विचार मनुष्य की संपत्ति हैं

ओमकार मणि त्रिपाठी प्रधान संपादक – अटूट बंधन एवं सच का हौसला जिस हृदय में विवेक का, विचार का दीपक जलता है वह हृदय मंदिर तुल्य है। विचार शून्य व्यक्ति, उचित अनुचित, हित-अहित का निर्णय नहीं कर सकता। विचारांध को स्वयं बांह्माड भी सुखी नहीं कर सकते। मानव जीवन ही ऐसा जीवन है, जिसमें विचार करने की क्षमता है, विचार मनुष्य की संपत्ति है। विचार का अर्थ केवल सोचना भर नहीं है, सोचने के आगे की प्रक्रिया है। विचार से सत्य-असत्य, हित-अहित का विश्लेषण करने की प्रवृत्ति बढती है। विचार जब मन में बार-बार उठता है और मन व संस्कारों को प्रभावित करता है तो वह भावना का रूप धारण करता है। विचार पूर्व रूप है, भावना उत्तर-रूप है। जीवन निर्माण में विचार का महत्व चिंतन और भावना के रूप में है। मनुष्य वैसा ही बन जाता है जैसे उसके विचार होते हैं। विचार ही हमारे आचार को प्रभावित करते हैं। विचार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सद्विचार, सुविचार या चिंतन मनन के रूप में। चिंतन-मनन ही भावना का रूप धारणा करते हैं। भावना संस्कार बनती है और हमारे जीवन को प्रभावित करती है। भावना का अर्थ है मन की प्रवृत्ति। हमारे जीवन में, हमारे धार्मिक एवं आध्यात्मिक अभ्युत्थान में भावना एक प्रमुख शक्ति है। भावना पर ही हमारा उत्थान और पतन है-भावना पर ही विकास और ह्रास है। शुद्ध पवित्र और निर्मल भावना जीवन के विकास का उज्ज्वल मार्ग प्रशस्त करती है। भावना एक प्रकार का संस्कार मूलक चिंतन है। वस्तुत: मन में उठने वाले किसी भी ऐसे विचार को जो कुछ क्षण स्थिर रहता है और जिसका प्रभाव हमारी चिंतन धारा व आचरण पर पडता है उसे हम भावना कहते हैं। हमारा वेब पोर्टल

सफलता के मार्ग पर आलोचना,निंदा अपरिहार्य है

सफलता के मार्ग पर आलोचना,निंदा अपरिहार्य है सफलता के मार्ग पर आलोचना अपरिहार्य है। दुनिया में ऐसा कौन है,जिसकी आलोचना या निंदा नहीं हुई.इन्सान तो इन्सान,लोग तो भगवान् तक की आलोचना से नहीं आते.आलोचना और निंदा एक तरह से सफलता का मापदंड भी है.आलोचना और निंदा सफल लोगो की ही होती है.आखिर 30 साल पहले कौन नरेन्द्र मोदी की आलोचना या निंदा करता था. आलोचना सदैव दूसरे व्यक्ति की राय होती है। विफलता सहानुभूति लाती है,लेकिन सफलता आलोचकों और निंदको की भीड़ भी अपने साथ लाती है.यदि आप उनकी धारणासे सहमत हैं, तो उनकी आलोचना आपको स्वयं में सुधार लाने के लिए प्रेरित कर सकती है। परंतु यदि आप सहमत नहीं हैं, तो संभवतः आप नकारात्मकता को अंगीकार कर रहे हैं। नकारात्मक भावनाएं आप को दुर्बल बनाती हैं । कभी कभी आलोचना का सामना करना कठिन हो सकता है, विशेषकर जब आलोचना अपने प्रिय लोगों से आती है। जब दूसरे आप पर अपनी नकारात्मकता और राय थोपते हैं, उस क्षण ये निर्णय आप पर है कि आप उस आलोचना को अस्वीकार करते हैं, त्याग देते हैं या जाने देते हैं। यदि आप ऐसा करें तो आप शांतिपूर्ण रहेंगे और आपके ह्रदय को अधिक ठेस भी नहीं पहुंचेगी।सदैव दूसरों में दोष ढूंढते रहना मानवीय स्वभाव का एक बड़ा अवगुण है। दूसरों में दोष निकालना और खुद को श्रेष्ठ बताना कुछ लोगों का स्वभाव होता है। इस तरह के लोग हमें कहीं भी आसानी से मिल जाएंगे। प्रत्येक मनुष्य का अपना अलग दृष्टिकोण एवं स्वभाव होता है। दूसरों के विषय में कोई अपनी कुछ भी धारणा बना सकता है।                                           (चित्र गूगल से )  हर मनुष्य का अपनी जीभ पर अधिकार है और निंदा करने से किसी को रोकना संभव नहीं है।लोग अलग-अलग कारणों से निंदा रस का पान करते हैं। कुछ सिर्फ अपना समय काटने के लिए किसी की निंदा में लगे रहते हैं तो कुछ खुद को किसी से बेहतर साबित करने के लिए निंदा को अपना नित्य का नियम बना लेते हैं। निंदकों कोसंतुष्ट करना संभव नहीं है। जिनका स्वभाव है निंदा करना, वे किसी भी परिस्थिति में निंदा प्रवृत्ति का त्याग नहीं कर सकते हैं। इसलिए समझदार इंसान वही है जो उथले लोगों द्वारा की गई विपरीत टिप्पणियों की उपेक्षा कर अपने काम में तल्लीन रहता है। किस-किस के मुंह पर अंकुश लगाया जाए, कितनों का समाधान किया जाए!प्रतिवाद में व्यर्थ समय गंवाने से बेहतर है अपने मनोबल को और भी अधिक बढ़ाकर जीवन में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहें। ऐसा करने से एक दिन आपकी स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी और आपके निंदकों को सिवाय निराशा के कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।जो सूर्य की तरह प्रखर है, उस पर निंदा के कितने ही काले बादल छा जाएं किन्तु उसकी प्रखरता, तेजस्विता और ऊष्णता में कमी नहीं आ सकती। ओमकार मणि त्रिपाठी  atoot bandhan हमारे फेस बुक पेज पर भी पधारे 

आदतें बदलें,जिन्दगी बदल जाएगी

आदतें बदलें,जिन्दगी बदल जाएगी आदतें चाहे अच्छी हों या बुरी, हमारी जिंदगी में इनका असर बहुत पड़ता है। कुछ आदतें ऎसी भी होती हैं, जो हमारे अंदर सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं। ऎसी आदतों को हमें विकसित करने की जरूरत होती है, क्योंकि यह तो सत्य है कि गंदी आदतें तुरंत पड़ जाती हैं और अच्छी आदतों के लिए हमें मशक्कत करनी पड़ती है। अगर आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है तो अपने अंदर अच्छी आदतें विकसित करनी ही पड़ेंगी. प्राथमिकता सोच लें कई बार आप अपने लक्ष्य को प्राप्त इसलिए भी नहीं कर पाते हैं कि आप अपना यह निर्णय ही नहीं कर पाते कि जिंदगी में आपकी प्राथमिकता क्या है? इसलिए कई बार आप भ्रमित भी हो जाते हैं कि आपको कौन से समय में क्या करना है. प्राथमिकता तय करने के बाद लक्ष्य प्राप्त आसान होगी। चुनौती का सामना करें  यह व्यक्तिगत दृष्ठिकोण है ,अर्थात अपनी सोच तथा कार्यो के लिए स्वयम उत्तरदायी हों,उत्तरदायित्व स्वीकार करें.पहल करें तथा कार्य करने की जिम्मेदारी उठाये. जल्दी उठने की आदत डालें रोजाना देर से उठना यानी जरूरी कार्यो के लिए कम समय। यदि आप रोजाना दस मिनट जल्दी उठते हैं तो ये दस मिनट बहुत उपयोगी साबित होते हैं। इनमें आप ऎसी चीजें कर सकते हैं जो देखने में छोटी लगती हैं लेकिन बहुत खुशी और संतोष देती हैं। खुद को समझें  इससे पहले कि लोग आप को समझें,आप खुद को समझें.दूसरो की बात सुनने और समझने का कौशल विकसित करें. आरी की धार तेज करते रहें आप अपने सद्गुणों को निरंतर निखारते रहें.स्व का संरक्षण तथा संवर्धन आपका प्रथम कर्तव्य है.अपनी शारीरिक,मानसिक सामाजिक और भावनात्मक क्षमताओ को निरंतर बढ़ाते रहें. ज़माने को नहीं ,खुद को बदले  लोगो को बदलने में अपना समय और उर्जा बर्बाद न करें.जंहा जरूरत हो ,लोगो को बदलने के बजाय खुद को बदलने की कोशिश करें. दूसरो से नहीं ,खुद से तुलना करें  तुलना करना मानव स्वभाव का अभिन्न अंग है ,लेकिन स्वयं की दूसरो लोगो से कदापि तुलना न करें.खुद की खुद से तुलना करें वचन निभाने की आदत  सफलता के लिए यह बेहद जरूरी है कि लोग आप पर विश्वास करें और आप यह विश्वास तभी अर्जित कर पाएंगे,जब वचन निभाने की आदत डालेंगे,वचन,रिश्ते और विश्वास बनाये रखें. न कहने की और न सुनने की आदत डालें  अगर आप सफलता चाहते हैं,तो असहमति व्यक्त करने की आदत जरूर डाले.जिस बात से असहमत हों,वंहा न कहें और यदि कोई आपको न कहे तो उसे भी धैर्यपूर्वक स्वीकार करे. अच्छी आदतों को डालने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।यदि आप 21 दिन तक कोई अच्छा या बुरा कार्य करते हैं तो वह आपकी आदत बन जाती है. इसलिए आप अगर अंदर सकारात्मक बदलाव चाहते हैं तो एक हफ्ते से लेकर तीन हफ्ते तक अपने लिए एक टार्गेट फिक्स कर दें। हर बार जब आप अपना टार्गेट पूरा कर लें तो आप खुद को इनाम दें। इससे आप खुद को मोटीवेट भी कर पाएंगे।एक बार जब आप एक अच्छी आदत अपने अंदर विकसित कर लेते हैं तो फिर इसके बाद कोई अन्य आदत विकसित करने का टार्गेट रखें। ओमकार मणि त्रिपाठी atoot bandhan .…..फेस बुक पेज पर भी पधारे 

अब मॉफ भी कर दो

स्वीकारती हूँ  सींच रही थी मैं  अंदर ही अंदर  एक वट वृक्ष  क्रोध का  कि चुभने लगे थे कांटे  रक्तरंजित  थे पाँव   कि हो गया था असंभव चलना  नहीं ! अब और नहीं  अब बस …………. आज से, अभी से   मैं क्षमा करती हूँ उन्हें  जिन्होंने मुझे आहत किया  मैं क्षमा करती हूँ उन्हें  जिन्होंने मेरा पथ रोक लिया  पर उससे पहले मैं  क्षमा करती हूँ  अपने आप को  तमाम अपराध बोधों से  कि ऐसा वैसा किया होता  तो कुछ और होता जीवन  या ………  ये ,वो राह पकड़ी होती  तो कुछ और दिखाता दर्पण  हां ! अब मैं  सहज ,सरल हूँ  उतर गया है टनो बोझ क्रोध का  मिट  गयी हैं कालिख  मन दर्पण की  अब  दिख रहा है भविष्य पथ  उजला सा दूर तक   नए हौसलों के साथ  अब बढ़ाउंगी कदम ……….                                              क्या आपने कभी सोचा है की हँसते -बोलते ,खाते -पीते भी हमें महसूस होता है टनो बोझ अपने सर पर। एक विचित्र सी पीड़ा जूझते  रहते हैं हम… हर वक्त हर जगह। एक अजीब सी बैचैनी। ………… किसी अपने के दुर्व्यवहार की ,या कभी किसी अपने गलत निर्णय की हमें सदा घेरे रहती है। प्रश्न उठता है आखिर क्या है इससे निकलने का उपाय ? ऐ  विधाता ऐ खुदा हमें मॉफ कर,हमें मॉफ कर   हमें क्या पता कहाँ जा रहे क्या है रास्ता हमें मॉफ कर ,हमें मॉफ कर …………                                         आज भी किसी फिल्म का यह गीत मेरा ध्यान बरबस अपनी ओर खीच लेता है। हम हर रोज ईश्वर से हाथ जोड़ कर मॉफी मांगते हैं और उम्मीद करते हैं कि उन्होंने हमें मॉफ कर दिया है। इसके बाद हम हल्का महसूस करते हैं।                                         परन्तु यह बात केवल ईश्वर से हमें क्षमा मिल जाने तक सीमित नहीं है बहुत जरूरी है कि हम अपने को मॉफ करना सीखें। मेरे आपके समाज के और देश के आपसी रिश्तों को तरोताज़ा रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि हम अतीत की गलतियों को भूल कर ,उन गलतियों को मॉफ कर आगे बढे। अतीत चाहे रिश्तों की कड़वाहट से भरा हो चाहे अपने प्रति नाराज़गी भरी हो। कोई ऐसा कदम जो नहीं उठाया या कोई ऐसा कदम जो उठा लिया उन सब को सोच -सोच कर हम अपना वर्तमान खराब करते रहते हैं। सीखे मॉफ करना :-                            कड़वाहट भूलने के लिए सबसे जरूरी है मॉफ करना। कभी -कभी हम किसी बात को पकडे हुए न सिर्फ रिश्तों का मजा खो देते हैं बल्कि अंदर ही अंदर स्वयं भी किसी आग में जलते रहते हैं।                                                      मेरी एक परिचित हैं उनके यहाँ पिता -पुत्र में झगड़ा हो गया ,गुस्से में बेटा अपनी पत्नी को लेकर घर छोड़ कर चला गया। पिता दिल के मरीज थे ,बर्दाश्त नहीं कर सके उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी। एक अकेली मध्यमवर्गीय स्त्री पर अपनी ५ अनब्याही कन्याओं के विवाह की जिम्मेदारी आ गयी। उन्होंने बहुत हिम्मत के साथ एक -एक करके ४ लड़कियों का विवाह किया। उनका बेटा बार -बार मॉफी मांगने आता माँ का दिल पसीजता पर एक पत्नी अपने बेटे को ही अपने पति का हत्यारा समझती रही ,और अपने ही बेटे के प्रति भयंकर कड़वाहट से भरी रही। इस तीस ,इस पीड़ा से वो मुक्त नहीं हो पा रही थी। अंततः उन्होंने अपने बेटे को मॉफ करने का फैसला किया। बेटे ने अपनी बहन की शादी करायी। और अब श्रीमती उपाध्याय (परिवर्तित नाम )अपने बेटे -बहु , पोते -पोतियों के साथ वृद्धावस्था का आनंद उठा रही हैं। पूछने पर कहती हैं “काश मैंने अपने बेटे को पहले ही मॉफ कर दिया होता तो आज इतनी बीमारियों से न घिरी होती।              क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक ;-                               मनोवैज्ञानिक सुधा अग्रवाल कहती हैं कि अगर कोई मनुष्य अपने अंदर क्रोध ,नफरत की भावना ज्यादा लम्बे समय तक पनपने देता है तो उसे तमाम तरह की बीमारियां घेर लेती हैं जैसे हाई ब्लड प्रेशर ,हाइपर टेंशन ,डिप्रेशन आदि। अपने गुस्से पर काबू रखने की कोशिश में व्यक्ति ईष्यालु ,झगडालू और क्रोधी हो जाता है। ऐसी सोच वाला व्यक्ति अपने जीवन में ज्यादा आगे नहीं जा सकता है। मनोवैज्ञानिक डॉ अतुल नागर कहते हैं ,अगर हम हर छोटी -छोटी बात पर लोगों से किनारा करते रहे तो कुछ समय बाद हम अपने में सिमट जायेंगे और हमारे सरे रिश्ते ख़त्म हो जायेंगे। पर्सनाल्टी एवं साइकोलॉजिकल रिव्यू के अनुसार मॉफ करने की आदत हमारे जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाती है रिश्ते बहुत कीमती हैं :-                                                  हम छोटा सा जीवन ले कर आये हैं। हमें अपने रिश्तों की कद्र  करनी चाहिए।  रिश्तों में आपसी प्रेम और ताल-मेल न सिर्फ हमें भावनात्मक मजबूती प्रदान करता है बल्कि हमारे विकास के मार्ग को भी प्रशस्त करता है। मनुष्य एक सामजिक प्राणी हैं और एक सुखद जीवन जीने के लिए उसे रिश्तों की आवश्यकता है। जरा -जरा सी बात पर रिश्ते तोड़ने से हम अलग -थलग पड़  जाएंगे। रिश्तों को बनाने में बहुत म्हणत पड़ती है उन्हें तोडा नहीं जा सकता ,वैसे भी जितने लोग हमारे साथ जुड़े होते हैं हमारा मनोबल उतना ही ऊंचा होता है।                       “जिंदगी के कैनवास पर जितने रंग होंगे ,तस्वीर उतनी ही सुन्दर बनेगी “                                                 इसका मतलब यह नहीं कि हम हर किसी के बुरे व्यवहार … Read more

स्टीफन हॉकिंग: हिम्मत वाले कभी हारते नहीं

महान वैज्ञानिक स्टीफन विलियम हाकिंग  का जन्म 8 जनवरी 1942 को हुआ था | एक सामान्य स्वस्थ बच्चे के रूप में जन्म लेंने वाले हाकिंग का जन्म का दिन खास था क्योंकि उसदिन महान  वैज्ञानिक गैलिलियो का भी जन्म हुआ था | शायद सितारों ने पहले ही उनकी विज्ञान के प्रति रुझान की  भविष्यवाणी कर दी थी | हॉकिंग अपने परिवार की सबसे बड़ी संतान थे | उनके परिवार में उनके पिता फरक जो की डॉक्टर थे , माँ  गृहणी व् पिता द्वारा गोद लिए गए दत्तक पुत्र व दो बहिने थीं | बचपन से वो मेधावी छात्र थे और हमेशा  क्लास में अव्वल आते रहे | उनकी बुद्धि से प्रभावित लोग बचपन से ही उन्हें आइन्स्टीन कह कर बुलाते थे | गणित  उनका प्रिय विषय था , और सितारों से बात करना उनका प्रिय शगल | वो बड़े हो कर अन्तरिक्ष और ब्रह्माण्ड के रहस्यों को जानना  चाहते थे | उनकी प्रतिभा और लगन काम आई मात्र 20 वर्ष की आयु में उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविध्यालय में कॉस्मोलोजी विषय में रिसर्च करने के लिए चुन लिया गया |   स्टीफन हॉकिंग :हिम्मतवाले कभी हारते नहीं                       २१ वर्ष की आयु तक हॉकिंग  भी सामान्य मेधावी बालक थे जिसकी आँखों में सैकड़ो सपने थे  एक दिन वो घटना घट गयी जिसने उन्हें एक अलग कैटेगिरी में धकेल दिया ।  जब वो 21 साल के थे तो एक बार छुट्टियाँ  मनाने के लिए अपने घर पर आये हुए थे , वो सीढ़ी से उतर रहे थे की तभी उन्हें बेहोशी का एहसास हुआ और वो तुरंत ही नीचे गिर पड़े।उन्हें डॉक्टर के पास ले जाया गया, शुरू में तो सब ने उसे मात्र एक कमजोरी के कारण हुई घटना मानी पर बार-बार ऐसा होने पर उन्हें विशेषग्य डॉक्टरर्स  के पास ले जाया गया , जहाँ ये पता लगा कि वो एक अनजान और कभी न ठीक होने वाली बीमारी से ग्रस्त है जिसका नाम है न्यूरॉन मोर्टार डीसीज।इस बीमारी में शारीर के सारे अंग धीरे धीरे काम करना बंद कर देते है,और अंत में श्वास नली भी बंद हो जाने से मरीज घुट घुट के मर जाता है।  डॉक्टरों ने कहा हॉकिंग बस 2 साल के मेहमान है। लेकिन हॉकिंग ने अपनी इच्छा शक्ति पर भरोसा था और उन्होंने कहा की मैं 2 नहीं २० नहीं पूरे ५० सालो तक जियूँगा । उस समय सबने उन्हें दिलासा देने के लिए हाँ में हाँ मिला दी थी, पर आज दुनिया जानती है की हॉकिंग ने जो कहा वो कर के दिखाया ।  अपनी इसी बीमारी के बीच में ही उन्होंने अपनी पीएचडीपूरी की और अपनी प्रेमिका जेन वाइल्ड से विवाह किया | विवाह के समय तक हाकिंग का दाहिना हिस्सा पूरी तरह से लकवाग्रस्त हो गया था और वे छड़ी के सहारे चलते थे |  जैसे -जैसे वो विज्ञानं के क्षेत्र में आगे बढ़ते जा रहे थे , उनकी बीमारी उनके शरीर को और घेरती जा रही थी | उनके शरीर का बायाँ हिस्सा भी मंद पड़ गया , पर शारीरिक अक्षमता उनका हौसला न रोक सकी और उन्होंने अपने अनुसन्धान जारी रखे | कुछ समय बाद उन्हें व्हील चेयर की जरूरत महसोस हुई | उन्हें तकनिकी रूप से सुसज्जित व्हील चेयर उपलब्द्ध करायी गयी | हॉकिंग मृत्यु को मात देते हुए अपना काम करते रहे | वो तीन बच्चों के पिता बने | वो शारीरिक रूप से अक्षम थे पर उन्होंने अपनी मानसिक शक्ति को पूरी तरह से अन्तरिक्ष के रहस्यों की खोज में लगा दिया | उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि इच्छा शक्ति से कुछ भी किया जा सकता है | 1995 में उनकी पहली पत्नी जेन ने उन्हें तलाक दे दिया| बाद में उन्होंने अपनी नर्स इलियाना मेसन से शादी की | जिससे उनका तलाक सन 2006 मैं हो गया | कहा जाता है कि जेन एक धार्मिक महिला थी और हॉकिंग ने अपने प्रयोगों से भगवान् के अस्तित्व को चुनौती दी थी | इस कारण बहुत से लोग उनसे खफा हुए थे| पर हॉकिंग ने उनकी परवाह नहीं की वो लगातार अपने प्रयोगों में आगे बढ़ते रहे, और अपनी मानसिक क्षमता से शारीरिक अक्षमता को जीत लिया | स्टीफन हाकिंग का योगदान –              स्टीफन हॉकिंग का आई क्यू १६० है जो जीनियस से भी ज्यादा है | दरअसल, जिस क्षेत्र में योगदान के लिए उनको याद किया जाता है, वह कॉस्मोलॉजी ही है। कॉस्मोलॉजी, जिसके अंतर्गत ब्रह्माण्ड  की उत्पत्ति, संरचना और स्पेस-टाइम रिलेशनशिप के बारे में अध्ययन किया जाता है। और इसीलिए उन्हें कॉस्मोलॉजी का विशेषज्ञ माना जाता है, जिसकी बदौलत वे थ्योरी ऑफ ‘बिग-बैंग और ‘ब्लैक होल्स की नई परिभाषा गढ़ पाने में कामयाब हो सके हैं। पढ़िए –महान वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग के २१ अनमोल विचार आइये जाने  दुनिया के महान वैज्ञानिक हॉकिंग से बात की बीबीसी संवाददाता टिम मफ़ेट ने। पछताने से अच्छा है वो करो जो कर सकते  हैं :- अपने जीवन पर बन रही इस फ़िल्म के बारे में पूछने पर हॉकिंग कहते हैं ”यह फ़िल्म विज्ञान पर केंद्रित है, और शारीरिक अक्षमता से जूझ रहे लोगों को एक उम्मीद जगाती है। 21 वर्ष की उम्र में डॉक्टरों ने मुझे बता दिया था कि मुझे मोटर न्यूरोन नामक लाइलाज बीमारी है और मेरे पास जीने के लिए सिर्फ दो या तीन साल हैं। इसमें शरीर की नसों पर लगातार हमला होता है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में इस बीमारी से लड़ने के बारे में मैने बहुत कुछ सीखा”। हॉकिंग का मानना है कि हमें वह सब करना चाहिए जो हम कर सकते हैं, लेकिन हमें उन चीजों के लिए पछताना नहीं चाहिए जो हमारे वश में नहीं है। किस उपलब्धि पर है सबसे ज्यादा गर्व :- हॉकिंग को अपनी कौन सी उपलब्धि पर सबसे ज्यादा गर्व है? हॉकिंग जवाब देते हैं ”मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। इसके रहस्य लोगों के लिए खोले और इस पर किए गए शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है। ” परिवार और दोस्तों के बिना कुछ नहीं‘ यह पूछने पर कि क्या अपनी शारीरिक अक्षमताओं की वजह से … Read more

ये ख़ुशी आखिर छिपी है कहाँ

कौन है जो खुश नहीं रहना चाहता, पर हम जितना ख़ुशी के पास जाने की कोशिश करते हैं वो उतना ही दूर भाग जाती है | तो क्या ऐसे में मन नहीं करता कि ये जाने ” ये ख़ुशी आखिर छिपी कहाँ है?                                        ———————————————————————— गुडियाँ हम से रूठी रहोगी  कब तक न हंसोगी  देखोजी किरण सी लहराई  आई रे आई रे  हंसी आई                                  आज पुरानी  फिल्म का ये गाना याद आ रहा है|  गाने की शुरुआत में गुड़ियाँ रूठी होती है पर अंत तक खुश हो कर हंसने लगती है …आखिर कोई कितनी देर नाराज या दुखी रह सकता है  दरसल  खुश  रहना  मनुष्य  का जन्मजात  स्वाभाव  होता  है, आखिर  एक  छोटा  बच्चा  अक्सर  खुश  क्यों  रहता  है ? बिलकुल अपने में मस्त ,बस भूख ,प्यास के लिए थोडा रोया ,कुनकुनाया फिर  हँसने खेलने में मगन।  क्यों  हम  कहते  हैं  कि   “बचपन के दिन भी क्या दिन थे “…बचपन  राजमहल में बीते या झोपड़े में वो इंसान की जिंदगी का सबसे खूबसूरत हिस्सा होता है।  खुश रहना मनुष्य का जन्मगत स्वाभाव होता है |  जैसे -जैसे  हम  बड़े  होते  हैं  हमारा  समाज ,हमारा ,वातावरण हमारे अन्दर विकृतियाँ बढाने लगता हैं ,और हम अपनी सदा खुश रहने की आदत भूल जाते हैं और तो और हममे से कई सदा दुखी रहने का रोग पाल लेते हैं ,जीवन बस काटने के लिए जिया जाने लगता है.पर कुछ लोग अपनी प्राकृतिक विरासत बचाए रखते हैं ,और सदा खुश रहते हैं| प्रश्न उठता है क्या उनको विधाता ने अलग मिटटी से बनाया है ,या पिछले जन्म के कर्मों की वजह से उनके जीवन में कोई दुःख आया ही नहीं है। उत्तर आसन है …  नहीं , औरों  की  तरह  उनके  जीवन  में  भी  दुःख-सुख  का  आना  जाना  लगा  रहता  है ,  पर  आम तौर  पर  ऐसे  व्यक्ति  व्यर्थ की   चिंता  में  नहीं  पड़ते और  अक्सर  हँसते -मुस्कुराते  और  खुश  रहते  हैं | तो  सवाल  ये  उठता  है  कि  जब  ये  लोग  खुश  रह  सकते  हैं  तो बाकी  सब  क्यों  नहीं ?आखिर उनकी ऐसी कौन सी आदतें हैं जो  उन्हें दुनिया भर की चिंताओं से मुक्त रखती है और दुःख -दर्द  के बीच भी खुशहाल बनाये रखती हैं ? आज  इस  लेख  के  जरिये  मैं  आपके  साथ  खुशहाल लोगों की कुछ  आदतें बताने जा रही हूँ  जो  शायद  आपको  भी  खुश  रहने  में  मदद  करें .तो  आइये  जानते  हैं उन ख़ास  आदतों को :  ख़ुशी का फार्मूला न. 1-जो है सब अच्छा है                                           बड़ी मामूली सी बात है पर है बहुत  उपयोगी|  हम अक्सर अपने आस -पास के लोगों की बुराइयां खोजते हैं। हमने तो इतना किया था पर उसने तो मेरे साथ ये तक नहीं किया , हमने तो उसके सारे  अपशब्द बर्दाश्त कर लिए पर वो तो एक बात में ही बुरा मान कर चला गया आदि -आदि मनोवैज्ञानिक इसे “नकारात्मक पूर्वधारणा “भी कहते  हैं | अधिकतर  लोग  दूसरों  में  जो कमी  होती  है  उसे  जल्दी देख  लेते  हैं  और  अच्छाई  की  तरफ  उतना  ध्यान  नहीं  देते  पर  खुश  रहने  वाले  तो  हर एक चीज  में , हर एक  परिस्थिति  में  अच्छाई  खोजते  हैं , वो  ये  मानते  हैं  कि  जो  होता  है  अच्छा  होता  है .  किसी  भी  व्यक्ति  में  अच्छाई  देखना  बहुत  आसान  है ,बस  आपको  खुद  से  एक  प्रश्न  करना  है , कि , “ आखिर  क्यों  यह  व्यक्ति  अच्छा  है ?” , और  यकीन  जानिये  आपका  मस्तिष्क  आपको  ऐसी  कई  अनुभव और  बातें  गिना  देगा  की  आप  उस  व्यक्ति  में  अच्छाई  दिखने  लगेगी |यहाँ पर ध्यान देने की ब  बात  यह है कि, आपको  अच्छाई  सिर्फ  लोगों  में  ही  नहीं  खोजनी  है , बल्कि  हर एक  परिस्थिति  में  खोजनी है और सकारात्मक  रहना  है  और  उसमे  क्या  अच्छा  है  ये  देखना  है| सुप्रसिद्ध कवि हरिवंश  राय बच्चन का अपने पुत्र अमिताभ बच्चन को समझाने का एक बहुत विख्यात वाक्य है …. अगर मन की हो रही है तो खुश रहो ,और अगर मन की न हो रही हो तो और खुश रहो क्योंकि वह ईश्वर के मन की हो रही है  ईश्वर अपने बच्चों के साथ कभी अन्याय नहीं करता।  उदाहरण के तौर पर  अगर  आप  को कोई नौकरी या सफलता नहीं मिली   तो  आपको  ये  सोचना  चाहिए  कि  शायद  भागवान  ने  आपके  लिए  उससे  भी  अच्छी  नौकरी या सफलता छुपा कर रखी  है जो आपको देर-सबेर  मिलेगी, और आप किसी अनुभवी व्यक्ति से पूछ भी सकते हैं, वो भी आपको यही बताएगा . ख़ुशी का फार्मूला न.2-कही -सुनी सब मॉफ  करे                                    हम सब अपने सर पर कितना बड़ा पिटारा लिए घूम रहे हैं | लोगों की कही -सुनी बातों का हर रोज़ पिटारा खोलते हैं ,उन बातों को निकालते हैं,सहलाते हैं और फिर पिटारा बंद कर देते हैं और उस पिटारे में बंद कर देते हैं अपनी खुशियाँ  ….  है न सही ,सच तो  यह है कि हर  किसी  का  अपना -अपना अहंकार  होता  है , जो  जाने -अनजाने  औरों  द्वारा  घायल  हो  सकता  है , पर  खुश  रहने  वाले  छोटी छोटी  बातों को  दिल  से  नहीं  लगाते  वो   माफ़  करना  जानते  हैं , सिर्फ  दूसरों  को  नहीं  बल्कि  खुद  को  भी |  इसके  उलट  यदि  ऐसे  लोगों  से  कोई  गलती  हो  जाती  है , तो  वो  माफ़ी  मांगने  से  भी  नहीं  कतराते | वो  जानते  हैं  कि  मिथ्याभिमान  उनकी  जिंदगी की परेशानियां बढ़ा देगा बन इसलिए  वो  अरे मॉफ कर दीजिये या सॉरी  बोलने  में  कभी  कतराते नहीं | माफ़  करना  और  माफ़ी  माँगना  आपके  दिमाग  को  हल्का  रखता   है , आपको  बेकार   की  उलझन  और  परेशान  करने  वाली  नकारात्मक विचारों  से  बचाता  है , और   आप  खुश  रहते  हैं |                                                   ख़ुशी का फार्मूला न.3-तुम मेरे साथ हो                      अकेला हूँ मैं इस दुनियाँ में ,साथी है तो मेरा साया ……ये गाना सुनने में जितना अच्छा लगता है भोगने … Read more