व्यक्तित्व विकास के 5 बेसिक नियम -बदले खुद को

Five rules of personality development हम सब जीवन में सफल होना चाहते हैं | उसके लिए प्रयास भी करतें हैं | पर फिर भी कुछ लोगों को सफलता नहीं मिल पाती | कई बार हमारा प्रयास दूसरों से कम होता है | पर कई बार हम प्रयास तो करतें हैं परन्तु फिर भी सफलता नहीं मिल पाती | यहाँ मैं आप लोगों से साझा करना चाहूँगी  , प्रसिद्ध  लेखक शिव खेडा की एक किताब का लोकप्रिय वाक्य जो सफल होने की चाह रखने वालों के लिए मूल मंत्र है …   सफल लोग कोई अलग काम नहीं करते बस वो काम को अलग तरीके से करते हैं |  दरसल असफल होने में केवल हमारे प्रयासों की कमी ही नहीं होती बल्कि कई बार इसका  कारण हमारे व्यक्तित्व के कुछ कमियाँ होती हैं |क्योंकि व्यक्तित्व विकास और सफलता एक दूसरे के पूरक हैं | इसलिए आज कल सफल होने के लिए अपने व्यक्तित्व में आवश्यक सुधार  करने पर बहुत जोर दिया जाता है |व्यक्तित्व के कई कमियाँ  वैसे तो सफलता की राह में बाधक हो सकती हैं | पर यहाँ मैं प्रमुख 5 कमियों की बात कर रही हूँ ,जो ज्यादातर लोगों में होती हैं | बस आप को यह जानने की जरूरत है | तो आइये जानते हैं सफलता के लिए सबसे जरूरी व्यक्तित्व विकास के 5 बेसिक नियम | जिन्हें आप आज से ही अपनाइए और बदल दीजिये खुद को | फिर देखिये सफलता कैसे नहीं आती है |  १ ) न करें बेफजूल बातों से समय की बर्बादी                      मुझे याद आता है मेरे नाना जी कहा करते थे ,” चटोरी खोये एक घर , बतोड़ी   खोये चार घर “ कहने का तात्पर्य यह है की जिस स्त्री ( यहाँ पुरुष भी हो सकता है ) स्वादिष्ट भोजन की आदत पड़ गयी हो | वो रोज बाहर का खाना खरीद कर अपना धन बर्बाद करेगी  | परन्तु जिसे फ़ालतू में बात करने की आदत  लग गयी | उसे बात करने के लिए कम से कम चार लोग चाहिए | अत : वो चार लोगों का समय बर्बाद करेगी  | उस समय का उपयोग किसी काम  में या धन अर्जित किये जाने में किया जा सकता था | अगर इसी को दूसरी तरह से कहें तो ये  तो  आप भी  बचपन  से  सुनते  आ  रहे  होंगे   की  दूसरे   के  सामने  तीसरे  की  बुराई  नहीं  करनी  चाहिए |   एक और  बात  जो  मुझे  ज़रूरी  लगती  है  वो  ये  कि  यदि  कोई  किसी  और  की  बुराई  कर  रहा  है  तो  हमें  उसमे  रूचि  नहीं  लेनी   चाहिए  और  उससे आनंदित  नहीं  होना   चाहिए | अगर  आप  उसमे  रूचि  दिखाते  हैं  तो  आप  भी  कहीं  ना  कहीं  नकारात्मकता  को  बढ़ावा दे रहे हैं |   बेहतर  तो  यही  होगा  की  आप  ऐसे  लोगों  से  दूर  रहे  पर  यदि  साथ  रहना  मजबूरी  हो  तो  आप  ऐसे  विषयों पर मौन हो जाए   , सामने  वाला  खुद  बखुद  शांत  हो  जायेगा | कई बार बुराई करने वालों को रोकने के लिए हमें उनकी बातें काटनी भी चाहिए | जैसे कोई लगातार किसी की बुराई कर रहा हो तो आप ऐसे कह सकते हैं की हाँ ये तो है पर देखो उनकी वो बात कितनी अच्छी है | इससे बुराई करने वाले का ध्यान भी नकारात्मकता  से सकारात्मकता की ओर जाएगा | क्योंकि कई बार बुराई करने वाले को भी उस व्यक्ति से नफ़रत नहीं होती बस किसी बात से नाराजगी होती है |  २ ) आत्मविश्वास कम करती है तुलना                  अभी कुछ दिन पहले मुझे मेरे एक परिचित मिले  | थोड़े उदास से दिख रहे थे | पूँछने  पर बताया फेस बुक पर उसकी पत्नी की दो सहेलियों ने गाड़ी  खरीद ली है | गाडी के साथ फोटो शेयर की है | तब से  गाडी लेने की जिद कर रही है | कहती है उसे सहेलियों के सामने इन्फीरियर फील होता है |  इसे  इंसानी  फितरत  कह  लीजिये  या  कुछ  और  पर  सच  ये  है  की  बहुत  सारे  दुखों  का  कारण  हमारा  अपना  दुःख  ना  हो  के  दूसरे   की  ख़ुशी  होती  है |  आप  इससे  ऊपर  उठने  की  कोशिश  करिए , इतना  याद  रखिये  की  किसी  व्यक्ति  की  असलियत  सिर्फ  उसे  ही  पता  होती  है , हम  लोगों  के  बाहरी यानि नकली रूप  को  देखते  हैं  और  उसे  अपने  अन्दर के यानि की असली  रूप  से  तुलना  करते  हैं |  इसलिए  हमें लगता  है  की  सामने  वाला  हमसे  ज्यादा  खुश  है , पर  हकीकत  ये  है  की  ऐसी तुलना  का  कोई  मतलब  ही  नहीं  होता  है | ऊपर वाले उदाहरण में मेरे परिचित  की पत्नी को कार तो दिखी पर कार के साथ  ई एम आई नहीं दिखी , दस जगह जरूरी खर्चों में कटौती नहीं दिखी | इसलिए किसी से तुलना मत करिए |  आपको  सिर्फ  अपने  आप  को बेहतर करते  जाना  है और व्यर्थ की  तुलना करके हीन भावना  या नकारात्मकता नहीं बढानी  चाहिए | . 3) अपना हाथ जगन्नाथ                                     एक बहुत छोटी सी कहानी है | एक पेड़ पर एक चिड़िया का घोंसला था | एक दिन शाम को चिड़िया घर लौटी तो देखा घोसले में उसके बच्चे रो रहे हैं | चिड़िया के पूछने पर अच्छों ने बताया ,” मम्मी आप घोसला कहीं और शिफ्ट कर लीजिये | आज किसान यहाँ आया था और उसने अपने कर्मचारियों  से कल इस पेड़ को काटने को कहा है | चिड़िया ने बच्चों को चुप कराया और कहा,” बच्चों निश्चिन्त रहो और , फ़िक्र न करो , कुछ नहीं होगा | ३ ,४ दिन बीत गए | फिर एक दिन चिड़िया को बच्चे रोते हुए मिले | बच्चों ने बताया ,” मम्मी आज किसान अपने बेटों से कह रहा था की कल इस पेड़ को काट दो | आप प्लीज घोसला कहीं और शिफ्ट कर लीजिये | चिड़िया बच्चों को चुप कराते हुए बोली , “,” बच्चों निश्चिन्त रहो और , फ़िक्र न करो , कुछ नहीं होगा |” कुछ दिन और बीत गए | एक दिन फिर चिड़िया को बच्चे रोते हुए मिले | पूंछने पर बोले ,” मम्मी आज किसान कह रहा था ,” कल मैं इस पेड़ को काटूँगा | “ सुन कर चिड़िया ने बच्चों से कहा ,” बच्चों अब घोसला शिफ्ट करने का समय आ गया है |मैं अभी तैयारी करती हूँ … Read more

प्रेम की ओवर डोज

प्रेम का सबसे सही प्रमाण विश्वास है-अज्ञात  निधि की शादी को चार साल हो गए हैं वह पति के साथ नासिक में रहती है | |उसके पति उसे बहुत प्रेम करतें हैं | उसका दो साल का बेटा है | निधि के माता – पिता निधि की ख़ुशी देख कर बहुत खुश होते हैं | अक्सर बताते नहीं थकते उनके दामाद जी उन्की बेटी से कितना प्रेम करते हैं | जब भी निधि मायके आती है साथ – साथ आते हैं और उसे साथ ही वापस ले जाते हैं | जहाँ भी निधि जाना चाहती है अपना हर काम छोड़ कर उसके साथ जाते हैं | अगर कभी निधि को अकेले मायके आना पड़ता है तो दिन में ६ बार फोन कर के उसका हाल – चाल लेते हैं | ऐसी कौन सी पत्नी होगी जो अपने भाग्य पर न इतराए | किसके माँ – पिता ये सब देख कर गर्व न महसूस करते होंगे |लिहाजा निधि के माता –पिता भी हर आये – गए से उसके भाग्य की प्रशंसा करते | जब निधि भी उपस्तिथ होती तो हँस कर हां में समर्थन करती | धीरे – धीरे ये हँस कर किया गया समर्थन मुस्कुरा कर फिर मौन , फिर भावना रहित समर्थन में बदलने लगा | एक दिन उसकी माँ यूँ ही दामाद जी की तारीफ कर रहीं थी तो निधि फूट – फूट कर रोने लगी ,” बस करो माँ , बस करो , वो मुझे प्यार नहीं करते , मुझ पर शक करते हैं | इसी कारण एक पल भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते | बार – बार फोन करके कहाँ हो क्या कर रही हो पूंछते रहते हैं | अब मैं थक गयी हूँ माँ , अब नहीं सहा जाता |                                                  अब अवाक रहने की बारी माता – पिता की थी | शक्की पति या पत्नी से निभाना बहुत कठिन होता है | बेटी इतना कष्ट सह रही थी पर उन्हें भनक तक नहीं लगी | कैसे लगती ? प्रेम को हम बहुत फ़िल्मी तरीके से लेते हैं | मुझे ये पुराना गीत याद आ रहा है … बैठा रहे सैंया नैनों को जोड़े /एक पल अकेला वो मुझको न छोड़े नहीं कोई जिया को कलेश /पिया का घर प्यारा लगे क्या हम कभी सोंचते हैं की एक पल अकेला न छोड़ना प्रेम की निशानी नहीं है | ज्यादातर मामलों में प्रेम की इस ओवर डोज के पीछे क्रूर मानसिकताएं छुपी होती हैं | जिनमें शक्की होना , पजेसिव होना या सुपर डोमीनेटिंग होना , होती हैं | अगर शादी के एक साल बाद भी प्रेम की ओवर डोज दिखाई दे रही है तो अपने और अपनी बेटी के भाग्य पर इतराने की जगह मामले की तह तक जाने की जरूरत है | हो सकता है आपकी बेटी , बहन , भांजी , भतीजी की नकली हंसी के पीछे बहुत गहरा दर्द छिपा हो | क्योंकि आजकल ज्यादातर परिवार एकल हैं तो निश्चित तौर पर वो अकेले घुट रही होगी | तब खुल कर बात करने की जरूरत है क्योंकि यह कई बार अवसाद अलगाव या बच्चों की खराब परवरिश के नतीजे ले कर आता है | कैसे पहचाने प्रेम की ओवर डोज को ऊपर  के उदाहरण में  नेहा ने जब तक समझा की ये प्यार नहीं बंधन है तब तब तक बहुत देर हो चुकी थी | नेहा की तरह अनेक लड़कियों /लड़कों को इस बात को समझने में समय लग जाता है की वो प्रेम की ओवरडोज के शिकार हैं |जब तक बात समझ आती है  तब तन शिकार का मानसिक संतुलन बिगड़ चुका होता है | उसका सेल्फ कांफिडेंस ,सेल्फ एस्टीम आदि नष्ट हो चुकी होती है |कई बार वो इस लायक नहीं रहता कि वो बाहर की दुनिया का सामना कर सके | बेहतर है की इसके लक्षणों को समय रहते पहचाना जाए … 1)उसकी एक निगाह हमेशा आप पर रहती हैं | वो हर वक्त ये जानना चाहता है की आप कहाँ हैं और क्या कर रहे हैं | अगर किसी से बात की तो उससे क्या – क्या बात की | अगर आप उसका फोन नहीं उठाते हैं तो वो आप की माँ , पडोसी दोस्त से फोन कर आपके बारे में जानना चाहेंगे की आप कहाँ हैं ? 2) ये सच है की जीवनसाथी के साथ एक अटूट रिश्ता होता है | फिर भी हर किसी की सहेलियों व् दोस्तों का , पड़ोसियों अपना एक दायरा होता है | जहाँ हम बातें शेयर करते हैं | हँसी  मजाक करते हैं | हर किसी को इस “मी टाइम “ की जरूरत होती है | अगर आप का साथी दूसरों के साथ समय बिताने पर  चिढता है तो आप इसे खतरे का संकेत समझें | 3 )अगर आप का साथी आप को हर बात में डिक्टेट करें , मसलन आप कैसे कपडे पहनें , कैसे चप्पल पहने , पर्स लें या बिंदी लगायें तो सतर्क हो जाएँ | शुरू – शुरू में यह काम वो प्यार के नाम पर करेगा / करेगी |उसका साधारण सा वाक्य होगा की वो आप को बहुत प्यार करता है इस कारण वह आप को सबसे सुन्दर सबसे अलग देखना चाहता है |इस वाक्य पर आप अपनी चाबी उसे आसानी से दे देती हैं | 4 ) आपके जो भी दोस्त , रिश्तेदार – नातेदार विपरीत लिंगी हैं उन्हें वो नापसंद करेगा | शुरू में वो किसी एक के बारे में बात करेगा की उसमें ये कमी है वो कमी है …तुम उससे बात न किया करो | परन्तु अगर ये पैटर्न रिपीट हो रहा है तो आप को सतर्क होने की आवश्यकता है | 5)वो आप की आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की इच्छा का न केवल खुल कर विरोध करेगा बल्कि हर संभव प्रयास करेगा कि आप आर्थिक रूपसे उस पर निर्भर रहे | आर्थिक निर्भरता के कारण वो आपको जैसे डिक्टेट करेगा वैसे आप को  पड़ेगा | ६) अधिकतर वो आपसे बिना बात झगडा करते हैं | इसमें वो जरूरत से ज्यादा एग्रेसिव हो जाते हैं | झगडे … Read more

ब्रेकअप बेल्स – समस्या के बीज बचपन में भी दबे हो सकते हैं

यह ब्रेकअप शब्द है तो छोटा सा पर कडवा इतना की इसकी कडवाहट पूरी जिंदगी में भर जाती हैं |यूँ तो  अलगाव या ब्रेकअप किसी भी रिश्ते का हो सकता है | कभी भी हो सकता है |पर कुछ रिश्ते जिन्हें हम सहेजना चाहते हैं , संभालना कहते हैं |चाहते है की उनका अटूट बंधन बना रहे |  उनका ब्रेक अप बहुत पीड़ा दायक होता है | कभी – कभी पूरा ब्रेकअप नहीं होता | फिर भी रिश्ते में पहले जैसी बात नहीं रहती | कुछ ऐसा होता है जो दो लोगों के बीच  स्थिर नहीं रहता | खो जाता है | वो है पहले जैसा प्यार , विश्वास और अपनापन | पर अगर आप किसी भी प्रिय रिश्ते से ब्रेकअप की एनालिसिस करेंगे तो पता चलेगा की कोई भी रिश्ता अचानक से नहीं टूटता | उसके टूटने की बहुत पहले हो चुकी होती है | अन्दर ही अंदर ब्रेक अपबेल्स बजने लगती हैं | जो हमें सुनाई तो दे रही होती हैं पर हम उन्हें अनदेखा करते रहते हैं | शायद तब तक जब तक रिश्ता बिखर न जाए | कितना अच्छा हो अगर हम ब्रेक अप बेल्स सुन सकें और समय रहते अपने रिश्ते को बचा लें | आज मैं एक सच्ची कहनी  कहानी शेयर कर रही हूँ की कैसे उन्होंने  समय रहते ब्रेक अप बेल्स को सुना और  अपने जीवनसाथी के साथ अपने खत्म होते रिश्ते को बचाया | कैसे  समझा की हमारे ताज़ा रिश्तों की  समस्याओं के तार हमारे बचपन में भी छिपे हो सकते है | इस कहानी को शेयर करने का उद्देश्य महज इतना है की अगर आप को भी ब्रेकअप बेल्स सुनाई दे रहीं हैं तो उन्हें अनदेखा न कर समस्या को समझें , समाधान खोजें और अपने खूबसूरत रिश्ते को बचा लें | ब्रेकअप बेल्स – समस्या  के बीज बचपन में भी दबे हो सकते हैं                      मैं खिड़की पर बैठी हुई  हुई थी | बाहर अपने ही घर के फ्रंट गार्डन में लगाए हुए कैक्टस देख रही थी | ये कैक्टस कुछ मैंने लगाये थे कुछ भानु ने | शादी के बाद कितना शौक था मुझे व् भानु को की हम अपने घर का गार्डन सबसे यूनीक बनायेंगे | न जाने कहाँ – कहाँ से ढूंढ कर लाये थे हम कैक्टस | पर अफ़सोस उस समय हमें कहाँ पता था की ये कैक्टस देखने में भले ही कितने सुन्दर लगें पर ये कैक्टस चुभते भी हैं | तार – तार कर देते हैं आत्मा को | विचित्र बात ये थी कि मेरे लगाए कैक्टस भानु को चुभ रहे थे और भानु के लगाये मुझको | लेकिन ये वो कैक्टस नहीं थे जो हमने अपने गार्डन में लगाए थे | ये तो हमारे मन की मिटटी में लग गए थे अपने आप न जाने कब , कैसे हमें अहसास ही नहीं हुआ | अहसास तब हुआ जब वो दूसरे को चुभने लगे | मैं अपने विचारों में डूब उतरा रही थी | तभी भानु मुझे बैग लेकर ऑफिस जाते दिखे | जाते समय बाय करने का रिश्ता तो हमारा कब का खत्म हो गया था | पर आज … आज मैं नहीं रुकी | दौड़ कर भानु के पास गयी और उससे कहा ,” भानु क्या तुम हमारे रिश्ते को एक मौका और दे सकते हो | भानु ने उड़ती सी नज़र मेरे ऊपर डाल कर कहा ,” देखो  निकिता वैसे तो कुछ होने वाला नहीं है | फिर भी इस आखिरी कोशिश में मैं तुम्हारे साथ हूँ |मैं भी नहीं चाहता की हमारे रिश्ते का ऐसा दर्दनाक अंत हो | कहकर भानु चले गए | मुझे ऐसा लगा जैसे एक – एक सांस के लिए तडपते मरीज को किसी ने ऑक्सीजन मास्क दे दिया है | इस शर्त के साथ जब तक रोग का इलाज हो इस मास्क को पह्ने रखो | अगर रोग का इलाज ढूँढने में असफल रहीं तो मास्क छीन लिया जाएगा | मेरे पास समय कम था | पर इतनी ख़ुशी जरूर थी कि अपने रिश्ते को भानु भी बचाना कहते हैं | मैं समय बर्बाद न करते हुए समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास करने लगी | कमरे में प्रवेश करते ही मैं विंड चाइम से टकरा गयी | घंटियाँ बजने लगीं | ऐसी घंटियाँ तो बहुत दिन से बज रहीं थीं पर मैं ही अनसुना कर रही थी | वो सामान्य घंटियाँ नहीं ब्रेकअप बेल्स थी | मेरा और भानु प्रेम विवाह था | जब हम अपने एक कॉमन फ्रेंड की शादी में मिले थे तो लगा था जैसे हमें वो मिल गया जिसकी हमें तलाश थी |भानु बिलकुल वैसे ही थे जो मैं एक पुरुष में ढूंढ रही थी | लविंग , केयरिंग , प्रोटेक्टिव | भानु ने अपना व्यवसाय खुद अपने दम पर जमाया था | नया व्यवसाय किसी बच्चे को पालने जैसा होता है | ये मुझे पता था | उनके ऊपर काम का बोझ बहुत था | फिर भी वो मेरे लिए समय निकालते थे |जैसा की भानु कहते थे की मैं वो लड़की थी जिसे भानु तलाश रहे थे | मैं उच्च शिक्षित थी जॉब करती थी | व् अपनी जिंदगी अपने तरीके से संभाल रही थी | हम अपने रिश्ते से बहुत खुश थे | | हमने अपने घर वालों से बात की | उन्होंने हमारे रिश्ते को स्वीकृति दे दी | और दो महीने की जान पहचान के बाद हमने शादी कर ली | मैं भानु के साथ उसके शहर आ गयी | मैंने जॉब छोड़ दिया | सोंचा था एक दो महीने बाद फिर से कर लूंगी | भानु भी राजी थे |वो मुझे आत्मनिर्भर देखना चाहते थे | फिर ऐसा क्या हुआ की शादी के बाद इन दो महीनों में हम बदल गए | हम वो नहीं रह गए जिससे दूसरे ने कभी प्यार किया था |मैं भानु के पास और पास जाने की कोशिश करती और भानु मुझसे दूर बहुत दूर | मेरा करीब आना उन्हें नागवार गुज़रता और उनकी उपेक्षा मुझे |  हम दोनों का रिश्ते में दम घुटने लगा | फिर भी हमने एक साल रिश्ते को खींचा | हमने हर ब्रेक अप बेल को नज़रअंदाज किया | वो हमारे रिश्ते का … Read more

मिट्टी के दिए

दीपावली पर मिट्टी के दिए जलाने की परंपरा है | भले ही आज बिजली की झालरों ने अपनी चकाचौंध से दीपावली की सारी  जगमगाहट अपने नाम कर ली हो | फिर भी अपनी परंपरा और अपने पन से जुड़े रहने का अहसास तो मिटटी के दिए ही देते हैं | आइये पढ़ें …  emotional hindi story-मिट्टी के दिए  मैं मंदिर के पास वाली दुकान में नीचे जमीन पर पड़े मिट्टी के दीयों में से दिए छांट रही थी | एक – एक देखकर  कि कहीं कोई चटका या टूटा तो नहीं है , करीने से अपनी डलिया  में भर रही थी | हाथ तो अपना काम कर रहे थे पर दिमाग में अभी कुछ देर पहले अपनी पड़ोसन श्रीमती जुनेजा के साथ हुआ वार्तालाप चल रहा था | श्रीमती जुनेजा  कह रही थीं  ,” कमाल है , तुम दिए लेने जा रही हो ?क्या जरूरत है मिट्टी  के दिए लाने की , बिजली की झालरों की झिलमिल की रोशिनी के आगे दिए की दुप – दुप कितनी देर की है | परंपरा के नाम पर बेकार में  पैसे फूंको | मैं जानती थी की कुम्हार , उसका रोजगार , बिज़ली की  बर्बादी ये सब उन्हें समझाना व्यर्थ है | इसलिए मैंने धीमें से मुस्कुरा कर कहा ,मैं इसलिए लाऊँगी क्योंकि मुझे दिए पसंद हैं | कई बार जब हम बहुत कुछ कहना चाहते हों और कह न सकें तो वो बातें दिमाग में चलती रहती हैं |किसी टेप रिकार्डर की तरह |  मेरा भी वही हाल था | हाथ दिए छांट रहे थे और दिमाग मिटटी के दीयों के पक्ष में पूरा भाषण तैयार कर रहा था | तभी एक सुरीली सी आवाज़ से मेरी तन्द्रा टूटी | भैया , थोड़े से फूल , थोड़े से इलायची  दाने और … और आज जिस गॉड की पूजा होती है उनका कोई कैलेंडर हो तो दे दीजियेगा  मैंने पलट कर देखा , यही कोई 25 -26 साल की लड़की खड़ी थी | आधुनिक लिबास ,करीने से कटे बाल ,  गले में शंखों की माला , कान में बड़े – बड़े शंखाकार इयरिंग्स और मुँह में चुइंगम | मैंने मन ही मन सोंचा ,ये और पूजा … हम कितनी सहजता से किसी के बारे में धारणा बना लेते हैं | मुझको अपनी ओर देखते हुए बोली ,” आंटी , आज किस गॉड की पूजा होती है | शायद धन्वंतरी  देवी की | जिनका आयुर्वेद से कुछ कनेक्शन है | मैंने मुस्कुरा कर कहा ,” धन्वंतरी देवी नहीं , देवता | उन्हें आयुर्वेद का जनक भी कहा जाता है |धनतेरस पर उनकी पूजा होती है | क्योंकि स्वास्थ्य सबसे बड़ा धन है | मैं बोल तो गयी पर मुझे लगा मैं कुछ ज्यादा ही बोल रही हूँ  | क्या ये बढती हुई उम्र का असर है कि हर किसी को प्रवचन देते चलो | या जैसा की मैंने कहीं पढ़ा था की जब सुपात्र मिल जाए तो ज्ञान अपने आप छलकने लगता है | खैर , वो मुझे कहीं पलट कर कुछ बेतुका  जवाब न दे दे | यह सोंच कर मैंने अपना ध्यान फिर से मिटटी के दिए चेक करने में लगा दिया | मेरी आशा के विपरीत वो मेरे पास आ गयी और ख़ुशी से चिहक कर बोली ,” वाओ ! मिटटी के दिए , मैं भी लूँगी | आंटी आज तो कुछ स्पेशल डिजाइन का दिया जलता है | हाँ , पर तुम्हें इतना कैसे पता  है , मैंने प्रश्न किया | मैंने नेट पर पढ़ा है | मैंने पूजा की पूरी विधि भी पढ़ी है | मैं अपने फ्रेंड्स के साथ पूरे रिचुअल्स मनाऊँगी | बहुत मज़ा आएगा | मेरी उत्सुकता बढ़ी | बातें होने लगीं | बातों  ही बातों में उसने बताया कि मात्र सोलह साल की थी जब डेल्ही कॉलेज ऑफ़ इंजीनीयरिंग में घर छोड़ कर पढाई करने आ गयी थी | फिर यहीं से M .B .A किया | फिर जॉब भी यही लग गया | इंजीनीयरिंग कॉलेज में सेलेक्शन से बरसों पहले ही  जीवन में बस किताबें ही थी |खेलना कूदना और त्योहारों की मस्ती जाने कब की छूट गयी |  सेलेक्शन और फिर जॉब के बाद परिवार , त्यौहार और घर बार सब छूट गया | अभी P .G में रहती है , कई लडकियां हैं | सब ने डिसाइड किया है कि त्यौहार पूरी परंपरा  के अनुसार ही मानायेंगे | इंटरनेट से जानकारी ली और चल दीं  खरीदारी करने | लम्बी सांस भरते हुए उसने आगे कहा ,” आंटी , हम सब … न्यू  जनरेशन जो आत्म निर्भर है , आज़ाद ख्याल है | फिर भी हम परंपरागत तरीके से हर त्यौहार मनाना चाहते हैं | जानती हैं क्यों ? क्योंकि इतना सब होते हुए भी हम सब अकेलेपन का शिकार हैं | इसी बहाने ही सही थोडा सा अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अहसास होता है | लगता है अभी भी “इस मैं में कहीं हम बस रहा है |” मेरे अन्दर माँ बस रही हैं , बाबूजी बस रहे हैं और दिल्ली की बड़ी इमारतों के बीच में मेरा छोटा सा क़स्बा बस रहा है | ओ . के . आंटी , मेरा तो हो गया , बाय …कहकर वो चली गयी | मैं भावुक हो गयी | मुझे अभी और दिए लेने हैं …मिटटी के दिए , जो बिजली की झालरों के सामने भले ही दुप -दुप् जलते हों , पर इसमें जो अपनेपन के अहसास की चमक है  उसका मुकाबला ये बिजली की झालरे  कर पाएंगी भला ? वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें …. उसकी मौत झूठा एक टीस आई स्टिल लव यू पापा

उलझे रिश्ते : जब हो जीवन साथी से गंभीर राजनैतिक मतभेद

डॉ. गॉटमैन के एक्सपेरिमेंट को समझकर कर रिश्ता बचाने में उठाया गया “अगला कदम” अगर आप इस समस्या से नहीं गुज़र रहे हैं तो आप भले ही शीर्षक पढ़ कर मुस्कुरा दें पर इस पीड़ा को वही समझ सकता है जिसके घर में संसद की तरह रोज पक्ष –विपक्ष की बहस होती हो | कहते हैं की ये समय असहिष्णुता का समय है | लोग सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने से डरते हैं | एक तरह के विचार दूसरे विचारों से टकरा रहे हैं | कई बार इस टकराहट में असामान्य अशिष्ट भाषा का प्रयोग भी होता है |दरसल इसमें समय का कोई दोष नहीं है | अब हर किसी को सोशल प्लेटफोर्म मिला हुआ है | जिस कारण वो अपने विचार रख सकता है | लेकिन अगर विचार विरोधी हों तो ? ये सारी  नोक झोंक इन विचारधारों की लड़ाई के कारण ही है | जहाँ दोनों अपनी बात दूसरे पर थोपना कहते हैं | मनवाना चाहते हैं | क्योंकि उन्हें अपनी ही बात सही लगती है | अक्सर ऐसी ही विचारधाराओं की लड़ाई टी.वी. में जब दो पार्टियां आपस में बहस करती हैं तो देखने को मिलती है | उनका बढ़ा  हुआ ब्लड प्रेशर घर के अन्दर भी ब्लड प्रेशर बढ़ा  देता है | अगर बात टी .वी. की हो या सोशल मीडिया की  तो स्विच आपके हाथ में होता है | पर अगर आप का जीवन साथी ही विपरीत राजनैतिक विचारधारा का हो तो ? शिरीष से जब मेरा यानी निकिता उर्फ़ निक्की का अरेंज विवाह हुआ था तो हम दोनों ने एक साथ एक सुंदर  घर बनाने का सपना देखा था |यूँ तो पति – पत्नी का रिश्ता अटूट बंधन होता है | परन्तु पहले दिन से ही हम दोनों में राजनैतिक विचारधारा के न मिलने के  कारण मनमुटाव होने लगा | मुझे  बहुत धक्का लगा जब मुझे पता चला की मैं वामपंथी या प्रगतिशील और शिरीष दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थक हैं | मैं रवीश पर फ़िदा और वो सुभाष चंद्रा  पर | मैं तो कभी कभी सुन भी लेती पर वो तो रविश का  नाम लेते ही चिल्लाने लगते | मैं  कुछ हद तक आधुनिकता की समर्थक वो घोर परंपरा वादी | कुल  मिला कर यह कह सकते हैं की हम दोनों पढ़े – लिखे , अच्छी नौकरी वाले वाले समझदार होते हुए भी हर बात पर उलझ जाते | इतना की एक दूसरे के साथ निभा पाने में असमर्थता लगने लगी थी | अखबार की खबरें हमारे बेडरूम और किचन में ( यानी खाने और सोने में )  हम पर हावी हो रहीं थीं |ये नकारात्मकता  केवल ख़बरों तक ही सीमित नहीं रही | हम विचारधारा के आधार पर एक दूसरे की पर्सनाल्टी को जज करने लगे | हमारा घर कुरुक्षेत्र बनता जा रहा था |कब कैसे ये अटूट बंधन कमजोर पड़ता जा रहा था , हम जानते हुए भी नहीं जान पा रहे थे |   धीरे – धीरे दिन खिसकने लगे | मैं प्रेग्नेंट हो गयी | वैसे शुरू से शिरीष मेरे प्रति लविंग व् केयरिंग रहे हैं , मैं भी उनके प्रति वैसी ही हूँ पर राजनैतिक विचार धारा  की बात आते हुए हम दोनों एक दूसरे को नोच खाने को तैयार हो जाते | हमारी जान का दुश्मन अखबार सुबह – सुबह हमारे घर आ जाता | फिर ख़बरों की ऐनालिसिस में हमारा झगडा शुरू हो जाता | ट्रेन एक्सीडेंट में पक्ष और विपक्ष की क्या भूमिका हैं , अगला प्रधनमंत्री कौन बने , फलाना लीडर ज्यादा भ्रस्ट  है या ढीकाना,हम इस बात में भी लड़ पड़ते | सारा माहौल  बिगड़ जाता | हम दोनों झगड़े टालना चाहते  थे | पर झगड़े हर बात में हो रहे थे | क्योंकि हम एक दूसरे की नेगटिव एनालिसिस करने लगे थे | हमें हर बात में खोंट नज़र आने लगता | हर छोटी से छोटी बात में राजनैतिक दृष्टिकोण की भूमिका लगती | हम साथ रहना कहते थे पर हमारी जिंदगी नरक  होती जा रही थी | प्रेगनेंसी के समय इस बढ़ी हुई एंजाइटी के कारण मेरा स्वास्थ्य बिगड़ने लगा | बच्चे पर खतरा जान कर शिरीष मुझे डॉक्टर के पास ले गए | मेरी समस्या को समझते हुए डॉक्टर ने मुझे मनोचिकित्सक के पास भेज दिया | उन्होंने धैर्य  पूर्वक हमारी समस्या सुनी |उसे समझते देर न लगी की हमारी समस्या क्या है ? उन्होंने  बताया की राजनैतिक विचारधारा को अक्सर महत्व नहीं दिया जाता है परन्तु इससे कई बार घर में नकारात्मकता इतनी बढ़ जाती है की रिश्ता टूट जाता है | फिर मुझे रिलैक्स कर उसने डॉ . गॉटमैन व्के उनके एक्सपेरिमेंट के  बारे में बताया | गॉटमैन का एक्सपेरिमेंट  डॉ .गॉटमैन ने रिश्तों पर प्रयोग किये हैं | उनके अनुसार हर कपल में  झगडा होता है |चाहे गीला तौलिया बिस्तर पर रखने पर हो , खाने में नमक पर हो या आलसीपने पर हो या बिना कारण के हो | पर इतने झगड़ों के बावजूद भी कुछ शादियाँ टिकती हैं और कुछ टूट जाती हैं | इतने झगड़ों के बावजूद आखिर क्या है की कुछ शादियाँ टूट जाती हैं और कुछ टिकी रह जाती हैं | इस  पर 1970 में उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ मिल कर एक्सपेरिमेंट किया | उन्होंने बहुत सारे जोड़ों को बुलाया और १५ मिनट में अपने किसी विवाद को सुलझा लेने को कहा | वहां उन्होंने उन्हें एक अलग  कमरा दिया | जिसकी रिकार्डिंग हो रही थी | उनका यह प्रयोग नौ साल तक चला | उन टेप्स  को सुनने के बाद व् उन कपल्स को नौ साल तक फॉलो करने के बाद डॉ. गॉटमैन ने यह निष्कर्ष निकाला की किसी भी जोड़े के झगड़ों को सुन कर 90 % सफलता के साथ यह बताया जा सकता है की इनमें से किस का रिश्ता ( शादी ) चलेगी व् किनमें अलगाव हो जाएगा | कैसे निकाला डॉ गॉटमैन ने यह रिजल्ट  इस रिजल्ट को निकालने में डॉ . गॉटमैन का सूक्ष्म निरिक्षण था | उन्होंने झगड़ों के आधार पर मैजिक रेशियो बनाया | जिसके लिए उन्होंने 5 :1 का स्केल चुना | डॉ . गॉटमैन के अनुसार वो कपल जिनका रिश्ता आगे चलना है वो झगडे के दौरान तमाम नेगेटिव बातों के बीच कुछ सकारात्मक … Read more

आई स्टिल लव यू पापा

अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस पर एक बेटी की मार्मिक गाथा प्यारे पापा अंतर्राष्ट्रीय बिटिया दिवस पर न जाने क्यों आपसे कुछ कहने का मन हो रहा है लड़के मांगें जाते हैं मांग – मनौतियों से , बेटियाँ पैदा हो जाती हैं | वैसे ही जैसे गेंहूँ के खेत में खर – पतवार उग आती है | वैसे ही लडकियां आ जाती हैं कोख में अनचाही सी | कोसी जाती हैं दिन रात की  खा रहीं है मेरे बेटे के हिस्से का खाद – पानी | तभी तो बढ़ नहीं पाती हैं अपनी पूरी ताकत भर | फिर काट कर फेंक दी जाती हैं एक दिन ये सोंचे बिना की क्या होंगा उनका | पापा आप भी सोंच रहे होंगे मैं ऐसा क्यों लिख रही हूँ | वो भी अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के दिन | एक बेटी जो अपने पिता से इतना प्यार करती है वो ऐसे कैसे लिख सकती है | फिर भी कुछ तो है जो कहने को मन बेचैन हो रहा है | आई लव यू पापा , इससे बेहतर शुरुआत मेरी दास्तान की कुछ और नहीं हो सकती | ये शब्द मैंने शायद तब कहा था जब मैंने पापा कहना भी नहीं सीखा था | जब मेरी नन्ही – नहीं अंगुलियाँ आप की दाढ़ी छूती और आप मेरा हाथ झटक देते तब भी मेरे मन से आई लव यू पापा निकलता | उस समय मुझे ये भी नहीं पता था की आप और दादी  बेटी नहीं बेटा  चाहते थे |  और आ गयी मैं , अनचाही सी | उस पर भी मेरे जन्म के समय माँ का गर्भाशय फट जाने के कारण किसी दूसरी संतान की गुंजाइश ही नहीं रही |  ताने उलाहनों से आजिज़ आ कब मेरी माँ ने मुझे इस दुनिया की सारी  सजाये भोगने के लिए अकेला छोड़ कर दूसरे लोक जाने का फैसला कर लिया , मुझ अबोध को पता ही नहीं चला |माँ मुक्त हो गयीं मैं कैद | जब पता चला तो मैंने माँ को ही कमजोर समझा था | जो अपनी लड़ाई लड़ नहीं पायीं | और उस नन्हीं सी उम्र में मैंने निर्णय ले लिया था की चाहें जितनी विपरीत परिस्तिथियाँ आये मैं उनके आगे झुकुंगी नहीं |  आप दूसरी माँ ले आये | जिन्होंने आपको कुल दीपक दिया | सौतेली माँ  के अत्याचार और भेदभाव के साथ मेरा गहरा काला रंग मेरे दुखों का कारण  बना | माँ तो सौतेली थी पर आप  तो मेरे अपने थे पापा | आप ने क्यों नहीं समझा मेरा दर्द जब आप माँ के साथ मेरे रंग पर टिप्पड़ी करते हुए कहा करते थे की इसको कौन ब्याहेगा | इसका तो रंग ही देख कर लड़के वाले डर  जायेंगें | मैं सोंचती शायद मेरा रंग इतना काला है इस कारण ये मेरे पिता की ईमानदार टिप्पड़ी है | मुझे अफ़सोस होता की मेरे कारण मेरे पिता को मेरे लिए वर खोजने में  परेशानी उठानी पड़ेगी | मैं रातों को कितना तड़फ – तड़फ कर रोती पर तब भी कहती , आई लव यू पापा आप मेरी वजह से परेशान  न हों मैं शादी नहीं करूँगीं | एक दिन हिम्मत करके यही ऐलान मैंने सबके सामने कर दिया | मेरी उम्मीद के विपरीत सब बहुत खुश हुए | दहेज़ के पैसे बचे | मैं खुश थी की सब खुश हैं | मैं अपने सरकारी स्कूल में टॉप करती रही व् छोटा भाई महंगे इंगलिश मीडियम में फेल होता रहा | कितनी बार उसने एक क्लास को दुबारा पढ़ा | तब तक किसी को कोई दिक्कत नहीं थी | दिक्कत तब हुई जब मैंने कॉलेज जाने की फीस के पैसे  मांगे  |  आपने इनकार कर दिया | घर के तमाम खर्चे गिना दिए | ये जानते हुए भी की आप झूठ बोल रहे हैं मैंने आप की बात पर पूरा विश्वास करने की कोशिश की | क्यों ?  क्योंकि आइ लव यू पापा | मैंने  फीस के लिए छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का निर्णय लिया | पढ़ लिख कर मुझे नौकरी मिल गयी | उसी शहर में मैं किराए के घर में रहने लगी | आप और माँ चाहते थे की इन पैसों से मैं परिवार की मदद करूँ , आखिर अकेले का मेरा खर्चा ही कितना था | पर मैंने ऐसी लड़कियों को अपने पास रखने और पढ़ाने का जिम्मा उठाया जो अपनों के होते हुए भी अनाथ थीं | जो सारा भेदभाव झूठे आई लव यू पापा के शब्दों के अन्दर दफनाये हुई थी | मेरी ये पहल सबको नागवार गुज़री और मेरा उस घर में आप सब से मिलने आना अवांछित हो गया | फिर भी मैं आती रही | कुछ नहीं तो अपने बचपन को छू लेने के लिए , सहेज लेने के लिए | समय कब पंख लगा के उड़ गया |दूसरी  माँ भी राम जी को प्यारी हो गयीं | भैया आप को आपके हाल पर छोड़ अपने परिवार के साथ खुश रहने लगा | ऐसे समय में आप गंभीर रूप से बीमार पड़े | अब आप को अपनों की सख्त जरूरत थी | तब आपके पास कोई अपना नहीं था | मैं … मैं कैसे न जाती … आफ्टर आल आई लव यू पापा | आप की बीमारी ओपरेशन और देखभाल का जिम्मा मैंने ख़ुशी – ख़ुशी निभाया | आने जाने वालों की आव – भगत की | सब कह रहे थे की बेटी हो तो ऐसी | आपकी आँखों में भी प्रशंसा के भाव थे | पर आपने कहा कभी नहीं | आप ठीक हो गए मैं बहुत खुश थी | उस दिन जल्दी घर  आने के लिए स्कूल से निकली | रास्ते में कुछ  फूल ले लिए | यूँ ही आप को देने के लिए | दरवाजे से किसी के साथ आप की बात करने की आवाज़ सुनाई दी | आप कह रहे थे ,” वकील साहब , ये सही है की बिटिया ने मेरी बहुत सेवा की है | मुझे मरते से बचाया है | पर जमीन जायदाद तो वंश में जाए तो ठीक है | बिटिया ने इतनी सारी  बच्चियों की जिम्मेदारी ले रखी है | क्या पता मेरे मरने के बाद लालच आ जाए | वैसे दिल की अच्छी है |पर जिम्मेदारी के लिए … Read more

अधूरापन : अभिशाप नहीं , प्रेरणा है

बड़ा अधूरा सा लगता है ये शब्द ~ अधूरापन | जिसे कहते  ही  मन में न जाने कितने  नकारात्मक विचार  आ जाते हैं ।और साथ ही आ जाते हैं बहुत सारे प्रश्न – क्यों , कब कहाँ , कैसे ? क्योंकि  यह शब्द अपने आप में जीवन की किसी कमी को दर्शाता है। पर सोचिये कि अगर ये थोड़ी सी कमी जीवन में ना हो तो जीवन खत्म सा नहीं हो जायेगा?या यूं भी कह सकते हैं की ये सारी भाग – दौड़  उसी अधूरेपन को पूरा करने के लिए ही तो है | रसायन विज्ञान कहता है की हर एटम अपनी आखरी कक्षा में आठ इलेक्ट्रान रख कर इनर्ट गैसों की तरह बनना चाहता है | पर उसके लिए या तो उसे कुछ इलेक्ट्रान निकालने  होगे या लेने होंगे | एक एटम के दूसरे एटम से जुड़ने की सारी रासायनिक  प्रक्रियाएं इसी अधूरेपन को पूरा करने का ही नतीजा हैं | वर्ना तो न तो नए मोलिक्यूल बनते न नए पदार्थ न ही जीव और वनस्पति जगत का इवोल्यूशन हुआ होता | १)अधूरापन देता है हर पल पूर्णतया से जीने की प्रेरणा   एक पुराना हिंदी गाना है “ आधा है चंद्रमा , रात आधी , रह न जाए तेरी मेरी बात आधी “ | कहने को तो यह महज एक फ़िल्मी गीत है पर कहीं न कहनी इसमें गहरा जीवन दर्शन छिपा है | बात आधी छूट जाने का भय … हर पल को पूर्णता से जीने की प्रेरणा देता है |  अभी कुछ ही दिन पहले की बात है गूगल सर्च करते हुए “ नीयर डेथ एक्सपीरिएंस” पर  एक व्यक्ति का संस्मरण  पढ़ा | वह व्यक्ति हर समय पैसा कमाने में लगा रहता था | जब उसका प्लेन क्रैश होने वाला था तो उसे केवल और केवल यह लग रहा था की वह अब अपनी ६ साल की बेटी को नहीं देख पायेगा |प्लेन पानी में गिरा वह बच गया | और उसके बाद उसने अपने जीवन में इस अपूर्णता को समझा जो वो अपने परिवार को वक्त न दे कर कर रहा था | अधूरेपन को जानने के बाद ही उसने काम और परिवार के मध्य समय का संतुलन बनाया |                                                  आज इस अधूरे पन को पूर्णता से सोंचने का कारण भी कुछ अधूरा है | दरसल  मैं बालकनी में बैठी अपने ख्यालों में खोयी हुई थी  | तभी एक करीबी रिश्तेदार के बच्चे का फोन आया | फॉर्मल बातें करने के बाद उसने गिनाना शुरू किया की  उसके जीवन में यह कमी है , वो कमी है | इसलिए उसका काम करने का मन नहीं करता |जरा गौर से सोंचिये की ये उसकी ही नहीं कहीं न कहीं हम सब की परेशानी होती है जहाँ कोई कमी दिखी अधूरापन दिखा बस हार मान कर बैठ गए | फिर जिंदगी से लगे शिकायत करने या फिर यूं ही उसे घसीटने |  मैं इस विषय में सोच ही रही थी ,  तभी मेरी निगाह सामने के घर में नन्हे रिशु पर पड़ी  |  नन्हा रिशु बहुत देर से अपनी माँ को परेशांन  कर रहा था | अचानक माँ को ख्याल आया | उन्होंने एक खाली बाल्टी रिशु के आगे रख दी और रिशु को एक खाली  कटोरी दे कर कहा ,” रिशु नल खोल कर इस बाल्टी को कटोरी से पानी ला –ला कर भरो | रिशु पूरी तन्मयता से काम में जुट गया | खाली बाल्टी ने उसे एक उद्देश्य दे दिया था … उसे भरने का | मुझे अपने ही प्रश्न का उत्तर मिल गया |  हम अक्सर अपनी जिंदगी में किसी खालीपन या कमी की शिकायत करते है | उसे उत्साहहीनता  का कारण मानते हैं |पर अगर तस्वीर को पलट कर देखे तो ये कमी ही हमारे लिए प्रेरणा का काम करता  है | जिससे हम उस कमी को पूरा करने में पूरी ताकत झोंक देते हैं | कहीं न कहीं यह हमारे ऊपर है की हम उस अधूरेपन से निराश हो कर हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाते हैं या उसे अपने जीवन के उद्देश्य में उत्प्रेरक के रूप में इस्तेमाल करें |   २)निराश न हों अधूरेपन से                                         अगर आप ध्यान दीजिए तो आदमी को भी  काम करने के लिए प्रेरित ही यह कमी करती है। कोई भी कदम, हम इस खालीपन को भरने की दिशा में ही उठाते हैं। मनोवैज्ञानिकों  का कहना है कि मनुष्य जीवन भर असंतुलित को संतुलित करने में लगा रहता है | और तो और हमें भूख भी तभी लगती है जब ताकत की कमी महसूस हो रही हो | आप किसी भी घटना को ले लीजिए हर घटना के पीछे किसी न किसी कमी को पूरा करने का कारण  छिपा होता है यहाँ तक की परोपकार व् आतंकवाद के पीछे भी | कोई  व्यक्ति किस तरह के कपड़े पहनता है,किस तरह के रंग पसंद करता है |   किस तरह कि किताब पढन या गाने सुनना पसंद करता  है, किस तरह का कार्यक्रम देखना पसंद करता है और कैसी संस्था से जुड़ा है ये सब अपने जीवन की उस कमी को दूर करने से सम्बंधित है। अभी कुछ समय पहले एक कैंसर के मरीजों के वेलफेयर संसथान में जाना हुआ | ज्यादातर स्वयंसेवी वो थे जिन्होंने कैंसर से अपने किसी प्रियजन को खोया है | वो किसी और कैंसर पेशेंट की सेवा करके अपने जीवन की कमी पूरा करना कहते हैं |  पढ़िए –मनसा वाचा कर्मणा – जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और क्या है कर्मफल कभी नदी में पड़ने वाली भंवर  को देखा है | शायद नदी की तलहटी में एक छोटी सी कमी या अधूरापन होता है | फिर कैसे चारों  तरफ से जल आ कर उसे भरता ही रहता है , भरता ही रहता है ~ बिना रुके बिना थके |  ऐसी  ही एक प्रेरणादायी घटना याद आ रह है जो   हमारे देश में सुनामी के दौरान घटी जहाँ एक दंपत्ति ने अपने तीनों बच्चों को खो दिया | उन्होंने अपनी आँखों  के सामने अपने बच्चों को लहरों द्वारा लीलते देखा | इस हृदयविदारक घटना के बाद उन्हें अपना जीवन बेमानी लगने … Read more

करवाचौथ के बहाने एक विमर्श

 विभिन्न रिश्तों को विभिन्न व्रत त्योहारों के रूपमें सहेजने वाले हामारे देश में पति पत्नी के रिश्ते को सहेजने वाला त्यौहार है करवाचौथ | करवाचौथ एक व्रत  है आस्था का , प्रेम का विश्वास का | सदियों से स्त्रियाँ विशेषकर भारतीय स्त्रियाँ अपने प्रेम को विभिन्न रूपों में व्यक्त करती हैं | चाहे वो भोजन के माध्यम से हो , या ऊन से बुने स्वेटर के माध्यम से हो या देखभाल के माध्यम से | व्रत उपवास भी उसी परंपरा का हिस्सा रहे हैं | वैसे पति-पत्नी का रिश्ता आपसी समझ पर चलता है | जहाँ रिश्ते ढोए जा रहे वहां इन बातों का कोई मतलब नहीं है | लेकिन जहाँ वास्तव में आस्था है वहां तर्क कैसा | कल करवाचौथ का व्रत था | सोशल मीडिया पर जितनी पोस्ट व्रत के पक्ष में आई उतनी ही विरोध में | कहीं-कहीं परंपरा और बाजारवाद की जंग छिड़ी दिखी | करवाचौथ पर लगे आरोपों के कारण मुझे इस पर एक विमर्श की आवश्यकता महसूस हुई | रखे गए तर्कों के आधारपर ही बात की जाए तो … वो जो करवाचौथ का पूर्णतया विरोध करते हैं ·       वैसे तो  करवाचौथ का व्रत  करने वाली /व्रत न करने वाली स्त्रियाँ अपने विचार खुलकर रख रही हैं |  मेरे विचार से हर स्त्री को स्वतंत्रता है की वो व्रत करे या न करे परन्तु व्रत करने वाली स्त्रियों को पति की गुलाम कह देना मुझे उचित नहीं लगता | पढ़ी लिखी आधुनिक युवा स्त्रियाँ भी स्वेक्षा से व्रत कर रही हैं | यहाँ परंपरा को निभाने का कोई दवाब नहीं है | स्त्री विमर्श की खूबी यह होनी चाहिए की हर स्त्री अपनी स्वतंत्रता से निर्णय  ले | क्योंकि न सारे पुरुष एक जैसे हो सकते हैं न सारी  स्त्रियाँ |     सच है की करवाचौथ पर अब बाजारवाद हावी है | परन्तु ऐसा कौन सा त्यौहार है जिस पर बाजारवाद हावी नहीं हैं | पर काफी समय से इसका निशाना करवाचौथ ही बन रहा है | दीपावली हो , होली या फिर ईद और क्रिसमस बाजारवाद ने हर जगह पाँव पसार दिए हैं | ·              भारत में  हर प्रांत  या शहर में करवाचौथ एक तरीके से नहीं मनाया जाता है | कई जगहों पर यह घरों में मनाया जाता है | वहां सजने की इतनी परंपरा नहीं है | कुछ स्थानों पर यह सामूहिक रूप से मनाया  जाता है | वहां श्रृंगार की परंपरा ज्यादा है | यह परंपरा शुरू से थी | सामूहिक रूप से मानाने से एक तरह से “एक समारोह “ का भाव आता है | वहाँ  अच्छे कपडे पहनना व् तैयार हो कर जाना स्वाभाविक हैं | वैसे अतिशय मेकअप की बात छोड़ दें तो सुरुचिपूर्ण ढंग से तैयार हो कर कोई पूजा करना हमारी परंपरा का हिस्सा है | जिसमें किसी भी धातु के जेवर पहनना भी शामिल है | पूजा करते समय धातु पहनने की वजह वैज्ञानिक है | इसी कारण  पुरुष भी पहले जेवर पहनते थे | सुहाग के व्रत में १६ श्रृंगार परंपरा का ही हिस्सा हैं | आधुनिकता का नहीं |           पढ़िए –   करवाचौथ और बायना     ·    कई जगह यह कहा गया की इसे दूसरे प्रांत  के लोग भी अपना रहे हैं | यह फैशन बन गया है | आज जब की पूरा विश्व “ग्लोबल विलेज “ कहलाने लगा है | ये बात कुछ सही नहीं लगती | देश के कई हिस्सों में रहते हुए मैंने खुद कई ऐसे त्यौहार मनाना शुरू किया | जो हमारे यहाँ परंपरा से नहीं होते थे | पर उनको मानाने में मुझे ख़ुशी मिलती थी |ख़ुशी किसी नियम को नहीं मानती |  जब आप किसी दूसरे प्रांत में रह रहे हों और पूरा प्रांत किसी त्यौहार के रंग में रंगा  हो तो उस सामूहिक ख़ुशी का हिस्सा बनने  में एक अलग ही आनंद है | ·         करवाचौथ को फिल्मों ने अपनाया है पर असली करवाचौथ फ़िल्मी नहीं है | सरगी खाने का रिवाज़ भी हर जगह नहीं है | आम भारतीय घरों में कोई भी त्यौहार हो महिलाओं को रसोई से छुट्टी नहीं मिलती | मात्र ८ , ९ % उच्च वर्ग या उच्च माध्यम वर्ग की महिलाओं को हम समस्त भारतीय महिलाओं का प्रतिनिधि नहीं मान सकते | फिल्मों की बात पर हिलेरी क्लिंटन का एक वक्तव्य याद आता है | फिल्में किसी भी देश की सही छवि नहीं व्यक्त करती |फिल्मों की माने तो अमेरिकी कपडे ही नहीं पहनते व् भारतीय खाना ही नहीं खा पाते |    वो जो करवाचौथ पर बस लकीर के फ़कीर बने रहने चाहते हैं सच्चा स्त्री विमर्श सिर्फ विरोध के नाम पर विरोध करना नहीं है | जरूरी ये नहीं की हर परंपरा को तोड़ दिया जाए | जरूरी ये है की कुछ सुधार  हो ताकि परंपरा भी बची रहे व् नया संतुलित समाज भी विकसित हो | करवाचौथ उस दिशा में उठाया गया पहला कदम है | जहाँ कई पति भी पत्नियों के लिए व्रत रख रहे हैं | जो व्रत नहीं रख पाते वो दिन भर पत्नियों का ध्यान रख कर उन्हें स्पेशल फील कराते हैं |  पढ़िए – काकी का करवाचौथ  कुछ लोग इसे रोमांटिक त्यौहार की संज्ञा भी दे रहे हैं | मैंने पहले भी इस पर एक लेख “रात इंतज़ार चलनी और चाँद “ लिखा था | ये सच है है की रात , चाँद और चलनी एक अनोखा समां बाँध देते हैं | परन्तु पहले इसमें रोमांटिक तत्व नहीं थे | ये विशुद्ध पूजा के रूप में ही था | आज अगर नयी पीढ़ी ने इसमें रोमांस ढूंढ निकाला है तो इसमें हर्ज ही क्या है ? आखिरकार पति – पत्नी का रिश्ते में रोमांस की अहम् भूमिका है | करवाचौथ वाले दिन जब इसे बड़ों की स्वीकृति व् आशीर्वाद भी प्राप्त हो तो प्रेम की इस अभिव्यक्ति से परहेज कैसा | इस अभिव्यक्ति से दोनों उस प्रेम का अहसास करते हैं जो वर्ष भर की जिम्मेदारियों में कहीं खो सा जाता है | या यूँ कहें की एक रिश्ता फिर से खिल जाता है | पत्नी को गिफ्ट देना इसी नयी सोंच का हिस्सा है | जहाँ … Read more

बेगम अख्तर- मल्लिकाएं-ए-ग़ज़ल को सलाम

मल्लिकाएं ग़ज़ल पदम् श्री और पदम् विभूषण से सम्मानित बेगम अख्तर का असली नाम अख्तरी बाई फैजाबादी था | वो भारत की प्रसिद्द ग़ज़ल व् ठुमरी गायिका थीं | जिनकी कला के  जादू ने सरहदें पार कर पूरे विश्व को अपनी स्वर लहरियों में बाँध लिया |इस साल ग़ज़ल की महान गायिका बेगम अख्तर की जन्मशती मनाई जा रही है | गूगल ने भी डूडल बना कर उनको सम्मानित किया है | ठुमरी की सम्राज्ञी बेगम अख्तर के जीवन के उतार चढाव के  बारे में बहुत कम लोग जानते हैं |आइये हमारे साथ कुछ करीब से जानते हैं बेगम अख्तर को … बेगम अख्तर का जीवन परिचय ___________________________ बेगम अख्तर का जन्म 7  अक्टूबर 1914 को उत्तरप्रदेश के फैजाबाद जिले में हुआ था |उनकी माता का नाम मुश्तरी बाई व् पिता का नाम असगर हुसैन था |उनके पिता वकील थे व् कहीं और शादी शुदा थे  | मुस्तरी बाई प्रसिद्द गायिका व् तवायफ थीं |जिन्हें उनके पिता ने दूसरी बेगम के रूप में अपनाया था | अपने स्वरों से रूहानी प्रेम को उत्पन्न करने वाली बेगम अख्तर अपनी माता – पिता के अलहदा प्रेम के फलस्वरूप अपनी जुड़वां बहन के साथ दुनिया में आई थीं | बेगम अख्तर का शुरूआती बचपन __________________________________ बेगम अख्तर का बचपन का नाम बिब्बी व् उनकी बहन का नाम जोहरा था | कहते हैं की दो बेटियाँ पैदा होने के बाद उनके पिता ने माँ व् बेटियों  को छोड़ दिया | उनकी माँ मुश्तरी बाई  बच्चियों के साथ संघर्ष मय जीवन जीने को अकेली रह गयीं | तभी दुःख का एक पहाड़ और टूटा | जब बच्चियों ने बचपन में ही भूल वश कुछ जहरीला खा लिया | बिब्बी तो बच गयीं पर जोहरा अल्लाह को प्यारी हो गयीं | अब बिब्बी अकेले ही माँ की जिम्मेदारी और माँ का सहारा बन गयीं | बचपन में चुलबुली थीं बेगम अख्तर ______________________________ जीवन संघर्ष कितना भी क्यों न हों पर बचपन की मासूमियम और चुलबुलापन बेगम अख्तर से कोई चुरा नहीं पाया | फूल तोड़ कर छुप जाना , तितलियाँ पकड़ना और शरारतें करना नन्ही  बिब्बी का शगल था | अलबत्ता पढाई में उनका मन नहीं लगता था | उनका मन लगता था ग़ज़ल और ठुमरी में जिसे वो घंटों सुना करती थीं |उनकी  माँ जरूर उन पर पढाई का दवाब बनाती पर बिब्बी कैसे न कैसे कर बच निकलती | एक बार तो उन्होंने मास्टर जी की चोटी ही काट ली | अब तो मुश्तरी बाई परेशांन  हों गयीं | उन्होंने बिब्बी से पूंछा तुम क्या करना चाहती हो | तो उन्होंने संगीत सीखने की इच्छा जाहिर की | हालांकि मुश्तरी बाई इसके पक्ष में नहीं थीं पर उनके चचा ने उनकी दिली ख्वाइश का साथ दिया और सात साल की उम्र में उनकी संगीत शिक्षा प्रारंभ  हो गयी | उन्होंने चन्द्राबाई थियेटर ज्वाइन किया | मामूली शिक्षित बेगम अख्तर का ग़ज़ल ठुमरी का ज्ञान आकाश की ऊँचाइयों की और बढ़ने लगा | बड़ा कठिन था बेगम अख्तर का शुरूआती सफ़र ______________________________________ बिब्बी ने गाना सीखना तो शुरू कर दिया | पर उनका शुरूआती सफ़र बहुत कठिन था |बेगम अख्तर पर किताब लिखने वाली रीता गांगुली ने एक जगह लिखा है की उनके गुरु ने गाना सीखाते समय कुछ गलत हरकत करने की कोशिश की |बेगम अख्तर ने उसका माकूल जवाब दिया | व् अन्य  छात्राओ को संगठित किया | सबने अपने दर्द बयान किये | फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी |  उन्होंने संगीत को कई उस्तादों से सीखा |  जब गुरु ने कहा मेरी बहादुर बिटिया हार नहीं मानेगी ——————————————————————– एक बार का वाकया  है की वो कोई सुर नहीं लगा पा रही थीं | गुरु बार – बार समझा रहे थे | पर उनसे सुर लग ही नहीं रहा था | आखिरकार वो रोने लगीं और बोली मैं कभी भी गाना नहीं सीख पाऊँगी | उनके गुरु ने उनको डाँटते हुए कहा बस अभी से हार मान गयी | फिर स्नेहपूर्ण शब्दों में बोले ,”मेरी बहादुर बिटिया हार नहीं मानेगी” | इन शब्दों का उन पर जादुई असर हुआ और वो फिर रियाज करने लगीं | तेरह साल की उम्र में बिब्बी अख्तरी बाई हो गयीं | इसी बीच उनका मन नाटकों की और आकर्षित हुआ | वो पारसी थियेटर से भी जुड़ गयीं | नाटक ज्वाइन करने के कारण उनके गुरु अता उल्ला खां उनसे नाराज़ हो गए | और उनसे कहा तुम नाटक करने लगी हो अब तुम संगीत नहीं सीख सकतीं | अख्तरी बाई ने गुरु से गुजारिश की ,कि वो एक बार आकर नाटक देख तो लें | फिर आप जो कहेंगे मै करुँगी |  गुरु अता उल्ला खान उनका नाटक देखने गए | वहां पर जब उन्होंने चल री मोरी नैया गाना गया तो गुरु की आँखों में आंसूं आ गए और वे बोले ,” तुम सच्ची अदाकारा हो | तुम चाहे जो करो तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता | हालांकि एक अकेली स्त्री होने के नाते उनका उनका उनका संघर्ष बहुत कठिन था | वह कई बार छेड़छाड़ की शिकार हुई | शोषण भी हुआ | उनके जीवन के यह दर्द भरे पन्ने बाद में कई मैगजींस में प्रकाशित हुए | संघर्ष कितने भी कठिन हों पर अख्तरी बाई ने हर संघर्ष से टकराकर नदी की तरह आगे बढ़ने की ठान ली और पीछे मुड  कर नहीं देखा | बेगम अख्तर की पहली स्टेज परफोर्मेंस ____________________________________________________ 15 साल की मासूम उम्र में बेगम अख्तर ने अख्तरी बाई फैजाबादी के नाम से पहली बार पहली बार स्टेज पर उतरीं | यह कार्यक्रम बिहार के भूकंप पीड़ितों के लिए कोलकाता में हुआ था | इसमें भारत कोकिला सरोजिनी नायडू भी आयीं थीं | कहतें हैं की उनकी आवाज़ में उनकी जिन्दगी भर का दर्द उतर आता था | ऐसा रूहानी माहौल बनता था की श्रोता मन्त्र मुग्ध हो जाते थे | उनको सामने से सुनने वाले बताते हैं की उनका गाना  सुनने के बाद न जाने कितनी आँखें भीग जाती थीं | फ़िल्मी  कैरियर की शुरुआत ________________________ बतौर अभिनेत्री बेगम अख्तर ने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत फिल्म “ फिल्म एक दिन का बादशाह से की | फिल्म असफल रही | उनका कैरियर भी रुक … Read more

शरद पूर्णिमा : 16 कलाओं से युक्त चाँद जो बरसाता है प्रेम व् आरोग्यता

शरद पूर्णिमा की रात यानी एक ऐसी रात जब चाँद और उसका अहसास कुछ ख़ास होता है | सोलह कलाओ से युक्त चाँद और  धरती पर फैली चाँद की चांदनी रहस्य , रोमांच और प्रेम का अद्भुत ताना बाना बुनती हैं | इस ताने बाने के पीछे एक सुखद संयोग है जब वृद्ध हो चुकी वर्षा ऋतु बाल सुलभ चंचलता लिए हुए शरद ऋतु के चाँद से मिलती है | दोनों का ये अटूट बंधन कुछ अनुपम ही छटा बिखेरता है | क्या है शरद पूर्णिमा के चाँद की सोलह कलाएं  शरद पूर्णिमा का चाँद सोलह कलाओ से युक्त होता है | आम भाषा में कहें तो सोलह कलाओ का अर्थ है पूर्ण ईश्वर | पुराणों  के अनुसार  प्रभु राम 12 कलाओ से युक्त व् श्रीकृष्ण 16 कलाओ से युक्त थे | शरद पूर्णिमा का चाँद भी 16  कलाओं से युक्त होता है | अर्थात शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्र दर्शन का विशेष महत्व  है | अमृत , मनदा , पुष्प , पुष्टि , तुष्टि ,घ्रुती , शशिनी , चन्द्रिका  काँटी ज्योत्स्ना , श्री , प्रीती , अंगदा , पूर्ण और पुर्नामृत | ये चंद्रमा की 16  अवस्थाएं होती हैं | चन्द्र की इन 16 अवस्थाओ से 16 कलाओ का जन्म हुआ | आध्यात्म और 16 कलाएं  आध्यात्म के अनुसार मन को चंद्रमा के सामान माना गया है | उसका अपना एक प्रकाश होता है | हम मानव जीवन की तीन अवस्थाएं जानते हैं | इन अवस्थाओ से इतर जब मनुष्य सोलह कलाओं से युक्त हो जाता है तब उसमें ईश्वरीय गुण आ जाते हैं | मन पूर्ण रूप से प्रकाशित हो जाता है |यानी मन और बुद्धि के परे स्वयं का बोध हो जाता है | अमावस्या पूर्ण अज्ञान की व् पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान की अवस्था है | शरद पूर्णिमा के चाँद से झरता है अमृत शरद पूर्णिमा को कौमुदी पूर्णिमा व् कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं |मान्यता है की प्रभु श्री कृष्ण ने इसी दिन महा रास रचाया था | कहते हैं इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत झरता है | यह अमृत आध्यात्मिक महत्व वाला तो हैं ही मनष्य के लौकिक जीवन के दो स्तम्भ स्वास्थ्य व् रिश्तों पर विशेष प्रभावशाली है |जो जोड़े इस दिन चंद्रमा की चाँदनी का स्नान करते है वो “ अटूट बंधन “ में बंध  जाते हैं | इसके अतरिक्त चंद्रमा की चांदनी में रखी हुई खीर सुबह खाने पर अनेकों रोगों का नाश होता है | उत्तर भारत में इस दिन खीर बना कर चांदनी में रखने की परंपरा है | जिसे सुबह प्रसाद के रूप में खाया जाता है | शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व *मान्यता है की शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था | इस कारण उनका विशेष पूजन अर्चन किया जाता है | इस दिन खरीदारी करने की भी परंपरा रही है | *कहते हैं की द्वापर युग में जब प्रभु श्री कृष्ण ने अवतार लिया था | तब माँ लक्ष्मी ने राधा के रूप में अवतार लिया था | इसी दिन दोनों ने महारास रचाया था और अपने अटूट बंधन को पहचाना था | *मान्यता है की शिव पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय कास जन्म इसी दिन हुआ था | शैव भक्त इसे कुमार पूर्णिमा भी कहते हैं | * पश्चिमी बंगाल में कन्याएं आज के दिन सुबह नहा धो कर सूर्य चन्द्र का पूजन करती हैं | व् सुयोग्य वर की प्रार्थना करती हैं | * मान्यता ये भी है की शरद पूर्णिमा का व्रत पूजन करने से संतान निरोगी व् दीर्घायु होती है | * कहते है रावण भी शरद पूर्णिमा के दिन अपनी नाभि में चांदनी ग्रहण करता था | जिसके कारण उसे अमर तत्व प्राप्त था | शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व विज्ञान के अनुसार शरद पूर्णिमा की चांदनी में वनस्पतियों व् औषधियों  की स्पंदन क्षमता बढ़ जाती है | इसकी किरने भी विशेष आरोग्य दायक होती है | अत : व्यक्ति को कम कपडे पहन कर चन्द्र स्नान अवश्य करना चाहिए | शरद पूर्णिमा में क्यों खीर बनती है अमृत               शरद पूर्णिमा में खीर  खाने का विशेष महत्व हैं |कहते हैं की इस दिन खीर अमृत बन जाती है | उसे रात्रि  10 से बारह बजे के बीच चांदनी में अवश्य रखना चाहिए | दरसल दूध के लैक्टिक एसिड में चांदनी को ग्रह करने की क्षमता होती है | व् चांदी  के पात्र में रखने के कारण इसके कीटाणु भी मर जाते हैं |   इसे खाना इसलिए भी जरूरी समझा गया क्योंकि ये खीर एक प्रतीक है की अब मौसम बदल रहा है ठंडी चीजें छोड़ कर गर्म चीजें खानी हैं | इसका एक कारण और भी है | शरद ऋतु  और वर्षा ऋतु के संधिकाल में पित्त कुपित होता  है | ठंडी  खीर पित्त को शांत करती है व् मौसमी रोगों से बचाती भी हैं | शरद पूर्णिमा की पौराणिक व्रत कथा शरद पूर्णिमा की व्रत कथा के अनुसार एक साहूकार था | उसके दो बेटियाँ थी | दोनों बेटियों के  बड़ी होने पर उसने दोनों का विवाह कर दिया | विवाह के समय ही उसने दोनों बेटियों को समझाया की शरद पूर्णिमा का व्रत लिया करो | दोनों बेटियों ने पिता की बात मानते हुए व्रत करना शुरू कर दिया | जहाँ बड़ी बेटी पूरी श्रद्धा के साथ व्रत करती | छोटी व्रत शुरू तो करती पर आधा ही छोड़ देती | समय बीतने लगा दोनों बेटियों के बच्चे हुए | बड़ी बेटी का परिवार तो हंसी ख़ुशी से भर गया | पर छोटी बेटी के संतान होते ही मर जाती | वो दुखी रहने लगी | पिताजी को भी दुःख हुआ | वो बेटी की कुंडली पुरोहित को दिखाने ले गए | पुरोहित ने कहा कि आपकी बेटी व्रत आधा छोड़ देती है इस कारण संतान जन्म लेते ही मर जाती है | उन्होंने बेटी को पूरा व्रत करने को कहा | उस साल की शरद पूर्णिमा पर छोटी बेटी ने व्रत रखा | व् पूरा पूजन कर के व्रत खोला | कुछ दिन बाद उसके बेटा हुआ | पर वो भी जन्म लेते ही मर गया | छोटी बेटी बड़ी दुखी हुई | उसने बच्चे की देह को कपडे से … Read more