वसंत पर कविता – Hindi poem on vasant

वसंत यानी प्रेम का मौसम , पर हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता कि उसे उसका प्यार मिल ही जाए | ऐसे में वसंत और भी सताता है भावनाएं जब हद से ज्यादा दर्द देने लगती हैं तो लिख जाता है आँसू भरी आँखों से कोई प्रेम गीत   Hindi poem on vasant दिलों की बातें  आँसू कह जाते  ख़ुशी -दुःख में  पलकों की खिड़कियों से  झाँकते  दूसरों की  मन की दुनियां बहुत दूर जाने   बहुत दिनों बाद  मिलने पर  ऐसे ढुलकते आँसूं  जैसे गालों पर पड़ी हो ओंस  तब भीगता है  मन  उन आंसुओं  में से  कुछ आँसू ऐसे भी   जो बचाकर  रखें   यादों की किताबों में  जब याद आयी  खोली किताब  किस्से अक्षरों में लिखे  आंसुओं में घुल गए  धुल  गए  वसंत में कोयल गाने लगी  प्रेम के गीत  मन की खिड़कियों से  अब आँसू नहीं लुढ़कते  इंतजार  में सूख भी जाते  आँखों से  आँसू  वक्त को दोहराता  वसंत का मौसम  हर साल आता  मीठी आवाज कोयल के संग  जो मन की किताब के कोरे पन्नों में  टेसू की स्याही से  लिखने लग जाता प्रेम के गीत  संजय वर्मा “दृष्टी “ यह भी पढ़ें …… श्वेता मिश्र की पांच कवितायें रूचि भल्ला की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायेँ नए साल पर पांच कवितायें – साल बदला है हम भी बदलें आपको “वसंत पर कविता – Hindi poem on vasant “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | vasant ritu, love, poem on love

सुनो, तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे

घर की बालकनी की खिड़की खोली बाहर का दृश्य देख मुंह  से निकल पड़ा – देखो चीकू के पापा  कितना मनोरम दृश्य है । रोज की तरह रजाई ताने  बिस्तर से चीकू के पापा ने कहा – पहले चाय तो बना लाओं । और सुनों -अख़बार आगया  होगा वो भी लेती आना ।दुनिया में कई जगह ऐसी है जहाँ की प्रकृति खूबसूरत है । हर साल सोचते आए  की अब चले किन्तु जीवन की भाग दौड़ में समय निकालना मुश्किल ।  करवाचौथ के दिन मंजू  सज धज के पति का इंतजार कर रही थी |  शाम को घरचीकू के पापा   आएंगे तो  छत पर जाकर चलनी में उनका   चेहरा देखूँगी । मंजू ने गेहूँ की कोठी मे से धीरे से  चलनी निकाल कर छत पर रख दी थी । चूँकि गांव में पर्दा प्रथा की परंपरा होती है साथ  ही ज्यादातर काम सास -ससुर की सलाह लेकर ही करना ,संयुक्त परिवार में सब  का ध्यान भी रखना  और आँखों में शर्म का  पर्दा भी रखना  होता है ।  पति को  बुलाना हो तो पायल ,चूड़ियों की खनक के इशारों  ,या खांस  कर ,या बच्चों के जरिये ही खबर देना होती । चीकू के पापा  घर आए  तो साहित्यकार के हिसाब से वो मंजू  से मिले । कविता के रूप में करवा चौथ पे मंजू को कविता की लाइन सुनाने लगे -“आकाश की आँखों में /रातों का सूरमा /सितारों की गलियों में /गुजरते रहे मेहमां/ मचलते हुए चाँद को/कैसे दिखाए कोई शमा/छुप छुपकर जब/ चाँद हो रहा हो  जवां “। कविता की लाइन  और आगे बढ़ती इसके पहले माँ की आवाज अंदर से आई -“कही टीवी पर कवि सम्मेलन तो नहीं आ रहा ,शायद मै, टीवी बंद करना भूल गई होंगी । मगर  ,लाइट अभी ही गई और मै तो लाइट  का इंतजार भी कर रही हूँ फिर यहाँ आवाज कैसी आरही ।  फिर  आवाज  आई- आ गया बेटा । बेटे ने कहा -हाँ  ,माँ  मै आ गया हूँ  । अचानक लाइट  आगई ।  उधर सास अपने पति का चेहरा  देखने के लिए चलनी ढूंढ रही थी । किन्तु चलनी  तो मंजू बहु छत पर ले गई थी । और वो बात मंजू के  सास ससुर को मालूम न थी । जैसे ही मंजू  ने चीकू के पापा  का चेहरा चलनी में देखने के लिए चलनी उठाई ।  तभी नीचे से  मंजू की सास की  आवाज आई  –बहु चलनी देखी  क्या?  गेहूँ छानना है । बहू ने जल्दीबाजी  कर पति का और चाँद का चेहरा चलनी में देखा और कहा  –‘लाई  माँ ‘।चीकू के पापा ने फिर कविता की अधूरी लाइन बोली  –    “याद रखना बस /इतना न तरसाना /मेरे चाँद तुम खुद /मेरे पास चले आना ” ।  इतना कहकर चीकू के पापा भी मंजू  की पीछे -पीछे नीचे आ गए । अब मंजू की सासूं माँ , मंजू के ससुर को लकर छत पर चली गई । अचानक  सासूं माँ को ख्याल आया  कि  –लोग बाग  क्या कहेंगे ।  लेकिन प्रेम और आस्था और पर्व  उम्र को नहीं देखते   । जैसे ही  मंजू के ससुर का चेहरा चलनी में  देखने के लिए सास ने चलनी  उठाई। अचानक मंजू  ने मानो  चौक्का  जड़ दिया ।   वो ऐसे –  नीचे से मंजू ने सास की तरह  आवाज लगाई-” माजी आपने चलनी देखी  क्या ?” आप गेहूँ मत चलना में चाल  दूंगी । ये बात सुनकर   चलनी गेहू की कोठी में चुपके से कब आ गई कानों कान  किसी को पता भी न चला    । मगर ऐसा लग रहा था कि चाँद ऊपर से सास बहु के चलनी खोज  का करवाचौथ पर  खेल देख कर  हँस रहा था  और मानो जैसे  कह रहा  था ।  मेरी भी पत्नी होती तो मै भी चलनी में अपनी चांदनी का चेहरा देखता । करवाचौथ  की  रात मंजू श्रृंगार  से ऐसे लग रही थी । मानों कोई अप्सरा धरती पर उतरकर आई हो ।चीकू के पापा ने बड़े प्यार से पूछा -मंजू क्या मांगना चाहती हो । आज जो भी तुम कहोगी ,मुझे मंजूर होगा । परंतु ख़ुशी के मरे मंजू घूमने ले जाने वाली बात कहना ही भूल गई ।मंजू  कहा -सुनोजी ,आप मुझे नई  महँगी साड़ी कल ला कर  देना और वो भी  गुलाबी कलर वाली ।अपनी पड़ोसन के पास तो एक से एक महँगी साड़ियां है और मेरे पास एक भी नहीं । चीकू के पापा ने सोचा की -अच्छा हु हुआ ।  घूमने ले जाने वाली बात भूल गई और मै कम पैसे में इसकी बात को मान गया । यदि घूमने जाने का कहती तो मुझे ऑफिस से पार्ट फायनल से पैसा निकलना पड़ता और वो भी ज्यादा ।      मंजू ने धीरे से मस्का लगा कर कहा की -अजी सब गर्मियों की छुट्टियों में हिल स्टेशन पर जाते है । अब की बार सब साथ में चलेंगे । चीकू  के पापा  ने कहा की – इस बार मनाली का प्रोग्राम बनाएंगे । इतना कहना था की मंजू ने आखिर पूछ ही लिया -“सुनों ,तुम मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहे हो “ घर के आसपास घूमने जाने की बात फैल चुकी थी । तैयारियां और खरीददारी में कोई कसर बाकी नहीं रही । कुछ नगद तो कुछ उधार लेते वक्त लोगों को घूमने जाने वाली बात भी ख़ुशी के  मारे मंजू सबसे कहना नहीं भूलती ।मंजू सोचती , की अब की बार अपनी पड़ोसन को घूमने जाने वाली और वहां से आने के बाद ही इस बात का राज खोलूंगी । वे हर साल घूमके आती और वहां की खूबसूरती और मिलने वाली चीजों की तारीफ कई दिनों तक सबसे शेयर करती रहती । अबकी बार ढेरों सामान की खरीददारी और वहां के मनोरम दृश्यों की तस्वीरें अपने साथ लाऊंगी । ख्वाब सजाते सजाते घूमने जाने के दिन नजदीक आते गए । ससुराल से खबर आई की- सांस बीमार है एक बार देखने आ जाओं ।उनसे  ज्यादा  उम्र में चला फिरा  नहीं जाता और बीमार तो भला कैसे काम चलगा उनका  ।उनको  संभाल की भी तो आवश्यकता होती है ।  ये बात पडोसी ने खबर के तौर  पर उन तक भिजवाई थी ,उन्होंने अपना पडोसी धर्म निभाया ।  सुबह बैग तैयार कर ससुराल चल दिए ।  वहां साँस की तबियत के बारे में विस्तार से पूछा । सांस कहा जब तक साँस है तब तक आस है ।सास ने दामादजी से कहा की – मंजू को दामादजी महीने में एक आध बार मेरे पास भेज दिया करों । मन को सुकून मिल जाता है । दामाद बेचारा सोचने लगा की -मेरे समय पर खाने और ऑफिस जाने के अलावा बच्चों को स्कूल भेजने … Read more

कहाँ हो -मै बैंक /डाक घर में हूँ

संजय वर्मा ‘दृष्टि ‘ पुराने 500 व  1000  की करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं होने के बाद  नए 500 व् 2000 के करेंसी नोट के चलन से भ्रष्टाचार  ,नकली करेंसी रोकनेआदि हेतु कारगार साबित होगा  किन्तु कुछ व्यवहारिक परेशानी का सामना आम लोगो से लेकर खास लोगो  करना पड रहा है । धीरे धीरे इसका भी कुछ न कुछ समाधान अवश्य निकलेगा ही । टीवी पर करेंसी नोट बदलवाने व् पुराने करेंसी नोट बदलवाने की खबरे प्रसारित हो रही और  फेसबुक -वाट्सअप पर इसके त्वरित समाचार के लिए  और समाधान हेतु घर परिवार की नजरें ताजे समाचारों हेतु मानों पलक पावड़े लिए बैठी हुई है । तभी घर के अंदर से पति महोदय को पत्नी ने आवाज लगाई -नहा  कर बाजार से सब्जी -भाजी ले आओ किन्तु पति महोदय को लगा फेस बुक का चस्का । वे फेस बुक के महासागर में तैरते हुए मदमस्त हुए जा रहे । बच्चे पापा से स्कूल ले जाने की जिद कर रहे थे  की स्कूल  में देर हो जाएगी । काम की सब तरफ से पुकार हो रही मगर जवाब बस एक मिनिट । नाइस ,वेरी नाइस की कला में माहिर हो गए थे । मित्र की संख्या में हजारों  इजाफा से वे मन ही मन खुश थे किन्तु पडोसी को चाय का नहीं पूछते इसका यह भी कारण हो सकता उन्हें फुर्सत नहीं हो । दोस्तों में काफी ज्ञानी हो गए थे । मित्र भी सोचने लगे कि यार ये इतना ज्ञान कहा से लाया इससे पहले तो ये हमारे साथ दिन भर रहता और हमारी देखी  हुई फिल्म की बातें समीक्षा के रूप में सुनता रहता था । एक दिन मोहल्ले वाले मित्रों ने सोचा इनके घर चल कर के पता किया जाए ठण्ड में गरमागरम चाय भी मिल जायगी । मित्रों ने घर के बाहर लगी घंटी  दो चार बार बजाई । अंदर से आवाज आई जरा देखना कौन आया है ।  उन्हें उठ कर  देखने की  भी फुरसत नहीं मिल रहे थी । दोस्तों ने कहा यार आज कल दिखता ही नहीं क्या बात है । हमने सोचा कही बीमार तो नहीं हो गया हो इसलिए खबर लेने और करेंसी 500 ओर 1000 रूपये बंद होने और नए 500 व् 2000 की नै करेंसी नोट आगये की खबर देने भी  आये है ।पता नहीं दिख नहीं रहा तो शायद खबर मालूम न हो । घर में देखा तो भाभीजी वाट्सअप में अपने रिश्तेदारों को त्योहारों की फोटो सेंड करने में सर झुकाये तल्लीन और कुछ बच्चे भी इसी मे लगे थे । अब ऐसा लग रहा था की फेसबुक और वाट्सअप में जैसे मुकाबला हो रहा हो । घर के काम का समय मानो विलुप्तता की कगार पर जा खड़ा हुआ हो । सब जगह चार्जर लटक रहे थे । मोबाइल यदि कही भूल से रख दिया और नहीं मिला तो ऐसा लगता जैसे कोई अपना लापता हो गया हो और दिमाग में चिड़चिड़ापन ,हिदायते ,उभर कर आना  मानों रोज की आदत बन गई हो । चार्जिग करने के लिए घर में ही होड़ होने लगी । बैटरी लो होजाने   से सब एकदूसरे को सबुत पेश करने लगे । वाकई इलेक्ट्रॉनिक युग में प्रगति हुई किन्तु लोग रिश्तों और दिनचर्या में कम ध्यान देकर अधिक समय और सम्मान  फेस बुक और वाट्सअप और मोबाइल पर केंद्रित करने लगे है । उधर 500 और 1000 हजार की करेंसी बदलवाने की चिंता और नए मिलने वाले नोटों का इंतजार जिससे घर के रुके काम सुचारू रूप से गति पकड़ले । गांव -शहर में करेंसी  बदलवाने को ले जाते हुजूम से बैंक और डाकघर चर्चित हुए वही कोई परिचित किसी से पूछे की आप कहा हो। वो एक ही पता बता रहा है मै बैंक /डाक घर में हूँ ।  संजय वर्मा “दॄष्टि “ मनावर ( धार)  Attachments area

लक्ष्मीजी का आशीर्वाद

दीपावली के दिन लक्ष्मी ,गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है । विघ्न विनाशक ,मंगलकर्ता ,ऐश्वर्य ,भोतिक सुखों ,धन -धान्य ,शांति प्रदान करने के साथ साथ विपत्तियों को हरने वाले लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर का महापूजन अतिफलदायी होता है ।  प्राचीन ग्रंथों में लक्ष्मी जी के साथ अलक्ष्मी जी का भी उल्लेख मिलता है । अलक्ष्मी जी को “नृति “नाम से भी जाना जाता है तथा दरिद्रा के नाम से पुकारा जाता है । लक्ष्मी जी के प्रभाव का मार्ग धन -संपत्ति ,प्रगति का होता है वही अलक्ष्मीजी दरिद्रता ,पतन,अंधकार,का प्रतीक होती है । लक्ष्मी जी और अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )में संवाद हुआ । दोनों एक दूसरे का विरोध करते हुए कहने लगी -“में बड़ी हूँ । ” लक्ष्मीजी ने कहा कि देहधारियों का कुल शील और जीवन में ही हूँ । मेरे बिना वे जीते हुए भी मृतक के समान है ।  अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )ने कहा कि “में ही सबसे बड़ी हूँ ,क्योंकि मुक्ति सदा मेरे अधीन है । जहाँ में हूँ वहां काम क्रोध ,मद लोभ ,उन्माद ,इर्ष्या और उदंडता का प्रभाव रहता है । “ अलक्ष्मी(दरिद्रा ) की बात सुनकर लक्ष्मी जी ने कहा- मुझसे अलंकृत होने पर सभी प्राणी सम्मानित होते है । निर्धन मनुष्य जब दूसरों से याचना करता है तब उसके शरीर से पंच देवता -बुद्धि ,श्री ,लज्जा ,शांति और कीर्ति तुरंत निकलकर चल देते है । गुण और गोरव तबी तक टिके रहते है जब तक कि मनुष्य दूसरों के सामने हाथ नहीं फेलाता । अत: दरिद्रे ।. में ही श्रेष्ठ हूँ “। दरिद्र ने लक्ष्मीजी के दर्पयुक्त तर्क को सुनकर कहा-“जिस प्रकार मदिरा पीने से भी पुरुष को वेसा भयंकर नशा नहीं होता, जेसा तेरे समीप रहने मात्र से विद्वानों को भी हो जाता है । योग्य, कृतज्ञ ,महात्मा ,सदाचारी। शांत ,गुरू सेवा परायण ,साधु ,विद्वान ,शुरवीर तथा पवित्र बुद्धि वाले श्रेष्ठ पुरुषों में मेरा निवास है । तेजस्वी सन्यासी मनुष्यों के साथमे रहा करती हूँ । ‘ इस तरह विवाद करते हुए समाधान हेतु ब्रहमाजी के पास दोनों पहुंची ब्रहम्माजी ने कहा कि -पृथ्वी और जल दोनों देवियाँ मुझसे ही प्रकट हुई है । स्त्री होने के कारण वे ही स्त्री के विवाद को समझ सकती है । नदियों में भी गोतमी देवी सर्वश्रेष्ठ है । वे पीडाओं को हरने वाली तथा सबका संदेह निवारण करने वाली है । आप दोनों उन्ही के पास जाएँ । “ लक्ष्मी जी और दरिद्रा बड़ी कोन है के विवाद को सुलझाने हेतु गोतमी देवी के पास पहुँची । गोतमी देवी(गंगाजी )ने कहा कि ब्रह्श्री ,तपश्री ,यग्यश्री ,कीर्तिश्री ,धनश्री ,यशश्री ,विधा ,प्रज्ञा ,सरस्वती ,भोगश्री ,मुक्ति ,स्मृति ,लज्जा ,धृति ,क्षमा ,सिद्धि ,वृष्टि ,पुष्टि ,शांति ,जल ,पृथ्वी ,अहंशक्ति ,ओषधि ,श्रुति ,शुद्धि ,रात्रि ,धुलोक ,ज्योत्सना ,आशी ,स्वास्ति ,व्याप्ति ,माया ,उषा ,शिवा आदि जो कुछ भी संसार में विद्दमान है वह सब लक्ष्मीजी द्वारा व्याप्त है । ब्राहमण ,धीर क्षमावान ,साधु ,विद्द्वान ,भोग परायण तथा मोक्ष परायण पुरुषों जो -जो श्रेष्ठ सुंदर है वह लक्ष्मी जी का ही विस्तार है। दरिद्रा ,क्यों तू लक्ष्मीजी कके साथ स्पर्धा करती है । जा चली जा यहाँ से कहकर दरिद्रा को भगा दिया । इसी कारण तब से गंगाजी का जल दरिद्रा का शत्रु हो गया । कहते है कि तभी तक दरिद्रा का कष्ट उठाना पड़ता है जब तक गंगाजी के जल का सेवन न किया जाए । इसीलिए गंगाजी के जल में स्नान और दान करने से मनुष्य लक्ष्मीवान तथा पुण्यवान होता है ,साथ ही उस पर लक्ष्मीजी का आशीर्वाद भी बना रहता है । दिवाली के दीपक के प्रकाश में आत्ममंथन ,आत्मलोचन ,आत्मोउन्नति ,को प्राप्त करने की दिशा में अंधकार को उखाड़कर प्रकाश की राह पर चलने हेतु अन्यों को भी उन्नति -उजाले की रहा दिखाने का प्रयत्न करते आ रहे है । यही प्रकाश का आगमन ,आराध्य की तरह सर्वत्र पूजनीय तो है ही साथ ही लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर के स्वागत हेतु दीपों को जलाना दिवाली पर उनके आगमन के शुभ सूचक होते है ।  संजय वर्मा “दृष्टि 

अटल रहे सुहाग : सास -बहू और चलनी : लघुकथा : संजय वर्मा

                        करवाचौथ के दिन पत्नी सज धज के पति का इंतजार कर रही  शाम को घर आएंगे तो  छत पर जाकर चलनी में चाँद /पति  का चेहरा देखूँगी । पत्नी ने गेहूँ की कोठी मे से धीरे से चलनी निकाल कर छत पर रख दी थी । चूँकि गांव में पर्दा प्रथा एवं सास-ससुर  से ज्यादातर काम सलाह लेकर ही करना होता है संयुक्त परिवार में सब  का ध्यान भी  होता है । और आँखों में शर्म का  पर्दा भी   होता है { पति को कोई कार्य के लिए बुलाना हो तो पायल ,चूड़ियों की खनक के इशारों  ,या खांस  कर ,या बच्चों के जरिये ही खबर देना होती । पति घर आये तो साहित्यकार के हिसाब से वो पत्नी से मिले तो कविता के रूप में करवा चौथ पे पत्नी को कविता की लाइन सुनाने लगे -“आकाश की आँखों में /रातों का सूरमा /सितारों की गलियों में /गुजरते रहे मेहमां/ मचलते हुए चाँद को/कैसे दिखाए कोई शमा/छुप छुपकर जब/ चाँद हो रहा हो  जवां “। माँ आवाज सुनकर बोली कही टीवी पर कवि सम्मेलन तो नहीं आरहा ,शायद मै टीवी बंद करना भूल गई होंगी । मगर लाइट  तो है नहीं ।फिर  अंदर से आवाज  आई- आ गया बेटा । बेटे ने कहा -हाँ  ,माँ  मै आ गया हूँ  । अचानक बिजली आगई , उधर सास अपने पति का चेहरा  देखने के लिए चलनी ढूंढ रही थी किन्तु चलनी  तो बहु छत पर ले गई थी और वो बात सास ससुर को मालूम न थी । जैसे ही पत्नी ने पति का चेहरा चलनी में देखने के लिए चलनी उठाई  तभी नीचे से  सास की  आवाज आई  -बहु चलनी देखी  क्या?  गेहूँ छानना है । बहू ने जल्दीबाजी  कर पति का और चाँद का चेहरा देखा और कहा  -लाई  माँ ।पति ने फिर कविता की अधूरी लाइन बोली –    “याद रखना बस /इतना न तरसाना /मेरे चाँद तुम खुद /मेरे पास चले आना “इतना कहकर पति भी पत्नी की पीछे -पीछे नीचे आगया । अब सास ससुर को ले कर छत पर चली गई बुजुर्ग होने पर रस्मो रिवाजो को मनाने में शर्म भी आती है कि  लोग बाग   क्या कहेंगे  लेकिन प्रेम उम्र को नहीं देखता । जैसे ही  ससुर का चेहरा चलनी में  देखने के लिए सास ने चलनी  उठाई  नीचे से बहु ने आवाज लगाई-” माजी आपने चलनी देखी  क्या ?” आप गेहूँ मत चलना में चाल  दूंगी । और  चलनी गेहू की कोठी में चुपके से आगई । मगर ऐसा लग रहा था की चाँद ऊपर से सास बहु के पकड़म पाटी के खेल देख कर   हँस रहा था  और मानो जैसे  कह रहा  था कि मेरी भी पत्नी होती तो में भी चलनी में अपनी चांदनी का चेहरा देखता ।  संजय वर्मा “दृष्टि “

एक पाती भाई /बहन के नाम ( संजय वर्मा )

रक्षा बंधन के दिन आते ही बड़ी बहन की बाते याद आती है |बचपन मे गर्मियों की छुट्टियों मे नाना -नानी के यहाँ जाते ही थे जो आजादी हमें नाना -नानी के यहाँ पर मिलती उसकी बात ही कुछ और रहती थी | दीदी बड़ी होने से उनका हमारे पर रोब रहता था वो हर बात समझाइश की देती , बड़ी दीदी होने के नाते हमें मानना पड़ती थी | सुबह -सुबह जब हम सोये रहते तब नानाजी बाजार से इमरती लाते और फूलों के गमलों की टहनियों पर इमरतियो को टांग देते थे , हमें उठाते और कहते की देखों गमले मे इमरती लगी है हमे उस समय इतनी भी समझ नहीं थी की भला इमरती भी लगती है क्या ? दीदी ,नानाजी की बात को समझ जाती और चुप रहती |हम बन जाते एक नंबर के बेवकूफ | दीदी मुझे “बेटी- बेटा” फिल्म का गीत गाकर सुनाती – “आज कल मे ढल गया दिन हुआ तमाम तू भी सोजा ……” और मै दीदी का गाना सुनकर जाने क्यों रोने लग जाता था | जब की उस गाने की मुझमे समझ भी नहीं थी | दीदी मेरी कमजोरी को समझ गई जब भी मै मस्ती करता दीदी मुझे डाटने के बजाए गाना सूना देती और मै रोने लग जाता | नाना -नानी अब नहीं रहे | समय बीतता गया और हम भी बड़े हो गये मगर यादे बड़ी नहीं हो पाई | दीदी की शादी हो जाने से वो अब हमारे साथ नहीं है किन्तु बचपन की यादें तो याद आती ही है | रक्षा बंधन पर जब दीदी राखी मेरे लिए भेजती या खुद आती तो मुझे रुलाने वाला गाने की पंक्तिया गा कर सुनाती या लिख कर अवश्य भेजती और मै बचपन की दुनिया मे वापस चले जाता | और जब कभी रेडियो या टी.वी. पर गाना बजता/दिखता है तो आज भी मेरी आँखों मे बचपन की यादों के आंसू डबडबाने लग जाते है | ख़ुशी के त्यौहार पर रंग बिरंगी राखी अपने हाथो मे बंधवाकर , माथे पर तिलक लगवाकर ,मिठाई एक दुसरे को खिलाकर बहन की सहायता करने का संकल्प लेते है तो लगने लगता है कि पावन त्यौहार रक्षा बंधन और भी निखर गया है और मन बचपन की यादों को भी फिर से संजोने लग गया है| संजय वर्मा “दृष्टि ” १२५ ,शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर (धार )454446 atoot bandhan