महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे

              महाशिवरात्रि यानि भगवान् शिव और माता पार्वती के विवाह  की पावन तिथि | कहते हैं इस दिन भगवान् शिव बहुत प्रसन्न रहते हैं | वैसे भी भोले बाबा जरा से नाम जप पर ही प्रसन्न हो कर वरदान दे देते हैं तो फिर ये दिन तो उनके लिए भी ख़ास है | इसलिए शिव की ख़ास  कृपा प्राप्त करने के लिए भक्त व्रत करते हैं , बेल धतूरा , मदार से शिव का पूजन करते हैं | हर घर हर मंदिर से आती हुई ॐ नम : शिवाय की ध्वनियाँ वातावरण को बहुत सात्विक बना देती है | महा शिवरात्रि के पावन अवसर पर हम आप सभी के लिए शिव को समर्पित ११ दोहे व् दो कुण्डलियाँ लाये हैं | तो आइये पढ़ें ……….. महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे  शिव सा वर जो चाहिए , कर सोलह सोमवार  जन्मों तक चलता रहे , पति -पत्नी का प्यार  ———————————————– महाशिवरात्रि जो करे  ,शिव -गौरा को याद  सुखद दांपत्य जीवन की , वहाँ पड़ें बुनियाद  ———————————————————— मत चढ़ाओ दूध कभी , ना जोड़ो ये हाथ   करो सेवा दीनो की , मिल जायेंगे नाथ  ——————————————- बेल धतूरा बेर  से ,प्रसन्न होते  आप  लें  विष बरसायें सुधा  , ऐसे भोलेनाथ   —————————————— तैंतीस कोटि  देवता , से कहूँ कर के नमन  आप सभी के बीच है  , सबसे भोला   शिवम्  ———————————————— शिव मंदिर के बाहर , लगी भक्तों की भीड़  जिस की हम सब शाख हैं, शिवजी हैं वो नीड़  ————————————————- आज करूँ में  वंदना , जोड़े  दोनों हाथ   मेरी हर बाधा हरो , हे गौरी के नाथ  ———————————————- माँगे वर शिव सा सदा , जब-जब पूजे गौर  सम कहने वाला नहीं ,  दूजा कोई और  ————————————————— निशदिन पूजें शंभु को,जपें ॐ नम: शिवाय पूरी करते कामना ,  देवलोक से आय  ————————————————– पढ़ें – महाशिवरात्रि -एक रात इनर इंजीनीयरिंग के नाम भक्तों की रक्षा के लिए,लिया हलाहल खाय  नीलकंठ के नाम से , जाने गए शिवाय  —————————————————- विष पी के संसार का , देते जो वरदान  ऐसे दीना नाथ  को , भक्त जरा पहचान  ————————————————– दो -कुण्डलियाँ  ———————- यामा  में शिवरात्रि की  ,  मलो अरघे चंदन  बेल धतूरा चढ़ा के , करो शिव का वंदन  करो शिव का वंदन , हो पूरे काज तुम्हारे  रिपु दल पीटें  माथ, भटकते  मारे -मारे   ना जाना करना भूल  , ये व्रत पूरनकामा  सुनो महत्व की बड़े   , ये शिवरातत्रि की यामा  ———————————————————- भोले बाबा ने दिया , भस्मासुर को वरदान उनके पीछे ही पड़ा , भागते  बचा कर जान   भागते बचा कर जान , दौड़ते यहाँ वहाँ को  श्री हरि तब मुस्काए , रूप धर लिया शिवा को बोले  मीठे बैन , कर  शीश पर धर  तो ले  फिर तो भ्स्म अरि हुआ औ ,मगन हुये शंभु भोले  —————————————————— वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें ……….. सोऽहं या सोहम ध्यान साधना -विधि व् लाभ मनसा वाचा कर्मणा -जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल उसकी निशानी वो भोला भाला  आपको  रचना    ““महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-shiv, mahashivraatri, fasting, dohe, bhagvan shiva, ॐ नम:शिवाय , shankar

जानिये प्यार की 5 भाषाओँ के बारे में

    हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू , फ़ारसी , लैटिन या फ्रेंच …. कितनी भी भाषाएँ आती हो मगर , प्यार की भाषा नहीं आती तो रिश्तों के मामले में तो शून्य ही रह जाते हैं | आप सोच सकते हैं कि ऐसा भला कौन हो सकता है जिसे प्यार की भाषा ना आती हो … तो ठहरिये आपको अपनी नहीं जिसे से आप प्यार करते हैं उसकी भाषा समझने की जरूरत है | कैसे ? आज वैलेंटाइन डे पर खास ये रहस्य आपसे साझा कर रहे हैं ………   वैलेंटाइन डे – जानिये प्यार की 5 भाषाओँ के बारे में    अभी कुछ दिन पहले की बात है मैं अपनी सहेली लतिका के साथ दूसरी सहेली प्रिया के घर गयी| प्रिया थोड़ी उदास थी| बातों का सिलसिला शुरू हुआ, तभी मेरी नज़र उसके हाथों की डायमंड रिंग पर गयी | रिंग बहुत खूबसूरत थी | मैंने तारीफ़ करते हुए कहा,” वाह  लगता है जीजाजी ने दी है, कितना प्यार करते हैं आपसे | मेरी बात सुन कर उसकी आँखों में आँसू आ गए, जैसे उनका वर्षों पूराना दर्द बह कर निकल जाना चाहता हो| गला खखार कर बोलीं,” पता नहीं, ये प्यार है या नहीं, नीलेश, महंगे से महंगे गिफ्ट्स दे देते हैं, मेरी नज़र भी अगर दुकान पर किसी चीज पर पड़ जाए तो उसे मिनटों में खरीद कर दे देते हैं, चाहें वो कपड़े हो, गहने हों या श्रृंगार का कोई सामान, पर जब मैं खुश हो कर उसे पहनती हूँ तो कभी झूठे मुँह भी नहीं कहते कि बहुत सुन्दर लग रही हो| पहले मैं पूँछती थी ,” बताओ न, कैसी लग रही हूँ “ , तो हर बार बस वही उत्तर दे देते,  “वैसी  ही जैसी हमेशा लगती हो … अच्छी”| मेरा दिल एकदम टूट कर रह जाता | मैंने कितनी ऐसी औरते देखी हैं जो बिलकुल सुन्दर नहीं हैं, पर उनके पति उन्हें सर पर बिठा कर रखते हैं … परी, हूर , चाँद का टुकड़ा न जाने क्या–क्या कहते हैं, एक तरफ मैं हूँ जिसे दुनिया सुन्दर कहती है उसका पति कभी कुछ नहीं कहता , ये महंगे गिफ्ट्स क्या हैं? … बस अपनी हैसियत का प्रदर्शन हैं | बिना भाव से दिया गया हीरा भी पत्थर से अधिक कुछ नहीं है मेरे लिए | उनका दुःख जान कर मुझे बहुत दुःख हुआ पर मैंने माहौल को हल्का करने के लिए इधर –उधर की बातें करना शुरू किया | हमने हँसते –खिलखिलाते हुए उनके घर से विदा ली |                   रास्ते में लतिका कहने लगी,  “कितनी बेवकूफ है प्रिया, उसे अपने पति का प्यार दिखता ही नहीं | अगर प्यार न करते तो क्या इतने महंगे गिफ्ट्स ला कर देते, एक मेरे पति हैं, मेरी दुनिया भर की तारीफें करते रहेंगे, गीत , ग़ज़ल भी मेरे ऊपर लिख देंगे, मगर मजाल है गिफ्ट के नाम पर एक पैसा भी खर्च करें | बहुत महंगा गिफ्ट तो मैंने चाहा ही नहीं , पर एक गुलाब का फूल तो दे ही सकते हैं |”              घर आ कर मैं प्रिया और लतिका के बारे में सोंचने लगी | दरअसल ये समस्या प्रिया और लतिका की नहीं हम सब की है | हम सब अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि जिसे हम इतना प्यार करते हैं, वो हमें उतना प्यार नहीं करता, या फिर हम तो अपने प्यार का इजहार बार–बार करते हैं पर वो हमारी  भावनाओं को समझता ही नहीं या उनकी कद्र ही नहीं करता| ये रिश्ता सिर्फ पति –पत्नी या प्रेमी –प्रेमिका का न हो कर कोई भी हो सकता है, जैसे माता–पिता का रिश्ता, भाई बहन का रिश्ता, दो बहनों को का रिश्ता, दो मित्रों का रिश्ता | इन तमाम रिश्तों में प्यार होते हुए भी एक दूरी होने की वजह सिर्फ इतनी होती है कि हम एक दूसरे के प्यार की भाषा नहीं समझ पाते | क्या होती है प्यार की भाषा –                     मान लीजिये आप अपनी किसी सहेली से मिलती हैं, वो आपको अपने तमिलनाडू टूर के बारे में बता रही है कि वो कहाँ–कहाँ गयी, उसने क्या–क्या किया, क्या–क्या खाया वगैरह–वगैरह, पर वो ये सारी  बातें तमिल में बता रही है, और आपको तमिल आती नहीं | अब आप उसे खुश देख कर खुश होने का अभिनय तो करेंगी  पर क्या आप वास्तव में खुश हो पाएंगीं ? नहीं, क्योंकि आपको एक शब्द भी समझ में नहीं आया| अब बताने वाला भले ही फ्रस्टेट हो पर गलती उसी की है, सारी कहानी बताने से पहले उसे पूँछ तो लेना चाहिए था कि आपको तमिल आती है या नहीं ? ठीक उसी तरह प्यार एक खूबसूरत भावना है पर हर किसी को उसे कहने या समझने की भाषा अलग–अलग होती है | अगर लोगों को उसी भाषा में प्यार मिलता है जिस भाषा को वो समझते हैं तो उन्हें प्यार महसूस होता है, अन्यथा उन्हें महसूस ही नहीं होता कि उन्हें अगला प्यार कर रहा है| अलग होती है सबकी प्यार की भाषा                          मनोवैज्ञानिक गैरी चैपमैन के अनुसार प्यार की पाँच भाषाएँ होती हैं और हर कोई अपनी भाषा में व्यक्त  किये गए प्यार को ही शिद्दत से महसूस कर पाता है | अगर आप किसी से उसकी प्यार की भाषा में बात नहीं करेंगे तो आप चाहे जितनी भी कोशिश कर लें वो खुद को प्यार किया हुआ नहीं समझ पाएगा | आपने कई ऐसे लोगों को देखा होगा जिनके बीच में प्यार है, दूसरों को समझ में आता है कि उनमें प्यार है, पर उनमें से एक हमेशा शिकायत करता रहेगा कि अगला उसे प्यार नहीं करता | कारण स्पष्ट है कि अगला उसे उस भाषा में प्यार नहीं करता जिस भाषा में उसे प्यार चाहिए| मनोवैज्ञानिक गैरी चैपमैन ने इसके लिए लव टैंक की अवधारणा प्रस्तुत की थी | जब आप किसी से उस की प्यार की भाषा में बात करते हैं तो उसका लव टैंक भर जाता है और वो खुद को प्यार किया हुआ महसूस करता है , लेकिन अगर आप  उस के प्यार की भाषा में बात नहीं करते … Read more

ब्रेकअप के बाद जिन्दगी

ब्रेकअप यानि किसी रिश्ते का खत्म होना , ये प्रेम का खत्म होना बिलकुल भी नहीं है |  अक्सर लोग निराश हो जाते हैं और जिंदगी ही खत्म करने की सोचने लगते हैं | एकता के साथ भी ऐसा ही हो रहा था फिर ऐसी क्या समझदारी दिखाई एकता ने ब्रेकअप के बाद…. ब्रेकअप के बाद  जिन्दगी  इलाहाबाद में पली बढ़ी  एकता की साँसों में इलाहाबादी अमरूदों की खुशबु मिली हुई थी और    और जुबान में अमरुद् सी मिठास  | माँ -बाबूजी के प्यार का  संगम  , घर में रोज ढेर सारे रिश्तेदारों का आना -जाना , दीदी . भैया से रूठना , मनाना , खट्टे -मीठे झगडे और उनके पीछे छिपा ढेर  सारा प्यार और अपनापन  जीवन की यही परिभाषा जानती थी एकता | दुःख तो दूर से भी नहीं छू गया था उसे | नटखट चंचल एकता पढाई में भी शुरू से बहुत होशियार थी | एक दिन उसकी मेहनत रंग लायी और उसका चयन मुंबई के मेडिकल कॉलेज में हो गया | घर में ख़ुशी की लहर दौड़ उठी | दूर -दूर से रिश्तेदारों के फोन आने लगे | खुशियाँ जैसे खुद ही उसके दामन में भर जाना चाहती थीं | पर यही वो समय था जब उसे अपने परिवार से दूर जाना था | स्नेह के आंचल में पली -बढ़ी एकता घबरा तो बहुत रही थी परिवार से दूर रहने के नाम पर | लेकिन अपने कैरियर के लिए जाना तो था ही | उसका  का सामान बांधा जाने लगा | माँ ने ढेर सारे लड्डू , आचार , पंजीरी आदि भी बाँध दिए | क्या पता उनकी लाडली को वहां का खाना पसंद आये या ना आये | बाबूजी ढूँढ -ढूंढ के सामान ला कर ले जाने वाले सामानों के साथ रखने लगे | कई सामानों को ढूँढने में तो उन्होंने सारा इलाहाबाद छान मारा था | कितना हँसी  थी वो , ” अरे  आप लोग तो ऐसे तैयारी कर रहे हैं जैसे ससुराल जा रही हूँ , हॉस्टल ही तो जा रही हूँ |” जवाब में माता -पिता के साथ खुद उसकी आँखें भी गीली हो गयी थीं | मुंबई नया शहर ,नयी पढाई , नया जीवन | कभी माँ के खाने की याद आती , कभी भाई -बहनों के साथ की शरारतों की , तो कभी पिता का विश्वास , ” परेशांन  क्यों होती हो , मैं हूँ ना ” मन को भिगो देता था | धीरे -धीरे उसने खुद को संभाल  ही लिया | कुछ लड़कियों से दोस्ती भी हुई | सबकी आँखों में एक ही सपना था पढने का , आगे बढ़ने का | हॉस्टल में तो नहीं , हाँ कॉलेज में उसे थोड़ी दिक्कत आती थी | को. एड. जो था | अभी तक तो गर्ल्स स्कूल में ही पढ़ी थी वो | फिर इलाहाबाद शहर भी तो ऐसा था , जहाँ खुलापन इतना नहीं था , भाई लोग भी थे जिनके साथ आना -जाना हो ही जाता था | लड़कों को भैया के अतिरिक्त दोस्त भी समझा जा सकता है ये उसकी परिभाषा में नहीं था | लड़कों से बात करने में एक स्वाभाविक हिचक से गुज़रती थी वो | उसी के क्लास में एक लड़का था सौरभ | अपने नाम की तरह अपनी हँसी की खुशबु  लुटाता हुआ |  सौरभ ने ही उसके आगे दोस्ती का हाथ बढाया था , पर उत्तर में अपने में ही सिमिट गयी थी वो | समय के साथ वो लड़कों से थोडा -थोडा बात करने लगी पर सौरभ के सामने आते ही हकला जाती | इसी तरह पूरे दो साल बीत गए | सौरभ रोज उससे मिलना और बात करना नहीं भूलता | क्लास में उनके दबे -छुपे चर्चे होने लगे | खुद उसका मन भी प्रेम के रेशमी अहसास से खुद को कहाँ मुक्त कर पा रहा था | अब तो अकेले कमरे में भी सौरभ हमेशा साथ रहता , भले ही यादों के रूप में | थर्ड इयर के फाइनल सेमिस्टर के बाद  जब सौरभ ने उससे  साथ में कॉफ़ी पीने को कहा तो वो इनकार ना कर सकी | बातों  ही बातों में सौरभ बोला , ” अरे मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा तुम ने मुझ से I Love You कहा |” एकता ने हतप्रभ होते हुए कहा , ” अरे , ऐसा कैसे , मैंने ऐसा तो  नहीं कहा |” सौरभ मुस्कुराया , “तो अब कह दो ना !!!” एक दिलकश हँसी के साथ प्रेम की पहली बयार की खुशबु वातावरण में फ़ैल गयी | अगले दो साल …. प्रेम के दिन थे और प्रेम की रातें | वो एक दूसरे से घंटों बातें करते | साथ -साथ घूमने जाते | एक दूसरे  की तस्वीरे खींचते , प्रेम पत्र लिखते | कॉलेज में उनके प्रेम की किस्से सब को को पता थे | कॉलेज के फेयर वेल  के बाद जब उन्हें अपने -अपने घर जाना था तो उन्होंने एक दूसरे से वादा किया कि जल्द ही अपने माता -पिता को मना लेंगे और हमेशा के लिए एक दूसरे के हो जायेंगे | इलाहाबाद लौट तो आई थी वो पर मन सौरभ के ही पास रह गया था | उसने सौरभ से कह रखा था , पहले तुम अपने माता -पिता से बात कर लेना , फिर मैं कर लूंगी | सौरभ ने भी तो हामी भरी  थी पर मुंबई से कलकत्ता जाने के बाद ना जाने क्यों वो इस सवाल को टालने लगा था | धीरे -धीरे उसके फोन ही आने कम हो गए | एकता के हिस्से में केवल इंतज़ार था | नटखट चंचल एकता मौन हो गयी | गुलाब के फूल सा चेहरा मुरझाने लगा | माँ -पिताजी पूंछते तो काम का प्रेशर बता कर बात टालती थी | हालांकि कि वो जानती थी कि हॉस्पिटल के लम्बे घंटों की ड्यटी भी उसे उतना नहीं थकाती , जितना एक पल का ये ख्याल कि कहीं सौरभ उसे भूल तो नहीं गया |उसका फोन सौरभ उठाता नहीं था , खुद उसका फोन आता नहीं था | मन अनजानी आशंकाओं से घिरने लगा था | सौरभ ठीक तो है ना ? लम्बे इंतज़ार के बाद वो दिन भी आया जब एकता को मेडिकल कांफ्रेस … Read more

हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ

हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ कविता में थोड़ी कल्पना का समावेश किया है | जैसा कि हम सब जानते हैं कि गुलाब के कांटे लोगों को खलते हैं | शायद इस कारण कांटे के मन में द्वेष पैदा होता हो ? उसे गुलाब से शिकायत होती हो ? गुलाब का अपना दर्द हैं …..यहाँ उनका आपसी संवाद है |  हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ  जब एक डाली पर जन्म हुआ संग -संग ही अपना गात बनातब अपने मध्य यह अंतर क्यूँ ?हो तुम  गुलाब मैं कंटक क्यूँ? तुम रूप रस ,गुण गंध युक्तपूजन -अर्चन श्रृंगार में नियुक्तकवि कल्पना का तुम प्रथम द्वारमिलता सबसे तुम्हें अतिशय प्यार मैं हतभागा सा खड़ा हुआनित आत्मग्लानि से गड़ा हुआ विकृत आकृति को देख -देख  उलाहने देते सब मुझको अनेक मैं कब तक विष पीयूँगा यूँ हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ  सुनो मुझसे मत क्लेश करोअपने मन में मत द्वेष भरोअपने घर में कहाँ रह पातानिज डाली से टूटता है नाता जो देखता है वो ललचातातोडा कुचला मसला जाताकैसे समझाउ मैं तुमकोयह रूप बना है बाधक यूँ अच्छा है जो तुम कंटक हो  अच्छा है जो तुम कंटक हो …. वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें ….. नींव व्हाट्स एप से रिश्ते  रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ नए साल पर पांच कवितायें -साल बदला है हम भी बदलें आपको “  हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-Rose, Rose day, Flower, Hindi poetry

प्रेम और इज्ज़त -आबरू पर कुर्बान हुई मुहब्बत की दस्ताने

मानव मन की सबसे कोमल भावनाओं में से एक है प्रेम | देवता दानव पशु पक्षी कौन है जिसने इसे महसूस ना किया हो | कहा तो ये भी जाता है कि मनुष्य में देवत्व के गुण भी प्रेम के कारण ही उत्पन्न होते हैं | परन्तु विडंबना  ये है कि जिस प्रेम की महिमा का बखान करते शास्त्र  थकते नहीं वही प्रेम स्त्री  के लिए  हमेशा वर्जित फल रहा है | उसे प्रेम करने की स्वतंत्रता नहीं है | मामला स्त्री शुचिता का है | तन ही नहीं मन भी उसके भावी पति की अघोषित सम्पत्ति है जिसे उसे कोरा ही रखना है |   बचपन से ही स्त्री को इस तरह से पाला जाता है कि वो प्रेम करने से डरती है | पर प्रेम किसी चोर की तरह ना जाने कब उसके मन में प्रवेश कर जाता है उसे पता ही नहीं चलता | प्रेम होते ही वो घर में प्रेम की अपराधिनी घोषित हो जाती है | कितने ही किस्से सुनते हैं इन प्रेम अपराधिनों के द्वारा आत्महत्या करने के , ऑनर किलिंग के नाम पर अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा मार दिए जाने के या फिर घर से भाग जाने के जिन्हें जिन्दगी भर अपने मूल परिवार से दोबारा मिलने का मौका ही नहीं मिलता | उनका एक हाथ हमेशा खाली ही रह जाता है | वो जीती तो हैं पर एक कसक के साथ | अब सवाल ये उठता है कि ये जितने किस्से हम सुनते हैं क्या उतनी ही लडकियाँ  प्रेम करती हैं ? उत्तर हम सब जानते हैं कि ऐसा नहीं है | तो बाकि लड़कियों के प्रेम का क्या होता है ? वो इज्ज़त के कुर्बान हो जाता है | इज्ज़त प्रेम से कहीं बड़ी है और लडकियां  प्रेम को कहीं गहरे दफ़न कर किसे दूसरे के नाम का सिंदूर आलता लगा कर पी के घर चली जाती हैं | वहाँ  असीम कर्तव्यों के बीच कभी बसंती बयार के साथ एक पीर उठती है दिल में जो शीघ्र ही मन की तहों में  दबा ली जाती है | परिवार की इज्ज़त पर अपने प्रेम को कुर्बान करने वाली ये आम महिलाए जो खुश दिखते हुए भी कहीं से टूटी और दरकी हुई हैं |  यही विषय है किरण सिंह जी के नए कहानी संग्रह “प्रेम और इज्ज़त “का | इससे पहले किरण जी की तीन किताबें आ चुकी हैं ये उनकी चौथी पुस्तक व् प्रथम कहानी संग्रह है | प्रेम और इज्ज़त -पुस्तक समीक्षा  सबसे पहले तो मैं स्पष्ट कर दूँ कि इस संग्रह की कहानियाँ  प्रेम पर जरूर हैं पर वो प्रेम कहानियाँ नहीं हैं | कहानियों को पढ़कर रोमांटिक अनुभूति नहीं होती वरन प्रश्न उठते हैं और पाठक अपने अन्दर गहरे उतर कर उनका उत्तर जानना चाहता है | कहानी संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ अपने विषय के अनुरूप ही हैं | इसमें सबसे पहले मैं जिक्र करना चाहूँगी पहली कहानी का , जिसका नाम भी ‘प्रेम और इज्ज़त ‘ही है | यह कहानी एक माँ और बेटी की कहानी है जिसमें माँ परिवार की इज्ज़त के नाम पर अपने प्रेम को कुर्बान कर देती है | वर्षों बाद उसका अपना ही अतीत उसकी बेटी के रूप में सामने आ खड़ा होता है | माँ एक अंतर्द्वंद से गुज़रती है और अंतत: अपनी बेटी के प्रेम को इज्ज़त की बलि ना चढाने देने का फैसला करती है | ये कहानी एक सार्थक सन्देश ही नहीं देती बल्कि एक बिगुल बजा ती है नव परिवर्तन का जहाँ माँ खुद अपनी बेटे के प्रेम के समर्थन में आ खड़ी हुई है | ये परिवर्तन हम आज समाज में देख रहे हैं | आज प्रेम के प्रति सोच में थोड़ा  विस्तार हुआ है | पुरातनपंथ की दीवारें थोड़ी टूटी हैं | कम से कम शहरों में लव मेरेज को स्वीकार किया जाने लगा है | परन्तु एक हद तक … और वो हद है जाति  या धर्म | जिस दर्द को  एक अन्य कहानी इज्ज़त में शब्द दिए हैं  | ‘इज्ज़त’ एक ऐसी लड़की नीलम की कहानी है जो शिक्षित है , और अपने समकक्ष ही एक उच्च शिक्षित व्यक्ति से प्रेम करती है , जो उसी के ऑफिस में भी काम करता है | समस्या ये है कि वो व्यक्ति छोटी जाति  का है | ये बात उनके परिवार के लिए असहनीय या इज्ज़त के विरुद्ध है | दुखी नीलम का ये प्रश्न आहत करता है कि जिस तरह मन्त्रों से धर्म परिवर्तन होता है क्या कोई ऐसा मन्त्र नहीं है जिससे जाति परिवर्तन भी हो जाए | नीलम की  पीड़ा उसकी व्यथा से बेखबर परिवार वाले उसके प्रेम को  अंत तक स्वीकार नहीं करते हैं | ये हमारे समाज का एक बहुत बड़ा सच है कि धर्म और जाति की मजबूत दीवारें आज भी प्रेम की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है | कहानी सवाल उठती है और जवाब हमें खुद ही तलाशने होंगे | कुछ अन्य  कहानियाँ है जहाँ प्रेम को स्वयं ही इज्ज़त के नाम पर कुर्बान कर दिया जाता है | जिसमें कल्पना के राजकुमार , बासी फूल ,तुम नहीं  समझोगी ,  गंतव्य , आई लव यू टू और भैरवी हैं | इन सभी कहानियों में खास बात ये है कि एक बार विवाह के बाद दुबारा अपने ही प्रेमी से मिलने पर जब प्रेम के फूल पुन : खिलने को तत्पर होते हैं तो विवाह की कसमें याद कर वो स्वयं ही अपने बहकते क़दमों को रोकते हैं | एक टीस के साथ फिर से जुदा हो जाते हैं | एक तरह से ये भारतीय नारी या भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की श्रेष्ठता सिद्ध करते हैं | ये हमारे भारतीय समाज की एक बहुत बड़ी सच्चाई  है पर पूर्ण सत्य नहीं है क्योंकि अनैतिक संबंध भी हमारे समाज का हिस्सा रहे हैं भले ही वो सात पर्दों में दबे रहे हैं | हालांकि जैसा की संग्रह   के शीर्षक में वर्णित है  तो यहाँ लेखिका ने ऐसी ही कहानियों को शामिल किया है जो इज्ज़त को अधिक महत्व देती हैं | उस हिसाब से ये उपयुक्त है | इसके अतिरिक्त कुछ कहानियाँ हैं जो समाज की समस्याओं को प्रस्तुत करती हैं   कई में वो समाधान करती हैं और … Read more

वो व्हाट्स एप मेसेज

                     जिसने दो साल तक कोई खोज खबर न ली हो …. अचानक से उसका व्हाट्स एप मेसेज दिल में ना जाने कितने सवालों को भर देता है | क्या एक बार  रिश्तों को छोड़ कर भाग जाने वाला पुन : समर्पित हो सकता है | वो व्हाट्स एप मेसेज  ३१ दिसम्बर रात के ठीक बारह बजे सुमी के मोबाइल पर व्हाट्स एप मेसेजेस की टिंग -टिंग बजनी शुरू हो गयी | मित्रों और परिवार के लोगों को हैप्पी न्यू  इयर का आदान -प्रदान करते हुए अचानक सौरभ के मेसेज को देख वो चौंक गयी | पूरे दो साल में यह पहला मौका था जब  सौरभ ने उससे कांटेक्ट करने की कोशिश की थी | सुमी ने धडकते दिल से मेसेज खोला और मेसेज पढना शुरू किया , ” हैप्पी न्यू इयर सुमी , मैं वापस आ रहा हूँ , तुम्हारे पास , फिर कभी ना जाने के लिए ” उसके नीचे ढेर सारे दिल बने थे | ना चाहते हुए भी सुमी की आँखें भर आयीं | मन दो साल पीछे चला गया | वो दिसंबर की ही कोई सुबह थी , जब वो गुनगुनी धूप में पूजा के लिए फूल तोड़ रही थी , तभी सौरभ ने आकर उसके जीवन में कोहरा भर दिया | सौरभ उसके पास आकर बोला , ” सुमी , मैं कल अपनी सेक्रेटरी मीनल के साथ अमेरिका जा रहा हूँ | अब मैं वहां उसी के साथ रहूँगा ,तुम्हारे लिए बैंक में रुपये छोड़े जा रहा हूँ , अब मेरी जिन्दगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है | वहीँ की वहीँ खड़ी  रह गयी थी सुमी , सँभलने का मौका भी नहीं दिया उसने | सारे फोन कनेक्शन काट लिए , ना कोई प्रश्न पूछा और ना ही किसी बात का उत्तर देने का कोई मौका ही दिया | दो साल … हाँ पूरे दो साल इसी प्रश्न से जूझती रही कि तीन साल की सेजल और डेढ़ साल के गोलू  ,  -घर -परिवार और सौरभ की हर फरमाइश के लिए दिन भर चक्करघिन्नी की तरह नाचने के बावजूद आखिर क्या कमी रह गयी उसके प्रेम व् समर्पण में कि सौरभ उसके हाथ से फिसल कर अपनी सेक्रेटरी के हाथ में चला गया | महीनों बिस्तर पर औंधी पड़ी जल बिन मछली की तरह तडपती थी , उस वजह को जानने के लिए , ये सिर्फ प्रेम में धोखा ही नहीं था उसके आत्मसम्मान को धक्का भी लगा था  | सहेलियों ने ही संभाला था , उस समय  सेजल व् गोलू को | उसे भी समझातीं थीं ,” वो तेरे लायक नहीं था , कायर था , आवारा बादल …. क्या कोई वजह होती तब तो बताता, तू भी सोचना छोड़, भूल जा उस बेवफा को  |  धीरे -धीरे उसने खुद को संभाला , एक स्कूल में पढ़ाना  शुरू किया | जिन्दगी की गाडी पटरी पर आई ही थी कि ये मेसेज | थोड़ी देर मंथन के बाद अपने को संयत कर  उसने मेसेज टाइप  करना शुरू किया , ” सौरभ , वक्त के साथ बहुत कुछ बदल जाता है , कल तुम आगे बढ़ गए थे पर आज मैं भी वहीँ खड़ी हुई नहीं  हूँ कि तुम लौटो और मैं मिल जाऊं , अब  मैंने  आत्मसम्मान से जीना सीख लिया है अब मेरी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है | मेसेज सेंड करने के बाद उसके मन में अजीब सी शांति मिली | खिड़की से हल्की -हलकी  रोशिनी कमरे में आने लगी नए साल का नया सवेरा हो चुका था | वंदना बाजपेयी सुरभि में प्रकाशित यह भी पढ़ें … भाग्य में रुपये चोंगे को निमंत्रण चार साधुओं का प्रवचन किसान और शिवजी का वरदान आपको    “ वो व्हाट्स एप मेसेज “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, whatsapp , whatsapp message

सच -सच कहना यार मिस करते हो कि नहीं : एक चिंतन

                         शायद आपको याद हो अभी कुछ दिन पहले मैंने गीता जयंती पर एक पोस्ट डाली थी , जिस में मैंने उस पर कुछ और लिखने की इच्छा व्यक्त की थी | इधर कुछ दिन उसी के अध्यन में बीते | ” जीवन क्या है , क्यों है या सहज जीवन के प्रश्नों का मंथन मन में हो रहा था | इसके विषय में कुछ लेख atootbandhann.com में लिखूँगी , ताकी जिनके मन में ऐसे सवाल उठते हैं, या इस विषय में रूचि हो,  वो उन्हें आसानी से पढ़ सकें | वास्तव में यह लेख नहीं एक परिचर्चा होगी जहाँ आपके विचारों का खुले दिल से स्वागत होगा | सच -सच कहना यार मिस करते हो कि नहीं : एक चिंतन                                   पर आज कुछ लिखने का कारण शैलेश लोढ़ा जी ( तारक मेहता , वाह -वाह क्या बात है , फ्रेम ) की कविता है , जो मैने  यू ट्यूब पर सुनी | कविता का शीर्षक है , ” सच -सच कहना यार मिस करते हो कि नहीं |” दरअसल ये कविता एक आम मध्यम वर्गीय परिवार से सफलता की ऊँचाइयों पर पहुंचे व्यक्ति की है | ये कविता उनके दिल के करीब है | इस कविता के माध्यम  से वो अपने बचपन के अभावों वाले दिनों को याद करते हैं और आज के धन वैभव युक्त जीवन से उसे बेहतर पाते हैं | बहुत ही मार्मिक बेहतरीन कविता है |  हम सब जो  उम्र के एक  दौर को पार कर चुके हैं कुछ -कुछ ऐसा ही सोचते हैं | मैंने भी इस विषय पर तब कई कवितायें लिखी हैं जब मैं अपने गृह नगर में सभी रिश्ते -नातों को छोड़ कर महानगर के अकेलेपन से रूबरू हुई थी | क्योंकि इधर मैं स्वयं की खोज में लगी हूँ इस लिए कविता व् भावनाओं की बात ना करके तर्क की बात कर रही हूँ |  शायद हम किसी निष्कर्ष पर पहुँचे  | आज हम गुज़रा जमाना याद करते हैं पर जरा सोचिये  हम खतों की खुश्बू को खोजते हैं , भावुक होते हैं लेकिन जैसे ही बेटा दूसरे शहर पहुँचता  है तुरंत फोन ना आये , तो घबरा जाते हैं | क्या खत के सुख के साथ ये दुःख नहीं जुड़ा था , कि बेटे या किसी प्रियजन के पहुँचने का समाचार भी हफ़्तों बाद मिलता था | जो दूर हैं उन अपनों से कितनी बातें अनकही रह जाती थीं | क्या ये सच नहीं है कि साइकिल पर चलने वाला स्कूटर और कार के सपने देखता है | इसके लिए वो कड़ी मेहनत करता है | सफल होता है , तो स्कूटर खरीदता है , नहीं सफल होता है तो जीवन भर निराशा , कुंठा रहती है |  वहीँ कुछ लोग इतने सफल होते हैं कि वो मर्सिडीज तक पहुँच जाते हैं | फिर वो याद करते हैं कि सुख तो साइकिल में ही था | लेकिन अगर सुख होता तो आगे की यात्रा करते ही क्यों ? क्यों स्कूटर, घर, बड़ा घर , कार , बड़ी कार के सपने पालते , क्यों उस सब को प्राप्त करने के लिए मेहनत करते | जाहिर है सुख तब भी नहीं था कुछ बेचैनी थी जिसने आगे बढ़ने को प्रेरित किया | किसने कहा था मारुती ८०० लेने के बाद मर्सीडीज तक जाओ | जाहिर है हमीं ने कहा था , हमीं ने चाहा था , फिर दुःख कैसा ? क्योंकि जब उसे पा लिया तो पता चला यहाँ भी सुख नहीं है | कुछ -कुछ ऐसा ही हाल नौकरी की तलाश में दूसरे शहर देश गए लोगों का होता है | पर अपने शहर में, देश में वो नौकरी होती तो क्या वो जाते |अगर वहां बिना नौकरी के रह रहे होते तो क्या वहां पर वो प्यार या सम्मान मिल रहा होता जो आज थोड़े दिन जाने पर मिल रहा है | क्या वहां रहने वाले लोग ये नहीं कहते , “अच्छा है आप तो यहाँ से निकल गए |” पिताजी कहा करते थे , ईश्वरीय व्यवस्था ऐसी है कि दोनों हाथों में लड्डू किसी के नहीं होते | जो हमारे पास होता है उसके लिए धन्यवाद कहने के स्थान पर जो हमारे पास नहीं होता है हम उस के लिए दुखी है | तभी तो नानक कहते हैं , ” नानक दुखिया सब संसारा |”लेकिन हम में से अधिकतर लोग नौस्टालजिया में जीते हैं ….जो है उससे विरक्ति जो नहीं है उससे आसक्ति | मुझे अक्सर संगीता पाण्डेय जी की कविता याद आती है , ” पास थे तब खास नहीं थे |”मृगतृष्णा इसी का नाम है …. हर किसी को दूर सुख दिख रहा है , हर कोई भाग रहा है | ख़ुशी शायद यात्रा में है , जब हम आगे बढ़ने के लिए यात्रा करते हैं ख़ुशी तब होती है … कुछ पाने की कोशिश में की जाने वाली यात्रा का उत्साह  होता है | पर शर्त है ये यात्रा निराशा कुंठा के साथ नहीं प्रेम के साथ होनी चाहिए | यह तभी संभव है  जब ये समझ हो कि ख़ुशी आज जहाँ हैं वहीँ  जो अभी मिला हुआ है उसी में निराश होने  के स्थान पर खुश रहने में हैं | ख़ुशी ये समझने में है कि जब हम -आप अपने बच्चों के साथ ठेले पर  गोलगप्पे खाते हुए पास से गुज़रती मर्सीडीज को देख कर आहे भर रहे होते हैं, ठीक उसी समय वो मर्सीडीज वाला बच्चों के साथ समय बिताते , जिन्दगी के इत्मीनान और लुत्फ़ का आनंद उठाते हुए हम को -आपको देख कर आह भर रहा होता है | तो क्यों ना हम तुलना करने के स्थान पर आज  अभी जो हमें मिला है उस पल का आनंद लेना सीखे … क्योंकि किसी के लिए वो सपना है , भले ही जीवन की दौड़ में वो उससे पीछे हो या आगे , क्योंकि पीछे की यात्रा संभव नहीं | जब ये समझ आ जायेगी तो संतोष आएगा और कुछ भी मिस करने की जरूरत नहीं पड़ेगी | आपको लेख “सच -सच कहना यार … Read more

crazy rich Asians -कुछ गहरी बातें कहती रोमांटिक कॉमेडी

crazy rich Asians  ये नाम है एक इंग्लिश बेस्ट सेलर नॉवेल का का जिसे केविन क्वान ने  २०१३ में लिखा था | नावेल बहुत लोकप्रिय हुआ और २०१८ में इस नॉवेळ पर हॉलीवुड फिल्म भी बनी है | फिल्म ऑस्कर के लिए भी नोमिनेट हुई है | केविन ही फिल्म के निर्माता भी हैं |  कहा  जा रहा है ये पहली हॉलीवुड फिल्म हैं जिसकी पूरी कास्ट एशियन है | केविन  के अनुसार जब भी अमीरों की बात होती है तो हम अमेरिका के बारे में सोचते हैं , परन्तु  ऐशिया और चाइना के लोग भी बहुत अमीर हैं | जिनका निवास ऐशिया में अमीरों के लिए प्रसिद्द शंघाई , टोकियो  या हांगकांग नहीं , सिंगापुर  है | जिसके बारे में ज्यादा बात नहीं होती | केविन खुद एक अमीर घराने से हैं और उपन्यास का अधिकतर हिस्सा  सत्य पर आधारित है | Crazy rich Asians -पुस्तक समीक्षा  यूँ तो उपन्यास  एक romcom यानी कि रोमांटिक कॉमेडी है | जिसमें रिचेल चू और निक यंग की प्रेम कहानी है | जहाँ निक सिंगापुर के बेहद अमीर घराने का एकलौता वारिस है जो फिलहाल अमेरिका में पढाता  है | वहीँ रिचेल अमेरिकी निवासी है  जो आज़ाद ख्याल ,   स्वतंत्र  और सामान्य घर की व्अर्थशास्त्र की प्रोफ़ेसर है | उसके घर में वो और उसकी माँ हैं | पिता की उसके जन्म लेने से पहले मृत्यु हो गयी थी | उसकी माँ ने उसकी परवरिश एक स्वतंत्र महिला के रूप में की है | निक व् रिचेल  की दोस्ती प्रेम में बदलती है | लेकिन अभी तक रिचेल को पता नहीं होता है कि निक इतना अमीर है | ये बात तब खुलती है जब निक उसे अपने एक रिश्तेदार की शादी में सिंगापुर ले जाता है | रिचेल का एक बिलकुल भिन्न दुनिया से सामना होता है | पैसे की दुनिया , मेटिरियलिस्टिक दुनिया | जहाँ पार्टी कल्चर है युवाओं में शराब , कोकेन , और अनैतिकता है , महिलाओं के लुक्स और शारीरिक बनावट से लेकर प्लास्टिक सर्जरी तक की सालाह देते लोग हैं | वहीँ दूसरी ओर घर में चायनीज माएं और बहनें है जो घर को बांधे रखने के लिए अपना जीवन लगा रहीं हैं |  अपने घर के बच्चों से बेखबर उन्हें अमेरिकी सभ्यता से डर है , क्योंकि वहाँ  की महिलाएं अपने कैरियर अपने वजूद को प्राथमिकता देती हैं | उनके अनुसार वो इन घरों में नहीं चल सकतीं | ऐसा ही भय निक की माँ को  रिचेल के लिए भी है | उन्हें लगता है ये लड़की इतना त्याग नहीं नहीं कर पाएगी | उसको पढ़ते हुए मुझे अपने देश  की माएं याद आ जाती हैं जो इस बात से आँखें मूदें रहती हैं कि एक अमेरिका उनकी नाक की नीचे उनके घर में  बस चुका है , वो बस विदेशी लोगों का भय अपने मन में पाले रहती हैं | क्योंकि ये एक कॉमेडी है इसलिए कोई गंभीर बात नहीं है जिस पर विशेष चर्चा हो  | पर कुछ बातें धीरे से सोचने  पर विवश कर देती हैं | जैसे की रिचेल जो उस घर में निक की माँ जैसी  ही बन कर सासू माँ द्वारा स्वीकारे जाने की कोशिश करती है पर सफल नहीं होती , तो उसकी सहेली कहती है , तुम उनकी तरह मत बनो तुम अपनी तरह बनो , तुम्हारी अपनी जो ख़ास बातें हैं उन पर फोकस करो | उनकी तरह बनने की कोशिश में तुम उस घर में आखिरी रहोगी पर अपनी तरह बन कर पहली | तुम्हारी स्वीकार्यता तुम्हारे अपने गुणों की वजह से होनी चाहिए न की ओढ़े हुए गुणों की वजह से | चेतन भगत ने भी एक बार कुछ -कुछ ऐसा ही कहा था , सास पसंद नहीं करती तो …. ये पोस्ट वायरल हुई थी | ये एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि ससुराल द्वारा स्वीकृत होने के लिए लडकियाँ  अपनी बहुत सी कलाएं गुण छोड़ देती है | उन्हें कार्बन कॉपी बनना होता है | माँ भी यही शिक्षा देकर भेजती है , बिटिया लोनी मिटटी रहना | पर क्या एक लड़की वास्तव में लोनी मिटटी रह सकती है या वो एक आवरण ओढती है , उस आवरण के नीचे उसकी कई मूल इच्छाएं , सपने , और जिसे आजकल कहा जाता है … पैशन , दफ़न रहता है |  अभी कुछ दिन पहले की ही बात है एक महिला से बात हो रही थी , उसका कागज़ पर बनाया स्केच मुझे बहुत अच्छा लगा | तारीफ़ करते ही कहने लगी , मेरी पेंटिंग्स की सब सराहना करते थे , कुछ शादी के बाद बनायीं भी थीं पर ससुर जी को दीवाल में कील गाड़ना पसंद नहीं था , इसलिए दूसरों को दे दी |  मैं सोचती रही कि दीवाल पर तो कील नहीं गड़ी पर कितनी बड़ी कील उसके दिल में गड़ी है ये किसी को अंदाजा ही नहीं था | हालानी ये बात सिर्फ बहुओं के लिए ही नहीं है हम सब को अपने गुणों की कद्र करनी चाहिए | हम किसी भी महफ़िल का हिस्सा हों हमारी पहचान हंमारे अपने गुण होते हैं न कि ओढ़े हुए गुण | कौवा और मोर वाली कहानी तो आपको याद ही होगी | दूसरी बात जिसने प्रभावित किया वो है  निक की  चचेरी  बहन एसट्रिड  |अरब ख़रब पति एसट्रिड  एक सामान्य आर्मी ऑफिसर से प्रेमविवाह करती है | वो चाहती है कि उसके पति को इस बात का अहसास भी ना हो की वो उससे कमतर है | इसलिए ना जाने कितनी कंपनियों के सी ई ओ के पद ठुकरा देती है | अपना सारा समय चैरिटी में ही बिताती है |  कभी महँगी चीजों की खरीदारी भी करती है तो भी उन्हें छुपा देती है कि उसका पति उन्हें देख कर आहत ना हो | उसका प्रयास यही रहता है कि उसका पति  उससे ऊपर ही रहे | हमारे देश में भी तो पत्नियां अपने पति का ईगो बचाए रखने के लिए कितना कुछ कुर्बान कर देती हैं | परन्तु जब ऐस्ट्रिड अपने पति के अनैतिक रिश्तों की खबर लगती है तो वो टूट जाती है |  यहाँ एशियन  पुरुषों  की मानसिकता दिखाई गयी है , वो इसका दोष भी … Read more

दोष-शांति

55 वर्षीय राधेश्याम गुप्ता और 58 वर्षीय सीताराम पाण्डेय  एक ही मुहल्ले में रहते थे | दोनों में अच्छी दोस्ती थी | दोनों शाम को रोज साथ -साथ टहलने जाते और दुनिया भर की बातें करते फिर अपना मन हल्का कर वापस लौट आते और अपने घर में व्यस्त हो जाते | पर आजकल उनकी बातों का दायरा दुनिया से सिमिट कर उनके बच्चों तक आ गया था | क्यों ना आता , आजकल वो थोड़े परेशान  जो थे | परेशानी का कारण था उनके बच्चों की शादी  | दोनों बच्चों की शादी की उम्र थी , माता -पिता प्रयास भी बहुत कर रहे थे पर शादी कहीं तय नहीं हो रही थी | अक्सर दोनों की बातचीत में यह रहता कि किसी पंडित को जन्म कुंडली  दिखा कर दोष शांति कर ली जाए तो शायद काम बन जाए |  लघु कहानी -दोष शांति  पहले मिलते हैं राधेश्याम गुप्ता जी के बेटे से … उनका बेटा यूँ तो इंजिनीयर था , प्राइवेट कॉलेज में  बड़ी मुश्किल से एडमिशन करवाया था राधेश्याम जी ने | पर लड़के का मन पढाई में नहीं लगता , हाँ जैसे कैसे करके पास हो जाता | उसका मन रमता था  म्यूजिक कंपोज करने में | ये शौक उसको बचपन से था ,  पिताजी के डर से इंजीनियरिंग तो कर ली पर मन तो आखिर मन ही है, उसे जहाँ जाना है वहीँ जाएगा  | अलबत्ता कॉलेज के दिनों में ही  कुछ दोस्तों के साथ  मिलकर अपना एक बैंड बना लिया , और एक यू ट्यूब चैनल भी शुरू कर दिया |  फिर शुरू हुआ यू  ट्यूब पर अपने बैंड द्वारा कम्पोज की गयी धुनों को डालने का सिलसिला | ये सब काम पिताजी से छुप -छुप कर हुआ था | चैनल के आंकड़े बढ़ ही रहे थे कि इंजीनीयरिंग की डिग्री हाथ आया गयी और पिताजी के कहने  पर नौकरी भी ज्वाइन कर ली |  जैसा कि उसे खुद ही उम्मीद थी , मन नहीं लगा और जनाब महीने भर में नौकरी छोड़ कर आ गए | पिताजी से कह दिया कि वो नौकरी नहीं करेंगे औरर अपने यू ट्यूब चैनल से ही पैसा इतना कमाएंगे की कहीं बाहर जा कर नौकरी की जरूरत ही ना पड़े | शुरू में तो  राधेश्याम जी ने इनकार कर दिया | घर में बहुत कोहराम भी मचाया पर उनका बेटा कान पर हाथ दिए अपने काम में लगा रहा | उसकी मेहनत रंग लायी और उसकी कमाई  इतनी हो गयी कि राधेश्याम जी ने कहना बंद कर दिया | दो साल तो ठीक से कटे पर जब ब्याह की बात शुरू करी तो लड़की वाले दुबारा दरवाजे का रुख ही ना करते | उधर सीताराम जी की बिटिया  निजी कंपनी में काम कर रही थी | लड़की देखने में भी ठीक -ठाक भी थी | पर उसके पास इतना समय नहीं होता कि घर के अन्य काम जो एक लड़की को “वाइफ मेटीरियल ” बनाते  हों सीख सके | देर से ऑफिस से आना और खा कर सो जाना उसकी दिनचर्या थी | माता -पिता देखते थे कि बिटिया अपने सपनों के लिए कितनी मेहनत कर रही है तो कुछ कहते भी नहीं थे | परन्तु जब शादी की बात शुरू हुई तो अनेकों समस्याएं आने लगीं, जैसे  … लड़के की नौकरी दूसरे  शहर में है तो कौन नौकरी छोड़े ? लड़के की सैलरी लड़की से कम है तो कहीं बाद में सामंजस्य में दिक्कत ना हो , क्योंकि लड़की आत्मनिर्भर है इसलिए वो  ऐसे परिवार के साथ कैसे सामंजस्य कर पाएगी जो पूराने दकियानूसी विचारों के हों , शायद ऐसा ही कुछ -कुछ संशय उन लड़के वालों के मन में भी रहता इसीलिये बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी | इस तरह से सीताराम जी व् राधेश्याम जी दोनों ही परेशान  थे | जब मिलते तो अपनी परेशानी बताते कि बच्चों की शादी नहीं हो पा रही है उम्र बढती जा रही है क्या करें |  आम पिताओं की तरह उनकी भी इच्छा थी कि अपने बच्चों को सेटल कर सकें तब चैन से बैठे | दोनों चिंतित तो होते ,  फिर एक दूसरे को दिलासा देते कि हमारे बच्चों के लिए भी भगवान् ने जोड़ा बना ही रखा होगा , जब उसकी इच्छा होगी मिल ही जाएगा | लेकिन इन्ही सब चिंता फिकर की वजह से सीताराम जी को हार्ट अटैक भी आ गया | राधेश्याम जी हॉस्पिटल में कई बार मिलने तो गए थे पर उसके बाद घर आने पर उनकी मुलाक़ात  लगभग ना के बराबर होने लगी , क्योंकि सीताराम जी घर में ही कैद होकर रह गए थे और राधेश्याम जी अपनी समस्या की कैद तो तोड़ने के प्रयास में लगे हुए थे | कुछ समय बाद सीताराम जी भी धीरे -धीरे स्वस्थ हो कर बाहर निकलने लगे | एक दिन रास्ते में जब दोनों एक दूसरे से टकराए तो सीताराम जी को देख राधेश्याम जी ख़ुशी से बोले ,” अरे वाह , आप रास्ते में ही मिल गए , मैं आज आपके ही घर आने वाला था , दरअसल बेटे की शादी तय हो गयी है | सीताराम जी भी बधाई देते हुए चहक कर बोले वाह , ये तो बड़ी अच्छी खबर है | मेरे पास भी एक ख़ुशी की खबर है ,” मेरी बिटिया की भी शादी तय हो गयी है | दोनों मित्र आल्हादित होकर एक दूसरे के गले मिले | फिर सीताराम जी ने पूछा ,” भाई साहब , क्या आपने किसी पंडित को दिखा कर दोष शांति करवाई थी | राधेश्याम जी बोले , ” अरे नहीं , बेटे पर दवाब डाल कर यू ट्यूब चैनल छुडवा  कर नौकरी ज्वाइन कराई | अभी अहमदाबाद में है | नौकरी ज्वाइन करते ही मेरे ऑफिस के सहकर्मी ने ही अपनी बेटी का विवाह प्रस्ताव रख दिया ,  हो गयी दोष शांति ,और आपने ? क्या आपने दोष शांति करवाई थी ?” सीताराम जी बोले , ” बहुत पहले  एक जगह बात चल रही थी जिन्हें पढ़ी -लिखी , सुंदर , गृह कार्य में दक्ष कन्या चाहिए थी , वहीँ बात बन गयी | दरअसल मैंने अपनी बेटी की नौकरी छुडवा दी और हो  गयी दोष शांति | … Read more

जाड़े की धूप महिलाएं और विटामिन डी

जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए कौन है जिसे मौसम फिल्म का ये खूबसूरत गीत ना पसंद हो ? और फिर जाड़े के दिनों में धूप में पड़े रहना भला किसको अच्छा नहीं लगता , उस पर सखियों और मूँगफली का साथ हो तो कहने ही क्या ? एक समय था जब महिलाएं ११ बजे काम से निवृत्त हो कर धूप सेंकने के लिए घर के बाहर चारपाई पर आ धमकती थीं |किसी के हाथ में उन और सलाइयाँ होती , कोई मेथी बथुआ और पालक साफ़ कर रही होती ,कोई खरबूजे के बीज छील रही होती तो कोई बच्चे के मालिश कर रही होती , और साथ में चल रहा होता हंसी ठहाकों का दौर | बीच –बीच में दूसरी खटियाओं पर कम्बल ओढ़े पड़ी बुजुर्ग औरतें कम्बल में से सर निकाल कर उनकी बात –चीत में अपनी विशेष टिप्पणी शामिल करती रहती | बच्चे भी वहीँ पास में खेल रहे होते, और धूप  की गर्माहट के साथ –साथ रिश्तों की गर्माहट से भी मन भर जाता | आज लोग इस तरह धूप  में नहीं बैठते , रिश्तों में भी वो गर्माहट कहाँ बची है ?  जाड़े की धूप  महिलाएं और विटामिन डी  लेकिन ये बात सिर्फ  धूप और रिश्तों  की गर्माहट की नहीं है , धूप की गर्माहट के साथ धूप में बैठने से विटामिन  डी भी मिलता है | ये तो सबको पता है कि विटामिन डी की कमी से हड्डियाँ कमजोर पड़ जाती हैं , कार्डियो वैस्कुलर बीमारियाँ हों सकती हैं व् बच्चों को अस्थमा भी हो सकता है | परन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि विटामिन डी की कमी से अवसाद भी हो सकता हैं | तो अगर आप का मन खिन्न -खिन्न रहता है , कुछ करने का जी नहीं करता , लगता है देर तक पड़े रहे तो विटामिन डी की मात्रा को भी चेक कराये | हो सकता है अवसाद की दवाईयाँ खाने की जगह आप का विटामिन डी खाने से ही काम चल जाए | चेक करने पर पता चल जाएगा कि विटामिन डी की कितनी कमी है |डॉक्टरी  आंकड़ों के मुताबिक़…  ३० से ६० ng/ml विटामिन डी की सामान्य मात्रा है | २१ से २९ ng/ml अपर्याप्त है ( यानी कम तो है पर बहुत घबराने की जरूरत नहीं है ) ० से २० ng/ml कम है ६० ng/ml से ऊपर ज्यादा है | ( जरूरत से ज्यादा विटामिन डी हड्डियों से सम्बंधित समस्याएं उत्पन्न करता है ) कहने का तात्पर्य ये है कि ज्यादा कमी होने पर दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है |ये गोली व् शैशे दोनों के रूप में आती हैं , ज्यादातर विटामिन डी ३  सप्लीमेंट दिए जाते हैं | अगर आपको दावा लेने की जरूरत हो तो डॉक्टर से पूछ लें | वैसे यह वासा युक्त भोजन  के साथ लेने से अधिक मात्रा में अवशोषित होता है | थोड़ी कमी होने पर अपने खाने में विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा , जैसे  ,दूध , दही , मछली, गाय का दूध , सोयाबीन का दूध , कॉड  लिवर आयल , मशरूम , अनाज , ओटमील आदि से   बढाई जा सकती है फिर  अपने आँगन में आने वाली धूप तो है ही  | धूप में बैठने के लिए ११ से१ तक  का समय सबसे मुफीद है , कपड़ें  हलके हों तो बेहतर हैं | एक बार और आंकड़ों की शरण में जाकर आपको बता दें कि एक स्वस्थ व्यक्ति को ६०० IU विटामिन की एक दिन में आवश्यकता होती है | एक बात ख़ास तौर पर युवा महिलाओं से …. क्योंकि आज कल कई बार युवा महिलाएं ये मान कर कि, “ धूप में बैठने से रंग साँवला हो जाएगा” ,धूप में बैठने से परहेज करती हैं | जाड़े की  धूप का रंग पर इतना असर नहीं होता , और अगर कुछ होता भी है तो उसके लाभ के आगे नगण्य है | वैसे , धूप की तरफ पीठ करके भी बैठा जा सकता है | यूँ विटामिन डी का चेहरे से कोई खास लगाव नहीं है , हाथों-पैरों में भी धूप लेने से विटामिन डी मिल ही जाता है | एक एक और खास बात J आप सब से बाँटना चाहती हूँ  जो अभी कुछ दिन पहले एक लड़की ने कही | हुआ यूँ कि सब धूप में बैठे मूंगफलियों का आनंद ले रहे थे | १० मिनट बाद वो महिला अन्दर जाने लगी | मैंने विटामिन डी की महत्ता बताते हुए उसे रोकना चाहा तो उसने कहा कि मेरा तो रंग ज्यादा साँवला है मेरा तो दस मिनट में उतना विटामिन डी बन गया जितना गोरे लोगों का दो घंटे में बनेगा | आश्चर्य की बात है कि ये भ्रम अधिकतर लोगों को होता है | लोगों को लगता है कि जिनका रंग सांवला है उन्हें बस थोड़ी ही देर धूप में बैठना चाहिए जबकि सच्चाई ये है कि अगर आपकी त्वचा सांवली है तो गोरी त्वचा वालों के मुकाबले सही मात्रा में विटामिन डी बनाने के लिए आपको दस गुना ज्यादा धूप की जरूरत होगी | ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपके स्किन पिगमेंट्स प्राकर्तिक सनस्क्रीन की तरह काम करते हैं , और सांवले लोगों में ये पिगमेंट्स अधिक मात्रा में होते हैं इसलिए सांवले लोगों को अधिक देर धूप में रहना होता है |    कुछ अध्यन बताते हैं कि सांवली त्वचा वाले अधिक उम्र के वयस्कों में विटामिन डी की कमी होने की अधिक संभावना  हो सकती है। मोटे तौर पर जहाँ गोरे  लोगों का काम १० –पंद्रह मिनट में चल जाता है वहीँ काले लोगों को एक घंटा धूप में बैठना चाहिए | बूढ़े लोगों को और भी देर तक  धूप में बैठना चाहिए क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ –साथ त्वचा द्वारा सूर्य की किरणों से विटामिन डी बनने की क्षमता कम हो जाती है | अच्छा है इसी उम्र से धूप में बैठ कर विटामिन डी की मात्रा को दुरुस्त रखें | अब बात आंकड़ों की है तो बता दें कि ये आँकड़े सर्दियों की धूप  के हैं , गर्मियों में थोड़ा कम से ही  काम चल जाएगा |  फिर … Read more