मंदिर एक प्राचीन शिव समाधि में आसीन शिव और शिवत्व जीव और ब्रम्हत्व शांत निर्मल निर्विकार उर्जा और शक्ति के भंडार दो नेत्र कोमल, दया के सिन्धु श्रृष्टि सृजन के प्रतीक बिंदु तीसरा नेत्र कठोर विकराल मृत्यु संहार साक्षात काल डमरू की अनहद नाद ओमकार का शब्दिक वाद शांत, योग, समाधि में आसीन ब्रम्ह स्वं ब्रम्ह में विलीन नीलकंठ, सोमेश्वर, ओम्कारेश्वर डमरू पाणी, त्रिशूलधारी, बाघम्बराय मन पुष्प अर्पित कर भजूँ ओम नमः शिवाय। सावन के पहले सोमवार पर :उसकी निशानी वो भोला – भाला ( हर – हर ~ बम बम ) सत्यम शिवम् सुन्दरम ……… जो सत्य है ,वही कल्याणप्रद है ,वही सुन्दर है ………. ये तीन शब्द झूठ फरेब छल के जाल में फंसे मनुष्य को सही दिशा दिखाते हैं | इसको अगर पलट कर कहे तो असत्य कभी भी कल्याण कारी नहीं हो सकता ,जो कल्याणप्रद नहीं है उसकी सुन्दरता क्षणिक है | यही भारतीय संस्कृति की अवधारणा भी है | शिव ,दो अक्षरों का छोटा सा नाम परन्तु असीम शक्ति असीम कल्याण समेटे हुए | क्या है शिव नाम का रहस्य लोक पावन शिव नाम को बार – बार जपने को कहा जाता है | कुछ तो ख़ास है इस नाम में | वस्तुतः इसके पीछे धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक अवधारणा भी है | शिव नाम अपने आप में एक मन्त्र है ….जो पूरी तरह से ध्वनि के सिद्धांतों पर आधारित है| इसके पीछे एक गहन शोध है | शिव में ‘शि’ ध्वनि का अर्थ मूल रूप से शक्ति या ऊर्जा होता है। लेकिन यदि आप सिर्फ “शि” का बहुत अधिक जाप करेंगे, तो वह आपको असंतुलित कर देगा । दिशाहीन ऊर्जा का कोई लाभ नहीं है, वह विनाश का प्रतीक है | इसलिए इस मंत्र को मंद करने और संतुलन बनाए रखने के लिए उसमें “व” जोड़ा गया। “व” “वाम” से लिया गया है, जिसका अर्थ है प्रवीणता।‘शि-व’ मंत्र में एक अंश उसे ऊर्जा देता है और दूसरा उसे संतुलित करता है।इसलिए जब हम ‘शिव’ कहते हैं, तो हम ऊर्जा को एक खास तरीके से, एक खास दिशा में ले जाने की बात करते हैं। जो अपने आप में कल्याण कारी है | शिव सिखाते हैं संतुलन उर्जा हो या जीवन या रिश्ते जो संतुलन कर ले गया वही श्रेष्ठ है वही विजेता है | देवादिदेव शिव सदा दो विपरीत परिस्तिथियों में संतुलन साधना सिखाते हैं | अर्द्ध नारीश्वर के रूप में वह स्त्री और पुरुष के मध्य संतुलन साधना सिखाते हैं | काम देव को भस्म करते हैं और परिवार भी बसाते हैं | महाज्ञानी हैं पर बिलकुल भोले -भाले | शरीर पर भस्म लपेट कर दैहिक सौन्दर्य को नकारते हैं वही सौन्दर्य के प्रतीक चंद्रमा को शीश पर धारण करते हैं | धतुरा , मदार ,हलाहल दुनियाँ भर का विष पी के आनंद से डमरू बजाते हैं | ये संतुलन ही शिवत्व है | शिव तो हैं भोले बाबा शिव के अनेक नाम प्रचलित हैं पर जो नाम सबसे उपर्युक्त है वो है भोले बाबा | जरा सी बात पर प्रसन्न हो जाते हैं | वरदान दे देते हैं | वरदान देते समय सोचते नहीं कि देवता ,दानव ,मानव किसको दे रहे हैं | तभी तो भस्मासुर को वरदान देकर स्वयं भी संकट में पड जाते हैं | उन के भोलेपन पर एक और कथा प्रचलित है | एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। सावन महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया।इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहाँ वह बेलपत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।ऐसे हैं भोले बाबा | क्यों चढाते हैं भोले बाबा को बेलपत्र वैसे हम लोग भी बेल पत्र शिव को चढाते है | ये सोचते हैं कि ये शिव को प्रिय हैं पर इसका वास्तविक महत्त्व नहीं जानते | दरसल बेलपत्र में शिव की गूंज को आत्मसात कर लेने की सबसे अधिक क्षमता होती है। शिवाले में हर समय शिव नाम की गूँज होती रहती है | अगर आप उसे शिवलिंग पर रखकर फिर ग्रहण कर लेते हैं, तो उसमें लंबे समय तक उस प्रभाव या गूंज को कायम रखने की क्षमता होती है। वह गूंज आपके साथ रहती है | सावन का पहला सोमवार ~ आस्था सब पर भारी उर्जा और पूर्ण चेतना दृष्टि से अलग कर के देखूँ तो आज सावन के पहले सोमवार ,में मंदिरों में भीड़ लगी है | लोग जल , दूध ,बेलपत्र , धतूरा आदि अपने इष्टदेव पर अर्पित करके उसे प्रसन्न करने के लिए घंटो कतार में लगे हुए है | ॐ नम : शिवाय ,हर हर ,बम बम की गूँज से पूरा वातावरण गुंजायमान है | बहुत ही शांत आध्यात्मिक वातावरण है | भक्ति प्रेम की अंतिम सोपान है | शिव अराधना में डूबे लोग क्षण भर को ही सही उस परम उर्जा के श्रोत से एकीकार हो जाते हैं |यही तो है आस्था का सुख | जो सब कुछ त्याग कर बैठा है वो ही सबको सब कुछ देता है | शिव को सावन इतना प्रिय क्यों है वैसे तो शिव की पूजा सदैव कल्याण प्रद है परन्तु सावन में शिव पूजन का विशेष महत्व है हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने … Read more