एक पाती भाई /बहन के नाम (वंदना बाजपेयी )

भैया ,कितना समय हो गया है तुमको देखे हुए | पर बचपन की सारी बातें सारी शरारतें अभी भी जेहन में ताज़ा है | वो तुम्हारा माँ की डांट से बचने के लिए मेरे पीछे छुप जाना| वो मेज के नीचे घर बना कर खेलना | और वो लड़ाई भी जिसमें तुमने मेरी सबसे प्यारी गुड़ियाँ तोड़ दी थी | कितना रोई थी मैं | पूरा दिन बात नहीं की थी तुमसे | तुम भी बस टुकुर -टुकुर ताकते रहे थे “सॉरी भी नहीं बोला था | बहुत नाराज़ थी मैं तुमसे | पर सारी नाराजगी दूर हो गयी जब सोने के समय बिस्तर पर गयी तो तकिय्रे के नीचे ढेर सारी टोफियाँ व् रजाई खोली तो उसकी परतों में सॉरी की ढेर सारी पर्चियाँ | और बीच में एक रोती हुई लड़की का कार्टून | कितना हँसी थी मैं | तभी बीच में तुम आ गए अपराधी की तरह हाथ जोड़े हुए | कैसे न मॉफ करती | बहन में माँ जो छिपी होती है | फिर अगले पल झगडा ………. कार्टून में मेरी ही शक्ल क्यों बनायी, अपनी क्यों नहीं तुम कौन सा बड़े अच्छे दिखते हो|| वो तुम्हारा एग्जाम जब तुम हाथ झाड कर खड़े हो गए ” दीदी कुछ नहीं आता और मैं रात भर तुम्हे पढ़ाती रही| कितनी बार मूर्ख आलसी कहा था तुम्हे | तुम चुप-चाप डांट खाते रहे | ऐंठना नहीं गलती भी तुम्हारी ही थी | पर जब रिजल्ट में पूरे नंबर आये तो आँखे छलक गयी थी मेरी | ” राजा भैया , कितना होशियार है , एक दिन पढ़ कर ही पूरे नंबर ले आया | गदगद हो गयी थी मैं जब तुमने झट से पैर छू कर कहा था ” दीदी ये तुम्हारी ही मेहनत का परिणाम है | केवल राखी के धागे ही नहीं | यादों के कितने धागे समेटने हैं | अबकी बरस ………. राखी बंधवाने आयोगे न भैया वंदना बाजपेयी  अटूट बंधन

हाय रे ! प्याज ……. वंदना बाजपेयी

हैलो भईया। हाल ना पूछो मेरा भईया कैसे तुम्हें बताऊँ सब्जी मंडी में खड़ी हुई हूँ चक्कर खा गिर ना जाऊं। ठेले में सब्जी को देखकर आहें मैं भरती हूँ बचपन के वो प्याज भरे दिन याद किया करती हूँ। अस्सी  रूपये किलो प्याज हो गया एक सौ बीस  में सेब है आता इस दोनों में हो गया जैसे भाई – बहन का नाता। तन्खवाह तो बढती है भैया पर खर्च और बढ़ जाता इसीलिए तो आम आदमी आम ही रह जाता। सही कह गए ऋषि – मुनि  वेद  ऋचा में गाकर धर्म भ्रष्ट मत करना अपना प्याज लहसुन खाकर। दूरदर्शी थे वो पहले से ही  सब जानते थे प्याज की कीमत के भविष्य को सतयुग में भी पहचानते थे। अब पछताती हूँ क्यों मैंने बात ना उनकी मानी जाने कैसे शुरू हुई ये प्याज से प्रेम कहानी। ऐसा धोखा देगा मुझको समझ नहीं मैं पायी पहले काटने पर था रुलाता अब देख आँख भर आई। अबकी भईया रक्षा बंधन में जब मेरे घर आना तोहफे  के बदले साथ में अपने कुछ प्याज लेते आना। दो मुझको आशीर्वाद की रोज़ प्याज मैं खाऊं प्याज पकोड़े, प्याज की चटनी प्याज़ की दाल पकाऊं। अब रखती हूँ  भैया मुझको वापस घर भी है जाना खाली थैले से निकाल कर कुछ है आज पकाना। वंदना बाजपेयी  अटूट बंधन

सभी महिला मित्रों को तीज की हार्दिक शुभकामनाएं

:सभी महिला मित्रों को तीज की हार्दिक शुभकामनाएं ********************************************************* सावन की तीज आई घनघोर घटा छाई मेघन झड़ी लगाईं ,परिपूर्ण मंदिनी झूलन चलो हिंडोलने वृषभानु नंदिनी कल   17 अगस्त को सावन की तीज है |आस्था, उमंग, सौंदर्य और प्रेम का यह उत्सव हमारे सर्वप्रिय पौराणिक युगल शिव-पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।  दो महत्वपूर्ण तथ्य इस त्योहार को महत्ता प्रदान करते हैं। पहला शिव-पार्वती से जुड़ी कथा और दूसरा जब तपती गर्मी से रिमझिम फुहारें राहत देती हैं और चारों ओर हरियाली छा जाती है। यदि तीज के दिन बारिश हो रही है तब यह दिन और भी विशेष हो जाता है। जैसे मानसून आने पर मोर नृत्य कर खुशी प्रदर्शित करते हैं, उसी प्रकार महिलाएँ भी बारिश में झूले झूलती हैं, नृत्य करती हैं और खुशियाँ मनाती हैं। तीज के बारे में हिन्दू कथा है कि सावन में कई सौ सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। पार्वतीजी के 108वें जन्म में शिवजी उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और पार्वतीजी की अपार भक्ति को जानकर उन्हें अपनी पत्नी की तरह स्वीकार किया।आकर्षक तरीके से सभी माँ पार्वती की प्रतिमा मध्य में रख आसपास महिलाएँ इकट्ठा होकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। विभिन्न गीत गाए जाते हैं।तीज के मुख्य रंग गुलाबी, लाल और हरा है। तीज पर हाथ-पैरों में मेहँदी भी जरूर लगाई जाती है।हरे रंग की चूड़ियों का तीज में विशेष महत्व हैं |  भारतीय नारी के जीवन में चूड़ियों का बहुत ही महत्व है| भारतीय नारियाँ रंग-बिरंगी चमकीली चूड़ियाँ कलात्मक एवं सुरुचिपूर्ण ढंग से पहनकर अपनी कोमल कलाइयों का शृंगार करती हैं। यह शृंगार शताब्दियों से कुमारियों एवं नारियों को रुचिकर प्रतीत होता है, साथ ही स्वजन-परिजन भी हर्षित होते हैं। हाथ की चार चूड़ियाँ उनके अहिवात को सुरक्षित रखने के लिए ही पर्याप्त हैं।आज तीज के दिन पुरानी डायरी पलटते हुए बहुत पहले चूड़ियों पर लिखी गयी कविता नज़र आई | जिसे आप सब के सम्मुख पेश कर रही हूँ क्या -क्या न् सितम  हम पे ये ढाती हैं चूड़ियाँ जब भी कभी कलाई में आती हैं चूड़ियाँ चुभती हैं कलाई में जब खुद से झगड़कर तब और सुर्ख लाल नजर आती हैं चूड़ियाँ हों नीली -पीली या फिर लाल गुलाबी हर रंग में दिल को लुभाती हैं चूड़ियाँ कितना भी चले हम अपने पाँव दबाकर आने की खबर पहले ही दे आती हैं चूड़ियाँ जासूस हैं साजन  की मेरे  जानते हैं  हम फिर भी न जाने  दिल को क्यों भाती  हैं चूड़ियाँ वंदना बाजपेयी

सावन के पहले सोमवार पर :उसकी निशानी वो भोला – भाला

  मंदिर एक प्राचीन शिव समाधि में आसीन शिव और शिवत्व जीव और ब्रम्हत्व शांत निर्मल निर्विकार उर्जा और शक्ति के भंडार दो नेत्र  कोमल, दया के सिन्धु श्रृष्टि   सृजन के प्रतीक बिंदु तीसरा नेत्र कठोर विकराल मृत्यु संहार साक्षात काल डमरू की अनहद नाद ओमकार का शब्दिक वाद शांत, योग, समाधि में आसीन ब्रम्ह स्वं ब्रम्ह में विलीन नीलकंठ, सोमेश्वर, ओम्कारेश्वर डमरू पाणी, त्रिशूलधारी, बाघम्बराय मन पुष्प अर्पित कर भजूँ ओम नमः शिवाय। सावन के पहले सोमवार पर :उसकी निशानी वो भोला – भाला ( हर – हर ~ बम बम )      सत्यम शिवम् सुन्दरम ……… जो सत्य है ,वही कल्याणप्रद है ,वही सुन्दर  है ………. ये तीन शब्द झूठ फरेब छल के जाल में फंसे मनुष्य को सही दिशा दिखाते हैं | इसको अगर पलट कर कहे तो असत्य कभी भी कल्याण कारी नहीं हो सकता ,जो कल्याणप्रद नहीं है उसकी सुन्दरता क्षणिक है | यही भारतीय संस्कृति की अवधारणा भी है | शिव ,दो अक्षरों का छोटा सा नाम परन्तु असीम शक्ति असीम कल्याण  समेटे हुए | क्या है शिव नाम का रहस्य  लोक पावन शिव नाम को बार – बार  जपने को कहा जाता है | कुछ तो ख़ास है इस नाम में | वस्तुतः इसके पीछे धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक अवधारणा भी है | शिव नाम अपने आप में एक मन्त्र है ….जो पूरी तरह से ध्वनि के सिद्धांतों  पर आधारित है| इसके पीछे एक गहन शोध है |  शिव में ‘शि’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है। लेकिन यदि आप सिर्फ “शि” का बहुत अधिक जाप करेंगे, तो वह आपको असंतुलित कर देगा । दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है, वह विनाश का प्रतीक है |  इसलिए इस मंत्र को मंद करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उसमें “व” जोड़ा गया। “व” “वाम” से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता।‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित करता  है।इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में ले जाने की बात करते हैं। जो अपने आप में कल्याण कारी है | शिव सिखाते हैं संतुलन  उर्जा हो या जीवन या रिश्ते   जो संतुलन कर ले गया वही श्रेष्ठ है वही विजेता है |  देवादिदेव शिव सदा  दो विपरीत परिस्तिथियों में संतुलन साधना सिखाते हैं | अर्द्ध नारीश्वर के रूप में वह स्त्री और पुरुष के मध्य संतुलन साधना सिखाते हैं | काम देव को भस्म करते हैं और परिवार भी बसाते हैं | महाज्ञानी  हैं पर बिलकुल भोले -भाले | शरीर पर भस्म लपेट कर दैहिक सौन्दर्य को नकारते हैं वही सौन्दर्य के प्रतीक चंद्रमा को शीश पर धारण करते हैं | धतुरा , मदार ,हलाहल दुनियाँ भर का विष पी के आनंद  से डमरू बजाते हैं | ये संतुलन ही शिवत्व है | शिव तो हैं भोले बाबा                                     शिव के अनेक नाम प्रचलित हैं पर जो नाम सबसे उपर्युक्त है वो है भोले बाबा | जरा  सी बात पर प्रसन्न हो जाते हैं | वरदान दे देते हैं | वरदान देते समय सोचते नहीं कि देवता ,दानव ,मानव किसको दे रहे हैं | तभी तो भस्मासुर को वरदान देकर स्वयं भी संकट में पड  जाते हैं |  उन के भोलेपन  पर एक और कथा प्रचलित है |   एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। सावन महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया।इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहाँ वह बेलपत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।ऐसे हैं भोले बाबा |  क्यों चढाते हैं भोले बाबा को बेलपत्र                                                               वैसे  हम लोग भी बेल पत्र शिव को चढाते है | ये सोचते हैं कि ये शिव को प्रिय हैं पर इसका वास्तविक महत्त्व नहीं जानते | दरसल बेलपत्र में शिव की गूंज को आत्मसात कर लेने की सबसे अधिक क्षमता होती है। शिवाले में हर समय शिव नाम की गूँज होती रहती है | अगर आप उसे शिवलिंग पर रखकर फिर ग्रहण कर लेते हैं, तो उसमें लंबे समय तक उस प्रभाव या गूंज को कायम रखने की क्षमता होती है। वह गूंज आपके साथ रहती है | सावन का पहला सोमवार ~ आस्था  सब पर भारी  उर्जा और पूर्ण चेतना  दृष्टि से अलग कर के देखूँ तो आज सावन के पहले  सोमवार ,में मंदिरों में भीड़ लगी है | लोग जल  , दूध ,बेलपत्र , धतूरा  आदि अपने इष्टदेव पर अर्पित करके उसे प्रसन्न करने के लिए घंटो कतार में लगे हुए है | ॐ नम : शिवाय ,हर हर ,बम बम की गूँज से पूरा वातावरण गुंजायमान है | बहुत ही शांत आध्यात्मिक वातावरण है | भक्ति प्रेम की अंतिम सोपान है | शिव अराधना  में डूबे लोग क्षण भर को ही सही उस परम उर्जा के श्रोत से एकीकार  हो जाते हैं |यही तो है आस्था का सुख  | जो सब कुछ त्याग कर बैठा है वो ही सबको सब कुछ देता है | शिव को सावन इतना प्रिय क्यों है                                                   वैसे तो शिव की पूजा सदैव कल्याण प्रद है परन्तु सावन में शिव पूजन का विशेष महत्व है हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने … Read more

फ्रेंडशिप डे पर विशेष :कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं

कि जहाँ भी रहे तू मेरी निगाह में हैं  दोस्त एक छोटा सा शब्द पर अपने अन्दर बहुत सारे अहसास समेटे हुए |दो लोग जिनमें कोई खून का रिश्ता नहीं होता पर तब भी  भावनात्मक रूप से एक –दूसरे से गहरे से जुड़ जाते हैं | एक दूसरे के साथ समय बिताना आनंददायक लगने  लगता है  | एक दूसरे के  बिना जीना असंभव लगने लगता है एक दूसरे के सुख –दुःख में पूरी शिद्दत से  भागीदार बनना जैसे सांसों का हिस्सा बन जाता है | दोस्त के पास या दूर रहने पर दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ता वो यथावत रहती है |एक सच यह भी है कि  हमारे वही रिश्ते चलते हैं जिनमें सखा भाव हो | चाहे वो भाई –बहन का रिश्ता हो , भाई –भाई का पति –पत्नी का | कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि जब पिता का जूता बेटे के पैर में आने लगे तो उसे अपना दोस्त समझना चाहिए |         रिश्तों में कितनी भी दोस्ती हो पर  दोस्ती शब्द कहते ही सबसे पहले कृष्ण सुदामा का ख़याल आता है | एक राजा एक भिखारी पर उनकी मित्रता का क्या कहना “ जहाँ दिल एक हों वहां ऊँच  –नीच अमीरी गरीबी कहाँ दीवार बन पाती है | सूरदास ने अपने लाचार गरीब मित्र से मिलने पर श्री कृष्ण की मनोदशा का कितना सुन्दर वर्णन किया है ………. ऐसे बेहाल बेमायन सो  पग कंटक जाल लगे पुनि जोए । हाय महादुख पायो सखा तुम आये इते न किते दिन खोये ॥ देख सुदामा की दिन दशा करुणा करके करूणानिधि रोये । पानी परात को हाथ छुयो नहीं नैनं के जल सों पग धोये ॥             तुलसी दास जी ने तो  सुग्रीव और प्रभु राम की मित्रता के पावन अवसर पर अच्छे और बुरे मित्र के सारे लक्षण ही बता दिए ……… जे न मित्र दुख होहिं दुखारी। तिन्हहि बिलोकत पातक भारी।। निज दुख गिरि सम रज करि जाना। मित्रक दुख रज मेरु समना देत लेत मन संक न धरई। बल अनुमान सदा हित करई॥ बिपति काल कर सतगुन नेहा। श्रुति कह संत मित्र गुन एहा॥ उन्होंने बुरे मित्र के भी लक्षण बताये हैं ………. आगें कह मृदु बचन बनाई। पाछें अनहित मन कुटिलाई॥ जाकर ‍िचत अहि गति सम भाई। अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई॥ सेवक सठ नृप कृपन कुनारी। कपटी मित्र सूल सम चारी॥ सखा सोच त्यागहु बल मोरें। सब बिधि घटब काज मैं तोरें                मित्र वो भी बुरा …….. कहने सुनने में अजीब लगता है पर ऐसे मित्रों से हम सब को जिंदगी में कभी न कभी दो चार होना ही पड़ता है | तभी तो शायद दादी माँ के ज़माने से चली आ रही  कहावत आज भी सच है “ पानी पीजे छान के और दोस्ती कीजे जान के “ मुंह में राम बगल में छुरी वाले ऐसे दोस्त अवसर देखते ही अपना  असली रंग दिखा देते हैं | और भोले भाले लोग दिल पकडे आह भरते रह जाते हैं | कोई ऐसा ही दोस्त मिला होगा तभी तो अब्दुल हमीद आदम कह उठते हैं ……. “दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं दोस्तों की मेहरबानी चाहिए “ जनाब हरी चन्द्र अख्तर तो साफ़ –साफ़ ताकीद करते हैं ……… हमें भी आ पड़ा है दोस्तों से काम कुछ यानी हमारे दोस्तों के बेवफा होने का वक्त आया              पर मुझे लगता है कहीं न कहीं इसमें दोस्त की गलती नहीं हैं | उस शब्द की गलती हैं जिसे हम हर किसी को बाँटते फिरते हैं | आम चलन की भाषा ने दोस्ती शब्द को बहुत छोटा कर दिया है | यहाँ हर जान –पहचान दुआ सलाम करने वाले के लिए परिचय में दोस्त शब्द जोड़ दिया जाता है | शायद अहमद फ़राज़ के शेर में मेरी ही इस बात का समर्थन है ……… तुम तकल्लुफ को इख्लास समझते हो फ़राज़ दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला                   मैं सोचती हूँ आज के ऍफ़ .बी युग में मेरे ५००० फ्रेंड पर इतराने वालों को के बारे में फ़राज़ साहब क्या लिखते ? पर लोगों की भी गलती नहीं दोस्ती ,और दोस्तों की संख्या हमें सामाजिक स्वीकार्यता का अहसास कराती है | जब  रिश्ते –नाते मशीनी हो गए हैं तो अकेलापन घेरता है | ऐसे में भावनात्मक सुरक्षा का ये सहारा बहुत जरूरी हो जाता है | हम आज के युग में ऍफ़ .बी फ्रेंड्स की अनिवार्यता को नकार नहीं सकते …………… झूठा ही सही कम से कम यह अहसास तो है वक्क्त ,बेवक्त कोई अपना मेरे पास तो है             वैसे दोस्ती तो कभी भी कहीं भी किसी से भी हो सकती है | पर बचपन की दोस्ती की बात ही अलग है | साथ साथ खेलना कूदना पढना ,लड़ना झगड़ना | बिलकुल पारदर्शी रिश्ता होता है | जहाँ हम एक दूसरे को उम्र के साथ बढ़ते हुए पढ़ते हैं | इसमें थोड़ी मीठी सी प्रतिस्पर्धा भी होती है | भला उसकी गुड़ियाँ मेरी गुड़ियां से महंगी कैसे , मेरे नंबर कम कैसे ? पर उसका भी मजा है |……. सवालों के दिन वो जवाबों की राते ……….. याद करते हुए कॉलेज ,हॉस्टल छोड़ते हुए भला किसकी आँख नम नहीं होती |                  सच्चे दोस्त किस्मत वालों को मिलते हैं | इनकी संख्या एक या दो से ज्यादा नहीं हो  सकती | अगर आप को कोइ ऐसा दोस्त मिला है जो आपका सच्चा हितैषी हैं तो उसे संभाल कर रखे | क्योंकि दोस्ती एक खूबसूरत अहसास के साथ –साथ एक जिम्मेदारी भरा फर्ज भी है | हमारे खून के रिश्तों में जहाँ मन –मुटाव होने पर पूरा परिवार संभाल लेता है ,उस दूरी को कम करने का प्रयास करता है | वहीं दोस्ती का रिश्ता केवल दो व्यक्तियों के अहसासों से जुडा  होता हैं | जिसे खुद ही संभालना होता है | सहेजना होता है | एक बार रिश्ता कच्चे कांच की तरह  टूटने पर जुड़ना मुश्किल होता है| कई बार अहंकार भी आड़े आ जाता है | बुलाना ,मानना चाहते हैं पर हम पहल क्युओं करे पर गाडी अटक जाती हैं | ऐसे ही किसी दर्द से गुज़र के जिगर मुरादाबादी कह उठते हैं ……….. आ की तुझ बिन इस कदर ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं जैसे हर शय में … Read more

रिया स्पीक्स : सेल्फी विद डॉटर

!!!!!!!!!!!!!!!!!!!रिया स्पीक्स !!!!!!!!!!!!!!!!!!!                सेल्फी विद डॉटर दादी;( कमरे में प्रवेश करते हुए )हे शिव, शिव ,शिव आज तो ई बरखा रानी  रुकने का नाम ही नाही ले रही हैं | हे ! इंद्र देव  कित्ता बरसियो अभी ? ( बालकनी की तरफ देखते हुए ) अरे ! ईमा तो पानी भरन  लाग | रिया अरी ओ रिया तनिक बाल्टी लाओ थोडा उलीचे  | रिया : ( दूसरे कमरे से आवाज़ लगाते हुए ) आई दादी दादी : ( खुद से बोलते हुए )हे शिव ,शिव ,शिव ……… का भगवान् का आज का आपन नल बंद करन भूल  गए | बरसा ही जा रहा है ,बरसा ही जा रहा है ,रुकन का नाम ही नाही लेत  है | आप तो कैलाश में बैठ हो इहाँ तो  हमार छज्जा भरन  लाग | ई बड़े –बड़े शहरन में बालकनी के नाम पर छोटा सा छज्जा  ही तो दे देत हैं ऊमा भी नाली नाही बनावत  हैं , ये भी नाही सोचत हैं बरसात का पानी कैसे निकालिए | और  उहाँ गाँवो में तो बड़े बड़े चबूतरे रहे पर का उजाड़ पड़े हैं | लड़का को तो पेट की खातिर शहर में रहे के परी | ( गाँव की याद करते हुए दादी थोडा दुखी हो जाती हैं )| रिया : (कमरे में प्रवेश करते हुए) हां ! दादी बताइये क्या बात है | दादी : बिटिया ई जरा बाल्टी से पानी उलीचो ,छज्जा भरन लाग है | (रिया की तरफ देखते हुए ) अरी ई सुबह –सुबह तैयार काहे को हो | ( दरवाजे की तरफ देखते हुए ) अरे ई बहु भी तैयार है | कहाँ जाय रही हो ऐसी बरखा –पानी में ? रिया : दादी हम कही जा नहीं रहे हैं ,अभी माँ मेरे साथ अपनी फोटो खींचेगी और उसे आन  लाइन  सोशल साइट्स पर शेयर करेंगी | ये एक अभियान का हिस्सा है जिसका नाम है “सेल्फी विद डॉटर “ यानी  गर्व के साथ  अपनी बेटी के साथ अपनी फोटो शेयर करो | दादी : ई से क्या फायदा होगा बिटिया ? रिया : दादी बात तुरंत होने वाले फायदे की नहीं है | बस इस बात पर गर्व करने की है “कि मैं एक बेटी की माँ हूँ | बेटी को जन्म देकर कोई अपराध नहीं किया है | जैसा की समाज समझाता रहता है ……कहता रहता है “ बेचारी “ दादी : पर बिटिया ई सब से क्या हुईए , लड़का तो लड़का ही होत है ,वंश चलावत है | बिटिया पराया धन | रिया : दादी समाज की इसी सोच की वजह से ही न जाने कितनी कन्याये गर्भ में मार दी जाती हैं | बेटियों को जन्म लेने का अधिकार भी नहीं दिया जाता है | लड़की को जन्म देना  कोई दोष नहीं है |आपके समय में भी तो दादी लड़कियों के जन्म लेने के बाद दुध् मुँही  बच्ची को आटा  घोर कर पिला देते थे ,और बच्ची मर जाती थी | कोई  माँ क्रूर हो कर अपनी ही बेटी की हत्या इसलिए करती है क्योंकि उस पर समाज का दवाब है | बेटी को जन्म देने वाली माँ को नीची दृष्टि से देखा जाता है | दादी : हाँ हमरे जमाने में ऊ तो होत रहे | पर …….. रिया : आप ही देखो दादी आपकी जरा सी परेशानी पर बुआ कैसे दौड़ी चली आती हैं ,आपकी सेवा करती हैं तब कहाँ पराई रह जाती हैं | और मैं मैं भी तो लड़की हूँ दादी ,कल को नौकरी करुँगी ,अपने ,अपने माता –पिता का सहारा बनूँगी | आज  आई .ए .एस की परीक्षा को एक लड़की ने टॉप किया है | समान अवसर मिलने पर लडकियाँ ,लड़कों से कम नहीं हैं | फिर भी  लड़कियों को जन्म लेने से रोका जा रहा है | दादी : पर ई तमाशा से हुईए का ? का समाज सुधर जहिये ? रिया : दादी लिंग परिक्षण कर गर्भपात करना क़ानूनन अपराध है | फिर भी हो रहा है ,क्योंकि बुराई समाज  में गहरे  पैठी है |  अभी कल की ही बात बताऊ एक महिला अपनी तीन –तीन बेटियों के साथ मेट्रों में जा रही थी | मेरे बगल में खड़ी औरत उसे देख कर बुदबुदाई “ उफ़ तीन –तीन बेटियाँ ,बेचारी ! उसे  महिला को उससे कोई मतलब नहीं  था जिसने लिंग परिक्षण न करा कर तीसरी बेटी को जन्म देने का साहस किया था | पर वो समाज की नज़र में बेचारी है और ताउम्र रहेगी | दादी समाज में गहरे पैठ बना चुकी मान्यताएं एकाएक नहीं बदलती | कानून अपना काम करता है पर इस तरह के सुधार आन्दोलनों की भी जरूरत है | धीरे –धीरे ही सही पर समाज बदलेगा | इसी अभियान की एक शुरुआत है “सेल्फी विद डॉटर “ गर्व करो कि आप एक बेटी की माँ हैं | दादी : बिटिया तुम्हारा मोबाइल कहाँ है ? रिया : ये रहा दादी ,पर क्यों / दादी ( मुस्कुराते हुए ) तनिक बुआ को फोन लगा कर बुला लो | हमहूँ खीचईये “ सेल्फी विद डॉटर ‘ रिया : ( दादी के गले लगते हुए ) मेरी अच्छी दादी मेरी प्यारी दादी , आई लव यू दादी | vandana bajpai  atoot bandhan ………….. हमारा फेस बुक पेज  

बड़ा होता आँगन (सम्पादकीय अंक -९ )

बड़ा होता आँगन  बार –बार दरवाजे पर आ कर परदेश गये बेटे की बाट  जोहती है माँ कि दीवार पर टंगे कैलेंडर पर बना देती है बड़ा सा लाल गोला बेटे के आने की तारीख का कि इस इतजार में कैद होता हैं उसका एक –एक पल इसी इंतज़ार में कट जाता है दिन का सूनापन और वो स्याह राते जिसमें बिस्तर पर अकेले पड़े –पड़े  कराहती है,फिर आंसूओ से  धुन्धलाये चश्मे को पोंछ कर कोसती है आँगन को मुआ इतना बड़ा हो गया कि यहीं खेलता बेटा नज़र ही नहीं आता  ***** अम्माँ दूर नहीं हूँ तुमसे जब तुम कराहती हो बिस्तर पर एक पीर सी उठती है दिल में चीर कर रख देती है कलेजा हर रोज याद करता हूँ तुमको रोटी और नाम की जद्दोजहद ने बाँट दिया है मेरे तन और मन को करता हूँ जोड़ने की कोशिश जब ढूढता हूँ तुमको तुम्हारे बनाये अचार के टुकड़ों में या महसूस करता हूँ तुम्हारी अँगुलियों का स्पर्श मिगौरी और मिथौरी  में  हर होली ,दिवाली और त्यौहार सूना लगता है अम्माँ पर मजबूर हूँ इस बडे  आँगन में कैद हूँ अपने छोटे  दायरे में       टी वी पर खबर आ रही है “ सभ्यता का विकास चरम पर है दूरियां घट गयी हैं | आप रात को भारत में हैं सुबह अमेरिका में | पूरा विश्व एक आँगन में तब्दील हो गया है |या यूँ कहे हमारा आँगन बड़ा हो गया है | टी वी देखती हुई ८० वर्षीय  रामरती देवी एक उडती सी नज़र अपने आँगन पर डालती हैं …..वही कोने में चूल्हा जलता था जब चारों  बच्चे घेर के बैठ जाते थे | चूल्हे पर धीरे –धीरे सिकती हर रोटी के ४ टुकड़े कर सब की थाली में एक –एक टुकड़ा  डाल देती थी | देवरानी मुस्कुरा कर कहती थी “दीदी आप से सब बच्चे हिल मिल गए हैं अपना पराया समझ नहीं आता | पर अब ……. अब तो कोई नजर नहीं आता | बरसों पहले देवरानी न्यारी हो गयी ,और बच्चे अमेरिका में जा कर बस गए जिन्हें चार साल से देखा नहीं |रामरती देवी चश्मा पोंछ कर बुदबुदाती  हैं …..हां  शायद आँगन इतना बड़ा हो गया हैं कि कोई दिखता नहीं बरसों –बरस |                       शंकुंतला देवी उम्र ७५ वर्ष  चलने –फिरने उठने –बैठने में असमर्थ एक कमरे में पड़े –पड़े पानी के लिए बच्चों को आवाज़ लगाती हैं | वही घर है ,आँगन भी वही है …. जब उनकी एक आवाज़ पर सारे बच्चे दौड़े चले आते थे…. वह भी कभी मूंगफली से कभी टॉफ़ी से कभी ,कभी भुने चनों से बच्चों की झोलियाँ भर देती थी | पर आज इतना पुकारने पर भी कोई नहीं आता …. घंटों बाद आती है परिचारिका उनके गीले हुए वस्त्रों को बदलने या पानी और दवाई देने | शकुंतला देवी मन ही मन सांत्वना देती है वह  तो अभी भी वही है ,घर भी वही पर शायद टी .वी वाला सही बोल रहा है ………. आँगन बड़ा हो गया है तभी तो उनकी आवाज़ आँगन को पार करके बच्चो तक पहुँच ही नहीं पाती |            बर्फ की सिल्ली पर रखी फूलमती की मृत देह को शायद अभी भी प्रतीक्षा है अपने बेटे पप्पू की जो दस साल पहले विदेश जा कर बस गया था | कितना घबराई थी वो अपने कलेजे के टुकड़े अपने  बेटे को विदेश भेजते  समय | वैधव्य की मार झेलते हुए कैसे नमक रोटी खाकर पढ़ाया था पप्पू को | बेटे ने हाथ थाम कर कहा था “अम्माँ  बस एक साल की बात है ,लौट आउंगा | थरथराते होंठों से बस उसने इतना ही कहा था “ बेटा मेरी मिटटी खराब न होने देना ,आग तुम्ही देना “ अरे नहीं  अम्माँ  अब पूरा विश्व एक आँगन हो गया है ,दूरी रह ही कहाँ गयी है | विधि की कैसी विडम्बना है जो माँ अपलक १० साल से अपने बेटे का इंतज़ार कर रही थी उसकी मृत देह १० घंटे भी न कर सकी | इससे पहले कि देह सड़े रिश्ते के भतीजे को बुला कर पंचतत्व  में विलीन कर दी गयी | पप्पू न आ सका | इतने बड़े आँगन को पार करने में समय तो लगता ही है |       अभी पिछले महीने हमने विदेशियों की परंपरा का निर्वहन करते हुए मदर्स डे ,फादर्स डे ,फैमिली डे मनाया | बहुत से लोगों को इस दिन दूर रहते हुए अपने माता –पिता की याद आई होगी | शायद फोन मिला कर “ हैप्पी मदर ,फादर ,फैमिली डे कहा हो “ शायद कोई कार्ड ,कोई गिफ्ट भी दिया हो | और प्रतीकात्मक रूप से अपने कर्तव्य की ईतिश्री करके अपने सर से बोझ उतार  लिया हो | पर समय कहाँ देख पाता  है कि बुजुर्गों के चेहरे की मुस्कुराहटों की नन्हीं सी शाम, इंतज़ार की लम्बी रात में कितनी जल्दी धंस जाती है | फिर शुरू हो जाता है अंतहीन पलों को गिनने का सफ़र जो कटते हुए भीतर से बहुत कुछ काट जाते हैं |जीवन संध्या में एकाकीपन कोई नयी बात नहीं है | बहुत कुछ कहा जा चुका है कहा जा रहा पर समस्या जस की तस है | एकाकीपन की समस्या से हर बुजुर्ग जूझ रहा है | वो भी जिनके बच्चे दूर विदेश में  हैं और वो भी जिनके बच्चे पास रह कर भी दिल से बहुत दूर हैं | बड़े होते आँगन में दायरे इतने संकुचित हो गए हैं कि किसी के पास किसी के लिए समय नहीं है |           अब तस्वीर को पूरा १८० डिग्री पर पलट कर देखते हैं | नीरज एक छोटे से कस्बे  में रहने वाला होनहार छात्र जिसने अपनी  कुशाग्र बुद्धि के दम पर एक  देश की सबसे प्रतिष्ठित इंजीनयरिंग परीक्षा पास की और  कंप्यूटर इंजिनीयर बना | जाहिर है उसके छोटे से कस्बे  में उसकी योग्यता लायक कोई नौकरी नहीं है  | देश के बड़े शहरों और विदेशों में उसका सुनहरा भविष्य इंतज़ार कर रहा है  |अब उसके पास  मात्र दो विकल्प हैं | या तो वो किसी मात्र पेट भरने लायक नौकरी कर के उस कस्बे  में रहे और जीवन भर अपनी  योग्यता के अनुसार पद न मिल पाने की वजह से कुंठित रहे या घर द्वार … Read more

बोनसाई

                        बोनसाई हां ! वही बीज तो था मेरे अन्दर भी जो हल्दिया काकी ने बोया था गाँव की कच्ची जमीन पर बम्बा के पास पगडंडियों के किनारे जिसकी जड़े गहरी धंसती गयी थी कच्ची मिटटी में खींच ही लायी थी तलैया से जीवन जल मिटटी वैसे भी कहाँ रोकती है किसी का रास्ता कलेजा छील  के उठाती है भार तभी तो देखो क्या कद निकला है हवाओ के साथ झूमती हैं डालियाँ कभी फगवा कभी सावन गाते कितने पक्षियों ने बना रखे हैं घोंसले और सावन पर झूलो की ऊँची –ऊँची पींगे हरे कांच की चूड़ियों संग जुगल बंदी करती बाँध देती हैं एक अलग ही समां और मैं … शहर में बन गयी हूँ बोनसाई समेटे हुए हूँ अपनी जड़े कॉन्क्रीट कभी रास्ता जो नहीं देता और पानी है ही कहाँ ? तभी तो ऊँची –ऊँची ईमारते निर्ममता से   रोक लेती है किसी के हिस्से की मुट्ठी भर धूप पर दुःख कैसा ? शहरों में केवल बाजार ही बड़े हैं अपनी जड़े फैलाए खड़े हैं चारों तरफ अपनी विराटता पर इठलाते  अट्हास करते  बाकी सब कुछ बोनसाई ही है बोनसाई से घर घरों में बोनसाई सी बालकनी रसोई के डब्बो में राशन की बोनसाई बटुए में नोटों की बोनसाई रिश्ते –नातों में प्रेम की बोनसाई और दिलो में बोनसाई सी जगह इन तमाम बोंनसाइयों के मध्य मैं भी एक बोनसाई यह शहर नहीं बस  बोंनसाइयों का जंगल  है जो आठो पहर अपने को बरगद सिद्ध करने पर तुले हैं वंदना बाजपेई   atoot bandhan………क्लिक करे 

बैसाखियाँ

                                                                           बैसाखियाँ  जब जीवन के पथ पर  गर्म रेत सी लगने लगती   दहकती  जमीन जब बर्दाश्त के बाहर हो जाते  है दर्द भरी लू  के थपेड़े संभव नहीं दिखता  एक पग भी आगे बढ़ना और रेंगना बिलकुल असंभव तब ढूढता है मन बैसाखियाँ २ ) ठीक उसी समय बैसाखियाँ ढूंढ रही होती हैं लाचार लाचारों  के बिना खतरे में होता है उनका वजूद आ जाती हैं देने सहारा गड जाती हैं बाजुओं में एक टीभ सी उठती है सीने के बीचो -बीच विवशता है सहनी ही है यह गडन  लाचारी  ,और बेबसी से भरी नम आँखें बहुधा नजरंदाज करती हैं बैसाखियाँ ३ ) मानता है अपंग लौटा नहीं जा सकता अतीत में न मांग कर लाये जा सकते हैं दबे कुचले  पाँव जीवन है तो चलना है गर जारी रखनी है यात्रा आगे की तरफ तो जरूरी है लेना बैसाखियों का सहारा ४ ) बैसाखियाँ कभी हौसला नहीं देती वो  देती है सहारा कराती हैं अहसास अपाहिज होने का जब आदत सी बन जाती हैं बैसाखियाँ तब मुस्कुराती हैं अपने वजूद पर कि कभी -कभी भाता  है उनको देखना गिरना -पड़ना और रेंगना की बढ़ जाता है उनका कुछ कद साथ ही बढ़ जाती है लाचार के बाजुओ की गडन ५ ) बैसाखियाँ प्रतीक हैं अपंगता की बैसाखियाँ प्रतीक हैं अहंकार की बैसाखियाँ प्रतीक हैं शोषण की फिर भी आज हर मोड़ पर मिल जाती हैं बैसाखियाँ बिना किसी रंग भेद के बिना किसी लिंग भेद के देने को सहारा या एक दर्द भरी गडन जो रह ही जाती है ताउम्र ६ ) बैसाखियाँ सदा से थी ,है और रहेंगी जब -जब भावुक लोग महसूस करेगे अपने पांवों को कुचला हुआ तब -तब वजूद में आयेगी  बैसाखियाँ इतरायेंगी  बैसाखियाँ सहारा देकर स्वाभिमान छीन  ले जायेंगी बैसाखियाँ जब तक भावनाओं  के दंगल में हारा ,पंगु हुआ पथिक अपने आँसू खुद पोछना नहीं सीख जाएगा तब तक बैसाखियों का कारोबार यूँ ही फलता -फूलता जाएगा वंदना बाजपेई atoot bandhan  ………कृपया क्लिक करे 

मोक्ष

 मोक्ष   जैसा की हमेशा होता है बच्चे जब छोटे होते हैं तो उन्हें दादी – नानी धार्मिक कहानियां सुनाती हैं । ऐसा  ही धर्मपाल के साथ भी हुआ । गरीब परिवार में जन्म लिया था …. पिता चौकीदार थे … माँ एक बुजुर्ग स्त्री की देखबाल करने जाया करती थीं । घर में रह जाते थे दादी और धर्मपाल । दादी धर्मपाल को धर्म की कहानियां सुनाया करती थीं । कर्म का फल कैसे मिलता है , कैसे जो लोग इस जन्म में अच्छे कर्म करते हैं उन्हें अगले जन्म में सब सुख सुविधाएँ मिलती हैं …. राजयोग बनता है … मिटटी में भी हाथ लगाओ तो सोना बन जाती है । धर्मपाल बुद्धिमान थे … गणित के हिसाब से धर्म को भी मान लिया । इस जन्म का हर कष्ट अगले जनम में सुख सुविधाओं की गारंटी  है । धीरे – धीरे धर्मपाल बड़े हुए । पढने में तेज़ थे । प्रतियोगी परीक्षा में सफल हुए और देखते देखते सी पी डब्लू डी  में इंजीनियर के पद पर नियुक्त हो गए । माँ – बाप बहुत खुश थे । लड़का अब उनकी गरीबी मिटा देगा । अच्छी जगह शादी करेंगे ढेर सारा दहेज़ लेंगे । पर धर्मपाल अड़ गए । दहेज़ नहीं लेंगे … लड़की उनके यहाँ दो कपड़ों में आएगी । माँ बाप ने बहुत समझाया पर धर्मपाल  ना माने । माँ बाप ने सोंच समझकर एक अमीर घराने की लड़की से उसकी शादी कर दी । सोंचा अभी ना सही धीरे – धीरे ही सही ससुराल से कुछ तो आता ही रहेगा । लड़की के माँ बाप ने भी इंजीनियर समझ कर शादी की थी कि भले ही ससुराल खाली हो पर लड़का नोटों से घर भर देगा । पर  हुआ बिलकुल विपरीत । धर्मपाल जी को अपनी पत्नी का मायके से रुमाल लाना भी नागवार था । और विभाग ?  विभागीय आमदनी की स्थिति तो ये  थी की ना  खुद खाते थे ना खाने की इज़ाज़त देते थे । ऊपर वाले भी नाखुश … नीचे वाले भी नाखुश । हर चार महीने में तबादला हो जाता । फिर भी जब उनपर कोई असर नहीं पड़ा तो उन्हें एक केस बनाकर झूठे मामले में फंसा दिया गया । धर्मपाल जी निलंबित हो गए । घर में खाने के लाले पड़ गए । पत्नी अभावों से घबड़ाकर मायके चली गयी । पर धर्मपाल बहुत खुश थे कि अगला जन्म उन्हें बहुत अच्छा मिलने वाला है । जैसे डाइटिंग करते समय लोग अपनी एक – एक कैलोरी गिनते हैं वैसे ही धर्मपाल जी भी एक -एक पुन्य गिनते और  हिसाब लगाते कि अगले जन्म में वो क्या बनेंगे । काम तो कुछ था नहीं … बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते । बाकी समय अपने पुण्य गिनते। …. दहेज़ नहीं लिया, शहर के सबसे अमीर आदमी बनेगे क .P.WD में   रहे और रिश्वत नहीं ली। …. जरूर टाटा बिरला के यहाँ पैदा होंगे। अपने हर पुण्य  के साथ अपने को एक पायदान ऊपर पहुंचा कर अगले जन्म की कल्पना में खुश रहते ।धीरे -धीरे वो देश के प्रधान मंत्री तक पहुँच गए। अब उन्होंने  और पुण्य कमाने की और गणित बिठाने की कोशिश शुरू कर दी  ।अब उन्हें पक्का यकीन हो गया की अगले जनम में अमेरिका के राष्टपति की कुर्सी उन्हें ही मिलेगी। वो बहुत खुश रहने लगे लोग उन्हें पगला कहते थे।  एक दिन धर्मपाल की मृत्यु हो गयी । उनकी आत्मा ऊपर की दिशा में चल दी । धर्मपाल बहुत खुश थे … अगला जन्म सोंच – सोंच कर रोमांचित हो रहे थे । सामने प्रभु दिखाई दिए । प्रभु बोले … धर्मपाल तुमने बहुत पुन्य किये हैं । धर्मपाल बीच में ही बात काटकर बोले हां प्रभु मैं जानता हूँ आप मुझे क्या देने वाले हैं … मन ही मन प्रधान मंत्री की कुर्सी , टाटा – बिडला के यहाँ जन्म या अमेरिका के राष्ट्रपति की कुर्सी  आदि उन्हें दिखाई दे रहा था । प्रभु मुस्कुराये … वत्स मैं तुम्हे मोक्ष दूंगा … तुम अब दुबारा जन्म नहीं लोगे । धर्मपाल तेज़ प्रकाश पुंज में समाहित होने लगे …. लेकिन उनकी निगाहें अभी भी कुर्सी  पर टिकी थी  … गणना चल रही थी ………   हिसाब तो पूरा बराबर था पर ये  क्या उल्टा हो गया , कौन से पुण्य ज्यादा हो गए ? वंदना बाजपेई  (चित्र गूगल से साभार )