तीन गेंदों में छिपा है आपकी ख़ुशी का राज

                  जीवन यहाँ पर इतना मेहरबान नहीं है कौन है जो इस शहर में परेशांन  नहीं है अभी कुछ दिन पहले एक गाँव में जाना हुआ | हवाओं में भी एक सुकून सा था , बरगद पर झूले थे , तालाब के पास बतियाती औरतें थीं , मर्तबान में मदर्स रेसिपी का नहीं खालिस माँ के हाथ का बना आचार होता है और होती है अपनेपन की एक सौंधी खुशबु  जो शहरी जीवन  में मयस्सर नहीं | यहाँ  तो हर आदमी बस भागा  जा रहा है …. और , और , और ‘और ‘की कभी न खत्म होने वाली दौड़ में | शहर की आपाधापी भरी जिंदगी में बेहतर जीवन स्तर रुपया पैसा होने के बावजूद भी क्या कभी -कभी यह नहीं लगता की हम क्यों खुश नहीं हैं , हम किसलिए भाग रहे हैं ? क्या आपको भी लगता हैं  की आप के पास रुपया -पैसा , नाम शोहरत  सब कुछ है फिर भी आप खुश नहीं हैं | तो प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि आखिर हमारी ख़ुशी है कहाँ ? और हम इसे कैसे पा सकते हैं | तीन  गेंदें जिनमें  छिपा है आपकी ख़ुशी का राज  एक बार की बात है एक आदमी जो पहले कुछ भी काम नहीं करता था , यूँही सारा समय बर्बाद कर दिया करता था , अपने गुरु के दिखाए कर्म के  मार्ग पर चल कर सफल व्यवसायी बन गया था ,दूर -दूर तक उसके नाम के चर्चे थे | इतना सब होने के बाद भी वो खुश नहीं था | एक दिन वो अपने गुरु के पास गया और बोला गुरु जी आप ने मुझे बहुत अच्छा ज्ञान दिया कि मैं अपने काम पूजा समझ कर करूँ मैंने आपके कहे अनुसार ही अपने काम पूजा समझ कर किया | आज  मैं दिन में १७ -१८ घंटे  काम करता हूँ | मैं एक सफल बिजनेस मैन हूँ | मेरे पास एक बड़ा घर है , बड़ी-बड़ी दो गाड़ियां हैं , जिनके नाम भी मैं पहले नहीं जानता था | मेरे बच्चे देश के नामी स्कूल में पढ़ते हैं | कुल मिला कर मेरे पास सब कुछ है | फिर भी मैं खुश नहीं हूँ | कृपया मुझे बताये मैं खुश कैसे रह सकता हूँ ? गुरूजी उसको देख कर मुस्कुराए | फिर अन्दर जा कर तीन गेंदे उठा कर ले आये | उनमें से एक गेंद काँच  की थी एक चीनी मिटटी की और एक रबर की | उन्होंने तीनों गेंदें उस आदमी को देते हुए कहा कि ये तीनों गेंदें लो और इन्हें लगातार उछालते और पकड़ते रहो | आदमी ने तीनों गेंदे ले ली और वो उनको बारी बारी से उछालने लगा | कुछ ऐसा सिस्टम बन गया कि हर समय उसके हाथ में दो गेंदे रहती और एक हवा में | काफी देर तक ऐसा होता रहा | अचानक एक स्थिति ऐसी आई कि उसने जो चीनी मिटटी की गेंद उछाली थी वो उसे कैच नहीं कर सकता था | क्योंकि उसके एक हाथ में रबर की गेंद व् दूसरे में  कांच की गेंद थी |  चीनी मिटटी की गेंद अगर नीचे गिर जाती तो वो टूट जाती | लिहाज़ा उसने वही किया जो ऐसी स्थिति में कोई भी समझदार आदमी करता | उसने अपने हाथ से रबर की गेंद गिरा दी व् चीनी  मिटटी की गेंद को पकड़ लिया | अब उसके एक हाथ में चीनी मिटटी की गेंद व् दूसरे में कांच की गेंद थी | रबर की गेंद जमीन पर पड़ी थी | वो आदमी गुरु के पास गया और बोला गुरु जी , मैं आप का दिया काम पूरा  नहीं कर सका | गुरूजी ने कहा जब तुम चीनी मिटटी की गेंद नहीं पकड़ पा रहे थे तो तुमने उसे क्यों नहीं गिर जाने दिया | तुमने रबर की गेंद को क्यों गिर जाने दिया ? वो व्यक्ति बोला गुरूजी ,” चीनी मिटटी की वो गेंद बहुत कीमती थी अगर वो गिर जाती तो वो टूट जाती | कांच की गेंद भी गिरने पर टूट जाती | रबर की गेंद तो इतनी कीमती भी नहीं थी , गिरने पर टूटती भी नहीं | फिर अगर आप इजाज़त देते तो मैं उसे फिर से उठा लेता और खेल शुरू कर देता | इसलिए मैंने रबर की गेंद को गिर जाने दिया पर मैंने इन  दो गेंदों को टूटने से बचा लिया | गुरूजी ने उसकी तरफ देख कर कहा ,”  तो फिर निश्चित तौर पर तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया | वो व्यक्ति आश्चर्य से गुरूजी की और देखते हुए बोला ,”कैसे ? गुरूजी ने शांत स्वर में कहा ,   ” ये तीन गेंदे तुम्हारी तीन प्राथमिकताएं हैं | चीनी मिटटी की गेंद तुम्हारा स्वास्थ्य तुम्हारा परिवार और तुम्हारे करीब के रिश्तेदार हैं |  ये तुम्हारे जीवन में सबसे कीमती हैं | कांच की गेंद  तुम्हारा काम तुम्हारी नौकरी  है जो तुम्हें अपनी जरूरतें पूरा करने का धन देती हैं | रबर की गेंद तुम्हारी लग्जरी हैं … बड़े से बड़ा मकान , महंगी से महंगी कार , महंगे से महंगा मोबाइल ये सब  न भी हों तो तुम्हारा काम चल सकता है | जब तक संतुलन चलता रहे अच्छी बात है , जब संतुलन न बन पाने लगे तो रबर की गेंद को छोड़ देना चाहिए | जीवन में ख़ुशी का सारा खेल इन तीन गेंदों का यानी प्राथमिकताओं का है |  आप खुश क्यों नहीं हैं ?   मित्रों , इंसान खुश क्यों नहीं है ? क्योंकि वो संतुलन न बना पाने की स्थिति में चीनी मिटटी की गेंद को छोड़ देता है | यानी वो अपने स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं देता , अपने परिवार व् रिश्तों पर ध्यान नहीं देता | स्वास्थ्य खराब होते ही सब कुछ पाया हुआ बेमानी लगने लगता है | मोटिवेशनल  गुरु संदीप माहेश्वरी अक्सर कहते हैं जब उन्होंने बहुत पैसा कमा  लिया तब उनका ध्यान अपने स्वास्थ्य पर गया | मोटापा बढ़ गया था , कोलेस्ट्रोल हाई लेवल पर था , परिवार में झगडे होने लगे | रिश्ते टूटने की कगार पर आ गए | ऐसे में उन्हें अंदेशा हुआ की वो रबर की बॉल  को पकड़ने के … Read more

क्या हम बच्चों में रचनात्मकता विकसित कर रहे हैं ?

अभी कुछ दिन पहले एप्पल के co-founder Wozniak ने भारत के बारे में ट्वीट  किया कि भारत में सफलता का पैमाना ही एक अच्छी नौकरी है | हर भारतीय की कोशिश रहती है कि वो पढाई करे MBA करें और एक अच्छी से नौकरी प्राप्त करे , जिससे हो सके तो वो अच्छा घर या ज्यादा  से ज्यादा मर्सिडीज खरीद सके | उनमें Creativity का आभाव है | तुरंत ही इस बात पर ट्विटर वॉर “ छिड गया जिसमें टॉप इंडियन लोगों ने रिप्लाई किया | इसमें Wozniak ने अपने कथन से आगे बढ़ कर यह भी कह दिया कि इंडिया में इनोवेशन हो ही नहीं सकता | यहाँ तक की इनफ़ोसिस भी एक सीमा से आगे नहीं जा सकती | आनंद महिंद्रा ने इसका उत्तर दिया कि आप अगली बार आइये सुर बदले हुए मिलेंगे | क्या हम बच्चों को रचनात्मक शिक्षा दे रहे हैं ?                                 आनंद महिंद्रा का उत्तर हम भारतीयों के आहत स्वाभिमान पर मलहम तो लगता है | पर क्या सच में सुर बदले हुए मिलेंगे ? क्या हम अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा दे रहे हैं जहाँ रचनात्मक स्वतंत्रता हो |मेरे आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब एक शिक्षिका ने मुझसे कहा कि कला साहित्य में जाने वाले बच्चों में रचनात्मकता होती है गणित और विज्ञान की और जाने वाले बच्चों रचनात्मकता नहीं होती | अफ़सोस की ज्यादातर लोगों की रचनात्मकता की परिभाषा ही हिली हुई है | जब कोई ड्रेस डिजाइनर कोई नयी डिजाइन बनता है तो हम उसे रचनात्मकता मान लेते हैं पर जब कोई मोबाइल में कोई नया एप बनता है तो हम उसको क्रीएटीव नहीं मानते | हम नहीं मानते की वो वो विज्ञानं के क्षेत्र में की गयी रचनात्मकता है | एक कल्पना और उसको साकार रूप में बदलने में किया गया प्रयास | इसी कारण  हम अपने बच्चों को , छोटे पर , जब वो कोई खिलौना तोड़ कर कुछ सीखने का प्रयास कर रहा होता है उसकी पिटाई कर देते हैं | हम वैज्ञानिक रचनात्मकता को सिरे से नकार देते हैं |    स्कूल में एक –एक नंबर के चलते युद्ध में दो –चार नंबर कम लाने पर बच्चों को सरेआम अपमानित तो कर दिया जाता है , पर क्या कभी कुछ अलग हट के उत्तर लिखने वाले बच्चों को सम्मानित किया जाता है | कई स्कूल में तो टीचर का सख्त आदेश होता है कि जो मैंने उत्तर लिखवाया है वही लिखना है , अगर उससे हट कर लिखा तो नंबर कट जायेंगे | तो बच्चों पर दवाब होता है कि वो वही उत्तर लिखे , क्योंकि अगर नंबर कम आये तो उन्हें सरेआम बेइज्जत होना पड़ेगा | चाहते न चाहते हर बच्चा “ याद करने की क्षमता “ की परीक्षा देता है “ समझ दारी की नहीं |  अपनी एक सहेली का उदाहरण याद आ रहा है | बात तब की है जब हम B.SC.part -1 में थे | मेरी केमिस्ट्री की टीचर कुछ पढ़ा रहीं थी | उनके किसी प्रश्न पर मेरी सहेली ने एक डिटेल उत्तर दिया |  टीचर ने उसे  कुछ अलग हट कर सोचने के लिए प्रोत्साहित करने के स्थान पर उससे  कहा , आपको बहुत ज्यादा आता है , मुझसे भी ज्यादा आता है, तो मेरे स्थान पर आ कर दिखाना … वो सहेली आज डिग्री कॉलेज में पढ़ाती है | यकीनन वो उनके स्थान पर आ गयी है , क्योंकि वो भी नए उत्तरों को प्रोत्साहित नहीं करती है |  केवल पुस्तकीय ज्ञान से नहीं होगा बच्चे का सम्पूर्ण विकास     हम अपने बच्चों को याद करने और नंबर लाने में इतना उलझा देते हैं कि १२ th तक बच्चों ने बैंक नहीं देखा , उन्हें बीज बोना , पौधे उगाना नहीं आता , दुकान पर जा कर सामान  खरीदना नहीं आता | इसे बच्चों का सर्वांगीण विकास  नहीं कह सकते | कुछ माता –पिता जो ये सब सिखाते है उन्होंने भी पढाई का प्रेशर कम नहीं किया है | उन्हें लगता है कि बच्चा ये सब सीखने के साथ एक –एक लाइन रटा हुआ उत्तर भी दे , ऐसे में बच्चे खुद को मशीन सा अनुभव करने लगते हैं |जो उनके शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डालता है|  छोटे शहरों में हालत बहुत ख़राब है | अंग्रेजी का भूत वहां लोगों के सर पर सवार है | वो अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों  में पढाना  चाहते हैं , उसके लिए वो मोटी फीस भी दे रहे हैं पर दुर्भाग्य से ज्यादातर टीचर्स को स्वयं ही अंग्रेजी नहीं आती | वो बच्चों को गलत अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं | छोटे शहरों के बच्चे हिंदी को छोटी नज़र से देखने के सामाजिक दवाब के कारण न तो सही हिंदी सीख पा रहे हैं न सहीं अंग्रेजी … यानी हम अभी भी भारत को क्लर्कों का देश बनाने पर तुले हुए हैं | माता -पिता कर रहे हैं बच्चों का क्राफ्ट वर्क   अगर आप का बच्चा स्कूल में पढता है तो आप को पता होगा कि ज्यादतर  बच्चों का क्राफ्ट का वर्क कौन करता है ? ज्यादातर बच्चों का क्राफ्ट का वर्क उनके माता –पिता या बड़े भाई बहन करते हैं | अगर ये न कर सके तो हर शहर में ऐसे दुकाने खुली हैं जो बच्चों के  क्राफ्ट वर्क पैसे ले कर तैयार कर देते हैं | आखिर क्यों ऐसा होता है ? उत्तर साफ है … बच्चों की अनगढ़ कलात्मकता स्कूलों में नहीं चलेगी | नर्सरी के बच्चे से परफेक्ट डिजाइन की उम्मीद है ताकि टीचर और स्कूल की वाहवाही हो , बच्चे की कलात्मक रचनात्मकता शैशव अवस्था में ही दम तोड़ दे तो क्या फर्क  पड़ता है | हम विकास में क्यों पिछड़ रहे हैं ? एक आम अमेरिकन बच्चा अपने कपडे धो लेता हैं , फील्ड वर्क कर लेता है ,मशीन सुधार लेता है , बागवानी कर लेता है | जबकि आम भारतीय बच्चा सिर्फ पढता है | ये सारे काम घर वाले उसके लिए कर देते हैं | कुछ नया घर वाले नहीं सीखने देते , स्कूल वाले  सीखने नहीं देते , फिर बच्चा सीखे  कहाँ से ? धीरे –धीरे उसमें कुछ नया करने की सीखने … Read more

अप्रैल फूल – याद रहेगा होटल का वो डिनर

अप्रैल फूल है तो आयातित त्यौहार पर हम भारतीय भी अपने जीवन में हास्य और रोमांच जोड़ने के लिए इसे बड़े उत्साह से मानते हैं| मेरे द्वारा अप्रैल फूल मनाने की शुरुआत बचपन में ही हो गयी थी, जब हम सहेलियाँ एक दूसरे को कहती, ये देखो छिपकली, वो देखो कॉक्रोच, फिर जैसे ही अगला डरता, कहने वाला “अप्रैल फूल” कह कर हँस देता| धीरे –धीरे मेरी उम्र तो बढ़ने लगी पर अप्रैल फूल की उम्र ‘ये देखो छिपकली, वो देखो कॉक्रोच’ से आगे बढ़ी ही नहीं| मैंने भी उसे पुराने फैशन की तरह भुला दिया, पर आज से 4-5 साल पहले अप्रैल फूल ने दुबारा मेरे जिंदगी में दस्तक दी|  अप्रैल फूल – याद रहेगा होटल का वो डिनर मार्च का आखिरी सप्ताह चल रहा था, एक सुबह चाय पीते हुए पतिदेव ने मेरा हाथ थाम  कर कहा, “अगले सोमवार को हम दोनों होटल अशोका में डिनर पर चलेंगे|” फाइव स्टार में जाने की बात सुन कर मैं खुश हो गयी| मैंने पतिदेव से कहा , “ठीक है, मैं बच्चों से कह दूँगी |” पतिदेव बोले, “बच्चे नहीं, सिर्फ तुम और मैं| मैं घर से दूर थोड़ा समय तुम्हारे साथ अकेले में बिताना चाहता हूँ|  कितना थक जाती हो तुम और मैं भी अपने काम में व्यस्त रहता हूँ| इतने सालों में तुमने कितना कुछ किया है मेरे लिए, इस घर के लिए इसलिए| कुछ समय तुम्हें घर –गृहस्थी के झंझटों से दूर रिलैक्स कराना चाहता हूँ| बस तुम और मैं और हमारा पुराना समय|” पढ़िए -तुम्हारे पति का नाम क्या है  किसी मध्यम वर्गीय भारतीय स्त्री के लिए ये प्रस्ताव बहुत अजीब सा है| अमूमन तो बच्चे होने के बाद कोई पति –पत्नी, बच्चों के बिना अकेले किसी बड़े होटल में डिनर पर जाते नहीं| वहीं जैसे–जैसे शादी पुरानी होती जाती है तो साथ में भाई-बहन और उन के बच्चे भी जाने लगते हैं| फिर हमारी शादी तो पड़ोसियों के बच्चों को साथ ले जाने तक पुरानी हो चुकी थी| अटपटा तो बहुत लगा| मन में ख्याल आया कि लगता है पतिदेव ने “अच्छे पति कैसे बनें” या “पत्नी को खुश कैसे रखे” जैसी कोई किताब पढ़ ली है या फिर मेरी लिखी किसी नारी की व्यथा–कथा पढ़ ली होगी| खैर जो भी हो, हमारे धर्म में प्रायश्चित करने वालों को मौका देने का प्रावधान है| आज के माहौल में मैं धर्म विरुद्ध बिलकुल भी नहीं जाना चाहती थी|  हामी भरते हुए मैंने बस इतना पूंछा, “उस दिन तो सोमवार है, क्या आप छुट्टी लेंगे?” पतिदेव बोले, “नहीं मैं टेबल बुक करा दूंगा| मैं ऑफिस से पहुँच जाऊँगा और तुम घर से|” मैंने पति की तरफ देखा उनकी आँखों में सच्चाई नज़र आई|  चुपके-चुपके हुई मेकअप की तैयारी  पतिदेव के ऑफिस जाते ही मैंने ये बात फोन कर के अपनी बहन को बतायी| वो तो ख़ुशी के मारे उछल पड़ी, “वाओ! क्या बात है, जीजाजी अभी भी तुम्हारी इतनी कद्र करते हैं! वर्ना इस उम्र में पतियों को अखबार और टी.वी की बहसों से छुट्टी ही नहीं मिलती”| थोड़ी देर में भाभियों और अन्य बहनों के फोन आने लगे| सब हमें इस बात का अहसास दिला रहे थे कि हम कितने खास हैं जो हमें शादी के इतने साल बाद भी ये अवसर मिला| उस दिन हमें पहली बार अहसास हुआ कि शादी के कई साल बाद पति का अपनी पत्नी को अकेले डिनर पर ले जाने का प्रस्ताव मध्यम वर्गीय भारतीय समाज में किसी पत्नी के लिए ये किसी दिवा स्वप्न से कम नहीं है| तभी पड़ोसन आ धमकी, शायद उन्होंने हमारी फोन पर की हुई बातें  सुन ली थी| वो चहक कर बोली, “भाभीजी आप को मैं तैयार करुँगी| मैंने झेंपते हुए कहा, “अरे तैयार क्या होना है|” वो बोली, “अरे, ऐसे मौके बार–बार थोड़ी ही न आते हैं| बिलकुल परी सी तैयार हो कर जाइएगा| सोमवार में पाँच दिन बाकी थे| हम चुपके–चुपके साड़ी, मैंचिंग चूड़ियाँ, बिंदी, पर्स, लिपस्टिक सेलेक्ट करने में जुट गए| लिपस्टिक के शेड्स ट्राई करते–करते मेरे होंठ ही छिल गए| खैर नियत दिन आया| मैं सज धज कर घर से बाहर निकली| पड़ोसिनों ने ‘आल दा बेस्ट’ कह कर हाथ हिलाया| मैं किसी राजकुमारी की तरह मुस्कुराते हुए टैक्सी में बैठ गयी| मेरा सजधज कर होटल पहुंचना   होटल पहुँच कर देखा पति देव तो आये ही नहीं हैं| रिसेप्शन पर पता किया तो हमारे नाम पर कोई टेबल भी बुक नहीं थी| मैं खुद ही आधा घंटा लेट थी, उस पर टेबल भी बुक नहीं, पतिदेव भी नदारद| मुझे लगा जरूर अपनी पुरानी आदत के अनुसार जनाब टेबल बुक कराना भूल गए होंगे| मैंने भी तय कर लिया कि मैं भी फोन नहीं करुँगी| जब आयेंगे तब कहूँगी, “मुझे नहीं करना आप के साथ डिनर-विनर, आप और आप का भुल्लकड़पन आपको ही मुबारक |” मन ही मन गुस्सा होते हुए मैं होटल के बाहर खड़ी पतिदेव का इंतज़ार करने लगी| मेरे दिमाग में वो सारी घटनाएं एक–एक करके  रील की तरह चलने लगीं जब–जब पति कुछ भूले थे| समय बढ़ता जा रहा था और मेरे गुस्सा भी|  वो घबराहट भरे पल  मैंने घड़ी देखी| दो घंटे बीत चुके थे| अब तो मुझे थोड़ी घबराहट हुई| अभी तक कोई फोन भी नहीं किया| क्या बात है? मैंने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा तोड़ते हुए पतिदेव को फोन लगाया, फोन उठा ही नहीं| मेरी घबराहट और बढ़ी| मैं फोन पर फोन लगाने लगी, पर कोई फोन नहीं उठा| मुझे लगा शायद पतिदेव घर पहुँच कर बच्चों को साथ ला रहे होंगे| मैंने बच्चों को फोन किया, वो भी नहीं उठा| घबरा कर मैंने पड़ोसन को फोन करके घर में देख कर आने को कहा| थोड़ी देर बाद पड़ोसन का फोन आया, वो बोली, “भाभी जी, घर से तो कोई आवाज़ आ नहीं रही है| लगता है कोई है नहीं|”  पढ़िए- हमने भी करी डाई ईटिंग अब तो मेरी घबराहट की कोई सीमा नहीं थी| दिल जोर-जोर से धडकने लगा| मैंने घर के लिए ऑटो किया| मैं लगातार फोन किये जा रही थी, और लगातार ‘नो रिप्लाई’ आ रहा था| अनिष्ट की आशंका से मेरे आँसू बहे जा रहे थे और सब सकुशल हो कि मेरी मनौतियाँ १०१ रुपये से १००१ रुपये, १६ सोमवार, ११ … Read more

अहसास

                          कहते हैं बच्चे और बूढ़े एक सामान होते हैं … बात -बात पर जिद्द करना मचलना , गुस्सा दिखाना और अपनी ही बात से मुकर जाना बढती उम्र में न जाने क्यों आने लगता है | जब कोई बच्चा होता है तो उसे अहसास होता है कि माता -पिता हमारे लिए  कितना कर रहे हैं … पर क्या बुजुर्गों को भी ये अहसास होता है | Ahsaas-Short story in hindi                                                       80 बरस से ऊपर की उम्र , खाया -पिया कुछ पचता ही नहीं  , फिर भी न जाने क्यों जानकी देवी की जुबान साधारण खाने को देखते ही इनकार कर देती , हर समय अच्छे खाने  की फरमाइश करती | कभी बेसन के सेव , कभी पूरियाँ , कभी घी भरा सोहन हलवा ,   यही खाती | खा तो लेतीं पर पचा न पातीं | दस्त लग जाते | डॉक्टर ने भी तला -भुना खाने से मना  किया था , परन्तु जानकी देवी मानती नहीं , मनपसंद खाना न मिलने पर, जिद्द पकड़ लेती ,  पूरा घर सर पर उठा लेती | सबके सामने बहू  को दोष देते , तोहमत लगाते हुए कहतीं ,” आजकल की बहुएं , बस चार रोटी तवे पर डाल कर खुद को कमेरा समझने लगती हैं | एक हमारा ज़माना था , मजाल है कि सास का कहा टाल  जाएँ | बताओ आज कहा था , २ , ४ पकौड़ी बना दे , वो भी नहीं बनायी | ऊपर से डॉक्टर का बहाना ले लेती हैं | ये तो मेरा बेटा श्रवण पूत है जो  साथ रह रही है , वरना कब की उसे ले कर अलग घर  बसा लेती |                                शाम तक बात बेटे किशोर के पास पहुँच ही जाती | हमेशा की तरह किशोर अपनी पत्नी मृदुला को डांटते हुए कहता ,” क्या तुम मेरी माँ को उनके मन का बना कर खिला नहीं सकती | माँ ने मेरे लिए कितना कुछ किया है , मैं उनके लिए उनकी इच्छा का खिला भी नहीं सकता | लघुकथा – सीख मृदुला तर्क देती ,” मैं भरसक कोशिश करती हूँ  , माँ  की सेवा करने की , वो मेरी माँ जैसी ही हैं , पर क्या आप को पता है माँ का पेट कितना ख़राब रहता है , सादा खाना तो पचा नहीं पाती हैं , भारी खाना  खाते ही दस्त लग जाते हैं | कपडे गंदे हो जाते हैं | कई बार तो बाथरूम तक जा ही नहीं पातीं , बुजुर्ग हैं , पैंटी पहनने की आदत नहीं है , गुसलखाने तक जाते -जाते सारा आँगन गन्दा हो जाता है , मुझे साफ़ करना पड़ता है | ऐसे  ही दस्त छूट जाएँ तो कोई बात नहीं , कम से कम अम्माँ बदपरहेजी कर के उसे आमंत्रित तो न करें | पत्नी का उत्तर  सुनते ही किशोर जी आगबबबूला हो जाते , जब मैं बचपन में कपडे गंदे कर देता था , तब माँ ने मेरे भी कपडे धोये  हैं , आँगन धोया है , अपना मुँह का कौर छोड़ कर मेरी गन्दगी साफ़ की है और हम उनके लिए इतना भी नहीं कर सकते , पकी उम्र है पता नहीं कब साथ छोड़ दें | अब अंतिम समय में उन्हें न सताओं , तुम्हें शर्म  नहीं आती ऐसा कहते हुए  , अपनी माँ होती तो कहतीं , सब कर लेतीं … रहने दो तुम न करो , मैं ही नौकरी छोड़ अपनी माँ की सेवा करूँगा | पति की बात पर मृदुला खुद ही शर्मिंदा  हो जाती | शायद उसे ऐसा नहीं कहना चाहिए था | कल को उसकी भी बहू  आएगी | शरीर का क्या भरोसा , उसका भी ऐसा ही हो सकता है | उसने अपना मन कड़ा कर लिया और वो काम सहजता से करने लगी जो एक माँ अपने बच्चे के लिए करती है | जानकी देवी भी मनपसंद  खाना मिलने से खुश थी , सब से  कहतीं , मेरा बेटा  बड़ा लायक है , मुझे किसी चीज की कमी नहीं होने देता | बेसन हो , प्याज हो , मिर्च हो सब इंतजाम रसोई में किये रहता है | बहू  को क्या करना है , बस घोलना है और कढ़ाई में चुआ देना है , करछुल से हिला कर निकाल देना है | पर मृदुला अब इन बातों को सुनी -अनसुनी कर देती |  लघुकथा – चॉकलेट केक                            दो साल बीत गए | मृदुला की माँ की की मृत्यु हो गयी | रोते -कल्पते वो मायके चली गयी | माँ की सेवा का दायित्व किशोर जी पर आ गया | तीन दिन ही बीते कि उन्होंने मृदुला को फोन कर दिया ,” सुनो , माँ की तबियत ठीक नहीं है , मुझसे अकेले नहीं संभाला जा रहा है , दस्त इतने है की कपडे तो गंदे होते ही हैं , गुसलखाने तक जा ही नहीं पाती , सारा आँगन गन्दा कर देती हैं , कैसे करूँ मैं  ये सब , उबकाई सी आ जाती है , खाना भी नहीं चलता , मुझसे नहीं होगा ये सब , तुम आ जाओ , तेरहवीं को फिर चली जाना | जानकी देवी जी जो दूसरे कमरे से ये सब वार्तालाप सुन रही थीं , उनकी आँखे डबडबा गयीं | आज उन्हें पहली  बार अहसास हुआ कि उनकी सेवा उनका बेटा नहीं बहू  कर रही थी | अगली ही ट्रेन से मृदुला फिर  जानकीदेवी की सेवा के लिए हाज़िर थी |  उसके द्वारा पैर छूते ही जानकी देवी उसे सीने से लगते हुए बोली ,” तुम थक कर आई हो , पहले थोडा आराम कर लो , फिर  मूँग की दाल की खिचड़ी बना लेना, अब खाना पचता नहीं, स्वाद का क्या है , इस उम्र में वो स्वाद तो आएगा नहीं , थोडा सा नीबू का रस डाल लूँगी , चल जाएगा “| … Read more

मुझे शक्ति बनना होगा

                                  साल में दो बार नवरात्र  आती हैं | जहाँ हम सबका प्रयास रहता है कि पूजा -पाठ द्वारा देवी माँ को प्रसन्न करें व् उनका आशीर्वाद प्राप्त करें | आश्चर्य है कि शक्ति की उपासना करने वाले देश में स्त्री आज भी अबला ही है | वो कैसे सबला बनें |  इसका समाधान क्या है ? प्रस्तुत है इसी विषय पर एक कविता … माँ !मुझे शक्ति बनना होगा माँ आज तुम्हारे दरबार में सर झुकाते हुए देख रही हूँ अपने पिता को जिन्होंने मेरी शिक्षा यह कह कर रोक दी थी कि ज्यादा पढ़ा देंगे  ढूंढना पड़ेगा बहुत पढ़ा-लिखा  लड़का देख रही हूँ अपने भाई को जिसने कभी पलट कर माँ से नहीं पूंछा कि मेरी थाली में खीर और बहन की थाली में खिचड़ी क्यों ? नहीं पूछा कि  मुट्ठी भर चावल के दानों को आँचल में बाँध कर विदा कर देने के बाद क्यों खत्म होजाता है उसका इस घर पर अधिकार मैं देख रही हूँ अपने पति को जिन्होंने अपने घर की मर्यादा व् इज्ज़त के कभी न खुलने वाले डब्बे में मेरे सारे अरमानों , सपनों व् स्वतंत्रता को कैद कर लिया कभी  ठहर कर सोंचने का प्रयास नहीं किया उनके द्वारा हवा में उछाले गए दो जुमलों ‘करती क्या हो दिन भर ” और ‘कमाता तो मैं ही  हूँ “ की तेज धार से रक्त रंजित हो जाता है मेरा आत्मसम्मान मैं देख रही हूँ अपने पुत्र को जिसकी रगों में दौड़ रहा है मेरा दूध व् रक्त फिर भी न जाने क्यों बढते  कद के साथ बढ़ रहा है उसमें अपने पिता की सोंच का घनत्व जो मुझे श्रद्धा से सर झुकाकर प्रणाम  करने के बाद भी यह कहने से नहीं झिझकता कि लड़कियाँ तो ये या वो काम कर ही नहीं सकती है मैं देख रही हूँ सामाज के हर वर्ग , हर तबके ,हर रंग के पुरुषों को जो तुम्हारी उपासना करते हैं जप ध्यान करते हैं पर उन सबके लिए अपनी माँ – बहन , बेटी के अतरिक्त हर स्त्री मात्र देह रह जाती है जिसे भोगने की कामना है कभी देह से , कभी आँखों से और कभी बातों से मैं देख रही हूँ तुम्हारे सामने नत हुए इन तमाम सिरों को जो तुम्हें खुश करने के लिए धूप, दीप , आरती ,और नैवेद्ध  कर रहे हैं अर्पित ये तमाम बुदबुदाते हुए होंठ पकड़ा रहे हैं तुम्हें अपनी मनोकामनाओं की सूची कर रहे हैं इंतज़ार तुम्हारी एक कृपा दृष्टि का माँ , आज तुम्हारे मंदिर में इन घंटा -ध्वनियों के मध्य तुम्हारी आँखों से बरसते हुए तेज को देखकर मैं समझ रही हूँ कि थाली में सजा कर नहीं मिलते अधिकार अपनी दयनीय दशा पर आँसू बहाने के स्थान पर स्वयं ही अपने नाखूनों से फाड़ना होगा समाज द्वारा पह्नाया गया अबला का कवच कि अपने आत्म सम्मान की रक्षा के लिए मुझे स्वयं शक्ति बनना होगा हां ! मुझे शक्ति बनना होगा वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … पतंगें साल बदला है हम भी बदलें नारी मन प् कवितायें मायके आई हुई बेटियाँ आपको  कविता  “मुझे शक्ति बनना होगा  “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  filed under- navraatre, devi , durga , shakti , women 

सीख

         यूँ तो हम सब का जीवन एक कहानी है पर हम पढना दूसरे की चाहते हैं | लेकिन आज मैं अपनी ही जिंदगी की एक ऐसी कहानी साझा कर रही हूँ जो बेहद दर्दनाक है पर उस घटना से मुझे जिंदगी भर की सीख मिली | जब एक दुखद घटना से मिली जिंदगी की बड़ी सीख बात तब की है जब मैं स्कूल में पढ़ती थी | स्कूल जाने के रास्ते में एक रेलवे गेट पड़ता था| दरअसल रेलवे गेट के दूसरी तरफ तीन स्कूल थे | तीनों का टाइम सुबह 8 बजे था| अक्सर  7:40 पर गेट बंद हो जाता था | हम तीनों स्कूल के बच्चे कोशिश करते थे कि 7 : 40 से पहले ही रेलवे लाइन क्रॉस कर लें , क्योंकि अगर एक बार गेट बंद हो गया तो वो ८ बजे ही खुलता | उस गेट से स्कूल की दूरी करीब 5-7 मिनट थी पर  फिर भी हमें लेट मान लिया जाता | हमारे स्कूल की प्रिंसिपल  बच्चों को गेट के अन्दर तो घुसने देतीं पर दो पीरियड क्लास में पढने को नहीं मिलता | लेट होने पर हम बच्चे स्कूल के प्ले ग्राउंड में किताब ले कर बैठ जाते व् खुद ही पढ़ते | कॉन्वेंट स्कूल होने के कारण बच्चों पर कोई टीचर हाथ नहीं उठती थी |  रेलवे गेट और रूपा से दोस्ती  वहीँ दूसरे स्कूल में सख्ती कम थी वहाँ  बच्चों को डांट  खा कर अन्दर जाने मिलता था | हम लोगों को सख्त हिदायत थी कि रेलवे लाइन क्रॉस न करों, इसलिए कभी लेट हो जाने पर हमें इंतजार करने और स्कूल में सजा पाने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं था | बच्चे तो बच्चे ही होते हैं , २० मिनट शांति से बैठना मुश्किल था | तीन स्कूल के कई बच्चे इकट्ठे हो जाते, कुछ पैदल जाने वाले बच्चे भी रुक जाते | बच्चों की बातचीत व् खेल शुरू हो जाते | ऐसे में हमारी दोस्ती दूसरे रिक्शे में जाने वाली नेहा व् रूपा से हो गयी | कभी जब हम साथ –साथ लेट होते तो आपस में बाते करते , कभी लंच का आदान –प्रदान भी हो जाता | रूपा से मेरी कुछ ज्यादा ही बनती थी| तब  फोन घर-घर नहीं थे , हमारा स्कूल भी एक नहीं था , इसलिए जितनी दोस्ती थी उतनी ही देर की थी|   बहुत देर तक रेलवे गेट का बंद रहना  मैं  क्लास 4 थी ,उसी  समय नेहा और रूपा की क्लास में बहुत सख्त क्लास टीचर आयीं , वो लेट आने वाले बच्चों को सारा दिन क्लास के बाहर खड़ा रखती | अनुशासन की दृष्टि से ये अच्छा प्रयास था पर बच्चे लेट होने  से डरने लगे | कई बार बच्चे रिक्शे से उतर कर तब रेलवे लाइन क्रॉस कर लेते जब ट्रेन दूर होती| बच्चे ही क्यों बड़े भी रेलवे लाइन पार कर लेते | ऐसे ही एक दिन रेलवे गेट बंद था| नेहा रूपा और हम सब गेट खुलने का इंतज़ार कर रहे थे | 7:55 हो गया था | ट्रेन अभी तक नहीं आई थी| लेट होना तय था | कुछ बच्चे रेलवे लाइन पार कर स्कूल पहुँच चुके थे | कुछ बच्चे डांट खाने के भय से वापस लौट गए थे | हमारी उलझन बढ़ रही थी |  तभी नेहा ने रूपा  से कहा ,” चलो , रेलवे लाइन क्रॉस करते हैं , वर्ना मैंम  बहुत  डांटेंगी |  ट्रेन आने का समय हो चुका था | रूपा रेलवे लाइन क्रॉस नहीं करना चाहती थी | उसने कहा , छोड़ो , अब क्या फायदा ? नेहा जोर देते हुए बोली ,” अभी ट्रेन आ रही हैं फिर पाँच मिनट तक ट्रेन पास होगी , फिर जब गेट खुलेगा तो भीड़ बढ़ जाएगी हम पक्का लेट हो जायेंगे | रूपा ने स्वीकृति में सर हिलाया | नेहा आगे बढ़ गयी और लाइन तक पहुँच गयी | रूपा भी अधूरे मन से उसके पीछे -पीछे पहुँच गयी | ट्रेन आती हुई दिख रही थी | लोग बोले हटो बच्चों ,ट्रेन आ रही है, पर सवाल पाँच मिनट देरी का था | रूपा ने कहा रहने दो , नेहा बोली जल्दी से भाग कर पार कर लेंगें , मैं तो जा रही हूँ | नेहा पार हो गयी | हम लोगों को एक दर्दनाक चीख सुनाई दी |  ट्रेन के गुज़रते ही नेहा रोती हुई दिखाई दी , रूपा का कहीं पता नहीं था | हम कुछ समझ पाते तब तक रिक्शे वाले ने रिक्शा आगे बढ़ा दिया |घबराए से हम स्कूल पहुंचे |  वो दर्दनाक खबर  स्कूल पहुँचते ही खबर आ गयी कि दूसरे स्कूल की एक बच्ची ट्रेन से कट गयी है | ट्रेन उसे २०० मीटर तक आगे घसीटते हुए ले गयी है | ओह रूपा … क्या अब वो हमें दुबारा नहीं दिखेगी | हम सब लेट हुए बच्चे जो स्कूल ग्राउंड में थे रूपा को याद कर रोने लगे | थोड़ी देर में कन्डोलेंस मीटिंग हुई , इस हृदयविदारक घटना  के कारण  रूपा  को श्रद्धांजलि देते हुए स्कूल की छुट्टी  कर दी गयी | अपनी स्पीच में प्रिंसिपल सिस्टर करेसिया ने कहा कि ये घटना बहुत दुखद है पर ट्रेन के इतना करीब आने पर रेलवे लाइन क्रॉस करना उस बच्ची की गलती थी | आप सब लोग थोडा पहले घर से निकलिए पर रेलवे लाइन तब तक क्रॉस ना करिए जब तक ट्रेन न निकल जाए |   मेरे अनुत्तरित प्रश्न  मेरे आँसू थम नहीं रहे थे | दुःख की इस घडी में बाल मन में एक अजीब सा प्रश्न उठ गया, नेहा जाना चाहती थी , रूपा  नहीं जाना चाहती थी , वो तो गलत काम नहीं कर रही थी , फिर ईश्वर ने उसे अपने पास क्यों बुला लिया | अगर दोनों गलत थे तो भी दोनों को पास बुलाते सिर्फ रूपा का क्यों ? मैंने ये बात अपनी क्लास टीचर को बतायी | उन्होंने मुझे चुप कराते हुए कहा ,” बेटा ये ईश्वर की मर्जी होती है , कब किसको बुलाना है , किसको बचाना है वो जानता है | तो क्या ईश्वर अन्याय करता है ? मैंने पश्न किया , वो बोलीं , ” सब पहले से लिखा होता है | … Read more

अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये -how to improve your memory and concentration

बच्चों की एग्जामिनेशन सिरीज में आज हम बच्चों के लिए याददाश्त व् एकाग्रता बढ़ने के टिप्स ले कर आये हैं |क्योंकि ये टिप्स दिमाग की कार्यविधि पर निर्भर हैं इसलिए ये केवल बच्चों के काम के ही नहीं हैं इसे गृहणी , ऑफिस में काम करने वाले , व्यापर करने वाले या कोई भी अन्य काम करने वाले अपना  सकते हैं | exam के दिन आने वाले हैं बच्चे अक्सर मुझसे पूछते हैं अपनी concentration power कैसे बढ़ाये | हम कैसे थोड़ी देर में ज्यादा याद कर कर लें , कैसे हमें पढ़ा हुआ याद रहे | क्योंकि ये बच्चों के लिए बहुत जरूरी विषय है इसलिए मैंने इस पर लेख लिखने का मन बनाया | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये how to improve your memory and  concentration यादाश्त व् एकाग्रता बढाने के लिए आपको सबसे पहले समझना होगा कि हमारा दिमाग कैसे काम करता हैं |हमारा दिमाग एक मेमोरी बैंक की तरह काम करता है , इसे समझने के लिए हम अपने दिमाग को तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं या कह सकते हैं कि दिमाग की तीन लेयर होती है ( हालांकि मैं ये स्पष्ट करना चाहती हूँ कि ब्रेन एनाटोमी  में ऐसे कोई लेयर नहीं होती है , इसे brain की psychology के आधार पर सबसे पहले फ्रायड ने तीन लेयर मॉडल  प्रस्तुत किया ,उस समय भले ही इसे नहीं समझा गया पर धीरे -धीरे इसे व्यापक स्वीकार्यता मिली | ये तीन लेयर हैं … conscious mind या चेतन मन  sub conscious mind या अवचेतन मन  unconscious mind या अचेतन मन                                   इसे समझने के लिए एक त्रिभुज का इस्तेमाल भी कर सकते हैं | त्रिभुज में सबसे ऊपर का हिस्सा चेतन मन है जो दिमाग का केवल 10 % है , इसका काम रोजमर्रा के अनुभव लेना है जो पांच इन्द्रियों द्वारा लिए जाते हैं | ये  उसी के आधार पर जयादातर काम करता है | इसे कह सकते हैं कि ये जहाज का कप्तान है जो निर्णय लेता है , कई निर्णय तुरंत लेता है और कई निर्णय लेने में ये पूर्व सूचनाओं की मदद लेता है | पूर्व सूचनाएं दिमाग की नीचे की लेयर्स में होती हैं | ये ही वो हिस्सा है जो बाहरी दुनिया से बोल कर , देख कर , लिख कर आदि आदि तरीकों से संपर्क स्थापित करता है |  उसके बाद अवचेतन मन आता है जो सबसे बड़ा हिस्सा है | ये दिमाग का करीब 50 -60 % होता है | इसमें वो यादें इकट्ठा होती है है जो हाल की हैं , जो चेतन मन ने देखा सुना महसूस किया है वो यादें इसमें स्टोर हो जाती हैं | जब चेतन मन को किसी जानकारी की जरूरत होती है तो वो  अवचेतन मन से ले लेता है | अवचेतन मन सोंचता नहीं है वो केवल स्टोर करता है |   फिर आता है अचेतन मन  जो कि 30-40% होता है , इसमें पुरानी गहरी यादें दबी होती हैं , जिन्हें हमे लगता है कि हम भूल गए , पर जरूरत पड़ने पर वो याद आ जाती हैं | इसके आलावा यहाँ हमारी आदतें व् विश्वास रहते हैं | हम नहीं चाहते हुए भी वही  करते हैं जो कि बचपन में हमारी आदत व् विश्वास के रूप में वहां इकट्ठा है | कई बार आपने देखा होगा कि  जो किशोर पुत्र अपने पिता का बात -बात पर विरोध करता है पर बड़ा होने पर वह भी पिता की तरह ही हो जाता है , क्योंकि तब उसका चेतन मन तर्क करना बंद कर देता है और अचेतन मन वही फीड बैक देने लगता है जो बचपन में स्टोर हुआ था | यहाँ पर ख़ास बात ये है कि अचेतन का अर्थ बेहोश नहीं है , ये केवल एक नाम दिया हुआ है |                            कम्प्यूटर की भाषा में चेतन मन की बोर्ड और मोनिटर है , अवचेतन मन RAM है और अचेतन मन हार्ड डिस्क है |  कैसे काम करते हैं ये तीनों मन   दिमाग के तीनों हिस्से आपस में मिल कर काम करते हैं , यानि इस तरह से चेतन मन जो फैसला लेता है वो अपने अचेतन  , व् अवचेतन से सूचनाएं निकाल -निकाल कर लेता है | ये तालमेल सरवाइवल के लिए जरूरी है |                                    इसका सबसे सटीक उदाहरण Infant stage है | एक छोटा बच्चा  जिसका चेतन मन पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ है वो अवचेतन व् अचेतन मन में स्टोर मेमोरी के आधार पर निर्णय लेता है … जैसे वो समझ लेता है की बोतल की निपल से उसका पेट भरता है माँ की गोदी में वो सुरक्षित महसूस करता है या रोने पर कोई उसके पास आता है |  बड़े होने पर चेतन मन किसी निर्णय को लेने से पहले अपने राडार अवचेतन मन तक घुमाता है जिसमें हाल की मेमोरी स्टोर होती है, वहां से पूर्व अनुभव के आधार पर वह ज्ञान लेता है और फिर फैसला लेता है | अचेतन मन में गहरे स्थित विश्वास व् आदतें होती हैं,   जिन्हें बदलना आसान नहीं है | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता  बढ़ाने के लिए क्या करें                                                                  दिमाग की तीन हिस्सों को जानने  के बाद हमें ये समझना होगा कि दिमाग कैसे चीजों को याद रखता है | सोंचिये जब हम सुबह से  अपने स्कूल , ऑफिस या कहीं और जाते हैं तो न जाने कितनी चीजें हमें दिखाई देती हैं , न जाने कितनी गाड़ियाँ , घर , लोग … चेतन मन उन्हें देखता है , पर क्या वो सब हमें याद रहता है … नहीं | दरअसल अगर हमें सब याद रहने लगे तो भी दिमाग पगला जाएगा | इसलिए चेतन मन केवल जरूरी डेटा ही स्टोर करता है | ये जरूरी डेटा स्टोर करने के … Read more

रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे

रीता १२ वी क्लास में पड़ती है | उसी की एक रिश्तेदार  मिताली जिसके पिता नहीं थे, के घर में  बड़ी चोरी हो गयी | मिताली ने रीता से आर्थिक व् भावनात्मक मदद माँगी| रीता तैयार हो गयी | वो उसके साथ यहाँ-वहाँ  उसके रिश्तेदारों के घर गयी | समय  होने या न होने पर भी उसकी फोन कॉल्स उठा कर उसका दुखड़ा सुनती | उसे सांत्वना देती | उसके लिए नोट्स लिखती| रीता धीरे–धीरे अपनी पढ़ाई में पिछड़ने लगी | नतीजा रीता का १२ वी का रिजल्ट खराब हो गया | दुखी रीता ने जब मदद माँगी तो मिताली ने समयाभाव का बहाना कर दिया |                  रितेश का दोस्त भयंकर संकटों से घिरा था | रितेश हर समय उसकी मदद को तैयार रहता | वो हर समय उसके आँसू पोछने के लिए खड़ा रहता | उसके पूरे समय पर उसके दोस्त का कब्ज़ा हो गया | अपनी दोस्त की परेशानियाँ सुलझाते –सुलझाते रितेश इतना इमोशनली ड्रेन्ड  हो चुका होता की अपने परिवार की छोटी –मोटी समस्याओ में भावनात्मक सहारा न दे पता | लिहाज़ा उसकी पत्नी के साथ झगडे होने लगे | जब परिवार बिखरने लगा तो उसने उस भावनात्मक टूटन के दौर में अपने दोस्त से मदद मांगी | पर वह दाल में नमक से ज्यादा साथ कभी नहीं दे पाया|               मधु की पड़ोसन ३–३ घंटे उसे अपने पति की बेवफाई के किस्से सुनाती | मधु अपना काम रोक कर , कभी बच्चों का होम वर्क कराते से उठ कर उसकी बात सुनती | उसके बुलाते ही मधु चल देती लिहाजा कभी सब्जी जलती, कभी दूध उफनता| ऊपर से कभी फोन उठाने में देरी हो जाती या अपना कोई काम बता कर बाद में आने को कहती तो उसकी सहेली तरह –तरह के इलज़ाम लगाती “ भाई मेरी क्यों सुनोगी मैं तो पहले से ही दुखी हूँ, सह लूंगी | एक तरह से वो उसे अपना स्ट्रेस दूर करने के लिए पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल कर रही थी |                            ये सिर्फ तीन उदाहरण हैं पर अगर आप भी  जरूरत से ज्यादा  ईमानदार , समानुभूति पूर्ण , विश्वास पात्र और भरोसेमंद हैं और साथ ही किसी की समस्या से  पूरी वफादारी के साथ जुड़ कर सुनना पसंद करते हैं|  तो ऐसा कोई न कोई किस्सा आप का भी होगा |  मेरा भी कुछ ऐसा ही उदहारण था | ये तब समझ में आया जब एक कडवा अनुभव हुआ और बहुत कुछ हाथ से निकल गया | वो हाथ से निकली हुई चीज थी ….. मेरा समय जिसका मैं सदुप्रयोग कर सकती थी | मेरे पति व् बच्चों की खुशियाँ जो वो मेरे साथ बाँटना चाहते थे| मेरी सेल्फ रेस्पेक्ट जो बुरी तरह से कुचली जा चुकी थी | और तब मैंने बहुत पहले पढ़े हुए टोनी गेकिंस के इस वाक्य का अर्थ महसूस किया …  आप लोगों को  अपने द्वारा स्वीकृति देकर , रोक कर व् समर्थन करके सिखाते हैं की वो आप के साथ कैसा व्यवहार करे |  मुझे लगता था की दूसरों के प्रति जरूरत से बहुत ज्यादा नरम , विश्वासपात्र व् दयालु होकर मैं संतुष्टि का अनुभव कर रही हूँ | मुझे लगता था की दुनिया में सब लोग उतने ही अच्छे हैं जितना मैं सोचती हूँ | मुझे लगता था यही मेरा बेसिक स्वाभाव हैं | पर अफ़सोस परिणाम दुखद आये | मैंने असीम दर्द का अनुभव किया | मैंने महसूस किया की मेरी अपनी सेहत ,खुशियाँ व् जरूरतें पिछड़ रहीं हैं | दूसरों की जरूरतों को पूरा करने में अतिशय व्यस्त रहने के कारण मेरे पास अपने लिए समय ही नहीं रहा | मैंने महसूस किया की हर रिश्ते में परफेक्ट रहने का असंभव प्रयास करने के कारण मेरे पास हमेशा अपने लिए समय कम रहा | मैंने महसूस किया की मेरे परफेक्ट स्वाभाव को जान कर लोगों ने मुझे १०० % समय  की उम्मीद की| वो मुझसे कभी ९९ % आर संतुष्ट नहीं हुए | जबकि वो खुद उन्ही परिस्तिथियों में मुझे २ % तक नहीं दे पाए| यह सबसे पीड़ा दायक था की हर रिश्ते को बचाने के लिए मैंने जान से ज्यादा प्रयास किया | पर जब मेरे प्रयासों में कमी हुई और उन्हें लगा की हमारा रिश्ता टूट रहा है तो उन्होंने अपनी तरफ से कोई प्रयास नहीं किया | उन्हें हमारे रिश्ते की कदर नहीं थी |   रिश्ते-नाते :अपनी सीमाएं कैसे निर्धारित करे ?                                                       अगर आप भी इस पीड़ा दायक अनुभव से गुज़रे हैं तो आप के सामने भी यह प्रश्न खड़ा हुआ होगा की  दूसरों की मदद करनी चाहिए पर किसकी और कितनी ? यही वो समय है जब आप महसूस करते हैं की आप को अपनी उर्जा हर समय ,हर किसी के लिए नहीं बल्कि सही जगह पर खर्च करनी चाहिए | आप को भी अपनी सीमाएं निर्धारित करनी चाहिए | सीमाएं निर्धारित करने के फायदें  जिस जीवन शैली को आप जी रहे होते हैं उसे अचानक से  बदलना  बहुत मुश्किल होता है | पर जब आप मन कड़ा  कर लेते हैं तो थोड़ी परेशानियों  के बाद आप पाते हैं की …………        अब आप की उर्जा उन पर खर्च नहीं हो रही है जो सिर्फ आपका फायदा उठाना चाहते हैं | वो  सुरक्षित हैं आप के लिए , जिससे आप ज्यादा वाइब्रेंट , खुश , सेहतमंद , उर्जावान महसूस कर सकते हैं | ·      आप के पास समय है  आप के परिवार के लिए , और उन सब के लिए जो आप को       वास्तव में प्यार करते हैं |  जो आपको खुश देखना चाहते हैं आपके प्रति केयरिंग , व्       मदद गार हैं | ·         आप पाते हैं की आप जैसे –जैसे सीमाएं निर्धारित करना सीखने लगते हैं आप  अपना       काम ज्यादा कौशल से कर पाते हैं | ·         आप दूसरों को आप से ज्यादा इज्ज़त से पेश आने को विवश करते हैं | ·         आप ना कहना सीखते हैं | ·         आप … Read more

जब भगवान् राम ने पढ़ाया कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण पाठ

                                आप सोंच रहे होंगे प्रभु श्री राम  , मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, कौशल्या नंदन श्रीराम  दया के सागर  भगवान् राम का कार्पोरेट जगत से क्या मतलब हो सकता है| ये सोंचना ठीक वैसा ही है जैसे  सेब के नीचे गिरने का गुरुत्वाकर्षण से क्या संबंध हो सकता है| युनिवर्सल लॉ एक समान ही होते हैं, एक सामान ही काम करते हैं | हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थ छोटी -छोटी कथाओं के माध्यम से जीवन के वो पाठ पढ़ाते  हैं जो कार्पोरेट ही क्या जीवन के हर क्षेत्र में काम करते हैं |  चाहे वो रिश्ते हों या राजनीति या फिर कार्पोरेट जगत , परन्तु हम धार्मिक किताबों को धर्म के रूप में ” पूजा टाइम ” में पढ़ कर रख देते हैं ,उनमें दिए गए गहन दर्शन को न तो समझने की कोशिश करते हैं न ही उनसे लाभ उठा पाते हैं | आपको ये जान कर आश्चर्य होगा की हमारे इन्ही ग्रंथों से सूत्र निकाल -निकाल कर आज कार्पोरेट जगत में इस्तेमाल किये जा रहे हैं , M .BA में पढाये जा रहे हैं | आज एक ऐसे ही पाठ की चर्चा करेंगे , जिससे आप अपने व्यवसाय , अपने परिवार के मुखिया के तौर पर रिश्तों में और एक नेता के रूप में अपनी पार्टी या संगठन में इस्तेमाल करेंगे तो  आपके व्यापार , परिवार और संघटन का विकास निश्चित है |       जब भगवान् राम ने पढ़ाया कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण पाठ                                बात तब की है जब प्रभु राम की सेना संमुद्र के   इकट्ठी थी | लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बनाने की तैयारी कर रही थी | सभी वानर बड़े- बड़े भारी-भारी  पत्थर उठा कर समुद्र में डाल रहे थे | उसी समय  गिलहरी जिसकी क्षमता मुश्किल से ५० ग्राम भर उठाने की    थी , १००    ग्राम भर का कंकण बड़ी मेहनत से  कर ला रही थी | तभी  वानर ने उसे देख लिया वो जोर से हँसा  , उसने गिलहरी से कहा ,” अरी गिलहरी ये क्या कर रही है | ये पुल तो बड़े -बड़े पत्थरों से बनेगा , तेरे इस कंकण का भला क्या होगा , तू बेकार ही इसे उठाये घूम रही है |  परे हट , कहीं हम लोगों के पैर के नीचे दब   कर मर न  जाए , कहते हुए उसने गिलहरी को उठा कर दूर फेंक दिया | सारे वानर हँसने लगे | गिलहरी लगभग उडते हुए भगवान् राम के चरणों के पास आ कर गिरी | गिलहरी की आँखों में आँसू थे | उसे अपने फेंके जाने  दुःख नहीं था , उसे लग रहा था   कि भगवान् राम का काम करने में वो असमर्थ है | भगवान् राम ने गिलहरी को  उठाया , उसकी पीठ पर हाथ फेरा , कहते हैं उसी से उसकी पीठ पर तीन धारियाँ बनी | भगवान् राम उसे उठा  कर वानरों के पास आये और उनसे कहा तुमने गिलहरी के योगदान को कम कैसे कहा | उसका योगदान तुमसे भी ज्यादा है |    किसी भी कार्य में सबसे महत्वपूर्ण भावना है | उसी दिन भवान राम ने एक महत्वपूर्ण सूत्र दिया भगवान्र राम ने वानरों से कहा तुम पर्वत  उठा सकते हो पर उठा केवल बड़े -बड़े पत्थर ही रहे हो और ये गिलहरी जो केवल  ५० ग्राम ही उठा सकती थी वो १०० ग्राम यानी अपनी क्षमता से दोगुना उठा रही है , और तुम अपनी क्षमता से आधा काम कर रहे हो | देखना सिर्फ तुम्हारे बड़े पत्थरों से ही पुल न बनेगा उसके उठाये छोटे कंकण भी पुल को बनाने में बहुत काम आयेंगे | और यही हुआ  भी | बड़े पत्थरों से पुल तो बन गया पर उनके    बीच के गैप गिलहरी जैसे छोटे-छोटे जानवरों के द्वारा उठाये गए पत्थरों से ही  भरे | पढ़िए -सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन कैसे है ये कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण पाठ                                               भगवान् राम की इस कथा से कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण सूत्र निकला …  आपके द्वारा किया गया कार्य          ……………………………………..        X  100 आपकी कार्य क्षमता अब गिलहरी की क्षमता ५० ग्राम वजन उठाने की थी वो १०० ग्राम उठा रही थी , तो फोर्मुले के अनुसार 100 —-   X  100= २०० %    गिलहरी अपनी क्षमता का २०० % दे रही थी | 250               ये फार्मूला कार्पोरेट जगत में  इस तरह से काम करता है कि एक अच्छे  कम्पनी लीडर की ये खासियत है कि वो अपनी कम्पनी से हर सदस्य से उसकी क्षमता का  सर्वाधिक उपयोग करवा ले | इसके लिए जरूरी है कि वो उसकी   काम करने की इच्छा को पहचाने | हो सकता है कि शुरू में उसके पास इतनी क्षमता न हो , प्रतिभा न हो पर अगर  उसमें इच्छा है तो इन दोनों चीजों का विकास हो सकता है |  इसलिए उनकी इच्छा को पहचानना और उसे इनाम् देकर  प्रोत्साहित करना टॉप लीडर का गुण होना चाहिए | कई बार टॉप लीडर अपनी कंपनी के कुछ प्रतिभाशाली नेतृत्व की शिकार हो जाती है जो अपनी क्षमता का आधा ही दे रहे होते हैं | ये वो लोग है जो सोंचते हैं कम्पनी उन पर टिकी है , ये छोटे प्रतिभाशाली लोगों को पनपने का मौका ही नहीं देते | वो निराश हो जाते हैं उनकी इच्छा शक्ति खत्म हो जाती है |  कई बार बड़ी पोस्ट पर बहुत प्रतिभाशाली लोगों के बैठने के बावजूद कम्पनी घाटे में चली जाती है क्योंकि हर काम का महत्व होता है | छोटे लेवल पर उतासहीनता  के कारण हर छोटा काम देर से होता है कम अच्छा होता है उसका असर पूरी कम्पनी पर पड़ता है | ( यहाँ एक बात खास है कि अगर कोई टॉप पोस्ट पर बैठा व्यक्ति अपना २०० % दे रहा है तो उसके महत्व को अगर कम आँका गया … Read more

फेसबुक की दोस्ती

            जिसे देखा नहीं जाना नहीं उससे भी दिल के रिश्ते इतने गहरे जुड़ जाते हैं , इस बात का अहसास फेसबुक से बेहतर और कहाँ हो सकता है| अक्सर फेसबुक की दोस्ती को फेसबुकिया  फ्रेंड्स कह कर हलके में लिया जाता है | इसमें है ही क्या? जब चाहे अनफ्रेंड कर दिया जब चाह अनफॉलो और जब चाह तो ब्लाक, कितना आसान लगता है सब कुछ, पर क्या मन भावनाएं इतनी आसानी से ब्लाक हो पाती  हैं|  कहानी -फेसबुक की दोस्ती                                  समय कब पलट जाता है कोई नहीं जानता | आज निकिता और आरती एक दूसरे की नाम बी नहीं सुनना चाहती , शक्ल देखना तो बहुत दूर की बात है | एक समय था जब दोनों पक्की सहेलियाँ  हुआ करती थीं | ये दोस्ती फेसबुक से ही शुरू हुई थी| निकिता एक संघर्षरत लेखिका थी | वो फेसबुक पर लिखती थी  कवितायें , गीत, लघु कथाएँ, लेख और आरती जी भर -भर के उन पर  लंबे लम्बे कमेंट किया करती | धीरे-धीरे फेसबुक की दोस्ती फोन की दोस्ती में बदल गयी | भावनाओं ने भावनाओं को जब तब पुकार उठतीं | दोनों में अक्सर बातें होती , सुख -दुःख साझा होते | मन हल्का हो जाता |  दोस्ती की मजबूत बुनियाद तैयार होने लगी| एक दूसरे से मीलों दूर होते हुए भी दोनों एक दूसरे के बहुत करीब होती  जा  रहीं थी| बस एक क्लिक की दूरी पर |  निकिता के यहाँ क्या आया है सबसे पहले खबर आरती को मिलती | आरती की रसोई में क्या पक रहा है उसकी खुश्बू निकिता को सबसे पहले मिलती , भले ही  आभासी ही क्यों न हो | दिल का रिश्ता ऐसा होता है जिसमें दूर होते हुए भी पास होने का अहसास होता है | फिर वो दोनों तो एक दूसरे के दिल के करीब थे| कॉमन फ्रेंड्स में भी उनकी मित्रता के चर्चे थे |                                       पता नहीं  उनकी दोस्ती को नज़र लग गयी या  किस्मत के खेल शुरू हो गए| आरती एक बहुत अच्छी पाठक थी वो  कोई लेखिका नहीं थी, न ही उसका लेखिका बनने का इरादा था | पर कभी -कभी  कुछ चंद लाइने लिख कर डाल  दिया करती उसका लिखा भी लोग पसंद ही करते |                    एक दिन आरती ने एक कविता लिखी , वो कविता बहुत ज्यादा पसंद की गयी | एक बड़ी पत्रिका के संपादक ने स्वयं उस कविता को अपनी पत्रिका के लिए माँगा | उसने अपनी ख़ुशी सबसे पहले निकिता से शेयर की | निकिता ने भी बधाई दी | धीरे धीरे आरती की कवितायें नामी पत्रिकाओं में छपने लगीं व् निकिता की छोटी -मोटी  पत्रिकाओं में |  कहते हैं कि दोस्ती तो खरा सोना होती है , फिर न जाने क्यों नाम , शोहरत की दीमक उसे चाटने लगी ? शुरू में जो निकिता आरती की सफलता पर बहुत खुश थी अब उसका छोटी-छोटी बातों पर ध्यान जाने लगा , क्यों आरती ने आज उसकी कविता पर लम्बा कमेंट नहीं किया , क्यों किसी दूसरी लेखिका की पोस्ट पर वाह -वाह कर रही हैं ? अपने को बहुत बड़ा समझने लगी है | कुछ ऐसा ही हाल आरती का भी था, वो लिखने क्या लगी, निकिता का सारा प्रेम ही सूखने लगा  | दोनों लाख एक दिखाने की कोशिश करतीं पर कहीं न कहीं  कुछ कमी हो गयी ऊपर से सब कुछ वैसा ही था पर अन्दर से दूरी बढ़ने लगी | अब दोनों उस तरह खुल कर बात नहीं करतीं , बाते छिपाई जाने लगीं, फोन हर दिन की जगह कई महीने बीत जाने पर होने लगे  | दोनों को लगता दूरी दूसरे की वजह से बढ़ रही है | फिर दोनों ही मन में ये जुमला दोहराते …छोड़ो ,  ये फेसबुक की  दोस्ती  ही तो है | पढ़िए- बाबा का घर भरा रहे                                             कुछ समय बाद  निकिता के काव्य संग्रह को सम्मान की घोषणा हुई |  निकिता बहुत खुश थी | उसको  आरती के शहर जाना था | सम्मान समारोह वहीँ होना था| निकिता ने खुश हो कर आरती को फोन किया | आरती ने फोन नहीं उठाया | दो तीन बार मिलाने पर आरती ने फोन उठाया | सम्मान की बात सुन कर बड़ी दबी जुबान में बधाई कहते हुए कहा आने की पूरी कोशिश करुँगी | निकिता को ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी | फिर भी उसे आरती के मिलने का इंतज़ार था | सम्मान वाले दिन उसने कई फोन मिलाये पर आरती ने फोन नहीं उठाया , न ही वो समारोह में आई |                        कहीं न कहीं निकिता को लगने लगा  कि आरती उसके काव्य संग्रह को सम्मान मिलने के कारण ईर्ष्याग्रस्त  हो गयी है | घर लौट कर निकिता ने फेसबुक पर सम्मान के फोटो डाले पर आरती के लाइक नहीं आये , यहाँ  तक की वो तो फेसबुक पर आई ही नहीं | अब तो निकिता को पक्का यकीन हो गया कि आरती  उसके सम्मान से खफा है | निकिता को अपने ऊपर भी बहुत गुस्सा आया कि क्यों उसने आरती से इतनी गहरी दोस्ती की , उसे छले जाने का अहसास होने लगा | जिसे उसने दिल से मित्र समझा वो तो उसकी शत्रु निकली | ओह … कितना धोखा हुआ उसके साथ |  जैसा की हमेशा होता है उसने प्रतीकात्मक भाषा का प्रयोग कर कई पोस्ट आरती के ऊपर डाले , कुछ लोग समझे कुछ नहीं | पर आरती तो आई ही नहीं | एक दिन आहत मन  निकिता ने उसे अन फॉलो कर दिया | उसने मन कड़ा कर लिया ,आखिर फेसबुक  की दोस्ती ही तो थी | करीब चार महीने बाद  आरती  फेसबुक पर  आई , उसने अपने पति की मृत्यु की ह्रदय विदारक सूचना दी … Read more