर्श करें तो किसी एक की हार-जीत नहीं वरन् दोनों की जीत होगी। इस प्रकार प्रत्येक राष्ट्र को सारे विश्व में ‘जय जगत’ की भावना के अनुरूप एकता एवं शांति की स्थापना के लिए अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के साथ ही सारे विश्व के देशों के हितों को ध्यान में रखकर भी संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्ति प्रदान कर विश्व संसद के रूप में विकसित करना होगा। (5) महात्मा गांधी ने विष्व में वास्तविक शांति की स्थापना के लिए बच्चों को सबसे सषक्त माध्यम बताया:- राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि विष्व में वास्तविक शांति लाने के लिए बच्चे ही सबसे सषक्त माध्यम हैं। उनका कहना था कि ‘‘यदि हम इस विश्व को वास्तविक शान्ति की सीख देना चाहते हैं और यदि हम युद्ध के विरूद्ध वास्तविक युद्ध छेड़ना चाहते हैं, तो इसकी शुरूआत हमें बच्चों से करनी होगी।’’ इस प्रकार महात्मा गाँधी के ‘जय जगत’ के सपने को साकार करने के लिए हमें प्रत्येक बच्चे को बाल्यावस्था से ही भौतिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक तीनों की संतुलित षिक्षा के साथ ही सार्वभौमिक जीवन-मूल्यों की शिक्षा देकर उन्हें ‘विश्व नागरिक’ बनाना होगा। (6) गांधी जी ने आधुनिक विष्व की समस्याओं के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्रों की महासंघ की वकालत की:-  गांधी जी का कहना था कि भविष्य में शांति, सुरक्षा और निरन्तर प्रगति के लिए संसार के सभी स्वतंत्र राष्ट्रों को एक महासंघ की आवश्यकता है, इसके अलावा आधुनिक विश्व की समस्याओं को हल करने का कोई अन्य माध्यम नहीं है। एक ऐसे ही विश्व महासंघ के द्वारा उसके घटक देशों की स्वतंत्रता, एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र पर किये जाने वाले आक्रमण एवं शोषण से बचाव, राष्ट्रीय मंत्रालयों की सुरक्षा, सभी पिछड़े क्षेत्रों एवं लोगों की उन्नति, विकास एवं सम्पूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए विश्व भर के संसाधनों के एकत्रीकरण जैसे कार्य सुनिश्चित किये जाने चाहिए। (7) सारा संसार एक नवीन विश्व-व्यवस्था की ओर बढ़ रहा है:- आज जब हम महात्मा गांधी के जीवन तथा शिक्षाओं को याद करते हैं तो हम उनके सत्यानुसंधान एवं विश्वव्यापी दृष्टिकोण के पीछे अपनी प्राचीन संस्कृति के मूलमंत्र ‘उदारचारितानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ (अर्थात पृथ्वी एक देश है तथा हम सभी इसके नागरिक है) को पाते हैं। इन मानवीय मूल्यों के द्वारा ही सारा संसार एक नवीन विश्व सभ्यता की ओर बढ़ रहा है। गांधी जी ने भारत की संस्कृति के आदर्श उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम् को सरल शब्दों में ‘जय जगत’ (सारे विश्व की भलाई अर्थात जीत हो) के नारे के रूप में अपनाने की प्रेरणा अपने प्रिय शिष्य संत विनोबा भावे को दी जिन्होंने इस शब्द का व्यापक प्रयोग कर आम लोगों में … Read more

पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नही

वर्तमान मनुष्य पैसे के लिए पागल हुआ घूम रहा है| जिसे देखो अधिक से अधिक पैसा कमाकर अमीर बनने और अपने जीवन को अधिक सुविधायुक्त बनाने की धमाल चौकड़ी में लगा हुआ है | ये प्रवृत्ति आज के युवाओं की मानसिकता का एक हिस्सा है और हो भी क्यों न क्योंकि हम उन्हें बचपन से ही ये सिखाते है बेटा अच्छा पड़ेगा तो अच्छी नौकरी लगेगी ,अच्छी नौकरी लगेगी तो अच्छा पैसा मिलेगा, अच्छा पैसा मिलेगा तो जीवन में अच्छी सुविधाएं आएँगी, बस फिर तो लाइफ सेट है| ये पाठ आज के हर माता पिता अपने बच्चे को पढ़ाने में लगे है | माता-पिता वो सब काम अपने बच्चों से करवाना चाहते है जिन्हें करने में वे स्वयं असफल रहे है |  महाभारत की एक घटना याद आती है |एक दिन धृतराष्ट बहुत दुखी बैठा था क्योंकि दुर्योधन ने भरी सभा में साफ़ कह दिया था की वो सुई की नोक के बराबर की भूमि भी पांडवों को नही देगा तब विदुर ने धृतराष्ट से पूछा भैया पांडव और कौरव एक ही वंश के है ,उनके गुरु भी एक ही है जिनसे उन्होंने शिक्षा पायी है और हम भरतवंशियों ने उनमे बिना भेदभाव किये दोनो को ही समान स्नेह और प्रेम दिया है फिर भी पांडव इतने विनम्र और सदाचारी जबकि दुर्योधन इतना अहंकारी और क्रोधी है| ऐसा क्यों है तब धृतराष्ट ने जो उत्तर दिया वास्तव में वो बहुत महत्वपूर्ण है |उसने कहा दुर्योधन मेरी महत्वाकांक्षाओं का प्रतिबिम्ब है जो मैं अपने जीवन में हांसिल नही कर पाया वो मै हमेशा दुर्योधन से प्राप्त करवाना चाहता था |मैंने उसे अपनी अपूर्ण महत्वाकांक्षाओं का विष पिला–पिला कर पाला है | आज के माता-पिता की स्थिति भी ये ही है | मनुष्य धन संगृह के लिए रोज़ नई-नई तिकड़म लगाता रहता है| जिसमे उसके जीवन का एक बढ़ा भाग खो जाता है| पैसे के लिए वो अपने परिवार और रिश्तेदारों से कटता चला जाता है| उसे मालुम ही नही पढता की समय कैसे निकल गया जब उसे होश आता है तब तक उसके अपने उसके लिए अपनापन खो चुके होते है | इसका मतलब ये बिलकुल भी नही है की पैसे का संगृह नही किया जाए| पैसे का संगृह किया जाना चाहिए लेकिन ज़रुरत से ज्यादा किसी भी वस्तु का संगृह दुखदायी ही होता है| एक समय था जब एक कमाता था और दस खाते थे मोटा कपड़ा पहनते थे और सब बड़े ही प्रेमभाव से जीवन जीते थे| हाँ घर में सुविधाओं की वस्तुं का आभाव था | लेकिन मानसिक शांति थी छिनझपट जैसी मानसिकता के कुछ ही उदाहरण मिलते थे| पिता के बाद परिवार में बढ़े भाई को बाप के समान दर्जा दिया जाता था और भाभी मां की भूमिका अदा करती थी| मां भूखी सो जाती थी लेकिन अपने बच्चों को रोटी खिलाती थी| विपत्ति के समय में पिता बेटे के कंधे पर हाथ रखता और कहता की सब ठीक जो जायेगा लोग एक दुसरे से जुढ़े हुए थे| हाँ पैसा तो इतना नही होता था लेकिन जीवन आसानी से एवं शांति से बसर हो जाता था | पैसे से ही परिवार और व्यक्ति सुखी हो सकता है यह सत्य नही है | इस संसार में ऐसे अनेक मनुष्य थे जिनकी जेब में एक पैसा नहीं था या कहें जिनकी जेब ही नहीं थी, फिर भी वे धनवान थे और इतने बड़े धनवान कि उनकी समता दूसरा कोई नहीं कर सकता। वैसे भी जिसका शरीर स्वस्थ है, हृदय उदार है और मन पवित्र है, यथार्थ में वही बड़ा धनवान है। स्वस्थ शरीर चाँदी से कीमती है, उदार हृदय सोने से मूल्यवान है और पवित्र मन की कीमत रत्नों से अधिक है। जिसके पास पैसा नहीं, वह गरीब कहा जायगा, परन्तु जिसके पास केवल पैसा है, वह उससे भी अधिक कंगाल है। क्या आप सद्बुद्धि और सद्गुण को धन नहीं मानते? अष्टावक्र आठ जगह से टेड़े थे और गरीब थे, पर जब जनक की सभा में जाकर अपने गुणों का परिचय दिया तो राजा उनका शिष्य हो गया। द्रोणाचार्य जब धृतराष्ट्र के राज दरबार में पहुँचे, तो उनके शरीर पर कपड़े भी न थे, पर उनके गुणों ने उन्हें राजकुमारों के गुरु का सम्मान पूर्ण पद दिलाया। हम कह सकते है कि यदि व्यक्ति पैसे कि हाय को छोड़कर अपने जीवन को सादगी एवं सरलता से जीये तो वो जीवन को मानसिक शांति के साथ ढंग से जी सकता है जिसका आज चहुंओर आभाव दिखाई देता है सारे मत पंथ, धर्म शास्त्र ये कहते नही थकते की जीवन में कितना भी धन, सम्पत्ति, पुत्र, परिवार इकट्ठा कर लो लेकिन एक दिन खाली हाथ ही जाना पढ़ता है तो क्यों न मैं धन संगृह की बेकार मजदूरी से दूर होकर ऐसा काम करूं जिसका फल और यश में अपने साथ ले जा सकूं | एक बार सोचियेगा ज़रूर………………………. पंकज ‘प्रखर’ कोटा राज. यह भी पढ़ें …………….. घुटन से संघर्ष की ओर धन उपार्जन और आपका विवेक खराब रिजल्ट आने पर बच्चों को कैसे रखे पोजिटिव सफल व्यक्ति – आखिर क्या है इनमें ख़ास

दशहरा-असत्य पर सत्य की विजय का पर्व

दशहरा हमारे देश का एक प्रमुख त्योहार है।  इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। (1) दशहरा पर्व हर्ष और उल्लास का त्योहार है:- दशहरा हमारे देश का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिये इस दशमी को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन जगह-जगह मेले लगते हैं तथा रामलीला का आयोजन होता है। रावण का विशाल पुतला बनाकर उसे जलाया जाता है। यह हर्ष और उल्लास तथा विजय का पर्व है। व्यक्ति और समाज में सत्य, उत्साह, उल्लास एवं वीरता प्रकट हो इसलिए दशहरे का उत्सव रखा गया है। दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों-काम, क्रोध, लोभ, मोह मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सद्प्रेरणा प्रदान करता है। दशहरे का सांस्कृतिक पहलू भी है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो इस प्रसन्नता के अवसर को वह भगवान की कृपा मानता है और उसे प्रकट करने के लिए वह उनका पूजन करता है। (2) दशहरा पर्व का सन्देश है कि अहंकार के मद में चूर व्यक्ति का अंत बुरा होता है:- इस दिन भगवान राम ने राक्षस रावण का वध कर माता सीता को उसकी कैद से छुड़ाया था और सारा समाज भयमुक्त हुआ था। इस दिन कुछ लोग शारीरिक आरोग्यता तथा आध्यात्मिक विकास के लिए व्रत एवं उपवास करते हैं। कई स्थानों पर मेले लगते हैं। रामलीला का आयोजन भी किया जाता है। दशहरा अथवा विजयादशमी राम की विजय के रूप में मनाया जाए अथवा दुर्गा पूजा के रूप में, दोनों ही रूपों में यह हर्ष, उल्लास तथा विजय का पर्व है। देश के कोने-कोने में यह विभिन्न रूपों से मनाया जाता है, बल्कि यह उतने ही जोश और उल्लास से दूसरे देशों में भी मनाया जाता है जहां प्रवासी भारतीय रहते हैं। यह दिन हमें प्रेरणा देता है कि हमें अंहकार नहीं करना चाहिए क्योंकि अंहकार के मद में डूबा हुआ व्यक्ति एक दिन अवश्य असफल हो जाता है। रावण चारों वेदों का ज्ञाता और महावीर व्यक्ति था परन्तु उसका अंहकार ही उसका तथा उसके कुटुम्ब के विनाश कारण बना। यह त्योहार जीवन को हर्ष और उल्लास से भर देता है, साथ ही यह जीवन में कभी अंहकार न करने की प्रेरणा भी देता है। रोशनी का त्योहार दीवाली, दशहरा के बीस दिन बाद मनाया जाता है। किसी ने सही ही कहा है कि बुराई का होता है विनाश, दशहरा लाता है उम्मीद की आस। (4) राम के समक्ष सबसे बड़ा संकट कब पैदा हुआ?  पिता की पहली आज्ञा सुनकर राम आनंदित हो गये कि मुझे अपने पूज्य पिता जी की आज्ञा पालन करने का सुअवसर प्राप्त होने के साथ ही साथ मुझे वन में संत-महात्माओं के दर्शन करने एवं उनके प्रवचन सुनकर अपने जीवन में प्रभु की आज्ञाओं के जानने का सुअवसर मिलेगा तथा मुझे ईश्वर की आज्ञाओं का ज्ञान होगा एवं उन पर चलने का अभ्यास करने का सुअवसर प्राप्त होगा। किन्तु पिता की दूसरी आज्ञा सुनकर कि प्रिय राम तुम वन में न जाओ और यदि तुम वन गये तो मैं प्राण त्याग दूँगा। इससे राम के मन में द्वन्द्व उत्पन्न हो गया कि पिता की इन दो आज्ञाओं में से किस आज्ञा को माँनू? क्या करूँ, क्या न करूँ? मैं पिता की पहली आज्ञा मानकर वन में जाऊँ या पिता की दूसरी आज्ञा मानकर और वन न जाकर अयोध्या का राजा बन जाऊँ? (5) राम का संकट कैसे दूर हुआ?  राम ने अपने ऊपर आये इस संकट की घड़ी में हाथ जोड़कर परम पिता परमात्मा से प्रार्थना की और पूछा कि मैं क्या करूँ? पिता की पहली आज्ञा माँनू या दूसरी? राम को परमात्मा से उत्तर मिल गया। परमात्मा ने राम से कहा, तू तो मनुष्य है और हमने मनुष्य को विचारवान बुद्धि दी है। मनुष्य उचित-अनुचित का विचार कर सकता है। मनुष्य यह विचार कर सकता है कि मेरे किसी भी कार्य का अंतिम परिणाम क्या होगा? पशु यह विचार नहीं कर सकता। क्या तू अपनी विचारवान बुद्धि का प्रयोग करके उचित और अनुचित का निर्णय नहीं कर सकता? राम का द्वन्द्व उसी पल दूर हो गया। राम को यह विचार आया कि यदि राजा दशरथ के वचन की मर्यादा का पालन करने के लिए मैं वन में न गया तो पूरे समाज में चर्चा फैल जायगी कि राजा अपने वचन से मुकर गया है। एक राजा के इस अमर्यादित व्यवहार के कारण समाज अव्यवस्थित हो जायगा। अतः मुझे वन अवश्य जाना है। (6) दशरथ तथा राम की सोच में क्या अंतर था?  राम ने प्रभु इच्छा को जानकर दृढ़तापूर्वक वन जाने का निर्णय कर लिया। राम ने यह निर्णय इस आधार पर लिया कि यदि राजा की 14 वर्ष वन जाने की आज्ञा के पालन तथा वचन की लाज एक बेटा नहीं रखेगा तो समाज में क्या सन्देश जायेगा? परमात्मा द्वारा निर्मित मानव समाज परमपिता परमात्मा का अपना निजी परिवार है तथा इस सृष्टि के सभी मनुष्य उसकी संतानें हैं। मित्रों, आप देखे, दशरथ की दृष्टि अपने प्रिय पुत्र के प्रति अगाध भौतिक प्रेम व अति मोह एवं स्वार्थ से भरी होने के कारण उनका राम को कई तरीके से वन न जाने की सीख देना तथा यदि फिर भी राम वन चले जाय तो प्राण त्यागने तक का निर्णय कर लेना परमात्मा एवं उसके समाज के व्यापक हितों के विरूद्ध है। वहीं दूसरी ओर उनके बेटे राम की दृष्टि आध्यात्मिक होने के कारण पिता की अतिवेदना की बिना परवाह किये हुए ही उनका वन जाने का निर्णय समाज को मर्यादित होने की सीख देने वाला था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम ने अपने जीवन से समाज को यह सीख दी कि मानव की एक ही मर्यादा या धर्म या कत्र्तव्य है कि यदि अपनी और अपने पिता की इच्छा और परमात्मा की इच्छा एक है तो उसे मानना चाहिये किन्तु यदि हमारी और हमारे शारीरिक पिता की इच्छा एक हो … Read more

गुरु कीजे जान कर

गुरु कीजिये जानी के , पानी पीजे छानी ,  बिना विचारे गुरु करे , परे चौरासी खानी ||                                                         कबीर दास किरण सिंह  गुरु नहीं बहुरूपिये करते हैं संत परंपरा को बदनाम  कभी-कभी मनुष्य की परिस्थितियाँ इतनी विपरीत हो जाती हैं कि आदमी का दिमाग काम करना बंद कर देता है और वह खूद को असहाय सा महसूस करने लगता है ! ऐसे में उसे कुछ नहीं सूझता ! निराशा और हताशा के कारण उसका मन मस्तिष्क नकारात्मक उर्जा से भर जाता है! ऐसे में यदि किसी के द्वारा भी उसे कहीं छोटी सी भी उम्मीद की किरण नज़र आती है तो वह उसे ईश्वर का भेजा हुआ दूत या फिर ईश्वर ही मान बैठता है ! ऐसी ही परिस्थितियों का फायदा उठाया करते हैं साधु का चोला पहने ठग और उनके चेले ! वे मनुष्य की मनोदशा को अच्छी तरह से पढ़ लेते हैं और ऐसे लोगों को अपनी मायाजाल में फांसने में कामयाब हो जाते हैं ! ये बहुरूपिये हमारी पुरातन काल से चली आ रही संत समाज को बदनाम कर रहे हैं ! संत हमेशा से ही सुख सुविधाओं का स्वयं त्यागकर योगी का जीवन जीते हुए मानव कल्याण हेतु कार्य करते आये हैं! माता सीता भी वन में ऋषि के ही आश्रम में पुत्री रूप में  रही थीं ! आज भी कुछ संत निश्चित ही संत हैं लेकिन ये बहुरूपिये लोगों की आस्था के साथ इतना खिलवाड़ कर रहे हैं कि अब तो किसी पर भी विश्वास करना कठिन हो गया है !  गुरु पर मेरा निजी अनुभव  आज से करीब उन्तीस वर्ष पूर्व मुझे भी एक संत मिले जो झारखंड राज्य , जिला – साहिबगंज, बरहरवा में पड़ोसी के यहाँ आये हुए थे! मुझे तब भी साधु संत ढोंगी ही लगते थे इसीलिए मैं उनसे पूछ बैठी..  बाबा  किस्मत का लिखा तो कोई टाल नहीं सकता फिर आप क्या कर सकते हैं ? तो गुरू जी ने बड़े ही सहजता से कहा कि भगवान राम ने भी शक्ति की उपासना की थी…  जैसे तुमने दिया में घी तो भरपूर डाला है लेकिन आँधी चलने पर दिया बुझ जाता है यदि उसका उपाय न किया जाये तो ! जीवन के दिये को भी आँधियों से बचा सकतीं हैं ईश्वरीय शक्तियाँ! फिर मैंने पूछा कि हर माता पिता की इच्छा होती है कि अपने बच्चों की शादी विवाह करें आप अपने माता-पिता का तो दिल अवश्य ही दुखाए होंगे न इसके अतिरिक्त साधु बनना तो एक तरह से अपने सांसारिक कर्तव्यों से पलायन करना ही हुआ न!  इसपर उन्होंने बस इतना ही कहा कि मेरी माँ सौतेली थी!  इस प्रकार का कितने ही सवाल मैनें दागे और गुरू जी ने बहुत ही सहजता से उत्तर दिया!  सच्चे गुरु भौतिक सुखों से दूर रहते हैं  गुरू जी खुद कोलकाता युनिवर्सिटी में इंग्लिश के हेड आफ डिपार्टमेंट रह चुके थे लेकिन साधु संतों की संगति में आकर उनसे प्रभावित हुए और भौतिक सुख सुविधाओं का त्याग कर योगी का जीवन अपना लिये थे!  कभी-कभी गुरु आश्रम के महोत्सव में हम सभी गुरु भाई बहन सपरिवार पहुंचते थे जहाँ हमें एक परिवार की तरह ही लगता था! सभी को जमीन पर दरी बिछाकर एक साथ खाना लगता था ! गुरु जी भी सभी के साथ ही खाते थे ! बल्कि कभी-कभी तो सभी के थाली में कुछ कुछ परोस भी दिया करते थे! वे स्वयं को भगवान का चाकर ( सेवक ) कहते थे खुद को भगवान कहकर कभी अपनी पूजा नहीं करवाई ! बल्कि कोई बीमार यदि अपनी व्यथा कहता तो उसे डाॅक्टर से ही मिलने की सलाह दिया करते थे!  तब उनका आश्रम बंगाल के साइथिया जिले में एक कुटिया ही था जिसे कुछ अमीर गुरु भाई बहन खुद बनवाने के लिए कहते थे लेकिन गुरु जी मना कर दिया करते थे! बल्कि गरीब गुरु भाई बहनों के बेटे बेटियों की शादी में यथाशक्ति मदद करवा दिया करते थे हम सभी से ! अब तो गुरू जी की स्मृति शेष ही बच गई है!  गुरु कीजे जान कर                                                                     लिखने का तात्पर्य सिर्फ़ इतना है कि किसी एक के खराब हो जाने से उसकी पूरी प्रजाति तथा विरादरी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता !आवश्यकता है अपने दिमाग को प्रयोग करने की , सच और झूठ और पाप पुण्य की परिभाषा समझने की , स्वयं को दृढ़ करने की !  कोई मनुष्य यदि स्वयं को ईश्वर कह रहा है तो वह ठगी कर रहा है! हर मानव में ईश्वरीय शक्तियाँ विराजमान हैं आवश्यकता है स्वयं से साक्षात्कार  की! यह भी पढ़ें … रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन यानी तुष्टिकरण का मानसिक कैंसर वाद चमत्कार की तलाश में बाबाओं का विकास फेसबुक -क्या आप दूसरों की निजता का सम्मान करते हैं ? टाइम है मम्मी

रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन यानी तुष्टिकरण का मानसिक कैंसरवाद

रंगनाथ द्विवेदी। जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) आज म्याँमार से भगाये गये लाखो लाख रोहिंग्या मुसलमान इतने शरीफ़ और साधारण नागरिक वहाँ के नही रहे,अगर रहे होते तो उन्हें आज इस तरह के हालात से दो-चार न होना पड़ता और उन्हें सेना लगाकर जबरदस्ती वहाँ से न निकाला गया होता।वहाँ के अमन चैन के जीवन मे ये आतंकियो की तरह अंदर ही अंदर एक दूषित इस्लाम( इस्लामी आतंकवाद ) का बारुद बिछाना शुरु कर दिये थे जिसकी परिणति या प्रतिफल उन्हें इस तरह भुगतना पड़ रहा हैं । चार लाख के करीब रोहिंग्या आज बांग्लादेश के शिविरो मे भयावह शरणार्थियो की तरह पड़े हुये है,जबकि बांग्लादेश की खुद की जनसंख्या की एक चौथाई के करीब संख्या तथाकथित रुप से भारत के अधिसंख्य राज्यो मे चोरी-छिपे रह रहे है।या किसी राज्य विशेष मे तथाकथित राजनैतिक पार्टी ने इन्हें इस देश की संम्मानित नागरिकता भी दिलवा दी है “एैसे महान राज्य की लिस्ट मे एक सर्वोपरि राज्य बंगाल यानि कि कोलकाता है जहाँ की मुख्यमंत्री को महज ममता बनर्जी कहना न्यायोचित न होगा—उन्होनें बंगाल को राज्य नही अपितु एक बारुद बना रंखा है जो दंगे के रुप मे अक्सर फटता रहता है”। इन्हीं महान मुख्यमंत्री के कारण——“आज बंगाल आई.यस.आई.यस(I S I S) जैसी आतंकी संस्था का खूनी इराक लगने लगा है”। आज चालीस हजार रोहिंग्या मुसलमान बिना किसी आधिकारिक बीजा के हमारे देश मे चोरी-छिपे घुस आये है,जबकि हमारे देश की खुफिया एजेन्सी लगातार ये कह रही है कि इन्हें किसी भी तरह देश मे शरण न दिया जाये—-ये देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये खतरनाक है,क्योंकि एैसे तमाम सबूत व प्रमाण मिले है कि ये आतंकी ट्रैनिंग के साथ आतंकी गतविधियो में भी संलिप्त रहे है।इनका संबंध पाकिस्तान व इराक के आतंकी संगठनो से भी है,हमारे देश की वर्तमान सरकार भी इन्हें शरण देने को तैयार नही यहाँ तलक कि हमारे गृहमंत्री आदरणीय राजनाथ सिंह ने दो टूक व स्पष्ट कहाँ है कि हम इन्हें कतई अपने यहाँ शरण नही देंगे और आशा करते है कि हमारा सुप्रीम न्यायालय भी इस बात को समझेगा। इस सबके बावजूद हमारे देश के तथाकथित मुसलमान मुस्लिम तुष्टिकरण की उनकी जो कैंसरवादी सोच है उसी के तहत वे रोहिंग्या मुसलमानो को सह व संरक्षण देने की पुरजोर वकालत कर रहे है।इतना ही नही कल तो कोलकाता के एक मुसलमान मौलवी ने तो हद ही कर दी और इस हद को अगर पुरी दुनिया मे कोई देश इस बहादुरी और निर्लज्जता से बर्दाश्त कर सकता है तो वे एकलौता देश हमारा भारत है,यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी की पराकाष्ठा ये है कि—–“भारत माँ को गाली देकर भी सगर्व रहा जा सकता है”। कल कोलकाता के मौलवी ने बड़ी बहादुरी के साथ कहाँ कि—“रोहिंग्या महज़ मुसलमान नही हमारे भाई है इस दुनिया मे कही भी रह रहा मुसलमान पहले मुसलमान है क्योंकि उसका हमारा कुरान एक है,उसका रसुल हमारा रसुल एक है इंशा अल्लाह हम इनकी खातिर लाखो गरदने काट देंगे”।अघोषित रुप से उसने गुजरात के पूर्व-मुख्यमंत्री और भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सीधे तौर पे कहाँ कि—“ये तुम्हारा गुजरात नही बंगाल है जहाँ हजारो मुसलमान लाखो हिन्दुओ का कत्लोगारद कर सकते है”। इस अभिव्यक्ति से स्पष्ट लगा कि जैसे बंगाल भारत का राज्य नही अपितु एक शत्रु राष्ट्र हो इनके समर्थन मे बोल रहे कुछ आस्तीन के जहरिले साँपो ने राष्ट्रवादी मुसलमानो की जमात को शर्मिंदा किया है—“काश हमारा देश एैसे जहरिले मुसलमान साँपो का उन्मूलन कर पाता”।इन मुसलमानो को रोहिंग्या का मुसलमान दिख रहा है जो बाहर देश से जबरदस्ती हमारे देश मे घुस आये है,इनके लिये ये अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार की बात कर रहे कोर्ट मे इनके लिये पैरवी व इनके पक्ष मे वकील करके तमाम गैर-जिम्मेदाराना दलीले दी जा रही। जबकि हमारे अपने ही देश मे तमाम कश्मीरी पंडित आज कई सालो-साल से अत्यंत कष्टदायी और भयावह जीवन शरणार्थी शिविरो में जीने को बाध्य है जिन्हें आज भी ये आस और उम्मीद है कि वे एकदिन फिर अपने पुरुखो के उस कश्मीर मे पहले की तरह रह पायेंगे।इनके लिये मानवाधिकार गौण है,इनके लिये किसी मुस्लिम संगठन के होंठ नही खुलते। मुझे ये नही समझ आता कि आखिर हम क्यू एैसे बेवफ़ा और गद्दार रोहिग्या मुसलमानो को झेले जिन्हें अपने इस मादरे वतन की मिट्टी से मोहब्बत नही,ये सच है कि—“एैसे भी हमारे मुल्क मे मुसलमान है जो हमारे हिन्दुतान के माथे पे कोहिनूर की तरह चमकते है जिन्हें हमारी हर साँस सलाम करती है”।मुझे बखूबी एक मुसलमान शायर कि लिखि वे एक लाइन अब तलक याद है जिसमें वे कहता है कि मेरी आखिर ख्वाहिश है कि—“मुझे कुछ मत देना,चादर,चराग,उर्स,कौवाली हाँ अगर मुझसे जरा भी मोहब्बत करना तो—-मेरी कब्र के सिरहाने मुट्ठी भर मेरे वतन की मिट्टी रख देना”।लेकिन आज हालत ये है कि हम रफ्ता-रफ्ता कहाँ से कहाँ पहुँच गये सच तो ये है कि—–“ रोहिंग्या मुसलमानो का समर्थन तथाकथित मुसलमानो   गलिज़ सोच का एक भयावह मानसिक कैंसरवाद है”। यह भी पढ़ें ………. अलविदा प्रद्युम्न – शिक्षा के फैंसी रेस्टोरेंट के तिलिस्म में फंसे अनगिनत अभिवावक जिनपिंग हम ढाई मोर्चे पर तैयार हैं आइये हम लंठों को पास करते हैं शिवराज सिंह चौहान यानी मंदसौर का जनरल डायर पोस्ट में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं | अटूट बंधन संपादक मंडल का इनसे सहमत होना जरूरी नहीं है |

चमत्कार की तलाश में बाबाओ का विकास

वंदना बाजपेयी डेरा सच्चा सौदा के राम – रहीम की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से भीड़ पगलाई और उसने हिंसा व् आगजनी का सहारा लिया |उससे तो यही लगता है की बाबा के भक्त आध्यात्मिक तो बिलकुल नहीं थे | आध्यात्म तो सामान्य स्वार्थ से ऊपर उठना सिखाता है | आत्म तत्व को जानना सिखाता है | जो सब में मैं की तलाश करता है वो तो चींटी को भी नहीं मार सकता |फिर इतनी हिंसा इतनी आगज़नी |  इस बात की परवाह नहीं की जिसे हिंसा की भेंट चढ़ाया जा रहा है उससे उनकी कोई निजी दुश्मनी भी नहीं है | ये आध्यत्मिक होना नहीं आतंक फैलाना है | अपनी बात शांति पूर्वक रखने के कई तरीके थे | पर भीड़ ने वो तरीका अपनाया जो अनुयायी होने के आवरण के अंदर सहज रूप से उसके रक्त में प्रवाहित था | हिंसा क्रोध और उन्माद का | आज उन तमाम बाबाओं पर अँगुली उठ गयी है जो आध्यात्म का नाम ले कर अपनी दुकाने चला रहे हैं | वो दुकाने जो धीरे – धीरे उनकी सत्ता में परिवर्तित हो जाती हैं | जहाँ “ नेम , फेम और पावर का गेम चलता है |  प्रश्न ये उठता है की सब समझते हुए सब जानते हुए आखिर लोग क्यों इन बाबाओं के अनुयायी बन जाते हैं | सच्चाई ये है की इन बाबाओं की दुकानों पर जाने वाला आम आदमी एक डरा हुआ कमजोर आदमी है | जी हाँ , ये डरे हुए आम आदमी जिनमें खुद अपनी समस्याओं के समाधान की हिम्मत नहीं हैं | तलाशते हैं कोई बाबा कोई , संत कोई फ़कीर , जो कर दे चमत्कार , चुटकियों में हो जाए हर समस्या का सामाधान …  हो जाए बेटी की शादी , कहाँ से लाये दहेज़ की रकम | बरसों हो गए जिसके लिए योग्य दूल्हा ढूंढते , ढूंढते | बड़का की नौकरी लग जाए | क्या है की बाबूजी रिटायर होने वाले हैं | घर कैसे चलेगा ? छुटकू  का मन पढने में लग जाए | पास हो जाए बस | ब्याही बिटिया को दामाद चाहने लगे | जोरू का गुलाम हो जाए |कोई जंतर मंतर कोई तावीज कहीं कोई चमत्कार तो हो जाए | इन्हीं चमत्कारों  की तालाश में आम आदमी खुद ही उगाते हैं बाबाओं की फसल | आध्यात्म के लिए नहीं चमत्कार के लिए |                     ये बाबा भी जानते हैं की समस्याएं चमत्कार से नहीं पावर से खत्म होती हैं |इसलिए ये अपनी पावर बढाने में लग जाते हैं | राजनैतिक कनेक्शन बनाते हैं | ताकि उनके व् उनके तथाकथित भक्तों के हितों का समर्थन होता रहे | बाबा के पास जैसे ही अनुयायी बढ़ने लगते हैं | उन्हें सरकारी मदद से आश्रम के नाम पर जमीने मिलने लगती हैं | हर चीज पर सब्सिडी मिलने लगती है | फिर क्यों न उनका साम्राज्य फले फूले | दरसल इन बाबाओं का आध्यत्म से कुछ लेना देना नहीं होता है | ये स्वयं अपनी समस्याओं से हार कर अध्यात्म की और पलायन करे हुए लोग होते हैं जो मौका मिलते  ही अपना मुखौटा उतार कर अपनी पूरी महत्वाकांक्षाओ के साथ शुद्ध व्यापारी रूप में आ जाते हैं | जो निज हित में आध्यात्म का सौदा करते हैं , धर्म का सौदा करते हैं | धर्म की आड़ में सारे अधार्मिक  काम करते हैं | ये सिर्फ नाम के आध्यात्मिक बाबा हैं | अपनी  वेशभूषा को छोड़कर ये पूरा आलिशान जीवन जीते हैं |महंगी गाड़ियों में घूमना , फाइव स्टार होटलों में रुकना इनका शगल है |                          ये बाबा जानते हैं की कभी न कभी इनको पकड़ा जा सकता है | इसलिए ये एक ऐसी शुरूआती भीड़ की व्यवस्था भी कर के रखते हैं की पकडे जाने पर उत्पात मचा सके | उन्हें पता है की भीड़ भीड़ को फॉलो करती हैं | उन्हें देख कर और अनुयायी जुड़ ही जायेंगे | और भीड़ भी बुद्धि को ताक  पर रख कर चल देती है इन बाबाओं के पीछे – पीछे | न जाने कितने बाबा पकडे जा चुके हैं | फिर भी बाबाओं की नयी फ़ौज रोज आ रही है | रोज नए अनुयायी बन रहे हैं | जय बाबा – जय बाबा का उद्घोष चल रहा है | और क्यों न हो … हम डरे हुए आम आदमी चमत्कार की तलाश में न जाने कितने लोगों को बाबाओं की गद्दी पर सुशोभित करेंगे | जो नेम फेम और पावर गेम से हमारा ही शोषण करेंगे | कुछ पकडे जायेंगे , कुछ छिपे रहेंगे | और हम नाच – नाच कर गाते रहेंगे |                      “ जय बाबा XXX “ यह भी पढ़ें …….. संवेदनाओं का मीडीयाकरण -नकारात्मकता से अपने व् अपने बच्चों के रिश्तों को कैसे बचाएं आखिर हम इतने अकेले क्यों होते जा रहे हैं ? क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते क्या आप भी ब्लॉग बना रहे हैं ? आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं

क्या आप जानते है आपके घर का कबाड़ भी हो सकता है अवसाद का कारण

                          क्या आप का घर अक्सर बहुत बेतरतीब रहता है ? क्या आप अपना पुराना सामान मोहवश  फेंक नहीं पाते ?क्या आप को पता होता है कि उपयुक्त चीज आपके पास है पर आप उसे सही  समय पर ढूढ़ नहीं पाते ? अगर ऐसा है तो जरा अपने स्वाभाव पर गौर करिए ………. आप कार  ड्राइव करते समय किसी कि बाइक या सायकिल के छू जाने पर बेतहाशा उत्तेजित हो जाते हैं ,मार-पीट पर ऊतारू हो जाते हैं अकसर आप सड़क ,भीड़ और लोगों पर गुर्राते हैं ?या आप  बात बेबात पर अपने बच्चों को पीट देती है ,घर कि काम वाली से झगड़ पड़ती है । तो जरा धयान से पढ़िए…………श्रीमती  जुनेजा की कि भी स्तिथि कुछ -कुछ ऐसी ही थी। …. लेकिन जब गुस्सा बहुत बढ़ गया और घर में भी अक्सर कलह पूर्ण वातावरण ही रहने लगा तो उन्होंने मनोचिकित्सक को दिखाने में ही भलाई समझी मनोचिकित्सक के पास जा कर वो लगभग रो पडी  । “मैं इतना बुरी  इंसान नहीं हूँ ,पर पता नहीं क्यों मुझे आजकल हर समय इतना गुस्सा क्यों  आता है मनोचिकित्सक ने उनकी बात बड़े धैर्य से सुनी और कई बैठकों  में  उनकी रोजमर्रा कि जिंदगी के बारे में जान कर एक सलाह दी “आप रोज सुबह आधा  घंटे जल्दी उठा करिए और अपना बिस्तर कमरा संभालिये और ऑफिस जाने से पहले देख लीजिये कि आप की रसोई ,बाथरूम ,कपड़ों की अलमारी आदि ठीक से है या नहीं,इसके बाद ही ऑफिस जाया करिए  । श्रीमती जुनेजा इसके बाद घर चली गयी ,और एक महीने बाद उन्होंने पाया कि वो ज्यादा शांत रहने लगी हैं ।                                               वस्तुत :आज की जिंदगी बहुत तनावपूर्ण है । हम सब लोग तनाव की जद में हैं अक्सर हम इसका दोष  सड़क पर कार चलने वाले व्यक्ति को ,घर की काम वाली को या बच्चों की लड़ाई -झगडे को देते हैं पर इस तनाव का असली कारण हमारे घर में पड़ा कबाड़ है ।समझने वाली बात है अगर आप किसी के घर जाते हैं वहां सिंक बरतनों से बजबजा रहा है ,सामान बेतरतीब फैला है ,वॉशिंग मशीन बिना धुले कपड़ों से लबालब है …. तो आप को कैसा महसूस होता है ?और अगर वो घर आप का ही घर हो तो ? जाहिर है चिड़चिड़ापन ,बेचैनी ,अवसाद बढ़ेगा ही पर क्यों ? ऊर्जा का  प्रवाह रोकता है कबाड़ –                                                कभी देखा है   नदी के पानी में गति शीलता है ,निरंतर प्रवाह है इसलिए उसका पानी गंदा नहीं होता। पर एक गड्ढे में कितना भी साफ़ पानी भरा हो ,२ ,४ दिन में सड़ने लगता है। और अगर एक दो दिन और बीत जाए तो पास से गुजरना मुश्किल हो जाता है। आपने भी सुना होगा गति ही जीवन है।  इसी प्रकार ब्रह्मांडीय ऊर्जा सूक्ष्म तरंगों के रूप में  हमारे चारों ओर व् घूमती रहती है ।घर का कबाड़ या घर में आवश्यकता से अधिक सामान ( हम बहुधा ऐसे घर में जा कर कहते हैं कि  ,क्या घर को कबाड़ खाना बना रखा है  ?) ऊर्जा के इस सतत प्रवाह को रोक लेता है। वस्तुतः :ये कबाड़ सकारात्मक विचारों के प्रवाह को रोक देता है ऊर्जा का प्रवाह रुकते ही मन में नकारात्मक विचार आने लगते हैं । मन अवसाद से घिर जाता है।  जिससे घर के वातावरण में अजीब सी घुटन व् बेचैनी महसूस होती है । क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक –   मनोचिकित्सक डॉ हरीश शेट्टी कहते हैं कि “ढेर सारा फर्नीचर ,अनावश्यक किताबे ,बर्तन व् सामान हमारे दिमाग में भारीपन का अहसास कराता है ,जिससे उलझन ,थकान व् क्रोध बढ़ता है। इसका नकारात्मक प्रभाव हमारे रिश्ते -नातों पर पड़ता है। यहाँ तक कहाँ जा सकता है की कबाड़ दम्पत्तियों में अनबन व् तलाक तक का कारण बन सकता है। “ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार कबाड़ का हमारे मूड व् आत्मसंतुष्टि पर बहुत विपरीत असर पड़ता है। यह निर्जीव सामान हमारा किसी काम पर फोकस (ध्यान केंद्रित करना )रोक देता है।  मनोवैज्ञानिक सुधीर गुप्ता के अनुसार कबाड दृश्य ,घ्राण व् स्पर्श  संवेदनाओ को अत्यधिक उत्तेजित कर देता है। जिससे हमें ऐसा महसूस होता है जैसा बहुत देर काम करने के बाद महसूस होता है।  हमें कभी न खत्म होने वाले काम की थकान महसूस होती है।  क्यों इकठ्ठा हो जाता है कबाड़ –                                        हम सब अपने घर को साफ़ -सुथरा रखना चाहते हैं । ज्यादातर घरों में अलसुबह से ही झाड़ू -पोंछा सफाई का काम शुरू हो जाता है । इतनी सफाई पसंद करने के बाद भी आखिरकार घर में ये कबाड़ इकट्ठा क्यों हो जाता है ।  भावनात्मक लगाव – हम ज्यादातर सामन इसलिए इकट्ठा कर लेते हैं क्योंकि हमें उनसे भावनात्मक लगाव होता है।  अभी भी हमारे देश में पश्चिमी देशों की तरह “यूज एंड थ्रो ” का कांसेप्ट नहीं हैं ….कुछ सामान जो मात्र भावनात्मक लगाव की वजह से रखे जाते है … जैसे टूटी हुई घडी के पट्टे ,पुराने सेल ,बचपन या युवावस्था में पहने हुए कपडे ,हैंडल टूटा तवा ,बच्चों के खिलौने।  इन्हे हम मात्र भावनात्मक लगाव के चलते अलमारियों में भर लेते हैं।   असुरक्षा की भावना –                       अक्सर भारतीय घरों में असुरक्षा की भवना के चलते कबाड़ इकट्ठा  हो जाता है ।भगवान  न करे कभी कोई बुरा दिन देखना पड़े।  कहीं ऐसा न हो की कभी इतनी सी चीज खरीदने की औकात न रहे इस मानसिकता के चलते   कोई चीज फेंकने से हम कतराते हैं और रंग उड़े मग , पुराने सेल फोन , चश्मे  आदि हमारे घर में कबाड़ बढ़ाते जाते हैं।  कभी  तो काम आ जाएगा –                                                    कई वस्तुए हम यह सोच कर रखते जाते हैं की कभी न कभी तो काम आ जाएंगी।  बड़े बेटे की … Read more

sarahah app : कितना खास कितना बकवास

अभी ज्यादा दिन नहीं हुए जब फेसबुक पर sarahah एप लांच हुआ और देखते ही देखते कई लोगों ने डाउनलोड करना शुरू कर दिया | मुझे भी अपने कई सहेलियों की वाल पर sarahah एप दिखाई दिया और साथ ही यह मेसेज भी की यह है मेरा एक पता जिसपर आप मुझे कोई भी मेसेज कर सकते हैं | वो भी बिना अपनी पहचान बाताये | आश्चर्य की बात है इसमें मेरी कई वो सखियाँ भी थी जो आये दिन अपनी फेसबुक वाल पर ये स्टेटस अपडेट करती रहती थी की ,मैं फेसबुक पर लिखने पढने के लिए हूँ , कृपया मुझे इनबॉक्स में मेसेज न करें | जो इनबॉक्स में बेवजह आएगा वो ब्लाक किया जाएगा | अगर आप कोई गलत मेसेज भेजेंगे तो आपके मेसेज का स्क्रीनशॉट शो किया जाएगा , वगैरह , वगैरह | मामला बड़ा विरोधाभासी लगा , मतलब नाम बता कर मेसेज भेजने से परहेज और बिना नाम बताये कोई कुछ भी भेज सकता है | जो भी हो इस बात ने मेरी उत्सुकता सराह एप के प्रति बढ़ा दी | तो आइये आप भी जानिये सराह ऐप के बारे में ,” की ये कितना ख़ास है और कितना बकवास है | क्या है sarahah  app                     सराह एक मेसेजिंग एप है | जिसमें कोई भी व्यक्ति अपनी प्रोफाइल से लिंक किसी भी व्यक्ति को मेसेज भेज सकता है |मेसेज प्राप्त कर सकता है | सबसे खास बात इसमें   उसकी पहचान उजागर नहीं होगी |यानी की बेनाम चिट्ठी | सराह एप में आप मेमोरी भी क्रीऐट कर सकते हैं व् उन लोगों के नामों का भी चयन कर सकते हैं जिन्हें  आप मेसेज भेजना चाहते हैं |आप साइन इन कर उन लोगों को भी खोज सकते हैं जिनका पहले से एकाउंट है | इसे डाउनलोड करने के लिए आप को इसके वेब प्लेटफॉर्म  पर जा कर एकाउंट बनाना होगा |आप इसे गूगल प्ले स्टोर या एप्पल के एप स्टोर से भी डाउनलोड कर सकते हैं |इसकी ऐनड्रोइड की एप साइज़ १२ एम बी है | कहाँ से आया ये sarahah  app                                    सराह एप सऊदी अरेबिया से आया है | जिसे वहां के वेब  डेवेलपर  Zain al-Abidin Tawfiq ने डेवेलप किया है | पहले उन्होंने इसे इस लिए डेवेलप किया था की कम्पनी के     कर्मचारी  मालिकों को अपना फीड बैक दे सके जो वो खुले आम सामने सामने  नहीं दे पाते हैं | पर देखते ही देखते यह एप वायरल  हो गया | अबक इसके ३० लाख से भी अधिक यूजर बन चुके हैं | भारत में हर दिन इसे हजारों लोग डाउनलोड कर रहे हैं | क्या  है sarahah  का मतलब                               ” सराह ” का शाब्दिक अर्थ है इमानदारी | पर जब आप अपना नाम छुपा कर कुछ भेज रहे हैं तो इमानदारी कहाँ रहती है | हां , सकारात्मक आलोचना की जा सकती है | अगर आप सामने कहने से परहेज करते हों | पर ये सुनने वाले किए ऊपर है की वो अपनी आलोचना सुन कर आपको ब्लॉक करता है या नहीं | क्या खास है sarahah app  में                                   सराह  मेसेज देने ,लेने के अतिरिक्त कुछ ज्यादा नहीं कर सकता | हो सकता है भविष्य में इसमें कुछ फीचर जोड़े जाए | वैसे मेसेज देने के लिए व्हाट्स एप व् फेसबुक मेसेंजर भी है | तो फिर इसमें ख़ास क्या है | जहाँ तक आलोचना करने का सवाल है तो लोग फेक फेसबुक आई डी बना कर भी कर लेते हैं | फेसबुक पर फेक आई डी वाले लंबी – लंबी बहसे करते देखे गए हैं | कई की ओरिजिनल आई डी है | पर उन्होंने नाम के अलावा  बाकी सब हाइड कर रखा है | फोटो भी उनकी अपनी नहीं है | मतलब ये की वो लोग कुछ भी लिखने के लिए स्वतंत्र हैं | वैसे भी अगर आप की फ्रेंड लिस्ट छोटी है तो इसमें कुछ भी ख़ास नहीं |क्योंकि सब आपके ख़ास जान – पहचान वाले ही होंगे |  हां अगर फ्रेंड लिस्ट बड़ी है और  कुछ ऐसे लोग आपसे जुड़े हैं जो आपको मेसेज करने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं तो वो इस एप के माध्यम से कर सकते हैं | दिल की बात कह सकते हैं | यहाँ पर बात सिर्फ तारीफ की नहीं , बेहूदा मेसेजेस व् बेफजूल आलोचना की भी हो सकती है |                                                             अगर आप किसी बिजनिस या क्रीएटीव  फील्ड से जुड़े हैं तो आप इसका प्रयोग ” सेल्फ प्रोमोशन ” में कर सकते हैं | ऐसे में आप नकारात्मकता व् आलोचना से भरी सैंकड़ों पोस्टों को भूल जाइए , व् कुछ तारीफों वाली चिट्ठियों को अपनी वाल पर शेयर करिए | जिससे लोगों को लगे आपका काम या बिजनेस कितना  प्रशंसनीय है |आपके फ्रेंड्स व् फोलोवेर्स अचंभित  हो सकते हैं की आप या आपका काम कितना लोकप्रिय है | इसके लिए आप अच्छी सी चिट्ठियाँ अपने खास दोस्तों या परिवार के सदस्यों से खुद ही लिखवा सकते हैं | ये बात उनके लिए है जिनके लिए सेल्फ प्रोमोशन में सब कुछ जायज है  पर इसके लिए आपको इतना मजबूत होना पड़ेगा की आप अनेकों अवांछित चिट्ठियों से अप्रभावित रह सकें | क्या बकवास है sarahah app में                                        बेनामी चिट्ठियाँ , बेनामी फोन कॉल्स , अब बेनामी मेसेजेस  महिलाओं के लिए हमेशा खतरे की घंटी हैं | sarahah चाहें जितनी ईमानदारी का दावा करें पर अश्लीलता में ये इमानदारी बर्दाश्त नहीं की जा सकती | एक खबर के मुताबिक़ एक लड़की ( नाम जानबूझकर गुप्त रखा है ) ने सराह एप डाउन लोड  किया | उसे रेप … Read more