खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग
और क्या चल रहा है आजकल .? क्या बताये मरने की भी फुरसत नहीं, और आपका, यही हाल मेरा है , समय का तो पता ही नहीं चलता , कब दिन हुआ , कब रात हुई … बस काम ही काम में निकल जाता है | दो मिनट सकूँ के नहीं हैं | दो लोगों के बीच होने वाला ये सामान्य सा वार्तालाप है , समय भगा चला जा रहा है , हर किसी के पास समय का रोना है ,परन्तु सोंचने की बात ये है कि ये समय आखिर चला कहाँ जाता है | क्या हम सब इतने व्यस्त हैं या खुद को इतना व्यस्त दिखाना चाहते हैं | खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग मेरी एक रिश्तेदार हैं , जिनके यहाँ मैं जब भी जाती हूँ , कभी बर्तन धोते हुए , कभी खाना बनाते हुए या कभी कुछ अन्य काम करते हुए मिलती हैं ,और मुझे देख कर ऐसा भाव चेहरे पर लाती हैं कि वो बहुत ज्यादा व्यस्त है उन्हें एक मिनट की भी बात करने की फुरसत नहीं है | उनके घर जा कर हमेशा बिन बुलाये मेहमान सा प्रतीत होता है | कभी फोन करो तो भी उनका यही क्रम चलता है | परिवार में सिर्फ तीन बड़े लोग हैं , फिर भी उनको एक मिनट की फुर्सत नहीं है | कभी -कभी मुझे आश्चर्य होता था कि वही काम करने के बाद हम सब लोग कितना समय खाली बिता देते हैं या अन्य जरूरी कामों में लगाते हैं पर उनके पास समय की हमेशा कमी क्यों रहती हैं | मुझे लगा शायद मेरे जाने का समय गलत हो , परन्तु और लोगों ने भी उनके बारे में यही बात कही तो मुझे अहसास हुआ कि वो अपने को अतिव्यस्त दिखाना चाहती हैं | मनोवैज्ञानिक अतुल नागर के अनुसार हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर अपनी सेल्फ वर्थ सिद्ध करना चाहते हैं | अभी कुछ समय पहले अमेरिका में एक ऑफिस में सर्वे किया गया | लोग जितना काम करते हैं उसकी उपयोगिता को पैमाने पर नापा गया | देखा गया सिर्फ २ % लोग अतिव्यस्त हैं बाकी २० % के करीब प्रयाप्त व्यस्त की श्रेणी में आते हैं , बाकी 78 % लोग ऐसे कामों में खुद को व्यस्त किये थे जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है या वो ऑफिस के काम की गुणवत्ता बढ़ने में कोई योगदान नहीं देता है | ये सब लोग अपने को अतिव्यस्त दिखने का प्रयास कर रहे थे | क्या आप ने कभी गौर किया है कि आज कामकाजी महिलाओं के साथ -साथ घरेलू महिलाओं के पास भी समय की अचानक से कमी हो गयी है | छोटा हो या बड़ा हर कोई समय नहीं है का रोना रोता रहता है | ये अचानक सारा समय चला कहाँ गया | पहले महिलाएं खाली समय में आचार , पापड , बड़ियाँ आदि बनती , स्वेटर बुनती , कंगूरे काढती थीं , लोगों से मिलती थी , रिश्ते बनती थीं | | आज महिलाएं ये सब काम बहुत कम करती हैं , फिर भी उनके पास समय का आभाव रहता है | वो बात -बात पर समय का रोना रोती हैं | आज जब की घरेलू कामों को करने में मदद कर्ण वाली इतनी मशीने बन गयी है तो भी आज की महिलाएं पहले की महिलाओं की तुलना में ज्यादा व्यस्त कैसे हो गयी हैं | रीना जी का उदाहरण देखिये वो खुद को अतिव्यस्त कहती हैं …वो सुबह ६ बजे उठती हैं ,वो कहतीं है वो बहुत व्यस्त हैं | कॉलोनी के किसी काम , उत्सव , गेट टुगेदर के लिए उनके पास समय नहीं होता | जबकि घर में सफाई वाली बाई व् कुक लगी है | उनका टाइम टेबल इस प्रकार है | सुबह एक घंटे का मोर्निंग वाक एक घंटे मेडिटेशन दो घंटे घर के काम एक घंटे नहाना धोना पूजा करना दो घंटे फेसबुक दो घंटे लंच के बाद सोना शाम को एक घंटे वाक एक घंटे जिम दो घंटे स्पिरिचुअल क्लास में जाना दो घंटे टी.वी शो देखना खाना – पीना सोशल साइट्स पर जाना और सो जाना जाहिर है कि उन्होंने अपने को व्यस्त कर रखा है , लेकिन दुखद है कि वो कॉलोनी की अन्य औरतों को ताना मारने से बाज नहीं आती कि उनके पास समय की कमी है , वो बेहद बिजी हैं | आखिर वो ऐसा क्यों सिद्ध करना चाहती हैं ? एक व्यक्ति के अपने भाई से रिश्ते महज इसलिए ख़राब हो गए क्योंकि उसे लगा कि वो जब भी अपने भाई को फोन करता है वो हमेशा बहुत व्यस्त हूँ कह देता है , कई बार तो यह भी कह देता है कि अपनी भाभी से बात कर लो , मैं उससे पूँछ लूँगा | धीरे धीरे उस व्यक्ति को लगने लगा कि भाई अति व्यस्त दिखा कर उसकी उपेक्षा कर रहा है , उसे कहीं न कहीं ये महसूस करा रहा है की वो तो खाली बैठा है | ये बात उसे अपमान जनक लगी और उसने फोन करना बंद कर दिया | पिछले १५ सालों से उनमें बातचीत नहीं है | क्या हमारे सारे रिश्ते अति व्यस्त होने की वजह से नहीं खुद को अतिव्यस्त दिखाने की वजह से खराब हो रहे हैं | एक तरफ तो हम अकेलेपन की बात करते हैं , इसे बड़ी समस्या बताते हैं , दूसरी तरफ हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर उन् से खुद दूरी बनाते हैं | क्या ये विरोधाभास आज की ज्यादातर समस्याओं की वजह नहीं है | खुद को अतिव्यस्त दिखा कर … Read more