नए साल पर 5 कवितायें -साल बदला है , हम भी बदलें

नया साल , नयी उम्मीदें नए सपने , नयी आशाएं ,नए संकल्प और नए संघर्ष भी | नए साल पर प्रस्तुत हैं पाँच कवितायें … “साल बदला है , हम भी बदलें”  “नया साल “HAPPY NEW YEAR नया साल आने वाला है सब खुश है सबने तैयारी कर ली हैइस उम्मीद के साथशायदजाग जाये सोया भाग्य उसने भी जिसने आपने फटे बस्ते में रखी फटी किताब को सिल लिया है इस उम्मीद के साथ शायद कर सके काम के साथ विध्याभ्यास उसने भी जिसने असंख्य कीले लगी चप्पल में फिर से ठुकवा ली है नयी कील इस उम्मीद के साथ शायद पहुँच जाए चिर -प्रतिच्छित मंजिल के पास उसने भी जसने ठंडे पड़े चूल्हे और गीली लकड़ियों को पोंछ कर सुखा लिया है इस उम्मीद के साथ शायद इस बार बुझ सके पेट की आग और उन्होंने भी जो बड़े-बड़े होटलों क्लबों में जायेगे पिता-प्रदत्त बड़ी-बड़ी गाड़ियों में सुन्दर बालाओं के साथ नशे में धुत चिंता -मुक्त जोर से चिलायेगे हैप्पी न्यू इयर इस विश्वास के साथ बदल जायेगी अगले साल यह गाडी और यह……. सतत जीवन वो देखो ,सुदूर समय के वृक्ष पर झड़ने ही वाला है पिछले साल का पीला पत्ता और उगने को तैयार है नयी हरी कोंपले झेलने को तैयार धूप , गर्मी और बरसात दिलाती है विश्वास बाकी है अभी कुछ और क्षितज नापने को बाकी है कुछ और ऊँचाइयाँ चढने को बाकी है कुछ और यात्राएं बाकी हैं कुछ और संघर्ष बाकी हैं कुछ और विकास  हर अंत के साथ नया  जन्म लेता सतत जीवन भी तो  अभी बाकी है …. “प्रयास “ फिर शुरू  करनी है एक नयी जददोजहद पूस की धुंध मेंसुखानी हैदुखो की चादरजेठ की तपन मेंठंडा करना हैअपूर्ण स्वप्नो कोखौलते मन मेंबारिश की बूंदो मेंअंनबहे आंसुओं कोपी लेना हैगीली आँखों सेहर साल की तरहफिर इस बारकर लेना हैसमय कापुल पारसर पर लिएअतीत कीगठरी का भार ऐ जाते हुए साल ऐ जाते हुए साल तुम्हीं ने सिखाया मुझे की हर साल 31 दिसंबर की रात को ” happy new year ” कह देने से हैप्पी नहीं हो जाता सब कुछ तुम्हीं ने मुझे सिखाया की ” आल इज वेल ” के मखमली कालीन के नीचे छिपे होते हैं नकारात्मकता के कांटे जो कर देते हैं पांवों को लहुलुहान फिर भी रिसते पैरों और टूटी आशाओं के साथ बढ़ना होता है आगे तुम्हीं ने मुझे सिखाया की धुंध के बीच में आकर चुपके से भर देते हो तुम जीवन में धुंध की ३६५पर्वतों के बीच छुपी होती हैं खाइयाँ जहाँ चोटियों पर फतह की मुस्कराहट के साथ मिलते हैं खाइयों में गिरने के घाव भी तुम्हीं ने मुझे सिखाया की हर दिन सूरज का उगना भी नहीं होता एक सामान कभी – कभी रातों की कालिमा होती है इतनी गहरी की कई दिनों तक नहीं होता सूरज उगने का अहसास जब किसी स्याह रात में लिख देते हो तुम अब सब कुछ नहीं होगा पहले जैसा हां ! इतना जरूर है की तुम्हारे लगातार सिखाने समझाने से हर गुज़ारे साल की तरह इस साल भी मैं हो गयी हूँ पहले से बेहतर पहले से मजबूत और पहले से मौन भी सब समझते जानते हुए भी यह तो तय है की इस साल भी जब 31 दिसंबर की रात को ठीक १२ बजे घनघना उठेगी मेरे फोन की घंटी तो उसी तरह उत्साह से भर कर फिर से कहूँगी ” happy new year ” स्वागत में आगत के बिछा दूँगी स्वप्नों के कालीन सजा दूँगी आशाओं के गुलदस्ते और दरवाजे पर टांग दूँगी उम्मीदों के बंदनवार क्योंकि उम्मीदों का जिन्दा रहना मेरे जिन्दा होने का सबूत है साल बदला है , हम भी बदलें  आधी रात दबे पाँव आता है नया साल क्योंकि वो जानता है बहुत उम्मीद लगा कर बैठे हैं सब उससे  होंगी प्राथनाएं बजेंगी  मंदिर में घंटियाँ मस्जिद में होंगीं आजान चर्च में प्रेयर फूटेंगे पटाखे होंगे “ happy new year”के धमाके फिर वो क्या बदल पायेगा दशा भूख से व्याकुल किसानों की सीमा पर निर्दोष मरते जवानों की कि अभी भी लुटी जायेंगीं इज्ज़तें भ्रस्टाचारी  लगायेंगे कहकहे बदलेंगे नहीं  धर्म भाषा और संस्कृति के नाम पर लड़ते झगड़ते लोग हम बदलेंगें सिर्फ कैलेंडर और डाल देंगे उम्मीदों का सारा भर  नए साल पर जश्न पार्टियों और प्रार्थनाओं  के शोर में कहाँ सुनते हैं हम समय की आवाज़ को मैं बदल रहा हूँ तुम भी तो बदल जाओ  वंदना बाजपेयी   आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  happy new year काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें काहे को ब्याही ओ बाबुल मेरे मायके आई हुई बेटियाँ बैसाखियाँ डायरियां आपको  कविता  “.नए साल पर 5 कवितायें -साल बदला है , हम भी बदलें .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की होती है भूल

कितना आसान होता है गलत को गलत कहना और सही को सही कहना | पर ऐसा हमेशा होता नहीं है | मानव मन न जाने कितनी गुत्थियों में उलझा है | ऐसा ही दृश्य कई बार ऐब्युसिव रिश्तों में लोंगों के न सिर्फ टिके रहने में बल्कि अपने ऐब्युजर को प्यार करने में दिखाई देता है | आश्चर्य होता है की हमें कोई जरा सी बुरी बात कह दे तो हम उससे पलट कर कई दिन तक बात नहीं करते | पर सालों-साल कोई किसी रिश्ते में अपमान , दुर्व्यवहार और अकेला कर दिए जाने का शोषण झेलता रहे और इसे प्यार समझता रहे | सवाल उठता है आखिर क्यों ?  ऐब्युसिव रिश्ते – क्यों दुर्व्यवहार को प्यार समझने की तान्या की कहानी  Why I Love my abuser  तान्या पार्टी के लिए तैयार हो रही थी | सौरभ से शादी के बाद उसकी पहली पार्टी थी | और जैसा कि हमेशा होता है, नयी शादी के बाद सजने संवारने का उत्साह जायदा होता है | तान्या ने अपना मेक अप बॉक्स उठाया | बड़ी बहन से बहुत प्यार से गिफ्ट किया था | मैचिंग लिपस्टिक, बिंदी, काजल, ऑय लाइनर और न जाने क्या-क्या | ओह थैंक्स दीदी, मेरी लाइफ को खूबसूरत बनाने की तुम्हारी इस कोशिश के लिए… मन ही मन बुदबुदाते हुए तान्या ने पर्पल लिपस्टिक उठा ली | और भरने लगी अपने होंठों पर रंग | उसके होठों पर बहुत फब रही थी  | तभी सौरभ ने कमरे में प्रवेश  किया | तान्या ने तारीफ़ की आशा से सौरभ की ओर देखा | उसे देखते ही सौरभ ने मुँह  बिचकाते हुए कहा ,“ये क्या चमकीली बन के जा रही हो | हतप्रभ सी रह गयी तान्या, फिर भी बात को सामान्य करने के उद्देश्य से उसने कहा ,“मेरी सभी सहेलियां लगाती हैं सौरभ, इसमें गलत क्या है? “गलत ये है की तुम्हारे पति को पसंद नहीं है | इसलिए तुम लिपस्टिक नहीं लगाओगी| तान्या एक क्षण सकते में आ गयी | फिर उसने मन ही मन सोंचा ,“ हिम्मत कर तान्या, हिम्मत कर, मायके में सभी कहते थे कि पति पत्नी की पसंद नापसंद में थोडा बहुत अन्तर होता है | पर अपनी पसंद बिलकुल त्याग मत देना | एक दूसरे की पसंद को स्वीकार करने की आदत यहीं से पड़ती है |  खुद को समझा कर तान्या  ने सौरभ को मुस्कुरा कर देखा और दूसरे कमरे में चली गयी और अपनी चोटी में क्लिप लगाने लगी | तभी सौरभ वहां आ गया | उसे बांहों में भर कर अपने होठ से उसके होंठ बुरी तरह रगड़ने लगा | इससे पहले की तान्या कुछ समझ पाती सौरभ उसकी सारी लिपस्टिक चट कर चुका था | फिर शातिर मुस्कान से बोला ,“ पति हूँ तुम्हारा| तुम्हारे इन रसीले होंठों पर सिर्फ मेरा हक़ है | घायल होंठ और घायल आत्मा के साथ उस पार्टी की रंगीन शाम के साथ ही तान्या की हर शाम बदरंग हो गयी | उस शाम के बाद से घबराई, डरी, सहमी सी तान्या को सौरभ रोज पति का हक़ और पति की इच्छा ही एक स्त्री जीवन को सार्थक करता है, का पाठ पढाता | तान्या हर संभव प्रयास करती उसे समझने का |  धीरे – धीरे तान्या बदलती जा रही थी | वो वही बनती जा रही थी जो सौरभ चाहते थे | पढ़ी-लिखी अपना कैरियर बनाने की इच्छा रखने वाली तान्या को नौकरी तो दूर, कितना हँसना है, कितना बोलना है, किससे बोलना है, कैसे कपड़े पहनने हैं, कैसे ब्लाउज, कैसी चप्पल, कैसी चोटी, सब कुछ सौरभ का निर्णय होता | औरतों के लिए पति ही सबकुछ है इसलिए उसे यह निर्णय मानने ही उचित लगते |  अम्मा ने भी तो यही पाठ पढ़ा कर भेजा था ,“बिटिया लोनी मिटटी बन कर रहना |” पर क्यों उसे लगता वह ताबूत में है? जहाँ उसे मुट्ठी भर दानों व् समाज की स्वीकार्यता के लिए सब कुछ सहना है | फिर उसे इतनी बेचैनी क्यों? कभी इन बेचानियों को वो बर्दाश्त कर लेती, तो कभी – कभी अन्दर का दवाब लावा बन कर बहने लगता | वो सौरभ से कहती, “सौरभ ये सही नहीं है| मैं बहुत घुटन महसूस कर रही हूँ, मैं ये नहीं कर पाउंगी | तब सौरभ उसे और कुसंस्कारी अशालीन औरत के अलंकारों से नवाज़ देते और घबरा कर वह स्वयं उसी ताबूत में में घुस जाती मुट्ठी भर दानों के साथ |  तान्या ये जानती थी कि वो उस व्यक्ति से प्यार कर रही है जो प्यार के नाम पर उसका शोषण करता है| प्यार कभी भी कंडिशनल नहीं होता | वो इस शोषण वाले रिश्ते से निकलने की कोशिश करती तो उसे लगता वो सौरभ के उस प्यार को हमेशा के लिए खो देगी जो उसके दुर्व्यवहार किताप्ती रेत में कभी – कभी बेमौसम बरसता | लेकिन कभी उसे लगता की प्यार का मूल रूप ही शोषण है | उसे प्यार नाम से ही नफरत होती | धीरे – धीरे वो अपने में सिमटती चली  जा रही थी | उसने हार कर अपनी समस्या अपनी सहेली को बतायी | उसने गंभीरता से सुना और बोली, “तान्या इसका हल ये है कि तुम खुद से प्यार करो”| तुमने  सौरभ को ये हक़ दे दिया है की वो तुम्हे उपयोगी या अनुपयोगी करार दे | तुम्हाती वर्थ सौरभ के द्वारा तुम्हें स्वीकारते जाने में नहीं है | वो प्यार करे न करे जब तक तुम खुद को प्यार नहीं करोगी , खुद को नहीं स्वीकारोगी तब तक सौरभ तुम्हारा ऐसे ही शोषण करता रहेगा |  वो दिन तान्या के लिए सबसे बड़ा निराशा का दिन था |वो तो इतना सब कुछ होने के बाद भी सौरभ से प्यार करती है | फिर खुद से प्यार |  तान्या समझ ही नहीं पायी कि उसका ये खुद क्या है जिसे उसको प्यार करना | वो अतीत की तान्या जिसे वो रगड़ – रगड़ कर मिटा चुकी है | जिसके जख्म उसके शरीर पर हैं पर जिसकी कोइ पहचान  बाकी नहीं है |  या वो तान्या जो सौरभ के ताबूत में बंद है | जिसे सौरभ ने रचा है | हर दिन छेनी हथौड़े से तराश – तराश कर | घायल –चोटिल … Read more

2018 में लें हार न मानने का संकल्प

 ये लो मिठाई , निक्की की पहली कमाई की है , फायनली सब कुछ ठीक हो गया , मेरे दरवाजा खोलते ही श्रीमती शर्मा ने कहा | मैंने खुश हो कर मिठाई का डब्बा हाथ में लिया और उन्हें बधाई देते हुए कहा ,” अब देखिएगा निक्की सफलता की नयी दास्ताने लिखेगी | घंटे भर हमने चाय के कप के साथ हँसी –ख़ुशी के माहौल में बातचीत की | उनके जाने के बाद मैं निक्की के बारे में सोंचने लगी | निक्की बचपन से ही मल्टी टेलेंटेड रही है |पढाई में अव्वल , खूबसूरत पेंटिंग बनाना , कागज़ और गत्तों से डॉल हाउस बनाना और गायकी  तो इतनकी गज़ब की क्या कहा जाए | सबकी तारीफें सुन श्रीमती शर्मा बेटी पर फूली न समाती|उन की तरह हम सब को विश्वास था की निक्की जीवन में बहुत सफल होगी | पढाई में हमेशा फर्स्ट आने वाली निक्की का बारहवीं से मन थोडा पढाई से हटने लगा | बारहवीं में उसने बायो व् मैथ्स का कॉम्बीनेशन लिया था |उसने ने NEET व् AIEEE पेपर २ दोनों की परीक्षा दी | उसका NEET के द्वारा बिहार के छोटे शहर में सेलेक्शन भी हो गया |बधाइयों का ताँता लग गया | निक्की  भी बहुत खुश थी क्योंकि बचपन से  वो डॉक्टर बनना चाहती थी |वो मेडिकल कॉलेज के लिए रवाना हो गयी | महीने भर बाद उस के रोते हुए फोन आने लगे , मम्मा मैं डॉक्टर नहीं बन पाऊँगी| मैं घर आना चाहती हूँ | माँ – पिता के हाथ से जैसे तोते उड़ गए | उन्होंने बहुत समझाया पर वो इनकार करती रही | दिल्ली की लड़की शायद छोटे शहर में एडजस्ट न हो पा रही हो सोंच कर पिता उसे हफ्ते भर के लिए दिल्ली ले कर आये | पर उसने वापस जाने से मना कर दिया | उसे तो डॉक्टर बनना ही नहीं है | उसकी द्रणता  देखकर माता – पिता ने हथियार डाल दिए | नेक्स्ट ऑप्शन के तौर पर AIEEE का आर्कीटेक्चर चुना |साल तो बर्बाद हो गया था पर अगले वर्ष उसने आर्कीटेक्चर  ज्वाइन किया |कुछ ही महीनों में वो पिछड़ने लगी , ऊबने लगी | उसने माँ से इसे भी छोड़ने को कहा | माता – पिता डर गए | पर उसने अगले एग्जाम को देने से उसने इनकार कर दिया | क्योंकि उसे लगता था उसका पास होना मुश्किल है | पूरा घर निराशा की गिरफ्त में आ गया | श्रीमती शर्मा की गिरती सेहत इस बात का प्रमाण दे देती | तभी किसी ने सलाह दी निक्की गाना तो अच्छा गाती है | इसी में इसका कैरियर बनवा दीजिये | निक्की की सिंगिंग क्लासेज शुरू हो गयीं | निक्की ने रियाज शुरू किया पर कुछ दिन बाद उसे भी छोड़ दिया | हैरान परेशान सी निक्की को समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है | आखिर वो क्यों बार – बार असफल हो रही है | मल्टी टेलेंटेड निक्की मल्टी फेलियर निक्की में बदल रही थी |निक्की गहरे अवसाद में घिर गयी | महीनों खाना , सोना , दैनिक चर्या का क्रम बिगड़ा रहा | फिर निक्की ने ही कहा वो कम्प्यूटर कोर्स करेगी | बेटी में वापस आशा का संचार देख कर माता – पिता जो उसे खो देने के भय से भयभीत थे तुरंत राजी हो गए | निक्की ने कम्प्यूटर्स की परीक्षा बहुत अच्छे नंबरों से पास की | घर में एक छोटा सा स्टार्ट अप खोला |और आज निक्की की पहली कामाई की मिठाई …. वाकई बहुत मीठी है |  जीवन में कभी आशा है तो कभी निराशा , कभी सुख ,कभी दुःख , कभी सफलता तो कभी असफलता | जीवन इन सब से मिलकर ही बनता है | अगर हम इसको सहज भाव से लेते हैं तो कोई मुश्किल नहीं है | पर जहाँ हमें आशा सुख और सफलता आल्हादित करती है वही निराशा , दुःख और असफलता हमारी हिम्मत तोड़ देते हैं |इन पलों में असीम वेदना से गुज़रते व्यक्ति को लगता है कि काश कोई ऐसे जादू की छड़ी होती जो हमें इन सब हारों से निकाल  लेती | तो आज मैं आपको वो जादू की छड़ी ही दे रही हूँ | वो है कभी हार न मानने का संकल्प | जी हाँ , इस लेख को लिखने की यही खास वजह है | 2018 आने वाला है | हम सब एक बार फिर नए जोश के साथ नए साल का स्वागत करना चाहते हैं | हम सबको आशा है कि नया साल अपने थैले में हमारे लिए बहुत सारी  खुशियाँ और सफलता ले कर आयेगा | मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि ऐसा जरूर होगा | बस आपको , मुझको , हम सब को एक संकल्प लेने की आवश्यकता है … आइये लें 2018 में हार न मानने का संकल्प दुःख , निराशा और असफलता में से आज मैं इस लेख के लिय असफलता का चयन कर रही हूँ | क्योंकि असफलता ही है जो दुःख और निराशा के मूल में हैं | हम सब सफलत होना चाहते हैं |फिर भी हो नहीं पाते | कई बार उससे निकलने के लिए हम दूसरा , तीसरा प्रयास भी करते हैं पर बार – बार असफल होते जाते हैं |एक के बाद एक असफलताएं झेलना कोई आसान काम नहीं है |  जाहिर है असफलताएं हमारी हिम्मत तोडती हैं | कई बार तो हिम्मत इतनी टूट जाती है की हम जिंदगी से ही हार मान कर बैठ जाते हैं | और उसके बाद आने वाले मौके हमे दिखाई ही नहीं देते | और हमारे जीवन में हारने का सिलसिला शुरू हो जाता है | पूरा समाज हमारे ऊपर लेवल लगा देता है …. “असफल “ आपको शायद अमिताभ बच्चन की वो फिल्म याद हो जिसमें एक मासूम बच्चे के हाथ पर गोद दिया जाता है ,” मेरा बाप चोर है “ अपमान निराशा से भरे उस बच्चे में विद्रोह जागता है और यहीं से शुरू होती है उसके एंग्री यंग मैंन बनने  की कहानी |वो पहले सफलता हासिल करता है फिर दुश्मनों से बदला लेता है |हम अमिताभ बच्चन की फिल्मों पर तालियाँ बजाते हुए घर लौट आते हैं | … Read more

सोल हीलिंग – कैसे बातचीत से पहचाने आत्मा छुपे घाव को

                                                          बचपन में सब कहते थे की शैव्या बहुत सीधी  है | शैव्या थी भी ऐसी ही | माँ ने कहती  यहाँ बैठ जाओं तो घंटो बैठी रहेगी | घर से निकलने से ठीक पहले तैयार शैव्या से पिताजी ने कहते  नहीं आज घूमने नहीं चल पाएंगे |बिना ना – नुकुर किये  शैव्या मान जाती |दादी कहती ,” शैव्या अपनी सबसे प्यारी गुडिया चाहेरी बहन काव्या को दे दो | शैव्या ख़ुशी- ख़ुशी दे देती | दरसल सबकी ख़ुशी में ही शैव्या खुश रहती थी | इसी लिए सब उससे खुश रहते थे | समाज के हिसाब से देखे तो ये तो बहुत अच्छी बात हैं | पर ये बात आगे चलकर शैव्या के लिए बहुत अच्छी सिद्ध नहीं हुई | सबकी ख़ुशी में खुश होने वाली शैव्या धीरे – धीरे भूल ही गयी कि उसकी पसंद –ना पसंद किसमें  है | उसकी ख़ुशी किसमे है | तू जो कहे हाँ तो हाँ , तू  जो कहे ना तो ना में शैव्या का निजी व्यक्तित्व दबता गया | सबको खुश रखने वाली शैव्या दुखी रहने लगी | सबका प्यार पाने वाली शैव्या अपने आप से नफरत करने लगी |शैव्या सबसे कटने लगी | तो लोग उसे दब्बू , खुदगर्ज बुलाने लगे | ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शैव्या के व्यव्हार में उसकी आत्मा के घाव और उसका दर्द लोग समझ नहीं पाए | पर ये कहानी सिर्फ शैव्या की नहीं है |   जरा सोंचिये हम सब सब कितनी बातें करते हैं | सुबह से शाम तक | और बातों के आधार पर दूसरों को समझने की कोशिश भी करते हैं | पर क्या बातें वो बता पाती हैं जो वो  छुपा रहे हैं | जाहिर है नहीं | यहाँ मैं  उनकी निजी   बातों  की बात नहीं कर रही हूँ | बल्कि उन  घावों की बात कर रही हूँ जो हमारी/उनकी  आत्मा पर होते हैं |हर आत्मा पवित्र , शांति पूर्ण व् शक्ति से भरी हुई है | पर समय के साथ – साथ हमारी आत्मा पर गहरे घाव होते जाते हैं | क्योंकि हमारे व्यक्तित्व का निर्माण बहुत सारी  बातों से होता है | जिसमे हमारे बचपन का बहुत बड़ा हिस्सा होता है | लेकिन ऐसा नहीं है कि उसके बाद हमारा व्यक्तित्व बनना बंद हो जाता है | जीवन में जब भी ,किसी भी उम्र में जब हम एक जैसी परिस्थितियों  के साथ लम्बे समय तक रहते हैं तो उनसे हमारा व्यक्तित्व बनता जाता है | लेकिन हर व्यक्तिव के बनने के पीछे कुछ घाव होते हैं जिसे हम छुपा रहे हैं | सोल या आत्मा के सन्दर्भ में कुछ भी गलत नहीं है | कोई भी बुरा नहीं है | पर जब हम किसी व्यक्ति की बात करते हैं तो कहते हैं कि वो बहुत खुशमिजाज है , वो बहुत नकचिढा है , अकडू है या भावनाहीन है | अगर आप आध्यात्मिक है तो अवश्य ही आपको ये विरोधाभासी लगता होगा |  सोल हीलिंग में आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे और जानेगे कि जो इंसान ऐसा या वैसा है वो ऐसा क्यों है | जब आप उसके मूल स्वाभाव को समझ लेंगे | तब उसके व्यवहार की बुराई – भलाई करने के स्थान पर आप उससे सहज रूप से स्नेह करने लगेंगे | आत्मा को आत्मा से जोड़ने में इससे बेहतर और क्या हो सकता है | तो आइये चलते हैं सोल हीलिंग पर … सोल हीलिंग – कैसे बातचीत से पहचाने व्यक्ति के  छुपे घाव  को  soul healing-how to identify soul’s hidden wounds by talking किसी व्यक्ति की बातचीत से आप उसकी आत्मा के छुपे घावों को जानने के लिए सबसे पहले तो इस उदाहरण पर जरा ध्यान दीजिये …. रीता , निधि , श्यामा , मीता और राधिका पांच सहेलियाँ हैं | वो एक पिकनिक जाने का कार्यक्रम बनाती हैं | पाँचों नियत समय पर उस स्थान में पहुँचती हैं | जहाँ उनकी टैक्सी खड़ी  होगी | पर वहां पहुँचते ही देखती हैं कि टैक्सी का टायर पंचर है | उफ़ , ये पहला शब्द है जो शायद सबके मुँह से निकलता है | फिर देखिये क्या होता है .. निधि : टैक्सी कैसे पंचर हो गयी | जरूर इसके ड्राइवर ने किसी कील पर चढ़ा दी होगी | फिर रीता की ओर देख कर ,” रीता तुमने टैक्सी देर से बुलाई | अगर तुम जल्दी बुला देती तो शायद कील  इस टैक्सी के टायर में नहीं चुभी होती | लेकिन तुम जल्दी कैसे बुलाती ? क्योंकि तुम उठ ही नहीं पायी होगी | उफ़ , एक तो इतनी गर्मी है | सूरज को भी इतना तपना था | अब इतनी गर्मी में हम को दूसरी टैक्सी भी नहीं मिलेगी | किसी ने ठीक से प्रोग्राम नहीं सेट किया | पूरा प्रोग्राम चौपट हो गया |  रीता : माफ़ी मांगती हूँ निधि , सब मेरी ही गलती है | sorry , मैं जल्दी उठ नहीं पायी | वो क्या है रात को देर तक पढाई की | नींद नहीं खुली | मम्मी से कहा था जगाने को पर उन्होंने जगाया ही नहीं | मम्मी की तरफ से भी सॉरी | नहीं तो हमारी टैक्सी ठीक होती | सॉरी,तुम्हे इतनी गर्मी लग रही है | सब मेरी ही गलती है | अब जब दूसरी टैक्सी करेंगे तो उसके सारे पैसे मैं दूंगी | अब तो खुश हो जाओ |  श्यामा : निधि की सॉरी से रीता पर कोई असर नहीं है वो लगतार बोलती ही जा रही है | श्यामा इन दोनों के झगडे से बेखबर मोबाईल से तस्वीरे खींच रही है | वो ऐसे दिखा रही है कि जैसे दोनों से उसे कोइ मतलब ही नहीं है | या उसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा है | मीता : रीता और निधि  के बीच में जाकर अरे छोड़ो कह कर अपने मोबाइल पर सेव् किया हुआ कॉलेज का वीडियो दिखाने लगती है | इधर , उधर की बातें करने लगती है | जिससे झगडा  धीमा तो होता है पर जारी रहता है |  राधिका : … Read more

तुम्हारे पति का नाम क्या है ?

                                           आज सुबह सुबह श्रीमती जुनेजा से मुलाक़ात हो गयी | थोड़ी – थोड़ी देर में कहती जा रही थीं | रमेश की ये बात रमेश की वो बात | दरसल रमेश उनके पति हैं | वैसे भी आजकल पत्नियों द्वारा  पति का नाम लेना बहुत आम बात है | और क्यों न लें अब पति स्वामी नहीं बेस्ट फ्रेंड जो है | लेकिन श्रीमती जुनेजा जी ने मुझे अपनी प्यारी रिश्ते की भाभी जी का किस्सा याद याद दिला दिया | उनकी तकलीफ का महिलाएं आसानी से अनुमान लगा सकती हैं | ये उस समय की बात है जब पत्नियों द्वारा पति का नाम लेना सिर्फ गलत ही नहीं अशुभ मानते थे | तो भाभी  की कहानी उन्हीं की जुबानी … क्या – क्या न सहे सितम … पति के नाम की खातिर   भारतीय संस्कृति में पत्नियों  द्वारा पति का नाम लेना वर्जित है।मान्यता है नाम लेने से पति की आयु घटती है। ,अब कौन पत्नी इतना बड़ा जोखिम लेना चाहेगी ?इसलिए  ज्यादातर पत्नियाँ पति  का नाम पूछे जाने पर बच्चों को आगे कर देती हैं “बेटा  बताओं तुम्हारे पापा का नाम क्या है ?”या आस -पास खड़े किसी व्यक्ति की तरफ बहुत  याचक दृष्टि से देखती हैं, वैसे ही जैसे गज़ ,ग्राह  के शिकंजे में आने पर श्री हरी विष्णु की तरफ देखता है “अब तो तार लियो नाथ “.  इस लाचारी को देखते हुए कभी -कभी इनीसिअल्स से काम चलाने के अनुमति धर्म संविधान में दी गयी है। परंतु जरा सोचिये .. आप नयी -नयी बहू हो ,सर पर लम्बा सा घूंघट हो , और आपके साथ मीलों दूर -दूर तक कोई न हो ,ऐसे में परिवार का कोई बुजुर्ग आपसे ,आपके पति का नाम पूँछ दे तो क्या दुर्गति या सद्गति होती हैं इसका अंदाज़ा हमारी बहने आसानी से लगा सकती हैं।  आज हम अपने साथ हुए ऐसे ही हादसे को साझा करने जा रहे है। जब मुझसे पति का नाम पूंछा गया                                                          जाहिर है बात तब की जब हमारी नयी -नयी शादी हुई थी।  हमारे यहाँ लडकियाँ मायके में किसी के पैर नहीं छूती ,पैर छूने का सिलसिला शादी के बाद ही शुरू होता है। नया -नया जोश था , लगता था दौड़ -दौड़ कर सबके पैर छू  ले कितना मजा आता था जब आशीर्वाद मिलता था।  लड़कपन में में तो नमस्ते  के जवाब में हाँ, हाँ नमस्ते ही मिलता था।  हमारी भाभी ने शादी से पहले हमें बहुत सारी  जरूरी हिदायतें दी बहुत कुछ समझाया पर ये बात नहीं समझायी की पारिवारिक समारोह में किसी बुजुर्ग के पैर छूने अकेले मत जाना।अब इसे भाभी की गलती कहें या हमारी किस्मत… शादी के बाद हम एक पारिवारिक समारोह में पति के गाँव गए, तो हमने घर के बाहर चबूतरे पर बैठे एक बुजुर्ग के पाँव छू  लिए। पाँव छूते ही उन्होंने पहला प्रश्न दागा  “किसकी दुल्हन हो “? जाहिर सी बात है गर्दन तक घूँघट होने के कारण वो हमारा चेहरा तो देख नहीं सकते थे |हम  पति का नाम तो ले नहीं सकते और हमारी सहायता करने के लिए मीलों दूर -दूर तक खेत -खलिहानों और उस पर बोलते कौवों के अलावा कोई नहीं था ,लिहाज़ा हमारे पास एक ही रास्ता था की वो नाम ले और हम सर हिला कर हाँ या ना में जवाब दे। उन्होंने पूछना शुरू किया ………….                            पप्पू की दुल्हन हो ?हमने ना में सर हिला दिया।                          गुड्डू की ?                          बंटू की ?                         बबलू की ?                                         मैं ना में गर्दन हिलाती जा रही थी ,और सोच रही थी की वो जल्दी से मेरे पति का नाम ले और मैं चलती बनू। पर उस दिन सारे ग्रह -नक्षत्र मेरे खिलाफ थे। वो नाम लेते जा रहे थे मैं ना कहती जा रही थी , घडी की सुइयां आगे बढ़ती जा रही थी ,मैं पूरी तरह शिकंजे में फसी  मन ही मन  पति पर बड़बड़ा रही थी “क्या जरूरत थी इतना ख़ास नाम रखने की ,पहला वाला क्या बुरा था ?  पर वो बुजुर्ग भी हार मानने को तैयार नहीं थे| उनकी यह जानने की अदम्य इक्षा  थी की उनके सामने खड़ी जिस निरीह अबला नारी ने अकेले में उनके पैर छूने का दुस्साहस किया है वो आखिर है किसकी दुल्हन ?असली घी खाए वो पूजनीय एक के बाद एक गलत नामों की सूची बोले जा रहे थे और मैं ना में गर्दन हिलाये जा रही थी। पति के नाम के अतरिक्त ले डाले सारे नाम                                                   धीरे -धीरे स्तिथि यह हो गयी की उन्होंने मेरे पति के अतिरिक्त अखिल ब्रह्माण्ड के सारे पुरुषों के नाम उच्चारित कर दिए। जून का महीना ,दोपहर का समय ,भारी कामदार साड़ी सर पर लंबा घूँघट ,ढेर सारे जेवर पहने होने की वजह से मुझे चक्कर आने लगे। अब मैंने मन ही मन दुर्गा कवच का पाठ शुरू कर दिया “हे माँ ! अब आप ही कुछ कर सकती हैं ,त्राहि मांम ,त्राहि माम ,रक्षि माम रक्षि माम।                                                             और  अंत में जब माँ जगदम्बा की कृपा से उन्हें मेरे पति का नाम याद आया तो मेरी गर्दन इतनी अकड़ गयी थी  की न हाँ में हिल सकती थी ना ,ना में ………                             … Read more

जाने -अनजाने मत बनिए टॉक्सिक पेरेंट

                        मुझे पता है आप इस लेख के शीर्षक को पढ़ते ही नकार देंगे | पेरेंट्स वो भी टॉक्सिक ? ये तो असंभव है | जो माता –पिता अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं | उनके लिए पैसे कमातें हैं , घर में  सारा समय देखभाल करते हुए बिताते हैं वो भला  टॉक्सिक कैसे हो सकते हैं | आप का सोचना भी गलत नहीं है | पर दुखद सत्य यह है की कई बार माता –पिता न चाहते हुए अपने बच्चों  के टॉक्सिक पेरेंट्स बन जाते हैं | जो न सिर्फ अपने ही हाथों से अपने बच्चों का बचपन छीन लेते हैं अपितु व्यस्क  के रूप में भी उन्हें एक अन्धकार से भरे मार्ग पर धकेल देते हैं | अगर आप भी जाने अनजाने टॉक्सिक पेरेंट्स बन गए हैं तो अभी भी समय है अपने आप को बदल लें ताकि आप की बगिया के फूल आप के बच्चे जीवन भर मुस्कुराते रहे | आप टॉक्सिक पेरेंट हो या न हों पर अपने व्यवहार पर गौर करिए | यहाँ कुछ लक्षण दिए जा रहे हैं | अगर उनमें से कुछ लक्षण आप से मिलते हैं तो निश्चित जानिये की आप  के बच्चे आपके साथ अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं | इतना ही नहीं वो बड़े होकर एक संतुलित व्यस्क भी नहीं बन पायेंगे |  बहुत द्रढ  या टफ पेरेंट                आज्ञाकारी बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते | पर उन्हें आज्ञाकारी बनाने की जगह रोबोट मत बनाइये | मेरी ना का मतलब ना है के जुमले को बार –बार इस्तेमाल मत करिए | जीवन एक नदी की तरह है | कई बार यहाँ रास्तों को काटना होता है , कई बार धारा  को मोड़ लेना होता है|  अपने ही नियम चलाने वाले माता –पिता को लगता है उन्हें बच्चों से ज्यादा पता है तो बच्चों को उनकी बात माननी ही चाहिए | पर कई बार इसका उल्टा असर पड़ता है | बच्चों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास नहीं होता | वो बात –बात पर दूसरों का मुँह देखते हैं | और जीवन के संग्राम में अनिर्णय की स्तिथि में रह कर असफल होते हैं | जरूरत से ज्यादा आलोचक पेरेंट्स                 ऐसे कोई माता –पिता नहीं होते जो कभी न कभी अपने बच्चे की आलोचना न करते हो | कबीर के दोहे “ भीतर हाथ संभार  दे बाहर  बाहे चोट “ की तर्ज़ पर बच्चों को दुनियादारी सिखाने के लिए यह जरूरी भी है | परन्तु यहाँ बात हो रही है जरूरत से ज्यादा आलोचक .. जैसे तुमसे तो ये काम हो ही नहीं सकता | ये बेड शीट बिछाई है , कवर ऐसे चढाते हैं आदि बात -बात पर कहने वाले माता –पिता यह सोचते हैं की वो बच्चों को ऐसा इसलिए कहते हैं ताकि बड़े होने पर वो कोई गलती न करें |पर उनका यह व्यवहार बच्चे के अन्दर अपने कामों के प्रति एक आंतरिक आलोचक उत्पन्न कर देता है जो बड़ा होने पर उन्हें अशक्त व्यस्क में  बदल देता है |  बच्चों का जरूरत से ज्यादा ध्यान चाहने वाले पेरेंट्स                  कौन माता –पिता नहीं चाहते की बच्चे उनका ध्यान रखे | पर बच्चा हर समय आप में ही लगा रहे ये उसके साथ ज्यादती है |ऐसे पेरेंट्स अक्सर ,”अरे कहाँ अकेले खेल रहे हो , हमारी याद नहीं आ रही , हमारी आँखों के सामने रहते हो तभी तसल्ली मिलती है आदि वाक्यों का प्रयोग करते हैं |  ऐसा अक्सर वो माता –पिता करते हैं जिनके अपने जीवन में कोई कमी होती है | अब वो अपने को बच्चे की नज़रों में सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए उसे बिलकुल भी स्पेस नहीं देना चाहते | जिन्होंने फागुन फिल्म देखी  होगी उन्हें उसमें वहीदा रहमान द्वारा  अभिनीत पात्र अवश्य याद आ गया होगा | याद रखिये बच्चा एक स्वतंत्र जीव है उसे अपना पेरासाइट न बनाइये | अगर वो हर समय आप में उलझा रहेगा तो बाहर निकल कर सीखने के अनेकों अवसरों को खो देगा | बच्चों को ताने देने वाले पेरेंट्स                हर बच्चा एक अपने आप में अनमोल है | वो एक विशेष प्रतिभा ले कर आता है | हो सकता है आप ने उसके लिए जो सोचा  है उसमें उसका मन न लगता हो | जैसे नेहा का मन नृत्य में लगता था | टी वी में जैसे ही कोई डांस का प्रोग्राम आता नेहा दौड़ कर आ जाती | स्टेप्स देख-देख कर नाचने का अभ्यास करती | पर उसके माता –पिता की नज़र में यह एक गंदी चीज थी | वो उसे घर में और बाहर वालों के सामने ताना देते ,” पढ़ती लिखती तो है नहीं,  नचनिया बनेगी | नेहा अपमानित महसूस करती | राहुल अच्छी पेंटिंग करता पर माता –पिता ताने देते , ‘पेंटिंग से क्या होता है , रोटी  थोड़ी न मिलेगी , बड़े हो कर रिक्शा चलायोगे |या अपने ही बच्चों  के हाईट वेट को ले कर उपहास उड़ाते है … आओ मोटू आओ , मेरी कल्लो को कौन बयाहेगा , दुनिया के सब बच्चे बढ़ गए पर तुम्हारी तो गाडी आगे खिसक ही नहीं रही है | यह व्यवहार बच्चे  का अपने प्रति  दृष्टिकोण बहुत खराब कर देता है | उसका आत्म विश्वास खो जाता है | अगर कुछ कर सकते हैं तो करें अन्यथा जैसा उसे ईश्वर ने बनाया है उसे पूरे दिल से स्वीकारें |   बड़े हो चुके बच्चों को डराने – धमकाने वाले पेरेंट्स            पुरानी कहावत है जब पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे बेटा नहीं दोस्त समझना चाहिए | पर जो पेरेंट्स बच्चों को अपनी संपत्ति समझते हैं वो बड़े पर भी बच्चों को डराना धमकाना जारी रखते है | वो समझतें हैं की बच्चे चुपचाप उनका यह व्यवहार सह लें  तभी यह सिद्ध होगा की वो उनसे प्यार करते हैं | कई बार इस तरह की शारीरिक व् भावनात्मक शोषण के भय से बच्चे उनकी बात मानते भी हैं | पर यह व्यवहार बड़े होने के बाद भी बच्चों का मनोविज्ञान पूरी तरह से नकारात्मक कर देता है | बच्चों को काबू में रखने के लिए उनमें गिल्ट भरने वाले पेरेंट्स                         दुनिया का हर चौथा बच्चा कोई न कोई गिल्ट पाले … Read more

बहुत देर तक चुभते रहे “काँच के शामियाने “

इसे सुखद संयोग ही कहा जाएगा की जिस दिन मैंने फ्लिपकार्ट पर रश्मि रविजा जी का उपन्यास ” कांच के शामियाने आर्डर किया उस के अगले दिन ही मुझे “कांच के शामियाने” को महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी द्वारा “जैनेन्द्र कुमार पुरस्कार” दिए जाने की घोषणा की  सूचना मिली | अधीरता और बढ़ गयी | दो दिन बाद उपन्यास मेरे हाथ में था | बड़ी उत्सुकता से उपन्यास पढना शुरू किया ….”झील में तब्दील होती वो चंचल पहाड़ी नदी”और शुरू हुआ मेरा जया  के साथ एक दर्द भरा सफ़र , ये  सफ़र था  एक मासूम लड़की , एक शोषित पत्नी और संघर्ष करती माँ के साथ | जितना पढ़ती गयी जया  के साथ घुलती मिलती गयी | और क्यों न हो ? ऐसी कितनी जयायें मैंने जिंदगी में देखी थी | पड़ोस की बन्नो , सरला मौसी गाँव की तिवारीं चाची | एक साथ न जाने कितनी स्मृतियाँ ताज़ा हो गयीं |मन अधीर हो उठा … नहीं , नहीं ये जया हारेगी नहीं | मन दुआ करने लगा जो हकीकत में देखा था कम से कम जया  के साथ न हो | और मैं बिना रुके पढ़ती चली गयी … जया  के साथ जुडती चली गयी | चुभते है गड़ते है  “काँच के शामियाने “                                काँच के शामियाने एक स्त्री की हकीकत है | एक ऐसी दर्दनाक हकीकत जिसमें रिसते , गड़ते घावों का दंश झेलती महिला महफूज मानी जाती है | किसने बनाया है औरत के लिए सब सहने में खुश होने का अलिखित कानून ? और क्यों बनाया है ?  जया एक आम मध्यम  वर्गीय  महिला का प्रतिनिधित्व करती है | जो  ये जानते हुए कि उसका शोषण हो रहा है …. शायद कल सब कुछ अच्छा हो जाए सोंचकर सब कुछ सहती रहती है | पर ऐसा दिन परी कथाओं में तो होता है असली जिन्दगी में नहीं | वो घर में कैद कर ली जाती है , अपने मायके की औकात के ताने झेलती है और जिस सामाज के सामने वो फ़रियाद ले कर जाती है वो इसे पति – पत्नी का झगडा बता कर बीच में पड़ने से मना  कर देता है | नतीजा पति  राजीव व् ससुराल वालों के अत्याचार दिन पर दिन बढ़ते ही जाते है | यहाँ पर एक प्रश्न मन में उठता है कि ” लोग क्या कहेंगे “के नाम पर औरत के पैरों में कितनी बेड़ियाँ डाल दी जाती हैं | जिन्हें झेलने को वो विवश है पर यही लोग पति के अत्याचारों पर पति – पत्नी का मामला बता कर मौन धारण  कर लेते हैं | स्त्री के शोषण के पीछे केवल ससुराल वाले व् पति ही जिम्मेदार नहीं है | पूरा समाज जिम्मेदार है | वही समाज जो हमसे आपसे मिलकर बनता है | सामाज का ये गैर जिम्मेदाराना रवैया हम को और आपको सोंचने और बदलने की वकालत करता है | स्त्री का साथ नहीं देता मायका                                                     कहते हैं लड़की का कोई घर नहीं होता है | होता है तो एक मायका और एक ससुराल | इस पर ससुराल में पीड़ित महिलाएं अपनी फ़रियाद लेकर कहाँ जाए | कौन है जो उन्हें इस दर्द से जूझने की क्षमता देगा ?  ” काँच के शामियाने ” से  कुछ पंक्तियाँ जया द्वारा कही गयीं  आपसे साझा करना चाहती हूँ … किरण दीदी जब भी ससुराल आती मुहल्ले में खबर फ़ैल जाती कि उनके ससुराल वाले बहुत मारते – पीटते हैं , सताते हैं पड़ोस की औरते एक दूसरे से आँख के इशारे से कहती ,” आ गयी फिर से , जरूर फिर से कुछ हुआ होगा ” फिर दस एक दिनों में उनके बाबूजी या भैया उन्हें वापस ससुराल पहुंचा आते | पिछले कुछ सालों से किरण दी ने मायके आना बंद कर दिया | तब भी लोग उन्हें को दोषी ठहराते | कहते ,” कैसी पत्थरदिल है | माँ – बाबूजी को देखने का भी मन नहीं करता | उन दिनों गहराई से समझ नहीं पायी थी |कब तक झूठी मुस्कान ओढ़े अपने माता – पिता की लाडली होने का दिखावा करती | उनका भी मन दुखता होगा जब अकेले में सब सहना है तो क्यों वो किसी झूठे दिलासे की उम्मीद में मायके का रुख करें | क्या बेटा  भी किसी दुःख मुसीबत में होता तो वो उसे यूँ ही अकेला छोड़ देते |                             हम सब जानते हैं की ये हमारे समाज की सच्चाई है | माता – पिता बेटी की शादी कर  अपना बोझ उतार देते हैं | फिर चाहे बेटी कितना बोझ ढोती रहे | इसी पर सुविख्यात लेखिका सुधा अरोड़ा जी की लोकप्रिय कविता ‘ कम से कम एक दरवाजा खुला होना  चाहिए” का जिक्र करना चाहूंगी | जब तक हम स्वयं अपनी बेटियों के लिए ढाल बन कर खड़े नहीं होंगे वो ससुराल में इसी तरह का शोषण झेलने को विवश होंगी | जया  का प्रश्न वाजिब है अगर बेटे के साथ यही होता तो क्या माता – पिता उसे दुःख में अकेले छोड़ देते फिर बेटियों को क्यों ? ये उत्तर हम सब को खोजना है | दर्द का हद से गुज़र जाना दवा बन जाना                                          कहते  हैं की दर्द जब हद से गुज़र जाए तो वो दवा बन जाता है |जया के जीवन में भी दर्द बढ़ते बढ़ते इस हद तक पहुँच गया  कि उसमें राजीव का घर छोड़ने का साहस आ गया | संघर्ष का ये रास्ता कठिन रास्ता था | राजीव उसके आय के हर श्रोत को बंद कर देना चाहता था | हर तरह से उसे अपने आगे घुटने टेकने को मजबूर करना चाहता था | एक हारे हुए पुरुष के पास स्त्री के चरित्र पर कीचड उछालने के अतरिक्त कोई बाण नहीं होता | राजीव ने भी बहुत तीर चलाये जिसने जया को … Read more

प्रिंट या डिजिटल मीडिया -कौन है भविष्य का नम्बर वन

                  प्रिंट मीडिया डिजिटल मीडिया में भविष्य किसका बेहतर है ? जब ये प्रश्न मुझसे किया गया तो मुझे लगा मैं अपने बचपन में पहुँच गयी हूँ और मुझसे पूछा  जा रहा है कि बताओ तुम्हें कौन ज्यादा अच्छा लगता है … पापा या मम्मी | जब मम्मी कहती तो लगता पापा भी तो अच्छे है और जब पापा कहती तो लगता तो … अरे नहीं नहीं … भला मम्मी को कैसे छोड़ा जा सकता है | हम लोग जो प्रिंट मीडिया के युग में पैदा हुए डिजिटल मीडिया के युग में लेखन में  आगे बढे | उन सब के लिए ये प्रश्न बड़ा दुविधा में डालने वाला है | इसलिए इसकी विस्तृत एनालिसिस करने का मन बनाया | डिजिटल मीडिया –ज्ञान का भंडार वो भी मुफ्त                            आज से ३० साल पहले क्या किसी ने सोंचा था की हम गणित के एक सवाल में उलझ जाए और झट से कोई उत्तर बता दे , खाना बना रहे हों और इस सब्जी में मेथी डालनी है या जीरा एक मिनट में कोई बता दे , रंगोली के डिजाइन हो या मेहँदी के या विज्ञानं और साहित्य की तरह – तरह की जानकारी जब जी चाहे हमें मिल जाए |शायद तब ये एक परिकथा की तरह ही लगता पर आज ये सबसे बड़ा सच है | डिजिटल मीडिया यानि आपका लैपटॉप , मोबाइल , पी. सी जो आपको दुनिया भर के ज्ञान से घर बैठे – बैठे ही जोड़ देता है | उस्ससे मिलने वाले लाभों के लिए हम जितनी बार भी धन्यवाद देंगें कम ही होगा |                                                            जी हां !  डिजिटल मीडिया की बात करे तो ये ज्ञान का भंडार  है वो भी मुफ्त में | आपसे बस एक क्लिक की दूरी पर | जिसके पास आपकी हर समस्या का जवाब है | खाना बनाने की रेसीपी , दादी माँ के नुस्खे से लेकर विश्व की श्रेष्ठतम पुस्तके  उपलबद्ध हैं | वो भी मुफ्त | डिजिटेलाइज़ेशन के इस दौर में इन्टरनेट बहुत सस्ता हो गया है | जिस कारण आम आदमी भी अच्छे से अच्छी किताबें लेख आदि पढ़ सकता है | मोबाइल पूरी  लाइब्रेरी बन चुका है | आप कहीं भी जाए आप के साथ आपकी पूरी लाइब्रेरी साथ रहेगी | आप का लगेज भी नहीं बढेगा | जब सुविधा हो निकाला और पढ़ लिया | यानि की जिंदगी लेस लगेज मोर कम्फर्ट के सिद्धांत पर चल पडी है | बढती आबादी और छोटे होते घरों के दौर में हम ज्यादा से ज्यादा प्रिंटेड पुस्तके अपने घर में नहीं रख सकते | चाहते न कहते हुए भी हमे पुस्तकें हटानी पड़ती हैं या लाइब्रेरी में देनी पड़ती हैं | ऐसे में डिजिटल होम लाइब्रेरी सारी समस्याओं के समाधान के रूप में नज़र आती है | डिजिटल मीडिया पर हर आम और खास व्यक्ति अपने विचार व्यक्त कर सकता है | इससे हमें बहुत सारे विचार पढने को मिल जाते हैं | ब्लॉगिंग के जरिये हर व्यक्ति अपने विचारों को सब तक पहुंचा सकते हैं | ब्लॉग में विभिन्न तरह की जानकारी साझा कर सकते हैं व् प्राप्त कर सकते हैं | बहुत सी पुरानी दुर्लभ किताबें जिन्हें रीप्रिंट करना संभव नहीं है उन्हें स्कैन कर के डिजिटल मीडिया पर आसानी से प्रिंट किया जा सकता है | यानी हम  अपनी धरोहर को न सिर्फ सुरक्षित कर सकते हैं बल्कि जन – जन तक पहुंचा भी सकते हैं | आज का युवा जो सोशल साइट्स की वजह से ज्यादातर ऑनलाइन रहता है वो वहां से समय निकाल कर कुछ और भी पढ़ लेता है | भले ही वो किताब उठाने की जहमत न करे | शायद इस कारण लोगों की रीडिंग हेबिट बढ़ी है |                                       ऐसा लगता तो है की भविष्य का मीडिया डिजिटल मीडिया ही है … क्योंकि ये सस्ता है सुलभ है और जगह भी नहीं घेरता | तो क्यों न ये सबके दिल में जगह बना ले | प्रिंट मीडिया – बस हारता दिख रहा है                        डिजिटल मीडिया के पक्ष में इतने सारे विचार पढ़ कर आपको लग रहा होगा प्रिंट मीडिया हार रहा है यानी डिजिटल मीडिया उसे पीछे छोड़ देगा | अगर आप भी ऐसा सोंच रहे हैं तो आप गलत हैं क्योंकि ये हम नहीं आंकड़े कहते हैं | डिजिटल मीडिया के आने के बाद भी हजारों किताबें रोज छप रही हैं | या यूँ कहें कि पहले से ज्यादा छप रही हैं | नयी – नयी मैगजींस व् प्रकाशन हाउस अस्तित्व में आ रहे हैं | अगर वास्तव में प्रिंट मीडिया अस्तित्वहीन होने जा रहा है तो क्या ऐसा हो सकता है की कोई लाखों का खर्चा करने का जोखिम उठाये | निश्चित तौर पर ये खामखयाली ही है की प्रिंट मीडिया खतरे में है | आखिर सस्ता सुलभ व् कम जगह घेरने वाले डिजिटल मीडिया के आ जाने पर भी प्रिंट मीडिया खतरे में क्यों नहीं आया …. किताबों से एक तरह से हमारी बॉन्डिंग  होती है |किताब आप महसूस करते हैं | अपनी लाइब्रेरी में सजाते हैं | वो एक तरह का प्यार का अटूट बंधन होता है | जिसका स्थान कोई नहीं ले सकता | कई लोगों की तो किताबों से इतनी दीवानगी होती है की उनकी किताब कोई छू भी नहीं सकता | ये बात डिजिटल लाइब्रेरी में कहा | कितने लोग ऐसे हैं जो मिनट – मिनट पर खबरे डिजिटल मीडिया से प्राप्त करते रहते हैं फिर भी उन्हें सुबह के अखबार का  बेचैनी से इंतज़ार होता हैं | सबह के अखबार से एक ख़ास जुड़ाव जो होता है | और भावना का स्थान कोई ले सकता है भला ? सर्दियों के दिन हो और धूप में कुछ पढना कहते हो तो मोबाइल तो बिलकुल साथ नहीं देता | ऐसे में किताब ही तारणहार का काम करती है | आपने कुछ पढ़ा आपको बहुत पसंद आया तो आप किताब को उपहार के रूप में भी दे सकते हैं | ये उपहार लेने वाले और देने वाले दोनों के दिल के करीब होता है |अब ई बुक का तो बस लिंक ही भेज सकते हैं | एक सच्चाई ये भी है की फ्री की चीज का महत्व कम होता है …. अब , पानी … Read more

जीवन साँप -सीढ़ी का खेल

कभी बचपन में साँप – सीढ़ी का खेल खेला है |बड़ा ही रोमांचक खेल है | हम पासा फेंकते हैं और आगे बढ़ते हैं  | आगे एक से सौ तक के रास्ते में सांप और सीढियां हैं | जब गोटी साँप  के मुँह पर आती है तो साँप काट लेता है | और गोटी साँप पूँछ की नोक तक पीछे हो जाती है | वहीँ कभी कोई सीढ़ी मिल जाती है तो खिलाड़ी  झटपट उसे चढ़ कर आगे बढ़ जाता है | आगे बढ़ना किसे ख़ुशी नहीं देता और पीछे आना किसे दुःख नहीं देता | फिर भी खेल  चलता रहता है | इस खेल में एक ख़ास बात है की जो पीछे चल रहा है पता नहीं कब उसे सीढ़ी मिल जाए और वो आगे बढ़ जाए | या फिर जो आगे है पता नहीं कब उसे साँप  काट ले और वो पीछे हो जाए | जो हारता लग रहा है अगले पल वो जीत भी सकता है | खेल का रोमांच  यही है |  कभी -कभी तो 99 पर बैठा साँप काट कर सीधा 2 पर पहुँचा देता है | हताशा तो बहुत होती है पर हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते हैं | कई बार अगली ही चाल पर अचानक से फिर सीढयाँ मिलती जाती हैं और जीत भी जाते हैं |   हार भी गए तो गम नहीं क्योंकि असली मजा तो खेलने में है … जीत हार में नहीं | क्या यही बात जीवन पर लागू नहीं होती |  यह जीवन साँप – सीढ़ी के खेल की तरह ही है  मीता और सुधा दो पक्की सहेलियां थी | दोनों का खाना पीना , पढना लिखना , खेलना कूदना साथ – साथ होता था | दोनों सिंगर बनना चाहती थी | इसके लिए बचपन से ही वो पास के स्कूल में संगीत सीखने जाया करती थीं | दोनों अच्छा गाती  भी थी | दोनों ने ही भविष्य की प्ले बैक सिंगर बनने  का ख्वाब भी पाल लिया |और इसके लिए जी तोड़ मेहनत करने लगीं |  उन दोनों को स्कूल के वार्षिक समारोह में पहला मौका मिला | मीता और सुधा दोनों की सोलो परफोर्मेंस थी | सुधा स्टेज पर जाते ही घबरा गयी | उसके सुर कहीं के कहीं लग रहे थे | सारा हॉल हँसी के ठहाकों से भर गया |सुधा स्टेज से नीचे आ कर रोने लगी |  वहीँ मीता का गायन ठीक-ठाक था | सामान्य आवाज़ में बिना उतार चढाव के उसने गाना गा दिया | उसी सिर्फ इक्का – दुक्का तालियाँ मिलीं |  मीता को भी बहुत हताशा थी |उसे बहुत अच्छे परफोर्मेंस की आशा थी |  वो सुधा  के पास  दुःख बांटने गयी | तब तक सुधा शांत हो चुकी थी | तभी प्रिंसिपल मैंम  आयीं | उन्होंने सुधा से कहा ,” गायन तुम्हारे बस की बात नहीं है | तुम इसे छोड़ दो | यही बेहतर होगा | उन्होंने मीता से भी कहा कि तुम्हें अभी बहुत रियाज़ की जरूरत है | अगर बहुत मेहनत करोगी तो शायद तुम्हें सफलता मिल जाए |  मीता  को प्रिंसिपल मैंम की बातों  से कुछ संबल तो मिला |फिर  उसके अन्दर सुधा से जीत का भाव भी था |उसने  अगली परफोर्मेंस के लिए उसने सुधा से बहुत मेहनत करने को कहा | स्वयं भी उसने बहुत मेहनत  करने का मन बनाया | पर अगली परफोर्मेंस भी वैसी ही रही | लगातार तीन परफोर्मेंस के बाद भी नतीजा वही रहा | इससे निराश हो कर मीता ने मन बना लिया कि वो गायन छोड़ देगी | पर सुधा ने गायन न छोड़ने व् निरंतर अभ्यास करने का मन बनाया |  जहाँ एक तरफ मीता सुधा से बेहतर तीन परफोर्मेंस करने के बाद भी  गायन छोड़ चुकी थी | वहीँ सुधा चौतरफा दवाब व् हतोत्साहन  झेलते हुए भी लगातार रियाज़ कर रही थी | वो अनेकों बार असफल हुई | पर एक दिन वो मौका आया जब  उसकी परफोर्मेंस बहुत उम्दा हुई | जिसे वहां मौजूद मुख्य अतिथि मशहूर फिल्म  संगीतकार के एस राव ने भी बहुत पसंद किया | उन्होंने उसे अपनी फिल्म में कुछ पंक्तियाँ गाने को दी | सुधा ने उन्हें ठीक से गा दिया उसका नाम और आवाज़ लोगों की निगाह में आने लगी | धीरे – धीरे उसे काम मिलने लगा |  आज सुधा एक मशहूर प्ले बैक सिंगर है | और मीता एक होम मेकर | मीता जो पहली परफोर्मेंस  में सुधा से बेहतर थी | पर वो असफलताओं का सामना नहीं कर पायी | उसने खेल का मैदान ही छोड़ दिया | जिससे वो बिना खेले ही हार गयी | हो सकता है वो मेहनत करती तब भी उसे सुधा जैसी सफलता न मिलती | पर कुछ सफलता तो मिलती या कम से कम अपने पहले प्यार गायन से दूर तो न होती | वो गायन जो उसकी रग -रग में भरा था | उससे दूर रह कर वो कभी खुश रह सकी होगी ?  खेल कर हारने से बिना खेले हारना ज्यादा दुखद है  असली मजा खेलने में है  सुधा और मीता की हो या हमारी – आपकी ,ये जिन्दगी साँप -सीधी के खेल जैसी है |  यहाँ असफलता के साँप  और सफलता की सीढियां हैं | कभी असफलताओं का साँप काटता है तो कभी अचानक से सीढ़ी मिल जाती है और शुरू हो जाता है सफलताओं का दौर | लेकिन जिंदगी के खेल में जब भी साँप काटता है हम निराश हो जाते हैं | कई बार अवसाद में जा कर खेल खेलना ही छोड़ देते हैं | खेल खेलना ही छोड़ दिया तो हार निश्चित है | जब साँप सीढ़ी के खेल में हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते तो जिंदगी में क्यों हम हताश होकर पासा फेंकना क्यों छोड़ देते हैं ?  पासे फेंकते रहे , क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए | और सफलताओं का सिलसिला शुरू हो जाए | वैसे भी असली मजा तो खेलने में है |                                                      दोस्तों अपनी जिंदगी को वैसे ही लें जैसे साँप सीढ़ी के खेल को लेते है |राजा हो या भिखारी जब अंत सबका एक … Read more

अतीत से निकलने के लिए बदलें खुद को सुनाई जाने वाली कहानी

            मेरी जिंदगी की कहानी तब बदली जब मैंने खुद को सुनाई जाने वाली  अतीत की कहानी बदली हम और हमारा मन इसका आयाम इतना विस्तृत है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती | हम किसी दूसरे से कितनी देर बात करते होंगे | घंटे दो घंटे पर खुद से दिन भर बोलते रहते हैं | ये बातचीत कभी खत्म ही नहीं होती | दिन भर , रात भर, यहाँ तक की सपनों में भी चलती ही रहती है | और हम इससे अनजान ये सोंचते रहते हैं की अपने से हम कुछ भी बोले  क्या फर्क पड़ता है | कहने वाले हम, सुनने वाले भी हम तो क्यों सोंच – सोंच कर बोले ? कौन है जो रूठ जाएगा | पर हकीकत इसके उलट होती है |खासकर उनके लिए जिनका अतीत सुखद नहीं है |  अगर हम खुद को सुनाई जाने वाली कहानियों पर ध्यान नहीं देंगे तो हमारा वर्तमान रूठ जाता है | भविष्य रूठ जाता है | कैसे ? जब आप खुद को हर समय अपने अतीत के दर्द भरी कहानियाँ सुनाते रहते हैं तो वही दर्द आप की जिंदगी में फिर से आता रहता है |  कई बार आपने देखा होगा की दुखी लोगों की जिंदगी में सामान दुःख बार – बार आते रहते हैं | वो हैरान रहते हैं की समय और परिस्थिति बदलने के बाद भी हर बार उनके साथ ऐसा क्यों होता है | अगर आप भी उनमें से एक हैं तो क्या आप की इच्छा नहीं करती इसका कारण जानने की | इसका सीधा – सच्चा सा कारण है खुद को सुनायी जाने वाली कहानी |  रीता की जिन्दगी और उसकी खुद को सुनाई जाने वाली कहानी रीता ( उम्र ३६ वर्ष ) एक बैंक में काम करती है | दो बच्चों की माँ है | अपने पति व् बच्चों के साथ एक खुशहाल जिन्दगी जी रही है | पर शुरू से रीता की जिन्दगी ऐसी नहीं थी | बचपन से प्यार को तरसती रीता को हमेशा यही लगता था की वो प्यार के काबिल ही नहीं है | उसकी जिंदगी में खुशियाँ ही नहीं हैं और न आ सकती हैं |  उसकी जिंदगी तब बदली जब रीता ने खुद को सुनाई जाने वाली कहानी बदल दी |  रीता अपने माता – पिता की एकलौती संतान थी | उसकी माँ ने उसके पिता से प्रेम विवाह किया था | परन्तु प्रेम विवाह में प्रेम शादी के एक साल बाद ही कपूर के धुएं की तरह उड़ गया |रीता छोटी ही थी | जब वो अपने पिता को अपनी माँ को रोज बात बेबात पीटते हुए देखती |  उसके पिता उसका भी ख्याल नहीं करते | गुस्से में चीखते माता – पिता और घंटों रोती  माँ ये उसके बचपन का सबसे सामान्य दृश्य था | एक दिन पिता की पिटाई से आजिज़ माँ ने उनसे अलग होने का फैसला कर लिया | पिता ने  उन्हें तलाक और पैसे देने से मना  कर दिया | माँ उसे लेकर घर से निकल आयीं | वो दिन भयंकर असुरक्षा के थे | नाना ने उन्हें अपने घर घुसने नहीं दिया | क्योंकि माँ ने उनकी मर्जी के खिलाफ शादी करी थी | पर उसकी माँ ने हिम्मत नहीं हारी | उन्होंने जी तोड़ मेहनत करके कमाना शुरू किया | वो डबल शिफ्ट करती | उन्होंने रीता का नाम स्कूल में लिखवा दिया | रीता की पढाई तो शुरू हो गयी पर उसे माँ का प्यार नहीं मिलता | माँ जरूरत से जयादा व्यस्त थी |वो उसके किसी स्कूल फंक्शन , पेरेंट – टीचर मीटिंग , अवार्ड सेरेमनी में नहीं गयीं | मासूम  रीता खुद ही अपनी पढाई , होमवर्क  स्कूल ड्रेस का ध्यान रखती |  कभी – कभी ही उसे माँ के साथ रहने का मौका मिलता तब माँ इतनी निढाल होती की बात करने की इच्छा न जतातीं या अपने अतीत को याद कर रोती  रहती | जिससे रीता सहम जाती |पिता तो उनसे मिलने भी नहीं आते |  इन्हीं हालातों में रीता एक निराश , हताश , कुंठित लड़की के रूप में बड़ी हो गयी | अतीत की वो कहानी जो रीता खुद को सुनाती रीता अक्सर जब – तब अपने अतीत में चली जाती | जो भी उसके पास बैठा होता या अकेले होने पर अपने अतीत की कहानी सुनाती |कहीं न कहीं हर समय अतीत के दर्द को याद करने से उसके मन में ये निष्कर्ष निकलता ……. सारे पुरुष गंदे होते हैं | वो भरोसे के लायक नहीं होते | उसके पिता एक क्रूर व्यक्ति थे | पुरुष का असली चेहरा यही है | उसकी माँ ने उसे कभी प्यार नहीं दिया | वो भी कुछ हद तक खुदगर्ज थी | बस अपने काम में लगीं रहीं | या फिर वो शायद  प्यार के काबिल ही नहीं है | क्योंकि उसकी पिछली जिंदगी के अनुभव  ख़राब है इसलिए वो शायद कभी अच्छी माँ बन ही नहीं पाएगी | वो यूँ ही बिना प्यार दिए बिना प्यार मिले तडपती तरसी ही दुनिया  से जायेगी | खुद को सुनाई इस कहानी का रीता के जीवन पर असर रीता के अतीत की कहानी उसके भविष्य पर हावी होने लगी | रीता पढ़ – लिख कर अच्छी खासी नौकरी कर रही थी | यही समय था जब नीलेश रीता की जिन्दगी में आया | यूँ तो वोपुरुषों से दूर ही रहती क्योंकि उसे लगता वो प्यार के काबिल नहीं है | पर नीलेश  प्यार के दो शब्दों से रीता पिघल सी गयी | उसे लगा नीलेश उस से प्यार करके उस पर अहसान कर रहा है क्योंकि वो तो प्यार के लायक ही नहीं है |  परन्तु ये प्यार ज्यादा दिन  तक टिक न सका | नीलेश का ट्रांसफर हो गया | रीता घबरा गयी | पहली बार तो उसे अपने बारे में कुछ अच्छा अहसास हुआ था | भले ही थोड़े दिन का सही | रीता ने आनन् – फानन में नीलेश से शादी करने का फैसला कर लिया | रीता नीलेश के साथ शादी करके अपना घर द्वार , नौकरी सब कुछ छोड़ कर चेन्नई चली गयी |उसने भी अपनी माँ की ही तरह अपनी माँ … Read more