स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला
हम सब को गुस्सा आता है | ऐसा परिवार के अन्दर तब होता है जब हमें कोई ऐसा कुछ ख देता है जो हमें बहुत चुभ जाता है | और हम भी लगते हैं उसे खरी खोटी सुनाने | इससे बात बनती नहीं है बल्कि और बिगड़ जाती है | कई बार गुस्से में ऐसा कुछ कह देते हैं कि बाद में पछताना पड़ता है | वैज्ञानिकों की सुने तो एक घंटा क्रोध करने में उतनी शक्ति लगती है जितनी सात घंटे मेहनत का काम करने में | फिर भी हम गुस्सा करते रहते हैं और खुद भी परेशान होते रहते हैं व् रिश्ते भी बिगाड़ते रहते हैं | ऐसा तो नहीं है कि कभी किसी को गुस्सा न आये | पर गुस्से की उर्जा का सही प्रयोग कैसे करें इसके लिए माँ ने जीवन की किताब से पढ़कर एक बहुत अच्छा तरीका अपनाया | स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला बचपन से अब तक मैंने माँ को कभी गुस्सा करते व् चिल्लाते नहीं देखा | ऐसा नहीं है कभी उन्हें कोई बात बुरी न लगी हो, या गुस्सा न आया हो | कई बार दूसरे लोगों की , यहाँ तक की पिता जी की बातें भी उन्हें बहुत तकलीफदायक लग जातीं और उनकी आँखे डबडबा जाती , पर वो कोई जवाब न दे कर वहां से हट जातीं | थोड़ी ही देर में हम देखते माँ ने कपड़ों की अलमारी , या रसोई घर या स्टोर को खाली कर उसकी सफाई शुरू कर दी है | उस समय वो कम बोलतीं बस उनका ध्यान अपने काम पर होता | शाम तक उनकी सफाई भी हो जाती और उनका मूड भी ठीक हो जाता | बड़े होने पर मैंने एक दिन माँ से पूंछा , “ माँ आपको गुस्सा नहीं आया , उन्होंने ऐसा कहा , वैसा कहा , आप तो सफाई में लग गयीं | मिसिंग टाइल सिंड्रोम माँ ने उत्तर दिया , ऐसा नहीं है , कि मुझे बुरा नहीं लगा , पर झगडे के लिए वैसे भी दो लोगों का होना जरूरी है , मैं उस बारे में और सोच कर बात को बढ़ाना नहीं चाहती थी | इसलिए उस समय सारा ध्यान सफाई में लगा देती हूँ | शाम तक जब काम सही खत्म होता है तो मुझे ये सोच कर ख़ुशी होती है कि मैंने अपनी ऊर्जा बेकार बातों को सोचकर बर्बाद नहीं होने दी , काम का काम हो गया और मन इतनी देर में काफी हद तक उस बात को नज़र अंदाज कर चुका होता है | आज माँ इतनी मेहनत के काम नहीं कर सकती पर आज भी जब उन्हें कोई दुःख घेरता है तो एक कॉपी में राम-राम लिखने लगती है | थोड़ी देर में उनका ध्यान उस बात से हट जाता है | आज स्ट्रेस मेनेजमेंट पर बहुत बातें होती हैं | बहुत किताबें हैं , बहुत सेमीनार होते हैं | माँ ने ऐसी कोई किताब नहीं पढ़ी थी | उन्हें बस इतना पता था कि दुःख या क्रोध में बहुत ऊर्जा होती है … बस इसे सकारात्मक दिशा में लगा दो … जिसका परिणाम एक काम के पूरे होने में होगा और काम पूरा होने की ख़ुशी में मूड अपने आप ठीक हो जाएगा | हमारी पुरानी पीढ़ी ने इतनी किताबें नहीं पढ़ी थी , पर जीवन का ज्ञान उनका हमसे कहीं ज्यादा बेहतर था | उन्हें पता था कि जब दिमाग बोलना रोकना संभव न हो तो शरीर को इतना थका दो कि दिमाग कुछ बोल ही पाए और थोड़ी देर में बात आई गयी हो जाए | सही बात है कि जो ज्ञान अनुभव से आता है उसे आत्मसात करना किताबी ज्ञान को आत्मसात करने से ज्यादा सहज है |इसलिए स्ट्रेस कम करने का माँ का फार्मूला मुझे बहुत बेहतर लगा | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … निर्णय लेने में होती है दिक्कत तो अपनाएं भगवद्गीता के सात नियम तीन गेंदों में छिपा है आपकी ख़ुशी का राज अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढाये सिर्फ 15 मिनट -power of delayed gratification जीवन आपको ““कैसे लगा अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | FILED UNDER – personality development, positive thinking, stress management