खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग

      और क्या चल रहा है आजकल .? क्या बताये मरने की भी फुरसत नहीं, और आपका, यही हाल मेरा है , समय का तो पता ही नहीं चलता , कब दिन हुआ , कब रात हुई … बस काम ही काम में निकल जाता है | दो मिनट सकूँ के नहीं हैं |                               दो लोगों के बीच होने वाला ये सामान्य सा वार्तालाप है , समय भगा चला जा रहा है , हर किसी के पास समय का रोना है ,परन्तु सोंचने की बात ये है कि ये समय आखिर चला कहाँ जाता है | क्या हम सब इतने व्यस्त हैं या खुद को इतना व्यस्त दिखाना चाहते हैं | खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग                                        मेरी एक रिश्तेदार हैं , जिनके यहाँ मैं जब भी जाती हूँ , कभी बर्तन धोते हुए , कभी खाना बनाते हुए या कभी कुछ अन्य काम करते हुए  मिलती हैं ,और मुझे देख कर ऐसा भाव चेहरे पर लाती हैं कि वो बहुत ज्यादा व्यस्त है उन्हें एक मिनट की भी बात करने की फुरसत नहीं है | उनके घर जा कर हमेशा बिन बुलाये मेहमान सा प्रतीत होता है | कभी फोन करो तो भी उनका यही क्रम चलता है | परिवार में सिर्फ तीन बड़े लोग हैं , फिर भी उनको एक मिनट की फुर्सत नहीं है | कभी -कभी मुझे आश्चर्य होता था कि वही काम करने के बाद हम सब लोग कितना समय खाली बिता देते हैं या अन्य जरूरी कामों में लगाते हैं पर उनके पास समय की हमेशा कमी क्यों रहती हैं |  मुझे लगा शायद मेरे जाने का समय गलत हो , परन्तु और लोगों ने भी उनके बारे में यही बात कही तो मुझे अहसास हुआ कि वो अपने को अतिव्यस्त दिखाना चाहती हैं | मनोवैज्ञानिक अतुल नागर के अनुसार हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर अपनी सेल्फ वर्थ सिद्ध करना चाहते हैं |                           अभी कुछ समय पहले अमेरिका में एक ऑफिस में सर्वे किया गया | लोग जितना काम करते हैं उसकी उपयोगिता  को पैमाने पर नापा गया | देखा गया सिर्फ २ % लोग अतिव्यस्त हैं बाकी २० % के करीब प्रयाप्त व्यस्त की श्रेणी में आते हैं , बाकी 78 % लोग ऐसे कामों में खुद को व्यस्त किये थे जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है या वो ऑफिस के काम की गुणवत्ता बढ़ने में कोई योगदान नहीं देता है | ये सब लोग अपने को अतिव्यस्त दिखने का प्रयास कर रहे थे |                                                                      क्या आप ने कभी गौर किया है कि आज कामकाजी महिलाओं के साथ -साथ घरेलू महिलाओं के पास भी समय की अचानक से कमी हो गयी है |  छोटा हो या बड़ा  हर कोई समय नहीं है का रोना रोता रहता है | ये अचानक सारा समय चला कहाँ गया | पहले महिलाएं खाली समय में आचार , पापड , बड़ियाँ आदि बनती , स्वेटर बुनती , कंगूरे  काढती थीं , लोगों से मिलती थी , रिश्ते बनती थीं | | आज महिलाएं ये सब काम बहुत कम करती हैं , फिर भी उनके पास समय का आभाव रहता है | वो बात -बात पर समय का रोना रोती हैं | आज जब की घरेलू कामों को करने में मदद कर्ण वाली इतनी मशीने बन गयी है तो भी आज की महिलाएं पहले की महिलाओं की तुलना में ज्यादा व्यस्त कैसे हो गयी हैं | रीना जी का उदाहरण देखिये वो खुद को अतिव्यस्त कहती हैं …वो सुबह ६ बजे उठती हैं ,वो कहतीं है वो बहुत व्यस्त हैं | कॉलोनी के किसी काम , उत्सव , गेट टुगेदर के लिए उनके पास समय नहीं होता | जबकि  घर में सफाई वाली बाई व् कुक लगी है | उनका  टाइम टेबल इस प्रकार है | सुबह एक घंटे का मोर्निंग वाक एक घंटे मेडिटेशन दो घंटे घर के काम एक घंटे नहाना धोना पूजा करना दो घंटे फेसबुक दो घंटे लंच के बाद सोना शाम को एक घंटे वाक एक घंटे जिम दो  घंटे स्पिरिचुअल क्लास में जाना दो घंटे टी.वी शो देखना खाना – पीना सोशल साइट्स पर जाना और सो जाना                                      जाहिर है कि उन्होंने अपने को व्यस्त कर रखा है , लेकिन दुखद है कि वो कॉलोनी की अन्य औरतों को ताना मारने से बाज नहीं आती कि उनके पास समय की कमी है , वो बेहद  बिजी हैं | आखिर वो ऐसा क्यों सिद्ध करना चाहती हैं ? एक व्यक्ति के अपने भाई से रिश्ते महज इसलिए ख़राब हो गए क्योंकि उसे लगा कि वो जब भी अपने भाई को फोन करता है वो हमेशा बहुत व्यस्त हूँ कह देता है , कई बार तो यह भी कह देता है कि अपनी भाभी से बात कर लो , मैं उससे पूँछ लूँगा | धीरे धीरे उस व्यक्ति को लगने लगा कि भाई अति व्यस्त दिखा कर उसकी उपेक्षा कर रहा है , उसे कहीं न कहीं ये महसूस करा रहा है की वो तो खाली बैठा है | ये बात उसे अपमान जनक लगी और उसने फोन करना बंद कर दिया | पिछले १५ सालों से उनमें बातचीत नहीं है |  क्या हमारे सारे रिश्ते अति व्यस्त होने की वजह से नहीं खुद को अतिव्यस्त दिखाने की वजह से खराब हो रहे हैं | एक तरफ तो हम अकेलेपन की बात करते हैं , इसे बड़ी समस्या बताते  हैं , दूसरी तरफ हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर उन् से खुद दूरी बनाते हैं | क्या ये विरोधाभास आज की ज्यादातर समस्याओं की वजह नहीं है |  खुद को अतिव्यस्त दिखा कर … Read more

गलतियों की सजा दें या माफ़ करें

                            सीमा जी मेरे पास बैठ कर आधे घंटे से अपनी एक सहेली की बुराई कर रही थी , जिसने अपने बेटे की शादी में उन्हें देर से कार्ड देने की गलती कर दी थी  , हालांकि उसकी सहेली ने कहा था कि कार्ड बाँटने का काम उसने स्वयं नहीं किया था | उन्होंने अपने एक सम्बन्धी को कार्ड व् गेस्ट लिस्ट पकड़ा दी थी , जब उन्हें उनकी गलती का पता चला तो शादी वाले दिन तमाम कामों में से समय निकाल कर स्वयं उनके घर उन्हें बुलाने गयीं, पर सीमा के हलक के नीचे ये तर्क  उतर नहीं रहा था |                                        ये समस्या सिर्फ सीमा की नहीं है | हममें से कई लोग किसी दूसरे की गलती या खुद की गयी गलती को माफ़ नहीं कर पाते | उसकी नाराजगी या कसक जीवन भर पाले रहते हैं | सबंधों में दूरी बढ़ा  कर हम दूसरे व्यक्ति या खुद को सजा दे रहे होते हैं , जिसका खामियाजा हमें अपने स्वास्थ्य और ख़ुशी की कुर्बानी के रूप में देना  पड़ता है | हर गलती सजा देने के लायक नहीं होती | अलबत्ता कुछ गलतियाँ  सजा की हकदार होती है | क्या ये जरूरी नहीं कि हम समझ लें कि किन गलतियों पर सजा दी जाये किन पर नहीं | गलतियों के लिए  सजा दें या माफ़ करें                                              गलतियों के लिए  सजा दें या माफ़ करें पर बात करने से पहले मैं आप को छोटे से दो उदहारण दूंगीं  | नन्हा सोनू डॉल हॉउस बना कर खेल रहा था | उसने  करीब एक घंटे की मेहनत से डॉल हाउस बनाया था | तभी उसका बड़ा भाई मोनू स्कूल से आया | वो एक छोटा सा प्लेन उठा कर दौड़ -दौड़ कर उसे उड़ाने लगा | इसी क्रम में वो सोनू के डॉल हॉउस से टकरा गया | डॉल हाउस टूट गया | सोनू जोर -जोर से रोने लगा | रोने की आवाज़ सुन कर उनकी माँ तृप्ति वहाँ आई | स्थिति समझ कर वो सोनू को समझाने लगी ,” भैया ने जानबूझकर कर नहीं तोडा है , भूल से हुआ है , कोई बात नहीं मैं तुम्हारे साथ लग कर अभी दुबारा बना देती हूँ | तृप्ति सोनू के साथ डॉल हॉउस बनाने लगी व् उसने मोनू को दूसरे कमरे में खेलने को कह दिया | थोड़ी देर में मोनू भी सोनू के साथ खेलने लगा | मुकेश जी के दोस्त सुरेश जी उनसे कई बार मिलने को कह चुके थे | मुकेश जी अपने व्यापर में इतने व्यस्त थे कि चाहते हुए भी समय नहीं  निकाल पाए | एक दिन अचानक उनके पास खबर आई कि कार एक्सीडेंट में सुरेश जी की मृत्यु हो गयी है | 35 साल के सुरेश जी का यूँ चले जाना किसी सदमें से कम नहीं था , पर मुकेश जी के मन में दर्द के साथ -साथ एक गिल्ट या अपराधबोध भी भर गया | उन्हें लगा उनसे बहुत बड़ी गलती हुई है | वो अपने मित्र के लिए समय नहीं निकाल पाए | इस अपराधबोध के कारण वो अवसाद में चले गए , व्यापार धंधा , घर-परिवार सब चौपट हो गया | समझें गलती हुई है या की है                                    जब भी कोई गलती करता है या हमसे खुद ही कोई गलती हो जाती है तो हम दोष देना शुरू कर देते हैं | किसी को आरोपी सिद्ध कर देना समस्या का समाधान नहीं है | ऐसे मौकों पर हमें देखना चाहिए कि गलती की है या हो गयी है | अगर जानबूझ कर गलती किहे तो ये एक अपराध बनता है | अगर अनजाने में हो गयी है तो उसके लिए क्षमा कर देना अपने व् उस रिश्ते के लिए बेहतर है | जैसा कि सोमू की माँ ने मोनू  को गलत न मान कर किया | वहीँ मुकेश जी जो ये कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि उनका मित्र इतनी जल्दी दुनिया से चला जाएगा , उसके जाने के बाद खुद को व् अपने व्यापर को दोषी समझने लगे | काम से अरुचि हुई व् व्यापार ठप्प हो गया | . खुश रहना चाहते हैं तो एक दूसरे की मदद करें  जब भी कोई दूसरा गलती करे तो पहले ये पता लगाने का प्रयास करें कि गलती की है या अनजाने में हो गयी है | अगर दूसरे से अनजाने में गलती हो गयी है | उसका इरादा आप को ठेस पहुँचाने का या आप का नुक्सान करने का नहीं था तो उसे क्षमा कर दें |   अगर आप से कोई गलती  अनजाने में हो गयी है तो खुद को भी क्षमा कर दें | मान के चलें कि इंसान गलतियों का पुतला है , गलतियाँ   हो जाती हैं | इस गलती से सबक लें और जिंदगी में आगे बढें | जब जानबूझ कर गलती की जाये                                                 जब कोई जानबूझ कर गलती करे तो उसे सजा अवश्य दें | क्योंकि अगर तब सजा नहीं दी जायेगी तो वो व्यक्ति फिर से गलती करेगा | बार -बार की गयी गलतियाँ उसे सुधरने का मौका नहीं देंगी और एक न एक दिन वो रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा | पर सजा गलती के अनुसार ही होनी चाहिए जैसे .. आप विद्यार्थी हैं व् आपका  मित्र आपसे नोट्स ले लेता है परन्तु आप को जरूरत पड़ने पर नहीं देता है , या आप की पढ़ाई  का तरीका जान लेता है पर अपना तरीका आप से शेयर नहीं करता है | ऐसे में आप भी उसके साथ वही व्यव्हार करिए , ताकि उसे समझ आ सके कि अगर वो आपसे दोस्ती चाहता है तो उसे भी … Read more

अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये -how to improve your memory and concentration

बच्चों की एग्जामिनेशन सिरीज में आज हम बच्चों के लिए याददाश्त व् एकाग्रता बढ़ने के टिप्स ले कर आये हैं |क्योंकि ये टिप्स दिमाग की कार्यविधि पर निर्भर हैं इसलिए ये केवल बच्चों के काम के ही नहीं हैं इसे गृहणी , ऑफिस में काम करने वाले , व्यापर करने वाले या कोई भी अन्य काम करने वाले अपना  सकते हैं | exam के दिन आने वाले हैं बच्चे अक्सर मुझसे पूछते हैं अपनी concentration power कैसे बढ़ाये | हम कैसे थोड़ी देर में ज्यादा याद कर कर लें , कैसे हमें पढ़ा हुआ याद रहे | क्योंकि ये बच्चों के लिए बहुत जरूरी विषय है इसलिए मैंने इस पर लेख लिखने का मन बनाया | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये how to improve your memory and  concentration यादाश्त व् एकाग्रता बढाने के लिए आपको सबसे पहले समझना होगा कि हमारा दिमाग कैसे काम करता हैं |हमारा दिमाग एक मेमोरी बैंक की तरह काम करता है , इसे समझने के लिए हम अपने दिमाग को तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं या कह सकते हैं कि दिमाग की तीन लेयर होती है ( हालांकि मैं ये स्पष्ट करना चाहती हूँ कि ब्रेन एनाटोमी  में ऐसे कोई लेयर नहीं होती है , इसे brain की psychology के आधार पर सबसे पहले फ्रायड ने तीन लेयर मॉडल  प्रस्तुत किया ,उस समय भले ही इसे नहीं समझा गया पर धीरे -धीरे इसे व्यापक स्वीकार्यता मिली | ये तीन लेयर हैं … conscious mind या चेतन मन  sub conscious mind या अवचेतन मन  unconscious mind या अचेतन मन                                   इसे समझने के लिए एक त्रिभुज का इस्तेमाल भी कर सकते हैं | त्रिभुज में सबसे ऊपर का हिस्सा चेतन मन है जो दिमाग का केवल 10 % है , इसका काम रोजमर्रा के अनुभव लेना है जो पांच इन्द्रियों द्वारा लिए जाते हैं | ये  उसी के आधार पर जयादातर काम करता है | इसे कह सकते हैं कि ये जहाज का कप्तान है जो निर्णय लेता है , कई निर्णय तुरंत लेता है और कई निर्णय लेने में ये पूर्व सूचनाओं की मदद लेता है | पूर्व सूचनाएं दिमाग की नीचे की लेयर्स में होती हैं | ये ही वो हिस्सा है जो बाहरी दुनिया से बोल कर , देख कर , लिख कर आदि आदि तरीकों से संपर्क स्थापित करता है |  उसके बाद अवचेतन मन आता है जो सबसे बड़ा हिस्सा है | ये दिमाग का करीब 50 -60 % होता है | इसमें वो यादें इकट्ठा होती है है जो हाल की हैं , जो चेतन मन ने देखा सुना महसूस किया है वो यादें इसमें स्टोर हो जाती हैं | जब चेतन मन को किसी जानकारी की जरूरत होती है तो वो  अवचेतन मन से ले लेता है | अवचेतन मन सोंचता नहीं है वो केवल स्टोर करता है |   फिर आता है अचेतन मन  जो कि 30-40% होता है , इसमें पुरानी गहरी यादें दबी होती हैं , जिन्हें हमे लगता है कि हम भूल गए , पर जरूरत पड़ने पर वो याद आ जाती हैं | इसके आलावा यहाँ हमारी आदतें व् विश्वास रहते हैं | हम नहीं चाहते हुए भी वही  करते हैं जो कि बचपन में हमारी आदत व् विश्वास के रूप में वहां इकट्ठा है | कई बार आपने देखा होगा कि  जो किशोर पुत्र अपने पिता का बात -बात पर विरोध करता है पर बड़ा होने पर वह भी पिता की तरह ही हो जाता है , क्योंकि तब उसका चेतन मन तर्क करना बंद कर देता है और अचेतन मन वही फीड बैक देने लगता है जो बचपन में स्टोर हुआ था | यहाँ पर ख़ास बात ये है कि अचेतन का अर्थ बेहोश नहीं है , ये केवल एक नाम दिया हुआ है |                            कम्प्यूटर की भाषा में चेतन मन की बोर्ड और मोनिटर है , अवचेतन मन RAM है और अचेतन मन हार्ड डिस्क है |  कैसे काम करते हैं ये तीनों मन   दिमाग के तीनों हिस्से आपस में मिल कर काम करते हैं , यानि इस तरह से चेतन मन जो फैसला लेता है वो अपने अचेतन  , व् अवचेतन से सूचनाएं निकाल -निकाल कर लेता है | ये तालमेल सरवाइवल के लिए जरूरी है |                                    इसका सबसे सटीक उदाहरण Infant stage है | एक छोटा बच्चा  जिसका चेतन मन पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ है वो अवचेतन व् अचेतन मन में स्टोर मेमोरी के आधार पर निर्णय लेता है … जैसे वो समझ लेता है की बोतल की निपल से उसका पेट भरता है माँ की गोदी में वो सुरक्षित महसूस करता है या रोने पर कोई उसके पास आता है |  बड़े होने पर चेतन मन किसी निर्णय को लेने से पहले अपने राडार अवचेतन मन तक घुमाता है जिसमें हाल की मेमोरी स्टोर होती है, वहां से पूर्व अनुभव के आधार पर वह ज्ञान लेता है और फिर फैसला लेता है | अचेतन मन में गहरे स्थित विश्वास व् आदतें होती हैं,   जिन्हें बदलना आसान नहीं है | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता  बढ़ाने के लिए क्या करें                                                                  दिमाग की तीन हिस्सों को जानने  के बाद हमें ये समझना होगा कि दिमाग कैसे चीजों को याद रखता है | सोंचिये जब हम सुबह से  अपने स्कूल , ऑफिस या कहीं और जाते हैं तो न जाने कितनी चीजें हमें दिखाई देती हैं , न जाने कितनी गाड़ियाँ , घर , लोग … चेतन मन उन्हें देखता है , पर क्या वो सब हमें याद रहता है … नहीं | दरअसल अगर हमें सब याद रहने लगे तो भी दिमाग पगला जाएगा | इसलिए चेतन मन केवल जरूरी डेटा ही स्टोर करता है | ये जरूरी डेटा स्टोर करने के … Read more

चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्टडी टिप्स

                                      आज चेतन भगत को लोग एक “बेस्ट सेलर ” लेखक के रूप में जानते हैं , वो फिल्में भी बना रहे हैं , इसके अलावा वो लोगों को motivate करने के लिए बहुत सारे सेमीनार भी  अटेंड करते हैं , स्पीच देते हैं ,लोग उन्हें बुलाते हैं , सुनना चाहते हैं  ये सब सिर्फ एक बेस्ट सेलर लेखक या फिल्म मेकर की वजह से की वजह से नहीं है ,ये उस सफलता की वजह से है जो उन्हें हर क्षेत्र में मिली है | एक लेखक , फिल्म मेकर के अलावा  चेतन भगत के पास IIT व् IIM की डिग्री है |  ये वो डिग्रियां है जिनके पीछे आज देश के आधे से ज्यादा युवा भाग रहे हैं , यानि वो आल राउंडर हैं | इसीलिये  सब चेतन भगत को सुनना चाहते हैं उनसे टिप्स लेना चाहते है कि वो जीवन में सफल कैसे हो | लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चेतन भगत के हाई स्कूल में केवल 76 % मार्क्स आये थे | 76 % से IIT , IIM, बेस्ट सेलर ऑथर और फिल्म मेकर तक का सफ़र करने वाले चेतन भगत अपने को जीनियस नहीं मानते , वो अपने को मेडियोकर स्टूडेंट ही मानते हैं | उनका कहना है कि उनके जैसा हर स्टूडेंट अपने जीवन में सफल हो सकता है , बस उसे अपनी स्ट्रेटजी पर ध्यान देना होगा | ऊपर  से देखने में I.I.T, नावेल लिखना , माउंट अवेरेस्ट पर चढ़ना , मैराथन जीतना या वजन घटाना अलग -अलग लगे , पर इन सभी लम्बी रेस को जीतने के टिप्स सामान है , इसलिए उनकी नज़र में सफलता कैसी भी हो उसके सूत्र एक ही हैं | आज हम चेतन भगत के कुछ ऐसे ही स्टडी टिप्स स्टूडेंट्स के लिए लाये हैं | अगर आप किसी और क्षेत्र में प्रयास कर रहे हैं तो उस क्षेत्र में भी इन्हीं टिप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं | चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्टडी टिप्स  motivational speech for students by chetan bhagat                                                          चेतन भगत अक्सर वो किस्सा शेयर करते हैं जो उनके 76 % मार्क्स हाई स्कूल में आने के बाद हुआ | चेतन भगत घर आये , उनकी माँ व् मामा बैठे हुए थे | दोनों दुखी थे , जैसे की कोई बहुत बड़ा शोक का माहौल हो | कुछ देर उसे देखने के बाद मामा बोले , ” दीदी ये कुछ न कुछ तो कर  ही लेगा , जिन्दगी तो चला ही लेगा |” फिर उन्होंने चेतन भगत की ओर देखते हुए कहा “क्यों , कुछ तो कर लेगा न “? चेतन भगत ने हाँ  में सर हिलाया फिर वो अपने कमरे में आ गए | उस दिन उन्हें पहली बार लगा कि उनकी ” औकात ” केवल जैसे -तैसे कुछ न कुछ कर लेने की है | उन्हें समझ में आ गया की वो अपनी जिंदगी में कुछ भी बड़ा नहीं कर पायेंगे | अब क्या करें ?…. बहुत देर तक सोंचने के बाद उनके दिमाग में ख्याल आया कि वो एसटीडी बूथ खोल लेंगे , उस समय एसटीडी बूथ बहुत चलते थे , घर फोन करने के लिए लाइन लगा कर लोग खड़े होते थे | सुबह उठ कर उन्होंने मामा को यही बता दिया कि वो एसटीडी बूथ खोलेंगे | मामा ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा ,” ठीक है , इतना तो तुम कर ही लोगे |” ये एक  वाक्य चेतन भगत के मन में बैठ गया , उन्हें लगा कि उन् पर ठप्पा लग गया है , बेटा तुम इससे ज्यादा कुछ कर ही नहीं सकते |” उसी समय उनके दिमाग में दूसरा ख्याल आया कि अगर उन्हें इस ठप्पे को हटाना है तो उन्हें एक्स्ट्रा एफर्ट लगाने होंगे | उन्होंने अपने दोस्तों से बात की पता चला IIT का एग्जाम बहुत  प्रतिष्ठित है , पर इसके लिए दो साल तक कड़ी तैयारी करनी पड़ती है | चेतन भगत ने मन बना लिया कि अपनी औकात का लेवल बदलने के लिए मुझे ये एग्जाम पास करना ही है | उन्होंने मेहनत की और वो सफल हुए … उस दिन मामा फिर आये | वो बहुत खुश थे | उन्होंने कहा , ” मुझे पता था कि ये लड़का एक न एक दिन जरूर कुछ बड़ा करेगा | चेतन भगत कहते हैं कि हम सब जीवन में जब कभी असफल हो जाते हैं तो लोग , परिवार  समाज हमारे ऊपर ठप्पा लगा देता है कि “ये नहीं कर सकता “| अब हमारे पास दो रास्ते होते हैं – 1) हम ये मान लें कि हमसे नहीं हो सकता … इससे हम अपने कम्फर्ट ज़ोन में रहेंगे , ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी , ज्यादा सफल भी नहीं होंगे | 2) जब लोग कहे कि इसकी औकात इतनी ही है तो ज्यादा एफर्ट लगा कर अपनी औकात बदल लें | ये वैसा ही है जैसे  इलेक्ट्रान … हाई एनर्जी में जाने के लिए एनर्जी अब्सोर्ब करनी पड़ती है | आपको मेहनत  में खुद को अब्सोर्ब कर देना होगा | चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्ट्रेटजी प्लान                                        चेतन भगत कहते हैं कि कोई भी सफलता किसी लम्बी मेहनत का नतीजा होती है | इसके लिए एक स्ट्रेटजी प्लान करनी पड़ती है | हम दिन में बहुत सारे छोटे -छोटे काम करते हैं , जैसे आज कमरा साफ़ करना है , या सब्जी लानी है या आज कोई खास डिश बनानी है | कई बार इन कामों को करने का मन होता है , कई बार नहीं होता है … अमूमन ये हर काम दो -तीन घंटे ले लेता है | ऐसे में जब मन नहीं होता है तो हम खुद को मोटिवेट करते हुए कहते हैं … अरे यार कर लेते हैं, कल अपना ही प्रेशर कम हो जायेगा , या … Read more

काम के शुरूआती महीने और आप की मानसिकता – power of mind set in Hindi

                                  जब भी हम कोई काम शुरू करते हैं तो शुरूआती महीने बहुत महत्वपूर्ण होते हैं | ये काम चाहे आपकी नयी किताब का लेखन हो, एग्जाम की तयारी हो या किसी बिजनेस या ऑफिस के नौकरी या प्रोमोशन पाने के लिए किये जाने वाले काम की शुरुआत | हम जब भी कोई काम करते हैं तो हमें दो चीजों पर ध्यान देना होता है | पहली अपनी मानसिक शक्ति पर दूसरा अपनी कार्य कौशल पर | सफलता के लिए वैसे तो ये दोनों जरूरी  हैं पर शुरूआती दौर में मानसिक शक्ति, मनोबल या मानसिक सोंच  (mind set) की ज्यादा जरूरत होती है ,कार्यकौशल (skill) धीरे -धीरे बढाया जा सकता है | इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आपकी मानसिक शक्ति या सोंच  (will ) वो जड़ है जो आपसे काम करवाती है , और कार्यक्षमता वह पेड़ है जिस पर सफलता के फल लगते हैं| ये बात मैं बार -बार इसलिए दोहरा रही हूँ ,क्योंकि अगर शुरुआत में पर्याप्त सफलता न मिलने पर आपकी मानसिक सोंच कमजोर पड़ जाती है आप निराश हो जाते हैं  तो काम को बीच में तो काम को बीच में ही छोड़ देते हैं ऐसा करके  आप सारी संभावनाओं को ही नष्ट कर देते हैं|        किसी काम की शुरूआती महीने और  आप की मानसिकता     -power of mind set during first few months of a  work (in Hindi )  रीता और उसकी सहेलियों एक छोटा सा काम शुरू किया| काम था केक बनाने का , पाँचों सहेलियां एक -एक दिन बारी -बारी से किसी एक के घर इकट्ठी होती | सब मिल कर कर केक बनाते , आर्डर लाने का प्रयास करते और जहाँ से आर्डर आया , वहाँ  सही समय पर पहुंचाते | कुकिंग उन सब का शौक था , केक को अलग -अलग तरीके से बनाने के उनके कुछ इनोवेटिव आईडिया थे , नए -नए प्रयोग करके उन्हें काम करने में मज़ा आ रहा था | शुरू में कुछ आर्डर मिले , इनमें से ज्यादातर आर्डर उनके जान -पहचान वालों के ही थे , पर थोड़ी सी इनकम शुरू हुई , और प्रशंसा ढेर सारी  मिली |                                              छोटे -छोटे आर्डर मिलते ४ -६ महीने बीत गए | प्रॉफिट  बहुत बढ़ा ही नहीं |  जैसा की अक्सर किसी नए काम को शुरू करने पर होता है उन सब ने सोंचा था उनका काम बहुत तेजी से चलेगा , खूब सारे पैसे आयेंगे | उन पैसों से वो क्या -क्या खरीदेंगी इसकी भी योजना उन्होंने बना ली थी| परन्तु आर्डर ज्यादा आये नहीं | निराशा बढ़ने लगी, काम से मन हटने लगा | उन सब को लगा रोज -रोज केक बना कर आर्डर का इंतज़ार करने से अच्छा है घर बैठों | लगता है हमारी किस्मत में कमाना लिखा ही नहीं है | थोड़ी बहुत आपसी फूट भी शुरू हो गयी | सबने काम बंद होने का निर्णय ले लिया | कुछ सहेलियाँ मूड ठीक करने अपने मायके चली गयीं | काम बंद होने के ठीक 15 दिन बाद शहर के एक बड़े व्यापारी ने एक बहुत विशाल केक का आर्डर किया जो उन्हें अगले ही दिन चाहिए था | दरसल व्यापारी की बेटी  ने अपनी किसी सहेली के यहाँ उनका केक खाया था | उसे बहुत अच्छा व् अलग लगा इसलिए वो चाहती थी कि उसके जन्मदिन पर वही  केक बने | इसके लिए उसने विशेष रूप से रीता का नंबर माँगा था | अगर उस पार्टी में रीता के ग्रुप का केक जाता तो उसका बहुत  अच्छा प्रचार होता क्योंकि उस पार्टी में बड़े -बड़े नेता व व्यापारी व् अफसर आने वाले थे | परन्तु  अब रीता कुछ नहीं कर सकती थी | वो अकेले इतना बड़ा केक बना नहीं सकती थी और उसके पास टीम थी ही नहीं | मजबूरी में उसे कहना पड़ा कि उसका केक बिजनेस बंद हो गया है | अगर रीता और उसकी सहेलियां शुरूआती असफलता से हार नहीं मानतीं तो उनका केक बिजनेस आज बहुत सफल हो गया होता |                        ऐसा सिर्फ रीता के साथ ही नहीं हुआ , बहुत से लोगों के साथ होता है जो शुरूआती असफलता को सहन नहीं कर पाते हैं और निराश होकर काम को वहीँ बंद कर देते हैं | वो इस बात को नहीं जानते कि शुरू में सबका काम छोटा ही होता है , लेकिन जो लगातार लगा रहता है उसी का काम बड़ा होने की सम्भावना होती है | इसलिए शुरूआती असफलता या कम सफलता से निराश न होकर अपने काम में लगे रहना चाहिए |  अगर आपको अपने आप पर और अपने काम पर पूरा विश्वास है तो आप को सफलता जरूर मिलेगी | क्यों छोड़ते हैं लोग शुरू के दिनों में काम? लोग शुरू के दिनों में काम इसलिए छोड़ते हैं क्योंकि वो  थोड़े के महत्व को नहीं समझते | विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का कहना था कि – कंपाउंड इंटरेस्ट ( चक्रवर्धी ब्याज ) दुनिया का आठवाँ आश्चर्य है जो इसे समझ लेता है , वो कम लेता हैं , जो नहीं समझता इसकी कीमत अदा करता है | क्या आप सोंच सकते हैं कि आइन्स्टीन ने ऐसा क्यों कहा ? दरअसल जब हमें थोडा लाभ मिल रहा होता है तो हम ये अंदाजा नहीं लगा पाते कि इस थोड़े से कितना बढ़ सकता है और निराश होकर काम छोड़ देते हैं | इसके लिए एक कहानी हमारे ग्रंथों में है , आइये आपको सुनती हूँ … पढ़िए -सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips एक राजा दान के लिए बहुत प्रसिद्द था | कहा जाता था कि उसके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था | एक दिन उस के दरबार में एक साधु  आता है , उस समय राजा शतरंज खेल रहा होता है | साधु  राजा से कहता है , ” महाराज मुझे भिक्षा चाहिए | राजा कहता है आप को मेरे राज्य में … Read more

सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips

                              मनुष्य एक भावुक प्राणी है| ये भावनाएं ही उसे जानवर से इंसान बनती हैं , पर कई बार इन भावनाओं की वजह से ही  हम शोषण का शिकार हो जाते हैं | ये शोषण कभी अपने द्वारा होता है , कभी अपनों द्वारा | जिसकी वजह से हम जिन्दगी में हारते जाते हैं चाहे वो रिश्ते हों , सम्मान हो या सफलता| जरूरी है इन भावनाओं का संतुलन सीखना | जरा इन उदाहरणों पर गौर करें …                                                                             एक बच्चा जो पढने में बहुत तेज था| उसे खुद व्  उसके माता-पिता को आशा थी कि वो 10 th बोर्ड में 95% मार्क्स ले कर आएगा |  उसने मेहनत भी खूब करी | पेपर भी अच्छे हुए | रिजल्ट आने  से कुछ दिन पहले उसने अपने नंबर कैलकुलेट किये  , उसके  मुताबिक़ उसके ९२ % आने थे | वो इतना निराश हुआ की उसने आत्महत्या कर ली | कुछ दिन बार रिजल्ट निकला , उस बच्चे के 96 % मार्क्स थे |  वो बच्चा जिसका भविष्य बहुत अच्छा था , संभावित कल्पना को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने मृत्यु का वरण कर लिया |                         राहुल ने  बिजनिस के दो -तीन  प्रयास किये , हर बार असफल रहा | लोगों के ताने उलाहने सुनने के बाद अब उसकी कमरे से निकलने की भी हिम्मत नहीं पड़ती | एक कमरे में बैठे रहना और दीवारों को घूरना ही उसका जीवन हैं | एक और प्रयास के लिए उसके पास धन है पर उसका मन साथ नहीं दे रहा है |                             सविता जी एक टेलेंटेड लेखक हैं | मैंने उनके कई लेख पढ़े हैं , पर वो सार्वजानिक लेखन में नहीं आना चाहती क्योंकि उनके पति व् परिवार को उनका लिखना पसंद नहीं है , अक्सर उन्हें कलम घिस्सू की उपाधि दे कर हँसी  उड़ाई जाती है | सविता जी को पता है कि उनमें प्रतिभा है ,लेकिन अपने परिवार का तिरिस्कार झेल कर लिखने की हिम्मत वो नहीं जुटा पाती | यही उनकी निराशा व्  कुंठा की वजह है | वो उदास रहती है ठीक से घर का काम नहीं कर पाती , न घर को सजाती संवारती हैं न खुद को |                                                  और एक उदाहरण जो शायद  आप ने देखा हो , अभी कुछ दिन पहले की बात है मैंने फेस बुक पर एक स्टेटस पढ़ा , ” मेरे मित्र जिन्हें मैं बहुत पसंद करती हूँ , उनकी हर पोस्ट लाइक करती हूँ , कमेंट करती हूँ , वो मेरी पोस्ट पढने तक नहीं आते इसलिए मैं फेसबुक छोड़ रही हूँ / कुछ दिनों के लिए बंद कर रही हूँ | ऐसे में किन्हीं दो चार मित्रों की तुलना में उन्हें वो मित्र नज़र ही नहीं आ रहे हैं जो उनकी पोस्ट पर लाइक कर रहे हैं |                                  ये सारे उदाहरण भावनाओं द्वारा नियंत्रित होने के हैं | इन सब में प्रतिभा है , क्षमता है , दूसरे मौके हैं पर इन सब ने भावनाओं के आधीन हो कर छोड़ देना ज्यादा उचित समझा … कहीं मौके को कहीं जीवन को और कहीं जीवंतता को | मैं स्वयं भी बहुत Emotionally weak रहीं हूँ | मैंने इस बात को समझते हुए खुद को बदला है | मेरा ये लेख लिखने  का उद्देश्य भी यही है कि आप भी भावात्मक संतुलन नहीं बना पाते हैं तो आप भी जीवन में बहुत कुछ खो देंगे | इसलिए मैं आपके साथ ये emotional management tips share कर रही हूँ | जो आपके जीवन में सफलता और जीवंतता लाएगी |  भावनात्मक संतुलन के नियम  -Emotional management tips (in hindi)                                                                      जब भी मैं Emotional management कीबात करती हूँ तो मेरे सामने  रथ पर बैठे अर्जुन और उन्हें भगवद्गीता का उपदेश देते हुए कृष्ण आ जाते हैं | अर्जुन एक महान योद्धा थे , सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे , फिर भी युद्ध से ठीक पहले वो भावनाओं के शिकार होकर युद्ध छोड़ने की बात करने लगे | वो अपनी भावनाओं को नियंत्रण में नहीं रख पा रहे थे , जिस कारण उनसे धनुष भी नहीं उठाया जा रहा था | क्या उस समय वो द्रोणाचार्य द्वारा दिया हुआ ज्ञान भूल गए थे ? क्या बरसों का उनका अभ्यास एक क्षण में खत्म हो गया था ? नहीं … बस उनके मन ने साथ देना बंद कर दिया था | दोनों सेनाओं के बीचोबीच खड़े अर्जुन के पास skill तो था पर will नहीं थी                                                                              स्किल यानी हमारा talent, हमारी प्रतिभा , हमारी क्षमता , और विल हमारी इच्छा शक्ति | सफलता के लिए स्किल जरूरी है उससे ज्यादा जरूरी है will. हम कई बार खुद कहते हैं कि फलाने  व्यक्ति में तो इतना talent नहीं था फिर वो इतना successful कैसे हो गया | जाहिर सी बात है कि उसकी सफल होने की इच्छा उस टैलेंटेड व्यक्ति से ज्यादा थी | शुरुआत में सबकी इच्छा ज्यादा होती है परन्तु असफलता ,हार व् आलोचना जो किसी भी सफलता का हिस्सा हैं हर कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता, जिसके कारण या तो वो प्रयास ही छोड़ देता है या  आधे … Read more

क्या आप घर से काम करते हैं?

            जो लोग ऑफिस में काम करते हैं उन्हें लगता है कि घर से काम करने वाले कितने मजे में होंगे | जब मर्जी आये तब काम करो , मन करे तो लेट जाओ , कोई आ जाए उससे बात कर लो | फिर काम शुरू करो | वास्तव में ये सब बहुत आसान लगता है औ इसी लिए कई लोग घर से काम करना शुरू करते हैं | अपने मन से काम करेंगे | दिन में समय नहीं मिला तो रात में जाग कर कर लेंगे | सर पर कोई बॉस नहीं होगा | परन्तु जैसा दिखाई देता है वैसा होता नहीं है| खासकर महिलाओं के मामले में | पुरुष अगर घर से काम कर रहे हैं तो ये समझा जाता है कि वो काम कर रहे हैं , इसलिए उनको बेसिक सुविधाएं दी जाती हैं पर महिलाओं के काम को अक्सर इतनी वरीयता नहीं दी जाती और कई बार तो उसे काम ही नहीं टाइम पास समझा जाता है | यकीन मानिए जब मैंने ये लेख लिखा शुरू किया था तब से अब तक मैं तीन बार घर के जरूरी कामों के लिए  उठ चुकी हूँ | अगर आप घर से काम करते हैं  तो आजमाइए मोटिवेशनल टिप्स                                                                          अगर आप घर से काम करते हैं और आप को महसूस हो रहा है की आप को काम जारी रखने के लिए जरूरी मोटिवेशन नहीं मिल रहा है तो खुद को मोटिवेट रखने के लिए आप को दो मुख्य बिन्दुओं पर काम करना होगा | पहले तो आपको डी मोटिवेशन की वजह ढूंढनी होगी फिर उसे दूर करने का प्रयास करना होगा | घर से काम करने में आने वाली दिक्कतें किसी भी जॉब का सबसे अच्छा हिस्सा होता है शाम को घर लौटना – अज्ञात 1 )जब आप घर से काम करते हैं तो आप काम करने बैठे तभी बेल बज गयी , पडोसी आये हैं … आप को देखना ही पड़ेगा , कभी फोन की बेल बजेगी , बात करनी ही पड़ेगी , कभी बच्चे किसी काम के लिए मदद मांगेंगे तो देनी ही पड़ेगी | ऐसा इसलिए है क्योंकि हर किसी को लगता है है की आप जब चाहे तब काम कर सकते हैं तो फिर उन्हें तो आसानी से समय दे ही सकते हैं |ऐसे में जब आप किसी नए आइडिया के साथ  काम कर रहे होते हैं तो कई बार वो आइडिया ही दिमाग से निकल जाता है | 2 )इफरात में समय किसी के पास नहीं होता , घर से काम करने वाले भी घर के जरूरी काम निपटा कर अपना प्रोफेशनल काम करने बैठते हैं | अगर इस तरह से बार -बार उनका ध्यान भटकता रहा तो वो रात में जाग कर या सुबह जल्दी उठ कर ही अपना काम कर पायेंगे | यानी उन्हें डबल ड्यूटी देनी पड़ती है जो सेहत के लिए नुकसानदायक है | 3) कई बार आप ही अपना समय ये सोंच कर बर्बाद कर देते हैं की कल कर लेंगे| ऐसे कल -कल पर टलता हुआ काम अपना मोटिवेशन खो देता है | 4) आप को 24 घंटे घर में ही रहना है यानी आप के घर का वातावरण बिलकुल नहीं बदलता जिस कारण आपको धीरे -धीरे बोरियत होने लगती है जो आपके काम पर भी असर डालती है | 5) घर से काम करने पर आपके आने -जाने का समय बचता है जिस कारण  कई बार आप ज्यादा काम कर पाते हैं | आपको हर थोड़ी सी फुरसत के समय काम दिखाई पड़ता है |  आप आउटगोइंग कम हो जाते हैं | धीरे -धीरे आपके रिश्ते आपसे दूरी बनाने लगते हैं | जब कभी आप गेट टुगेदर में आप पहुँचते हैं तो आप एलियन नज़र आते हैं | पढ़िए –5 मिनट रूल – दूर करें काम को टालने की आदत                                                                         जाहिर हैं अगर आप घर से काम करते हैं तो आप ये सब समस्याएं महसूस कर रहे होंगे | लेकिन अपने काम और लाइफ को बेलेंस रखने के लिए आपको खुद को मोटिवेट रखना बहुत जरूरी है | इसके लिए कुछ उपाय हैं | सोंचिये आप घर से क्यों काम करते हैं                                                          अगर आप ये सोंचते हैं कि आप घर से क्यों काम करते हैं तो आप का स्ट्रेस थोडा कम हो जाता है | इसलिए इसे रोज अपनी सोंच में दोहरा लीजिये | इसकी कई वजह हो सकती हैं – आप फ्री लांसर हैं | आप के घर में छोटे बच्चे या कोई बीमार है और आप उसके केयरगिवर  हैं | अभी आप का बजट आपको अपना ऑफिस खोलने की इजाज़त नहीं देता | आप  शौकिया  काम करते हैं | आप खुद बीमार रहते हैं |                                  अगर ऐसी कोई वजह है तो आप जानते हैं  कि घर से काम करना ही आप के लिए बेस्ट ऑप्शन है | इसलिए जब भी बोरियत लगे या ये लगे की बाहर से काम करने वाले ज्यादा खुश है तो आप अपनी लायबिलिटी याद कर लीजिये| रिलेटेड -2018 में लें हार न मानने का संकल्प अपने कमरे को ऑफिस की शक्ल दें                                                                   जब मैंने घर से काम करना शुरू किया था तो मैंने महसूस किया की मैं अपना लैपटॉप उठा कर कहीं भी काम कर सकती थी ,पर इससे दिक्कत ये आ रही थी कि कोई … Read more

5 मिनट रूल – दूर करें काम को टालने की आदत

               राहुल के हाथ में निधि की शादी का कार्ड था और उसकी आँखों में आँसू | राहुल और निधि एक ही कॉलेज में पढ़े थे | कब उसे निधि भाने लगी, कि वो उसे जीवनसाथी बनाने के सपने देखने लगा उसे पता ही नहीं चला| निधि एक अंतर्मुखी स्वयं में सिमिटी रहने वाली लड़की थी| फिर भी उसकी बातों से राहुल को अंदाजा था कि निधि भी उसे पसंद करती हैं | पर वो उससे कह नहीं सका | वो हर रोज सोंचता कि वो निधि से मिलेगा तब कह देगा , पर हर रोज आने वाले कल पर बात टाल देता और नतीजा निधि की शादी किसी और से हो रही है | अब जरा इन उदाहरणों पर भी गौर करें … कल से पक्का अपना स्टडी टाइम टेबल फॉलो करूँगा | आज तो नहीं हो पाया पर कल से जरूर वाक पर जाना है , आखिर सेहत का ध्यान  तो रखने ही चाहिए| रोज देर से उठने से सुबह की भागमभाग बहुत परेशान  करती है , तय कर लिया है मैंने कल से जरूर 5 बजे उठूँगा ताकि हर काम समय पर हो | आज पार्टी है , जानता हूँ डॉक्टर ने मना किया है पर आज और समोसा खा लेता हूँ , एक दिन में कुछ हर्ज थोड़ी न हो जाएगा , कल से तय कर लिया है डॉक्टर के डाएट  प्लान पर ही चलूँगा|  कल से थोडा सा वक्त परिवार और बच्चो के लिए भी निकालूँगा , हर समय बिजनिस ही ठीक नहीं |                               पढाई हो कोई जरूरी काम हो , किसी से रिश्ते बिगड़े रिश्ते बनाने हो , कोई बुरी आदत छोडनी हो या प्रेम-मुहब्बत का चक्कर हो , अगर आप की काम को टालने( procrastination) की आदत है तो प्रतिभा क्षमता होते हुए भी अंत में आप के हाथ में कुछ नहीं लगता |     मेरी सलाह है जो आज कर सकते हो उसे कल पर मत छोड़ो , टालने की आदत समय का चोर है -चार्ल्स डिकेंस     टाल-मटोल की आदत से कैसे बचें  –How to overcome Procrastination                                                                   भले ही हम  बचपन से “TOMORROW NEVER COMES” पढ़ते आये हों | पर आँकड़े कहते हैं कि कामों को टालने की आदत 95% लोंगों  होती है | ये आदत उनमें नाम मात्र  या ज्यादा हो सकती है, पर होती जरूर है| अब अंदाजा लागाइये की सिर्फ 5 % लोग ही successful क्यों होते हैं ?जाहिर है उनमें काम को टालने की आदत नहीं होती |  Laziness और Procrastination में अंतर है                                                          अक्सर लोग आलसी या टाल-मटोल करने वालों को तराजू के एक ही पलड़े में रखते हैं | ये सही नहीं है | आलसी व्यक्ति में काम करने की इच्छा ही नहीं होती जबकि टाल-मटोल करने वाले की उस काम को करने की बहुत इच्छा होती है, फिर भी वो नहीं करता| वो जानता है की उसके लिए ये काम टॉप प्रायोरिटी का है पर वो उसे न करके कम प्रायोरिटी वाले कामों में उलझा रहता है |  आखिर क्यों करते हैं हम काम में टाल-मटोल                                           जरूरी काम है ये जानते हुए भी उस के प्रति टाल -मटोल करने के पीछे कई कारण होते हैं |  1) असफलता का भय –लोगों को लगता है कि अगर सफल नहीं हुए तो , खुद को उस बुरी वाली फीलिंग से बचाने के लिए लोग काम को टालते हैं |  2)अपनी कम्फर्ट ज़ोन छोड़ने में असुविधा – एक ढर्रे  में जीते हुए उससे अलग हट कर कुछ भी करने से हम बचना चाहते हैं|  3) सफलता का भय – आश्चर्य है लेकिन असफलता की तरह सफलता का भी भय होता है , लोग जानते हैं कि वो काम करने के बाद वो सफल हो जायेंगे,लेकिन उन्हें डर लगता है की क्या वो सफलता संभाल पायेंगे | सफलता बहुत डिमांडिंग होती है, और आपका पूरा रूटीन बदल देती है| 4) स्ट्रेस से बचना – किसी भी ऐसी काम को जिसे हम टाल रहे हैं उसे करने में स्ट्रेस होता है, हम उस स्ट्रेस से बचना चाहते हैं| मान लीजिये आपके किसी रिश्तेदार से संबंध खराब चल रहे हैं, आप उससे फोन पर बात करना चाहते हैं परन्तु आप ये सोंच कर नहीं करते क्योंकि आपको लगता है कि वो न जाने क्या बुरा बोल दे,  स्ट्रेस और न बढ़ जाए, बात और बिगड़ जाए |  5) प्लानिंग सही नहीं – पहले भी हमने Atootbandhann.com पर ” अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें एक लेख प्रकाशित किया था|  दरसल काम की टाल-मटोल का कारण सही प्लानिंग न होना होता है | जैसे राकेश जी यही सोंचते रहे की बिजनिस और परिवार में संतुलन बना कर रखेंगे पर २० साल तक कर नहीं पाए , बच्चे बड़े हो गए , अब उन्हें पिता के साथ उतना वक्त बिताने की जरूरत नहीं रही |  अगर वो प्लानिंग सही तरीके से करते तो  वो बच्चों के साथ वक्त बिता पाते| 6) बोरिंग काम –आप समझते हैं कि वो काम जरूरी है पर आपको बोरिंग लगता है | कुछ बातें जो काम को टालने के बारे में समझिये                        अगर आपको भी टाल–मटोल करने की आदत है और आप उसे छोड़ना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना होगा ..वो कहते हैं ना एक अच्छी शुरुआत ही अच्छे अंजाम तक पहुंचती है | 1 ) स्वीकार करिए– स्वीकार करिए कि आपको काम को टालने की आदत है | जब आप स्वीकार करेंगे तभी आप अगला स्टेप ले आयेंगे जो उसे ठीक करने की दिशा में होगा | 2)रियलिस्टिक बनिए – अगर आप को सुबह देर से उठने की आदत है और आप पढाई या वाक् पर जाने का सुबह … Read more