पालतू बोहेमियन – एक जरूर पढ़ी जाने लायक किताब
प्रभात रंजन जी की मनोहर श्याम जोशी जी के संस्मरणों पर आधारित किताब ‘ पालतू बोहेमियन’ के नाम से वैसे ही आकर्षित करती है जितना आकर्षण कभी टी.वी. धारावाहिक लेखन में मनोहर श्याम जोशी जी का था | इसे पूरी ईमानदारी के साथ पन्नों पर उतारने की कोशिश करी है प्रभात रंजन जी ने | जानकी पुल पर प्रभात रंजन जी को पढ़ा है उनका लेखन हमेशा से प्रभावित करता रहा है परन्तु इस किताब में उन्होंने जिस साफगोई के साथ उस समय की अपनी कमियाँ, पी.एच.डी. करने का कारण, और उस समय लेखन को ज्यादा संजीदगी से ना लेने का वर्णन किया है वो वाकई काबिले तारीफ़ है | ये पुस्तक गुरु और शिष्य के अंदाज में लिखी गयी है | फिर भी आज आत्म मुग्ध लेखकों का दौर है | कोई कुछ जरा सा भी लिख दे तो दूसरों को हेय समझने लगता है | ऐसे में मनोहर श्याम जोशी जी के कद को और कुछ और ऊँचा करने के लिए प्रभात रंजन जी जब कई खुद को कमतर दर्शाते हैं तो इसे एक लेखक के तौर पर बड़ा गुण समझना चाहिए | उम्मीद है जल्दी ही उनका उपन्यास पढने को मिलेगा | वैसे उन्हें जोशी जी द्वारा सुझाया गया “दो मिनट का मौन” हिंदी साहित्य के किसी अनाम लेखक के ऊपर एक अच्छा कथानक है परन्तु क्योंकि अब प्रभात रंजन जी ने उस रहस्य को उजागर कर दिया है इसलिए उम्मीद है कि वो किसी नए रोचक विषय पर लिखेंगे | इस पुस्तक पर कुछ लिखने से पहले मैं कहना चाहती हूँ कि पुस्तक समीक्षा के लिए नहीं है , क्योंकि ये ज्ञान की एक पोटली है आप जितनी श्रद्धा से इसे पढेंगे उतना ही लाभान्वित होंगे | पालतू बोहेमियन – एक जरूर पढ़ी जाने लायक किताब “तो छुटकी डॉक्टर बन पाएगी या नहीं कल ये देखेंगे ..हम लोग “ ” ऐसे ना देखिये मास्टर जी “ ” तो कैसे देखूं लाजो जी ” मनोहर श्याम जोशी जी के साथ खास बात यह थी कि वो उन गिने चुने लेखकों में से हैं जिनका नाम वो लोग भी जानते हैं जो हिंदी साहित्य में ख़ास रूचि नहीं रखते हैं | भला ‘हम लोग’ और ‘बुनियाद’ जैसे ऐतिहासिक धारावाहिक लिखने वाले लेखक का नाम कौन भूल सकता है ? हालांकि उनका जीवन शुरू से ही लेखन –सम्पादन को समर्पित रहा और हम लोग लिखने से पहले उनका उपन्यास ‘कुरु-कुरु स्वाहा’ व् ‘कसप’ से साहित्य जगत में बहुत चर्चित भी हो चुका था फिर भी आम जन-मानस के ह्रदय में उनकी पैठ हम लोग और बुनियाद जैसे धारावाहिक लिखने के कारण ही हुई | मनोहर श्याम जोशी जी हिंदी के उन गिने चुने लेखकों में से हैं जिनकी रचनाएँ पाठकों और आलोचकों में सामान रूप से लोकप्रिय रही हैं | साथ ही उनकी खास बात ये थी उनका लेखन किसी विचारधारा की बेंडी से जकड़ा हुआ नहीं था | उन्होंने पत्रकारिता कहानी , संस्मरण, कवितायें और टी वी धारावाहिक लेखन भी किया | कोई एक लेखक इतनी विधाओं में लिखे ये आश्चर्य चकित करने वाला है |उस समय बहुत से लेखक उन पर शोध कर रहे थे | मनोहर श्याम जोशी जी के संस्मरणों पर आधारित इस पुस्तक में उनके जीवन के अनेक अनछुए पहलुओं को छुआ है | इसकी प्रस्तावना पुष्पेश पन्त जी ने लिखी है | उन्होंने इसमें मुख्यत : जोशी जी के प्रभात जी से मिलने से पहले के जीवन पर प्रकाश डाला है | जोशी जी के साथ –साथ इसके माध्यम से पाठक को पुष्पेश पन्त जी के बचपन की कुछ झलकियाँ देखने को मिलती हैं | साथ ही आज से 59-60 वर्ष पहले के पहाड़ी जीवन की दुरुह्ताओं की भी जानकारी मिलती है | पुष्पेश जी एक वरिष्ठ लेखक हैं उनके बारे में जानकारी से पाठक समृद्ध होंगे | हालांकि प्रस्तावना थोड़ी बड़ी और मूल विषय से थोडा इतर लगी | फिर भी, क्योंकि ये किताब ही जानकारियों की है इसलिए उसने पुस्तक में जानकारी का बहुत बड़ा खजाना जोड़ा ही है | असल में हम लोग जादुई यथार्थवाद के नाम पर अंग्रेजी भाषा और यूरोपीय वर्चस्व के जाल में उलझ जाते हैं | क्या तुम जानते हो कि उनकी भाषा को कभी स्पेनिश और लेटिन अमेरिकी आलोचकों ने कभी जादुई नहीं कहा | पहली मुलाकात ये किताब वहाँ से शुरू होती है जब लेखक प्रभात रंजन जी ने पी.एच.डी के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया था | जिसका शीर्षक था : उत्तर आधुनिकतावाद और मनोहर श्याम जोशी के उपन्यास | जोशी जी से पहली मुलाकात के बारे में वह लिखते हैं कि वो उदय प्रकाश जी द्वारा दिए गए ‘ब्रूनो शुल्ज’ के उपन्यास “स्ट्रीट ऑफ़ क्रोकोडायल्स” को पहुँचाने के लिए उनके घर गए थे | उनके मन में एक असाधारण व्यक्ति से मिलने की कल्पना थी | परन्तु उनसे मिलकर उन्हें कुछ भी ऐसा नहीं लगा जो उनके मन में भय उत्पन्न करे | साधारण मध्यम वर्गीय बैठक में बात करते हुए वे बेहद सहज लगे | जोशी जी के व्यक्तित्व में खास बात ये थी कि वो चाय बिना चीनी की पीते थे और साथ में गुड़ दांतों से कुतर-कुतर कर खाते थे | पहली मुलाक़ात में जब उन्हें पता चला की प्रभात जी उन पर पी एच डी कर रहे हैं तो उन्होंने इस बात पर कोई खास तवज्जो नहीं दी | जोशी जी का व्यक्तित्व १) जोशी जी आम लेखकों की तरह मूड आने पर नहीं लिखते थे | वो नियम से १० से पाँच तक लिखते थे | जिसमें धारावाहिक कहानी , उपन्यास सभी शामिल होता था | २) जोशी जी कभी कलम ले कर नहीं लिखते थे बल्कि वह हमेशा बोलते थे और एक टाइपिस्ट उसको टाइप करता रहता था | हे राम फिल्म तक शम्भू दत्त सत्ती जी उनके लिए टाईप करने का काम करते रहे | ३) धारावाहिक लेखन तो वो बहुत जल्दी जल्दी बिना रुके कर लेते थे लेकिन जब भी कुछ साहित्यिक लिखते तो उसके कई –कई ड्राफ्ट बनाते थे | ४) बोलने के कारण उनकी रचना व् विचार प्रक्रिया को समझना आसान हो जाता | ५) जोशी जी जितना लिखते थे उससे कहीं ज्यादा पढ़ते थे | हिंदी ही नहीं विश्व साहित्य पर भी उनकी … Read more