चटाई या मैं

चटाई जमीन पर बिछने के लिए ही बनायीं जाती है | उसका धागा पसंद करने , ताना -बाना बुनने और कर्तव्य निर्धारित करने सब में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इस्तेमाल करने वाले को आराम मिले …. पर चटाई का ध्यान , उसकी भावनाओं का ध्यान रखने की जरूरत भला किसको है |  गौर से देखेंगे  तो आप को एक स्त्री और चटाई में साम्यता दिखाई देगी और  चटाई में स्त्री का  रुदन सुनाई देगा | तभी तो कवियत्री कह उठती है … चटाई या मैं क्या कहते हो ?  क्या मैं चटाई हूँ ?  कहो ना …?  मुझे मेरा परिचय चाहिए ?  “हाँ” सच चटाई ही तो हूँ मैं !!!! बाउजी ने कुछ धागे पसंद किये  और माँ ने बुन दिया सालों अड्डी पर चढ़ाए रखा कुछ कम करते कुछ बढ़ाते नए नए रंग भरते/ फिर मिटाते  कभी मुझे फूल कहते / कभी कली कभी ज्यादा लडा जाते तो कहते परी  ज्यों ज्यों बुनते जाते देख देख यूँ इतराते की पूरे बाजार में ऐसी चटाई कहीं नहीं ….।। वो मुझे सुलझाते  मुझ पर नए चित्र सजाते और मैं ???? उलझती जाती खुद ही खुद में कितनी रंगीली हूँ मैं !  हाय!!!! कितनी छबीली फिर काहें कोठारिया नसीब में  और ये अड्डी……।। एक पर्दा भी तो  जन्मा था माँ ने हर किसी की आँखों में सजा रहता और मैं ??? पैरों में बिछाई जाती कभी पानी / कभी चाय रसोई में दौड़ाई जाती  माँ डपटती / सीने को ढकती  फिर मैं चलती और झूठा ही लज्जाति जो नहीं थी मैं / उस अभिनय के नित नए स्वांग रचाती ….।। माई बुनती रही मुझे  धोती/ पटकती / रंगती /  बिछाती/ समेटती एक -एक धागा कस -कस के खींचती हाय ! कितनी घुटन होती थी माँ जब कस देती आँखों में मर्द जात का डर पिता से घिग्गी और  टांगों में सामाजिक रीतियाँ  और पर्दा ????? पर्दा मुझे ढके रखता इससे , उससे और सबसे ….।। मेहनत तो रंग लाती है  रंग लाई  दूल्हों के बाज़ार में  मैं सबसे सुंदर चटाई  कईं खरीददार आते/ मुआयना करते  मैं थी सस्ती – टिकाऊ सुंदर चटाई तो हर किसी के मन भाई  परिणामस्वरूप तुम तक पहुंची और घर की रौनक बढ़ाई ….।। आज भी बिछती हूँ घिसटती हूँ / रंगी जाती हूँ नित नए रिश्तों से / कसी जाती हूँ  कभी बिछती हूँ तो  काम क्षुधा बुझाती हूँ कभी सजती हूँ तो मेहमानों का दिल बहलाती हूँ अपनी ही घुटन में  आज भी … कभी उधड़ती हूँ और  बार – बार फट जाती हूँ माँ के दिए पैबंद दिल के छेदों पर चिपकाती हूँ और नई सुबह से  नए रंग में  चरणों में बिछ जाती हूँ .. .. चरणों में बिछ जाती हूँ …..।। संजना तिवारी यह भी पढ़ें. मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको ”  चटाई या मैं  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, women ये कविता अटूट बंधन पत्रिका में प्रकाशित है 

मरुस्थली चिड़िया के सिर्फ तुम

              सुबह से ही अस्पताल में मरीजों का तांता लगा हुआ था ।चाय पीना तो छोड़ो लू जाने की भी फुरसत नहीं मिल रही थी । जाने कहाँ से ये मरीजों का छत्ता टूटकर भिनभिना रहा था ।हालाँकि किसी भी डाक्टर को मरीज बुरे नहीं लगते लेकिन आज अक्की आने वाली थी और मैं उसे तसल्ली से चेक करना चाहता था । जब से सुबह उसकी माँ से बात हुई थी मैं असमंजस में था ।उसके एक हाथ को दो महीने पहले मगरमच्छ चबा गया है और वो गहरे सदमे में मानों गुम सी हो गयी है, ये सुनकर ही मेरे दिमाग के सारे पाइप टपर-टप-टप करने लगे थे ।                    बहुत मामूली सी दिखने वाली अक्की भीतर से इतनी संवेदनशील और संयमी हो सकती है कोई सोच भी नहीं सकता ।कोई क्या !!!! मैं खुद भी तो उसे छ सालों से जानता हूँ पर कभी उसके जीवन को पढ़ नहीं पाया ।    “हाँ” इतना जरुर महसूस किया था की छ साल पहले अक्की ने जब मेरे अस्पताल में ज्वाइन किया था वो बड़ी हंसमुख थी । गोरा रंग, भूरी आँखे , घुंघराले भूरे बाल जो उसके कद से भी लम्बे लगते थे । खुद को बहुत गंभीर और मैच्योर दिखाने के लिए वो कभी कभी जीरो नम्बर का चश्मा पहनती थी और  चाइल्ड पेशंट्स  के साथ मस्ती करते पाए जाने पर मासूमियत का ऐसा भयंकर नाटक करती थी की नारद भी शर्मा जाए । उसे मैंने कई बार आफ़िस आवर के बाद चाइल्ड पेशंट्स के साथ खेलते , उन्हें चूमते और गल बइयां डाले देखा था । अपने कुलीग्स के साथ भी वो ऐसे घुल मिल गयी थी जैसे बरसों पुरानी यारी हो । किसी का जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह , कोई गमी हो या सास बहू टॉपिक , उसके पास सब सुलझाने का समय था । हाँ ,मुझे अच्छे से याद है सास बहु टॉपिक को वो नॉनसेंस टॉपिक कहती थी और अपने दिमाग की सारी खुराफंते अपनी बहू दोस्तों को सिखाती थी । इन सब चुहल बाजियों के बावजूद भी मैंने कभी किसी से उसकी शिकायत नहीं पाई थी ।जब भी इन्स्पेक्शन के लिए निकलता था वो हमेशा अस्पताल के किसी न किसी हिस्से में शरारती चश्मा लगाए , अपने लम्बे बालो से लगभग पोंछा मारती हुई दिख जाती ।उसका पांच फुटा साइज कभी भी उसके चार फुटे बालों का साथ नहीं देता था ।उसे देख कर कभी-कभी मैं भी भ्रम में पड़ जाता था की क्या इसने सचमुच डाक्टरी पढ़ी है, इसे तो जोकर होना चाहिए था । मुझे याद नहीं आता की किसी भी जेन्ट्स डाक्टर ने उसको देख कर आहें भरी हो या उसकी सुन्दरता का बखान किया हो । जेंट्स तो छोड़ो मुझे तो किसी लेडिस डाक्टर का भी कोई कमेन्ट याद नहीं आता लेकिन फिर भी वो सबकी चहेती थी । ज्वाइन करने के छ महीने के भीतर ही उसकी शादी हो गयी थी , उसकी एक चचेरी बहन के देवर से शायद बात पक्की हुई थी ।हम सभी उसकी शादी में गए थे । हमारी पांच फुटी अक्की को छ फिटा लड़का मिला था । रंग अक्की से कुछ दबा हुआ था लेकिन मूंछो और बढिया फिजिक के चलते एकदम अनिल कपूर लुक दे रहा था । शादी के कुछ दिनों के अंदर ही अंदर अक्की का रंग रूप गजब का निखर आया था । उसको देख कर लगता था जैसे विश्व विजयनी आ रही हो ……आह !! मैं भी क्या – क्या सोचने लगा ! पर उसका इलाज करने से पहले उसके साथ हुए हादसे के बारे में जानना जरुरी भी तो है । हूँ …….सबसे पहले उसके परिवार के साथ -साथ उस चचेरी बहन से भी मिल कर देखता हूँ ।। मैंने जल्दी – जल्दी उसके आने के समय से पहले मरीजों को निपटाया और रिपोर्ट्स देखने का काम अपने एक जूनियर पर छोड़ कर उसे अटैंड करने शल्य चिकित्सा विभाग की ओर चल दिया । जब मैंने कमरे में प्रवेश किया तो उसकी पीठ मेरी तरफ थी , उसके लम्बे बाल गुथ-गुथकर मोड़े गए लग रहे थे । शरीर पहले से आधा भी नहीं रह गया था और जब ….जब मैंने उसे सामने से देखा …….ओह !! अक्की ये क्या हुआ ? ऐसा कहकर मैं चीखना चाहता था , पैर पटकना चाहता था लेकिन मेरी जुबाँ गले के भीतर ही घुट गयी थी और पैर जमीं में धंस गए थे ।उसकी शरारती आँखों के आस -पास काले घेरों ने काला चश्मा बना लिया था । गोरा रंग पीलपिली सफेदी में तब्दील हो चुका था ।वो गली के कोने पर बने उस झोपड़े सी जर-जर दिख रही थी जिसे आंधी से भी ज्यादा एक फूंक में ढह जाने का डर हो । सीधे हाथ का आकार लगभग टेढ़ा हो चुका था , मगरमच्छ ने पुरे मांस को खा लिया था । अब वहां बचा था तो बस हड्डी का डंडा , जिस पर पतली चमड़ी मानो अनेको टांको के साथ अपने दर्द की शिकायत कर रही हो ।उसका वो अंगूठा जिससे वो साथी दोस्तों को ” ऐ ssssssssss” करके चिड़ाती थी , इस हादसे में उससे नाता तोड़ चुका था । मैंने खुद पर संयम रखते हुए उसे प्यार से गले लगाया ।मेरे करीब आने पर उसकी कंकाली आँखों के पोर भीग गए और फटे सूखे होंठ कांपने लगे । अस्थियों के इस ढेर से मैं क्या पूछता ? उसे तो खुद सहारे की जरूरत थी और यूँ भी मैं उसके ज़ख्म कुरेदना नहीं चाहता था । थोड़ी बहुत यहाँ वहां की बाते करके , हाथ का निरक्षण करके उसे मैंने रूम में शिफ्ट करवा दिया । उसके हाथ की अवस्था सुधारने के लिए कम से कम चार बार प्लास्टिक सर्जरी की जरूरत थी और मन की सर्जरी के लिए कितने आपरेशन करने पड़ेगे , ये मैं खुद भी नहीं जानता था । उसकी माँ के हाथो ही  मैंने उसकी चचेरी बहन निशा को बुलवा लिया था । निशा आई तो मैं सीधे उसे साइक्लोजिस्ट वैभव के रूम में ही ले गया । मैं चाहता था की वैभव भी सारी बात जान ले और आज से ही अक्की को देखना … Read more

भावनाओं की सरहदें कब होंगी

अपना देश हो या विदेश , सुबह की जगमगाहट में कमी नहीं आती । चिड़ियाँ अपने नियत समय पर रोजगार के लिए जाना नहीं भूलतीं । पवन हौले-हौले वीणा की धुन सी अपने प्रियतम बावरे से लिपटना नहीं भूलती , कलियाँ मुस्कुराना और तितलियाँ मटकना नहीं भूलती । ठीक उसी तरह कम्जर्फ़ इंसान अपनी ईर्ष्या , दरिंदगी और वाहियात स्वभाव को नहीं भूलते । कोई नई सुबह उनको सुकूं नहीं देती और कोई रात प्यार से उनके पहलू में नहीं सोती । रिहाना का भी कुछ ऐसा ही हाल था । जब से मोहम्मद ने आंध्रा से आई लक्ष्मी को घर में रख लिया था उसकी रगों का खूं वहशी हो गया था । हालांकि रिहाना के लिए ये कोई नई बात नहीं थी, अलग-अलग औरतों की अलग-अलग खूबी उसे हमेशा बेचैन कर देती हैं लेकिन इस बार……..लक्ष्मी के लम्बे बाल, ऊँचा कद , पर्वत सी उठी सीने की गोलाइयां , केसरी रंग , पलकों के बोझ से दबी आँखे और आवाज़ उसे कई-कई मौत मार रहे थे । दिन और रात बस एक ही ख़्वाब उसे डस रहा था की मोहम्मद लक्ष्मी की ओर झुके जा रहे हैं । “लक्ष्मी sssssssss साली तेरी सुबहो नहीं हुई ??अपने अब्बा के घर ऐश को आई है तू ? उठ…..”        रोज सुबह का यही हाल था । रिहाना रोज लक्ष्मी को अगली सुबह उठने का नया समय देती और खुद उस समय से पूर्व उसके सिर पर खड़ी हो जाती । कभी गालियों से गुड मोर्निंग कहती तो कभी जान बुझ कर हाई हिल पहनकर जाती और सोती हुई लक्ष्मी के हाथ पैर पर चड़ जाती । दर्द और डर से सिसकती लक्ष्मी को देखकर उसे आत्मिक संतोष की प्राप्ति होती । लक्ष्मी लाख चाहकर भी रिहाना की ऩजर में अच्छी नहीं बन पाती थी और वापिस घर जाना अब केवल सपना था क्यूंकि मोहम्मद ने उसका पासपोर्ट ज़ब्त कर रखा था ।कुवैत में जाकर काम करने वालों की ये आम कहानी थी ।अक्सर मालिक लेबर्स का पासपोर्ट रख लिया करते थे और वीज़ा की तारीख खत्म होने तक मजबूरन रोके रखते थे ।लक्ष्मी भी अपना वीज़ा खत्म होने का इन्तजार कर रही थी । चाचा ने बड़ी मुश्किलों से उसे पांच साल का वीज़ा लगवाकर दिया था लेकिन तीन सालों में ही उसकी अंतड़ियाँ मुहं को आ गई थीं । जब -जब मोहम्मद उससे दिल बहलाता था, रिहाना उसे तीन-चार दिन के लिए खाना नहीं देती थी । रिहाना की जूतियों से देह की मरम्मत और लातों की बरसात लक्ष्मी के लिए रोज की खुराक बन गयी थी ।इस बार भी….. ” लक्ष्मी….तुम कहाँ गायब रहता है सारा दिन ? हूँ…….मैं जब भी गर (घर) में गुस्ता (घुसता)हूँ सबसे पहले तुम्हें देखना चाहता हूँ । मैं तुमसे मोह्ब्ब्त करता हूँ और एक तुम हो जो मुझे बहुत तरसाती हो । चलो आ जाओ , मैं ऊपर रूम में तुम्हारा इन्तजार कर रहा हूँ ।” “साब (साहब) , हमको डेट आई है “ “चुप हराम…..!!!! तुम क्यों गाली खाने का काम करता है ।हमने कहा ऊपर आओ तो ऊपर आओ , समझी ?” “जी” “कितना हसीन बाल है तुमको और ये कद ….माशा अल्लाह , हमको बाँध लो अपनी जुल्फों में लक्ष्मी…..आओ जल्दी आओ” मोहम्मद घिनौनी नजरों से उसके जिस्म का एक -एक इंच नाप कर ऊपर चला गया और पीछे लक्ष्मी आने वाले दिनों को सोचकर भयभीत हो गयी लेकिन चारा भी क्या था ? मोहम्मद के पास जाने से पहले रिहाना को बताना जरुरी था वरना उसकी ज्यादती और भयंकर हो जाती थी… “मैम ,हमें साहब बुला रहे हैं “ ” तो खड़ी क्यूँ है जाओ….सुन…..साली ख़बिज तुझमें ऐसा क्या है जो मोहम्मद मुझे छोड़कर तेरे पीछे…..जा ….अभी तो जा….लौट कर तो यहीं आना है !”रिहाना नशे में चूर थी ” मैम हमको डेट है” ” तो मखमल की चादर मंगवाऊं क्या बेगम साहिब के लिए ? जा मेरी नज़रों से दूर हो जा वर्ना …..मेरे खाविंद को बस में कर लिया है तूने…डायन….” रिहाना का चिल्लाना देखकर लक्ष्मी भीतर तक डर से काँप गयी । आगे कुआँ था और पीछे खाई…..आख़िर उसने अपनी जिन्दा लाश घसीट कर ऊपर की ओर बढ़ जाना ही मुनासिब समझा। रिहाना थोड़ी देर इधर उधर जलती निगाहों से देखती रही और फिर झटके से सीढियों की तरफ दौड़ी । फिर कुछ सोच कर रुक गयी और मोहम्मद के कमरे के बाहर यहाँ वहां टहलने लगी । जब उससे रहा नहीं गया तो वो की होल से भीतर झाँकने लगी । अंदर लक्ष्मी अधनंगे कपड़ो में हिंदी गाने पर नृत्य पेश कर रही थी ।मोहम्मद सोफे पर ढुलका हुआ था और शराब के जाम खींच रहा था । बीच – बीच में वो जोर से गाने के बोल कहते हुए नोट लुटाता… “ओ बेबी डौल तू सोने दी, डौल तू सोने दी…sss” रिहाना का गुस्से से दिमाग फटने लगा, उसका मन हो रहा था की अभी जाकर दोनों को शूट कर दे । जिस मोहम्मद से प्यार निभाने के लिए वो अपने अम्मी अब्बू को छोड़ आई थी वही मोहम्मद दूसरी लड़कियों के साथ अपनी रातें हसीं करता था । रिहाना ने जेब से सिगार निकाल कर लम्बे कश लगाना शुरू कर दिया , फिर बेचैन सी बार की तरफ चल दी । पन्द्रह मिनट में ही उसने तीन हार्ड पैक मारे और गाड़ी की चाभी उठा कर बाहर निकल गयी । *************** इतना बड़ा एयर पोर्ट देख कर चिन्ना रेड्डी की आँखे चुंधिया रही थी ।एक छोटे गाँव से निकल कर सीधा कुवैत की जमीं पर साँस लेने में उसके फेफड़े दुगने साइज के हो गए थे । उसकी आँखों ने दो पहचान के चेहरों को तो ढूंढ़ लिया था लेकिन जिस चेहरे की उसे तलाश थी वो कहीं नहीं था । ” लक्ष्मी एकड़ा पंडू (लक्ष्मी कहाँ है पंडू )” चिन्ना ने बेचैनी से अपने बचपन के दोस्त पंडू से पूछा ” लक्ष्मी रा लेदु , सेल्वू दोरकालेदेमो(लक्ष्मी नहीं आई , हो सकता है उसे छुट्टी न मिली हो) ” तनु नाकू फ़ोन लो वस्तानु अनि चेपंदी (वो फोन पर बोली थी की आऊँगी) “ ” इन्टिकी वेल्ली लक्ष्मी की फ़ोन चेदामले (घर चलो फिर लक्ष्मी को फोन करेंगे ) “पंडू ने … Read more