उत्साह सबसे बड़ी शक्ति और आलस्य सबसे बड़ी कमजोरी है

– प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक (1)        आलस्य से हम सभी परिचित हैं। काम करने का मन न होना, समय यों ही गुजार देना, आवश्यकता से अधिक सोना आदि को हम आलस्य की संज्ञा देते हैं और यह भी जानते हैं कि आलस्य से हमारा बहुत नुकसान होता है। फिर भी आलस्य से पीछा नहीं छूटता, कहीं-न-कहीं जीवन में यह प्रकट हो ही जाता है। आलस्य करते समय हम अपने कार्यों, परेशानियों आदि को भूल जाते हैं और जब समय गुजर जाता है तो आलस्य का रोना रोते हैं, स्वयं को दोष देते हैं, पछताते हैं। सच में आलस्य हमारे जीवन में ऐसे कोने में छिपा होता है, ऐसे छद्म वेश में होता है, जिसे हम पहचान नहीं पाते, ढूँढ़ नहीं पाते, उसे भगा नहीं पाते; जबकि उससे ज्यादा घातक हमारे लिए और कोई वृत्ति नहीं होती। (2)        आलस्य तो मन का एक स्वभाव है। यह दीखता भी हमारे व्यवहार में है, इसे यों ही पकड़ा नहीं जा सकता। आलस्य को हम दूर भगाना चाहते हैं, इससे दूर जाना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें यह जानना होगा कि आलस्य हमें क्यों आ रहा है? यदि हम उन कारणों को दूर कर सकें तो संभवतः आलस्य के नकारात्मक प्रभावों से बच सकते हैं। (3)        सबसे पहले यह समझने का प्रयत्न करते हैं कि आलस्य है क्या? आलस्य-थक जाने को, कुछ नया करने से बचने को या फिर चीजों को टालते रहने की प्रवृत्ति को कहते हैं। प्रश्न उठता है कि वे क्या कारण हैं जिनकी वजह से हमें आलस्य आता है। इसके बारे में मशहूर साइकोएनेलिस्ट लारा डी0 मिलर कहती हैं, कि ‘आलस्य की जरूरत से ज्यादा आलोचना की जाती है। आलसी का ठप्पा लगा देने से इस बात को समझने में कतई मदद नहीं मिलती कि कोई व्यक्ति क्यों वह काम नहीं कर रहा, जो वह करना चाहता है या फिर उसे करना चाहिए। हो सकता है कि आलस्य करने के पीछे किसी तरह का डर छिपा हो। कुछ न करना, असफल होने का डर, दूसरों की अपेक्षाएँ, असंतुष्टि, प्रेरणा की कमी व बहसबाजी से बचने की कोशिश में कुछ न करने के लिए ओढ़ा गया लबादा भी यह हो सकता है। अतः आलस्य का समस्या मानने की जगह उसे अन्य समस्याओं के लक्षण के तौर पर समझना चाहिए।’ आलस्य की समस्या व्यक्ति की ओर एक इशारा यह भी है कि व्यक्ति की सोच यह है कि अब परिस्थितियों को बदला नहीं जा सकता। (4)        मनोविज्ञानिकों के अनुसार, व्यक्तित्व केवल गुण और दोषों से मिलकर नहीं बनता। हमारी जरूरत, काम, मकसद और मंजिल भी इससे जुड़े होते हैं। जो है, केवल वह नहीं, जो हम कर रहे हैं, वह भी व्यक्तित्व का हिस्सा है। कुछ व्यंग्यकारों ने भले ही इसकी तारीफ की हो, कई सुविधाजनक वस्तुओं के आविष्कार की प्रेरणा माना हो, इसे धीरता की निशानी और जिंदगी को आसान बनाने की कला समझा हो, पर सच यही है कि आलस्य की वजह को न ढूँढ़ना और लंबे समय तक जरूरी कामों से बचते रहना अपने कैरियर एवं जिंदगी को कष्टप्रद बना सकता है। (5)        एक सीमा तक आलस्य हमें सुकूनदायक लगता है, खुशी देता है, नुकसान नहीं पहुँचाता, लेकिन समय की उस सीमा के बाद लगातार काम करते रहने से बचना हमें खुशी से ज्यादा दरद देने लगता है, मन को बेचैनी व पछतावे से भरने लगता है; क्योंकि काम न करने से काम का ढेर कम नहीं होता, बल्कि बढ़ता है और धीरे-धीरे यह इतना बढ़ जाता है कि यह हमें अपने बारे में, अपने कार्यों और अपने रिश्तों के बारे में अच्छा महसूस करने नहीं देता। एक तरह से हम आलस्य के कारण नकारात्मकता से घिर जाते हैं और नकारात्मक सोचने लगते हैं। (6)        आलस्य दो प्रकार का होता है- पहला वो, जिसमें व्यक्ति मेहनत करके पहले अपना काम पूरा करता है और फिर कुछ समय बिना कुछ किए आलस्य में बिताना चाहता है। इस तरह का आलस्य नुकसान नहीं पहुँचाता, बल्कि लाभ देता है। जब हमारे जरूरी कार्य पूर्ण हो जाते हैं और बचे हुए समय को हम सुकून से जीते हैं, बिना किसी तनाव के अपने कार्यों को करते हैं तो यह हमें एक तरह से जिंदगी का आनंद देता है। (7)        दूसरा आलस्य वह, जिसमें व्यक्ति के अंदर कुछ करने की प्रेरणा ही नहीं होती। ऐसी स्थिति में व्यक्ति कुछ न कर पाने के कारण बेचैन तो रहते हैं, पर उनमें वह उत्साह नहीं होता, जो उनसे कुछ काम करा ले। कई बार व्यक्ति को यह ही पता नहीं होता कि वह क्या करना चाहता है और यह समझ न पाने के कारण भी वह आलस्य करता है। इस तरह लंबे समय तक कुछ न करना, कामों को टालना, रोजमर्रा के कार्यों को मजबूरी मानते हुए करना-यह कुछ और नहीं, बल्कि मन में जन्म ले रही निराशा के संकेत हैं, जिसके कारण व्यक्ति अपना समय कम मेहनतवाली और उबाऊ चीजों में बिताने लगता है। इस तरह के आलस्य से निपटना बेहद जरूरी है। अपने जीवन से आलस्य को दूर भगाने के लिए हमें थोड़ी मेहनत, मशक्कत तो करनी ही पड़ेगी। (8)        ब्रिटिश लेखक और राजनीतिज्ञ बेंजामिन डिजरायली का इस बारे में कहना था कि ‘काम से हमेशा खुशी मिले, यह जरूरी नहीं, पर यह तय है कि खुशी बिना काम किए नहीं मिल सकती।’ इसलिए जिंदगी को बेहोश करने वाले आलस्य के नशे का त्यागकर जिंदगी की असली खुशी की तलाश करनी चाहिए और यह हमें बिना काम किए नहीं मिल सकती। काम करके ही हम जिंदगी का असली सुकून प्राप्त कर सकते हैं। भले ही हम अपने कार्यों में सफल हों या असफल, यह सोचने के बजाय कार्य करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। कार्य करते समय एक साथ कई काम करने के बजाय एक बार में एक या दो कामों को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए; क्योंकि इससे हमारे कार्य पूर्ण होंगे और अपने कार्यों को पूरा होते हुए देखने से हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और खुशी भी। (9)        हमें करने को अनगिनत कार्य होते हैं, जिनके कारण हम यह समझ नहीं पाते कि शुरूआत कहाँ से करें? कैसे करें? इसलिए स्वयं में यह आदत डालनी चाहिए कि अपने समझ उपस्थित कार्यों को हम समेटते और … Read more

“अवसर” खोजें,पहचाने और लाभ उठायें

लेखक :- पंकज “प्रखर” कोटा , राज. अवसर का लाभ उठाना एक कला है एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन में बहुत मेहनत करता है लेकिन उसे अपने परिश्रम का शत-प्रतिशत लाभ नही मिल पाता और एक व्यक्ति ऐसा जो कम मेहनत में ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेता है  इन दोनों व्यक्तियों में अंतर केवल अवसर को पहचानने और उसका भरपूर लाभ उठाने भर का होता है प्राय: आपने देखा होगा की अपने वर्तमान से अधिकाँश मनुष्य संतुष्ट नहीं होते हैं। जो वस्तु अपने अधिकार में होती है उसका महत्व, उसका मूल्य हमारी दृष्टि में अधिक नहीं दीखता। वर्तमान अपने हाथ में जो होता। अपने गत जीवन की असफलताओं का भी रोना वे यही कह कर रोया करते हैं कि हमें भगवान या भाग्य ने अच्छे अवसर ही नहीं दिए अन्यथा हम भी जीवन में सफल होते। ऐसा कहना उनकी अज्ञानता है। प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनेक ऐसे अवसर आते हैं जिनसे वह लाभ उठा सकता है। पर कुछ लोग अच्छे और उचित अवसर को पहिचानने में ही अक्षम्य होते हैं। ठीक अवसर को भलीभांति पहचानना तथा उससे उचित लाभ उठाना जिन्हें आता है जीवन में सफल वे ही होते हैं। पर यह भी सत्य है कि अच्छे अवसर प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनेक बार आते हैं। अब हम उन्हें न पहचान पावें या पहचानने पर भी उनसे उचित लाभ न उठा पावें तो यह हमारा अज्ञान है। एक पाश्चात्य विद्वान का कहना है “अवसर के सर के आगे वाले भाग में बाल होते हैं, सर के पीछे वह गंजा होता है। यदि तुम उसे सामने से पकड़ सको, उसके आगे बालों को, तब तो वह तुम्हारे अधिकार में आ जाता है,पर यदि वह किसी प्रकार बचकर निकल गया तो उसे पकड़ा नही जा सकता | आधुनिकता के दौर में संस्कृति से समझौता क्यों आपको अनेक ऐसे मनुष्य मिलेंगे जो बिना सोचे-समझे यह कह देते हैं कि फलाँ – फलाँ को जो जीवन में सफलतायें मिली वह इत्तफाक के कारण। घटनावश उनका भाग्य उनके ऊपर सदय हो गया और यह इत्तफाक है कि आज सफलता पाकर वे इतने बड़े हो सके। पर सच पूछा जाय तो इत्तफाक से प्रायः कुछ नहीं होता। संसार के समस्त कार्यों के पीछे कार्य – कारण-सम्बन्ध होता है। और यदि इत्तफाक से ही वास्तव में किसी को सुअवसर प्राप्त हो जाता है, तो भी हम न भूलें कि यह बात हमें ‘अपवाद’ के अंतर्गत रखनी चाहिए। एक विद्वान ने कहा है” जीवन में किसी बड़े फल की प्राप्ति के पीछे इत्तफाक का बहुत थोड़ा हाथ होता है।” अंधे के हाथ बटेर भी कभी लग सकती है। लेकिन सफलता प्राप्त करने का सर्वसाधारण और जाना पहिचाना मार्ग है केवल लगन, स्थिरता, परिश्रम, उद्देश्य के प्रति आस्था और समझदारी। मानिए एक चित्रकार एक चित्र बनाता है तो उसकी सुन्दरता के पीछे चित्रकार का वर्षों का ज्ञान, अनुभव, परिश्रम और अभ्यास है। इस चित्रकला में योग्यता पाने के लिए उसने बरसों आँखें फोड़ी हैं, दिमाग लगाया है तब उसके हाथ में इतनी कुशलता आ पाई है। उसने उन अवसरों को खोजा है जब वह प्रतिभावान चित्रकारों के संपर्क में आकर कुछ सीख सके। जो अवसर उसके सामने आये, उसने उन्हें व्यर्थ ही नहीं जाने दिया वरन् उन अवसरों से लाभ उठाने की बलवती इच्छा उसमें  थी और क्षमता भी। मनुष्यों की समझदारी तथा चीजों को देखने परखने की क्षमता में अन्तर होता है। एक मनुष्य किसी एक घटना या कार्य से बिल्कुल प्रभावित नहीं होता, उससे कुछ भी ग्रहण नहीं कर सकता, जब कि एक दूसरा मनुष्य उसी कार्य या घटना से बहुत कुछ सीखता और ग्रहण करता है। साधारण रूप से मनुष्य की बुद्धि तथा प्रवृत्ति तीन प्रकार की हो सकती है। इस तथ्य को सिद्ध करने के लिए एक प्रसंग याद आता है “एक नदी के तट पर तीन लड़के खेल रहे हैं। तीनों खेलने के बाद घर वापस आते हैं। आप एक से पूंछते हैं भाई तुमने वहाँ क्या देखा? वह कहता है ‘वहाँ देखा क्या, हम लोग वहाँ खेलते रहे बैठे रहे।’ ऐसे मनुष्यों की आँखें, कान, बुद्धि सब मंद रहती है। दूसरे लड़के से आप पूछते हैं कि तुमने क्या देखा तो वह कहता है कि ‘मैंने नदी की धारा, नाव, मल्लाह, नहाने वाले, तट के वृक्ष, बालू आदि देखी।’ निश्चय ही उसके बाह्य चक्षु खुले रहे, मस्तिष्क खुला रहा था। तीसरे लड़के से पूछने पर वह बताता है कि ‘मैं नदी को देखकर यह सोचता रहा कि अनन्त काल से इसका स्रोत ऐसा ही रहा है। इसके तट के पत्थर किसी समय में बड़ी-बड़ी शिलाएँ रही होंगी। सदियों के जल प्रवाह की ठोकरों ने इन्हें तोड़ा-मरोड़ा और चूर्ण किया है। प्रकृति कितनी सुन्दर है, रहस्यमयी है। तो फिर इनका निर्माता भगवान कितना महान होगा, आदि।’यह तीसरा बालक आध्यात्मिक प्रकृति का है। उसकी विचारधारा, अन्तर्मुखी है। ऐसे ही प्रकृति के लोग अवसरों को ठीक से पहचानने और उनसे काम लेने की पूरी क्षमता रखते है .सतत परिश्रम के फल स्वरूप ही सफलता मिलती है, इत्तफाक से नहीं जो भी अवसर उनके सामने आये उन्होंने दत्तचित्त हो उनसे लाभ उठाया। वैलेंटाइन डे : युवाओं का दिवालियापन यदि हम एक कक्षा के समस्त बालकों को समान अवसर दें, तो भी हम देखते हैं कि सभी बालक एक समान लाभ नहीं उठाते या उठा पाते। बाह्य सहायता या इत्तफाक का भी महत्व होता है पर हम अँग्रेजी कहावत न भूलें ‘भगवान उनकी ही सहायता करता है जो अपनी सहायता स्वयं करना जानते हैं।’अतः आलस्य और कुबुद्धि का त्याग कीजिये। अवसर खोइये मत। उन्हें खोजिये,पहचानिए और लाभ उठाइए । अनेक ऐसे आविष्कार हैं जिनके बारे में हम कह सकते हैं कि इत्तफाक से आविष्कर्त्ता को लक्ष्य प्राप्त हो गया पर यदि हम ईमानदारी से गहरे जाकर सोंचे तो स्पष्ट हो जायगा कि इत्तफाक से कुछ नहीं हुआ है। उन आविष्कर्त्ताओं ने कितना अपना समय, स्वास्थ्य, धन और बुद्धि खर्ची है आविष्कार करने के लिए। न्यूटन के पैरों के निकट इत्तफाक से वृक्ष से एक सेब टपक कर गिर पड़ा और न्यूटन ने उसी से गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त ज्ञान कर लिया। पर न जाने कितनों के सामने ऐसे टूट-टूट कर सेब न गिरे होंगे। पर सभी क्यों नहीं न्यूटन की भी भाँति गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त ज्ञात … Read more

संकल्प शक्ति – आदमी सोच तो ले उसका इरादा क्या है?

 प्रदीप कुमार सिंह, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक             वाराणसी आईआईटी बीएचयू के छात्रों ने दो साल की मेहनत के बाद ‘इन्फर्नो’ नाम की कार बनाई है। छात्रों का दावा है कि यह कार पानी, पहाड़, कीचड़, ऊबड़-खाबड़ जैसे हर तरह के रास्तों पर चलने में सक्षम है। तीन लाख रूपये की लागत से तैयार इस कार को मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों की टीम ने सहायक प्रोफेसर रश्मिरेखा साहू के मार्गदर्शन में किया। अब यह छात्र चाहते हैं कि यह कार देश की सुरक्षा में तैनात भारतीय सेना के काम भी आए। इससे पहले यह इन्फर्नो इंदौर में सोसायटी आॅफ आॅटोमोटिव इंजीनियरिंग में पहला पुरस्कार जीत चुकी है। इस कार में 305 सीसी ब्रिग्स और स्ट्रैटन इंजन लगा है जो उसे रफ्तार देने में मदद करता है। इसके साथ ही ड्राइवर की सुरक्षा और कन्फर्ट का भी ख्याल रखा गया है। 50 डिग्री के पहाड़ पर भी यह कार चल सके, इसके लिए आगे के पहियों को बड़ा रखा गया है।             झुग्गी बस्ती में पल-बढ़कर कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मेडल जीत चुकी कोलकाता की 19 वर्षीय कराटे चैंपियन आयशा नूर की प्रतिभा का आखिरकार अमेरिका ने भी लोहा मान लिया। गरीबी व मिर्गी की बीमारी को मात देकर कराटे की दुनिया में पहचान बना चुकी आयशा की प्रतिभा से प्रभावित होकर कोलकाता स्थित अमेरिका सेंटर ने मेडल देकर उन्हें सम्मानित किया है। आयशा के साथ उनके कोच मोहम्मद अली को भी सम्मानित किया गया। इस दौरान सेंटर की ओर से आयशा पर बनाई गई करीब घंटे का वृत्त चित्र ‘वीमन एंड गल्र्स लीड ग्लोबल’ का भी प्रसारण किया गया।             अमेरिका की यूनिवर्सिटी आॅफ टेक्सास की इस 24 वर्षीय छात्रा एम्बर वैनहेक के संघर्ष की दास्तान ने उनके अदम्य साहस और जीवटता से दुनिया को दिखा दिया कि मुश्किल हालातों में जिंदगी की जंग कैसे जीती जाती है। अपनी सांसों को उखड़ने से बचाने के लिए एक बियाबान पठार में 127 घंटे यानी पूरे पांच दिन इसने संघर्ष किया। एम्बर 10 मार्च 2017 को एरिजोना के आसपास कार से घूमने निकली। जीपीएस के बावजूद वे गलत रास्ते पर भटक गई। 12 मार्च को ग्रांड कैनयन पहुंचने पर फोन का जीपीएस बंद हो गया और नेटवर्क भी चला गया। साथ ही उसकी गाड़ी का ईंधन भी खत्म हो गया। अब वह निर्जन ग्रंांड कैनयन घाटी और पठार में बुरी तरह फंस चुकी थी।             एम्बर को यह समझने में देर न लगी कि इस घाटी में उसे मदद के लिए कई दिनों या महीनों का इंतजार करना पड़ सकता है। इसलिए उसने जी-जान से मदद पाने के लिए कोशिश शुरू की। पत्थरों की मदद से उसने मैदान पर 10 फूट लंबा एसओएस और तीस फुट लंबा हेल्प का साइन बनाया। दिन में एक बार खाया खाना। उनके पास कुछ सूखे फल, बीज और मेवा था, जिसने उसे पांच दिन जीवित रखा। एक ही जगह पर बैठकर मदद का इंतजार करके थक चुकी एम्बर ने पांचवे दिन एक साहसिक निर्णय लिया और अपनी गाड़ी को वही छोड़ पूर्व दिशा की तरफ पैदल चलना शुरू किया। तकरीबन 11 मील चलने के बाद उनके फोन में नेटवर्क आया और 911 पर फोन किया। वह पूरी बात बता पाती इसके पहले फोन कट गया। फोन पर उनकी अधूरी बात सुनकर ही बचाव दल के लोग ग्रांड कैनयन की तरफ निकले। लगभग 40 मिनट बाद हवाई एंबुलंस के चालक को उनकी कार नजर आई। कार के पास मौजूद नोट्स की सहायता से उन्हें ढूंढ निकाला। अब वह अपने घर लौट चुकी हैं।             महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गांव रोपरखेड़ा के गरीब दलित परिवार में जन्मी कल्पना का बचपन काफी गरीबी में बीता। पिता पुलिस में हवलदार थे, लेकिन उनकी कमाई से घर का खर्चा बहुत मुश्किल से चलता था। पिता ने पढ़ाई छुड़ाकर शादी करा दी। ससुराल में उन्हें शारीरिक तथा मानसिक तौर पर प्रताड़ित किया गया। पिता 6 महीने बाद घर ले आये। जिंदगी से निराश होकर उन्होंने जहर खाकर आत्महत्या करने का प्रयास किया। लेकिन उनकी जान बच गई। जिंदगी ने उन्हें एक मौका दिया। उन्हें अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस हुई। इसी बीच पिता की किन्हीं कारणों से नौकरी छूट गयी। कल्पना की एक बहन इलाज के पैसे न होने के कारण बीमारी से चल बसी। तभी कल्पना को एहसास हुआ कि दुनिया में सबसे बड़ी कोई बीमारी है, तो वह है-गरीबी।             कल्पना ने गरीबी से जंग लड़ने के जज्बे के साथ दिहाड़ी पर कपड़े के कारखाने में धागे कातने का काम किया। फिर सिलाई सीखने के बाद सिलाई का काम करने लगी। 50,000 हजार रूपये का कर्ज लेकर फर्नीचर का व्यवसाय शुरू किया और सफल रही। ये कल्पना सरोज का जादू ही है कि आज ‘कमानी टयूब्स’ 500 करोड़ से भी ज्यादा की कंपनी की मालकिन बन गयी है। कोई बैकिंग बैकग्रांउड न होते हुए भी सरकार ने उन्हें भारतीय महिला बैंक के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स में शामिल किया है। कल्पना का जीवन संदेश देता है कि घर में लड़ी, समाज से लड़ी, अपनी किस्मत से भी लड़ी। लडकर ही कल्पना ने चुना अपना आकाश। सरकार द्वारा कल्पना सरोज को पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया है।             वैज्ञानिकांे ने खून को जवां रखने वाला ऐसा प्रोटीन खोजने का दावा किया है, जिसकी मदद से हृदय संबंधी बीमारियों की रोकथाम की जा सकेगी। इस शोध के नतीजों से विशेषज्ञों में एक बार फिर लंबा जीवन पाने उम्मीद जग गई है। जर्मनी की यूनिवर्सिटी आॅफ उल्म में हुए शोध में विशेषज्ञों ने आॅस्टिथोपोटिन नामक प्रोटीन खोजने का दावा किया है। इनका कहना है कि यह प्रोटीन हमारे शरीर में मौजूद रक्त को जवान बनाए रखता है। जर्मन विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रोटीन के अभाव में रक्त मूल कोशिकाओं की अवस्था में गिरावट आई मतलब वे वृद्ध हुई। इस प्रोटीन से लैस दवाओं के सेवन से कोशिकाओं की बढ़ती उम्र पर रोक लग गई। मेडिकल साइन्स के क्षेत्र में यह एक क्रान्तिकारी खोज है।             श्री जितेन्द्र यादव का कहना है कि मैं उत्तर प्रदेश के जालौन के डकोर का रहने वाला हूं और झांसी में डीआईजी आॅफिस में काॅस्टेबल हूं। अपनी नौकरी के बाद का समय में जरूरतमंदों की सेवा करने और गरीब बच्चों को … Read more

ऊर्जावर्धक होती है सकारात्मक और सार्थक सोच

हमारे जीवन की वर्तमान दशा और दिशा ही हमारा भविष्य तय करती हैं. इंसान सोचता मन से है और करता अपने तन से है  यानी जीवन की सरिता तन और मन जैसे दो किनारों के बीच बहती रहती है.मन के अंदर के विचार ही बाह्य जगत में नवीन आकार ग्रहण करते हैं। जो कल्पना चित्र अंदर पैदा होता है, वही बाहर स्थूल रूप में प्रकट होता है। सीधी-सी बात है कि हर विचार पहले मन में ही उत्पन्न होता है और मनुष्य अपने विचार के आधार पर ही अपना व्यवहार निश्चित करता है। विचारों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है.सुख-दुःख , हानि-लाभ,उन्नति-अवनति,सफलता-असफलता, सभी कुछ हमारे अपने विचारों पर निर्भर करते हैं। जैसे विचार होते हैं,वैसा ही हमारा जीवन बनता है। संसार कल्पवृक्ष है, इसकी छाया तले बैठकर हम जो विचार करेंगे, वैसे ही परिणाम हमें प्राप्त होंगे। जिनके दिलो-दि माग सद्विचारों से भरे रहते हैं, वे पग-पग पर जीवन के महान वरदानों से विभूषित होते हैं। जो अंधकारमय, निराशावादी विचार रखते हैं, उनका जीवन कभी उन्नत और उत्कृष्ट नहीं बन सकता। कुएं में मुंह करके आवाज देने पर वैसी ही प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है। संसार भी इस कुएं की आवाज की तरह ही है। मनुष्य जैसा सोचता है एवं विचारता है, वैसी ही प्रतिक्रिया वातावरण में होती है। मनुष्य के विचार शक्तिशाली चुंबक की तरह होते हैं,जो अपने समानधर्मी विचारों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। विचारों में एक प्रकार की चेतना शक्ति होती है। किसी भी प्रकार के विचारों के एक स्थान पर केंद्रित होते रहने पर उनकी सूक्ष्म चेतना शक्ति घनीभूत होती जाती है. प्रत्येक विचार आत्मा और बुध्दि के संसर्ग से पैदा होता है। बुध्दि उसका आकार प्रकार निर्धारित करती है तो आत्मा उसमें चेतना फूंकती है। इन  विचारों का जब केंद्रीयकरण हो जाता है,तो एक प्रचंड शक्ति का उदभव होता है।  सुन्दर और सकारात्मक विचार, मनुष्य के जीवन को स्वर्ग और शांत बना देते हैं और इसी प्रकार नकारात्मक सोच और निराशा उसके जीवन को नरक बना देते हैं. नकारात्मक और विध्वंसक सोच जब मन में पैदा हो जाती है और मन में फैलने लगती है,तो बहुत तेज़ी से पूरे मन को अपने क़ब्ज़े में ले लेती है और इस स्थिति में हम पूरी तरह से नकारात्मक सोच के चंगुल में फंस जाते हैं। सकारात्मक और सार्थक सोच ऊर्जावर्धक होती है, जो अभ्यास, बार-बार दोहराए जाने और सीखने से मन में पैदा होती  है और मनुष्य के जीवन को दिशा निर्देशित करती है.  हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी निराशा के पल आते ही हैं .निराशा के उन पलो में सकारात्मक विचार संजीवनी का काम करते हैं.जो सकारात्मक हैं और आशा की उर्जा से सराबोर हैं,उन्हें सकारात्मक विचार अतिरिक्त उर्जा देते हैं और यही वजह है कि ” अटूट बंधन ” पहले अंक से ही सकारात्मक विचारों वाले प्रेरणादाई लेखो को प्राथमिकता देता आ रहा है.हमारी हमेशा यही कोशिश रहती है कि इस पत्रिका में प्रकाशित हर रचना पाठको के मन में नवचेतना का संचार करे.निराशा के अन्धकार से लड़ने और आशावाद का उजाला फैलाने की हमारी इस कोशिश को आप सबने अपार स्नेह दिया है और हमें पूरा यकीन है कि भविष्य में भी इस पत्रिका को इसी तरह आपका स्नेह मिलता रहेगा.

प्रत्येक क्षण में बहुत कुछ नया है!

– प्रदीप कुमार सिंह ‘पाल’, शैक्षिक एवं वैश्विक चिन्तक             यदि हमारे अंदर पुराने का आग्रह है तो जीवन में सब पुराना हो जाएगा। जीवन मंे यदि हम पुराने का आग्रह छोड़ दें तो इस नये वर्ष 2017 का प्रत्येक दिन नया दिन तथा प्रत्येक क्षण नया क्षण होगा। कोई व्यक्ति जो निरंतर नए में जीने लगे, तो उसकी खुशी का हम कोई अंदाजा नहीं लगा सकते। हमारे अंदर यह जज्बा होना चाहिए कि इस क्षण में नया क्या है? यदि यह जज्बा हो तो ऐसा कोई भी क्षण नहीं है, जिसमें कुछ नया न आ रहा हो। हम नए को खोजें, थोड़ा देखें कि यह ऊर्जावान तथा जीवनदायी सूरज कभी उगा था? हम चकित खड़े रह जाएंगे कि हम अब तक इस भ्रम में ही जी रहे थे कि रोज वही ऊर्जावान तथा जीवनदायी सूरज उगता है। हम अपने जीवन में निरन्तर यह खोज जारी रखे कि नया क्या है? हमारा फोकस पुराने पर है या नये पर है यह इस बात पर सब कुछ निर्भर करता है। हम हर चीज में नया खोजने का स्वभाव विकसित करे। हमारा पूरा फोक्स नई वस्तुओं से जीवन को नया करने पर नहीं वरन् स्वयं के दृष्टिकोण को नया करने पर होना चाहिए। प्रत्येक क्षण को नया बनाने के इस विचार को हकीकत में बदलने की क्षमता ही नेतृत्व की असली विशेषता है।             अब सवाल यह है कि हमारा चित्त नया कैसे हो? नए चित्त के लिए सबसे पहले हमारे मन में, मस्तिष्क में जहां-जहां पुराना हावी है, उसे जागरूकता से छोड़ने का हम प्रयास करें। यह प्रयास साल में एक दिन नहीं करना है, प्रति दिन और प्रति पल करना होता है, क्योंकि मन लगातार सुबह से शाम तक धूल इकट्ठा करता रहता है। हर रोज जीया हुआ जीवन, अनुभव, स्मृतियाँ बनकर दिमाग में बुरी तरह छा जाती हैं। उन्हें निकाल बाहर करने का कोई तरीका हम नहीं जानते। जिस तरह हम हर रोज शरीर को स्नान करने के बाद तारोताजा हो जाते हैं वैसे ही हर पल मन को उजले-उजले विचारों द्वारा हम अपने चिन्तन को तारोताजा बनाये रखे। जीवन एक धारा है, एक बहाव है, एक संकल्प है, एक जज्बा है, एक जुनून है जो रोज नया होता है।              हर बार नए साल पर हम खुद को बदलने की ठानते हैं। इस बार अपनी खुशी को समझें और उसे ही ढूंढें। जीवन में तीन चीजें हैं – पहला विचार, दूसरा स्त्रोत तथा तीसरा खुशी। विचार और खुशी के बीच छुटी हुई कड़ी अर्थात मीसिंग लिंक है हमारा स्त्रोत। अपने मीसिंग लिंक स्त्रोत से जुड़ते ही हमारे जीवन का हर विचार हमें खुशी तथा प्रतिपल नयेपन में जीने का अहसास देने लगता है। खुश रहने से हमारे शरीर के प्रत्येक सेल नये जन्म लेते हैं। शरीर के अंदर की संरचना में निरन्तर नये-पुराने होने की प्रक्रिया चलती रहती हैं। खुश रहने का धन से कोई संबंध नही है खुश रहना एक मानसिकता है इसे दिशा देकर विकसित किया जा सकता है। संत सूरदास के अनुसार अच्छे काम को करने में धन की आवश्यकता कम पड़ती है, अच्छे हृदय और संकल्प की अधिक। मानसिक स्वस्थ हमारी शारीरिक स्वस्थ की आधारशिला है। महात्मा गांधी के अनुसार दृढ़ संकल्प एक गढ़ के समान है, जो कि भयंकर प्रलोभनों से हमें बचाता है, दुर्बल और डांवाडोल होने से हमारी रक्षा करता है।             नया साल के प्रत्येक दिन तथा प्रत्येक क्षण एक चित्र की तरह है, जिसे अभी बनाया नहीं गया है। एक रास्ता है, जिस पर अभी कदम नहीं पड़े हैं। एक पंख है, जिसने उड़ान नहीं भरी है। नए साल में हमको एक संकल्प जरूरत है। दुनियाभर में नववर्ष के आगमन पर जश्न में डूबे लोगों को देखकर मस्तिष्क में यह विचार आया था कि क्या वर्ष में 1 जनवरी का दिन ही नया नहीं होता है तथा तथा वर्ष के शेष 364 दिन पुराने होते हैं। वर्ष के 364 दिन पुराने में जीने के आदी हो चुके हम 1 दिन कैसे नया महसूस कर सकते हैं? हमें निरन्तर प्रयास करके अपने प्रत्येक दिन को नया बनाना चाहिए। आइये, स्वयं को अन्दर से नया करें।             जिंदगी में ‘कुछ’ हासिल करने के लिए हमें ‘लीक को तोड़’ नई जमीन की तलाश करनी होती है। मशहूर अमेरिकी कवि व लेखक राॅल्फ वाल्डो इमर्सन कहते हैं कि वहां मत जाओ, जहां रास्ता ले जाता है, बल्कि अपने निशानों को छोड़ते हुए वहां जाओ, जहां कोई रास्ता नहीं है। बाद में दुनिया उन्हीं निशानों पर चलती है। आगे बढ़ने के लिए हरेक कामयाबी के बाद हमारा यह जानना भी बेहद जरूरी होता है कि और कहां सुधार हो सकते हैं? हम अपने अंदर छिपी ताकत को पहचाने यहीं युग की आवाज है। तुम समय की रेत पर छोड़ते चलो निशां, पुकारती तुम्हें ये जमीं पुकारता यह आंसमा।             हम यह न समझें कि दूसरे व्यक्ति का संघर्ष कम है और हमारा ज्यादा। जो जिस स्तर पर है, उसके संघर्ष का रूप भी वैसा ही होता है। इसमें सबसे बड़ी भूमिका दरअसल हमारे मन की होती है। जिसका मन मजबूत होगा, उसे जीवन में कभी कोई पराजित नहीं कर सकता है। उसे किसी भी तरह की कठिनाई अपने लक्ष्य से विचलित नहीं कर सकती है। हमें प्रत्येक क्षण अपने स्वयं के ऊपर आध्यात्मिक विजय प्राप्त करनी है। इसके लिए छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करके आगे की ओर कदम निरन्तर बढ़ाते रहना है।  हमें अपनी ऊर्जा को चारों तरफ से समेटकर अपने लक्ष्य पर फोकस करना है।             समस्या को समस्या मानना भी अपने आप में एक समस्या से भरी सोच है। जीवन में असफलता का मिलना बुरा नहीं है। हर असफलता अपना कीमती अनुभव हमारे लिए छोड़कर जाती है। हमें अपने को यह बात याद दिलाने की जरूरत है कि हारना बुरा नहीं है।…और क्या हुआ अगर हम हार गए हैं? कम से कम हमने कोशिश तो की। ये कोशिश ही हमारी सफलता है। इसलिए पूरे विश्वास से कहा जा सकता है कि मुश्किल नहीं गिर कर उठना। किसी ने कहा है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती, लहरों से डरकर नैया पार नहीं होती। संत रामतीर्थ ने कहा है कि सफलता का पहला सिद्धांत है- काम, अनवरत काम।             जिंदगी को … Read more

जरूरी है मन का अँधेरा दूर होना

भारतीय संस्कृति में अक्टूबर नवम्बर माह का विशेष महत्त्व है,क्योंकि यह महीना प्रकाशपर्व दीपावली लेकर आता है.दीपावली अँधेरे पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है भौतिक रूप से दीपावली हर साल सिर्फ एक साँझ की रौशनी लेकर आती है और साल भर के लिए चली जाती है,किन्तु प्रतीकात्मक रूप से उसका सन्देश चिरकालिक है.प्रतिवर्ष दीपपर्व हमें यही सन्देश देता है कि अँधेरा चाहे कितना ही सघन क्यों न हो,चाहे कितना ही व्यापक क्यों न हो और चाहे कितना ही भयावह क्यों न हो,लेकिन उसे पराजित होना ही पड़ता है.एक छोटा सा दीप अँधेरे को दूर करके प्रकाश का साम्राज्य स्थापित कर देता है. अंधेरे का खुद का कोई अस्तित्व नहीं होता,खुद का कोई बल नहीं होता,खुद की कोई सत्ता नहीं होती. अँधेरा प्रकाश के अभाव का नाम है और सिर्फ उसी समय तक अपना अस्तित्व बनाये रख सकता है,जब तक प्रकाश की मौजूदगी न हो.अँधेरा दिखाई भले ही बहुत बड़ा देता हो,लेकिन इतना निर्बल होता है कि एक दीप जलते ही तत्काल भाग खड़ा होता है.दीपक प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। दीपक से हम ऊंचा उठने की प्रेरणा हासिल करते हैं। शास्त्रों में लिखा गया है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर चलने से ही जीवन में यथार्थ तत्वों की प्राप्ति सम्भव है। अंधकार को अज्ञानता, शत्रु भय, रोग और शोक का प्रतीक माना गया है। देवताओं को दीप समर्पित करते समय भी ‘त्रैलोक्य तिमिरापहम्’ कहा जाता है, अर्थात दीप के समर्पण का उद्देश्य तीनों लोकों में अंधेरे का नाश करना ही है। आज बाहर के अँधेरे से ज्यादा भीतर का अँधेरा मनुष्य को दुखी बना रहा है.विज्ञानं ने बाहर की दुनिया में तो इतनी रौशनी फैला दी है,इतना जगमग कर दिया है कि बाहर का अँधेरा अब उतना चिंता का विषय नहीं रहा,लेकिन उसी विज्ञानं की रौशनी की चकाचौंध में भीतर की दुनिया हीन से हीनतर बनती | जा रही है,जिसका समाधान तलाश पाना विज्ञानं के बस की बात नहीं है.भीतर के अँधेरे से मानव जीवन की लड़ाई बड़ी लम्बी है.जब भीतर का अँधेरा छंटता है.तो बाहर की लौ जगमगा उठती है ,नहीं तो बाहर का घोर प्रकाश भी भीतर के अँधेरे को दूर नहीं कर पाता | जैसे जैसे जीवन में एकाकीपन बढ़ता है मन का अँधेरा और घना होता जाता है | कभी – कभी यह त्यौहार हमारे अन्दर के खालीपन को और बढ़ा देते हैं| क्योंकि त्योहारों में जबरन हंसने के बाद एकाकीपन और महसूस होता है | कभी अवसाद के शिकार किसी व्यक्ति से मिलिए सब कुछ होते हुए भी उसके अन्दर का अँधेरा बहुत घना होता है | भीतर की दुनिया का अँधेरा सिर्फ सकारात्मक सोच और प्रेरक विचारों से ही दूर किया जा सकता है.भीतर का अँधेरा दूर करने के लिए आत्मतत्व को पहचानना जरूरी है |सकारात्मक विचारों का प्रचार प्रसार इतना हो पूरी धरा से निराशा के अँधेरे का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाये.यहाँ सकारात्मक विचारों का अर्थ केवल अच्छा सोंच कर स्वप्नों की दुनिया में रहना ही नहीं , उनको यथार्थ में तब्दील करना है | किसी के आंसूं पोछने हैं , किसी के होठों पर मुस्कराहट लाने का प्रयास करना है | किसी एकाकी व्यक्ति से आत्मीयता के साथ उसका हाल पूँछ लेना हैं | जिससे ये सकर्त्मकता हर तरह फ़ैल जाए और मन का अँधेरा कहीं टिक न पाए | जरूरी है दीप से दीप जलाने का यह सिलसिला तब तक चलता रहे,तब तक मानव मन से अँधेरे का समूल नाश नहीं हो जाता| अंत में गोपालदास नीरज जी की कुछ पंक्तियाँ ……. ” जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतनाअँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए ” ओमकार मणि त्रिपाठीप्रधान सम्पादक

विचार मनुष्य की संपत्ति हैं

“जिस हृदय में विवेक का, विचार का दीपक जलता है वह हृदय मंदिर तुल्य है।” विचार शून्य व्यक्ति, उचित अनुचित, हित-अहित का निर्णय नहीं कर सकता। विचारांध को स्वयं बांह्माड भी सुखी नहीं कर सकते। मानव जीवन ही ऐसा जीवन है, जिसमें विचार करने की क्षमता है, विचार मनुष्य की संपत्ति है। विचार का अर्थ केवल सोचना भर नहीं है, सोचने के आगे की प्रक्रिया है। विचार से सत्य-असत्य, हित-अहित का विश्लेषण करने की प्रवृत्ति बढती है। विचार जब मन में बार-बार उठता है और मन व संस्कारों को प्रभावित करता है तो वह भावना का रूप धारण करता है। विचार पूर्व रूप है, भावना उत्तर-रूप है। जीवन निर्माण में विचार का महत्व चिंतन और भावना के रूप में है। “मनुष्य वैसा ही बन जाता है जैसे उसके विचार होते हैं।” विचार ही हमारे आचार को प्रभावित करते हैं। विचार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सद्विचार, सुविचार या चिंतन मनन के रूप में। चिंतन-मनन ही भावना का रूप धारणा करते हैं। भावना संस्कार बनती है और हमारे जीवन को प्रभावित करती है। भावना का अर्थ है मन की प्रवृत्ति। हमारे जीवन में, हमारे धार्मिक एवं आध्यात्मिक अभ्युत्थान में भावना एक प्रमुख शक्ति है। भावना पर ही हमारा उत्थान और पतन है-भावना पर ही विकास और ह्रास है। “शुद्ध पवित्र और निर्मल भावना जीवन के विकास का उज्ज्वल मार्ग प्रशस्त करती है।” भावना एक प्रकार का संस्कार मूलक चिंतन है। वस्तुत: मन में उठने वाले किसी भी ऐसे विचार को जो कुछ क्षण स्थिर रहता है और जिसका प्रभाव हमारी चिंतन धारा व आचरण पर पडता है उसे हम भावना कहते हैं। ओमकार मणि त्रिपाठी प्रधान संपादक – अटूट बंधन एवं सच का हौसला

जरूरी है मनुष्य के भीतर बेचैनी पैदा होना

कुछ नया जानने , कुछ अनोखा रचने की बेचैनी ही वजह से ही विज्ञानं का अस्तित्व है |कब आकाश  पर निकले तारों को देख कर मनुष्य को बेचैनी हुई होगी की जाने क्या है क्षितिज के पार | तभी जन्म लिया ज्योतिष व खगोल शास्त्र ने | और खोल के रख दिए ग्रहों उपग्रहों के अनगिनत भेद | यह बेचनी ही तो थी जो उसे पानी से बिजली और बिजली के दम पर ऊँची – ऊँची अट्टालिकाओं में पानी चढाने की सहूलियत देती चली गयी | यह सच है की विज्ञानं की बदौलत मानव आज ” अपने एनिमल किगडम ” से ऊपर उठ कर सफलता के अंतरिक्ष पर बिठा दिया | विज्ञानं की बदौलत प्रगति के तमाम सोपानों को हासिल करने के बावजूद आज के आदमी की मानसिकता में बहुत बड़ा अंतर नहीं आया है. आज भी वह उन मूल्यों का बोझ ढो रहा है, जो वैयक्तिक और सामाजिक चेतना पर आवरण डालने वाले हैं. वह आज भी उन परंपराओं में जी रहा है, जो केंचुल की भांति अर्थहीन हैं और गति में बाधा उपस्थित करने वाली हैं. वह आज भी सोच के उस बियावान में खड़ा है, जहां उसका पथ प्रशस्त नहीं है और मंजिल तक पहुंचाने वाला नहीं है. ऐसी स्थिति में हम धरती पर जनम रहे, पनप रहे सारे गलत मूल्यों के साथ संघर्ष करने का संकल्प जगा सकें तो ऐसा क्षण भी उपस्थित हो सकता है जो मनुष्य के भीतर एक बेचैनी पैदा कर दे, उथल-पुथल मचा दे और ऐसी मशाल जला दे जो विचारों का सारा कलुष धोकर उसके सामने दिव्य उजाला बिछा दे.जब तक आदमी की सोंच या आदमियत में फर्क नहीं आएगा तब तक यह सफलता केवल भौतिक है | पर अपने मन में जमे हुए विचारों के खिलाफ संघर्ष ही उसे ” किंगडम ऐनिमेलिया से इतर देवताओं के समकक्ष लाकर खड़ा कर सकता है | जरूरी है तीव्र इक्षा शक्ति और बेचैनी , जो सदैव ही नए विचारों , नए अनुसंधानों को जन्म देती रही है |आइये सारे गलत मूल्यों के साथ संघर्ष करने की इस मशाल को जलाए | जन जन के मन में बेचैनी पैदा करें …. और नए बेहतर विश्व का निर्माण करें | ओमकार मणि त्रिपाठी प्रधान संपादक – अटूट बंधन एवं सच का हौसला

सकारात्मक चिंतन और व्यक्तित्व विकास एक ही सिक्के के दो पहलू

सकारात्मक चिंतन और व्यक्तित्व विकास एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | जो एक साथ आतें हैं |दरसल जब लोग पर्सनाल्टी शब्द का प्रयोग करतें है तो वह इसे शारीरिक आकर्षण या सुन्दर व्यक्तित्व के रूप में लेते हैं | पर यह पर्सनालिटी का बहुत संकुचित रूप हुआ | वास्तव में पर्सनॅलिटी सिर्फ़ शारीरिक गुणों से ही नही बल्कि विचारों और व्यवहार से भी मिल कर बनती है | जो हमारे व्यवहार और समाज में हमारे समायोजन को भी निर्धारित करती है | इसका निरंतर विकास किया जा सकता है | सिर्फ सुन्दर या बुद्धिमान होना एक बात है | पर व्यक्तित्व का अर्थ है हम अपने पोस्चर ( आसन ) व् गेस्चर ( इशारों ) द्वारा अपने ज्ञान का सही उपयोग कैसे कर पातें हैं की हमारी बात प्रभावशाली लगने लगे | व्यक्तिव को निखारने का सबसे आसान व् खूबसूरत तरीका ये है की व्यक्ति अपने देखने का तरीका या नजरिया बदल दे | एक सच्चाई है की व्यक्ति अपनी आँखों से नहीं दिमाग से देखता है | और अगर दिमाग में नकारात्मक विचार भरे हैं तो वह कभी अपने आप को या दूसरों को सही नज़रिए से नहीं देख पायेगा | नकारात्मक विचारों को दूर करते ही इन्फ़िरिओरिटी काम्प्लेक्स दूर हो जाता है और व्यक्तित्व का विकास शुरू हो जाता है | अगर आप देखे तो महात्मा गाँधी या मार्टिन लूथर किंग शारीरिक रूप से बहुत खूबसूरत नहीं थे परन्तु सकारात्मक विचारों के कारण उनका व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली बन गया था | अपने बारे में अच्छा सोच कर , खुद को प्यार करके , जिंदगी में ऐसे लक्ष्य बना कर जिन्हें हम पा सकें नकारात्मक विचारों पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है | सकारात्मक विचार तभी आते हैं जब व्यक्ति अपने को पूर्ण रूप से स्वीकार कर ले | अपनी कमियों , अपने चेहरे के निशानों को , शारीरिक गुण-दोषों को सहजता से स्वीकार कर ले | जब व्यक्ति सकारात्मक विचारों से घिरा होता है | तो वो उर्जा के उच्च स्तर पर होता है | जिससे उसके पारस्परिक संबंध अच्छे चलते हैं | सामाजिक स्वीकार्यता किसी व्यक्ति के आत्म विश्वास को बढ़ा कर उसके व्यक्तित्व विकास के नीव की ईंट रखती है | इसके बाद सीखने की इच्छा जागृत होती है| बोलने चलने उठने बैठने के कुछ ढंगों को सीख कर व्यक्तित्व को चमत्कारी बनाया जा सकता है | कुल मिला कर देखा जाए सकारात्मक विचार व् व्यक्तित्व विकास अलग –अलग नहीं एक दूसरे के पूरक हैं | ओमकार मणि त्रिपाठी 

फीलिंग लॉस्ट : जब लगे सब खत्म हो गया है

आज मैं लिखने जा रही हूँ उन तमाम निराश हताश लोगों के बारे में जो जीवन में किसी मोड़ पर चलते – चलते अचानक से रुक गए हैं | जिन्हें गंभीर अकेलेपन ने घेर लिया है और जिन्हें लगता है की जिंदगी यहीं पर खत्म हो गयी है |सारे सपने , सारे रिश्ते , सारी संभावनाएं खत्म हो गयीं | यही वो समय है जब बेहद अकेलापन महसूस होता है | ऐसे ही कुछ चेहरे शब्दों और भावों के साथ मेरी आँखों के आगे तैर रहे हैं , जहाँ जिन्दगी अचानक से अटक गयी थी और उसका कोई दूसरा छोर नज़र ही नहीं आ रहा था …….. * निशा जी , दो बच्चों की माँ , जब उसके सामने पति का दूसरा प्रेम प्रसंग सामने आया तो उसे लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया है | अपनी सारी त्याग , तपस्या प्रेम सब कुछ बेमानी लगने लगा | उस पर समाज का ताना ,” पति को सँभालने का हुनर नहीं आता , वर्ना क्यों वो दूसरी के पास जाता ” , जले पर नमक छिडकने के लिए पर्याप्त था | मृत्यु ही विकल्प दिखती , पर उसे जीना था , अपनी लाश से खुद ही नकालकर … अपने बच्चों के लिए | *सुजाता , एक जीनियस स्टूडेंट जिसकी आँखों में बहुत सारे सपने थे | पर क्योकर उसका पढाई से मन हटता चला गया | वो खुद भी नहीं समझ पायी | कॉलेज जाने के लिए रोज खुद को मोटिवेट करती पर रोज निराश हो तकिये में मुंह छिपा कर सो जाती | रोज खुद को उत्साहित करने व् निरुत्साहित होने का एक ऐसा चक्रव्यूह चला की वो उससे निकल ही नहीं पायी | अकेली होती गयी | परिणाम वही हुआ जिससे वो भाग रही थी | असफलता … न सिर्फ उसके बल्कि उसके माता – पिता व् परिवार के सपनों की | * प्रशांत ने एक स्टार्ट अप शुरू किया , उसकी आँखों में चमक थी उन बहुत सारे सपनों की … जो शायद रियलिस्टिक नहीं थे | पर उसने उन्हें पूरा करने अपना सारा समय , पैसा व् अथाह परिश्रम झोंक दिया | पर सपनों ने सपनों सा परिणाम नहीं दिया कम्पनी बंद हो गयी | निराशा के अंधियारे ने उसे अकेलेपन में डुबो दिया | ये मात्र कुछ उदाहरण हैं .. उन बहुत सारे लोगों के जो जीवन में कभी न कभी लॉस्ट या सब कुछ खतम हो गया महसूस करते हैं | अगर आप या आपका कोई अपना भी ऐसी ही मन : स्तिथि से गुजर रहा है | तो शायद मेरा यह लेख आपके कुछ काम आ सके | कुछ लिखने से पहले मैं अपनी प्लेलिस्ट ऑन कर देती हूँ | और संयोग से आज जो पीछे से मधुर गीत बज रहा है वो मुझे बहुत प्रेरणा दे रहा है | गीत के बोल हैं ,” चल अकेला , चल अकेला चल अकेला …. तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला | ” एक दार्शनिक सा गीत जिसमें जीवन का सार छुपा हुआ है | और कहीं न कहीं यह भी छुपा हुआ है की हमसे आपसे पहले बहुत से लोग इस ” सब कुछ खत्म हो गया ” वाली भावनात्मक दशा से गुज़र चुके हैं |इस गीत को सुनते हुए मुझे राधिका जी ( परिवर्तित नाम ) याद आ जाती हैं | राधिका जी जो इस समय एक सफल डॉक्टर हैं अपने अनुभव बताते हुए कहती हैं , ” आज मैं सफल , सुखी और संतुष्ट नज़र आती हूँ पर कभी कभी इस प्रकार के भावों से मुझे भी दो चार होना पड़ा | तब इस गीत को सुन कर मुझे लगा की शायद हम सब ” अपने अपने अकेलेपन को भोगने के लिए आये हैं |”क्या ये खूबसूरत धरती मात्र पेट भरती है ,”मन नहीं ” ? लेकिन इसमें एक खास बात थी |                                        जितना ज्यादा मैं इस अकेलेपन या , निराशा या सब खत्म हो गया के बारे में सोंचती , उतना ही मुझे इस अकेलेपन की ख़ूबसूरती दिखाई देने लगती | एक ऐसे ख़ूबसूरती जिससे मैं अभी तक अनभिग्य थी | वह खूसुरती थी उस शख्स को जानने समझने का अवसर जिससे हम सबसे ज्यादा प्यार करते हैं , यानि हम खुद | ये अकेला पन हमें खुद से कनेक्ट होने का अवसर देता है | आइये जानते हैं कैसे … अकेले हो कर भी हम अकेले नहीं सब से पहले तो जान लीजिये की अकेला होंना इतना आसान नहीं है | जब आप को लगता है की आप के जीवन में यह निराशा की चरम सीमा है , सब कुछ खत्म हो गया है , आप किसी लायक नहीं है , आप को कोई प्यार नहीं करता और आप दुनिया में बिलकुल अकेले हैं |यकीन मानिए ठीक उसी समय बहुत से लोग जिनका रूप , रंग , आकर आपसे भिन्न होगा | वो आपसे परिचित , अपरिचित हो सकते हैं आप से मीलों दूर हो सकते हैं पर अपने बारे में ठीक वैसा ही सोंच रहे हैं | मतलब आप अकेले हो कर भी अकेले नहीं हैं , आप उस बहुत बड़े group का हिस्सा हैं जो खुद को अकेला महसूस करता है | जब छोड़ देना साथ चलने से बेहतर लगे जब आप अकेलापन महसूस करते हैं तब आप अकेले रहना चाहते हैंकभी आप ने सोंचा है की जब आप अकेले होना चाहते हैं तभी आपकेलापन महसूस करते हैं | कभी – कभी आप भीड़ में भी बेहद तनहा मह्सूस करते हैं तो कभी अकेले घर में मधुर संगीत और एक कप कॉफ़ी के साथ तरोताज़ा महसूस करते हैं | यानी आप का ध्यान आप के अकेलेपन पर जाता ही नहीं |अब जरा गौर करिए जब आपके अन्दर ग्लूकोज की कमी हो जाती है और आप काम में लगे होते हैं , तो कौन बताता है आप को की आप को कुछ खा लेना चाहिए … आप का दिमाग | जी हाँ ! आप का दिमाग सिग्नल देता है और आप को जोर की भूख लगती है | ठीक वैसे ही जब आप सब कुछ खत्म हो गया की फीलिंग … Read more