अब मॉफ भी कर दो

स्वीकारती हूँ  सींच रही थी मैं  अंदर ही अंदर  एक वट वृक्ष  क्रोध का  कि चुभने लगे थे कांटे  रक्तरंजित  थे पाँव   कि हो गया था असंभव चलना  नहीं ! अब और नहीं  अब बस …………. आज से, अभी से   मैं क्षमा करती हूँ उन्हें  जिन्होंने मुझे आहत किया  मैं क्षमा करती हूँ उन्हें  जिन्होंने मेरा पथ रोक लिया  पर उससे पहले मैं  क्षमा करती हूँ  अपने आप को  तमाम अपराध बोधों से  कि ऐसा वैसा किया होता  तो कुछ और होता जीवन  या ………  ये ,वो राह पकड़ी होती  तो कुछ और दिखाता दर्पण  हां ! अब मैं  सहज ,सरल हूँ  उतर गया है टनो बोझ क्रोध का  मिट  गयी हैं कालिख  मन दर्पण की  अब  दिख रहा है भविष्य पथ  उजला सा दूर तक   नए हौसलों के साथ  अब बढ़ाउंगी कदम ……….                                              क्या आपने कभी सोचा है की हँसते -बोलते ,खाते -पीते भी हमें महसूस होता है टनो बोझ अपने सर पर। एक विचित्र सी पीड़ा जूझते  रहते हैं हम… हर वक्त हर जगह। एक अजीब सी बैचैनी। ………… किसी अपने के दुर्व्यवहार की ,या कभी किसी अपने गलत निर्णय की हमें सदा घेरे रहती है। प्रश्न उठता है आखिर क्या है इससे निकलने का उपाय ? ऐ  विधाता ऐ खुदा हमें मॉफ कर,हमें मॉफ कर   हमें क्या पता कहाँ जा रहे क्या है रास्ता हमें मॉफ कर ,हमें मॉफ कर …………                                         आज भी किसी फिल्म का यह गीत मेरा ध्यान बरबस अपनी ओर खीच लेता है। हम हर रोज ईश्वर से हाथ जोड़ कर मॉफी मांगते हैं और उम्मीद करते हैं कि उन्होंने हमें मॉफ कर दिया है। इसके बाद हम हल्का महसूस करते हैं।                                         परन्तु यह बात केवल ईश्वर से हमें क्षमा मिल जाने तक सीमित नहीं है बहुत जरूरी है कि हम अपने को मॉफ करना सीखें। मेरे आपके समाज के और देश के आपसी रिश्तों को तरोताज़ा रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम अतीत की गलतियों को भूल कर ,उन गलतियों को मॉफ कर आगे बढे। अतीत चाहे रिश्तों की कड़वाहट से भरा हो चाहे अपने प्रति नाराज़गी भरी हो। कोई ऐसा कदम जो नहीं उठाया या कोई ऐसा कदम जो उठा लिया उन सब को सोच -सोच कर हम अपना वर्तमान खराब करते रहते हैं। सीखे मॉफ करना :-                            कड़वाहट भूलने के लिए सबसे जरूरी है मॉफ करना। कभी -कभी हम किसी बात को पकडे हुए न सिर्फ रिश्तों का मजा खो देते हैं बल्कि अंदर ही अंदर स्वयं भी किसी आग में जलते रहते हैं।                                                      मेरी एक परिचित हैं उनके यहाँ पिता -पुत्र में झगड़ा हो गया ,गुस्से में बेटा अपनी पत्नी को लेकर घर छोड़ कर चला गया। पिता दिल के मरीज थे ,बर्दाश्त नहीं कर सके उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी। एक अकेली मध्यमवर्गीय स्त्री पर अपनी ५ अनब्याही कन्याओं के विवाह की जिम्मेदारी आ गयी। उन्होंने बहुत हिम्मत के साथ एक -एक करके ४ लड़कियों का विवाह किया। उनका बेटा बार -बार मॉफी मांगने आता माँ का दिल पसीजता पर एक पत्नी अपने बेटे को ही अपने पति का हत्यारा समझती रही ,और अपने ही बेटे के प्रति भयंकर कड़वाहट से भरी रही। इस तीस ,इस पीड़ा से वो मुक्त नहीं हो पा रही थी। अंततः उन्होंने अपने बेटे को मॉफ करने का फैसला किया। बेटे ने अपनी बहन की शादी करायी। और अब श्रीमती उपाध्याय (परिवर्तित नाम )अपने बेटे -बहु , पोते -पोतियों के साथ वृद्धावस्था का आनंद उठा रही हैं। पूछने पर कहती हैं “काश मैंने अपने बेटे को पहले ही मॉफ कर दिया होता तो आज इतनी बीमारियों से न घिरी होती।              क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक ;-                               मनोवैज्ञानिक सुधा अग्रवाल कहती हैं कि अगर कोई मनुष्य अपने अंदर क्रोध ,नफरत की भावना ज्यादा लम्बे समय तक पनपने देता है तो उसे तमाम तरह की बीमारियां घेर लेती हैं जैसे हाई ब्लड प्रेशर ,हाइपर टेंशन ,डिप्रेशन आदि। अपने गुस्से पर काबू रखने की कोशिश में व्यक्ति ईष्यालु ,झगडालू और क्रोधी हो जाता है। ऐसी सोच वाला व्यक्ति अपने जीवन में ज्यादा आगे नहीं जा सकता है। मनोवैज्ञानिक डॉ अतुल नागर कहते हैं ,अगर हम हर छोटी -छोटी बात पर लोगों से किनारा करते रहे तो कुछ समय बाद हम अपने में सिमट जायेंगे और हमारे सरे रिश्ते ख़त्म हो जायेंगे। पर्सनाल्टी एवं साइकोलॉजिकल रिव्यू के अनुसार मॉफ करने की आदत हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है रिश्ते बहुत कीमती हैं :-                                                  हम छोटा सा जीवन ले कर आये हैं। हमें अपने रिश्तों की कद्र  करनी चाहिए।  रिश्तों में आपसी प्रेम और ताल-मेल न सिर्फ हमें भावनात्मक मजबूती प्रदान करता है बल्कि हमारे विकास के मार्ग को भी प्रशस्त करता है। मनुष्य एक सामजिक प्राणी हैं और एक सुखद जीवन जीने के लिए उसे रिश्तों की आवश्यकता है। जरा -जरा सी बात पर रिश्ते तोड़ने से हम अलग -थलग पड़  जाएंगे। रिश्तों को बनाने में बहुत म्हणत पड़ती है उन्हें तोडा नहीं जा सकता ,वैसे भी जितने लोग हमारे साथ जुड़े होते हैं हमारा मनोबल उतना ही ऊंचा होता है।                       “जिंदगी के कैनवास पर जितने रंग होंगे ,तस्वीर उतनी ही सुन्दर बनेगी “                                                 इसका मतलब यह नहीं कि हम हर किसी के बुरे व्यवहार … Read more

होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित

होली केवल रंगों का त्यौहार ही नहीं है , हंसने खिलखिलाने का भी त्यौहार है | हँसने –हँसाने का ये सिलसिला जारी रहने के लिए लाये हैं एक हास्य रचना  होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित होली और गुझियाँ का चोली दामन का साथ है |”सारे तीरथ बार –बार और गंगा सागर एक बार “की की तर्ज पर गुझियाँ ही वो मिठाई है जो साल में बस एक बार होली पर बनती है |जाहिर है घर में बच्चों –बड़ों सबको इसका इंतज़ार रहता है,और गुझियाँ का नाम सुनते ही बच्चों के मुँह में व् महिलाओं के माथे पर पानी आ जाता है |    कारण  यह है कि गुझियाँ खाने में जितनी स्वादिष्ट लगती है पकाने में उतनी ही बोरिंग| एक –एक लोई बेलो ,भरो ,तलो …. बिलकुल चिड़िमार काम |अकसर होली के आस –पास महिलाएं जब एक दुसरे से मिलती हैं तो पहला प्रश्न यही होता है “आप की गुझियाँ बन गयी? और अगर उत्तर न में मिला तो तसल्ली की गहरी साँस लेती है “एक हम ही नहीं तन्हाँ न बना पाने में तुझको रुसवा“ पर बकरे की माँ कब तक खैर बनाएगी ,बनाना तो सबको पड़ेगा ही ….. शगुन जो ठहरा |          एक सवाल मेरे मन में अक्सर आता है कि पिट्स,,वी टी आर , फादर्स  रेसेपी … जैसी तमाम कंपनियों ने जब रसगुल्ले ,ढोकले ,दहीबड़े यहाँ तक की जलेबी के इंस्टेंट मिक्स बना कर हम हम महिलाओं को पकाने के काम से इतनी आज़ादी दी कि हम आराम से पड़ोस में किसकी बेटी का ,बेटे का ,सास –बहु ,नन्द –भौजाई का आपस में क्या पक रहा है जान सके ,तो किसी को यह ख़याल क्यों नहीं आया कि इंस्टेंट गुझिया मिक्स बनाया जाए |ऐसी निराशा के आलम में जब होली  से ठीक एक दिन पहले “आज गुझियाँ बना ही लेंगे की भीष्म प्रतिज्ञा करते हुए हमने अखबार खोला, तो हमारी तो ख़ुशी के मारे चीख निकल गयी | साफ़ –साफ़ मोटे –मोटे अक्षरों में लिखा था “ हमारी माताओं –बहनों की तकलीफ को देखते हुए होली पर महिलाओं के लिए इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स बिकुल फ्री| जल्दी करिए स्टॉक सीमित है |केवल महिलाएं अपने एरिया की अधिकृत दुकान तक पहुंचे |विज्ञापन सरकारी था |शक करने का कोई सवाल ही नहीं था |वैसे भी हम दिल्ली वालों  फ्री चीजों की आदत हो चुकी है | और अब तो फ्री -फ्री के खेल को एन्जॉय करना भी शुरू कर दिया है | हमने तुरंत अपना मोबाइल उठाया और अपनी सहेलियों को फ्री की यह शुभ सूचना देने के में २०० रूपये खर्च कर दिए | मीना ,रीना ,टीना  ,मुन्नी ,दिव्या सुधा सब दस मिनट में तैयार हो कर हमारे घर आ गयी |हमने दुकान की तरफ  कदम बढ़ाये |रास्ते भर हम यही गुणगान करते रहे “क्या सरकार है जिसने हम महिलाओ  के दर्द को समझा ,इतना तो हमारे पतियों नें नहीं समझा | दुकान पर पहुँच कर देखा करीब ५ -७ सौ महिलाओं की भीड़ है| खैर हम सभी सभ्य  जनता की तरह लाइन में लग गए और अपनी –अपनी सास –बहुओं की बुराई कर सहृदयता पूर्वक  टाइम काटने लगे| तभी अचानक से खबर आई इस ईलाके के लिए पैकेट केवल ५० हैं |कहीं हम ही न रह जाए यह सोच कर महिलाओं में भगदड़ मच गयी |सब  अपनी –अपनी साडी के पल्ले कमर पर बाँध  योद्धा की तरह आगे बढ़ने लगी |कुछ  ने दूसरों को गिराया, कुछ स्वयं ही गिरी  , सास –बहु की बुराई की जगह एक दूसरे की बुराई होने लगी |कैसी सहेली हैं रे तू (दिल्ली में तू भाषा में आम चलन में  है)मेरी जॉइंट फैमिली है तुझे दया नहीं आती |दूसरी आवाज़ आई अरे मैं तो काम पर जाती हूँ ,मुझे मिलना चाहिए |तभी कुछ आवाज़े आई “सीनियर सिटीजन का पहला हक है | मौके की नाजुक हालत देख कर दुकान दार भाग गया | विकराल छीना –झपटी मच गयी |             इसी छीना – झपटी में सारे के सारे पैकेट फट गए,पर ये क्या उसमें गुझियाँ मिक्स की जगह अबीर –गुलाल निकला| हम सारी महिलाएं रंगों से सराबोर थी |एक –दूसरे की हालत देखकर हमें हंसी आने लगी |सारा गुस्सा काफूर हो गया | फटे हुए पैकेट को खंगाला गया तो उसमें मिली पर्चियों पर बड़ा –बड़ा लिखा था  “बुरा न मानो होली है”  हम लोगो कि हंसी छूट गयी…होलीके माहौल में बुरा क्या मानना।हम सब हँसते –मुस्कुराते घर की तरफ चल पड़े। इस बात का अफ़सोस तो जरूर था की घर जा कर गुझियाँ बनानी पड़ेगी। पर इस बात का संतोष भी था पहली बार सरकार ने जनता के साथ होली खेली। जनता रंगों से सराबोर हुई और अबीर -गुलाल तो मिला ही बिलकुल मुफ्त।  खैर हमने तो होली खेल ली अब गुझियाँ भी बना ही लेंगे पर अगर आप के शहर में ऐसा कोई विज्ञापन आता है .तो जरा संभल कर ….बड़े धोखे हैं इस राह हैं …..फिर भी अगर मुफ्त के चक्कर  में आप भी फंस जाए और होली के रंगों में रंग जाए तो भी कोई गम नहीं क्योंकि…………….. “बुरा न मानो होली है” वंदना बाजपेयी  अटूट बंधन परिवार की ओर से आप सभी को होली की हार्दिक शुभ कामनाएं  यह भी पढ़ें ..                             सूट की भूख न उम्र की सीमा हो … किरण आर्य हमने भी करी डाई – ईटिंग एक लेखक की दास्ताँ       आपको  व्यंग लेख “ होली पर इंस्टेंट गुझियाँ मिक्स मुफ्त :स्टॉक सीमित “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |        

दिल्ली:जहाँ हर आम आदमी है ख़ास

                                        बचपन की याद आती है जब माँ सुबह -सुबह हमें उठाते हुए कह रहीं थी “जरा  जल्दी उठ कर ठीक -ठाक कपडे पहन लो दिल्ली वाली चाची आने वाली हैं “वैसे तो हमारे घर मेहमानों का आना .-जाना लगा रहता था। उसमें कुछ ठीक -ठाक करने जैसा नहीं था ,पर चाची दिल्ली की थी।  चाची  पर इम्प्रैशन डालने का अर्थ सीधे संसद तक खबर।  हालाँकि   हम उत्तर प्रदेश के एक महानगर में रहते थे पर दिल्ली हमारे लिए दूर थी।  दिल्ली वो थी जहाँ की ख़बरों से अखबार पटे रहते थे। हमें अपने शह र की जानकारी हों न हो पर दिल्ली की हर घटना की जानकारी रहती थी गोया की हमारा शहर  दीवाने आम हो  और दिल्ली दीवाने ख़ास।  दिल्ली ,दिल्ली का विकास और दिल्ली के लोग हमारी कल्पना का आयाम थी।  बरसों बीते हम बड़े हुए ,हमारा विवाह हुआ और पति के साथ तबादले का शिकार होते हुए देश के कई शहरों का पानी पीते हुए आखिर कार दिल्ली पहुँच  ही गए। और दिल्ली आकर हमें पता चला की कितने भी आम हो अब हम आम आदमी /औरत नहीं रहे हैं। अब हम भी उन लोगों में शुमार हो गए हैं जो खबरे पढ़ते ही नहीं बल्कि ख़बरों का हिस्सा हैं।                                                  पहला अनुभव हमें दिल्ली प्रवास के  दूसरे दिन ही हो गया जब हमारी प्रिय सखी का फोन दिल्ली पहुँचने की बधाई देने का आया।  बधाई  देने के बाद बोली ”  बड़ी परेशानी होगी ,पानी नहीं आ रहा न तुम्हारे घर “अच्छा हमने सकपकाते हुए कहा ,पता नहीं नल खोल कर देखते हैं ,तुम्हें कैसे पता चला ? अरे सुबह से क क क  चैनल पर दिखा रहे हैं  , दिल्ली में तुम्हारे एरिया में पानी नहीं आ रहा हैं लोग खाली बोतलें लेकर सड़कों पर हैं … टी वी नहीं देखा क्या तुमने ? पहली बार हमें बड़ा अटपटा लगा हमारे घर में पानी नहीं आ रहा है इसका पता हमसे पहले पूरे देश को है। हमारी निजी स्वतंत्रता का  कोई स्थान नहीं ? फिर तो यह रोज का सिलसिला हो गया।  हमने भी आपने आस -पास की बातों  पर ध्यान देना शुरू कर दिया क्योकि ,अडोस -पड़ोस में क्या हो रहा है इसकी खबर जाते ही सुदूर बसे परिवार के सदस्यों के लिए घटना की  आधिकारिक पुष्टि हमें ही करनी होती थी अन्यथा हमारे समान्य ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह लगने का पूरा ख़तरा था।                                                                     एक बार तो हमारी कश्मीर वाली बहन हमसे  कई दिन तक इस बात पर नाराज रही कि सर्दियाँ होते ही सारे रिश्ते दारों के हमारे घर में “अपना और बच्चों का धयान रखना “के हिदायत भरे फोन आने लगते  जबकि वो -१० डिग्री से नीचे जम रही होती पर  उसके यहाँ कोई फोन नहीं पहुँचता, इस पारिवारिक भेदभाव में हमारा कोई हाथ नहीं था। ये तो टी वी  चैनल वाले २४ घंटे दिल्ली की सर्दी का आँखों देखा हाल बताते रहते ,,सर्दी की भयावता को देख दूसरे शहरों के लोग रजाई में किटकिटाते हुए भाग्य को सराहते “भैया दिल्ली की सर्दी से राम बचाए “.|  एक बार कानपुर  में एक रिश्तेदार की शादी में जाने पर हम चर्चा का केंद्र बन गए”बताओ क्या दिन आ गए हैं  दिल्ली में अबकी गर्मी में दो -दो घंटे बिजली काट रहे हैं।  जब सुनते -सुनते हम हम थक गए तो पूँछ ही लिया “कानपुर में कितने घंटे आती है  ?कोई ठीक नहीं पर २४ घंटे में १० -११  घंटे तो आ ही जाती है।  उत्तर प्रदेश की औद्यौगिक राजधानी बिजली की किल्लत से बुरी तरह जूझ रहीं है ,उद्योग -धंधे चौपट हैं ,भीषण बेरोजगारी  ने लूट पाट  को बढ़ा दिया है. पर दिल्ली में २ घंटे बिजली गुल होना खबरों का शहंशाह  बन कर तख्ते  ताऊस पर बैठा है।                                               एक बार तो हद हो गयी रात को ११ बजे माँ का फोन आया। उन्होंने कांपती आवाज़ में कहा “बिटिया अपना ,दामाद  जी का बच्चों का ध्यान रखना “क्यों माँ क्या हुआ इतनी घबराई हुई क्यों हो ?मैं उल्टा प्रश्न दागा। अभी -अभी टी वी चैनल में दिखा रहे हैं दिल्ली भूकंप से ज्यादा प्रभावित होने वाली जोंन  में आता हैं  ,हम तो घबरा गए। देखो ज्यादा बेख्याली में मत सोना। टंकी पूरी ना भरना … गमले………… माँ ने हिदायतों की पूरी लम्बी लिस्ट सुनानी शुरू कर दी। हमने बीच में ही माँ को रोकते हुए कहा माँ ठहरों जिस सेस्मिक जोंन  में दिल्ली  है उसी में आप का शहर भी है। चिंता न करिए।   माँ ने लगभग डांटते  हुए कहा “हमारा जी इतना घबरा रहा है ,और तुम्हे मजाक सूझ रहा है ,तुम्हे ज्यादा पता है या चैनल वालों  को.…  हम निरुत्तर हो गए हम बचपन में सुना चुटकुला याद आ गया “एक आदमी का परिक्षण कर रहे डॉक्टर ने नर्स से कहा ,ये मर चुका है तभी आदमी उठ कर बोला मैं जिन्दा हूँ ,मैं ज़िंदा हूँ , नर्स उसे टोंकते हुए बोली चुप राहों तुम्हें ज्यादा पता है या डॉक्टर को  “                                  खैर अब तो हमें  ख़बरों में रहने की आदत हो गयी है दूसरे शहर तकलीफे आपदाए झेते रहे ,…………पर.  खबर है तो दिल्ली की , …………  यहाँ हर आम घटना ,हर आम आदमी खबर का हिस्सा है चर्चा का विषय है इसीलिये यहाँ का हर आम आदमी ख़ास है।  और देखिये तो अब तो आम आदमी पार्टी भी चुनाव जीत कर ख़ास हो गयी है।  वंदना बाजपेयी                        

लो भैया ! हम भी बन गये साहित्यकार

कहते हैं की दिल की बात अगर बांटी न जाए तो दिल की बीमारी बन जाती है और हम दिल की बीमारी से बहुत डरते हैं ,लम्बी -छोटी ढेर सारी  गोलिया ,इंजेक्शन ,ई सी  जी ,टी ऍम टी और भी न जाने क्या क्या ऊपर से यमराज जी तो एकदम तैयार रहते हैं ईधर दिल जरा सा चूका उधर प्राण लपके ,जैसे यमराज न हुए विकेट  कीपर हो गए….. तो इसलिए आज हम अपने साहित्यकार बनने  का सच सबको बना ही देंगे।ईश्वर को हाज़िर नाजिर मान कर कहते है हम जो भी कहेंगे सच कहेंगे अब उसमें से कितना आपको सच मानना है कितन झूठ ये आप के ऊपर निर्भर है।                    बात पिछले साल की है ,हम नए -नए साठ  साल के हुए थे , सठियाना तो बनता ही था। बात ये हुई कि एक दिन चार घर छोड़ के रहने वाली मिन्नी की मम्मी आई ,उन्होंने हमें बताया की कि इस पुस्तक मेले में उनके काव्य संग्रह ( रात रोई सुबह तक ) का विमोचन है …. उन्होंने  इतनी  देर तक अपनी कवितायें सुनाई कि पूछिए  मत, ऊपर से एक प्रति हमारे लिए एक हमारे पति के लिए ,एक बेटे के लिए ,एक बहु के लिए उपहार स्वरुप दे गयी।इस उम्र में वो अचानक से  इतनी महान  बन गयी और हम हम अभी तक करछुल ही चला रहे हैं.हमारे अहंकार की इतनी दर्दनाक हत्या  तरह से हत्या हो गयी  कि खून भी नहीं निकला। हमें अपने जवानी के दिन याद आने लगे जब हम भी कविता लिखते थे। आह !क्या कविता होती थी।  क्लास के सब सहपाठी वाह -वाह करते नहीं अघाते थे ,वो तो घर -गृहस्थी में ऐसे उलझे कि … खैर आप भी मुलायजा  फरमाइए …… “तेरी याद में हम दो मिनट में ऐसे सूख गए जैसे जेठ की दोपहर में कपडे सूख जाते  हैं “ और जैसे दोपहर  के बाद शाम का मंजर नज़र आया हमें तेरे मिलने के बाद जुदाई का भय सताया                                             अब मोहल्ले की मीटिंगों  में  मिन्नी की मम्मी साहित्यकार कहलाये और हम.……… हमारे जैसी  प्रतिभाशाली नारी सिर्फ मुन्ना की मम्मी कहलाये ये बात हमें बिलकुल हज़म नहीं हुई। हमने आनन -फानन में मुन्ना को अल्टीमेटम दे दिया “मुन्ना अगले पुस्तक मेले में हमारी भी कविताओ की किताब आनी  चाहिए।हमने जान बूझ कर मुन्ना के बाबूजी से कुछ नहीं कहा ,क्योंकि इस उम्र तक आते -आते पति इतने अनुभवी हो जाते हैं कि उन पर पत्नी के साम -दाम ,दंड ,भेद कुछ भी काम नहीं करते। पर हमारे मुन्ना ने तो एक मिनट में इनकार कर दिया ” माँ कहाँ इन सब चक्करों में पड़ी हो। पर इस बार हमने भी हथियार नहीं डाले मुन्ना से कह दिया “देखो बेटा ,अगर तुम नहीं छपवा सकते हो तो हम खुद छपवा लेंगे ,पर हमने भी तय कर लिया है अपना काव्य संग्रह लाये बिना हम मरेंगे नहीं।हमारी इस घोषणा को बहु ने बहुत सीरियसली लिया ( पता नहीं सास कितना जीएगी )तुरंत मुन्ना के पास जा कर बोली देखिये ,आप चाहे मेरे जेवर बेंच दीजिये पर माँ का काव्य संग्रह अगले पुस्तक मेले तक आना ही चाहिए।                                                    काव्य संग्रह की तैयारी शुरू हो गयी एक प्रकाशक से बात हुई ,उसने रेट बता दिया ,बोला देखिये नए कवियों के काव्य संग्रह ज्यादा बिकते तो नहीं हैं ,आप उतनी ही प्रति छपवाईए जितनी बाँटनी हो। हमने घर आकर गिनना शुरू किया पहले नियर एंड डिअर फिर ,एक बिट्टू ,बिट्टू की मम्मी ,उसके पापा ,गाँव वाला ननकू , मिश्राइन चाची ,मंदिर के पंडित जी ,दूध वाला ………अरे काम वाली को कैसे भूल सकते हैं वो भले ही पढ़ न पाए पर चार घरों में चर्चा  तो जरूर करेगी  …………कुल मिला कर १०० लोग हुए ,उस दिन हमें अंदाजा लगा कि एक आम आदमी कितना आम होता है की उसे फ्री में देने के लिए भी १०० -१५० से ज्यादा लोग नहीं मिलते। खैर वो शुभ दिन भी आया जब हमारा काव्य संग्रह (घास का दिल ) छप  कर आया।  हमारा दिल ख़ुशी से हाई जम्प लगाने लगा।                                 हम अपने मित्रों ,रिश्तेदारों को लेकर पुस्तक मेले पहुचे। वहां पहुच कर पता चला कि अगर कोई बड़ा साहित्यकार विमोचन करे तो हम जल्दी महान  बन सकते हैं।  हमने लोगों से कुछ बड़े साहित्यकारों  के नाम पूंछे ,पता लगाने पर मालूम हुआ कि एक बड़े साहित्यकार पुस्तक मेले में आये हुए थे। बहु ने मोर्चा संभाला तुरंत उनके पास पहुची “सर मेरी सासु माँ की अंतिम ईक्षा है आप जैसे महान  व्यक्ति के हाथो उनके संग्रह का  विमोचन हो ,अगर आप कृपा करे तो मैं आपकी आभारी रहूंगी। एक खूबसूरत स्त्री का आग्रह तो ब्रह्मा भी न ठुकराए तो वो तो बस साहित्यकार थे।  तुरंत मंच पर आ गए ,एक के बाद एक पुस्तकों का विमोचन हो रहा था ,जिनका विमोचन चल रहा था वो मंच पर थे , नीचे नन्ही सी भीड़ में कुछ वो थे जिनका कुछ समय पहले विमोचन हुआ था ,वो बधाईयाँ व् पुस्तके समेत रहे थे ,कुछ वो थे जिनका अगला विमोचन था। हमारी भी पुस्तक का विमोचन। …………… लाइट ,कैमरा एक्शन ,कट की तर्ज़ पर हुआ। मिनटों में हम अरबों की जन्संसंख्या वाले भारत वर्ष में उन लाखों लोगो में शामिल हो गए जिनके काव्य संग्रह छप चुके  है।                                                    खुशी से हमारे पैर जमीन पर नही  पड  रहे थे ,अब मिन्नी की मम्मी ,चिंटू की दादी , दीपा की मौसी के सामने हमारी कितनी शान हो जाएगी। दूसरे दिन बहु  ने अपना फेस बुक प्रोफाइल खोला “हमारी तो ख़ुशी के मारे चीख निकल गयी बहु  ने हमारी विमोचन की पिक डाली थी ,५७ लोगों को टैग किया … Read more

सिर्फ अहसास हूँ मैं…….. रूह से महसूस करो

फिर पद चाप  सुनाई पड़ रहे  वसंत ऋतु के आगमन के  जब वसुंधरा बदलेगी स्वेत साडी  करेगी श्रृंगार उल्लसित वातावरण में झूमने लगेंगे मदन -रति और अखिल विश्व करने लगेगा मादक नृत्य सजने लगेंगे बाजार अस्तित्व में आयेगे अदृश्य तराजू जो फिर से तोलने लगेंगे प्रेम जैसे विराट शब्द को उपहारों में अधिकार भाव में आकर्षण में भोग -विलास में और विश्व रहेगा अतृप्त का अतृप्त फिर सिसकेगी प्रेम की असली परिभाषा क्योकि जिसने उसे जान लिया उसके लिए हर मौसम वसंत का है जिसने नहीं जाना उसके लिए चार दिन के वसंत में भी क्या है ?                 मैं प्रेम हूँ ….. चौक गए …सच! मैं वहीं प्रेम हूँ जिसे तुम सदियों से ढूंढते आ रहे हो ,कितनी जगहों पर कितने रिश्तों में कितनी जड़ और चेतन वस्तुओं  में तुमने मुझे ढूँढने का प्रयास किया है…..यहाँ वहाँ इधर –उधर सर्वत्र व्याप्त होते हुए भी मैं सदा तुम्हारे लिए एक अबूझ पहेली ही रहा जिसको तुम तरह –तरह से परिभाषित करते रहे और जितना परिभाषित करते रहे उतना उलझते रहे ये लुका –छिपी मुझे दरसल भाती  बहुत है मैं किसी  कमसिन अल्हड नायिका की तरह मुस्कुराता हूँ  जब तुम  मुझे पा के अतृप्त , भोग कर अभोगे ,जान कर अनजान रह जाते हो  …आश्चर्य  जितना तुम मुझे परिभाषाओं से बाँधने का प्रयास करते हो उतना ही मैं परिभाषा से रहित हो जाता हूँ क्योकि बंधन मुझे पसंद नहीं |मैं तुम्हारे हर रिश्ते में हूँ कहीं माता –पिता का प्यार ,कहीं बहन –भाई का स्नेह ,कहीं बच्चों की किलकारी तो कहीं पति –पत्नी का दाम्पत्य |इतने रिश्तों में होते हुए भी तुम अतृप्त हो क्यों ?उत्तर सरल है जब भी तुम किसी रिश्ते में अधिकार और वर्चस्व की भावना ले आते हो ,मेरा दम घुटने लगता है ,बस सतह पर अपना प्रतिबिम्ब छोड़ मैं निकल कर भाग जाता हूँ ,और सतह के जल से तुम तृप्त नहीं होते | फिर तुम मुझे प्रकृति में सिद्ध करते हो कि मैं झरनों  की झम –झम में नदियाँ की कल –कल में फूलों की खुश्बूँ में हूँ तो मैं पाषाण प्रतिमा में  प्रवेश कर साक्षात् ईश्वर बन जाता हूँ ,जब तुम  मुझे सुख –सुविधाओं में  सिद्ध करते हो तो मैं अलमस्त कबीर की फटी झोली बन जाता हूँ ….तुम हार नहीं मानते तुम मुझे देह को भोगते हुए देहातीत होने को सिद्ध करते हो |मैं फिर मुस्कुरा कर कहता हूँ अरे ! मैं तो वो राधा हूँ,जो प्रेम की सम्पूर्णता में  पुकारती है “आदि मैं न होती राधे –कृष्ण की रकार पे ,तो मेरी जान राधे –कृष्ण “आधे कृष्ण” रहते “ राधा  किसी दूसरे की पत्नी बच्चों की माँ , अपने कृष्ण हजारों मील दूर ,कहाँ है देह ?यहाँ तो देह का सानिध्य नहीं है ….राधा के लिए कृष्ण देह नहीं हैं अपतु राधा  के लिए कृष्ण के अतिरिक्त कोई दूसरी देह ही नहीं है ,न जड़ न चेतन |तभी तो जब एक चाकर ने  कृष्ण के परलोक पलायन का दुखद समाचार  राधा को दिया ,हे राधे कृष्ण चले गए … मुस्कुरा  कर कह उठी राधा “परिहास करता है ,कहाँ गए कृष्ण ,कहाँ जा सकते हैं वो तो कण –कण में हैं ,पत्ते –पत्ते  में हैं ,उनके अतिरिक्त कुछ है क्या ? राधा के लिए कृष्ण ,कृष्ण नहीं हैं ,अपितु कृष्ण के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ,स्वयं राधा भी राधा नहीं रहीं वो कृष्ण हो गयी …. सारे  भेद ही मिट गए…. लोक –काल से परे हो गया ,पूज्य हो गया ये प्रेम |  पर ठहरो नहीं, यहीं पर मत अटको अभी मेरे पिटारे में बताने को और भी बहुत कुछ है ….. मैं तुलसी का वो पत्ता हूँ जो कृष्ण के वजन से भी गुरु हो गया ,हाँ !उस कृष्ण के वजन से जिनके पलड़े को  सत्यभामा का अभिमान व् अहंकार मिश्रित प्रेम अपने व् सारे द्वारिका के स्वर्ण आभूषणों के भार  से जरा भी न झुका सका |                                         विज्ञान ने भी मुझे जानने  समझने की कोशिश की है…कभी कहता है मैं मष्तिष्क के हाइपोथेलेमस में हूँ तो कभी कहता है मैं मात्र एक रसायन हूँ ….मैं फिर मुस्कुरा उठता हूँ ….जनता हूँ विरोधाभास मेरा स्वाभाव है …. जितना गूंढ उतना सुलभ  , जितना सूक्ष्म उतना व्यापक, जितना जटिल उतना सरल …. तभी तो लेने में नहीं देने में बढ़ता हूँ ….. इतना कि व्यक्ति में क्या समष्टि में न समाये …. ज्ञानी जान न पाए मुझे पर कबीर गा उठते हैं “पोथी पढ़ी –पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय ,ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय “|ये ढाई अक्षर समझना ही तो दुष्कर है क्योंकि इसके बाद ज्ञान के सारे द्वार खुल जाते हैं ,आनद के सारे द्वार खुल जाते हैं |कितने विचारक तुम्हे मेरा अर्थ समझाने का प्रयास करते हैं …. पर मैं गूंगे का गुड हूँ जिसने जान लिया उसके लिए समझाना आसान नहीं ….  फिर भी प्रयास जारी रखे गए क्योंकि जिसने पा लिया उसने जान लिया प्रेम को पाना मतलब आनंद को पाना उसे बांटने में आनन्द आने लगा …. अरे ! मैं ही तो वो प्याला हूँ जो एक बार भर जाए तो छलकता रहता है युगों –युगों तक कभी रिक्त नहीं होता |रिश्तों के बंधन हैं मर्यादाएं पर मैं कोई बंधन नहीं मानता …. अपने शुद्ध रूप में जो सात्विक है मैं सबके लिए एक सामान हूँ रिश्तों –नातों के लिए ही नहीं समस्त सृष्टि के लिए |कभी अनुभव किये हैं अपने आंसूं ,सुख के मीठे से ,दुःख के जहरीले ,कडवे से और तीसरे स्नेह के ,कुछ अबूझ से जो आत्मा को तृप्त करते हैं एक विचित्र सा आनंद प्रदान करते हैं जैसे किसी ने आत्मा को छू  लिया है…. क्योकि यहाँ सिर्फ देना ही देना है लेने की भावना नहीं |मेरे इस शुद्ध  सात्विक रूप को ही ऋषि मुनियों ने जाना है ,आनंद का अनुभव किया है  किसी ने तुम्हे यह कह कर  समझाने का प्रयास  किया है सबमें स्वयं को देखो तभी परस्पर झगडे –फसाद ,सीमाओं को तोड़ कर मुझे पा सकोगे |तो किसी ने यह कह कर समझाने का प्रयास किया है अपने अन्दर गहरे उतरो ,सबको खुद में देखो …उस बूँद की तरह जो सागर का हिस्सा भी है ,और स्वयं सागर भी …. क्योकि असली … Read more

तौबा इस संसार में …… भांति- भांति के प्रेम

                    वसन्त ऋतु तो अपनी दस्तक दे चुकी है , वातावरण खुशनुमा है ,पीली सरसों से खेत भर गए है, कोयले कूक रहीं हैं पूरा वातावरण सुगन्धित और मादक हो गया है ….उस पर १४ फरवरी भी आने वाली है …. जोश खरोश पूरे जोर –शोर पर है ,सभी बच्चे बच्चियाँ ,नव युवक –युवतियाँ नव प्रौढ़ –प्रौढ़ाये ,बाज़ार ,टी .वी चैनल ,पत्र –पत्रिकाएँ आदि –आदि प्रेम प्रेम चिल्लाने में मगन हैं | हमारे मन में यह जानने  की तीव्र इक्षा हो रही है कि ये प्रेम आखिर कितने प्रकार होते  है ,दरसल जब हम १७ ,१८ के हुए तभी चोटी पकड़ कर मंडप में बिठा दिए गए …. बाई गॉड की कसम जब तक समझते कि प्रेम क्या है तब तक नन्हे बबलू के पोतड़े बदलने के दिन आ गए फिर तो बेलन और प्रेम साथ –साथ चलता रहा ….( समझदार को ईशारा काफी है ) हां तो मुद्दे की बात यह है  रोमांटिक  फिल्मे देख –देख कर और प्रेम –प्रेम सुन कर हमारे कान पक गए हैं और हमने सोचा की मरने से पहले हम भी जान ले की ये प्रेम आखिर कितने प्रकार का  होता है इसीलिए अपना आधुनिक इकतारा (  मोबाइल )उठा कर निकल पड़े सड़क पर (आखिर साठ  की उम्र में सठियाना तो बनता ही है) |सड़कों पर हमें तरह –तरह के प्रेम देखने को मिले ,प्रेम के यह अनेकों रंग हमें मोबाईल की बदलती रिंग टोन  की तरह कंफ्यूज करने वाले लगे …. सब वैसे का वैसा आप के सामने परोस रही हूँ ……………… १ )छुपाना भी नहीं आता ,जताना भी नहीं आता  :–                                        ये थोडा शर्मीले किस्म का प्रेम होता है इसमें प्रेमी ,प्रेमिका प्यार तो करते पर इजहार करने में कतराते हैं पहले आप ,पहले आप की लखनवी गाडी में सवारी करने की कोशिश में अक्सर वो प्लेटफार्म पर ही रह जाते हैं |ये तो बिहारी के नायक –नायिका से भी ज्यादा कच्चे दिल के होते हैं “जो कम से कम भरे भवन में नैनों से तो बात कर लेते थे “खैर आपको ज्यादा निराश होने की जरूरत नहीं है ….आजकल ऐसा प्रेम ढूढना दुलभ है आप चाहे तो www.google.प्रेम आर्काइव पर जा कर इसके बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं | २ )हमारे सिवा तुम्हारे और कितने दीवाने हैं :-                       ये कुछ ज्यादा समझदार  वाले प्रेमी /प्रेमिका होते हैं …  इनको इस बात की इतनी खबर  रहती है कि भगवन न करे कोई दिन ऐसा आजाये की इन्हें बिना पार्टनर के रहना पड़े  इसलिए ये सेफ गेम खलने में विश्वास करते हैं …. इनकी इन्वोल्वमेंट  इक साथ कई के साथ रहती है तू नहीं तो तू सही  की तर्ज पर |इसके लिए ये काफी मेहनत  भी करते हैं इनके खर्चे भी बढ़ जाते हैं …. पर अपनी घबराहट दूर करने के लिए ये हर जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं |पर बहुधा इनके मोबाईल व् खर्चों के बिल देखकर इनके माता –पिता का दिल साथ देना छोड़ देता  है |सुलभ दैनिक द्वारा कराये गए सर्वे के अनुसार युवा बच्चों के माता –पिता को हार्ट अटैक आने का कारण अक्सर यही पाया गया है | ३ )तुम्हारा चाहने वाला खुदा की दुनियाँ में मेरे सिवा भी कोई और हो खुदा न करे :-                                 ये थोडा पजेसिव टाइप के होते हैं “अग्निसाक्षी के नाना पाटेकर की तरह “इन्हें बिलकुल भी बर्दास्त  नहीं होता कि उनके साथी को कोई दूसरा पसंद करे … इन्हें दोस्त तो दोस्त माता –पिता भाई –बहन भी अखरते हैं किसी ने भी अगर साथी की जरा सी भी तारीफ कर दी तो हो गए आग –बबूला और शुरू हो गयी ढिशुम –ढिशुम |ये अपने साथी को डिब्बे में बंद करने में यकीन करते हैं ,सुविधानुसार निकाला ,प्रेम –व्रेम किया वापस फिर डब्बे में बंद |अफ़सोस यह है कि इतना प्यार करने के बाद भी इन प्रेम कहानियों का अंत ,हत्या ,आत्महत्या या अलगाव से ही होता है ४ )मिलो न तुम तो हम घबराए :-                     ये थोडा शक्की किस्म का प्रेम होता है |इसमें बार –बार मोबाइल से फोन कर इनफार्मेशन ली जाती है अब कहाँ हो ,अब कहाँ हो ?मिलने पर कपडे चेक किये जाते हैं कपड़ों पर पाए जाने वाले बाल ,बालों की लम्बाई उनका द्रव्यमान ,घनत्व आदि शोध के विषय होते हैं …. तकरार ,मनुहार और  प्यार इसका मुख्य हिस्सा होते हैं ,साथ ही साथ इस प्रकार प्रेम करने वाले इंटेलिजेंट  भी होते हैं कभी –कभी अपने साथी पर नज़र रखने के लिए अपनी सहेलियों ,दोस्तों आदि का सहारा भी लेता हैं आजकल तमाम जासूसी संस्थाएं यह सेवा उपलब्ध  करा रही हैं ………जैसे महानगर साथी जासूसी निगम  आदि कुछ मोबाइल कम्पनियां साल में दो बार जासूसी करवाने पर तीसरी सेवा मुफ्त देती हैं                           ५ )जो मैं कहूंगा करेगी …. राईट :-                           ये थोडा डिक्टेटर टाइप के होते हैं |इन्हें लगता है की ये सही हैं और अगला गलत ,इनसे कितनी भी बहस कर लो अंत में अपनी ही बात मनवा लेते हैं ,उस पर तुर्रा यह कि कहते हैं कि प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ है |प्रेमी –प्रेमिका का रिश्ता बिलकुल ग्रेगर जॉन  मेंडल (पहला नियम ) की पीज (मटर ) की तरह डोमिनेंट व् रेसिसिव की तरह चलता है और खुदा न खास्ता इनकी शादी करवा दी जाए तो इनके बच्चे भी ३ :१ के अनुपात में डोमिनेंट व् दब्बू पाए जाते हैं | ६ )खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों :                            यह नए ज़माने का प्यार आजकल बहुतायत से पाया जाता है |महानगरों में पार्कों ,सडको के किनारे ,माल्स ,रेस्त्रों आदि में आप यह आम नज़ारा देख सकते है |आप की वहां से गुजरते समय भले शर्म  से आँखें झुक जाए पर यह निर्भीक  युगल अपने सार्वजानिक  प्रेम प्रदर्शन में व्यस्त ही रहते हैं | वैधानिक चेतावनी :ऐसे प्रेमी युगलों को देख कर पुराने ज़माने के बुजुर्गों की सचेत करने वाली खांसी की तरह खासने का प्रयास न करे ….. ईश्वर गवाह है खांसते –खांसते टेटुआ बाहर निकल आएगा पर इनकी कान पर जूं भी न रेंगेगा | ७ )ना उम्र की सीमा हो ना … Read more

ये ख़ुशी आखिर छिपी है कहाँ

कौन है जो खुश नहीं रहना चाहता, पर हम जितना ख़ुशी के पास जाने की कोशिश करते हैं वो उतना ही दूर भाग जाती है | तो क्या ऐसे में मन नहीं करता कि ये जाने ” ये ख़ुशी आखिर छिपी कहाँ है?                                        ———————————————————————— गुडियाँ हम से रूठी रहोगी  कब तक न हंसोगी  देखोजी किरण सी लहराई  आई रे आई रे  हंसी आई                                  आज पुरानी  फिल्म का ये गाना याद आ रहा है|  गाने की शुरुआत में गुड़ियाँ रूठी होती है पर अंत तक खुश हो कर हंसने लगती है …आखिर कोई कितनी देर नाराज या दुखी रह सकता है  दरसल  खुश  रहना  मनुष्य  का जन्मजात  स्वाभाव  होता  है, आखिर  एक  छोटा  बच्चा  अक्सर  खुश  क्यों  रहता  है ? बिलकुल अपने में मस्त ,बस भूख ,प्यास के लिए थोडा रोया ,कुनकुनाया फिर  हँसने खेलने में मगन।  क्यों  हम  कहते  हैं  कि   “बचपन के दिन भी क्या दिन थे “…बचपन  राजमहल में बीते या झोपड़े में वो इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है।  खुश रहना मनुष्य का जन्मगत स्वाभाव होता है |  जैसे -जैसे  हम  बड़े  होते  हैं  हमारा  समाज ,हमारा ,वातावरण हमारे अन्दर विकृतियाँ बढाने लगता हैं ,और हम अपनी सदा खुश रहने की आदत भूल जाते हैं और तो और हममे से कई सदा दुखी रहने का रोग पाल लेते हैं ,जीवन बस काटने के लिए जिया जाने लगता है.पर कुछ लोग अपनी प्राकृतिक विरासत बचाए रखते हैं ,और सदा खुश रहते हैं| प्रश्न उठता है क्या उनको विधाता ने अलग मिटटी से बनाया है ,या पिछले जन्म के कर्मों की वजह से उनके जीवन में कोई दुःख आया ही नहीं है। उत्तर आसन है …  नहीं , औरों  की  तरह  उनके  जीवन  में  भी  दुःख-सुख  का  आना  जाना  लगा  रहता  है ,  पर  आम तौर  पर  ऐसे  व्यक्ति  व्यर्थ की   चिंता  में  नहीं  पड़ते और  अक्सर  हँसते -मुस्कुराते  और  खुश  रहते  हैं | तो  सवाल  ये  उठता  है  कि  जब  ये  लोग  खुश  रह  सकते  हैं  तो बाकी  सब  क्यों  नहीं ?आखिर उनकी ऐसी कौन सी आदतें हैं जो  उन्हें दुनिया भर की चिंताओं से मुक्त रखती है और दुःख -दर्द  के बीच भी खुशहाल बनाये रखती हैं ? आज  इस  लेख  के  जरिये  मैं  आपके  साथ  खुशहाल लोगों की कुछ  आदतें बताने जा रही हूँ  जो  शायद  आपको  भी  खुश  रहने  में  मदद  करें .तो  आइये  जानते  हैं उन ख़ास  आदतों को :  ख़ुशी का फार्मूला न. 1-जो है सब अच्छा है                                           बड़ी मामूली सी बात है पर है बहुत  उपयोगी|  हम अक्सर अपने आस -पास के लोगों की बुराइयां खोजते हैं। हमने तो इतना किया था पर उसने तो मेरे साथ ये तक नहीं किया , हमने तो उसके सारे  अपशब्द बर्दाश्त कर लिए पर वो तो एक बात में ही बुरा मान कर चला गया आदि -आदि मनोवैज्ञानिक इसे “नकारात्मक पूर्वधारणा “भी कहते  हैं | अधिकतर  लोग  दूसरों  में  जो कमी  होती  है  उसे  जल्दी देख  लेते  हैं  और  अच्छाई  की  तरफ  उतना  ध्यान  नहीं  देते  पर  खुश  रहने  वाले  तो  हर एक चीज  में , हर एक  परिस्थिति  में  अच्छाई  खोजते  हैं , वो  ये  मानते  हैं  कि  जो  होता  है  अच्छा  होता  है .  किसी  भी  व्यक्ति  में  अच्छाई  देखना  बहुत  आसान  है ,बस  आपको  खुद  से  एक  प्रश्न  करना  है , कि , “ आखिर  क्यों  यह  व्यक्ति  अच्छा  है ?” , और  यकीन  जानिये  आपका  मस्तिष्क  आपको  ऐसी  कई  अनुभव और  बातें  गिना  देगा  की  आप  उस  व्यक्ति  में  अच्छाई  दिखने  लगेगी |यहाँ पर ध्यान देने की ब  बात  यह है कि, आपको  अच्छाई  सिर्फ  लोगों  में  ही  नहीं  खोजनी  है , बल्कि  हर एक  परिस्थिति  में  खोजनी है और सकारात्मक  रहना  है  और  उसमे  क्या  अच्छा  है  ये  देखना  है| सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश  राय बच्चन का अपने पुत्र अमिताभ बच्चन को समझाने का एक बहुत विख्यात वाक्य है …. अगर मन की हो रही है तो खुश रहो ,और अगर मन की न हो रही हो तो और खुश रहो क्योंकि वह ईश्वर के मन की हो रही है  ईश्वर अपने बच्चों के साथ कभी अन्याय नहीं करता।  उदाहरण के तौर पर  अगर  आप  को कोई नौकरी या सफलता नहीं मिली   तो  आपको  ये  सोचना  चाहिए  कि  शायद  भागवान  ने  आपके  लिए  उससे  भी  अच्छी  नौकरी या सफलता छुपा कर रखी  है जो आपको देर-सबेर  मिलेगी, और आप किसी अनुभवी व्यक्ति से पूछ भी सकते हैं, वो भी आपको यही बताएगा . ख़ुशी का फार्मूला न.2-कही -सुनी सब मॉफ  करे                                    हम सब अपने सर पर कितना बड़ा पिटारा लिए घूम रहे हैं | लोगों की कही -सुनी बातों का हर रोज़ पिटारा खोलते हैं ,उन बातों को निकालते हैं,सहलाते हैं और फिर पिटारा बंद कर देते हैं और उस पिटारे में बंद कर देते हैं अपनी खुशियाँ  ….  है न सही ,सच तो  यह है कि हर  किसी  का  अपना -अपना अहंकार  होता  है , जो  जाने -अनजाने  औरों  द्वारा  घायल  हो  सकता  है , पर  खुश  रहने  वाले  छोटी छोटी  बातों को  दिल  से  नहीं  लगाते  वो   माफ़  करना  जानते  हैं , सिर्फ  दूसरों  को  नहीं  बल्कि  खुद  को  भी |  इसके  उलट  यदि  ऐसे  लोगों  से  कोई  गलती  हो  जाती  है , तो  वो  माफ़ी  मांगने  से  भी  नहीं  कतराते | वो  जानते  हैं  कि  मिथ्याभिमान  उनकी  जिंदगी की परेशानियां बढ़ा देगा बन इसलिए  वो  अरे मॉफ कर दीजिये या सॉरी  बोलने  में  कभी  कतराते नहीं | माफ़  करना  और  माफ़ी  माँगना  आपके  दिमाग  को  हल्का  रखता   है , आपको  बेकार   की  उलझन  और  परेशान  करने  वाली  नकारात्मक विचारों  से  बचाता  है , और   आप  खुश  रहते  हैं |                                                   ख़ुशी का फार्मूला न.3-तुम मेरे साथ हो                      अकेला हूँ मैं इस दुनियाँ में ,साथी है तो मेरा साया ……ये गाना सुनने में जितना अच्छा लगता है भोगने … Read more

पुरुस्कार

    पुरूस्कार  सुबह साढ़े ६ बजे का समय स्नेह रोज पक्षियों के उठने के साथ उठकर पहले बालकनी में जाकर अपने पति विनोद जी के लिए अखबार लाती है और फिर रसोई में जाकर  चाय बनाने लगती है। पति विनोद जी बिस्तर  पर टाँग पसार कर बैठ जाते हैं और फिर आवाज़ लगाते हैं ……….”नेहुुु नेहुउउ जरा मेरा चश्मा तो दे दो। स्नेहा आकर बिस्तर के बगल में रखी मेज से चश्मा उठा कर  दे देती है। विनोद जी चश्मा  लगा कर मुस्कुराते हुए कहते हैं”जानती हो नेहू चश्मे के लिए बुलाना तो बहाना था मैं तो सुबह -सुबह सबसे पहले अपनी लकी चार्म अपनी नेहू  का चेहरा देखना चाहता था अजी पिछले २५ वर्षों से आदत जो है। स्नेहा मुस्कुराकर अपने स्वेत -श्याम बालों को सँवारते हुए रसोई में चली जाती है। ५५ वर्षीय विनोद जी अखबार पढ़ने लगते हैं और स्नेह चाय बनाने लगती है। अरे नेहू !सुनती हो तुम्हारी प्रिय लेखिका” कात्यायनी जी “को उनकी कृति “जीवन” पर साहित्य अकादमी  का  पुरूस्कार मिला है। …. विनोद जी अखबार पढ़ते हुए जोर से चिल्लाकर कहते हैं। खबर सुनते ही स्नेहा के हाथ से चाय का प्याला छूट जाता है। चटाक की आवाज़ के साथ प्याला टूट जाता है चाय पूरी रसोई में फ़ैल जाती है। आवाज़ सुनकर विनोद जी रसोई में आते हैं वहां अवाक सी खड़ी स्नेहा को देखकर पहले चौंकते हैं फिर मुस्कुरा कर कहते हैं “भाई फैन हो तो हमारी नेहू जैसा “सारा घर तो कात्यायनी जी के कथा संग्रहों उपन्यासों से तो भरा हुआ है ही और उनके साहित्य अकादमी पुरूस्कार की बात सुन कर दिल तो दिल कप संभालना  भी मुश्किल हो गया है “                                         नेहू तुम चिंता ना करो इस बार मैं साहित्य अकादमी के पुरूस्कार समरोह में जरूर तुम्हारे साथ जाऊँगा। भाई मैं भी तो देखू हमारी नेहू की कात्यायनी जी लगती कैसी हैं विनोद जी ने चुटकी ली .अच्छा तुम ऐसा करो ये साफ़ करके दूसरी चाय बना लो तब तक मैं “मॉर्निंग वाक “करके आता हूँ कहकर विनोद जी घर के बाहर निकल गए। स्नेहा कप के टुकड़े बीन कर जमीन में फ़ैली चाय के धब्बे मिटाने लगी। आज अचानक उसके सामने उसका अतीत आ कर खड़ा हो गया। माँ -बाप की चौथी  संतान स्नेहा जिसका बचपन मध्यमवर्गीय था पर माँ -बाप और चारों बहनों का आपसी  प्यार अभावों को अंगूठा दिखा ख़ुशी -ख़ुशी जीवन को नए आयाम दे  रहा था।                                     स्नेहा सबसे छोटी वाचाल नटखट सबकी लाड़ली थी। देखने में सामान्य पर ज्ञान में बहुत आगे। स्कूल से लेकर कॉलेज तक उसकी पढाई वाद -विवाद गायन नाटक मंचन आदि के चर्चे रहते थे। कुल मिला कर उसे “जैक ऑफ़ आल ट्रेड्स “कह सकते हैं। प्रशंशा व् वाहवाही लूटना उसकी आदत थी। छोटा सा घर घर में एक से एक चार  प्रतिभाशाली बहनें घर की हालत ये कि जाड़ों में जब दीवान से कपडे बाहर निकालकर अलमारियों  में जगह बना लेते  तो अलमारियों में रखी लड़कियों की किताबें निकल कर जाड़े भर के लिए बंद करी गयी फ्रिज में अपनी जगह बना लेटी। सब खुश बहुत खुश। माता -पिता को अपने बच्चों पर गर्व तो बच्चों की आँखों में कल के सपने। अभावों में ख़ुशी बाँटना जैसे माँ ने उन्हें दूध के साथ पिलाया हो। जैसे सूर्य का प्रकाश छिपता  नहीं है वैसे ही इन बहनों की प्रतिभा के किस्से मशहूर  हो गए। पिता जी भी कहाँ चूकने वाले थे। इसी प्रतिभा के दम  पर उन्होंने तीन लड़कियों की शादी एक से एक अच्छे घर में कर दी। एक बहन शादी के बाद अमेरिका चली गयी और दो कनाडा। रह गयी तो बस छुटकी स्नेहा। उसके लिए वर की खोज जोर -शोर से जारी थी। तभी अचानक वो दुर्भाग्यपूर्ण दिन भी आ गया। जब स्नेहा के पिता लड़का देख कर घर लौट रहे थे एक तेज रफ़्तार ट्रक नें उनकी जान ले ली। जिस घर में डोली सजनी चाइये थी वहां अर्थी सजी सारा माहौल ग़मगीन था। माँ ,माँ का तो रो रो कर बुरा हाल था उनकी तो दुनियाँ  ही पिताजी तक सीमित थी। अब वह क्या करेंगी ?      मातम के दिन तो कट गए पर जिंदगी का सूनापन नहीं गया। माँ मामा पर आश्रित हो गयी। अकेली जवान लड़की को लेकर कैसे रहती। माँ के साथ स्नेहां  भी मामा के घर में रहने लगी। उस समय जब उन्हें अपनेपन की सबसे ज्यादा जरूरत थी उस समय मिले तानों और अपमान के दौर को याद करके उसका शरीर  आज भी सिहर उठता है. तभी एक और हादसा हुआ मामा की बेटी तुलसी दीदी का देहांत हो गया। तुलसी दीदी की एक पांच वर्ष की बेटी थी उसका क्या होगा ये सोचकर मामा ने उससे दस वर्ष बड़े विनोद जी से उसकी शादी कर दी। माँ कुछ कहने की स्तिथि में नहीं थी वह सर झुका कर हर फैसला स्वीकार करती गयीं। स्नेहा विनोद जी के जीवन में तुलसी दीदी की पांच वर्षीय पारुल के जीवन में माँ की जगह भरने मेहँदी लगा कर इस घर में आ गयी।                                                            धीरे -धीरे ही सही पर पारुल नें उसे अपना लिया। विनोद जी तो उसकी प्रतिभा के बारे में पहले से ही जानते  थे  उसे कहीं न कहीं पसंद भी करते थे उन्हें एक दूसरे को अपनाने में ज्यादा वक़्त नहीं लगा। पहला वर्ष  नए घर को समझने में लग गया और दूसरा वर्ष स्नेह और विनोद के पुत्र राहुल के आने की ख़ुशी में पंख लगा कर उड़ गया। परन्तु दोनों का विपरीत स्वाभाव कहीं न कहीं अड़चन पैदा कर रहा था। स्नेहा  जो हंसमुख वाचाल और नटखट थी वहीँ विनोद जी अपने नाम के विपरीत बिलकुल भी विनोद प्रिय नहीं थे। ज्यादा बातचीत उन्हें पसंद नहीं थी। बड़ा व्यापार था ज्यादातर व्यस्त रहते थे। स्नेहा से प्रेम उन्हें जरूर था लेकिन स्नेहा का हंसना बोलना बात -बात पर खिलखिलाना उन्हें … Read more

अटूट बंधन अंक -३ सम्पादकीय

                                        चलो थाम लें एक दूसरे का हाथ………. कि  उड़ना है दूर तक ………….. जब धरती पर खोली थी मैंने आँखें  तब थी मेरी बंद मुट्ठियाँ  जिसमें कैद था पूरा आसमान  हुलस कर देखा था मैंने  हवाओं ,घटाओं गिरी कंदराओं को  चमकते सूर्य और बेदाग़ चाँद को उफन कर आती सागर की लहरों को  लहलहाते सरसों के खेत  और मटर की बंद फलियों को  जब चल रही थी डगमगाते हुए   नन्हें -नन्हें क़दमों से  और  बंद थी मेरी मुट्ठी  में  माँ की एक अंगुली  जिसके साथ पूरा जहाँ  तब माँ ने ही  दी थी दृष्टि बताये थे दृश्य और अदृश्य  आसमानों के भेद समझाया था मुट्ठियाँ कभी  खुलती नहीं  मुट्ठियाँ कभी खाली नहीं होती  उसमें भरे होते हैं  सपनों के आसमान मेरी -तुम्हारी ,इसकी –उसकी हथेलियों में  फडफडाते हैं नन्हे पर उड़ने को बेकरार कभी आ जाता है हौसला कभी डर कर समेट लेते हैं पर कि कहीं भटक न जाए राह में या टकरा जाए किसी मीनार से या छू जाये कोई बिजली का तार   तो चलो  बन जाएँ बन जाए एक दूसरे की शक्ति हिम्मत न टूटे हौसला न छूटे थाम लें एक दूसरे का हाथ कि उड़ना है दूर तक ………….. शाम का समय है  मैं अपने घर की बालकनी में खड़ी होकर आकाश को निहार रही हूँ ………कुछ नीला कुछ नारंगी ,कुछ लाल सा आसमान जैसे किसी चित्रकार ने बिखेर दिए हो सुन्दर रंग ………. चुन लो अपने मन का कुछ अलसाया सा सूर्य जो दिन भर काम करने के बाद  थक कर पश्चिम में अपनी माँ की गोद में जाने को बेकरार सा है … थोड़ा आराम करले ,फिर आएगा कल एक नयी ताज़गी नयी रोशनी नयी ऊर्जा के साथ ……कल का सूरज बनकर ………ठीक वैसे ही समय का एक टुकड़ा २०१४ के रूप में थक गया है अपनी जिम्मेदारियां निभाते -निभाते,खट्टे -मीठे अनुभव देते -देते  ……. अब बस … अब जाएगा माँ की गोद में ……….फिर आएगा कल नए रूप में, नयी आशा , नयी ताज़गी के साथ  ………. २०१५ बनकर। बादलों के समूह रंग बदलने लगे ही धीरे -धीरे। ………अन्धकार में चुपके से रंगेंगे कल की उजली सुबह।  पक्षियों के झुण्ड लौट रहे हैं घर की तरफ एक साथ एक विशेष पंक्ति में………. कि  साथ न छूटे                                                     ऐसे में मैं देख रही हूँ पक्षियों के कुछ समूहों को एक विशेष क्रम में उड़ते हुए। अंग्रेजी वर्णमाला का उल्टा v  बनाकर।  सबसे बड़ा पंक्षी सबसे आगे ,उसके पीछे उससे छोटा ,फिर उससे छोटा अंत में सबसे छोटे नन्हे -मुन्ने बच्चे …. उड़ान का एक खास क्रम ……… एक वैज्ञानिक नियम का पालन ……..कि  पक्षी के परों  द्वारा पीछे  हटाई गयी हवा उसे आगे बढ़ा देती है।  सबसे बड़ा पक्षी सबसे ज्यादा  हवा हटाता है ,उसके पीछे वाले को उससे कम ,…. उससे पीछे वाले को उससे कम ……. और सबसे नन्हे मुन्ने को बहुत कम मेहनत करनी पड़ती है ,जिससे वो थकता नहीं व् पूरी उड़ान भर साथ देता है।  ये  मूक से पक्षी परस्पर सहयोग करते हुए कितनी लम्बी -लम्बी उड़ाने पूरी कर लेते है।  प्रकृति ने कितनी समझदारी दी है इन पंक्षियों को।                                                      मुझे याद आ जाती है बचपन  माँ के द्वारा सुनाई गयी एक कहानी,एक बार चिड़ियों को पकड़ने के लिए एक बहेलिये ने जाल बिछाया था, दाना  खाने के लोभ  में बहुत सी चिड़ियाँ उसमें फंस गयी. …. चिड़ियों ने बहुत प्रयास किया पर निकल ना सकी ,फिर सबने मिल कर सामूहिक प्रयास किया ,पूरी शक्ति लगा दी ……… और चिड़ियाँ जाल ले कर उड़ गयी दूर बहुत दूर,  जहाँ उनके मित्र चूहे ने उनका जाल काट दिया ……… और चिड़ियाँ आज़ाद हो गयी।  देखा संघटन में शक्ति होती है कहकर माँ की कहानी समाप्त हो जाती ………पर मेरे मन में एक नयी कहानी शुरू हो जाती ,जो आज तक अधूरी है “क्या ऐसा संघटन मनुष्यों में हो सकता है “                                                                 अचानक मैं फिर आसमान देखती हूँ। …कितना ऊंचा ,कितना विशाल ……… शायद इन्हीं आसमानों के बीच में कोई एक आसमान है …. मेरा अपना ,मेरा निजी ,जिसे पाने का सपना देखा था कभी माँ की लोरियों के साथ नींद के आगोश में जाते हुए ,कभी नन्हा सा बस्ता लेकर स्कूल जाते हुए या सहेलियों के साथ कॉलेज की डिग्री लेते हुए। …… फिर देखती हूँ अपने पर शायद उड़ ना पाऊ ,शायद टकरा जाऊ किसी ऊंची मीनार से , या छू जाए बिजली का तार ,या सहन न हो मौसमी थपेड़े ………समेट  लेती हो अपने पर,  मेरे सपनों का आसमान सपनों में ही रह जाता है उसके ठीक बगल में है ,इसके सपनों का आसमान ,उसके सपनों का आसमान …………और शायद ! तुम्हारे सपनों का आसमान , दुर्भाग्य ,जो अब सपनों में ही रह गया.……………                                यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि “कौन कहता है आसमान में छेद नहीं होता , एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों “ और बहुत से लोगों ने इस राह पर चल कर जोश व् लगन से असंभव को संभव कर दिखाया है। परन्तु यह भी एक सामाजिक सच्चाई है सुदूर गाँवों में कितने बच्चों को शिक्षा का महत्त्व ही नहीं पता , शहरों  में कितने नन्हे मुन्ने बच्चों के हाथों में स्कूल के बस्तों की जगह झाड़ू और बर्तन मांजने का जूना  पकड़ा दिया जाता है। ……… महज अच्छा वर न मिल पाने के भय से कितनी लडकियों  को उच्च शिक्षा का मौका नहीं दिया जाता है.………कितनी लडकियां सपने देखने की उम्र में प्रसूति ग्रहों के चक्कर लगा रही होती हैं ……………जल्दी शादी ,जल्दी बच्चे, और बच्चे और  जल्दी मौत। क्या उनका यही सपना था ,क्या इसके अतिरिक्त  उन्होने कोई और सपने नहीं देखे थे। क्या विधाता ने उनके सपनों का कोई आसमान रचा ही नहीं था ?मैं फिर आसमान की तरफ देखती हूँ ,माँ … Read more