कैसे आत्मसुझाव की शक्ति से बदलें जीवन

     How to use power of autosuggestion in hindi              क्या आप को नहीं लगता की काश आपके पास कोइ ऐसी जादू की छड़ी होती जिससे आप अपने जीवन में सफलता खुशियाँ , अच्छे रिश्ते या जो कुछ चाहिए सब मिल जाये | जरूर आपका उत्तर हां ही होगा | लेकिन अगर मैं कहूँ की ये जादू की छड़ी आपके पास है जो रातों रात आपकी किस्मत बदल दे , बस आप उसका इस्तेमाल करना नहीं जानते हैं |तो मित्रों आज मैं आपका उसी जादू की छड़ी से परिचय करा रही हूँ जो आपके जीवन को बदल देगी | उस जादू की छड़ी का नाम है “आत्म सुझाव या autosuggestion” | आत्म सुझाव जैसा की शब्द से ही प्रतीत हो रहा है कि यह  खुद को दिया जाने वाला सकारात्मक सुझाव है |आप्केमन में प्रश्न जरूर उठेगा की क्या खुद को सुझाव देकर भी अपनी जिन्दगी को बदला जा सकता है | मेरा जवाब होगा जी हाँ , बिलकुल बदला जा सकता है |  दरसल autosuggestion या आत्म सुझाव personality development की एक बहुत पावरफुल टेक्नीक है जिसके द्वारा हम स्वयं को instructions देकर अपनी जिन्दगी को बदल सकते हैं | इसका सम्बन्ध हमारे subconscious mind से हैं | जो हमारे ही सुझावों सच मान लेता है और उन्हें हकीकत में बदलने लगता है | आत्मसुझाव द्वारा खुद को बदलने की पारुल  की कहानी पारुल के परिवार में सब का रंग उजला दूध की तरह गोरा था | पर पारुल का रंग गहरा साँवला | अकसर भाई – बहन झगडे में उसे कल्लो कह कर चिढाते | कभी – कभी पिताजी माँ से हँसते हुए कहते कि खर्चा कम करो , बिटिया काली है इसकी शादी नें बहुत दहेज़ देना पड़ेगा | समाज में भी सब उसको उसकी बहनों के साथ देख कर ताना मारते ,” लगता ही नहीं ये दोनों सगी बहनें है | भगवान् भी कितना भेदभाव करते हैं |  ये सारी  इन्फोर्मेशन पारुल के दिमाग में इस तरह इकट्ठी हो गयी | जिसका निष्कर्ष ये निकला की वो काली और बदसूरत है जिस कारण उसके जीवन में हमेशा उपहास का पात्र बनना पड़ेगा , उसके जीवन में कभी खुशियाँ नहीं आ पाएंगी | पारुल बाहर से सामान्य होते हुए भी अंदर  ही अन्दर एक गहरी निराशा पाले थी | जिसका असर उसके जीवन के हर क्षेत्र पर दिखने लगा | वो पढाई में भी पिछड़ने लगी |  पारुल टेंथ में थी जब उसे ऑटोसजेशन टेक्नीक के बारे में पता चला | उसने खुद को सुझाव देना शुरू किया कि साँवला होना  बदसूरत होना नहीं है | वह चमकदार त्वचा , लम्बाई व् वजन के हिसाब से परफेक्ट है | इसलिए वो खूबसूरत है | उसने उन रंगों को पहनना शुरू किया जिनसे वो परहेज करती थी | किसी ने मजाक भी उड़ाया तो उसने केवल इसे उनका नजरिया ही माना | धीरे – धीरे उसे विश्वास हो गया की वो वाकई सुन्दर है | आश्चर्य  की बात है की अब लोग भी उसे सुन्दर कहने लगे | उसका आत्मविश्वास बढ़ा | उसके नंबर अच्छे आने लगे | आज पारुल बैंक में P.O. है | अपनी शिक्षा व् अपने व्यक्तित्व के कारण आज उसकी हर कोई तारीफ करता है | पारुल अपनी जिंदगी का टर्निंग पॉइंट उस समय को कहती है | जब उसने ऑटोसजेशन की टेक्नीक अपनाई |                      पारुल की जिंदगी तो सुधर गयी पर आज भी कई लडकियां फेयर नेस क्रीम और गोर रंग के जाल में फंसी हीन भावना महसूस कर रही हैं |सिर्फ रंग  या सुन्दरता ही क्यों हम सब कहीं न कहीं कोई न कोई लेवल अपने ऊपर लगा लेते हैं और उसी के जाल में फंस कर अपने जीवन में आ सकने वाली सारी  सफलताओं , खुशियों के दरवाजे खुद ही बंद कर देते हैं | मेरा इस लेख को लिखने का उद्देश्य यही है की ज्यादा से ज्यादा लोग इस टेक्नीक को समझें और इसका फायदा उठा कर अपने जीवन में सेहत , सफलता और खुशियाँ लायें | हालांकि ऑटोसजेशन  सब पर काम करता है पर वो चमत्कार तभी दिखाता है जब आप को अपने किसी बिलीफ को बदलने की प्रबल इच्छा हो |  आत्मसुझाव क्या है ?                   आत्मसुझाव एक मनोवैज्ञानिक तकनीक है | जिसे emile coue’ने  २०th सेंचुरी में विकसित किया था | इसमें बार – बार अपने मन वो वो बोलना , सोंचना व् देखना है जो हम अपनी जिंदगी में चाहते हैं | दरसल बार – बार बोलने , देखने , सोंचने से हमारा अवचेतन मन इस बात में अंतर नहीं कर पाता की हम ऐसा चाहते हैं या ऐसा ही है | वो उस बात को ही सच मान लेता है जो उससे कही जा रही है | भगवद गीता में कहा गया है ,” यथा दृष्टि तथा सृष्टि … आप जैसा सोंचते हो दुनिया वैसी ही है | जैसे किसी को स्टेज पर बोलने से डर लगता है | यह डर उसकी मेमोरी में स्टोर है | जिसकी वजह कुछ वजह ये भी हो सकती है कि बचपन में उसने या उसके किसी दोस्त ने स्टेज पर कुछ गलत बोल दिया हो जिसका बहुत मजाक उड़ा हो | या फिर उसके घर में उसे बात – बात पर टोंका जाता हो |यह डर वो निकाल नहीं पा रहा है | इसलिए वो स्टेज पर बोलने के मौके छोड़ देता है या घबरा जाता है | उसे लगता है सब लोग उसका मजाक उड़ाने वाले हैं | लेकिन अगर उसे स्टेज पर बोलना है तो उसे अपने को बार – बार कहना पड़ेगा कि वह स्टेज पर बहुत अच्छा बोलता है | उसका बोला हुआ लोग सुनते हैं | तालियाँ बजाते हैं |    जानिए कैसे आत्मसुझाव से बदला जा सकता है जीवन                                      autosuggestion को समझने के लिए हमें conscious और sub conscious mind और उसकी कार्यविधि को समझना पड़ेगा | हमारा दिमाग जो हमारे सारे विचारों का केंद्र हैं जो हमें देखने , सुनने , समझने , चयन करने की क्षमता  देता हैं | … Read more

कैसे न्यू इयर रेसोल्युशन निभाने में मिले सफलता

2016 गया , 2017 आया , 2017 गया 2018 आया …अब 2018भी गया  2019 आएगा …. साल यूँ ही जाते – आते रहेंगे | पर नए साल का आना हमेशा ही खास होगा | क्योंकि हर बार नया साल हमें खुद को  बेहतर बनने का मौका देता है | जहाँ हम थोडा ठहर कर सोंचते है कि हममें  क्या – क्या कमियाँ या गलतियाँ जिनके कारण हम उतना आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं या हमारे रिश्ते उतने सफल नहीं हो पा रहे हैं या हम कुछ आदतों से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं | यहीं पर होता है “न्यू इयर रेसोल्युशन ( नए साल के संकल्प ) का जन्म” | फिर शुरू होता है बेहतर होने के लिए उसे पूरा करने का सफ़र  जानिये कैसे पूरा करे न्यू इयर रेसोल्युशन / kaise pura karein New Year Resolution                   न्यू इयर रेसोल्युशन यानि जब हम  अपनी कमियों या गलतियों को पहचानते हैं और हम खुद से प्रण करते हैं की अब बस … बहुत हुआ अब हम अपनी बेहतरी के लिए ये प्रयास तो करेंगें ही और अगले साल अपना बेहतर वर्जन सामने लायेंगे | खुद को बहतर बनाने के लिए ये एक अच्छा उपाय है | वैसे तो ये प्रण साल के किसी भी दिन लिया जा सकता है |आप दीपावली , नवरात्र या अपने जन्म दिन किसी पर भी खुद को बेहतर बनाने का संकल्प ले सकते हैं | पर क्योंकि हम अंग्रेजी कैलेंडर फॉलो करते हैं इसलिए  साल का पहला दिन इसके लिए बहुत मुफीद माना जाता है | इसका कारण मनोवैज्ञानिक है | जब हमें लगता है कि हम समय के ऐसे मुहाने पर खड़े है जहाँ से हमें तय करना है की आगे की यात्रा में हम अपने साथ क्या-क्या खूबियाँ शामिल कर सकते हैं |आगे हमें अपने बेहतर वर्जन के साथ जाना है या वैसे ही रहना है | इसके लिए  हम सब साल के पहले दिन खुद से ये वादा करते हैं पर ये वादे  अक्सर टूट जाते हैं | किसी के तो साल के दूसरे दिन ही टूट जाते हैं और किसी के 30 जनवरी तक आते – आते टूट जाते हैं |यहाँ ये जानना जरूरी है कि क्या करें कि हम अपने वादे  पर अडिग रहे | केवल दिखाने के लिए न लें न्यू इयर रेसोल्युशन                                   कई बार हमने अपनी असफलताओं , कमियों का आकलन नहीं किया होता है | या हम पूरी शिद्दत से उस कमी को दूर नहीं करना चाहते हैं जो हमारे लिए ठीक नहीं है, हम उसके साथ  कम्फर्ट फील करते हैं |पर Happy New Year के शोर में मूड बना और  बस दोस्तों की देखा देखी  में हम भी कोई प्रण ले लेते हैं की हम अगले साल से ऐसा – ऐसा करेंगे | फिर तो उस प्रण के प्राण जल्दी निकलना तय ही हैं | क्योंकि वो हमारी आत्मा से नहीं जुड़ा होता | उदहारण के लिए  १) एक बच्चा जो बिलकुल नहीं पढता प्रण लेता है कि मैं कल से दस घंटे पढूंगा | 2) एक व्यक्ति जिसने अपनी सेहत पर कभी ध्यान नहीं दिया है वह प्राण करता है की कल से मैं खाना भी कम करूँगा , जोगिंग करूँगा और जिम भी जाया करूँगा |  3) कोई चैन स्मोकर प्रण करे मैं कल से सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाउंगा  4)किसी  के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे हैं और वो कहे कल से सारे रिश्ते ठीक से चलाने लगूंगा | तो क्या दूसरे लोग जिनसे उसने  भला – बुरा कहा है कल से ही आप को माफ़ करके उसकी पहल पर खुश हो जायेंगे  5) मैं इस साल सफल हो कर दिखा दूंगा | क्या आपने इसके लिए कोई प्लान तैयार किया है |                            केवल दिखाने के लिए कि सब new year resolution ले रहे हैं तो हम भी लेंगे , मत लीजिये | क्योंकि इनका टूटना तय है | इसके पीछे आप की will power की energy नहीं लगी होती | दो तीन -दिन तक वही  काम करने के बाद आप उसमें इंटरेस्ट खो देते हैं | और प्रण के प्राण ले लेते हैं |  बहुत कठिन या जरूरत से ज्यादा का  रेसोल्युशन  न हों                                    यहाँ पर ध्यान देने की बात है की न्यू इयर रेसोल्युशन बहुत कठिन न हो | मुझे याद आता है जब मैं फोर्थ , फिफ्थ में पढ़ती थी तो अपने भाई बहनों को जो बड़ी क्लास में थे , देखकर बड़े कठिन टाइम टेबल बना लेती थी | जैसे 15 घंटे पढना है | क्या पढना हैं , कौन सा सब्जेक्ट पढना है इसके लिए घंटों रंगीन सुन्दर चार्ट बनाती | पर उस समय उतना पढने की जरूरत थी ही नहीं , तो वो प्रण टूटने  तय थे | धीरे – धीरे रेसोल्युशन  लेने में मेरी रूचि कम हो गयी | मुझे लगा की पूरे तो होते ही नहीं है | लेकिन सच्चाई इसके विपरीत थी |  कभी  जरूरत से ज्यादा या बहुत कठिन प्राण न लें | नहीं तो उसे पूरा करना मुश्किल होता है |यहाँ ये समझने की जरूरत है की प्रण इच्छा शक्ति और मनोबल से पूरे होते हैं , बनाने से नहीं | बहुत कठिन या बिना जरूरत बनाए गए प्रण को पूरा करने की इच्छा ही नहीं होगी तो मनोबल कहाँ से आएगा ? न्यू इयर रेसोल्युशन की खोज  दो महीने पहले हो जानी चाहिए                                       आप इस साल अपने में क्या सुधार चाहते हैं आप ने अपनी बेहतरी के लिए क्या सोंचा है | इसका आकलन नवम्बर से करना शुरू कर दीजिये | आप उन क्षेत्रों पर गौर करिए जिनमें आप बदलाव चाहते हैं | या जो आपके स्वास्थ्य , सफलता या रिश्तों के मामले में बाधा उत्पन्न कर रहीं हैं |क्योंकि … Read more

केवल 5 स्टेप में बने निगेटिव से पॉजिटिव

यूँ तो जिंदगी नेगेटिव और पॉजिटिव परिस्थितयों का मिला जुला रूप है | फिर भी कुछ लोग हर परिस्थिति में पॉजिटिव रहते हैं और कुछ ज्यादातर में नेगेटिव | पॉजिटिव लोग हर बुराई में भी कुछ अच्छाई ढूंढ लेते हैं और नेगेटिव हर अच्छाई में कुछ बुराई | जाहिर हैं जो ज्यादा पॉजिटिव  रहेगा वो ज्यादा समय खुश व् उर्जा से भरा हुआ रहेगा | जिसके कारण अपने काम ज्यादा जोश व् ऊर्जा से कर पायेगा , परिणाम स्वरुप सफलता की ऊँचाइयों  को छुएगा | अब दुनिया में कौन है जो ज्यादा खुश  , ज्यादा स्वस्थ और ज्यादा सफल नहीं होना चाहता | फिर भी हम में से बहुत से लोग हैं जो अपनी परिस्थितियों को दोष देते रहते हैं | और कहते हैं हम प्रयास तो करते हैं पॉजिटिव रहने का पर क्या करें नेगेटिविटी मेरे जीवन का हिस्सा बन गयी है | पीछा ही नहीं छोडती | ये लेख उन्हीं लोगों के लिए है जो ये सोंचते हैं कि वो निगेटिविटी के जाल में फंस गए हैं और निकल ही नहीं पा रहे हैं | यहाँ इस लेख के माध्यम से मैं आप को बताने जा रही हूँ कि नेगेटिव से पॉजिटिव  कैसे बनें वो भी सिर्फ 5 स्टेप में |  यानि …  सिर्फ 5 स्टेप्स चढ़ कर आप बन सकते हैं निगेटिव  से पॉजिटिव                                          अब जैसे आप को किसी  ऊँचाई पर जाना होता है तो आप को सीढियाँ चढ़नी पड़ती हैं | उसी तरह नेगेटिव से पॉजिटिव बनने  के लिए आप को बस पाँच सीढियां चढ़नी पड़ेंगी |मित्रों ये एक बहुत ही रोमांचक यात्रा की शुरुआत होने जा रही है | तो आइये साथ – साथ चढ़े ये सीढियां .. 1)पॉजिटिव होने के लिए अपने आसपास के पांच लोगों को बदल दीजिये आप अपने आस पास के पांच करीबी लोगों पर गौर करिए | वो लोग जिनके साथ आप सबसे ज्यादा समय बिताते हैं | वो कैसे हैं सकारात्मक या नकारात्मक | अगर वो हर बात पर खुश रहने वाले जोश और जूनून से भरे हैं तो आपके लिए ये प्लस पॉइंट हैं | लेकिन अगर वो बात – बात पर कहने वाले है नहीं मुझसे नहीं होगा , ये ठीक नहीं , वो ठीक नहीं तो आप के लिए भी खतरे की घंटी है |  एक वैज्ञानिक तथ्य है की आप वैसे ही सोंचने लग जाते हैं जैसा आपके पांच सबसे करीबी व्यक्ति सोंचते हैं | अगर उनका दुनिया को देखने का नजरिया दुःख व् निराशा से भरा है तो आपका भी नज़रिय वैसा ही हो जाएगा | अब मिताली का ही उदाहरण लें | मिताली डॉक्टर बनना चाहती थी | उसने अपनी पांच पक्की सहेलियों को भी कोचिंग के लिए कनविंस  किया | मिताली उनके साथ कोचिंग जाने लगी | मिताली ने शुरू में बहुत जोश से पढाई शुरू की | पर उसकी सहेलियों का डॉक्टर बनने  का कोई अरमान नहीं था | वो तो शौक में कोचिंग कर रही थी | जैसा की आजकल चलन है हर बच्चा कोई न कोई कोचिंग तो करता है |बात – बात पर वो मिताली से पढाई को बोरिंग कहती व् मेडिकल प्रोफेशन की १० बुराइयां गिनाती | अब मिताली को भी लगने लगा ,” हां वास्तव में डॉक्टर बनना कोई बहुत अच्छी बात नहीं है , वास्तव में लम्बे समय तक पढना आसान नहीं है …. वो नहीं कर पायेगी | ये नहीं कर पाएगी उसके दिमाग में इतना छा गया की वो डॉक्टर बनने  की क्षमता और प्रतिभा होते हुए भी मेडिकल की परीक्षा में फेल हो गयी | अगर आप सफल होना चाहते हैं आगे बढ़ना चाहते हैं तो ऐसे लोगों को अपने से दूर कर दीजिये जो आपके मन में नकारात्मकता का जहर घोलते हों | फिर पांच लोगों को करीबी दोस्त बनाइये जो आपकी ही तरह जोश जूनून व् कठोर परिश्रम करने वाले हों | फिर देखिये सफलता कैसे आपके कदम चूमेगी | इसी तरह से बहुत से लोग रोज़ सुबह  नकारात्मक ख़बरों को पढ़ कर दुखी होते रहते हैं | उन्हें हर बात का दुःख होता है , देश के प्रधान मंत्री से लेकर घर की काम वाली तक सब से उन्हें शिकायत रहती है |अगर आप पॉजिटिविटी की पहली सीढ़ी चढ़ना चाहते हैं तो उनसे दूरी बना लें क्योंकि हर जीतने वाले , खुश रहने वाले व् सफल होने वाले व्यक्तियों के सामने भी सैंकड़ों निगेटिव चीजे आती रहती हैं पर वो उनकी तरफ ध्यान ही नहीं देते या उनका संमाधन निकाल लेते हैं | अगर खुदा न खास्ता आपके परिवार के लोग ही बहुत निगेटिव हैं तो आप उनकी निगेटिविटी से बचने के लिए घर के बाहर ज्यादा से ज्यादा ऐसे दोस्त बानाइये जो पॉजिटिव हो व् न सिर्फ घवालों की निगेटिविटी को काउंटर एक्ट करें बल्कि आपको पॉजिटिविटी  की और ले चलें |                        तो अब आप समझ गए होने की निगेटिविटी से  पाजिटिविटी की और चलने के लिए आपको अपने करीब के पाँच लोगों का सर्किल बदलना होगा |और दोस्ती कीजे जान कर की पुरानिखाव्त पर चलना होगा |  निगेटिव लोगों की बहस से बचें  आम जिंदगी में अक्सर ऐसा होता है आप  बड़े ही खुश मन  से ऑफिस या कॉलेज गए | वहां दो लोग झगड़ रहे हैं | आपका  उनसे कोई मतलब नहीं है और आप  बेवजह पहुँच गए बहस में उलझने  |वो क्या है न बहस करने में हारमोंस थोडा बढ़ जाते हैं और ऐडवेंचर का मजा आता है | आपको थोडा मजा जरूर आया होगा पर असल में  हुआ क्या उनकी बहस तो शांत नहीं हुई सारी  निगेटिविटी हमने अपने ऊपर उड़ेल ली | आप उस परिस्थिति से बच सकते थे | लेकिन नहीं आ बैल मुझे मार की तर्ज पर पहुँच गए आग में घी डालने | इससे बचने का आसन तरीका है फ़ालतू की बहस में न पड़ें | बहस का कभी अंत नहीं होता | क्योंकि बहस लोग अपने ईगो से जोड़ लेते हैं |  अब मान लीजिये मोदी समर्थक व् विरोधी आपस में झगड़ रहे हैं और  आप पहुँच गए बीच में टांग अड़ाने | आप को दोनों की कुछ बात … Read more

2018 में लें हार न मानने का संकल्प

 ये लो मिठाई , निक्की की पहली कमाई की है , फायनली सब कुछ ठीक हो गया , मेरे दरवाजा खोलते ही श्रीमती शर्मा ने कहा | मैंने खुश हो कर मिठाई का डब्बा हाथ में लिया और उन्हें बधाई देते हुए कहा ,” अब देखिएगा निक्की सफलता की नयी दास्ताने लिखेगी | घंटे भर हमने चाय के कप के साथ हँसी –ख़ुशी के माहौल में बातचीत की | उनके जाने के बाद मैं निक्की के बारे में सोंचने लगी | निक्की बचपन से ही मल्टी टेलेंटेड रही है |पढाई में अव्वल , खूबसूरत पेंटिंग बनाना , कागज़ और गत्तों से डॉल हाउस बनाना और गायकी  तो इतनकी गज़ब की क्या कहा जाए | सबकी तारीफें सुन श्रीमती शर्मा बेटी पर फूली न समाती|उन की तरह हम सब को विश्वास था की निक्की जीवन में बहुत सफल होगी | पढाई में हमेशा फर्स्ट आने वाली निक्की का बारहवीं से मन थोडा पढाई से हटने लगा | बारहवीं में उसने बायो व् मैथ्स का कॉम्बीनेशन लिया था |उसने ने NEET व् AIEEE पेपर २ दोनों की परीक्षा दी | उसका NEET के द्वारा बिहार के छोटे शहर में सेलेक्शन भी हो गया |बधाइयों का ताँता लग गया | निक्की  भी बहुत खुश थी क्योंकि बचपन से  वो डॉक्टर बनना चाहती थी |वो मेडिकल कॉलेज के लिए रवाना हो गयी | महीने भर बाद उस के रोते हुए फोन आने लगे , मम्मा मैं डॉक्टर नहीं बन पाऊँगी| मैं घर आना चाहती हूँ | माँ – पिता के हाथ से जैसे तोते उड़ गए | उन्होंने बहुत समझाया पर वो इनकार करती रही | दिल्ली की लड़की शायद छोटे शहर में एडजस्ट न हो पा रही हो सोंच कर पिता उसे हफ्ते भर के लिए दिल्ली ले कर आये | पर उसने वापस जाने से मना कर दिया | उसे तो डॉक्टर बनना ही नहीं है | उसकी द्रणता  देखकर माता – पिता ने हथियार डाल दिए | नेक्स्ट ऑप्शन के तौर पर AIEEE का आर्कीटेक्चर चुना |साल तो बर्बाद हो गया था पर अगले वर्ष उसने आर्कीटेक्चर  ज्वाइन किया |कुछ ही महीनों में वो पिछड़ने लगी , ऊबने लगी | उसने माँ से इसे भी छोड़ने को कहा | माता – पिता डर गए | पर उसने अगले एग्जाम को देने से उसने इनकार कर दिया | क्योंकि उसे लगता था उसका पास होना मुश्किल है | पूरा घर निराशा की गिरफ्त में आ गया | श्रीमती शर्मा की गिरती सेहत इस बात का प्रमाण दे देती | तभी किसी ने सलाह दी निक्की गाना तो अच्छा गाती है | इसी में इसका कैरियर बनवा दीजिये | निक्की की सिंगिंग क्लासेज शुरू हो गयीं | निक्की ने रियाज शुरू किया पर कुछ दिन बाद उसे भी छोड़ दिया | हैरान परेशान सी निक्की को समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है | आखिर वो क्यों बार – बार असफल हो रही है | मल्टी टेलेंटेड निक्की मल्टी फेलियर निक्की में बदल रही थी |निक्की गहरे अवसाद में घिर गयी | महीनों खाना , सोना , दैनिक चर्या का क्रम बिगड़ा रहा | फिर निक्की ने ही कहा वो कम्प्यूटर कोर्स करेगी | बेटी में वापस आशा का संचार देख कर माता – पिता जो उसे खो देने के भय से भयभीत थे तुरंत राजी हो गए | निक्की ने कम्प्यूटर्स की परीक्षा बहुत अच्छे नंबरों से पास की | घर में एक छोटा सा स्टार्ट अप खोला |और आज निक्की की पहली कामाई की मिठाई …. वाकई बहुत मीठी है |  जीवन में कभी आशा है तो कभी निराशा , कभी सुख ,कभी दुःख , कभी सफलता तो कभी असफलता | जीवन इन सब से मिलकर ही बनता है | अगर हम इसको सहज भाव से लेते हैं तो कोई मुश्किल नहीं है | पर जहाँ हमें आशा सुख और सफलता आल्हादित करती है वही निराशा , दुःख और असफलता हमारी हिम्मत तोड़ देते हैं |इन पलों में असीम वेदना से गुज़रते व्यक्ति को लगता है कि काश कोई ऐसे जादू की छड़ी होती जो हमें इन सब हारों से निकाल  लेती | तो आज मैं आपको वो जादू की छड़ी ही दे रही हूँ | वो है कभी हार न मानने का संकल्प | जी हाँ , इस लेख को लिखने की यही खास वजह है | 2018 आने वाला है | हम सब एक बार फिर नए जोश के साथ नए साल का स्वागत करना चाहते हैं | हम सबको आशा है कि नया साल अपने थैले में हमारे लिए बहुत सारी  खुशियाँ और सफलता ले कर आयेगा | मैं पूरे विश्वास के साथ कहती हूँ कि ऐसा जरूर होगा | बस आपको , मुझको , हम सब को एक संकल्प लेने की आवश्यकता है … आइये लें 2018 में हार न मानने का संकल्प दुःख , निराशा और असफलता में से आज मैं इस लेख के लिय असफलता का चयन कर रही हूँ | क्योंकि असफलता ही है जो दुःख और निराशा के मूल में हैं | हम सब सफलत होना चाहते हैं |फिर भी हो नहीं पाते | कई बार उससे निकलने के लिए हम दूसरा , तीसरा प्रयास भी करते हैं पर बार – बार असफल होते जाते हैं |एक के बाद एक असफलताएं झेलना कोई आसान काम नहीं है |  जाहिर है असफलताएं हमारी हिम्मत तोडती हैं | कई बार तो हिम्मत इतनी टूट जाती है की हम जिंदगी से ही हार मान कर बैठ जाते हैं | और उसके बाद आने वाले मौके हमे दिखाई ही नहीं देते | और हमारे जीवन में हारने का सिलसिला शुरू हो जाता है | पूरा समाज हमारे ऊपर लेवल लगा देता है …. “असफल “ आपको शायद अमिताभ बच्चन की वो फिल्म याद हो जिसमें एक मासूम बच्चे के हाथ पर गोद दिया जाता है ,” मेरा बाप चोर है “ अपमान निराशा से भरे उस बच्चे में विद्रोह जागता है और यहीं से शुरू होती है उसके एंग्री यंग मैंन बनने  की कहानी |वो पहले सफलता हासिल करता है फिर दुश्मनों से बदला लेता है |हम अमिताभ बच्चन की फिल्मों पर तालियाँ बजाते हुए घर लौट आते हैं | … Read more

स्वागत करिए प्रतियोगिता का

        ६ साल का  नितिन अ ब स द लिखने की जगह लग गया पेंसिल से आडी  –तिरछी रेखाएं खीचने में | माँ ने बड़े दुलार से कहाँ पढ़ते समय अगर ये सब हरकते करोगे तो क्लास में प्रथम कैसे आओगे | जब ध्यान  लगा कर पढोगे तो क्लास में फर्स्ट आओगे | तब तुम्हारा रिजल्ट  देते समय मैम और बच्चे  सबसे ज्यादा तालियाँ बजायेंगे  |  नितिन खुश हो कर पढने में जुट गया | राधा आजकल नृत्य का बहुत जयादा अभ्यास कर रही है | उसे अपने स्कूल के डांस फंक्शन में ढेर सारे बच्चो के बीच में सेलेक्ट होना है | दसवी बारहवी के बोर्ड के  एग्जाम के दिनों में हमारे मोहल्ले में बहुधा पिन ड्राप शांति रहती है | जिससे बच्चे अच्छे से पढाई कर सके व् अच्छे नंबरों से पास हो सके | रीना और सुहाना जी आजकल स्कूल में बहुत मेहनत कर् रही हैं |  दोनों में से एक को प्रधानाचार्या  बनना है | जबसे स्वेता जी ने दो कामवालियाँ लगा ली हैं ,तब से दोनों ठीक से काम करने लगी हैं जिससे उनकी जगह दूसरी न ले ले | स्वागत करिए  प्रतियोगिता का                Welcome to the competition            एक अनार सौ बीमार | जब चीज एक हो और उसको चाहने वाले कई तो प्रतियोगिताओ से गुजरना ही पड़ता है | यह जीवन का अभिन्न अंग हैं | परन्तु उस दिन  मेरे पड़ोसी रमेश जी यूँ ही बातों बातों में कहने लगे | इन प्रतियोगी परीक्षाओं की वजह से बच्चे कितने दवाब में रहते हैं | क्या जरूरत है ऐसी प्रतियोगितो की जो हमारे बच्चो की जान ही ले ले | मैंने उनकी बात तुरंत काट कर कहा “ये प्रतियोगिताएं नहीं हैं , जो हमारे बच्चों पर अनावश्यक दवाब बना रहीं हैं |  यह दवाब माता –पिता व् समाज के द्वारा  बच्चे की रूचि व् क्षमता को जानते बूझते हुए भी उन्हें उनके  मन के विरुद्ध किसी अनावश्यक प्रतियोगिता में उतारने से बनता है | रमेश जी थोड़े सहमत हुए थोड़े असहमत बात आई गयी हो गयी |           उस दिन बेटी का मेडिकल परीक्षा का परिणाम निकला | एक प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में उसका चयन हो गया था | उसके  साथ –साथ हमारा चेहरा भी गर्व से भर गया था | मुझे याद आने लगा वो दिन जब उसने मेडिकल में जाने की इच्छा जताई थी | मैंने उसे उस कठिन प्रतियोगिता ( जहाँ चयनित अभ्यर्थी का प्रतिशत परीक्षा देने वाले अभियार्थियों की तुलना में बहुत कम होता है )के बारे में समझाते हुए कोई अन्य क्षेत्र चुनने को कहा था |  बेटी अड़  गयी |उसने कठोर परिश्रम किया और विजय हांसिल की | इस जीतने की अदम्य  इच्छा  शक्ति की वजह से ही उसने जूनून की हद तक पढाई की थी | बर्नौड़ शॉ ने कहा भी है ……….  “ हम अपने जीवन का लक्ष्य न पा सके इससे ज्यादा दुखद ये है कि हमारे जीवन में कोई लक्ष्य ही न हो “  कुछ पाने की इच्छा  रखना और उसे प्राप्त करने के लिए अनवरत प्रयास ही जीवन को गतिशील बनता है | अन्यथा  मोनोटोनस स्थिरता के तालाब  में  जिन्दगी सड़ती  रहती है | निकालिए अपने मन से प्रतियोगिता का डर                आज्  बेटी का उत्साह  देखकर मुझे फिर से प्रतियोगिता विरोधी रमेश जी याद आ गए | खाली रमेश जी ही क्यों ऐसे बहुत सारे लोग चलते –फिरते टकरा जाते हैं ,जो प्रतियोगिताओ को सिरे से नकारना चाहते हैं | बच्चे  अक्सर प्रतियोगिता की बात पर  डरा दिए जाते हैं | ये डर असुरक्षा और प्रतिरोध की भावना उत्पन्न करता है | यह ठीक वैसा ही है जैसे ससुराल के लिए लडकियाँ पहले से ही इस कदर डरा दी जाती हैं कि  आगामी भविष्य में विद्रोह व् विवाद तय है | अगर आप भी कॉम्पटीशन फोबिया “ से ग्रस्त हैं तो जरा मेरी बातों पर ध्यान दीजिये | क्योंकि जहाँ तक मेरा मानना है ….. प्रतियोगिता हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा हैं   हम प्रतियोगिता से कभी बच  ही नहीं सकते… ये  जीवन अपने आप में एक प्रतियोगिता है | भ्रूण अवस्था से ही जीवन और मृत्यु के बीच एक प्रतियोगिता शुरू हो जाती है | मनुष्य हो , पशु-पक्षी या पेड़ पौधे जब तक अपने को जीवन की कसौटी पर खरा सिद्ध नहीं कर देते तब तक जन्म ही नहीं ले सकते | प्रसिद्द वैज्ञानिक डार्विन ने २० वर्षों तक डार्विन फिनजिस पर प्रयोग कर “ सर्वाइवल ऑफ़ द फिटेस्ट “ का नियम दिया | जो प्रकृति से भिड़ने के  योग्य है ,वही जन्म ले सकता है और जन्म लेने के बाद भी बैक्टीरिया ,वायरस से हमारे प्रतिरक्षी तंत्र की प्रतियोगिता तो चलती ही रहती है | जीते तो हम अगले दिन अपने स्कूल काम या ड्यूटी पर मौजूद  रह सकते हैं अन्यथा हाजिरी अस्पताल में लगती है  | कहने का तात्पर्य यह है कि जो चीज प्रकृति प्रदत्त है वो गलत नहीं हो सकती | लाख चाहे भी तो हम किसी प्राकृतिक  प्रतियोगिता को नकार नहीं सकते | स्कूल में बच्चों के बीच में प्रतियोगिता  डालती है परिश्रम की आदत               स्कूल में बच्चों के बीच में प्रतियोगिता हो या न हो इस विषय पर अक्सर बहस होती रहती है | कुछ लोगों का मानना है की सभी बच्चों को प्रतियोगिताओ से दूर रखना चाहिए | पर अगर प्रतियोगिता न हो तो कौन बच्चा पढना चाहेगा | जो लोग शिक्षा के क्षेत्र में हैं ,वो भली भांति जानते हैं कि  जबसे आठवीं तक सब को पास करने का नियम आया है तब से कई बच्चे ऐसे हैं जो अगली कक्षा में चले जाते हैं पर उन्हें पिछली कक्षा का विषय  का ज्ञान ठीक से नहीं होता | एक कमजोर नीव पर एक ईंट और रख दी जाती है | आगे भवन कर भडभडाकर  गिरना तय है| नवी  ,दसवी में जब इन्हीं बच्चों की वस्तु स्थिति  माता –पिता व् समाज के सामने आती है ,तो ये कुंठा व् निराशा के शिकार हो जाते हैं | जीवन के वो स्वर्णिम  वर्ष जब उन्हें पूरा जोर लगा कर सुनहरा भविष्य सुनिश्चित करना होता है ,निराशा के गहन अन्धकार में डूब जाता है | तब इस प्रतियोगिता विहीन व्यवस्था … Read more

जीवन साँप -सीढ़ी का खेल

कभी बचपन में साँप – सीढ़ी का खेल खेला है |बड़ा ही रोमांचक खेल है | हम पासा फेंकते हैं और आगे बढ़ते हैं  | आगे एक से सौ तक के रास्ते में सांप और सीढियां हैं | जब गोटी साँप  के मुँह पर आती है तो साँप काट लेता है | और गोटी साँप पूँछ की नोक तक पीछे हो जाती है | वहीँ कभी कोई सीढ़ी मिल जाती है तो खिलाड़ी  झटपट उसे चढ़ कर आगे बढ़ जाता है | आगे बढ़ना किसे ख़ुशी नहीं देता और पीछे आना किसे दुःख नहीं देता | फिर भी खेल  चलता रहता है | इस खेल में एक ख़ास बात है की जो पीछे चल रहा है पता नहीं कब उसे सीढ़ी मिल जाए और वो आगे बढ़ जाए | या फिर जो आगे है पता नहीं कब उसे साँप  काट ले और वो पीछे हो जाए | जो हारता लग रहा है अगले पल वो जीत भी सकता है | खेल का रोमांच  यही है |  कभी -कभी तो 99 पर बैठा साँप काट कर सीधा 2 पर पहुँचा देता है | हताशा तो बहुत होती है पर हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते हैं | कई बार अगली ही चाल पर अचानक से फिर सीढयाँ मिलती जाती हैं और जीत भी जाते हैं |   हार भी गए तो गम नहीं क्योंकि असली मजा तो खेलने में है … जीत हार में नहीं | क्या यही बात जीवन पर लागू नहीं होती |  यह जीवन साँप – सीढ़ी के खेल की तरह ही है  मीता और सुधा दो पक्की सहेलियां थी | दोनों का खाना पीना , पढना लिखना , खेलना कूदना साथ – साथ होता था | दोनों सिंगर बनना चाहती थी | इसके लिए बचपन से ही वो पास के स्कूल में संगीत सीखने जाया करती थीं | दोनों अच्छा गाती  भी थी | दोनों ने ही भविष्य की प्ले बैक सिंगर बनने  का ख्वाब भी पाल लिया |और इसके लिए जी तोड़ मेहनत करने लगीं |  उन दोनों को स्कूल के वार्षिक समारोह में पहला मौका मिला | मीता और सुधा दोनों की सोलो परफोर्मेंस थी | सुधा स्टेज पर जाते ही घबरा गयी | उसके सुर कहीं के कहीं लग रहे थे | सारा हॉल हँसी के ठहाकों से भर गया |सुधा स्टेज से नीचे आ कर रोने लगी |  वहीँ मीता का गायन ठीक-ठाक था | सामान्य आवाज़ में बिना उतार चढाव के उसने गाना गा दिया | उसी सिर्फ इक्का – दुक्का तालियाँ मिलीं |  मीता को भी बहुत हताशा थी |उसे बहुत अच्छे परफोर्मेंस की आशा थी |  वो सुधा  के पास  दुःख बांटने गयी | तब तक सुधा शांत हो चुकी थी | तभी प्रिंसिपल मैंम  आयीं | उन्होंने सुधा से कहा ,” गायन तुम्हारे बस की बात नहीं है | तुम इसे छोड़ दो | यही बेहतर होगा | उन्होंने मीता से भी कहा कि तुम्हें अभी बहुत रियाज़ की जरूरत है | अगर बहुत मेहनत करोगी तो शायद तुम्हें सफलता मिल जाए |  मीता  को प्रिंसिपल मैंम की बातों  से कुछ संबल तो मिला |फिर  उसके अन्दर सुधा से जीत का भाव भी था |उसने  अगली परफोर्मेंस के लिए उसने सुधा से बहुत मेहनत करने को कहा | स्वयं भी उसने बहुत मेहनत  करने का मन बनाया | पर अगली परफोर्मेंस भी वैसी ही रही | लगातार तीन परफोर्मेंस के बाद भी नतीजा वही रहा | इससे निराश हो कर मीता ने मन बना लिया कि वो गायन छोड़ देगी | पर सुधा ने गायन न छोड़ने व् निरंतर अभ्यास करने का मन बनाया |  जहाँ एक तरफ मीता सुधा से बेहतर तीन परफोर्मेंस करने के बाद भी  गायन छोड़ चुकी थी | वहीँ सुधा चौतरफा दवाब व् हतोत्साहन  झेलते हुए भी लगातार रियाज़ कर रही थी | वो अनेकों बार असफल हुई | पर एक दिन वो मौका आया जब  उसकी परफोर्मेंस बहुत उम्दा हुई | जिसे वहां मौजूद मुख्य अतिथि मशहूर फिल्म  संगीतकार के एस राव ने भी बहुत पसंद किया | उन्होंने उसे अपनी फिल्म में कुछ पंक्तियाँ गाने को दी | सुधा ने उन्हें ठीक से गा दिया उसका नाम और आवाज़ लोगों की निगाह में आने लगी | धीरे – धीरे उसे काम मिलने लगा |  आज सुधा एक मशहूर प्ले बैक सिंगर है | और मीता एक होम मेकर | मीता जो पहली परफोर्मेंस  में सुधा से बेहतर थी | पर वो असफलताओं का सामना नहीं कर पायी | उसने खेल का मैदान ही छोड़ दिया | जिससे वो बिना खेले ही हार गयी | हो सकता है वो मेहनत करती तब भी उसे सुधा जैसी सफलता न मिलती | पर कुछ सफलता तो मिलती या कम से कम अपने पहले प्यार गायन से दूर तो न होती | वो गायन जो उसकी रग -रग में भरा था | उससे दूर रह कर वो कभी खुश रह सकी होगी ?  खेल कर हारने से बिना खेले हारना ज्यादा दुखद है  असली मजा खेलने में है  सुधा और मीता की हो या हमारी – आपकी ,ये जिन्दगी साँप -सीधी के खेल जैसी है |  यहाँ असफलता के साँप  और सफलता की सीढियां हैं | कभी असफलताओं का साँप काटता है तो कभी अचानक से सीढ़ी मिल जाती है और शुरू हो जाता है सफलताओं का दौर | लेकिन जिंदगी के खेल में जब भी साँप काटता है हम निराश हो जाते हैं | कई बार अवसाद में जा कर खेल खेलना ही छोड़ देते हैं | खेल खेलना ही छोड़ दिया तो हार निश्चित है | जब साँप सीढ़ी के खेल में हम पासे फेंकना नहीं छोड़ते तो जिंदगी में क्यों हम हताश होकर पासा फेंकना क्यों छोड़ देते हैं ?  पासे फेंकते रहे , क्या पता कब सीढ़ी मिल जाए | और सफलताओं का सिलसिला शुरू हो जाए | वैसे भी असली मजा तो खेलने में है |                                                      दोस्तों अपनी जिंदगी को वैसे ही लें जैसे साँप सीढ़ी के खेल को लेते है |राजा हो या भिखारी जब अंत सबका एक … Read more

अतीत से निकलने के लिए बदलें खुद को सुनाई जाने वाली कहानी

            मेरी जिंदगी की कहानी तब बदली जब मैंने खुद को सुनाई जाने वाली  अतीत की कहानी बदली हम और हमारा मन इसका आयाम इतना विस्तृत है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती | हम किसी दूसरे से कितनी देर बात करते होंगे | घंटे दो घंटे पर खुद से दिन भर बोलते रहते हैं | ये बातचीत कभी खत्म ही नहीं होती | दिन भर , रात भर, यहाँ तक की सपनों में भी चलती ही रहती है | और हम इससे अनजान ये सोंचते रहते हैं की अपने से हम कुछ भी बोले  क्या फर्क पड़ता है | कहने वाले हम, सुनने वाले भी हम तो क्यों सोंच – सोंच कर बोले ? कौन है जो रूठ जाएगा | पर हकीकत इसके उलट होती है |खासकर उनके लिए जिनका अतीत सुखद नहीं है |  अगर हम खुद को सुनाई जाने वाली कहानियों पर ध्यान नहीं देंगे तो हमारा वर्तमान रूठ जाता है | भविष्य रूठ जाता है | कैसे ? जब आप खुद को हर समय अपने अतीत के दर्द भरी कहानियाँ सुनाते रहते हैं तो वही दर्द आप की जिंदगी में फिर से आता रहता है |  कई बार आपने देखा होगा की दुखी लोगों की जिंदगी में सामान दुःख बार – बार आते रहते हैं | वो हैरान रहते हैं की समय और परिस्थिति बदलने के बाद भी हर बार उनके साथ ऐसा क्यों होता है | अगर आप भी उनमें से एक हैं तो क्या आप की इच्छा नहीं करती इसका कारण जानने की | इसका सीधा – सच्चा सा कारण है खुद को सुनायी जाने वाली कहानी |  रीता की जिन्दगी और उसकी खुद को सुनाई जाने वाली कहानी रीता ( उम्र ३६ वर्ष ) एक बैंक में काम करती है | दो बच्चों की माँ है | अपने पति व् बच्चों के साथ एक खुशहाल जिन्दगी जी रही है | पर शुरू से रीता की जिन्दगी ऐसी नहीं थी | बचपन से प्यार को तरसती रीता को हमेशा यही लगता था की वो प्यार के काबिल ही नहीं है | उसकी जिंदगी में खुशियाँ ही नहीं हैं और न आ सकती हैं |  उसकी जिंदगी तब बदली जब रीता ने खुद को सुनाई जाने वाली कहानी बदल दी |  रीता अपने माता – पिता की एकलौती संतान थी | उसकी माँ ने उसके पिता से प्रेम विवाह किया था | परन्तु प्रेम विवाह में प्रेम शादी के एक साल बाद ही कपूर के धुएं की तरह उड़ गया |रीता छोटी ही थी | जब वो अपने पिता को अपनी माँ को रोज बात बेबात पीटते हुए देखती |  उसके पिता उसका भी ख्याल नहीं करते | गुस्से में चीखते माता – पिता और घंटों रोती  माँ ये उसके बचपन का सबसे सामान्य दृश्य था | एक दिन पिता की पिटाई से आजिज़ माँ ने उनसे अलग होने का फैसला कर लिया | पिता ने  उन्हें तलाक और पैसे देने से मना  कर दिया | माँ उसे लेकर घर से निकल आयीं | वो दिन भयंकर असुरक्षा के थे | नाना ने उन्हें अपने घर घुसने नहीं दिया | क्योंकि माँ ने उनकी मर्जी के खिलाफ शादी करी थी | पर उसकी माँ ने हिम्मत नहीं हारी | उन्होंने जी तोड़ मेहनत करके कमाना शुरू किया | वो डबल शिफ्ट करती | उन्होंने रीता का नाम स्कूल में लिखवा दिया | रीता की पढाई तो शुरू हो गयी पर उसे माँ का प्यार नहीं मिलता | माँ जरूरत से जयादा व्यस्त थी |वो उसके किसी स्कूल फंक्शन , पेरेंट – टीचर मीटिंग , अवार्ड सेरेमनी में नहीं गयीं | मासूम  रीता खुद ही अपनी पढाई , होमवर्क  स्कूल ड्रेस का ध्यान रखती |  कभी – कभी ही उसे माँ के साथ रहने का मौका मिलता तब माँ इतनी निढाल होती की बात करने की इच्छा न जतातीं या अपने अतीत को याद कर रोती  रहती | जिससे रीता सहम जाती |पिता तो उनसे मिलने भी नहीं आते |  इन्हीं हालातों में रीता एक निराश , हताश , कुंठित लड़की के रूप में बड़ी हो गयी | अतीत की वो कहानी जो रीता खुद को सुनाती रीता अक्सर जब – तब अपने अतीत में चली जाती | जो भी उसके पास बैठा होता या अकेले होने पर अपने अतीत की कहानी सुनाती |कहीं न कहीं हर समय अतीत के दर्द को याद करने से उसके मन में ये निष्कर्ष निकलता ……. सारे पुरुष गंदे होते हैं | वो भरोसे के लायक नहीं होते | उसके पिता एक क्रूर व्यक्ति थे | पुरुष का असली चेहरा यही है | उसकी माँ ने उसे कभी प्यार नहीं दिया | वो भी कुछ हद तक खुदगर्ज थी | बस अपने काम में लगीं रहीं | या फिर वो शायद  प्यार के काबिल ही नहीं है | क्योंकि उसकी पिछली जिंदगी के अनुभव  ख़राब है इसलिए वो शायद कभी अच्छी माँ बन ही नहीं पाएगी | वो यूँ ही बिना प्यार दिए बिना प्यार मिले तडपती तरसी ही दुनिया  से जायेगी | खुद को सुनाई इस कहानी का रीता के जीवन पर असर रीता के अतीत की कहानी उसके भविष्य पर हावी होने लगी | रीता पढ़ – लिख कर अच्छी खासी नौकरी कर रही थी | यही समय था जब नीलेश रीता की जिन्दगी में आया | यूँ तो वोपुरुषों से दूर ही रहती क्योंकि उसे लगता वो प्यार के काबिल नहीं है | पर नीलेश  प्यार के दो शब्दों से रीता पिघल सी गयी | उसे लगा नीलेश उस से प्यार करके उस पर अहसान कर रहा है क्योंकि वो तो प्यार के लायक ही नहीं है |  परन्तु ये प्यार ज्यादा दिन  तक टिक न सका | नीलेश का ट्रांसफर हो गया | रीता घबरा गयी | पहली बार तो उसे अपने बारे में कुछ अच्छा अहसास हुआ था | भले ही थोड़े दिन का सही | रीता ने आनन् – फानन में नीलेश से शादी करने का फैसला कर लिया | रीता नीलेश के साथ शादी करके अपना घर द्वार , नौकरी सब कुछ छोड़ कर चेन्नई चली गयी |उसने भी अपनी माँ की ही तरह अपनी माँ … Read more

जीवन के विकास के लिए काम और आराम दोनों ही जरूरी हैं!

काम और आराम में संतुलन बनाने से जीवन सफल बनता है:- कुछ लोग काम को अधिक महत्त्व देते हैं और आराम करना पसंद नहीं करते और कुछ लोग आराम को इतना महत्त्व देते हैं कि कुछ काम ही नहीं करना चाहते; जबकि काम और आराम में संतुलन बिठाने से ही जीवन स्वस्थ व संतुलित गति से प्रवाहित होता है। मनोवैज्ञानिक डाॅ0 विलियम एस. एडलर का कहना है कि ‘यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में ठीक से विश्रांत नहीं हो पाता है तो इसका एकमात्र कारण है कि वह तनाव में है और तनाव चिंता का बाई प्रोडक्ट है।’ उनका यह भी कहना है कि ‘काम की अधिकता से संकट नहीं है, संकट है, उसका बोझ महसूस करना।’ मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं चिंता करूँ:- ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल रोजाना नियमित रूप से 18 घंटे काम करते थे। उनसे किसी ने एक बार पूछा- ‘‘आपके पास इतनी समस्याएँ हैं, आपको चिंता नहीं होती?’’ चर्चिल का जवाब था- ‘‘मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं चिंता करूँ।’’ ठीक इसी तरह की बात महान वैज्ञानिक ब्लेसी पास्कल भी कहते थे- ‘‘पुुस्तकालयों और प्रयोगशालाओं में शांति इसलिए रहती है; क्योंकि वहाँ सब अपने काम में इतना मग्न रहते हैं कि उन्हें अपने बारे में चिंता करने का समय ही नहीं मिलता।’’ यह बात शाब्दिक तौर से ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी सच है कि चिंता नहीं होगी यदि चिंता करने का समय ही नहीं मिलेगा। तनावों और दबावों से जूझने के लिए सोना और खेलना बहुत जरूरी है:- आराम का मतलब है- मस्तिष्क को तरह-तरह के विचारों, विभिन्न प्रकार के कार्यों से थोड़ी देर के लिए खाली कर देना। उसे इतना रिक्त कर देना कि उसमें से सब कुछ बाहर आ जाए यहाँ तक कि द्वेष, निराशा, कंुठा, क्रोध आदि विकार भी मस्तिष्क में न रहने पाएँ। ‘इवोल्युशनरी साइकियेट्री’ पुस्तक को लिखने वाली हाॅर्वर्ड मेडिकल स्कूल के साइकियेट्री विभाग की सदस्या डाॅ0 एमिली डीन्स का कहना है कि ‘अपने तनावों और दबावों से जूझने के लिए सोना और खेलना बहुत जरूरी है। एक भरपूर नींद और थोड़ी-सी खेलने की प्रवृत्ति हमारी जिंदगी को बेहतर बना सकती है।’ जीवन जीने के लिए एक तरह के संतुलन की जरूरत पड़ती है और यह संतुलन कार्य और आराम के बीच तालमेल बैठाने से आता है। मनुष्य का जन्म सहज होता है लेकिन मनुष्यता कठिन परिश्रम से प्राप्त की जाती है:- हमारे मन की प्रवृत्तियाँ ही शरीर के अंग-प्रत्यंगों एवं सूक्ष्मचेष्टाओं पर सबसे अधिक असर डालती हैं। कोई भी काम कितना मुश्किल है यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम उसके बारे में क्या सोचते हैं? महान दार्शनिक जर्मी बेंथम इस बारे में कहते थे कि ‘मैं कभी ंिचंता नहीं करता; क्योंकि मैं जिन बातों की चिंता करूँगा, वे शायद ही कभी पूरी होंगी। पर जिन कामों में मैं व्यस्त हूँ, वे आज नहीं तो कल अवश्य पूरे होंगे।’ इसलिए यह जरूरी है कि कार्य की मुश्किलों को दूर करने के लिए कार्य किया जाए न कि चिंता। मनुष्य कार्य की अधिकता से नहीं वरन् कार्य को बोझ समझकर तथा अनियमित ढंग से करने से थकता है। मनुष्य का जन्म तो सहज होता है लेकिन मनुष्यता उसे कठिन परिश्रम से प्राप्त करनी पड़ती है। काम के साथ थोड़ा सा खेल अत्यधिक लाभदायक है:- यदि हम ठीक प्रकार से नींद ले पाते हैं तो काम करने के लिए भली प्रकार तैयार हो पाते हैं और फिर स्वस्थ, प्रसन्न, शांत व तरोताजा मन से कार्य कर पाते हैं। इसी तरह मन को उत्साहित करने का कार्य छोटे-छोटे खेल करते हैं। काम की भागमभाग में थोड़ा-सा खेल हमारे तन व मन पर गजब का असर डालता है। – प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’,  लेखक, युग शिल्पी एवं समाजसेवी,  लखनऊ यह भी पढ़ें … तेज दौड़ने के लिए जरूरी है धीमी रफ़्तार इमोशनल ट्रिगर्स – क्यों चुभ जाती है इत्ती सी बात प्रेम की ओवर डोज व्यक्तित्व विकास के पांच बेसिक नियम – बदलें खुद को आपको आपको  लेख “ क्या आप भी दूसरों की पर्सनालिटी पर टैग लगाते हैं ?“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords:  personality, , personality development , work -life balance, work   

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 रुकिए … रुकिए, आप इसे क्यों पढेंगें | आप की तो आदत है फ़िल्मी , मसाला या गॉसिप पढने की | किसी शोध परक आलेख को भला आप क्यों पढेंगे ? आप सोंच रहे होंगे बिना जाने – पहचाने ये कैसा इलज़ाम है | … घबराइये नहीं , ये तो एक उदाहरण था “पर्सनालिटी टैग” का जिसके बारे में मैं आज विस्तार से बात करने वाली हूँ | अगर आपको लगता है की जाने अनजाने  आप भी ऐसे ही दूसरों की पर्सनालिटी पर टैग लगाते रहते  हैं तो इस लेख को जरा ध्यान से पढ़िए |  हम सब की आदत होती है की किसी की एक , दो बात पसंद नहीं आई तो उसकी पूरी पर्सनालिटी पर ही टैग लगा देते हैं | बॉस ने कुछ कह दिया … अरे वो तो है  ही खडूस , टीचर की  क्लास में पढ़ाते समय दो – तीन  बार जुबान फिसल गयी | हमने टैग लगा दिया उन्हें तो इंग्लिश/हिंदी  बोलना ही नहीं आता | कौन , वही देसाई मैम जिनको इंग्लिश/हिंदी  नहीं आती | भाई पिछले दो साल से रक्षा बंधन पर नहीं आ पाया … टैग लगा दिया वो बेपरवाह है | उसे रिश्तों की फ़िक्र नहीं | ऐसे आये दिन हम हर किसी पर कोई न कोई टैग लगाते रहते हैं | दाग अच्छे हैं पर पर्सनालिटी पर टैग नहीं  आज इस विषय पर बात करते समय जो सबसे अच्छा उदहारण मेरे जेहन में आ रहा है वो है एक विज्ञापन का | जी हाँ ! बहुत समय पहले एक वाशिंग पाउडर का ऐड देखा था | उसमें एक ऑफिस में काम करने वाली लड़की बहुत मेहनती थी | क्योंकि वो ऑफिस का सारा काम टाइम से पहले ही पूरा कर देती थी | लिहाज़ा  वह बॉस की फेवरिट भी थी | जहाँ बॉस सबको छुट्टी देने में आना-कानी करता उसको झट से छुट्टी दे देता | ऑफिस के लोगों को उसकी मेहनत नहीं दिखती | दिखती तो बस बॉस द्वारा की गयी उसकी प्रशंसा व् जब तब दी गयी छुट्टियां | अब लोगों ने उसके ऊपर टैग लगा दिया , बॉस की चमची , जरूर बॉस से कुछ चक्कर चल रहा है , चरित्रहीन | एक दिन वो लड़की ऑफिस नहीं आई | बॉस ने ऑफिस की एक जरूरी फ़ाइल उस के घर तक दे आने व् उससे एक फ़ाइल लाने का काम दूसरी लड़की को दे दिया | दूसरी लड़की बॉस को तो मना  नहीं कर सकी पर सारे रास्ते यही सोंचती रही की बॉस की चमची ने तो मुझे भी अपना नौकर बना दिया | अब मुझे उसके घर फ़ाइल पहुँचाने , लाने जाना पड़ेगा | इन सब ख्यालों के बीच  वो उसके घर पहुंची और कॉल बेल दबाई | थोड़ी देर बीत गयी कोई गेट खोलने नहीं आया | उसने फिर बेल दबाई | फिर भी कोई नहीं आया | अब तो उसे बहुत गुस्सा आने लगा | वाह बॉस की चमची सो रहीं होंगी और मैं नौकर बनी घंटियाँ बजा रही हूँ | गुस्से में उसने दरवाज़ा भडभडाया | दरवाज़ा केवल लुढका था इसलिए खुल गया | वो लड़की बडबडाते हुए अंदर  गयी | सामने के कमरे में  एक औरत व्हील चेयर में बैठी थी | उसने धीमी आवाज़ में कहा ,” आओ बेटी , मैं कह रही थी की दरवाज़ा खुला है पर शायद मेरी आवाज़ तुम तक नहीं पहुंची | मेरी बेटी बता गयी थी की तुम फ़ाइल देने आओगी | ये वाली फ़ाइल लेती जाना | बहुत मेहनत करती है मेरी बेटी | ऑफिस का काम , घर का काम , ऊपर से मेरी बिमारी में डॉक्टर से दूसरे डॉक्टर तक की भाग –दौड़ |पर उसकी मेहनत के कारण ही उसके बॉस जब जरूरत पड़ती है उसे छुट्टी दे देते हैं | अब आज ही सुबह चक्कर आ गया | ब्लड टेस्ट करवाया |रिपोर्ट डॉक्टर को दिखाने गयी है | इसलिए तुम्हें आना पड़ा | जो लड़की फ़ाइल देने आई थी | जो उसे अभी तक बॉस की चमची कह कर बुलाये जा रही थी बहुत  लज्जित महसूस करने लगी | अरे , बेचारी इतनी तकलीफ में रह कर भी ऑफिस में हम सब से ज्यादा काम करती है | हम सब तो घर में हुक्म चलाते हैं | उसे तो बीमार आपहिज  माँ की सेवा करनी पड़ती है | अपनी उहापोह में वो लौटने लगी |तभी उसे उस लड़की की माँ का स्वर सुनाई दिया ,” बेटा दरवाज़ा बंद करती जाना | और हां , एक बात और हो सकता है यहाँ आने से पहले तुम भी औरों की तरह मेरी बेटी को गलत समझती होगी | उसे तरह – तरह के नाम देती होगी | पर यहाँ आने के बाद सारी  परिस्थिति देख कर तुम्हारी राय बदली होगी | इसलिए आगे से किसी की  पर टैग लगाने से पहले सोंचना | क्योंकि दाग मिट सकते हैं पर टैग नहीं    कहने को यह एक विज्ञापन था | पर इस विज्ञापन को बनाने वाले ने मानव मन की कमी को व्यापकता से समझा था | की हम अक्सर हर किसी पर टैग लगाते फिरते हैं | ये जाने बिना की पर्सनालिटी पर लगे टैग आसानी से नहीं मिटते | पर्सनालिटी टैग  हमारी प्रतिभा को सीमित कर देते हैं आपको याद होगा की अमिताभ बच्चन ने फिल्म अग्निपथ में अपनी आवाज़ बदली थी | जिस कारण लोगों ने फिल्म को अस्वीकार कर दिया | गोविंदा को सीरियस रोल में लोगों ने अस्वीकार कर दिया | राखी सावंत को आइटम नंबर के अतिरिक्त कोई किसी रूपमें देखना ही नहीं चाहता | एक कलाकार, कलाकार होता है | पर वो अपने ही किसी करेक्टर में इस कदर कैद हो जाता है | की उसके विकास के सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं | यह हर कला के साथ होता है | चाहे साहित्यकार हो , चित्रकार या कोई अन्य कला | साहित्य से संबंध  रखने के कारण मैंने अक्सर देखा है की एक साहित्यकार को आम बातों पर बोलने से लोग खफा हो जाते हैं |क्योंकि वो उसे उसी परिधि में देखना चाहते हैं | स्त्री विमर्श की लेखिकाएं के अन्य विषयों पर लिखे गए लेख पढ़े जाने का आंकड़ा कम है | … Read more

दुख से बाहर आने का प्रयास है संघर्ष

     जीवन के हर मोड़ पर कोई न कोई विषमता, कोई न कोई अभाव मुँह उठाए ही रहता है। किसी का बचपन संघर्षों में गुज़रता है तो किसी की युवावस्था। कोई अधेड़ावस्था में अभावों से जूझ रहा है तो कोई वृद्धावस्था में एकाकीपन की पीड़ा का दंश भोगने को विवश है। हम सबका जीवन किसी न किसी मोड़ पर कमोबेश असंख्य दूसरे अभावग्रस्त अथवा संघर्षशील लोगों जैसा ही होता है। मेरे ही जीवन में अभावाधिक्य रहा है अथवा मैंने ही जीवन में सर्वाधिक संघर्ष किया है और ऐसी परिस्थितियों में मेरे स्थान पर दूसरा कोई होता तो वो सब नहीं कर सकता था जो मैंने किया यह सोचना ही बेमानी, वास्तविकता से परे व अहंकारपूर्ण है।      कई लोगों का कहना है कि यदि उनके जीवन में ये तथाकथित बाधाएँ अथवा समस्याएँ न आई होतीं तो उनका जीवन कुछ और ही होता। प्रश्न उठता है कि यदि जीवन ऐसा नहीं होता तो फिर कैसा होता? यहाँ एक बात तो स्पष्ट है कि यदि परिस्थितियाँ भिन्न होतीं तो जीवन भिन्न होता लेकिन ऐसा नहीं होता जैसा आज है। लेकिन जैसा आज है क्या वह कम महत्त्वपूर्ण अथवा महत्त्वहीन है? क्या ऐसे जीवन की कोई सार्थकता अथवा उपयोगिता नहीं? क्या संघर्षमयता स्वयं में जीवन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि नहीं? इसका उत्तर तो हमारे दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। जानिये कैसे दुख का मूल नहीं, दुख से बाहर आने का प्रयास है संघर्ष      संघर्षों से जूझनेवाला बहादुर तथा पलायन करने वाला कायर कहलाता है। अभाव और संघर्ष हमारे जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा होते हैं अतः हमारे चरित्र निर्माण अथवा चारित्रिक विकास में बड़े सहायक होते हैं। जो अभावों तथा संघर्षों की आँच में तपकर बड़े होते हैं अथवा निकलते हैं वह उन लोगों के मुक़बले में महान होते हंै जिन्होंने जीवन में कोई संघर्ष किया ही नहीं। अभाव और संघर्ष जीवन की गुणवत्ता को नए आयाम प्रदान करते हैं। संघर्षशील व्यक्ति अपने जीवनकाल में अथवा संघर्ष के बाद के शेष जीवन में बिना किसी भय के अडिग रह सकता है जबकि संघर्षविहीन व्यक्ति बाद के जीवन में अभाव अथवा दुख के एक हलके से आघात अथवा झोंके से धराशायी हो सकता है। जिनके जीवन में अभाव अथवा संघर्ष की कमी होती है उन्हें आगे बढ़ने के लिए अथवा स्वयं का विकास करने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ता है जिसकी उन्हें आदत नहीं होती। आभाव देते हैं संघर्ष की प्रेरणा       वास्तविकता ये भी है कि अभावों में व्यक्ति जितना संघर्ष करता है सामान्य परिस्थितियों में कभी नहीं करता। अभाव एक तरह से व्यक्ति के उत्थान के लिए उत्प्रेरक का कार्य करते हैं, उसके विकास की सीढ़ी बन जाते हैं। अभावों से जूझने वाला संघर्षशील व्यक्ति अधिक परिश्रमी ही नहीं अपितु अधिकाधिक सहृदय और संवेदनशील भी होता है। परिस्थितियाँ एक संघर्षशील व्यक्ति में स्वाभाविक रूप से ऐसे गुण पैदा कर देती हैं। संघर्ष चाहे स्वयं के लिए किया जाए अथवा दूसरों को आगे बढ़ाने व उनके हितों की रक्षा करने के लिए संघर्ष के उपरांत सफलता मिलने पर ख़ुशी होती है। यही ख़ुशी हमारे अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि में सहायक होती है। हमारी ख़ुशी का हमारे स्वास्थ्य से और स्वास्थ्य का हमारी भौतिक उन्नति से सीधा संबंध है। संघर्ष व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है।      सफ़र में थोड़ी बहुत दुश्वारियाँ न हों तो घर पहुँचकर साफ़-सुथरे बिस्तर पर आराम करने का आनंद संभव नहीं। इसी प्रकार अभाव की पूर्ति होने पर जो आनंदानुभूति होती है वह अभाव की अनुभूति के बिना संभव नहीं। अभाव व संघर्ष द्वारा ही यह संभव है। संघर्षों का नाम ही जीवन है। जीवन में संघर्ष न हों तो जीने का मज़ा ही जाता रहता है। उर्दू शायर असग़र गोंडवी तो ज़िंदगी की आसानियों को ज़िंदगी के लिए सबसे बड़ी बाधा मानते हुए कहते हैं: चला जाता हूँ हँसता खेलता मौजे-हवादिस से,अगर आसानियाँ हो  ज़िंदगी दुश्वार हो जाए।  सघर्ष हैं आनंद  का मार्ग      जीवन में आनंद पाना है तो स्वयं को संघर्षों के हवाले कर देना ही श्रेयस्कर है। संघर्ष रूपी कलाकार की छेनी आपके अस्तित्व रूपी पत्थर को तराशकर एक सुंदर प्रतिमा में परिवर्तित करने में जितनी सक्षम होती है अन्य कोई नहीं। मिर्ज़ा ‘ग़ालिब’ जीवन में विषम परिस्थितियों से उत्पन्न हालात को एक दूरदर्शी व्यक्ति के लिए उस्ताद या गुरू के तमाचे अथवा थप्पड़ की तरह मानते हुए कहते हैं: अहले-बीनिश  को  है  तूफ़ाने-हवादिस  मक्तब,लत्मा-ए-मौज कम अज़  सीली-ए-उस्ताद नहीं।      हम स्वयं अपने जीवन को रोमांचक, चुनौतीपूर्ण और साहसी बनाने में कोई कसर बाक़ी नहीं रख छोड़ते। ख़तरों के खिलाड़ी कहलवाने में गौरव का अनुभव करते हैं। इससे हमें ख़ुशी मिलती है। लेकिन यदि हमें कोई चुनौती प्राकृतिक रूप से मिल जाती है तो उसे स्वीकार करने अथवा उसके पार जाने में दुविधा क्यों? अभावों तथा संघर्ष को अन्यथा मत लीजिए। उन्हें महत्त्व दीजिए। किसी भी चुनौती को स्वीकार किए बिना उसे जीतना और विजेता बनना असंभव है। संघर्ष हर जीत को संभव बना देता है।  संघर्ष दुख नहीं, दुख से बाहर आने का प्रयास होता है। दुख से बाहर आने का अर्थ है सुख, प्रसन्नता अथवा आनंद। संघर्ष आनंद का ही उद्गम है।  सीताराम गुप्ता, दिल्ली यह भी पढ़ें ……….. तेज दौड़ने के लिए जरूरी है धीमी रफ़्तार असफलता से सीखें अधूरापन अभिशाप नहीं प्रेरणा है व्यक्तित्व विकास के पांच बेसिक नियम -बदलें खुद को आपको आपको  लेख “दुख से बाहर आने का प्रयास है संघर्ष“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |