मेरी माँ , प्यारी माँ , मम्मा .

                                                मेरी माँ , प्यारी माँ , मम्मा ..      माँ की ममता को कौन नहीं जानता और कोई परिभाषित भी नहीं कर पाया है। सभी को माँ प्यारी लगती है और हर माँ को अपना बच्चा प्रिय होता है। मेरी माँ भी हम चारों बहनों को एक सामान प्यार करती है। कोई भी यह नहीं कहती कि माँ को कौनसी बहन ज्यादा प्यारी लगती है, ऐसा लगता है जैसे उसे ही ज्यादा प्यार करती है। कभी -कभी  मुझे लगता है मैंने मेरी माँ को बहुत सताया है क्यूंकि मैं बचपन में बहुत अधिक शरारती थी।      मेरा जन्म हुआ तो मैं सामान्य बच्चों की तरह नहीं थी। मेरा एक पैर घुटने से भीतर की और मुड़ा  हुआ था।नानी परेशान थी ,लेकिन माँ …! वह तो गोद में लिए बस भाव विभोर थी। नानी रो ही पड़ी थी , ” एक तो दूसरी बार लड़की का जन्म ,उस पर पैर भी मुड़ा  हुआ कौन  इससे शादी करेगा कैसे जिन्दगी कटेगी इसकी …! “    माँ बोली , ” माँ तुम एक बार इसकी आँखे तो देखो कितनी प्यारी है …, तुम चिंता मत करो ईश्वर सब अच्छा करेगा। “   मेरी माँ में सकारात्मकता कूट-कूट कर भरी है , तभी तो हम चारों बहनों में भी यही गुण है। किसी भी परिस्थिति में हम डगमगाते नहीं है ।     खैर , मुड़ा हुआ पैर तो ठीक करवाना ही था। पहले सीधा कर के ऐसे ही कपडे से बाँध कर रखा गया। बाद में पैर को सीधा करने के लिए प्लास्टर किया गया जो की तीन महीने रखा गया।( अब तो माँ को भी याद नहीं है कि कौनसा पैर मुड़ा हुआ था।) तब तक मैं सरक कर चलने की कोशिश करने लगी थी।माँ बताया करती है कि मुझे पानी में भीगने का बहुत शौक था। माँ के इधर -उधर होते ही सीधे पानी के पास जा कर बैठ जाती , जिसके फलस्वरूप पानी पलास्टर के अंदर  चला जाता। अब उसके अंदर से तो पोंछा नहीं जा  सकता था। पानी की अंदर ही अन्दर बदबू होने लगी। रात को माँ के साथ ही सोती थी और सर्दियों में , रजाई में भयंकर बदबू असहनीय थी। लेकिन माँ ने वह भी ख़ुशी -ख़ुशी झेल लिया। माँ की ममता का कोई मोल नहीं चुका सकता है लेकिन मेरी माँ ने तो जो बदबू सहन की उसका मोल मैं कैसे उतारूँ , मेरे पास कोई जवाब नहीं है। मैंने अनजाने में ही बहुत तकलीफ दी है माँ को …!     जब बहुत छोटी थी तभी से मुझे भीड़ से बहुत डर  लगता था। माँ जब भी बस से सफर करती तो मैं भीड़ से डर  के माँ के  बाल अपनी दोनों मुट्ठियों में जकड़ लेती थी और घर आने तक नहीं छोडती थी। अब सोचती हूँ माँ को कितनी पीड़ा होती होगी। इस दर्द का कोई मोल है क्या …?      मेरी सारी शरारतें – बदमाशियां माँ हंस कर माफ़ कर देती। जबकि मैं अपनी छोटी बहन पूजा को बहुत सताया करती थी। खास तोर से चौपड़ के खेल मे तो जरुर ही पूजा रो कर -हार कर  ही खड़ी होती थी। हम चारों बहनें पढाई में हमेशा से अच्छी रहीं है। मुझे याद है जब मैं आठवी कक्षा में प्रथम आयी थी तो माँ ने गले लगा कर कितना प्यार किया था। और नवीं कक्षा में विज्ञान  मेले के दौरान मेरा माडल जिला स्तर पर प्रथम आया था औरआगे की प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए पापा ने जाने नहीं दिया था तो माँ ने समझाया था कि  मैं ना सही मेरा मॉडल  तो वहां गया ही है ना , नाम तो तुम्हारा ही होगा। माँ कभी उदास या रोने तो कभी देती ही नहीं है ।     जब हॉस्टल गयी तो माँ रो पड़ी थी कि अब घर ही सूना हो जायेगा क्यूंकि मैं ही थी जो कि घर में बहुत बोलती थी या सारा दिन रेडिओ सुना करती थी  और नहीं तो बहनों से शरारतें ही करती रहती थी। जब घर आती तो छोटी बहन शिकायत करती थी कि जब से मैं हॉस्टल गयी हूँ तब से माँ कोई भी खाने की वह चीज़ ही नहीं बनाती थी जो मुझे पसंद थी और बनाती भी तो वह खाती नहीं थी । माँ झट से कह देती कि यह तो मुझे बहुत पसंद है , माँ के तो गले से ही नहीं उतरेगी बल्कि बनाते हुए भी जी दुखेगा। अब मुझे खाने का भी बहुत शौक था तो अधिकतर चीज़ें मुझे पसंद ही होती थी।      जब बच्चे का भविष्य बनाना हो तो माँ थोड़ी सी सख्त भी हो जाती है। मेरा मन भी हॉस्टल में नहीं लगा , एक महीने तक रोती  ही रही कि मुझे घर ही जाना है यहाँ नहीं रहना। पापा को भी कई बार बुलवा लिया कि मुझे वहां से ले जाओ लेकिन माँ ने सख्त ताकीद की कि यदि वह घर आने की जिद करे तो बाप-बेटी को घर में आने की इजाज़त नहीं है। पापा ने भी मज़ाक किया कि मैं तो हॉस्टल में रह लूंगी लेकिन वे कहाँ जायेंगे इसलिए वो मुझे घर नहीं ले जा सकते।    लेकिन अब जब मैं खुद माँ हूँ और मेरे दोनों बेटे हॉस्टल में हैं तो मैं माँ होने का दर्द समझ सकती हूँ। माँ का दर्द माँ बनने के बाद ही जाना जा सकता है। लेकिन फिर भी माँ क़र्ज़ तो कोई भी नहीं उतार पाया है। माँ बन जाने के बाद भी। मैं चाहती हूँ कि माँ हमेशा स्वस्थ रहे और उनका आशीर्वाद और साया हमेशा हमारे साथ रहे। उपासना सियाग  अटूट बंधन ………… कृपया क्लिक करे 

भुलक्कडपन

वंदना बाजपेयी  पहले मैं अक्सर रास्ते भूल जाया करती थी,क्योंकि अकेले ज्यादा इधर -उधर जाने की आदत थी नहीं स्कूल -कॉलेज और घर ………बस  बात तब की है जब पति के साथ मायके गयी थी ,हमारी बेटी 6 महीने की थी ,किसी ने बताया की वहाँ एक बहुत अच्छे वैध है ,मैंने बेटी की खांसी के लिए उन्हें दिखाने के लिए पति से कहा ,एक दो दिन बीत गए पति परमेश्वर ने हमारी बात पर कोई तवज्जो ही नहीं दी। अपनी ही रियाया में हुक्म की ऐसी  नाफरमानी हमें सख्त नागवार गुजरी। हमने ऎलान कर दिया “आप अपनी दिल्ली की सल्तनत संभालिये यहाँ हमारे बहुत सारे भाई है कोई भी हमारे साथ चल देगा,मौके की नजाकत देखते हुए पति देव ने हमें सारा रास्ता समझा दिया। हमें बस इतना समझ में आया कि बड़े चौराहे से नाक की सीध में चलते हुए एक “साइन -बोर्ड “मिलेगा वहाँ से दायें ,बायें दायें ……कितना आसान …. वरीयता क्रम के हिसाब से हमने छोटे भाई को चुना। … यात्रा प्रारम्भ हुई ,उस समय हमें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था की किसी साजिश के तहत कानपुर के जिला धिकारी ने रातों -रात वो “साइन -बोर्ड “हटवा दिया है।  …हम आगे -आगे -और आगे बढ़ते गए,बीच -बीच में भाई पूछता जा रहा था “दीदी तुम्हारी नाक कितनी सीधी है ?हम उन्नाव से आगे निकल गए …. थोडा और बढ़ते तो सीधे दूसरे शहर ,हालाँकि दूसरे शहर में हमारे बहुत रिश्तेदार रहते है ,पर अगर किसी शहर में आपके १० रिश्तेदार हो और समयाभाव के कारण आप २ से न मिल पाये। तो धारा 302 के तहत प्रश्नों के फंदे पर तब तक लटकाया जायेगा जब तक जब तक सॉरी बोलते -बोलते जुबान दो इंच लम्बी न हो जाये ,लिहाजा हमने हथियार डालते हुए आँखों में आँसू भर कर कहा “भैया मैं भूल गयी “ चीईईईईईईईईईईईईईई कि आवाज के साथ भाई ने गाड़ी रोक कर कहा “दीदी तुम्हारे चरण कहाँ है ,मैं इसी वाक्य की प्रतीक्षा कर रहा था,दरसल जीजाजी ने हमें रास्ता समझाते हुए ,यह ताकीद कर दी थी कि “बेगम साहिबा को यह एहसास दिल दिया जाये ,कि वो रास्ते भूल जाती है “ ओह्ह्हह्ह्ह्ह ! हमारा आपना भाई विरोधी खेमे में मिल चुका था और अपनी ही सरजमी पर विदेशी राजा के हाथों हमारी शिकस्त हो गयी थी ,पर उस दिन से हमें समझ आया कि जो करना है हमें अपने दम पर करना है क्यूकि पति या भाई हम अबला नारियों का कोई अपना नहीं होता … यह भी पढ़ें … निर्णय लो दीदी क्या आत्मा पूर्वजन्म के घनिष्ठ रिश्तों की तरफ खींचती है वो पहला खत इंजीनीयर का वीकेंड और खुद्दार छोटू