समय पर काम शुरू करने के लिए अपनाइए 5 second rule

                                आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखा रही हूँ | दरअसल लिखने की तो इच्छा मन में चल रही थी पर आज , कल -आज कल में टल रहा था | जब भी लिखने का मन बनता सोचती चलो थोड़ी देर गप्प मार लेते हैं फिर लिखेंगे , या एक कप कॉफ़ी पी लेते हैं फिर लिखूँगी | मूड बनाने के चक्कर में कई बार किसी और काम में अटक जाती और जिस विचार पर लिखना चाहती वो टाटा … बाय -बाय करके चला जाता | धीरे -धीरे फ्रस्टेशन बढ़ने लगा | लगा कि लगता है अब लिख ही नहीं पाऊँगी | तभी मेरे हाथ लगा एक इंटरव्यू जो, मेल रॉबिन्स का था , जिसमें उन्होंने  ५ सेकंड रूल के बारे में बताया था | ये रुल मुझे इतना प्रभावी लगा की मैंने इसी विषय पर लिखने का मन बना लिया ताकि मेरे साथ -साथ आप का भी  काम सुचारू रूप से चले | जानते हैं समय पर काम शुरू करवाने वाले  5 second rule के बारे में                                      मित्रों मेरी तरह आप के साथ भी ऐसा कई बार होता होगा कि आप कोई काम शुरू करना चाहते हैं पर शुरू नहीं कर पाते | काम आजकल में टालता रहता है | मसलन … 1)सहेली की सासू माँ बीमार हैं देखने जाना है पर हफ्ता बीत गया सोचते -सोचते घर से निकल ही नहीं पाए | 2) क्लास में ही सोच लिया था कि गणित का ये चैप्टर आज ही खत्म करना है पर आज कल करते हुए एग्जाम ही आ गए अब तो मर -खप के करना ही है | 3) कई रोज पहले माँ ने कहा था कमरा ठीक करने को , आज माँ ने खुद ही कर दिया , तबियत ख़राब होने के बावजूद |                                  ऐसे कई उदाहरण हो सकते हैं पर सबसे महत्वपूर्ण है कि हम सोचते तो हैं कि ये काम करना है , उसे शुरू करने का संकल्प भी लेते हैं पर काम शुरू ही नहीं करते , टालते जाते हैं और समय बर्बाद करते जाते हैं ,इतना कि जीवन ही हाथ से निकल जाता है | क्या आप को पता है कि ऐसा करने के पीछे हमारे दिमाग का अहम् रोल होता है | काम को टालने की आदत का साथी है हमारा दिमाग                             हमारा दिमाग जिस पर हम इतना गर्व करते हैं वो ही काम को टालने की आदत के लिए जिम्मेदार है | आप जरूर जानना चाहेंगे कि कैसे ? दरसल हमारा दिमाग जब आराम कर रहा होता है या कुछ मनपसंद काम कर रहा होता है तो उसमें से एक केमिकल रिलीज होता है जिसे डोपामीन कहते हैं , इसके निकलते ही व्यक्ति ख़ुशी की अवस्था में आ जाता है | उससे वो किसी दूसरी अवस्था में जाने से इनकार कर देता है | इसे कम्फर्ट ज़ोन के तरीके से भी समझ सकते हैं | इसलिए जब कोई काम दिमाग में आता है , थोड़ी ही देर में दिमाग दलील देना शुरूकर देता है … अरे अभी क्या जरूरत है , थोड़ी देर में कर लेंगे | ये थोड़ी देर और थोड़ी देर , और थोड़ी देर और फिर इतनी देर में बदल जाती है कि काम शुरू करने की इच्छा ही खत्म हो जाती है | हम काम कैसे करते हैं                        ५ सेकंड रुल को जानने से पहले जरूरी है कि हम जान लें कि हमारा दिमाग काम कैसे करता है | दरअसल हमारा दिमाग दो तरह से काम करता है | पहला वो काम हैं जिन्हें हम रोज करते हैं …. वो ऑटो पायलट मोड में आ चुके होते हैं | जैसे स्कूल जाने के लिए तैयार होना , स्कूल या ऑफिस जाना , खाना बनाना या अन्य रोजमर्रा के काम जिन्हें हम सुबह उठ कर यंत्रवत करते जाते हैं | दूसरे श्रेणी में वो काम आते हैं जिन्हें हमें शुरू करना है , जिसके लिए हमें खुद को धक्का लगना पड़ता हैं | जैसे वजन कम करने के लिए जिम जाना शुरू करना है , नयी किताब शुरू करनी है या नया लेख लिखना शुरू करना है आदि -आदि |              दूसरी श्रेणी के कामों को पहली श्रेणी में लाने के लिए हमें उन कामों को कई दिन तक लगातार एक ही समय पर करना होता है जिससे वो ऑटो पायलट मोड में आ जाएँ ताकि हम उन्हें रोज आसानी से कर सकें | क्या है 5 second rule                          मेल रॉबिन्स के अनुसार जैसे ही आप के दिमाग में कोई काम करने का विचार आता है ठीक पांच सेकंड बाद दिमाग बहाने गढ़ना शुरू कर देता है कि थोड़ी देर बाद कर लेंगे , कल कर लेंगे आदि -आदि | यानी कि हमारे पास केवल 5 सेकंड होते हैं जिसमें हम वो काम शुरू कर दें तो दिमाग बहाना बना कर हमें रोक नहीं पायेगा | जैसे गणित का चैप्टर शुरू करना है तो तुरंत उठो और शुरू कर दो | जैसे कुछ सामन लेने ४ बजे जाना है , चार बजते ही निकल जाओ | जिम जाना है , समय होते ही पांच सेकंड के अन्दर निकल जाओ |                                   आप देखेंगे की इससे आपके सोचे हुए सब काम होने लगेंगे | मैंने स्वयं इस रुल को अपनाया , जैसे ही मेरा मन किया कि मैं इस विषय पर लिखूं मैं ५ सेकंड के अन्दर उठ कर लैपटॉप खोल कर लिखने लगी | अब देखिये लेख भी पूरा होने वाला है | आपने पढ़ा होगा की ज्यादातर सफल लोग जिस काम को सोचते हैं उसे उसी दिन शुरू कर देते … Read more

मेरी कीमत क्या है ?

                                         हर माँ अपने बच्चे से मेरा अनमोल रतन कहती है | हर व्यक्ति अपने परिवार के लिए बेशकीमती होता है, पर दुनिया उसे ऐसा नहीं मानती है | हर चीज को तोल -मोल कर खरीदने वाली दुनिया की नज़र में इंसान की भी कीमत है | ऐसे में अगर एक बच्चा अपने दादाजी के पास पूंछने चला जाता है कि मेरी कीमत क्या है? तो आश्चर्य की क्या बात है | एक प्रेरणादायक कहानी – प्रेरक कथा – मेरी कीमत क्या है ? एक बच्चा जो रोज अपने बड़ों को चीजों को कीमत के अनुसार खरीदते हुए देखता था , उसने एक दिन अपने दादाजी से पूंछा ,” दादाजी , दादाजी , मेरी कीमत क्या है ? दादाजी  उस समय बागवानी कर रहे थे , उनकी नज़र बाग़ में पड़े एक पत्थर पर थी | वो उसे  हाथो में उठा कर बहुत देर से देख रहे थे | बच्चे का प्रश्न सुन कर उन्होंने वो पत्थर अपने पोते को देते हुए कहा कि जाओ ये  पत्थर मार्किट में  ले जाओ और लोगों को दिखाओ , कोई इसे खरीदने को कहे तो कुछ बोलना नहीं बस दो अंगुली दिखा देना , वो जितनी कीमत बताये उसे आ कर मुझे बताना | बच्चा वहां जा कर खड़ा हो गया | एक औरत ने उसे देखा | उसने बच्चे से पूंछा तुम क्या ये पत्थर बेचने आये हो | बच्चे ने हाँ में सर हिलाया | वो बहुत देर तक उस पत्थर को देखती रही फिर बोली इस पत्थर को मैं  खरीदूंगी | मैं से अपनी सेंटर टेबल पर रखी प्लेट में और पत्थरों के साथ रखूंगी | इससे मेरी सेंटर टेबल की ख़ूबसूरती बढ़ जायेगी | तुम्हें इसके लिए कितने पैसे चाहिये? पढ़िए -गलतियों की सजा दें या माफ़ करें बच्चे ने दादाजी के कहे अनुसार दो अंगुलियाँ दिखा दी | महिला ने हंस कर कहा … ओह , ठीक है मैं तुम्हे इसके दो रूपये दूँगी | बच्चा पत्थर ले कर दादाजी के पास चला आया और उन्हें सारी बात बताई | दादाजी  ने कहा ,” अब मैं चाहता हूँ कि तुम इस पत्थर को म्यूजियम में ले जाओ |कोई इसकी कीमत पूंछे तो बस दो अंगुलियाँ दिखाना | बच्चा पत्थर ले कर भागता हुआ म्यूजियम चला गया | वहां  वह उस पत्थर को लेकर खड़ा हो गया | वहां कई आदमियों ने उस पत्थर को देखा | एक आदमी ने खरीदने की इच्छा जाहिर करी और उस बच्चे से उसकी कीमत पूँछी | बच्चे ने कुछ कहा नहीं बस दो अंगुलियाँ दिखा दी | आदमी ने कहा ठीक है , मैं इसके लिए तुम्हें २०० रुपये दूंगा | बच्चा फिर पत्थर ले कर दादाजी के पास आ गया | दादाजी ने कहा अब बस आखिरी बार मैं तुम्हे ये पत्थर ले कर शहर की सबसे प्रसिद्द ज्वेलरी शॉप में  भेज रहा हूँ , पर वहां भी तुम्हें बस अंगुलियाँ दिखानी हैं , कुछ बोलना नहीं है | बच्चा पत्थर ले कर चला गया | वहां उसने वो पत्थर दूकान के मालिक को दिखाया | दुकान का मालिक पत्थर देख कर बोला ,” अरे ये तो बहुत दुर्लभ पत्थर है , ये तुम्हें कहाँ से मिला ? मैं इसे लूँगा , तुम्हे इसकी कितनी कीमत चाहिए | पढ़िए -संता क्लॉज आयेंगे बच्चे ने फिर दो अंगुलियाँ दिखा दी | दुकान के मालिक ने कहा ,” मैं इसे २००००० रुपये में लूँगा | बच्चा आश्चर्य चकित हो गया | वो फिर पत्थर ले कर दौड़ता हुआ घर आया | उसने दादाजी को पत्थर देते हुए सारी घटना बतायी | दादाजी बोले ,” बेटा क्या अब तुम्हें समझ आ गया कि तुम्हारी कीमत क्या है ?  हम सबके अन्दर एक कीमती हीरा है , लेकिन अगर तुम अपने को ऐसे लोगों से घिरा रखोगे जो तुम्हे केवल दो रुपये का समझते हैं तो तुम जिंदगी भर अपने को दो रूपये का समझते रहोगे | इसलिए अपनी प्रतिभा का विकास करते हुए ऐसे स्थान पर जाओ जहाँ लोगो की नज़र में तुम बेशकीमती हो , वहीँ तुम्हारी कद्र होगी और वहीँ पर तुम अपने जीवन की सही वैल्यू  पाओगे | इसलिए याद रखना कि हर कोई बेशकीमती है बस फर्क हमारे आस -पास के लोगों के नज़रिए का होता है | अब बच्चे को अपनी कीमत समझ आ गयी थी | –                     ———————————————————————– एक नज़र अपनी कीमत पर –  मित्रों अब जरा इसे अपने ऊपर रख कर समझिये | मान लीजिये आपको बागवानी बहुत अच्छे से आती है , लेकिन आप ऐसे मुहल्ले में रहते हैं जहाँ किस के पास लॉन तो छोडिये गमला रखने का भी स्थान नहीं है | अब आप लाख बताते रहे कि इस पौधे में ये खाद पड़ती है , वो बेल ऐसे लगती है , ये पौधा अब फल देता है , लोग आपकी बात सुनेगे ही नहीं , उन्हें लगेगा आप किताब से पढ़ कर ज्ञान झाड़ते हैं और उनका समय बर्बाद करते हैं | , उनका समय कीमती है और आप फ़ालतू हैं इसलिए बस गप्प हांकते हैं | अब राधा और सोनिया को ही लें | राधा  और सोनिया दोनों कोखाना बनाने का शौक था | दोनों अक्सर नयी -नयी डिश बना कर देखती | बड़े होने पर राधा ने एक होटल में और सोनिया ने एक हॉस्पिटल में कुक की नौकरी शुरू कर दी | राधा जब भी नयी डिश बनती , या पुरानी डिश को अच्छे से सजाती उसे खूब वाहवाही मिलती | उसका काम लोगों को और होटल के मालिक को नज़र आने लगा | उसकी तनख्वाह बढ़ने लगी | कुछ समय बाद उसने उससे बड़े होटल में नौकरी शुरू कर दी … फिर उससे बड़े .. | सोनिया मरीजों के लिए खाना बनाती | उसे ज्यादातर मूंग की दाल की खिचड़ी , दलिया , दाल का पानी बनाना पड़ता | क्योंकि मरीजों को भूंख नहीं लगती वो उसके खाने में कमी निकालते ( हमने भी अपने घरों में ऐसे  बुजुर्ग देखे हैं जो बीमार होने पर घर की औरतों को दोष … Read more

वाटर मैंन ऑफ़ इंडिया राजेन्द्र सिंह -संकल्प लो तो विकल्प न छोड़ो

                                 क्या आप ने कभी कोई संकल्प लिया है … जैसे सुबह जल्दी उठने का चार घंटे रोज मैथ्स लगाने का या मॉर्निंग वाक , मेडिटेशन, वजन घटाना आदि करने का | अवश्य लिया होगा और ज्यादातर लोगों की तरह सम्भावना है कि आप का ये संकल्प टूट भी गया होगा | क्योंकि  सोचा होगा कि  चार घंटे रोज़ पढने के स्थान पर तीन घंटे  भी तो पढ़ा जा सकता है या कभी मित्र के आ जाने पर  या मूवी देखने वाले दिन कुछ भी नहीं पढ़ा जा सकता है | आज वाक  का मन नहीं है कल जायेंगे , कल ज्यादा कर लेंगे | मेडिटेशन में तो ध्यान भटक जाता है …. क्यों  रोज करें , पार्क में शांत बैठना अपने आप में मेडिटेशन है | अरे डाईट कंट्रोल से वजन तो घटता हीओ नहीं फिर क्यों मनपसंद खाने के लिए मन मारे                                                      ये सब कोई बड़े संकल्प नहीं हैं … बहुत छोटे हैं … फिर भी टूट जाते हैं | कहने का मतलब ये है कि हम बहुत सारे संकल्प लेते और तोड़ते रहते हैं | क्या आप जानते हैं कि सिर्फ और सिर्फ यही हमारी असफलता का राज है |  आज हम बात करेंगे “ Water man of  India” के नाम से जाने जाने वाले राजेन्द्र सिंह जी की जिन्होंने अपने संकल्प से राजस्थान को हरा-भरा बनाने का प्रयास किया है | अनेकों पुरूस्कार जीत चुके राजेन्द्र जी वर्षों गुमनामी में चुपचाप बस अपना काम करते रहे | उनसे जब उनकी सफलता का राज पूंछा जाता है तो वो हमेशा यही कहते हैं कि लोगों को संकल्प नहीं लेने चाहिए , लेकिन अगर संकल्प ले लिया है तो फिर उसके सारे विकल्प बंद कर देने चाहिए और उसी संकल्पित काम में जुट जाना चाहिए | ये वाक्य खुद राजेन्द्र सिंह ने एक सेमीनार में  साझा किया है , जिसे हम अपने शब्दों में आप तक पहुँचाने का प्रयास कर रहे हैं |  आइये जाने उनकी कहानी-  वाटर मैंन ऑफ़ इंडिया राजेन्द्र सिंह -संकल्प लो तो विकल्प न छोड़ो                                                      कहते हैं की जहाँ चाह  है वहां राह है | राजेन्द्र सिंह उत्तर प्रदेश के बागपत निवासी थे | उनका जन्म ६ अगस्त १९५९ को हुआ था | उन्होंने हिंदी साहित्य में स्नातक की डिग्री ली थी | उनके पिता जमींदार थे | उनके पास ६० एकड़ जमीन थी | राजेन्द्र सिंह को कोई दिक्कत नहीं थी | वो आराम से जीवन यापन कर सकते थे परन्तु वो समाज के लिए कुछ करना चाहते थे | उन्होंने १९७५ में एक संस्था ” तरुण भगत सिंह बनायीं | अच्छी नौकरी को छोड़ कर अपना सब कुछ २३००० रुपये में बेंच कर समाज के लिए कुछ करने की अंत: पुकार उन्हें  घर से बहुत दूर अलवर के एक छोटे से गाँव में ले गयी | एक निश्चय के साथ  ” water man of India ” अपने चार दोस्तों के साथ अलवर के छोटे छोटे से गाँव में गए | वो चारों  गाँव में शिक्षा का प्रचार करना चाहते थे , परन्तु गाँव में कोई पढ़ने  को तैयार ही नहीं था | राजेन्द्र सिंह व् उनके दोस्त बहुत हताश हुए |  एक दिन गाँव के एक बूढ़े व्यक्ति ने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा ,” हमारे घर की औरतें पानी लेने के लिए २५ -२५ किलोमीटर दूर जाया करती हैं | अगर तुम लोग पानी की समस्या का समाधान कर सको तो मैं वचन देता हूँ कि तुम जो कहोगे , गाँव के सब लोग मानेगें | राजेन्द्र सिंह ने उन्हें समझाने की कोशिश की , कि वो तो शिक्षक हैं वो कैसे ये काम कर सकते हैं | पर बुजुर्ग बोले ,” अब जो है सो है , मैंने तो अपनी शर्त रख दी |  तुम लोगों को खाना मिलेगा व् रहने की जगह मिलेगी पर पैसे हम नहीं दे पायेंगे , अब ये तुम पर है या तो हाँ बोलो और काम शुरू करो या वापस लौट जाओ | उन बुजुर्ग ने उन्हें पानी लाने का रास्ता भी बताया | बुजुर्ग ने कहा की हमारे गाँव में ये जो पहाड़ है , उसे काट कर तुम्हें नहरे बनानी हैं व् नीचे गाँव में तालाब बनाना है | जब बादल आयेंगे तो पहाड़ से टकरा कर बरसेंगे, जिससे नहरों से होता हुआ पानी तालाब में इकट्ठा होगा और हम उसे पीने में इस्तेमाल करेंगे | ये पानी जमीन के अन्दर भी जाएगा जिससे वाटर टेबल उठेगा | जिससे भविष्य में हमारे गाँव में कुए भी खोदे जा सकेंगे |और पानी की समस्या से जूझ रहा हमारा गाँव ल्लाह्लाहा उठेगा |   राजेन्द्र सिंह का संकल्प और प्रारंभिक अडचनें  राजेन्द्र  सिंह ने अपने साथियों से बात की | जाहिर है काम बहुत कठिन था , परन्तु उससे लोगों का बहुत भला किया जा सकता था | काफी सोच –विचार के बाद उन्होंने निर्णय लिया कि वो ये काम करेंगें | उन्होंने उन बुजुर्ग व्यक्ति को अपना निर्णय सुना दिया | बुजुर्ग व्यक्ति ने खुश हो कर उनके रहने की व्यवस्था कर दी | अगले दिन सुबह से काम पर जाने का निश्चय हुआ | रात में वो पाँचों सोने चले गए | रात के करीब दो बजे होंगे कि राजेन्द्र सिंह के दो दोस्तों ने उन्हें उठाया और कहा कि, भैया तुम तो बहुत हिम्मत वाले हो तुम शायद ये काम कर सको पर हम लोगों के अन्दर इतना motivation नहीं है | हम ये काम नहीं कर पायेंगे | राजेन्द्र सिंह व् उनके दोनों साथियों ने  जाने वाले साथियों को बहुत समझाया | विनती की , “रुक जाओं , ये एक अच्छा काम है , देखो अगर हम  हम पांच लोग ये काम करेंगें तो शायद काम ५, ६ सालों में हो जाए पर अगर हम तीन लोग ही करेंगे तो काम होने में १५ , १६ साल लग … Read more

खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग

      और क्या चल रहा है आजकल .? क्या बताये मरने की भी फुरसत नहीं, और आपका, यही हाल मेरा है , समय का तो पता ही नहीं चलता , कब दिन हुआ , कब रात हुई … बस काम ही काम में निकल जाता है | दो मिनट सकूँ के नहीं हैं |                               दो लोगों के बीच होने वाला ये सामान्य सा वार्तालाप है , समय भगा चला जा रहा है , हर किसी के पास समय का रोना है ,परन्तु सोंचने की बात ये है कि ये समय आखिर चला कहाँ जाता है | क्या हम सब इतने व्यस्त हैं या खुद को इतना व्यस्त दिखाना चाहते हैं | खुद को अतिव्यस्त दिखाने का मनोरोग                                        मेरी एक रिश्तेदार हैं , जिनके यहाँ मैं जब भी जाती हूँ , कभी बर्तन धोते हुए , कभी खाना बनाते हुए या कभी कुछ अन्य काम करते हुए  मिलती हैं ,और मुझे देख कर ऐसा भाव चेहरे पर लाती हैं कि वो बहुत ज्यादा व्यस्त है उन्हें एक मिनट की भी बात करने की फुरसत नहीं है | उनके घर जा कर हमेशा बिन बुलाये मेहमान सा प्रतीत होता है | कभी फोन करो तो भी उनका यही क्रम चलता है | परिवार में सिर्फ तीन बड़े लोग हैं , फिर भी उनको एक मिनट की फुर्सत नहीं है | कभी -कभी मुझे आश्चर्य होता था कि वही काम करने के बाद हम सब लोग कितना समय खाली बिता देते हैं या अन्य जरूरी कामों में लगाते हैं पर उनके पास समय की हमेशा कमी क्यों रहती हैं |  मुझे लगा शायद मेरे जाने का समय गलत हो , परन्तु और लोगों ने भी उनके बारे में यही बात कही तो मुझे अहसास हुआ कि वो अपने को अतिव्यस्त दिखाना चाहती हैं | मनोवैज्ञानिक अतुल नागर के अनुसार हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर अपनी सेल्फ वर्थ सिद्ध करना चाहते हैं |                           अभी कुछ समय पहले अमेरिका में एक ऑफिस में सर्वे किया गया | लोग जितना काम करते हैं उसकी उपयोगिता  को पैमाने पर नापा गया | देखा गया सिर्फ २ % लोग अतिव्यस्त हैं बाकी २० % के करीब प्रयाप्त व्यस्त की श्रेणी में आते हैं , बाकी 78 % लोग ऐसे कामों में खुद को व्यस्त किये थे जिसकी कोई उपयोगिता नहीं है या वो ऑफिस के काम की गुणवत्ता बढ़ने में कोई योगदान नहीं देता है | ये सब लोग अपने को अतिव्यस्त दिखने का प्रयास कर रहे थे |                                                                      क्या आप ने कभी गौर किया है कि आज कामकाजी महिलाओं के साथ -साथ घरेलू महिलाओं के पास भी समय की अचानक से कमी हो गयी है |  छोटा हो या बड़ा  हर कोई समय नहीं है का रोना रोता रहता है | ये अचानक सारा समय चला कहाँ गया | पहले महिलाएं खाली समय में आचार , पापड , बड़ियाँ आदि बनती , स्वेटर बुनती , कंगूरे  काढती थीं , लोगों से मिलती थी , रिश्ते बनती थीं | | आज महिलाएं ये सब काम बहुत कम करती हैं , फिर भी उनके पास समय का आभाव रहता है | वो बात -बात पर समय का रोना रोती हैं | आज जब की घरेलू कामों को करने में मदद कर्ण वाली इतनी मशीने बन गयी है तो भी आज की महिलाएं पहले की महिलाओं की तुलना में ज्यादा व्यस्त कैसे हो गयी हैं | रीना जी का उदाहरण देखिये वो खुद को अतिव्यस्त कहती हैं …वो सुबह ६ बजे उठती हैं ,वो कहतीं है वो बहुत व्यस्त हैं | कॉलोनी के किसी काम , उत्सव , गेट टुगेदर के लिए उनके पास समय नहीं होता | जबकि  घर में सफाई वाली बाई व् कुक लगी है | उनका  टाइम टेबल इस प्रकार है | सुबह एक घंटे का मोर्निंग वाक एक घंटे मेडिटेशन दो घंटे घर के काम एक घंटे नहाना धोना पूजा करना दो घंटे फेसबुक दो घंटे लंच के बाद सोना शाम को एक घंटे वाक एक घंटे जिम दो  घंटे स्पिरिचुअल क्लास में जाना दो घंटे टी.वी शो देखना खाना – पीना सोशल साइट्स पर जाना और सो जाना                                      जाहिर है कि उन्होंने अपने को व्यस्त कर रखा है , लेकिन दुखद है कि वो कॉलोनी की अन्य औरतों को ताना मारने से बाज नहीं आती कि उनके पास समय की कमी है , वो बेहद  बिजी हैं | आखिर वो ऐसा क्यों सिद्ध करना चाहती हैं ? एक व्यक्ति के अपने भाई से रिश्ते महज इसलिए ख़राब हो गए क्योंकि उसे लगा कि वो जब भी अपने भाई को फोन करता है वो हमेशा बहुत व्यस्त हूँ कह देता है , कई बार तो यह भी कह देता है कि अपनी भाभी से बात कर लो , मैं उससे पूँछ लूँगा | धीरे धीरे उस व्यक्ति को लगने लगा कि भाई अति व्यस्त दिखा कर उसकी उपेक्षा कर रहा है , उसे कहीं न कहीं ये महसूस करा रहा है की वो तो खाली बैठा है | ये बात उसे अपमान जनक लगी और उसने फोन करना बंद कर दिया | पिछले १५ सालों से उनमें बातचीत नहीं है |  क्या हमारे सारे रिश्ते अति व्यस्त होने की वजह से नहीं खुद को अतिव्यस्त दिखाने की वजह से खराब हो रहे हैं | एक तरफ तो हम अकेलेपन की बात करते हैं , इसे बड़ी समस्या बताते  हैं , दूसरी तरफ हम खुद को अतिव्यस्त दिखा कर उन् से खुद दूरी बनाते हैं | क्या ये विरोधाभास आज की ज्यादातर समस्याओं की वजह नहीं है |  खुद को अतिव्यस्त दिखा कर … Read more

गलतियों की सजा दें या माफ़ करें

                            सीमा जी मेरे पास बैठ कर आधे घंटे से अपनी एक सहेली की बुराई कर रही थी , जिसने अपने बेटे की शादी में उन्हें देर से कार्ड देने की गलती कर दी थी  , हालांकि उसकी सहेली ने कहा था कि कार्ड बाँटने का काम उसने स्वयं नहीं किया था | उन्होंने अपने एक सम्बन्धी को कार्ड व् गेस्ट लिस्ट पकड़ा दी थी , जब उन्हें उनकी गलती का पता चला तो शादी वाले दिन तमाम कामों में से समय निकाल कर स्वयं उनके घर उन्हें बुलाने गयीं, पर सीमा के हलक के नीचे ये तर्क  उतर नहीं रहा था |                                        ये समस्या सिर्फ सीमा की नहीं है | हममें से कई लोग किसी दूसरे की गलती या खुद की गयी गलती को माफ़ नहीं कर पाते | उसकी नाराजगी या कसक जीवन भर पाले रहते हैं | सबंधों में दूरी बढ़ा  कर हम दूसरे व्यक्ति या खुद को सजा दे रहे होते हैं , जिसका खामियाजा हमें अपने स्वास्थ्य और ख़ुशी की कुर्बानी के रूप में देना  पड़ता है | हर गलती सजा देने के लायक नहीं होती | अलबत्ता कुछ गलतियाँ  सजा की हकदार होती है | क्या ये जरूरी नहीं कि हम समझ लें कि किन गलतियों पर सजा दी जाये किन पर नहीं | गलतियों के लिए  सजा दें या माफ़ करें                                              गलतियों के लिए  सजा दें या माफ़ करें पर बात करने से पहले मैं आप को छोटे से दो उदहारण दूंगीं  | नन्हा सोनू डॉल हॉउस बना कर खेल रहा था | उसने  करीब एक घंटे की मेहनत से डॉल हाउस बनाया था | तभी उसका बड़ा भाई मोनू स्कूल से आया | वो एक छोटा सा प्लेन उठा कर दौड़ -दौड़ कर उसे उड़ाने लगा | इसी क्रम में वो सोनू के डॉल हॉउस से टकरा गया | डॉल हाउस टूट गया | सोनू जोर -जोर से रोने लगा | रोने की आवाज़ सुन कर उनकी माँ तृप्ति वहाँ आई | स्थिति समझ कर वो सोनू को समझाने लगी ,” भैया ने जानबूझकर कर नहीं तोडा है , भूल से हुआ है , कोई बात नहीं मैं तुम्हारे साथ लग कर अभी दुबारा बना देती हूँ | तृप्ति सोनू के साथ डॉल हॉउस बनाने लगी व् उसने मोनू को दूसरे कमरे में खेलने को कह दिया | थोड़ी देर में मोनू भी सोनू के साथ खेलने लगा | मुकेश जी के दोस्त सुरेश जी उनसे कई बार मिलने को कह चुके थे | मुकेश जी अपने व्यापर में इतने व्यस्त थे कि चाहते हुए भी समय नहीं  निकाल पाए | एक दिन अचानक उनके पास खबर आई कि कार एक्सीडेंट में सुरेश जी की मृत्यु हो गयी है | 35 साल के सुरेश जी का यूँ चले जाना किसी सदमें से कम नहीं था , पर मुकेश जी के मन में दर्द के साथ -साथ एक गिल्ट या अपराधबोध भी भर गया | उन्हें लगा उनसे बहुत बड़ी गलती हुई है | वो अपने मित्र के लिए समय नहीं निकाल पाए | इस अपराधबोध के कारण वो अवसाद में चले गए , व्यापार धंधा , घर-परिवार सब चौपट हो गया | समझें गलती हुई है या की है                                    जब भी कोई गलती करता है या हमसे खुद ही कोई गलती हो जाती है तो हम दोष देना शुरू कर देते हैं | किसी को आरोपी सिद्ध कर देना समस्या का समाधान नहीं है | ऐसे मौकों पर हमें देखना चाहिए कि गलती की है या हो गयी है | अगर जानबूझ कर गलती किहे तो ये एक अपराध बनता है | अगर अनजाने में हो गयी है तो उसके लिए क्षमा कर देना अपने व् उस रिश्ते के लिए बेहतर है | जैसा कि सोमू की माँ ने मोनू  को गलत न मान कर किया | वहीँ मुकेश जी जो ये कल्पना भी नहीं कर सकते थे कि उनका मित्र इतनी जल्दी दुनिया से चला जाएगा , उसके जाने के बाद खुद को व् अपने व्यापर को दोषी समझने लगे | काम से अरुचि हुई व् व्यापार ठप्प हो गया | . खुश रहना चाहते हैं तो एक दूसरे की मदद करें  जब भी कोई दूसरा गलती करे तो पहले ये पता लगाने का प्रयास करें कि गलती की है या अनजाने में हो गयी है | अगर दूसरे से अनजाने में गलती हो गयी है | उसका इरादा आप को ठेस पहुँचाने का या आप का नुक्सान करने का नहीं था तो उसे क्षमा कर दें |   अगर आप से कोई गलती  अनजाने में हो गयी है तो खुद को भी क्षमा कर दें | मान के चलें कि इंसान गलतियों का पुतला है , गलतियाँ   हो जाती हैं | इस गलती से सबक लें और जिंदगी में आगे बढें | जब जानबूझ कर गलती की जाये                                                 जब कोई जानबूझ कर गलती करे तो उसे सजा अवश्य दें | क्योंकि अगर तब सजा नहीं दी जायेगी तो वो व्यक्ति फिर से गलती करेगा | बार -बार की गयी गलतियाँ उसे सुधरने का मौका नहीं देंगी और एक न एक दिन वो रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा | पर सजा गलती के अनुसार ही होनी चाहिए जैसे .. आप विद्यार्थी हैं व् आपका  मित्र आपसे नोट्स ले लेता है परन्तु आप को जरूरत पड़ने पर नहीं देता है , या आप की पढ़ाई  का तरीका जान लेता है पर अपना तरीका आप से शेयर नहीं करता है | ऐसे में आप भी उसके साथ वही व्यव्हार करिए , ताकि उसे समझ आ सके कि अगर वो आपसे दोस्ती चाहता है तो उसे भी … Read more

खुश रहना चाहते हैं तो एक दूसरे की मदद करें

    एक बार पचास लोगों का ग्रुप किसी सेमीनार में हिस्सा ले रहा था। सेमीनार शुरू हुए अभी कुछ ही मिनट बीते थे कि स्पीकर ने अचानक ही सबको रोकते हुए सभी प्रतिभागियों को गुब्बारे देते हुए बोला , ”आप सभी को गुब्बारे पर इस मार्कर से अपना नाम लिखना है।” सभी ने ऐसा ही किया। अब गुब्बारों को एक दूसरे कमरे में रख दिया गया। स्पीकर ने अब सभी को एक साथ कमरे में जाकर पांच मिनट के अंदर अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने के लिए कहा। सारे प्रतिभागी तेजी से रूम में घुसे और पागलों की तरह अपना नाम वाला गुब्बारा ढूंढने लगे। पर इस अफरा-तफरी में किसी को भी अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिल पा रहा था। पांच मिनट बाद सभी को बाहर बुला लिया गया। स्पीकर बोला, ”अरे! क्या हुआ, आप सभी खाली हाथ क्यों हैं? क्या किसी को अपने नाम वाला गुब्बारा नहीं मिला?” नहीं! हमने बहुत ढूंढा पर हमेशा किसी और के नाम का ही गुब्बारा हाथ आया।” एक प्रतिभागी कुछ मायूस होते हुए बोला। “कोई बात नहीं, आप लोग एक बार फिर कमरे में जाइये, पर इस बार जिसे जो भी गुब्बारा मिले उसे अपने हाथ में ले और उस व्यक्ति का नाम पुकारे जिसका नाम उस पर लिखा हुआ है।“ स्पीकर ने निर्देश दिया।                 एक बार फिर सभी प्रतिभागी कमरे में गए, पर इस बार सब शांत थे और कमरे में किसी तरह की अफरा-तफरी नहीं मची हुई थी। सभी ने एक दूसरे को उनके नाम के गुब्बारे दिए और तीन मिनट में ही बाहर निकले आये। स्पीकर ने गम्भीर होते हुए कहा, ”बिलकुल यही चीज हमारे जीवन में भी हो रही है। हर कोई अपने लिए ही जी रहा है, उसे इससे कोई मतलब नहीं कि वह किस तरह औरों की मदद कर सकता है , वह तो बस पागलों की तरह अपनी ही खुशियां ढूंढ रहा है, पर बहुत ढूंढने के बाद भी उसे कुछ नहीं मिलता, दोस्तों हमारी खुशी दूसरों की खुशी में छिपी हुई है।  जब तुम औरों को उनकी खुशियां देना सीख जाओगे तो अपने आप ही तुम्हंे तुम्हारी खुशियां मिल जाएँगी और यही मानव-जीवन का उद्देश्य है।” हमारा विश्वास है कि मानव जाति की एकता में सभी की खुशहाली, शान्ति, एकता तथा समृद्धि निहित है। अन्तर्राष्ट्रीय खुशी दिवस-परस्पर सहयोग की भावना ही है सच्ची ख़ुशी  want to be happy-help other’s-in Hindi                 संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 2012 में प्रतिवर्ष 20 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय खुशी दिवस मनाने की घोषणा की। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य विश्व के सभी व्यक्तियों तथा बच्चों के जीवन में खुशहाली, एकता, शान्ति तथा समृद्धि लाना है। हमारा मानना है कि मानव जाति की एकता में ही सारे जगत की प्रसन्नता निहित है। इसके लिए सारी धरती पर यह विचार फैलाने का समय अब आ गया है कि मानव जाति एक है, धर्म एक है तथा ईश्वर एक है। हमारा मानना है कि धार्मिक विद्वेष, शक्ति प्रदर्शन के लिए शस्त्रों की होड़ तथा साम्राज्य विस्तार की नीति से आपसी बैर-भाव पैदा होते हैं जबकि मानव जाति की एकता में सारे जगत की खुशहाली निहित है। हम विगत 60 वर्षों से बच्चों की शिक्षा के माध्यम से एक न्यायप्रिय विश्व व्यवस्था के लिए प्रयासरत हैं। हमारा लक्ष्य शिक्षा के माध्यम से एक युद्धरहित संसार विकसित करके विश्व के दो अरब से अधिक बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित करना है।  (1)  चिन्ता चिता के समान होती है:-                 मनुष्य का जीवन सदैव से अनेक चिन्ताओं से ग्रसित रहा है। चिता तो मृत व्यक्ति को जलाती है, लेकिन चिंता की अग्नि जीवित व्यक्ति को ही जलाकर खाक कर देती है। इसलिए कहा जाता है कि चिन्ता चिता के समान होती है। चिन्तायें कई प्रकार की होती हैं जो कि जीवन का सुख-चैन समाप्त करने में लगी रहती हैं। जैसे- बच्चे, स्वास्थ्य, शिक्षा, कैरियर, भविष्य, पद, व्यवसाय, मुकदमा, शादी-ब्याह, मान-सम्मान, कर्जा, बुढा़पा आदि से जुड़ी चिंतायें। चिंताओं से ग्रसित व्यक्ति के लक्षण तनाव, कुंठा, क्रोध, अवसाद, रक्तचाप, हृदय रोग आदि के रूप में दिखाई देते हंै। चिंताओं से बुरी तरह ग्रसित व्यक्ति की अंतिम मंजिल आत्महत्या, हत्या या अकाल मृत्यु के रूप में प्रायः दिखाई देता है। ये दुःखदायी स्थितियाँ हमारी शारीरिक, भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विकास में एक बड़ी बाधा बनती हैं। #ये ख़ुशी आखिर छिपी है कहाँ (2) एक शुद्ध, दयालु हृदय धारण करना:-                 आत्मा के पिता परमात्मा की सदैव यह चिन्ता रहती है कि मेरे को दुःख हो जाये किन्तु मेरी संतानों को कोई दःुख न हो। परमात्मा अपनी संतानों के दुःखों को दूर करने के लिए स्वयं धरती पर राम, कृष्ण, बुद्ध, ईशु, मोहम्मद, महावीर, नानक, झूले लाल,  बहाउल्लाह आदि अवतारों के माध्यम से अवतरित होता हैं। ये अवतार संसार से जाने के पूर्व गीता, रामायण, वेद, कुरान, बाइबिल, गुरू ग्रन्थ साहिब, त्रिपटक, किताबे अकदस, किताबे अजावेस्ता आदि जैसी पवित्र पुस्तकें हमें देकर जाते हैं। इन पुस्तकों का ज्ञान हमें अपनी सभी प्रकार की चिन्ताओं को प्रभु को सौंपकर चिंतामुक्त होने का विश्वास जगाता है। सभी चिन्ताओं को प्रभु को सौंपने के बाद हमारी केवल एक चिंता होनी चाहिए कि मैं सौगंध खाता हूँ, हे मेरे परमात्मा! कि तूने मुझे इसलिए उत्पन्न किया है कि मैं तुझे जाँनू और तेरी पूजा करूँ। तुझे जानने का अर्थ है कि तेरी शिक्षाओं को जाँनू और तेरी पूजा करने का अर्थ है कि तेरी शिक्षाओं पर चलँू। एक शुद्ध, दयालु एवं ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित हृदय धारण करके पवित्र ग्रन्थों की गहराई में जाना परमात्मा रूपी चिकित्सक से अचूक इलाज का यह सबसे सरल तरीका है। (3) मनुष्य को केवल एक ही चिन्ता करनी चाहिए:-                 मैंने एक बार अपनी चिन्ताओं की लिस्ट बनाने का विचार किया तथा इन चिन्ताओं की लिस्ट बनाने पर जब मैंने उनकी गिनती की तो वे 215 तक पहुँच गयी थी। इसके थोड़ी देर के बाद ही मंैने महसूस किया कि इसमें अभी कुछ चिन्तायें लिखनी छूट गयी हैं। तब घबराहट में मेरे अंदर विचार आया कि जब चिन्तायें इतनी ज्यादा हैं तो उनकी लिस्ट बनाने से क्या फायदा? इसलिए प्रिय मित्रों, मनुष्य की केवल एक ही चिन्ता होनी चाहिए कि वह अपने प्रत्येक कार्य के द्वारा परमात्मा की इच्छा का पालन कर रहा है या नहीं? इसके बाद मनुष्य को अपनी सारी चिन्ताओं को परमात्मा को सौंप देना चाहिए। हमारा … Read more

अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये -how to improve your memory and concentration

बच्चों की एग्जामिनेशन सिरीज में आज हम बच्चों के लिए याददाश्त व् एकाग्रता बढ़ने के टिप्स ले कर आये हैं |क्योंकि ये टिप्स दिमाग की कार्यविधि पर निर्भर हैं इसलिए ये केवल बच्चों के काम के ही नहीं हैं इसे गृहणी , ऑफिस में काम करने वाले , व्यापर करने वाले या कोई भी अन्य काम करने वाले अपना  सकते हैं | exam के दिन आने वाले हैं बच्चे अक्सर मुझसे पूछते हैं अपनी concentration power कैसे बढ़ाये | हम कैसे थोड़ी देर में ज्यादा याद कर कर लें , कैसे हमें पढ़ा हुआ याद रहे | क्योंकि ये बच्चों के लिए बहुत जरूरी विषय है इसलिए मैंने इस पर लेख लिखने का मन बनाया | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता कैसे बढ़ाये how to improve your memory and  concentration यादाश्त व् एकाग्रता बढाने के लिए आपको सबसे पहले समझना होगा कि हमारा दिमाग कैसे काम करता हैं |हमारा दिमाग एक मेमोरी बैंक की तरह काम करता है , इसे समझने के लिए हम अपने दिमाग को तीन हिस्सों में बाँट सकते हैं या कह सकते हैं कि दिमाग की तीन लेयर होती है ( हालांकि मैं ये स्पष्ट करना चाहती हूँ कि ब्रेन एनाटोमी  में ऐसे कोई लेयर नहीं होती है , इसे brain की psychology के आधार पर सबसे पहले फ्रायड ने तीन लेयर मॉडल  प्रस्तुत किया ,उस समय भले ही इसे नहीं समझा गया पर धीरे -धीरे इसे व्यापक स्वीकार्यता मिली | ये तीन लेयर हैं … conscious mind या चेतन मन  sub conscious mind या अवचेतन मन  unconscious mind या अचेतन मन                                   इसे समझने के लिए एक त्रिभुज का इस्तेमाल भी कर सकते हैं | त्रिभुज में सबसे ऊपर का हिस्सा चेतन मन है जो दिमाग का केवल 10 % है , इसका काम रोजमर्रा के अनुभव लेना है जो पांच इन्द्रियों द्वारा लिए जाते हैं | ये  उसी के आधार पर जयादातर काम करता है | इसे कह सकते हैं कि ये जहाज का कप्तान है जो निर्णय लेता है , कई निर्णय तुरंत लेता है और कई निर्णय लेने में ये पूर्व सूचनाओं की मदद लेता है | पूर्व सूचनाएं दिमाग की नीचे की लेयर्स में होती हैं | ये ही वो हिस्सा है जो बाहरी दुनिया से बोल कर , देख कर , लिख कर आदि आदि तरीकों से संपर्क स्थापित करता है |  उसके बाद अवचेतन मन आता है जो सबसे बड़ा हिस्सा है | ये दिमाग का करीब 50 -60 % होता है | इसमें वो यादें इकट्ठा होती है है जो हाल की हैं , जो चेतन मन ने देखा सुना महसूस किया है वो यादें इसमें स्टोर हो जाती हैं | जब चेतन मन को किसी जानकारी की जरूरत होती है तो वो  अवचेतन मन से ले लेता है | अवचेतन मन सोंचता नहीं है वो केवल स्टोर करता है |   फिर आता है अचेतन मन  जो कि 30-40% होता है , इसमें पुरानी गहरी यादें दबी होती हैं , जिन्हें हमे लगता है कि हम भूल गए , पर जरूरत पड़ने पर वो याद आ जाती हैं | इसके आलावा यहाँ हमारी आदतें व् विश्वास रहते हैं | हम नहीं चाहते हुए भी वही  करते हैं जो कि बचपन में हमारी आदत व् विश्वास के रूप में वहां इकट्ठा है | कई बार आपने देखा होगा कि  जो किशोर पुत्र अपने पिता का बात -बात पर विरोध करता है पर बड़ा होने पर वह भी पिता की तरह ही हो जाता है , क्योंकि तब उसका चेतन मन तर्क करना बंद कर देता है और अचेतन मन वही फीड बैक देने लगता है जो बचपन में स्टोर हुआ था | यहाँ पर ख़ास बात ये है कि अचेतन का अर्थ बेहोश नहीं है , ये केवल एक नाम दिया हुआ है |                            कम्प्यूटर की भाषा में चेतन मन की बोर्ड और मोनिटर है , अवचेतन मन RAM है और अचेतन मन हार्ड डिस्क है |  कैसे काम करते हैं ये तीनों मन   दिमाग के तीनों हिस्से आपस में मिल कर काम करते हैं , यानि इस तरह से चेतन मन जो फैसला लेता है वो अपने अचेतन  , व् अवचेतन से सूचनाएं निकाल -निकाल कर लेता है | ये तालमेल सरवाइवल के लिए जरूरी है |                                    इसका सबसे सटीक उदाहरण Infant stage है | एक छोटा बच्चा  जिसका चेतन मन पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ है वो अवचेतन व् अचेतन मन में स्टोर मेमोरी के आधार पर निर्णय लेता है … जैसे वो समझ लेता है की बोतल की निपल से उसका पेट भरता है माँ की गोदी में वो सुरक्षित महसूस करता है या रोने पर कोई उसके पास आता है |  बड़े होने पर चेतन मन किसी निर्णय को लेने से पहले अपने राडार अवचेतन मन तक घुमाता है जिसमें हाल की मेमोरी स्टोर होती है, वहां से पूर्व अनुभव के आधार पर वह ज्ञान लेता है और फिर फैसला लेता है | अचेतन मन में गहरे स्थित विश्वास व् आदतें होती हैं,   जिन्हें बदलना आसान नहीं है | अपनी याददाश्त व् एकाग्रता  बढ़ाने के लिए क्या करें                                                                  दिमाग की तीन हिस्सों को जानने  के बाद हमें ये समझना होगा कि दिमाग कैसे चीजों को याद रखता है | सोंचिये जब हम सुबह से  अपने स्कूल , ऑफिस या कहीं और जाते हैं तो न जाने कितनी चीजें हमें दिखाई देती हैं , न जाने कितनी गाड़ियाँ , घर , लोग … चेतन मन उन्हें देखता है , पर क्या वो सब हमें याद रहता है … नहीं | दरअसल अगर हमें सब याद रहने लगे तो भी दिमाग पगला जाएगा | इसलिए चेतन मन केवल जरूरी डेटा ही स्टोर करता है | ये जरूरी डेटा स्टोर करने के … Read more

चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्टडी टिप्स

                                      आज चेतन भगत को लोग एक “बेस्ट सेलर ” लेखक के रूप में जानते हैं , वो फिल्में भी बना रहे हैं , इसके अलावा वो लोगों को motivate करने के लिए बहुत सारे सेमीनार भी  अटेंड करते हैं , स्पीच देते हैं ,लोग उन्हें बुलाते हैं , सुनना चाहते हैं  ये सब सिर्फ एक बेस्ट सेलर लेखक या फिल्म मेकर की वजह से की वजह से नहीं है ,ये उस सफलता की वजह से है जो उन्हें हर क्षेत्र में मिली है | एक लेखक , फिल्म मेकर के अलावा  चेतन भगत के पास IIT व् IIM की डिग्री है |  ये वो डिग्रियां है जिनके पीछे आज देश के आधे से ज्यादा युवा भाग रहे हैं , यानि वो आल राउंडर हैं | इसीलिये  सब चेतन भगत को सुनना चाहते हैं उनसे टिप्स लेना चाहते है कि वो जीवन में सफल कैसे हो | लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि चेतन भगत के हाई स्कूल में केवल 76 % मार्क्स आये थे | 76 % से IIT , IIM, बेस्ट सेलर ऑथर और फिल्म मेकर तक का सफ़र करने वाले चेतन भगत अपने को जीनियस नहीं मानते , वो अपने को मेडियोकर स्टूडेंट ही मानते हैं | उनका कहना है कि उनके जैसा हर स्टूडेंट अपने जीवन में सफल हो सकता है , बस उसे अपनी स्ट्रेटजी पर ध्यान देना होगा | ऊपर  से देखने में I.I.T, नावेल लिखना , माउंट अवेरेस्ट पर चढ़ना , मैराथन जीतना या वजन घटाना अलग -अलग लगे , पर इन सभी लम्बी रेस को जीतने के टिप्स सामान है , इसलिए उनकी नज़र में सफलता कैसी भी हो उसके सूत्र एक ही हैं | आज हम चेतन भगत के कुछ ऐसे ही स्टडी टिप्स स्टूडेंट्स के लिए लाये हैं | अगर आप किसी और क्षेत्र में प्रयास कर रहे हैं तो उस क्षेत्र में भी इन्हीं टिप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं | चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्टडी टिप्स  motivational speech for students by chetan bhagat                                                          चेतन भगत अक्सर वो किस्सा शेयर करते हैं जो उनके 76 % मार्क्स हाई स्कूल में आने के बाद हुआ | चेतन भगत घर आये , उनकी माँ व् मामा बैठे हुए थे | दोनों दुखी थे , जैसे की कोई बहुत बड़ा शोक का माहौल हो | कुछ देर उसे देखने के बाद मामा बोले , ” दीदी ये कुछ न कुछ तो कर  ही लेगा , जिन्दगी तो चला ही लेगा |” फिर उन्होंने चेतन भगत की ओर देखते हुए कहा “क्यों , कुछ तो कर लेगा न “? चेतन भगत ने हाँ  में सर हिलाया फिर वो अपने कमरे में आ गए | उस दिन उन्हें पहली बार लगा कि उनकी ” औकात ” केवल जैसे -तैसे कुछ न कुछ कर लेने की है | उन्हें समझ में आ गया की वो अपनी जिंदगी में कुछ भी बड़ा नहीं कर पायेंगे | अब क्या करें ?…. बहुत देर तक सोंचने के बाद उनके दिमाग में ख्याल आया कि वो एसटीडी बूथ खोल लेंगे , उस समय एसटीडी बूथ बहुत चलते थे , घर फोन करने के लिए लाइन लगा कर लोग खड़े होते थे | सुबह उठ कर उन्होंने मामा को यही बता दिया कि वो एसटीडी बूथ खोलेंगे | मामा ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा ,” ठीक है , इतना तो तुम कर ही लोगे |” ये एक  वाक्य चेतन भगत के मन में बैठ गया , उन्हें लगा कि उन् पर ठप्पा लग गया है , बेटा तुम इससे ज्यादा कुछ कर ही नहीं सकते |” उसी समय उनके दिमाग में दूसरा ख्याल आया कि अगर उन्हें इस ठप्पे को हटाना है तो उन्हें एक्स्ट्रा एफर्ट लगाने होंगे | उन्होंने अपने दोस्तों से बात की पता चला IIT का एग्जाम बहुत  प्रतिष्ठित है , पर इसके लिए दो साल तक कड़ी तैयारी करनी पड़ती है | चेतन भगत ने मन बना लिया कि अपनी औकात का लेवल बदलने के लिए मुझे ये एग्जाम पास करना ही है | उन्होंने मेहनत की और वो सफल हुए … उस दिन मामा फिर आये | वो बहुत खुश थे | उन्होंने कहा , ” मुझे पता था कि ये लड़का एक न एक दिन जरूर कुछ बड़ा करेगा | चेतन भगत कहते हैं कि हम सब जीवन में जब कभी असफल हो जाते हैं तो लोग , परिवार  समाज हमारे ऊपर ठप्पा लगा देता है कि “ये नहीं कर सकता “| अब हमारे पास दो रास्ते होते हैं – 1) हम ये मान लें कि हमसे नहीं हो सकता … इससे हम अपने कम्फर्ट ज़ोन में रहेंगे , ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी , ज्यादा सफल भी नहीं होंगे | 2) जब लोग कहे कि इसकी औकात इतनी ही है तो ज्यादा एफर्ट लगा कर अपनी औकात बदल लें | ये वैसा ही है जैसे  इलेक्ट्रान … हाई एनर्जी में जाने के लिए एनर्जी अब्सोर्ब करनी पड़ती है | आपको मेहनत  में खुद को अब्सोर्ब कर देना होगा | चेतन भगत की स्टूडेंट्स के लिए स्ट्रेटजी प्लान                                        चेतन भगत कहते हैं कि कोई भी सफलता किसी लम्बी मेहनत का नतीजा होती है | इसके लिए एक स्ट्रेटजी प्लान करनी पड़ती है | हम दिन में बहुत सारे छोटे -छोटे काम करते हैं , जैसे आज कमरा साफ़ करना है , या सब्जी लानी है या आज कोई खास डिश बनानी है | कई बार इन कामों को करने का मन होता है , कई बार नहीं होता है … अमूमन ये हर काम दो -तीन घंटे ले लेता है | ऐसे में जब मन नहीं होता है तो हम खुद को मोटिवेट करते हुए कहते हैं … अरे यार कर लेते हैं, कल अपना ही प्रेशर कम हो जायेगा , या … Read more

जब भगवान् राम ने पढ़ाया कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण पाठ

                                आप सोंच रहे होंगे प्रभु श्री राम  , मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, कौशल्या नंदन श्रीराम  दया के सागर  भगवान् राम का कार्पोरेट जगत से क्या मतलब हो सकता है| ये सोंचना ठीक वैसा ही है जैसे  सेब के नीचे गिरने का गुरुत्वाकर्षण से क्या संबंध हो सकता है| युनिवर्सल लॉ एक समान ही होते हैं, एक सामान ही काम करते हैं | हमारे सभी धार्मिक ग्रन्थ छोटी -छोटी कथाओं के माध्यम से जीवन के वो पाठ पढ़ाते  हैं जो कार्पोरेट ही क्या जीवन के हर क्षेत्र में काम करते हैं |  चाहे वो रिश्ते हों या राजनीति या फिर कार्पोरेट जगत , परन्तु हम धार्मिक किताबों को धर्म के रूप में ” पूजा टाइम ” में पढ़ कर रख देते हैं ,उनमें दिए गए गहन दर्शन को न तो समझने की कोशिश करते हैं न ही उनसे लाभ उठा पाते हैं | आपको ये जान कर आश्चर्य होगा की हमारे इन्ही ग्रंथों से सूत्र निकाल -निकाल कर आज कार्पोरेट जगत में इस्तेमाल किये जा रहे हैं , M .BA में पढाये जा रहे हैं | आज एक ऐसे ही पाठ की चर्चा करेंगे , जिससे आप अपने व्यवसाय , अपने परिवार के मुखिया के तौर पर रिश्तों में और एक नेता के रूप में अपनी पार्टी या संगठन में इस्तेमाल करेंगे तो  आपके व्यापार , परिवार और संघटन का विकास निश्चित है |       जब भगवान् राम ने पढ़ाया कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण पाठ                                बात तब की है जब प्रभु राम की सेना संमुद्र के   इकट्ठी थी | लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बनाने की तैयारी कर रही थी | सभी वानर बड़े- बड़े भारी-भारी  पत्थर उठा कर समुद्र में डाल रहे थे | उसी समय  गिलहरी जिसकी क्षमता मुश्किल से ५० ग्राम भर उठाने की    थी , १००    ग्राम भर का कंकण बड़ी मेहनत से  कर ला रही थी | तभी  वानर ने उसे देख लिया वो जोर से हँसा  , उसने गिलहरी से कहा ,” अरी गिलहरी ये क्या कर रही है | ये पुल तो बड़े -बड़े पत्थरों से बनेगा , तेरे इस कंकण का भला क्या होगा , तू बेकार ही इसे उठाये घूम रही है |  परे हट , कहीं हम लोगों के पैर के नीचे दब   कर मर न  जाए , कहते हुए उसने गिलहरी को उठा कर दूर फेंक दिया | सारे वानर हँसने लगे | गिलहरी लगभग उडते हुए भगवान् राम के चरणों के पास आ कर गिरी | गिलहरी की आँखों में आँसू थे | उसे अपने फेंके जाने  दुःख नहीं था , उसे लग रहा था   कि भगवान् राम का काम करने में वो असमर्थ है | भगवान् राम ने गिलहरी को  उठाया , उसकी पीठ पर हाथ फेरा , कहते हैं उसी से उसकी पीठ पर तीन धारियाँ बनी | भगवान् राम उसे उठा  कर वानरों के पास आये और उनसे कहा तुमने गिलहरी के योगदान को कम कैसे कहा | उसका योगदान तुमसे भी ज्यादा है |    किसी भी कार्य में सबसे महत्वपूर्ण भावना है | उसी दिन भवान राम ने एक महत्वपूर्ण सूत्र दिया भगवान्र राम ने वानरों से कहा तुम पर्वत  उठा सकते हो पर उठा केवल बड़े -बड़े पत्थर ही रहे हो और ये गिलहरी जो केवल  ५० ग्राम ही उठा सकती थी वो १०० ग्राम यानी अपनी क्षमता से दोगुना उठा रही है , और तुम अपनी क्षमता से आधा काम कर रहे हो | देखना सिर्फ तुम्हारे बड़े पत्थरों से ही पुल न बनेगा उसके उठाये छोटे कंकण भी पुल को बनाने में बहुत काम आयेंगे | और यही हुआ  भी | बड़े पत्थरों से पुल तो बन गया पर उनके    बीच के गैप गिलहरी जैसे छोटे-छोटे जानवरों के द्वारा उठाये गए पत्थरों से ही  भरे | पढ़िए -सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन कैसे है ये कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण पाठ                                               भगवान् राम की इस कथा से कार्पोरेट जगत का महत्वपूर्ण सूत्र निकला …  आपके द्वारा किया गया कार्य          ……………………………………..        X  100 आपकी कार्य क्षमता अब गिलहरी की क्षमता ५० ग्राम वजन उठाने की थी वो १०० ग्राम उठा रही थी , तो फोर्मुले के अनुसार 100 —-   X  100= २०० %    गिलहरी अपनी क्षमता का २०० % दे रही थी | 250               ये फार्मूला कार्पोरेट जगत में  इस तरह से काम करता है कि एक अच्छे  कम्पनी लीडर की ये खासियत है कि वो अपनी कम्पनी से हर सदस्य से उसकी क्षमता का  सर्वाधिक उपयोग करवा ले | इसके लिए जरूरी है कि वो उसकी   काम करने की इच्छा को पहचाने | हो सकता है कि शुरू में उसके पास इतनी क्षमता न हो , प्रतिभा न हो पर अगर  उसमें इच्छा है तो इन दोनों चीजों का विकास हो सकता है |  इसलिए उनकी इच्छा को पहचानना और उसे इनाम् देकर  प्रोत्साहित करना टॉप लीडर का गुण होना चाहिए | कई बार टॉप लीडर अपनी कंपनी के कुछ प्रतिभाशाली नेतृत्व की शिकार हो जाती है जो अपनी क्षमता का आधा ही दे रहे होते हैं | ये वो लोग है जो सोंचते हैं कम्पनी उन पर टिकी है , ये छोटे प्रतिभाशाली लोगों को पनपने का मौका ही नहीं देते | वो निराश हो जाते हैं उनकी इच्छा शक्ति खत्म हो जाती है |  कई बार बड़ी पोस्ट पर बहुत प्रतिभाशाली लोगों के बैठने के बावजूद कम्पनी घाटे में चली जाती है क्योंकि हर काम का महत्व होता है | छोटे लेवल पर उतासहीनता  के कारण हर छोटा काम देर से होता है कम अच्छा होता है उसका असर पूरी कम्पनी पर पड़ता है | ( यहाँ एक बात खास है कि अगर कोई टॉप पोस्ट पर बैठा व्यक्ति अपना २०० % दे रहा है तो उसके महत्व को अगर कम आँका गया … Read more

काम के शुरूआती महीने और आप की मानसिकता – power of mind set in Hindi

                                  जब भी हम कोई काम शुरू करते हैं तो शुरूआती महीने बहुत महत्वपूर्ण होते हैं | ये काम चाहे आपकी नयी किताब का लेखन हो, एग्जाम की तयारी हो या किसी बिजनेस या ऑफिस के नौकरी या प्रोमोशन पाने के लिए किये जाने वाले काम की शुरुआत | हम जब भी कोई काम करते हैं तो हमें दो चीजों पर ध्यान देना होता है | पहली अपनी मानसिक शक्ति पर दूसरा अपनी कार्य कौशल पर | सफलता के लिए वैसे तो ये दोनों जरूरी  हैं पर शुरूआती दौर में मानसिक शक्ति, मनोबल या मानसिक सोंच  (mind set) की ज्यादा जरूरत होती है ,कार्यकौशल (skill) धीरे -धीरे बढाया जा सकता है | इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि आपकी मानसिक शक्ति या सोंच  (will ) वो जड़ है जो आपसे काम करवाती है , और कार्यक्षमता वह पेड़ है जिस पर सफलता के फल लगते हैं| ये बात मैं बार -बार इसलिए दोहरा रही हूँ ,क्योंकि अगर शुरुआत में पर्याप्त सफलता न मिलने पर आपकी मानसिक सोंच कमजोर पड़ जाती है आप निराश हो जाते हैं  तो काम को बीच में तो काम को बीच में ही छोड़ देते हैं ऐसा करके  आप सारी संभावनाओं को ही नष्ट कर देते हैं|        किसी काम की शुरूआती महीने और  आप की मानसिकता     -power of mind set during first few months of a  work (in Hindi )  रीता और उसकी सहेलियों एक छोटा सा काम शुरू किया| काम था केक बनाने का , पाँचों सहेलियां एक -एक दिन बारी -बारी से किसी एक के घर इकट्ठी होती | सब मिल कर कर केक बनाते , आर्डर लाने का प्रयास करते और जहाँ से आर्डर आया , वहाँ  सही समय पर पहुंचाते | कुकिंग उन सब का शौक था , केक को अलग -अलग तरीके से बनाने के उनके कुछ इनोवेटिव आईडिया थे , नए -नए प्रयोग करके उन्हें काम करने में मज़ा आ रहा था | शुरू में कुछ आर्डर मिले , इनमें से ज्यादातर आर्डर उनके जान -पहचान वालों के ही थे , पर थोड़ी सी इनकम शुरू हुई , और प्रशंसा ढेर सारी  मिली |                                              छोटे -छोटे आर्डर मिलते ४ -६ महीने बीत गए | प्रॉफिट  बहुत बढ़ा ही नहीं |  जैसा की अक्सर किसी नए काम को शुरू करने पर होता है उन सब ने सोंचा था उनका काम बहुत तेजी से चलेगा , खूब सारे पैसे आयेंगे | उन पैसों से वो क्या -क्या खरीदेंगी इसकी भी योजना उन्होंने बना ली थी| परन्तु आर्डर ज्यादा आये नहीं | निराशा बढ़ने लगी, काम से मन हटने लगा | उन सब को लगा रोज -रोज केक बना कर आर्डर का इंतज़ार करने से अच्छा है घर बैठों | लगता है हमारी किस्मत में कमाना लिखा ही नहीं है | थोड़ी बहुत आपसी फूट भी शुरू हो गयी | सबने काम बंद होने का निर्णय ले लिया | कुछ सहेलियाँ मूड ठीक करने अपने मायके चली गयीं | काम बंद होने के ठीक 15 दिन बाद शहर के एक बड़े व्यापारी ने एक बहुत विशाल केक का आर्डर किया जो उन्हें अगले ही दिन चाहिए था | दरसल व्यापारी की बेटी  ने अपनी किसी सहेली के यहाँ उनका केक खाया था | उसे बहुत अच्छा व् अलग लगा इसलिए वो चाहती थी कि उसके जन्मदिन पर वही  केक बने | इसके लिए उसने विशेष रूप से रीता का नंबर माँगा था | अगर उस पार्टी में रीता के ग्रुप का केक जाता तो उसका बहुत  अच्छा प्रचार होता क्योंकि उस पार्टी में बड़े -बड़े नेता व व्यापारी व् अफसर आने वाले थे | परन्तु  अब रीता कुछ नहीं कर सकती थी | वो अकेले इतना बड़ा केक बना नहीं सकती थी और उसके पास टीम थी ही नहीं | मजबूरी में उसे कहना पड़ा कि उसका केक बिजनेस बंद हो गया है | अगर रीता और उसकी सहेलियां शुरूआती असफलता से हार नहीं मानतीं तो उनका केक बिजनेस आज बहुत सफल हो गया होता |                        ऐसा सिर्फ रीता के साथ ही नहीं हुआ , बहुत से लोगों के साथ होता है जो शुरूआती असफलता को सहन नहीं कर पाते हैं और निराश होकर काम को वहीँ बंद कर देते हैं | वो इस बात को नहीं जानते कि शुरू में सबका काम छोटा ही होता है , लेकिन जो लगातार लगा रहता है उसी का काम बड़ा होने की सम्भावना होती है | इसलिए शुरूआती असफलता या कम सफलता से निराश न होकर अपने काम में लगे रहना चाहिए |  अगर आपको अपने आप पर और अपने काम पर पूरा विश्वास है तो आप को सफलता जरूर मिलेगी | क्यों छोड़ते हैं लोग शुरू के दिनों में काम? लोग शुरू के दिनों में काम इसलिए छोड़ते हैं क्योंकि वो  थोड़े के महत्व को नहीं समझते | विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन का कहना था कि – कंपाउंड इंटरेस्ट ( चक्रवर्धी ब्याज ) दुनिया का आठवाँ आश्चर्य है जो इसे समझ लेता है , वो कम लेता हैं , जो नहीं समझता इसकी कीमत अदा करता है | क्या आप सोंच सकते हैं कि आइन्स्टीन ने ऐसा क्यों कहा ? दरअसल जब हमें थोडा लाभ मिल रहा होता है तो हम ये अंदाजा नहीं लगा पाते कि इस थोड़े से कितना बढ़ सकता है और निराश होकर काम छोड़ देते हैं | इसके लिए एक कहानी हमारे ग्रंथों में है , आइये आपको सुनती हूँ … पढ़िए -सफलता के लिए जरूरी है भावनात्मक संतुलन -Emotional management tips एक राजा दान के लिए बहुत प्रसिद्द था | कहा जाता था कि उसके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता था | एक दिन उस के दरबार में एक साधु  आता है , उस समय राजा शतरंज खेल रहा होता है | साधु  राजा से कहता है , ” महाराज मुझे भिक्षा चाहिए | राजा कहता है आप को मेरे राज्य में … Read more