पहला” क्षितिज लघुकथा समग्र सम्मान2018″

लघुकथा साहित्य की वो विधा है जिसमें कम शब्दों में अपनी बात को कहा जाता है | यह साहित्य की बहुत लोकप्रिय विधा है | लघुकथा  पत्रिका क्षितिज जो 1983 से प्रकाशित हो रही है ने 2018 से हर वर्ष  दो बड़े सम्मान देने की घोषणा की है | प्रस्तुत है पहले सम्मान समारोह की विस्तृत रिपोर्ट … पहला” क्षितिज लघुकथा समग्र सम्मान2018,” उज्जैन के लघुकथाकार श्री संतोष सुपेकर को प्रदान नव वर्ष के स्वागत में मकर सक्रांति के अवसर पर रविवार दिनांक 14 जनवरी 2018 की शाम को क्षितिज संस्था द्वारा एक रचना पाठ संगोष्ठी  का आयोजन डॉ वसुधा गाडगिल के निवास पर इंदौर में किया गया।  इस आयोजन की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवम रंगकर्मी श्री नंदकिशोर बर्वे ने की। कार्यक्रम में ‘क्षितिज ‘ संस्था द्वारा वर्ष 2018 से शुरू किए गए  ‘लघुकथा समग्र सम्मान‘ को इस वर्ष के लिए लघुकथाकार  श्री संतोष सुपेकर (उज्जैन) को , लघुकथा के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिये प्रदान कर सम्मानित किया गया। संस्था अध्यक्ष श्री सतीश राठी उपाध्यक्ष डॉ अखिलेश शर्मा , सचिव अशोक शर्मा तथा आगत अतिथियों ने शाल,श्रीफल से सम्मानित कर  सम्मान पत्र (मोमेंटो) प्रदान किया।सम्मान पत्र का वाचन संस्था सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने किया।संस्था अध्यक्ष द्वारा इस वर्ष में किये जाने वाले विविध आयोजनों की जानकारी दी गई। कार्यक्रम में सर्वश्री पुरुषोत्तम दुबे ,ब्रजेश कानूनगो,डॉ पदमा सिंह, सतीश राठी  ,अशोक शर्मा भारती ,रश्मी वागले, वसुधा गाडगिल ,विनीता शर्मा , डॉ अखिलेश शर्मा, जितेन्द्र गुप्ता, बी .आर. रामटेके,आशा वडनेरे, वैजयंती दाते, डॉ रमेशचंद्र, राममूरत राही, आभा निवसरकर, आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।  पढ़ी गई रचनाओं पर अश्विनी कुमार दुबे ने टिप्पणी करते हुए कहा  कि – लघुकथा अधिक से अधिक बात को थोडे़ में कहने की विधा है जिसके साथ इस गोष्ठी में न्याय हुआ है।  आपने सभी लघुकथाओं पर विस्तृत चर्चा करते हुए उनमें निहित सार्थक संदेश और सकारात्मकता की सराहना की। सुश्री कविता वर्मा ने भी रचना पाठ की समीक्षा करते हुए लघुकथा पर चर्चा को जरूरी बताते हुए इंदौर के लघुकथाकारों द्वारा देश में नाम और सम्मान पाने के लिए शुभकामनाएं प्रेषित की। आपने लघुकथाओं की समालोचना करते हुए उनके बिंब और प्रतीकों में अंतर्निहित अर्थ की विवेचना की। क्षितिज लघुकथा समग्र  सम्मान 2018 ,से सम्मानित श्री संतोष सुपेकर का वक्तव्य   क्षितिज लघुकथा समग्र  सम्मान 2018 ,से सम्मानित श्री संतोष सुपेकर ने अपने वक्तव्य में कहा कि, लघुकथा की टोकरी भर मिट्टी की सोंधी सोंधी महक विश्व स्तर पर विकसित हो रही है। इस नन्ही सी उर्वरा से उपजे विचार ने कहानी ,व्यंग्य ,उपन्यास जैसे वटवृक्षों को जन्म दिया है। इसके साथ ही उन्होंने अपनी कुछ लघुकथाओं और कविताओं का पाठ भी किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ रंगकर्मी एवम साहित्यकार नंदकिशोर बर्वे ने कहा कि, लघुकथा में इतनी ताकत होती है कि वह बड़ी से बड़ी बात को अपने छोटे स्वरुप में बड़े ही तीखे तरीके से संप्रेषित कर देती है। 2018 से हो रही है लघुकथा सम्मानों की शुरुआत   श्री सतीश राठी ने बताया कि , क्षितिज‘ संस्था द्वारा लघुकथा पत्रिका क्षितिज का वर्ष 1983 से  सतत प्रकाशन किया जा रहा है, और इस वर्ष से प्रतिवर्ष दो बड़े लघुकथा सम्मानों की शुरुआत की जा रही है और इसके अलावा,  दो दिवसीय बड़े लघुकथा आयोजन की योजना भी बनाई जा रही है। श्री अखिलेश शर्मा ने वर्ष 2018 के लिए नई कार्यकारिणी की जानकारी भी दी। कॉर्यक्रम का संचालन सुश्री वसुधा गाडगिल ने  किया और आभार प्रदर्शन श्री विष्णु गाडगिल ने किया। रिपोर्ट  क्षितिज संस्था  यह भी पढ़ें … लघुकथा में लोक मांगलिक चेतना होना जरूरी क्षितिज संस्था की पावस काव्य गोष्ठी क्षितिज लघुकथा संगोष्ठी – कहानी का शोर उसकी सबसे बड़ी बाधा है सतीश राठी की लघुकथाएं आपको  रिपोर्ट  “पहला” क्षितिज लघुकथा समग्र सम्मान2018″कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें 

लघुकथा में लोक मांगलिक चेतना होना जरूरी है ।-सूर्यकांत नागर

 डॉक्टर रमेश चंद्र की लघुकथाएं सादगी से भरी हुई है। जैसा उनका सहज जीवन है, वैसी ही उनकी लघुकथाएं हैं ।उनका जीवन उनकी लघुकथाओं में प्रतिबिंबित होता है। उनकी लघुकथाएं जनपक्षधर हैं ,और लघुकथा में लोक मांगलिक चेतना होना जरूरी है। उसी से जन जागृति आती है। यह बात वरिष्ठ कथाकार सूर्यकांत नागर ने ‘क्षितिज’ संस्था द्वारा आयोजित डॉक्टर रमेश चंद्र के लघुकथा संग्रह ‘ मौत में जिंदगी ‘ के लोकार्पण प्रसंग पर, अपने अध्यक्षीय उदबोधन में कहीं। उन्होंने यह भी कहा कि, लघुकथा को किसी नियमावली में नहीं बांधा जा सकता। शिल्प के स्तर पर निरंतर प्रयोग हो रहे हैं, और प्रयोग से ही प्रगति होती है।  कार्यक्रम के अतिथि के रुप में खंडवा से पधारे कवि डॉक्टर प्रताप राव कदम ने पुस्तक की लघुकथाओं के शिल्प की तारीफ की, और कुछ महत्वपूर्ण लघुकथाओं का ज़िक्र भी किया । डॉक्टर पुरुषोत्तम दुबे ने कहा कि, इन लघुकथाओं में प्रतिकात्मक स्तर पर कई बातें कही गई हैं, और पौराणिक व्यंजनाओं का सशक्त इस्तेमाल किया गया है। उन्होंने’ कबीर का फाइव स्टार होटल ‘ लघुकथा की विवेचना की। डॉक्टर योगेंद्रनाथ शुक्ल ने पुस्तक पर चर्चा करने के साथ ही उन साहित्यिक षड्यंत्रों का जिक्र किया, जो प्रेमचंद को साहित्य से खारिज करने की बात करते हैं । उन्होंने कहा कि आज के लेखकों ने अपनी लाइन बड़ी करने के लिए इतिहास के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। पुस्तक पर समीक्षा आलेख में कवि ब्रजेश कानूनगो ने कहा कि, रमेश जी सचमुच मानवीय रिश्तो और मानवीय प्रवृतियों से संवेदित होकर सरल रुप से अपनी अनुभूतियों को लघुकथा का स्वरूप देते हैं। उन्होंने कहा कि लेखक एक व्यंग्यकार भी है और जब एक व्यंग्य दृष्टि सम्पन्न लेखक किसी अन्य विधा में अपनी बात कहता है तो वहां भी व्यंग्य के उपस्थित होने की अपेक्षा पाठक को हो जाती है। श्रीमती ज्योति जैन ने लघुकथाओं को सांकेतिक बताते हुए कहा कि, वह कम शब्दों में पुरअसर तरीके से अपनी बात कहती है ।उनकी दो रुपए तथा पेड़ औऱ मनुष्य लघुकथाओं का ज़िक्र करते हुए कहा कि इनमें सांकेतिक माध्यमों का उपयोग किया गया है। डॉ रमेशचंद्र ने अपनी लघुकथाओं का वाचन किया एवम अध्यक्ष के हाथों पुस्तक का लोकार्पण करवाया। कार्यक्रम का संचालन क्षितिज के अध्यक्ष एवम कथाकार सतीश राठी ने किया और आभार सुरेश बजाज ने माना।  कार्यक्रम में सर्वश्री राकेश शर्मा संपादक वीणा, सुरेश उपाध्याय, प्रदीप मिश्र, रजनी रमण शर्मा, हरेराम वाजपेई ,तीरथ सिंह खरबंदा, अशोक शर्मा ,कविता वर्मा ,अश्विनी कुमार दुबे अंतरा करवड़े आदि कई साहित्यकार उपस्थित थे । उज्जैन से साहित्य मंथन संस्था के साहित्यकार रमेश चन्द्र शर्मा एवं मित्रगण भी इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आए थे।

क्षितिज संस्था की पावस काव्य गोष्ठी

वर्षा ऋतु के स्वागत में क्षितिज संस्था द्वारा देवी अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय इंदौर के अध्ययन कक्ष में  ‘पावस कविता गोष्ठी’ का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि,आलोचक डॉ ओम ठाकुर थे। अध्यक्षता व्यंग्यकार एवं वरिष्ठ उपन्यासकार श्री अश्विनी कुमार दुबे ने की। गोष्ठी में सर्वश्री पुरुषोत्तम दुबे, डॉ ओम ठाकुर, ब्रजेश कानूनगो, सतीश राठी, वेद हिमान्शु, डॉ रमेश चंद्र, डॉ चंद्रा सायता, कविता वर्मा,शरद गुप्ता, विनीता शर्मा,अंजनी कुमार, चंद्रभान राही, अशोक शर्मा भारती, अजय पुराणिक आदि ने गीत एवं  कविताओं का पाठ किया गया । इस अवसर पर लघु पत्रिका’ छह शब्द’ के  राजकमल चौधरी पर केंद्रित अंक का विमोचन भी किया गया। पत्रिका के संपादक श्री पुरुषोत्तम दुबे हैं, इस विशेष अंक का अतिथि संपादन डॉक्टर ओम ठाकुर ने किया है। रणजीत सिंह कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉक्टर पुष्पेंद्र दुबे ने पत्रिका के विशेष अंक पर वक्तव्य देते हुए राजकुमार चौधरी के कवि कर्म की विशेषताओं को रेखांकित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री अश्विनीकुमार दुबे ने कहा कि ब्रह्मांड में पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां वर्षा होती है। यही कारण है कि यहां मनुष्य के भीतर, बाहर संवेदनाओं की बारिश से ही कविता और साहित्य का सृजन सम्भव हो पाता है।उन्होंने कहा कि गीत तो प्रायः लय और संगीत के वाहक होते ही हैं लेकिन स्व नरेश मेहता के रचना पाठ में समकालीन छंद मुक्त कविताओं में जो संगीत सुनाई देता था वह ब्रजेश कानूनगो की कविताओं को सुनकर भी महसूस हुआ। श्री सतीश राठी और श्री अजय पुराणिक की संवेदनशील कविताओं सहित सभी कवियों की रचनाओं पर उन्होंने संक्षिप्त एवं सारगर्भित टिप्पणी दी। कार्यक्रम का संचालन क्षितिज संस्था के अध्यक्ष सतीश राठी  द्वारा किया गया एवं आभार श्री सुरेश बजाज ने माना। इस अवसर पर कथाकार सुश्री कविता वर्मा, वरिष्ठ रचनाकार श्री सुरेश उपाध्याय सहित अनेक प्रबुद्ध श्रोता,रचनाकार एवं पाठक उपस्थित थे।

सतीश राठी की लघुकथाएं

===माँ ===   बच्चा , सुबह विधालय के लिए निकला और पढ़ाई के बाद खेल के पीरियड में ऐसा रमा कि दोपहर के तीन बज गए | माँ डाँटेगी! डरता – डरता घर आया | माँ चौके में बैठी थी , उसके लिए खाना लेकर | देरी पर नाराजगी बताई , पर तुरंत थाली लगाकर भोजन कराया | भूखा बच्चा जब पेट भर भोजन कर तृप्त हो गया तो , माँ ने अपने लिए भी दो रोटी और सब्जी उसी थाली में लगा ली | ‘’ ये क्या माँ  ! तू भूखी थी अब तक ? ‘’ ‘’ तो क्या  ! तेरे पहले ही खा लेती क्या  ? ‘’ तेरी राह तकती तो बैठी थी  | ‘’ अपराध बोध से ग्रस्त बच्चे ने पहली बार जाना कि माँ सबसे आखिर में ही  भोजन करती है |  =======जन्मदिन ====== ‘’ सुनो  ! अपना गोलू आज एक साल का हो गया है  | ‘’ गोलू के मुँह में सूखा स्तन ठूँसते हुए सुगना  ने अपने चौकीदार पति से कहा  | ‘’ तुम्हें कैसे याद रह गया इसका जन्मदिन  ? ‘’ चौकीदार का प्रश्न था  | ‘’ उसी दिन तो साहब की अल्सेशियन कुतिया ने यह पिल्ला जना था  , जिसका जन्मदिन कोठी में धूमधाम से मनाया जा रहा है  | ‘’ – ठंडी साँस लेते हुए सुगना बोली | ======= संवाद ======== छोटी सी बात का बतंगड़ बन गया था | पूरे चार दिनों से दोनों के मध्य  संवाद स्थगित था | पत्नी का यह तल्ख़ ताना उसके मन के बाने को चीर – चीर कर गया था कि  – ‘’ विवाह को वर्ष भर हो गया ,एक साड़ी भी लाकर दी है तुमने  ? ‘’ शब्दों की आँचमें सारा खून छीज गया था | अपमान का पारा सिर चढ़कर तप्त तवे सा हो उठा था  , और वह कड़वे नीम से कटु शब्द बोल गया था कि – ‘’ नई साड़ियाँ पहनने का इतना शौक था तो अपने पिता से कह दिया होता ; किसी साड़ी की दूकान वाले से ही ब्याह कर देते  |’’ तब से दोनों के बीच स्थापित अबोला आज तक जारी था | यों रोज़ उसके सारे कार्य समय समय पर पूर्ण हो जाते थे …शेव की कटोरी से लेकर भोजन की थाली और प्रेसबंद कपड़ों तक | बस सिर्फ प्रेम और मनुहार की वे समस्त बातें अनुपस्थित थी , जिनके बिना दोनों एक पल भी नहीं रह पाते थे | लेकिन आज ! आज जब आफिस से उसे आदेश मिला कि पन्द्रह दिनों के डेपुटेशन पर भोपाल जाना है तो घर आकर वह स्वयं को रोक नहीं पाया रुँधे गले से भीगे शब्द निकल पड़े – ‘’ सुनो सुमि  ! मेरा सूटकेस सहेज देना , पन्द्रह दिनों के लिए भोपाल जाना है  |’’  ‘’ क्या …? भोपाल  ! !   पन्द्रह दिनों के लिए  ! ! ! और इतना बोलकर सुमि के शेष बचे शब्द आँसुओं  में बह पड़े | उनकी आँखों से बहते गर्म अश्रु आपस में ढेर सारी बातें करने लगे | ======== विवादग्रस्त ======== घर के दरवाजे पर आकर एक क्षण के लिए वह ठिठक गया | सुबह भोजन की थाली पर बैठा ही था कि बेबात की बात पर पत्नी से विवाद हो गया था और बिना भोजन किए ही वह आफिस चला गया था | धीमे से उसने दरवाजा बजाया | पत्नी ने आकर दरवाजा खोला और मौन रसोई में चली गई | उसने कपड़े बदले और लुंगी पहिन कर , नल से हाथ – मुँह धोने लगा | पत्नी चुपचाप टावेल रखकर चली गई |  वातावरण की चुप्पी सुबह के तनाव को फिर से गहरा कर रही थी | रसोई में गया तो पत्नी ने भोजन की थाली सजाकर उसकी ओर खिसका दी | उसने देखा की उसकी प्रिय सब्जी फ़्राय गोभी थाली में थी |  प्रश्नवाचक निगाहों से पत्नी की ओर देखकर वह बोला – ‘’ और तुम ? ’’  ‘’ मुझे भूख नहीं हैं  | ’’ – पत्नी ने सिर झुकाकर धीमे से कहा |  ‘’ तो .. मैं भी नहीं खा रहा  |’’ – कहकर वह उठने लगा तो पत्नी ने हाथ पकड़कर बैठा लिया और एक पराठा थाली में अपने लिए भी रख लिया  |  दोनों एक दूसरे की आँखों में झाँककर धीरे से मुस्कुरा दिए | वह सोचने लगा कि विवाद आखिर किस बात पर हुआ था , लेकिन बात उसे याद नहीं आई | ========== खुली किताब ===========  वह सदैव अपनी पत्नी से कहता रहता कि , ‘’ जानेमन  !मेरी जिन्दगी तो एक खुली किताब की तरह है …जो चाहे सो पढ़ ले | ’’ इसी खुली किताब के बहाने कभी वह उसे अपने कॉलेज में किए गए फ्लर्ट के किस्से सुनाता , तो कभी उस जमाने की किसी प्रेमिका का चित्र दिखाकर कहता – ‘’ ये शीला …उस जमाने में जान छिड़कती थी हम पर….हालाँकि अब तो दो बच्चों की अम्मा बन गई होगी  | ‘’   पत्नी सदैव उसकी बातों पर मौन मुस्कुराती रहती  | इस मौन मुस्कुराहट को निरखते हुए एक दिन वह पत्नी से प्रश्न कर ही बैठा — यार सुमि  ! हम तो हमेशा अपनी जिन्दगी की किताब खोलकर तुम्हारे सामने रख देते हैं  , और तुम हो कि बस मौन मुस्कुराती रहती हो | कभी अपनी जिन्दगी की किताब खोलकर हमें भी तो उसके किस्से सुनाओ  | ’’   मौन मुस्कुराती हुई पत्नी एकाएक गम्भीर हो गई , फिर उससे बोली —‘’ मैं तो तुम्हारे जीवन की किताब पढ़ – सुनकर सदैव मुस्कुराती रही हूँ , लेकिन एक बात बताओ ….मेरी  जिन्दगी की किताब में भी यदि ऐसे ही कुछ पन्ने निकल गए तो क्या तुम भी ऐसे ही मुस्कुरा सकोगे   ? ‘’    वह सिर झुकाकर निरुत्तर और मौन रह गया | ========== आटा और जिस्म ===========  दोनों हाथ मशीन में आने से सुजान विकलांग हो गया | नौकरी हाथ से गयी | जो कुछ मुआवजा मिला वह कुछ ही दिनों में पेट की आग को होम हो गया | रमिया बेचारी लोगों के बर्तन माँजकर दोनों का पेट पाल रही थी |   पर … आज  ! आज स्थिति विकट थी | दो दिनों से आटा नहीं था और भूख से बीमार सुजान ने चारपाई पकड़ … Read more

लघुकथा संगोष्ठी -क्षितिज :कहानी का शोर उसकी सबसे बड़ी बाधा है।

लघुकथा एक ऐसी विधा है जिसमे शिल्प के साथ ही कथानक का होना जरूरी है क्योंकि यह कथानक ही भाव और संवेदना को पाठक तक ले जाता है। कथानक की संवेदना तीव्रता से पाठक तक पहुंचना भी जरूरी है लेकिन इसके लिए पाठकों पर विश्वास करते हुए बहुत धैर्य की जरूरत है। कथानक ना तो बहुत वर्णनात्मक हो और ना ही कथा का अंत बहुत खुला हुआ हो। सांकेतिक कथा विशिष्ठ प्रभाव छोड़ती है। क्षितिज की लघुकथा गोष्ठी में अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर जी ने पढ़ी गई लघुकथाओं पर बात करते हुए कहा कि हर विधा के कुछ नियम होते हैं जिन्हें मानना जरूरी होता है लघुकथा में कल्पनाशीलता और कला का समावेशी होना बेहद जरूरी है। लघुकथा में कुछ अनकहा रह जाये जिसे पाठक आसानी से पकड़ ले यह कला लघुकथा लेखक में होनी चाहिए। क्षितिज संस्था सन 1977 से लघुकथाओं पर काम कर रही है और लघुकथाओ  पर पत्रिका का प्रकाशन कर रही है। उस समय इंदौर के लघुकथाकार सायकिल पर इन गोष्ठियों में शामिल होने आते थे। क्षितिज के शुरूआती दिनों से जुड़े कई लघुकथाकार आज की इस गोष्ठी में शामिल हुए हैं और साथ ही नई पीढ़ी के भी कई लघुकथाकार इसमें सहभागिता कर रहे हैं यह गर्व का विषय है। कार्यक्रम का आगाज़ करते हुए क्षितिज के अध्यक्ष सतीश राठी जी ने यह बात कही और सबका स्वागत किया।  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ व्यंग्यकार जवाहर चौधरी ने कहा लघुकथा से पहला परिचय चंदामामा की लघुकहानियों के माध्यम से हुआ था जिन्हें बहुत चाव से पढ़ा जाता था। जब लघुकथा विधा अपने शैशवकाल में थी तब इन्हीं कथाओं की स्मृति इन्हें रचने की राह दिखाती थी।  रविवार को अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय में हुए कार्यक्रम में डॉक्टर रमेश चंद्र , अशोक शर्मा भारती , पुरुषोत्तम दुबे , सतीश राठी, योगेंद्र नाथ शुक्ल , अश्विनी कुमार दुबे , ब्रजेश कानूनगो , वेद हिमांशु ,  कविता वर्मा , अंतरा करवड़े , डॉक्टर दीपा व्यास , विनीता शर्मा , डॉ अखिलेश शर्मा, सुरेश बजाज,शारदा गुप्ता,कृष्णकांत निलोसे सहित शहर के अठारह लघुकथाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। सभी ने अपनी दो दो रचनाएँ सुनाई।  रचनाओं पर चर्चा हुए श्री सुरेश उपाध्याय ने उनमे मौजूद सूक्ष्म निरीक्षण और उनकी सुघड़ता की सराहना की। तो प्रदीप कान्त ने निरीक्षण को सशक्त रूप से विधा में बदलने की कला को इंगित किया।  प्रदीप मिश्र ने चुनिंदा लघुकथाओं पर बात करते हुए उनकी भविष्य दृष्टी , स्ट्रोक , काव्यात्मकता , व्यंग्यात्मकता और भाषा शिल्प को इंगित किया। नंदकिशोर बर्वे ने लघुकथा की गागर में सागर भरने को श्रमसाध्य कार्य निरूपित किया। जलेस अध्यक्ष रजनीरमण शर्मा ने अपने निरीक्षण को सही समय पर प्रस्तुत करने की जरूरत पर जोर दिया और कहा लघुकथाओं में बड़ी बड़ी कहानियाँ समाहित होती हैं इन्हें आज के समय के तीखेपन और शिद्दत के साथ दर्ज करें।  कार्यक्रम के दौरान स्वर्गीय सतीश दुबे और एन. उन्नी जी को लघुकथा में उनकी पारंगतता के लिए याद किया गया। अंत में अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।  रपट कविता वर्मा