सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips

                              मनुष्य एक भावुक प्राणी है| ये भावनाएं ही उसे जानवर से इंसान बनती हैं , पर कई बार इन भावनाओं की वजह से ही  हम शोषण का शिकार हो जाते हैं | ये शोषण कभी अपने द्वारा होता है , कभी अपनों द्वारा | जिसकी वजह से हम जिन्दगी में हारते जाते हैं चाहे वो रिश्ते हों , सम्मान हो या सफलता| जरूरी है इन भावनाओं का संतुलन सीखना | जरा इन उदाहरणों पर गौर करें …                                                                             एक बच्चा जो पढने में बहुत तेज था| उसे खुद व्  उसके माता-पिता को आशा थी कि वो 10 th बोर्ड में 95% मार्क्स ले कर आएगा |  उसने मेहनत भी खूब करी | पेपर भी अच्छे हुए | रिजल्ट आने  से कुछ दिन पहले उसने अपने नंबर कैलकुलेट किये  , उसके  मुताबिक़ उसके ९२ % आने थे | वो इतना निराश हुआ की उसने आत्महत्या कर ली | कुछ दिन बार रिजल्ट निकला , उस बच्चे के 96 % मार्क्स थे |  वो बच्चा जिसका भविष्य बहुत अच्छा था , संभावित कल्पना को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने मृत्यु का वरण कर लिया |                         राहुल ने  बिजनिस के दो -तीन  प्रयास किये , हर बार असफल रहा | लोगों के ताने उलाहने सुनने के बाद अब उसकी कमरे से निकलने की भी हिम्मत नहीं पड़ती | एक कमरे में बैठे रहना और दीवारों को घूरना ही उसका जीवन हैं | एक और प्रयास के लिए उसके पास धन है पर उसका मन साथ नहीं दे रहा है |                             सविता जी एक टेलेंटेड लेखक हैं | मैंने उनके कई लेख पढ़े हैं , पर वो सार्वजानिक लेखन में नहीं आना चाहती क्योंकि उनके पति व् परिवार को उनका लिखना पसंद नहीं है , अक्सर उन्हें कलम घिस्सू की उपाधि दे कर हँसी  उड़ाई जाती है | सविता जी को पता है कि उनमें प्रतिभा है ,लेकिन अपने परिवार का तिरिस्कार झेल कर लिखने की हिम्मत वो नहीं जुटा पाती | यही उनकी निराशा व्  कुंठा की वजह है | वो उदास रहती है ठीक से घर का काम नहीं कर पाती , न घर को सजाती संवारती हैं न खुद को |                                                  और एक उदाहरण जो शायद  आप ने देखा हो , अभी कुछ दिन पहले की बात है मैंने फेस बुक पर एक स्टेटस पढ़ा , ” मेरे मित्र जिन्हें मैं बहुत पसंद करती हूँ , उनकी हर पोस्ट लाइक करती हूँ , कमेंट करती हूँ , वो मेरी पोस्ट पढने तक नहीं आते इसलिए मैं फेसबुक छोड़ रही हूँ / कुछ दिनों के लिए बंद कर रही हूँ | ऐसे में किन्हीं दो चार मित्रों की तुलना में उन्हें वो मित्र नज़र ही नहीं आ रहे हैं जो उनकी पोस्ट पर लाइक कर रहे हैं |                                  ये सारे उदाहरण भावनाओं द्वारा नियंत्रित होने के हैं | इन सब में प्रतिभा है , क्षमता है , दूसरे मौके हैं पर इन सब ने भावनाओं के आधीन हो कर छोड़ देना ज्यादा उचित समझा … कहीं मौके को कहीं जीवन को और कहीं जीवंतता को | मैं स्वयं भी बहुत Emotionally weak रहीं हूँ | मैंने इस बात को समझते हुए खुद को बदला है | मेरा ये लेख लिखने  का उद्देश्य भी यही है कि आप भी भावात्मक संतुलन नहीं बना पाते हैं तो आप भी जीवन में बहुत कुछ खो देंगे | इसलिए मैं आपके साथ ये emotional management tips share कर रही हूँ | जो आपके जीवन में सफलता और जीवंतता लाएगी |  भावनात्मक संतुलन के नियम  -Emotional management tips (in hindi)                                                                      जब भी मैं Emotional management कीबात करती हूँ तो मेरे सामने  रथ पर बैठे अर्जुन और उन्हें भगवद्गीता का उपदेश देते हुए कृष्ण आ जाते हैं | अर्जुन एक महान योद्धा थे , सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे , फिर भी युद्ध से ठीक पहले वो भावनाओं के शिकार होकर युद्ध छोड़ने की बात करने लगे | वो अपनी भावनाओं को नियंत्रण में नहीं रख पा रहे थे , जिस कारण उनसे धनुष भी नहीं उठाया जा रहा था | क्या उस समय वो द्रोणाचार्य द्वारा दिया हुआ ज्ञान भूल गए थे ? क्या बरसों का उनका अभ्यास एक क्षण में खत्म हो गया था ? नहीं … बस उनके मन ने साथ देना बंद कर दिया था | दोनों सेनाओं के बीचोबीच खड़े अर्जुन के पास skill तो था पर will नहीं थी                                                                              स्किल यानी हमारा talent, हमारी प्रतिभा , हमारी क्षमता , और विल हमारी इच्छा शक्ति | सफलता के लिए स्किल जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी है will. हम कई बार खुद कहते हैं कि फलाने  व्यक्ति में तो इतना talent नहीं था फिर वो इतना successful कैसे हो गया | जाहिर सी बात है कि उसकी सफल होने की इच्छा उस टैलेंटेड व्यक्ति से ज्यादा थी | शुरुआत में सबकी इच्छा ज्यादा होती है परन्तु असफलता ,हार व् आलोचना जो किसी भी सफलता का हिस्सा हैं हर कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता, जिसके कारण या तो वो प्रयास ही छोड़ देता है या  आधे … Read more

5 मिनट रूल – दूर करें काम को टालने की आदत

               राहुल के हाथ में निधि की शादी का कार्ड था और उसकी आँखों में आँसू | राहुल और निधि एक ही कॉलेज में पढ़े थे | कब उसे निधि भाने लगी, कि वो उसे जीवनसाथी बनाने के सपने देखने लगा उसे पता ही नहीं चला| निधि एक अंतर्मुखी स्वयं में सिमिटी रहने वाली लड़की थी| फिर भी उसकी बातों से राहुल को अंदाजा था कि निधि भी उसे पसंद करती हैं | पर वो उससे कह नहीं सका | वो हर रोज सोंचता कि वो निधि से मिलेगा तब कह देगा , पर हर रोज आने वाले कल पर बात टाल देता और नतीजा निधि की शादी किसी और से हो रही है | अब जरा इन उदाहरणों पर भी गौर करें … कल से पक्का अपना स्टडी टाइम टेबल फॉलो करूँगा | आज तो नहीं हो पाया पर कल से जरूर वाक पर जाना है , आखिर सेहत का ध्यान  तो रखने ही चाहिए| रोज देर से उठने से सुबह की भागमभाग बहुत परेशान  करती है , तय कर लिया है मैंने कल से जरूर 5 बजे उठूँगा ताकि हर काम समय पर हो | आज पार्टी है , जानता हूँ डॉक्टर ने मना किया है पर आज और समोसा खा लेता हूँ , एक दिन में कुछ हर्ज थोड़ी न हो जाएगा , कल से तय कर लिया है डॉक्टर के डाएट  प्लान पर ही चलूँगा|  कल से थोडा सा वक्त परिवार और बच्चो के लिए भी निकालूँगा , हर समय बिजनिस ही ठीक नहीं |                               पढाई हो कोई जरूरी काम हो , किसी से रिश्ते बिगड़े रिश्ते बनाने हो , कोई बुरी आदत छोडनी हो या प्रेम-मुहब्बत का चक्कर हो , अगर आप की काम को टालने( procrastination) की आदत है तो प्रतिभा क्षमता होते हुए भी अंत में आप के हाथ में कुछ नहीं लगता |     मेरी सलाह है जो आज कर सकते हो उसे कल पर मत छोड़ो , टालने की आदत समय का चोर है -चार्ल्स डिकेंस     टाल-मटोल की आदत से कैसे बचें  –How to overcome Procrastination                                                                   भले ही हम  बचपन से “TOMORROW NEVER COMES” पढ़ते आये हों | पर आँकड़े कहते हैं कि कामों को टालने की आदत 95% लोंगों  होती है | ये आदत उनमें नाम मात्र  या ज्यादा हो सकती है, पर होती जरूर है| अब अंदाजा लागाइये की सिर्फ 5 % लोग ही successful क्यों होते हैं ?जाहिर है उनमें काम को टालने की आदत नहीं होती |  Laziness और Procrastination में अंतर है                                                          अक्सर लोग आलसी या टाल-मटोल करने वालों को तराजू के एक ही पलड़े में रखते हैं | ये सही नहीं है | आलसी व्यक्ति में काम करने की इच्छा ही नहीं होती जबकि टाल-मटोल करने वाले की उस काम को करने की बहुत इच्छा होती है, फिर भी वो नहीं करता| वो जानता है की उसके लिए ये काम टॉप प्रायोरिटी का है पर वो उसे न करके कम प्रायोरिटी वाले कामों में उलझा रहता है |  आखिर क्यों करते हैं हम काम में टाल-मटोल                                           जरूरी काम है ये जानते हुए भी उस के प्रति टाल -मटोल करने के पीछे कई कारण होते हैं |  1) असफलता का भय –लोगों को लगता है कि अगर सफल नहीं हुए तो , खुद को उस बुरी वाली फीलिंग से बचाने के लिए लोग काम को टालते हैं |  2)अपनी कम्फर्ट ज़ोन छोड़ने में असुविधा – एक ढर्रे  में जीते हुए उससे अलग हट कर कुछ भी करने से हम बचना चाहते हैं|  3) सफलता का भय – आश्चर्य है लेकिन असफलता की तरह सफलता का भी भय होता है , लोग जानते हैं कि वो काम करने के बाद वो सफल हो जायेंगे,लेकिन उन्हें डर लगता है की क्या वो सफलता संभाल पायेंगे | सफलता बहुत डिमांडिंग होती है, और आपका पूरा रूटीन बदल देती है| 4) स्ट्रेस से बचना – किसी भी ऐसी काम को जिसे हम टाल रहे हैं उसे करने में स्ट्रेस होता है, हम उस स्ट्रेस से बचना चाहते हैं| मान लीजिये आपके किसी रिश्तेदार से संबंध खराब चल रहे हैं, आप उससे फोन पर बात करना चाहते हैं परन्तु आप ये सोंच कर नहीं करते क्योंकि आपको लगता है कि वो न जाने क्या बुरा बोल दे,  स्ट्रेस और न बढ़ जाए, बात और बिगड़ जाए |  5) प्लानिंग सही नहीं – पहले भी हमने Atootbandhann.com पर ” अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें एक लेख प्रकाशित किया था|  दरसल काम की टाल-मटोल का कारण सही प्लानिंग न होना होता है | जैसे राकेश जी यही सोंचते रहे की बिजनिस और परिवार में संतुलन बना कर रखेंगे पर २० साल तक कर नहीं पाए , बच्चे बड़े हो गए , अब उन्हें पिता के साथ उतना वक्त बिताने की जरूरत नहीं रही |  अगर वो प्लानिंग सही तरीके से करते तो  वो बच्चों के साथ वक्त बिता पाते| 6) बोरिंग काम –आप समझते हैं कि वो काम जरूरी है पर आपको बोरिंग लगता है | कुछ बातें जो काम को टालने के बारे में समझिये                        अगर आपको भी टाल–मटोल करने की आदत है और आप उसे छोड़ना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा ..वो कहते हैं ना एक अच्छी शुरुआत ही अच्छे अंजाम तक पहुंचती है | 1 ) स्वीकार करिए– स्वीकार करिए कि आपको काम को टालने की आदत है | जब आप स्वीकार करेंगे तभी आप अगला स्टेप ले आयेंगे जो उसे ठीक करने की दिशा में होगा | 2)रियलिस्टिक बनिए – अगर आप को सुबह देर से उठने की आदत है और आप पढाई या वाक् पर जाने का सुबह … Read more

सक्सेस टिप्स -Entrepreneur और Employee दोनों के लिए

                                          आपने एक कहावत तो सुनी होगी, ” एक तीर से दो शिकार ” | आज हम एक ऐसी ही जबरदस्त success tips लायें है जो Entrepreneur और Employee दोनों के लिए कारगर है | हम Entrepreneur हो या  Employee हों , हम दोनों की प्राथमिकता सफलता होती है | जहाँ कंपनी का मालिक चाहता है कि उसकी कंपनी ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाए वहीँ उसमें काम करने वाले ये चाहते हैं कि company तो लाभ कमाए ही साथ उनकी जगह उस कम्पनी में सुरक्षित रहे | उन्हें  कंपनी की ग्रोथ के साथ उन्हें अच्छी तनख्वाह व् अन्य सुविदायें  मन माँगी मिलती रहे | आज इस बात को समझाने के लिए एक छोटी सी प्रेरक कहानी का सहारा ले रही हूँ | Entrepreneur और Employee दोनों के लिए सक्सेस का मंत्र                                                एक व्यापारी था |  वह एक शहर से माल खरीद कर ( जहाँ वो सस्ता था )  दूसरे शहर में( जहाँ उसकी मांग ज्यादा थी ) बेंचता था | रास्ते में बहुत बड़ा जंगल नदी पहाड़ आदि थे | जिसके कारण व्यापारी दूसरे शहर कम ही पहुँच पाते थे | व् ये व्यापारी  कॉम्पटीशन कम होने के कारण बहुत लाभ कमाता था | एस काम के लिए उसके पास दो  गधे थे | जिनके ऊपर वो सामान लाद  कर एक शहर से दूसरे शहर  ले जाया करता था |  व्यापारी गधों के खाने -पीने का बहुत ध्यान नहीं रखता था | उनमें से एक गधा मर गया , तो व्यापारी ने दूसरा गधा  खरीदा और पहले की तरह सामान ले कर दूसरे शहर की तरफ चला | नया गधा बहुत धीमे -धीमे चल रहा था | व्यापारी को दूसरे शहर पहुँचने में बहुत ज्यादा समय लगा | अबकी बार उसका माल पहले की तरह हाथों -हाथ नहीं बिका क्योकि कुछ दूसरे व्यापारी उससे पहले आ गए थे | उसे काफी समय दूसरे शहर रुकना पड़ा | पहले इतने समय में वो दो चक्कर लगा लेता था | उसका नुक्सान हुआ | क्योंकि  समय भी धन है | अगली बार त्यौहार का समय था | जल्दी न पहुंचता तो नुक्सान बहुत होता | इसलिए शुरू से ही उसने पह्ले गधे पर ज्यादा सामान लादा व् दूसरे पर कम , दूसरा गधा फिर भी धीरे ही चला पर उस पर सामान कम था इसलिए पहले जितनी देर नहीं हुई | फिर भी वो लोग जब तक पहुंचे ज्यादातर लोगों ने त्यौहार की खरीदारी कर ली थी | व्यापारी का फिर नुकसान हुआ | अबकी बार व्यापारी ने दूसरे गधे पर आधे से भी कम सामान लादा , फिर भी दूसरे गधे की स्पीड पहले से कम ही थी | व्यपाऋ अबकी  बार देर नहीं करना चाहता था | इसलिए उसने दूसरी गधे का सामान और कम करके पहले गधे पर भार  बढ़ाना शुरू किया | दूसरे  गधे के पास नाम मात्र का बोझ था | अब वो पहले गधे के साथ -साथ चल रहा था | उसने मुस्कुरा कर पहले गधे से कहा , ” अब भुगतो ज्यादा काम करने का नतीजा , देखो मैं तो खाली चल रहा हूँ और तुम सारा बोझ ढो रहे हो | दाना – पानी दोनों को बराबर ही मिल रहा है | पहला गधा निरुत्तर हो गया | पर कहानी यहीं खत्म नहीं हुई | रास्ते में कई रातें जंगल में पड़ती थी | इस बार व्यापारी कम्बल लाना भूल गया था | उसने सोंचा दूसरा गधा तो किसी काम का नहीं है , तो उसने रास्ते में पड़ने वाले गाँव में जाकर दूसरे गधे को मार कर उसकी खाल से कम्बल बनवा  लिया |  अब व्यापारी के पास एक ही गधा था | व्यापारी को उसी से काम लेना था | अब उसे उसके मन का खाना देना होता , वो उसे मार भी नहीं सकता था , अगर वो रुक जाए तो मजबूरन उसे रुकना पड़ता | अब पहले गधे की मर्जी  उसके व्यापार में शामिल होने लगी थी | मित्रों ये कहानी अब हम नए एंगल  से देखते हैं … यहाँ व्यापारी Entrepreneur है और  गधे Employee ( केवल प्रतीक के रूपमें ले रहे हैं |) अगर आप Entrepreneur  हैं                                              अगर आप Entrepreneur हैं तो आप को ध्यान रहना होगा की आप का बिजनेस किसी एक व्यक्ति पर निर्भर न रहे | नहीं तो वो व्यक्ति बाद में आप पर दवाब डाल सकता है और आप को बिजनेस बंद हो जाने के डर से उसका हर दवाब मानना पड़ता है |  उसे उसके मन की सेलेरी छुट्टी , काम करने की सुविधा देनी पड़ती है | अगर इतने पर भी आप का काम चल रहा है तो भी ठीक है , नहीं तो अगर उस व्यक्ति ने कहीं और बहुत ज्यादा ऑफर पर चला गया या खुदा न   खस्ता  बीमार पड़ गया  भगवान् न करे अगर उसकी मृत्यु हो गयी तो आप का बिजनेस पूरी तरह से बैठ   जाएगा |  स्टीव जॉब्स को अपनी ही कम्पनी से निकाले जाने की घटना को भला कोई कैसे भूल सकता है | तो फिर ध्यान दीजिये – बिजनेस एक टीम वर्क है और  आपको इसे यही शक्ल देनी चाहिए | आप को स्वयम ही योग्य लोगों की छटनी व् योग्य लोगों की भर्ती  करनी चाहिए | अगर आप की टीम में कम योग्य लोग हैं तो उनकी छटनी न करके उनमें योग्यता पैदा करें , उनके लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम हो, उन्हें  कॉम्पटीशन में रहने के लिए ज्यादा घंटे काम करने के लिए प्रेरित करें | उन्हें कम्पनी से निकालने के स्थान पर उनकी परफोर्मेंस बढाने के लिए उनके आदर ग्रेडिंग सिस्टम द्वारा नि काले जाने का भय उत्पान करें | ये तो बात रही की आप की वन मैंन आर्मी न बनने की पर योग्य व्यक्ति दूसरों से ज्यादा काम करते हुए अपने को अपमानित महसूस करके आपकी कम्पनी को छोड़ … Read more

“मुझे अपनी बेटी पर गर्व है “अभियान और सोशल मीडिया

बेटा हो या बेटी, माता -पिता की संतान के रूप में दोनों ही प्यारी होती हैं| होनी भी चाहिए| लेकिन प्यार और सम्मान में अंतर है| हमारे समाज में मान्यता रही है कि  बेटे मनौती का फल है है और बेटियाँ कोख में आई अनचाहा मेहमान | बेटे गेंहूँ की फसल है जिन्हें खाद पानी की जरूरत है तो बेटियाँ खर- पतवार , जिन्हें काट कर फेंक देना है|  स्त्री विमर्श की नीव में वो पितृसत्ता की भावना है जो बेटी जन्म लेने का अधिकार भी नहीं देना चाहती , शिक्षा और भोजन की बात कौन कहे? बेटी को पराया धन माना जाता हो , वंश चलाने  की बात हो या विदेशी आक्रांताओं से बचाने के लिए स्त्री को उसके अपने ही घर में अधिकारों से वंचित करने की परंपरा बनी|  जानिये “मुझे अपनी बेटी पर गर्व है “अभियान बेटों के विरुद्ध नहीं  दुखद सत्य ये है की ये लिंग भेद विकसित देशों में भी रहा है | ब्रिटिश महिलाओं ने भी लम्बे समय तक वोट देने के अधिकार के लिए संघर्ष किया है , उन्हें तो नागरिक होने का दर्जा भिप्राप्त नहीं था | विकसित देशों में भी ऐसे अभियान चले हैं| और उन्होंने महिलाओं का रास्ता सुगम किया है| भारत में भी बेटियों को कोख में मार देने , बेटा -बेटी में भेद भाव करने , बहुओं को जला देने के खिलाफ अनेक अभियान चलाये जाते रहे हैं| बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान भी इन्हीं में शामिल है| अभी हाल में ऐसा ही एक अभियान सोशल मीडिया पर चला ” मुझे अपनी बेटी पर गर्व है” जिसमें माता -पिता  ने अपनी बेटी के साथ अपने फोटो शेयर किये| अभियान का उद्देश्य था कि बेटियाँ , बेटों से कमतर  नहीं हैं उन पर भी गर्व करिए | ये अभियान समाज को एक सार्थक सन्देश देने के लिए था |    परन्तु बेटियों के पक्ष में चलाये जा रहे आंदोलन की मूल भावना को समझे बिना उसके खिलाफ ये कह कर विरोध करना शुरू कर दिया कि हमें अपने बेटों पर गर्व क्यों न हो ?  उनका कहना था  बेटा हो या बेटी जब हमारे हाथ में है ही नहीं तो हम अपने बेटों पर गर्व करेंगे |  अब लोगों ने अपने बेटों के साथ फोटो डालने शुरू कर दिए | एक तरह से प्रतिस्पर्द्धा सी शुरू हो गयी |  और निजी भावना से ऊपर समाज को एक  सार्थक  सन्देश देता अभियान कमजोर पड़ने लगा |                         बहुत समय पहले अमेरिका में रंग भेद नीति जोरो पर थी| अश्वेत लोगों की हत्याएं आम बात थी| तब वहां एक आन्दोलन चला था ,” अश्वेतों की जिंदगी महत्वपूर्ण है ” | जाहिर है बात – बेबात पर पुलिस की गोली या जनता द्वारा अश्वेतों के मारे जाने के विरोध में था | जो कट्टर श्वेत थे उन्हें ये बात बहुत बुरी लगी वो तुरंत बोलने लगे कि ये नारा तो गलत है , इसकी जगह ये नारा होना चाहिए था ” हर जिंदगी महत्वपूर्ण है ” | हालाँकि इन आंदोलनों की वजह से ही अश्वेतों को अमेरिका में सम्मान हासिल हुआ | यहाँ  लोगों को समझना होगा की की हम सब को अपने बेटों पर गर्व है , और बिलकुल होना चाहिए |पर  यकीन मानिए ये आन्दोलन हमारे-आपके बेटों के खिलाफ है ही नहीं | बेटी को मान दिलाने को न समझें बेटों का अपमान  इसमें कोई शक नहीं की एक संतान के रूप में बेटा-बेटी बराबर हैं| और दोनों पर गर्व होना चाहिए, फिर भी ये सामाजिक सच्चाई है कि बेटों पर सदा से गर्व होता रहा है , ये माना जाता रहा है कि बेटों से वंश चलता है | उनके बेहतर खान-पान , शिक्षा की व्यवस्था होती रही है | शादीके बाद भी वही घर के मुखिया भी बनते हैं | पर क्या ऐसा बेटियों के साथ होता रहा है ? क्या हम आप इस सच्चाई से अनभिज्ञ हैं |  ये होता रहा है कि बेटों को घी दूध खिलाओ, उन्हें कमाना है और बेटियों को दाल- भात उन्हें दूसरे के घर जाना है|  बेटियों की शिक्षा छुड़ाई जाती रही है क्योंकि माना जाता है उनकी पढाई में पैसे क्यों खर्च करें , उन्हें तो दहेज़ देना है |  जल्दी शादी करो, बोझ उतरे , गंगा नहायें| सोंचिये … आज भी थालियाँ बेटों के जन्म पर ही  बजती हैं बेटियों की नहीं | गर्भ में बेटियाँ ही मारी जाती है, बेटे नहीं | बड़े शहरों की बात छोड़ दें तो आज भी बेटा -बेटी में खाने -पीने और शिक्षा , सुविधा आदि के नाम पर भेदभाव जारी है | बेटी पैदा करने पर ही माँ ताने सुनने व् सामाजिक अपमान की शिकार होती है , जैसे उसने कोई अपराध किया हो| आज भी दहेज़ और उसके ताने हैं| यहाँ बात इक्का -दुक्का अपवाद की नहीं हो रही है | “मुझे अपनी बेटी पर गर्व है”  ये सच है कि आज समाज बदल रहा है , पर क्या ये अपने आप हुआ है या इन आन्दोलनों का असर है | ये आन्दोलन समाज में कमजोर को सम्मान दिलाने के लिए होते हैं | हमें अपने बेटों पर गर्व है , पर बेटियों के साथ खड़े होने का अर्थ बस इतना है कि उन्हें भी समान समझा जाए | आइये समाज परिवर्तन के इस अभियान में शामिल हो कर कहें हमें अपनी और अपने देश की बेटियों पर गर्व है |  यह भी पढ़ें … विवाहेतर रिश्तों में सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ मुझे जीवन साथी के एवज में पैसे लेना स्वीकार नहीं बाबा का घर भरा रहे आपको आपको  लेख “  “मुझे अपनी बेटी पर गर्व है “अभियान और सोशल मीडिया  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

पापा की वो डांट: जिन्दगी की परीक्षा में पास होने का मंत्र

                                      जीवन में जो सबसे कीमती चीज हमें माता -पिता देते हैं वो है जीवन मूल्य | आज अपने पिता की पुण्यतिथि पर उन्हें याद करते हुए एक ऐसी ही घटना   दिमाग में बार – बार घूम रही है , जिसे मैं आप सबके साथ शेयर करना चाहती हूँ | उन दिनों गाँव से शहर आ कर बसे परिवार गाँव तो छोड़ आये थे पर अन्धविश्वास अपने साथ लेकर आये थे | आखिरी रोटी बड़ी होनी चाहिए उससे परिवार बढ़ता है , रात को सिल और बटना पास – पास नहीं रखना चाहिए नहीं तो लड़के दूर रहते हैं , घर से निकलते समय टोंकते नहीं हैं या दूध , हल्दी आदि का नाम नहीं लेते हैं और भी न जाने क्या -क्या ? पर उन सब लोगों के विपरीत पापा जो खुद गाँव से आकर बसे थे , इन सारे  अंधविश्वासों के खिलाफ थे और उन्होंने हमें बचपन इन बातों  को पता भी नहीं चलने दिया | जाहिर सी बात है हम इन सब से दूर थे | हालांकि बड़े होने पर मुझे पता चला कि अंधविश्वास  केवल वही नहीं होते जो पीढ़ियों से चले आ रहे हैं कई बार हम अपने कुछ नए अन्धविश्वास स्वयं गढ़ लेते हैं | अपनी जीवन में घटने वाली घटनाओं के कारण शुभ -अशुभ  अच्छा बुरा का हमारा एक निजी घेरा भी न चाहते हुए बनने  लगता है, हम जिसकी कैद में आने लगते हैं | इससे निकलने के लिए आत्मबल की जरूरत होती है | जब पापा की डांट बनी   जिन्दगी की परीक्षा में पास होने का मंत्र                                               बात उन दिनों की है जब मैं B.Sc पार्ट वन में पढ़ती थी |  हमारे एग्जाम चल रहे थे | उस दिन केमिस्ट्री का फर्स्ट पेपर था|  जब मैं कॉलेज पहुंची तो सब सहेलियाँ पढने में लगी थी , मैं भी अपनी किताब खोल कर पढने लगी| तभी मेरी एक सहेली स्वाति  आई | ( आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि स्वाति हमारे कलास  की वो लड़की थी जो सबके हाथ देख कर भविष्य बताती थी , कुंडली देखने का भी उसको ज्ञान था और सिक्का खिसका कर भूतों से बात करने का भी, स्वाति लड़कियों से घिरी रहती, मेरी उससे कोई खास दोस्ती नहीं थी , फिर भी हम क्लास मेट थे तो बात तो होती ही थी ) स्वाति मेरे पास आ कर  मुझसे बोली ,  ” यार , वंदना आज का तुम्हारा पेपर बहुत अच्छा होगा|  इससे पहले की मैं कुछ कह पाती , सभी सहेलियां कहने लगीं हाँ, इसने बहुत पढाई की है |  स्वाति बोली , पढाई तो की ही होगी, पर आज इसने जो येलो कलर का सूट पहना है वो इसके लिए बहुत लकी है | मैंने आश्चर्य से उसकी तरह देखा | उसने मुस्करा कर अपनी बात सिद्ध करते हुए कहा , ” देखो तूने ये सूट साइंस क्विज में पहना था , तो हमारे कॉलेज को फर्स्ट प्राइज़  मिला | फिर तुमने केमिस्ट्री प्रैक्टिकल में ये सूट पहना था , क्या वायवा गया था तुम्हारा | और तब भी जब हम सब लोग क्लास में शोर मचा रहे थे तो दिव्या मैम की डांट तुम्हें छोड़ कर हम सब को पड़ी , मानो न मानो तुम्हें दिव्या मैम की  डांट से इस सूट ने बचाया |”                             मैं उसकी बात पर हँस कर बोली , ” क्या फ़ालतू सोंचती रहती है , इतने ध्यान से सबके सूट मत देखा करो |” | उस दिन का मेरा पेपर बहुत अच्छा गया | कॉलेज से निकलते समय स्वाति बोली , ” देखा मैंने कहा था ना ‘|  अन्धविश्वास का एक बीज उसने मेरे मन की माटी  में रोप दिया था|                          अगले पेपर  ओरगेनिक केमिस्ट्री का था | तीन दिन का गैप था|  मैंने अच्छी तैयारी  की थी | पर पता नहीं क्यों कुछ कमी से लग  रही थी | लग रहा था कि पेपर देखते ही बेंजीन रिंग्स आपस में रिंगा-रिंगा रोजेज खेलते हुए मिक्स न हो जाएँ | खैर मैं पेपर देने जाने के लिए तैयार होने लगी | कपड़ों की अलमारी खोलते ही वो पीला सूट दिख गया | एक ख्याल आया ट्राई करने में हर्ज ही क्या है , चलो इसे ही पहन लेते हैं | इस बार जानबूझ कर पीला सूट पहना | स्वाति द्वारा रोप गए बीज में अंकुर फूटने लगे थे |                   अपनी आदत के अनुसार पापा मुझे एग्जाम के दिनों में खुद कॉलेज छोड़ने जाते थे |  उन्होंने गाडी निकाल ली थी , मैं जा कर बैठ गयी | पापा ने गाडी स्टार्ट की और हमेशा की तरह मेरी प्रेपरेशन के बारे में बात करने लगे | बातों  ही बातों में मैंने उन्हें कह दिया ,  ” पापा आप जानते हैं आज मैंने वही सूट पहना है जो फर्स्ट पेपर में पहना था , वो अच्छा गया , तो ये भी अच्छा ही जाएगा |”                            इतना सुनते ही पापा ने गाडी में ब्रेक लागाया और बैक कर घर की ओर जाने लगे | पापा का कठोर  चेहरा देख कर मेरी उनसे पूंछने की हिम्मत नहीं पड़ी | मुझे लगा पापा शायद गाडी के पेपर घर में भूल आये हैं | मन ही मन बुदबुदा रही थी , ‘ओह पापा , एग्जाम में ही आपको गाडी के पेपर भूलने थे ?”       घर आकर पापा ने गाडी रोक दी | फिर बहुत गंभीर आवाज़ में मुझसे कहा , ” जाओ सूट बदल के आओ “|पापा की आवाज़ इतनी सख्त थी कि मेरी उनसे प्रश्न करने की हिम्मत ही नहीं हुई | मैं चुपचाप घर के अंदर  जा कर सूट बदल कर आ गयी | पापा ने मुझे कॉलेज छोड़ दिया … Read more

अपने गुस्से को काबू में कैसे करें ?

    सुबह अलार्म की घडी टाइम पर नहीं बजी …अपने ऊपर गुस्सा आ रहा है |   बच्चे ने पराठे खाने से साफ इनकार कर के सैंडविच खाने की फरमाइश कर दी … बच्चे पर गुस्सा आ रहा है | इतनी भाग -दौड़ के बाद भी बस लेट आई … बस ड्राइवर पर गुस्सा आ रहा है |                                                                     क्या आप कभी गिनते हैं कि सुबह सात  बजे से सुबह नौ बजे तक आप कितनी बार गुस्सा कर लेते हैं | इसी गति से दिन भर में कितनी बार गुस्सा कर लेते हैं या मात्र ” मूड ऑफ ” कह कर अपनों का कितना मूड ऑफ कर देते हैं| गुस्सा कैसा भी हो किसी पर भी हो उसका प्रभाव तन , मन और जीवन पर नकारात्मक ही पड़ता है| विज्ञान कहता है कि हम दिन भर काम करने में उतना नहीं थकते जितना एक घंटे गुस्सा करने में थक जाते हैं | गुस्सा बहुत ही स्वाभाविक है ये मान कर हम गुस्सा करते जाते हैं …तब तक जब तक स्ट्रेस दिल , दिमाग को अपनी गिरफ्त में नहीं ले लेता| अगर आप चाहते हैं कि गुस्से को अपने ऊपर हावी न होने दें तो आपको गुस्से पर काबू करना सीखना होगा | How to control your anger(in Hindi)                                        अगर आप भी अपने गुस्से से परेशान  हो चुके हैं तो जरूर ही आप उसे अपने काबू में रखना चाहते होंगें | आइये हम आपको बताते हैं कि गुस्से पर कैसे काबू रखे| ये बहुत ही आसान है क्यों कि   आपको गुस्से को control में रखने के लिए थिंकिंग पर ध्यान देना है | जानिये कैसे – अपनी इमोशनल चाभी अपने हाथ में रखे                                               फलाने की हिम्मत कैसे हुई कि ऐसा कहे , ढिकाने ने मुझे देख कर आखिर मुँह क्यों फेर लिया , इसने, उसने  ने आखिर क्या समझ कर …. अकसर हमें गुस्सा इस बात पर आता है कि लोग हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं ? यहाँ पर  हमारे स्ट्रेस में आने या गुस्सा करने का सीधा सा अर्थ है कि हमने अपने इमोशन की चाभी अगले को पकड़ा दी है | अब अगर किसी को पता चल जाए कि वो बस इतना सा कह कर या जरा सा मुंह बना कर आपका दिन बिगाड़ सकता है तो कोई क्यों न फायदा उठाये | बेहतर है की आप अपने इमोशन की चाभी अपने ही पास रखें |                                     एक बहु और सास की कहानी याद आ रही है | एक बहु  अपनी सास को कुछ कहती नहीं थी बस उसके पानी मांगने या कोई काम कहने पर मुंह चिढ़ा देती थी , यह देख कर सास का गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ जाता और फिर वो बहु को अनाप शनाप जाने क्या -क्या बोलती रहती | बाहर से लोग केवल सास की आवाज़ सुनते बहु की नहीं | उन्हें लगता सास बुरी है जो गाय जैसी बहु पर गुस्सा करती हैं | यहाँ बहु जान गयी थी कि सास उसके मुंह बनाने पर चीखेगी-चिल्लाएगी | सास ने अपने गुस्से की चाबी बहु को दे दी थी | अगर लोगों को पता चल जाए कि हमें किस बात पर गुस्सा आता है तो वो दस बार हमें गुस्सा दिला सकते हैं | इसलिए कोई दूसरे को ये अधिकार मत दीजिये की वो आपको गुस्सा दिला सके | दूसरों को दें बेनिफिट ऑफ़ डाउट                                कई बार कोई व्यक्ति हमें  ऐसी बात कह जाता है जो हमें बहुत बुरी लग जाती है | उस बात पर हमें बहुत गुस्सा आता है | लेकिन जब आप आराम से सोंचतें  है तो देखते हैं की उस व्यक्ति का वो कहने का इरादा नहीं था | या जो हमने समझा , वो उस आशय के शब्द उसने कहे ही नहीं थे | उदाहरण के लिए मीता की बेटी के १२ th में 70 % मार्क्स आये थे | दरसल वो कोचिंग और  स्कूल को संभाल  नहीं पा रहीथी | उसने कोचिंग पर ज्यादा ध्यान दिया और १२ th में प्रतिशत बिगड़ गया | मीता  ने उस समय उसका साथ दिया |बेटी ने अपनी पढाई जारी रखी और कॉलेज  में उसने बेहतर किया|  मीता की कोशिश यही रहती थी कि वो अपनी बेटी का आत्मविश्वास टूटने न दे | समय आगे बढ़ा | मीता की छोटी बेटी 12 th में आ गयी | मीता उसे पढाई का महत्व समझा रही थी|  बीच में बेटी ने पूँछ दिया ,” मम्मी आपके 12th में कितने नमबर आये थे| मीता ने कहा , “71% , फिर रुक कर बोली , तुम ज्यादा मेहनत करो , हमारे जमाने में 71 % बहुत होशियार बच्चों के आते थे , पर आज तो जो 71 -72 % लेकर आता है उसे मूर्ख हो कहते हैं | तभी दूसरे कमरे से बड़ी बेटी की आवाज़ आई ,”thank you” मम्मी , इतना कह कर उसने गेट बंद कर लिया| मीता का इरादा बड़ी बेटी को कमतर कहने का नहीं था , बस वो बात करते समय उसका वाकया  भूल गयी | परन्तु बड़ी बेटी बहुत दिन तक उससे नाराज़ रही , उसे लगा मम्मी ने उसे मूर्ख कहा है |                             ऐसी बहुत सारी परिस्थितियाँ जिंदगी में आती हैं और हम  लम्बे समय तक गुस्सा पाले रहते हैं | जबकि बाद में बात साफ़ होने पर पता चलता है कि कहने वाले का वो आशय ही नहीं था जो हमने समझा | कई बार तो ये गुस्सा जिंदगी भर पला रहता … Read more

सेल्फी का दीवानापन

           अभी कुछ दिन पहले की बात है कि यात्रा के दौरान ट्रेन में मेरे बगल में एक २१ -२२ साल की लड़की आकर बैठ गयी| लड़की के हाथ में मोबाइल था वो उसी में जुटी हुई थी | शुरू –शुरू में तो मैंने इस पर ध्यान नहीं दिया क्योंकि आम तौर पर इस उम्र के बच्चे मोबाइल में ही व्यस्त रहते हैं |पर  जब बहुत देर तक उसका मोबाइल नहीं छूटा तो मेरा ध्यान गया | दरसल वो लड़की अपनी सेल्फी खींचने में लगी थी …. लगातार पिछले 5 घंटे से.. खींचती ,रिजेक्ट करती ,डिलीट करती ,फिर दूसरी खींचती | मुझसे रहा नहीं गया तो मैं पूंछ ही लिया “बेटा क्या करती हो |आंटी मैं बी ए थर्ड इयर की स्टूडेंट हूँ और कॉम्पटिटिव एग्जाम देने जा रही हूँ उसने बिना सर उठाये हुए कहा | जो लड़की एग्जाम देने जा रही है वो किताबें देखने की जगह  इतनी देर से  परफेक्ट सेल्फी की कोशिश में लगी है  बिना रुके बिना थके |  ये तो सरासर दीवानापन है |आश्चर्य के साथ मेरे मन में एक प्रश्न आया “सेल्फी सेल्फी …. कितनी सेल्फी|”   सेल्फी सेल्फी … आखिर कितनी सेल्फी -selfie mania(hindi)                   मुझे अखबार में पढ़ी एक घटना याद आ गयी |जिसमे सेल्फी की लत के कारण एक ब्रिटिश टीन ने आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लिया |दरसल वह लड़का दिन भर अपने आई फोन में बिजी रहता | परफेक्ट सेल्फी के कारण उसने कई किलो वजन घटाया | पढाई में पिछड़ने  के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया | वह अपने परिवार व् माता –पिता के प्रति आक्रामक हो गया | परफेक्ट सेल्फी न मिलने के कारण उसे लगा की वो सुन्दर नहीं है| उसका चेहरा फोटो जेनिक नहीं है| एक दिन निराशा में उसने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लिया |एक चिराग जलने से पहले ही बुझ गया | अगर देखा जाए तो मौजूदा दौर सेल्फी अपलोड करना फैशन ट्रेंड बन गया है |फ़िल्मी सितारे ,टीनऐजर्स ,घरेलु महिलाएं तक सब फेस बुक से ले कर ट्विटर व्हाट्स ऐप में सेल्फी अपलोड करते नज़र आते हैं | सेल्फी खींच कर डालने का शौक सनक की हद तक बढ़ गया है |अब ज्यादातर लोगों के पास महंगे स्मार्ट फोन हैं  जो उनकी इस सनक को पूरा करने की ड्यूटी में चौबीसों घंटे मुस्तैद रहते हैं | पर इस शौक के कई नुक्सान है जिनसे सावधान रहना जरूरी है |  सोशल साइट्स का एडिक्शन श्रीमती देसाई (स्कूल टीचर) के अनुसार ज्यादातर स्कूल में मोबाइल लाना मना  है पर बच्चे मानते नहीं हैं ,छुपा के ले ही आते हैं और क्लास रूम से ही अपनी तरह –तरह की सेल्फी खींच कर भेजते रहते हैं |बड़ा बड़ा लिख कर  डालते हैं ये क्लास में …नीद से भरी आँखे ,जम्हाई लेते हुए ,उबाऊ लेक्चर और टीचर के लिए… कितना बोलता है यार | पकडे जाने पर तुरंत ऑफ लाइन हो जाते हैं | दोस्ताना व्यवहार बनाये रखने के लिए मैं खुद उनसे फेस बुक पर जुडी हूँ पर हद होती है जब बच्चे मुझे रात के १२ -१ बजे तक सोशल साइट्स पर दिखते हैं | एक तरह से उन्हें एडिक्शन हो गया है |ये बच्चे न पेरेंट्स की सुनते हैं न टीचर की |सेल्फी के चक्कर में अपना कीमती समय बर्बाद कर रहे हैं | सेल्फी मेनिया -नए ज़माने का  डिसऑर्डर  हर अच्छी चीज के साथ कुछ बुरी चीजे भी जुडी होती हैं |नए जमाने के साथ एक ओर जहाँ हम तकनीकी रूप से विकसित हो गए हैं वहीँ  इन सोशल साइट्स की वजह  से कुछ नयी बीमारियाँ भी आई हैं | कभी –कभी ज्यादा सेल्फी अपलोड करना एक डिसऑर्डर  का रूप ले लेता है| मनोवैज्ञानिक अतुल  देशमुख  ने एक ऐसे ही किशोर की बात बताई …. १६ -१७ साल  का यह लड़का  पूरी तरह से अवसाद की गिरफ्त में आ गया था | इसने एक बार अपनी फोटो डाली किसी लड़की के आदतन कमेंट nice के बाद उसने कमेंट किया मुझे अपनी फ्रेंड लिस्ट में शामिल करेंगी | लड़की ने जवाब दिया ‘अपनी शक्ल कभी आईने में देखी  है| ये सब सार्वजानिक था | जाहिर है दोस्तों ने बहुत मजाक बनाया | अपने को सुन्दर  सिद्ध करने के लिए वो रोज २०० -२५० फोटो डालने लगा | एक –एक कमेंट उसे बैचैन कर देता |लोगों का अप्रूवल उसका मिशन बन गया | लम्बे ईलाज के बाद आज वो लड़का ठीक है पर सदा यही कहता है “ भगवान् न करे कोई मेरी स्तिथि से गुज़रे | वास्तव में नए ज़माने का यह एक नया डिसऑर्डर हैं …. बहुत डरावना ,भयावाह |  सेल्फी पर कमेंट्स करते हैं प्रभावित            ज्यादातर लोग जब फेस बुक पर  अपनी सेल्फी डालते हैं तो ये सोच कर डालते हैं कि लोग तारीफ़ करेंगे | ढेरों लाइक्स  के बीच एक भी डिस  लाइक उन्हें दुखी कर जाता है | कई बार  कुछ लोग मजा लेने के लिए या यूँही  शरारत करने के उद्देश्य से भद्दे अपमान जनक कमेंट्स कर देते हैं | जैसे तुम्हारी नाक मोटी  लग रही हैं ,इस ड्रेस का रंग तो बेकार है |  अगर प्रोफाइल पब्लिक है तो कुछ शरारती तत्व फेक आई डी बना कर घुस आते हैं और अपमान जनक कमेंट्स करने लगते हैं |ऐसे कमेंट्स टीन ऐजर्स को  ज्यादा प्रभावित करते हैं | उनका पढाई से मन हट जाता है और पूरा  धयान परफेक्ट सेल्फी डालने में चला जाता है | आत्मविश्वास की कमी           यह सच है कि आजकल स्मार्ट फोन के कैमरे बहुत अच्छे होते हैं उनसे अच्छी सेल्फी ली जा सकती है | यहाँ तक की कई ऐप  भी होते हैं जिनकी मदद से सेल्फी और आकर्षक बनाई जा सकती है | आकर्षक  तस्वीरों से अपनी एक सुन्दर इमेज बनाने  के बाद जब कभी उन्ही फेस बुक फ्रेंड्स से मिलने का अवसर आता है तो कॉन्फिडेंस लेवल लो फील होता है | जब वह  खुद को आईने के सामने खड़ा हो कर देखते हैं तो अपने आप को स्वीकार नहीं कर पाते व् हीन भावना से ग्रस्त हो जाते हैं | हो जाते हैं ब्यूटी कॉन्सस             हर किसी को भगवान् ने कुछ न कुछ नेमते दी हैं |इंसान को खुश रहने के लिए उनकी कद्र करनी … Read more

जिंदगी का चौराहा

                            यूँ तो चौराहे थोड़ी- थोड़ी दूर पर मिल ही जाते हैं |  जहाँ चार राहे मिलती हैं , वहीँ चौराहा बन जाता है , इसमें खास क्या है , जो इस पर कुछ कहा जाए |  जरूर आप यही सोंच रहे होंगे| मैं भी ऐसा ही सोंचती थी , जब तक थोड़ी देर ठहर कर किसी चौराहे  पर इंतज़ार करने की विवशता नहीं  आ गई | कितना कुछ सिखाता है जिंदगी का चौराहा                          वाकया अभी थोड़े दिन पहले का है , बेटे को कोई एग्जाम दिलाने जाना था | दो घंटे का समय था , मैंने सोंचा इंतज़ार कर लेते हैं , साथ ही वापस चले जायेंगे| पर सेंटर के पास बहुटी ठण्ड थी , सुबह का समय था , तो प्रकोप भी कुछ ज्यादा था | आस -पास नज़र दौड़ाई , थोड़ी दूर पर एक चौराहा था , जहाँ धूप  ने झाँकना  शुरू कर दिया था | धूप  देखते ही मैं उस तरफ ऐसे बढ़ी जैसे गुड़ को देखकर मक्खी  बढती है |खैर वाहन  से चौराहे की चारों राहों का नज़ारा साफ़ – साफ़ दिख रहा था |                           जीवन क्षण  प्रतिक्षण कैसे बदलता है | इसका प्रत्यक्ष प्रमाण अगर देखना हो तो चौराहा सबसे मुफीद जगह है |  हर पल चारों दिशाओं  में भागते लोग, कितनी ख़ूबसूरती से कह जाते हैं कि हर किसी की मंजिल एक नहीं है , जो किसी ने छोड़ा है वही दूसरे के लिए सबसे सही चुनाव हैं | हम सबको चुनने का मौका है| यहाँ हर कोई चुनता है और आगे बढ़ता है| यहाँ कोई शिकायत नहीं होती, मैंने ये क्यों चुना , उसने वो क्यों चुना , शिकायत  चुनाव के बाद होती है , जब अपने द्वारा चुने गए रास्ते से बेहतर दूसरे का रास्ता लगता है| क्यों जिंदगी के हर चौराहे पर हम जरा ठहर कर चुनाव नहीं करते | काश ऐसा कर पाते तो सब अपनी जिन्दगी उसी तरह से जी पाते जैसी जीना चाहते हैं | चौराहे पर गाड़ियों और लोगों की भागदौड़ में एक संतरे वाला उधर से निकला , एक संतरा जिसमें उसने बड़े ही कलात्मक ढंग से एक फूल लगाया हुआ था , ठेले से निकल कर गिर गया , उसने उठा कर रख लिया | आगे बढ़ने पर वो दोबारा गिर गया , उसने फिर उठा कर रख लिया | तभी किसी ने उसे आवाज़ दी , वो आवाज़ की दिशा में चला , तो वो संतरा फिर गिर गया , इस बार उसका ध्यान नहीं गया , वो आगे बढ़ गया , वह  फूल लगा संतरा वहीँ पड़ा रह गया | कितना सच है , जिसको हमसे मिलना होता  है और जिसको बिछड़ना दोनों को कितना भी प्रयास कर लो,रोका नहीं जा सकता | परन्तु संतरे का भाग्य को क्या कहें ,  जो यूँ ही चौराहे पर किनारे पड़ा हुआ था | उसे कोई उठा कर ले नहीं रहा था | लोग आते उससे बच कर निकल जाते , कारण समझ नहीं आ रहा था| कारण समझ आया,जब एक छोटा बच्चा जो अपनी माँ के साथ जा रहा था , उसने संतरे को  पैर से  ठोकर मार दी | उसकी माँ ने यह देख कर बच्चे को चपत लगायी ,फिर डांटते हुए बोली, ” अरे बीच चौराहे पर किसने जाने कौन सा मन्त्र करके डाल दिया होगा | कितनी बार मना  किया है कि चौराहे पर पड़ी चीज को नहीं छूते, पता नहीं कौन सी अलाय-बाले ले कर आ जाएगा| भाग्य केवल मनुष्यों का ही नहीं होता, मेरी आँखों के सामने चौराहे पर गिर पड़ा वो संतरा मनहूस घोषित हो चुका था | हम सब अपने भविष्य से कितना डरे रहते हैं, हर चौराहा इसका प्रमाण है| वही पास कुछ कबूतर दाने चुगने में लगे थे| सब साथ- साथ खा रहे थे| किसी को परवाह नहीं कौन हिन्दू है, कौन मुसलमान, कौन अमीर ,गरीब , कौन बड़ी जाति का, कौन छोटी जाति का| काश ये गुण हम कबूतरों से सीख सकते| ये धर्म ये जातियाँ हमें कितना जुदा कर देती हैं | एक खास नाम एक खास पहचान से जुड़ कर हम भले ही कुछ खास हो जाते हों , पर इंसान नहीं रह जाते| उन्हीं कबूतरों में से एक कबूतर का दाना चुगने में कोई इंटरेस्ट नहीं था , वो लगा था तिनका बीनने में … उसे नन्हे मेहमान के आने से पहले अपना घोंसला बनाना था | एक सुखद भविष्य की कल्पना ही शयद इतनी मेहनत  करने की प्रेरणा देती है| शायद  इसी आशा से पान वाला अपनी गुमटी लगा रहा .. आज ज्यादा पान बिकेंगे , फिर ..  अरररे … ये क्या? एक  साइकिल वाले की  साइकिल कार  से जरा छू गयी , छोटा सा स्क्रेच आ गया| कार  वाले ने आव- देखा न ताव , झट से गाडी से उतर दो झापड़ लगा दिए | इतने पर भी संतोष नहीं हुआ उसे माँ -बहन की तमाम गालियाँ देता हुआ गाडी ले कर चला गया| अब  साईकिल वाले ने अपनी साइकिल उठायी , इधर -उधर देखा फिर उस कार  वाले को माँ -बहन के तामाम्  गालियाँ देता हुआ विजयी भाव से चला गया | भले ही कार वाले ने न सुना हो , पर ये चौराहा साक्षी था , ये कबूतर साक्षी थे , हवा साक्षी थी , सूरज साक्षी था ,  कि उसने अपने अपमान का बदला ले लिया है| गरीब हो या अमीर , अहंकार पर चोट कौन सह सकता है?  और मैं एक बार फिर साक्षी बनी कि  पुरुषों की लड़ाई में महिलाएं अपमानित होती रही हैं … होती रहेंगी | हर चौराहे पर सबकी माँ बहने हैं अदृश्य … अपमानित | तभी एक झाड़ू वाला आया , वो  अपनी लम्बी झाड़ू से सब कुछ साफ़ कर देता है | वो चौराहा अब भी वही है बस पहले की धूल  साफ़ हो गयी , अब वो फिर से तैयार है कुछ नया लिखने को , मौका दे रहा है हमें एक बार फिर से अपनी राह चुनने को | … Read more

लप्रेक-कॉफ़ी

प्रेम दुनिया की सबसे खूबसूरत भावना है| जिसे प्रेमियों द्वारा कई तरह से व्यक्त किया जाता है| सच्चे प्रेम की पहचान तो दूसरे को अपने में आत्मसात करना ही होती है, चाहे वो रंग हो , ढंग हो या मात्र एक कप कॉफ़ी…  लघु प्रेम कथा – कॉफ़ी अरे! तुम लखनऊ में रहती हो? एक अप्रत्याशित सा प्रश्न सुन कर सब्जी खरीदते हुए नीला के हाथ थम गए| मुड कर देखा , चश्मा ठीक करते हुए अजनबी को पहचानने की कोशिश करते हुए नीता की आँखों में चमक आ गयी| मुस्कुराते हुए बोली, सुरेश तुम, इतने वर्षों बाद अचानक यहाँ? हाँ, बेटी के लिए लड़का देखने आया था| यहीं लखनऊ में, २१ की हो गयी है, बेटा आर्मी में हैं| इस समय गोवा में पोस्टिंग हैं| उसकी माँ कहती है बेटी की शादी हो जाए फिर हम भी गोवा में रहेंगे| बेटे के साथ| अकेले उसे अच्छा नहीं लगता| पर मेरी तो नौकरी है, उसे कैसे छोड़ दूँ| ये औरतें भी न पुत्र मोह में| और तुम ,क्या करती हो, कितने बच्चे हैं, घर कहाँ हैं, तुम्हारे पति? एक साँस में सुरेश इतना सब कुछ बोल गया| नीता मुस्कुराते हुए बोली, उफ़! पहले की तरह नॉन स्टॉप … फिर थोडा रुक कर धीरे से बोली, मैं टीचर हूँ और मैंने शादी नहीं करी सुरेश |                     शादी नहीं करी क्यों? सुरेश ने आश्चर्य से पूंछा? फिर खुद ही हँसते हुए बोला, “ ये तुम्हारा ही फैसला होगा| अब भी उतनी ही शर्मीली हो क्या? तब तो रिकॉर्ड शर्मीली हुआ करती थी तुम| मैं दीवानों की तरह तुम्हारे पीछे–पीछे घूमता, नीता –नीता रटते –रटते, पर तुम आँख बचा कर निकल जाती न कभी हाँ कहती न ना|  दो ही चीजे दिमाग पर भूत की तरह सवार रहती उन दिनों, एक तुम, एक कॉफ़ी| तुम्हे याद करते–करते बीसियों कप गटक जाता एक दिन में| कभी तुम्हारे साथ कॉफ़ी पीने की इच्छा करती तो तुम कहती की तुम्हे काफी से चिढ है, तुम इसे जिंदगी में कभी हाथ नहीं लगाओगी| पर जाने क्यों जब भी मैं कॉलेज में कहीं घूम रहा होता तो तुम्हारी नज़रे मेरे ओझल हो जाने तक मेरा पीछा करती| क्या राज था, अब तो बताओ?एक झटके में फिर बहुत कुछ कह गया सुरेश| कुछ भी तो नहीं, नीता ने सब्जी थैले में रखते हुए लापरवाही से कहा| दोनों साथ –साथ नुक्कड़  की तरफ चल पड़े| सुरेश कुछ उदास सा बोला, “ जानती हो नीता, उन दिनों बहुत फ्रस्टेट रहा करता था तुम्हारी हाँ, या ना जानने को|  एक दिन अपनी कॉमन फ्रेंड राधा से अपनी परेशानी बतायी तो वो बोली, “ हो सकता है वो तुम्हे प्यार करती हो पर संस्कारी लडकियाँ  इतनी आसानी से इसे स्वीकार नहीं कर पाती हैं, न ही वो अपने प्यार का आसानी से इज़हार कर पाती हैं|  तुम्हे सिमटम्स देखने चाहिए| और मैं बहुत दिनों तक किसी सिमटम को खोजता रहा|  एक दिन कैंटीन में कॉफ़ी पीते हुए, राधा पर बिफर उठा, कैसे पता चले उसके मन की बात, बहुत सिमटम्स-सिमटम्स करती हो, कोई तो सिमटम्स बताओ?  राधा बोली, जैसे जब नीता कॉफ़ी पीने लगे तब समझ लेना| ये कभी नहीं होगा, वो कभी भी कॉफ़ी नहीं पीयेगी, और अब मैं भी कभी कॉफ़ी नहीं पियूँगा|  फिर गुस्से में मैंने भी कॉफ़ी का कप कैंटीन की फर्श पर पटक दिया| कप टुकड़े–टुकड़े हो गया| उसमें बची हुई कॉफ़ी दूर तक छिटक गयी… थोड़ा रुक कर सुरेश बोला, “ मैं एक हारा हुआ व्यक्ति था, माता–पिता के कहने पर नेहा से शादी की, उसने मुझे संभाला, जिंदगी में बहुत सारी खुशियाँ आई, नहीं आई तो सिर्फ कॉफ़ी | लो, नुक्कड़ आ गया चलो यहाँ चाय पीते हैं | सुरेश ने नीता की तरफ देख कर कहा | नहीं सुरेश, चाय नहीं मैं अब सिर्फ कॉफ़ी पीती हूँ नीता ने सुरेश की और देख कर कहा| आँखों के टकराने के साथ ही कुछ पल के लिए गहरे मौन में जैसे सृष्टि थम गयी| तुम्हे शायद उधर जाना है और मुझे इधर, कहते हुए नीता दूसरी दिशा में चल दी… और अनबहे आँसुओं से दोनों देर तक भीगते रहे | वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … चॉकलेट केक आखिरी मुलाकात इंतजार तोहफा  आपको  कहानी  “ लप्रेक-कॉफ़ी  “ कैसी लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

प्रीत की पाती – किसी किशोरी के अनगढ़ प्रेमपत्र नहीं ,एक साहित्यिक कृति

                          “प्रीत की पाती” , जैसा की नाम से ही स्पष्ट है ये प्रीत की मधुर भावनाओं से ओत-प्रोत प्रेम पत्र हैं जो प्रेयसी अपने प्रियतम को लिखती है, पर नाम से जो नहीं समझा जा सकता वो है प्रेम की वो बेचैनी वो छटपटाहट जो ” प्रीत की पाती” लिखने को विवश करती है|                                                  भारतीय समाज की विडंबना ही कही जायेगी कि एक 18 वर्षीय किशोरी , जिसकी आँखों में सपने हैं, जो अपने कॉलेज में होने वाले हर अन्याय के खिलाफ बोलती है ,जो समाज को बदलना चाहती है वो अपने पिता द्वारा विवाह की बात करने पर गुहार लगाती है                         बाबा मोहे दान मत दीजिये                           जीती जागती साँस लेती हुई                             संतान आपकी मैं भी हूँ                             स्वप्न हमारे भी हैं कुछ                             सोंचती समझती मैं भी हूँ                            जब भी घुटन हो पीहर मैं                              नैहर का कोना मेरा दीजिये                              बाबा मोहे …                                                                    पिता के उत्तरदायित्व के आगे हार मान कर दुनिया को बदलने की चाह रखने वाली किशोरी  पिया के घर में जा कर खुद बदल जाती है| सृजन यहाँ भी रुकता नहीं है … मांग सिंदूर  , चूड़ी , कंगन और आलते में रचती है अपने  घर का संसार | पर वो कहते है ना ,कि सपने मरते नहीं हैं , वो तो बस दब जाते हैं | यहाँ भी ठीक ऐसा ही हुआ | पर यही दबे हुए सपने  बच्चों के बड़े होते ही फिर खाली समय की गीली मिटटी पा कर पनप गए और उन्होंने  रचना करवाई  “ प्रीत की पाती ” की |   परन्तु  ये “प्रीत की पाती” किसी किसी किशोरी के अनगढ़ प्रेम पत्र नहीं एक साहित्यिक कृति बन जाती है |                                        किसी भी रचनाकार की कृति उसके व्यक्तित्व का आइना होती है | ” प्रीत की पाती” को पढ़ते हुए किरण सिंह जी के उस  व्यक्तित्व को आसानी से पढ़ा जा सकता है , जो प्रेम , करुणा , दया और ममता आदि गुणों से भरा हुआ है |                              प्रीत की पाती में 53 प्रेम रस से भीगे पत्र है , चार घनाक्षरी व् कुछ मुक्तक सवैया दोहा आदि हैं | पत्र लिखने का कारण बेचैनी है , आकुलता है , जो पहले ही पत्र में स्पष्ट हो जाती है |  अक्षर-अक्षर शब्द-शब्द से रस की गगरी छलक रही है|  सच तो ये हैं व्यथा हमारी नेह-नयन  से झलक रही है ||                                                 व्यथा तो है पर प्रीत का बहुत पुनीत रूप है , जहाँ प्रीत उन्मुक्तता का प्रतीक नहीं , एक सुहागन नारी का समर्पण है | तभी तो  प्रियतम को याद दिलाती हैं … सिंदूर का ये नाता गहरा बहुत होता है , भर मान प्रीत रंग से अपना बना लेता है | ——————————— लिखकर उर के पन्नों पर अधरों को मैंने सी लिया,  तुम तो समझते हो मुझे मैं न कहूँ या हां कहूँ | ——————————— टूट जाती है तन्द्रा पग थाप  से  ह्रदय का है नाता मेरा आपसे  प्रेम तो है पर प्रेम का उलाहना भी है,  … मान लिया मैंने तुमको बहुत काम हैं मगर , कैसे तुम्हें मेरी याद नहीं आई | ——————————— कभी शब्दों के तीर चलाते  कभी चलाते गोली  आज तुम्हारी काहे प्रीतम  मीठी हो गयी बोली .. —————————— छल  कपट भरे इस जगत में  तुम भी तो प्रिय छली हो गए  प्रेम में रूठना मनाना न हो यह तो संभव ही नहीं , परन्तु एक स्त्री कभी उस तरह से नहीं रूठ सकती जैसे पुरुष रूठते हैं , उसके रूठना में भी कोमलता होती है |- क्यों इस दिल को यूँ सताते हैं  आप क्यों मुझसे रूठ जाते हैं  ——————————– मांग रही हूँ उत्तर तुझसे , क्यों रूठे हो प्रिय तुम मुझसे  कह दो तो दिन को रात कहूँ  मैं कैसे अपनी बात कहूँ  ——————————– छोड़ देती मैं भी , बात करना मगर,  मुझे रूठ जाने की , आदत नहीं है | ———————————-                  और जैसा कि सदा से होता आया है , प्रेम की अभिव्यक्ति है , प्रतीक्षा है ,ताने -उलाहने हैं, रूठना मानना है ,  फिर अंत में समर्पण … जहाँ इस बात की स्वीकारोक्ति है कि रूठे हो , सताते हो छलिया हो कुछ भी हो पर मेरे हो , मैं  सदा तुमसे प्रेम करुँगी , तुम्हारी प्रतीक्षा करुँगी क्योंकि मैं तुम्हारे बिना जी न सकूँगी … नैन बसी जो मूरत सजना , तोरी सूरत  बार -बार लिखने को मुझी से कह जात है  ——————————————- तुम आओ या ना आओ  यह तो तेरी है इच्छा  मैं तो करुँगी प्रतीक्षा  ———————- प्रिय तुम रह न सकोगे मुझ बिन , मैं भी तुम बिन रह न सकूँगी  छोड़ो यह सब झगडा -रगडा  अब यह सब मैं सह न सकूँगी |  यह उदाहरण  प्रेम की विशालता , उसका समर्पण उसकी गहनता व् उसके हर रूप गहरी पकड को दर्शाते  … Read more